काफ़िर-38
मैने एक नपा तुला रिस्क लिया था। अगर फोन करने
वाला फारुख था तो वह अपने बिल से बाहर निकल कर सामने आकर इस झूठ के खिलाफ अपनी सफाई
देगा और अगर लखवी परिवार से कोई नीलोफर के बारे मे पता कर रहा था तो मैने उनके दिमाग
मे फारुख के बारे मे शक का बीज अंकुरित कर दिया था। अगली सुबह आफिस पहुँचते ही पता
चला कि कल रात को स्पेशल फोर्सेज ने बाटामालू मे आठ आतंकवादी ढेर कर दिया था। जब
भी ऐसी कोई घटना होती थी तो उसके बदले मे आतंकवादी तंजीमे कोई बड़ी कार्यवाही की फिराक
मे रहती थी। आने वाले खतरे को देखते हुए मै नीलोफर से मिलने चला गया था।
कागजी कार्यवाही समाप्त
करके जब मै उस कमरे मे दाखिल हुआ तो नीलोफर मेरा इंतजार कर रही थी। उसकी हालत पहले
से भी ज्यादा बदहाल दिखायी दे रही थी। मै चुपचाप उसके सामने जाकर बैठ गया। हमेशा की
तरह दो महिला गार्ड्स लोहे के गेट पर मुस्तैदी से तैनात थी। ट्युबलाइट ने छोटे से कमरे
को रौशन कर रखा था। …समीर, यहाँ से मुझे बाहर निकालो। …मेरी शर्त वही पुरानी है। वह
कुछ नहीं बोली बस उसने कुछ कागज मेरी ओर बढ़ा दिये थे। मैने उन कागजों पर एक सरसरी नजर
डाल कर कहा… ठीक है। एक बार मुझे इस जानकारी को जाँचना होगा। मुझे इसके लिए समय चाहिए।
यह बोल कर जैसे ही मै उठने लगा कि अचानक वह मुझ पर झपटी लेकिन तब तक महिला गार्ड्स
फुर्ती से उस तक पहुँच गयी थी। एक महिला गार्ड ने बड़ी बेदर्दी से अपने जूते की ठोकर
उसके पेट मारी जिसके झोंक मे नीलोफर जमीन पर ढेर हो गयी थी। मै एक किनारे मे खड़ा हुआ
चुपचाप उनको देख रहा था। थोड़ी देर मे उन दोनो महिला गार्ड्स ने नीलोफर हिलने डुलने
के काबिल भी नहीं छोड़ा था। वह जमीन पर पड़ी हुई दर्द से कराह रही थी। मैने उन गार्ड्स
को हटने का इशारा किया और उसे सहारा देकर उठा कर खड़ा किया।
नीलोफर धीरे से पेट
पकड़ कर खड़ी हुई और फिर मेरी ओर देख कर लड़खड़ाती हुई आवाज मे बोली… समीर, मुझे यहाँ से
आज ही निकालो। अगर आज नहीं निकाला तो… कहते हुए एक बार लड़खड़ायी और फिर जमीन पर ढेर
हो गयी थी। मै अभी भी कोई निर्णय लेने की स्थिति मे नहीं था लेकिन पता नहीं क्यों लेकिन
शायद उसकी हालत देख कर मैने कहा… तो फिर आओ चलो। मेरी बात सुन कर वह एक पल के लिए सकते
मे आ गयी थी। मैने आगे बढ़ कर उसे सहारा देते हुए कहा… पहले तो बाहर निकलने की रट लगा
रखी थी अब जब चलने के लिए कह रहा हूँ तो हिलने को तैयार नहीं हो। उसने मेरी ओर देखा
और फिर धीरे बोली… तुम सच बोल रहे हो। …और कैसे बोलूँ? आओ मेरे साथ बाहर चलो। वह मेरा
सहारा लेकर कुछ कदम चली और अचानक उसके पाँवों ने जैसे जवाब दे दिया और वह मुझे पकड़
कर झूल गयी थी। उसे अपनी बांहों मे सँभालते हुए मैने कहा…नीलोफर, आज तुम्हारे कारण
मै अपनी नौकरी और अब तक कमाई सारी इज्जत को दाँव पर लगा रहा हूँ। अगर मुझे धोखा देना
चाहती हो तो याद रखना कि हम दोनो मे से सिर्फ एक ही जिवित बचेगा। उसने अचानक एक बार
मेरी ओर देखा और फिर धीरे से बोली… तुम्हारा यह एहसान हमेशा याद रखूँगी। उस कमरे से
बाहर निकल कर हम दोनो मुख्य द्वार पर पहुँच गये थे। मैने उसे बेन्च पर बिठाया और फिर
कागजी कार्यवाही पूरी करने व्यस्त हो गया। थोड़ी देर मे उसके रिलीज पेपर गार्ड्स को
थमा कर हम दोनो बाहर आ गये थे।
दिन की रौशनी मे वह
अपनी आँखें खोलने मे अस्मर्थ थी। उसको सहारा देकर मै अपनी जीप की ओर चलते हुए बोला…
वहाँ से तो तुम्हें अपनी जमानत पर निकाल लाया परन्तु जब तक मुझे तुम्हारे सारे खेल
का पता नहीं चलता तब तक मै तुम्हें छोड़ नहीं सकता। अब मेरे पास एक ही विकल्प बचा है।
क्या तुम मेरे साथ मेरे घर पर रह सकोगी? वह सिर झुकाये खड़ी रही और फिर जैसे ही उसने
सिर उठा कर मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… यह 15वीं कोर का कोम्प्लेक्स है। अनाधिकृत
व्यक्ति को यहाँ पर बिना चेतावनी दिये गोली मार देते है। यह सिर्फ इसलिये बता रहा हूँ
कि अगर दिमाग मे कभी भागने का विचार आये तो उसे तुरन्त निकाल देना। वह जब से बाहर निकली
थी तभी से वह चुप थी। अचानक उसने मेरी ओर देखते हुए कहा… पहले उधर कैद मे थी अब तुम्हारी
कैद मे हूँ। …अगर तुम ऐसा समझती हो यही सही है। मै तुम्हे अपने घर पर एक दोस्त की हैसियत
से ले जा रहा हूँ। फिलहाल मेरे पास जानकारी है कि बाहर तुम्हारी जान को खतरा है। पहली
बार उसकी नजरों मे इतनी देर बाद कुछ उत्सुक्ता दिखी थी।
