बुधवार, 4 जनवरी 2023

 

 

काफ़िर-29

 

मुझे दोपहर को आस्माँ ने उठाते हुए कहा… शहर मे हंगामा मचा हुआ है। अपनी आँखें मलते मैने उठते हुए कहा… तो क्या हो गया? इतना बोल कर मै बाथरुम मे घुस गया। कुछ देर के बाद मै जब बाहर निकला तब तक एक गर्म चाय की प्याली मेरा इंतजार कर रही थी। चाय पीने के बाद मैने बिस्तर पर लेटी हुई जन्नत से पूछा… अब पैर की हालत कैसी है। …ठीक है। मैने उसके पाँव की पट्टी को खोल कर उसके घाव को देख कर कहा… अब यह सूख रहा है। कुछ देर इसे खुला छोड़ दो। मैने जन्नत की ओर देखा तो उसकी आँखों मे कृतज्ञता के साथ ही हजारों ख्वाईशें हिलोरें ले रही थी। इससे पहले मै कुछ बोलता कि आस्माँ ने कहा… क्या हम कुछ दिन यहाँ नहीं रुक सकते? …नहीं। हमे आज ही श्रीनगर के लिये निकलना होगा। उसने जैसे ही कुछ बोलने के लिये मुँह खोला तो मैने दोनो को जमील अहमद की कहानी सुना कर कहा… मुझे अब्दुल्लाह नासिर को जल्द-से जल्द पकड़ना है। उसके बाद दोनो ने कुछ नहीं कहा और मै वापिस लौटने की तैयारी मे जुट गया।

हम लोग तीन बजे श्रीनगर के लिये चल दिये थे। वही पहाड़ी रास्ता और बहती हुई झेलम नदी के साथ चलते हुए रात तक सोपोर पहुँच गये थे। वहाँ हमने खाना खाया और फिर बारामुल्ला और सुबह की पहली किरण निकलने से पहले हम अपने घर पहुँच गये थे। दोनो लड़कियों को एक कमरे मे ठहरा कर मै अपने कमरे मे चला गया था। कुछ देर गर्म पानी के नीचे खड़ा होने से जिस्म की सारी थकान दूर हो गयी थी। नाश्ता करके मै सोने चला गया। किसी ने मुझे नहीं उठाया लेकिन प्राकृतिक जरुरत के दबाव के कारण जब उठा तब तक बाहर अंधेरा हो गया था। रहमत ने बताया कि वह दोनो खाना खा कर फिर सो गयी थी। मै लान मे जाकर बैठ गया। अंधेरा गहराता चला जा रहा था परन्तु बादलों के कारण मौसम खुशगवार हो गया था।

अब्दुल्लाह नासिर मेरे लिये छलावा बना हुआ था। मै उसके बारे मे सोच रहा था कि ब्रिगेडियर चीमा का फोन आ गया… मेजर, कुपवाड़ा की पोस्ट तो ध्वस्त हो गयी है। मुझे वहाँ की सारी रिपोर्ट मिल गयी है। …सर, ब्लास्ट करने से पहले उस काल सेन्टर का सारा डेटा रिकार्ड हमने निकाल लिया था। उसका क्या करना है? …ऐसे काम के लिये तो बिना झिझक ब्रिगेडियर शर्मा के पास भिजवा दिया करो। एमआई हम से बेहतर ऐसे कामों को देख सकता है। …ठीक है सर। …मेजर,अब आगे क्या करने की सोच रहे हो? …सर, कल से आप्रेशन आघात फेस-2 आरंभ हो जाएगा। पत्थरबाजों से बात करने के लिये पहला जिला बारामुल्ला चुना है। …गुड। …सर, क्या आप जमील अहमद के फोन मे व्हाट्स एप मे दिये हुए पत्थरबाजों की जिलेवार नाम की लिस्ट दे सकते है? …अभी भेज रहा हूँ। मेजर, हिज्बुल के कुछ लोगों को सर्वैलेन्स पर लिया है। जैसे उनकी लोकेशन कन्फर्म होगी, हम स्पेशल फोर्सेज को काम पर लगा देंगें। अब तक हमने तीन लोगों को ठिकाने लगा दिया है। …सर, कोई बुरहान की खबर मिली? …नहीं, वह तो अन्डरग्राउन्ड हो गया है। तुम चिन्ता मत करो। उसकी लोकेशन पता चलते ही मै तुम्हें बता दूँगा। …थैंक्स सर। उस रात हमारे बीच मे बस इतनी बात हुई थी।

अगली सुबह मै अपने आफिस टाइम से पहले पहुँच गया था। मैने जीप को अपनी टीम के हवाले किया और सारी हार्ड ड्राईव्स अपने आफिस मे रखवाने के लिये कह कर ब्रिगेडियर शर्मा से मिलने चला गया था। उनके सामने पहुँच कर एक करारा सा सैल्युट मार कर सावधान खड़े होकर मैने कहा… सर, हमने एक काल सेन्टर पर रेड डाली थी। हमारे इन्फार्मर ने बताया था कि वह काल सेन्टर एक पाकिस्तानी चला रहा था। हमे शक है कि वह उस काल सेन्टर को आब्सर्वेशन पोस्ट की तरह इस्तेमाल कर रहा था। हमारे कोन्वोयज पर नजर रख कर वह सारी जानकारी सीमा पार भेज रहा था। हमने उसके डेटा रिकार्ड की दो सौ से ज्यादा हार्ड ड्राईव्स जब्त की है। क्या आप उन ड्राईव्स को डीकोड कर सकते है? ब्रिगेडियर शर्मा मेरे काम से अनजान नहीं था। वह तुरन्त बोला… मेजर, इन औपचारिकताओं की जरुरत नहीं है। प्लीज बैठिये। आप उन ड्राईव्स को बेझिझक हमारे हवाले कर दिजीए। मै वादा करता हूँ कि जो भी पता चलेगा वह हम आपके साथ शेयर करेंगें। मेजर आपके साथ काम करने मे मुझे खुशी होगी।  …यस सर, प्लीज किसी को भेज कर मेरे पास से सारी ड्राईव्स मंगवा लिजीये। इतनी बात करके मै अपने आफिस मे वापिस आ गया था। कुछ ही देर के बाद ब्रिगेडियर शर्मा के लोग मेरे आफिस से सारी हार्ड ड्राईव्स उठा कर ले गये थे।

