मंगलवार, 30 अगस्त 2022

 

काफ़िर

 प्रस्तावना

इस्लामाबाद, 1975

प्रधानमंत्री निवास मे एक गुपचुप मीटिंग चल रही थी। रात गहरी होती जा रही थी परन्तु सभी लोग सिर पकड़ कर बैठे हुए थे। प्रधानमंत्री जुल्फी की बहस पदासीन जनरल हक के साथ काफी देर से चल रही थी। …हक मियाँ, आप की नियुक्ति की सिर्फ एक शर्त थी कि 1971 की हार का बदला भारत से कैसे लिया जाए। चार साल बीत गये है लेकिन अब तक आपकी ओर से कोई सुझाव नहीं आया है। बीते साल मे भारत द्वारा परमाणु विस्फोट के सफल परीक्षण के कारण अब हमारा वुजूद खतरे मे पड़ गया है। हमारी आवाम बेचैन है और आप रक्षा बजट बढ़ाने की बात कर रहे हो। प्रधानमंत्री का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। …जनाब आपका सोचना सही है। अब जब तक हमारे हाथ परमाणु बम्ब नहीं लगता तब तक भारत के साथ परंपरागत युद्ध मे हमारी हार निश्चित है। मै आपके पास पिछले एक साल मे दर्जन से ज्यादा सुझाव लेकर आया था परन्तु आपने सभी को खारिज कर दिया। आप मुझसे और क्या चाहते है? तभी एक विदेशी मूल का आदमी धीरे से बोला… तीन युद्ध मे हारने के बाद भी…। जनरल हक ने बीच मे टोकते हुए कहा… दो युद्ध कहिए जनाब। …जनरल आप लोग पहला युद्ध 1965 को मानते है और भारत ने 1947 के कबायली आक्रमण को पहला युद्ध माना है। कबायली हमले मे आपको कुछ हद तक कामयाबी मिली क्योंकि आप मुजफराबाद, गिलगिट और बाल्टीस्तान पर कब्जा जमाने मे सफल हो गये थे परन्तु इस कामयाबी का श्रेय आपकी फौज के बजाय भारत के बेवकूफ नेतृत्व को जाता है। इसका प्रमाण जल्दी ही आपने अगली दो लड़ाईयों मे देख लिया था जहाँ आपने बुरी तरह शिकस्त खायी थी। प्रधानमंत्री ने घुर्राते हुए कहा… क्या मतलब है आपका मिस्टर स्टोन? …एक्सीलैन्सी मेरा सिर्फ इतना मतलब है कि आप कभी भी भारत से सीधे परंपरागत युद्ध मे नहीं जीत सकते भले ही आपके पास परमाणु हथियारों का जखीरा ही क्यों न हो। इसीलिए मेरा मानना है कि कश्मीर के लिए आपको अपनी युद्ध नीति मूल-चूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री जुल्फी ने कुछ सोचते हुए कहा… मिस्टर स्टोन आपका कथन कटु परन्तु सत्य है। आप ही कोई युक्ति बताईए। मेरी फौज के आला अफसर तो आपके सामने बैठे है। आपने देख लिया कि यह कितने काबिल है। इनको अपना घर भरने से फुरसत मिले तो यह पाकिस्तान के लिए सोचेंगें। यह सुन कर जनरल हक के साथ बैठे हुए अन्य अधिकारियों के चेहरे भी गुस्से से तमतमा उठे थे। स्टोन ने माहौल भाँपते ही तुरन्त बीचबचाव करते हुए कहा… एक्सीलैन्सी आप कुछ ज्यादा ही इनके प्रति कठोर रवैया अपना रहे है। हमे समझने की जरुरत है कि 1947 मे कामयाबी मिलने के मुख्य कारण क्या रहे थे? सीआईए के अनुसार उस वक्त आपकी फौज ने एक छद्म सेना की भांति युद्ध लड़ा था। कबायलियों के भेष मे आपकी 15 बलूच रेजीमेन्ट कश्मीर सीमा मे घुसने मे कामयाब हो सकी थी क्योंकि दुश्मन की फौज मे मुस्लिम सैनिकों ने बगावत कर दी थी। जब तक दिल्ली से फौज कश्मीर पहुँचती तब तक आपकी फौज श्रीनगर तक पहुँच गयी थी। मेरा सिर्फ इतना कहना है कि इतिहास से सीखने की जरुरत है। अगर आप दिल्ली पर कब्जा करने की मंशा लेकर बैठे है तो इसका रास्ता कश्मीर से होकर जाता है। इसके लिए कश्मीर की स्थानीय मुस्लिम आबादी को भारतीय फौज के खिलाफ बगावत करनी पड़ेगी जैसे कि भारत ने बंगाली मुक्तिवाहिनी को खड़ा करके 1971 मे बांग्लादेश बना दिया था। प्रधानमंत्री जुल्फी ने जनरल हक की ओर देखते हुए…  जनरल मेरी सलाह है कि आप लोग सीआईए के साथ बैठ कर एक योजना तैयार कीजिए कि कैसे हम एक इस्लामिक फौज कश्मीर मे खड़ी कर सकते है। मेरा वादा है कि मै उस योजना को कार्यान्वित करने के लिए अलग से पैसों का इंतजाम रक्षा बजट मे कर दूँगा। मिस्टर स्टोन क्या मै आपसे सीआईए के सहयोग की माँग कर सकता हूँ। जनरल हक जो अभी तक स्टोन की सारी बात चुपचाप सुन रहा था उसने एक नजर घुमा कर अपने कोर कमांडरों की ओर देखा और वह धीरे से बोला… जनाब, पिछले चार महीने से मिस्टर स्टोन की टीम के साथ मिल कर हमने कश्मीर के लिए एक फौजी डाक्ट्रीन का मसौदा तैयार किया है। इसका नाम है भारत को हजार घाव ऐसे दो कि वह लगातार रिसते रहे। वह आपके लिए मै छोड़ कर जा रहा हूँ। अगर आपको यह ठीक लगे तो इसको कार्यान्वित करने का ब्लू प्रिंट अगले तीन महीने मे आपके सामने रख दिया जाएगा। अब इजाजत दीजिए, खुदा हाफिज़। जनरल हक अपनी कुर्सी छोड़ कर खड़ा हो गया और उसी के साथ उसके सभी कोर कमांडर भी खड़े हो गये थे। प्रधानमंत्री ने जनरल हक की फाईल पर एक नजर मार कर कहा… जनरल, मै उम्मीद करता हूँ कि यह योजना पहले की दी हुई योजना जैसी नहीं होगी। चुनाव का माहौल है इसलिए मै व्यर्थ मे अपना समय खराब नहीं करना चाहता। पूरी बात सुने बिना जनरल हक अपने कोर कमांडरों के साथ कमरे से बाहर निकल गया।