…हमारी तहकीकात मे
पता चला है कि फारुख ने उन ट्रकों मे नकली नोट और चरस रखवाया था। उस वक्त हमे यह समझ
मे नहीं आया था कि उसके निशाने पर कौन था- मकबूल बट या तुम? मेरे घर के पीछे मिली हुई
दो लाशें की शिनाख्त हो गयी है। दोनो जैश के शार्प शूटर थे और अब हमे शक है कि उसके
निशाने पर तुम थी। उसने हमारे सामने तुम्हें चारे की तरह इस्तेमाल किया और फरार हो
गया। चलो जीप मे बैठो अगर वापिस वहीं नहीं जाना चाहती? उसने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप
जीप मे बैठ गयी। मैने बैठते ही अपने ड्राईवर से कहा… कोम्पलेक्स चलो। मेरे घर के सामने
जीप रुकते ही उतर कर मैने अपनी टीम से कहा… ख्याल रहे कि यह मोहतरमा इस मकान से बाहर
नहीं निकल सकती। इतना कह कर मै अपने घर मे चला गया और वह चुपचाप मेरे पीछे-पीछे चली
आयी थी। खाली कमरे की ओर इशारा करते हुए मैने कहा… वह तुम्हारा कमरा है। देख लो यह
जगह कम से कम उस छ: बाई छ: के सेल से बेहतर है। वह कुछ नहीं बोली बस लंगड़ाती हुई उस
कमरे मे चली गयी थी।
अर्दली आते ही मैने
कहा… दो लोगों का खाना तैयार करो। यह बोल कर मै नीलोफर के पास चला गया था। वह बेड पर
सिर झुकाये बैठी हुई थी। मुझे देखते ही बोली… तुम मेरे साथ यह सब क्यों कर रहे हो।
क्या चाहते हो? …मै क्या चाहता हूँ तुम्हें पता है। मैने उसे सहारा देकर खड़ा किया और
बाथरुम मे छोड़ते हुए कहा… नहा धो कर फ्रेश हो जाओ। खाना तैयार हो रहा है। आराम से बैठ
कर बात करेंगें। उसे वहीं छोड़ कर मै घर से बाहर निकल आया था। मुझे देखते ही पाँचों
मेरे पास आकर खड़े हो गये थे। उनको निर्देश देकर जैसे ही मै अन्दर आया तो नीलोफर मुझे
बैठक मे दिखी तो मैने पूछा… क्या हुआ? …मेरे पास कोई कपड़े नहीं है। मै उसे उसके कमरे
मे ले गया और अलमारी खोल कर आलिया के कपड़े दिखा कर कहा… फिलहाल यह पहन लो। शाम तक तुम्हारे
लिये कुछ कपड़ों का इंतजाम हो जाएगा। यह कह कर मै बाहर निकल आया था।
मैने फोन उठाया और
ब्रिगेडियर चीमा को सारी बातों से अवगत कराने के बाद कहा… सर, क्या फारुख की ओर से
कोई प्रतिक्रिया हुई है? …अभी तक नहीं लेकिन तुमने जो उस दिन हंगामा मचाया था उसका
असर यह हुआ कि अब सभी फारुख की तलाश कर रहे है। मेरी सिटी एसपी से इस मामले मे बात
हुई है और अब पुलिस भी फारुख की तलाश मे जुटी हुई है। अभी कुछ देर पहले हमारे नेटवर्क
मे सुनने मे आया है कि नीलोफर को गायब करने मे फारुख का हाथ है। इसकी खबर भी हमे सीमा
पार से लश्कर के सोर्स से मिली है। मेजर लगता है कि तुमने फारुख को एक अजीब सी स्थिति
मे लाकर खड़ा कर दिया है कि बिना सामने आये अब वह इस अफवाह को दबा नहीं सकेगा। उसको
सावधानी से हैंडल करना तुम्हारी जिम्मेदारी है। …सर, आपके पास कुछ पेपर्स भिजवा रहा
हूँ। नीलोफर ने कुछ नाम दिये है जिसके साथ वह अब तक संपर्क मे थी। इसके आगे का काम
आपकी काउन्टर इन्टेलीजेन्स टीम के हाथ मे है।
अपनी फोन पर बात समाप्त
करके मैने अर्दली से कहा… खाना मेज पर लगा दो। वह खाना लगा कर चला गया और मै वही बैठ
कर नीलोफर की राह देखने लगा। कुछ देर के बाद वह आलिया के कपड़े पहने जब बाहर निकली तब
तक उसकी हालत थोड़ी बेहतर हो गयी थी। उसके कपड़ों की स्थिति वैसी ही थी जैसे आस्माँ की
थी जब उसने आलिया के कपड़े पहने थे… आओ कुछ खा लो। मै डाईनिंग टेबल पर लगे हुए खाने
की ओर इशारा करके खाने बैठ गया था। एक क्षण के लिये वह झिझकी और फिर मेरे सामने बैठ
कर चुपचाप खाने लगी। …यह कैसा खाना बनाता है? …ठीक है। खाना समाप्त होने के बाद वह
बोली… क्या तुम्हारे पास कोई पेन किलर है। …क्यों? अपनी किट से पेन किलर का पत्ता निकाल
उसके सामने रखते हुए पूछा… क्या मुझे अपनी चोट दिखा सकती हो? उसने घूर कर मुझे देखा
तो मैने जल्दी से कहा… फौज मे होने कारण हर सैनिक को अन्दरुनी चोटों के बारे मे बताया
जाता है। जैसी तुम्हारी मर्जी। यह बोल कर मै सोफे पर आकर बैठ गया और वह वहीं बैठी रही।
अचानक वह बोली… समीर,
तुम क्या जानना चाहते हो? …कुछ भी पूछने से पहले मै तुम्हारे सवाल का सही जवाब दे देता
हूँ। मैने ऐसा क्यों किया तो तुम्हें अपने दिल की बात बता रहा हूँ। अगर मैने वह सीडी
नहीं देखी होती तो शायद उस सेल मे तुम्हें जमीन पर वैसे ही छोड़ कर बाहर आ गया होता।
चुंकि मैने वह सीडी देख कर तुम्हारे दर्द को महसूस किया था तो उस वक्त सेल मे तुम्हारी
