काफ़िर-31
अगली सुबह मेरे लिये अच्छी नहीं थी। मै आफिस
जाने के लिये तैयार होकर बाहर लान मे अपने साथियों का इंतजार कर रहा था कि तभी एक चमचमाती
हुई सफेद ओडी कार मेरे दरवाजे पर रुकी तो मै उठ कर गेट की ओर चला गया था। ड्राईवर ने
कार से उतर कर पीछे का दरवाजा खोला और उसमे से हिजाब पहने नीलोफर लोन उतर कर मेरे सामने
आकर खड़ी हो गयी थी। अभी मै उसके आने का सबब सोच ही रहा था कि तभी मेरी आफिस की जीप
भी आकर खड़ी हो गयी थी। झीने से कपड़े से नीलोफर ने अपना सिर और चेहरा ढका हुआ था। मेरे
नजदीक पहुँच कर वह धीरे से बोली… समीर, किसी भी मसले का हल बातचीत से निकाला जा सकता
है। तुम्हारे अब्बा कार मे बैठे है। क्या तुम दोनों एक दूसरे को बेइज्जत किये बिना आराम से बात कर सकते हो? मैने एक नजर अपनी जीप मे बैठे हुए साथियों पर डाल कर
कहा… आफिस के लिये देरी हो रही है लेकिन जब आप दोनो आ ही गये हो तो बात करने मे क्या
बुराई है। आ जाईये। यह बोल कर मै बैठक की ओर चल दिया था। तभी नीलोफर की आवाज मेरे कान
मे पड़ी… यहीं लान मे बैठ जाते है। मै मुड़ कर लान मे आ गया था।
मकबूल बट कार से उतर कर नीलोफर के साथ लान
मे आ गया और कुर्सी पर बैठते हुए बोला… कल
तुम मुझसे मिलने मेरे घर आये थे। क्या काम था? मै उसके सामने बैठ गया और उसकी ओर देखते
हुए बोला… अम्मी के वकील फैयाज खान कल यहाँ आये थे। उन्होंने बताया कि आप मुझे काफ़िर
साबित करने पर तुले हुए है। इसी के बारे मे बात करना चाहता था। …तो क्या मैने गलत कहा
है? मैने एक नजर नीलोफर पर डाल कर कहा… अब्बा मुझे समझ मे नहीं आता कि आप मुझे बार-बार
काफ़िर क्यों कहते है? एकाएक मकबूल बट तैश मे आकर बोला… अब यह भी क्या तुझे बताना पड़ेगा?
नीलोपर ने मकबूल बट का हाथ पकड़ कर कहा… हम आराम से भी तो बात कर सकते है। मैने नीलोफर
से कहा… मुझे समझ मे नहीं आ रहा कि तुम हमारे पारिवारिक मामले मे क्यों पड़ रही हो लेकिन
अगर तुम पड़ ही गयी हो तो शांति से मेरी बात सुन कर अब्बा को समझाओ। इतना बोल कर मै
एक पल के लिये चुप हो गया था। दोनो मेरी ओर बड़े ध्यान से देख रहे थे।
अपना लहजा बदलते हुए मैने कहा… मकबूल बट, जितनी
बार तू मुझे काफ़िर कहता है उतनी बार तू अपनी नामर्दगी साबित करता है। तेरे कहने का
मतलब है कि तेरी मर्जी से मेरी अम्मी किसी काफ़िर के साथ सोई थी जिसके कारण मै पैदा
हुआ था। सारे कागज यही बताते है कि तुने मुझे गोद नहीं लिया है। इसका मतलब यह हुआ कि
बाकी चारों लड़कियाँ भी तेरी नहीं थी क्योंकि हम सभी के स्कूल के कागजों पर तुझे बाप
बताया गया है। इस सच्चायी को कोई झुठला नहीं सकता तो इसलिए अपनी जुबान पर अंकुश लगायेगा
तो तेरे लिए अच्छा होगा। अब कानूनी बात बता रहा हूँ कि स्कूल से लेकर आज तक सभी सरकारी
कागजों पर मेरे बाप की जगह मकबूल बट और माँ की जगह शमा बट का नाम दर्ज है। तेरे कहने
से मुझे कोई भी कानून या फिर तेरा मुस्लिम समाज काफ़िर नहीं मानेगा। नीलोफर तुम चाहो
तो मै तुम्हें अकेले मे दिखा सकता हूँ कि मेरा खतना भी हुआ है। अगर तू अपना काला इतिहास
बता कर मुझे काफ़िर घोषित करने की कोशिश भी करता है तो याद रखना कि मै कानूनी तौर पर
तुझे सारी जिन्दगी जेल मे एड़ियाँ रगड़ने के लिए मजबूर कर दूँगा। अब सोच ले मकबूल बट
तू क्या चाहता है? मैने नीलोफर की ओर देख कर कहा… नीलोफर बीबी, अब इस आदमी को समझाओ
कि इस मसले पर मुझसे उलझने मे यह सिर्फ मुँह की खाएगा और कुछ नहीं। आप दोनो अपने आप
चले जाना। मुझे देर हो रही है। खुदा हाफिज। यह बोल कर मै वहाँ से निकल कर अपने आफिस
की ओर चल दिया था।
मै मकबूल बट को जो बताना चाहता था वह मैने
उसे बता दिया था। अपने आफिस पहुँचते ही मैने स्टैन्डर्ड प्रोटोकोल पर काम करना आरंभ
कर दिया था। कैसे सुरक्षा एजेन्सियाँ हरेक थाने की मदद से उन कुछ चन्द बच्चों पर नजर
रख सकती थी। कैसे उनके अभिभावकों के साथ समय-समय पर बातचीत करके उनके दोस्तों और पहचान
