काफ़िर-43
मै सुबह तैयार हो
कर अपने आफिस निकल गया था। सीधे अपने आफिस जाने के बजाय मै बेसमेन्ट की ओर चला गया
था। नीलोफर के फोन की रिकार्डिंग यही पर हो रही थी। मुझे देखते ही ड्युटी आफीसर तुरन्त
बोला… सर, नीलोफर के नम्बर से पिछले दो दिन मे उस नम्बर पर सौ से ज्यादा काल की गयी
है। …क्या कोई बात हुई? …नहीं सर। वह एक नम्बर पर तीन बार बात कर चुकी है। क्या आप
वह रिकार्डिंग सुनना चाहेंगें? …उसने सुलेमान से बात की थी। …यस सर। …रहने दो, उसमे
कोई काम की बात नही है। …किसी और नये आदमी ने उसे संपर्क किया है? …नहीं सर। उस रिकार्डिंग
का क्या करना है? …वह और इन सारी रिकार्डिंग को उसके निजि अकाउन्ट मे डाल दो। अब हमे
उसकी कोई जरुरत नहीं है।
इतनी बात करके मै
अपने आफिस मे आ गया था। ब्रिगेडियर चीमा के आफिस मे खबर कर दी थी कि मै अपने आफिस मे
हूँ। दोपहर को ब्रिगेडियर चीमा की काल आ गयी थी। मै उनसे मिलने चला गया था। दिग्गजों
की तिकड़ी वहीं बैठी हुई थी। मुझे देखते ही ब्रिगेडियर चीमा ने कहा… मेजर, फारुख की
ओर से ग्रीन सिगनल मिल गया है। उसकी सिर्फ एक शर्त है वह तुम्हें कभी भी अपने हैन्डलर
की भुमिका मे नहीं देखना चाहता है। …सर, तो फिर अब आप उसे हैंडल किजीए। अब नीलोफर भी
आपके ही चार्ज मे है। इसी के साथ आप्रेशन आघात-2 की मेरी जिम्मेदारी समाप्त हो गयी
है। उन सबके इस निर्णय ने मुझे काफी निराश किया था। सारी मेहनत मेरी थी और जब नतीजे
का समय आया तो मुझे दूध की मक्खी की तरह बाहर निकाल कर फेंक दिया। मन मे अनेक विचार
आ रहे थे परन्तु उनके सामने बोलने की हिम्मत नहीं जुटा सका था। तभी वीके ने कहा… नहीं मेजर।
हमारे सामने एक बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हुई है। लेकिन उससे पहले यह जानना जरुरी है कि
तुम्हारे साथ यह काफ़िर का क्या चक्कर है। सुनने मे आया है कि वह हमेशा तुम्हें काफ़िर
ने नाम से पुकारता है। मेरे ख्याल से यही कारण है कि वह तुम्हारे साथ काम नहीं करना
चाहता। आखिर क्यों?
…सर, यह सारा जायदाद
का चक्कर है। अम्मी ने सारी जायदाद मेरे नाम कर दी थी जिसके कारण मकबूल बट पैसे के
लिये मोहताज हो गया था। उसने अम्मी और मुझे बेइज्जत करने के लिये अपने सर्कल मे यह
कहना शुरु कर दिया था। चुंकि मकबूल बट मुझे काफ़िर के नाम से पुकारता है तो उसका हर
जानने वाला भी मुझे उसी नाम से बुलाता है। अचानक अजीत ने मेरी बात बीच मे काटते हुए
कहा… समीर, दुनिया के लिये यह कहानी तो ठीक हो सकती है परन्तु जो सच है हम वह जानना
चाहते है। सभी की आँखें मुझ पर टिकी हुई थी। कुछ सोच कर मैने कहा… सर, यह 1989 की बात
है। मैने अपनी सारी कहानी उनके सामने रख दी थी। …सर, आपके विश्वास को मै नहीं तोड़ सकता
था इसीलिये मैने सच्चायी आपके सामने रख दी है। यह बोल कर मै सिर झुका कर बैठ गया था।
वीके अपनी कुर्सी छोड़ कर
मेरे पास आया और मेरी पीठ थपथपा कर बोला… समीर, इसमे शर्मसार होने की कोई जरुरत नहीं
है। उसके बाद एक साथ सभी बोलने लगे थे।
कुछ देर के बाद वीके ने कहा… समीर, वह
सात अंकों वाले नम्बरों को डिकोड कर लिया गया है। वह साधारण जीपीस स्थानीय कोड नहीं
है। वह हमारे सेटेलाईट रिमोट सेन्सिंग के स्थानीय ग्रिड कोड है। कोई आदमी या तो इसरो
मे बैठ कर यह कोड पाकिस्तान को दे रहा है अन्यथा सेन्ट्रल कमांड स्टेशन पर से कोड दुश्मन
के हाथों मे दे रहा है। दोनो ही जगह हमारी पहुँच से बाहर है। जनरल रंधावा किसी हद तक
उनके संपर्क मे है परन्तु उसके हाथ भी बंधे हुए है। ब्रिगेडियर चीमा का मानना है कि
अब यहाँ के हालात काबू मे आ गये है। हमे फारुख और नीलोफर की सियासत से कोई परेशानी
नहीं है जब तक कि वह कोई आंतरिक खतरा उत्पन्न नहीं करते है। तभी अजीत ने टोकते हुए
कहा… वीके साफ शब्दों मे कहो तो बेहतर होगा। समीर, हम
लोगो का मानना है कि तुम्हारे को यहाँ से निकालने का समय आ गया है। हक डाक्ट्रीन एक
समस्या है परन्तु उसका उद्देश्य तो गजवा-ए-हिन्द और निजाम-ए-मुस्तफा का है। आईएसआई
की सौ करोड़ की योजना तो सिर्फ एक पहलू है। इस साजिश मे न जाने कितने और फारुख इस देश
मे कहाँ-कहाँ अपने पाँव जमा रहे है। इन सबसे टकराने से पहले इनको समझना ज्यादा जरुरी
है। इसी लिये हमने सोचा है कि तुम्हें राष्ट्रीय रक्षा कालेज मे स्थानन्तरित करवा दिया
जाये। इस बारे मे तुम्हारा क्या ख्याल है?