वैसी हालत को देख कर मै अपने आप को रोक नहीं पाया। तुम्हारा मुँह खुलवाना मेरे लिये
कोई मुश्किल बात नहीं है लेकिन तुम पहले से ही इतनी प्रताड़ना सहन कर चुकी हो कि अब
और तकलीफ देना मुझे उचित नहीं लगा। यही कारण है कि अपनी जमानत पर मै तुम्हें वहाँ से
छुड़ा कर यहाँ ले आया। वह डाईनिंग टेबल से उठ कर मेरे सामने आकर बैठ गयी। मेरी बात सुन
कर उसके अन्दर उमड़ रहा तूफान उसकी आँखों से एकाएक छलक उठा था।
यह उचित समय था जब
उसके अन्दर की स्त्री को जगाया जा सकता था। यही सोच कर मैने कहा… नीलोफर मुझे अभी तक
यह बात समझ मे नहीं आयी कि जिस दरिंदे ने तुम्हारे साथ इतना बुरा सुलूक किया था उसको
तुमने इतनी आसानी से माफ कैसे कर दिया? आज उसी के साथ मिल कर तुम यहाँ कोई षड़यंत्र
रच रही हो। वह थोड़ी देर चुप रही और फिर बड़बड़ायी… तुम मेरी मजबूरी को कभी नहीं समझ सकते
क्योंकि तुम एक मर्द हो। क्या तुम जानते हो कि एक लड़की की जिंदगी वहाँ भेड़-बकरी से
ज्यादा नहीं है। उसकी इच्छा या अधिकार की हमारे समाज मे कोई जगह नहीं है। उसे जो कुछ
भी दिया जाता उसे खुदा की नेयमत के तौर पर कुबूल करना पड़ता है। इतना बोल कर वह चुप
हो गयी। मै उसको देख रहा था और वह निगाहें झुकाये बैठी हुई थी। अचानक उसने मेरी ओर
देख कर कहा… क्या तुम्हें पता है कि मेरे साथ जो कुछ भी हुआ वह सब जानने के बाद भी
मेरे परिवार ने सिर्फ कुछ पैसों और सरकारी इमदाद पाने के लिये मीरवायज परिवार से हाथ
मिला लिया था। यह बोलते हुए उसकी आवाज मे एकाएक कड़वाहट आ गयी थी।
मै उठ कर उसके पास
चला गया और मैने जैसे ही उसको शांत करने के लिये उसकी ओर हाथ बढ़ाया तो वह बिदक कर दूर
हो गयी और मुझे घूर कर बोली… मुझे छूने की कोशिश हर्गिज मत करना। …तुम्हें पता है कि
मेरे घर मे भी तुम्हारी जैसी लड़कियाँ भी है। मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है। वह अभी भी
शांत नहीं हुई थी परन्तु मुझे देख कर वह बोली… क्या तुम्हें पता है कि सिर्फ अपनी तरक्की
के लिये उसने मुझे झूठ के जाल मे फंसा दिया था। मैने उसकी ओर मुस्कुरा कर कहा… अपने
आप को सीआईए की नजरों मे चड़ाने के लिये फारुख ने तुम्हे मोहरा बनाया क्योंकि वह तुम्हारी
खाला को नहीं पकड़ सका था। अविश्वास भरी नजरों से मेरी ओर देखते हुए कहा… तुम्हें इसका
कैसे पता? …सीआईए ने बगराम एयरबेस पर आत्मघाती हमले के लिये नीलोफर नाम से लुक-आऊट
नोटिस जारी किया था। वह नोटिस हमारी इन्टेलीजेन्स को भी मिला था। वह तुरन्त बोली… यह
सब झूठ है।
…तुम ही बता दो कि
क्या सच है? …सीआईए को खुश करने के लिये फारुख ने हमारे एक ट्रेनिंग कैंप पर छापा मारा
था। उस वक्त मै लड़कियों को पढ़ाने के लिये वहाँ गयी थी। मेरी खाला उस समय अफगानिस्तान
मे थी। अपने साथ आयी सीआईए की टीम को खुश करने के लिये उसने मुझे पकड़ कर सारा दोष मेरे
सिर मढ़ दिया था। वह मुझ पर दबाव डाल रहा था कि मै उस हमले की जिम्मेदारी अपने उपर ले
लूँ परन्तु जब मैने मना किया तब वह दरिंदगी पर उतर आया। एक हफ्ते तक वह मुझे यातनाएँ
देता रहा और मेरे जिस्म को अपने कुत्तों से नुचवाता रहा। जब मेरी खाला को इसका पता
चला तब लश्कर ने मीरवायज परिवार के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। एक ही रात मे उन्होंने पीरजादा
के तीन भाईयों का कत्ल कर दिया था। मामला इतना बिगड़ गया कि आईएसआई के मंसूर बाजवा को
बीचबचाव के लिये उतरना पड़ा था। आखिरकार लखवी और मीरवायज परिवारों के बीच सुलह कराने
के लिये मेरी इज्जत का सौदा हुआ और परिणामस्वरुप मुजफराबाद का सारा कारोबार लखवी परिवार
के आधीन हो गया था। मंसूर बाजवा ने मेरे चचा मुन्नवर लखवी के कहने पर रातोंरात मुझे
यहाँ पर अपने अब्बा के पास भिजवा दिया था। मै यहाँ आ गयी यह सोच कर कि पिछली जिंदगी
भुला कर एक नये सिरे से अपनी जिंदगी शुरु करुँगी। उस वक्त मै यह नहीं जानती थी कि यह
सब उसी सुलहनामे की शर्तों मे से एक थी।
हमे बात करते हुए
शाम हो गयी थी। इस बीच मैने उसकी समय-समय पर बदलती हुई मनोदशा देखी थी। शाम तक वह काफी
सयंत हो चुकी थी और खुल कर बात करने लगी थी। मेरा अर्दली आ चुका था। …साहबजी रात को
क्या बनाना है? मैने नीलोफर की ओर देख कर कहा… अब से इनसे पूछ कर बना दिया करो। इतना
बोल कर मै उठ कर खड़ा हो गया… कुछ देर के लिये मै बाहर जा रहा हूँ। तुम चाहो तो अपने
कमरे मे जाकर आराम कर लो। यह कह कर मै घर से बाहर निकल गया था। घर से बाहर निकलते ही
