काफ़िर-37
मेज पर मेरे सामने
मकबूल बट की तिजोरी से निकला हुआ सारा सामान और कुछ फाईलें पड़ी हुई थी। चार भारतीय
पासपोर्ट देख कर थोड़ा अचरज हुआ था। उनमे एक पासपोर्ट नीलोफर लखवी के नाम से था। बाकी
तीन पासपोर्ट मकबूल बट, मिरियम बट और अब्दुल बासित लखवी ने नाम पर थे। भारतीय पासपोर्ट
पर लगी हुई तस्वीर को देख कर साफ था कि अब्दुल लोन का असली नाम अब्दुल बासित लखवी था।
उन चारों पासपोर्ट को मैने अलग रख दिया और फिर एक-एक फाईल देखनी आरंभ कर दी थी। पहली
फाइल मे मकबूल बट को कब, कितना और किधर से पैसा मिला और कब, कितना और किसको पैसा दिया
उसका दो साल का ब्यौरा उस फाइल मे था। मैने एक सरसरी नजर फाईल मे दिये हुए नामों पर
डाली तो बहुत सारे जाने माने सफेदपोश लोगों की शिनाख्त हो गयी थी। दूसरी फाईल मे मकबूल
बट ने अलग-अलग तंजीमो के मुखियाओं के साथ कौनसा करार साइन किया और उसके लिये जमात के
जिम्मे कार्यों को सूचिबद्ध तरीके से दिया गया था। उनको कितने पैसे कब-कब देने है उसका
भी विवरण दिया हुआ था। तीसरी फाइल उसके अवैध कारोबार का कच्चा चिठ्ठा था। चौथी और आखिरी
फाइल संयुक्त मोर्चे की फाइल थी जिसमे अलग-अलग तंजीमो और राजनीतिक पार्टियों के मुखिया
के नाम के साथ ही किसको कितने पैसे हर महीने देने का ब्योरा दिया हुआ था। किस्मत से
मेरे हाथ जैकपाट लग गया था। अभी भी मुख्य किरदारों की कड़ी नहीं मिल रही थी। नीलोफर
के पास्पोर्ट के सिवा मकबूल से नीलोफर और फारुख के रिश्तों का उन फाइलों मे कोई सुराग
नहीं मिला था।
उसी सामान मे मुझे
तीन पेन ड्राईव्स और दो सीडी भी मिली थी। उसके अलावा तीन हिदुस्तानी बैंकों और दो पाकिस्तानी
बैंकों की चेक बुक थी। उसी सामान मे कुछ अमरीकन डालर की गड्डियाँ व अन्य पश्चिमी देशों
की करेंसी भी मिली थी। एक डिब्बे मे मिरियम की ज्युलैरी और सोने के सिक्के भी मिले
थे। मेरे लिये यह सब बेकार की चीजें थी। मैने अपनी मेज की एक दराज मे सभी बेकार की
चीजे डालना आरंभ कर दिया। सीडी और पेन ड्राईव्स को छोड़ कर मैने सारा सामान दराज मे
डाल कर ताला लगा कर अपना कंप्युटर चालू किया। पहली सीडी चलाते ही मुझे तुरन्त उठ कर
अपने आफिस का दरवाजा लाक करना पड़ गया था। बड़ी विस्फोटक सीडी थी। फारुख की दरिंदगी की
कहानी उस सीडी मे दर्ज थी। तीन-चार मिनट की लगभग आठ मल्टीमिडिया फाइल्स थी। नीलोफर
को देख कर यही लग रहा था कि वह उस वक्त मुश्किल से पन्द्रह-सोलह साल की रही होगी। फारुख
भी नये रंगरुट की तरह फौज की वर्दी मे दिख रहा था। एक फाईल मे वह उससे किसी ब्लास्ट
के बारे मे पूछताछ कर रहा था। अचानक उसने अपनी कमर से बेल्ट खोल कर नीलोफर को मारना
आरंभ कर दिया था। वह मार से बचने के लिये इधर उधर भाग रही थी परन्तु चारों ओर खड़े हुए
सैनिक उसे बार-बार फारुख की ओर धकेल देते थे। दूसरी फाइल मे वह पाकिस्तानी सैनिकों
के बीच मे जमीन पर पड़ी हुई करहा रही थी। अचानक फारुख ने उसके कपड़े फाड़ना आरंभ कर दिया
और कुछ ही देर मे वह नग्नावस्था मे जमीन पर पड़ी हुई सिसक रही थी। खड़े हुए सैनिक फारुख
को आगे बढ़ने के लिये उकसा रहे थे। तीसरी फाइल मे फारुख कुछ देर जमीन पर पड़ी हुई बिलखती
नीलोफर को घूरता रहा और फिर अपनी पतलून खोल कर उस पर दरिंदों की तरह टूट पड़ा था। वह
चीखती रही और फारुख बहशियों की तरह उसकी इज्जत को तार-तार करने जुट गया था। मुझसे वह
सीडी आगे नहीं देखी गयी तो मैने सारी मल्टीमिडिया की फ़ाईलों को अपने कंप्युटर पर डंप
किया और फिर सीडी निकाल कर फाइल के साथ रख दी थी।
मैने दूसरी सीडी चलाई
तो उसमे भी चार मल्टीमिडिया फाइल थी। किसी पार्टी का दृश्य था जिसमे पाकिस्तानी फौज
के कुछ आला अफसर, जकीउर लखवी और पीरजादा मीरवायज एक साथ बैठे हुए दिख रहे थे। उनके
साथ ही अजहर मसूद, जाकिर मूसा और मकबूल बट भी बैठे हुए थे। मकबूल बट एक चमकीली अचकन
पहने आसपास बैठे हुए लोगों से बात कर रहा था। एकाएक दूर से शादी के जोड़े मे मिरियम
आती हुई दिखाई दी तो मै समझ गया कि यह मकबूल बट के निकाह की सीडी है। मैने जैसे ही
