काफ़िर-36
रावलपिंडी
पाकिस्तान जीएचक्यू
मे माहौल तनावपूर्ण था। जनरल शरीफ बेहद गुस्से मे था। जनरल मंसूर बाजवा का इंतजार हो
रहा था। पिछले पाँच मिनट मे दस बार मंसूर बाजवा के बारे मे पूछ लिया था। अभी कुछ देर
पहले बलूचिस्तान की ओर से भी बुरी खबर आयी थी कि एक पेट्रोलिंग पार्टी पर फिदायीन हमले
मे आठ सैनिक शहीद हो गये थे। जनरल मंसूर बाजवा के कार से उतरते ही जीएचक्यू मे एकाएक
शांति छा गयी थी। खबर आग की तरह फैल गयी थी कि आज मंसूर बाजवा की सारी हेंकड़ी निकल
जाएगी। जनरल शरीफ का असिस्टेन्ट दरवाजे के बाहर पहुँच गया था। मंसूर बाजवा के पहुँचते
ही उसने जनरल साहब को खबर पहुँचा दी थी। दरवाजे पर धीरे से दस्तक देकर मंसूर बाजवा
अन्दर चला गया। सभी लोगों की नजर जनरल शरीफ के आफिस की ओर लगी हुई थी।
…आईये मंसूर। वहाँ
क्या हुआ? …जनाब, मैने इज्तिमा को स्थगित कर दिया है। मेरे अफसर ने एक ही वार मे बाजार
के मुख्य खिलाड़ियों को किनारे लगा दिया है। अब वह जमात पर काबिज होने की तैयारी कर
रहा है। एक बार जमात-ए-इस्लामी पर हमारा आदमी काबिज हो गया तो भारत के सभी हिस्सों
मे पहुँचने का हमें रास्ता मिल जाएगा। …उन तंजीमों से क्या कहोगे? …सर, कुछ पैसे और
असला दिखा कर उन्हें चुप कराने मे कोई मुश्किल नहीं आयेगी। …शतरंज की बिसात पर प्यादे
शहीद करके अपने वजीर को एक सुरक्षित स्थान पर बिठा कर तुमने बेहद महत्वपूर्ण काम को
अंजाम दिया है। अब आगे क्या? …जनाब, हमारा एक नकली करेन्सी का कन्साईन्मेन्ट पकड़ा गया
है। अगर इसमे वह कन्साईन्मेन्ट बच गया होता तो काफिरों के यहाँ दीवाली तीन महीने पहले
मन जाती परन्तु अब कुछ दिन इंतजार करना पड़ेगा। …वलीउल्लाह की ओर से क्या खबर है? …जनाब,
समय-समय पर खबर देता रहता है परन्तु अभी तक स्ट्रेटिजिक लोकेशन्स की खबर नहीं मिली
है। एक युनिट को मैने सिर्फ इसी काम पर लगा रखा है। …उस पर दबाव डालने की जरुरत नहीं
है। किसी महत्वपूर्ण स्थान पर पहुँचने के लिये उसे समय दो। वह हमारा डीप एस्सेट है
और उसका इस्तेमाल सही वक्त पर करना है। …जी जनाब, इसीलिये हम अपनी ओर से कभी संपर्क
नहीं करते है। …गुड। जीएचक्यू मे आज चर्चा गर्म है कि आईएसआई चीफ की खातिरदारी होने
वाली है। …सर, सबको खुश होने दिजिये। जल्दी ही आपको जमात की ओर से खुशखबरी मिल जाएगी।
जनरल मंसूर बाजवा अपनी कुर्सी छोड़ कर उठ कर खड़ा हुआ और मुस्तैदी से जनरल शरीफ को सैल्युट
करके कमरे से बाहर निकल गया था।
जीएचक्यू की सैकड़ों
आँखे मंसूर बाजवा के उतरे हुए चेहरे को देख कर अन्दर ही अन्दर खुशी से झूम रही थी।
जीएचक्यू मे फोन खड़कने आरंभ हो गये थे।
मै कुछ देर उसके फ्लैट
के सामने खड़ा रहा था। घंटी बजाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी अचानक मुख्य द्वार
खुला और आसिया सामने खड़ी हुई मुझे घूर रही थी। मै कुछ कहता कि तभी वैजयंती और एक और
लड़की हँसते हुए आसिया के पीछे बाहर निकल आयी थी। …तू ठीक कह रही थी। यह अन्दर आने से
डर रहा था। …अब अन्दर आना है या आज बाहर पैसेज मे सोने का इरादा है। आसिया की घुड़की
सुन कर मै तुरन्त अन्दर चला गया था। …समीर, आज पी कर आया है? मै इसी प्रश्न से बचने
का प्रयत्न कर रहा था। मैने हिचकिचाते हुए धीरे कहा… हाँ। आसिया सेना की मीटिंग मे
कभी जबरदस्ती पीनी पड़ जाती है। तभी वैजयंती बोली… और खाना? …मै डिनर करके आया हूँ।
आसिया की ओर देखने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। वह सब सोफे पर जा कर बैठ गयी थी।
शर्मसार होकर मै एक विद्यार्थी की भाँति उन तीनो के सामने खड़ा हो गया था। अचानक मेज
के नीचे से बोतल और ग्लास मेज पर रखती हुए उस अनजान लड़की ने कहा… हम सोच रहे थे कि
आज तुम्हारे आने की पार्टी करेंगें। खैर गर्ल्स तुम अपने ग्लास तो खाली करो। मै भौंचक्का
सा आसिया को देख रहा था। उसने एक साँस मे अपना ग्लास खाली किया और मेज पर ग्लास रख
कर बोली… शाम से तुम्हारा इंतजार चल रहा था। यह मेरी दोस्त यासमीन है। यह भी हमारे
साथ अस्पताल मे काम करती है। उसके अन्दर आये हुए इस बदलाव को देख कर मै स्तब्ध खड़ा
रह गया था।
मै उनके सामने बैठ
गया परन्तु मेरी नजर आसिया पर टिकी हुई थी। उन्होंने जल्दी से अपनी ड्रिंक्स समाप्त
