शह और मात-2
नीलम घाटी
खुले आसमान के नीचे बैठ कर रात के अंधकार मे शून्य मे ताकते हुए
एक व्यक्ति बड़बड़ाया… तुम कहाँ चली गयी? उसने निगाह उठा कर आसमान मे असंख्य तारों को
झिलमिलाते हुए देख कर वह एक बार फिर से विचलित होकर बड़बड़ाया… तुम अकेली अदा को उन दरिन्दों
के चंगुल से कैसे छुड़ाओगी। वह कुछ देर अंधेरे को ताकता रहा और फिर उठ कर चल दिया। कुछ
दूरी पर खंडहर से मकान की खिड़की से लालटेन की रौशनी उसे आगे बढ़ने के लिये दिशा ज्ञान
करवा रही थी। वह यही सोच कर उठा था कि उसके साथी भी अब तक लौटने वाले होंगें। आज रात
का मिशन एक चीनी बस थी जो सड़क परियोजना पर काम करने वाले चीनी कामगारों को कैम्प से
साईट और साईट से कैंम्प पहुँचाया करती थी। तभी एक धड़धड़ाती हुई पिक-अप की हेडलाईट्स
की रौशनी ने कच्चे रास्ते को रौशन कर दिया था। उसको देख कर वह व्यक्ति के कदमों मे
एकाएक तेजी आ गयी थी।
वह पिक-अप उसके आगे पहुँच कर रुक गयी थी। रात के अंधेरे मे चिर परिचित
नारा गूँजा… नारा-ए-तदबीर अल्लाह-ओ-अकबर। एक-एक करके दस जिहादी हाथ मे एक-47 और क्लाश्नीकोव
हवा मे लहराते हुए उतरे और मेरे करीब पहुँच कर एक कतार मे खड़े हो गये थे। …रशीद आज
के हमले का क्या हुआ? …भाईजान, हमले के बाद चीनियों सहित उनकी पूरी बस खाई मे धकेल
दी थी। …किसी के बचने की उम्मीद? …नहीं भाई। …रशीद, कल तक सेना यहाँ का चप्पा-चप्पा
छानने के काम मे लग जाएगी। सभी अपने हथियार और अन्य असला बारुद लेकर मीरमशाह के लिये
निकल जाओ। …भाईजान आप? …इस जुमे को छोड़ कर अगले जुमे तक मै भी मीरमशाह पहुँच जाऊँगा।
अब चीनियों के खिलाफ हमारी मुहिम का आगाज वहाँ से होगा। …खैबर पख्तून्खुआ की जमीन इनसे
खाली कराने का समय आ गया है। …मोहत्सिम, अगले पड़ाव मे हमारी इस जंग मे पश्तून भी जुड़
रहे है। मेरी बात तेहरीक से हो गयी है। …भाईजान, खुदा का लाख-लाख शुक्रिया। …आओ चल
कर पहले कुछ खालो फिर आज रात को ही स्थानीय बस या ट्रक से मीरमशाह के लिये निकल जाना।
…जी भाईजान। इतनी बात करके वह लोग उस खंडहरनुमा मकान की दिशा मे चले गये थे।
उसी वक्त वहाँ से अस्सी मील दूर सड़क पर चार पुलिस वाले
खड़े हुए दबी जुबान मे बात कर रहे थे। …खबर मिली है कि वलीउल्लाह की खुदाई शमशीर ने
चीनियों की बस पर हमला किया था। उस बस मे करीब चालीस चीनी तकनीकी स्टाफ और एक पाकिस्तानी
ड्राईवर मारे गये है। वायरलैस पर हेडक्वार्टर्स पर इस दुर्घटना की खबर करो। …हेड साहब,
खुदा के लिये यह सब बताने की जरुरत नहीं है। अगर एक बार फिर उस तंजीम का नाम लिया तो
सेना हमारा जीना मुश्किल कर देगी। पिछली बार का परिणाम याद है कि कैसे सेना ने दो महीने
तक हमारे साथ टार्चर किया था। इस बार सड़क दुर्घटना बता कर आप पूरे महकमे पर एहसान करेंगें।
तभी दूसरा पुलिस वाला बोला… हेड साहब, वैसे भी बस तो खाई मे गिरी है। हमे क्या पता
कि कैसे गिरी थी। …जमीन पर पड़े हुए गोलियों के खोल का क्या करोगे? …इन्हें अगर हटा
देंगें तो फिर खाई मे गिरने का सारा दोष ड्राईवर अन्यथा उबड़-खाबड़ सड़क पर आसानी से लग
जाएगा। हेड कान्स्टेबल कुछ देर सोचने के बाद बोला… शमीम, वायरलैस पर हेडक्वार्टर्स
को खबर दे दो कि चीनियों को लेकर जाने वाली बस खाई मे गिर गयी है। फिलहाल पुलिस की
तहकीकात चल रही है। यह सूचना देने के लिये शमीम तुरन्त पुलिस की पिक-अप की दिशा मे
निकल गया और बाकी सिपाही सड़क को साफ करने मे लग गये थे।
रात गहरी हो गयी थी। अपनी पिक-अप को वीराने मे खड़ी करके मैने पिक-अप
के गुप्त टूल बाक्स से अपना सेटफोन निकाल कर आन किया। फोन को नेटवर्क से जुड़ने मे जो
समय लगा तब तक मै अपनी बातचीत का मसौदा तैयार कर चुका था। नेटवर्क से जुड़ते ही मैने
सेन्ट्रल कमांड का नम्बर मिलाया तो पहली घंटी बजते ही जनरल रंधावा ने तुरन्त फोन लेते
हुए बोले… समीर। …जी सर। आजाद कश्मीर मे अब हमारा काम खत्म हो गया है। यहाँ पर हमारा
नेटवर्क सुचारु रुप से काम करना शुरु कर दिया है। खुदाई शमशीर नाम की स्थानीय तंजीम
