बुधवार, 25 जनवरी 2023

  

काफ़िर-35

 

उस तकरीर के एक-एक शब्द को सुन कर मै रोमांचित हो रहा था। पूरी मस्जिद की दीवारें नारा-ए-तदबीर अल्लाह-ओ-अकबर के नारों से थर्रा गयी थी। उसकी तकरीर ने बैठे हुए सभी लोगों मे एक उन्माद भर दिया था। मै जिस काम से आया था वह भूल गया था। उस आवाज मे न जाने ऐसा क्या जादू था कि सभी पागल हो गये थे। मैने ऐसा उन्माद पहले कभी अनुभव नहीं किया था। उस उन्माद मे मेरे जिस्म के भी रोएँ खड़े हो गये थे। मै एक किनारे मे खड़ा हुआ नमाजियों को जाते हुए देख रहा था कि तभी मेरी नजर हाजी मंसूर पर पड़ी जिसके साथ अब्बा चल रहे थे। उन्हीं के साथ एक व्यक्ति सफेद लिबास मे बात करता हुआ चल रहा था। उसने सिर पर एक जालीदार कपड़ा बाँध रखा था जिसके कारण  उसका चेहरा साफ दिखाई नहीं दे रहा था। मै तेजी से भीड़ को काटता हुआ उनकी दिशा मे चल दिया। उस सफेदपोश के चेहरे पर नजर पड़ते ही मै ठिठक कर वहीं रुक गया था। वह फारुख मीरवायज था। इस वक्त उन्मादी भीड़ के बीच मै कुछ भी कर पाने की स्थिति मे नहीं था। मेरे लिए बस इतना ही काफी था कि फारुख मीरवायज की शिनाख्त हो गयी थी। वह सभी हाजी मंसूर के कमरे मे चले गये थे। भीड़ के साथ मै भी बाहर निकल आया था। अपनी जीप की ओर बढ़ते हुए मैने ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिलाया… हैलो। …मेजर क्या खबर है? …सर, फारुख मीरवायज इस वक्त हाजी मंसूर और मकबूल बट के साथ मस्जिद मे है। मुझे नहीं लगता कि इस वक्त कोई फौजी कार्यवाही हो सकती है। …क्यों? मैने उसकी तकरीर और उन्मादी भीड़ के बारे मे बताते हुए कहा… सर दंगा हो जाएगा। हजार से ज्यादा की उन्मादी भीड़ उसके लिए मरने-मारने पर उतारु हो जाएगी। मेरा सुझाव है कि आप फिलहाल उस पर नजर रखिए और मौका मिलते ही उसको अपने कब्जे मे ले लिजिए। …मेरे फोन का इंतजार करो। यह कह कर उन्होनें फोन काट दिया था।

मै चुपचाप जीप मे जाकर बैठ गया। तभी अचानक भीड़ मे भगदड़ मच गयी। मेरी नजरों के सामने उन्मादी भीड़ एक वर्दीधारी पुलिसवाले को सड़क पर दौड़ा कर मार रही थी। वह खुदा का वास्ता देकर अपनी जान बक्श देने की गुहार लगा रहा था परन्तु कोई भी उसको सुनने को तैयार नहीं था। कुछ ही देर मे भीड़ छँटते ही उसकी क्षत विक्षित लाश सड़क पर पड़ी हुई थी। लोग उसके पास से होकर गुजर रहे थे परन्तु किसी ने भी उसको अभी तक उठाने की पहल नहीं की थी। यह बात मुझे बाद मे पता चली थी कि वह बेचारा पुलिस इंस्पेक्टर नमाज के लिये आया था परन्तु कुछ असमाजिक तत्वों ने हंगामा करने के लिये शोर मचा दिया और बाकी का काम उन्मादी भीड़ ने बिना सोचे समझे कर दिया था। मेरी आँखों के सामने सारी इंसानियत कुछ देर पहले शर्मसार हो गयी थी।

मेरी नजरें मस्जिद के मुख्य द्वार पर जमी हुई थी। अचानक मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। मैने जल्दी से फोन उठा कर कहा… यस सर। …समीर, मै शाहीन बोल रही हूँ। …हाँ बोलो। …अब्बा की बैठक मे एक बुर्कापोश औरत बैठी हुई है। उसके साथ बहुत से हथियारबंद जिहादी आये हुए है। वह अब्बा का इंतजार कर रही है। …शुक्रिया। यह कह कर मैने जल्दी से फोन काट दिया क्योंकि हथियारबंद जिहादियों के जत्थे के बीच मुझे तीनों मस्जिद के मुख्य द्वार से बाहर निकलते हुए दिख गये थे। वह तीनो अब्बा की कार मे बैठे और आधे दर्जन से ज्यादा गाड़ियों के काफिले के बीच उनकी कार मेरे सामने से तेजी से निकल गयी थी। मैने एक बार फिर से ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिला कर कहा… सर, फारुख का काफिला हाजी मंसूर के घर की ओर गया है। …मेजर हमारी एक टीम अब उनके पीछे लगी हुई है। उपयुक्त स्थान देख कर ही उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा। इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था।