वालों की शिनाख्त करके पत्थरबाजों की संख्या को कम कर सकते थे। मैने सुरक्षा एजेन्सियों
के लिये दस पोइन्ट्स का उल्लेख किया था। कैसे उन बच्चों को अलग बुला कर पहले डराओ,
फिर पुचकारो और फिर उनकी ओर मदद का हाथ बढ़ाओ। उन सभी बच्चों को यह लगना जरुरी है कि
अब से उन पर सुरक्षा एजेन्सियों की नजर है। अगर एक बार फिर वह किसी ऐसी घटना मे देखे
गये तो फिर चाहे कितना भी दबाव आये उनको तुरन्त सेना के हवाले करना ही बेहतर होगा।
इसी के साथ मैने सुरक्षा एजेन्सियों के लिये कुछ खास सावधानी बरतने के लिये भी सुझाव
दिये थे। हमे इसका खास ख्याल रखना होगा कि इस शिनाख्त की आढ़ मे पुलिस या अन्य सुरक्षाकर्मी
कभी उन बच्चों को डरा धमका कर उनका यौन शोषण करने की जुर्रत न कर सकें। यह बात मुझे
पूँछ जिले मे बातचीत के दौरान एक लड़की ने बतायी थी कि कैसे एक पुलिस वाला उसकी सहेली
को हिरासत मे लेकर धमकी दे रहा था कि अगर वह उसके साथ हमबिस्तर न हुई तो उसके उपर संगीन
चार्ज लगा कर जेल भिजवा देगा। यह सुन कर उसी दिन मै तुरन्त हरकत मे आ गया था। एसपी
से मिलकर मैने उस सिपाही के खिलाफ एक विभागीय जाँच बिठवा दी थी। इसी कारण मैने अपनी
रिपोर्ट मे हेल्पलाईन की सिफारिश भी की थी। तीस पन्नो की रिपोर्ट को मैने ब्रिगेडियर
चीमा के सामने रख कर कहा था कि जब पत्थरबाजी पर रोक लगाने की सारी कोशिशें विफल हो
गयी है तो एक बार इसको भी आजमा कर देख लेना चाहिए। उस वक्त ब्रिगेडियर चीमा ने सिर्फ
इतना ही कहा था कि इस रिपोर्ट पर चर्चा करके ही वह कोई अंतिम निर्णय लें सकेंगें।
मै जैसे ही जाने के लिये उठा तो ब्रिगेडियर
चीमा ने कहा… मेजर, हमने अब्दुल्लाह नासिर को छोड़ने का मन बना लिया है। मैने चौंक कर
उनकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोले… इस जंग मे हमे भी कुछ मोहरे उस मोर्चे मे बिठाने
होंगें। खिन्न मन से मैने कहा… सर, आप बेहतर जानते है। …मेजर, मेरा वादा है कि बुरहान
मुज्जफर वानी और जाकिर राशिद बट को तुम्हें प्लेट मे सजा कर दूँगा। बस कुछ दिन इंतजार
करो। इन पर लगातार हमारी नजर है। अचानक मुझे कुछ याद आते ही मैने पूछा… सर, एक बात
शायद हम भूल चुके है कि जामिया मस्जिद मे उन जिहादियों की जेब से एक पर्ची निकली थी
जिस पर कुछ नम्बर लिखे हुए थे। क्या एमआई ने उन नम्बरों को डिकोड कर लिया है? ब्रिगेडियर
चीमा ने कहा… अभी तक उन नम्बरों के मामले मे कुछ पता नहीं चल सका है। परन्तु वैसे ही
नम्बर हमे नौग्राम की रेड मे भी मिले थे। …सर, मै आपके सामने एक बात रखने की काफी दिनो
से सोच रहा था। खड़गवासला मे तोपखाने की ट्रेनिंग के दौरान हमे कुछ ऐसे ही सात अंकों
के नम्बर दिये जाते थे। वह जीपीएस के द्वारा चिन्हित उस जगह के ग्रिड रेफ्रेंस हुआ
करते थे। हमे अब पता है कि उन लोगों के निशाने पर 15वीं कोर का हेडक्वार्टर्स था तो
एक बार यह चेक करके देख सकते है कि क्या वह यहाँ के ग्रिड रेफरेंस तो नहीं थे? ब्रिगेडियर
चीमा ने मेरी बात पूरी सुने बिना किसी से फोन पर बात करना आरंभ कर दिया था। उन्होंने
हाथ के इशारे से मुझे बैठने का संकेत दिया और दूसरी ओर की बात सुनने बैठ गये थे। उनके
चेहरे पर तनाव की लकीरें देख कर मुझे भी घबराहट होने लगी थी। उन्होंने फोन रख कर मेरी
ओर देखा और चिन्तित स्वर मे बोले… मै अभी अपने दोस्त कर्नल सरबजीत सिंह मान से बात
कर रहा था। उसका कहना है कि सात अंकों का नम्बर जीपीएस का बताया हुआ ग्रिड रेफ्रेंस
भी हो सकता है। हमारा मिसाईल सिस्टम भी पिनपोइन्ट टार्गेट के लिये जब सेटेलाइट के साथ
संपर्क स्थापित करके उस स्थान का ग्रिड कोड तैयार होता है तो वह भी सात अंकों का नम्बर
है जिसमे ग्रिड कोड डिग्री और मिनट्स मे मिलता है। हमारी अग्नि, पृथ्वी और परमाणु टिप्ड
अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम इसी सेटेलाइट ग्रिड कोडिंग सिस्टम पर आधारित होता है। यह