फेस-2 के आरंभ होने का समय आ गया था। चार जिलों के पत्थरबाजों की जानकारी जमील एहमद के फोन से मिल गयी थी। यहाँ के अनुभव को लेकर एक स्टेन्डर्ड प्रोटोकोल सुरक्षा एजेन्सियों के तैयार करना था। बारामुल्ला के पत्थरबाजों की लिस्ट मेरे सामने रखी हुई थी जिसमे कुल मिला कर कर तीस लड़के और लड़कियों के नाम थे। जमील एहमद ने बताया था कि यह सभी वह छात्र नेता है जिनका अपना 15-20 लोगों का समूह होता है। जमील अहमद के इशारे पर वह समूह बारामुल्ला जिले मे किसी भी स्थान पर एकत्रित हो जाते है। उनके समूह मे उनके दोस्त, परिवार वाले, पड़ोसी व अन्य जानने वाले अन्य लोग सम्मिलित होते है। हाजी साहब के निर्देशानुसार जमील अहमद व्हाट्स एप के जरिये को समय और स्थान की सूचना देकर पत्थरबाजी के लिये एकत्रित होने के लिये कह देता था। वह समूह स्थानीय मस्जिद और मदरसों के छात्रों व अन्य लोगों को भी पत्थरबाजी के लिये उकसा कर अपने साथ मिला लेते थे। पतथरबाजी की घटना के बाद हाजी साहब से मिले पैसों का एक हिस्सा जमील अहमद अपने पास रख कर बाकी पैसा इन छात्र नेताओं मे बाँट देता था। वह छात्र नेता उस पैसों को अपने समूह मे दैनिक भत्ते के हिसाब से हरेक सदस्य को दे दिया करते थे। पत्थरबाजों ने बेहद सुदृढ़ छात्र और छात्राओं की कामगारों की फौज तैयार कर रखी थी।

मै अपने आफिस मे बैठ कर अपने अगले कदम के बारे मे सोच रहा था। सबसे पहले मैने उस लिस्ट मे दिये नामों को जिले के पुलिस स्टेशनों के नाम पर विभाजित किया तो जमील अहमद का तीस छात्र नेताओं का समूह सिर्फ पाँच थानों की सीमा मे आ गया था। शाम तक मैने बारामुल्ला जिले मे हर थाना क्षेत्र की लिस्ट तैयार कर ली थी। अगले दिन सुबह सात बजे बारामुल्ला चलने का निर्देश अपनी टीम को देकर मै अपने घर की ओर निकल गया था। अब एक ही प्रश्न मेरे दिमाग मे घूम रहा था कि आगे की कार्यवाही को कैसे कार्यन्वित किया जाये? मै उनके माता-पिता को थाने मे बुला कर बात करुँ या उनके घर पर जाकर उन्हें समझाऊँ? जब किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सका तो मैने सोचा कि वहाँ के हालात को देख कर ही इसका निर्णय लूँगा। घर पहुँच सबसे पहेल जन्नत के पाँव के घाव की मरहम पट्टी करी और फिर उन दोनो के साथ अगले दिन की कार्यवाही की चर्चा करने लान मे बैठ गया था।

रात को सारे कार्य समाप्त करके मै टहलने के लिये सड़क पर निकल गया था। रातें सर्द होनी आरंभ हो गयी थी। अगले दिन की कार्यवाही के बारे मे सोचते हुए मुख्य सड़क की ओर निकल गया था। जैसे ही काजी साहब के घर के सामने से निकला मेरी नजर अरबाज पर पड़ी जो अपनी कार से उतर कर अपने घर मे प्रवेश कर रहा था। मुझे आता हुआ देख कर वह एक पल के लिये ठहर गया था। …समीर, टहलने के लिये निकला है? …हाँ, कहीं बाहर गये थे? …हाँ, एक हफ्ते के लिये काठमाँडू गया था। …ट्रिप कैसा रहा? …बहुत अच्छा। यह कह वह गेट की ओर बढ़ने लगा तो एक पल के लिये मै झिझका लेकिन फिर अचानक मैने आगे बढ़ते हुए पूछा… अरबाज, क्या तुम अब्दुल्लाह नासिर को जानते हो? वह ठिठक कर रुक गया और मुड़ कर मेरी ओर देख कर बोला… अपने हाजी साहब का बेटा? …हाँ। …अरे वह भी मेरे साथ काठमांडू मे था। वह भी तो आज ही यहाँ पहुँचा है। इतना सुन कर मै आगे बढ़ गया लेकिन काठमांडू सुन कर एक पल के लिये मै चौंक गया था। पिछले कुछ समय से मै काठमांडू का नाम कई बार सुन चुका था। यह काठमांडू का क्या चक्कर है? मेरे लिये एक नयी पहेली ने जन्म ले लिया था।

कुछ दूर चलने के बाद मै वापिस अपने घर की ओर चल दिया था। आफशाँ भी अपने आफिस के काम के लिये काठमांडू पिछले कुछ महीनों से लगातार जा रही थी। अब यह अलगाववादी भी काठमांडू घूमने जा रहे थे। यह सब क्या चक्कर है? मै यही सोचते हुए अपने घर मे दाखिल हो गया था। सब सोने जा चुके थे और रहमत भी लाईट बुझा कर जा चुका था। अपने कमरे मे पहुँच मैने जैसे ही लाईट जलाई तो सबसे पहले मेरी नजर आस्माँ पर पड़ी जो मेरे बेड पर लेटी हुई थी। …तुम सोई नहीं। वह कुछ नहीं बोली बस उठ कर बैठ गयी थी। …क्या नींद नहीं आ रही है? उसने सिर झुका कर अपनी गरदन हिलायी तो अपने कपड़े उतारते हुए मैने कहा… आस्माँ आज मै बहुत थक गया हूँ। पहले तुम मेरी कन्धे और पीठ को दबा कर मेरी थकान दूर करो तभी आगे मै कुछ कर सकूँगा। वह मुझे दूर से देखती रही और जैसे ही मेरा हाथ अपने पजामे की ओर गया तो वह जल्दी से बोली… इसको उतारने की क्या जरुरत है। …आस्माँ बीबी तुम्हें भी यह सब उतारना पड़ेगा। …नहीं। …मुझे सोना है तो तुम अपने कमरे मे जाओ। इतना बोल कर बेशर्मी से मै उसके सामने निर्वस्त्र होकर पेट के बल अपने बिस्तर पर फैल गया था।