मैने अपने सेन्ट्रल एक्स्चेन्ज मे फोन करके निर्देश जारी कर दिया कि मेरे घर के नम्बर
से कोई भी काल की जाये तो उसको रिकार्डिंग पर लगा दे और तुरन्त लोकेशन ट्रेस करने की
कोशिश करे। दो साथियों को घर पर छोड़ कर मै जीप मे बैठ कर कोम्पलेक्स से बाहर निकल गया
था।
मैने पहले मार्किट
से नीलोफर के लिये कुछ कपड़े खरीदे और केमिस्ट की दुकान से कुछ दवाईयाँ लेकर अपने घर
जन्नत और आस्माँ से मिलने के लिये चल दिया। उनको नीलोफर के बारे मे बता कर कहा कि कुछ
दिनो तक मेरा यहाँ आना संभव नहीं हो सकेगा तो वह घर का ख्याल रखें। कुछ देर उनके साथ
बिता कर उनके हाथ मे खर्चे के लिये कुछ रुपये देकर मै वापिस कोम्पलेक्स की ओर चल दिया।
जैसे ही घर से निकला तो मेरा सामना अरबाज से हो गया था। वह अपनी कार से उतर कर अपने
घर मे जा रहा था। मैने जीप रुकवा कर उससे पूछा… सुनने मे आया है फारुख रातोंरात गायब
हो गया है? अरबाज ने भी सिर हिला कर कहा… समीर, पता ही नहीं चला कि ऐसा क्या हो गया।
किसी के कुछ समझ मे नहीं आ रहा है। जबसे तुम्हारे अब्बा और लोन पर हमला हुआ है तब से
जमात-ए-इस्लामी मे भी काफी खलबली मची हुई है। तीन दिन बाद जमात ने एक इमरजेन्सी मीटिंग
बुलाई है कि फिलहाल जमात की बागडोर किसके हाथ मे दी जाये। शायद उस दिन फारुख नजर आयेगा
क्योंकि अन्दर की खबर है कि सभी लोग जमात की बागडोर उसके हाथ मे देने का मन बना चुके
है। उससे बात करके मै कोम्पलेक्स की ओर निकल गया था।
मैने अपने घर मे प्रवेश
किया तब तक नीलोफर कमरे से बाहर नहीं निकली थी। अर्दली से मेज पर खाना लगा कर नiलोफर
ने उसे जाने के लिये कह दिया था। मैने नीलोफर के कमरे के दरवाजे पर दस्तक देकर अन्दर
चला गया। वह बिस्तर पर पड़ी कराह रही थी। मुझे देखते ही वह उठ कर बैठ गयी। …तुम कब आये।
…अभी कुछ देर पहले आया था। कपड़ों का पैकट उसकी ओर बढ़ा कर कहा… अगर दर्द हो रहा है तो
उससे लड़ने या दबाने के बजाय मुझे दिखा सकती हो। वह बिदक कर दूर हो कर बोली… नहीं अब
सब ठीक है। …कोई बात नहीं। जब तुम्हें लगे तब दिखा देना। आओ चल कर कुछ खा लो। उसे वहीं
छोड़ कर मै कमरे से बाहर निकल आया। वह लंगड़ाती हुई बाहर आयी और मेरे सामने आ कर बैठ
गयी। खाना खाते हुए मैने थोड़े कड़े स्वर मे कहा… क्या कभी डाक्टर ने तुम्हारी जाँच नहीं
की है? वैसे तो पढ़ी लिखी लगती हो फिर भी दकियानूसी सोच रखती हो। खाना समाप्त होने के
बाद वह अपने कमरे मे चली गयी और मै सोफे पर बैठ कर अगली कार्यवाही के बारे मे सोचने
लगा। कुछ ही समय बीता था कि उसने मुझे पुकारा… समीर। उसकी आवाज मे दर्द छिपा हुआ था।
मै अन्दर चला गया
तो वह बैठते हुए बोली… प्लीज, मेरी मदद करो। मुझसे लेटा नहीं जा रहा है। मैने उसे घुमा
कर उसकी गरदन के नीचे नीले निशान को धीरे से छुआ तो उसके मुख से एक आह निकल गयी थी।
…नीलोफर, तुम्हारे कुर्ते को हटाना पड़ेगा। क्या उन्होंने सिर्फ मारा पीटा था या बलात्कार
भी किया था? उसने जल्दी से कहा… नहीं ऐसा कुछ नहीं किया। बस रबड़ की राड से मारते थे।
बिना कुछ कहे मैने उसके कुर्ते को ढीला करके उपर खींच कर निवस्त्र कर दिया। …ओह। कुर्ता
उतारते ही दर्द कम हो गया है समीर। मैने कोई जवाब नहीं दिया बस उसकी नग्न पीठ पर पड़े
हुए लाल और नीले निशानों पर कोल्ड आइन्ट्मेन्ट लगानी आरंभ कर दी थी। उसे कुछ ठंडक का
एहसास हुआ तो उसने पूछा… यह क्या लगाया है? उसकी पीठ और कमर पर क्रीम लगा कर मैने कहा…
कुर्ता टाइट होने के कारण तुम्हें ज्यादा दर्द महसूस हो रहा था। आगे की ड्रेसिंग तुम
खुद कर सकती हो। यह बोल कर मैने उसके नग्न जिस्म पर चादर डाल कर कहा… अपनी शलवार उतारो।
इस बार मैने उसकी प्रतिक्रिया का इंतजार किये बिना जबरदस्ती खड़ा करके नाड़ा ढीला करके
शलवार को नीचे खिसका दिया।
वह जोर से चीख कर
भागी परन्तु पाँव शलवार मे उलझने के कारण मुँह के बल गिरने को हुई तो मैने उसे पकड़
कर जबरदस्ती बिस्तर पर गिरा दिया और चादर से उसका जिस्म ढक कर कहा… ऐसी बचकानी हरकत
मत करो। इस जिस्म को ऐसा नहीं है कि पहले किसी मर्द ने देखा नहीं है। अब नीयत मे फर्क
करना सीख लो। हर स्त्री को नग्न सिर्फ एक काम के लिये नहीं किया जाता। डाक्टर को भी
इलाज के लिये बीमार को कभी निर्वस्त्र करना पड़ता है। यह भी मै इस लिये कर रहा हूँ कि
मुझे पता है कि वह सधे हुए हाथ से बेहद संवेदनशील अंग पर चोट मारते है जिससे असहनीय