अत्यन्त गोपनीय जानकारी सिर्फ इसरो के पास होती है या फिर हमारे सेन्ट्रल कमांड सेन्टर
मे होती है। दोनो ही स्थान सिक्युरिटी के हिसाब से अभेद्य माने जाते है।
वह तो बोल रहे थे परन्तु उनकी बात सुन कर मेरे
पाँव के नीचे से भी जमीन खिसक गयी थी। अगर आईएसआई हमारे इस सिस्टम मे सेंध मारने मे
सफल हो गया तो हमारी मिसाईल को वह किसी भी टार्गेट पर इस्तेमाल करने योग्य हो जाएगा।
कुछ सोच कर मैने पूछा… सर, तो यह कैसे पता चलेगा कि वह सात अंकों का नम्बर किस पर आधारित
है? …कर्नल मान कुछ नम्बरों से इसकी पुष्टि नहीं कर सकते। मैने उनके पास जामिया मस्जिद
मे मिले हुए सात अंको के चार नम्बर और नौग्राम मे मिले चार नम्बर भेज दिये है। हमको
एक रेफ्रेंस कोड का टार्गेट का पता है जो 15वीं कोर का हेडक्वार्टर्स है। दूसरा टार्गेट
जब तक पता नहीं चलता तब तक यह अंधेरे मे तीर मारने जैसा प्रयत्न होगा। इस सूचना के
आधार पर तो इसका जिक्र मै किसी से भूल कर भी नहीं कर सकता। कर्नल मान मेरा बैचमेट है
इसीलिये एक विश्वास पर मैने तुम्हारे शक के निदान के लिये उनसे बात करने की सोची थी।
पहले वह आर्टीलरी मे सांबा सेक्टर मे सीओ थे फिर उनको मिसाईल सिस्टम के प्रशिक्षण के
लिये रुस भेज दिया गया था। वहाँ से लौटने के बाद वह कुछ साल इसरो मे ट्रेनिंग पर रहा
उसके बाद डीआरडीओ मे आ गया था। पुराना स्कूल के जमाने का दोस्त है। हमने एक साथ फौज
मे भर्ती हुए थे तो आजतक संपर्क मे है। इतना बोल कर वह चुप हो गये थे।
…सर, नौग्राम मे पकड़े हुए लोगों का मुँह खुलवाया
जा सकता है। …नहीं, वह पैदल सिपाही थे। टार्गेट तो कोई और देता है। अब्दुल्लाह नासिर
जैसा आदमी ही टार्गेट के बारे मे जानकारी दे सकता है। हम दोनो के सामने एक दीवार खड़ी
हो गयी थी। …मेजर, आप्रेशन आघात के फेस-2 मे कुछ बदलाव करना पड़ेगा। पहले मै सोच रहा
था कि फेस-2 मे तुम्हारे निशाने पर अनैतिक गठजोड़ होगा परन्तु अब मुझे लग रहा है कि
इस मसले को पहले सुलझाना चाहिए। …सर, आप ठीक कह रहे है। मै भी फेस-2 मे संयुक्त मोर्चे
को छिन्न-भिन्न करने की सोच कर बैठा था परन्तु आपकी बात ने मुझे भी नये सिरे से सोचने
के लिये मजबूर कर दिया है। …मेजर, संयुक्त मोर्चे मे शामिल सभी लोग टार्गेट के बारे
मे निर्णय लेते है। बस अब इन सबको एक अलग लेन्स से देखने की जरुरत है। …सर, वैसे भी
इनके सभी मुख्य नेता सीमा के दोनो साइड मेरी नजर मे है। सीमा के इस ओर मकबूल बट, अब्दुल
लोन, मोहम्मद सईद, हाजी मोहम्मद और जाकिर मूसा व अन्य जिहादी अब मेरी नजर मे है। इसी
तरह सीमा के उस पार पीरजादा मीरवायज, जकीउर और मुन्नवर लखवी, अजहर मसूद और फारुख मीरवायज
मेरी नजरों से दूर नहीं है। बस आप कर्नल मान से यह पता कर लिजीए कि इस शक को पुख्ता
करने के लिये आठ ग्रिड मार्किंग्स मे कितने टार्गेट होने अनिवार्य है। मै जानता था
कि ब्रिगेडियर चीमा के दिमाग क्या चल रहा था इसीलिये उनसे इजाजत लेकर मै अपने कमरे
मे चला आया था।
शाम ढल चुकी थी और अंधेरा होने लगा था। मै
अपने घर जाने के लिये निकला ही था कि मेरी मुलाकात एक्स मेजर हसनैन
अली से इत्तेफक से हो गयी थी। कार्गिल युद्ध मे घायल होने के पश्चात उनको डिसचार्ज
मिल गया था। फौज ने एक काबिल अफसर खो दिया था। उस रोज वह हमारे एडमिन ब्लाक मे अपने
लिये कोई काम देखने की मंशा से आये थे। मै वहीं से गुजर रहा था और मुझे देख कर वह मुस्कुरा
कर बोले… मेजर, प्लीज स्माईल। अब मै उनको अपने चेहरे पर आये हुए तनाव के बारे मे कैसे
कहता तो मैने जल्दी से मुस्कुरा कर उनका अभिवादन किया और उनसे सामान्य बात करते हुए
आफिस के बाहर आ गया था। …सर, मै आपको कहीं छोड़ दूँ। नो थैंक्स बोल कर वह लंगड़ाते हुए
अपनी कार की ओर चले गये थे। अचानक मेरे दिमाग मे कुछ आया तो मै भागते हुए उनके पास
पहुँच कर बोला… सर, मै आपसे बात करना चाहता हूँ। कौनसा समय उचित रहेगा जब हम आराम से
बैठ कर बात कर सकते है। मेजर हसनैन अली ने हँसते हुए कहा… भाई