सीआईए के स्टोन ने धीरे से कहा… एक्सीलैन्सी, जनरल हक मेरे ख्याल से बुरा मान गये है। आपने उनके मातहतों के सामने उनकी बेइज्जती की है। आपको फौज से सावधान रहने की आवश्यकता है। …मिस्टर स्टोन इस आदमी को मैने जनरल बनाया है। यह मेरा पालतू है। आप बेफिक्र रहिए। वैसे भी 1971 के युद्ध की हार ने फौज का मनोबल काफी गिरा दिया है और वैसे भी पाकिस्तानी आवाम इनसे नाराज है। …एक्सीलैन्सी, आपके लिए युएस स्टेट डिपार्टमेन्ट की ओर से संदेश है कि आप अपने परमाणु कार्यक्रम पर तुरन्त रोक लगा दे अन्यथा अमरीका से आने वाली वित्तीय मदद रोक दी जाएगी। मेरे पास पुख्ता जानकारी है कि आपने रक्षा बजट का काफी पैसा इस काम के लिए गोपनीय तरीके से चीन की म्ध्यस्ता मे उत्तर कोरिया को दिया है। यह बेहद आपत्तिजनक बात है। हमसे आपकी कोई बात छिपी नहीं है। जिन ली पेंग के साथ आपकी नजदीकियाँ हमको आपसे दूर कर देंगी। अच्छा मुझे इजाजत दीजिए। खुदा हाफिज। यह बोल कर प्रधानमंत्री जुल्फी को अकेला कमरे मे छोड़ कर स्टोन  बाहर निकल गया था। उसके जाने के बाद प्रधानमंत्री जुल्फी गहरी सोच मे डूब गया।

ठीक दो साल बाद 1977 मे जनरल हक ने पाकिस्तान मे प्रधानमंत्री जुल्फी के खिलाफ फौजी बगावत करके तख्ता पलट कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। इसमे किसी को कोई शक नहीं था कि इस तख्ता पलट के पीछे अमरीका और साउदी अरब का हाथ था।

इस्लामाबाद, 1987

उसी कमरे मे बारह साल बाद एक बार फिर से राष्ट्रपति हक की अपने कोर कमांडरों, आईएसआई के वरिष्ठ अफसरों और कुछ मौलानाओं और कश्मीर के कुछ लोगों के साथ गोपनीय मीटिंग चल रही थी। सबके सामने उसी के द्वारा तैयार की गयी फौजी डाक्ट्रीन की कापी रखी हुई थी। …आपके सामने इस डाक्ट्रीन को कार्यान्वित करने का अब तक का सारा लेखा-जोखा रखा हुआ है। पिछले दस सालों मे आईएसआई ने इस डाक्ट्रीन को कार्यान्वित करने मे बेहद महत्वपूर्ण भुमिका निभाई है। हमारे आईएसआई के आला अफसरों ने भारत की कमजोरियों का लाभ उठा कर सीमा पार हिस्सों मे अराजकता का माहौल पैदा करके वहाँ की स्थायी सरकार को कमजोर कर दिया है। एक ओर पंजाब जल रहा है तो अब कश्मीर की बारी है। हमारे कश्मीर से आए हुए जमात-ए-इस्लामी और कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के मेहमानों ने पिछले पाँच सालों मे लगभग सभी सीमावर्ती इलाकों मे अपना नेटवर्क खड़ा कर दिया है। यह लोग हमारी तारीफ के हकदार है। अफ़गानिस्तान से रूसी फौज को खदेड़ने मे हमारी बहुत सी तंजीमों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके लिए हम मौलाना साहिबों का दिल से शुक्रिया अदा करते है। अब वक्त आ गया है कि इस डाक्ट्रीन को कश्मीर मे तुरन्त अमल किया जाए। इसके लिए सीआईए और आईएसआई ने मिल कर आप्रेशन टोपेक का ब्लू प्रिंट तैयार किया है। मिस्टर स्टोन आपके सामने इसका ब्लू प्रिंट रखेंगें। यह कह कर राष्ट्रपति हक चुप हो गया और उनके दाँयीं ओर बैठा हुआ स्टोन ने बोलना आरंभ कर दिया।

