गुरुवार, 19 जनवरी 2023

  

काफ़िर-33

 

मै अपने आफिस मे बैठ कर कल मिरियम के साथ हुई बातों के बारे मे सोच रहा था। उसको घर पर छोड़ने जा रहा था कि अनायस ही मैने नीलोफर के बारे मे पूछ लिया था। उसके जवाब ने मुझे अन्दर से हिला कर रख दिया था। उसने बस इतना बताया था कि नीलोफर बाजी चचा मुन्नवर लखवी की भतीजी है और उसने कुछ दिन मानशेरा मे पीर साहब का मदरसा चलाया था। लखवी का नाम सुनते ही अब पहेली के मुख्य पहलू मेरे सामने धीरे-धीरे खुलने लगे थे। फारुख मीरवायज आईएसआई का अफसर था। पीरजादा मीरवायज और जकीउर लखवी मकबूल बट के साथ जुड़े हुए थे। मकबूल बट सीधे तौर पर जमात-ए-इस्लामी और हिजबुल मुजाहीदीन से जुड़ा हुआ था। हैरत की बात थी कि दो विभिन्न आतंकवादी तंजीमों के सर्वेसर्वा मीरवायज और लखवी भला कैसे मकबूल बट के साथ काम कर रहे थे? भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों के लिये यह दु:स्वप्न से भी ज्यादा खतरनाक काकटेल था। एक बात तो तय हो गयी थी कि आईअएसआई के दबाव के बिना जैश और लश्कर एक साथ नहीं आ सकते थे। सारे संबन्ध बस एक ओर इशारा कर रहे थे कि यह सब मिल कर कुछ बड़ा करने की सोच रहे थे। परन्तु क्या? इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। आज तीसरा दिन था और मुझे इज्तिमा को रोकने की योजना को ब्रिगेडियर चीमा के सामने रखना था। अनजाने मे मिरियम से मिली जानकारी ने मेरा दिमाग घुमा कर रख दिया था।

ब्रिगेडियर चीमा के सामने मिरियम से मिली जानकारी को सामने रख कर मैने कहा… सर, कल मुझे वह सर्वैलेन्स सिस्टम मकबूल बट के घर मे लगाना है। आखिर जैश और लश्कर जमात के साथ मिल कर क्या करना चाह रहे है? इसलिये मुझे सर्वेलैन्स सिस्टम को लगाने और काम करने के बारे मे किसी से समझना है। क्या कोई हमारे पास आदमी है को मुझे कनेक्शन जोड़ना सिखा सकता है। ब्रिगेडियर चीमा ने तुरन्त सिगनल्स से एक आदमी अपने आफिस मे बुलवाया और उसने सारे सिस्टम को मेरे सामने जोड़ कर चालू करके दिखाने के बाद कहा… मेजर, आपकी रिकार्डिंग डिवाईस वाईफाई के पास लगे हुए संचार सिस्टम से सिर्फ 200 मीटर के घेरे मे काम कर सकेगी। अच्छा होगा कि सुनने और रिकार्डिंग के लिये आप 100-150 मीटर की रेंज मे रहे। सब कुछ समझ कर मै अपने आफिस मे वापिस आकर बैठ गया था। कुछ सोच कर एक बार फिर से मैने अपनी मेज पर सारा सामान फैला कर जोड़ना आरंभ कर दिया। जब मै पूरी तरह आश्वस्त हो गया तो मैने सारा सामान डिब्बे मे भरा और अपने घर की दिशा मे चल दिया। रास्ते मे अचानक मेरे दिमाग मे आया कि अगर मै मिरियम से मिलने मकबूल बट के मकान मे गया तो गेट पर पुलिस गार्ड्स और घर के नौकरों की नजरों मे आ जाऊँगा। इसके लिये मिरियम को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। सब कुछ जानने के पश्चात मै समझ गया था कि अब मिरियम को इस मामले से दूर रखना होगा

