काफ़िर-28
पहले झटके का प्रभाव
कम होते ही मैने जल्दी से कहा… सर, मुझे कुछ कहना है। ब्रिगेडियर चीमा मुझे घूरते हुए
बोले… मै सुन रहा हूँ। …सर अगर वह दोनो बहनें है तो एक लड़की को आप भी जानते है। एक
लड़की उन दोनो मे से जन्नत है जिसके जरिये आपने मेरे पास सेट्फोन भिजवाया था। मुजफराबाद
का घुसपैठ का रास्ता और उनके ठिकाने के कुअर्डिनेट्स जन्नत ने हमे दिये थे। मुजफराबाद
के आसपास ट्रेनिंग कैंपों का पता लगा कर उसकी बहन आस्माँ ने जीपीएस के कुअर्डिनेट्स
दिये थे। सर, मेरा विश्वास किजीये मैने किसी के साथ कोई निकाह नहीं किया है। वह दोनो
तो बक्खरवाल समाज से है और उनके पास यहाँ का पीआरसी है। ब्रिगेडियर चीमा एक गहरी सांस
छोड़ अपनी कुर्सी पर बैठ कर बोले… उस लड़की ने तुम्हारा नाम लेकर सारा बखेड़ा खड़ा कर दिया
है। अगर वह अपना पीआरसी कार्ड दिखा देती तो इतना हड़कम्प नहीं मचता। मेजर तुम्हें वहाँ
जाने की कोई जरुरत नहीं है। अपना स्टेटमेन्ट लिख कर भिजवा दो कि यह सब झूठ है। बीएसफ
को अपने आप उनसे डील करने देना ही हम सब के लिये ठीक होगा। उन्होंने अपना निर्णय सुना
कर मुझे एक धर्मसंकट मे डाल दिया था।
कुछ सोच कर मैने हिम्मत
करके कहा… सर, मै ऐसा नहीं कर सकूँगा। मै अपने साथियों को इस मुश्किल घड़ी मे किस्मत
के भरोसे नहीं छोड़ सकता। मुझे वहाँ जाना पड़ेगा। ब्रिगेडियर चीमा कुछ सोच कर बोले… मेजर,
यह मामला तुम्हारे सारे भविष्य को अंधकार मे डाल सकता है। …सर, मै यह नहीं कर सकूँगा।
अपने साथियों को मुश्किल मे डाल कर मै मुँह नहीं फेर सकता। मुझे एक बार कोशिश करने
दिजीये। ब्रिगेडियर चीमा ने कुछ सोच कर कहा… एक बार तुम डीआईजी सिसोदिया से बात करके
देख लो। अगर वह कागजी कार्यवाही कर चुका है तो फिर उन दोनो को सिर्फ कानूनी रुप से
ही छुड़ाया जा सकता है। ब्रिगेडियर चीमा ने किसी को फोन मिला कर बात करने के पश्चात
मुझसे कहा… मैने डीआईजी सीमा सुरक्षा बल से बात की है। वह तुम्हारी मदद करने की पूरी
कोशिश करेगा लेकिन मेजर सेना की इन्क्यारी तो अब जरुर होगी क्योंकि बात काफी बढ़ गयी
है। …यस सर। यह कह कर मै उनके कमरे से बाहर निकल आया था।
ब्रिगेडियर चीमा की
मदद से मुझे सेना के हेलीकाप्टर की सुविधा मिल गयी थी। दोपहर तक मै कठुआ पहुँच गया
था। मैने स्पेशल फोर्सेज के सीओ से बात करके एयर बेस पर एक जीप का इंतजाम कर लिया था।
कठुआ मे उतरते ही कठुआ संभाग के कमान्डेन्ट डीआईजी सिसोदिया से मिलने के लिये चला गया
था। मुझे देखते ही सिसोदिया ने मुस्कुरा कर कहा… मेजर साहब, कल रात को इस खुलासे से
तो यहाँ पर तहलका मच गया था। …पहले मै उन दोनो को देखना चाहता हूँ। …मेजर साहब, एक
अस्पताल मे पड़ी हुई है और दूसरी बहन जो अपने आपको आपकी बीवी बता रही है उसे हमने उन्हें
जिला कारागार मे भेज दिया है। …उस घायल की हालत कैसी है? …होश मे है। पाँव मे गोली
लगी थी। …डीआईजी साहब, पहले तो यह जान लीजिये कि मेरा उनमे से किसी के साथ निकाह नहीं
हुआ है। इसलिये अब यहाँ से आगे की बात की जाए तो बेहतर होगा लेकिन पहले मैने दोनो को
देखना चाहूँगा। …उसको सिविल अस्पताल मे रखा गया है। अबकी बार बोलते हुए सिसोदिया के
चेहरे पर मुस्कान नहीं थी। …और कारागार मे? …मै जेल सुप्रिटेन्डेन्ट से बात कर लेता
हूँ। वह आपको उससे मिला देगा। मै बिना कुछ बोले बाहर निकल आया था। सबसे पहले मै सिविल
अस्पताल का रुख किया था।
मै जैसे ही वार्ड
मे दाखिल हुआ मेरी नजर जन्नत पर पड़ गयी थी। मुझे आता हुआ देख कर वह उठ कर बैठ गयी थी।
मैने वहाँ खड़ी नर्स से पूछा… क्या यह चल फिर सकती है? …हाँ क्यों नही। मैने एक नजर
जन्नत पर डाल कर बिना कुछ कहे वार्ड से बाहर निकल आया था। वह कुछ बोलना चाहती थी परन्तु
मैने उसे मौका ही नहीं दिया था। अस्पताल से निकल कर मै कठुआ महिला सुधार गृह की दिशा
मे चला गया था। मेरे आने की खबर तो सिसोदिया ने पहले से जेल सुप्रिटेनडेन्ट को दे दी
थी। मुख्य द्वार पर जीप से उतरते ही एक जेल का कर्मचारी मुझे सीधे जेलर के आफिस मे
ले गया था। मैने पहुँचते ही जेलर से कहा… उस लड़की को बुलवा दिजीए। कुछ ही देर मे जेल
वार्डन मेरे सामने आस्माँ को लेकर आ गयी थी। …इसका सारा जब्त सामान कहाँ है? …जनाब,
वह तो सीमा सुरक्षा बल के पास है। आस्माँ से बिना कुछ बात किये मै वापिस सिसोदिया के
आफिस की ओर चल दिया था। दोनो लड़कियों की शिनाख्त करने के लिये मैने यह कदम उठाया था।
जन्नत और आस्माँ की पहचान करने के पश्चात ही अगला कदम उठाया जा सकता था।