…आप जानते है कि कश्मीर को आजाद कराने की योजनाओं में हमने अतीत में गलतियां की हैंहमने सीधे-सीधे सैनिक हस्तक्षेप के चलते कश्मीर को भारत से अलग कराना चाहा और मात खा गए परन्तु अब  भविष्य में इन गलतियों से सबक लेते हुए आप्रेशन टोपेक के द्वारा हम लड़ाई के ऐसे तरीके अपना रहे है जिसे सीधे सैनिक कार्रवाई को छोड़ कर अन्य संसाधनों का शारीरिक तथा नैतिक इस्तेमाल किया जाए, भारत का मानसिक बल खत्म हो जाए, उसकी राजनीतिक क्षमता को हानि पहुँचे और विश्व के सामने उसे दमनकारी सरकार के रुप में प्रदर्शित किया जा सके। इस काम मे हमारे मौलाना और कश्मीर की तंजीमों की मुख्य भुमिका रहेगी। हमारी फौज उनके लोगों को हथियारों की ट्रेनिंग व असला और बारुद समय-समय पर मुहैया कराएगी और आईएसआई कश्मीर मे इस्लालिक कट्टरपंथ का मस्जिदों द्वारा प्रचार कराएगी। इस आप्रेशन का पहला फेज कश्मीर से हिन्दु आबादी को खाली कराना होगा जिसकी जिम्मेदारी जमात और फ्रंट पर होगी। आप्रेशन के दूसरे फेज मे हमारे जिहादी भारत मे मुस्लिम बहुल इलाकों मे जाकर उन्हें सरकार के विरुद्ध बगावत करने के लिए उकसाएँगें। कुछ प्रतिष्ठित हिन्दू नेताओं का कत्ल करके भारत के अलग-अलग स्थानों पर दंगा भड़काएगें। अभी फिलहाल तीसरे फेज की रुपरेखा तैयार की जा रही है कि कब और कैसे सैनिक कार्यवाही करके कश्मीर का पाकिस्तान मे विलय कराना है।

राष्ट्र्पति हक ने अपने सामने बैठे हुए लोगों पर एक नजर डाल कर कहा… भारत से पिछली हार का बदला लेने का अब समय आ गया है, ईन्शाल्लाह। एक साथ सभी बोल उठे… आमीन। मीटिंग उसके बाद भी काफी देर चलती रही जिसमे आईएसआई के अफसरों ने अपनी योजना का खुलासा करते हुए मौलानाओं और फ्रंट के प्रतिनिधियों के सामने कार्ययोजना के हर पहलू को रखना आरंभ कर दिया। तीन घंटे की मीटिंग के बाद आप्रेशन टोपेक को राष्ट्र्पति हक ने अपनी औपचारिक सहमति दे दी थी। सीआईए के स्टोन के साथ जब राष्ट्र्पति हक कमरे से बाहर निकले तब चलते हुए उसने कहा… मिस्टर स्टोन इस डाक्ट्रीन को कार्यान्वित करने मे इतने साल जरुर लगे परन्तु वह दिन भी आ गया है। आप अगर अगले दिन रावलपिन्डी मे आकर मेरी हिम्मत नहीं बढ़ाते तो यह दिन देखना पाकिस्तान को कभी नसीब नहीं होता। …एक्सीलैन्सी, आपको एक सूचना देनी है। मुझे अमरीका वापिस बुला लिया है। कल मै वापिस जा रहा हूँ इसलिए मैने आपसे यह मीटिंग आज रखने का निवेदन किया था। राष्ट्र्पति हक चलते-चलते रुक कर स्टोन की ओर देख कर बोला… मिस्टर स्टोन आप यह क्या कह रहे है? अभी तो काम आरंभ हुआ है। स्टोन ने मुस्कुराते हुए कहा… एक्सीलैन्सी, नया एडमिनिस्ट्रेशन आने के कारण मुझे जाना पड़ेगा लेकिन आप बेफिक्र रहें क्योंकि आपका दोस्त अभी भी वाशिंगटन मे सीआईए के दक्षिण एशिया डेस्क का मुखिया बन कर बैठा होगा। राष्ट्रपति हक ने बड़ी आत्मीयता से स्टोन को गले लगा कर वहाँ से विदा करते हुए कहा… आज ही तुम्हारे स्विस बैंक अकाउन्ट मे पैसा ट्रांसफर हो जाएगा।

वाशिंगटन, 1988

…मिस्टर स्टोन, बुरी खबर है। स्टोन ने फाईल से नजरें उठा कर सामने खड़ी हुई स्त्री की ओर देखा तो वह जल्दी से बोली… राष्ट्रपति जिया उल हक का प्लेन हवा मे ब्लास्ट होने की खबर मिली है। वह उस समय बलूचिस्तान की यात्रा पर जा रहे थे। यह खबर सुनते ही स्टोन का चेहरा पल भर के लिये पथरा गया था। जिया की मौत अमरीका के मंसूबों पर गहरा आघात था। कुछ सोच कर वह अपनी सीट से उठते हुए बोला… सूजन, मै निदेशक से मिलने जा रहा हूँ। इस्लामाबाद और काबुल पर नजर रखो कि वहाँ क्या चल रहा है। वह तेज कदमो से चलता हुआ कमरे से बाहर निकल गया था।