की और खाना खाने बैठ गयी। …आसिया मै कपड़े बदल कर आता हूँ तब तक आप लोग भोजन किजीये।
यह बोल कर मै अपने कपड़े बदलने चला गया। जब तक कपड़े बदल कर आया तब तक उनका खाना समाप्त
हो गया था। …इतनी जल्दी। …समीर, डाक्टरों की जिंदगी ऐसी ही होती है। ड्युटी को छोड़
कर बाकी सभी काम जल्दी-जल्दी करने पड़ते है। कुछ देर उनकी कहानी सुनी और फिर आसिया ने
कहा… समीर, तुम मेरे कमरे मे सो जाओ। मै यासमीन के साथ सो जाऊँगी। सब कुछ वैसे छोड़
कर तीनों सहेलियाँ उठ कर चल दी थी। मै कुछ देर वहाँ बैठा रहा फिर कुछ सोच कर मेज पर
रहे हुए बर्तनों को उठा कर किचन मे रखा और फिर मेज साफ करके बिखरा हुआ सामान और खाली
बोतल डस्ट बिन मे डाल कर सोने चला गया था।
सुबह कहीं मोटर चलने
की आवाज से मेरी नींद टूट गयी थी। मै आँख मल कर उठ कर बैठने लगा तो मेरी नजर आसिया
पर पड़ी जो हेयर ड्रायर से अपने बाल सुखाने मे व्यस्त थी। मुझे उठते हुए देख कर बोली…
सौरी। मेरी शिफ्ट है तो जाने के लिये तैयार हो रही थी। पता नहीं उसे तैयार होते हुए
देख कर मुझे अंजली की याद आ गयी थी क्योंकि वह भी सुबह ऐसे ही तैयार होकर भागती हुई
दिखती थी। …क्या देख रहा है? मैने मुस्कुरा कर कहा… अंजली भी सुबह ऐसे ही भागती हुई
दिखती थी। उसने जल्दी से अपना सफेद कोट उठाया और स्टेथेस्कोप गले मे लटका कर बोली…
समीर आज घर जल्दी आ जाना। बस इतना बोल कर वह चली गयी थी। मै आराम से उठा और अपने लिये
चाय बनाने के लिये चल दिया। किचन मे यासमीन अपने लिये चाय बना रही थी। मुझे देख कर
उसने एक कप पानी और डाल कर बोली… आसिया तो चली गयी होगी? …हाँ। आपको कितने बजे जाना
है। …मेरी ओपीडी है। नौ बजे पहुँचना है। …और वैजयंती? …उसकी दोपहर की शिफ्ट है। हमने
आराम से बात करते हुए चाय पी और फिर रोजमर्रा के काम मे व्यस्त हो गये थे।
आसिया ने कैन्टीन
से नाशता भिजवा दिया था। नाश्ता करके मै आप्रेशन आघात-2 की रुपरेखा तैयार करने मे जुट
गया था। मै दोपहर तक उसमे डूबा रहा था। आसिया के आगमन पर हमने साथ लंच किया और फिर
वह जाते हुए एक बार बोली… आज टाइम से घर आ जाना। …आज मै कहीं नहीं जा रहा हूँ। आज जल्दी
लौट आना। आसिया विदा लेकर चली गयी थी और मै एक बार फिर से अपने काम मे लग गया था।
चार बजे आसिया अस्पताल
से आ गयी थी। …आसिया आज का क्या प्रोग्राम है? …कोई खास नहीं। …तो चलो सबको लेकर बाहर
चलते है। …नहीं समीर, यासमीन तो कुछ देर मे आ जाएगी। वैजयंती आठ बजे ही आ सकेगी। हम
चाय पीने बैठ गये थे। कुछ देर के बाद यासमीन भी आ गयी थी। सात बजे तक उन्होंने अपने
अस्पताल के बारे बहुत कुछ जानकारी मुझे दे दी थी। आसिया उठते हुए बोली… समीर, कल हम
वोदका ले रहे थे। क्या तुम्हारे लिये वोदका चलेगी? …चलेगी। मेरी कोई खास प्रीफ्रेन्स
नहीं है। …टोमेटो सूप या आरेन्ज जूस। …तुम दोनो कैसे लेती हो? …आरेन्ज जूस। …ठीक है।
मै भी आरेन्ज जूस से ले लूंगा। यासमीन कैन्टीन से कुछ खाने का सामान ले आयी थी। सारा
सामान मेज पर सजा कर पीने बैठ गये थे।
एक घूँट गले से उतार
कर मैने पूछा… तुमने इतनी सारी बातें अस्पताल के बारे मे बता दी कि अगर अब तुम मुझे
अपने अस्पताल मे छोड़ दोगी तो भी बिना बताये मै सबको बड़ी आसानी से पहचान लूँगा। उस रात
हम देर तक खाते पीते रहे थे। ग्यारह बजे आसिया ने महफिल बर्खास्त करते हुए कहा… सुबह
सात बजे की शिफ्ट की ड्युटी है। मैने उसे टोकते हुए कहा …आसिया, मै कल सुबह नौ बजे
चला जाऊँगा। …तुम्हारी फ्लाईट तो दो बजे की है। मै बारह बजे तक आ जाउँगी फिर साथ लंच
करेंगें। …आसिया, सुबह की मीटिंग के बाद मै
वहीं से फ्लाईट पकड़ने के लिये एयरपोर्ट निकल जाऊँगा। एक ही पल मे आसिया के चेहरे पर
मायुसी छा गयी थी। …आसिया, इसमे उदास होने की क्या बात है। अब तो मेरे चक्कर लगते रहेंगें।
वह मुस्कुरा कर बोली… समीर, जब से मैने श्रीनगर छोड़ा है तब से मेरे घर का कोई सदस्य
मेरे साथ नही रहा है। आफशाँ बैंगलौर मे रही परन्तु वह मुझसे कालेज मे मिलने आती थी।
वह कभी मेरे रुम पर नहीं आयी। यह मेरी अकेले की कहानी नहीं है। यासमीन भी जब से हैदराबाद
से आयी थी तभी से वह भी अकेली रह रही है। हम साल-दो साल मे कुछ दिन अपने घर पर गुजारने
के लिये जरुर चले जाते है परन्तु अपने लोगों से ही कट कर रह गये है। अब तो अम्मी भी