…डीआईजी साहब, दोनो
लड़कियों की शिनाख्त हो गयी है। दोनो लड़कियाँ बक्खरवाल समाज की है। वह जम्मू और कश्मीर
राज्य की नागरिक है तो उनको आप घुसपैठिया नहीं कह सकते। एक पल के लिये मै बोलते हुए
रुक गया था। सिसोदिया मुझे बड़े ध्यान से देख रहा था। …डीआईजी साहब, अब जो मै आपके सामने
बोलने जा रहा हूँ वह अत्यन्त गोपनीय है। एक कोवर्ट आप्रेशन के लिये मेरी टीम ने इन
दोनो लड़कियों को पाकिस्तान भेजा था। वह हमारे लिये काम कर रही थी। मै आपको सेना की
कार्यवाही के डिटेल्स की जानकारी नहीं दे सकता परन्तु इतना ही कह सकता हूँ कि इनकी
वजह से हमे इस रास्ते के साथ एलोसी पर पाँच घुसपैठ के रास्तों का पता चला था। अब आप
बताईये कि इन्हें कैसे छुड़ाया जा सकता है? डीआईजी सिसोदिया कुछ देर सोचने के बाद बोला…
मेजर साहब, क्या आप एक लिखित स्टेटमेन्ट दे सकते है। …नहीं। इस मामले का जिक्र किसी
कागज या किसी और आदमी के सामने हर्गिज नहीं हो सकता। यह भी मैने आपको निजी तौर पर बताया
है और आप भी यह बात किसी को नहीं बता सकेंगें।
डीआईजी सिसोदिया ने
कहा… तो आप ही बताईये कि इन हालात मे इन्हें कैसे छोड़ा जा सकता है? …आपने इनके सामान
की तलाशी ली है? …सिपाहियों ने ली होगी तो कह नहीं सकता लेकिन जब श्रीनगर से फोन आ
गया कि इस मामले मे कोई कागजी कार्यवाही नहीं होगी तो हमने अभी तक इन दोनो से जब्त
सामान मालखाने मे भी नहीं जमा किया है। …मुझे उनका सामान देखना है। सिसोदिया ने मेज
पर पड़ी हुई घंटी का बटन दबा कर अपने असिस्टेन्ट को बुलवा कर उन दोनो लड़कियों का सामान
मंगवा लिया था। कुछ ही देर मे दो स्कूल बैग सिसोदिया की मेज पर रखे हुए थे। मैने एक
बैग खोल कर उसका सारा सामान मेज पर बिखेर दिया था। पीआरसी कार्ड उस सामान मे नहीं दिखा
तो एक नयी मुसीबत खड़ी हो गयी थी। मैने बैग की जेबों को चेक करने के बाद एक-एक कपड़ा
देखने बैठ गया। हर कपड़े को ध्यान से उँगलियों से टटोल कर चेक कर रहा था। सिसोदिया की
नजरें भी मुझ पर टिकी हुई थी। अचानक एक अन्तरवस्त्र की गोलाईयों पर कुछ सख्त सी चीज
महसूस हुई तो मैने तुरन्त उसको फाड़ कर स्पंज कवर मे से जन्नत का पीआरसी कार्ड निकाल
कर सिसोदिया के सामने रख दिया। इसी प्रकार दूसरे बैग की तलाशी लेकर आस्माँ का कार्ड
भी सिसोदिया के सामने रख कर कहा… यह सुबूत है कि दोनो इसी राज्य की नागरिक है। अब आप
एक स्टेटमेन्ट मुझे दे दिजीए की यह दोनो पीआरसी कार्ड मैने आपके सामने इनके सामान से
बरामद किये है। आप अस्पताल मे अपने सिपाही और सुधार गृह के जेलर से पूछ सकते है कि
मैने इन दोनो लड़कियों से मिलने पर किसी से भी कोई बात नहीं की थी।
डीआईजी सिसोदिया एक
पल के लिये मुझे देखता रह गया था। …मेजर साहब, आपको स्टेटमेन्ट क्यों चाहिये जब हमने
कोई कागजी कार्यवाही अभी तक नहीं की है। …डीआईजी साहब, आपने भले ही अभी तक कोई कागजी
कार्यवाही नहीं की है लेकिन अब मै आपको कागजी कार्यवाही करने के लिये ही कह रहा हूँ।
आपके आफिस ने जब 15वीं कोर के हेडक्वार्टर्स मे पूछताछ के दौरान इस बात का जिक्र किया
था तो वहाँ कागजी कार्यवाही आरंभ हो गयी थी। अब आपको भी कागजी कार्यवाही करके इनको
छोड़ना पड़ेगा। यह अच्छा हुआ कि आपने अभी तक कोई कागजी कार्यवाही नहीं की थी अन्यथा यह
दो पीआरसी कार्ड आपको कोर्ट मे बहुत भारी पड़ते। मै बहुत सोच समझ कर आपको सलाह दे रहा
हूँ कि इस मामले को दबाने के लिये अब कागजी कार्यवाही करना ही उचित होगा। अगर इन कार्ड्स
की बरामदगी नहीं होती तो फिर उनको छुड़ाने के लिये मुझे फिर कोर्ट जाना पड़ता। डीआईजी
सिसोदिया भी कोई बेवकूफ नहीं था इसलिये उसने तुरत-फुरत कागजी कार्यवाही आरंभ कर दी
थी। उन दोनो को भी बुलवा लिया गया था और उनसे भी स्टेटमेन्ट मे लिखवा दिया कि वह भेड़
बकरियाँ चराने के लिये गलती से सीमा पार चली गयी थी। शाम के धुन्धलके मे जब वह वापिस
लौटी तो सुरक्षा बल ने उन्हें शक मे हिरासत मे ले लिया था। गोली चलने कारण उनके मवेशी
भी इधर उधर भाग गये थे। सारी कागजी कार्यवाही पूरी करने मे रात के दस बज गये थे। सबके
स्टेटमेन्ट जमा करने के बाद ही उन दोनो को सिसोदिया ने मेरे हवाले किया था। सारे स्टेटमेन्ट्स
की एक कापी लेने के बाद मैने उनसे पहली बार कहा… तुम दोनो जीप मे जाकर बैठो। मै अभी
आता हूँ। उनके जाने के बाद मैने डीआईजी सिसोदिया को धन्यवाद देते हुए कहा… यह मेरे
उपर आपका एहसान है। अगर कभी मेरी जरुरत पड़े तो निसंकोच मुझसे कह दिजिएगा। मेरे सो जो