…स्टोन अब हमारे पास क्या विकल्प है? …सर, कुछ कहा नहीं जा सकता। अफगानिस्तान मे रुसी फौज के पाँव उखड़ने लगे है। इस वक्त जिया की मौत होने से हमारी सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। मुझे इसके पीछे केजीबी के काउन्टर आप्रेशन्स के चीफ व्लादिमीर का हाथ दिखाई दे रहा है। वह इस बात को फैलाने की पूरी कोशिश करेंगें कि इस हादसे के पीछे सीआईए का हाथ है। इस वक्त मेरा इस्लामाबाद मे होना बहुत जरुरी है। रावलपिंडी का नेतृत्व मिर्जा असलम बेग के हाथ मे देने के लिये अब सिर्फ आप्रेशन टोपेक ही हमारे काम आ सकता है। …तुम फौरन पाकिस्तान चले जाओ लेकिन तुम ज्यादा दिन वहाँ रुक नहीं सकोगे इसलिए आप्रेशन टोपेक की कमान अपने किसी विश्वासपात्र के हवाले करके वापिस आ जाना। …ठीक है सर। स्टोन उठ कर वापिस अपने आफिस की ओर चल दिया।    

श्रीनगर, 1989

कौल परिवार मे आज बहुत वर्षों के पश्चात खुशी का दिन आया था। डाक्टर कौल के पुशतैनी मकान फूलों से सजा हुआ पूरे इलाके की रौनक बना हुआ था। डाक्टर कौल के बेटे रवि का विवाह हो रहा था। उनके घर मे जश्न का माहौल था। पन्द्रह-बीस घरों का उच्चवर्गीय मोहल्ला होने के कारण वहाँ ज्यादा भीड़भाड़ भी नहीं थी। सरकारी अस्पताल मे डाक्टर होने के कारण मोहल्ले मे सभी परिवार उनकी इज्जत करते थे। दो पीड़ीयों से उनका परिवार यहाँ रह रहा था। उनके पड़ोसियों मे सिर्फ चार हिन्दु परिवार थे बाकी सभी सभ्रांत मुस्लिम परिवार थे। डाक्टर कौल का बेटा पाटन के सरकारी अस्पताल मे हाल ही डाक्टर नियुक्त हुआ था। उसका विवाह पाटन के सरकारी ठेकेदार रैना परिवार की बेटी मेनका के साथ हो रहा था। कौल और रैना परिवारों के बीच पुराने पारिवारिक संबन्ध होने के कारण रवि और मेनका एक दूसरे पहले से ही परिचित थे।

विवाह की सभी रस्मों की अदायगी हो चुकी थी। मकबूल बट का परिवार भी इस विवाह मे सम्मिलित हुआ था। मकबूल बट पेशे से सेब का व्यापारी था। उसके अब्बा ने कारोबार जमाया था और उनके इंतकाल के बाद वह काम को संभाल रहा था। रवि और मकबूल एक ही स्कूल मे पढ़े थे और साथ खेले थे। विवाह समापन के बाद सब अपने घरों को लौट रहे थे तब मकबूल उठ कर डाक्टर कौल के पास जाकर बैठ गया… अंकल आज का कार्यक्रम सम्पन्न हो गया। रवि और मेनका का निकाह तो हो गया अब अंजली की शादी का क्या सोच रहे है? डाक्टर कौल ने हंसते हुए कहा… बेटा मकबूल, अब एक बेटी घर मे आ गयी है तो अब दूसरी बेटी की विदाई के बारे मे सोचना आरंभ करेंगें। तुम आजकल दिखते नहीं, क्या काम का बोझ बढ़ गया है? बेचारी शमा घर मे अकेली रह जाती है। …अंकल आप सही कह रहे है लेकिन क्या करुँ अब्बा ने इतनी जगह बाग खरीद कर डाल दिये है कि मेरा ज्यादा समय सड़क पर निकल जाता है। …भई अपने परिवार के लिए भी समय निकाला करो। …अंकल आप लोग है तो मुझे शमा और बच्चियों की क्या चिन्ता। …मकबूल, तुम्हारी बड़ी प्यारी बच्चियाँ है। दोंनो बच्चियाँ की वजह से हमारा दिल लग जाता है। आज के दिन तुम्हारे तुम्हारे अब्बा और अम्मी की कमी खल रही है। मै तो अस्पताल मे व्यस्त रहता था लेकिन तुम्हारी अम्मी ने रवि और अंजली को पाला था। अब उनका कर्ज मै तुम्हारी बच्चियों को पाल कर चुका रहा हूँ। बेचारे फरहान भाई इस सुख को देखने से रह गये।  दोंनो बात कर रहे थे कि तभी मकबूल को ढूँढते हुए अंजली और शमा आ गयी थी। …आप यहाँ अंकल के पास बैठे हुए गप्प मार रहे है। क्या घर नहीं चलना है? …भाईजान, मै भाभी से कह रही हूँ कि इन दोंनो गुड़ियों को आज रात मेरे पास छोड़ दीजिए। आप एक हफ्ते बाद आज लौटे है तो कुछ समय भाभी के साथ गुजारिए लेकिन भाभी मना कर रही है। अब आप ही इनको समझाईए। कुछ देर बात करने के बाद दोंनो बच्चियों को अंजली के पास छोड़ कर मकबूल और शमा अपने घर चले गये थे।