मै तो आजकल खाली हूँ। मेरे घर कभी भी आ जाओ। मैने उनका नम्बर और घर का पता लेकर विदा
किया और अपनी जीप मे बैठ कर घर की ओर निकल गया था।
रात को मै टहलने के
लिये सड़क की ओर निकल गया था। मेरा दिमाग ब्रिगेडियर चीमा की बात मे उलझा हुआ था। उस
जिहादी के पास चार ग्रिड मार्किंग्स मिली थी। अब्दुल्लाह ने बताया था कि उनके निशाने
पर हमारा हेडक्वार्टर्स था। यही बात मुझे परेशान कर रही थी। किसी भी जगह का ग्रिड कुअर्डिनेट्स
दो ही हो सकते है तो उनका दूसरा टार्गेट कौनसा था। क्या अब्दुल्लाह दूसरा टार्गेट भी
जानता था? अगर वह नहीं जानता था तो दूसरा व्यक्ति जो यह बात जान सकता था वह हिज्बुल
का कमांडर जाकिर मूसा था। यही सोचते हुए मै अपने घर लौट रहा था कि मेरा सामना आयशा
से हो गया था। वह भी अपने घर के बाहर खड़ी हुई थी। उसे देखते ही मैने पूछा… तुम कहीं बाहर गयी थी? …क्यों? …कुछ दिनों से मैने
तुम्हें देखा नही तो सोचा कि तुम बाहर गयी हुई हो। तभी अरबाज अपनी बीवी निशात के साथ
घर से बाहर निकलते हुए बोला… आयशा आजकल काम करने लगी है। मैने आयशा की ओर देखा तो वह
मुस्कुरा कर बोली… दुख्तरान-ए-हिन्द नाम की
एक स्वयं-सेवी संस्था के साथ मै जुड़ गयी हूँ। …यह तो तुमने बहुत अच्छा किया। इससे समय
भी अच्छा कट जाएगा। अरबाज ने कहा… अपने लोन साहब की संस्था है। गरीब लड़कियों के लिये
बहुत काम कर रही है। पता नहीं क्यों लोन का नाम सुनते ही मेरे दिमाग मे खतरे की घंटी
बजने लगी थी। मै अपने घर की ओर चल दिया और वह तीनों टहलने के लिये आगे निकल गये थे।
दुख्तारान-ए-हिन्द
का नाम मेरे दिमाग मे लगातार चोट कर रहा था। क्या यह नीलोफर की संस्था है? आलिया ने
मुझे सिर्फ इतना बताया था कि नीलोफर लोन ने उसे अपनी संस्था से जुड़ने के लिये कहा था
परन्तु आलिया ने कोई नाम नहीं लिया था। दोनो बहनें मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखते
ही जन्नत ने कहा… समीर, अगर अभी कुपवाड़ा जैसा कोई काम नहीं है तो एक बार किश्तवार चलते
है। हमारे समाज के लोग अब तक पहाड़ से नीचे उतर आये होंगें। कुछ सोच कर मैने कहा… चलेंगें
लेकिन उससे पहले मुझे कुछ काम करना है। इतना बोल कर मैने उन्हें वह काम समझाना आरंभ
कर दिया। कुछ देर तक उस काम के हर पहलू को उनके सामने रख कर मैने पूछा… क्या तुम दोनो
यह काम कर सकोगी? …क्यों इसमे क्या मुश्किल है। बस इतनी बात करके मै अपने कमरे मे चला
गया था।
मैने अपना फोन उठाया
और आसिया का नम्बर मिला कर कहा… आसिया। एक विषय पर मै तुम्हारी राय लेना चाहता हूँ।
मै सोच रहा था कि एक ट्रस्ट बना कर अम्मी की जायदाद उसके हवाले कर दिया जाये तो कैसा
रहेगा? इससे यह मकान और सेब के बागों की देखभाल भी हो जाएगी और हम मे से किसी पर इसके
काम का बोझ भी नहीं पड़ेगा। …समीर तुम जो भी ठीक समझते हो वह करो। मै तुम्हारे साथ हूँ
फिर भी एक बार आफशाँ और अदा से भी बात करके देख लो। …तुम कैसी हो? …ठीक हूँ। तुम्हारा
कभी दिल्ली आना नहीं होता? …अभी तक तो नहीं लेकिन जब भी मौका मिला तो जरुर आऊँगा। कुछ
देर आसिया से कश्मीर की बात करने के बाद मैने फोन काट दिया था। मेजर हसनैन अली से बात करने के बाद
मेरे दिमाग मे इसका विचार आया था। आस्माँ के कमरे मे आते ही सारी दिमागी उलझनों को
तिलांजली देकर मै उसकी ओर चला गया था।
मेरी अगली सुबह वकील फैयाज खान के फोन से आरंभ
हुई थी। …समीर, तुम्हारे अब्बा ने तुम्हारी अम्मी की वसीयत पर अपना दावा ठोकने से मना
कर दिया है। उन्होंने अपने सभी दावे खारिज कर दिये है। उनका नया प्रस्ताव है कि अगर
तुम सभी सेब के बाग उन्हें दे दोगे तो यह मकान तुम अपने पास रख सकते हो। …अंकल, अगर
मै ऐसा करने के लिए राजी नहीं हुआ तो? …तो फिर वह अपनी जायदाद पर जबरदस्ती कब्जा कर
लेंगें। …अंकल आपके कहने का मतलब है कि वह अब गुंडागर्दी पर उतर आये है। इस हालात मे
आप मुझे क्या सलाह देंगे? …जो मैने पहले दिन कहा था कि पहले वसीयत प्रोबेट हो जाने