बन पड़ेगा वह मै जरुर करुँगा। उससे विदा लेकर मै अपनी जीप मे बैठा और बेस की ओर चल दिया।
रात के दो बज गये थे जब श्रीनगर मे हम तीनो उतरे थे। मेरी जीप और सुरक्षाकर्मी मेरा
इंतजार कर रहे थे। उन दोनो लेकर मै कोम्प्लेक्स मे आ गया था।
हमे घर के बाहर छोड़
कर मेरी टीम चली गयी थी। घर मे घुसने के बाद पहली बार मैने उन दोनो को घूरते हुए कहा…
आज तुम्हारी बेवकूफी की वजह से तुम्हारे साथ मुझे भी जेल हो गयी होती। मुझे बहुत तेज
गुस्सा आ रहा था। मेरे गुस्से का सारा केन्द्र आस्माँ थी। उसकी एक बेवकूफी के कारण
मै सबकी नजर मे आ गया था। मैने जन्नत को सहारा देकर बिस्तर पर लिटाते हुए कहा… तुम्हें
कुछ दिन यहीं पर रहना पड़ेगा जब तक फौज की इन्क्यारी पूरी नहीं होती। इस दौरान आस्माँ
रुआंसी सी मेरी ओर देखती रही और फिर अचानक मुझ पर झपटी और फिर उसके गुस्से का कहर मुझ
पर टूट पड़ा था। जन्नत भी मुझ पर बरस पड़ी थी। दोनो रोते हुए मुझे कोस रही थी। जब उनके
दिल का सारा गुबार निकल गया तब जन्नत ने पूछा… तुम हमे वहाँ अकेला छोड़ कर बिना बताये
क्यों आ गये थे? …क्यों…मैने चकरा कर कहा… तुम्हें महमूद ने कुछ नहीं बताया? …कौन महमूद?
अबकी बार मै उलझ कर रह गया था। मैने जन्नत को उस आदमी के बारे बताया जो उसके साथ बांदीपुरा
से मुजफराबाद तक साथ रहा था। जब वह उसे पहचानने मे अस्मर्थ रही तो मैने बताया कि कैसे
मै जफरवाल की बस मे महमूद से मिला था। जब मुझे अपने घर पर फिदायीन हमले की खबर मिली
तो तुरन्त महमूद की मदद से मै सीमा पार करके वापिस आ गया था। सब बताने के बाद मैने
आस्माँ से पूछा कि उसने वहाँ क्यों कहा कि वह मेरी बीवी है तो जन्नत ने कहा… समीर,
मेरे पाँव मे गोली लगी थी। मेरे पाँव से बहता हुआ खून देख कर बेचारी घबरा गयी थी। एक
सिपाही इसकी तलाशी लेने के लिये इसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती झाड़ियों की ओर ले जाने लगा
तो इसने तुम्हें अपना खाविन्द बता कर कहा कि अगर हमारे साथ कुछ ऐसा वैसा किया तो अच्छा
नहीं होगा। यह सुन कर सब डर गये और तुरन्त उन्होंने वायरलैस पर खबर करके मुझको अस्पताल
पहुँचा दिया था। …अब आराम करो। यह बोल कर उन्हें वहीं छोड़ कर मै अपने कमरे मे आ गया
और बिस्तर पर पड़ गया। थकान के कारण बहुत जल्दी नींद की बेहोशी मुझ पर हावी हो गयी थी।
सुबह मुझे टेलीफोन
की घंटी ने उठा दिया था। …मेजर, सब कुछ ठीक हो गया। वह लड़कियाँ कहाँ है? …सर, यही मेरे
घर पर है। …दो बजे उन दोनो को लेकर मेरे पास पहुँचों। आज ही इस मामले मे इन्क्यारी
कमेटी बैठ रही है। मैने घड़ी मे देखा तो दस बज रहे थे। जन्नत बिस्तर पर और आस्माँ कार्पेट
पर गहरी नींद मे डूबी हुई थी। मैने जल्दी से उन्हें जगाया और तैयार होने के लिये कह
कर खुद भी तैयार होने के लिये चला गया था। मैने फोन करके अपने आर्ड्रली और जीप को भी
घर पर बुलवा लिया था। पहली समस्या उन दोनो के लिये कपड़ो की खड़ी हो गयी थी। अलमारी मे
कुछ आलिया और शाहीन के कपड़े पड़े हुए थे। वह उनके हवाले करते हुए मैने कहा… अभी के लिये
इनसे काम चला लो। शाम को कपड़ों का इंतजाम कर दूँगा। आलिया के कपड़े आस्माँ के तो जैसे-तैसे
आ गये थे परन्तु जन्नत के लिये उनका कोई भी कपड़ा फिट नहीं था। मेरा कुर्ता पाजामा पहन
कर ही वह अपने कमरे से बाहर निकल सकी थी। मेरा आर्डरली मेज पर नाश्ता लगा कर अपने घर
से एक सूट जन्नत के लिये ले आया था। उन दोनो लेकर मै अपने आफिस पहुँच कर सारी कहानी
को समझाने मे जुट गया था।
ठीक दो बजे मै ब्रिगेडियर
चीमा के आफिस मे दाखिल हो गया था। उनके आफिस मे तीन चेहरे देख कर एक पल के लिये मै
चौंक गया था। ब्रिगेडियर शर्मा, एमआई, ब्रिगेडियर चीमा, आप्रेशन्स और मेजर जनरल सिंह,
एडमिन मेरी इन्क्यारी टीम के सदस्य थे। तीनो सोफे पर बैठे हुए थे। उनके सामने एक कुर्सी
रखी हुई थी। मेज पर एक रिकार्डर रखा हुआ था। उनके साथ ही ब्रिगेडियर चीमा का असिस्टेन्ट
लैपटाप खोल कर बैठा हुआ था। …आईये मेजर। मै सबको अभिवादन करके चुपचाप सामने कुर्सी
पर बैठ गया। जनरल सिंह ने कहा… मेजर, यह आंतरिक विभागीय तीन सदस्यी कमेटी कल की घटना
के मामले मे पूछ्ताछ के लिये गठित की है। सीमा सुरक्षा बल ने 15वीं कोर के मेन एक्स्चेन्ज
कंट्रोल पर खबर की थी कि एक पाकिस्तानी लड़की तुम्हे अपना खाविन्द बता रही थी। वह अवैध
तरीके से सीमा मे दाखिल होती हुई पकड़ी गयी थी। तुम्हें इसके बारे मे क्या कहना है?