बन्द करने के लिये हाथ बढ़ाया कि तभी कैमरे ने एक आते हुए फौजी अफसर पर फोकस किया जिसको
देख कर सभी बैठे हुए लोग खड़े हो गये थे। जनरल मंसूर बाजवा आराम से चलते हुए मकबूल बट
के पास आया और गले मिल कर मुबारकबाद देकर लखवी और पीरजादा के साथ जाकर बैठ गया था।
एक फाइल मे काजी साहब की कार्यवाही समाप्त होते ही कैमरा घूमा और मेहमानों पर फोकस
किया तो कुछ क्षण के लिये एक जगह कैमरा ठहर गया था। शामियाने के एक कोने मे फारुख किसी
बात पर नीलोफर के सामने झुक कर मिन्नत करता हुआ दिखाई पड़ रहा था। मैने सीडी रोक कर
पीछे करके दोबारा से चलायी और उस दृश्य के आते ही पाज बटन दबा दिया। उस फ्रेम मे अब
साफ दिख रहा था कि फारुख किसी बात पर नीलोफर के आगे झुक कर कुछ कह रहा था। इस बदलाव
का कारण मुझे समझ मे नहीं आया था।
दोनो सीडी देखने के
बाद बहुत सी चीजें मेरे लिये साफ हो गयी थी। मकबूल बट के पास यह दो सीडी होने का मतलब
था कि नीलोफर और फारुख उसके पूरे नियन्त्रण मे थे परन्तु मेरे दिमाग मे सवाल घूम रहा
था कि दोनो सीडी मकबूल बट के पास कैसे पहुँच गयी थी? निकाह की सीडी तो हो सकता है कि
मकबूल बट को पीरजादा की ओर से मिली हो परन्तु पहली सीडी तो उसे किसी फौज के खास ही
आदमी ने दी होगी। वह कौन हो सकता है? मेरे दिमाग मे सिर्फ जनरल मंसूर बाजवा का नाम
बार-बार कौंध रहा था। मैने जल्दी से दोनो सीडी, पास्पोर्ट और फाईलों के साथ रख कर पेन
ड्राइव देखना आरंभ कर दिया। सब कुछ फिलहाल मेरे लिये देखना संभव नहीं था इसलिये किसी
और दिन देखने की मंशा से तीनों पेन ड्राईव्स को भी फाईलों के साथ रख दिया था। अब मेरी
मेज साफ हो गयी थी। मैने चारों पास्पोर्ट, फाईलें, पेन ड्राईव्स और सीडी अपने आफिस
के लाकर मे रख कर अपनी पीठ टिका कर नीलोफर के अगले कदम के बारे मे सोचने लगा था। वह
जान गयी थी कि उसकी जान अब मकबूल बट के हाथ से निकल कर मेरे हाथ मे आ गयी थी। तो अब
वह क्या करेगी?
शाम को यही सोचते
हुए मै अपने घर की ओर चल दिया था। …साहबजी, उस मकान की निगरानी पर कुछ दिन के लिये
अपने यहाँ के गार्ड्स युनिट के सूबेदार से बात करके दो लोगों की ड्युटी लगवा दी है।
…शुक्रिया सुजान सिंह। थोड़ी देर मे हम घर पहुँच गये थे। कुछ देर बाद फैयाज खान को आना
था इसीलिये मै अपने कमरे मे चला गया और जब तक कपड़े बदल कर बाहर निकला तब तक फैयाज खान
अपनी कार से उतर कर लान मे पहुँच गया था। मै भी लान मे चला गया और वहाँ रखी हुई कुसियों
पर बैठते हुए कहा… बैठिये अंकल। फैयाज खान ने एक कागज का पुलिन्दा मेरी ओर बढ़ाते हुए
कहा… समीर, कोर्ट के आर्डर की कापी के साथ शमा की जायदद के सभी कागज तुम्हारे हवाले
कर रहा हूँ । इस आर्डर की कापी बैंक को दोगे तो शमा के अकाउन्ट पर लगी हुई रोक भी हट
जाएगी। मुझे सभी की कापी पर साइन करके पावती की रसीद दे दो। …अंकल, इस काम का बिल भी
दे दिजीये। कल तक पैसे आपके अकाउन्ट मे ट्रांस्फर करवा दूँगा। फैयाज खान ने हँसते हुए
कहा… समीर मियाँ, तुम्हारी अम्मी ने उसी वक्त मेरा सारा बिल क्लीयर कर दिया था जब वह
मेरे पास वसीयत कराने आयी थी। वह नहीं चाहती थी कि तुम पर किसी प्रकार का कोई बोझ पड़े।
मैने हाथ मे पकड़ा हुआ पुलिन्दा दिखाते हुए कहा… अंकल, यह जो बोझ वह मुझ पर डाल कर गयी
है क्या वह कम है। मैने पुलिन्दा खोल कर उसकी प्रतिलिपियों पर साइन करना आरंभ कर दिया।
फैयाज खान तब तक चाय पीने मे लग गया था।
सारी कागजी कार्यवाही
समाप्त करके मैने कहा… अंकल, मै यह सारी जायदाद एक ट्रस्ट के नाम करना चाहता हूँ। इसमे
आपकी कानूनी सलाह चाहिये? कुछ देर फैयाज खान मुझे कानूनी पेचीदगियों के बारे मे समझा
कर बोले… समीर, ट्रस्ट को देने बाद इस जायदाद पर से तुम्हारा एकाधिकार हमेशा के लिये
खत्म हो जाएगा और फिर वह अधिकार इस ट्रस्ट के सदस्यों के पास चला जायेगा। इस काम मे
एक फायदा भी है कि इस ट्रस्ट के सदस्यों को चुनने का अधिकार तुम्हारा होगा। …अंकल,
फिलहाल आसिया, आफशाँ, अदा और मै इस ट्रस्ट के स्थायी सदस्य होंगें और उसके बाद जरुरत