दो उसके बाद तुम जो ठीक समझो वह करना। …अंकल, इस प्रोबेट वाले काम को जल्द से जल्द
पूरा करवाईये। यह बोल कर मैने फोन काट दिया था।
अपने आफिस बैठ कर अब्दुल लोन के बारे मे आयी
हुई अब तक की इंटेल रिपोर्ट्स को छान रहा था। अब्दुल लोन अभी तक मेरे लिये एक छलावा
बना हुआ था। उसके बारे मे बहुत सारी जानकारी कश्मीर से संबन्धित थी परन्तु उससे पहले
की जानकारी नहीं मिल रही थी। अचानक एक अखबार मे छपे हुए एक साक्षात्कार मे अब्दुल लोन
ने बताया था कि वह मुजफराबाद का मूल निवासी है। वह काम की तलाश
मे यहाँ आया था। टकरु नाम के सेब के व्यापारी के यहाँ से उसने काम करना शुरु किया था।
यह जानकारी मिलते ही मैने दूसरी रिपोर्ट्स की ओर ध्यान दिया तो एक खबर देखने को मिली
कि 1990 मे हिन्दु पलायन के समय उसने टकरु फार्म्स पर कब्जा कर लिया था और बाद मे सरकारी
कानून का सहारा लेकर कौड़ियों का भाव देकर उसका कानूनी मालिक बन बैठा था। उसी साल यहीं
के एक सुन्नी परिवार की लड़की से उसने निकाह किया और फिर यहीं का बाशिन्दा होकर रह गया
था। एमआई की गोपनीय रिपोर्ट ने बताया कि अगले दस साल रिश्वत और जिहादियों की सहायता
से उसने अपना इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया था। अपनी ओर से उस रिपोर्ट के अन्त मे उन्होंने
एक नोट चढ़ाया था कि उन्हें शक है कि अब्दुल लोन आईएसआई के लिए काम करता है। उसकी मुजफराबाद
की जिंदगी के बारे मे कोई जानकारी नहीं मिल सकी थी कि जैसे किसी ने उसके पारिवारिक
इतिहास को जान बूझ कर मिटा दिया था। मुझे अब यकीन होने लगा कि नीलोफर का संबन्ध अब्दुल
लोन की मुजफराबाद की पिछली जिंदगी से जुड़ा हुआ था।
अब्दुल लोन से जुड़े हुए सभी पहलुओं पर नजर
डाल कर मै ब्रिगेडियर शर्मा से मिलने के लिये चला गया था। …सर, मैने आपको कुछ हार्ड
ड्राईव्स दी थी। उसमे से क्या कुछ काम की जानकारी मिली? ब्रिगेडियर शर्मा ने फोन करके
किसी को बुलाया और फिर मुझसे बोले… मेजर, ड्राईव्स से काम की जानकारी निकालना इतना
आसान काम नहीं होता। हमारे पास कुछ रेफ्रेन्स पोइन्टस होने चाहिये जिसको हम ड्राइव्स
की जानकारी के साथ चेक करके उसका महत्व समझ सकते है। फिलहाल हम अपनी ओर से उन ड्राईव्स
को चेक कर रहे है। …सर, मै सिर्फ एक खास जानकारी के लिये आपके पास आया हूँ। क्या किसी
ड्राइव मे सात अंकों कुछ नम्बर देखने को मिले है? ब्रिगेडियर शर्मा ने तुरन्त फोन उठा
कर किसी से बात की और फिर बोले… सारी ड्राईव्स कैप्टेन नीलकंठ के चार्ज मे है। मैने
उसको बुलाया है। तुम अपनी बात उसको बता देना। हो सकता है कि वह सात अंकों का नम्बर
हमारी जाँच का रेफ्रेन्स पोइन्ट बन सके। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और दरवाजा खोल कर
एक व्यक्ति ने प्रवेश किया और सैल्युट करके सावधान की मुद्रा मे खड़ा हो गया। …कैप्टेन,
उन ड्राईव्स मे छिपी हुई कुछ खास जानकारी यह पता करना चाहते है। मेजर आप खुद बता दिजीए।
मैने जल्दी से सात अंकों वाले नम्बर की कहानी समझाते हुए कहा… किसी भी ड्राईव मे अगर
ऐसे नम्बर दिखे तो तुरन्त मुझे सुचित करना। यह काम अर्जेन्ट है। इतनी बात करके ब्रिगेडियर
शर्मा से इजाजत लेकर मै बाहर आ गया था। धीमे कदमों से चलते हुए मै अपने आफिस पहुँच
गया था।
मेरे असिस्टेन्ट ने मुझे देखते ही कहा कि ब्रिगेडियर
चीमा पिछले एक घंटे से मुझे पूछ रहे है। मै तेजी से चलते हुए उनके कमरे की ओर चला गया।
मुझे देखते ही बोले… बैठो मेजर। मै चुपचाप कुर्सी पर बैठ गया। वह टहलते हुए बोले… मेजर,
खबर मिली है कि यहाँ पर सक्रिय सारे अलगावादी समूह और जिहादी तंजीमे अगले महीने श्रीनगर
मे एक इज्तिमा कर रहे है जिसका उद्देश्य उस संयुक्त मोर्चा को आधिकारिक रुप देने का
है। बाय द वे यह इज्तिमा क्या होता है? …धार्मिक बैठक। …मेजर इस इज्तिमा के प्रमुख
संयोजक मकबूल बट और अब्दुल लोन है। …सर, क्या फारुक मीरवायज ने इसमे पैसा लगाया है?