अंधेरा गहराता जा रहा था। अभी सर्दिया आरंभ नहीं हुई थी परन्तु ठंडक बढ़ने से सड़क पर भीड़ भी कम दिख रही थी। अचानक कुछ सोच कर मैने मकबूल बट के घर की दिशा मे जीप को मोड़ दिया था। उस मकान की ओर जाने वाली कोलोनी की सभी सड़कों का मुआइना करके मैने एक खाली स्थान चुना जहाँ सिग्नल्स की बख्तरबंद गाड़ी सबकी नजरों मे आये बिना आसानी से खड़ी की जा सकती थी। कुछ सोच कर मैने जीप वहीं खड़ी कर दी और अपनी कोम्बेट जैकट डाल कर एक दिशा मे पैदल निकल गया था। मकबूल बट के आलीशान मकान के आसपास टोह लेने के पश्चात इतना तो समझ मे आ गया था कि अति विशिष्ट कोलोनी होने के कारण लगभग ज्यादातर घरों के मुख्य गेट पर पुलिस और सुरक्षाकर्मी तैनात थे। कुछ सोच कर मै अंधेरे का लाभ उठा कर सबकी नजर से बचता हुआ मकबूल बट के मकान के पीछे बनी हुई वीरान सी सर्विस लेन को देखने के लिये चला गया था। सर्विस लेन मे किसी ने भी कोई सुरक्षा या सीसीटीवी का कोई इंतजाम नहीं किया था। एक बार पूरी लेन का निरीक्षण करके मकबूल बट के मकान को चिन्हित करके मै वहाँ से बाहर निकल आया था। मकबूल बट के मकान मे पीछे से प्रवेश करने के इरादे से दीवार की उँचाई और उसके सिरे पर काँटेदार तार देख कर मै इस नतीजे पर पहुँचा कि अगर सही तैयारी की जाए तो उस मकान के पिछले हिस्से मे घुसा जा सकता है। मैने घड़ी पर नजर डाली तो रात के नौ बज चुके थे। मै वहाँ से निकल कर अपने घर की ओर चल दिया।

रास्ते भर मेरे दिमाग मे एक ही बात आ रही थी कि मिरियम से छिपा कर माइक्रोफोन उस घर मे कैसे लगाये जा सकते थे? घर पहुँचते ही दोनो बहनें दुख्तरान-ए-हिन्द की कहानी सुनाने बैठ गयी थी। उनकी संस्था के लोग गरीब मुस्लिम बच्चियों को सिलाई-कढ़ाई का हुनर सिखाते थे। …कितनी बच्चियाँ यह काम सीख रही थी? …आज तो कोई नहीं आया था। …वह औरत वहाँ आयी थी? …नहीं। आज सिर्फ तुम्हारे पड़ौस की लड़की ही वहाँ थी। समीर, मुझे नहीं लगता कि वहाँ पर कुछ होता होगा। …कोई बात नहीं। बस कुछ दिन और उस जगह पर नजर रखो। उनसे बात करके मै अपने कमरे मे चला गया था। मैने अपने एक पुराने स्कूल बैग मे सारा डिब्बे का सामान डाल कर एक ओर रख दिया और स्पेशल फोर्सेज की कोम्बेट गियर पहन कर चलने के लिये तैयार हो गया। एक बार सारा सामान चेक करके मैने अपना स्कूल बैग कन्धे पर डाला और वापिस मकबूल बट के मकान की ओर चल दिया। रात के समय सड़क पर जगह-जगह बेरीकेड लगा कर सुरक्षाकर्मी आने जाने वाली गाड़ियों की चेकिंग करने मे व्यस्त थे। स्पेशल फोर्सेज के मेजर को देख कर किसी ने मेरी जीप या बैग चेक करने की कोशिश नहीं की थी। एक पुलिस बेरियर उस कोलोनी मे प्रवेश करने वाली सड़क पर भी लगा हुआ था। मैने आराम से वह बेरियर पार किया और जीप को ले जाकर उसी स्थान पर खड़ा कर दिया और फिर आँख मूंद कर बैठ गया।

पल भर मे मेरी आंखों के सामने मिरियम का भोला चेहरा आ गया था। मैने जिंदगी मे पहली बार किसी को मोहब्बत के नाम पर धोखा दिया था। इसके लिये मेरा जमीर मुझे बार-बार कचोट रहा था। हमारे रिश्ते का आरंभ भले ही धोखा देने के मकसद से हुआ था परन्तु तीन दिन उसके साथ बिताने के पश्चात अब हालात बदल गये थे। मिरियम की सादगी और स्वभाव मे निर्मलता के कारण वह मेरे दिल के किसी कोने मे उसके प्रति आसक्ति गहरी होती जा रही थी। एकाएक मुझे मिरियम के चेहरे मे जरीना के चेहरे का अक्स दिखा तो चौंक कर मै उठ कर बैठ गया था। एक बार घड़ी पर नजर डाल कर मै जरीना के बारे मे सोचने बैठ गया। वह हमारे पड़ोसी डाक्टर इस्लाम की बेटी थी जिसको मैने एक बार अरबाज के साथ निशात बाग मे घूमते हुए देखा था। सेब के कारोबार के कारण डाक्टर इस्लाम के घर अम्मी का काफी आना जाना था जिसके कारण जरीना को हम सभी अच्छे से जानते थे। जिस रोज आयशा से जरीना की खुदकुशी के बारे मे मैने सुना था तभी से मेरे मन मे एक फाँस चुभ रही थी। जिस दिन पहली बार अब्बा से मेरा आमना सामना हुआ था उसी रात को मैने जरीना को गमगीन हालत मे उस पुलिया पर अकेले बैठे हुए देखा था। मै खुद ही अपनी उलझनों मे घिरा हुआ था तो उसको अनदेखा करके मै जैसे ही आगे निकला तभी उसने आवाज देकर मुझे रोक कर पूछा… समीर, क्या तू अरबाज को बाहर बुला सकता है? …क्यों। तू खुद क्यों नहीं बुला लेती? …प्लीज मेरी मदद कर और एक बार मेरी उससे बात करा दे। अपना पीछा छुड़ाने के लिये मै अगले दिन उसे अरबाज से मिलाने का वादा करके उसे टाल दिया था। जब से मुझे पता चला था कि मोहब्बत मे धोखा खायी जरीना ने आत्महत्या करी थी तभी से मन मे एक ख्याल आ रहा था कि अगर उस रात मैने जरीना की मदद कर दी होती तो शायद वह आज जिवित होती। इस वक्त जरीना के स्थान पर मुझे मिरियम दिख रही थी और खुद को अरबाज की जगह पर खड़ा हुआ देख रहा था। अपने सिर को झटक कर वापिस अपनी दुनिया मे आकर एक बार अपनी घड़ी पर नजर डाली तब ज्ञात हुआ कि रात के तीन बजने वाले थे।     