कुछ पल वह रुक कर बोली… अच्छा लाइट तो बुझा दो। …नहीं। …तो तुम अपना चेहरा उस ओर फेर लो। मैने अपना चेहरा विपरीत दिशा की ओर कर लिया। कुछ देर तक वह बैठी रही फिर धीरे से उठी और निर्वस्त्र होकर मेरी पीठ पर चढ़ कर बैठ गयी थी। हम एक दूसरे की त्वचा को महसूस कर रहे थे। कुछ ही देर मे मुझे ऐसा लगा कि उसकी उँगलियों की चपलता ने मेरे जिस्म की सारी थकान और अकड़न को सोख लिया है। अचानक मैने करवट लेकर सीधा हो गया तो वह अचकचा कर उठने लगी परन्तु तब तक मैने उसको पकड़ लिया था। वह मेरी पकड़ से छूटने का प्रयास करने लगी परन्तु उसका हर प्रयास असफल हो रहा था। बल्ब की रौशनी मे उसका नग्न जिस्म यौवन और उत्तेजना से दमक रहा था। इतने महीनों की जुदाई के कारण वह भी कामातुर थी परन्तु एक झिझक उसकी आँखों मे विद्यमान थी। आखिरकार उसने हथियार डाल दिये और निगाहें झुका कर मुझ पर बैठ गयी। मैने एक भरपूर नजर उस पर डाली और फिर उसके सीने की गोलाईयों को छेड़ते हुए कहा… बीबी इतने नखरे ठीक नहीं। उसने एक बार मेरी ओर देखा और फिर शर्मा कर नजरें झुका दी थी।

अचानक वह झुकी और मेरे होंठों पर छा गयी। मेरा हाथ उसके वक्षस्थल से हट कर योनिमुख के द्वार खोलने मे जुट गया। उसकी छिपी हुई कली के सिर पर जैसे ही मेरी उँगली ने प्रहार किया वह सब कुछ भूल गयी और आँखें मूंद कर उसने अपने आप को मेरे हवाले कर दिया। उसने झुक कर अपने स्तन को मेरे मुख पर लगा दिया और मैने स्तनपान करना आरंभ कर दिया। उसने अपनी योनि को मेरे सुप्त जनानंग पर टिका कर धीरे से घिसना आरंभ कर दिया। कुछ ही समय की छेड़छाड़ से हम दोनों के जिस्मों मे कामाग्नि प्रज्वलित हो गयी थी। उसने धीरे से अपने आप को घुटने के बल उठाया और झूमते हुए अजगर को पकड़ कर दिशा दिखा कर धीरे-धीरे उस पर दबाव डालने लगी। अजगर अपना रास्ता खोजते हुए उसकी गुफा मे सरकता चला गया। अचानक वह अपने वजन को झेल नहीं पायी और धम्म से बैठ गयी। अजगर का फूला हुआ सिर सारी बाधाओं को पल मे छिन्न-भिन्न करके जड़ तक धँस गया और उसके मुख से गहरी सिसकारी निकल गयी थी। मैने उसके नितंबों अपनी हथेली पर संभाला और उसने धीरे-धीरे हिलना आरंभ कर दिया जैसे वह मुझ पर घुड़सवारी कर रही थी। उसका प्रेमरस लगातार बह कर मुझ पर बरस रहा था। मैने उसको छोड़ दिया और उसकी झूलती हुई गोलाईयों पर हमला बोल दिया। वह अपने जिस्म से मुझ को नियन्त्रित कर रही थी। मेरे लिये उसका यह एकाकार एक नयापन लेकर आया था। उसके दूध से गोरे स्तन मेरी पकड़ के कारण लाल हो गये थे। उसके कत्थाई स्तनाग्र फूल कर कड़े हो गये थे। वह तूफान मे बहती चली जा रही थी और मै एक जगह पर लेटा हुआ उसके चेहरे पर आते-जाते भावों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। उसके जिस्म मे उठने वाले वाले हरेक स्पंदन को मै महसूस कर रहा था। अचानक वह रुक गयी और आँखें खोल कर बोली… समीर, मै थक गयी। मैने मौका देख कर उलाहना मारा… बस इतना ही दम है। वैसे तो दोनो बहनें मुझसे मेहनत कराती हो और आज जरा सी तुम्हें मेहनत करनी पड़ गयी तो मै थक गयी का बहाना बनाने लगी।

उसने मुझे घूर कर देखा तो मैने पकड़ कर उसे अपने नीचे दबा लिया। …बीबी, आज तुम्हें अपनी बक्खरवाली दुल्हन बना कर ही छोड़ूँगा। उसकी भीगी हुई सुर्यमुखी गुदा को अपनी उँगली से छेड़ते हुए मैने जैसे ही यह कहा तो वह तुरन्त बिदक कर उठते हुए मना करने लगी। …नहीं समीर। यह काम तुम जन्नत के साथ किया करो। मुझे बक्श दो। अबकी बार मैने उसे जबरदस्ती पेट के बल लिटाया और उस पर सवार हो गया। कुछ देर तो उसके योनिछिद्र को भेदता रहा और उसमे से निकलते हुए कामरस से अपनी उँगली भिगो कर उसके सुर्यमुखी छिद्र को नहलाता रहा फिर मेरी उँगलियों की चपलता ने जौहर दिखाना आरंभ कर दिया। जैसे ही वह दूसरी बार अपने चरम पर पहुँची मैने अपने जनानंग को निकाल कर उसके सुर्यमुखी छिद्र के मुहाने पर टिका कर धीरे से अन्दर ठेल दिया। उसके प्रेमरस मे नहाया हुआ मुंड उस छिद्र के संकरेपन को खोलता हुआ अन्दर प्रवेश कर गया था। वह जब तक संभल पाती मै लगातार दबाव बढ़ाता चला गया जब तक वह जड़ तक अन्दर जा कर बैठ नहीं गया था। वह तड़पी, मचली और मेरी पकड़ से छूटने का प्रयास किया परन्तु मै निशाना भेद चुका था। अब वापिसी की कोई गुंजाईश नहीं बची थी। जब उसे अपने नितंबों पर मेरे जिस्म के स्पर्श का एहसास हुआ तो उसने हथियार डाल दिये थे।

