शह और मात-1
मुझे मुजफराबाद मे
आये हुए तीन दिन हो गये थे। यहाँ तीन दिन से लगातार बारिश हो रही थी। काले बादलों ने
दिन मे अंधेरा कर दिया था। इस सबके बावजूद दो दिन से मै पाँचों पहर की नमाज के बहाने
इस्लामिया मस्जिद मे जा रहा था। पीरजादा मीरवायज एक बार भी सामने नहीं आया था। मस्जिद
के कारिन्दो से पता चला कि पीरजादा साहब अपने धार्मिक टोले को लेकर दौरे पर गये हुए
है। पाकिस्तान पहुँच कर नीलोफर अपने परिवार से मिलने लाहौर और उसके बाद बालाकोट चली
गयी थी। कल शाम को उसने फोन पर बताया कि वह मुजफराबाद पहुँच गयी है। अगली सुबह मै तैयार
होकर नीलोफर से मिलने के लिये उसके बताये हुए पते की ओर निकल गया था। वह मुजफराबाद
शहर से बाहर निकलते ही झेलम नदी के तट पर बने संगम होटल मे ठहरी हुई थी। खराब मौसम
के कारण मै बारह बजे तक होटल पहुँचा था। नीलोफर होटल के रिसेप्शन एरिया मे मेरा इंतजार
कर रही थी। मुझे अन्दर प्रवेश करते हुए देख कर वह मेरी ओर आते हुए जल्दी से बोली… तुमने
आने मे देर कर दी। एक नजर भर कर मैने उसकी शिकायत को अनसुना करते हुए पूछा… अंजली का
कुछ पता चला? अपने कमरे की दिशा मे चलते हुए वह बोली… इतना तो यकीन से कह सकती हूँ
कि वह मुजफराबाद मे नहीं है। …पीरजादा मीरवायज भी मुझफराबाद मे नहीं है। …लश्कर ने
बताया है कि पिछले एक महीने से पीरजादा अपने फिरके की सभी मस्जिदों का दौरा करने के
लिये निकला हुआ है। …क्या अंजली उसके पीछे जा सकती है? …मुझे नहीं लगता। लश्कर के अनुसार
जोरावर बाटामालू को पिछले छह महीने से किसी ने नहीं देखा है। तुम्हारी अंजली के निशाने
पर पीरजादा नहीं जोरावर बाटामालू है। अब बताओ आगे क्या करना है?
हम बात करते हुए होटल
के कमरे मे प्रवेश कर गये थे। एक नजर कमरे मे घुमा कर खिड़की से बाहर झेलम नदी के तेज
बहाव को देखते हुए कुछ सोच कर मैने पूछा… नीलोफर, तुम जानती हो कि मै यहाँ पर सिर्फ
अंजली को वापिस ले जाने के लिये नहीं आया अपितु किसी और ही मकसद से इस बार यहाँ आया
हूँ। एक बार फिर सोच लो कि क्या तुम मेरे साथ काम करोगी? वह मेरे निकट आकर पीछे से
अपनी बाँहों मे बाँध कर बोली… जब मैने तुम्हारे नाम अपनी जिन्दगी कर दी तो अब यह पूछना
बेमानी है। …जोखिम का काम है। पाकिस्तानी सेना और आईएसआई के विरुद्ध जंग छेड़ने जैसा
काम है। वह कुछ नहीं बोली बस उसकी पकड़ और मजबूत हो गयी थी। वह कुछ देर ऐसे ही खड़ी रही
और फिर मुझे छोड़ कर बोली… सीमा के उस पार तुम मेरी रक्षा कर रहे थे तो अब यहाँ पर मै
तुम्हारी ढाल बनूँगी। बताओ क्या करना है? उसके बेड पर फैलते हुए मैने कहा… हमे गिलगिट
मे अपना बेस बनाना है। मेरे छ्ह साथी दो हफ्ते के बाद मुजफराबाद पहुँच रहे है लेकिन
उससे पहले मुझे कुछ इंतजाम करने है। …कैसे इंतजाम? …यहाँ के बड़े-बड़े शहरों मे फाईनेन्सर
बन कर कुछ प्रमुख कारोबारियों के साथ जान पहचान बनानी है। …अभी हमारे पास दो हफ्ते
है। आज ही लाहौर चलते है। वहाँ पर मेरे परिवार का काफी दबदबा है। उनकी मदद से कुछ कारोबारियों
से जान पहचान हो जाएगी। एक घंटे के बाद हम एक प्राईवेट टैक्सी से लाहौर की दिशा मे
निकल गये थे।
बारह घंटे लगातार
चलने के बाद अगली सुबह हम लाहौर पहुँच गये थे। कुछ खास स्थानों को छोड़ कर ज्यादातर
स्थानों पर सड़क बेहद खसता हाल मे थी। सफर मे जिस्म की सारी हड्डियाँ हिल गयी थी। हम
कुछ देर खाने और प्रकृतिक जरुरतों को पूरा करने के लिये रुके थे। लाहौर पहुँच कर नीलोफर
ने कहा… होटल के बजाय मेरे घर चलते है। वहाँ रुकेंगें तो बड़े कारोबारियों के साथ मिलना
आसान हो जाएगा। …मेरे बारे मे अपने परिवार वालों को क्या बताओगी? …तुम मेरे खाविन्द
हो तो इसमे और क्या बताना है। इतना बोल कर वह ड्राईवर को रास्ता बताने लगी। लाहौर शहर
के बीच गुजरते हुए मुझे ऐसा लगा कि जैसे मै पुरानी दिल्ली मे आ गया था। वही खाने-पीने
की छोटी-बड़ी दुकाने, कपड़ो, खिलौनों और सुनारों की दुकाने, उन्हीं के सामने पटरी पर
लगी ही फुटकर दुकाने, सब कुछ वैसा ही दिख रहा था। कुछ ही देर मे हम लाहौर शहर के मध्य
मे एक आलीशान पुरानी हवेली के सामने पहुँच कर रुक गये थे। टैक्सी से उतर कर मैने अपना
एक बैग कन्धे पर लटकाया और दूसरे बैग को उठाया और नीलोफर के साथ चल दिया। बड़े से प्रवेश
द्वार पर जिहादियों की फौज खड़ी हुई थी। सभी हथियारों से लैस थे। वह धीरे से बुदबुदाई…
लगता है आज तायाजी आये हुए है। वह कुछ और बोलती कि तभी एक चिरपरिचित नारा गुंजायमान
हुआ… नारा-ए-तकबीर…अल्लाह-ओ-अकबर। इसी के साथ जिहादियों की फौज मे घिरा हुआ जकी-उर-लखवी
आता हुआ दिखा तो हम दोनो किनारे मे चले गये थे। उस काफिले के आते ही वहाँ उपस्थित सभी