…सर, मै तो सैनिक
हूँ। आप जहाँ भेजेंगें वहाँ तो जाना पड़ेगा लेकिन दिल्ली जैसी जगह मे जहाँ राजनीति का
हर क्षेत्र मे दखल है वहाँ मुझे लगता है कि शायद मै अपने आप को वहाँ के अनुसार ढाल
नही सकूँगा। कुछ सोच कर वीके ने कहा… मेजर, जिस उद्देशय से तुम हमारे साथ
जुड़े थे वह दिल्ली से होकर ही गुजरता है। जिस काउन्टर आफेन्सिव के लिये हम तुम्हें
तैयार कर रहे है वह सिर्फ कश्मीर तक सिमित नहीं है। अजीत का सारा जीवन पुलिस और इन्टेलीजेन्स
मे बीता है। मेरा और जनरल रंधावा का सारा जीवन वर्दी मे निकला परन्तु असलियत समझने
के लिये हमे अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलना पड़ा था। एक पहेली को सुलझाने के लिये
एक से ज्यादा तरीके हो सकते है और इसीलिये तुम्हें यहाँ से निकालना चाहते है। हम तुम
पर कोई दबाव नहीं डाल रहे है लेकिन जो तुम्हारे भविष्य के लिये अच्छा है हम उसके बारे
मे बात कर रहे है। कोई जल्दी नहीं है। आराम से सोच कर बता देना। मैने उनसे विदा लेकर
बाहर निकल आया था।
मै अपने आफिस मे बैठ
कर तिकड़ी के साथ हुई बातचीत के बारे मे सोच रहा था। वह सच कह रहे थे। अभी तक मेरी सोच
सिर्फ इस राज्य की सीमाओं से बंधी हुई थी। मुझे नहीं पता था कि बाकी देश मे क्या चल
रहा था। आखिर नीलोफर और फारुख की लिस्टों मे दिये गये नाम ज्यादातर राज्य से बाहर के
थे। ड्र्ग्स का सारा करोबार भी कश्मीर के बाहर पूरे भारत मे फैला हुआ था। जमात-ए-इस्लामी
भी पूरे भारत मे फैली हुई थी। अगर फारुख जैसों से टकरना है तो फिर ऐसी संकीर्ण सोच
से बाहर आना पड़ेगा। मै इन्हीं सोच मे गुम बैठा हुआ था कि अचानक दरवाजा खुला और तीनो
दिग्गज मेरे कमरे मे आ गये थे। उन्हें देखते ही मै सावधान की मुद्रा मे खड़ा हो गया।
वीके सोफे पर बैठते हुए
बोला… मेजर, काफी मंगाओ। मैने बजर देकर काफी मंगा ली थी। अजीत ने कहा… समीर, हम एक
मामले मे तुम्हारी राय लेने आये है। …सर, मै आपकी बात समझ गया हूँ। मै दिल्ली जाने
को तैयार हूँ। …मेजर, वह बात नहीं है। वह सात अंको के नम्बर की कहानी के बारे मे हम
तुमसे बात करना चाहते है। उन सात अंकों की सारी कहानी सुना कर वीके ने कहा… जब से हमे
इसके बारे मे पता चला है तभी से हम लोग इसके बारे मे सोच रहे है। यहाँ पर तुम सिर्फ
नम्बर इकठ्ठे कर सकते हो परन्तु सोर्स पता लगाने के लिये यहाँ से बाहर निकलना पड़ेगा।
अजीत ने हामी भरते
हुए कहा… तुम्हें दिल्ली भेजने का हमारा यही उद्देश है। राष्ट्रीय रक्षा कालेज मे आफीसर्स
के प्रशिक्षण शिविर लगते रहते है। वहाँ पर रिमोट सेन्सिंग और कमांड सेन्ट्रल से लोग
लेक्चर देने आते रहते है। उन्हीं के माध्यम से पता लगाने की कोशिश करना। …जी सर। परन्तु
मै वहाँ करुँगा क्या? मै एनडीए पास आउट हूँ। युद्ध के सिवा मुझे किसी और विषय का कोई
अनुभव नहीं है। …मेजर, आतंकवाद को समझना और समझाना भी एक विषय है। जो कुछ तुमने अब
तक जमीन पर काम करते हुए सीखा है वह किसी किताब से नहीं सीखा जा सकता। हक डाक्ट्रीन
को जैसे तुमने देखा है बहुत से विशेषज्ञ वह चीज नहीं देख पाते। इसलिये उसकी चिन्ता
छोड़ दो। उन सात अंकों के नम्बर पर ध्यान केन्द्रित करो। हमारी काफी समाप्त हो चुकी
थी।
वह जैसे ही उठ कर
जाने लगे मैने कहा… सर, एक बात बतानी रह गयी थी। हमसे छिपा कर नीलोफर ने फारुख की बेटी
को यहाँ लाने की योजना बनायी थी। वक्त रहते मुझे पता चल गया था तो मै उसकी बेटी तबस्सुम
को अपने साथ लेकर यहाँ आ गया। इस वक्त नीलोफर, फारुख का परिवार, जैश और लश्कर के सभी
लोग उसको ढूंढ रहे है लेकिन वह मेरे पास है। मेरी बात सुन कर वह तीनो वापिस बैठ गये
थे। …सर, मुझे लगा कि नीलोफर मुझे फँसाने के लिये उस लड़की को मुजफराबाद से यहाँ लाने