एक हाथ से मैने उसके स्तनों को पकड़ कर सहारा देकर गुड़िया की तरह हवा मे उठा लिया और दूसरे हाथ की उँगली से उसके उत्तेजित अंकुर पर वार करने लगा। मेरे उपर दीवानगी छाने लगी थी और मेरे दो तरफा प्रहार को वह कुछ देर झेलती रही फिर अचानक उसके जिस्म मे एक सिरे से कंपन उभरी और फिर पूरे जिस्म मे फैल गयी। एक गहरी साँस लेकर वह निढाल हो कर बिस्तर पर फैल गयी थी। मेरे अन्दर भी तूफान गति पकड़ने लगा था। सब कुछ भूला कर मै एकाग्रता से पूरी लंबाई से प्रहार करना आरंभ कर दिया था। उसकी कमर पकड़ मैने प्रहार की गति बढ़ाई तो उसके मुख से दबी हुई सीत्कारियाँ विस्फुटित होने लगी। एक क्षण ऐसा आया कि जब मेरे लिये सब कुछ थम सा गया और फिर पूरे वेग से प्रेमरस बहने लगा। मै उस पर गिर कर निहाल हो गया था। कुछ देर के बाद हम दोनो अलग हुए तो वह तेजी से उठी और बाथरुम मे चली गयी थी। मै पाँव फैला कर बिस्तर पर लेट गया और उस स्वर्गिम एहसास को अपनी धमनियों मे महसूस कर रहा था। आस्माँ बाथरुम से निकली और लंगड़ाती हुई मेरे पास आकर बैठ गयी और फिर उसने ऐसी हरकत की जिसे मै शायद जीवन भर नहीं भूल सकूँगा। वह मेरी दोनो टाँगों को फैला कर बीच मे घुटने के बल बैठ गयी और झुक कर उसने मेरे सुप्त प्रेमरस मे भीगे हुए मेरुदंड को उठा कर चूम लिया और फिर एक बार माथे से लगा कर वहाँ से हट गयी। मै ठगा सा लेटा हुआ उसको देखता रह गया था। वह मेरे साथ लेटते हुए बोली… आज से मै तुम्हारी बक्खरवाली दुल्हन बन गयी हूँ। अब से तुम दोनो मुझे कोई उलाहना मत देना। मैने उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर कहा… आस्माँ बीबी, यह तो तुम्हारी उस गलती की सजा है। इतने महीनों का हिसाब इतनी जल्दी कैसे पूरा होगा। अभी तो पूरी रात बाकी है। उसने छूटने का प्रयत्न किया परन्तु मेरे आगे उसकी एक नहीं चली। थोड़ी देर मे एक बार फिर से हम एक दूसरे की कामाग्नि शान्त करने मे प्रयासरत हो गये थे। जब तूफान गुजर गया तो वह थक कर मुझसे लिपट कर एक बच्चे की तरह मेरे आगोश सो गयी थी। मेरी आँखें भी नींद से बोझिल हो रही थी। मै भी जल्दी ही अपने सपनों की दुनिया मे खो गया था।

…समीर उठो। मैने हड़बड़ा कर आँखें खोली तो आस्माँ की आवाज मेरे कान मे पड़ी… छ: बज गये है। मै जल्दी से उठा और तैयार होने के लिये चल दिया। जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक रहमत मेरा नाश्ता मेज पर लगा चुका था। मैने आराम से नाश्ता किया और चाय का कप लेकर मै लान मे बैठ कर अपने साथियों का इंतजार करने लगा। ठीक सात बजे आर्मी की जीप मेरे घर के द्वार पर खड़ी हो गयी थी। मेरे जीप मे बैठते ही हम बारामुल्ला की दिशा मे चल दिये थे। सुबह की ओस ने सारा वातावरण महका दिया था। मैने वह पाँच थानों की लिस्ट निकाली और अपने साथियों को दिशा निर्देश देना शुरु किया। बारामुल्ला मे प्रवेश करते ही मै सबसे पहले शहर के बीच स्थित थाने पर पहुँच गया था। जैसे हर थाने की सुबह होती है इस थाने का हाल भी कुछ वैसा ही था। रात की ड्युटी पर उपस्थित एसआई कुर्सी पर बैठा ऊँघ रहा था। कुछ सिपाही बेन्च पर लेटे हुए अपनी रात की नींद पूरी कर रहे थे। दो सिपाही थाने के मुख्य द्वार पर सेन्ट्री ड्युटी पर तैनात थे। हमारी जीप ने जैसे ही थाने के परिसर मे प्रवेश किया तो थाने मे हलचल मच गयी थी। मै अपने साथियों के साथ सीधे अन्दर चला गया था। एसआई मुझे देख कर तुरन्त खड़ा हो गया था परन्तु उसकी आँखों मे अभी भी नींद भरी हुई थी। …थाना इंचार्ज कौन है? …जनाब, थानेदार साहब तो दस बजे आएँगें। मैने उसके आगे वह कागज बढ़ाते हुए कहा… इन नामों को जानते हो? अब तक वह सचेत हो चुका था। उसने नाम पढ़ने के जल्दी से अपना सिर हिला दिया था। अब तक बेन्च पर सोते हुए सिपाही भी सचेत हो चुके थे।

…जी जनाब। …अपने दो सिपाहियों को इनके घर भेज कर इन सबको और इनके माँ और बाप को लेकर आओ। मैने सामने खड़े हुए अपने साथियों की ओर देखते हुए कहा… थापा मेरी जीप मे दोनो सिपाहियों को अपने साथ ले जाओ। अगर कोई जोर जबरदस्ती दिखाये तो एक्शन लेने से पीछे नहीं हटना। कोई शक? …नो सर। अगले ही कुछ मिनटों मे दो सिपाहियों के साथ थापा उन सात बच्चों और उनके माँ और बाप को लेने के लिये निकल गया था। एक चीज का मैने उस वक्त ध्यान नहीं दिया था कि हमारी जीप मे इतने सारे लोग कैसे आयेंगें लेकिन थापा ने उस दिन अपनी सूझबूझ का परिचय दिया और एक खाली टेम्पो वाले को अपने साथ कर लिया था।  एक घन्टे मे सातों बच्चे और उनके माँ-बाप या कोई उनके घर का बुजुर्ग उस टेम्पो मे बैठ कर थाने पहुँच गये थे। उन सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थी। जब तक पुलिस का मामला था तब तक तो उनको कोई भय नहीं था परन्तु सेना को देखते ही समझ गये कि मामला उनके हाथ से निकल गया था। उन पुलिस वालों ने उन्हें रास्ते मे ही कश्मीरी मे बता दिया था कि फौज के लोग पूछताछ के लिये आये हुए है। फौज के प्रति उनके मन मे कैसा भी भाव हो परन्तु एक डर तो हमेशा बना रहता था कि सीधे टकराने मे उनका ही नुकसान होगा। मैने हवलदार सुजान सिंह के हाथ मे दूसरे थाने की लिस्ट थमा कर कहा… अपने साथ कुट्टी को लेकर इस थाने मे जाकर दिये गये नामों और उनके परिवार के लोगों को एक घन्टे मे वहाँ इकठ्ठा होने के लिये कह देना। अगर वह कुछ बहाना या टालने की कोशिश करे तो उसको गन पोइन्ट पर उसे लेकर इसी थाने मे आ जाना। दोनो तुरन्त बताये हुए थाने की ओर निकल गये थे।