के चेहरे पर एक अजीब सा तनाव उभर आया था। एकाएक नीलोफर मुझे वहीं छोड़ कर उस काफिले
के सामने जाकर खड़ी हो कर जोर से बोली… तायाजी आदाब। सामने चलने वाली जिहादियों की भीड़
तुरन्त छँटने लगी और फिर नीलोफर और दोनो लखवी आमने आमने सामने आ गये थे। मुझे नहीं
पता कि उनके बीच मे क्या बात हुई परन्तु वह काफिला कुछ दूरी पर कतार मे खड़ी गाड़ियों
की ओर बढ़ गया। नीलोफर मेरे पास आकर बोली… आज शाम को हमसे तायजी मिलेंगें। काफिला निकलने
के पश्चात चार-पाँच हथियारों से लैस जिहादी प्रवेश द्वार पर तैनात हो गये थे।
हवेली के अन्दर प्रवेश
करने मे हमे कोई रुकावट नहीं आयी थी। अन्दर काफी चहल पहल दिख रही थी। बच्चे दलान मे
इधर-उधर भाग रहे थे। उनकी आवाजें हवेली की
शांति को निरन्तर भंग कर रही थी। एक हिस्से मे महिलाओं का झुन्ड धूप सेकते हुए बतियाते
हुए सब्जी काट रहा था और दूसरे हिस्से मे कुछ महिलायें रसोई के काम मे उलझी हुई थी।
नीलोफर किसी से बोले बिना एक दिशा मे चल दी। मै अपना और उसका सामान उठाये उसके पीछे
चल दिया। भूलभुलैयाँ जैसे गलियारों से होते हुए वह एक दरवाजे पर पहुँच कर बोली… यह
मेरा कमरा है। उसने दरवाजे को धक्का देकर खोला और अन्दर प्रवेश करते हुए बोली… आओ।
कमरे मे प्रवेश करते ही लगा कि बड़े से हाल मे आ गया था। एक किनारे मे बड़ा सा पलंग पड़ा
हुआ था और दूसरे किनारे मे बैठने के लिये करीने से सोफा लगा हुआ था। खिड़की के पास एक
मेज कुर्सी रखी हुई थी। एक ही नजर मे पूरे कमरे का जायजा लेकर मैने सारे बैग एक किनारे
मे रख कर पूछा… यहाँ टायलेट व गुसल की क्या सुविधा है? उसने इशारे से एक दिशा को इंगित
करके कहा… उस ओर टायलेट और गुसल का इंतजाम है। मै कुछ बोलता कि तभी एक नाजनीन ने कमरे
मे प्रवेश किया और नीलोफर से बड़ी तल्ख आवाज मे बोली… तो छिनाल अपना हिस्सा हथियाने
के लिये वापिस आ गयी। एकाएक बोलते हुए जैसे ही उसकी नजर मुझ पर पड़ी वह हड़बड़ा कर दो
कदम पीछे हटते हुए चीखी… यह किसको ले आयी? नीलोफर ने मुस्कुरा कर कहा… रुख्सार, यह मेरे खाविन्द
है। वह लड़की जल्दी से अपना चेहरा और सिर ढक कर बोली… आदाब। …समीर, यह मेरे तायाजी की
बेटी है। तभी दो नवयुवकों ने कमरे मे प्रवेश किया और उनके पीछे तीन और युवतियों आ गयी
थी। एकाएक उनके बीच सवाल-जवाब का सिलसिला आरंभ हो गया था। इस दौरान मै नुमाईश मे रखी
हुई एक मूर्ती की भांति सोफे पर बैठा हुआ लखवी परिवार की दरारों के बारे मे सोच रहा
था।
शाम को बड़े लखवी का
पैगाम आया कि हम दोनो को बैठक मे बुलाया है। नीलोफर तो सजधज कर तैयार हो गयी थी परन्तु
मेरे पास तो वही दो जोड़े कपड़े थे जिनको लेकर मैने पाकिस्तान मे प्रवेश किया था। …क्या
सोच रहे हो? …क्या इन्हीं कपड़ो मे उनके सामने जाना ठीक होगा? उसने एक बड़ा सा पैकट मेरी
ओर बढ़ाते हुए कहा… यह पहन लो। मैने पैकट खोला तो उसमे पाकिस्तानी शलवार कुर्ते के बजाय
पश्चिनी सूट और टाई देख कर मै चकरा गया। वह बोली… अब तुम्हें उनके सामने विदेश से आये
हुए कारोबारी के रुप मे पेश होना है। …इसका इंतजाम कब और कैसे किया? …जब तुम आराम से
सो रहे थे। कुछ देर मे हम तैयार होकर बैठक की ओर चल दिये। वह चलते हुए धीरे से बोली…
तायाजी से ज्यादा चचाजान पैसो की बात से प्रभावित होते है। मैने चलते हुए कहा… तुम
चुपचाप मुझे सुनना क्योंकि मै तुम्हारे लिये पहले कहानी तैयार करुँगा। उसके बाद तुम
अपने तरीके से उन्हें संभालना। बैठक तक पहुँचने मे हमारे बीच बस इतनी बात हो सकी थी।
वह बैठक नहीं अपितु दरबार-ए-खास की झलक दे रहा था। विशालकाय कमरा और औसत से ऊँची छ्त
होने के बावजूद वह कमरा लोगों की मौजूदगी मे छोटा लग रहा था। बड़ा और छोटा लखवी एक आलीशान
सोफे पर सामने बैठे हुए थे। बाकी सभी छोटे और बड़े परिवार के पुरुष किनारों पर लगे हुए
सोफे और कुर्सियों पर विराजमान थे। कमरे के एक हिस्से मे झीने से पर्दे की आढ़ मे दर्जन
भर महिलायें बैठी हुई हमे ताक रही थी। चालीस-पचास लोगों का लखवी परिवार उस बैठक मे
हमारी किस्मत का फैसला करने के लिये इकठ्ठा हुआ था।
अभिवादन की औपचारिकताएँ
समाप्त होने के पश्चात बड़े लखवी ने पूछा… क्या नाम है? …समीर बट। …कश्मीरी हो? …नहीं,
पुर्खे बाल्टीस्तान से है परन्तु मैने सारी जिन्दगी विदेश मे गुजारी है। …क्या काम
करते हो? …फाईनेन्स का कारोबार है। एकाएक महफिल मे कुछ बुदबुदाहट हुई तो बड़े लखवी ने
घूर कर एक नजर घुमाई तो एक बार फिर से शांति छा गयी थी। अबकी बार छोटे लखवी ने सवाल
किया… कितने तक का प्रोजेक्ट फाईनेन्स करते हो? …इसकी कोई सीमा नहीं है। …क्या मतलब?