…पता नहीं। …क्या पाकिस्तानी संगठन लश्कर और जैश भी इसमे हिस्सा ले रहे है? …अभी पता
नहीं चला है लेकिन अगर जमात-ए-इस्लामी इसके पीछे है तो हिज्बुल मुजाहीदीन भी इस इज्तिमा
का हिस्सा है। मेजर अगर यह सब इकठ्ठे हो गये तो हमारे लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी।
राजनीतिक और आतंकी काकटेल तो वैसे ही आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक है लेकिन
खबर यह भी है कि केन्द्र सरकार के द्वारा गठित पर्यवेक्षक समिति के कुछ वामपंथी सदस्य
भी इस इज्तिमा मे अनौपचारिक रुप से शामिल होंगें। इस इज्तिमा
को रोकना अब हमारी प्राथमिकता है। यह निर्देश सीधे सेनाअध्य्क्ष की ओर से आये है। क्या
तुम्हारे पास इसके लिए कोई सुझाव है? कुछ सोच कर मैने कहा… सर, मुझे सोचने के लिए तीन
दिन का समय दीजिए। …ख्याल रहे मेजर कि हमारे पास ज्यादा समय नहीं
है। यह इज्तिमा किसी भी हाल मे नहीं होना चाहिये। अब तुम जा सकते हो। मै चुपचाप बाहर
निकल आया था।
मेरे दिमाग मे इज्तिमा छाया हुआ था। ब्रिगेडियर
चीमा का आंकलन संयुक्त मोर्चे के बारे मे बिल्कुल सही था। इसमे कोई शक नहीं था कि यह
संयुक्त मोर्चा हमारे लिये बहुत सी मुश्किलें खड़ी कर देगा। समाज मे अराजकता अपने चरम
पर पहुँच जाएगी। इसका क्या तोड़ हो सकता है? जब इस सवाल का कोई जवाब नहीं मिला तो मैने
दूसरी लाइन पर सोचना आरंभ कर दिया। लोन या बट की अकस्मात मौत क्या इस इज्तिमा को रोक
सकती है? कुछ कहा नहीं जा सकता था क्योंकि अगर पाकिस्तान की ओर से इसका संयोजन किया
जा रहा था तो यहाँ के लोग तो बस प्यादे मात्र थे। एक के जाने से कोई दूसरा सारे काम
को संभाल सकता था। अचानक मेरा ध्यान फारुख मीरवायज की ओर चला गया था। अगर वह इसका मुख्य
फाईनेन्सर है तो हमे उसको निशाने पर लेना चाहिए। उसके हटते ही क्या दोनो संयोजक फिर
भी इज्तिमा करवा सकते थे? सच पूछिये तो मुझे उसकी संभावना भी सिफर की भांति लग रही
थी। अब्दुल लोन और मकबूल बट दोनो दूसरों के पैसो पर पलने वाले जीवाणू थे। वैसे भी जिस
तरह से मकबूल बट जायदाद के लिये दाव-पेंच इस्तेमाल कर रहा था उससे तो साफ था कि वह
इस वक्त बड़े कठिन दौर से गुजर रहा था। अपने मकसद को पूरा करने के लिये वह कुछ भी कर
सकता था।
अपने घर की ओर लौटते हुए मै संयुक्त मोर्चे के इज्तिमा को किसी तरह रोकने के बारे मे सोच रहा था। सारे मुख्य किरदारों के नाम मेरे सामने थे। इनमे से कोई भी ऐसा नहीं दिख रहा था जिसके अचानक गायब होने से इज्तिमा रोका जा सकता था। मैने अपने घर के मोड़ पर पहुँचा कि तभी मेरी नजर अरबाज पर पड़ी जो अपनी कार से उतर कर अपने घर मे प्रवेश कर रहा था। कुछ सोच कर मैने अपनी जीप उसके सामने रोकते हुए पूछा… अरबाज क्या तुमसे बात कर सकता हूँ? मुझे देख कर वह रुक गया था। मैने जल्दी से अपनी जीप एक किनारे मे खड़ी की और उसकी ओर बढ़ गया। …तुम्हें क्या बात करनी है? …कुछ संयुक्त मोर्चे के बारे मे पूछना है। …अन्दर चल कर बात करते है। इतना बोल कर वह अन्दर चला गया और मै उसके पीछे-पीछे हो लिया। उस आलीशान बैठक मे प्रवेश करते ही मेरी नजर काजी साहब पर पड़ी तो मै सावधान हो गया था। काजी साहब मसनद लगा कर दीवान पर बैठे हुए थे। मुझे देखते ही उनकी आवाज गूँजी… नामुराद आज कौनसा बखेड़ा खड़ा कर दिया जो इसे यहाँ आना पड़ गया। अरबाज उनको अनसुना करके मुझसे बोला… तू बैठ, मै अभी आता हूँ। मै चुपचाप काजी साहब के सामने बैठ गया। …क्यों समीर आज इसने क्या किया? मैने जल्दी से कहा… कुछ नहीं काजी साहब। आज तो मै उससे मिलने आया था। काजी साहब अभी भी अविश्वास भरी नजरों से मुझे देख रहे थे। …काजी साहब मेरी बात पर विश्वास किजिये। मै अरबाज से संयुक्त मोर्चे के इज्तिमा के बारे मे कुछ पूछना चाहता था। काजी साहब उठ कर बैठक से चले गये और मै आराम से पीठ टिका कर बैठ गया।
कुछ देर के बाद निशात मेरे सामने चाय रख कर