एक कमरे मे सभी लोगों को इकठ्ठा कर दिया गया था। जब मै उधर पहुँचा तो मुझे देखते ही सभी लोग भारतीय फौज को कश्मीरी मे कोसने लगे। उनके पास खड़े पुलिस के सिपाहियों के चेहरे पर मुस्कुराट आ गयी थी। वह भी उन्हें कश्मीरी मे उकसाने मे लग गये थे। मै चुपचाप उनकी बात सुनता रहा और उस लिस्ट मे लिखे हुए सात बच्चों की पहचान करने के लिये बोला… आफताब। एक लड़का उस भीड़ मे से निकल कर आगे आ गया था। मैने सबके सामने उसको गुद्दी से पकड़ कर एक दीवार की ओर धकेल दिया था। …इसके परिवार से कौन आया है। मेरी बात का वहाँ खड़े एक सिपाही ने तर्जुमा करके कहा तो उसके माँ-बाप दोनो मेरे सामने काँपते हुए आकर खड़े हो गये थे। मैने उन्हें दूसरी दीवार के पास खड़े होने का इशारा किया। वह मुझे कोसते हुए वहाँ जाकर खड़े हो गये थे। ऐसे ही मैने अख्तर अली, बिलाल शेख, जीनत और सना के साथ किया। मैने जैसे ही फिरोज का नाम लिया तो एक नवयुवक आगे बढ़ कर मुझे घूरते हुए कश्मीरी मे बोला… काफ़िर कुत्ते आज यहाँ से तू जिन्दा वापिस नहीं जाएगा। एक साथ जो शोर गुल हाल मे हो रहा था वह अचानक थम गया। मैने पास खड़े हुए एक पुलिस वाले से पूछा… इसने अभी क्या कहा? वह जल्दी से हकलाते हुए बोला… कुछ नहीं साहब। आपको सलाम कर रहा था। मैने सबके सामने अपनी अपनी जैकट से पिस्तौल निकाल कर सेफ्टी-लाक हटा कर उस पुलिस वाले को अपने पास बुलाया और अबकी बार कश्मीरी मे पूछा… इसने क्या कहा था? उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी थी। जब तक वह संभल पाता तब तक मेरा हाथ घूमा और उसके गाल पर चटाख से पड़ा तो वह अपनी जगह पर खड़ा-खड़ा घूमा और लड़खड़ा कर जमीन पर बैठ गया।

फिरोज भी हक्का बक्का होकर मुझे देख रहा था और उसके साथ सभी वहाँ उपस्थित लोग मेरी ओर देख रहे थे। मैने अबकी बार उसी पुलिस वाले से दहाड़ते हुए कश्मीरी मे पूछा… इसने क्या कहा था? वह जल्दी से हड़बड़ाते हुए बोला… काफ़िर कुत्ते आज यहाँ से तू जिन्दा वापिस नहीं जाएगा। मैने अपनी पिस्तौल को फिरोज की दिशा मे करते हुए कश्मीरी मे कहा… इसने सभी के सामने एक वर्दी मे अफसर को मारने की धमकी दी है। अब अगर इस जिहादी को मै गोली मार दूँ तो आप सभी इस बात के गवाह होंगें। जैसे ही मैने फिरोज की ओर देखा तो उसका पाजामा गीला हो गया था। वह थरथर काँप रहा था। एकाएक उसकी माँ तेजी से मेरी तरफ बढ़ी और मेरे पाँव पकड़ कर खुदा का वास्ता दे कर उसकी जान बक्शने की गुहार लगाने लगी। मैने अगला नाम पुकारा… रहमत कादरी। एक लड़का जल्दी से निकला और अपने साथियों के साथ जाकर खड़ा हो गया। उसके साथ एक बूढ़ा आदमी आया था वह भी चुपचाप दूसरी दीवार के साथ जाकर खड़ा हो गया था।

मैने अबकी बार कश्मीरी मे बोलते हुए कहा… जमील एहमद हमारी गिरफ्त मे है। उसी ने तुम सबका नाम दिया है कि तुम लोग उससे पैसे लेकर अपने दोस्तों और जानने वालों से पत्थरबाजी कराते हो। इस वक्त तुम सबको को गिरफ्तार करने का मेरे पास अधिकार है। उसके बाद क्या होगा? जेल और फिर जेल के बाद क्या? एक ही रास्ता बच जाएगा कि तुम भी फिरोज की तरह बन जाओगे। गन उठा कर सेना से टकराओगे। अबकी बार मैने उनकी ओर न देख कर उनके परिवार वालों की ओर देखते हुए कहा… यह सच है कि जिस किसी ने भी सेना के खिलाफ गन उठाई है उसकी जिंदगी ज्यादा से ज्यादा छ: महीने की रह जाती है। गन उठाते ही वह अपनी मौत का वारन्ट साईन कर देता है। अगर आप अपने बच्चे या बच्ची की लाश देखना चाहते है तो यह आपकी मर्जी है। हम तो रोज ही इन्हें मार रहे है तो हमे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको सोचना है कि क्या आप ऐसा चाहते हो? एक बार जेल गये तो फिर इनकी सारी जिन्दगी तबाह हो जाएगी। मै भी आपकी तरह कश्मीरी हूँ। अब आपको सोचना है कि आप अपने बच्चे को मेरी तरह देखना चाहते है या फिर उस लाश की तरह जिसे हम आये दिन जंगलों मे सड़ने के लिये छोड़ देते है। ऐसे बहुत कम परिवार होते है जिनको अपने बच्चे की लाश मिल पाती है वर्ना तो ज्यादातर का पता ही नहीं चल पाता है। यहाँ के पुलिस रिकार्ड मे देखना चाहे तो देख लिजीएगा।

