सोमवार, 27 मई 2024

 

 

शह और मात-3

 

अफगान-पाक बार्ड्रर

अफगान-पाकिस्तान सीमा पर एक अज्ञात स्थान पर कुछ लोग मिल रहे थे। …अखुन्डजादा क्या करने की सोच रहा है? …जनाब, वह कतर की वार्ता को असफल करने की कोशिश मे लगा हुआ है। उसके पीछे तेहरीक के बैतूल्लाह का हाथ है। …आईएसआई का जनरल फैज क्या कर रहा है? …जनाब, वह अखुन्डजादा की पीछे से मदद कर रहा है। उनकी बात सुन कर पहली बार सीआईए का उप-निदेशक दक्षिण एशिया जेरेमी वाट्स बोला… ओमर साहब पिछले एक साल से हम आपकी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहे है लेकिन अभी तक तालिबान पर आप अपनी पकड़ नहीं बना सके है। अब हम यहाँ से जल्दी से जल्दी निकलना चाहते है। ओमर जल्दी से अपनी सफाई देते हुए कहा… जेरेमी साहब, आप मुझे कुछ और समय दिजीये। हम दो तरफा लड़ाई लड़ रहे है। एक अन्दर से अखुन्दजादा की ओर से भीतरघात हो रहा है और दूसरा बाहर से पाकिस्तान अपनी पूरी कोशिश कर रहा है कि हमारे और आपके बीच मे कोई बातचीत न हो सके। तालिबान का शीर्ष नेतृत्व आपके साथ है परन्तु पैदल फौज बिखरी हुई है।

…जनाब, मै तेहरीक की ओर से आपको यकीन दिलाना चाहता हूँ कि बैतूल्लाह की जंग आईएसआई और पाकिस्तानी एस्टेब्लिश्मेन्ट के खिलाफ है। हमारा संयुक्त फोर्सेज से कोई बैर नहीं है। हम ओमर और गनी के समर्थक है। हम भी चाहते है कि आप यहाँ से आराम से निकल जाए जिससे हम अपने लोगों की मौत का बदला ले सके। सात महीने पहले भारत के ब्रिगेडियर चीमा काबुल मे बैतूल्लाह से मिले थे। उन्होंने खबर दी थी कि आईएसआई और पाकिस्तानी फौज बैतूल्लाह को मारने की साजिश रच रहे है। उनकी मदद से बैतूल्लाह बचने मे सफल हुआ था। वही तेहरीक और तालिबान के बीच की कड़ी थे। पिछले कुछ दिनो से ब्रिगेडियर साहब भी गायब है। जेरेमी वाट्स ने समझाने के अंदाज मे कहा… नूर गुल हमे बैतूल्लाह पर पूरा भरोसा है लेकिन जैसे नतीजे मिल रहे है वह हमारी योजना के विपरीत है। यूएस एड्मिनिस्ट्रेशन का विचार है कि बैतूल्लाह और तालिबान का शीर्ष नेतृत्व जल्दी से किसी नतीजे पर पहुँच जाये जिससे हम यहाँ से बिना रक्तपात के निकल सकें। भारत ने भी इसके लिये हमारा बाहर से साथ देने का वायदा किया है।

तभी काबुल मे स्थित भारतीय दूतावास का मिलिट्री अटाचे श्रीनिवास बोला… जेरेमी आप इस पूरे चक्रव्युह मे चीन को भूल रहे है। चीन के कहने पर आईएसआई का जनरल फैज अफगानिस्तान की हुकूमत हक्कानियों के हाथ मे देना चाहता है जिससे चीन आपके निकलने के बाद अपने पाँव यहाँ पर आसानी से जमा सके। आपने हक्कानियों को वार्ता और समझौते से बाहर कर दिया है इसीलिए पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेन्ट इस वार्ता को असफल करना चाहते है। जेरेमी ने उठते हुए कहा… मै दो दिन बाद वाशिंगटन जा रहा हूँ। आज की बातचीत का निचोड़ मै वहाँ पर सबके सामने रख दूँगा लेकिन तब तक आप लोग हालात पर नजर रखियेगा और कोशिश किजिये कि हमारी फोर्सिज पर कोई आपकी ओर से हमला नहीं होना चाहिये। सब उठ कर खड़े हो गये और फिर एक-एक करके रात के अंधेरे मे वहाँ से निकल गये।

 

रात को नौ बजे जब हम दोनो तैयार होकर होटल की कार मे बैठे तो हम दोनो की काया पलट हो गयी थी। नीलोफर को मै हमेशा नेचुरल ब्युटी समझता था। वह बिना मेकअप मे भी बहुत सुन्दर दिखती थी परन्तु अब उसकी सुन्दरता मे चार चाँद लग गये थे। उसका वह रुप सामने आ गया था जिसको मैने पहली बार दीपक सेठी की पार्टी मे देखा था। मै उसके साथ चलने मे अपने आपको असहज महसूस कर रहा था। …नीलोफर वहाँ प्रवेश कैसे करोगी? उसने तुरन्त अपने ब्रान्डेड पर्स से एक कार्ड निकाल कर दिखाते हुए कहा… हाई सोसाइटी के कुछ नियम होते है। अबसे आदत डाल लो। ऐसे घरों की पार्टियों को इवेन्ट कंपनियाँ संभालती है। वही खाने-पीने का इंतजाम, अतिथियों की आवभगत व मनोरंजन के साधन मुहैया कराती है। अगर ऐसी एक-दो इवेन्ट कंपनी मे तुम्हारी जानकारी हो गयी तो फिर तुम आसानी से यहाँ की पार्टी सर्किट के नियमित अतिथि बन जाओगे। ऐसी पार्टीयों मे जाने के लिये लोग न जाने कितने हाथ-पाँव मारते है। मै चुपचाप उसकी कहानी सुन रहा था लेकिन पता नहीं क्यों मै वहाँ जाने मे एक झिझक महसूस कर रहा था। इस्लामाबाद शहर के एक हिस्से मे पहाड़ की तलहटी पर बने हुए विशाल क्लब मे पार्टी का अयोजन था। जब हम वहाँ पहुँचे तब तक कारों का जमघट लग चुका था। महंगी से महंगी दुनिया भर की गाड़ियाँ वहाँ पर नजर आ रही थी। होटल की कार से उतर कर बिना किसी रोकटोक के हम दोनो क्लब मे प्रवेश कर गये थे। कड़ी सिक्युरिटी का इंतजाम चारों ओर साफ दिख रहा था।

दीपक सेठी और अंसार रजा की पार्टी भी आज की पार्टी की वैभवता के सामने फीकी लग रही थी। लाहौर की पार्टी भी आज की पार्टी के सामने कुछ भी नहीं थी। नीलोफर की चाल मे आत्मविश्वास और एक अजीब सी लापरवाही झलक रही थी। हिजाब मे भी उसके जिस्मानी उतार-चड़ाव हर कदम पर थरथराते हुए प्रतीत हो रहे थे। मै एक पैबन्द की भाँति उसके साथ घिसटते हुए चल रहा था। लान के प्रवेश द्वार के बाहर चार हथियारबंद गार्ड्स और दो सुन्दर महिलायें खड़ी हुई थी। हर आने वाले का कार्ड वह देख कर उनका स्वागत करती और फिर कुछ बोल कर उनको जाने दे रही थी। द्वार पर पहुँच कर नीलोफर ने कार्ड निकाल कर उनके आगे कर दिया। कार्ड चेक करके एक महिला मुस्कुरा कर बोली… टेबल नम्बर 38 प्लीज। जब तक वह कुछ स्वागत मे बोलती तब तक नीलोफर इठलाती हुई आगे बढ़ गयी थी। मैने जल्दी से मुस्कुरा कर शुक्रिया किया और उसके पीछे लान मे प्रवेश कर गया था।

अन्दर की वैभवता देख कर एक पल के लिये मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी थी। हजारों छोटे-छोटे बल्बों की रौशनी मे सारा लान झिलमिला रहा था। फूलों की महक से सारा लान महक रहा था। नीलोफर इठलाती बलखाती हुई आगे बढ़ती जा रही थी। मैने सोचा था कि इस्लाम के अनुसार परिसर दो भागों मे बटाँ हुआ होगा परन्तु यहाँ तो पाश्चत्य समाज की झलक साफ दिख रही थी। महिला-पुरुष एक दूसरे के साथ बड़े सहज भाव से घुल मिल रहे थे। नीलोफर बड़ी सहजता से कभी मुस्कुरा कर और कभी हाथ हिला कर आगे बढ़ती जा रही थी। कुछ कदम मै उसके साथ चलता रहा लेकिन जब हिम्मत टूटती सी लगने लगी तब मै स्वयं ही कदम धीमे करके पीछे हो गया था। लान के एक कोने मे साजिन्दे बैठ कर अपने-अपने यन्त्रों मे उलझे हुए दिख रहे थे। मै चलते हुए लान के एक किनारे मे पहुँच कर खड़ा हो गया था। एक वेटर हाथ मे ट्रे लिये मेरे करीब आकर बोला… वेलकम सर, व्हिस्की, जिन, रम ओर वोदका? …व्हिस्की प्लीज। …सिंगल माल्ट ओर डबल? मैने चकराते हुए जल्दी से कहा… यु सजेस्ट। …ब्लेक लेबल सिंगल माल्ट। …फाईन। उसने जल्दी से काँच का बिल्लौरी ग्लास मेरी ओर बढ़ा कर कर कहा… प्लीज इन्जोय युअर ड्रिंक्स सर। इतना बोल कर वह वेटर आगे बढ़ गया था। मै अपने हाथ मे ड्रिंक्स पकड़े वहाँ उपस्थित लोगों का आंकलन करने मे व्यस्त हो गया।

मैने अभी तक हर पार्टी मे एक बात नोट की थी कि सारे लोग अपने जानकारों के गुट बना कर अपनी बातचीत मे व्यस्त हो जाते है। आज की पार्टी मे वैसा कुछ अभी तक दिख नहीं रहा था। ज्यादातर लोग अपने-अपने जोड़े बना कर किसी का इंतजार कर रहे थे। नीलोफर भी कुछ स्त्रियों के साथ खड़ी हुई किसी का इंतजार कर रही थी। मै अकेला एक किनारे मे ड्रिंक्स का ग्लास पकड़ कर खड़ा हुआ सब देख रहा था। एकाएक महफिल मे हरकत हुई और एक अधेड़ उम्र का जोड़ा रेड कार्पेट पर चलते हुए बाहर निकला जिसका सभी ने तालियाँ बजा कर स्वागत किया। मैने अनुमान लगाया कि वह अनवर रियाज और उसकी पत्नी होगें। मै अभी अनुमान लगा ही रहा था कि तभी महफिल मे हलचल हो गयी। सबकी नजरें उस जोड़े से हट कर मुख्य द्वार की ओर चली गयी थी। अपने सुरक्षाकवच मे घिरा हुआ एक वर्दीधारी आफीसर लान मे प्रवेश कर रहा था। एकाएक लान मे शांति छा गयी थी। जैसे ही वह नजदीक आया तो उसकी शक्ल देखते ही मै पहचान गया कि वह आईएसआई का नया निदेशक जनरल फैज एहमद था। अभी मै उसके प्रोटोकोल को समझने की कोशिश कर रहा था कि तभी बाहर तेज हूटर की आवाज गूँजने लगी थी। अनवर रियाज अपनी पत्नी को छोड़ कर तुरन्त तेजी से द्वार की ओर बढ़ गया था। जनरल फैज भी अपने सुरक्षा कवच को बीच मे छोड़ कर द्वार की ओर चला गया था। अगले कुछ मिनट के बाद पश्चिमी सूट मे एक जोड़े ने कदम रखा तो ऐसा लगा कि महफिल मे आये सभी लोगों को साँप सूँघ गया था। पाकिस्तान का नया सेनाअध्यक्ष जनरल रहमत उल मेहमूद अपनी पत्नी के साथ लान मे प्रवेश कर रहा था। अनवर रियाज और जनरल फैज ने उसका स्वागत किया और बात करते हुए लान के बीच मे आकर खड़े हो गये थे। अनवर रियाज की बीवी भी उनके पास आकर खड़ी हो गयी थी। महफिल मे एक बार फिर से हरकत हुई और सब एक कतार बना कर उनसे मिलने के लिये चल दिये।

…यहाँ अकेले क्या कर रहे हो? मैने चौंक कर नीलोफर की ओर देखा जो मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी। …आज की पार्टी का दूर से लुत्फ ले रहा हूँ। …चलो लाईन मे लग जाते है। मै भी नीलोफर के साथ उस कतार मे खड़ा हो गया था। अनवर रियाज, जनरल रहमत और जनरल फैज और दोनो महिलायें सभी से बड़ी गर्मजोशी के साथ मिल रहे थे। जब हमारा नम्बर आया तो नीलोफर ने पहल करते हुए सबका अभिवादन करके मुझे अपने खाविन्द के रुप मे मिलाते हुए कहा… समीर का फाईनेन्स का कारोबार है। यह दुनिया भर मे बड़े प्रोजेक्ट्स मे पैसा लगाते है। जनरल रहमत ने मुस्कुरा कर हाथ मिला कर कहा… कुछ हमारे प्रोजेक्ट्स मे भी इन्वेस्ट्मेन्ट किजिये। अनवर भाई अपने डीएचए वाले प्रोजेक्ट के बारे मे समीर से बात किजिये। अनवर रियाज तुरन्त बोला… बिल्कुल जनाब। अनवर युगल को मुबारकबाद देकर और कुछ औपचारिक बात करके हम वहाँ से हट गये थे। जब सबका मिलना-मिलाना हो गया तो सारी औपचारिक्तायें त्याग कर वहाँ पर जश्न का माहौल बन गया था।

कुछ लोग जनरल फैज को घेर कर खड़े हो गये थे और कुछ लोग जनरल रहमत को घेर कर खड़े हो गये थे। अनवर रियाज मेहमानो से मिलने मे व्यस्त हो गया था। मै और नीलोफर एक ग्रुप मे जाकर खड़े हो गये थे। वहाँ पर विदेश की चर्चा चल रही थी। कोई फ्राँस और कोई अमरीका के अपने संस्मरण सुना रहा था तो कोई ब्रिटेन मे होने वाले चुनाव पर चर्चा कर रहा था। हम दोनो चुपचाप उनकी बात सुन रहे थे। कुछ देर के बाद अनवर रियाज मेरे पास आकर बोला… समीर भाई क्या आपके पाँच मिनट ले सकता हूँ? मैने जल्दी से उस महफिल से हटते हुए कहा… क्या अनवर भाई। क्यों शर्मिन्दा कर रहे है। …क्या आप डीएचए प्रोजेक्ट पर पैसा लगा सकते है? …अगर कन्स्ट्रक्शन प्रोजेक्ट है तो क्यों नहीं। …सरकार ने हाल ही मे डीएचए को 23 एकड़ जमीन इस्लामाबाद मे दी है। डीएचए ने वहाँ पर 200 रिहाईशी प्लाट्स और शापिंग काम्प्लेकस बनाने की योजना तैयार की है। क्या आप इस प्रोजेक्ट मे कोई रुचि है? …अनवर साहब मेरी रुचि सिर्फ पैसा बनाने मे है। प्रोजेक्ट कोई भी और कैसा भी चलेगा लेकिन कितने टके कमाई होगी इस बात पर सब कुछ निर्भर करता है। …प्रोजेक्ट मे हिस्सेदारी नहीं मिल सकती। …मुझे चाहिये भी नहीं क्योंकि मै हिस्सेदारी मे विश्वास नहीं रखता। वैसे भी डीएचए के प्रोजेक्ट्स मे तो हिस्सेदारी सिर्फ वर्दी वालो की होगी। …आप बताईये कितना टका ब्याज लेंगें? …अनवर साहब, कितने समय के लिये चाहिये? …छह महीने। …किसकी गारन्टी देंगें? मेरा सवाल सुन कर अनवर रियाज थोड़ा गड़बड़ा गया था। मैने हंसते हुए कहा… मजाक कर रहा हूँ। मै जानता हूँ कि यहाँ वर्दी की गारन्टी है। मै मैरियट ठहरा हूँ। कल किसी वक्त आराम से बैठ कर बात करते है। …मुझे इजाजत दिजिये। बस इतना बोल कर वह दूसरे लोगों से मिलने चला गया था।