के अनुसार हम और सदस्य बनाते रहेंगें। …ठीक है, जब तुमने सोच लिया है तो फिर मै कागज
तैयार करवाता हूँ। कोई ट्रस्ट नाम सोचा है? …शमा बट वेल्फेयर ट्रस्ट। …इसके बजाय आज
कल फाउन्डेशन फैशन मे है। शमा बट फाउन्डेशन ज्यादा अच्छा लगेगा। …यह रख दिजिये। …यह
ट्रस्ट क्या करेगा? …अभी सोचा नहीं है परन्तु यह तय है कि देश और समाज की बेहतरी के
लिये काम करेगा। कुछ देर सवाल जवाब का दौर चलता रहा और फिर उठते हुए फैयाज खान ने कहा…
समीर, मुझे सारे कागज तैयार करवाने मे कुछ दिन लगेंगें। तब तक कुछ कार्यकारी लोगों
के नाम सोच लेना जिससे ट्रस्ट बनते ही तुम्हारी जायदाद की देखरेख आरंभ हो जाए। इतना
बोल कर फैयाज खान चुप हो गया था।
उसके जाते ही जन्नत
और आस्माँ अपने कमरे से बाहर निकल आयी थी। कुछ देर उनके साथ बात करके मै अपने कमरे
मे जाकर कुछ कार्यकारी सदस्यों के बारे मे सोचने बैठ गया था। मेजर हसनैन अली का नाम बार-बार मेरे
दिमाग मे आ रहा था। क्या वह ट्रस्ट के साथ जुड़ने के लिये राजी हो जाएँगें? इसी सवाल
का जवाब पाने के लिये मैने मेजर हसनैन अली का नम्बर लगाया… हैलो।
…सर, मै मेजर समीर बट। …बोलिये मेजर। …सर, मै आपसे मिलना चाहता हूँ। …भाईजान, आप घर
आ जाईये। मै तो घर पर ही पड़ा रहता हूँ। कब आने की सोच रहे है? …सर, सुबह दस बजे तक
आपके घर पहुँच जाऊँगा। …मै आपकी राह देखूँगा मेजर। खुदा हाफिज। फोन काटते ही मेरे दिमाग
मे एक ख्याल आया कि अगर वह राजी हो गये तो मेरे सिर पर रखा हुआ बोझ हमेशा के लिये हट
जाएगा। यही सोच लेकर मै सोने चला गया था।
सुबह दस बजे मै मेजर
हसनैन अली के सामने बैठ कर अपने
ट्रस्ट की बात कर रहा था। …सर, मैने एक ट्रस्ट का गठन किया है। मै चाहता हूँ कि आप
उस ट्रस्ट के कार्यकारी निदेशक बन कर उसकी जिम्मेदारी उठा लिजिये। एक पल के लिये मेजर
साहब मेरा मुँह ताकते रह गये थे। …मेजर, तुम सेना के अधिकारियों की प्रकृति से भली
भांति परिचित हो। एक बार जो काम हम अपने हाथ मे ले लेते हैं फिर हम किसी भी दबाव मे
नहीं आते है। निजि ट्रस्ट हो या कंपनी, हमसे मालिकों की चाकरी नहीं होती है। यही कारण
हमारे एक्स-सर्विसमेन के पुनर्वास मे बाधा डालता है। …सर, आपके काम मे हमारी ओर से
कोई बाधा नहीं आयेगी। बस एक बार सब सदस्यों ने कार्य को तय कर लिया तो उसके बाद उसको
पूरा करना आपकी जिम्मेदारी होगी। आप एक तरह से पूरी जायदाद के केयर टेकर बन जायेंगें
और उसकी कमाई को आप अपने कार्यक्रमों के लिये इस्तेमाल करेंगें। सदस्यों के पास बस
इतना अधिकार होगा कि वह आपके सुझाये हुए कार्यक्रम को अनुमति दे अन्यथा मना कर दें।
एक बार उन्होंने आपका कार्यक्रम मंजूर कर लिया तो उसके बजट के पैसों का इंतजाम करने
की जिम्मेदारी उनकी होगी।
कुछ देर के बाद मेजर
हसनैन ने ट्र्स्ट की आय के बारे पूछा तो मैने कहा… सर, इस ट्र्स्ट के पास छ: सेब के
बाग है। एक मकान है जिसको मै एक गेस्ट हाउस मे तब्दील करने की सोच रहा हूँ। उसी मे
एक हिस्से मे शमा बट फाउन्डेशन का आफिस भी खोला जा सकता है। तीन स्थानीय कंस्ट्रक्शन
कंपनियों मे ट्रस्ट का तीस प्रतिशत शेयर है। कुल मिला कर लगभग ट्रस्ट की 70 लाख की
सालाना आमदनी है। कुछ खेती की जमीन भी है जिसका फिलहाल कोई उपयोग नहीं हो रहा है। बात
करते हुए मैने अपनी घड़ी पर नजर डाली तो मैने जल्दी से कहा… सर, मुझे काफी देर हो गयी
है। मुझे अब जाना पड़ेगा। आपका जो भी निर्णय हो मुझे आराम से सोच कर बता दिजीयेगा। …मेजर, यह बताओ कि ड्युटी पर कबसे रिपोर्ट करना
है। मैने हँसते हुए कहा… आज मैने आपके समक्ष रिपोर्ट कर दिया है। सर, एक बार आप वह
घर, बाग और जमीन अपनी आँखों से देख लिजीये। तब तक मै सारी कागजी कार्यवाही पूरी करवाता
हूँ। मेजर हसनैन अली को शुक्रिया कह कर मै अपने आफिस की ओर चल दिया था।
आफिस मे चारों ओर
शांति थी। ब्रिगेडियर चीमा आफिस मे नहीं थे। मै आराम से अपने आफिस मे बैठ कर पेन ड्राईव
निकाल कर देखने बैठ गया था। अभी कुछ पृष्ट ही देखे थे कि अचानक मुझे फरहत का ख्याल
आया तो मैने उसका नम्बर मिला कर बात की… हैलो। …बोलिये समीर भाई। …फिलहाल कहाँ हो?