मैने अपना बैग कन्धे पर डाला और अंधेरे का फायदा उठा कर मकबूल बट की सर्विस लेन मे पहुँच गया था। सड़कें वीरान पड़ी हुई थी। सर्द रात के तीसरे पहर पर गेट पर तैनात गार्ड्स भी अब तक गार्ड्स रुम मे आराम करने के लिये चले गये थे। मै दबे पाँव मकबूल बट के मकान के पीछे पहुँच गया था। दस फीट ऊँची दीवार और उसके उपर एक फीट के कँटीले तार की बाढ़ उस घर के अन्दर घुसने मे अवरोध दिख रहे थे। मकबूल बट के मकान के दायीं ओर उसकी दीवार सात फीट ऊंची थी। जब पहले मैने सर्विस लेन का मुआइना किया था तब मुझे मकबूल बट की छत पर पहुँचने के लिये यही जगह सबसे उप्युक्त लगी थी। मेरी खुद की लम्बाई सवा छ: फुट थी तो एक हल्की सी छलांग से ही उसके पड़ौसी की दीवार पर आसानी से पहुँचा जा सकता था। पड़ौसी की सात फीट की दीवार पर तार के बजाय शीशे के छोटे टुकड़े लगे हुए थे। चमड़े के दस्ताने पहन कर मै दो-तीन कदम पीछे हटा और फिर तेजी से आगे बढ़ कर छलांग लगायी और उस दीवार पर लटक गया। फिर तो दीवार पर चढ़ना आसान था परन्तु जैसे ही मै उस दीवार पर खड़ा हुआ तभी मेरे वजन से कुछ शीशे टूट कर जमीन पर गिर कर बिखर गये थे।

रात के सन्नाटे मे काँच टूटने की आवाज चारों ओर गूँज गयी थी। एक पल के लिये मेरे दिल ने धड़कना बन्द कर दिया था। मैने जल्दी से वह जगह छोड़ कर मकबूल बट की दीवार पर चढ़ गया। मेरी नजर साथ वाले मकान के अहाते पर टिकी हुई थी। कुछ देर तक जब कोई हरकत नहीं दिखी तब मैने आगे बढ़ने की सोचा परन्तु तभी वह अहाता एकाएक रौशन हो गया। मै तुरन्त मकबूल बट के कँटीले तार को लाँघ कर उसकी ओट मे खड़ा हो गया था। अभी भी मेरी नजर उस अहाते पर टिकी हुई थी लेकिन कोई भी अहाते मे नहीं आया था। कुछ समय बीतने के पश्चात एक आदमी हाथ मे छड़ी लेकर दरवाजे से निकल कर अहाते के बीच आकर खड़ा हो गया और फिर चारों ओर नजर डाल वापिस चला गया था। मै कुछ देर वहीं खड़ा रहा और फिर आगे का रास्ता तय करने के लिये बढ़ गया। यहाँ से मकबूल बट की छत का रास्ता तो सड़क पर टहलने जैसा आसान था। छत के लोहे के जंगले को पकड़ कर हवा मे लटक गया और फिर जिस्म को हल्का सा झटका देकर मै मकबूल बट की छत पर पहुँच गया था।