की कोशिश कर रही है क्योंकि मैने फारुख को धमकी दी थी कि उसकी बेटी हमारे पास है। मुझे
लगा कि अगर नीलोफर के पास फारुख की बेटी पहुँच गयी तो वह फिर हमारी सारी योजना पर हावी
हो जाएगी। फारुख अपनी बेटी मांगेगा और उसकी बेटी हमारे पास नहीं हुई तो फिर नीलोफर
अपनी मांग मनवाने के लिये हमे मजबूर करगी। इसीलिये चार रात पहले मै मुजफराबाद के लिये
बिना किसी को बताये निकल गया था। उस लड़की को लेकर कल रात को मै यहाँ सुरक्षित पहुँच
गया था। वह मासूम लड़की बेवजह मेरे कारण इनके चक्रव्युह मे फँस गयी है। मै उस लड़की को
ब्रिगेडियर चीमा के हवाले हर्गिज नहीं करना चाहता। अब आप बताईये कि आगे क्या करना चाहिये?
तीनो गहरी सोच मे डूब गये थे।
कुछ देर के बाद वीके ने कहा… अजीत तुम
क्या सोचते हो? …वीके, वह लड़की हमारी स्ट्रेटिजिक एस्सेट है। उस
लड़की की खबर किसी को कानोकान नहीं होनी चाहिए। वह फारुख और नीलोफर को समय पर काउन्टर
करने के काम आयेगी। जिस दिन नीलोफर आँखें दिखाये तो उसकी रिकार्डिंग उसे सुनवा देना।
फारुख जिस दिन हम पर दबाव डालेगा तो उसे बता देना कि उसकी बेटी फौज के कब्जे मे है।
बस उस लड़की को सही से हैंडल करने की जरुरत है। समीर, यही अच्छा होगा कि यह बात ब्रिगेडियर
चीमा को भी नहीं पता चलनी चाहिए क्योंकि वह फारुख और नीलोफर का हैन्डलर है। कुछ देर
तीनो बात करते रहे और फिर वीके ने पूछा… तुम उस लड़की
को अपने पास सुरक्षित रख सकते हो? …जी सर। …तो ठीक है। उसे अपने पास रखो लेकिन उसके
बारे मे किसी को पता नहीं चलना चाहिये। अजीत सही कह रहा है कि वक्त पड़ने पर वह लड़की
हमारे लिये बेहद महत्वपूर्ण एस्सेट साबित होगी। इतना बोल कर तीनो वहाँ से चले गये थे।
मेरे लिये एक नयी चुनौती खड़ी हो गयी थी।
शाम हो गयी थी तो
मै घर की ओर चल दिया था। सुबह जब आफिस के लिये निकला था तब तक तीनो सो रही थी। अब जैसे
ही घर मे प्रवेश किया तो सब कुछ सामान्य सा लग रहा था। जन्नत और आस्माँ अपनी बातों
मे उलझी हुई थी। …तबस्सुम कहाँ है? …वह कमरे मे बैठी हुई है। मै उसके कमरे मे चला गया।
वह सिर झुकाये किसी गहरी सोच मे डूबी हुई थी। मेरे कदमों की आहट सुन कर उसने चेहरा
उठा कर मेरी ओर देखा तो अचानक आतंकित हो गयी। उसकी बड़ी-बड़ी आँखों मे डर के साथ आँसू
आ गये थे। मैने दरवाजे से ही कहा… मुझसे डरने की कोई जरुरत नहीं है। जन्नत और आस्माँ
भी दरवाजे पर आ गयी थी। मैने अपने सिर पर लगी हुई कैप हटा कर कहा… तुम मेरे साथ ही
मुजफराबाद से यहाँ तक आयी हो। क्या भूल गयी? उसके बिस्तर से कम्बल उठा कर अपनी वर्दी
पर लपेट कर दिखाया लेकिन अभी भी उसके चेहरे पर भय के बादल कम नहीं हुए थे। वह धीरे
से बड़बड़ायी… तुम तो काफ़िर फौज के अफसर हो। एकाएक उसके भय का कारण मै समझ गया था। मैने
जल्दी से कहा… तुम मिरियम को जानती हो जिसका निकाह मकबूल बट के साथ हुआ था। मिरियम
का नाम सुन कर एक हल्की सी शिकन उसके चेहरे पर उभरी थी। मैने अपने सीने की नेम प्लेट
दिखाते हुए कहा… मेरा नाम समीर बट है। मै मकबूल बट का बेटा हूँ। पल भर मे उसके चेहरे
पर छाये भय के बादल छ्ट गये थे और होंठों पर एक मुस्कान तैर गयी थी। मुस्कुराने से
उसके गाल के गड्डे उभर आये थे।
मैने वहीं दरवाजे
से पूछा… क्या मै अन्दर आ जाऊँ? उसने धीरे से कहा… प्लीज आ जाईये। मै तो डर गयी थी
कि काफ़िरों की फौज ने मुझे धोखे से पकड़ लिया है। मै उसके सामने बिस्तर पर बैठ कर बोला…
मिरियम तुम्हारी क्या लगती थी? …फूफी। …तुम नीलोफर को जानती हो? इस बार उसने सिर हिला
कर हामी भर दी थी। …कैसे? …वह हमारे मदरसे मे पढ़ाने आती थी। अचानक उसने मेरी ओर देख
कर पूछा… तो नीलोफर बाजी ने मुझे लाने के लिये आपको भेजा था? मैने कोई जवाब देने के
बजाय उससे पूछा… तबस्सुम तुम कहाँ तक पढ़ी हो? …बारह क्लास। …स्कूल जाती थी या मदरसा?