दर्द होता है। उसको पेट के बल लिटा कर उसके नितंबों तक चादर हटा कर नग्न हिस्सों का
निरीक्षण किया और उसके चोट खाये हिस्सों पर क्रीम लगा कर चादर से ढकने के बाद सीधा
लिटा कर उसके पंजों को दबा कर पूछा… यहाँ दर्द है। यही सिलसिला दूसरे पंजे के साथ किया
तो उसकी चीख निकल गयी थी। उस पंजे पर बाम लगा कर कुछ देर मालिश करके छोड़ दिया। …अब
अपने नये कपड़े पहन कर बाहर आ जाओ। यह बोल कर मै बाहर निकल गया। कुछ देर के बाद वह अपने
नये कपड़े पहन कर बाहर निकल आयी थी। मेरे सामने सोफे पर बैठते हुए बोली… तुम यह सब हर
किसी के साथ करते हो? …नहीं। ऐसा मैने पहली बार किया है क्योंकि तुम्हारे साथ जो भी
हुआ वह मेरे कारण हुआ था। कल सुबह तक दर्द चला जाएगा और कुछ दिनो मे यह निशान भी मिट
जाएँगें।
मैने उसकी ओर देख
रहा था। वह निगाहें झुकाये बैठी हुई थी। …नीलोफर, तुम सच मे बहुत सुन्दर हो लेकिन जिस
तरह के काम मे संलग्न हो तो उसका अन्जाम तो यही होगा। अचानक मैने उठते हुए पूछा… मेरे
साथ बाहर टहलने चलोगी। वह चमक कर बोली… तुम तो कह रहे थे कि यहाँ पर अनाधिकृत घूमने
वाले व्यक्तियों को गोली मार देते है। …हाँ लेकिन जब तुम मेरे साथ चलोगी तब अधिकृत
की श्रेणी मे आ जाओगी क्योंकि मैने तुम्हारी जिम्मेदारी ली है। मै चाहता था कि वह देख
ले कि यहाँ कैसी सुरक्षा का इंतजाम है। हम दोनो घर से बाहर निकल आये थे। ठंडी रात मे
सड़क पर पैदल चलते हुए मैने पूछा… मंसूर बाजवा को जितना मै जानता हूँ उस हिसाब से अनुमान
लगा सकता हूँ कि वह अपने हर प्यादे के हाथ मे दूसरे प्यादों की एक कमजोर नस जरुर पकड़ा
देता है जिसके कारण हर प्यादा अपनी जगह पर टिका रहता है। जैसे मकबूल बट को तुम्हारी
सीडी और फारुख की सीडी दी थी। ऐसे ही फारुख को भी मकबूल बट और तुम्हारी कोई गुप्त चीज
दी होगी। इसके हिसाब से उसने इन दोनो की कोई कमजोर नस तुम्हारे हाथ मे भी दी होगी।
क्या तुम उसके बारे मे तुम मुझे कुछ बता सकती हो? वह कुछ दूर तक चुपचाप चलती रही फिर
वह धीरे से बोली… तुमने मेरे साईज का कैसे अन्दाजा लगा लिया? …क्यों इसमे कौनसी राकेट
साइंस है। तुम्हारी जैसी कद-काठी वाली चार लड़कियों के बीच मे बचपन से रहा हूँ तो इसमे
क्या मुश्किल है। तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया। वह चुपचाप चलती रही थी।
जैसे ही मै लौटने
के लिये मुड़ा वह बोली… मंसूर बाजवा ने मुझे फारुख का ड्रग्स और हथियारों के अवैध कारोबार
के सप्लायर्स और खरीदारों का पूरा ब्यौरा देते हुए कहा था कि मै उस पर नजर रखूँ। वैसे
ही उसने तुम्हारे अब्बा की छोटे बच्चों और बच्चियों के साथ रंगारलियाँ मनाते हुए की
एक सीडी मुझे यहाँ आने से पहले दी थी। …तुम जानती हो कि मकबूल बट मेरा बाप नहीं है।
वह कुछ नहीं बोली बस चुपचाप चलती रही। घर मे घुसते हुए वह बोली… समीर, सब कुछ जानने
के बाद भी क्या कभी तुमने मकबूल बट से बदला लेने की नहीं सोची? …बहुत बार मैने सोचा
लेकिन हर बार अम्मी का चेहरा मेरे सामने आ जाता था। मैने महसूस किया कि मुझे उससे इतनी
नफरत नहीं थी जितनी अपनी अम्मी से मोहब्बत थी। बस इसी कारण हर बार अम्मी की मोहब्बत
मेरी सभी नफरतों पर भारी पड़ जाती थी। मेरी बात सुन कर वह अपने कमरे मे चली गयी थी।
मै अपने कमरे मे आ गया और जब नींद का झोंका आया तो सारी चीजें भुला कर सपनो की दुनिया
मे खो गया।
सुबह उठते ही सबसे
पहले नीलोफर को देखने के लिये उसके कमरे मे बाहर से झाँक कर देख लिया था। वह गहरी नींद
मे सो रही थी। मै तैयार होने चला गया और जब तक बाहर निकला तब तक नीलोफर भी जाग गयी
थी। …अब दर्द कैसा है? उसने मुस्कुरा कर कहा…
काफी कम हो गया है। मै नाश्ता करने बैठ गया था। …नीलोफर, जो नाम तुमने मुझे दिये है
उसकी जाँच करने के लिये मुझे वह सभी नाम अपने आफिस मे देने पड़ेंगें। एक बार फिर पूछ
रहा हूँ क्योंकि अगर किसी कारणवश गलत साबित हो गयी तो फिर तुम्हे यहाँ से बाहर निकालना
मुश्किल हो जाएगा। उसने कोई जवाब नहीं दिया। थोड़ी देर के बाद मै अपने आफिस मे बैठा
हुआ नीलोफर की कल रात के खुलासे के बारे मे सोच रहा था। मै इसी नतीजे पर पहुँचा था
कि नीलोफर ने यहाँ के काम के बारे मे बड़ी सफाई से बात घुमा दी थी। दूसरी ओर फारुख का
भी कोई सुराग नहीं मिल रहा था। उसके बारे मे एक बात पता चली थी कि वह जमात की एक मीटिंग
मे जरुर आयेगा। मै लंच टाइम पर अपने घर जाने के लिये निकला था कि तभी ब्रिगेडियर चीमा