मै वापिस नीलोफर के पास चला गया था। तभी नीलोफर मुझे किसी से मिलाते हुए बोली… समीर, इनसे मिलिये। यह अजमल साहब है। इनका इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का काम दुनिया भर मे फैला हुआ है। …सलाम अजमल साहब। नीलोफर मिला रही है तो फिर आपमे जरुर कोई खास बात होगी। …इनके मेरे ताया साहब के साथ बड़े अच्छे ताल्लुकात है। …जहेनसीब। बताईये मै आपके लिये क्या कर सकता हूँ? …चार करोड़ का माल कराँची पोर्ट पर अटका हुआ है। …उन्त्तीस दिन का दो टका ब्याज। कल अपना माल छुड़वा लिजियेगा। महीना पूरा होते ही चार टका ब्याज लग जायेगा। सीधी और दो टूक बात करके मैने कहा… पैसे लेने मेरियट मे आ जाईयेगा। नीलोफर धीरे से बोली… समीर, अजमल साहब के बेहद अच्छे रिश्ते बैतुल्लाह साहब के साथ भी है। …अरे ऐसी बात है तो पहले बताना था। बैतुल्लाह साहब तो हमारे हमदर्द और हमनवाज है। अजमल धीरे से मुस्कुरा कर बोला… यह उनका माल है। मैने जल्दी से कहा… चार टके की बात भूल जाईये। कल जाकर माल छुड़वा लिजियेगा। …अरे नहीं आप कैसी बात कर रहे है। धन्धे और रिश्तों को एक दूसरे से दूर रखना चाहिये। आपको एक हफ्ते मे सारे पैसे मिल जाएँगें। हाँ कभी समय निकाल कर क्वेटा आईये तो मेजबानी का मौका जरुर दिजियेगा। …बिलकुल भाईजान। इतनी बात करके अजमल आगे बढ़ गया और नीलोफर मेरा हाथ पकड़ कर किसी और से मिलाने के लिये चल दी थी।

…समीर, यह आसिफ मुनीर है। वह देखने मे कोई फिल्मी हस्ती लग रहा था। …यह यहाँ के उद्योग जगत के बेताज बादशाह है। आसिफ मुनीर ने झुक कर नीलोफर से कहा… यह इनकी जर्रानवाजी है। समीर साहब हमारा पारिवारिक बिजनिस है। …समीर,यह एक इलेक्ट्रानिक पार्ट्स बनाने के लिये नयी फैक्टरी डाल रहे है। इनके बड़े भाईसाहब आबिद साहब से मेरी बात हुई थी। आसिफ को फैक्टरी लगाने के लिये चालीस करोड़ रुपये की जरुरत है। मैने आबिद से मदद करने का वादा किया है। मैने जल्दी से कहा… जब तुमने वादा कर लिया है तो उसे रोकने वाला भला मै कौन होता हूँ। किस नाम से चेक चाहिये? आसिफ मुनीर तुरन्त बोला… स्टरलिंग इलेक्ट्रानिक्स के नाम से चेक चाहिये। …इक्विटी मे शेयर देंगें या कर्जे के रुप मे चाहिये? …कर्जा चाहिये। घर का कारोबार है तो हम बाहर वालों को शेयरहोल्डिंग नहीं देते है। …कोई बात नहीं। कितने समय के लिये कर्जा चाहिये? …तीन साल के लिये। …चार टका ब्याज और कर्जा इन्स्टालमेन्ट मे चाहिये या एक मुश्त रकम चाहिये? …जी दो किश्तों मे रकम चाहिये। …ठीक है आप कल तक पेपर्स तैयार करके मेरे होटल आ जाईयेगा। बीस करोड़ का चेक ले जाईयेगा। …समीर साहब आप कमाल के आदमी है। पाँच मिनट मे आपने बीस करोड़ की डील फाइनल कर दी। …आसिफ साहब, आपने जिसकी सिफारिश लगवायी है उसको मना करने की मै हिम्मत नहीं कर सकता। हम तीनो ने एक ठहाका लगाया और कुछ इधर-उधर की बात करने के बाद नीलोफर को आसिफ मुनीर के पास छोड़ कर मै आगे बढ़ गया था।       

मै एक किनारे मे खड़ा हुआ महफिल का नजारा ले रहा था कि तभी पीछे से सुरीली सी आवाज कान मे पड़ी… आप यह ग्लास कब तक हाथ मे पकड़ कर खड़े रहेंगें। अगर पीने से परहेज है तो नीचे रख दिजिये। एक लड़की हिजाब पहने मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी थी। बेहद खूबसूरत थी लेकिन उसकी बड़ी-बड़ी आँखों मे शरारत झलक रही थी। मैने झेंप कर जल्दी से एक घूँट भरा तो वह मुस्कुरा कर बोली… मुझे साहिबा कहते है। बहुत देर से देख रही थी कि आप इसे हाथ मे लेकर खड़े हुए है तो सोचा कि याद दिला दूँ कि यह पीने की चीज है। उसके बोलने का बेहद दिलकश अंदाज था। …मेरा नाम समीर है। …तो बताईये समीर साहब क्या ले रहे है? अब तक मै संभल चुका था। एक और घूँट लेकर मैने जवाब दिया… सिंगल माल्ट। आप बताईये कि आप क्या लेंगीं। वह कुछ पल मुझे देखती रही और फिर मुस्कुरा कर बोली… नशे के लिये आप का साथ क्या काफी नहीं है। मै कुछ बोलता उससे पहले नीलोफर आकर बोली… जहेनसीब। साहिबा आप कैसी है। आपका कौनसा नया ड्रामा स्क्रीन पर आने वाला है? वह मुस्कुरा कर बोली… दूरियाँ। अगले महीने एआरवाई पर रिलीज हो रहा है। …साहिबा आप बेहद खूबसूरत अदाकारा है। मै आपकी फैन हूँ। तभी नीलोफर को किसी ने इशारे से अपनी ओर बुलाया तो वह जल्दी से बोली… माफ किजियेगा। इतना बोल कर वह उनके पास चली गयी थी। …आप अदाकारा है? …आप बता रहे है या पूछ रहे है? एक बार फिर से मैने झेंपते हुए जल्दी से कहा… सौरी। मै टीवी नहीं देखता तो मुझसे ऐसी खता हो गयी। आगे फिर कभी नहीं होगी। मैने जल्दी से एक घूँट भर कर उसकी ओर देखा तो वह मुझे देख कर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।

…क्या अपने ड्रामों मे भी आप सभी को ऐसे ही असहज कर देती है। …क्यों क्या मै आपको असहज कर रही हूँ। …साहिबा आप जानती है। …तो मै चली जाती हूँ। वह मुड़ी और चल दी थी। मुझे समझ मे नहीं आया कि ऐसे वक्त मे मुझे क्या करना चाहिये। यहाँ की सामाजिक मान्यताओं से अभी तक मै अनजान था। मेरे मन मे आया कि उसका हाथ पकड़ कर रोक लूँ परन्तु हिम्मत नहीं हुई। अचानक वह वापिस मुड़ कर मेरे करीब आकर बोली… जालिम, खुदा के लिये झूठे ही सही एक बार रुकने के लिये तो कह सकते थे। अपने सभी दिमागी जंजालों को त्याग कर एक घूँट मे सारा ग्लास खाली करके अपने पुराने फौजी अंदाज मे बोला… कोई और समय और जगह होती तो साहिबा तुम्हारा हाथ पकड़ कर रोक लेता लेकिन यहाँ पर तुम्हें रोकने की हिम्मत नहीं जुटा सका। वह खिलखिला कर हँसते हुए बोली… वाह आपने जवाब भी दे दिया और अपना हाले दिल भी ब्यान कर दिया। बहुत खूब समीर। मैने मुस्कुरा कर कहा… तो अपने बारे मे कुछ बताओ। …चलिये वहाँ बैठ कर बात करते है। मै आपके लिये ड्रिंक्स लेकर आती हूँ। …प्लीज यह हमारा काम है। तुम आराम से वहाँ बैठो। वह टेबल की दिशा मे चली गयी और मैने वेटर को इशारे से बुला कर कर कहा… दो सिंगल माल्ट ब्लैक लेबल। इतना बोल कर मै साहिबा के पास चला गया।

…तुम सिंगल माल्ट ले सकती हो या तुम्हारे लिये साफ्ट ड्रिंक्स का आर्डर दूँ। …इस लाईन मे कोई रोक टोक नहीं है। सिंगल माल्ट ठीक रहेगी। …कुछ अपने बारे मे बताईये समीर। …शादीशुदा और एक बच्ची…तभी दिमाग मे एक जलजला उठा और एक क्षण के लिये मेरी आँखें मुंद गयी थी। वह कुछ बोलती उससे पहले मैने जल्दी से अपने आपको संभालते हुए कहा… दो बच्चो का बाप हूँ और पेशे से बैंकर या कहिये निवेशक हूँ। तुम भी कुछ अपने बारे मे बताओ। तब तक वेटर मेज पर दो सिंगल माल्ट रख कर चला गया था। साहिबा ने धीरे से एक घूँट भर कहा… सिंगल और पिछले पाँच साल से पेशे से अदाकारा हूँ। चार ड्रामे और एक फिल्म कर चुकी हूँ। टीवी जैसी कामयाबी फिल्मों मे नहीं मिल सकी तो ऐसी पार्टियों की शान बन गयी हूँ। …कमाल है इतनी शोहरत पाकर भी तुम खुश नहीं लग रही हो। वह मुस्कुरा कर बोली… अब समीर तुम मुझे असहज करने लगे। …सौरी, मेरी यह मंशा नहीं थी। अचानक वह संजीदा होकर बोली… समीर, प्लीज अगर मुझे गलत नहीं समझो तो मेरे लिये एक काम कर दो। …बेझिझक होकर बोलो क्या काम करना है? …क्या तुम एक आदमी से मेरे कहने पर मिल सकते हो? …आओ चलो मेरे साथ। यह बोल कर मै खड़ा हो गया। वह उठ कर मेरे साथ चलते हुए बोली… मुझे गलत मत समझना। मै चुपचाप उसके साथ चल दिया था।

जनरल फैज को कुछ लोग घेर कर खड़े हुए थे। …तुम रुको यहीं पर। इतना बोल कर वह उनके पास चली गयी और उस भीड़ मे खड़े एक अधेड़ से उम्र के आदमी को अपने साथ लेकर मेरे पास आकर बोली… समीर, यह दूरियाँ नाम के सीरियल के प्रोड्युसर तबरेज अली साहब है। तबरेज अली ने हाथ मिलाने के लिये अपना हाथ आगे बढ़ा दिया था। मैने हाथ मिलाते हुए कहा… मेरा नाम समीर है। साहिबा मेरी दोस्त है तो बेहिचक तबरेज साहब बताईये मै आपके लिये क्या कर सकता हूँ? शायद वह मुझसे ऐसे सवाल की आशा नहीं कर रहा था। वह बोलते हुए गड़बड़ा गया… नहीं ऐसी कोई बात नही है। …प्लीज मेरा वक्त बेहद कीमती है। सिर्फ साहिबा के कहने पर आपसे बात करने के लिये आ गया इसलिये जो कहना है वह साफ शब्दों मे बताईये। …जनाब, फाईनेन्स की मदद चाहिये। दस एपीसोड का पाईलट पूरा हो गया है लेकिन अभी तक कोई स्पान्सर नहीं मिला है। एअरवाई को दस और एपीसोड बना कर देने है तो उसके बारे मे बात करना चाहता था। …एक एपीसोड पर कितना लगता है? …तीन से सात लाख तक लग जाते है। …लगभग सत्तर लाख का इन्वेस्टमेन्ट की बात कर रहे है। …जी। …ठीक है। कल मेरियट होटल मे आ जाइयेगा। वहाँ बैठ कर बात कर लेंगें। इतना बोल कर मै मुड़ कर वहाँ से वापिस अपनी टेबल की ओर चल दिया।

मेज पर रखा हुआ ग्लास वेटर हटा चुका था। वह मुझे वापिस आते हुए देख कर वह एक नया ग्लास मेज पर रख कर चला गया। अपने आस-पास नजर दौड़ा कर मै आराम से बैठ कर एक घूँट भर कर दिमागी जोड़-तोड़ करने बैठ गया। फारुख के पैसों को मै दिल खोल कर लुटा रहा था लेकिन बहुत सा पैसा लौट कर दुगना होता चला जा रहा था। …क्या अब मै तुम्हारे साथ नहीं बैठ सकती? साहिबा मेरे करीब आकर खड़ी हो गयी थी। मै जल्दी से उठ कर खड़ा हो गया… ऐसा क्यों पूछ रही हो? …इसलिये कि तुम मुझे वहीं छोड़ कर वापिस आ गये थे। मैने मुस्कुरा कर कहा… मै तो इसलिये आ गया था कि मुझे लगा कि वह शायद तुमसे कुछ कहना चाहता था। प्लीज बैठो। इतना बोल कर मैने एक बार फिर से वेटर की ओर इशारा किया। उसने तुरन्त एक सिंगल माल्ट लाकर मेज पर रख दी थी। वह मेरे साथ बैठते हुए बोली… तुम यही सोच रहे होगे कि पैसे के लिये मैने तुमसे संपर्क साधा था। …यह कोई राकेट सांईस नहीं है। तुम इसको झुठला तो नहीं सकती। अगर मैने तुम्हें दोस्त माना है तो फिर मै बेकार की बातों मे समय नहीं खराब करता। वह सिर झुकाये बैठी रही तो अबकी बार मैने कहा… तुम अपने पहले अवतार मे ज्यादा अच्छी लग रही थी। …क्या मतलब? …अब तुम अपने जहन मे एक बोझ उठा कर बात कर रही हो जो उस वक्त नहीं था। अचानक वह उठ कर खड़ी होकर बोली… समीर, मेरे साथ चलो। …कहाँ? वह तो तब तक आगे बढ़ गयी थी।

मैने नीलोफर को ढूंढने की कोशिश की परन्तु वह मुझे कहीं दिख नहीं रही थी। मैने कदम तेजी से बढ़ा कर साहिबा के साथ चलते हुए बोला… प्लीज, तुम्हारी फैन को बता तो दूँ कि मै वापिस जा रहा हूँ। वह मुड़कर बोली… मेरी फैन कुछ देर पहले जाहिद साहब के साथ बाहर चली गयी। अब तुम चल रहे हो कि मै जाऊँ। …चल रहा हूँ। प्लीज इतनी जल्दी क्या है? गेट से बाहर निकलने के बाद वह मुस्कुरा कर बोली… ऐसे माहौल मे दम घुटता है। …तुम कैसे आयी थी। …अपनी कार से। …तो मै होटल की कार छोड़ देता हूँ। इतना बोल कर मैने मेरियट की कार को वेलेट द्वारा बुलवा कर वापिस भेज दिया और साहिबा की कार मे बैठ कर उसके साथ चल दिया। उसके चेहरे पर पुरानी मुस्कान वापिस आ गयी थी। …साहिबा तुमने खाना तो खाने नहीं दिया। अब तो कम से कम कहीं आराम से बैठ कर खाना खा लेते है। …आओ तुम्हें एक जगह लेकर चलती हूँ जहाँ का खाना मुझे बेहद पसन्द है। वह मुझे लेकर एफ-7 स्ट्रीट पहुँच गयी थी। रात मे वहाँ दिन निकला हुआ था। चारों ओर छोटी-बड़ी दुकानें, महंगे रेस्त्रां, रेड़ी पर हलीम बिरयानी, इत्यादी से भरमार थी। भीड़ भी कम नहीं थी। अपना चेहरा हिजाब से ढक कर सड़क के किनारे कार खड़ी करके बोली… आओ चले। मै उसके साथ चल दिया। एक किनारे मे रेड़ी लगाये बूढ़े आदमी से बोली… दादाजान दो प्लेट बिरयानी और मटन कोरमा दे दिजिये। …बिटिया यही बैठोगी या घर के लिये पैक कर दूँ? …यहीं बैठ कर खायेंगें। क्यों समीर? मैने जल्दी से सिर हिला दिया था।

एक टूटी हुई बेन्च पर प्लेट लगा कर वह बूढ़ा वहाँ से हट गया। हम दोनो खाना खाने मे जुट गये थे। …साहिबा अगर तुमको किसी ने पहचान लिया तो क्या होगा? …तुम हो न। कह देना की बीवी है बस साहिबा से शक्ल मिलती है। उसकी आँखें मे शरारत झलक रही थी। …साहिबा क्या कभी किसी ने कहा है कि तुम्हारी आँखें बोलती है। खाते-खाते उसका हाथ रुक गया था और वह कुछ पल मेरी ओर देख कर धीरे से बोली… संघर्ष के दिनो मे एक दोस्त ने एक बार ऐसा कहा था। उसकी दिल की पीड़ा एक क्षण मे उसकी आँखों मे झलक आयी थी। …फिर क्या हुआ? वह धीरे से सिर झटक कर बोली… होना क्या था वह एक रोल के लालच मे किसी और का हो गया। इतना बोल कर वह खाना खाने मे जुट गयी थी। खाना समाप्त करने के बाद वह बोली… मेरे होटल या तुम्हारे होटल? …कहीं और चलते है। ऐसी जगह चलो जहाँ पुराना सब कुछ देर के लिये भूला जा सके। वह अचानक मुस्कुरा कर बोली… ओह मै ही अकेली चोट खायी हुई नहीं हूँ बल्कि कोई और भी है। तुम्हें एक जगह लेकर चलती हूँ जहाँ तुम सब कुछ भूल जाओगे। हम वापिस कार मे बैठे और एक दिशा मे चल दिये थे।