वह तुनक कर बोली… सेन्ट मेरी कान्वेन्ट। मैने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ कर उठते हुए कहा…
चलो बाहर बैठ कर आराम से बात करते है। उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश नहीं की और मेरे साथ
चल दी। जन्नत और आस्माँ भी हमारे पीछे बैठक मे आ गयी थी।
अपने साथ सोफे पर
बिठा कर मैने कहा… तुम्हें कुछ चीजे पता होनी चाहिये। फिर तुम जो भी कहोगी मै वैसा
ही करुँगा। बस इतना याद रखना कि मुझसे डरने की जरुरत नहीं है क्योंकि सिर्फ तुम्हें
बचाने के लिये मै वहाँ गया था। तुमने चलने से पहले एक बार भी नहीं सोचा कि तुम्हारे
साथ क्या हो सकता था? बस मुँह उठाया बाजी के कहने पर किसी अनजान सुलेमान मियाँ के साथ
अपने अब्बू से मिलने चल दी थी। अगर मेरी जगह सुलेमान पहुँच जाता और तुम्हारी खूबसूरती
पर फिदा हो गया होता तो क्या होता? तुम्हें अकेली देख कर वह तुम्हारी इज्जत तार-तार
कर देता या तुम्हे लाहौर की मंडी मे बेच देता तो फिर किसको मुँह दिखाती। वह मुझे देखती
रही फिर धीरे से बोली… अल्लाह अपने बन्दो पर जरा सी आंच नहीं आने देता इसीलिये तो कहते
है कि खुदा पर भरोसा रखो। उसकी बात सुन कर एक पल के लिये अपना सिर दीवार पर मारने का
किया कि कान्वेन्ट मे पढ़ने वाली लड़की के ऐसे विचार थे। वह धीरे से बोली… तभी तो मुझे
बचाने के लिये आपको खुदा ने भेज दिया था। उसके लाजिक के आगे मैने अपना सिर झुका दिया
था।
मैने अपनी वर्दी दिखाते
हुए कहा… तबस्सुम यह काफ़िरों की फौज की वर्दी है। यह तो तुम जानती हो। …हुँम। …इसका
मतलब यही हुआ कि तुम्हारे अब्बू और बाजी का मै जानी दुश्मन हूँ। यह बात सुन कर वह थोड़ा
सावधान हो गयी थी। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने पूछा… अगर मुजफराबाद के बाजार
मे तुम्हें पता चलता कि मै काफिर फौज का अफसर हूँ तो तुम क्या करती? अबकी बार वह धीरे
से बोली… पुलिस मे पकड़वा देती। …क्यों? उसकी आवाज तेज हो गयी थी… तुम दुश्मन मुल्क
से हो इसलिये। …बिल्कुल ठीक। अब यही बात मुझ पर लागू करो कि जब मुझे पता चला कि दुश्मन
देश के तुम्हारे अब्बू फारुख मीरवायज और नीलोफर बाजी यहाँ पर घूम रहे है तो मुझे क्या
करना चाहिए था? अबकी बार वह मेरी बात समझ गयी थी जिसकी निशानी उसके चेहरे पर दोबारा
लौट आयी थी। वह धीरे से बोली… आप भी उन्हें पुलिस से पकड़वा देते। …बहुत समझदार हो।
बिल्कुल ठीक लेकिन यहाँ पर तो मै ही पुलिस हूँ तो मुझे दोनो दुश्मनों को पकड़ लेना चाहिए
था। इस बार उसने धीरे सिर हिला दिया था।
मैने अपने कन्धे की
ओर उसका ध्यान खींच कर कहा… जब मै तुम्हारे अब्बू को पकड़ने के लिये गया तो उन्होंने
मुझे यहाँ गोली मारी थी। उसकी आँखें फैल गयी थी। …इन दोनो लड़कियों से पूछ लो कि मुझे
किसने गोली मारी थी? जन्नत और आस्माँ ने जल्दी से कहा… तुम्हारे अब्बू ने तो दिल का
निशाना लेकर गोली मारी थी लेकिन खुदा का लाख शुक्र है कि गोली कन्धे पर लगी थी। मैने
उसका हाथ पकड़ कर कहा… तो फिर तुम्हारे अब्बू को हमने पकड़ लिया था। यह सुन कर उसके चेहरे
का सारा रंग जैसे किसी ने निचोड़ दिया था। …अपनी जान बचाने के लिये तुम्हारी बाजी ने
ही हमे तुम्हारे अब्बू की खबर दी थी। अब तक मेरी सारी कहानी उसके जहन मै बैठ गयी थी।
उसके चेहरे से साफ दिख रहा था कि उसके ख्वाबों का महल पल भर मे चकनाचूर हो गया था।
एक बार फिर से उसे
समझाने के अंदाज मे कहा… तुम्हारी बाजी को पता था कि तुम्हारे अब्बू उसकी गद्दारी के
लिये कभी माफ नहीं करेंगें तो उसने तुम्हें यहाँ बुलाने की योजना बनाई कि जिससे तुम्हारी