ने फोन पर बताया कि आज सुबह फारुख मीरवायज ने पुलिस थाने मे अपना बयान दर्ज करा दिया
है। अब आगे क्या करना चाहते हो? उस वक्त मै क्या जवाब देता तो मैने टालते हुए कहा…
फारुख से मिलने से पहले सुबूत जुटाने के लिये मुझे कम से कम दो दिन और चाहिये। …मेजर,
जो भी करना है जल्दी करो। इतना कह कर उन्होंने फोन काट दिया। मै अपने घर चला गया था।
नीलोफर तैयार होकर
मेरी राह देख रही थी। हमने साथ खाना खाया और उसके बाद मैने उसे बताया कि फारुख अपना
बयान दर्ज कराने के लिये सुबह थाने पहुँच गया था। उसने अपना पल्ला झाड़ कर उन ट्रकों
से जब्त किये गये सामान का सारा दोष तुम पर डाल दिया है। उसका कहना था कि तुम ही सारा
कारोबार संभालती थी। …क्या तुम मुझे वह मंसूर बाजवा की लिस्ट दे सकती हो? वह कुछ देर
के लिये किसी सोच मे डूब गयी थी। …तुमने कोई जवाब नहीं दिया। थोड़ी देर के बाद वह कुछ सोचते हुए बोली… समीर, जो
कुछ भी मुझे मालूम है वह बता देती हूँ। मकबूल बट अपनी जमात-ए-इस्लामी की आज़ाद कश्मीर
की मुहिम के लिए पैसों और जिहादियों का इंतजाम करने के लिए पिछले साल पाकिस्तान आया
था। इसके लिए वह बहुत सी कट्टरपंथी तंजीमों के नेताओं से मिला था। वह सलाहुद्दीन, हाफिज
सईद, जकीउर लखवी और अजहर मसूद जैसे अन्य लोगों से भी मिला था। इसी सिलसिले मे वह मुजफराबाद
मे पीरजादा मीरवायज से भी मिला था। उस दौरान मकबूल बट की मुलाकात उसके बेटे आईएसआई
के मेजर फारुख मीरवायज से हुई थी। उसीने मकबूल बट को मेरे चचा मुन्नवर-उल-लखवी से भी
मिलवाया था। जब मकबूल बट दूसरी बार पाकिस्तान आया तब उसकी मुलाकात फारुख ने जनरल मंसूर
बाजवा से करवायी थी। इतना बोल कर वह रुक गयी थी।
एक पल रुक कर वह फिर
बोली… उन्हीं दिनो मुझे पाकिस्तान छोड़ना था जिसके लिए मेरे चचा ने जनरल मंसूर से बात
की थी। तब जनरल मंसूर और फारुख ने मेरे चचा के साथ मिल कर एक योजना बनायी थी। उन्होंने
मुझे नीलोफर लोन का नाम देकर मकबूल बट के साथ श्रीनगर भेज दिया था। मै अपने अब्बा अब्दुल
लोन के साथ रहने लगी। मेरे अब्बा का असली नाम अब्दुल बासित लखवी है। वह यहाँ आकर अब्दुल
लोन बन गये थे। मेरे यहाँ पहुँचने के कुछ दिनों के बाद फारुख मुझसे मिलने आया था। वह
मेरे अब्बा की असलियत भी जानता था। कुछ दशक पहले जब मंसूर बाजवा आईएसआई मे कर्नल था
तब उसने मेरे तायाजी जकीउर लखवी के साथ मिल कर मेरे अब्बा को नयी पहचान देकर यहाँ भेजा
था। उस दिन जब फारुख मुझसे मिलने आया था तब उसने बताया कि मेरे अब्बा, फारुख और मकबूल
के बीच की कड़ी की तरह मुझे आईएसआई के लिये काम करना पड़ेगा। मैने पहले तो काम करने से
इंकार किया परन्तु एक दिन मकबूल बट ने आकर वह सीडी मुझे दिखा कर कहा कि अगर मैने बात
नहीं मानी तो वह इस सीडी को जग जाहिर कर देगा। मै और मेरे अब्बा उनके जाल मे फंस कर
रह गये थे। एकाएक बोलते हुए उसकी आवाज भर्रा गयी थी।
उसको रुआँसी देख कर
एकाएक मुझे अंजली की याद आ गयी थी। मैने बाँह बढ़ा कर उसे अपने सीने से लगा कर कहा…
खुदा पर विश्वास रखो। अपना चेहरा मेरे सीने मे छिपाये वह बोली… बचपन से मैने सिर्फ
यही माहौल देखा है। मैने अपनी आँखों से पाकिस्तानी फौज की बर्बता देखी है। जैसे सीआईए
के कारण उन्होंने मुझे फारुख जैसे भुखे भेड़ियों के सामने डाल दिया था। अबकी बार बोलते
हुए उसका जिस्म कांप उठा था। उसको शांत करते हुए मैने कहा… सब कुछ भूल जाओ। वह सिसकते
हुए बोली… समीर, जब तुमने मुझे फौजियों के हवाले किया था तभी मैने सोच लिया था कि अब
शायद वहाँ से कभी जिन्दा बाहर नहीं निकल सकूँगी। तुम मेरी मनोदशा कभी भी समझ नहीं सकोगे।
मै उसको शांत कराने की कोशिश कर रहा था और वह निरन्तर बड़बड़ाये जा रही थी। मुझे लगा
कि वह बड़ी सफाई से मेरी मांग को टाल गयी थी। उसे शान्त कराते हुए मै सोच रहा था कि
या तो वह बेहतरीन अदाकारा है अन्यथा एक हालात की मारी लड़की है। अब उसकी सच्चायी तो
सिर्फ समय के साथ ही पता चल सकती थी।
शाम हो गयी थी। अब
तक उसके दिल का सारा गुबार आँखों से बह गया था। हम दोनो चुपचाप चाय पी रहे थे कि वह
झिझकते हुए बोली… समीर, यह सारा चक्कर हर साल बीस करोड़ रुपये का है। यह सुन कर मुझे
ऐसा लगा कि जैसे कमरे मे कोई विस्फोट हुआ था। मैने चौंक उसकी ओर देखा तो वह गहरी सोच
मे डूब गयी थी। …नीलोफर यह बीस करोड़ रुपये का क्या चक्कर है? …समीर अगर मैने तुम्हें