अंजली अपनी डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के लिए के लिए बम्बई गये हुए छ्ह महीने हो चुके थे। आलीशान से घर मे डाक्टर कौल और उनका बेटा और बहू रह गये थे। रवि सुबह बस से पाटन के सरकारी अस्पताल निकल जाता था। सारा दिन मेनका घर के कामों मे व्यस्त हो जाती थी। डाक्टर कौल सेवानिवृत जिंन्दगी गुजार रहे थे। सर्दियों की एक शाम मे कौल परिवार से मिलने मकबूल अकेला घर पर आया हुआ था। उसके सिर पर नमाजी टोपी और लम्बी दाड़ी देखकर चौंकते हुए डाक्टर कौल ने कहा… बेटा यह क्या हुलिया बना रखा है? …कुछ नहीं अंकल। आजकल यहाँ का माहौल खराब हो गया है। रास्ते मे कार रोक कर कुछ गुन्डे परेशान करते है इसीलिए ऐसा हुलिया बना रखा है। अभी उनकी बात चल रही थी कि तभी मेनका ने कमरे प्रवेश किया और मकबूल को देख कर सहम कर वापिस मुड़ गयी तो मकबूल ने आवाज देकर कहा… मै हूँ मेनका। शमा ने तुम्हारे लिये कुछ भिजवाया है। यह ले जाओ। उसने एक पैकेट उसकी ओर बढ़ा दिया। मेनका ने मकबूल को पहचान कर उसके हाथ से पैकेट लेते हुए सहमे हुए स्वर मे बोली… भाईजान आपको क्या हो गया है? मकबूल ने उसको घूरते हुए कहा…कुछ नहीं। मै तो वैसा ही हूँ लेकिन मेनका अब तुम पहले से भी ज्यादा सुन्दर दिखने लगी हो। शायद जो डाक्टर कौल ने महसूस नहीं किया वह मेनका ने तुरन्त महसूस कर लिया था। आज मकबूल की निगाहों मे वासना के साथ दरिंदगी भी नजर आ रही थी। शादी के बाद से ही मकबूल का व्यवहार उसके प्रति स्नेह और इज्जत का रहा था परन्तु पिछले कुछ दिनों से उसके आने पर मेनका असहज हो उठती थी। उसको लगता था कि वह हमेशा उसे भूखी नजरों से देखता है।

मेनका के जाने के बाद मकबूल ने कहा… अंकल वादी मे बड़ी तेजी से बदलाव हो रहा है। पिछली जुमे की नमाज मे मौलवी साहब ने बुतपरस्तों के खिलाफ फतवा जारी किया था। मेरी सलाह माने कि आप अपने परिवार को लेकर यहाँ से कुछ दिनों के लिए जम्मू या मुंबई चले जाईए। …क्यों बेटा। यहाँ तो सब शांत है। मुझे सुनने मे आया था कि कुछ फिरकापरस्त लोग शहर मे लोगो को डरा रहे है। इस मोहल्ले मे हम दो पीढ़ियों से रह रहे है। वह यहाँ आने की हिम्मत नहीं करेंगें। मकबूल ने उठते हुए कहा… आज शाम के अखबार की खबर है कि लाल चौक कर टीका लाल को फिरकापरस्तों ने दिन दहाड़े कत्ल कर दिया। मेरा फर्ज था आपको बताना तो मैने आपको बता दिया है। रात को रवि आये तो उससे भी बात कर लिजिएगा। वह बाहर जाता है तो उसे वादी के माहौल मे आये हुए बदलाव का पता होगा। यह बोल कर मकबूल चला गया और डाक्टर कौल गहरी सोच मे डूब गये थे। कुछ ही दिन पहले उनके दोस्त ने फोन पर सोपोर मे हुए दंगो के बारे बताया था। अगले दिन अखबार मे मुख्य पृष्ठ पर एक खबर देख कर कौल परिवार आतंकित हो गया था। बड़े-बड़े शब्दों मे लिखा था… रालिव, गालिव या चालिव। धर्म परिवर्तन करो या मरो अन्यथा सब कुछ छोड़ कर चले जाओ। अब उन्हें भी डर सताने लगा था। डाक्टर कौल ने अपने कुछ दोस्तों और सुदूर परिवार वालों से फोन पर बात की तो वह भी सभी आतंकित थे। किसी के समझ मे नहीं आ रहा था कि इन हालात मे क्या करना चाहिए। आये दिन हिन्दु पंडितों की हत्या हो रही थी। राज्य सरकार और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई सब कुछ देख रही थी परन्तु अलगावदियों और चरमपंथियों पर अंकुश लगाने से दोनो ही झिझक रहे थे। डर का माहौल वादी मे व्याप्त था।