खुली छत पर पहुँचते मेरा स्वागत सर्द हवा के थपेड़े ने किया था। कुछ देर मैने छत का निरीक्षण किया और फिर अपने बैग से वाईफाई और संचार सिस्टम को निकाल कर एक उप्युक्त स्थान को ढूंढने मे व्यस्त हो गया। खाली छत पर कहीं भी ऐसे उपकरण को नहीं लगा सकता था। सबसे पहले मुझे बिजली का कनेक्शन चाहिये था और फिर एक ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ पर वाई-फाई और ट्रान्समिशन के उपकरण को सबकी नजरों से छिपा कर रखा जा सकता था। खाली छत पर एक किनारे पर बड़ी सी पानी की टंकी रखी हुई थी परन्तु वहाँ पर बिजली का कनेक्शन नहीं दिख रहा था। समय निकलता जा रहा था। छत पर कोई उप्युक्त स्थान जब नहीं दिखा तब मेरी नजर सिढ़ियों के उपर बनी हुई गुमटी की मुंडेर पर पड़ी जहाँ टीवी का डिश एन्टेना लगा हुआ था। वह एक ऐसी जगह थी जहाँ पर बिजली व उपकरण छिपाने की सुविधा हो सकती थी। एक बार जमीन पर लेट कर छत पर रेंगते हुए मैने मकान के मुख्य लोहे के गेट का निरीक्षण किया जहाँ पर पुलिस तैनात थी। सभी तैनात पुलिसकर्मी गार्ड रुम मे अब तक जा चुके थे। कोई भी गार्ड इस वक्त गेट पर तैनात नहीं था। मेरे लिये अब उस गुमटी पर पहुँचना आसान हो गया था। एक छलांग लगा कर मै गुमटी की मुंडेर पकड़ कर हवा मे लटक गया था। अगले कुछ पलों मै सीढ़ियों के उपर बनी हुई गुमटी पर बैठा हुआ था। डिश एन्टेना के तार के कनेक्शन का पता चलते ही मुझे बिजली का स्त्रोत मिल गया था।

मैने वाई-फाई और ट्रान्समिशन उपकरण का कनेक्शन पूरा करके डिश एन्टेना की आढ़ मे छिपा कर रख दिया। वाई-फाई और ट्रान्समिशन सिस्टम को डिश एन्टेना की बिजली की सप्लाई लाईन से जोड़ कर मैने कुछ ही देर मे सारे सिस्टम को चालू कर दिया था। छत के किनारे सारे माईक्रोफोन रख कर मैने हेड फोन लगा कर सारे उपकरण और कनेक्शन को टेस्ट करने मे व्यस्त हो गया। जब मै पूरी तरह आश्वस्त हो गया तब सारे माईक्रोफोन उठा कर बैग मे रख कर मुंडेर से लटक कर वापिस छत पर आ गया था। ट्रान्समिशन सिस्टम अब सुचारु रुप से चालू हो गया था। अब मकबूल बट के घर मे प्रवेश करने का समय आ गया था। अपना बैग उठा कर मै छत के दरवाजे की ओर बढ़ गया। दरवाजे को धीरे से अन्दर ठेल कर देखा तो एहसास हुआ कि छत का दरवाजा अन्दर से बन्द था। मै दरवाजे के साथ ज्यादा छेड़खानी नहीं करना चाहता था इसीलिये मैने अलग-अलग हिस्से पर दबाव डाल कर इस बात का जायजा लिया कि दरवाजा कैसे बन्द किया गया है। सारे जोड़ जाँचने के पश्चात इस नतीजे पर पहुँचा कि कुन्डे के बजाय चिटखनी से दरवाजा बन्द किया गया था। बारिश, धूप और बर्फ के कारण वैसे ही दरवाजा काफी खस्ता हालत मे था। चिटखनी पर जैसे ही मैने कन्धे का थोड़ा दबाव डाला कि तभी दरवाजा एक झटके से हिला और फिर अन्दर खुलता चला गया। उपर की कुन्डी कील समेत बाहर निकल गयी थी। मैने जल्दी से बैग उठाया और मकान के अन्दर प्रवेश हो गया। छत का दरवाजा बन्द करके वापिस कुन्डी को कील समेत उनके छेद मे अड़ा कर सिड़ियों के रास्ते नीचे चल दिया था।

दस फीट की दीवार का राज मुझे अब समझ मे आ गया था। मकबूल बट ने डुप्लेक्स घर बनवाया था। एक जीरो पावर के बल्ब ने अंधेरे गलियारे को रौशन कर रखा था। सीढ़ी के निचले छोर पर खड़े होकर मैने पूरे मकान के अन्दर का जायजा लिया तो जल्दी समझ गया कि मकान के निचले तल पर विशाल बैठक बना रखी थी। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही विशाल बैठक मे पहुँच सकते थे। आलीशान झूमर छत से लटक रहा था। बैठक मे करीने से सोफे लगे हुए थे। किसी भी समय बीस-पच्चीस आदमी के आसानी से बैठने का इंतजाम था। एक ओर रसोई और स्टोर दिखाई दे रहा था। उससे थोड़ी दूरी पर विशाल डाईनिंग टेबल और कुर्सिया रखी हुई थी। बैठक के आखिरी सिरे पर दो कमरे बने हुए थे। प्रथम तल पर तीन कमरे बने हुए थे। सभी कमरों के दरवाजे बन्द दिखाई दे रहे थे। कुछ ही क्षणों मे मकान का नक्शा अपने दिमाग मे बिठाने के पश्चात मै दबे पाँव सीढियों से उतर कर निचले तल पर पहुँच गया था।