मैने सारे स्टेटमेन्टस की कापी उनके सामने रखते हुए कहा… दोनो लड़कियाँ इसी राज्य की
नागरिक है। सीमा सुरक्षा बल ने अपनी जाँच पूरी करके उन्हें छोड़ दिया है। यह सारी घटना
सिर्फ गलतफहमी पर आधारित है। अपने परिवार के साथ वह दोनो बहने सीमा के पास मवेशी चराती
थी। वह मुझे तब से जानती थी जब मै कठुआ मे स्पेशल फोर्सेज मे काम करता था। मैने दोनो
बहनों को आतंकवादियों के चंगुल से बचाया था। उस रात घुसपैठियों की गलतफहमी मे एक बहन
जन्नत सीमा सुरक्षा बल की गोली से घायल हो गयी थी। दूसरी बहन आस्माँ ने घबराहट मे मेरा
नाम लेकर सिपाहियों को बताने की कोशिश करी थी कि वह भारतीय है और मुझे जानती है। दोनो
लड़कियाँ अनपढ़ और बक्खरवाल समाज से है। उस लड़की की बात को उक्त सिपाहियों ने गलती से
यह समझा कि वह अपने खाविन्द के बारे मे बता रही है। बस वहीं से यह सारा घटनाक्रम आरंभ
हुआ था। बीएसएफ का लिखित स्टेटमेन्ट और दोनो लड़कियों का लिखित स्टेटमेन्ट आपके सामने
है। उन दोनो लड़कियों के पीआरसी कार्ड की कापी आपके सामने है। वह दोनो लड़कियाँ मेरे
आफिस मे बैठी है। आप उनसे बात कर सकते है। जनरल सिंह ने अपने दोनो साथियों की ओर देखा
और फिर रिकार्डिंग डिवाईस को आफ करके कहा… मेजर आप जा सकते है। उन दोनो लड़कियों को
अभी कुछ देर मे बुलाते है। मैने जल्दी से सैल्यूट किया और कमरे से बाहर निकल आया। बाहर
निकल कर एक गहरी साँस छोड़ कर मै अपने कमरे की ओर चल दिया।
कुछ देर के बाद मेरा
फोन बजा तो ब्रिगेडियर चीमा की आवाज गूंजी… पहले जन्नत को भेजो। मै जन्नत को उनके कमरे
के बाहर छोड़ कर वापिस अपने कमरे मे आ गया था। कुछ देर के बाद फिर उन्होंने आस्माँ को
बुलाया तो मै उसे वहाँ छोड़ कर जन्नत को अपने साथ ले आया था। उन दोनो से बात करने के
बाद कमेटी अपनी रिपोर्ट लिखने मे व्यस्त हो गयी थी। उन दोनो को मैने अपनी जीप से घर
पर छुड़वा दिया था। मै अपने आफिस मे बैठ कर अपनी टीम से कुपवाड़ा के मिशन पर चर्चा करने
बैठ गया था। शाम को ब्रिगेडियर चीमा ने मुझे अपने आफिस मे बुला कर कहा… मेजर, आज तो
तुम बच गये लेकिन अगली बार ऐसी गलती तुम्हारे फौज के केरियर पर बड़ी भारी पड़ेगी। कमेटी
ने इस मामले को तुम्हारे रिकार्ड मे दर्ज नहीं करने की सिफारिश की है। सारी घटना को
गलतफहमी मान कर दबाने का आदेश दिया है।
यह सुन कर मैने गहरी
साँस लेकर ब्रिगेडियर चीमा को शुक्रिया करके पूछा… सर, इस गहमागहमी मे उन दो ट्रकों
का क्या हुआ? …मेजर, उन दोनो ट्रक मे कुछ नहीं मिला था परन्तु उनकी जाँच के दौरान डाग
स्काय्ड ने बारुद के कुछ ट्रेसिज को पकड़ लिया था। जब पकड़े गये लोगों से एमआई ने कड़ाई
से पूछताछ की तो उन्होनें बताया कि रास्ते मे नौग्राम के एक गोदाम पर सारा असला बारुद
उतार कर वह कुपवाड़ा माल लेने जा रहे थे। रात को ही उस गोदाम पर रेड करके भारी मात्रा
मे आरडीएक्स और सेम्टेक्स का जखीरा जब्त कर लिया गया था। स्थानीय लोगों से पूछताछ के
बाद पता चला है कि पिछले कुछ दिनो से एक दो ट्रक रोजाना उस गोदाम मे माल उतार कर जा
रहे थे। अब एमआई को लगता है कि पिछली असफलताओं के कारण उन्होंने अपनी कार्यशैली मे
कुछ बदलाव किया है। अब वह सीमा पार करके जल्दी से जल्दी माल उतार कर वापिस चल जाते
है। उसके बाद एक सुरक्षित दिन अलग ट्रक मे थोड़ा-थोड़ा माल लाद कर राज्य मे अलग-अलग स्थानो
पर पहुँचा देते है। …सर, कुछ पता चला कि यह सब कितने दिनो से चल रहा था। …पूछताछ चल
रही है। फिलहाल तुम अपनी टीम को लेकर बारामुल्ला चले जाओ। वहाँ पर एक ट्रक एमआई सेन्टर
पर तुम्हारे लिये तैयार खड़ा है। उनके ही असला बारुद से उनकी इमारत को ध्वस्त करके तुरन्त
वापिस रिपोर्ट करो। …सर, उन लड़कियों का क्या करना है? …उनकी अब हमे कोई जरुरत नहीं
है। वह अपने घर वापिस जा सकती है। उनसे इजाजत लेकर मै अपने घर की ओर चल दिया था। पिछले
दो दिनों से जिन्दगी घनचक्कर बन कर रह गयी थी परन्तु अब मै अपने आप को अन्दर से काफी
हल्का महसूस कर रहा था। आस्माँ की एक बेवकूफी के कारण कितना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया था
लेकिन अंत भले का भला की कहावत मेरे लिये चरितार्थ हो गयी थी।
घर पर दोनो मेरा बेसब्री
से इंतजार कर रही थी। सुबह मैने जन्नत की टांग की खुद ड्रेसिंग कर दी थी। घर पहुँच
पहले मैने उसकी टांग की पट्टी खोल कर घाव का नीरिक्षण किया फिर नयी पट्टी बाँध कर उन्हे