…मेरी फाईनेन्सिंग की कोई सीमा नहीं है? छोटा लखवी चकरा कर बोला… हजार करोड़ का फाईनेन्स
कर सकते हो? …क्यों नहीं लेकिन फाईनेन्स का धन्धा उधार लेने वाले की औकात पर निर्भर
करता है। मेरा जवाब सुन कर सबके मुँह पर ताला पड़ गया था। अबकी बार बड़े लखवी ने पूछा…
अभी तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट कितने का किया है? …पाँच सौ करोड़। …किसको दिये थे? …इसका
मै जवाब नहीं दे सकता। बड़े लखवी ने मुझे घूर कर देखा कि तभी पर्दे के पीछे से एक महिला
की आवाज कान मे पड़ी… क्या बेकार के सवाल जवाब कर रहे है। यह पूछिये कि इन्होंने कब
निकाह किया? मैने उस झीने से पर्दे की ओर देख कर कहा… एक साल से ज्यादा हो गया है।
मेरा यकीन किजिये कि नीलोफर को मेरे साथ कभी कोई तकलीफ नहीं होगी। सिर्फ इसके कहने
पर मै यहाँ पाकिस्तान मे फाईनेन्स का करोबार जमाने के लिये आया हूँ। मेरा तो काम दुनिया
भर मे फैला हुआ है। एकाएक बैठक के दोनो हिस्सों मे बातचीत का दौर आरंभ हो गया था।
कुछ देर उनकी बात
सुन कर बड़े लखवी ने हवा मे हाथ उठा कर बोला… चुप हो जाओ। एकाएक सारी आवाजें शान्त हो
गयी थी। तभी छोटा लखवी बोला… हम यहाँ एक हाउसिंग सोसाईटी का निमार्ण कर रहे है। क्या
उसमे सौ करोड़ लगा सकते हो? पहली बार अपने साथ खड़ी हुई नीलोफर की ओर देख कर मैने कहा…
यहाँ का कारोबार नीलोफर देखेगी तो यह इसका निर्णय होगा। ब्याज की दर व पैसे की वापिसी
पर वह पैसा लगायेगी। अबकी बार बड़े लखवी ने पहली बार नीलोफर से पूछा… बिटिया क्या तुम
पैसा लगाओगी? …तायाजी, सारी कागजी कार्यवाही होने के बाद ही मै सौ करोड़ लगा सकती हूँ।
…बिटिया, मुन्नवर कागजी कार्यवाही नहीं कर सकता तो क्या पैसा लगाओगी? …तायाजी, अगर
आप तय समय पर पैसे वापिसी की गारन्टी देंगें तो मै सौ करोड़ लगा दूँगी अन्यथा हर्गिज
नहीं। छोटा लखवी नीलोफर को घूरने लगा तो वह जल्दी से बोली… फाईनेन्स का काम भरोसे का
होता है। मुझे सिर्फ आपकी बात पर भरोसा है। सब आँखें फाड़े नीलोफर की ओर देख रहे थे
कि कितनी आसानी से वह करोड़ों की बात कर रही थी। तभी नीलोफर एक बार फिर बोली… तायाजी,
अगर आप गारन्टी लेंगें तो पैसे वापिसी के लिये मै आपको दो पर्सेन्ट कमीशन भी दूँगी।
मेरे लिये पैसे की उगाही का काम भी एक कारोबार है। हमारा सारा काम व्हाईट का है और
बैंक के द्वारा होगा। अगर कोई ब्लैक को व्हाईट मे करने की बात करेगा तो उसका रेट अलग
है। हर दस लाख पर दो लाख की कमीशन देनी होगी। दोनो लखवी कुछ बोलते उससे पहले मैने कहा…
हम अपना कारोबार पाकिस्तान मे फैलाने की सोच रहे है तो इसमे हमे आपकी मदद चाहिये। इतना
बोल कर मै चुप हो गया। सभी हमे ताक रहे थे परन्तु शायद बड़े लखवी के कारण चुप थे।
तभी एक बार फिर से
उसी महिला की कर्कश आवाज गूँजी… आपने निकाह की बात करने लिये इकठ्ठा किया है या कारोबार
की बात करने के लिये हमे यहाँ बिठाया है। बड़े लखवी ने अपनी अधकचरी दाड़ी पर उँगलियाँ
फिराते हुए सिर हिला कर कहा… जब यह दोनो एक साल से साथ रह रहे है तो फिर अब क्या बात
बाकी रह गयी है। तभी वह महिला बोली… तो फिर रजामन्दी से इस बिन माँ-बाप की लड़की को
रुखसत करके अपनी जिम्मेदारी पूरी किजिये। बड़े लखवी ने एक नजर सब पर डाल कर कहा… इस
निकाह के लिये किसी को कुछ कहना है तो अभी बोले अन्यथा इस रिश्ते के लिये मै अपनी रजामन्दी
देता हूँ। तभी एक नवयुवक खड़ा होकर बोला… अब्बा, इस निकाह के बाद यह हमारे लखवी परिवार
का हिस्सा नही रहेगी। तभी रुख्सार पर्दे के दूसरी ओर
से बोली… इस निकाह के बाद यह अपने हिस्से की मांग भी नहीं करेगी। इसके लिये अगर यह
तैयार है तो हमे भी इस निकाह के लिये कोई आपत्ति नहीं है। नीलोफर तुरन्त बिफर कर बोली…
यह तुमने कैसे सोच लिया कि मै तुम्हारे कहने पर अपना हिस्सा छोड़ दूँगी। तभी एक अधेड़
उम्र की महिला खड़ी हो कर चिल्लायी… हरामखोर बेशर्म, मीरवायजों के साथ मुँह काला करके
अब अपने एक नये यार को लेकर अपना हिस्सा मांगने आयी है। मै इस निकाह को होने नहीं दूंगी।
नीलोफर गुस्से से भड़कते हुए बोली… खाला, तुम अपने मंदबुद्धि साहिबजादे के लिये रुख्सार के लिये पैगाम भिजवा