…अभी मै श्रीनगर पहुँचा हूँ। बताईये कैसे फोन किया? …तुमसे मिलना था। …भाईजान, हम कुछ
देर मे 15वीं कोर के हेडक्वार्टर्स के सामने से निकलेंगें। मै कुछ देर के लिये वहीं
रुक जाऊँगा। …शुक्रिया। मैने फोन काट दिया और सारी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट्स इकठ्ठी
करके एक फाईल बनाने मे जुट गया। एक बार फाइल पर नजर डाल कर मैने अपने ड्राईवर को खबर
कर दी कि वह चलने के लिये तैयार रहे। थोड़ी देर के बाद फोन की घंटी बजी तो मैने जल्दी
से कहा… हैलो। …समीर भाई मै पहुँच गया हूँ। …तुम वहीं ठहरो। मै अभी पहुँच रहा हूँ।
यह बोल कर मैने फोन काट दिया और फाइल उठा कर जीप मे बैठा और मुख्य आगमन द्वार पर पहुँच
कर फरहत को खोजने लगा। वह अपने ट्रक से उतर कर पेड़ के नीचे खड़ा हुआ मेरी राह देख रहा
था। मैने ड्राईवर से जीप को आगे बढ़ाने का इशारा किया और फरहत के करीब जीप रुकवा कर
कहा… चलो गार्ड रुम के वेटिंग लाउन्ज मे बैठ कर बात करते है। हम बेरियर के पास बने
हुए वेटिंग लाउन्ज मे चले गये थे।
मैने वह फाइल फरहत
की ओर बढ़ाते हुए कहा… यह सभी एक एन्काउन्टर मे मारे गये थे। हमे शक है कि यह सभी अब्दुल
लोन के लिये काम करते थे। इनकी शिनाख्त नहीं हो पायी है। तुम भी एक बार देख लो कि तुम
इनमे से किसी को जानते हो? फरहत ने पन्ना पलट कर तस्वीर देखनी आरंभ कर दी और हर तस्वीर
को देख कर उसके चेहरे रंग उड़ता चला जा रहा था। सारी तस्वीरें देखने के बाद वह बोला…
समीर भाई, इनमे से बहुत से लोगो।को जानता हूँ। यह सभी शफीकुर लोन के आदमी थे। …तुम
नाम बता सकते हो? फरहत ने धीरे-धीरे नाम बताना शुरु कर दिया था। मै भी
उनके नाम नोट करने मे लग गया था। सारी बात समाप्त करके मैने पूछा… क्या तुम एक आदमी
को हमारे बाग और जमीने दिखा लाओगे। …भाईजान, पहलगाम और बडगाम के बागों के सिवा मैने
आपका कोई और बाग नहीं देखा है। …पहले पहलगाम चले जाना और अपने अब्बा को उनके साथ कर
देना। वह हमारे सारे सेब के बाग और जमीनों के बारे मे जानते है। …कब जाना होगा? …ऐसा
करुँगा कि मै उसे तुम्हारा नम्बर दे दूँगा। वह तुमसे बात करके दिन और समय तय कर लेगा।
…ठीक है भाई। …फरहत, तुम कोई किराये की जीप
या कार का इंतजाम कर लेना। मै उसका सारा खर्चा दे दूँगा। …जी भाई। अच्छा खुदा हाफिज।
यह बोल कर फरहत चला गया और मै वापिस अपने आफिस की ओर चल दिया।
मैने रास्ते मे चलते
हुए मेजर हसनैन को फरहत का नम्बर देकर बता दिया कि फरहत उनको सारे सेब के बाग और जमीने
दिखाने के लिये ले जाएगा। बस वह चलने का दिन और समय उसके साथ तय कर लेंगें तो बेहतर
होगा। इसी बीच मे ब्रिगेडियर चीमा ने मुझे बुला कर अपने नोटिस के बारे मे पूछ लिया
था। मैने उन्हें बता दिया था कि मैने नीलोफर के हाथ मे नोटिस पकड़ा दिया है। उठ कर चलते
हुए ब्रिगेडियर चीमा ने मुझे आगाह किया… मेजर, अगर वह वकीलों की फौज लेकर यहाँ आ गयी
तो हमारे लिये मुश्किल खड़ी हो जाएगी। मैने भी बड़े विश्वास से कह दिया… सर, वह हर्गिज
यहाँ नहीं आयेगी।
नीलोफर को नोटिस दिये
हुए दो दिन बीत गये थे। अभी तक उसकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला था। रोज अपने आफिस जाता
और सुबह से शाम तक नीलोफर के अगले कदम के बारे मे सोचने बैठ जाता था। मेरी टीम को भी
मैने उस एक मुलाकात के लिये तैयार कर दिया था। बस हमे नीलोफर इंतजार था। पूरा आप्रेशन आघात-2 नीलोफर के बिना बताये गायब
होने पर निर्भर करता था। मेरे विचार से वह अपने लोगो के बीच बैठ कर हमसे टकराने की
योजना बना रही होगी। तीसरे दिन भी उसकी ओर से कोई हरकत नहीं हुई थी। हम दोनो ही एक
दूसरे के धैर्य की परीक्षा ले रहे थे। वह यह भी जानती थी कभी न कभी तो हमारी ओर से
पहल होगी परन्तु कब? इसका जवाब उसके पास नहीं था। एक तरह से हम उसको नोटिस पकड़ा कर
भूल गये थे। आज दोपहर को ही फरहत ने फोन करके बताया था कि उसने मेजर हसनैन को पहलगाम
और रामबन के बाग दिखा दिये थे। कल वह उनको बडगाम और कुलगाम ले जाएगा। शाम आफिस का काम
समाप्त करके मै अपने घर की ओर चल दिया। जैसे ही मै पुलिया पार करके अपने घर की सड़क
पर पहुँचा तो मेरी नजर उसी चमचामाती औडी पर पड़ी जो हमारे घर के सामने खड़ी हुई थी।
मैने अपने साथियों को इशारा किया और जीप से उतरते हुए जोर से कहा… थापा और सुजान सिंह, आप दोनो मेरे मकान के आसपास चेक करने के लिये निकल जायें। कोई खतरा देखें तो तुरन्त उसका सफाया कर देना। पूरे मकान को सुरक्षित करना है। बाकी तीन लोग मेरे घर आये हुए मेहमान को कवर कर लें। यह बोल कर मै जीप से उतर लोहे का गेट खोल कर अन्दर चला गया। नीलोफर लान मे अकेली बैठी हुई थी। वह आज भी हिजाब मे थी। मै चलते हुए उसके सामने पड़ी हुई कुर्सी पर जाकर बैठ गया। उसने धीरे से सिर उठाया और मेरी ओर देख कर बोली… यह नोटिस देने की क्या जरुरत थी। तुम्हें जो भी पूछना है वह मुझसे यहीं पर पूछ लो। …यह पूछताछ कोई मेरे घर की नहीं है। भारतीय सेना कुछ पूछना चाहती है तो इसलिये तुम्हें नोटिस दिया गया था। …वह क्या पूछना चाहते है? …हमारे पास मकबूल बट और तुम्हारे बीच हुई बातचीत की एक रिकार्डिंग है जिसके कारण हमने तीन ट्रकों को कटरा मे जब्त किया था। उसमे बारह करोड़ रुपये मिले थे जिसमे आठ करोड़ के करीब नकली नोट थे। उन्ही मे से एक ट्रक मे कच्ची चरस का एक बड़ा कनसाइनमेन्ट भी मिला था। अब इसके बारे मे या तो मकबूल बट बता सकता है अन्यथा तुम। मकबूल बट इस वक्त अस्पताल मे है और किसी से बात करने की स्थिति मे नहीं है इसिलिये हम तुमसे पूछना चाहते थे। इतना बोल कर मै चुप हो गया।
नीलोफर ने जल्दी से
कहा… समीर, मुझे उसके बारे मे कुछ नहीं मालूम। …यह तो तुम वहाँ आकर भी कह सकती थी।
खैर यह इतना आसान भी नहीं है कि तुमने कहा और हमने मान लिया। तुम्हें सुबूत देकर साबित
करना पड़ेगा कि तुम्हें उसके बारे मे कोई जानकारी नहीं थी। …अगर मैने यह नहीं किया तो?