जान के बदले वह अपनी जान बचाने मे कामयाब हो सके। यह तो किस्मत की बात है कि उसके फोन
पर हमारी नजर जमी हुई थी। जब मुझे पता चला कि वह कोई ऐसा चक्कर चला रही है तो उसी रात
को मै मुजफराबाद के लिये निकल गया था। सुलेमान से पहले मुझे तुमसे मिलना था इसीलिये
मैने फोन करके मानशेरा के बजाय मुजफराबाद बुलाने की पेशकश की थी परन्तु तुमने मुझे
गड़ी हबीबुल्लाह आने के लिये कह दिया था। मै यह सोच कर मान गया कि इस बहाने तुम मानशेरा
तो नहीं जाओगी। सुलेमान की जगह मै तुमसे मिला और फिर जो कुछ भी हुआ तुमने खुद देख लिया
था। यह सच्चायी जानना तुम्हारे लिये जरुरी था इसी लिये मैने सारी बात तुम्हें बता दी
है। अब तुम पर है कि तुम क्या चाहती हो। तुम चाहो तो मै तुम्हें वापिस तुम्हारे घर
पर छुड़वा सकता हूँ। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।
वह गहरी सोच मे डूब
गयी थी। मै उसकी हालत समझ सकता था लेकिन बिना उसकी सहमति के कुछ भी नहीं कर सकता था।
अचानक उसने मेरे होल्स्टर से पिस्तौल निकालने की कोशिश करी लेकिन मैने उसका हाथ पकड़
कर कहा… मुझे गोली मार कर क्या तुम यहाँ से निकल सकोगी? पहली बार उसके चेहरे पर आसुओं
की झड़ी लगते हुए देखी थी। वह रोते हुए बोली… मै आपको नही अपने आपको गोली मारना चाहती
हूँ। अब घर किस मुँह से जाऊँगी। बाजी ने कहा था कि अब्बू की हालत बहुत नाजुक है और
वह मुझे एक बार देखना चाहते है। आज तक अब्बू ने कभी मुझे पूछा नहीं तो मै बिना सोचे
समझे उनसे मिलने के लिये चल दी थी। पीर साहब मुझे जिंदा खेत मे गड़वा देंगें। मै अब
कहीं की नहीं रही। इतना बोल कर वह फूट-फूट कर रो पड़ी थी। मै चुपचाप बैठ गया। वह काफी
देर रोती रही थी।
जब उसके दिल का सारा
गुबार निकल गया और वह शांत हो गयी तो मैने कहा… अगर तुम खुदा की कसम खा कर कहती हो
कि मरने-मारने की बात फिर कभी नहीं करोगी तब मै एक रास्ता बता सकता हूँ। वह अब तक शांत
हो चुकी थी। अपनी भीगी पलकें झपका कर बोली… बताईये। …ऐसे नहीं पहले खुदा की कसम खाओ
कि आज के बाद मरने-मारने की बात कभी नहीं करोगी तभी बताऊँगा। …चलिये खुदा की कसम खाती
हूँ कि आज के बाद मै कभी भी मरने-मारने की बात नहीं करुँगी। …तुम आराम से यहाँ इसे
अपना घर समझ कर रहो। मौका मिलते ही मै तुम्हारे अब्बू से मिलाने की कोशिश करुँगा। वह
बिल्कुल ठीकठाक है और उन्हें कोई बीमारी नहीं है। हो सकता है कि मेरी सरकार तुम्हारे
अब्बू को कुछ दिन जेल मे रख कर छोड़ दे तब तुम आराम से अपने अब्बू के पास जाकर रह सकती
हो। वह अविश्वास भरी निगाहों से मुझे देख रही थी। मैने जल्दी से अपने दिल पर हाथ रख
कर कहा… खुदा की कसम। एक पल के लिये वह सिर झुका कर बैठी रही फिर अचानक वह झपट कर मुझसे
लिपट गयी और मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोली… तुमने खुदा की कसम उठाई है। मैने जल्दी
से उसे अपने से अलग करते हुए कहा… तुम मेरा कन्धा खराब करके ही मानोगी। हल्का सा दबाव
पड़ने से दर्द होता है। वह तुरन्त मेरा कन्धा धीरे से सहलाते हुए बोली… सौरी। मुझे माफ
कर दिजिये। एकाएक घर का माहौल बदल गया थ।
दो दिन और ऐसे ही
निकल गये थे। आफिस मे बैठ कर मै सारी फाइल्स, पेन ड्राईव और पेपर्स देख रहा था। गद्दारों
की लिस्ट बढ़ती जा रही थी। जिहादियों के फोन का स्टैन्डर्ड प्रोटोकोल बन गया था। उनकी
कोन्टेक्ट लिस्ट निकाले और व्हाट्स एप के सारे सद्स्यों का नाम निकाल कर क्रास रेफ़्रेन्सिंग
करके सभी लोगों की जानकारी काउन्टर इन्टेलीजेन्स विंग के पास जाने लगी थी। अगले दो