ने पिछले दो महीने मे छह बार चीनियों पर बड़ा हमला करके उनका जान और माल का काफी नुकसान
किया है। हमने चीनी कंपनियों के खिलाफ स्थानीय लोगों मे पनपते हुए रोष को दिशा देकर
खुदाई शमशीर को गठन किया है। उस तंजीम के प्रति चीनियों के खेमे मे अब काफी असंतोष
व्याप्त है। …आगे क्या करने की सोच रहे हो? …सर, हम मीरमशाह के लिये निकल रहे है। तेहरीक
से बात करके इस मुहिम मे फिलहाल पश्तूनी तंजीमो को जोड़ने की कोशिश चल रही है। …मीरमशाह
मे क्या करने की सोच रहे हो? …सर, पश्तून कबीलो के साथ उस इलाके वजीरी और मेहसूद कबीलों
को इकठ्ठा करने की कोशिश कर रहा हूँ। मैने घड़ी पर नजर डाली तो बात करते हुए पाँच मिनट
होने वाले थे। मैने जल्दी से कहा… सर, टाइम हो गया है। एक हफ्ते के बाद इसी टाईम पर
आपसे संपर्क करुँगा। इतना बोल कर मैने कनेक्शन काट दिया।
मैंने सेटफोन बन्द करके वापिस उसी टूल बाक्स मे रखा और फिर स्टीयरिंग
व्हील संभाल कर पिक-अप स्टार्ट करके गियर बदल कर आगे बढ़ गया। मुझे सीमा पार किये
छह महीने से ज्यादा हो गये थे। यहाँ आने के मेरे बहुत से मकसद हो सकते थे परन्तु अंजली
और बच्चों को यहाँ से सुरक्षित निकालना मेरी प्राथमिकता थी। इसके बारे मे सिर्फ नीलोफर
को पता था। हम दोनो जानते थे कि अंजली के लिये यह स्थान दोजख से भी ज्यादा भयानक है।
यहाँ पर उसके खिलाफ कोर्टमार्शल के आदेश जारी हुए काफी समय हो गया था। तभी से मौत की
तलवार उसके सिर पर सैदेव लटकी हुई थी। अगर वह पाकिस्तानी सेना के हाथ लग गयी तो उसकी
बेहद दर्दनाक मौत निश्चित थी। मै जानता था कि वह अपनी जान हथेली पर लिये यहाँ सिर्फ
अदा को ढूंढने के उद्देश्य से आयी थी। जब तिगड़ी ने मुझसे ब्रिगेडियर चीमा के रिप्लेसमेन्ट
की बात की तभी से मै अपनी इसी योजना पर काम करने बैठ गया था। इसी उद्देश्य से मैने
आप्रेशन अज्ञातवीर की रचना की थी। अंजली के बारे मे मुजफराबाद और उसके सभी पुराने ठिकानों पर पता करने
के बाद भी जब कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो आजाद कश्मीर मे अपना बेस बनाने के लिये मै
नीलम घाटी मे आ गया था।
काफी देर से पिक-अप चला रहा था। रात गहरी होती जा रही थी। हवा मे
बड़ती हुई नमी और ठंडक मुझे आने वाली बारिश की ओर इशारा कर रही थी। तभी मेरी नजर एक
ढाबे पर पड़ी तो मैने अपनी पिक-अप सड़क से उतार कर उसके सामने खड़ी कर दी। जब तक मैने
खाना समाप्त किया तब तक तड़तड़ाती बारिश होनी शुरु हो गयी थी। पहाड़ी रास्ते पर बारिश
मे ड्राईविंग को वैसे ही काफी खतरनाक माना जाता है। रात के अंधेरे मे बारिश मे पहाड़ी
रास्ते पर ड्राईविंग निश्चित मौत को निमन्त्रण देने जैसा है। मैने पिक-अप मे ही रात
बिताने का फैसला कर लिया। पिक-अप की सीट को एड्जस्ट करके मै आँखें मूंद कर बैठ गया।
पिक-अप की टीन की चादर पर मूसलाधार बारिश का तड़-तड़ के शोर के कारण नींद आँखों से कोसों
दूर थी। एक बार फिर रात के अंधेरे मे अपने अतीत की यादों मे झाँकने का मुझे मौका मिल
गया था।
यह सारी कहानी उस दिन शुरु हुई थी जिस दिन अजीत सर ने मुझे अस्थायी
ब्रिगेडियर के पद पर नियुक्त करके ब्रिगेडियर चीमा के आफिस का चार्ज लेने के लिये श्रीनगर
भेजा था। सर्जिकल स्ट्राईक्स के लिये लाँचिंग पैड्स के कुअर्डिनेट्स को निकालने के
लिये मुझे श्रीनगर भेजा गया था। मुजफराबाद जाते हुए जन्नत ने कुछ लश्कर और जैश के महत्वपूर्ण
लाँचिंग पैड्स के कुअर्डिनेट्स निकाले थे। मुझे विश्वास था कि वह कुअर्डिनेट्स ब्रिगेडियर
चीमा के कंप्युटर पर कहीं रखे हुए थे। उन कुअर्डिनेट्स को ढूँढते हुए मुझे कंप्युटर
पर रा से जुड़ी हुई कुछ बेहद विस्फोटक फाईलें भी मिल गयी थी। उन फाईलों मे एक अति गोपनीय
त्रिपक्षीय समझौते का विवरण दिया हुआ था। एक ओर कुछ पाकिस्तानी चरमपंथी तंजीमे और अफ़गान
तालिबान और उससे जुड़ी हुई कुछ छोटी कबायइली तंजीमे थी, दूसरी ओर अमरीकन फोर्सेज व सीआईए और तीसरी पार्टी भारतीय रा थी। यह समझौता अफगानिस्तान