इस्लामाबाद शहर के बाहरी हिस्से पर नदी पर बने हुए पुल के पास सड़क से कार उतार कर खड़ी करके वह बोली… आओ मेरे साथ। मै उसके साथ चल दिया। ठंडी रात मे टहलते हुए भी काफी अच्छा लग रहा था। नदी के किनारे एक बड़ी सी चट्टान पर हम दोनो जाकर बैठ गये थे। एक ओर पानी का शोर और रात्री की शांति के साथ आसमान मे चन्द्रमा और झिलमिलाते हुए तारे सब कुछ मिल कर एक रुमानी वातावरण बना रहे थे। …क्या पहले भी कभी यहाँ आयी हो? …यह मेरा निजि स्थान है। जब भी मै विचलित होती हूँ तब कराँची से यहाँ आ जाती हूँ। अपने मन को शांत करने के लिये कुछ समय यहाँ बिता कर वापिस चली जाती हूँ। …साहिबा तुम कराँची मे रहती हो? …हाँ। हमारी फिल्म इंडस्ट्री वहाँ पर स्थित है। सारे टीवी ड्रामों की शूटिंग वहीं होती है। …तुम इस काम कैसे चली आयी? अचानक वह मेरी ओर मुड़ कर बोली… हम यहाँ अपना अतीत भूलने के लिये आये है और तुम उसे बार-बार कुरेदने की कोशिश कर रहे हो। …सौरी। चलो भविष्य के बारे मे बात करते है। …नहीं हम सिर्फ अभी और इस समय की बात करते है। …ओके। एक बार फिर चुप्पी छा गयी थी। हम दोनो अपने अतीत से पीछा छुड़ाने मे जुट गये थे।      

…समीर। …हुँ। …पता नहीं फिर कभी हमारा मिलना होगा कि नहीं। क्या आज रात को तुम मेरे नहीं हो सकते? …मै तो तुम्हारे साथ ही हूँ। …ऐसे नहीं। …तो कैसे। वह चट्टान से उतर कर खड़ी हो गयी और मेरे गले मे बाँहें डाल कर बोली… ऐसे। …ऐसे नहीं। यह कहते हुए मैने उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर हवा मे उठा लिया और उसके चेहरे को अपने सामने लाकर कहा… ऐसे ठीक है। वह मुस्कुरा कर बोली… हाँ यह ठीक है। उसका जिस्म मेरी बाँहों मे कुछ पल स्थिर रहा और फिर मचल कर उसने अपने होंठ मेरी ओर बढ़ा दिये थे। …साहिबा इतना आगे बढ़ने के बाद पीछे लौटना मुश्किल हो जाएगा। …चुप। इतना बोल कर वह मेरे होठों पर छा गयी। कुछ रुमानी वातावरण और कुछ उसकी मदहोशी मे हम एक दूसरे मे खो गये थे। मेरे हाथ उसके जिस्म के उतार चड़ाव को नापने मे जुट गये थे। उसके उभरे हुए उरोज को मैने जैसे ही सहलाया वह खुल कर मस्ती मे झूम गयी थी। मै उसके जिस्म के साथ निरन्तर छेड़खानी कर रहा था। वह मेरी बाँहों मे कभी मचलती और कभी तड़प कर दूर होने की असफल कोशिश करती। हम दुनिया को भुला कर एक दूसरे मे खोये हुए थे कि तभी पुलिस की जीप साईरन बजाती हुई पुल पार करके रुक गयी। साईरन की आवाज ने हमे वापिस यथार्थ मे ला कर बेदर्दी से पटक दिया था। पुलिस ने टार्च की रौशनी मे पुल से नीचे नदी के किनारो का मुआईना किया और फिर कार की ओर चले गये। कुछ देर वह आसपास का मुआईना करने के बाद वापिस चले गये तब हम दोनो हम दोनो चट्टान के पीछे से निकल कर वापिस सड़क पर आ गये थे।

सुनसान सड़क पर दूर-दूर तक कोई नहीं दिख रहा था। …समीर, मेरे दोस्त की कार है। पुलिस कोई गड़बड़ तो नहीं करेगी? …तो तुरन्त अपने दोस्त को खबर करो कि सब कुछ ठीक है। पेट्रोल खत्म होने कारण कार को वहीं खड़ी करके पेट्रोल लेने गयी थी। मैने जैसा उसे समझाया था उसने फोन पर अपने दोस्त को वैसा बता दिया था। कुछ देर के बाद हम वापिस मेरियट होटल की दिशा मे जा रहे थे। वह कार चलाती हुई बोली… समीर, अगर कभी कराँची आओ तो मुझसे जरुर मिलना। …क्या तबरेज के साथ कल तुम नहीं आओगी? …नहीं। यह प्रोड्युसर्स हमे सिर्फ संपर्क साधने के काम मे इस्तेमाल करते है। आज तबरेज जनरल फैज से पैसे की बात करने के लिये यहाँ आया था। …क्या जनरल फैज का काफी पैसा कराँचीवुड लगा हुआ है? …हाँ सब जानते है। मैने तो यहाँ तक सुना है कि बालीवुड पर भी जनरल फैज की गहरी पकड़ है। …अच्छा। …समीर यह बहुत गन्दी लाईन है। दुनिया के दिलों पर हम स्टार बनके राज करते है परन्तु असल जिंदगी मे हम इन जैसे लोगों की रखैल से ज्यादा कुछ भी नहीं है। वह चाहे तो एक मिनट मे हमारी स्टारडम को मिट्टी मे मिला सकते है। …तुम फिर क्यों ऐसी लाईन मे अभी तक हो? …समीर, कैमरे के सामने खड़ा होने का अपना ही नशा होता है। एक बार इंसान को इस नशे की लत लग गयी तो उसकी हालत स्मैकियों और चरसियों से बदतर हो जाती है। मै चुपचाप उसकी बात सुन रहा था लेकिन जनरल फैज और मुंबई का कनेक्शन सामने आते ही मेरा ध्यान उसकी बातों पर से हट गया था। पाकिस्तान के एक प्रभावशाली व्यक्ति की नस का मुझे पता चल गया था। अब उसको समय पर दबाने की युक्ति ढूंढने का काम मेरा था।

साहिबा मुझे मेरियट होटल के बाहर छोड़ कर वापिस चली गयी थी। मै जब अपने कमरे मे पहुँचा तो नीलोफर जाग रही थी। मुझे देखते ही वह झपट कर मेरे पास आकर बोली… तुम कहाँ चले गये थे? …तुम जाहिद के साथ कहाँ गयी थी? वह झेंप कर बोली… तुम्हें किसने बताया? …कौन है यह जाहिद? …पश्तून नेता है। अफगान तालिबान मे उसकी बहुत मजबूत पकड़ है। उसको अपनी मुहिम चलाने के लिये पैसों की जरुरत है। इसी सिलसिले मे उससे बात करने गयी थी। अब तुम बताओ कि इतनी देर तक तुम कहाँ थे? …साहिबा, मुझे इस्लामाबाद घुमाने ले गयी थी। …इन फिल्म वालों के चक्कर मे मत पड़ना। इस लाईन पर आईएसआई की पकड़ बहुत मजबूत है। …मुझे पता है। अब हमे यह सोचना है कि फिल्म इंडस्ट्री की नस कहाँ पर और किसके पास है।

हमेशा की तरह सोने से पहले मैने अपना सेटफोन निकाल कर चेक किया परन्तु कोई नया मेसेज नहीं था।

रविवार, 19 मई 2024

 


 

शह और मात-2

 

नीलम घाटी

खुले आसमान के नीचे बैठ कर रात के अंधकार मे शून्य मे ताकते हुए एक व्यक्ति बड़बड़ाया… तुम कहाँ चली गयी? उसने निगाह उठा कर आसमान मे असंख्य तारों को झिलमिलाते हुए देख कर वह एक बार फिर से विचलित होकर बड़बड़ाया… तुम अकेली अदा को उन दरिन्दों के चंगुल से कैसे छुड़ाओगी। वह कुछ देर अंधेरे को ताकता रहा और फिर उठ कर चल दिया। कुछ दूरी पर खंडहर से मकान की खिड़की से लालटेन की रौशनी उसे आगे बढ़ने के लिये दिशा ज्ञान करवा रही थी। वह यही सोच कर उठा था कि उसके साथी भी अब तक लौटने वाले होंगें। आज रात का मिशन एक चीनी बस थी जो सड़क परियोजना पर काम करने वाले चीनी कामगारों को कैम्प से साईट और साईट से कैंम्प पहुँचाया करती थी। तभी एक धड़धड़ाती हुई पिक-अप की हेडलाईट्स की रौशनी ने कच्चे रास्ते को रौशन कर दिया था। उसको देख कर वह व्यक्ति के कदमों मे एकाएक तेजी आ गयी थी।

वह पिक-अप उसके आगे पहुँच कर रुक गयी थी। रात के अंधेरे मे चिर परिचित नारा गूँजा… नारा-ए-तदबीर अल्लाह-ओ-अकबर। एक-एक करके दस जिहादी हाथ मे एक-47 और क्लाश्नीकोव हवा मे लहराते हुए उतरे और मेरे करीब पहुँच कर एक कतार मे खड़े हो गये थे। …रशीद आज के हमले का क्या हुआ? …भाईजान, हमले के बाद चीनियों सहित उनकी पूरी बस खाई मे धकेल दी थी। …किसी के बचने की उम्मीद? …नहीं भाई। …रशीद, कल तक सेना यहाँ का चप्पा-चप्पा छानने के काम मे लग जाएगी। सभी अपने हथियार और अन्य असला बारुद लेकर मीरमशाह के लिये निकल जाओ। …भाईजान आप? …इस जुमे को छोड़ कर अगले जुमे तक मै भी मीरमशाह पहुँच जाऊँगा। अब चीनियों के खिलाफ हमारी मुहिम का आगाज वहाँ से होगा। …खैबर पख्तून्खुआ की जमीन इनसे खाली कराने का समय आ गया है। …मोहत्सिम, अगले पड़ाव मे हमारी इस जंग मे पश्तून भी जुड़ रहे है। मेरी बात तेहरीक से हो गयी है। …भाईजान, खुदा का लाख-लाख शुक्रिया। …आओ चल कर पहले कुछ खालो फिर आज रात को ही स्थानीय बस या ट्रक से मीरमशाह के लिये निकल जाना। …जी भाईजान। इतनी बात करके वह लोग उस खंडहरनुमा मकान की दिशा मे चले गये थे।

 

उसी वक्त वहाँ से अस्सी मील दूर सड़क पर चार पुलिस वाले खड़े हुए दबी जुबान मे बात कर रहे थे। …खबर मिली है कि वलीउल्लाह की खुदाई शमशीर ने चीनियों की बस पर हमला किया था। उस बस मे करीब चालीस चीनी तकनीकी स्टाफ और एक पाकिस्तानी ड्राईवर मारे गये है। वायरलैस पर हेडक्वार्टर्स पर इस दुर्घटना की खबर करो। …हेड साहब, खुदा के लिये यह सब बताने की जरुरत नहीं है। अगर एक बार फिर उस तंजीम का नाम लिया तो सेना हमारा जीना मुश्किल कर देगी। पिछली बार का परिणाम याद है कि कैसे सेना ने दो महीने तक हमारे साथ टार्चर किया था। इस बार सड़क दुर्घटना बता कर आप पूरे महकमे पर एहसान करेंगें। तभी दूसरा पुलिस वाला बोला… हेड साहब, वैसे भी बस तो खाई मे गिरी है। हमे क्या पता कि कैसे गिरी थी। …जमीन पर पड़े हुए गोलियों के खोल का क्या करोगे? …इन्हें अगर हटा देंगें तो फिर खाई मे गिरने का सारा दोष ड्राईवर अन्यथा उबड़-खाबड़ सड़क पर आसानी से लग जाएगा। हेड कान्स्टेबल कुछ देर सोचने के बाद बोला… शमीम, वायरलैस पर हेडक्वार्टर्स को खबर दे दो कि चीनियों को लेकर जाने वाली बस खाई मे गिर गयी है। फिलहाल पुलिस की तहकीकात चल रही है। यह सूचना देने के लिये शमीम तुरन्त पुलिस की पिक-अप की दिशा मे निकल गया और बाकी सिपाही सड़क को साफ करने मे लग गये थे।

रात गहरी हो गयी थी। अपनी पिक-अप को वीराने मे खड़ी करके मैने पिक-अप के गुप्त टूल बाक्स से अपना सेटफोन निकाल कर आन किया। फोन को नेटवर्क से जुड़ने मे जो समय लगा तब तक मै अपनी बातचीत का मसौदा तैयार कर चुका था। नेटवर्क से जुड़ते ही मैने सेन्ट्रल कमांड का नम्बर मिलाया तो पहली घंटी बजते ही जनरल रंधावा ने तुरन्त फोन लेते हुए बोले… समीर। …जी सर। आजाद कश्मीर मे अब हमारा काम खत्म हो गया है। यहाँ पर हमारा नेटवर्क सुचारु रुप से काम करना शुरु कर दिया है। खुदाई शमशीर नाम की स्थानीय तंजीम ने पिछले दो महीने मे छह बार चीनियों पर बड़ा हमला करके उनका जान और माल का काफी नुकसान किया है। हमने चीनी कंपनियों के खिलाफ स्थानीय लोगों मे पनपते हुए रोष को दिशा देकर खुदाई शमशीर को गठन किया है। उस तंजीम के प्रति चीनियों के खेमे मे अब काफी असंतोष व्याप्त है। …आगे क्या करने की सोच रहे हो? …सर, हम मीरमशाह के लिये निकल रहे है। तेहरीक से बात करके इस मुहिम मे फिलहाल पश्तूनी तंजीमो को जोड़ने की कोशिश चल रही है। …मीरमशाह मे क्या करने की सोच रहे हो? …सर, पश्तून कबीलो के साथ उस इलाके वजीरी और मेहसूद कबीलों को इकठ्ठा करने की कोशिश कर रहा हूँ। मैने घड़ी पर नजर डाली तो बात करते हुए पाँच मिनट होने वाले थे। मैने जल्दी से कहा… सर, टाइम हो गया है। एक हफ्ते के बाद इसी टाईम पर आपसे संपर्क करुँगा। इतना बोल कर मैने कनेक्शन काट दिया।

मैंने सेटफोन बन्द करके वापिस उसी टूल बाक्स मे रखा और फिर स्टीयरिंग व्हील संभाल कर पिक-अप स्टार्ट करके गियर बदल कर आगे बढ़ गया। मुझे सीमा पार किये छह महीने से ज्यादा हो गये थे। यहाँ आने के मेरे बहुत से मकसद हो सकते थे परन्तु अंजली और बच्चों को यहाँ से सुरक्षित निकालना मेरी प्राथमिकता थी। इसके बारे मे सिर्फ नीलोफर को पता था। हम दोनो जानते थे कि अंजली के लिये यह स्थान दोजख से भी ज्यादा भयानक है। यहाँ पर उसके खिलाफ कोर्टमार्शल के आदेश जारी हुए काफी समय हो गया था। तभी से मौत की तलवार उसके सिर पर सैदेव लटकी हुई थी। अगर वह पाकिस्तानी सेना के हाथ लग गयी तो उसकी बेहद दर्दनाक मौत निश्चित थी। मै जानता था कि वह अपनी जान हथेली पर लिये यहाँ सिर्फ अदा को ढूंढने के उद्देश्य से आयी थी। जब तिगड़ी ने मुझसे ब्रिगेडियर चीमा के रिप्लेसमेन्ट की बात की तभी से मै अपनी इसी योजना पर काम करने बैठ गया था। इसी उद्देश्य से मैने आप्रेशन अज्ञातवीर की रचना की थी। अंजली के बारे मे मुजफराबाद और उसके सभी पुराने ठिकानों पर पता करने के बाद भी जब कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो आजाद कश्मीर मे अपना बेस बनाने के लिये मै नीलम घाटी मे आ गया था।