मै सामने खड़े हुए बच्चों और बच्चियों की ओर चला गया था। …थोड़े से जेब खर्च के पैसे मिल जाते है तो तुम लोग इसे बहादुरी का काम समझ कर खुश हो जाते हो। यह तो बस शुरुआत है। कुछ दिन के बाद तुम फिरोज की तरह बन जाओगे और फिर जल्दी ही गन उठा लोगे। तुम्हारा तो एक ही अंत है कि किसी दिन फौज की गोली से मारे जाओगे। एक पल रुक कर मैने लड़कियों की ओर देख कर कहा… जीनत और सना तुम्हारे साथ तो और भी भयानक होगा। पहले तो यह जिहादी ही तुम्हारी अस्मत तार-तार करेंगें और फिर जब उन पर खतरा मंडरायेगा तो अल्लाह के नाम पर तुम्हारे को अपनी जान बचाने के लिये कुर्बान कर देंगें। कहीं अगर वर्दी धारियों के हाथ तुम लग गयी तो तुम्हारा दोजख से भी भयानक अंत होगा क्योंकि उसके बाद तुम सिर्फ मौत की कामना करोगी लेकिन वह भी मुमकिन नहीं होगी। अगर किसी को मेरी बात झूठ लगे या विश्वास नहीं हो तो कभी मुझसे श्रीनगर मे आकर मिलना। मै तुम्हें उन लड़कियों से मिलाऊँगा तो उनका हश्र देख कर तुम्हारी रुह काँप जाएगी। यही सोच कर मै तुम सबको सुधरने का एक मौका देना चाहता हूँ। एकाएक सभी बच्चे और बुजुर्ग मेरी ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखने लगे थे।

एक पल रुक कर मैने कहा… मेरी सिर्फ एक ही शर्त है। मै तुमसे तुम्हारे साथियों के नाम नहीं मांग रहा क्योंकि मेरे पास सबके नाम है। न ही मै इस वक्त कोई लिखित कार्यवाही करने की सोच रहा हूँ। बस इतना चाहता हूँ कि आज और अभी से अपने व्हाट्स एप ग्रुप पर मेरी बात डाल कर उनसे सारे संपर्क तोड़ दो। इस इलाके मे फिर कभी किसी पत्थरबाजी की घटना मे तुम्हारा नाम नहीं आना चाहिए। यह मै तुम्हें ही नहीं अपितु तुम्हारे माँ और बाप से भी कह रहा हूँ। अपने बच्चों को समझाओ और उन्हें सही रास्ते पर चलने की शिक्षा दो। अब से तुम सब पर हमारी नजर रहेगी। तुम्हारा नाम इस थाने मे दर्ज हो जाएगा परन्तु फिलहाल वह कोई एक्शन नहीं लेंगें। तुम लोग अपनी पढ़ाई पूरी करो अपना भविष्य बनाओ। इसमे तुम्हें हमारी कोई मदद चाहिए तो वह भी मिलेगी परन्तु अगर एक बार अगर फिर तुम ऐसे किसी घटना के दौरान या घटनास्थल पर नजर आ गये तो इस रिकार्ड के आधार पर हम तुम्हें उठा कर ले जाएँगें। इसे कोरी धमकी की तरह मत लेना यह फौज का निर्देश है। आज बस इतनी बात करने के लिये आप सबको बुलाया गया था और उम्मीद करता हूँ कि आपके समझ मे मेरी बात आ गयी होगी।

मैने सबको जाने का इशारा किया तो फिरोज मेरे सामने गिड़गिड़ाते हुए बोला… मुझे माफ कर दिजीए। प्लीज आगे से फिर कभी ऐसा नहीं करुँगा। …फिरोज मै ऐसा तुम्हें करने के लायक ही नहीं छोड़ूँगा। पिस्तौल अभी भी मेरे हाथ मे थी। मैने सेफ्टी-लाक का खटका दबा कर सेफ मोड मे लाकर उसे अपनी जैकेट के होलस्टर मे रखते हुए पूछा… क्या करते हो? …बीएससी के सेकन्ड इयर मे हूँ। …फिरोज, तुम अब उस लाइन पर खड़े हो कि अब नहीं संभले तो किसी भी वक्त गन उठा कर जिहादी बन जाओगे। क्या तुम्हें अच्छा लगता है कि तुम्हारे लिये तुम्हारी माँ किसी दूसरे के पाँव पकड़ कर तुम्हारी जान की भीख मांगे। सब हमारी बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे। अभी तक कोई भी वहाँ से जाने के लिये नहीं हिला था। पुलिस वाले भी अब बड़े ध्यान से मेरी बात सुन रहे थे।

मैने जमीन पर बैठी हुई उसकी माँ को पकड़ कर खड़ा करके कहा… सच पूछो अगर मेरी माँ को मेरे लिये किसी के पाँव पकड़ने पड़े तो मै उसी दिन अपनी नजरों मे हमेशा के लिये गिर जाऊँगा। यह तुमसे क्या चाहती है? हरेक माँ बस यही चाहती है कि उसका बच्चा ठीक ठाक रहे और खूब तरक्की करके दुनिया मे इज्जत से नाम कमाये। जरा पूछ कर देख लो क्या तुम्हारी माँ इस से अलग सोच रखती है। मै सब कुछ कश्मीरी मे बोल रहा था। मैने एक नजर सभी पर डाली तो मेरी बात सुन कर अब सभी रो रहे थे। सभी बच्चों ने मुझे घेर लिया और रोते हुए फिरोज की पैरवी करने लगे। उसकी माँ भी रोते हुए फिरोज की पैरवी करने लगी तो मैने कहा… मेरा नाम समीर बट है। मेरे अब्बा का नाम मकबूल बट है। उस नाम का यह असर हुआ कि कमरे मे मौत की शांति छा गयी थी। मैने सिर हिलाते हुए सामने खड़े परिवारों और बच्चों से कहा… हाँ, मै उसी जमात-ए-इस्लामी के मकबूल बट की औलाद हूँ जो आपके बच्चों को चंद पैसे देकर फौज के सामने मरने के लिये खड़ा कर देता है। मैने फिरोज की माँ के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा… मेरी अम्मी ने मुझे मकबूल बट के साये से हमेशा दूर रखा था। आज उसी की वजह से मै यह वर्दी पहन कर तुम्हारे सामने खड़ा हूँ। गन तो जिहादी भी उठाता है और गन मैने भी उठा रखी है। जिहादी गन उन मकबूल बट जैसे मुनाफिकों के बहकाने पर उठाता है और मै इस देश और यहाँ के नागरिकों की रक्षा के लिये उठाता हूँ। अब यह आपको सोचना है कि आपके गन उठाने का क्या मकसद है? कभी आपने सोचा कि अब्दुल्लाह, मुफ्ती, सईद, लोन, काजी, हाजी, डार, वगैराह के बच्चे पत्थरबाज और जिहादी क्यों नहीं बनते है? क्यों सिर्फ ऐसी गरीब माँ के बच्चे ही जिहाद लड़ने के लिए जाते है। बच्चों जब अगली बार मकबूल बट तुम्हें पत्थर मारने के लिये पैसे दे तो एक बार उससे पूछ लेना कि उसका बेटा समीर बट क्यों नहीं पत्थर मारने के लिये आगे आता है। यही सवाल तुम उनसे भी पूछ सकते हो जो तुम्हें जिहाद के लिये उकसाते है। मैने फिरोज के कन्धे पर हाथ रख कर समझाते हुए कहा… फिरोज, अब अपने दोस्तों को सही रास्ते पर लाना तुम्हारी जिम्मेदारी है। इतना बोल कर मैने थापा की ओर देखा… इन सबको इनके घर छोड़ कर तुरन्त लौट कर वापिस आओ। यह बोल कर मै कमरे से बाहर निकल गया था।