कमेटी के निर्णय से अवगत कराते हुए कहा… अगली बार ऐसी गलती करी तो मै बचाने के लिये
नहीं आऊँगा। तभी आस्माँ ने झपट कर मेरे गले मे अपनी बाँहें डाल कर झूलती हुई बोली…
तुमने खुदा की कसम खाई है कि हमेशा के लिये तुमने हम दोनो की जिम्मेदारी ली है। हमारे
बीच बना तल्ख माहौल फिर से सामान्य हो गया था। हमने साथ खाना खाया और फिर मैने दोनो
के सामने कुपवाड़ा की कहानी सामने रखते हुए कहा… जन्नत अभी तुम घायल हो तो तुम दोनो
यहीं रुक जाओ। मुझे आज रात को ही कुपवाड़ा जाना है। जन्नत और आस्माँ जिद्द पकड़ कर बैठ
गयी थी कि अगर मै अपने साथ लेकर नहीं गया तो वह कल सुबह स्थानीय बस से कुपवाड़ा पहुँच
जाएँगी। मेरी टीम अपनी कोम्बेट डंगरी मे बाहर मेरा इंतजार कर रही थी। मै जल्दी से बक्खरवाल
वाली वेशभूषा मे आ गया था। मेरे पास उन्हें समझाने का समय नहीं था तो मैने जल्दी से
तीन कोम्बेट डंगरी एक थैले मे डाली और उन दोनो को साथ लेकर घर से बाहर निकल गया था।
जीप मे कुछ अदला बदली करके अपने दो साथियों को ड्राईवर के साथ बिठा कर उन दोनो लेकर
पीछे अपने तीन साथियों के साथ बैठ गया था। हमारे बैठते ही जीप बारामुल्ला की दिशा मे
चल दी थी।
रात को तीन बजे तंगमार्ग
के रास्ते से हम बारामुल्ला पहुँच गये थे। हम सीधे एमआई सेन्टर चले गये थे। उनके अहाते
मे एक ट्रक खड़ा हुआ था। मैने नम्बर नोट किया तो पता चला कि उन पकड़े गये दो ट्रकों मे
से एक ट्रक को मेरे हवाले किया जा रहा था। मैने अपने साथियों से ट्रक का सामान चेक
करने के लिये कहा और मै ड्युटी पर तैनात अफसर से बात करने के लिये चला गया था। कैप्टेन
अनिल शर्मा को मै पहले से ही जानता था। वह मेरी इंतजार मे बैठा हुआ था। उसने ट्रक की
चाबी देते हुए कहा… सर, आल द बेस्ट। किसी ने कुछ नहीं पूछा और न ही किसी के पूछने पर
मै बता सकता था। यही सेना की खास बात मुझे पसंद थी- नीड टु नो बेसिस। उतना ही बताओ
जितने की जरुरत है। ट्रक की चाबी लेकर बाहर आया तब तक मेरी टीम ट्र्क का नीरिक्षण कर
चुकी थी।
…सर, प्लास्टिक एक्स्प्लोसिव्स
का एक ड्रम भरा हुआ है। चालीस डेटोनेटर्स और दस आधुनिक स्वचलित क्लाशनीकोव-203 और उसकी 100 मैग्जीन्स रखी है। लगता है कि पूरा एम्मो
डम्प इस बार ट्रक के रुप मे हमारे हवाले कर दिया है। …आप लोग जीप से मेरे पीछे सफर
करेंगें और मै उनके साथ ट्रक लेकर आगे चलूँगा। यह निर्देश देकर पहले जन्नत को ट्रक
मे पीछे बैठा दिया जिससे वह आराम से पाँव फैला कर बैठ जाये और पीछे आती हुई जीप और
उसके पीछे आने वाले ट्रेफिक पर भी नजर रख सके। आस्माँ मेरे साथ आगे आकर बैठ गयी थी।
चाबी लगा कर पहली बार मे स्टार्टर दबाते ही इंजिन एक झटके से स्टार्ट हो गया था। एक
बार आस्माँ पर नजर डाली तो मेरी ओर देख रही थी। …चलें। उसने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया
और मैने गियर मे डाल कर धीरे से एक्सेलेरेटर दबाया तो ट्र्क पहले धीरे से हिला फिर
सरका और फिर रेंगते हुए आगे बढ़ गया। मैने रिव्यु मिरर मे एक बार पीछे आती हुई जीप को
देखा और गति बढ़ाते हुए मुख्य सड़क की ओर चल दिया। साड़े तीन बजे रात को हम कुपवाड़ा के
लिये कूच कर गये थे।
पहले सोपोर और फिर
छोटे गाँवों और कस्बों को पीछे छोड़ते हुए सुबह दस बजे हम कुपवाड़ा शहर के बाहर पहुँच
गये थे। शाम को पाँच बजे उसी इमारत के साथ बनी हुई चाय की दुकान के पास मिलने के लिये
कह कर मैने अपनी टीम को आप्रेशन्स की चौकी के रेस्ट रुम मे आराम करने के लिये भेज दिया
था। मै ट्रक को ऐसे छोड़ कर भी नहीं जा सकता था। मैने ट्रक को उसी इमारत के करीब एक
खाली प्लाट पर खड़ा करके कहा… जन्नत और आस्माँ तुम दोनो किसी होटल में ठहर जाओ और मै
इस ट्रक मे सो जाता हूँ। दोनो ने मेरी बात को उसी समय ठुकरा दिया था। आस्माँ ड्राईवर
के पीछे वाली सीट पर सो गयी और जन्नत और मै सामान के साथ बची हुई जगह मे लेट गये थे।
थकान और नींद हम सब भारी हो रही थी तो पता ही नहीं चला कि कब हम अपनी सपनों की दुनिया
मे खो गये थे। तीन बजे मुझे जन्नत ने जगाया… समीर, मुझे नीचे उतरने मे मदद करो। मैने
सहारा देकर उसे ट्रक से नीचे उतार दिया और वह लँगड़ाते हुए झाड़ियों की ओर चली गयी थी।
कुछ देर के बाद वह मेरे पास आ कर बोली… यह वह इमारत है। मैने सिर हिला कर कहा… आज रात
को यह इमारत जमींदोज हो जाएगी। मै चाय की दुकान से तीन चाय ले आया और हम तीनो एक बक्खरवाल
परिवार की तरह जमीन पर बैठ कर चाय पीते हुए सामने वाली इमारत के बारे मे चर्चा करने