…कुछ नहीं फिर हम तुम्हें अपनी कस्टडी मे लेकर पूछताछ करेंगें। कुछ देर वह चुप बैठी
रही फिर जैसे ही उसने बोलने के लिये अपना मुँह खोला कि तभी दो राउन्ड फायरिंग की आवाजें
कान मे पड़ी तो मैने उसे घूरते हुए कहा… तुम्हारे शार्प शूटर्स को तो उनकी हूरों से
मिलने भेज दिया है। …नहीं यह झूठ है। मै तुमसे मिलने के लिये अकेली आयी थी। तभी घर
के अन्दर से थापा और सुजान सिंह बाहर निकले और मेरे पास पहुँच कर सुजान सिंह ने कहा…
साबजी दो जिहादी मारे गये और एक भाग निकला। अब सारा एरिया सिक्युर हो गया है। …गुड
जाब। इनके ड्राईवर को हिरासत मे ले लो। …जनाब, इनका ड्राइवर नहीं है। गाड़ी खाली है।
…नीलोफर, पहले तो
तुम्हें सिर्फ एक आर्थिक जुर्म का जवाब देना था। अब भारतीय सेना के अफसर को मरवाने
की साजिश का भी जवाब देने के लिये तैयार हो जाओ। वह विचलित होकर बोली… समीर, मै सच
कह रही हूँ कि मै यहाँ अकेली आयी थी। मै नहीं जानती कि उनको किसने भेजा था। …फिलहाल
तो अब तुम्हें हमारे साथ चलना पड़ेगा। सुजान सिंह इन मैडम को जीप मे बिठाओ। एकाएक त्रिया
चरित्र का नया रुप दिखाते हुए वह रुआँसी हो कर बोली… समीर मेरी बात मानो। मुझे इसके
बारे मे कुछ नहीं पता है। …नीलोफर, तुमने दो भारी गलती की है। पहली कि औपचारिक नोटिस
मिलने बाद तुम आफिस न पहुँच कर मेरे घर पर मुझसे मिलने आयी हो। दूसरी गलती तुमसे यह
हुई कि तुम अपने साथ शार्प शूटर्स को लेकर यहाँ आयी जो मुझे मारने की फिराक मे मकान
के पीछे बैठे हुए थे। …मै सिर्फ तुमसे मिलने आयी थी। …क्यों? …उस नोटिस के सिलसिले
मे बात करने आयी थी। …तुम्हें नोटिस ब्रिगेडियर चीमा ने दिया और तुम उसके लिये मुझसे
क्यों मिलने चली आयी। कौन इस बात को मानेगा। खैर अब अपना जवाब तैयार करने के लिये तुम्हारे
पास काफी वक्त है।
सुजान सिंह ने अपनी
एक-47 हिलाते हुए कहा… मेमसाहब चलिये। वह भुनभुनाती
हुई खड़ी हो गयी और जीप की ओर चल दी। …नीलोफर, तुम्हारी कार की चाबी। फारेन्सिक जाँच
के लिये पुलिस यह कार जब्त करेगी। उसने अपने हैन्डबैग से चाबी का गुच्छा निकाल कर मेरी
ओर किया तो मैने कहा… सिर्फ कार की चाबी क्योंकि हम बाकी चीजों की जिम्मेदारी नहीं
ले सकते। उसने जल्दी से उस गुच्छे से कार की चाबी निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दी। मैने चाबी
लेते हुए कहा… तुम्हारा मोबाइल फोन। उसने चिड़ कर गुस्से से अपना फोन मेरी ओर उछाल दिया।
मैने फोन को हवा मे लपकते हुए कहा… इन दोनो चीजों की पावती रसीद कल सुबह दे दूँगा।
मैने कार की चाबी कुट्टी के ओर उछालते हुए कहा… पुलिस के आने पर यह कार की चाबी उन्हें
दे देना। इतना बोल कर नीलोफर को मैने अपने साथ जीप मे बिठाया कोम्पलेक्स की ओर चल दिया।
वह सही बोल रही थी
कि वह अकेली आयी थी। किसी ने हमारा पीछा नहीं किया और न ही किसी ने रोकने की कोशिश
की थी। कुछ ही देर मे हम एमआई के डिटेन्शन सेन्टर मे बैठे हुए थे। मैने सारी रिपोर्ट
लिख कर नीलोफर को महिला सेना पुलिस दल की चार सुरक्षाकर्मियों के हवाले कर दिया था।
जब तक मै बाहर निकला तब तक अंधेरा घना हो गया था। बाहर निकलते ही मैने ब्रिगेडियर चीमा
से कहा… सर, नीलोफर को हमने आज शाम को उठा लिया है। उसे एमआई के डिटेन्शन रुम मे रखवा दिया है।
…मेजर, अब एक-एक कदम सावधानी से लेना। …सर, मै अब उसे दो दिन नहीं मिलूँगा लेकिन क्या
आप कुछ महिला सेना पुलिस दल के जरिये नीलोफर को सेना का कठोर चेहरा दिखवा सकते है।
…मै बात कर लूँगा। उस रात हमारे बीच मे बस इतनी बात हुई थी। डिटेन्शन युनिट के बाहर
मेरी टीम खड़ी हुई थी। …कुट्टी कार का क्या किया? …सर, सर्क्युलर रोड पर एक सुनसान जगह
पर खड़ी करके यहाँ पहुँच गया। …गुड जाब डन बोयज। अब मुझे वापिस घर छोड़ दो। थोड़ी देर
के बाद मै अपने घर मे जन्नत और आस्माँ को उसकी सारी कहानी सुना रहा था।
अगले दो दिन कैसे
निकल गये पता ही नहीं चला क्योंकि तिकड़ी अगले दिन दोपहर को श्रीनगर पहुँच गयी थी। मैने
उनके सामने पासपोर्ट और फाईलें रख कर कहा… अब मेरे पास सुबूत भी है कि लखवी परिवार