नहीं रही और जैसा तुम बता रहे हो कि अब्बा की हालत भी नाजुक है तो मुझे अब अकेले रहने
मे डर लगने लगा है।
उसने मुझे अपने दिल
मे छिपी हुई शिकायत से अवगत करा दिया था। मैने उठ कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर कहा…
आसिया, बचपन से मै तुम्हारे साथ रहा हूँ। जब भी रात मे डर लगता तो तुम्हारे सीने मे
मुँह छिपा कर सो जाता था। तुम मेरे होते कभी अकेली नहीं हो सकती। जब भी अकेलापन महसूस
करो तो वहाँ आ जाना वर्ना मुझे खबर कर देना। उसकी दोनो सहेलियाँ रुआँसी सी हम दोनो
को देख रही थी। कुछ हम सब पर नशे का असर था और कुछ एकाकीपन का डर था। हम सबके हालात
लगभग एक जैसे ही थे। कुछ देर बात करने के बाद वैजयंती, फिर आसिया और यासमीन सोने चली
गयी थी। मै सारा सामान समेट कर आसिया के कमरे मे चला गया था।
मै अपने बिस्तर पर
पड़ा हुआ नीलोफर और फारुख की युगलबंदी के बारे मे सोच रहा था कि अचानक दरवाजा खुला और
आसिया लड़खड़ाती हुई कमरे मे आकर बोली… समीर। मैने उठ कर उसे संभाल कर बिठाते हुए पूछा…
क्या हुआ? …समीर, उस शाम घर के पास वाली पुलिया की बात याद है। एकाएक मेरा अतीत मेरी
आँखों के सामने आ गया था। …हाँ, मुझे सब याद है। …तो मै आज वापिस अपने बिस्तर पर आ
गयी हूँ। एक पल के लिये उसकी बात सुन कर मै चौंक गया था। मै कुछ बोलने के लिये मुँह
खोला ही था कि मुझे अपनी मनोस्थिति का ख्याल आया जब आसिया ने यह बात मुझसे उस शाम कही
थी। मेरा दिल टूट गया था। मैने धीरे से उसे बिस्तर पर लिटाया तो उसकी बाँहे मेरे गले
के इर्द गिर्द लिपट गयी थी। मैने धीरे से झुक कर उसके होंठ चूम कर कहा… आसिया, हम दोनो
नशे मे है। वह झुंझलाते हुए बोली… नशे मे होने के कारण ही तो मै यहाँ आने की हिम्मत
जुटा सकी हूँ। क्या तुम भी मुझे अपनी जिंदगी से सभी की तरह एक फटे पुराने कागज की तरह
उठा कर बाहर फेंक दोगे? एक बार बचपन का समीर मुझ पर दुबारा हावी हो गया था। मैने उसके
सीने मे सिर छिपा कर उससे अपनी बाँहों मे जकड़ कर लेट गया था।
उसने नशे मे लड़खड़ाती
हुई आवाज मे कहा… …समीर,
शैतान मेरी गुफा मे छिप कर बैठ गया है। मुझे डर लग रहा है। मै अपने बचपन मे लौट आया था। उसने मेरे होंठों को अपने होंठों मे दबा कर
रस सोखना आरंभ कर दिया था। कुछ देर तक मेरे होंठों के साथ खेलेने के पश्चात उसने अपना
कुर्ता उतार कर अपना सीना अनावृत करके एक स्तन को मेरे मुख पर लगा दिया था। एक पल के
लिये मै रुक गया और उसके उपर छाने के बजाय मेरी उँगलिया उसके स्तन की गोलाईयों को नाप रही थी और उनके सिरे
पर उत्तेजना से अकड़े हुए स्तनाग्र छेड़ रही थी। वह नशे मे बड़बड़ाती जा रही थी और उसके
मुख से लगातार सिस्कारियां विस्फुटित हो रही थी। उत्तेजना से उसके स्तानग्र अकड़ गये
थे। मेरे होंठ, जुबान और उँगलियों ने उन पर वार करना आरंभ कर दिया था। थोड़ी देर के
बाद मैने उसकी शलवार निकाल कर उसकी टांगों
को अलग करके जाँघों के बीच मे आ गया और कोमल हिस्से को लाल करने मे जुट गया था। वह
मचल रही थी परन्तु मै उपर की ओर बढ़ता चला गया। बाल रहित योनिमुख मेरे सामने आ गया था।
मेरी उँगलियों ने उसके स्त्रीत्व के द्वार को खोल कर उसके अंकुर पर अपनी जुबान से पहला
वार किया और फिर एक लम्बा दौर आरंभ हो गया था। मेरे होंठ उसके अंकुर पर टिक गये थे
और मेरी उंगली गुफा मे छिपे हुए शैतान को निकालने मे जुट गयी थी। आसिया की घुटी हुई
आहें और चीखें लगातार निकल रही थी। वह बार-बार
उठने की कोशिश करती परन्तु मेरी शक्ति के आगे वह हिलने की स्थिति मे नहीं थी। उत्तेजना
के चरम पर पहुँच कर उसने मेरे गले को अपनी जाँघों मे जकड़ लिया था। एक पल के लिये उसका
जिस्म अनियंत्रित हुआ और एक गहरा झटका खाकर पूरे जिस्म मे कंपन आरंभ हो गया था। …शैतान
भाग गया। मै धीरे से बड़बड़ाया और उसको अपनी बाँहों मे बाँध कर लेट गया। उसकी तेज चलती
हुई साँसे धीरे-धीरे सामान्य हुई और वह जल्दी ही नींद मे खो गयी थी। मै अपने चेहरे
को उसके सीने मे छिपा कर सो गया था।
…समीर, मै जा रही
हूँ। मैने आँख खोल कर उसकी ओर देखा तो वह जल्दी से झुकी और मेरे होंठ चूम कर कमरे से
बाहर चली गयी थी। मै भी जल्दी से तैयार हुआ और नाश्ता करके एयरपोर्ट की ओर निकल गया।
मै आज वक्त से पहले पहुँच गया था। आफीसर्स वेटिंग लाउन्ज खाली पड़ी हुई थी। यहाँ पर