मे व्यस्त हो गये थे।
पिछली बार ही मैने
उस इमारत के हर हिस्से को बड़े ध्यान से देखा था। उस चार मंजिला इमारत की पार्किंग बेसमेन्ट
मे थी। उसी बेसमेन्ट के प्रवेश के दाहिनी तरफ इमारत की बिजली का मुख्य पैनल लगा हुआ
था। पूरी इमारत चौदह कालम और उन पर रखे हुए क्रास बीम पर खड़ी हुई थी। मेरे अनुसार यही
उस इमारत का सबसे कमजोर हिस्सा भी था। मेरा अनुमान था कि कालम ध्वस्त होते ही पूरी
इमारत अपने बोझ तले ही नीचे बैठ जाएगी। बस एक ही अढ़चन मुझे नजर आ रही थी कि सब लोगों
के निकलने के बाद ही इस काम को अंजाम दे सकते थे परन्तु आफिस खाली होते ही पार्किंग
के शटर को गिरा कर उसमे ताला डाल दिया जाता था। आफिस के बन्द होने के बाद तीन चौकीदार
तीन अलग-अलग जगहों पर तैनात हो जाते थे। शाम को पाँच बजे तक मेरी टीम वहाँ पर पहुँच
गयी थी। मैने ट्रक उनको सुपुर्द किया और उनकी जीप लेकर हम तीनों एक होटल की तलाश मे
निकल गये थे। शहर मे प्रवेश करते ही एक सस्ते से होटल मे कमरा मिल गया था। जन्नत को
होटल मे छोड़ कर आस्माँ को लेकर मै वापिस अपनी टीम के पास पहुँच गया था।
शाम ढल चुकी थी और
अंधेरे ने सारे शहर को अपने आगोश मे छिपा लिया था। अपनी टीम को उस इमारत के मुख्य स्थानों
के बारे मे बता कर कहा… यहाँ का सिक्युरिटी सिस्टम काफी लचर है। सिर्फ तीन चौकीदार
सारी इमारत की रखवाली करते है। एक रिसेप्शन एरिया मे बैठता है और एक बेसमेन्ट के शटर
के पास बैठता है। लोहे के मुख्य द्वार पर एक चौकीदार तैनात रहता है। दो कैमरे मुख्य
द्वार पर और दो कैमरे पार्किंग के शटर पर लगे हुए है। इमारत की जानकारी देने के पश्चात
मैने अपनी योजना उनके सामने रखते हुए कहा… देखिये जैसे ही लोग बाहर निकलने लगेंगे तो
मै मौका देख कर बेसमेन्ट मे चला जाऊँगा। कुछ देर बाद दो चौकीदार चौथी मंजिल से हर कमरे
को खाली करके नीचे उतरते चले जाएँगें। आठ बजे तक पूरी इमारत की चेकिंग हो जाएगी तो
वह पार्किंग को चेक करके उसके शटर पर ताला डाल कर अपनी-अपनी जगह पर तैनात हो जाएँगें।
रात को ठीक दस बजे मै मेन पैनल से इमारत की बिजली काट दूँगा। मेरा अनुमान है कि बिजली
कटते ही वह तीनों बाहर निकल आयेंगें। शहर मे बिजली को देख कर वह पार्किंग का शटर खोल
कर पैनल चेक करने लिये बेसमेन्ट की ओर आयेगें। वह समय होगा जब उन्हें आप अपने कब्जे
मे ले सकते है। बिजली जाने से कैमरे भी निष्क्रिय हो जाएँगें। उसके बाद सारे कालम्स
और क्रास बीम पर सीरीज मे एक्स्प्लोसिव्स लगाने के लिये काफी समय मिल जाएगा। इस पर
आपकी कोई राय हो तो बताईये। किसी ने कुछ नहीं कहा तो मैने बोलना शुरु किया… बेसमेन्ट
मे प्रवेश करने के लिये मुझे डाइवर्जन की जरुरत है। मैने आस्माँ की ओर इशारा करके कहा…
यह मुख्य गेट पर हंगामा करेगी। बाहर निकलती हुई भीड़ का ध्यान जब उस पर होगा तब मै चुपचाप
पार्किंग मे चला जाऊँगा। मेरे अन्दर जाते ही आप इसको अपने साथ ले जाएँगें। उसके बाद सभी कर्मचारी अपने-अपने रास्ते
चले जाएँगें। जब हम अन्दर कार्यवाही कर रहे होंगें तब आस्माँ हमारे लिये लुक आउट का
काम करेगी। मैने उसे एक जगह बता रखी है जहाँ से वह बैठ कर सड़क पर आने जाने ट्रेफिक
पर नजर रखेगी। सभी के पास टू-वे कम्युनीकेशन डिवाईस होगी। जैसे ही मै इमारत की बिजली
काटूँगा उसके बाद आस्माँ हमारी आँखें बन कर बाहर की निगरानी करेगी। किसी भी खतरे को
देख कर वह हमें सुचित कर देगी और हम उस खतरे से निबटने के लिये तैयार हो जाएँगे। सब
चुपचाप मेरी बात सुन और समझ रहे थे।
साढ़े छह बजे इक्के-दुक्के
लोग काम समाप्त करके उस इमारत से बाहर निकलने शुरु हो गये थे। अभी भीड़ का रेला नहीं
निकला था। मैने जल्दी से अपनी पिस्तौल और टू-वे का सेट उठाया और चाय की दुकान से कुछ
दूरी बना कर एक किनारे मे खड़ा हो गया था। सात बजे शीशे के दोनो मुख्य द्वार खुल गये
और फिर एक साथ कर्मचारियों की भीड़ बाहर निकली थी। कुछ पार्किंग की ओर जा रहे थे और
बहुत सारे लोग मुख्य सड़क की ओर बढ़ रहे थे। सड़क पर भी टेम्पो और आटो की लाईन लग गयी
थी। मैने आस्माँ की ओर देख कर इशारा किया और फिर अचानक आस्माँ ने पास खड़े हुए टेम्पो
ड्राईवर के गाल पर चाँटा मार कर गालियाँ देना आरंभ कर दिया। हंगामा होते हुए देख कर
बाहर निकलती हुई भीड़ वहाँ इकठ्ठी होना शुरु हो गयी थी। उस भीड़ की आढ़ लेकर मै बेसमेन्ट
पार्किंग मे बड़ी आसानी से चला गया था। बेसमेन्ट मे प्रवेश करते ही मै ऐसे कोने की ओर