सब बता दिया तो वह लोग मुझे किसी भी हाल मे जिंदा नहीं छोड़ेंगे। …तुम्हें कुछ नहीं
होगा। मेरा विश्वास करो। लेकिन पहले तुम्हें इसके बारे सब कुछ बताना पड़ेगा तभी मै तुम्हारी
सुरक्षा का इंतजाम कर सकता हूँ। वह कुछ देर चुप रही फिर धीरे से बोली… जनरल मंसूर और
मेरे ताया जकीउर लखवी ने हर साल बीस करोड़ रुपये खर्च करने की एक पंचवर्षीय योजना बनायी
थी। पाकिस्तान की फौज चुँकि सीधे हिन्दूस्तान की फौज से टक्कर
नहीं ले सकती थी इसीलिए कश्मीर को आजाद कराने के लिए हिन्दुस्तान का अन्दर से कमजोर
होना जरुरी था। उनका सोचना था कि एक एफ-16 खरीदने के बजाय उतने पैसे मे बिना लड़े ही
हिन्दूस्तान को अन्दर से
कमजोर किया जा सकता है। उनकी इस योजना को पाकिस्तानी फौजी तंत्र ने तुरंत मंजूर कर
लिया था। जनरल जियानी ने इस योजना की बागडोर जनरल मंसूर के हाथ मे देकर आश्वस्त किया
कि पाकिस्तानी फौज सदैव उसकी मदद के तैयार खड़ी रहेगी। इस योजना को कार्यान्वित करने
के लिए जनरल मंसूर ने फारुख मीरवायज को कश्मीर भेजा है।
उनकी योजना कैसे कार्यान्वित
होगी? इसको समझने की मै कोशिश कर रहा था लेकिन मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था। तभी
नीलोफर ने कहा… आईएसआई ने यह तय किया कि हर साल मेरे चचा मुन्नवर लखवी को वह दस करोड़
रुपये के अवैध हथियार और ड्रग्स देंगें और दस करोड़ रुपये हवाला के जरिये फारुख मीरवायज
को देंगें। चचाजान अवैध हथियार और ड्रग्स को कश्मीर मे मकबूल बट को देंगें जिसका सारा
वितरण और उगाही उसकी जमात-ए-इस्लामी संभालेगी। ड्रग्स की कमाई से मकबूल बट कश्मीर मे
पत्थरबाजी और अलगावाद की मुहिम मे ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ेगा। उधर फारुख उस
पैसे से हिन्दूस्तान के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों मे मदद करके
सामान विचारों वाले राजनेताओं, मिडिया के संपादकों, मौलवियों और मुसलमान नेताओं को
अपने नेटवर्क से जोड़ेगा जिसके द्वारा हिन्दुस्तान की समाजिक दरारों मे फसाद करके उसे
अन्दरूनी तौर पर कमजोर किया जा सके। इस रहस्योद्घाटन से मेरा दिमाग घूम गया था। यही
तो हक डाक्ट्रीन का मुख्य उद्देश्य था।
कुछ सोच कर मैने पूछा…
फारुख का नेटवर्क क्या करेगा? …फारुख इस रुपयों को मौलवियों को देकर उनके द्वारा वहाँ
पर रहने वाले मुसलमानों को सरकार के खिलाफ भड़कायेगें और दंगा-फसाद करवायेगा। इसी तरह
मिडिया के संपादकों को रुपये देकर फारुख उनसे मुसलमानों के उपर होने वाले अत्याचारों
को बढ़ा-चढ़ा कर बता कर भारतीय जनमानस की मानसिकता को प्रभावित करेगा। मुसलमानो के हितों
की रक्षा करने के लिए वह राजनीतिक पार्टियों के चुनावी फंड मे भी रुपये देगा और मुसलमान
नेताओं की रुपयों से मदद करके उन्हें चुनावी प्रक्रिया मे मजबूत करेगा।
मै हैरानी से नीलोफर
का चेहरा देख रहा था। मुझे कहीं से नहीं लग रहा था कि वह झूठ या कोई कहानी गड़ रही है।
उसने मेरी ओर देखा तो मैने हिचकिचाते हुए पूछ लिया… इसमे तुम्हारी क्या भुमिका थी?
वह एक क्षण के लिए चुप हो गयी फिर बोली… समीर, मुझे इस काम को अंजाम देने मे फारुख
की मदद करनी थी। मै सबके सामने रह कर काम करती और फारुख मेरे पीछे खड़ा रहता। संपादक,
नेता, सरकारी अफसर वगैराह निहायत ही व्यभिचारी किस्म के लोग होते है। एक सुन्दर जवान
स्त्री को देख कर उनकी लार टपकने लगती है और यही सोच कर मेरे जिम्मे लोगों से संबन्ध
स्थापित करने का काम दिया गया था। जनरल मंसूर ने यह तय किया था कि फारुख मुझे पैसे
देगा और मै उन लोगों के साथ संबन्ध स्थापित करके उनके पैसे पहुँचाया करुँगी। पिछले
एक साल से मै उसके लिए यही काम कर रही थी। फारुख ने कुपवाड़ा मे अपना आफिस स्थापित किया
है। तुम तो जानते हो कि वहाँ घना जंगल होने के कारण मुजफराबाद से घुसपैठ अकसर वहीं
से होती है। उसका आफिस घुसपैठियों की रुपये और हथियारों से मदद करता है। उनके लिये
छिपने के लिये जगह की व्यवस्था करता है और आधुनिक संचार माध्यम की मदद से पाकिस्तानी
फौज के साथ संपर्क स्थापित करता है। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी परन्तु मेरे जहन
मे हंगामा मच गया था।
बात करते हुए समय
का पता ही नहीं चला था। रात गहरी हो गयी थी और मेरा दिमाग अशांत हो गया था। जल्दी से
कुछ पेटपूजा करके मैने पूछा… नीलोफर क्या तुम इन सब चक्कर से बाहर निकलना चाहती हो?