सिर्फ सेना के तीनों अंगो के सर्विंग आफीसर ही प्रवेश कर सकते थे। दस बजे जनरल रंधावा
और वीके आते हुए दिखायी दिये तो मै खड़ा हो गया। अजीत
कुछ देर के बाद पहुँचे थे। जब सब बैठ गये तो वीके ने कहा… बोलो मेजर,
क्या सोचा? …सर, मेरा टार्गेट नीलोफर लोन है। मकबूल बट और नीलोफर के बीच हुई बातचीत
की एक रिकार्डिंग मेरे पास है। उसी बातचीत के जरिये हमने कटरा मे तीन ट्रकों को जब्त
किया था। उन ट्रकों मे आठ करोड़ के जाली करेंसी नोट और चरस का एक भारी कनसाइनमेन्ट मिला
था। मै उचित मौका देख कर नीलोफर को अनौपचारिक रुप से अपनी हिरासत मे लूँगा। उसे दुनिया
की नजरों से दूर करके कुछ दिन डिटेन्शन मे रख कर उसकी रिकार्डिंग सुना कर जवाब मागूँगा।
मुझे पता है कि उसके पास इसका कोई जवाब नहीं होगा तो उसको थोड़ा सा सेना के टार्चर का
अनुभव करवा कर फारुख के असली उद्देश्य को पता करने की कोशिश करुँगा। तीनो चुपचाप मेरी
योजना को बड़े ध्यान से सुन रहे थे।
… सर, जब यह सब उसके
साथ हो रहा होगा तब मै उन्हीं के एक आदमी के द्वारा जमात मे यह खबर फैलवा दूँगा कि
उसके गायब होने मे फारुख मीरवायज का हाथ है। इसकी जानकारी मुजफराबाद मे मुन्नवर लखवी
के पास पहुँचा कर मै उसे बता दूँगा कि फारुख ने अपने रास्ते से हटाने के लिये नीलोफर
को काउन्टर इन्टेलीजेन्स के हवाले कर दिया है। उसके बाद मै नीलोफर के सामने एक प्रस्ताव
रखूँगा कि अगर वह फारुख के खिलाफ कोई पुख्ता सुबूत देगी तो मै उसे सुरक्षित सीमा पार
पहुँचा दूँगा। मुझे लगता है कि कुछ दिन सेना के टार्चर के बाद वहाँ से छूटने के लिये
वह कुछ भी करने को तैयार हो जाएगी। एक बार फारुख के खिलाफ सुबूत हमारे हाथ लग गये फिर
हम कानूनी रुप से फारुख को हिरासत मे ले सकते हैं। मैने अपनी योजना की मुख्य रुपरेखा
उनके सामने रख दी थी।
कुछ देर सोचने के
बाद अजीत ने कहा… समीर, मेरी मानो तो फारुख को कानूनी शिकंजे से दूर रख कर उसके खिलाफ
सुबूत दिखा कर उसे हमारे लिये काम करने के लिये मजबूर करो। अगर वह इंकार करे तो उसको
धमकी दो कि हम उसे प्लेट मे सजा कर लखवी परिवार को सौंप देंगें। हमे कुछ ऐसा करना चाहिये
कि मंसूर बाजवा का वजीर हमारा प्यादा बनने के लिये मजबूर हो जाए। वीके और रंधावा ने तुरन्त
अजीत की बात का समर्थन कर दिया। …सर, वह आईएसआई का आप्रेटिव है। इतनी आसानी से उसका
मनोबल नहीं टूटेगा। …तो नीलोफर से उसकी किसी कमजोरी का पता लगाओ। हमारा उद्देश्य उसको
अपना प्यादा बनाने का होना चाहिये। …सर, ब्रिगेडियर चीमा की मदद के बिना यह काम संभव
नहीं है। वीके ने तुरन्त कहा… हम ब्रिगेडियर चीमा से बात
कर लेंगे परन्तु तुम्हारी पूरी कोशिश होनी चाहिये कि फारुख हमारे लिये काम करने के
लिये मजबूर हो जाये। यह हमारा वादा है कि आप्रेशन आघात-2 को ब्रिगेडियर चीमा की ओर
से पूरी मदद मिलेगी। कुछ देर तक हम हर पहलू पर बात करके पूरे आप्रेशन को फाईन ट्यून
करने मे जुट गये थे। एक बजे से पहले तीनों मुझे वहीं छोड़ कर चले गये और मै सिक्युरिटी
चेक के लिये निकल गया।
शाम को साढ़े चार बजे
जब श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरा तब तक मेरी योजना एक पुख्ता रुप ले चुकी थी। मेरी जीप
एयरपोर्ट पर मेरा इंतजार कर रही थी। जीप मे बैठते ही मै कमांड अस्पताल की ओर निकल गया
था। ड्युटी डाक्टर ने बताया कि मकबूल बट और अब्दुल लोन की हालत अब स्थिर हो गयी है
परन्तु खतरा अभी टला नहीं है। कुछ देर वहाँ बैठ कर मै मकबूल बट के घर की ओर चला गया
था। मकबूल बट का मकान एक वीरान खंडहर की तरह दिख रहा था। बड़े-बड़े शीशे की जगह सिर्फ
छेद दिख रहे थे। बाहर की दीवार पूरी तरह से उधड़ गयी थी। बड़ा सा हरा भरा लान अब उजड़ा
हुआ दिख रहा था। मकान के लोहे के गेट पर पुलिस द्वारा नोटिस लगा हुआ था। एक नजर चारों
ओर डाल कर लोहे का गेट खोल कर मै अन्दर चला गया। मेरे लिये बहुत सी मिरियम की यादें
इस घर से जुड़ी हुई थी। मकान मे प्रवेश करते ही मेरी नजर मकबूल बट के स्टडी रुम पर पड़ी
तो मै दरवाजा खोल कर अन्दर चला गया था। मेरी टीम भी मेरे साथ अन्दर चली आयी थी। कुछ
सोच कर मैने कहा… सुजान सिंह कल सुबह मुझे आफिस छोड़ने के बाद एक माइन स्वीपर का इंतजाम
करना। …जी सर। …इस घर मे एक तिजोरी कहीं है