वापिस चली गयी थी। उसके पीछे-पीछे अरबाज मेरे सामने बैठते हुए बोला… बता क्या पूछना
चाहता है? …मैने सुना है कि अगले महीने संयुक्त मोर्चे का इज्तिमा होने
जा रहा है? …हाँ लेकिन अभी तारीख तय नहीं हो पायी है। …कौन लोग इसमे हिस्सा ले रहे
है? वह कुछ पल चुप रहा और जैसे ही उसने बोलने के लिये मुँह खोला कि तभी काजी साहब की
आवाज गूँजी… अरबाज, उसकी वर्दी देख कर सोच समझ कर बोलना। अबकी बार मैने जल्दी से कहा…
काजी साहब, अपकी बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया है कि यह कोई आम राजनीतिक इज्तिमा नहीं है। इसका मतलब तो यह हुआ कि यह एक देश विरोधी इज्तिमा है तो अब इसकी पूछताछ सेना स्वयं अपने तरीके से कर लेगी। अच्छा
चलता हूँ। खुदा हाफिज। इतना बोल कर मै बिना किसी से कुछ कहे उनके घर से बाहर निकल आया
था।
लान मे जन्नत और आस्माँ मेरा इंतजार कर रही
थी। मेरी जीप को देखते ही दोनो गेट पर आ गयी थी। मेरे चेहरे पर तनाव देख कर जन्नत ने
पूछा… चेहरा क्यों उतरा हुआ है, क्या किसी से कोई कहा सुनी हो गयी है? …कुछ नहीं बस
आफिस के काम का बोझ है। इतना बोल कर मै अपने कमरे की ओर बढ़ गया था। खाना खाने के पश्चात
कुछ देर ठंडे दिमाग से सोचने के लिये मै सड़क पर निकल गया था। इतना तो मै जानता था कि संयुक्त
मोर्चे का इज्तिमा अलगाववादियों ने बुलाया था। क्या कश्मीर की
राजनीतिक पार्टियाँ भी इस इज्तिमे मे सम्मिलित हो रही है? इस प्रश्न का उत्तर तो कोई
मोर्चे से संबन्धित व्यक्ति ही दे सकता था। अबदुल्लाह ने बताया था कि काठमाँडु मे हुए
इज्तिमा मे देश के विभिन्न कोनों से मौलाना और मौलवियों के साथ
आईएसआई के जनरल मंसूर बाजवा ने भी भाग लिया था। यही बात मुझे बार-बार खटक रही थी कि
कहीं काठमाँडु का इज्तिमा श्रीनगर के इज्तिमा का
पूर्वाभ्यास तो नहीं था। अगर ऐसा हुआ तो अगले महीने श्रीनगर ही नहीं अपितु पूरी घाटी
टाइमबम्ब पर बैठी होगी जिसके रिमोट का बटन सीमा पार मंसूर बाजवा के हाथ मे होगा। बेहद
चिंताजनक स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। एकाएक मेरी आँखों के आगे मिरियम का चेहरा आ गया
था। एक रात पहले मैने जो निर्णय लिया था अब वह मुझे छिन्न-भिन्न होता हुआ लग रहा था।
मै चलते-चलते काफी दूर निकल आया था। मै अपने
घर की दिशा मे मुड़ गया। नये सिरे से इस इज्तिमा को रोकने की योजना
बनाने के लिये मेरे पास तीन दिन थे। मुझे इस काम के लिये मिरियम से बेहतर कोई और इंसान
नहीं दिख रहा था। अपने कमरे मे पहुँच कर मै अपनी योजना बनाने मे जुट गया था। जन्नत
और आस्माँ ने एक बार कमरे मे झाँक कर देखा तो मैने मना करते हुए कहा… आज अपने कमरे
मे सो जाओ। मुझे कुछ जरुरी काम करना है। दोनो बेचारी मन मसोस कर वापिस चली गयी थी।
उस रात काफी देर तक अपने अन्दर सही और गलत के बीच उलझा रहा था। अगली सुबह तक मेरे सामने
सब कुछ साफ हो गया था। मेरी योजना की रुपरेखा कुछ हद तक तैयार हो गयी थी। अपने आफिस
पहुँच कर सबसे पहले मैने ब्रिगेडियर चीमा को फोन लगाया… हैलो। …सर,
मुझे इलेक्ट्रानिक सर्वैलेन्स सिस्टम चाहिये। कुछ माईक्रोफोन, वाईफाई, रिकार्डिंग डिवाईस,
इत्यादि। अपनी योजना बनाने के लिये मुझे इसकी जरुरत है। …और कुछ? …नहीं सर। …ठीक है।
कल तक यह सारा सामान मिल जाएगा। बस इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। मेरे दिमाग
मे एक योजना ने जन्म ले लिया था। यही सोचते हुए मै आफिस मे अपने मानीटर पर निगाहें
गड़ाये हुए मिरियम से अगली मुलाकात का कोई रास्ता खोज रहा था।
रावलपिंडी
आर्मी हेडक्वार्टर्स
के मीटिंग रुम मे बहुत से लोग बैठ कर दबी हुई आवाज मे बात कर रहे थे। सभी जनरल शरीफ
और जनरल मंसूर का इंतजार कर रहे थे। अचानक द्वार खुला तो सारे हाल मे चुप्पी छा गयी
थी। दोनो जनरल बात करते हुए हाल मे दाखिल हो गये थे। सभी का अभिवादन करके जनरल शरीफ