…यह कैसा सवाल है। क्या तुम सोचते हो कि कोई भी स्त्री अपनी मर्जी से ऐसे गलीच लोगो
से संबन्ध रखना चाहेगी जो पहली मुलाकात मे उसके जिस्म को नोचने की फिराक मे रहते है।
प्लीज, तुम मुझे इस चक्कर से बाहर निकाल दो मै जीवन भर तुम्हारी गुलाम रहूँगी। …मुझे
गुलाम नहीं सिर्फ अच्छे दोस्त चाहिये। तुम्हें इस चक्कर से निकालने का एक ही रास्ता
है कि अगर हम फारुख को किसी तरह इतना मजबूर कर दें कि वह हमारा गुलाम बन जाये। इसको
करने के लिये पहले उसके सभी ठिकानो का पता चाहिये और फिर उसके खिलाफ कुछ ऐसे सुबूत
चाहिये कि जिनको दिखा कर हम उसे मजबूर कर सके। एक बार वह हमारे प्रभाव मे आ गया तो
फिर वह तुम्हें कभी किसी काम के लिये मजबूर नहीं कर सकेगा। एक बात और कि मैने कुछ दिन
पहले उसका कुपवाड़ा का संचार केन्द्र जमीनदोज़ किया है। उसके और कितने ठिकाने है? अगर
तुम्हारी मदद मिल गयी तो मै वादा करता हूँ कि तुम्हें इस चक्कर से हमेशा के लिये आजाद
ही नहीं बल्कि तुम्हारी सुरक्षा की व्यवस्था करवा दूंगा।
नीलोफर कुछ देर सोचने
के बाद झिझकते हुए बोली… समीर, मीरवायज परिवार और फारुख की सबसे कमजोर नस मेरे हाथ
मे है। यह सब जो तुम बात कर रहे वह फारुख को कुछ समय के लिये उलझा सकती है परन्तु मुझे
नहीं लगता कि वह तुम्हारे दबाव मे आयेगा। जब तुम मीरवायज परिवार की विरासत को चुनौती
दोगे तभी उस पर दबाव बन सकेगा। मै उसकी ओर आश्चर्य से देख रहा था। वह बोली… मुजफराबाद
से कुछ दूर अम्बोर नाम के कस्बे के बाहर मीरवायज परिवार का काफी पुराना मदरसा है। फारुख
ने मुझे वहीं पर पकड़ कर कैद किया था। मै जब वहाँ पर कैद थी तब अचानक मीरवायज परिवार
की दरिंदगी का काला इतिहास जमीन फाड़ कर मेरे सामने आ गया था। तुम्हें याद होगा कि कुछ
साल पहले एक भयंकर भूचाल उत्तरी हिस्से मे आया था। उस भूचाल के कारण मदरसे की कुछ दीवारें
टूट गयी थी और कुछ जमीन फटने के कारण उसमे धँस गयी थी। उसी भूचाल के कारण मदरसे के
साथ सटी हुई जमीन फटने से हजारों बच्चों के कंकाल बाहर निकल आये थे। यह सब मैने अपनी
आँखों से देखा था क्योंकि मै उस वक्त वहीं पर कैद थी। बाद मे जब उन्होंने मुझे छोड़
दिया तो फारुख से बदला लेने के लिये एक रात मै उस जगह की असलियत जानने के लिये पहुँच
गयी थी। मेरी आँखों के सामने फारुक अपने कुछ सैनिकों के साथ मिल कर उन कंकालों को जमीन
से निकाल कर ट्रक मे रखवा रहा था। मैने उसके इस दुश्कृत्य की फिल्म बना ली थी। उसने
रात ही रात मे वह सभी कंकाल जमीन मे से निकाल कर झेलम मे फिकवा दिये थे। मैने उस दृश्य
को भी अपने कैमरे मे कैद कर लिया था। एक बार मिरियम के निकाह पर उसने मुझसे बदमीजी
करने की कोशिश करी तो मैने उससे सिर्फ इतना कहा था कि अम्बोर के मदरसे की जमीन से उसने
क्या निकाल कर झेलम मे फिकवा दिया था। उसी पल उसकी सारी हेंकड़ी निकल गयी थी। उस फिल्म
के बारे मे तो मंसूर बाजवा भी नहीं जानता है। तुम वह फिल्म उसको दिखाओगे तो वह तुम्हारी
उँगलियों पर नाचने के लिये तुरन्त तैयार हो जाएगा।
मै अभी तक भारत को अस्थिर करने के लिये सौ करोड़ रुपये के बजट के झटके से पूरी तरह से उबर भी नहीं पाया था कि मीरवायज परिवार के काले इतिहास ने मुझे अन्दर से हिला दिया था।
विरभाई एक और बेहतरीन अपडेट, और शिकायत भी कि पढनेके बाद एक खालीपण का एह्सास होता है, के क्यू समाप्त हुवा😏🤔 नफिसा कि कहाणी भी कूछ कूछ ऐसेही शुरू हुई थी जब अमीर उसके साथ पाकीस्थान गया था, निलोफर कि कहाणी उससे दर्दनाक लगी, है तो दोनो नागिन. देखते है कौन जादा जहरीला है, और समीर कैसे इस जहर को अन्तीडोटमे बदल देता है.
जवाब देंहटाएंप्र्शान्त भाई आपकी शिकायत जायज है परन्तु कुछ तो रही होंगी मजबूरियाँ वर्ना कोई ऐसे तो बेवफा नहीं होता। नफीसा और नीलोफर के किरदारों मे भले ही समानता हो परन्तु हर किरदार का कहानी मे एक महत्व होता है। आपका तहे दिल से शु्क्रिया।
हटाएंबहुत ही सुंदर अंक निलोफोर की कहानी भी हमको देखने को मिली हाँ यह विवादस्पर्श है की उसकी कहानी में कितनी सच्चाई है और कितनी मनगढ़ंत कहानी। आखिर फरुक मकबूल बट के शादी में क्यूँ निलोफोर की जी हजूरी कर रहा था उसकी राज पता चला और कैसे निलोफोर ने पूरा मिरबायज परिवार की गुदी पकड़ रखी है। वैसे अभी तक अदा का किरदार खुलकर नहीं निकला है और वैसे भी वो फौज में रहते हुए भी उसकी ज्यादा रोल सामने नहीं आया कृपया इसके ऊपर रोशनी अवश्य डालें ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दोस्त। अदा का किरदार जरुरत के अनुसार कहानी मे आपके सामने आएगा। तब तक आपको अन्य किरदारों के साथ जुड़े रहना पड़ेगा। आपकी हौसला अफजायी के लिये शुक्रिया।
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