काफी देर से पिक-अप चला रहा था। रात गहरी होती जा रही थी। हवा मे बड़ती हुई नमी और ठंडक मुझे आने वाली बारिश की ओर इशारा कर रही थी। तभी मेरी नजर एक ढाबे पर पड़ी तो मैने अपनी पिक-अप सड़क से उतार कर उसके सामने खड़ी कर दी। जब तक मैने खाना समाप्त किया तब तक तड़तड़ाती बारिश होनी शुरु हो गयी थी। पहाड़ी रास्ते पर बारिश मे ड्राईविंग को वैसे ही काफी खतरनाक माना जाता है। रात के अंधेरे मे बारिश मे पहाड़ी रास्ते पर ड्राईविंग निश्चित मौत को निमन्त्रण देने जैसा है। मैने पिक-अप मे ही रात बिताने का फैसला कर लिया। पिक-अप की सीट को एड्जस्ट करके मै आँखें मूंद कर बैठ गया। पिक-अप की टीन की चादर पर मूसलाधार बारिश का तड़-तड़ के शोर के कारण नींद आँखों से कोसों दूर थी। एक बार फिर रात के अंधेरे मे अपने अतीत की यादों मे झाँकने का मुझे मौका मिल गया था।

यह सारी कहानी उस दिन शुरु हुई थी जिस दिन अजीत सर ने मुझे अस्थायी ब्रिगेडियर के पद पर नियुक्त करके ब्रिगेडियर चीमा के आफिस का चार्ज लेने के लिये श्रीनगर भेजा था। सर्जिकल स्ट्राईक्स के लिये लाँचिंग पैड्स के कुअर्डिनेट्स को निकालने के लिये मुझे श्रीनगर भेजा गया था। मुजफराबाद जाते हुए जन्नत ने कुछ लश्कर और जैश के महत्वपूर्ण लाँचिंग पैड्स के कुअर्डिनेट्स निकाले थे। मुझे विश्वास था कि वह कुअर्डिनेट्स ब्रिगेडियर चीमा के कंप्युटर पर कहीं रखे हुए थे। उन कुअर्डिनेट्स को ढूँढते हुए मुझे कंप्युटर पर रा से जुड़ी हुई कुछ बेहद विस्फोटक फाईलें भी मिल गयी थी। उन फाईलों मे एक अति गोपनीय त्रिपक्षीय समझौते का विवरण दिया हुआ था। एक ओर कुछ पाकिस्तानी चरमपंथी तंजीमे और अफ़गान तालिबान और उससे जुड़ी हुई कुछ छोटी कबायइली तंजीमे थी, दूसरी ओर अमरीकन फोर्सेज व सीआईए  और तीसरी पार्टी भारतीय रा थी। यह समझौता अफगानिस्तान से अमरीकी और नाटो फोर्सेज के सुरक्षित बाहर निकलने का ब्लू प्रिंट था। उन फाईलों को देख कर मेरे दिमाग मे एक योजना ने जन्म लिया जिसके कारण मै अंजली को वापिस लाने के लिये पाकिस्तान मे प्रवेश कर सकता था। सर्जिकल स्ट्राईक्स के दो दिन बाद मैने तिगड़ी के सामने अपना ब्लू प्रिंट खोल कर रखा तो तीनो चौंक गये थे। मैने तिगड़ी के बताये हुए हक डाक्ट्रीन के मास्टर प्लान को कार्यान्वित करने के ब्लू प्रिंट मे चीन की अति महत्वकांक्षी सड़क परियोजना को आधार बनाया था। इस ब्लू प्रिंट के जरिये तिगड़ी के दो उद्देश्य सिद्ध हो रहे थे। एक ओर हक डाक्ट्रीन आजाद कश्मीर मे कार्यन्वित हो रही थी और दूसरी ओर ब्रिगेडियर चीमा का रिप्लेसमेन्ट भी मिल गया था। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिये तिगड़ी ने बड़ी आसानी से मुझे अपनी स्वीकृति दे दी थी। जैसे ही मुझे तिगड़ी ने ग्रीन सिगनल दिया तो मै तुरन्त आजाद कश्मीर की ओर निकल गया था।

लाहौर मे मुझे आजाद कश्मीर के कारोबारियों से पता चला था कि स्थानीय लोगों मे इस सड़क परियोजना के प्रति काफी रोष था। इसी कारण मैने नीलम घाटी मे अपना पहला बेस बनाने का निश्चय किया था। चीनी कामगारों का स्थानीय लोगों के प्रति व्यवहार काफी खराब था। उनकी शराब और सिगरेट पीने की आदत तो पहले से ही जगजाहिर थी परन्तु व्यभिचारिता के कारण वह काफी बदनाम हो गये थे। पाकिस्तानी दलाल अपने चीनी ग्राहकों के लिये स्थानीय गरीब लड़कियों को जबरदस्ती देह व्यापार के धंधे मे डालने लगे थे। शुरुआती दौर मे तो देह व्यापार का काम उनके कैंम्प तक ही सिमित था परन्तु धीरे-धीरे पैसो के लालच मे अब बहुत से स्थानीय गरीब परिवारों ने भी अपनी लड़कियों का सौदा खुले आम करना शुरु कर दिया था। इस बात का काफी रोष वहाँ के मुस्लिम सामाज मे पनप रहा था। हमारे हस्तक्षेप के कारण स्थानीय मस्जिदों के मुफ्तियों और मौलवियों ने उस आग को धीरे-धीरे हवा देना शुरु कर दिया था। नीलोफर की मदद से कुछ स्थानीय लश्कर और जैश के लोगों को भी मैने अपने साथ जोड़ना आरंभ कर दिया था। पहले वहाँ पर छुटपुट चोरी ओर लूट की कुछ वारदाते हुआ करती थी परन्तु मैने उस रोष को संगठित अपराध मे तब्दील कर दिया था। मेरे छह साथी तो गुरिल्ला युद्ध मे पूर्णता निपुण थे जिसके कारण बड़ी आसानी से हम कभी चीनीयों के गोदाम पर हमला करके उनका सामान लूट कर स्थानीय व्यापारियों को बेच देते थे। कभी उनकी गाड़ियाँ चोरी करके उनके पार्ट्स निकाल कर ऊँचे दामों मे उनको ही वापिस बेच देते थे। शुरुआती दौर मे ऐसा करने से स्थानीय युवकों ने हमारे साथ जुड़ना आरंभ कर दिया था। हमने स्थानीय मदरसों के बच्चों को पैसों का लालच देकर चीनी कामगारों पर पत्थरबाजी भी करवाना आरंभ कर दिया था। मैने जो कुछ मकबूजा कश्मीर मे देखा व सीखा था वही हमने चीनी कामगारों और स्थानीय पुलिस के साथ करना शुरु कर दिया था। चार महीनों मे हमने अपना स्थानीय लड़ाकुओं का एक मजबूत नेटवर्क खड़ा कर दिया था। जब सेना की ओर से दबाव बढ़ने लगा तब वहाँ पर एक दुर्दान्त आतंकवादी तंजीम खुदाई शमशीर का जन्म हुआ था।

नीलोफर की मदद से तब तक मेरा संपर्क कश्मीर से जुड़ी हुई लगभग सभी तंजीमों के वरिष्ठ लोगों के साथ एक अमीर पाकिस्तानी निवेशक के रुप मे हो गया था। फारुख की कमायी को मै खुले दिल से इस्तेमाल करके अपना फाईनेन्स का कारोबार बढ़ाने मे लगा हुआ था। कट्टरपंथी तंजीमो को पैसों की वसूली के काम मे लगा कर मैने उनके लिये कमाई के लिये नये साधन की व्यवस्था कर दी थी। लखवी परिवार की सलाह और मदद से लाहौर से लेकर पेशावर तक सभी चोर बाजारों मे मेरी पहुँच हो गयी थी। लाहौर से करांची तक सभी बड़े शहरों के बिल्डरों ने भी मेरे साथ संपर्क साधना शुरु कर दिया था। खुदाई शमशीर का नेटवर्क भी धीरे-धीरे इस्लामाबाद से कराँची और लाहौर से क्वेटा तक फैलना शुरु हो गया था। निवेशक होने के कारण पैसे उगाही का सारा मैने कमीशन पर छोटी और बड़ी तंजीमो से करवाना शुरु कर दिया था। इस तरह मेरी एक निजि फौज तैयार होती जा रही थी। इस नेटवर्क के कारण चीनी सामान एक ही रात मे अलग-अलग चोर बाजारों मे पहुँचने लगा था। चार महीने मे ही चीनी कंपनियों ने शोर मचाना शुरु कर दिया था। गरीबी और प्राकृतिक विषमताओं से दबे और कुचले स्थानीय लोगो को खुदाई शमशीर मे एक हमदर्द दिखाई देने लगा था। चीनीयों ने जैसे ही शहरों मे चाईना टाउन बना कर अपने पाँव जमाने की कोशिश करी तो खुदाई शमशीर ने उन पर हमले और अपहरण करना आरंभ कर दिया था। दबाव मे आकर पुलिस वाले अगर स्थानीय लोगों पर अत्याचार करने की कोशिश करते तब हमारे पैसों पर पलने वाली स्थानीय स्वयं सेवी जमात उनके पक्ष मे कोर्ट पहुँच कर उनको और उनके परिवार को तुरन्त राहत पहुँचाने की कोशिश मे जुट जाती थी। छह महीने के अथक परिश्रम से अजाद कश्मीर को मैने मकबूजा कश्मीर की स्थिति मे लाकर खड़ा कर दिया था।

खुदाई शमशीर ने कुछ स्थानीय युवकों को राजनीतिक पटल पर भी मदद करना आरंभ कर दिया था। स्थानीय मदरसों को पैसों से मदद देकर उनमे पढ़ने वालों को युवा नेताओं के पीछे खड़ा करने लगा था। आजाद कश्मीर मे खुदाई शमशीर की पकड़ स्थानीय सरकार, स्थानीय राजनीति व स्थानीय समाज मे मजबूत होने लगी थी। जैसे ही चीनी कंपनियों ने अपनी फौज को अपने गोदाम, आफिस व साईट पर तैनात किया वैसे ही लूटपाट ने आतंकवाद का रुप ले लिया था। कभी उनके गोदाम मे विस्फोट होता और कभी उनके आफिस मे विस्फोट हो जाता था। कभी उनकी बस मे विस्फोट होता और कभी प्रोजेक्ट साईट पर स्थानीय मजदूर हंगामा खड़ा कर देते थे। जब चीनीयों को जान-माल का नुकसान होने लगा तब इस्लामाबाद और रावलपिंडी के हस्तक्षेप के कारण रेन्जर्स की एक पोस्ट उनकी प्रोजेक्ट साईट पर स्थापित कर दी गयी थी। इतना सब कुछ होने के बावजूद आतंकवादी हमले फिर भी लगातार हो रहे थे क्योंकि मेरी टीम कबाईलियों के भेष मे चीनी ठिकानों के साथ स्थानीय पुलिस और रेन्जर्स की चौकियों पर भी हमला कर रहे थे। एक तरह से अजाद कश्मीर के प्रशासन को लकवा मार गया था। चीनी कंपनियों के दबाव के कारण खुदाई शमशीर को रोकने के लिये आईएसआई और पाकिस्तानी सेना भी आजाद कश्मीर मे सक्रिय हो गयी थी। अब हमारे लिये खतरा बढ़ता जा रहा था।

एक रात मै अपने साथियों को बुला कर इस मसले पर चर्चा कर रहा था। …अब यहाँ से हमारे हटने का समय आ गया है। कुछ ऐसा धमाका होना चाहिये जिससे वह इस्लामाबाद और बीजिंग के अखबार की सुर्खिया बन जाये। अब यहाँ की खुदाई शमशीर की बागडोर किसी स्थानीय युवक के हाथ मे देने का समय आ गया है। आपके ख्याल से क्या असद इस जिम्मेदारी को उठा सकता है? नीलोफर ने मेरी बात काटते हुए कहा… समीर, किसी एक युवक के बजाय एक मदरसे को चुनना बेहतर होगा। आखिर हाफिज सईद ने लश्कर और मसूद अजहर ने जैश का गठन ऐसे ही किया था। मेरे साथियों ने उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा… सर, यही ठीक रहेगा। काफी सोच विचार करने के पश्चात इस्लामिया मस्जिद के मौलवी अली मोहम्मद बतालवी और उनके मदरसे का चयन करके हम अपनी निकासी की रणनीति बनाने मे जुट गये थे।

मौलवी अली मोहम्मद पहले पीरजादा मीरवायज के लिये नाल्तार घाटी मे मदरसा चलाया करता था। मै उसको एक निवेशक की भांति मिलने गया था। …मौलवी साहब, मै तो पूँजी निवेशक हूँ। मेरा काम गिलगिट से लेकर मुजफराबाद तक फैला हुआ है। मुझ पर खुदाई शमशीर की ओर से दबाव डाला जा रहा है कि आपकी रुपये-पैसे से मदद करुँ क्योंकि आप खुदाई शमशीर के कट्टर समर्थक है। मौलवी साहब के लिये अपनी खुद की पहचान बनाने का यह एक सुनहरा मौका था। उसने तुरन्त बड़-चढ़ कर खुदाई शमशीर के साथ अपने मजबूत रिश्ते का बखान करना शुरु कर दिया। …जनाब, खुदाई शमशीर ने मुझसे आपकी मस्जिद को दस लाख रुपये सालाना देने की पेशकश की है। उनका कहना है कि वह अब आपके द्वारा खुदाई शमशीर के मदरसे गिलगिट और बाल्टिस्तान मे खोलना चाहते है। खुदाई शमशीर का बस एक ही उद्देशय है कि वह इस इलाके मे चीनीयों की पकड़ को कमजोर करना चाहते है। अब आप ही बताईये कि आपका इस बारे मे क्या विचार है?

मोहम्मद बतालवी अपनी दाड़ी पर हाथ फिराते हुए बोला… जनाब, सालाना दस लाख रुपये से क्या होगा? इंसान की बुद्धि पर जब लालच हावी हो जाता है तब उसकी मति मारी जाती है। मौलवी साहब हमारे जाल मे फंस गये थे। …मौलवी साहब, अगर आप खुदाई शमशीर को मजबूत करते हुए दिखेंगें तो वह समय-समय पर दूसरे लोगों से भी आपको रुपये-पैसे की मदद देने का प्रयास करेंगें। उनका सोचना है कि आपके काम को देख कर दस लाख की रकम आपको हर महीने मिलनी चाहिये परन्तु वह रकम आपके काम पर निर्भर करेगी। मौलवी साहब तो इतनी बात सुन कर खुदाई शमशीर के मुरीद हो गये थे। …जनाब उनके द्वारा कुछ हथियार वगैराह का भी अगर इंतजाम हो गया तो फिर मेरा काम आसान हो जाएगा। …मौलवी साहब, मै तो व्यापारी आदमी हूँ। हथियार वगैराह के लिये आपको उनसे बात करनी पड़ेगी। इतना बोल कर मैने नोटों की गड्डियाँ उनके सामने रखनी आरंभ कर दी थी। …यह दस लाख रुपये पेशगी के तौर पर दे रहा हूँ। बस आप उनको खबर कर दिजियेगा कि आपको पैसे मिल गये है। मेज पर नोटों की गड्डियाँ रखी देख कर मौलवी साहब जल्दी से बोले… आप बेफिक्र रहिये। आज ही उनको खबर कर दूँगा कि मुझे पैसे मिल गये है। इतनी बात करके मै वापिस चल दिया था।

उसी शाम दिन ढलने के बाद खुदाई शमशीर ने साईट से लौटती हुई चीनी कामगारों की बस पर हमला हो गया था। एक भी यात्री बच कर निकलने के योग्य नहीं बचा था। उसके बाद गोलियों से छलनी बस को खाई मे लुड़का कर हमारी टीम रात के अंधेरे मे नाल्तार घाटी छोड़ कर मीरमशाह की दिशा मे निकल गयी थी। असद नामक एक युवा नेता को नाल्तार घाटी की बागडोर थमा कर उसी रात को मै इस्लामाबाद के लिये निकल गया था। छह महीने मे बहुत कुछ हो गया था परन्तु जिसकी तलाश थी वह न जाने कहाँ और किस हाल मे थी। अंजली का ख्याल आते ही मै उठ कर बैठ गया। मैने कलाई पर बंधी घड़ी पर एक नजर डाली तो लेटे हुए मुझे अभी मुश्किल से एक घंटा हुआ था। बारिश अभी भी अपने पूरे जोर पर थी। मैने सिर घुमा कर खिड़की से बाहर देखा तो ढाबे पर कुछ और गाड़ियाँ और ट्रक आकर खड़े हो गये थे। मैने पानी की बोतल निकाल कर कुछ घूँट गटक कर ढाबे की दिशा मे देखा तो अब तक वहाँ पर रुकने वालो के कारण काफी चहल-पहल हो गयी थी। एक बार फिर से मै कमर सीधी करने की मंशा से आँख मूंद कर लेट गया था।