दो। मेरे हिस्से को हथियाने का विचार अब हमेशा के लिये त्याग दो। एकाएक बैठक मे कोहराम
मच गया। बड़ा और छोटा लखवी दोनो ही पारिवारिक कलह मे उलझ कर रह गये थे। नीलोफर अकेली
लखवी परिवार के सदस्यों के साथ बहस मे उलझ गयी थी।
…धाँय…। फायर की आवाज
सुनते ही सभी चौंक गये थे। बड़े लखवी अपनी पिस्तौल को हवा मे लहरा कर बोला… अब अगर किसी
की मुझे आवाज सुनायी दी तो मै उसे गोली मार दूँगा। एक बार फिर से सबके मुँह पर ताला
पड़ गया था। मैने बड़े लखवी की बात को अनसुना करके नीलोफर से पूछा… तुम्हारे हिस्से मे
कितना आयेगा जिसके लिये तुम इनसे लड़ रही हो। वह रकम मै आज और अभी तुम्हें देता हूँ
इसलिये इसके लिये मत लड़ो। हमारे रिश्ते को यह रजामन्दी से कुबूल कर लेंगें तो इसके
लिये यह रकम कुछ भी नहीं है। नीलोफर ने एक बार मेरी ओर देखा और बड़े लखवी से बोली… समीर,
यह पैसों की बात नहीं है। यह हिस्सा मेरे हक की बात है क्योंकि मै भी इन सबकी तरह लखवी
परिवार का हिस्सा हूँ। क्या कोई अपनी जड़ों से कट कर पनप सकता है। मै तो तायाजी से इंसाफ
मांगने आयी थी लेकिन आज जो इन्होंने तुम्हारे सामने किया उसके लिये मै हमेशा के लिये
शर्मिन्दा हो गयी हूँ। बड़ा लखवी अचानक खड़ा हो गया तो बैठक मे उपस्थित सभी लोग किसी
खतरे की आशंका से सावधान हो गये थे। वह चलते हुए हमारे पास आया और नीलोफर के सिर पर
हाथ रख कर बोला… बिटिया, तेरा हिस्सा तुझे जरुर मिलेगा। तेरे निकाह को लखवी परिवार
रजामन्दी देता है। समीर, अगर इसको कभी कोई तकलीफ देने की सोची तो सिर्फ इतना याद रखना
कि यह लखवी परिवार की बेटी है। इतना बोल वह गर्जा… आज के बाद किसी ने अगर इस मसले पर
कुछ कहा तो उसका परिणाम बेहद तकलीफदेह होगा। तभी पर्दा हटा कर एक महिला बैठक मे आयी
और नीलोफर के हाथ मे एक बक्सा पकड़ा कर बोली… बिटिया, यह तेरी अम्मी का सामान है। नीलोफर
जल्दी से बोली… समीर, यह मेरी बड़ी अम्मी है। मैने झुक कर जल्दी से आदाब कहा तो वह महिला
बोली… हमारी अमानत को संभाल कर रखना। इसके बाद फिर परिवार के सदस्यों के साथ मिलने
जुलने का सिलसिला शुरु हो गया था।
अगली सुबह से नीलोफर
के कारोबार का काम शुरु हो गया था। लखवी परिवार के सदस्यों ने अपने-अपने गुटों मे बात
करनी शुरु कर दी थी। कुछ सदस्यों ने अपने गुटों मे नीलोफर के पैसों को हड़पने की नीयत
से बात की थी और कुछ छोटे-बड़े कारोबारियों मे अपना प्रभाव बढ़ाने की नीयत से बात कर
रहे थे। दोनो प्रकार के लोगों ने हमारे कारोबार का प्रचार करना आरंभ कर दिया था। दोपहर
तक नीलोफर लगभग ने दस कारोबारियों से बात कर चुकी थी। …समीर, सभी छोटे कारोबारी लग
रहे है। कोई भी एक करोड़ से उपर की बात नहीं कर रहा है। इनके जैसे कारोबारी का प्रभावक्षेत्र
बेहद संकीर्ण होता है। …तुम सबकी सुनो और बस करना वही जिसके कारण यहाँ के प्रभावशाली
समाज मे तुम्हारा प्रवेश हो सके। हमे एक गाड़ी की जरुरत है। कोई स्थानीय मार्किट बता
सकती हो जहाँ से एक सेकन्ड हैन्ड पिक-अप ट्रक खरीदा जा सके? वह कुछ बोलती कि उससे पहले
दस्तरखान का बुलावा आ गया। हम दोनो दलान की ओर निकल गये थे। सभी लोग दलान मे इकठ्ठे
हो गये थे कि अचानक नीलोफर ने एक अधेड़ से आदमी से कहा… मेहमूद भाईजान, यह एक पिक-अप
ट्रक खरीदना चाहते है। क्या आप किसी डीलर को जानते है? मेहमूद ने कुछ पल मुझे देखा और फिर मुस्कुरा कर
बोला… समीर, लंच के बाद मेरे साथ चलना। तभी रुख्सार हमारे सामने बैठते हुए आँखें नचा
कर बोली… भाईजान, इसकी बातों मे मत आना। मुझे शुरु से इसकी नीयत ठीक नहीं लगती। दोपहर
को भी यह दीदे फाड़ कर मुझे घूर रहा था और देखिये अभी भी कैसे भूखी नजरों से देख रहा
है। पल भर मे उसने भरी महफिल मुझे बेइज्जत कर दिया था। वह आँखों ही आँखों से मुझे चुनौती
देती हुई लग रही थी।
खाने के बाद मेहमूद
अपने साथ मुझे लेकर अपनी दुकान दिखाने की मंशा से मार्किट की दिशा निकल गया था। …समीर,
यह एशिया का सबसे बड़ा चोर बजार है। यहाँ महंगी से महंगी कार व उसके पार्ट्स खरीदे व
बेचे जाते है। हम एक विशाल गाड़ियों की मार्किट मे खड़े हुए थे। हर प्रकार की गाड़ियाँ