मेरी नजर थानेदार पर पड़ी जो अपने सिपाहियों के साथ खड़ा हुआ अभी तक मेरी बातें सुन रहा था। वह तेज कदमों से चलते हुए मेरे पास आकर बोला… जनाब, आप मुझे बुलवा लेते। …कोई बात नहीं। आप लोग वैसे भी बहुत मेहनत करते है। मैने इन सातों बच्चों की लिस्ट ड्युटी अफसर को दे दी है। अबसे आपको इन पर नजर रखनी होगी। अगर इनमे से कोई फिर कभी ऐसी घटना मे देखा गया तो तुरन्त उसको अरेस्ट करके हमे सुचित किजीए। …जनाब, मुझे नहीं लगता कि इनमे से कोई अब सड़क पर नजर आयेगा। …थानेदार साहब, यह तो आपके लिये भी अच्छा होगा। जरा अब उस सिपाही को बुला दिजीए। वह सिपाही थानेदार की आढ़ से निकल कर मेरे सामने आकर बोला… जनाब मुझे माफ कर दिजीये। मुझसे भारी गलती हो गयी। उसके सीने पर लगी हुई नेम प्लेट पढ़ते हुए मैने कहा… जाकिर अली, माफी तो मुझे आपसे मांगनी थी। आप मुझसे उम्र और तजुर्बे मे बड़े है। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। हम दोनो वर्दी पहनते है। एक वर्दी को दूसरी वर्दी की इज्जत रखनी चाहिए। मुझे माफ कर दिजीए। इतना बोल कर मै थाने से बाहर निकल आया था। सामने मेरी जीप तैयार खड़ी थी। मै जैसे ही जीप मे बैठने के लिये आगे बढ़ा कि उन सात मे से एक लड़की और उसके माँ-बाप मेरी ओर तेजी से आये तो एक पल के लिये मै रुक गया था। वह लड़की जल्दी से बोली… सर, हम पर लड़के दबाव डाल कर जबरदस्ती भीड़ मे ले जाकर आगे खड़ा कर देते है। अगर हम नहीं जाना चाहते तो वह हमारा घर से निकलना मुश्किल कर देते है। आप ही बताईये कि हम लोग क्या करें? प्लीज हमारी मदद किजीए क्योंकि ज्यादातर लड़कियाँ इसी दबाव मे वहाँ जाती है। …सौरी, मै तुम्हारा नाम भूल गया? …सर, मै सना सईद हूँ। …थैंक्स। मुझे यह पहले सोचना चाहिए था। फिलहाल मै तुम्हें अपना निजि नम्बर दे रहा हूँ। यह नम्बर अपने बाकी दोस्तों को भी दे देना। तुम्हारी बात सुन कर मैने सोचा है कि जल्दी ही एक हेल्पलाईन नम्बर चालू करवा देनी चाहिये जिससे कोई किसी के दबाव मे यह काम न करे। इतना बोल कर मै अपनी जीप मे बैठ गया और दूसरे थाने की ओर निकल गया।

दूसरे थाने मे भी मेरे साथ वही हुआ था। पहले हिन्दी और जब उन्हें पता चला मै कश्मीरी हूँ तो सब की हवा निकल गयी थी। पहले उन्हें डराया, फिर पुचकारा और फिर उनके माँ-बाप को लताड़ा। जब एक बार वह समझने की स्थिति मे आ गये तो फिर मकबूल बट और उसके साथियों का हवाला देकर कर सवाल किया। ऐसा ही कुछ अन्य तीन थानों मे भी देखने को मिला था। शाम तक पाँच थाने और तीस बच्चे और बच्चियों से मिल कर उन्हें समझा कर जब श्रीनगर लौट रहा था तब तक मै थक कर चूर हो गया था। रास्ते मे हवलदार सुजान सिंह ने पूछा… साहब, आप कश्मीरी मे बोल रहे थे तो हमे कुछ समझ मे नहीं आया परन्तु सब रोये क्यों थे? अब मै उसको क्या बताता तो मैने कहा… हवलदार साहब, आज इतना बोला है कि मै थक गया हूँ। कल तुम्हें सब कुछ आराम से बताऊँगा। परन्तु उसका सवाल सुन कर एक बात समझ मे आ गयी थी कि इस काम का स्टेन्डर्ड प्रोटोकोल अपने आप ही तैयार हो गया था। मै जो कुछ भी बोला था वह दिल से बोला था और एक कश्मीरी होने के नाते बोला था। इसीलिये मेरी बात ने उनके दिल को छूआ जिसके कारण वह अत्यन्त भावुक हो गये थे।