से अमरीकी और नाटो फोर्सेज के सुरक्षित बाहर निकलने का ब्लू प्रिंट था। उन फाईलों को
देख कर मेरे दिमाग मे एक योजना ने जन्म लिया जिसके कारण मै अंजली को वापिस लाने के
लिये पाकिस्तान मे प्रवेश कर सकता था। सर्जिकल स्ट्राईक्स के दो दिन बाद मैने तिगड़ी
के सामने अपना ब्लू प्रिंट खोल कर रखा तो तीनो चौंक गये थे। मैने तिगड़ी के बताये हुए
हक डाक्ट्रीन के मास्टर प्लान को कार्यान्वित करने के ब्लू प्रिंट मे चीन की
अति महत्वकांक्षी सड़क परियोजना को आधार बनाया था। इस ब्लू प्रिंट के जरिये तिगड़ी के
दो उद्देश्य सिद्ध हो रहे थे। एक ओर हक डाक्ट्रीन आजाद कश्मीर मे कार्यन्वित हो रही
थी और दूसरी ओर ब्रिगेडियर चीमा का रिप्लेसमेन्ट भी मिल गया था। इस योजना को कार्यान्वित
करने के लिये तिगड़ी ने बड़ी आसानी से मुझे अपनी स्वीकृति दे दी थी। जैसे ही मुझे तिगड़ी
ने ग्रीन सिगनल दिया तो मै तुरन्त आजाद कश्मीर की ओर निकल गया था।
लाहौर मे मुझे आजाद
कश्मीर के कारोबारियों से पता चला था कि स्थानीय लोगों मे इस सड़क परियोजना के प्रति
काफी रोष था। इसी कारण मैने नीलम घाटी मे अपना पहला बेस बनाने का निश्चय किया था। चीनी
कामगारों का स्थानीय लोगों के प्रति व्यवहार काफी खराब था। उनकी शराब और सिगरेट पीने
की आदत तो पहले से ही जगजाहिर थी परन्तु व्यभिचारिता के कारण वह काफी बदनाम हो गये
थे। पाकिस्तानी दलाल अपने चीनी ग्राहकों के लिये स्थानीय गरीब लड़कियों को जबरदस्ती
देह व्यापार के धंधे मे डालने लगे थे। शुरुआती दौर मे तो देह व्यापार का काम उनके कैंम्प
तक ही सिमित था परन्तु धीरे-धीरे पैसो के लालच मे अब बहुत से स्थानीय गरीब परिवारों
ने भी अपनी लड़कियों का सौदा खुले आम करना शुरु कर दिया था। इस बात का काफी रोष वहाँ
के मुस्लिम सामाज मे पनप रहा था। हमारे हस्तक्षेप के कारण स्थानीय मस्जिदों के मुफ्तियों
और मौलवियों ने उस आग को धीरे-धीरे हवा देना शुरु कर दिया था। नीलोफर की मदद से कुछ
स्थानीय लश्कर और जैश के लोगों को भी मैने अपने साथ जोड़ना आरंभ कर दिया था। पहले वहाँ
पर छुटपुट चोरी ओर लूट की कुछ वारदाते हुआ करती थी परन्तु मैने उस रोष को संगठित अपराध
मे तब्दील कर दिया था। मेरे छह साथी तो गुरिल्ला युद्ध मे पूर्णता निपुण थे जिसके कारण
बड़ी आसानी से हम कभी चीनीयों के गोदाम पर हमला करके उनका सामान लूट कर स्थानीय व्यापारियों
को बेच देते थे। कभी उनकी गाड़ियाँ चोरी करके उनके पार्ट्स निकाल कर ऊँचे दामों मे उनको
ही वापिस बेच देते थे। शुरुआती दौर मे ऐसा करने से स्थानीय युवकों ने हमारे साथ जुड़ना
आरंभ कर दिया था। हमने स्थानीय मदरसों के बच्चों को पैसों का लालच देकर चीनी कामगारों
पर पत्थरबाजी भी करवाना आरंभ कर दिया था। मैने जो कुछ मकबूजा कश्मीर मे देखा व सीखा
था वही हमने चीनी कामगारों और स्थानीय पुलिस के साथ करना शुरु कर दिया था। चार महीनों
मे हमने अपना स्थानीय लड़ाकुओं का एक मजबूत नेटवर्क खड़ा कर दिया था। जब सेना की ओर से
दबाव बढ़ने लगा तब वहाँ पर एक दुर्दान्त आतंकवादी तंजीम खुदाई शमशीर का जन्म हुआ था।
नीलोफर की मदद से
तब तक मेरा संपर्क कश्मीर से जुड़ी हुई लगभग सभी तंजीमों के वरिष्ठ लोगों के साथ एक
अमीर पाकिस्तानी निवेशक के रुप मे हो गया था। फारुख की कमायी को मै खुले दिल से इस्तेमाल
करके अपना फाईनेन्स का कारोबार बढ़ाने मे लगा हुआ था। कट्टरपंथी तंजीमो को पैसों की
वसूली के काम मे लगा कर मैने उनके लिये कमाई के लिये नये साधन की व्यवस्था कर दी थी।
लखवी परिवार की सलाह और मदद से लाहौर से लेकर पेशावर तक सभी चोर बाजारों मे मेरी पहुँच
हो गयी थी। लाहौर से करांची तक सभी बड़े शहरों के बिल्डरों ने भी मेरे साथ संपर्क साधना
शुरु कर दिया था। खुदाई शमशीर का नेटवर्क भी धीरे-धीरे इस्लामाबाद से कराँची और लाहौर
से क्वेटा तक फैलना शुरु हो गया था। निवेशक होने के कारण पैसे उगाही का सारा मैने कमीशन
पर छोटी और बड़ी तंजीमो से करवाना शुरु कर दिया था। इस तरह मेरी एक निजि फौज तैयार होती