अलग-अलग हालात मे खड़ी हुई थी। कहीं कोई कार खुली पड़ी थी और कहीं चैसिस पर इंजिन फिट
हो रहे थे। कहीं डेन्टिंग-पेन्टिंग का काम चल रहा था और कहीं गाड़ियों के पार्ट्स फैले
हुए थे। सैकड़ों मैकेनिक और उनके हेल्पर गाड़ियों की मरम्मत मे व्यस्त दिख रहे थे। …मेहमूद
भाई, आपका क्या कारोबार है? …मत पूछो तो बेहतर होगा। …फिर भी भाईजान पता तो चले। मेहमूद
अपनी वर्कशाप दिखाते हुए बोला… इम्पोर्टिड गाड़ियों को खरीदने व बेचने का काम है। मैने
अचरज से वर्कशाप की ओर इशारा करके कहा… यह कार डीलरशिप तो नहीं लगती। अबकी बार मेहमूद
दबी आवाज मे बोला… चोरी की गाड़ियों को नया बना कर बेचने का काम है। जब से चीनी यहाँ
आये है तब से उनकी गाड़ियों का कारोबार तेज हो गया है। हमारे पास ऐसा हुनर है कि उनकी
गाड़ियों को हम टोयोटा की गाड़ी बना कर नये कागजात तैयार करके स्थानीय लोगों को आधी कीमत
मे बेच देते है। उनकी गाड़ियों से उनके पार्ट्स निकाल कर उन्हीं को बेचने का जो मजा
है वह किसी और काम मे नहीं है। इतना बोल कर वह खिलखिला कर हँस दिया था। तीन घंटे उस
मार्किट मे बिता कर हम एक नयी चमचमाती हुई टोयोटा हाईलक्स मे वापिस लौट रहे थे। …समीर,
इसके कागज कल तुम्हें मिल जाएँगें।
रात को कमरे मे बैठ
कर मै अपनी नयी योजना की रुपरेखा तैयार कर रहा था। …क्या सोच रहे हो? …गिल्गिट के लिये
अपनी योजना मे फेर बदल कर रहा हूँ। …समीर, मै आज एक कारोबारी से मिली थी। उसे दो करोड़
रुपये एक हफ्ते के लिये चाहिये। उसे सरकारी जब्ती से अपना माल छुड़ाना है। …किसका माल
है? …यहाँ की चीनी मिलों के मालिकों का वह बिचौलिया है। वह अपने नाम से बाहर से मशीनरी
मंगाता है और उन्हें यहाँ के कारोबारियों को बेचता है। उसका माल कस्टम ने जब्त कर लिया
है। …वह किसके जरिये मिला था? …मुन्नवर चचा ने एक रियलएस्टेट कारोबारी को मेरे पास
शापिंग माल के प्रोजेक्ट के लिये भेजा था। वह बिचौलिया उसके साथ आया था। वह उस वक्त
तो वापिस चला गया था परन्तु कुछ देर बाद वह लौट कर आया और मेरे से पूछने लगा कि क्या
उसे एक हफ्ते के लिये दो करोड़ मिल सकते है। मैने उसे कल आने के लिये कहा है। कुछ देर
सोचने के बाद मैने कहा… कल मै भी तुम्हारे साथ चलूँगा। एक बार उसकी हैसियत आंकना जरुरी
है। दलाल आदमी है तो यहाँ के प्रभावशाली कारोबारियों के समूह मे घुसने की वह चाबी हो
सकता है। …वह यहाँ के डीसी का दामाद है। …डिप्टी कमिश्नर? …हाँ, उसने यही बताया था।
…कोई बात नहीं। उसकी असलियत आसानी से पता चल जाएगी।
अगली सुबह हम दोनो
ताज पैलेस होटल के सूट मे बैठ कर कारोबारियों से मिल रहे थे। बड़े लखवी ने नीलोफर को
यह सुझाव दिया था कि आलीशान होटल के सूट को अपने आफिस मे परिवर्तित करके लोगों से मिलना
उसके कारोबार के लिये अच्छा रहेगा। तभी से नीलोफर ने इस सूट को अपने आफिस मे परिवर्तित
कर दिया था। ग्यारह बजे उसी दलाल का आगमन हुआ तो नीलोफर ने मुझे उससे मिलाते हुए कहा…
यह मेरे खाविन्द समीर है। यह सिर्फ बड़े प्रोजेक्ट्स का काम संभालते है। फिलहाल मै कुछ
कारोबारियों से बात कर रही हूँ तो आपको कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा। तब तक आप इनसे बात
कर लिजिये। …समीर साहब, मेरा नाम अकबर चौधरी है। नीलोफर बाजी को मैने अपनी जरुरत के
बारे मे बताया था। एक नजर उस पर डाल कर मैने कहा… आप जैसे सुन्दर और प्रभावशाली व्यक्तित्व
को मै अपनी बीवी से डील करने की इजाजत तो हर्गिज नहीं दे सकता। वह चौंक कर मेरी ओर
देखने लगा तो मैने मुस्कुरा कर कहा… भाईजान, आपको देख कर अब मुझे अपनी बीवी की चिन्ता
सता रही है। वह कहीं आपके साथ भाग गयी तो मुझ गरीब का क्या होगा। इतना बोल कर मै खिलखिला
कर हँसते हुए बोला… प्लीज मेरी बात का बुरा मत मानिये। मै मजाक कर रहा हूँ। हम कारोबारी
सारे समय बस संख्या और मुनाफे मे उलझे रहते है। आपको देख कर मुझे लगा कि कोई फिल्मी
हस्ती मिलने आयी है। वह मुस्कुरा कर बोला… समीर भाईजान आप बेहद दिलचस्प इंसान है।
वह कुछ और बोलता उससे
पहले मैने कहा… अकबर मियाँ, क्या आप सिर्फ चीनी फैक्ट्रियों के लिये काम करते है?