जिसका पता हमे लगाना है। …जी जनाब। इतनी बात करके मै वहाँ से निकल कर मिरियम के कमरे
की ओर चल दिया। तभी हूटर बजाती हुई पुलिस की जीप लोहे के गेट के पास रुकी और कुछ पुलिस
वाले भागते हुए अन्दर आ गये थे।
मै सादे कपड़ों मे
था लेकिन मेरे साथ पाँच सैनिक अत्याधुनिक हथियारों से लैस खड़े हुए थे। शायद इसीलिये
उन्होंने थोड़ी इज्जत से पूछा… आप यहाँ क्या कर रहे है? … मकबूल बट मेरे अब्बा है। मेरे
अब्बा का मकान मेरा भी है। मै मकान का हाल देखने आया था। इस मकान को ऐसे तो नहीं छोड़ा
जा सकता है। आपका कैसे आना हुआ? …जनाब, आपके पड़ोसी ने थाने मे खबर की थी कुछ लोग घर
मे घुसे है। हम चेक करने आये थे। आपका नाम? मैने अपना परिचय पत्र दिखा कर कहा… समीर
बट। उस रात यहाँ कितने लोग मारे गये थे? …चौबीस आदमी और एक औरत। …मुझे मरने वालों की
पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कापी चाहिए। कुट्टी आप इनके साथ थाने चले जाएँ और सबकी पोस्टमार्टम
की रिपोर्ट की कापी लेकर यहीं आ जायें। दीवानजी आपको कोई एतराज तो नहीं। …जी नहीं जनाब।
मेरी गुजारिश है कि अब हम यहाँ पर कोई गार्ड नहीं दे सकते। आपको मकान की रखवाली के
लिये अपना ही कुछ इंतजाम करना पड़ेगा। …दीवानजी, कल तक आप यह जिम्मेदारी उठा लीजिये।
कल शाम तक मै किसी का इंतजाम कर दूँगा। इतनी बात करके हम मकान से बाहर निकल आये थे।
पुलिस के दो सिपाही वहीं छोड़ कर बाकी सिपाही वापिस थाने चले गये थे। मेरी जीप लेकर
कुट्टी भी उनके पीछे चला गया था।
अंधेरा होने लगा था।
बिजली के बल्ब से सड़क रौशन हो गयी थी। हम लोहे के गेट पर खड़े हुए बातचीत मे उलझे हुए
थे परन्तु मेरी नजर पड़ौस के मकानों पर जमी हुई थी। आसपास के पड़ौसी सामने आने के बजाय
अपनी खिड़की से हमे देख रहे थे। कुट्टी के आते ही हम जीप मे सवार हुए और दोनो सिपाहियों
से अल्विदा करके घर की ओर निकल गये थे। जीप की आवाज सुन कर दोनो बहनें बाहर निकल आयी
थी। मुझे छोड़ कर जीप वापिस कोम्पलेक्स वापिस चली गयी थी। …कहाँ गये थे? …दिल्ली। उन
दोनो के साथ इसी प्रकार से बात आरंभ होती थी और फिर वह बात देर रात तक घूमते हुए बिस्तर
पर पहुँच कर समाप्त हो जाती थी। चाय पीते हुए मैने पूछा… नीलोफर का कुछ पता चला? …समीर
हमने वहाँ जाना बन्द कर दिया है। बेकार समय खराब होता है। …आयशा भी तो जाती है तो तुम्हें
जाने मे क्या परेशानी है? …उसने भी जाना बन्द कर दिया है। मै कुछ बोलता उससे पहले मेरे
मोबाईल की घन्टी बज उठी थी। …हैलो। …समीर, मै फैयाज खान। …बोलिये अंकल, हमारे केस का
क्या हुआ? …बेटा तीन दिन से तुम्हारा फोन लगाने
की कोशिश कर रहा था। तुम्हें बताना था कि प्रोबेट का काम पूरा हो गया है। तुम्हें अब
कानूनी रुप से सारी जायदाद का चार्ज लेना है। मै कागज भिजवा दूँगा तुम साइन करके मेरे
पास भिजवा देना। …अंकल, आप अगर घर आ सकें तो आपसे एक कानूनी सलाह लेनी है। आपके पेपर्स
भी साइन हो जाएँगें और उस मसले को भी सुलझा लूँगा। …ठीक है बेटा कल शाम को पेपर्स लेकर
घर आ जाऊँगा। यह बोल कर फैयाज खान ने फोन काट दिया था।
खाने के बाद मै अपने
कमरे मे बैठ कर पच्चीस पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स देखने बैठ गया था। कुछ के चेहरे साफ दिखाई
दे रहे थे और कुछ के चेहरे वीभत्स की श्रेणी मे भी रखने लायक नहीं थे। मुझे उनके मरने
के कारणों से कोई सरोकार नहीं था। मै उनके बारे मे जानना चाहता था। अगर मरने वाले लोग
फारुख के साथ आये थे तो फिर वह पीरजादा द्वारा भेजा गया जैश का जिहादी लशकर हो सकता
था। अगर यह जिहादी हिज्बुल या लश्कर-ए-तैयबा के थे तो मेरा बहुत बड़ा काम हल हो सकता
था। परन्तु मृतकों की पहचान कौन कर सकता था? मेरे सामने यह सवाल खड़ा हुआ था। दोनो लड़कियाँ
देर रात को मेरे कमरे आयी तो मुझे सोच मे डूबे हुए देख कर मेरे निकट आकर बैठ गयी थी।
जन्नत ने पूछा… क्या सोच रहे हो? मैने जल्दी से सभी कागज इकठ्ठे करके उसके सामने रख
कर कहा… देखो इन लोगों को और बताओ कि क्या तुमने पहले कभी इनको देखा है? उन मृतकों
के चेहरे देखते हुए आस्माँ मुँह बनाते हुए बोली… ऐसे डरावने चेहरा दिखा कर तुम क्या
अपना पीछा छुड़ाना चाहते हो? अचानक जन्नत ने एक आदमी को पहचानते हुए कहा… यह तो शफीकुर