ट्रक के हार्न ने अचानक मुझे जगा दिया था। बारिश बन्द हो चुकी थी। सुबह की पहली  किरण ने आसमान मे लालिमा बिखेर दी थी। एक ही अवस्था मे पड़े रहने के कारण मेरा जिस्म अकड़ गया था। मै अपनी पिक-अप से उतर कर टायलेट की दिशा मे चला गया। चाय पीकर मैने नीलोफर को फोन लगाया तो कुछ देर घंटी बजने के बाद उसकी आवाज कान मे पड़ी… समीर। …तुम बालाकोट पहुँच गयी। …हाँ कल रात को ही यहाँ पहुँच गयी थी। तुम कहाँ पहुँचे? …पता नहीं लेकिन आज दोपहर तक बालाकोट पहुँच जाऊँगा। अंजली या जोरावर का कुछ पता चला? …नहीं। वह तुरन्त जल्दी से बोली… समीर दिल छोटा करने की जरुरत नहीं है। अगर उसकी खबर नहीं मिली है तो यह मान लो कि वह अभी भी सुरक्षित है। इस्लामाबाद पहुँच कर हम नये सिरे से उसे तलाश करेंगें। …ठीक है। मै दोपहर तक पहुँच जाऊँगा। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। एक बार फिर से पिक-अप स्टार्ट करके मेरी यात्रा आरंभ हो गयी थी। बारिश के कारण पहाड़ी सड़क कीचड़ से अटी हुई थी। पहाड़ पर चढ़ाई मे अगले-पिछले टायर लगातार फिसल रहे थे। एक ट्रक के पीछे मैने पिक-अप लगा दी थी। उसके ट्रेक पर पिक-अप चलानी आसान हो गयी थी। रास्ता जरुर कठिनाईयों भरा था परन्तु हर ओर मुझे कश्मीर की वादी जैसा दृश्य दिख रहा था। सड़क के दोनो तरफ चीनार के ऊँचे दरख्त और बरसाती नाले दिख रहे थे।

दोपहर तक मै बालाकोट मे प्रवेश कर चुका था। सनराईज होटल मे नीलोफर मेरा इंतजार कर रही थी। उसके कमरे मे पहुँच कर सबसे पहले मैने बाथरुम का रुख किया। गर्म पानी से नहा कर जिस्म की थकान उतार कर जब बाहर निकला तब तक नीलोफर ने खाने की व्यवस्था कर दी थी। खाना खाने के बाद मै बिस्तर पर फैलते हुए बोला… कल बारिश होने के कारण सारी रात पिक-अप मे गुजारनी पड़ी थी। सारा जिस्म अकड़ गया है। नीलोफर मेरे साथ लेटते हुए बोली… अब मुझे तुम्हारी आदत हो गयी है। उसको चिढ़ाने की मंशा से मैने पूछा… तो क्या अब तुम्हें अकबर की कमी नहीं खलती? वह आँखें तरेर कर बोली… वह मेरे लिये खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं है। क्या कभी सारा और रुख्सार को तुम अंजली की तरह याद करते हो? उसकी बात मुझे नश्तर की भाँति चुभी लेकिन उसने मुझे आईना दिखा दिया था। मैने झपट कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर धीरे से कहा… सौरी। यह जान लो कि तुम्हारी कमी कोई पूरा नहीं कर सकती। …अंजली भी नहीं? …अंजली भी नहीं क्योंकि तुमसे मैने जिन्दगी भर का पाक करार किया है। हम बात कर रहे थे परन्तु हमारे बीच मे एकाकार की आग धीरे-धीरे सुलगने लगी थी। पता नहीं क्यों लेकिन नीलोफर के जिस्म को छूते ही मुझे आफशाँ के होने का आभास प्रतीत होता था। आफशाँ जैसी जिस्मानी उतार-चढ़ाव के कारण मतिभ्रम होने की संभावना हो सकती थी परन्तु एकाकार के पलों मे उसकी तेज चलती हुई साँसे, जिस्मानी सिहरन और चरम पर पहुँच कर जिस्मानी कंपन और थरथराहट मे भी समानता होने के कारण वह मुझे आफशाँ की प्रतिमूर्ती लगती थी।

मैने धीरे से उसके गाल पर अपने होंठ रगड़ते हुए आगे बढ़ा तो उसने अपने कँपकपाते होंठ मेरे होंठों पर टिका दिये थे। मै आँखें मूंद कर उसके होंठों का रस निचोड़ने मे जुट गया था। वह भी मेरा साथ देने के लिये व्याकुल होती जा रही थी। कभी उसके गाल और कभी उसके होंठ मेरे निशाने पर होते और कभी वह मुझ पर हावी हो जाती थी। जब कपड़े चुभने लगे तो आनन फानन मे हम दोनो ने एक दूसरे के कपड़े उतारने मे जुट गये। कुछ ही पलो मे दो नग्न जिस्म एक दूसरे की कामाग्नि भड़काने मे जुट गये थे। उसके होंठों का रसपान करते हुए मैने पहला हमला उसकी उन्नत कठोर पहाड़ियों पर करना आरंभ कर दिया था। एक पहाड़ी को मेरा हाथ कभी सहलाता और कभी रौंदता। मेरी उँगलियों मे फँसे हुए भूरे स्तनाग्र को कभी पकड़ कर खींचता और कभी तरेड़ता और कभी दबा देता। वह तड़प कर मेरी बाँहों मे मचलती और कभी बल खा कर छूटने की कोशिश करती। मेरा मुख कभी कलश पर टिक कर और कभी स्तनाग्र से रस सोखता, कभी होंठों के बीच फँसा हुआ स्तनाग्र मेरी जुबान का प्रहार सहता और कभी बेचारा दांतों के बीच फँस कर छटपटाता। हर वार पर वह तड़प उठती थी। कभी छूटने की चेष्टा करती और कभी मेरा सिर पकड़ अपने सीने मे जकड़ लेती। एकाकार के समय नीलोफर किसी दूसरी दुनिया मे पहुँच जाती थी। उस वक्त उसके साथ कुछ वैसा ही हो रहा था।

बेडरुम मे बस उसकी आहें और सिस्कारियाँ गूंज रही थी। मैने करवट लेकर नीलोफर को अपने जिस्म से ढका कि तभी उत्तेजना मे फुफकारते हुए मदमस्त कामांग ने उसकी जाँघ पर चोट मारी तो वह अचकचा कर हमलावर को पकड़ने मे जुट गयी। मस्ती मे लहराते हुए अजगर को उसने गरदन से पकड़ कर धीरे से अपने स्त्रीत्व के द्वार पर टिका कर रगड़ने लगी। उसके पुष्ट नग्न गोल नितंब मेरे शिकंजे मे फँस गये थे। मैने धीरे से दबाव बढ़ाया तो उसके मुख से उत्तेजना भरी आह निकल गयी थी। मेरा कामांग अन्दर सरक गया था। मै कुछ पल रुका और फिर लगातार दबाव बढ़ाता चला गया और एक आँख वाला अजगर सारी बाधाएँ पार करके अन्दर सरकता चला गया जब तक हमारे जोड़ एक दूसरे टकरा नहीं गये थे। उसके चेहरे पर उत्तेजना की लहर दिख रही थी। एक पल रुक कर हम दोनो अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गये थे। कामावेश मे सिर्फ सिस्कारियाँ गूँज रही थी और कमरे मे चक्रवाती तूफान वेग पकड़ चुका था। मेरे हर वार पर उसका जिस्म का पोर-पोर थरथरा उठता था। एक पल आया कि हम दोनो के लिए वक्त थम सा गया था। वह जोर से काँपी और धनुषाकार बनाते हुए उसका जिस्म हवा मे उठ गया। तभी उसके जिस्म ने तीव्र झटका खाया और फिर झरझरा कर बहने लगी। अगले कुछ पलों मे काँपते हुए वह बिस्तर पर लस्त हो कर पड़ गयी। तभी मुझे ऐसा एहसास हुआ कि जैसे मेरे कामांग को उसने अपने होंठों मे जकड़ कर दोहना शुरु कर दिया है। उसके गदराये हुए जिस्म के हर स्पंदन से मेरे जिस्म मे लावा खौलता चला जा रहा था। अचानक मेरे सारे बाँध छिन्न-भिन्न हो गये और तभी ज्वालामुखी मे विस्फोट हुआ और कामरस बेरोकटोक बहने लगा। हमारी साँसे उखड़ रही थी। गहरी साँसे लेते हुए हमने अपने आपको सयंत किया और फिर हम एक दूसरे को बाहों ने लेकर लस्त हो कर बिस्तर पर पड़ गये थे।

जब आँख खुली तब तक अंधेरा हो गया था। मैने बेड के पास लगे हुए स्विच को आन करके कमरे को रौशन किया तो नीलोफर ने पल्कें झपका कर आँखें खोली और मुझे देख कर मुस्कुरा कर बोली… तुम्हारी कमी कोई पूरा नहीं कर सकता। वह उठते हुए बोली… कल सुबह चलेंगें। …नहीं, तुमने मेरी सारी थकान सोख ली है। तुम चेक आउट करो और चलो। अब इस्लामाबाद पहुँच कर आराम करेंगें। कुछ ही देर मे हम इस्लामाबाद की दिशा मे जा रहे थे। रास्ते मे चिल्लास कोलोनी टाउन पर हाईवे-15 व 35 के चौराहे पर पहुँचते ही वह बोली… समीर, मुजफराबाद मे मीरवायज की हवेली मे कारिन्दो को छोड़ कर और कोई नहीं है। सारे घरवाले न जाने कहाँ चले गये। हर कोई यही कह रहा है कि पीरजादा अपने टोले को लेकर अपनी मस्जिदों और मदरसों का नीरिक्षण करने के लिये निकले हुए है। …पीरजादा के बारे मे सोचना छोड़ दो। इतना बोल कर मैने अपनी पिक-अप हाईवे-35 की दिशा मे मोड़ दी थी।

अगली सुबह हम इस्लामाबाद पहुँच गये थे। एक आलीशान पाँच सितारा होटल मे हम दोनो रुक गये थे। मै पहली बार इस्लामाबाद मे आया था। चौड़ी और साफ सड़कें देख कर मुझे किसी युरोपीय देश की राजधानी मे आने का आभास हो रहा था। गिलगिट और मुजफराबाद का अनुभव होने के कारण यह शहर तो जन्नत की भाँति लग रहा था। गिलगिट से इस्लामाबाद तक की सड़कों की हालत बदहाल थी। बड़े-बड़े गड्डे, जगह-जगह से टूटी और उधड़ी हुई सड़क किसी भी मायने मे सड़क नहीं कही जा सकती थी। जब बिस्तर पर पड़े उसके बाद करवट लेने की हिम्मत भी नहीं बची थी। सारा बदन अकड़ गया था।  हम दोनो दोपहर तक सोते रहे थे। लघुशंका के दबाव के कारण मुझे जबरदस्ती उठना पड़ा था। उनींदी आँखों से कलाई पर बंधी हुई घड़ी पर नजर डाली तो दोपहर के तीन बज रहे थे। मै आराम से तैयार होने के लिये चला गया था। जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक नीलोफर भी जाग गयी थी। मुझे बाहर निकलते हुए देख कर वह भी तैयार होने के लिये चली गयी। खाने का आर्डर देने के बाद मै कमरे की बालकोनी मे चला आया था। वहाँ से इस्लामाबाद शहर का मनोरम नजारा मेरे लिये एक दम नया था। पहाड़ों के बीच सुन्दर वादी मे स्थित इस्लामाबाद शहर किसी जन्नत से कम नहीं लग रहा था। सड़कें, ऊँची इमारतें व चमचमाती विदेशी गाड़ियाँ वहाँ की वैभवता का बखान कर रही थी।

…समीर। नीलोफर की आवाज सुन कर मै वापिस कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… दोजख से जन्नत मे आ गये है। वह मुस्कुरा कर बोली… यह जन्नत सिर्फ 120 मील तक सिमित है। उसके बाद तो दोजख ही मिलेगी। खाना मेज पर लगा कर वेटर जा चुका था। खाते हुए नीलोफर ने कहा… समीर, अब तुम्हें यहाँ के उच्चवर्गीय और प्रभावशाली परिवारों मे अपनी जगह बनानी पड़ेगी। पहले हम कुछ खास लोगों से मिल लेते है। …तुम यहाँ पर किनसे मिलना चाहती हो? …समीर, इस्लामाबाद शहर पाकिस्तानी उच्चवर्गीय और प्रभावशाली सोसाईटी का केन्द्र है। कुछ पुराने लोगों से संपर्क करके देखती हूँ कि आजकल यहाँ की पार्टी सर्किट का क्या हाल है। अगर तुम्हें यहाँ पर अपने पाँव जमाने है तो कुछ खास परिवारों की नजरों मे आना जरुरी है। पार्टियों मे आसानी से तुम अपनी पहचान बना सकते हो। खाना समाप्त करने के बाद वह बोली… मै कुछ देर के लिये बाहर जा रही हूँ। मैने कुछ नहीं कहा और अपने बेड पर फैल कर अगले कदम के बारे मे सोचने लगा। कुछ ही देर मे नीलोफर बन संवर कर बाहर चली गयी थी।

मैने अपना सेटफोन निकाला और उसे आन करके संदेश बाक्स को चेक किया तो कोई संदेश नहीं था। मैने जनरल रंधावा के नाम मेसेज टाइप करना शुरु किया…

सर, मै इस्लामाबाद पहुँच गया हूँ। आजाद कश्मीर मे पहला चरण पूरा हो गया है। चीन की सड़क परियोजना के खिलाफ अब वहाँ की जनता हो गयी है। दूसरा चरण शुरु करने से पहले मुझे यहाँ पर अपना बेस तैयार करना है। अगले हफ्ते आपको अपनी रिपोर्ट दूँगा। खुदा हाफिज।

अपना मेसेज भेज कर मै जैसे ही अपना फोन स्विच आफ करने जा रहा था कि तभी मेरा फोन घरघरा उठा था। मेसेज बाक्स मे एक मेसेज डिस्प्ले दिख रहा था। मैने जल्दी से उस मेसेज को खोल कर देखा तो वह मेसेज उर्दू मे कुछ इस प्रकार था…

जोरावर मुजफराबाद नहीं पहुँचा। मै अदा को लेकर ही अब वापिस आऊँगी। क्या आप मुझसे खफा है? होना भी चाहिये लेकिन क्या करुँ मै अपने दिल के आगे मजबूर हूँ। मै नहीं आती तो आप आते। काफिरों का दोजख मे आना मना है। 

अंजली की ओर से आखिरी मेसेज मुझे मेरे स्मार्टफोन पर मिला था। उसके बाद से हमारे बीच का संवाद टूट गया था। पहली बार उसका मेसेज मेरे सेट्फोन पर आया था। उसको मेरे सेटफोन का नम्बर किसने दिया? यह प्रश्न अब मुझे बार-बार परेशान कर रहा था। कुछ सोच कर मैने जवाब लिखा…

खफा जरुर हूँ कि दोजख मे साथ रहने की तुमने कसम तोड़ दी लेकिन इतना भी नहीं क्योंकि मै जानता हूँ कि तुम्हारा उद्देशय नेक है। अपना ख्याल रखना। 

मेसेज भेज कर मै अंजली के बारे मे सोचने बैठ गया। तभी मेरे दिमाग मे एक विचार ने घन से प्रहार किया। यह सेटफोन तो मेरे पास काठमांडू मे भी था। पल भर मे सारी दिमागी उलझन दूर हो गयी थी। जब उसे स्मार्टफोन पर जवाब नहीं मिला तब उसने सेटफोन पर मेसेज भेज कर टेस्ट करने की कोशिश करी होगी। मैने मन ही मन अपने आप को कोसते हुए सोचा कि इतनी जल्दी मुझे जवाब नहीं देना चाहिये था। वह तुरन्त सतर्क हो जाएगी। तभी एक बार फिर मेरा सेटफोन घरघराया और एक नया मेसेज फ्लैश करने लगा। मैने जल्दी से मेसेज खोला तो पढ़ कर मेरी बात सच होती हुई लगी-

यह नम्बर कबसे एक्टिव है-क्या आप दिल्ली मे नहीं है? प्लीज मुझे सच बताईयेगा। मुझे चिन्ता हो रही है।   

मैने जल्दी से नया मेसेज टाइप किया-

चिन्ता की कोई बात नहीं है। मै सीमावर्ती आब्सर्वेशन पोस्ट के नीरिक्षण के लिये निकला हूँ। मेरा स्मार्टफोन रुटीन सिक्युरिटी चेकिंग के लिये मालखाने मे जमा है इसलिये फिलहाल मैने इस नम्बर को एक्टीवेट कर दिया है।