मै चला गया जहाँ काफी आफिस का कबाड़ पड़ा हुआ था। कुछ पुरानी टूटी हुई अलमारियों की आढ़
मे जगह बना कर मै बैठ गया। मैने अपना हेडफोन और माईक सेट किया और दस बजने का इंतजार
करने लगा। धीरे-धीरे पार्किंग खाली हो रही थी। तभी हल्की सी खरखराहट के बाद मेरे कान
मे आवाज गूंजी… आस्माँ को वहाँ से हटा दिया है…आउट। आप्रेशन का पहला फेज सफलतापूर्वक
समाप्त हो चुका था।
एक घन्टे के बाद कदमों
की आहट सुन कर मै सावधान होकर बैठ गया था। इसका मतलब दोनो चौकीदार पूरी इमारत को चेक
करके पार्किंग के शटर मे ताला लगाने के लिये पहुँच गये थे। दोनों ने पार्किंग का एक
चक्कर लगाया और अंधेरे हिस्से मे टार्च जला कर नीरिक्षण करके शटर की ओर बढ़ गये थे।
अगले कुछ मिनट के बाद भारी स्टील का शटर गिरने की आवाज मेरे कानों पड़ी और जैसे ही ताला
लगने की आवाज सुनाई दी तो मै अपनी जगह से निकल कर बाहर खुले मे आ गया था। एक नजर मैने
अपनी घड़ी पर डाली तो आठ बज कर पन्द्रह मिनट हुए थे। तीसरा फेज शुरु होने मे अभी पौने
दो घन्टे थे। मैने अपने चेहरे पर फिदायीन की तरह कपड़ा बाँधा और टार्च जला एक दिशा मे
चल दिया। बेसमेन्ट के फायर एस्केप के दरवाजे पर पहुँच कर मैने उसके हैन्डल को घुमा
कर देखा तो वह लाक था। मैने जल्दी से अपने चेहरे से कपड़ा हटाया और अपनी पिस्तौल की
नाल के उपर लपेट कर लाक के मुहाने पर रख कर ट्रिगर दबा दिया था। एक दबी हुई आवाज हुई
और लाक के परखच्चे उड़ गये थे। मैने एक बार फिर से कपड़ा अपने चेहरे पर बाँध लिया लेकिन
बारुद और कपड़ा जलने की गंध ने मुझे रुकने के लिये मजबूर कर दिया था। मैने दो-चार गहरी
साँस ली और फिर जब बर्दाशत लायक स्थिति लगी तो दरवाजा खोल कर सिढ़ियों से उपरी तल की
ओर चल दिया।
प्रथम तल पर रिसेप्शन
और द्वितीय तल पर काल सेन्टर का हाल था। तृतीय तल पर एडमिन के आफिस के साथ सिस्टम मेनफ्रेम
सेन्टर था। जब नौकरी के लिये बात करने आया था तब इसी मंजिल पर मेरा साक्षात्कार हुआ
था। यहीं पर मैने फारुख को मेनफ्रेम सेन्टर मे जाते हुए देखा था। उसके बाद मुझे कभी
भी प्रथम तल से उपर जाने का मौका ही नहीं मिला था। मैने तृतीय तल के दरवाजे का हैन्डल
घुमाया कर अपनी ओर खींचा तो इस बार वह खुलता चला गया था। मै तेजी से कैमरे के सामने
से निकल कर सिस्टम मेनफ्रेम सेन्टर के दरवाजे पर पहुँच चुका था। दीवार पर कैमरे की
तार को पकड़ कर जोर से झटका दिया तो सारा तार प्लास्टिक के बेस समेत उखड़ कर कर टूट गया
था। सिस्टम मेनफ्रेम सेन्टर का दरवाजा भी लाक था। एक कुर्सी पर पड़ी हुई मोटी सी गद्दी
उठाकर पिस्तौल की नाल पर रख कर इलेट्रानिक लाक पर फायर कर दिया। एक बार फिर वैसी दबी
हुई आवाज हुई और लाक टूट कर बिखर गया था। मै मेनफ्रेम सेन्टर का दरवाजा धकेल कर अन्दर
चला गया था।
मेरे सामने काल सेन्टर
का मेनफ्रेम और काल सेन्टर का सारा सिस्टम था। मैने अपने स्पीकर पर धीरे से बोला… कुट्टी,
मेनफ्रेम मेरे सामने है। डेटा रिकार्ड फाईल कैसे निकाली जा सकती है। मेरे कान मे कुट्टी
की आवाज गूंजी… सर, मेनफ्रेम पर शीशे का ढक्कन होगा। आप नीचे देखेंगें तो शीशे के दो
दरवाजे दिखेंगें। अन्दर आपको लाईन से बहुत सारी हार्ड ड्राईव्ज लगी हुई दिखेंगी। वह
मेनफ्रेम की सीरीज मे लगी हुई हार्ड ड्राईव्ज है। सभी ड्राईव्स डिटेचेबल मोड मे होती
है। शीशे को तोड़ कर सभी ड्राईव्स को आप खींच कर अलग कर लीजिए। मैने जल्दी से शीशा तोड़ा
और फिर एक-एक करके ड्राईव्ज निकालना आरंभ कर दिया। कुल मिला कर 32 ड्र्राईव्ज मैने
निकाल ली थी। …थैंक्स कुट्टी, सारी ड्राईव्स निकाल ली है। …सर, आसपास देखिए आपको किसी
अलमारी मे वैसी ड्राईव्ज और भी मिल जाएँगी। एक नजर घड़ी पर मार कर मै उस अलमारी को ढूँढने
मे जुट गया था। एक शीशे की अलमारी मे लाईब्रेरी की भाँति लाईन से वैसी ड्राईव्स रखी
हुई थी। सभी पर तारीख के साथ कुछ कोड लिखे हुए थे। मैने एक बार फिर से अलमारी का शीशा
तोड़ कर सभी ड्राईव्स को निकालना आरंभ किया। एक घंटे के बाद दो सौ से ज्यादा हार्ड ड्राईव्स
मेरे सामने रखी हुई थी। मेरे लिये इन सबको लेकर जाना आसान भी नहीं था। मैने सभी ड्राईव्स
को इकठ्ठा किया और एक किनारे मे लगा कर मै वापिस नीचे उतर आया था। दस बजने मे कुछ मिनट
शेष थे।
मै बिजली के पैनल
की ओर चला गया था। ठीक दस बजे अपने स्पीकर पर मैने कहा… रेडी… 1…2…3…गो। इतना बोल कर