लोन के लिये गोल्डन के गोदाम मे काम करता था। आस्माँ यह आदमी एजाज और फरहत के साथ कई
बार घर पर आया था। आस्माँ ने वह चेहरा ध्यान से देखा और फिर बोली… यह तो गोदाम मे काम
करता था। इसका क्या नाम था? कुछ सोच कर आस्माँ ने कहा… जावेद। मैने उस आदमी की पोस्टमार्टम
की रिपोर्ट पर नाम देखा तो उस पर जावेद लिखा हुआ था। एकाएक मै उठ कर बैठ गया था।
इसका मतलब यह अब्दुल
लोन के साथ वहाँ आया था। उन्होंने चौबीस तस्वीरें देख कर सिर्फ तीन लोगों की शिनाख्त
की थी परन्तु मेरे लिये इतना ही काफी था। मैने
जल्दी से एक सेट तैयार किया जिसमें वह तीन थे। जिनके चेहरे गोलीबारी से नष्ट हो गये
थे उनको अलग रख दिया क्योंकि उनकी शिनाख्त नहीं हो सकी थी। कुल मिला कर वह ग्यारह लोग
थे। बाकी दस मृतकों का एक सेट तैयार करने पश्चात हम तीनो पिछले कुछ दिनों की कसर पूरी
करने मे जुट गये थे। जन्नत और आस्माँ अब तक मेरी जिस्मानी जरुरतों से पूरी तरह परिचित
हो गयी थी। उनके साथ रात बिता कर सुबह तैयार होकर अपने आफिस निकल गया था।
आफिस मे पहुँचते ही
मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। …हैलो। …सर, मै कैप्टेन नीलकंठ फ्राम एमआई। …बोलिये कैप्टेन।
…सर आपको कुछ दिखाना है। आपने सात अंकों के नम्बर ढूँढने के लिये कहा था। इसीलिये आपको
कुछ दिखाना है। मैने जल्दी से कहा… कैप्टेन आप मेरे आफिस आ जाईये। …सर, आपको यहाँ आना
पड़ेगा। …कैप्टेन, कहाँ आना है? …सर, बेसमेन्ट की फारेन्सिक लैब मे आ जाईये। मै जल्दी
से उठा और बेसमेन्ट की ओर चल दिया। पहली बार मैने अपने आफिस के बेसमेन्ट को देखा था।
पूरा बेसमेन्ट ही फारेन्सिक लैब बना हुआ था। कैप्टेन नीलकंठ मुझे लिफ्ट के सामने ही
मिल गया था। कैप्टेन नीलकंठ मुझे कंप्युटर लैब मे ले गया जहाँ लाइन से लोग कंप्युटर
टर्मिनल पर काम कर रहे थे। कैप्टेन नीलकंठ एक कंप्युटर के सामने जाकर रुक गया और फिर
एकाएक उसका काला स्क्रीन जिवित हो उठा था। एक एक्सेल फाइल खुली हुई थी जिसमें सात अंको
के दो नम्बर और उसके आगे एक तारीख दी हुई थी। ऐसी उसमे चार एन्ट्री थी और सारी तारीखें
सिर्फ एक महीने का पुराना रिकार्ड था। उन सात अंकों के नम्बरों को देख कर मेरे दिल
की धड़कन बढ़ गयी थी। …सर, अभी तक हम इसको पुरी तरह से डिकोड नहीं कर पाये है। बहुत कठिन
एन्क्रिप्शन टेक्नोलोजी इस्तेमाल की है। …कैप्टेन, क्या गूगल का कनेक्शन यहाँ मिल सकता
है? …नहीं सर। डेटा सीक्रेसी के कारण। यहाँ पर कोई एप्लीकेशन काम नहीं करती है। …मै
फिर यह चार तारीखें लिख लेता हूँ। मैने जल्दी से चारों तारीख लिखी और कैप्टेन नीलकंठ
को धन्यवाद कह कर अपने आफिस की ओर चल दिया।
आफिस पहुँचते ही एक-एक
करके मैने चारों तारीख गूगल सर्च पर डाल कर देखी तो पहली तारीख पर रजौरी मे सीआरपीएफ
की चौकी पर हमले के साथ दो चार महत्वपूर्ण राजनीतिक खबरें थी। दूसरी तारीख पर सोनमर्ग
जाती हुई ग्रेनेडियर्स की युनिट पर फिदायीन हमले की कोशिश की गयी थी परन्तु उस हमले
को विफल कर दिया गया था। सारे हमलावर मारे गये थे। उस तारीख को बहुत सी और कश्मीर से
संबन्धित महत्वपूर्ण खबरें थी। मै तो अपने हिसाब से उन खबरों मे से एक खबर निकाल रहा
था। यही हाल बाकी दो तारीखों का भी था। बहुत सी खबरो मे से मैने फिदायीन हमले तो चुने
थे परन्तु उस दिन खबरे तो और भी थी जैसे कि राज्य सरकार मे उठापटक या नये मंत्रियों
की घोषणा इत्यादि। कुछ सोच कर मैने कैप्टेन नीलकंठ को कुछ और समय देने का निर्णय लिया
क्योंकि आधा-अधुरा ज्ञान हमें भ्रमित कर सकता था।
दोपहर के बाद ब्रिगेडियर
चीमा की काल आ गयी थी। मै उनसे मिलने चला गया था। …मेजर आप्रेशन आघात-2 के लिये क्या
सोचा है? …सर, वह तीन ट्रक जो कटरा मे पकड़े थे। उसकी पूछताछ के लिये अब्दुल लोन की
मुँहबोली बेटी नीलोफर लोन को यहाँ लाना पड़ेगा। आखिरकार उस रिकार्डिंग से साफ है कि
नीलोफर सब कुछ जानती थी। उसने ही मुंबई से एक ट्रक का इंतजाम किया था। इन्वोइस के हिसाब
से तो तीनों ट्रक मे सीमेन्ट प्लांट की मशीनरी बतायी गयी थी परन्तु उन ट्रकों मे जाली
करेंसी और कच्ची पहाड़ी चरस का कनसाइनमेंट था। …मेजर, तुम नागिन की पूँछ नहीं उसका फन
पकड़ने की सोच रहे हो। …सर, हम कौनसा उसे डिटेन कर रहे है। हमारा तो बस इतना उद्देशय है कि वह जो भी जानती