और मीरवायज परिवार के बीच गठजोड़ के पीछे पाकिस्तानी आईएसआई है। वीके ने पूछा… उसकी कैसी
हालत है? …सर, मै उससे अभी तक नहीं मिला हूँ। अजीत ने सुझाव दिया… मेजर, उसे यह यकीन
हो जाना चाहिये कि अगर उसे इस से कोई निजात दिला सकता है वह सिर्फ तुम हो और कोई नहीं
तभी वह तुम्हें कुछ बताने के लिये राजी होगी। उसके लिये क्या बाहर कुछ हलचल दिखायी
दी? …सर, अभी मामला गर्म है। किसी ने भी उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट फाइल नहीं की है।
उसकी कार वहीं है जहाँ हमने छोड़ी थी। वीके ने ब्रिगेडियर चीमा
से पूछा… सुरिन्दर, अपने काउन्टर इन्टेलीजेन्स के नेटवर्क से पता करो कि क्या पिछले
कुछ दिनों मे यहाँ की तंजीमो मे कोई हलचल देखने को मिली है। …सर, सब कुछ नार्मल है।
…मेजर, एक दो दिन और देख लो। अगर फिर भी कुछ नहीं दिखता तो तुम्हें ही उनको हिलाने
की युक्ति निकालनी होगी। …सर, वह मैने पहले से ही कर दिया है। अगर कुछ नहीं हुआ तो
हमने उस नोटिस के आधार पर रेड मारनी आरंभ कर देंगें। उन सबको इतना हिला देंगें कि वह
खुद ही उसे ढूंढने के लिये सड़क पर निकल जाएँगें।
वह दो दिन रुके थे।
इस दौरान मेरा ज्यादा समय उनके
साथ आप्रेशन आघात-2 की योजना को कार्यान्वित करने की योजना पर बीता था। उनका सारा ध्यान
फारुख मीरवायज के उपर केन्द्रित था। वह नीलोफर का इस्तेमाल सिर्फ फारुख को मजबूर करने
के लिये करना चाहते थे। मेरी सोच उनसे थोड़ी भिन्न थी। मै दोनो परिवारों के बीच दुश्मनी
की गहरी खाई बनाना चाहता था। इसके कारण फारुख का भी दुनिया के सामने पर्दाफाश हो जाता
जो वह नहीं चाहते थे। जब मै उनकी ओर से सोचता तो मुझे उनकी सोच सही लगती थी परन्तु
मुझे फारुख पर विश्वास नहीं था। मेरी छठी इन्द्री इस मामले मे मुझे बार-बार सावधान
कर रही थी कि फारुख मौका मिलते ही डबल क्रास कर देगा। इसी कश्मकश मे मेरे दो दिन निकल
गये थे।
तीसरे दिन आफिस न जाकर मै सीधे एमआई की डिटेन्शन युनिट पर पहुँच गया था। नीलोफर से मिलने की आवश्यक कागजी
कार्यवाही करके मै मिटिंग रुम मे नीलोफर का इंतजार कर रहा था। सेल के लोहे का द्वार
से जोर का खटका हुआ और धीरे से दरवाजा खुलता चला गया था। मेरी नजर मुर्झायी हुई नीलोफर
पर पड़ी जो लड़खड़ाती हुई मेरी ओर बढ़ रही थी। वह चुपचाप मेरे सामने आकर बैठ गयी। पहली
बार मैने उसका चेहरा देखा था। वह हमेशा ही हिजाब या बुर्के मे मेरे सामने आयी थी। आज
उसके बाल उलझे हुए थे उसके कुर्ता और सलवार सिलवटों से भरा हुआ था। उसके पास्पोर्ट
मे उसकी उम्र मेरे से तीन महीने छोटी बतायी गयी थी जिसका पहले मुझे विश्वास नहीं हुआ
था। अब उसको उसको देखने के बाद वह आसिया और आफशाँ की उम्र की लग रही थी। उसके साथ आयी
हुई महिला गार्ड्स वही लोहे के दरवाजे के पास जा कर खड़ी हो गयी थी। …सलाम। जब उसकी
ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैने धीरे से पूछा… मैने सुना है कि तुम मुझसे मिलना
चाहती थी। बोलो क्या बात है? …समीर, मुझे यहाँ से बाहर निकालो। मै चुपचाप उसको देखता
रहा। उसके चेहरे की सारी रौनक गायब हो चुकी थी। सूजी हुई आँखों के नीचे काले गड्डे
पड़ गये थे। उसके बिखरे हुए बाल और सहमा हुआ चेहरा उसकी हालत बयान कर रहा था। दो दिन
मे ही वह मुर्झा गयी थी।
इस वक्त उसकी मानसिक
स्थिति के बारे ने जान पाना मेरे लिए कठिन था। …समीर, मुझे यहाँ से बाहर निकालो। उसने
एक बार फिर से कहा तो पहली बार मैने कहा… पर क्यों? वह मेरी ओर कुछ देर देखने के बाद
बोली… मै नहीं जानती कि उस ट्रक मे जाली नोट थे और न ही मेरा उन ड्र्ग्स के साथ कोई
संबन्ध था। इतना बोल कर वह एकटक मेरी ओर देखने लगी। अबकी बार मैने मुस्कुरा कर कहा…
नीलोफर क्या तुम सच मे यह मानती हो कि हमने तुम्हें इस कारण से यहाँ पर लाकर रखा हुआ
है? एक क्षण के लिये उसके चेहरे पर हैरत के भाव आये थे परन्तु अगले ही पल वह सावधान
होकर बोली… तो फिर किस लिये तुमने मुझे पकड़ा हुआ है? मैने जेब से उसका पास्पोर्ट निकाल
कर उसके सामने रख कर कहा… नीलोफर लोन उर्फ नीलोफर लखवी तुम यहाँ पर कौनसा खेल खेलने