जा रही थी। इस नेटवर्क के कारण चीनी सामान एक ही रात मे अलग-अलग चोर बाजारों मे पहुँचने
लगा था। चार महीने मे ही चीनी कंपनियों ने शोर मचाना शुरु कर दिया था। गरीबी और प्राकृतिक
विषमताओं से दबे और कुचले स्थानीय लोगो को खुदाई शमशीर मे एक हमदर्द दिखाई देने लगा
था। चीनीयों ने जैसे ही शहरों मे चाईना टाउन बना कर अपने पाँव जमाने की कोशिश करी तो
खुदाई शमशीर ने उन पर हमले और अपहरण करना आरंभ कर दिया था। दबाव मे आकर पुलिस वाले
अगर स्थानीय लोगों पर अत्याचार करने की कोशिश करते तब हमारे पैसों पर पलने वाली स्थानीय
स्वयं सेवी जमात उनके पक्ष मे कोर्ट पहुँच कर उनको और उनके परिवार को तुरन्त राहत पहुँचाने
की कोशिश मे जुट जाती थी। छह महीने के अथक परिश्रम से अजाद कश्मीर को मैने मकबूजा कश्मीर
की स्थिति मे लाकर खड़ा कर दिया था।
खुदाई शमशीर ने कुछ
स्थानीय युवकों को राजनीतिक पटल पर भी मदद करना आरंभ कर दिया था। स्थानीय मदरसों को
पैसों से मदद देकर उनमे पढ़ने वालों को युवा नेताओं के पीछे खड़ा करने लगा था। आजाद कश्मीर
मे खुदाई शमशीर की पकड़ स्थानीय सरकार, स्थानीय राजनीति व स्थानीय समाज मे मजबूत होने
लगी थी। जैसे ही चीनी कंपनियों ने अपनी फौज को अपने गोदाम, आफिस व साईट पर तैनात किया
वैसे ही लूटपाट ने आतंकवाद का रुप ले लिया था। कभी उनके गोदाम मे विस्फोट होता और कभी
उनके आफिस मे विस्फोट हो जाता था। कभी उनकी बस मे विस्फोट होता और कभी प्रोजेक्ट साईट
पर स्थानीय मजदूर हंगामा खड़ा कर देते थे। जब चीनीयों को जान-माल का नुकसान होने लगा
तब इस्लामाबाद और रावलपिंडी के हस्तक्षेप के कारण रेन्जर्स की एक पोस्ट उनकी प्रोजेक्ट
साईट पर स्थापित कर दी गयी थी। इतना सब कुछ होने के बावजूद आतंकवादी हमले फिर भी लगातार
हो रहे थे क्योंकि मेरी टीम कबाईलियों के भेष मे चीनी ठिकानों के साथ स्थानीय पुलिस
और रेन्जर्स की चौकियों पर भी हमला कर रहे थे। एक तरह से अजाद कश्मीर के प्रशासन को
लकवा मार गया था। चीनी कंपनियों के दबाव के कारण खुदाई शमशीर को रोकने के लिये आईएसआई
और पाकिस्तानी सेना भी आजाद कश्मीर मे सक्रिय हो गयी थी। अब हमारे लिये खतरा बढ़ता जा
रहा था।
एक रात मै अपने साथियों
को बुला कर इस मसले पर चर्चा कर रहा था। …अब यहाँ से हमारे हटने का समय आ गया है। कुछ
ऐसा धमाका होना चाहिये जिससे वह इस्लामाबाद और बीजिंग के अखबार की सुर्खिया बन जाये।
अब यहाँ की खुदाई शमशीर की बागडोर किसी स्थानीय युवक के हाथ मे देने का समय आ गया है।
आपके ख्याल से क्या असद इस जिम्मेदारी को उठा सकता है? नीलोफर ने मेरी बात काटते हुए
कहा… समीर, किसी एक युवक के बजाय एक मदरसे को चुनना बेहतर होगा। आखिर हाफिज सईद ने
लश्कर और मसूद अजहर ने जैश का गठन ऐसे ही किया था। मेरे साथियों ने उसकी बात का समर्थन
करते हुए कहा… सर, यही ठीक रहेगा। काफी सोच विचार करने के पश्चात इस्लामिया मस्जिद
के मौलवी अली मोहम्मद बतालवी और उनके मदरसे का चयन करके हम अपनी निकासी की रणनीति बनाने
मे जुट गये थे।
मौलवी अली मोहम्मद
पहले पीरजादा मीरवायज के लिये नाल्तार घाटी मे मदरसा चलाया करता था। मै उसको एक निवेशक
की भांति मिलने गया था। …मौलवी साहब, मै तो पूँजी निवेशक हूँ। मेरा काम गिलगिट से लेकर
मुजफराबाद तक फैला हुआ है। मुझ पर खुदाई शमशीर की ओर से दबाव डाला जा रहा है कि आपकी
रुपये-पैसे से मदद करुँ क्योंकि आप खुदाई शमशीर के कट्टर समर्थक है। मौलवी साहब के
लिये अपनी खुद की पहचान बनाने का यह एक सुनहरा मौका था। उसने तुरन्त बड़-चढ़ कर खुदाई
शमशीर के साथ अपने मजबूत रिश्ते का बखान करना शुरु कर दिया। …जनाब, खुदाई शमशीर ने
मुझसे आपकी मस्जिद को दस लाख रुपये सालाना देने की पेशकश की है। उनका कहना है कि वह
अब आपके द्वारा खुदाई शमशीर के मदरसे गिलगिट और बाल्टिस्तान मे खोलना चाहते है। खुदाई
शमशीर का बस एक ही उद्देशय है कि वह इस इलाके मे चीनीयों की पकड़ को कमजोर करना चाहते
है। अब आप ही बताईये कि आपका इस बारे मे क्या विचार है?