है इन तीन ट्रकों के मामले मे बस वह हमे साफ-साफ बता दे। …ओके मेजर, उसे बुला लो। अगर नहीं आती है तो फिर
उठाने की सोचना। …थैंक्स सर। उसे औपचारिक तौर पर यहाँ पूछताछ के लिये बुलाने के लिये
आपके लेटर हेड पर नोटिस जारी करना पड़ेगा। यह बात मैने उठते हुए बोली तो ब्रिगेडियर
चीमा ने मुझे बैठने का इशारा करते हुए कहा… आफिशियल तरीके से बुलाना चाहते हो तो अगर
वह आ गयी तब क्या करोगे? मैने मुस्कुरा कर कहा… सर, इतने दिन मे आपने मुझे कुछ तो सिखाया
होगा। आप बेफिक्र रहे वह हर्गिज नहीं आयेगी। …मेजर, संयुक्त मोर्चा के बारे क्या करने
की सोच रहे हो? …सर, फिलहाल के लिये वह स्थागित
हो गया है। अब वही तो आप्रेशन आघात-2 का मुख्य उद्देश्य है। इतनी बात करके मै उनके
कमरे से बाहर निकल कर अपने आफिस की ओर चल दिया था।
ऐसा हर्गिज नहीं था
कि मै ब्रिगेडियर चीमा से छिपा कर कुछ करना चाहता था परन्तु मेरे सीओ होने के कारण
मेरे हर कार्य के प्रति उनकी जवाबदेही थी। अगर सब कुछ जानते बूझते उन्होंने मुझे अपनी
योजना को कार्यान्वित करने की आज्ञा दी होती तो मुझसे ज्यादा वह बड़ी मुश्किल मे घिर
सकते थे। यहाँ तो मेरा सारा आप्रेशन ही गैरकानूनी आधार पर ही टिका हुआ था। यही कारण
था कि ब्रिगेडियर चीमा के सामने पूरा आप्रेशन आघात-2 खोला नही जा सकता था। नीलोफर कहाँ
मिलेगी? मै अभी यही सोच रहा था कि ब्रिगेडियर चीमा का नीलोफर के नाम का नोटिस मेरे
पास भिजवा दिया गया था। मैने वह नोटिस अपनी जेब मे रख लिया और अपने आफिस के बाहर निकल
गया। मेरी जीप और मेरे साथी बाहर खड़े हुए थे। मुझे आते देख कर सभी सावधान हो गये थे।
मेरे जीप मे बैठते ही सब धड़धड़ाते हुए पीछे बैठ गये और कुछ ही देर मे जीप कोम्पलेक्स
के बाहर निकल गयी थी। …सुजान सिंह माइन स्वीपर रख लिया है? …जी जनाब। बस उसके बाद हम
सीधे मकबूल बट के घर पहुँच गये थे।
घर के बाहर सिपाही
पहरा दे रहे थे। आज तो हम सभी वर्दी मे थे। हमको जीप से उतरते देख कर दोनो सिपाही सावधान
हो गये थे। …हमे अन्दर जाना है। उन्होनें कुछ नहीं कहा बस जल्दी से लोहे का गेट खोल
दिया था। सुजान सिंह अपने साथियों को लेकर मकान मे दाखिल हो गया। मै उनके पीछे-पीछे
चलते हुए बाहर लान मे टहलने लगा। थोड़ी देर के बाद मै वही गेट पर खड़े हुए सिपाहियों
से बात करने लगा… पिछले कुछ दिनो मे कोई और भी यहाँ आया था? …कभी-कभी आस-पड़ोस के लोग
टहलते हुए आ जाते है। इधर-उधर की बात करके वापिस चले जाते है साहब। दो घंटे के अथक
परिश्रम के पश्चात कुट्टी दौड़ते हुए बाहर निकला और बोला… सर, वह हमे मिल गयी। मै उसके
पीछे तेज कदमों से चल दिया। माईनस्वीपर ने छिपी हुई लोहे की तिजोरी को आखिरकार ढूँढ
लिया था। स्टडी रुम मे लकड़ी के बुक शेल्फ और उसके पीछे लकड़ी पैनल
की आढ़ मे एक फुल साईज की गोडरेज की इलेक्ट्रानिक तिजोरी छिपी हुई थी। …सुजान सिंह,
अब एक बार पहली मंजिल के उस बेडरुम को भी चेक कर लो। मेरे साथी मिरियम के बेडरुम मे
तिजोरी ढूँढने चले गये थे।
मैने स्टडी टेबल के
नीचे जहाँ माईक्रोफोन लगाया था वहीं पर पांच अंकों का एक नम्बर उर्दू मे हाथ से लिखा
हुआ था। मेरी नजर उस नम्बर पर माईक्रोफोन चिपकाते हुए पड़ गयी थी परन्तु तिजोरी का अता-पता
नहीं था। इसी कारण आज तिजोरी को ढूँढने के लिये आया था। मैने एक बार वह नम्बर दोबारा
से पढ़ा और फिर इलेक्ट्रानिक लाक को आन करके वही पाँच अंक दबा दिये। एक धीमी आवाज के
साथ चकरी सी घूमी फिर एक खटके की आवाज हुई और तिजोरी का दरवाजा धीरे से खुल गया था।
मैने जल्दी से उसे खोला और उसमे से सारा सामान निकाल कर माइनस्वीपर के बाक्स मे रख
कर तिजोरी को बन्द कर दिया। थोड़ी देर के बाद मेरे सभी साथी नीचे आ गये थे। …सर, उस
कमरे मे कोई तिजोरी नहीं मिली। मैने लकड़ी के पैनल की ओर इशारा किया… इसे वापिस वैसे
ही सेट कर दो जैसे यह पहले था। …थापा यह बाक्स ले जाकर जीप मे रख दो। थापा ने बाक्स
उठाते ही मेरी ओर देखा तो मैने मुस्कुरा कर कहा… बाक्स बहुत भारी है क्या? थापा जल्दी
से बोला… नहीं सर। वह बाक्स लेकर तुरन्त बाहर निकल गया था। मेरे साथियों ने पहले पैनल
को पीछे धकेल कर दीवार से चिपका दिया और फिर किताबो की अलमारियों को अपनी जगह पर यथावत
टिका कर पहले जैसा कर दिया था। एक नजर मार कर हम सब लोग मकान से बाहर निकल आये थे।