सबसे पहले मैने एक माईक्रोफोन बैठक मे रखी हुई बड़ी सी शीशे की सेन्टर टेबल के लकड़ी के पायों के जोड़ पर चिपका दिया। दूसरा माईक्रोफोन मैने दो सोफे के जोड़ पर रखी हुई साइड टेबल के नीचे चिपका कर वहाँ से हट गया था। अब मैने दो कमरों की ओर रुख किया। पहले कमरे का दरवाजा खोल कर मैने अन्दर झाँक कर देखा तो वह भी छोटी बैठक की तरह प्रतीत हो रही थी। एक ओर करीने से लगा हुआ गद्देदार तख्त रखा हुआ था। उसके सामने सोफे रखे हुए थे। मैने अन्दर प्रवेश करके कमरे का जायजा लिया और तीसरा माइक्रोफोन लकड़ी के केबीनेट से चिपका दिया था। वहाँ से निकल कर मै दूसरे कमरे मे चला गया। टार्च की रौशनी मे चारों ओर नजर मार कर देखा तो वह एक स्टडी रुम था। एक विशाल नक्काशीदार मेज किनारे मे रखी हुई थी। बाकी तीन दीवारों पर शीशे के केबीनेट और उनमे किताबें भरी हुई थी। एक बड़ी सी आधुनिक कुर्सी मेज के पीछे और दस कुर्सिया आगे रखी हुई थी। चौथा माईक्रोफोन मैने उस मेज के नीचे एक उपयुक्त स्थान देख कर चिपका दिया था।

बस एक माईक्रोफोन मेरे पास बच गया था। मै सिड़ियों से प्रथम तल पर पहुँच कर दरवाजा खोल कर सभी कमरों मे झाँकना आरंभ किया। सभी बेडरुम दिख रहे थे। मै मास्टर बेडरुम खोज रहा था। तीसरे बेडरुम का दरवाजा खोलते ही मेरी नजर मिरियम पर पड़ी जो एक विशाल आधुनिक बेड पर गहरी नींद मे सो रही थी। गुलाबी बल्ब के प्रकाश मे उसका चेहरा चमक रहा था। मैने चारों ओर नजर दौड़ाई और उसके बिस्तर के किनारे पर लगे हुए महँगे लैम्प शेड के अन्दर पाँचवा माईक्रोफोन चिपका कर अपना सारा काम समाप्त करके अपनी घड़ी पर नजर डाली तो सुबह के साढ़े पाँच बजे चुके थे। मुझे आये हुए ढाई घंटे हो गये थे। मैने अपने बैग से हेड फोन निकाल कर कान पर लगाया और उसके कमरे से बाहर निकल गया। मैने रिकार्डिंग डिवाईस का स्विच आन किया और पाँचवा बटन दबा दिया। मेरे कान मे मिरियम की चलती हुई साँसों की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। मैने जल्दी से सारे बटन दबा कर बाकी सारे माईक्रोफोन चेक करने के बाद जब आश्वस्त हो गया तब हेडफोन और रिकार्डिंग डिवाईस को अपने बैग मे डाल कर छत की ओर चल दिया। यहाँ पर मेरा काम समाप्त हो गया था। जैसे ही दरवाजा खोल कर छत पर पहुँचा तब एहसास हुआ कि अंधेरा छँटने लगा था। थोड़ी देर मे सुबह होने वाली थी। तभी मेन गेट पर कुछ पुलिस वालों की आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मै छत का दरवाजा बन्द करके वापिस सीढ़ियों पर आकर खड़ा हो गया था।