अपनी कुर्सी पर बैठते हुए बोले… अच्छा हुआ आप सभी समय से पहुँच गये है। जनरल मंसूर
ने बताया है कि अगले महीने श्रीनगर मे हमारी मदद से पहली बार संयुक्त मोर्चे का औपचारिक
रुप से घोषणा होने वाली है। इसी सिलसिले मे आप लोगों को आज यहाँ बुलाया गया है। हम
चाहते है कि उस इज्तिमा मे आप लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिजिये। हमारे वजीर इस वक्त भारत
सरकार से बात कर रहे है कि उस इज्तिमा मे शिरकत के लिये मुजफराबाद का रास्ता तीन दिन
के लिये अस्थायी वीसा के लिये खोल दिया जाये। सभी तंजीमो के मुखिया वहाँ पर पहुँचने
चाहिये जिससे दुनिया को पता चले कि कश्मीर की आजादी की जंग आरंभ हो गयी है। जनरल शरीफ
एक पल के लिये चुप हुये थे कि तभी एक मौलाना ने कहा… जनाब, आपकी बात तो काबिले तारीफ
है परन्तु एक हिचक भी है। भारत सरकार कहीं इस मौके का लाभ उठा कर कुछ तंजीमों के मुखियाओं
को हिरासत मे लेने की जुर्रत कर सकती है। अपने बिरादर लखवी, मसूद अजहर, सलाउद्दीन,
व अन्य लोगो के खिलाफ तो उन्होंने बहुत पहले से वारन्ट निकाल रखा है। कुछ के खिलाफ
अमरीकी सरकार ने लुक आउट नोटिस जारी किया हुआ है। ऐसी हालत मे उनका वहाँ जाना खतरनाक
साबित हो सकता है। तभी जनरल मंसूर ने कहा… पीरजादा साहब, आपका कहना कुछ हद तक सही है।
हमने भी इज्तिमा मे अपने लोगों का जाल ऐसा फैलाया है कि भारत सरकार चाह कर भी कुछ नहीं
कर सकेगी। उस राज्य की पुलिस के संरक्षण मे आप सभी को सुरक्षा दी जाएगी। अंतरराष्ट्रीय
मिडिया के सामने भारत सरकार भी फौज भेजने से परहेज रखेगी।
एकाएक सवाल जवाब का
सिलसिला आरंभ हो गया था। जनरल मंसूर बाजवा और जनरल शरीफ उन लोगों के सवालों जवाब देने
मे व्यस्त हो गये थे।
आज के अंक में काफी कुछ सामने आया है,मकबूल भट की हालत खस्ता हो चुकी है,अब गुंडा गर्दी हो बाकी है,7 नंबरों का खेल भी खुलने वाला है, इसरो और सेना में आतंक वादियों की घुस पैठ और धार्मिक जलसे की आड़ में आतंक की साजिश,काफी टेक्निकल अंक था आज का,super 👌👌
जवाब देंहटाएंहरमन भाई आतंकवादी भी तो एक प्रकार की गुंडागर्दी करते है। यह नहीं भूलना चाहिये कि हिजबुल भी तो मकबूल बट की जमात की आतंकवादी संस्था थी। आज के दौर मे संचार माध्यम, ड्रोन व मिसाईल ने युद्धकला को काफी हद तक टेक्नीकल बना दिया है। आपका बहुत शुक्रिया।
हटाएंवीर भाई और सभी पाठकों को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंपहले तो विरभाई और सभी
जवाब देंहटाएंयार दोस्तोंको मकरसंक्रातीकी शुभकामना. आजका अपडेट इलेक्ट्रॉनिक वारफेअर का सुरुवाती दौर कैसा था उसके
उपर प्रकाश डालता है. ऐसे तंझिमोके हात मिसाईल के कुआरडीनेटस लगना बहोत खतरनाक साबीत होगा,
इसरो DRDO मे सेंधमारी
देशके सुरक्षा के साथ बहोत
बडा खिलवाड है. देखते है
समीर इस सबमेसे कैसे अपनी राह आसान करता है, उपरसे मकबूल बट अलग परेशानी खडी कर रहा, लगता है मकबूल के नरकवास का समय, सॉरी जन्नत 😁भेजने का समय आ गया.
प्रशांत भाई मकर संक्रांति की शुभ कामनाओं के लिये शुक्रिया। अगर आप याद करने की कोशिश करेंगें तब आपको महसूस होगा कि कश्मीर मे आतंकवादी हमारी फौज से पहले नयी से नयी तकनीक का उपयोग किया करते थे। जनरल रावत ने सही कहा था कि भारतीय फौज ढाई फ्रंट पर युद्ध की तैयारी मे जुटी हुई है। देश मे छिपे हुए गद्दारों की भी कोई कमी नहीं है।
हटाएंमकबूल बट और समीर के बीच घमासान तो तय है। अलगाववादियो की आर्थिक पाईपलाईन पर प्रहार होने के कारण बहुत सी तंजीमों पर अंकुश लग गया था। सात अंकों के कोड की सच्चाई तो अभी तक किसी को पता नहीं है। अभी तो सभी अंधेरे मे तीर मार रहे है। आगे देखते है कि होता है क्या। मकर संक्रांती की शु्भ कामनाओं के लिये शुक्रिया एविड भाई। इश्वर आप पर भी अपनी कृपया हरदम बरसाये।
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