दिन कुछ को उन्होंने हूरों से मिलने भेज दिया था और कुछ को अपना मुखबिर बनने के लिये
मजबूर कर दिया था। ब्रिगेडियर चीमा और ब्रिगेडियर शर्मा ने राज्य के आतंकी नेटवर्क
की कुछ ही दिनों मे कमर तोड़ दी थी। मेरा सारा समय आफिस मे फाइलें पढ़ने मे गुजर रहा
था और घर उन तीनो लड़कियों से गुलजार हो गया था। रात को खाना खाने के बाद मेरे लैपटाप
पर तीनो लड़कियाँ हिन्दी फिल्म देखने बैठ जाती थी। इतने दिनो मे एक बार भी नीलोफर ने
मुझसे बात नहीं की थी क्योंकि अब वह ब्रिगेडियर चीमा से निर्देश लिया करती थी।
श्रीनगर मे भी बर्फबारी
आरंभ हो गयी थी। मुजफराबाद का रास्ता भी बन्द हो गया था। मेरा ट्रस्ट का काम भी मेजर
हसनैन ने संभाल लिया था। तीनों के साइन किये पेपर्स वापिस मिलते ही फैयाज खान ने शमा
बट फाउन्डेशन का पंजीकरण करवा दिया था। उसके साथ ही फाउन्डेशन का अकाउन्ट खुलवा कर
अम्मी के अकाउन्ट के सारे पैसे आसानी उसमे ट्रांस्फर हो गये थे। फोन पर आफशाँ से एक
दो दिन मे बात हो जाती थी। हफ्ते मे एक बार आसिया और अदा से भी उनके हालचाल पूछ लेता
था। एक दोपहर को जन्नत और आस्माँ को लेकर मै अपने फाउन्डेशन का काम देखने के लिए निकल
गया था। मेजर हसनैन अली हमारे घर के जीर्णोंद्धार का काम देख रहे थे। गेस्ट हाउस का
काम लगभग पूरा हो गया था। वही पर किनारे मे फाउन्डेशन का एक छोटा सा आफिस बना लिया
था। हम चारों लान मे बैठ कर शमा बट फाउन्डेशन के कार्य पर चर्चा कर रहे थे। …मेजर साहब
आप आगे क्या काम करने की सोच रहे है? …समीर, यहाँ पर महिलाओं और बच्चों के कार्यक्रम
आरंभ करने की सोच रहा हूँ। जैसे गरीब महिलाओं को सिलाई, कढ़ाई और हस्तशिल्प का प्रशिक्षण
दिया जाए तो उनके परिवार की बदहाली मे काफी बदलाव लाया जा सकता है। गरीब बच्चों के
लिए खेल-कूद द्बारा पढ़ाई के बहुत से देशव्यापी कार्यक्रमों मे से किसी एक को चुन कर
यहाँ पर आरंभ किया जा सकता है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि जमात-ए-इस्लामी के मदरसों
के सामने एक विकल्प खड़ा किया जाए। …मेजर साहब आप इन कार्यक्रमों का सालाना बजट तैयार
कीजिए उसके बाद हम बैठ कर
उस पर चर्चा करेंगें। बस इतनी बात करके हम वापिस चल दिये थे।
मैने नोट किया था
कि दोनो बहनें बड़े ध्यान से सारी बात सुन रही थी। रास्ते मे मैने पूछा… जन्नत तुम्हारा
इसके बारे मे क्या विचार है? वह कुछ सोच कर बोली… ऐसे कार्यक्रम तो नये नहीं है। यह
सब तो हमने किश्तवार मे बहुत जगह पर देखे है। हम इसी बारे मे बात करते हुए घर पहुँच
गये थे। मैने महसूस किया था कि दोनो बहनें पहली बार किसी विषय मे इतनी रुचि दिखा रहीं
थी। रात को डाईनिंग टेबल पर जन्नत ने कहा… मेजर साहब के साथ मिल कर हम दोनो इस काम
मे उनका हाथ बटाना चाहती है। किश्तवार और बांदीपुरा मे हमारे समाज के बहुत से लोग रहते
है। हम दोनो बहने उनके लिये कुछ करना चाहती है। मेजर साहब की बात सुन कर हमे लगता है
कि हम दोनो भी बहुत कुछ सीख सकती है। मैने उनका उत्साह बड़ाते हुए कहा… इससे बेहतर क्या
हो सकता है कि तुम अपने समाज के लिये कुछ अच्छा करने की सोच रही हो। आस्माँ ने पूछ
लिया… तबस्सुम तुम भी हमारे साथ इस काम मे हाथ बटाओ। मैने मना करते हुए कहा… इसको बक्शो।
इसके अब्बा के बाहर आते ही यह उनके पास वापिस चली जाएगी। उसके बाद पता नहीं कि वह यहाँ
रहेगी या मुजफराबाद चली जाएगी। एक कारण से वह दोनो तबस्सुम से चिड़ती भी थी क्योंकि
उसके रहते हुए मैने दोनो को अपने कमरे मे आने से मना कर दिया था।