मेसेज भेज कर मै उसके जवाब का इंतजार करने बैठ गया। काफी देर तक जब उसका जवाब नहीं आया तो मैने फोन स्विच आफ करके वापिस अपने बैग मे रख कर लेट गया था।

पाँच बजे नीलोफर ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… समीर, आज रात को एक पार्टी मे चलना है। पाकिस्तान की सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक अनवर रियाज अपनी शादी की एनिवर्सरी की पार्टी दे रहा है। उस पार्टी मे पाकिस्तान के सबसे अमीर-तरीन और प्रभावशाली परिवार शामिल होंगें। अपनी पहचान बनाने का यह एक अच्छा मौका है। कुछ सोच कर मैने पूछा… क्या उसके लिये तुम्हें पार्टी मे जाने के लिये कुछ तैयारी करनी है। …हाँ। तुम्हें भी तैयारी करनी पड़ेगी। आओ मेरे साथ। नीलोफर पूरी तैयारी करके आयी थी। वह मुझे होटल के शापिंग आर्केड मे ले गयी। पहले अपने और मेरे लिये कुछ कपड़े व ज्वैलरी पसन्द करके रुम मे भिजवाने के लिये बोल कर फिर वह मुझे एक ब्युटी पार्लर मे लेकर चली गयी थी। यह सब मेरे लिये नया था। अभी तक मैने ब्युटी पार्लर को स्त्रियों के लिये सुना था परन्तु पुरुषों को भी इसकी जरुरत होती है इसका मुझे अंदाजा नहीं था। दो घन्टे उस पार्लर मे बिता कर जब हम बाहर निकले तब तक मुझे यकीन हो गया था कि मै आधुनिक उच्चवर्गीय सोसाइटी मे फिट नहीं हो सकता परन्तु पाकिस्तान से सुरक्षित निकासी के लिये उन परिवारों से जान-पहचान करना मेरे लिये जरुरी था। नीलोफर को देख कर मुझे ऐसा लगा कि वाकई मे सारे पैसे वसूल हो गये थे। उसको इस रुप मे पहली बार मैने सेठी की पार्टी मे देखा था। आज वस्त्र बदल गये थे परन्तु उसमे वही कशिश और कामुकता की झलक दिख रही थी जैसी मैने सेठी और अनवर रियाज की पार्टी मे देखा था।

सोमवार, 13 मई 2024

 

 

शह और मात-1

 

मुझे मुजफराबाद मे आये हुए तीन दिन हो गये थे। यहाँ तीन दिन से लगातार बारिश हो रही थी। काले बादलों ने दिन मे अंधेरा कर दिया था। इस सबके बावजूद दो दिन से मै पाँचों पहर की नमाज के बहाने इस्लामिया मस्जिद मे जा रहा था। पीरजादा मीरवायज एक बार भी सामने नहीं आया था। मस्जिद के कारिन्दो से पता चला कि पीरजादा साहब अपने धार्मिक टोले को लेकर दौरे पर गये हुए है। पाकिस्तान पहुँच कर नीलोफर अपने परिवार से मिलने लाहौर और उसके बाद बालाकोट चली गयी थी। कल शाम को उसने फोन पर बताया कि वह मुजफराबाद पहुँच गयी है। अगली सुबह मै तैयार होकर नीलोफर से मिलने के लिये उसके बताये हुए पते की ओर निकल गया था। वह मुजफराबाद शहर से बाहर निकलते ही झेलम नदी के तट पर बने संगम होटल मे ठहरी हुई थी। खराब मौसम के कारण मै बारह बजे तक होटल पहुँचा था। नीलोफर होटल के रिसेप्शन एरिया मे मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे अन्दर प्रवेश करते हुए देख कर वह मेरी ओर आते हुए जल्दी से बोली… तुमने आने मे देर कर दी। एक नजर भर कर मैने उसकी शिकायत को अनसुना करते हुए पूछा… अंजली का कुछ पता चला? अपने कमरे की दिशा मे चलते हुए वह बोली… इतना तो यकीन से कह सकती हूँ कि वह मुजफराबाद मे नहीं है। …पीरजादा मीरवायज भी मुझफराबाद मे नहीं है। …लश्कर ने बताया है कि पिछले एक महीने से पीरजादा अपने फिरके की सभी मस्जिदों का दौरा करने के लिये निकला हुआ है। …क्या अंजली उसके पीछे जा सकती है? …मुझे नहीं लगता। लश्कर के अनुसार जोरावर बाटामालू को पिछले छह महीने से किसी ने नहीं देखा है। तुम्हारी अंजली के निशाने पर पीरजादा नहीं जोरावर बाटामालू है। अब बताओ आगे क्या करना है?

हम बात करते हुए होटल के कमरे मे प्रवेश कर गये थे। एक नजर कमरे मे घुमा कर खिड़की से बाहर झेलम नदी के तेज बहाव को देखते हुए कुछ सोच कर मैने पूछा… नीलोफर, तुम जानती हो कि मै यहाँ पर सिर्फ अंजली को वापिस ले जाने के लिये नहीं आया अपितु किसी और ही मकसद से इस बार यहाँ आया हूँ। एक बार फिर सोच लो कि क्या तुम मेरे साथ काम करोगी? वह मेरे निकट आकर पीछे से अपनी बाँहों मे बाँध कर बोली… जब मैने तुम्हारे नाम अपनी जिन्दगी कर दी तो अब यह पूछना बेमानी है। …जोखिम का काम है। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के विरुद्ध जंग छेड़ने जैसा काम है। वह कुछ नहीं बोली बस उसकी पकड़ और मजबूत हो गयी थी। वह कुछ देर ऐसे ही खड़ी रही और फिर मुझे छोड़ कर बोली… सीमा के उस पार तुम मेरी रक्षा कर रहे थे तो अब यहाँ पर मै तुम्हारी ढाल बनूँगी। बताओ क्या करना है? उसके बेड पर फैलते हुए मैने कहा… हमे गिलगिट मे अपना बेस बनाना है। मेरे छ्ह साथी दो हफ्ते के बाद मुजफराबाद पहुँच रहे है लेकिन उससे पहले मुझे कुछ इंतजाम करने है। …कैसे इंतजाम? …यहाँ के बड़े-बड़े शहरों मे फाईनेन्सर बन कर कुछ प्रमुख कारोबारियों के साथ जान पहचान बनानी है। …अभी हमारे पास दो हफ्ते है। आज ही लाहौर चलते है। वहाँ पर मेरे परिवार का काफी दबदबा है। उनकी मदद से कुछ कारोबारियों से जान पहचान हो जाएगी। एक घंटे के बाद हम एक प्राईवेट टैक्सी से लाहौर की दिशा मे निकल गये थे।

बारह घंटे लगातार चलने के बाद अगली सुबह हम लाहौर पहुँच गये थे। कुछ खास स्थानों को छोड़ कर ज्यादातर स्थानों पर सड़क बेहद खसता हाल मे थी। सफर मे जिस्म की सारी हड्डियाँ हिल गयी थी। हम कुछ देर खाने और प्रकृतिक जरुरतों को पूरा करने के लिये रुके थे। लाहौर पहुँच कर नीलोफर ने कहा… होटल के बजाय मेरे घर चलते है। वहाँ रुकेंगें तो बड़े कारोबारियों के साथ मिलना आसान हो जाएगा। …मेरे बारे मे अपने परिवार वालों को क्या बताओगी? …तुम मेरे खाविन्द हो तो इसमे और क्या बताना है। इतना बोल कर वह ड्राईवर को रास्ता बताने लगी। लाहौर शहर के बीच गुजरते हुए मुझे ऐसा लगा कि जैसे मै पुरानी दिल्ली मे आ गया था। वही खाने-पीने की छोटी-बड़ी दुकाने, कपड़ो, खिलौनों और सुनारों की दुकाने, उन्हीं के सामने पटरी पर लगी ही फुटकर दुकाने, सब कुछ वैसा ही दिख रहा था। कुछ ही देर मे हम लाहौर शहर के मध्य मे एक आलीशान पुरानी हवेली के सामने पहुँच कर रुक गये थे। टैक्सी से उतर कर मैने अपना एक बैग कन्धे पर लटकाया और दूसरे बैग को उठाया और नीलोफर के साथ चल दिया। बड़े से प्रवेश द्वार पर जिहादियों की फौज खड़ी हुई थी। सभी हथियारों से लैस थे। वह धीरे से बुदबुदाई… लगता है आज तायाजी आये हुए है। वह कुछ और बोलती कि तभी एक चिरपरिचित नारा गुंजायमान हुआ… नारा-ए-तकबीर…अल्लाह-ओ-अकबर। इसी के साथ जिहादियों की फौज मे घिरा हुआ जकी-उर-लखवी आता हुआ दिखा तो हम दोनो किनारे मे चले गये थे। उस काफिले के आते ही वहाँ उपस्थित सभी के चेहरे पर एक अजीब सा तनाव उभर आया था। एकाएक नीलोफर मुझे वहीं छोड़ कर उस काफिले के सामने जाकर खड़ी हो कर जोर से बोली… तायाजी आदाब। सामने चलने वाली जिहादियों की भीड़ तुरन्त छँटने लगी और फिर नीलोफर और दोनो लखवी आमने आमने सामने आ गये थे। मुझे नहीं पता कि उनके बीच मे क्या बात हुई परन्तु वह काफिला कुछ दूरी पर कतार मे खड़ी गाड़ियों की ओर बढ़ गया। नीलोफर मेरे पास आकर बोली… आज शाम को हमसे तायजी मिलेंगें। काफिला निकलने के पश्चात चार-पाँच हथियारों से लैस जिहादी प्रवेश द्वार पर तैनात हो गये थे।

हवेली के अन्दर प्रवेश करने मे हमे कोई रुकावट नहीं आयी थी। अन्दर काफी चहल पहल दिख रही थी। बच्चे दलान मे इधर-उधर भाग रहे थे। उनकी आवाजें  हवेली की शांति को निरन्तर भंग कर रही थी। एक हिस्से मे महिलाओं का झुन्ड धूप सेकते हुए बतियाते हुए सब्जी काट रहा था और दूसरे हिस्से मे कुछ महिलायें रसोई के काम मे उलझी हुई थी। नीलोफर किसी से बोले बिना एक दिशा मे चल दी। मै अपना और उसका सामान उठाये उसके पीछे चल दिया। भूलभुलैयाँ जैसे गलियारों से होते हुए वह एक दरवाजे पर पहुँच कर बोली… यह मेरा कमरा है। उसने दरवाजे को धक्का देकर खोला और अन्दर प्रवेश करते हुए बोली… आओ। कमरे मे प्रवेश करते ही लगा कि बड़े से हाल मे आ गया था। एक किनारे मे बड़ा सा पलंग पड़ा हुआ था और दूसरे किनारे मे बैठने के लिये करीने से सोफा लगा हुआ था। खिड़की के पास एक मेज कुर्सी रखी हुई थी। एक ही नजर मे पूरे कमरे का जायजा लेकर मैने सारे बैग एक किनारे मे रख कर पूछा… यहाँ टायलेट व गुसल की क्या सुविधा है? उसने इशारे से एक दिशा को इंगित करके कहा… उस ओर टायलेट और गुसल का इंतजाम है। मै कुछ बोलता कि तभी एक नाजनीन ने कमरे मे प्रवेश किया और नीलोफर से बड़ी तल्ख आवाज मे बोली… तो छिनाल अपना हिस्सा हथियाने के लिये वापिस आ गयी। एकाएक बोलते हुए जैसे ही उसकी नजर मुझ पर पड़ी वह हड़बड़ा कर दो कदम पीछे हटते हुए चीखी… यह किसको ले आयी? नीलोफर ने मुस्कुरा कर कहा… रुख्सार, यह मेरे खाविन्द है। वह लड़की जल्दी से अपना चेहरा और सिर ढक कर बोली… आदाब। …समीर, यह मेरे तायाजी की बेटी है। तभी दो नवयुवकों ने कमरे मे प्रवेश किया और उनके पीछे तीन और युवतियों आ गयी थी। एकाएक उनके बीच सवाल-जवाब का सिलसिला आरंभ हो गया था। इस दौरान मै नुमाईश मे रखी हुई एक मूर्ती की भांति सोफे पर बैठा हुआ लखवी परिवार की दरारों के बारे मे सोच रहा था।

शाम को बड़े लखवी का पैगाम आया कि हम दोनो को बैठक मे बुलाया है। नीलोफर तो सजधज कर तैयार हो गयी थी परन्तु मेरे पास तो वही दो जोड़े कपड़े थे जिनको लेकर मैने पाकिस्तान मे प्रवेश किया था। …क्या सोच रहे हो? …क्या इन्हीं कपड़ो मे उनके सामने जाना ठीक होगा? उसने एक बड़ा सा पैकट मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… यह पहन लो। मैने पैकट खोला तो उसमे पाकिस्तानी शलवार कुर्ते के बजाय पश्चिनी सूट और टाई देख कर मै चकरा गया। वह बोली… अब तुम्हें उनके सामने विदेश से आये हुए कारोबारी के रुप मे पेश होना है। …इसका इंतजाम कब और कैसे किया? …जब तुम आराम से सो रहे थे। कुछ देर मे हम तैयार होकर बैठक की ओर चल दिये। वह चलते हुए धीरे से बोली… तायाजी से ज्यादा चचाजान पैसो की बात से प्रभावित होते है। मैने चलते हुए कहा… तुम चुपचाप मुझे सुनना क्योंकि मै तुम्हारे लिये पहले कहानी तैयार करुँगा। उसके बाद तुम अपने तरीके से उन्हें संभालना। बैठक तक पहुँचने मे हमारे बीच बस इतनी बात हो सकी थी। वह बैठक नहीं अपितु दरबार-ए-खास की झलक दे रहा था। विशालकाय कमरा और औसत से ऊँची छ्त होने के बावजूद वह कमरा लोगों की मौजूदगी मे छोटा लग रहा था। बड़ा और छोटा लखवी एक आलीशान सोफे पर सामने बैठे हुए थे। बाकी सभी छोटे और बड़े परिवार के पुरुष किनारों पर लगे हुए सोफे और कुर्सियों पर विराजमान थे। कमरे के एक हिस्से मे झीने से पर्दे की आढ़ मे दर्जन भर महिलायें बैठी हुई हमे ताक रही थी। चालीस-पचास लोगों का लखवी परिवार उस बैठक मे हमारी किस्मत का फैसला करने के लिये इकठ्ठा हुआ था।

अभिवादन की औपचारिकताएँ समाप्त होने के पश्चात बड़े लखवी ने पूछा… क्या नाम है? …समीर बट। …कश्मीरी हो? …नहीं, पुर्खे बाल्टीस्तान से है परन्तु मैने सारी जिन्दगी विदेश मे गुजारी है। …क्या काम करते हो? …फाईनेन्स का कारोबार है। एकाएक महफिल मे कुछ बुदबुदाहट हुई तो बड़े लखवी ने घूर कर एक नजर घुमाई तो एक बार फिर से शांति छा गयी थी। अबकी बार छोटे लखवी ने सवाल किया… कितने तक का प्रोजेक्ट फाईनेन्स करते हो? …इसकी कोई सीमा नहीं है। …क्या मतलब? …मेरी फाईनेन्सिंग की कोई सीमा नहीं है? छोटा लखवी चकरा कर बोला… हजार करोड़ का फाईनेन्स कर सकते हो? …क्यों नहीं लेकिन फाईनेन्स का धन्धा उधार लेने वाले की औकात पर निर्भर करता है। मेरा जवाब सुन कर सबके मुँह पर ताला पड़ गया था। अबकी बार बड़े लखवी ने पूछा… अभी तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट कितने का किया है? …पाँच सौ करोड़। …किसको दिये थे? …इसका मै जवाब नहीं दे सकता। बड़े लखवी ने मुझे घूर कर देखा कि तभी पर्दे के पीछे से एक महिला की आवाज कान मे पड़ी… क्या बेकार के सवाल जवाब कर रहे है। यह पूछिये कि इन्होंने कब निकाह किया? मैने उस झीने से पर्दे की ओर देख कर कहा… एक साल से ज्यादा हो गया है। मेरा यकीन किजिये कि नीलोफर को मेरे साथ कभी कोई तकलीफ नहीं होगी। सिर्फ इसके कहने पर मै यहाँ पाकिस्तान मे फाईनेन्स का करोबार जमाने के लिये आया हूँ। मेरा तो काम दुनिया भर मे फैला हुआ है। एकाएक बैठक के दोनो हिस्सों मे बातचीत का दौर आरंभ हो गया था।