मोहम्मद बतालवी अपनी
दाड़ी पर हाथ फिराते हुए बोला… जनाब, सालाना दस लाख रुपये से क्या होगा? इंसान की बुद्धि
पर जब लालच हावी हो जाता है तब उसकी मति मारी जाती है। मौलवी साहब हमारे जाल मे फंस
गये थे। …मौलवी साहब, अगर आप खुदाई शमशीर को मजबूत करते हुए दिखेंगें तो वह समय-समय
पर दूसरे लोगों से भी आपको रुपये-पैसे की मदद देने का प्रयास करेंगें। उनका सोचना है
कि आपके काम को देख कर दस लाख की रकम आपको हर महीने मिलनी चाहिये परन्तु वह रकम आपके
काम पर निर्भर करेगी। मौलवी साहब तो इतनी बात सुन कर खुदाई शमशीर के मुरीद हो गये थे।
…जनाब उनके द्वारा कुछ हथियार वगैराह का भी अगर इंतजाम हो गया तो फिर मेरा काम आसान
हो जाएगा। …मौलवी साहब, मै तो व्यापारी आदमी हूँ। हथियार वगैराह के लिये आपको उनसे
बात करनी पड़ेगी। इतना बोल कर मैने नोटों की गड्डियाँ उनके सामने रखनी आरंभ कर दी थी।
…यह दस लाख रुपये पेशगी के तौर पर दे रहा हूँ। बस आप उनको खबर कर दिजियेगा कि आपको
पैसे मिल गये है। मेज पर नोटों की गड्डियाँ रखी देख कर मौलवी साहब जल्दी से बोले… आप
बेफिक्र रहिये। आज ही उनको खबर कर दूँगा कि मुझे पैसे मिल गये है। इतनी बात करके मै
वापिस चल दिया था।
उसी शाम दिन ढलने
के बाद खुदाई शमशीर ने साईट से लौटती हुई चीनी कामगारों की बस पर हमला हो गया था। एक
भी यात्री बच कर निकलने के योग्य नहीं बचा था। उसके बाद गोलियों से छलनी बस को खाई
मे लुड़का कर हमारी टीम रात के अंधेरे मे नाल्तार घाटी छोड़ कर मीरमशाह की दिशा मे निकल
गयी थी। असद नामक एक युवा नेता को नाल्तार घाटी की बागडोर थमा कर उसी रात को मै इस्लामाबाद
के लिये निकल गया था। छह महीने मे बहुत कुछ हो गया था परन्तु जिसकी तलाश थी वह न जाने
कहाँ और किस हाल मे थी। अंजली का ख्याल आते ही मै उठ कर बैठ गया। मैने कलाई पर बंधी
घड़ी पर एक नजर डाली तो लेटे हुए मुझे अभी मुश्किल से एक घंटा हुआ था। बारिश अभी भी
अपने पूरे जोर पर थी। मैने सिर घुमा कर खिड़की से बाहर देखा तो ढाबे पर कुछ और गाड़ियाँ
और ट्रक आकर खड़े हो गये थे। मैने पानी की बोतल निकाल कर कुछ घूँट गटक कर ढाबे की दिशा
मे देखा तो अब तक वहाँ पर रुकने वालो के कारण काफी चहल-पहल हो गयी थी। एक बार फिर से
मै कमर सीधी करने की मंशा से आँख मूंद कर लेट गया था।
ट्रक के हार्न ने
अचानक मुझे जगा दिया था। बारिश बन्द हो चुकी थी। सुबह की पहली किरण ने आसमान मे लालिमा बिखेर दी थी। एक ही अवस्था
मे पड़े रहने के कारण मेरा जिस्म अकड़ गया था। मै अपनी पिक-अप से उतर कर टायलेट की दिशा
मे चला गया। चाय पीकर मैने नीलोफर को फोन लगाया तो कुछ देर घंटी बजने के बाद उसकी आवाज
कान मे पड़ी… समीर। …तुम बालाकोट पहुँच गयी। …हाँ कल रात को ही यहाँ पहुँच गयी थी। तुम
कहाँ पहुँचे? …पता नहीं लेकिन आज दोपहर तक बालाकोट पहुँच जाऊँगा। अंजली या जोरावर का
कुछ पता चला? …नहीं। वह तुरन्त जल्दी से बोली… समीर दिल छोटा करने की जरुरत नहीं है।
अगर उसकी खबर नहीं मिली है तो यह मान लो कि वह अभी भी सुरक्षित है। इस्लामाबाद पहुँच
कर हम नये सिरे से उसे तलाश करेंगें। …ठीक है। मै दोपहर तक पहुँच जाऊँगा। इतनी बात
करके मैने फोन काट दिया था। एक बार फिर से पिक-अप स्टार्ट करके मेरी यात्रा आरंभ हो
गयी थी। बारिश के कारण पहाड़ी सड़क कीचड़ से अटी हुई थी। पहाड़ पर चढ़ाई मे अगले-पिछले टायर
लगातार फिसल रहे थे। एक ट्रक के पीछे मैने पिक-अप लगा दी थी। उसके ट्रेक पर पिक-अप
चलानी आसान हो गयी थी। रास्ता जरुर कठिनाईयों भरा था परन्तु हर ओर मुझे कश्मीर की वादी
जैसा दृश्य दिख रहा था। सड़क के दोनो तरफ चीनार के ऊँचे दरख्त और बरसाती नाले दिख रहे
थे।
दोपहर तक मै बालाकोट
मे प्रवेश कर चुका था। सनराईज होटल मे नीलोफर मेरा इंतजार कर रही थी। उसके कमरे मे
पहुँच कर सबसे पहले मैने बाथरुम का रुख किया। गर्म पानी से नहा कर जिस्म की थकान उतार
कर जब बाहर निकला तब तक नीलोफर ने खाने की व्यवस्था कर दी थी। खाना खाने के बाद मै
बिस्तर पर फैलते हुए बोला… कल बारिश होने के कारण सारी रात पिक-अप मे गुजारनी पड़ी थी।
सारा जिस्म अकड़ गया है। नीलोफर मेरे साथ लेटते हुए बोली… अब मुझे तुम्हारी आदत हो गयी
है। उसको चिढ़ाने की मंशा से मैने पूछा… तो क्या अब तुम्हें अकबर की कमी नहीं खलती?