बर्फ की पहली चादर वादी मे बिछते ही पता चला कि भारत सरकार मे मुस्लिम गृह मंत्री की बेटी का अपहरण हो गया है जिसको छुड़ाने के लिए कुछ पकड़े हुए आतंकवादियों को सरकार को छोड़ना पड़ गया था। इसके बाद तो झड़ी सी लग गयी थी। कभी किसी मंत्री के बेटे और किसी नेता की भतीजी का अपहरण आम बात हो गयी थी। उनको छुड़ाने के लिए कभी चार और कभी दस आतंकवादियों को छोड़ना पड़ रहा था। भारतीय फौज आदेश का इंतजार कर रही थी परन्तु राज्य और केन्द्रीय सरकार न जाने किस नशे मे हाथ पर हाथ रख कर बैठे हुए थे। आये दिन अब मकबूल शाम को डाक्टर कौल के पास आकर बैठ जाता था। मेनका जब भी उसके सामने पड़ती तो उसे ऐसा महसूस होता कि मकबूल निगाहों से उसके जिस्म को बेपर्दा करता हुआ लगता था। शादी के बाद मेनका के रुप और लावण्य मे भी निखार आ गया था। मेनका ने एक दो बार शमा से मकबूल के इस बदले हुए व्यवहार पर ढके हुए शब्दों मे शिकायत करने की कोशिश भी की थी परन्तु शमा ने उसकी बात पर कोई खास ध्यान नहीं दिया था। उसके लिए मकबूल तो फरिश्ता बन चुका था जो अब पाँचो पहर की नमाज बिना नागा करने लगा था। उसने अपने बागान को देखने जाना भी कम कर दिया था। वह सुबह तैयार होकर मस्जिद की ओर निकल जाता था और शाम को उसकी बैठक कौल परिवार के घर पर लगती थी। इस बदलाव से शमा भी बेहद खुश थी।

वादी मे बदलाव की आँधी चल रही थी। आये दिन कहीं बम्ब फटने की खबर आती तो कहीं मंदिर तोड़ने की बात सामने आ जाती थी। अब पुलिस और फौज का खौफ भी जनता मे समाप्त हो गया था। युवकों की टोली जगह-जगह पर वर्दीधारी अधिकारियों के सामने खुले आम थूकते और गाली देते हुए दिखाई देते थे। स्थानीय नेता रोजाना अपनी आवाम के लिए मस्जिदों से नये-नये एलान करते हुए दिखते थे। मदरसे मे बच्चों को कुरान की तालीम देने के बजाय मौलवी साहब काफिरों के खिलाफ जिहाद की आयतें पढ़ाया करते थे। पूरा कश्मीर पाकिस्तान की हिमायत मे डूबता चला जा रहा था। आये दिन कुछ लोग सीमा पार से आकर स्थानीय लोगों के घरों मे बसने लगे थे। वह लोग मस्जिदों मे जाकर स्थानीय नवयुवकों को भारत की सरकार के खिलाफ जिहाद छेड़ने की अपील करते हुए उन्हें सीमा पार जाकर असला और बारुद की ट्रेनिंग लेने की सलाह देते थे। इसके लिए वह उनके परिवार वालों को रुपये-पैसों से मदद करने का भी प्रलोभन देते थे। कुछ महिलाएँ घर-घर जाकर बताती थी कि कैसे औरतों और लड़कियों को फौज और पुलिस के सामने एक दीवार की तरह खड़ा होकर सच्चे मुस्लिम जेहादियों को बचाना होगा। सब कुछ खुले आम हो रहा था और सारा प्रशासन मूक दर्शक बना हुआ था।

नया साल लगते ही एक साथ वादी मे मस्जिदों के लाउडस्पीकर से आजान के बजाय बुतपरस्तों के खिलाफ फतवे जारी होना आरंभ हो गये थे। रवि ने भी पाटन के अस्पताल जाना बन्द कर दिया था क्योंकि अब जिहादियों ने बसों मे से हिन्दुओं को उतार कर गोली मारना आरंभ कर दिया था। कौल परिवार अब अपने घर मे बंद होकर रह गया था। एकाएक कश्मीर मे इस्लामिक जिहादियों ने शहर मे उत्पात मचाना आरंभ कर दिया था। आये दिन हिन्दुओं के मोहल्ले मे बम्ब फटने लगे थे। मस्जिदों को छोड़ कर शहर की बिजली रोजाना रात मे जाने लगी थी। मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से पूरी रात बुतपरस्तों के विरोध मे अनर्गल प्रलाप होने लगे… मुसलमानो जागो, काफिरों भागो; कभी वह कहते… ओ ज़ालिम काफिरों, कश्मीर हमारा छोड़ दो; कभी आवाज आती… कश्मीर मे रहना है तो अल्लाह-ओ-अकबर कहना होगा; और कभी ऐसा पैगाम आता… ला शार्किया ला घार्बिया, इस्लामिया! इस्लामिया! जिसका मतलब था कि पूर्व से पश्चिम तक सिर्फ इस्लाम ही इस्लाम रहेगा। ऐसे नारों ने कश्मीर के हिन्दूओं के अन्दर खौफ भरता जा रहा था। सभी हिन्दु चुपचाप कश्मीर से निकलने की कोशिश मे जुट गये थे। डाक्टर कौल ने भी अपना मन बना लिया था कि किसी रात के अंधेरे मे अपने बेटे और बहू के साथ अपनी बेटी के पास मुंबई चले जाएँगें। हिन्दुओं के दिलों मे खौफ का माहौल घर कर गया था।