कुछ देर उनकी बात सुन कर बड़े लखवी ने हवा मे हाथ उठा कर बोला… चुप हो जाओ। एकाएक सारी आवाजें शान्त हो गयी थी। तभी छोटा लखवी बोला… हम यहाँ एक हाउसिंग सोसाईटी का निमार्ण कर रहे है। क्या उसमे सौ करोड़ लगा सकते हो? पहली बार अपने साथ खड़ी हुई नीलोफर की ओर देख कर मैने कहा… यहाँ का कारोबार नीलोफर देखेगी तो यह इसका निर्णय होगा। ब्याज की दर व पैसे की वापिसी पर वह पैसा लगायेगी। अबकी बार बड़े लखवी ने पहली बार नीलोफर से पूछा… बिटिया क्या तुम पैसा लगाओगी? …तायाजी, सारी कागजी कार्यवाही होने के बाद ही मै सौ करोड़ लगा सकती हूँ। …बिटिया, मुन्नवर कागजी कार्यवाही नहीं कर सकता तो क्या पैसा लगाओगी? …तायाजी, अगर आप तय समय पर पैसे वापिसी की गारन्टी देंगें तो मै सौ करोड़ लगा दूँगी अन्यथा हर्गिज नहीं। छोटा लखवी नीलोफर को घूरने लगा तो वह जल्दी से बोली… फाईनेन्स का काम भरोसे का होता है। मुझे सिर्फ आपकी बात पर भरोसा है। सब आँखें फाड़े नीलोफर की ओर देख रहे थे कि कितनी आसानी से वह करोड़ों की बात कर रही थी। तभी नीलोफर एक बार फिर बोली… तायाजी, अगर आप गारन्टी लेंगें तो पैसे वापिसी के लिये मै आपको दो पर्सेन्ट कमीशन भी दूँगी। मेरे लिये पैसे की उगाही का काम भी एक कारोबार है। हमारा सारा काम व्हाईट का है और बैंक के द्वारा होगा। अगर कोई ब्लैक को व्हाईट मे करने की बात करेगा तो उसका रेट अलग है। हर दस लाख पर दो लाख की कमीशन देनी होगी। दोनो लखवी कुछ बोलते उससे पहले मैने कहा… हम अपना कारोबार पाकिस्तान मे फैलाने की सोच रहे है तो इसमे हमे आपकी मदद चाहिये। इतना बोल कर मै चुप हो गया। सभी हमे ताक रहे थे परन्तु शायद बड़े लखवी के कारण चुप थे।

तभी एक बार फिर से उसी महिला की कर्कश आवाज गूँजी… आपने निकाह की बात करने लिये इकठ्ठा किया है या कारोबार की बात करने के लिये हमे यहाँ बिठाया है। बड़े लखवी ने अपनी अधकचरी दाड़ी पर उँगलियाँ फिराते हुए सिर हिला कर कहा… जब यह दोनो एक साल से साथ रह रहे है तो फिर अब क्या बात बाकी रह गयी है। तभी वह महिला बोली… तो फिर रजामन्दी से इस बिन माँ-बाप की लड़की को रुखसत करके अपनी जिम्मेदारी पूरी किजिये। बड़े लखवी ने एक नजर सब पर डाल कर कहा… इस निकाह के लिये किसी को कुछ कहना है तो अभी बोले अन्यथा इस रिश्ते के लिये मै अपनी रजामन्दी देता हूँ। तभी एक नवयुवक खड़ा होकर बोला… अब्बा, इस निकाह के बाद यह हमारे लखवी परिवार का हिस्सा नही रहेगी। तभी रुख्सार पर्दे के दूसरी ओर से बोली… इस निकाह के बाद यह अपने हिस्से की मांग भी नहीं करेगी। इसके लिये अगर यह तैयार है तो हमे भी इस निकाह के लिये कोई आपत्ति नहीं है। नीलोफर तुरन्त बिफर कर बोली… यह तुमने कैसे सोच लिया कि मै तुम्हारे कहने पर अपना हिस्सा छोड़ दूँगी। तभी एक अधेड़ उम्र की महिला खड़ी हो कर चिल्लायी… हरामखोर बेशर्म, मीरवायजों के साथ मुँह काला करके अब अपने एक नये यार को लेकर अपना हिस्सा मांगने आयी है। मै इस निकाह को होने नहीं दूंगी। नीलोफर गुस्से से भड़कते हुए बोली… खाला, तुम अपने मंदबुद्धि साहिबजादे के लिये रुख्सार के लिये पैगाम भिजवा दो। मेरे हिस्से को हथियाने का विचार अब हमेशा के लिये त्याग दो। एकाएक बैठक मे कोहराम मच गया। बड़ा और छोटा लखवी दोनो ही पारिवारिक कलह मे उलझ कर रह गये थे। नीलोफर अकेली लखवी परिवार के सदस्यों के साथ बहस मे उलझ गयी थी।

…धाँय…। फायर की आवाज सुनते ही सभी चौंक गये थे। बड़े लखवी अपनी पिस्तौल को हवा मे लहरा कर बोला… अब अगर किसी की मुझे आवाज सुनायी दी तो मै उसे गोली मार दूँगा। एक बार फिर से सबके मुँह पर ताला पड़ गया था। मैने बड़े लखवी की बात को अनसुना करके नीलोफर से पूछा… तुम्हारे हिस्से मे कितना आयेगा जिसके लिये तुम इनसे लड़ रही हो। वह रकम मै आज और अभी तुम्हें देता हूँ इसलिये इसके लिये मत लड़ो। हमारे रिश्ते को यह रजामन्दी से कुबूल कर लेंगें तो इसके लिये यह रकम कुछ भी नहीं है। नीलोफर ने एक बार मेरी ओर देखा और बड़े लखवी से बोली… समीर, यह पैसों की बात नहीं है। यह हिस्सा मेरे हक की बात है क्योंकि मै भी इन सबकी तरह लखवी परिवार का हिस्सा हूँ। क्या कोई अपनी जड़ों से कट कर पनप सकता है। मै तो तायाजी से इंसाफ मांगने आयी थी लेकिन आज जो इन्होंने तुम्हारे सामने किया उसके लिये मै हमेशा के लिये शर्मिन्दा हो गयी हूँ। बड़ा लखवी अचानक खड़ा हो गया तो बैठक मे उपस्थित सभी लोग किसी खतरे की आशंका से सावधान हो गये थे। वह चलते हुए हमारे पास आया और नीलोफर के सिर पर हाथ रख कर बोला… बिटिया, तेरा हिस्सा तुझे जरुर मिलेगा। तेरे निकाह को लखवी परिवार रजामन्दी देता है। समीर, अगर इसको कभी कोई तकलीफ देने की सोची तो सिर्फ इतना याद रखना कि यह लखवी परिवार की बेटी है। इतना बोल वह गर्जा… आज के बाद किसी ने अगर इस मसले पर कुछ कहा तो उसका परिणाम बेहद तकलीफदेह होगा। तभी पर्दा हटा कर एक महिला बैठक मे आयी और नीलोफर के हाथ मे एक बक्सा पकड़ा कर बोली… बिटिया, यह तेरी अम्मी का सामान है। नीलोफर जल्दी से बोली… समीर, यह मेरी बड़ी अम्मी है। मैने झुक कर जल्दी से आदाब कहा तो वह महिला बोली… हमारी अमानत को संभाल कर रखना। इसके बाद फिर परिवार के सदस्यों के साथ मिलने जुलने का सिलसिला शुरु हो गया था।

अगली सुबह से नीलोफर के कारोबार का काम शुरु हो गया था। लखवी परिवार के सदस्यों ने अपने-अपने गुटों मे बात करनी शुरु कर दी थी। कुछ सदस्यों ने अपने गुटों मे नीलोफर के पैसों को हड़पने की नीयत से बात की थी और कुछ छोटे-बड़े कारोबारियों मे अपना प्रभाव बढ़ाने की नीयत से बात कर रहे थे। दोनो प्रकार के लोगों ने हमारे कारोबार का प्रचार करना आरंभ कर दिया था। दोपहर तक नीलोफर लगभग ने दस कारोबारियों से बात कर चुकी थी। …समीर, सभी छोटे कारोबारी लग रहे है। कोई भी एक करोड़ से उपर की बात नहीं कर रहा है। इनके जैसे कारोबारी का प्रभावक्षेत्र बेहद संकीर्ण होता है। …तुम सबकी सुनो और बस करना वही जिसके कारण यहाँ के प्रभावशाली समाज मे तुम्हारा प्रवेश हो सके। हमे एक गाड़ी की जरुरत है। कोई स्थानीय मार्किट बता सकती हो जहाँ से एक सेकन्ड हैन्ड पिक-अप ट्रक खरीदा जा सके? वह कुछ बोलती कि उससे पहले दस्तरखान का बुलावा आ गया। हम दोनो दलान की ओर निकल गये थे। सभी लोग दलान मे इकठ्ठे हो गये थे कि अचानक नीलोफर ने एक अधेड़ से आदमी से कहा… मेहमूद भाईजान, यह एक पिक-अप ट्रक खरीदना चाहते है। क्या आप किसी डीलर को जानते है?  मेहमूद ने कुछ पल मुझे देखा और फिर मुस्कुरा कर बोला… समीर, लंच के बाद मेरे साथ चलना। तभी रुख्सार हमारे सामने बैठते हुए आँखें नचा कर बोली… भाईजान, इसकी बातों मे मत आना। मुझे शुरु से इसकी नीयत ठीक नहीं लगती। दोपहर को भी यह दीदे फाड़ कर मुझे घूर रहा था और देखिये अभी भी कैसे भूखी नजरों से देख रहा है। पल भर मे उसने भरी महफिल मुझे बेइज्जत कर दिया था। वह आँखों ही आँखों से मुझे चुनौती देती हुई लग रही थी।   

खाने के बाद मेहमूद अपने साथ मुझे लेकर अपनी दुकान दिखाने की मंशा से मार्किट की दिशा निकल गया था। …समीर, यह एशिया का सबसे बड़ा चोर बजार है। यहाँ महंगी से महंगी कार व उसके पार्ट्स खरीदे व बेचे जाते है। हम एक विशाल गाड़ियों की मार्किट मे खड़े हुए थे। हर प्रकार की गाड़ियाँ अलग-अलग हालात मे खड़ी हुई थी। कहीं कोई कार खुली पड़ी थी और कहीं चैसिस पर इंजिन फिट हो रहे थे। कहीं डेन्टिंग-पेन्टिंग का काम चल रहा था और कहीं गाड़ियों के पार्ट्स फैले हुए थे। सैकड़ों मैकेनिक और उनके हेल्पर गाड़ियों की मरम्मत मे व्यस्त दिख रहे थे। …मेहमूद भाई, आपका क्या कारोबार है? …मत पूछो तो बेहतर होगा। …फिर भी भाईजान पता तो चले। मेहमूद अपनी वर्कशाप दिखाते हुए बोला… इम्पोर्टिड गाड़ियों को खरीदने व बेचने का काम है। मैने अचरज से वर्कशाप की ओर इशारा करके कहा… यह कार डीलरशिप तो नहीं लगती। अबकी बार मेहमूद दबी आवाज मे बोला… चोरी की गाड़ियों को नया बना कर बेचने का काम है। जब से चीनी यहाँ आये है तब से उनकी गाड़ियों का कारोबार तेज हो गया है। हमारे पास ऐसा हुनर है कि उनकी गाड़ियों को हम टोयोटा की गाड़ी बना कर नये कागजात तैयार करके स्थानीय लोगों को आधी कीमत मे बेच देते है। उनकी गाड़ियों से उनके पार्ट्स निकाल कर उन्हीं को बेचने का जो मजा है वह किसी और काम मे नहीं है। इतना बोल कर वह खिलखिला कर हँस दिया था। तीन घंटे उस मार्किट मे बिता कर हम एक नयी चमचमाती हुई टोयोटा हाईलक्स मे वापिस लौट रहे थे। …समीर, इसके कागज कल तुम्हें मिल जाएँगें।

रात को कमरे मे बैठ कर मै अपनी नयी योजना की रुपरेखा तैयार कर रहा था। …क्या सोच रहे हो? …गिल्गिट के लिये अपनी योजना मे फेर बदल कर रहा हूँ। …समीर, मै आज एक कारोबारी से मिली थी। उसे दो करोड़ रुपये एक हफ्ते के लिये चाहिये। उसे सरकारी जब्ती से अपना माल छुड़ाना है। …किसका माल है? …यहाँ की चीनी मिलों के मालिकों का वह बिचौलिया है। वह अपने नाम से बाहर से मशीनरी मंगाता है और उन्हें यहाँ के कारोबारियों को बेचता है। उसका माल कस्टम ने जब्त कर लिया है। …वह किसके जरिये मिला था? …मुन्नवर चचा ने एक रियलएस्टेट कारोबारी को मेरे पास शापिंग माल के प्रोजेक्ट के लिये भेजा था। वह बिचौलिया उसके साथ आया था। वह उस वक्त तो वापिस चला गया था परन्तु कुछ देर बाद वह लौट कर आया और मेरे से पूछने लगा कि क्या उसे एक हफ्ते के लिये दो करोड़ मिल सकते है। मैने उसे कल आने के लिये कहा है। कुछ देर सोचने के बाद मैने कहा… कल मै भी तुम्हारे साथ चलूँगा। एक बार उसकी हैसियत आंकना जरुरी है। दलाल आदमी है तो यहाँ के प्रभावशाली कारोबारियों के समूह मे घुसने की वह चाबी हो सकता है। …वह यहाँ के डीसी का दामाद है। …डिप्टी कमिश्नर? …हाँ, उसने यही बताया था। …कोई बात नहीं। उसकी असलियत आसानी से पता चल जाएगी।

अगली सुबह हम दोनो ताज पैलेस होटल के सूट मे बैठ कर कारोबारियों से मिल रहे थे। बड़े लखवी ने नीलोफर को यह सुझाव दिया था कि आलीशान होटल के सूट को अपने आफिस मे परिवर्तित करके लोगों से मिलना उसके कारोबार के लिये अच्छा रहेगा। तभी से नीलोफर ने इस सूट को अपने आफिस मे परिवर्तित कर दिया था। ग्यारह बजे उसी दलाल का आगमन हुआ तो नीलोफर ने मुझे उससे मिलाते हुए कहा… यह मेरे खाविन्द समीर है। यह सिर्फ बड़े प्रोजेक्ट्स का काम संभालते है। फिलहाल मै कुछ कारोबारियों से बात कर रही हूँ तो आपको कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा। तब तक आप इनसे बात कर लिजिये। …समीर साहब, मेरा नाम अकबर चौधरी है। नीलोफर बाजी को मैने अपनी जरुरत के बारे मे बताया था। एक नजर उस पर डाल कर मैने कहा… आप जैसे सुन्दर और प्रभावशाली व्यक्तित्व को मै अपनी बीवी से डील करने की इजाजत तो हर्गिज नहीं दे सकता। वह चौंक कर मेरी ओर देखने लगा तो मैने मुस्कुरा कर कहा… भाईजान, आपको देख कर अब मुझे अपनी बीवी की चिन्ता सता रही है। वह कहीं आपके साथ भाग गयी तो मुझ गरीब का क्या होगा। इतना बोल कर मै खिलखिला कर हँसते हुए बोला… प्लीज मेरी बात का बुरा मत मानिये। मै मजाक कर रहा हूँ। हम कारोबारी सारे समय बस संख्या और मुनाफे मे उलझे रहते है। आपको देख कर मुझे लगा कि कोई फिल्मी हस्ती मिलने आयी है। वह मुस्कुरा कर बोला… समीर भाईजान आप बेहद दिलचस्प इंसान है।