मै अजीब सी दुविधा मे पड़ गया था। अंधेरा होता तो आसानी से अपनी जीप तक पहुँच सकता था परन्तु अब इस धुंधलके मे चुपचाप निकलना आसान नहीं था। कुछ सोच कर मै मिरियम के कमरे मे वापिस चला गया। अपना बैग एक किनारे रख कर मै उसके सिरहाने बैठ कर उसके चेहरे पर बदलते हुए भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगा। पता नहीं कैसे परन्तु उसने एक बार अपनी आँखें थोड़ी सी खोली और फिर धीरे से पल्कें झपका कर मुझे देखा और फिर आँखें मूंद ली थी। अगले ही पल उसने आँखें खोल कर मेरी ओर देखते ही जोर से चीखने के लिये मुख खोला ही था कि मेरा पंजा उसके मुख पर जकड़ गया था। उसकी चीख उसके गले मे घुट कर रह गयी थी। वह फटी हुई निगाहों से मेरी ओर देख रही थी और उसका जिस्म जूड़ी के बुखार की तरह काँप रहा था। मैने उसको घूर कर समझाने का इशारा किया परन्तु वह मेरा हाथ पकड़ कर पूरी ताकत से हटाने की चेष्टा कर रही थी। तभी मेरी नजर बेड के किनारे फोटोफ्रेम के शीशे पर पड़ी जिस पर मेरा धुंधला अक्स दिख रहा था। मै पल भर मे ही सारी बात समझ गया था। मै स्पेशल फोर्सेज के कोम्बेट किट मे था। मेरे चेहरे पर काला और हरा रंग पुता हुआ था। कुख्यात ‘रेड बेरट’ ने मेरा माथा ढक दिया था। काली डंगरी और जिस्म के हर हिस्से पर आधुनिक हथियार और एक कमांडो कटार बाँह पर बन्धी हुई देख कर पत्थरदिल जिहादी अपनी पतलून गीली कर देते तो भला यह कोमलांगीं की हालत उनसे भिन्न कैसे हो सकती थी। उसके मुख को दबाये एक हाथ से अपनी केप हटाई और उसके लिहाफ को उठाकर अपने चेहरे पर पुते हुए रंग को रगड़ कर पौंछते हुए मैने दबी आवाज मे कहा… मै समीर, पहचानो मुझे। उसकी फटी हुई आँखे मुझे पहचानने के बाद और भी ज्यादा फैल गयी थी। …मै हाथ हटा रहा हूँ चीखना नहीं। उसने जल्दी से पल्कें झपका कर इशारा किया तो मैने धीरे से उसके मुख पर दबाव कम किया। दबाव कम होते ही उसने मेरा हाथ हटा कर जोर से बोलने की कोशिश की तो एक बार फिर मैने अपना पंजा उसके मुख पर दबा कर घुर्रा कर कहा… कोई आवाज नहीं। चुप। उसने जल्दी से सिर हिलाने की कोशिश की तो मैने अपना हाथ हटा लिया। वह फुर्ती से उठ कर बैठ गयी और मेरे सीने पर मुक्का मारते हुए दबी हुई आवाज मे बोली… तुम यहाँ क्या कर रहे हो।

मिरियम को शांत करने मे मुझे कुछ समय लग गया था। …मेरी टीम इधर एक घर पर रेड करने आयी थी। काम समाप्त करने के बाद तुम्हें देखने की इच्छा हुई तो मै यहाँ आ गया। कोई मैने गलती कर दी? …तुम्हें आते हुए किसी ने देखा तो नहीं? …नहीं। मै पीछे से आया हूँ। …पीछे से? उसने आश्चर्य से मेरी ओर देखते हुए कहा था। अब तक वह सयंत हो चुकी थी और हम आराम से बात कर रहे थे। वह मेरे से सट गयी और अपना सिर मेरे कन्धे पर रख कर मेरी बाँह को पकड़ कर बोली… कल मैने सोच लिया था कि अब तुमसे कभी नहीं मिलुंगी परन्तु लौटने के बाद रात से तुमसे मिलने के लिए बेचैन हो रही थी। तुमने मुझे पागल कर दिया है। …मिरियम अब्बा के आने के बाद क्या करोगी? मेरा सवाल सुन कर वह चुप हो गयी थी। मै उसकी मनोस्थिति से अनजान नहीं था। …तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया। उसे भी कुछ नहीं सूझ रहा था। मै अच्छे से जानता था कि हमारे नापाक रिश्ते का कोई भविष्य नहीं है।