बर्फ पड़ कर चुकी थी। सारी वादी सफेद हो गयी थी। एक शाम को मकबूल ने आकर कहा… अंकल अब हद हो गयी है। आज लाल चौक पर एक नया फतवा जारी हुआ कि कशीर बनावों पाकिस्तान, बतावों वराइए, बतनेइव सान। डाक्टर कौल अपना सिर पकड़ कर सोचने बैठ गये… कश्मीर बनेगा पाकिस्तान बिना हिन्दु मर्द के परन्तु हिन्दु स्त्रियों के साथ। यह सुन कर रवि ने मेनका की ओर देखा तो उसका चेहरा भी डर के मारे सफेद हो गया था। कुछ सोच कर डाक्टर कौल ने कहा… मकबूल हमारी कार मे पेट्रोल भरवा कर ले आओ। हम आज रात को ही जम्मू चले जाएँगें। अब यहाँ स्थिति बद से बदतर हो गयी है। मकबूल ने तुरन्त कहा… क्यों नहीं अंकल। चाबी दे दीजिए। कुछ देर मे मकबूल कार लेकर चला गया और कौल परिवार अपनी जरुरत का सामन बाँधने मे व्यस्त हो गया था। अंधेरा घना हो गया था लेकिन मकबूल अभी तक पेट्रोल भरवा कर लौटा नहीं था। डाक्टर कौल और उनका परिवार उसके लौटने की राह देख रहे थे। तभी बाहर सड़क पर एक भीड़ अल्लाह-ओ-अकबर के नारे लगाते हुए आगे बढ़ी तो बाहर शोर सुन कर कौल परिवार ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो सड़क पर मुस्लिम युवकों ने उधम मचा रखा था। कुछ लोग पड़ोस के घर पर पत्थरबाजी कर रहे थे और कुछ लोग सामने वाले मकान से सामान उठा कर ले जाते हुए दिख रहे थे। पिछले कुछ दिनों से यह रोज की घटना हो गयी थी। तभी डाक्टर कौल की नजर कुछ नकाबपोश लोगों पर पड़ी जो उनके घर की दीवार फाँद कर अन्दर आ गये थे। सड़क पर कोहराम मचा हुआ था। अचानक गोली चलने की आवाज के कारण वहाँ भगदड़ मच गयी थी। कुछ लोग सामने तिक्कू के घर मे घुस गये थे और कुछ लोग रैना के घर मे घुस गये थे। भयभीत कौल परिवार अपने भगवान को याद करते हुए दरवाजे की ओर देख रहा था।

तभी दरवाजे पर  किसी ने जोर से पीटते हुए आवाज लगायी… अल फतेह की फौज है। कौल बाहर निकल हम जानते है कि तू अन्दर है। दरवाजा नहीं खोला तो हम तेरे मकान को आग लगा देंगें। रवि दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ा परन्तु मेनका और डाक्टर कौल ने उसको पकड़ लिया… बेटा चुपचाप बैठे रहो। कुछ देर दरवाजा पीट कर वह चले जाएँगें। तभी किसी भारी चीज से दरवाजे पर भरपूर ठोकर लगी जिससे पूरा दरवाजा चौखट समेत हिल गया था। कुछ पल गुजरने के बाद मकबूल की आवाज साफ सुनाई दी जो दरवाजे पर उन लोगो से बात कर रहा था। कुछ देर बाद बाहर सब शांत हो गया तब मकबूल की धीरे से आवाज आयी… अंकल दरवाजा खोल दीजिए। मै मकबूल हूँ। वह लोग जा चुके है। रवि झपट कर दरवाजा खोलने के लिए आगे बढ़ गया था। उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो मकबूल के साथ पाँच-सात नकाबपोश घर के अन्दर घुस गये थे। उन्होंने प्रवेश करते ही खंजर से सबसे पहला प्रहार रवि पर किया था। एक ही वार मे रवि का सिर धड़ से अलग होकर जमीन पर लुड़क गया था। डाक्टर कौल भाग कर अपने बेटे को बचाने के लिए आगे बढ़े लेकिन तब तक उनको भी कुछ लोगों ने पकड़ कर जमीन पर बिठा दिया था। मेनका जड़वत खड़ी हुई अपने मृत पति की सिर विहीन लाश को एकटक देखती रह गयी थी। एक नकाबपोश ने आगे बढ़ कर कल्मा पड़ा और फिर अल्लाह-ओ-अकबर का नारा लगाते हुए वृद्ध डाक्टर कौल का गला रेत दिया। डाक्टर कौल का जिस्म कुछ देर जमीन पर तड़पता रहा और फिर एक झटका लेकर शांत हो गया था। मकबूल ने तब तक आगे बढ़ कर अर्धविक्षिप्त मेनका को अपनी बाँहों मे जकड़ लिया था।

उनमे से एक नकाबपोश बोला… मकबूल भाई इस हसीना के साथ हमारा नम्बर कब लगेगा। कार की चाबी उनकी ओर उछालते हुए मकबूल घुर्राया… तुम सामान उठाओ और दफा हो जाओ। अब तक सभी ने अपने चेहरे पर से नकाब हटा लिये थे। मेनका हैरत से उनकी ओर देख रही थी। वह सभी लड़को को बहुत अच्छी तरह से जानती थी। सभी उसकी शादी मे अपने परिवार सहित शरीक हुए थे। कोई लड़का उसे बाजी कहता था और कोई भाभीजान। उसने एक लड़के की कलाई पर पिछले महीने राखी बाँधी थी। सभी लड़के उसी मोहल्ले के थे। मकबूल का निर्देश सुन कर वह सभी तेजी से सामान इकठ्ठा करके कार मे सामान रख कर निकल गये थे। कौल परिवार के पुशतैनी मकान मे मौत की शांति छा गयी थी।