…नहीं, मै दवाई कारोबारियों और सीमेन्ट कारोबारियों के लिये कच्चा माल व मशीनों को
उप्लब्ध कराता हूँ। मेरा आयात और निर्यात का काम है। …चौधरी साहब, दो करोड़ रुपये एक
हफ्ते के लिये मिल जायेंगें परन्तु आपकी गारन्टी कौन लेगा। वह तुरन्त बोला… मेरी गारन्टी
मेरे ससुर डीसी शमशेर अहमद देंगें। …आपको ब्याज एक महीने का देना होगा। हम वैसे तो
छह महीने से कम फाईनेन्स नहीं करते है लेकिन चुँकि आपने डीसी साहब का रेफ्रेन्स दिया
है तो हम इसको फाईनेन्स करने के लिये तैयार है लेकिन हमारी ब्याज की दर चार परसेन्ट
है। इतना बोल कर मै चुप हो गया तो वह तुरन्त बोला… समीर साहब, ब्याज की दर कुछ ज्यादा
है। …तो आप किसी और से ले लिजिये। …नहीं, मेरा यह मतलब नहीं था। क्या कुछ कम कर सकते
है? मैने मुस्कुरा कर कहा… हाँ अगर आप हमे अपने घर पर डिनर कराने का वादा करें तो मै
यह दर दो पर्सेन्ट कर सकता हूँ। अबकी बार वह खिलखिला कर हँसते हुए बोला… आप कैसी बात
कर रहे है। अपने दोस्तों के लिये हमने कल रात को एक छोटी सी पार्टी रखी है। प्लीज,
आप दोनो मेरे गरीबखाने पर आयेंगें तो मै इसे अपनी खुशकिस्मती समझूँगा। …चौधरी साहब,
जब से यहाँ आये है तब से हम आफिस के बाहर नहीं निकले है और न ही हम यहाँ पर ज्यादा
लोगों को जानते है। नीलोफर भी एक ही काम करते हुए बोर हो गयी है तो मैने सोचा कि इसी
बहाने उसका मन भी बहल जाएगा। …समीर साहब, बहुत अच्छा विचार है। आप दोनो जरुर आईयेगा।
…कल तक आपके पेपर्स तैयार हो जाएँगें। इतनी बात करके मैने उसे रुखसत किया और नीलोफर
की ओर चला गया। वह अभी भी उनके प्रोजेक्ट मे उलझी हुई थी।
मै उसके साथ बैठ कर
उनके प्रोजेक्ट को समझने मे उलझ गया था। अचानक मेरे दिमाग मे एक बात आयी तो मैने पूछा…
इरशाद साहब, आप जहाँ शापिंग माल डालने की बात कर रहे है वह मुनिसिपल एरिया लगता है।
इस प्रोजेक्ट की सारी पर्मिशन तो डीसी के हाथ मे है। क्या वह आपको इतनी आसानी से पर्मिशन
दे देगा? …अरे जनाब आप उसकी फिक्र छोड़िये। उसका हर सिविल प्रोजेक्ट मे पाँच पर्सेन्ट
का कमीशन बंधा हुआ है। वह पैसे पहले रखवाता है और फाईल बाद मे पास करता है। …क्या आप
अकबर चौधरी को जानते है? …आप डीसी के दामाद की बात तो नहीं कर रहे है? …हाँ, उसी के
बारे मे पूछ रहा हूँ। कैसा आदमी है? …जनाब,
वह अपने ससुर के नाम को हर जगह इस्तेमाल करता है जबकि उसकी अपने ससुर से बनती नहीं
है। …क्यों? …यह बात जग जाहिर है साहब कि शमशेर अहमद इस रिश्ते के खिलाफ था लेकिन बेटी
की जिद्द के आगे उसकी एक नहीं चली। आजकल अकबर अपनी बीवी की मदद से कोर्पोरेट दलाली
का काम करता है। …ओह तो यह बात है। इरशाद ने तुरन्त पूछा… परन्तु आप यह सब क्यों पूछ
रहे है? …कोई खास कारण नहीं है। उसकी पार्टी का न्यौता मिला है तो इसीलिये उसके बारे
मे जानना चाहता था। इसके बाद एक बार फिर से शापिंग माल की कहानी मे उलझ गये थे।
देर शाम को लौटते
हुए मैने नीलोफर को सारी बातों से अवगत करा कर पूछा… अब बताओ इसके बारे मे तुम्हारी
क्या सलाह है? …समीर, बेवजह रिस्क लेने की हमे जरुरत नहीं है। मैने अपनी सिर्फ गरदन
हिला दी थी। रात को खाने के दौरान मैने एक बार वही प्रश्न मेहमूद भाई से किया तो उनका
जवाब था कि हिसाब-किताब मे अकबर चौधरी सही आदमी है। अगली सुबह तक मै इसी निष्कर्ष पर
पहुँचा कि दो करोड़ का जुआ है लेकिन सारी बात पार्टी मे आये हुए मेहमानों पर निर्भर
करेगी। यही बात नीलोफर को बता कर मैने अपने दिमाग का बोझ हलका कर लिया था। पिछले तीन
दिन मे नीलोफर लगभग बीस कारोबारियों से मिली थी और उनमे से उसने तीन प्रोजेक्ट को मेरे
सामने रखा था। …नीलोफर, वह जमानत के लिये क्या सुझाव दे रहे है? …सिक्युरिटी के लिये
कोई मकान और कोई जमीन के कागज देने की बात कर रहे है। …मुझे अब तुम्हारे तायाजी से
एक बार मिलना है। …सुबह चाय के समय तैयार हो जाना क्योंकि तायाजी कल सुबह जल्दी चले
जाएँगें। …क्या अभी नहीं मिल सकते? …नहीं इस वक्त वह किसी से नहीं मिलते। इतना बोल
कर वह चुप हो गयी थी।
अगली सुबह मै हमेशा
की तरह पाँच बजे उठ कर छह बजे तक तैयार हो गया था। नीलोफर ने बताया था कि जकी-उर-लखवी
सुबह फज्र की नमाज के बाद तैयार होने चले जाता है। छह से आठ बजे तक वह दलान मे लोगों
से मिलना जुलना शुरु कर देता है। मै जब दलान मे पहुँचा तब तक सब सुनसान पड़ा हुआ था।
लश्कर के कारिन्दे बैठने वालों के इंतजाम मे जुटे हुए थे। तभी जकी-उर-लखवी ने दलान
मे प्रवेश किया तो मुझे वहाँ खड़ा देख कर चौंक कर बोला… इतनी सवेरे तुम यहाँ क्या कर