आयी हो? पास्पोर्ट उठाने के लिये जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया मैने घुर्रा कर कहा… इसे छूना
नहीं। उसने तुरन्त अपना हाथ पीछे खींच लिया था।
अब तक उसके चेहरे
का रंग उड़ गया था। वह धीरे से फटी हुई आँखों से देखती हुई बोली… ओह, उस दिन तुम सच
बोल रहे थे कि तुमने मकबूल बट की तिजोरी ढूंढ कर उसका सारा सामान निकाल लिया है। …बिल्कुल
यही बात है। …तुम्हें फिर वह सीडी भी मिल गयी होगी? मै एक पल खामोश रहा और फिर धीरे
से कहा… मुझे वह सीडी भी मिल गयी और मैने उसे देख भी लिया है। उसकी निगाहों मे पहली
बार बेबसी के साथ नफरत भी झलक रही थी। वह निगाहें झुका कर बैठ गयी। वह दबे स्वर मे
बड़बड़ायी… तुम्हें तो खुश होना चाहिये। उसके मेज पर रखे हुए हाथ को थपथपा कर कहा… नीलोफर
तुम्हें आदमी की पहचान नहीं है। अभी मै इतना बेगैरत नहीं हुआ हूँ कि उस सीडी को तुम्हारे
खिलाफ इस्तेमाल करके तुम्हे दुनिया के सामने शर्मिन्दा करुँ। वह सीडी मैने अभी तक अपने
आफिस मे जमा नहीं की है तो अब उसके बारे मे भूल जाओ। वह कुछ देर चुप रही और फिर निगाहें
उठा कर मेरी ओर देखते हुए बोली… प्लीज मुझे यहाँ से बाहर निकालो।
मुझे उससे साफ शब्दों
मे बात करने का अब समय आ गया था। …नीलोफर, यहाँ से बाहर निकलने के लिए सिर्फ एक ही
रास्ता है। तुम्हें पहले यह साबित करना होगा कि तुम सभ्य समाज और मेरे देश के लिए खतरा
नहीं हो। यही नहीं, तुम्हें यकीन दिलाना होगा कि समय आने पर तुम हमारी मदद करोगी। मै
तुमसे यह नहीं कह रहा कि तुम हमारे लिए जासूसी करो परन्तु यह तुमसे उम्मीद की जा सकती
है कि अगर कोई खतरा हमारे लिए उत्पन्न होगा तो तुम समय रहते हुए सबसे पहले हमे सुचित
करोगी। अचानक वह मेरा हाथ पकड़ कर बोली… तुम जो कहोगे वह करुँगी लेकिन पहले मुझे यहाँ
से निकालो। उसके अचानक हिलने के कारण दोनो महिला गार्ड्स उसकी ओर झपटी लेकिन मैने उन्हें
वहीं खड़े रहने का इशारा किया।
…नीलोफर, कह देने
और यकीन करवाने मे बहुत फर्क होता है। तुम ही बताओ कि मै तुम पर कैसे यकीन कर सकता
हूँ। अभी भी उसके हाथ मे मेरा हाथ था। मै उसके हाथ मे कंपन महसूस कर रहा था लेकिन मै
उसके त्रियाचरित्र से भी वाकिफ था। क्या वह यहाँ से बचने के लिए मेरे सामने नाटक कर
रही थी? …तुम ही बताओ कि मै तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊँ? उसके बोले हुए हर शब्द मे बेबसी
झलक रही थी परन्तु उसमे कितनी सच्चायी थी यह कोई नहीं बता सकता था। …मुझे यकीन दिलाने
के लिए सबसे पहले तुम्हें कुछ खाली कागज और एक पेन दे रहा हूँ। तुम्हें सिर्फ उस पर
उन सब लोगों के नाम लिखने है जिनके साथ मिल कर तुम यहाँ पर भारत विरोधी कार्य कर रही
थी और किन लोगो के कहने पर और किन लोगों की मदद से तुम अराजकता फैला रही थी या फैलाने
की कोशिश कर रही थी। मुझे यह कहने की जरुरत नहीं है कि तुम्हारी लिखी हुई हर बात की
पुष्टि होने के बाद ही हम किसी नतीजे पर पहुँच सकते है। याद रहे कि अगर तुमने हमसे
कुछ भी छिपाने की कोशिश की तो हमारे यकीन को गहरी ठेस लगेगी। बोलो क्या इसके लिए तुम
तैयार हो अथवा नहीं?
मैने उसके सामने अपनी
बात रख दी थी और अब देखना था कि वह कितना छिपाती है और कितना बताती है। मैने गार्ड्स
को इशारा से अपने पास बुला कर निर्देश देते हुए कहा… इनके लिए एक पेन और कुछ ब्लैंक
शीट्स चाहिए। एक महिला बिना कुछ कहे दोनो चीजे लाने के लिए कमरे से बाहर निकल गयी थी।
…नीलोफर यह सब लिखने के लिए तुम्हें कितना समय चाहिए? वह कुछ नहीं बोली बस सिर झुकाये
बैठी रही। मैने धीरे से उसके हाथ को थपथपाते हुए कहा… एक बार और विचार कर लो फिर मुझे
बुला लेना। अच्छा खुदा हाफिज़। इतना बोल कर
मैने गार्ड को वापिस ले जाने का इशारा किया और धीमे कदमों से चलता हुआ मै कमरे से बाहर
निकल गया था। वहाँ से निकल कर मै ब्रिगेडियर चीमा से मिलने के लिए चला गया।
…कैसी मुलाकात रही मेजर? सारी बात उनके सामने रखने के
बाद मैने पूछा… सर, अगर वह तैयार हो गयी तो भी इसको हम कैसे बाहर जाने दे सकते है?