एक शाम नीलोफर का
फोन आया… समीर, मुझे तो तुमने भुला दिया है। मेरे पास तबस्सुम बैठी हुई थी मैने जल्दी
से उसका हाथ पकड़ कर अपने पास खींच लिया था। फोन को स्पीकर पर डाल कर मैने कहा… मजाक
कर रही हो। अब तुम ब्रिगेडियर साहब से बात करने लगी हो। उनके और मेरे बीच दो रैंक का
फर्क है। मै एक साधारण मेजर हूँ। मुबारक हो कि तुम्हारी उन्नति हो गयी है। …समीर, मै
एक मुश्किल मे फँस गयी हूँ। …क्या हुआ? …तुम्हारे लिये मै तबस्सुम को यहाँ लाने का
प्रयास कर रही थी लेकिन… मैने उसकी बात को बीच मे काटते हुए कहा… जिस दिन यह सवाल उठा
था मैने उसी दिन तुम्हें मना कर दिया था कि तबस्सुम को इसमे मत घसीटो तो फिर मुझसे
बिना पूछे उसे लाने की कोशिश क्यों की थी। …क्या मै तुम्हारे और मिरियम के संबन्धों
के बारे मे नहीं जानती थी? अपने दोस्त की खातिर मैने ऐसा किया था परन्तु तुम्हारे बास
के हाथ मे मेरी और तबस्सुम की बातचीत की रिकार्डिंग लग गयी है। अब वह मुझ पर दबाव डाल
रहे है कि तबस्सुम को उनके हवाले कर दूँ।
कुछ रुक कर मैने कहा…
इसमे मुश्किल क्या है। उसे मेरे लिये लायी थी तो इतने दिन उसे मुझसे दूर क्यों रखा
था। अब जब ब्रिगेडियर साहब उसे मांग रहे है तो कर दो उनके हवाले इसमे भला मै क्या कर
सकता हूँ। …यही तो मुश्किल हो गयी है कि तबस्सुम ने आखिरी समय पर अपना मन बदल लिया
और वह वहाँ नहीं पहुँची जहाँ उसे पहुँचना था। मैने ब्रिगेडियर साहब को इतना समझाया
परन्तु वह मेरी बात मानने को तैयार नहीं है। वह कह रहे कि तबस्सुम उसी रोज से अपने
घर से गायब है। अब तुम ही बताओ कि मै उन्हें कैसे यकीन दिलाऊँ? …नीलोफर, वह मेरे बास
है। मै उन्हें सिर्फ कह सकता हूँ लेकिन उन पर कोई दबाव नहीं डाल सकता। वह किस बात की
धमकी दे रहे है? …यही कि वह फारुख को बता देंगें कि मैने तबस्सुम का अपहरण करवाया है।
…मै अपने सीओ को अच्छे से जानता हूँ कि जब तक तुमने कोई दबाव नहीं डाला होगा तब तक
वह ऐसा कदम कभी नहीं उठाते। तुमने उनसे क्या कहा था? एकाएक नीलोफर चुप हो गयी थी।
…हैलो। …समीर मैने
सिर्फ इतना कहा था कि मेरे दोनो ट्रक छोड़ दो। …उन ट्रकों मे क्या था? …एक मे रुपये
थे और दूसरे मे ड्र्ग्स थी। अब तुम ही सोचो बिना पैसे के सारी तंजीमे मेरे खिलाफ हो
जाएँगी। मेरी मदद करने के बजाय वह मुझे ही मरवाने पर तुल जाएँगें। क्या फारुख तुम्हारे
लिये काम करने के लिये तैयार हो गया है? …मुझे पता नहीं। मै आज कल कुछ और काम मे लगा
हुआ हूँ। ठीक है एक बार उनसे बात करने की कोशिश करुँगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह
मेरी बात मानेंगे। मेरी बात सुन कर नीलोफर ने लाईन काट दी थी।
तबस्सुम मेरे सीने
पर सिर रख सारी बात सुन रही थी। …सुन लिया तुमने अपनी बाजी की कहानी। वह उठ कर बैठ
गयी और मेरी ओर देख कर बोली… तुम्हारा मेरी फूफी के साथ क्या सबन्ध था? उसका सवाल सुन
कर मेरे दिमाग मे खतरे की घंटी बज गयी थी। मै भी उठ कर बैठते हुए बोला… तुम्हे उस दिन
बताया तो था कि मेरे अब्बा मकबूल बट का निकाह तुम्हारी फूफी मिरियम के साथ हुआ था।
मेरी बात सुन वह चुप तो हो गयी थी परन्तु उसके चेहरे से साफ लग रहा था कि वह अभी भी
किसी सोच मे उलझी हुई थी। …समीर, फिर वह यह क्यों कह रही थी कि तुम्हारे लिये वह मुझे
यहाँ बुला रही थी। बात टालने के लिये मैने कहा… तुम्हारी बाजी पाँच बात बोलती है तो
उसमे से चार झूठ होती है। …तुम मुझे अगर सच नहीं बोलोगे तो मै बाजी को फोन करके पूछ
लूंगी। उसकी धमकी सुनते ही मुझे लगा कि अब इसे बताना ही पड़ेगा। मैने फारुख को दी हुई