मैने लीवर को उठा दिया। पैनल मे एक खटका हुआ और अगले ही क्षण पूरी इमारत की बिजली चली
गयी थी। कुछ देर के बाद मेरे कान मे आवाज गूँजी… वह शटर खोलने जा रहे है। …बोयज तैयार
रहना। शटर के लाक खुलने की आवाज हुई तो मै किनारे मे चला गया था। धीरे से शटर खुलने
की आवाज हुई तभी मेरे कान मे किसी की आवाज आयी… वन डाउन। अगले ही क्षण… टू डाउन…थ्री
डाउन…आल क्लियर। लोहे का शटर फिर से खुलने लगा और जब पूरा शटर खुल गया तब इयरफोन मे
एक आवाज गूंजी… ट्रक को पार्किंग मे ले आओ। ट्रक की भारी भरकम आवाज मेरे कान मे पड़ी
और अगले कुछ मिनट के बाद वह ट्र्क इमारत की पार्किंग मे खड़ा हुआ था।
मैने दो आदमियों को
तीसरी मंजिल से हार्ड ड्राइव्स नीचे लाने के लिये भेज दिया था। मेरे एक्स्प्लोसिव्स
एक्स्पर्ट हवलदार सुजान सिंह और लांस नायक राम नरेश महतो अपने औजार लेकर सेम्टेक्स
की छ्ड़े कालम्स मे फिट करने के काम मे जुट गये थे। लाँस नायक कुट्टी और सिपाही विजय
बहादुर थापा उन तीन चौकीदारों की निगरानी पर बैठ गये थे। आस्माँ की आवाज गूँजी… पुलिस
जीप आ रही है। हम सब शांत हो कर बठ गये थे। …वह इमारत से आगे निकल गये है। एक बार फिर
से काम आरंभ हो गया था। ऐसे ही काम के बीच-बीच आस्माँ बाहर सड़क पर उत्पन्न खतरे से
अवगत करा रही थी।
रात के तीन बजे तक
सारे कालम्स और चार क्रास बीम्स मे सेम्टेक्स फिट हो गया था। सुजान सिंह सीरीज मे डेटोनेटर्स
लगा रहा था। बाकी लोग जमीन पर तार का जाल बिछाने मे लगे हुए थे। सारी ड्राईव्ज तब तक
ट्रक मे रखवा दी गयी थी। आधे घंटे के बाद सब ट्रक मे बैठ गये तो मै बिजली के पैनल को
गिराने के लिये चला गया था। …बाहर निकल रहे है। क्या स्थिथि है? …सड़क खाली पड़ी है।
पार्किंग से ट्रक निकल कर चाय की दुकान के पास रुका और तीनो बेहोश चौकीदारों वहाँ छोड़
कर आगे बढ़ गया था। …आल क्लीयर। यह सुन कर मै पैनल का लीवर गिरा कर बेसमेन्ट से बाहर
निकल आया था। एक बार फिर से इमारत का कुछ हिस्सा
और रिसेप्शन रौशन हो गये थे। जब तक मै सड़क पर पहुँचा ही था कि तभी इमारत मे खतरे की
घंटी बज उठी थी। मैने तुरन्त ट्रक की ओर दौड़ लगा दी थी।
ट्रक मे बैठते ही
सुजान सिंह ने मेरे हाथ मे रिमोट थमा कर कहा… जनाब, बटन दबाईये। सभी की नजरें कुछ दूरी
पर खड़ी हूई इमारत पर टिक गयी थी। महतों ने हवा मे अपना हाथ उठा कर नारा दिया… हर…हर…महादेव।
एक साथ सभी ने हवा मे हाथ उठा कर नारे को दोहरा दिया और मैने बटन दबा दिया। एक पल के
बाद धमाका हुआ जिसकी आवाज ने रात की शांति को भंग कर दिया था। इमारत की कुछ खिड़कियों
के शीशे टूट कर अंधेरे मे बिखर गये थे। कुछ पलों के बाद लाईन से धमाके होने आरंभ हो
गये थे। हर धमाके से इमारत काँपती हुई लग रही थी। आखिरी धमाका होने से पहले ही वह इमारत
धीरे से अपने भार के बोझ से लहराते हुए नीचे बैठती चली गयी थी। अंत मे एक भारी धमाका
हुआ और अगले ही पल मे एक धूल का गुबार जमीन से उठा और हवा मे उठता चला गया और एक उचाँई
पर पहुँच कर चारों ओर फैल गया था। हमारा काम यहाँ पर समाप्त हो गया था। मेरा इशारा
मिलते ही मेरी टीम ट्रक लेकर उसी रात श्रीनगर के लिये निकल गयी थी। मै और आस्माँ जीप
लेकर होटल वापिस आ गये थे।
बहुत ही जबरदस्त अंक और समीर ने अपने लक्ष्य के द्वितीय भाग का आगाज बहुत ही धमाकेदार किया है।अब इसके लहर बहुत दूर तक जाती लग रही है।
जवाब देंहटाएंयह भी तो हो सकता है कि इस धमाके से साँप के बिल मे तीली से हलचल मचा कर विषैले साँपों को बाहर निकलने के लिये मजबूर किया गया हो अन्यथा आघात-2 के लिये नींव तैयार की गयी है। एविड भाई आपकी नव वर्ष की शुभ कामनाओं के धन्यवाद।
हटाएंआस्मा और जन्नत जैसे कितने लुप्त बहादूर है, जिनका जिक्र कही भी कभी होता नही, पर वो चुपचाप देश के प्रती अपणा दायित्व निभा जाते है, समीर का एक लक्ष और ISI जैसे आतंक के पालनहार का भारत मे स्थिथ एक बहोत बडा अड्डा जमीनदोज हो गया👌
जवाब देंहटाएंप्रशान्त भाई आपने सही समझा है। बक्खरवाल और अन्य पहाड़ी जन जातियों का इस धर्म युद्ध मे योगदान को किसी को भूलना नहीं चाहिये। इन वीरों ने समय-समय पर सूचना देकर भारतीय सेना की बहुत मदद की है। कारगिल की पहाड़ियों के अतिक्रमण के बारे मे पहली सूचना भारतीय सेना को इन्होंने ही दी थी। इनकी राष्ट्र्र भक्ति के जज्बे को सलाम। आपकी नव वर्ष की शुभकामनाओं के लिये शुक्रिया।
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