…बहुत आसान है। उसके खिलाफ अभी तक कोई केस बनता ही नहीं है। एक पाकिस्तानी होने के दम पर हम सिर्फ उसे इस देश से निष्कासित कर सकते
है इससे ज्यादा और कुछ नही हमारे हाथ मे है। …तो सर हमारे पास क्या विकल्प है? …मेजर,
उसे नहीं मालूम कि हम उसके खिलाफ क्या कर सकते है। उस पर दबाव डाल कर आईएसआई के षड़यंत्र
और षड़यंत्रकारियों की जानकारी लेकर जिस दिन तुम पूरी तरह से उसके प्रति आश्वस्त हो
जाओगे तो उसे छुड़ाने के लिए तुम्हें मेरी स्वीकृति की भी आवश्यकता भी नहीं है। जैसे
तुम लाये थे वैसे अपने साथ ले जा सकते हो। उसको बस फारुख मीरवायज के खिलाफ ऐसे पुख्ता
सुबूत उप्लब्ध कराने पड़ेंगें कि जब हम उसे अपने शिकंजे मे ले तब वह मजबूर होकर हमारे
साथ काम करने के लिये तैयार हो जाए। …सर, एमआई को क्या बताएँगें? …यह लड़की हमारे काउन्टर
इन्टेलीजेन्स की एस्सेट है। मैने उन्हें सिर्फ यही बताया है। अभी भी वह हमारे आदमियों
की निगरानी मे है और जो भी उसके साथ हो रहा है वह सब हमारे लोग ही कर रहे है। ब्रिगेडियर
चीमा से बात करके मुझे काफी हिम्मत मिल गयी थी। मै वापिस अपने घर की ओर निकल गया।
मेरे अगले दो दिन
फारुख के खिलाफ मोर्चा तैयार करने मे निकल गये थे। नीलोफर को गायब हुए तीन दिन हो गये
थे परन्तु अभी तक किसी ने उसके लिये कोई हंगामा खड़ा नहीं किया था। फारुख के बारे मे
मैने अरबाज और अब्दुल्लाह से भी पता किया लेकिन उनके पास भी उसके बारे मे कोई जानकारी
नहीं थी। जब मुझे कुछ न होता हुआ दिखा तो फिर मैने उनके खेमे को हिलाने के लिये पहला
कदम उठाया। ब्रिगेडियर चीमा के नोटिस की कापी लेकर मैने सबसे पहले पुलिस मे नीलोफर
की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करायी और फिर उसके मकान पर छापा मार कर उसके दरवाजे पर
उस नोटिस की कापी और तुरन्त संपर्क करने निर्देश चिपकवा दिया था। उसके बाद अपनी टीम
के साथ लोन के आफिस जाकर नीलोफर लोन के कमरे के दरवाजे को सील करके एक बार फिर वह नोटिस
और निर्देश की कापी चिपकवा दिया। इसी तरह शफीकुर लोन के गोदाम, अब्दुल लोन के घर पर
भी मैने वही काम करके हाजी मोहम्मद के घर पर पूछताछ करने के लिये चला गया था। शाम तक
नीलोफर लोन के जितने भी जानने वाले थे उनको मैने अप्रोक्ष रुप से इस बात की खबर कर
दी थी कि नीलोफर लोन गायब हो गयी है। अगले दिन नीलोफर लोन की कार पुलिस ने सर्क्युलर
मार्ग पर बरामद कर ली थी। नीलोफर लोन के गायब होने की खबर सभी तंजीमों मे जंगल मे आग
की तरह फैल गयी थी। अगले दिन उसके गायब होने की खबर सभी स्थानीय अखबारों की सुर्खियाँ
बन गयी थी।
मै अपने बिस्तर पर लेट कर अपनी अगली कार्यवाही
के बारे सोच रहा था। जन्नत थक कर सो चुकी थी। मेरे फोन की घंटी बजी तो मैने जल्दी से
फोन लिया… हैलो। …जनाब, क्या नीलोफर लोन की कोई जानकारी मिली? मैने स्क्रीन पर देखा
तो काल किसी सेटफोन से थी। …कौन बोल रहा है? …समीर मियाँ, समय बर्बाद करने बजाय बताओ
कि उसके बारे मे कोई खबर मिली है? …अभी तक कोई पुख्ता खबर नहीं मिली लेकिन बहुत से
लोगों का ख्याल है कि नीलोफर को फारुख मीरवायज ने गायब किया है। पुलिस बता रही थी कि
आखिरी बार नीलोफर को फारुख के साथ देखा गया था। उसके बाद से फारुख का भी किसी को पता
नहीं है। इतना सुन कर दूसरी ओर से लाईन कट गयी थी।
ऐसा लगता है के ३ दिनके ditension से निलोफरकी हेकडी निकल गयी होगी, क्या कागजपे कलमसे वो जिहादी तंजीमोके सुरमाओन्का पर्दाफाश करेगी, ये रातको समीरको किसका फोन आया होगा? क्या फारुखका कोई दुश्मन जो आगे जाके इन तंजीमोमे फौज का "स्लीपरसेल" बन जाये. देखते है🤔
जवाब देंहटाएंप्रशान्त भाई धन्यवाद। नीलोफर के आत्मविश्वास और मनोबल को तोड़ने के लिये फौज का निर्मम चेहरा दिखाने की तो समीर ने खुद गुहार की थी।
हटाएंजबरदस्त अंक और जैसा की पिछले अंक में हम ने देखा था की मकबूल के तिजोरी से समीर को बहुत से चीजे मिली है और सच में ही समीर को जैसे खजाना मिल ही गया है क्यूँ की जिस एक शुरुआत वो चाहता था फेज़ 2 शुरू करने के लिए अब मकबूल की निकाह की विडिओ उसको थाली में परोस कर दे दिया और इसके चलते नीलोफर गर्दन भी अब समीर के मुट्ठी में आ चुकी है अब देखना है की नीलोफर जैसी शातिर औरत को वो कैसे इस्तेमाल करेगा अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंएविड भाई आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा कि किसकी गरदन किसके हाथ मे है।
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