रहे हो? तभी एक कारिन्दा बोला… जनाब क्या गेट खोल दें? मैने जल्दी से कहा… तायाजी,
एक जरुरी मसले पर आपकी राय लेनी है। बड़े लखवी ने अपना हाथ उठा कर अपने कारिन्दे को
रोकते हुए पूछा… क्या बात है? मैने संक्षिप्त मे तीन प्रोजेक्ट के बारे मे बता कर पूछा…
क्या आपके द्वारा इस पैसे की वसूली हो सकती है? कुछ सोच कर वह बोला… मै ऐसे काम मे
हाथ नहीं डालता परन्तु अगर कोई मुश्किल पेश आये तो मुझे बता देना। बस इतनी बात उस दिन
हमारे बीच मे हुई थी।
मुन्नवर लखवी ने एक
वकील अबरार आलम का नाम सुझाया था तो मै और नीलोफर उससे मिलने के लिये चल दिये थे। अबरार
आलम काफी नामी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का वकील था। उससे मिल कर हमने फाईनेन्सिंग
के कानूनी कागज तैयार करने की बात कह कर दोपहर के बाद हम वापिस अपने होटल पहुँच गये
थे। होटल के रिसेप्शन पर हमारे लिये एक सुन्दर सा कार्ड रखा हुआ था। आज रात की पार्टी
के लिये अकबर चौधरी का निमन्त्रण था। एक बार फिर से कारोबारियों से बात करने का सिलसिला
आरंभ हो गया था। रात को आठ बजे के करीब हम अकबर चौधरी के बताये हुए स्थान पर पहुँच
गये थे। कोई जिमखाना जैसा क्लब दिख रहा था। एक ही स्थान पर तीन चार पार्टी का इंतजाम
किया हुआ था। अकबर चौधरी की पार्टी का इंतजाम पीछे लान मे किया हुआ था। लम्बे से गलियारे
को पार करके जैसे ही हमने लान मे कदम रखा तो वहाँ का हाल देख कर मै चौंक गया था। वहाँ
दिल्ली जैसी पार्टियों का नजारा दिखाई दे रहा था। पश्चिमी फैशन का प्रभाव उपस्थित युवकों
और युवतियों मे काफी ज्यादा दिख रहा था। …देख लिया कि यहाँ की पार्टी कोई दिल्ली की
पार्टी से भिन्न नहीं है। तुमने मुझे तैयार ही नहीं होने दिया। अब उसकी शिकायत मुझे
उचित लग रही थी। यहाँ पुरुषों और महिलाओं मे खुले आम ड्रिंक्स के दौर चल रहे थे।
मेरी निगाहें अकबर
चौधरी को ढूँढ रही थी। …समीर साहब। एक आवाज गूँजी तो मैने मुड़ कर उस दिशा मे देखा तो
अकबर चौधरी एक सुन्दर सी स्त्री के साथ हमारी ओर आता हुआ दिखाई दिया। वह बड़ी गर्मजोशी
से मिला और अपने साथ खड़ी हुई स्त्री की ओर इशारा करके बोला… यह मेरी वाईफ सारा अहमद
है। सारा अपने पश्चिमी परिधान मे बेहद खूबसूरत और कामुकता की जीवंत मूर्ती लग रही थी।
हम दोनो ने उनका अभिवादन किया और सारा हमे पार्टी मे आये हुए लोगों से मिलाने के लिये
चल दी थी। मुश्किल से तीस-चालीस लोग थे परन्तु सभी से मिलने के पश्चात मै इसी नतीजे
पर पहुँचा कि सभी लोग प्रभावशाली घरों से ताल्लुक रखते थे। कुछ उद्योगपति घरानो से
ताल्लुक रखते थे और कुछ वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के परिवार के सदस्य थे। अपने हाथ
मे ड्रिंक्स का गिलास उठाये हम दोनो सभी से मिलने मे व्यस्त हो गये थे। उनमे हमारी
पहचान सारा ने एक अन्तरराष्ट्रीय फाईनेन्सर के रुप मे करायी थी। उनसे बातचीत के दौरान
नीलोफर ने बताया कि फाईनेन्स का कारोबार बढ़ाने के लिये वह पाकिस्तान आयी है। यहाँ पर
नीलोफर की उपयोगिता मुझे समझ मे आ गयी थी। वह बहुत से लोगो के जानकारो को पहले से जानने
के कारण आसानी से उस समूह मे घुलमिल गयी थी। उनके साथ कुछ समय बिताने के पश्चात अकबर
हमारे को उस भीड़ से अलग करके एक किनारे मे ले जाकर बोला… तो आपने हमारे बारे मे क्या
सोचा है? सारा भी हमारे पास आकर खड़ी हो गयी थी।
एक नजर उन दोनो पर
डाल कर मैने कहा… अकबर साहब, डीसी साहब की गारन्टी कैसे दिलवाएगें? नीलोफर मुस्कुरा
कर सारा की ओर देखते हुए बोली… हमने सुना कि आपके ताल्लुकात उनसे अच्छे नहीं है। अकबर
ने मुस्कुरा कर सारा की ओर इशारा करके कहा… यह उनसे गारन्टी दिलवायेगी। आप बेफिक्र
रहिये। पहली बार सारा ने बड़ी बेतकल्लुफी से मेरा हाथ पकड़ कर कहा… आप मेरे साथ चलिये।
मै कुछ बोलता कि तभी नीलोफर ने अपने पर्स से एक लिफाफा निकाल कर अकबर के सामने करके
कहा… यह आप आराम से पढ़ कर निर्णय लिजियेगा। अगर आप साईन करने के लिये तैयार है तो मै
अभी जाने से पहले आपको ब्याज काट कर पूरे अमाउन्ट का चेक दे दूंगी। …नीलोफर, आप यह
औपचारिक्तायें छोड़िये। बताईये कहाँ साईन करना है? नीलोफर ने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी
से कहा… यह तुम्हारा निर्णय है। तभी अकबर बोला… नीलोफर बाजी, आप मेरे साथ आईये। नीलोफर
एक पल कुछ सोच कर उसके साथ चली गयी और मै वहीं पर सारा के साथ खड़ा रह गया था। सारा
मेरे समीप आकर बोली… समीर, जब तक वह बात कर रहे है तब तक क्या कुछ समय आप मुझे नहीं
दे सकते? मैने उसकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोली… आप बेफिक्र रहिये। अकबर आपकी नीलोफर