रात को जब घर पहुँचा तो सब मेरा इंतजार कर रहे थे। सारा काम समाप्त करके मैने जन्नत से पूछा… अब तुम्हारा पाँव के घाव का क्या हाल है? …ठीक है। अब मुझे नहीं लगता की ड्रेसिंग की जरुरत पड़ेगी। खाना समाप्त करके मैने कहा… कुछ देर के लिये मै टहलने जा रहा हूँ। मुझे कल के लिये कुछ ठंडे दिमाग से सोचना है। …वह तो तुम अपने कमरे मे भी सोच सकते हो। मैने जन्नत की ओर देखते हुए कहा… तुम्हें सामने देख कर तो मेरे दिमाग मे सिर्फ एक ही बात आती है। यह बोल कर मै बाहर निकल गया था। बाहर निकलते ही मैने महसूस किया कि रात मे ठंड बढ़ने लगी थी। कुछ दूर चलने के बाद एक बार फिर से आज के सारे दिन के बारे मे सोचने लगा था। क्या ऐसे बात करने से इन बच्चों पर कुछ प्रभाव पड़ेगा? फिर काफी सोचने के बाद इसी नतीजे पर पहुँचा कि हो सकता है तीस मे से सिर्फ पाँच पर प्रभाव पड़े परन्तु बाकी के दिमाग मे तो कहीं न कहीं यह बात रह जाएगी कि उन पर अब सेना की नजर है। उन्हीं पर क्यों, अब तो उनके मां और बाप भी चिन्ता करेंगें कि अगली बार अगर उन्होंने ऐसा किया तो फिर उन्हें बचाना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए वह भी अपने बच्चों पर नजर रखेंगें और ऐसे दोस्तों से उन्हें दूर रखने की कोशिश करेंगें। इन्हीं सब बातों के बारे मे सोचते हुए मै घर की ओर वापिस जैसे ही मुड़ा तभी आफशाँ का फोन आ गया। …समीर, वहाँ के क्या हाल है? यहाँ तो सब ठीक चल रहा है। अचानक मुझे कुछ याद आया तो मैने पूछा… आफशाँ, तुम पिछली बार काठमांडू कब गयी थी? …तीन दिन पहले ही तो लौटी हूँ। …वहाँ का क्या हाल है? …क्यों क्या हुआ? …कुछ नहीं। मुझे पता चला था कि कुछ दिन पहले वहाँ पर कश्मीरी अलगाववादियों का बहुत बड़ा इज्तिमा लगा था। …पता नहीं। लेकिन आजकल वहाँ पर काफी सैलानियों की भीड़ दिख रही थी। …तुम वहाँ पर किस काम से जाती हो? …मेरा तो सिर्फ एक ही काम है। नेपाल सरकार को हमने एक नया साफ्टवेयर दिया है। उसके सिलसिले मे वहाँ जाना पड़ता है। …छोड़ो यह सब आईटी की बातें। मेनका कैसी है। कुछ देर घर और मेनका की बात करने के बाद आफशाँ ने कहाँ… अपना ख्याल रखना। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया और मै अपने कमरे की ओर चल दिया।

कमरे मे प्रवेश करते ही मेरी नजर जन्नत पर पड़ी जो शायद पहले से ही तैयार होकर बैठी हुई थी। एलिस ने मुझे ऐसी कामुक और परिपक्व स्त्रियों को साधने की कला मे पारंगत कर दिया था। मै आराम से उसके सामने निर्वस्त्र हुआ और उसके साथ जाकर लेट गया। इतने दिनों मे उसके संसर्ग मे मैने महसूस किया था कि जन्नत उन्मुक्त होकर एकाकर मे अपने साथी को संतुष्ट करने की कोशिश करती है। पहली बार जब मैने उसे चूमने की कोशिश की थी तो उसने अपना मुँह फेर लिया था। उसके बाद कुपवाड़ा मे आस्माँ के साथ एकाकार के बाद जब वह मेरे पास आयी तो मैने उसके साथ सब कुछ किया परन्तु उसके होंठों को अनदेखा कर दिया था। सब कुछ शांत होने के बाद वह खुद आगे बढ़ कर मेरे चेहरे पर छा गयी थी। आज भी उसके होंठों को निचोड़ कर जब उसके सीने की गोलाईयों पर मैने हमला बोला तो वह निहाल हो गयी थी। उसके साथ एकाकार का अलग ही नशा था। उत्तेजना के चरम पर भी पहुँच कर उसमे कोई जल्दबाजी नहीं थी। हम दोनो ही एक दूसरे के पोर-पोर मे उठती हुई तरंगों का आभास कर रहे थे। मेरा जनानंग उसकी योनि की गहराईयों मे उठते हुए हर स्पंदन को महसूस कर रहा था। उसकी योनि एकाएक जीवंत हो उठी थी क्योंकि वह मुझे अपनी पुरी लंबाई का हर पल एहसास करा रही थी। वह नशे की तरह धीरे-धीरे मेरे सिर पर चढ़ रही थी और फिर उसका नशा मेरी रग-रग मे घुलने लगा था। मेरे हर प्रहार पर उसकी उत्तेजना से ओतप्रोत सीत्कार गूंज रही थी। उसका परिपक्व गदराया जिस्म मेरे हर स्पर्श पर कभी बल खाता और कभी तड़प मचल उठता था। इस एकाकार मे समुद्र के ठहराव का आभास होते हुए भी लहरों की गहरायी मे उठते हुए तूफान का एहसास हो रहा था। हम एक साथ चरम पर पहुँच कर तूफान मे बह गये थे।

उसी समय एक अज्ञात स्थान पर जमात-ए-इस्लामी के मुख्य सदस्यों के बीच मे एक इमर्जेन्सी मीटिंग चल रही थी। …संयुक्त मोर्चा के इज्तमा की तारीख तय करने के निर्देश मिले है। …मकबूल बट वह सब तो हो जाएगा लेकिन अपने नामुराद फर्जन्द का क्या करोगे जो आज ही बारामुल्ला मे हमारे खिलाफ लोगों को बर्गला कर आया है। मकबूल बट गुस्से से काँपते हुए बोला… भाईजान, वह काफ़िर का खून है। उसका अन्त भी जल्दी होगा परन्तु फिलहाल हमारे लिये इज्तमा की तारीख तय करना जरुरी है। एकाएक सभी तारीख पर चर्चा करने बैठ गये थे। 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज का एपिसोड काम-रस और काम(फर्ज)से भरपूर था

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    1. प्रशान्त भाई आपने काम के प्रति समीर के लगन को सही पहचाना है। आपकी सटीक टिप्पणी के लिये शुक्रिया।

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  2. उत्तर
    1. भाई इस टिप्पणी पर पहुँच कर सोच रहा हूँ कि आगे क्या होगा क्योंकि पता नहीं चल सका कि तुम्हारे दिमाग मे कहानी किस दिशा की ओर जा रही है। एविड भाई मजाक कर रहा हूँ। धन्यवाद।

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