सुजान सिंह के हाथ मे माईनस्वीपर देख कर एक सिपाही बोला… यह क्या चीज है साहब? सुजान
सिंह ने कहा… यह मशीन जमीन और दीवारों छिपे हुए बम्ब को ढूँढ लेती है। …तो अन्दर कोई
बम्ब मिला? …अगर मिलता तो यहाँ पर हम नहीं बोम्ब स्क्याड खड़ा होता। मैने उन सिपाहियों
से कुछ कहने के लिये मुँह खोला ही था कि वही चमचमाती हुई औडी सामने वाले मकान से निकल
कर हमारी जीप के साथ आकर खड़ी हो गयी थी।
नीलोफर लोन हिजाब
से सिर और चेहरा ढके हुए उसी अंदाज मे कार से उतर कर मेरे पास आकर बोली… तुम यहाँ क्या
कर रहे थे? मैने अपने साथियों की ओर देखते हुए कहा… सुजान सिंह हम यहाँ पर क्या कर
रहे थे? …साहबजी विस्फोटक तलाश रहे थे। मैने नीलोफर की ओर देख कर कहा… सुन लिया। …समीर,
यह ठीक नहीं है। मेरी आवाज एकाएक कड़ी हो गयी थी। …नीलोफर बीबी, यह मेरे बाप का मकान
है। मै यहाँ पर कुछ भी करुँ इससे तुम्हें क्या मतलब? मेरे साथ खड़े साथी सब दांये बाँये
देखने लगे थे। मैने झुक कर उसके कान के पास जाकर धीरे से कहा… तुम सही समझ रही हो।
मै यहाँ उनकी तिजोरी की तलाश मे आया था। मेरी बात सुन कर वह चौंक कर दो कदम पीछे हट
गयी थी। मैने आराम से अपनी जेब से ब्रिगेडियर चीमा का नोटिस निकाला और एक कापी उसकी
ओर बढ़ाते हुए कहा… मुझे पता था कि तुम आज यहाँ जरुर आओगी इसलिये यह नोटिस मै खुद लेकर
आया था। …यह क्या है? …पहले इसकी दूसरी कापी पर दस्तखत करके पावती की रसीद दे दो उसके
बाद आराम से पढ़ना और अपने वकील को पढ़वाना। उसने एक नजर उस नोटिस पर डाली और फिर मेरे
हाथ से पेन और कापी छीन कर जल्दी से उस पर साइन करके मेरी ओर बढ़ा दिया। …इस पर आज की
तारीख और पावती का समय डालो। यह सेना का नोटिस है कोई प्रेम पत्र नहीं है। वैसे भी
सरकारी कागज को हल्के मे नहीं लेना चाहिए। उसने जल्दी से तारीख और समय डाल कर वह कापी
मेरी ओर बढ़ा दी और अपनी कापी लेकर पढ़ने लगी। …सुजान सिंह, जीप को चलने के लिये तैयार
करो।
वह अभी नोटिस पढ़ ही
रही थी कि मैने एक बार फिर उसके कान मे धीरे से कहा… मुझे मकबूल बट की तिजोरी मिल गयी
है। अब जल्दी ही तुम्हारा कच्चा चिठ्ठा भी खुल जाएगा। अच्छा चलता हूँ, खुदा हाफिज।
यह सुन कर उसका हाथ मे पकड़ा हुआ नोटिस काँप गया था। उसका चेहरा तमतमा रहा था। उसका
बस चलता तो वह उसी समय मेरा खून कर देती परन्तु इतने सारे लोगों के बीच वह चीख भी नहीं
सकी थी। मै आराम से चलते हुए उसके पास से निकला और निकलते हुए मैने धीरे से कहा… मैने
तिजोरी खोल कर उसका सारा सामान निकाल लिया है। इसलिये नीलोफर अब तुम इस मामले मे ज्यादा
तकलीफ मत करना। वह मेरे पीछे आयी परन्तु तब तक मै अपनी जीप मे बैठ चुका था। वह मेरे
पास आकर खड़ी हो गयी तो मैने कहा… नीलोफर, तुम लोग सबको अपनी तरह बेवकूफ समझते हो। इस
कार को तो ऐसी जगह खड़ी करती जो इस पर किसी की नजर मे नहीं पड़ती। मुझे तो उसी दिन पता
चल गया था कि तुम सामने वाले मकान मे रहती हो। अगर मै मिलने आता तो मुझे यकीन था कि
तुम मुझसे नहीं मिलती। जब दो बार तुमने मुझे अन्दर जाते हुए देख लिया तो तुम अपने आप
को रोक नहीं सकी और अपने आप सामने आ गयी। हिजाब से झाँकती हुई उसकी बड़ी-बड़ी आँखे बता
रही थी कि वह कुछ बोलना चाहती थी परन्तु तब तक मैने अपने ड्राइवर को चलने का इशारा
कर दिया था। मेरा इशारा मिलते ही जीप आगे बढ़ गयी और वह वहीं बेबस खड़ी हुई हमारी जीप
को जाते हुए देखती रह गयी।
हम सीधे कोम्पलेक्स
की ओर चल दिये थे। आफिस पहुँच कर मैने थापा से कहा… इस बाक्स लेकर मेरे आफिस मे पहुँचा
दो। इतना बोल कर मै ब्रिगेडियर चीमा के आफिस की ओर चला गया था। उनके असिस्टेन्ट को
उस नोटिस की कापी पकड़ाते हुए कहा… नोटिस सर्व कर दिया है। यह उसकी रसीद है। इसे संभाल
कर रखना और कोई इसके बारे मे काल आये तो उसे मुझे ट्रांस्फर कर देना। इतना बोल कर मै
अपने आफिस मे आ गया था। थापा उस बाक्स को मेज पर रख कर रख कर एक किनारे मे खड़ा हो गया
था। उस बाक्स का सारा सामान और फाईलें मैने अपनी मेज पर फैला दी और खाली बाक्स थापा
को पकड़ा कर कहा… माइनस्वीपर इसमे डाल कर वापिस कर देना। थापा खाली बाक्स लेकर वापिस
चला गया था। उसके जाने के बाद मै मेज पर बिखरे हुए सामान का निरीक्षण करने मे व्यस्त हो
गया।