का अच्छे से ख्याल रखेगा। यह बोलते हुए वह मेरे बेहद करीब आ गयी थी। मैने उसकी आँखों
मे झाँकते हुए कहा… तो मेरा ख्याल कौन रखेगा? अबकी बार बड़ी बेशर्मी से वह लगभग मुझसे
लिपटते हुए आँखें नचा कर बोली …आपकी जरुरतों का ख्याल रखने के लिये मै हूँ ना। वह इतने
करीब आ गयी थी कि उसके कोमल जिस्म का मुझे आभास हो रहा था। मुश्किल से कुछ ही मिनट
बीते थे कि नीलोफर मेरी ओर आती हुई दिखी तो सारा चौंक कर मुझसे छिटक कर दूर हो गयी
थी।
नीलोफर मेरे पास आकर
बोली… हमारी डील हो गयी है। मैने अकबर को चेक दे दिया है। …जब तुम्हारा काम हो गया
है तो अब हम वापिस चलते है। …आओ चलो लेकिन पहले सभी से विदा लेना अच्छा होगा। इतना
बोल कर नीलोफर और मै पार्टी मे आये हुए अतिथियों की भीड़ की ओर बढ़ गये थे। सारा चुपचाप
वहीं बुत बनी खड़ी रह गयी थी। सबसे मिल कर इजाजत लेने के पश्चात जब हम उस क्लब हाउस
से बाहर निकले तो मैने पूछा… तुम्हारी डील इतनी जल्दी कैसे हो गयी? …उसने सारे कागजों
पर साईन कर दिया था। बस चलते हुए मैने उसे बता दिया कि अगर समय पर पैसा वापिस नहीं
किया तो फिर लश्कर पैसा वसूल करने आयेगी लेकिन उस वक्त शमशेर अहमद भी उसके काम नहीं
आयेगा। वापिस घर लौटते हुए नीलोफर ने कहा… समीर, मै अकबर के साथ कल करांची जा रही हूँ।
क्या तुम कुछ दिन होटल मे रुक जाओगे? …करांची क्यों? …मैने इसी शर्त पर अकबर से डील
की है कि वह मुझे बड़े आयातकों से संपर्क करवायेगा। …क्या मै तुम्हारे साथ नहीं चल सकता?
…नहीं। अकबर तुम्हारे सामने खुलने की हिम्मत नहीं कर सकेगा। …होटल मे क्यों? …मेरे
भाई-बहनों की साजिशों के कारण मै तुम्हें होटल मे रुकने के लिये कह रही हूँ। मैने कुछ
नहीं कहा और होटल की दिशा मे चल दिया।
अगली सुबह नीलोफर
कराँची चली गयी थी। अगले हफ्ते मेरे साथियों के पहुँचने के बाद मुझे गिल्गिट से आप्रेशन
अज्ञातवीर को लाँच करने की रणनीति तैयार करने के लिये काफी समय मिल गया था। मै अपनी
रणनीति पर काम करने बैठ गया। शाम को मै अपने कागज समेट कर बैग मे रख रहा था कि डोरबेल
बज उठी। मैने दरवाजा खोला तो मेरे सामने एक बुर्कापोश महिला खड़ी हुई थी। झीनी सी चिलमन
मे सिर्फ उसकी आँखें दिख रही थी। …क्या मै अन्दर आ सकती हूँ? मै गड़बड़ा कर जल्दी से
बोला… जी फिलहाल यहाँ कोई नहीं है। वह मुझे
धकेल कर अन्दर आकर बोली… मै तो आपके लिये आयी हूँ। मैने जल्दी से दरवाजे को बन्द करके
मुड़ा तो उसकी चिलमन हट चुकी थी। उसका चेहरा देख कर मै चौंक गया था। वह मुस्कुरा कर
बोली… अकबर एक हफ्ते नीलोफर का ख्याल रखेगा तो मै यहाँ आपका ख्याल रखने के लिये आ गयी।
इतना बोल कर वह मेरे निकट आकर खड़ी हो गयी थी।
अगले कुछ दिन मेहमूद
और उसके साथियों के साथ समय बिता कर मैने आजाद कश्मीर के बारे मे जरुरी जानकारी इकठ्ठी
करना शुरु कर दिया था। उनके माध्यम से गिल्गिट और बाल्टीस्तान के बहुत से कारोबारियों
से मेरी मुलाकात हो गयी थी। आजाद कश्मीर के कारोबारियों के लिये लाहौर एक मात्र खरीदारी
का केन्द्र था। सारा सामान खाने से लेकर कंप्युटर और गाड़ियों के पार्ट्स यहीं से वहाँ
जाते थे। एक हफ्ते बाद जब नीलोफर कराँची से वापिस लौटी तब तक मै काफी तैयारी कर चुका
था। नीलोफर के आने से पहले सारा वापिस चली गयी थी। उसके लौटते ही हम वापिस हवेली मे
चले गये थे। अपने काम को बढ़ाने के लिये लखवी परिवार से इजाजत लेकर हम दोनो मुजफराबाद
की दिशा मे निकल गये थे। जब तक हम मुजफराबाद पहुँचे तब तक मेरे साथियों का आगमन होना
शुरु हो गया था। दो रात मुजफराबाद मे बिताने के बाद हम सब गिल्गिट की दिशा मे निकल
गये थे। मुझे सीमा पार करे हुए एक महीना हो गया था। अब आप्रेशन आज्ञातवीर को लाँच करने
का समय आ गया था।
jabardast post welcome back bro
जवाब देंहटाएंशुक्रिया साईरस भाई।
हटाएंबहुत ही सुंदर शुरवात, और कहानी के दशा और दिशा समीर को पाकिस्तान ला पटका है और अब नीलोफोर और उसके घरोई कलह तथा पिछले साजिश के एक अहम किरदार इस घर से ताल्लुकात रखता है। अंत में लगा थोड़ा कहानी आगे कुछ समय निकल आ चुकी है अब देखते हैं आगे क्या होता है जब निलोफर कराची के दौरा करके आई है बहुत सारे तथ्य का भी उससे खुलासा होगा।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई धन्यवाद। आपने सही पहचाना है। बहुत कु्छ अनदेखा कहानी के लिये किया है जिसको आगे आसानी से जोड़ा जा सकेगा।
हटाएंप्रशांत भाई धीरे-धीरे कड़ी खुलेंगी और आगे जाकर किसी मोड़ पर जुड़ेंगी। आपको इंतजार करना पड़ेगा। धन्यवाद भाई।
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