मिरियम अपना सिर मेरे सीने मे छिपाये बैठी हुई थी। मैने बात बदलते हुए पूछा… अपने घर के बारे मे बताओ। तुम्हारे फारुख भाईजान से तो मै मिल चुका हूँ। उनका निकाह हो गया? …हाँ बहुत पहले अब तो उनके दो बच्चे है। …और कौन है तुम्हारे घर पर? …फारुख भाईजान से छोटे दो भाई और दो बहन और है। एक भाई तो मदरसे का काम संभालते है और दूसरे भाई अब्बा के काम मे हाथ बटाते है। वह अचानक मेरे गले मे अपनी बाँहे डाल कर अपने उपर खींचते हुए लेट गयी थी। …तुम भी रंग बिरंगी हो जाओगी। पहले मुझे अपना बाथरुम दिखाओ। मै अपना चेहरा चमका कर आता हूँ। उसने एक दिशा की ओर इशारा किया तो मै उठ कर बाथरुम मे चला गया। …आज तुम अपने नौकरों को छुट्टी दे दो। …नहीं। यह सुन कर मैने मुड़ कर उसकी ओर देखा तो वह बोली… उन्हें छुट्टी के लिये क्या जवाब दूँगी। अब कुछ देर बाद कोई चाय लेकर आयेगा फिर उसके बाद कोई कमरा साफ करने के लिये आयेगा। अपना चेहरा साफ करके उसके करीब बैठते हुए मैने कहा… ठीक है तब उन्हें भी मेरे बारे पता चल जायेगा। आज तो मै यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला। वह बेबस नजरों से मेरीओर देखती हुई बोली… समीर, तुम ही बताओ कि मै उनको क्या कहूँगी? …कह दो कि तुम बाहर जा रही हो इसलिये आज उनकी छुट्टी है। …अगर बाहर नहीं गयी तो फिर? …वह तुम्हारे नौकर है तो तुम्हें उनको सफाई देने की कोई जरुरत नहीं है। इतना बोल कर मै उसके बेड पर फैल गया और उसको अपने आगोश मे जकड़ते हुए कहा… आज रात के बाद मिरियम बीबी तुम ठीक से चलने लायक नहीं रहोगी।

कुछ ही देर मे हम निर्वस्त्र होकर एक दूसरे की कामाग्नि शान्त करने मे जुट गये थे। इस बार के एकाकार मे हमारे बीच एक दूसरे को हराने की प्रतिस्पर्द्धा चल रही थी। जब तक तूफान शान्त हुआ तब तक हम दोनो के सारे कस बल ढीले हो गये थे। उसके हर कोमल अंगों पर मेरी मौहर छ्प चुकी थी। अंत मे उसने हार मान कर अपने आप को मेरे हवाले कर दिया था। मैने भी उसको जब तक पूरी तरह निचोड़ नहीं दिया तब तक उसको छोड़ा नहीं था। तूफान के शान्त होने के बाद वह मुझसे लिपटते हुए बोली… आज तो तुम मुझे मार ही डालते। …सारा उतावलापन तो तुमने आरंभ किया था। मेरे सीने पर सिर रख कर बोली… मै क्या करुँ। मै तुम्हारी मोहब्बत मे पागल हो गयी हूँ। बस मेरी मोहब्बत को रुसवा मत होने देना। …मुझे पर यकीन करो। लेकिन तुमने अभी तक यह नहीं बताया कि अब्बा के आने के बाद क्या करोगी?  इसका जवाब न तो उसके पास था न ही मेरे पास। हम दोनो ही जानते थे कि इस रिश्ते की बुनियाद ही गलत थी। मिरियम दिल के हाथों ऐसी मजबूर हो गयी थी कि उस वक्त सही और गलत की पहचान कर पाने अस्मर्थ थी। मेरी स्थिति उससे कोई ज्यादा भिन्न नहीं थी। मै अपने ही बुने हुए जाल मे फँसता चला जा रहा था। 

दिन चढ़ते ही मिरियम मुझे बेडरुम मे छोड़ कर नीचे चली गयी थी। एक घंटे के बाद जब वापिस लौटी तब मुझ पर झपटते हुए बोली… आज तुम्हारे कारण मै रुसवा हो गयी होती। उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर अपने जिस्म के नीचे दबा कर मैने पूछा… नौकरों का क्या किया? …मैने नौकरों को आज की छुट्टी दे दी है। बस इतना सुन कर एक बार फिर से हमारे एकाकार की कहानी आरंभ हो गयी थी। उस रोज उसने मेरी आव भगत मे भी कोई कमी नहीं की थी। बेचारी ने नाश्ते और खाने की जिम्मेदारी भी अपने उपर ले ली थी। हमने पूरा दिन ऐसे ही गुजारा था। जब देर रात को मै उसी पीछे के रास्ते से वापिस लौटा तब तक हम दोनो ही थक कर चूर हो गये थे। एलिस के बताये हुए एकाकार के मौखिक से लेकर गुदा तक के सभी तरीकों का उस दिम मैने उस पर प्रयोग किया था। उसने भी बढ़ चढ़ कर अपना पूरा सहयोग दिया था। जब उसे छोड़ कर वहाँ से निकला था तब कहीं मेरे दिल के किसी कोने मे उसके प्रति आसक्ति अंकुरित हो गयी थी। मन ही मन मैने सोच लिया था कि मकबूल बट और फारुख दोनो की गिरफ्तारी के बाद मिरियम को अपने घर ले जाऊँगा। अपनी जीप मे बैठते ही मैने एक बार फिर से सारे माईक्रोफोन टेस्ट कर लिये थे। वहाँ से लौट कर अपने कोमप्लेक्स पहुँचते ही मुझ पर थकान हावी हो गयी थी। घर मे प्रवेश करते ही अपने बिस्तर पर जा कर लेट गया और फिर मुझे पता नहीं कब नींद के आगोश मे खो गया था।