वह आँखें तरेर कर बोली… वह मेरे लिये खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं है। क्या कभी सारा
और रुख्सार को तुम अंजली की तरह याद करते हो? उसकी बात
मुझे नश्तर की भाँति चुभी लेकिन उसने मुझे आईना दिखा दिया था। मैने झपट कर उसे अपनी
बाँहों मे जकड़ कर धीरे से कहा… सौरी। यह जान लो कि तुम्हारी कमी कोई पूरा नहीं कर सकती।
…अंजली भी नहीं? …अंजली भी नहीं क्योंकि तुमसे मैने जिन्दगी भर का पाक करार किया है।
हम बात कर रहे थे परन्तु हमारे बीच मे एकाकार की आग धीरे-धीरे सुलगने लगी थी। पता नहीं
क्यों लेकिन नीलोफर के जिस्म को छूते ही मुझे आफशाँ के होने का आभास प्रतीत होता था।
आफशाँ जैसी जिस्मानी उतार-चढ़ाव के कारण मतिभ्रम होने की संभावना हो सकती थी परन्तु
एकाकार के पलों मे उसकी तेज चलती हुई साँसे, जिस्मानी सिहरन और चरम पर पहुँच कर जिस्मानी
कंपन और थरथराहट मे भी समानता होने के कारण वह मुझे आफशाँ की प्रतिमूर्ती लगती थी।
मैने धीरे से उसके
गाल पर अपने होंठ रगड़ते हुए आगे बढ़ा तो उसने अपने कँपकपाते होंठ मेरे होंठों पर टिका
दिये थे। मै आँखें मूंद कर उसके होंठों का रस निचोड़ने मे जुट गया था। वह भी मेरा साथ
देने के लिये व्याकुल होती जा रही थी। कभी उसके गाल और कभी उसके होंठ मेरे निशाने पर
होते और कभी वह मुझ पर हावी हो जाती थी। जब कपड़े चुभने लगे तो आनन फानन मे हम दोनो
ने एक दूसरे के कपड़े उतारने मे जुट गये। कुछ ही पलो मे दो नग्न जिस्म एक दूसरे की कामाग्नि
भड़काने मे जुट गये थे। उसके होंठों का रसपान करते हुए मैने पहला हमला उसकी उन्नत कठोर
पहाड़ियों पर करना आरंभ कर दिया था। एक पहाड़ी
को मेरा हाथ कभी सहलाता और कभी रौंदता। मेरी उँगलियों मे फँसे हुए भूरे स्तनाग्र को
कभी पकड़ कर खींचता और कभी तरेड़ता और कभी दबा देता। वह तड़प कर मेरी बाँहों मे मचलती
और कभी बल खा कर छूटने की कोशिश करती। मेरा मुख कभी कलश पर टिक कर और कभी स्तनाग्र
से रस सोखता, कभी होंठों के बीच फँसा हुआ स्तनाग्र मेरी जुबान का प्रहार सहता और कभी
बेचारा दांतों के बीच फँस कर छटपटाता। हर वार पर वह तड़प उठती थी। कभी छूटने की चेष्टा
करती और कभी मेरा सिर पकड़ अपने सीने मे जकड़ लेती। एकाकार के समय नीलोफर किसी दूसरी
दुनिया मे पहुँच जाती थी। उस वक्त उसके साथ कुछ वैसा ही हो रहा था।
बेडरुम मे बस उसकी आहें और सिस्कारियाँ गूंज रही थी। मैने करवट लेकर
नीलोफर को अपने जिस्म से ढका कि तभी उत्तेजना मे फुफकारते हुए मदमस्त कामांग ने उसकी
जाँघ पर चोट मारी तो वह अचकचा कर हमलावर को पकड़ने मे जुट गयी। मस्ती मे लहराते हुए
अजगर को उसने गरदन से पकड़ कर धीरे से अपने स्त्रीत्व के द्वार पर टिका कर रगड़ने लगी।
उसके पुष्ट नग्न गोल नितंब मेरे शिकंजे मे फँस गये थे। मैने धीरे से दबाव बढ़ाया तो
उसके मुख से उत्तेजना भरी आह निकल गयी थी। मेरा कामांग अन्दर सरक गया था। मै कुछ पल
रुका और फिर लगातार दबाव बढ़ाता चला गया और एक आँख वाला अजगर सारी बाधाएँ पार करके अन्दर
सरकता चला गया जब तक हमारे जोड़ एक दूसरे टकरा नहीं गये थे। उसके चेहरे पर उत्तेजना
की लहर दिख रही थी। एक पल रुक कर हम दोनो अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गये थे। कामावेश
मे सिर्फ सिस्कारियाँ गूँज रही थी और कमरे मे चक्रवाती तूफान वेग पकड़ चुका था। मेरे
हर वार पर उसका जिस्म का पोर-पोर थरथरा उठता था। एक पल आया कि हम दोनो के लिए वक्त
थम सा गया था। वह जोर से काँपी और धनुषाकार बनाते हुए उसका जिस्म हवा मे उठ गया। तभी
उसके जिस्म ने तीव्र झटका खाया और फिर झरझरा कर बहने लगी। अगले कुछ पलों मे काँपते