फूल सी मेनका को अपनी बाँहों मे जकड़े मकबूल बेडरुम की ओर चल दिया था। …मेरी जान आज से तुझे मै हमेशा के लिए अपनी बना कर रखूँगा। विक्षिप्त मेनका घिसटती हुई उसके साथ चल दी थी। उस वक्त मेनका तो किसी और ही दुनिया मे पहुँच गयी थी। बेडरुम मे घुसते ही मकबूल ने उसको बिस्तर पर धकेल दिया और वह चलती फिरती लाश की तरह औंधे मुँह बिस्तर पर गिर गयी। एक पल मकबूल उसे देखता रहा फिर उसने मेनका के फेयरन को एक किनारे से पकड़ा और पूरी ताकत से खींचा तो फेयरन की सिलाई उधड़ती हुई चली गयी थी। बहशी दरिंदे ने मेनका के सारे वस्त्रों को तार-तार कर दिया और कुछ ही देर मे मेनका आँखे मूंदे बिस्तर पर उसके सामने निर्वस्त्र पड़ी हुई थी। मकबूल कुछ देर एकटक उसे एक नग्न अप्सरा के मुज्जस्मे की भाँति निहारता रहा और एकाएक वह जानवर की तरह मेनका के फूल से कोमल जिस्म को दबोच कर नोचने और खसोटने मे लग गया। मेनका की चीखे कमरे मे गूँजती रही लेकिन वह तो दरिंदगी पर उतर आया था। वह दरिंदा उसके जिस्म के हर कोमल हिस्से पर अपने दाँत और नाखून के निशान बनाता चला जा रहा था। मेनका एक निर्जीव शव की तरह उसके नीचे पड़ी हुई उसके हर अत्याचार को चुपचाप झेल रही थी। वह अपनी वासना मे इतना डूब चुका था कि उसे एहसास ही नहीं हुआ कि कोई उसके दुश्कृत्य का चश्मदीद गवाह बना हुआ था। सुबह होने से पहले मेनका को उसी हालत मे बिस्तर पर बेहोश छोड़ कर मकबूल अपने घर चला गया।

उस रात उस मोहल्ले के चारों हिन्दु परिवारो के घर मे भी हैवानियत का नंगा नाच उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने अपनी आँखों से चुपचाप देखा था। तिक्कु परिवार, रैना परिवार, गंजु परिवार और कौल परिवार के घरों मे लाशों का अंबार लग गया था। सारे पुरुषों को रात मे ही मौत के घाट उतार दिया था। उनकी लाशों के सामने ही सारी रात बहशियों ने उनकी बहू, बेटियों के साथ पाश्विक व्यवहार किया था। उन पशुओं ने छोटी-छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ा था। सुबह की पहली किरण निकलने से पहले उन्होंने सभी स्त्रियों और बच्चियों के गले कल्मा पढ़ते हुए रेत दिये थे। उस मोहल्ले के सभी मुस्लिम परिवार उन दरिंदों से भली भांति परिचित थे क्योंकि सभी आतातायी उनके ही परिवार के सदस्य थे। इसलिए इस दुश्कृत्य मे उनकी भी मूक सहमति थी। सुबह की पहली किरण पर उन्होंने चारों मकानों को लूट कर उसमे आग लगा दी थी। जब तक प्रशासन हरकत मे आया तब तक काफी देर हो चुकी थी। यह घटना चुँकि एक बेहद उच्चवर्गीय और वैभव संपन्न इलाके की थी और मरने वाले राज्य के उच्चस्तरीय अधिकारी व नामी व्यवसायी थे इसलिए यह खबर जंगल मे आग की तरह पूरे शहर मे फैल गयी थी। राज्य सरकार भी तुरन्त हरकत मे आ गयी और फिर फौज की देखरेख मे पाँच लाख कश्मीरी हिन्दु परिवारों की पलायन की प्रक्रिया आरंभ हो गयी थी।

1990 के मध्य तक कश्मीर वादी हिन्दू विहीन हो गयी थी। उस दौरान कश्मीर मे हजारों हिन्दू परिवारों का कत्ले आम हुआ था। हिन्दुओं के मकानों, दुकानों और जमीनों पर रातों-रात उन्हीं के मुस्लिम पड़ोसियों और दोस्तों ने कब्जा कर लिया था। कश्मीर वादी इस हैवानियत की मूक दर्शक और गवाह बनी थी परन्तु इतने बड़े नरसंहार के बाद भी वादी के किसी भी पुलिस स्टेशन मे एक भी दरिंदे के विरुद्ध नामजद अथवा बेनाम रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई थी। पता नहीं क्यों भारतीय प्रजातंत्र और समाज के चारों स्तंभ इस गुनाह के मूक दर्शक सालों साल बने बैठे रहे थे। दुनिया ने भी इतने बड़े नरसंहार के होने के बावजूद अपनी आँखें मूंद ली थी।