 

मुजफराबाद

पीरजादा की हवेली मे दो लोग बैठे हुए दबी हुई आवाज मे बात कर रहे थे। …इज्तिमा के लिये मकबूल बट ने पैसों की मांग की है। पिछले कुछ समय से बाजार मे मंदी आई हुई है। जनरल मंसूर ने भी अपने हाथ झाड़ दिये है। अगर कुछ दिन ऐसा चला तो जिहाद की मुहिम पर बुरा असर पड़ेगा। …अब्बा, यह तो हमारे फायदा का सौदा है। फौजी कार्यवाही के कारण बाजार मंदी के दौर से गुजर रहा है। कारोबारियों के पैसे फँस गये है जिसके चलते बाजार मे एकाएक नगदी की कमी हो गयी है। लोन, बट और गनी जैसे घाघ आज पैसों के लिये मोहताज हो गये है। मकबूल को छोड़ कर बाकी तो लखवी परिवार की गुलामी करते थे। इस मंदी के कारण लखवी परिवार की पहले बाजार और फिर राजनीति पर पकड़ कमजोर हो गयी है। यही मौका है जब मै वहाँ पर मीरवायज परिवार का एक छ्त्र राज स्थापित कर सकता हूँ। जनरल मंसूर बाजवा ने मुझे नगदी देने का वायदा किया है। पहले सारे बाजार पर एकाधिकार जमाऊँगा और उसके बाद संयुक्त मोर्चे के द्वारा वहाँ की राजनीति पर पकड़ मजबूत कर लूँगा। बस आप देखते जाईये कि कैसे पाँच साल मे कश्मीर हमारे आधीन हो जाएगा।

पीरजादा मीरवायज ने कुछ सोचते हुए कहा… फारुख सुनने मे तो यह सब अच्छा लगता है परन्तु एक बात तुम भूल रहे हो कि अभी भी बहुत से ऐसे लोग वहाँ है जो तुम्हें अपने पाँव आसानी से जमाने नहीं देंगें। …अब्बा जैसे कौन? …लखवी को भूल गये। इस मुहिम मे वही हमारे सबसे बड़े दुश्मन है। आज भले ही वह साथ दे रहे है लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह कोई मौका चूकेंगें। इसीलिये कह रहा हूँ कि सावधान रहना। फारुख मीरवायज ने चलते हुए कहा… अब्बा, अब बहुत दिनों तक मेरा आना इस ओर नहीं होगा। मुझे सिर्फ तबस्सुम की चिन्ता है। वृद्ध मीरवायज ने उठते हुए कहा… उसे हवेली मे ले आयेंगें। तुम उसकी चिन्ता मत करो। मकबूल बट से रिश्ता इसी कारण जोड़ा था कि एक अपना रिश्तेदार उधर तुम्हारी मदद के लिये होगा। बस लखवियों से सावधान रहने की जरुरत है। जैश के लोग तुम्हारे है बस यही एक दिलासा है।अच्छा अल्लाह हाफिज।

वृद्ध मीरवायज का हाथ चूम कर फारुख कमरे से बाहर निकल गया था।

6 टिप्‍पणियां:

  1. तब्सूम 🙄🙄,माइक्रोफोन तो लग गए,अब सबकी असलियत पता चले गि,अभी तो सुरवात है

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    1. हरमन भाई यह तो शुरुआत है। आगे-आगे देखिये होता है क्या। इतने समय से जुड़े रहने के लिये शुक्रिया।

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  2. बहुत ही जबरदस्त अंक और मरियम और जरीना की तुलना कहीं न कहीं समीर के हाले दिल बयान कर रहा है की अब वो मरियम के मोह में बंध चुका है और समीर का घर के अंदर घुसना और माइक्रोफोन लगाना किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं था।

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    1. अल्फा भाई धन्यवाद। अन्तरविरोध इंसानी फितरत है। जहाँ तक छिप कर सर्वैलैन्स सिस्टम का लगाना आपको थ्रिलिंग लगा तो मै अपने लेखन के उद्देश्य मे कुछ हद तक सफल हो गया। आपकी उत्साहवर्धक टि्प्पणी के लिये शुक्रिया।

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  3. मायक्रोफोन तो सेट हुए, अब देखते है हालिया ए मकबूल क्या क्या गुल खिलाता है.

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    1. प्रशान्त भाई इसमे तो कोई शक नहीं कि सर्वैलेन्स के कारण मकबूल बट की स्थिति काफी संवेदनशील हो गयी है। आगे देखियेगा कि इस सिस्टम का संयुक्त मोर्चे के प्रोग्राम पर क्या असर होगा। शुक्रिया दोस्त।

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