हुए वह बिस्तर पर लस्त हो कर पड़ गयी। तभी मुझे ऐसा एहसास हुआ कि जैसे मेरे कामांग को
उसने अपने होंठों मे जकड़ कर दोहना शुरु कर दिया है। उसके गदराये
हुए जिस्म के हर स्पंदन से मेरे जिस्म मे लावा खौलता चला जा रहा था। अचानक मेरे सारे
बाँध छिन्न-भिन्न हो गये और तभी ज्वालामुखी मे विस्फोट हुआ और कामरस बेरोकटोक बहने
लगा। हमारी साँसे उखड़ रही थी। गहरी साँसे लेते हुए हमने अपने आपको सयंत किया और फिर
हम एक दूसरे को बाहों ने लेकर लस्त हो कर बिस्तर पर पड़ गये थे।
जब आँख खुली तब तक
अंधेरा हो गया था। मैने बेड के पास लगे हुए स्विच को आन करके कमरे को रौशन किया तो
नीलोफर ने पल्कें झपका कर आँखें खोली और मुझे देख कर मुस्कुरा कर बोली… तुम्हारी कमी
कोई पूरा नहीं कर सकता। वह उठते हुए बोली… कल सुबह चलेंगें। …नहीं, तुमने मेरी सारी
थकान सोख ली है। तुम चेक आउट करो और चलो। अब इस्लामाबाद पहुँच कर आराम करेंगें। कुछ
ही देर मे हम इस्लामाबाद की दिशा मे जा रहे थे। रास्ते मे चिल्लास कोलोनी टाउन पर हाईवे-15
व 35 के चौराहे पर पहुँचते ही वह बोली… समीर, मुजफराबाद मे मीरवायज की हवेली मे कारिन्दो
को छोड़ कर और कोई नहीं है। सारे घरवाले न जाने कहाँ चले गये। हर कोई यही कह रहा है
कि पीरजादा अपने टोले को लेकर अपनी मस्जिदों और मदरसों का नीरिक्षण करने के लिये निकले
हुए है। …पीरजादा के बारे मे सोचना छोड़ दो। इतना बोल कर मैने अपनी पिक-अप हाईवे-35
की दिशा मे मोड़ दी थी।
अगली सुबह हम इस्लामाबाद
पहुँच गये थे। एक आलीशान पाँच सितारा होटल मे हम दोनो रुक गये थे। मै पहली बार इस्लामाबाद
मे आया था। चौड़ी और साफ सड़कें देख कर मुझे किसी युरोपीय देश की राजधानी मे आने का आभास
हो रहा था। गिलगिट और मुजफराबाद का अनुभव होने के कारण यह शहर तो जन्नत की भाँति लग
रहा था। गिलगिट से इस्लामाबाद तक की सड़कों की हालत बदहाल थी। बड़े-बड़े गड्डे, जगह-जगह
से टूटी और उधड़ी हुई सड़क किसी भी मायने मे सड़क नहीं कही जा सकती थी। जब बिस्तर पर पड़े
उसके बाद करवट लेने की हिम्मत भी नहीं बची थी। सारा बदन अकड़ गया था। हम दोनो दोपहर तक सोते रहे थे। लघुशंका के दबाव
के कारण मुझे जबरदस्ती उठना पड़ा था। उनींदी आँखों से कलाई पर बंधी हुई घड़ी पर नजर डाली
तो दोपहर के तीन बज रहे थे। मै आराम से तैयार होने के लिये चला गया था। जब तक तैयार
होकर बाहर निकला तब तक नीलोफर भी जाग गयी थी। मुझे बाहर निकलते हुए देख कर वह भी तैयार
होने के लिये चली गयी। खाने का आर्डर देने के बाद मै कमरे की बालकोनी मे चला आया था।
वहाँ से इस्लामाबाद शहर का मनोरम नजारा मेरे लिये एक दम नया था। पहाड़ों के बीच सुन्दर
वादी मे स्थित इस्लामाबाद शहर किसी जन्नत से कम नहीं लग रहा था। सड़कें, ऊँची इमारतें
व चमचमाती विदेशी गाड़ियाँ वहाँ की वैभवता का बखान कर रही थी।
…समीर। नीलोफर की
आवाज सुन कर मै वापिस कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… दोजख से जन्नत मे आ गये है। वह
मुस्कुरा कर बोली… यह जन्नत सिर्फ 120 मील तक सिमित है। उसके बाद तो दोजख ही मिलेगी।
खाना मेज पर लगा कर वेटर जा चुका था। खाते हुए नीलोफर ने कहा… समीर, अब तुम्हें यहाँ
के उच्चवर्गीय और प्रभावशाली परिवारों मे अपनी जगह बनानी पड़ेगी। पहले हम कुछ खास लोगों
से मिल लेते है। …तुम यहाँ पर किनसे मिलना चाहती हो? …समीर, इस्लामाबाद शहर पाकिस्तानी
उच्चवर्गीय और प्रभावशाली सोसाईटी का केन्द्र है। कुछ पुराने लोगों से संपर्क करके
देखती हूँ कि आजकल यहाँ की पार्टी सर्किट का क्या हाल है। अगर तुम्हें यहाँ पर अपने
पाँव जमाने है तो कुछ खास परिवारों की नजरों मे आना जरुरी है। पार्टियों मे आसानी से