धमकी के बारे मे बता कर कहा कि तुम्हारे अब्बू पर दबाव डालने के लिये मैने ऐसा बोला
था। किसी जासूस का मुँह खुलवाने के लिये फौज मे या तो टार्चर करते है या उसके किसी
परिवार के आदमी के द्वारा उस पर दबाव डालते है। तुम्हारे अब्बू एक फौजी अफसर थे तो
मै नहीं चाहता था कि उनके साथ टार्चर किया जाए इसीलिये तुम्हारा नाम लेकर मैने उन पर
दबाव डालने की कोशिश की थी। यह भी सच है कि उनके सेल से बाहर निकलते ही मैने सभी से
मना कर दिया था कि तुम्हें इसमे घसीटने की कोशिश न करें। मैने किसी तरह उस दिन बात
संभाल ली थी परन्तु कब तक ऐसा रख सकूँगा इसका पता मुझे खुद को भी नहीं था।
ब्रिगेडियर चीमा से
तो वैसे ही रोज मुलाकात हो जाती थी लेकिन आप्रेशनल मुद्दों पर अब हमारी बात नहीं होती
थी। मेरा काम अब मेज तक ही सिमित रह गया था। ऐसे ही दिन निकलते जा रहे थे। तबस्सुम
भी अपने अब्बू से मिलने की रोज बात करने लगी थी। मै जैसे-तैसे कोई कहानी बना कर टाल
रहा था। नीलोफर और तबस्सुम ने जिस तरह का वर्णन किया था उसके परिपेक्ष मे मुझे तबस्सुम
की चिंता होने लगी थी। आप्रेशन आघात के कारण डेढ़ साल से मै छुट्टी पर भी नहीं जा सका
था। आफशाँ का भी काम फैलता चला जा रहा था और मेनका का भी स्कूल शुरु हो गया था। हर
तरफ मै अपने आपको उलझनों मे घिरा पा रहा था लेकिन कोई उनका हल दूर-दूर तक नहीं दिख
रहा था।
मुजफराबाद
आलीशान वैभवपूर्ण
कमरे मे पीरजादा मीरवायज गहरी सोच मे डूबा हुआ था। उसके सामने आईएसआई का निदेशक जनरल
मंसूर बाजवा और जकीउर लखवी बैठे हुए थे। …पीरजादा साहब, अब आगे के बारे मे क्या सोचा
है? पीरजादा ने अपनी दाड़ी पर धीरे से हाथ फिरा
कर धीरे से कहा… आप लोग अपना काम देखिये। वह नामुराद लड़की दुनिया के किसी भी कोने मे
छिप जाये लेकिन वह छिनाल ज्यादा दिन बच नहीं सकेगी। मंसूर बाजवा जल्दी से बोला… पीरजादा
साहब इस वक्त हमारे लिये फारुख प्राथमिकता है। हमारे लोगों का मानना है कि फारुख अपनी
बेटी को बचाने के लिये श्रीनगर से गायब हुआ है। आपका एक वक्तव्य सारी स्थिति को संभाल
सकता है। क्या कुछ दिनों के लिये उस लड़की को भुलाया नहीं जा सकता? …जनरल साहब, मै अपने
लोगों को क्या मुँह दिखाऊँगा। तभी जकीउर लखवी जो अब तक चुप बैठा हुआ था वह बोला… जनाब
बहुत कुछ दाँव पर लगा हुआ है। एक छिनाल के कारण हमारे मंसूबे को धवस्त मत किजिये।
…पीरजादा साहब, जकीउर लखवी सही बोल रहा है। सभी तंजीमों का भी यही विचार है। गुनाहगार
को सजा जरुर मिलेगी परन्तु फिलहाल आपकी ओर से एक वक्तव्य फारुख को आश्वस्त कर देगा।
अबकी बार पीरजादा ने कुछ सोच कर धीरे से अपना सिर हिला कर कहा… जनाब आप्रेशन खंजर को
क्या कुछ समय के लिये मुल्तवी नहीं किया जा सकता है? बाजवा तुरन्त बोला… हर्गिज नहीं।
अब जमीन पर उस योजना को उतारने का समय आ गया है। बहुत कुछ दाँव पर लगा हुआ है इसलिये
अब पीछे हटना मुम्किन नहीं है।
…ठीक है। मै आपकी
बात से सहमत हूँ। उस छिनाल के लिये सब कुछ दाँव पर नहीं लगाया जा सकता। इस जुमे की
तकरीर मे अबकी बार मै फारुख के नाम अपना पैगाम दे दूँगा। लखवी तुरन्त उठा और घुटनों
के बल बैठ कर पीरजादा का हाथ चूम कर बोला… इस बार जैश और लश्कर दुश्मन के सीने को छलनी
करने के लिये तैयार है। पीरजादा ने उठते हुए कहा… आमीन। मंसूर बाजवा भी उनके साथ उठते
हुए बोला… मकबूजा कश्मीर मे हमारे सारे एजेन्ट एक्टिव हो गये है। फारुख तक आपका पैगाम
पहुँच जाएगा। इतनी बात करके तीनो उस कमरे से बाहर निकल गये थे।