वह कुछ और बोलता उससे पहले मैने कहा… अकबर मियाँ, क्या आप सिर्फ चीनी फैक्ट्रियों के लिये काम करते है? …नहीं, मै दवाई कारोबारियों और सीमेन्ट कारोबारियों के लिये कच्चा माल व मशीनों को उप्लब्ध कराता हूँ। मेरा आयात और निर्यात का काम है। …चौधरी साहब, दो करोड़ रुपये एक हफ्ते के लिये मिल जायेंगें परन्तु आपकी गारन्टी कौन लेगा। वह तुरन्त बोला… मेरी गारन्टी मेरे ससुर डीसी शमशेर अहमद देंगें। …आपको ब्याज एक महीने का देना होगा। हम वैसे तो छह महीने से कम फाईनेन्स नहीं करते है लेकिन चुँकि आपने डीसी साहब का रेफ्रेन्स दिया है तो हम इसको फाईनेन्स करने के लिये तैयार है लेकिन हमारी ब्याज की दर चार परसेन्ट है। इतना बोल कर मै चुप हो गया तो वह तुरन्त बोला… समीर साहब, ब्याज की दर कुछ ज्यादा है। …तो आप किसी और से ले लिजिये। …नहीं, मेरा यह मतलब नहीं था। क्या कुछ कम कर सकते है? मैने मुस्कुरा कर कहा… हाँ अगर आप हमे अपने घर पर डिनर कराने का वादा करें तो मै यह दर दो पर्सेन्ट कर सकता हूँ। अबकी बार वह खिलखिला कर हँसते हुए बोला… आप कैसी बात कर रहे है। अपने दोस्तों के लिये हमने कल रात को एक छोटी सी पार्टी रखी है। प्लीज, आप दोनो मेरे गरीबखाने पर आयेंगें तो मै इसे अपनी खुशकिस्मती समझूँगा। …चौधरी साहब, जब से यहाँ आये है तब से हम आफिस के बाहर नहीं निकले है और न ही हम यहाँ पर ज्यादा लोगों को जानते है। नीलोफर भी एक ही काम करते हुए बोर हो गयी है तो मैने सोचा कि इसी बहाने उसका मन भी बहल जाएगा। …समीर साहब, बहुत अच्छा विचार है। आप दोनो जरुर आईयेगा। …कल तक आपके पेपर्स तैयार हो जाएँगें। इतनी बात करके मैने उसे रुखसत किया और नीलोफर की ओर चला गया। वह अभी भी उनके प्रोजेक्ट मे उलझी हुई थी।

मै उसके साथ बैठ कर उनके प्रोजेक्ट को समझने मे उलझ गया था। अचानक मेरे दिमाग मे एक बात आयी तो मैने पूछा… इरशाद साहब, आप जहाँ शापिंग माल डालने की बात कर रहे है वह मुनिसिपल एरिया लगता है। इस प्रोजेक्ट की सारी पर्मिशन तो डीसी के हाथ मे है। क्या वह आपको इतनी आसानी से पर्मिशन दे देगा? …अरे जनाब आप उसकी फिक्र छोड़िये। उसका हर सिविल प्रोजेक्ट मे पाँच पर्सेन्ट का कमीशन बंधा हुआ है। वह पैसे पहले रखवाता है और फाईल बाद मे पास करता है। …क्या आप अकबर चौधरी को जानते है? …आप डीसी के दामाद की बात तो नहीं कर रहे है? …हाँ, उसी के बारे मे पूछ रहा हूँ।  कैसा आदमी है? …जनाब, वह अपने ससुर के नाम को हर जगह इस्तेमाल करता है जबकि उसकी अपने ससुर से बनती नहीं है। …क्यों? …यह बात जग जाहिर है साहब कि शमशेर अहमद इस रिश्ते के खिलाफ था लेकिन बेटी की जिद्द के आगे उसकी एक नहीं चली। आजकल अकबर अपनी बीवी की मदद से कोर्पोरेट दलाली का काम करता है। …ओह तो यह बात है। इरशाद ने तुरन्त पूछा… परन्तु आप यह सब क्यों पूछ रहे है? …कोई खास कारण नहीं है। उसकी पार्टी का न्यौता मिला है तो इसीलिये उसके बारे मे जानना चाहता था। इसके बाद एक बार फिर से शापिंग माल की कहानी मे उलझ गये थे।

देर शाम को लौटते हुए मैने नीलोफर को सारी बातों से अवगत करा कर पूछा… अब बताओ इसके बारे मे तुम्हारी क्या सलाह है? …समीर, बेवजह रिस्क लेने की हमे जरुरत नहीं है। मैने अपनी सिर्फ गरदन हिला दी थी। रात को खाने के दौरान मैने एक बार वही प्रश्न मेहमूद भाई से किया तो उनका जवाब था कि हिसाब-किताब मे अकबर चौधरी सही आदमी है। अगली सुबह तक मै इसी निष्कर्ष पर पहुँचा कि दो करोड़ का जुआ है लेकिन सारी बात पार्टी मे आये हुए मेहमानों पर निर्भर करेगी। यही बात नीलोफर को बता कर मैने अपने दिमाग का बोझ हलका कर लिया था। पिछले तीन दिन मे नीलोफर लगभग बीस कारोबारियों से मिली थी और उनमे से उसने तीन प्रोजेक्ट को मेरे सामने रखा था। …नीलोफर, वह जमानत के लिये क्या सुझाव दे रहे है? …सिक्युरिटी के लिये कोई मकान और कोई जमीन के कागज देने की बात कर रहे है। …मुझे अब तुम्हारे तायाजी से एक बार मिलना है। …सुबह चाय के समय तैयार हो जाना क्योंकि तायाजी कल सुबह जल्दी चले जाएँगें। …क्या अभी नहीं मिल सकते? …नहीं इस वक्त वह किसी से नहीं मिलते। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी।

अगली सुबह मै हमेशा की तरह पाँच बजे उठ कर छह बजे तक तैयार हो गया था। नीलोफर ने बताया था कि जकी-उर-लखवी सुबह फज्र की नमाज के बाद तैयार होने चले जाता है। छह से आठ बजे तक वह दलान मे लोगों से मिलना जुलना शुरु कर देता है। मै जब दलान मे पहुँचा तब तक सब सुनसान पड़ा हुआ था। लश्कर के कारिन्दे बैठने वालों के इंतजाम मे जुटे हुए थे। तभी जकी-उर-लखवी ने दलान मे प्रवेश किया तो मुझे वहाँ खड़ा देख कर चौंक कर बोला… इतनी सवेरे तुम यहाँ क्या कर रहे हो? तभी एक कारिन्दा बोला… जनाब क्या गेट खोल दें? मैने जल्दी से कहा… तायाजी, एक जरुरी मसले पर आपकी राय लेनी है। बड़े लखवी ने अपना हाथ उठा कर अपने कारिन्दे को रोकते हुए पूछा… क्या बात है? मैने संक्षिप्त मे तीन प्रोजेक्ट के बारे मे बता कर पूछा… क्या आपके द्वारा इस पैसे की वसूली हो सकती है? कुछ सोच कर वह बोला… मै ऐसे काम मे हाथ नहीं डालता परन्तु अगर कोई मुश्किल पेश आये तो मुझे बता देना। बस इतनी बात उस दिन हमारे बीच मे हुई थी।

मुन्नवर लखवी ने एक वकील अबरार आलम का नाम सुझाया था तो मै और नीलोफर उससे मिलने के लिये चल दिये थे। अबरार आलम काफी नामी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का वकील था। उससे मिल कर हमने फाईनेन्सिंग के कानूनी कागज तैयार करने की बात कह कर दोपहर के बाद हम वापिस अपने होटल पहुँच गये थे। होटल के रिसेप्शन पर हमारे लिये एक सुन्दर सा कार्ड रखा हुआ था। आज रात की पार्टी के लिये अकबर चौधरी का निमन्त्रण था। एक बार फिर से कारोबारियों से बात करने का सिलसिला आरंभ हो गया था। रात को आठ बजे के करीब हम अकबर चौधरी के बताये हुए स्थान पर पहुँच गये थे। कोई जिमखाना जैसा क्लब दिख रहा था। एक ही स्थान पर तीन चार पार्टी का इंतजाम किया हुआ था। अकबर चौधरी की पार्टी का इंतजाम पीछे लान मे किया हुआ था। लम्बे से गलियारे को पार करके जैसे ही हमने लान मे कदम रखा तो वहाँ का हाल देख कर मै चौंक गया था। वहाँ दिल्ली जैसी पार्टियों का नजारा दिखाई दे रहा था। पश्चिमी फैशन का प्रभाव उपस्थित युवकों और युवतियों मे काफी ज्यादा दिख रहा था। …देख लिया कि यहाँ की पार्टी कोई दिल्ली की पार्टी से भिन्न नहीं है। तुमने मुझे तैयार ही नहीं होने दिया। अब उसकी शिकायत मुझे उचित लग रही थी। यहाँ पुरुषों और महिलाओं मे खुले आम ड्रिंक्स के दौर चल रहे थे।

मेरी निगाहें अकबर चौधरी को ढूँढ रही थी। …समीर साहब। एक आवाज गूँजी तो मैने मुड़ कर उस दिशा मे देखा तो अकबर चौधरी एक सुन्दर सी स्त्री के साथ हमारी ओर आता हुआ दिखाई दिया। वह बड़ी गर्मजोशी से मिला और अपने साथ खड़ी हुई स्त्री की ओर इशारा करके बोला… यह मेरी वाईफ सारा अहमद है। सारा अपने पश्चिमी परिधान मे बेहद खूबसूरत और कामुकता की जीवंत मूर्ती लग रही थी। हम दोनो ने उनका अभिवादन किया और सारा हमे पार्टी मे आये हुए लोगों से मिलाने के लिये चल दी थी। मुश्किल से तीस-चालीस लोग थे परन्तु सभी से मिलने के पश्चात मै इसी नतीजे पर पहुँचा कि सभी लोग प्रभावशाली घरों से ताल्लुक रखते थे। कुछ उद्योगपति घरानो से ताल्लुक रखते थे और कुछ वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के परिवार के सदस्य थे। अपने हाथ मे ड्रिंक्स का गिलास उठाये हम दोनो सभी से मिलने मे व्यस्त हो गये थे। उनमे हमारी पहचान सारा ने एक अन्तरराष्ट्रीय फाईनेन्सर के रुप मे करायी थी। उनसे बातचीत के दौरान नीलोफर ने बताया कि फाईनेन्स का कारोबार बढ़ाने के लिये वह पाकिस्तान आयी है। यहाँ पर नीलोफर की उपयोगिता मुझे समझ मे आ गयी थी। वह बहुत से लोगो के जानकारो को पहले से जानने के कारण आसानी से उस समूह मे घुलमिल गयी थी। उनके साथ कुछ समय बिताने के पश्चात अकबर हमारे को उस भीड़ से अलग करके एक किनारे मे ले जाकर बोला… तो आपने हमारे बारे मे क्या सोचा है? सारा भी हमारे पास आकर खड़ी हो गयी थी। 

एक नजर उन दोनो पर डाल कर मैने कहा… अकबर साहब, डीसी साहब की गारन्टी कैसे दिलवाएगें? नीलोफर मुस्कुरा कर सारा की ओर देखते हुए बोली… हमने सुना कि आपके ताल्लुकात उनसे अच्छे नहीं है। अकबर ने मुस्कुरा कर सारा की ओर इशारा करके कहा… यह उनसे गारन्टी दिलवायेगी। आप बेफिक्र रहिये। पहली बार सारा ने बड़ी बेतकल्लुफी से मेरा हाथ पकड़ कर कहा… आप मेरे साथ चलिये। मै कुछ बोलता कि तभी नीलोफर ने अपने पर्स से एक लिफाफा निकाल कर अकबर के सामने करके कहा… यह आप आराम से पढ़ कर निर्णय लिजियेगा। अगर आप साईन करने के लिये तैयार है तो मै अभी जाने से पहले आपको ब्याज काट कर पूरे अमाउन्ट का चेक दे दूंगी। …नीलोफर, आप यह औपचारिक्तायें छोड़िये। बताईये कहाँ साईन करना है? नीलोफर ने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… यह तुम्हारा निर्णय है। तभी अकबर बोला… नीलोफर बाजी, आप मेरे साथ आईये। नीलोफर एक पल कुछ सोच कर उसके साथ चली गयी और मै वहीं पर सारा के साथ खड़ा रह गया था। सारा मेरे समीप आकर बोली… समीर, जब तक वह बात कर रहे है तब तक क्या कुछ समय आप मुझे नहीं दे सकते? मैने उसकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोली… आप बेफिक्र रहिये। अकबर आपकी नीलोफर का अच्छे से ख्याल रखेगा। यह बोलते हुए वह मेरे बेहद करीब आ गयी थी। मैने उसकी आँखों मे झाँकते हुए कहा… तो मेरा ख्याल कौन रखेगा? अबकी बार बड़ी बेशर्मी से वह लगभग मुझसे लिपटते हुए आँखें नचा कर बोली …आपकी जरुरतों का ख्याल रखने के लिये मै हूँ ना। वह इतने करीब आ गयी थी कि उसके कोमल जिस्म का मुझे आभास हो रहा था। मुश्किल से कुछ ही मिनट बीते थे कि नीलोफर मेरी ओर आती हुई दिखी तो सारा चौंक कर मुझसे छिटक कर दूर हो गयी थी।

नीलोफर मेरे पास आकर बोली… हमारी डील हो गयी है। मैने अकबर को चेक दे दिया है। …जब तुम्हारा काम हो गया है तो अब हम वापिस चलते है। …आओ चलो लेकिन पहले सभी से विदा लेना अच्छा होगा। इतना बोल कर नीलोफर और मै पार्टी मे आये हुए अतिथियों की भीड़ की ओर बढ़ गये थे। सारा चुपचाप वहीं बुत बनी खड़ी रह गयी थी। सबसे मिल कर इजाजत लेने के पश्चात जब हम उस क्लब हाउस से बाहर निकले तो मैने पूछा… तुम्हारी डील इतनी जल्दी कैसे हो गयी? …उसने सारे कागजों पर साईन कर दिया था। बस चलते हुए मैने उसे बता दिया कि अगर समय पर पैसा वापिस नहीं किया तो फिर लश्कर पैसा वसूल करने आयेगी लेकिन उस वक्त शमशेर अहमद भी उसके काम नहीं आयेगा। वापिस घर लौटते हुए नीलोफर ने कहा… समीर, मै अकबर के साथ कल करांची जा रही हूँ। क्या तुम कुछ दिन होटल मे रुक जाओगे? …करांची क्यों? …मैने इसी शर्त पर अकबर से डील की है कि वह मुझे बड़े आयातकों से संपर्क करवायेगा। …क्या मै तुम्हारे साथ नहीं चल सकता? …नहीं। अकबर तुम्हारे सामने खुलने की हिम्मत नहीं कर सकेगा। …होटल मे क्यों? …मेरे भाई-बहनों की साजिशों के कारण मै तुम्हें होटल मे रुकने के लिये कह रही हूँ। मैने कुछ नहीं कहा और होटल की दिशा मे चल दिया।

अगली सुबह नीलोफर कराँची चली गयी थी। अगले हफ्ते मेरे साथियों के पहुँचने के बाद मुझे गिल्गिट से आप्रेशन अज्ञातवीर को लाँच करने की रणनीति तैयार करने के लिये काफी समय मिल गया था। मै अपनी रणनीति पर काम करने बैठ गया। शाम को मै अपने कागज समेट कर बैग मे रख रहा था कि डोरबेल बज उठी। मैने दरवाजा खोला तो मेरे सामने एक बुर्कापोश महिला खड़ी हुई थी। झीनी सी चिलमन मे सिर्फ उसकी आँखें दिख रही थी। …क्या मै अन्दर आ सकती हूँ? मै गड़बड़ा कर जल्दी से बोला… जी  फिलहाल यहाँ कोई नहीं है। वह मुझे धकेल कर अन्दर आकर बोली… मै तो आपके लिये आयी हूँ। मैने जल्दी से दरवाजे को बन्द करके मुड़ा तो उसकी चिलमन हट चुकी थी। उसका चेहरा देख कर मै चौंक गया था। वह मुस्कुरा कर बोली… अकबर एक हफ्ते नीलोफर का ख्याल रखेगा तो मै यहाँ आपका ख्याल रखने के लिये आ गयी। इतना बोल कर वह मेरे निकट आकर खड़ी हो गयी थी।

अगले कुछ दिन मेहमूद और उसके साथियों के साथ समय बिता कर मैने आजाद कश्मीर के बारे मे जरुरी जानकारी इकठ्ठी करना शुरु कर दिया था। उनके माध्यम से गिल्गिट और बाल्टीस्तान के बहुत से कारोबारियों से मेरी मुलाकात हो गयी थी। आजाद कश्मीर के कारोबारियों के लिये लाहौर एक मात्र खरीदारी का केन्द्र था। सारा सामान खाने से लेकर कंप्युटर और गाड़ियों के पार्ट्स यहीं से वहाँ जाते थे। एक हफ्ते बाद जब नीलोफर कराँची से वापिस लौटी तब तक मै काफी तैयारी कर चुका था। नीलोफर के आने से पहले सारा वापिस चली गयी थी। उसके लौटते ही हम वापिस हवेली मे चले गये थे। अपने काम को बढ़ाने के लिये लखवी परिवार से इजाजत लेकर हम दोनो मुजफराबाद की दिशा मे निकल गये थे। जब तक हम मुजफराबाद पहुँचे तब तक मेरे साथियों का आगमन होना शुरु हो गया था। दो रात मुजफराबाद मे बिताने के बाद हम सब गिल्गिट की दिशा मे निकल गये थे। मुझे सीमा पार करे हुए एक महीना हो गया था। अब आप्रेशन आज्ञातवीर को लाँच करने का समय आ गया था।