तुम अपनी पहचान बना सकते हो। खाना समाप्त करने के बाद वह बोली… मै कुछ देर के लिये
बाहर जा रही हूँ। मैने कुछ नहीं कहा और अपने बेड पर फैल कर अगले कदम के बारे मे सोचने
लगा। कुछ ही देर मे नीलोफर बन संवर कर बाहर चली गयी थी।
मैने अपना सेटफोन
निकाला और उसे आन करके संदेश बाक्स को चेक किया तो कोई संदेश नहीं था। मैने जनरल
रंधावा के नाम मेसेज टाइप करना शुरु किया…
सर, मै इस्लामाबाद
पहुँच गया हूँ। आजाद कश्मीर मे पहला चरण पूरा हो गया है। चीन की सड़क परियोजना के खिलाफ
अब वहाँ की जनता हो गयी है। दूसरा चरण शुरु करने से पहले मुझे यहाँ पर अपना बेस तैयार
करना है। अगले हफ्ते आपको अपनी रिपोर्ट दूँगा। खुदा हाफिज।
अपना मेसेज भेज कर
मै जैसे ही अपना फोन स्विच आफ करने जा रहा था कि तभी मेरा फोन घरघरा उठा था। मेसेज
बाक्स मे एक मेसेज डिस्प्ले दिख रहा था। मैने जल्दी से उस मेसेज को खोल कर देखा तो
वह मेसेज उर्दू मे कुछ इस प्रकार था…
जोरावर मुजफराबाद
नहीं पहुँचा। मै अदा को लेकर ही अब वापिस आऊँगी। क्या आप मुझसे खफा है? होना भी चाहिये
लेकिन क्या करुँ मै अपने दिल के आगे मजबूर हूँ। मै नहीं आती तो आप आते। काफिरों का
दोजख मे आना मना है।
अंजली की ओर से आखिरी
मेसेज मुझे मेरे स्मार्टफोन पर मिला था। उसके बाद से हमारे बीच का संवाद टूट गया था।
पहली बार उसका मेसेज मेरे सेट्फोन पर आया था। उसको मेरे सेटफोन का नम्बर किसने दिया?
यह प्रश्न अब मुझे बार-बार परेशान कर रहा था। कुछ सोच कर मैने जवाब लिखा…
खफा जरुर हूँ कि दोजख
मे साथ रहने की तुमने कसम तोड़ दी लेकिन इतना भी नहीं क्योंकि मै जानता हूँ कि तुम्हारा
उद्देशय नेक है। अपना ख्याल रखना।
मेसेज भेज कर मै अंजली
के बारे मे सोचने बैठ गया। तभी मेरे दिमाग मे एक विचार ने घन से प्रहार किया। यह सेटफोन
तो मेरे पास काठमांडू मे भी था। पल भर मे सारी दिमागी उलझन दूर हो गयी थी। जब उसे स्मार्टफोन
पर जवाब नहीं मिला तब उसने सेटफोन पर मेसेज भेज कर टेस्ट करने की कोशिश करी होगी। मैने
मन ही मन अपने आप को कोसते हुए सोचा कि इतनी जल्दी मुझे जवाब नहीं देना चाहिये था।
वह तुरन्त सतर्क हो जाएगी। तभी एक बार फिर मेरा सेटफोन घरघराया और एक नया मेसेज फ्लैश
करने लगा। मैने जल्दी से मेसेज खोला तो पढ़ कर मेरी बात सच होती हुई लगी-
यह नम्बर कबसे एक्टिव
है-क्या आप दिल्ली मे नहीं है? प्लीज मुझे सच बताईयेगा। मुझे चिन्ता हो रही है।
मैने जल्दी से नया मेसेज टाइप किया-
चिन्ता की कोई बात नहीं है। मै सीमावर्ती आब्सर्वेशन पोस्ट के नीरिक्षण
के लिये निकला हूँ। मेरा स्मार्टफोन रुटीन सिक्युरिटी चेकिंग के लिये मालखाने मे जमा
है इसलिये फिलहाल मैने इस नम्बर को एक्टीवेट कर दिया है।
मेसेज भेज कर मै उसके जवाब का इंतजार करने बैठ गया। काफी देर तक
जब उसका जवाब नहीं आया तो मैने फोन स्विच आफ करके वापिस अपने बैग मे रख कर लेट गया
था।
बहुत ही खूबसूरत अंक पति पत्नी के बीच तनाव के माहोल में भी एक दूसरे के खयाल रखना और सुरक्षा के लिए चिंतित रहना एक दूसरे के प्रति गहरे प्रेम को दरसता है वैसे निलोफोर के बारे में समीर के फीलिंगस भी अब सीधे नहीं रहे इन छ माह में एक तरह ओपन रीलैशन्शिप में रह कर करीब आ चुके हैं अब अगले एक्शन के इंतज़ार में।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई धन्यवाद। अब समीर के किरदार मे बदलाव देखेंगें क्योंकि अब वह सैनिक नहीं दुश्मन देश मे घुसपैठिया है। अब अज्ञातवीर का प्रहार होगा।
हटाएंkahan ho bhai ?
जवाब देंहटाएंतुम्हारे ख्यालों मे हूँ साईरस भाई। देरी के लिये माफी।
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