मै अपने घर की ओर चल दिया था। मेरा दिमाग फारुख मीरवायज मे उलझा हुआ था। क्या वह उसकी आवाज थी? अब ठंडे दिमाग से सोचने पर मुझे लगा कि उस तकरीर की बहुत सी बातें हक डाक्ट्रीन से उठायी हुई थी। आईएसआई का अफसर यहाँ पर सुन्नी पीर के रुप मे लोगो को कैसे खुले आम बर्गला रहा था। एकाएक मुझे ख्याल आया कि यह आवाज फारुख की हर्गिज नहीं हो सकती क्योंकि यह आवाज मैने पहले भी कहीं सुनी थी परन्तु कहाँ? अचानक मेरे दिमाग मे बिजली की गति से एक आवाज कौंधीं जिसको मैने मुजफराबाद की मस्जिद मे सुना था। पीरजादा मीरवायज की आवाज को मै पहचान गया था। फिलहाल हम उसके खिलाफ तो कोई एक्शन लेने की स्थिति मे नहीं थे। मेरे दिमाग मे उस नाम के आते ही मै घर जाने के बजाय मकबूल बट के मकान पर निगरानी कर रही टीम के पास चला गया था। फारुख आज रात कहाँ जा सकता है? कुछ सोच कर मै इसी नतीजे पर पहुँचा कि वह मकबूल बट या हाजी मंसूर के घर जा सकता था। पुराने श्रीनगर मे घनी मुस्लिम आबादी के बीच हाजी मंसूर का घर सबसे ज्यादा सुरक्षित था। नीलोफर के कारण वह अब्दुल लोन के घर भी जा सकता था। लोन का घर भी पुराने शहर के बीच बाजार मे था। दोनो ही जगह पर निगरानी करना मेरे लिये मुश्किल था और यही सोच कर मै मकबूल बट के घर पर निगरानी के लिये आ गया था।

…सर, लगता है कि मकबूल बट आ गया है। सुजान सिंह ने हेडफोन निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा तो मैने जल्दी से हेड्फोन कान पर लगाया और सुनने बैठ गया था।

…मकबूल भाई आपके साथ बहुत बुरा हुआ। इस मामले मे उसका क्या कहना है? …नीलोफर ने उनसे बात की थी लेकिन उन्होंने अपनी नाखुशी जताते हुए सब कुछ फारुख पर डाल दिया है। …इज्तिमे का क्या होगा? …मेरी बात फारुख से हाजी मंसूर के घर पर हुई थी। उसने इज्तिमा के बारे मे सुनने से इंकार कर दिया था। नीलोफर ने बीच मे पड़ कर कहा कि वह पैसों का इंतजाम करवा देगी तो फारुख ने नीलोफर को दो दिन का टाइम दिया है। …वह इस वक्त कहाँ है? …पता नहीं। उसका लश्कर हाजी मंसूर के घर के बाहर रुक गया है परन्तु फारुख बिना किसी को बताये न जाने कहाँ निकल गया। दोनो चुप हो गये थे।  

मै हेडफोन हटाने जा रहा था कि दूर से एक नयी आवाज सुनाई दी… अब्दुल लोन, बाजवा साहब का हुक्म है कि संयुक्त मोर्चा के लिये होने वाला इज्तिमा फिलहाल के लिये टाल दिया जाये।

मुझे यह जानी पहचानी आवाज लग रही थी। अगले ही पल फारुख मीरवायज का नाम एक हथौड़े की तरह मेरे दिमाग पर प्रहार किया और मैने जोर से कहा… फारुख, इस वक्त मकबूल बट के मकान मे है। मैने जल्दी से फोन निकाल कर ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिलाया… बोलो मेजर। …सर, फारुख कहाँ है? …वह हाजी मंसूर के घर मे बैठा हुआ है। क्यों क्या हुआ? …सर, फारुख आप लोगो को धोखा देकर मकबूल बट के मकान पर पहुँच गया है। फौरन अपनी टीम यहाँ भेजिए और मै भी अन्दर जाने का प्रयास करता हूँ। …नहीं मेजर, तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे। उसे हमे जिन्दा पकड़ना है। …परन्तु सर। …नो लोन वुल्फ अटैक। दस मिनट मे उसके घर पर रेड हो रही है। इंतजार करो। यह बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। ब्रिगेडियर चीमा ने मेरे हाथ बाँध दिये थे। मै चुपचाप जीप से उतर कर मकबूल बट के मकान की दिशा मे चल दिया। दूर से ही मुझे विदित हो गया था कि हथियारबंद जिहादियों की पूरी फौज ने मकबूल बट के मकान को किला बना दिया है। लोहे के गेट पर तैनात पुलिस सिक्युरिटी की जगह दर्जन से ज्यादा आधुनिक हथियारबंद जिहादियों ने ले ली थी। मकान की छत, मुख्य द्वार व मकान के आसपास आधुनिक हथियारों लैस जिहादी पहरा दे रहे थे।

दूर से मै पेड़ की आढ़ मे खड़ा हुआ सारी स्थिति का अवलोकन कर रहा था। …सर। कुट्टी दौड़ता हुआ मेरी ओर आते हुए जोर से चिल्लाया… उन्होंने वाईफाई और कम्युनिकेशन डिवाईस ट्रेस कर ली है। सारा कनेक्शन कट गया है। मै समझ गया कि अब सब कुछ खत्म हो गया है। रेड आरंभ होने से पहले ही दुश्मन हाथ से निकल जाएगा। कुट्टी की आवाज मेरे कान मे पड़ी… मकबूल बट की बीवी को उसने गोली मार दी है। इसके बाद मै कुछ और सुनने की स्थिति मे नहीं था। तभी फौज की दो बख्तरबंद गाड़ियाँ मकान के गेट के सामने पहुँच कर रुकी परन्तु तैनात जिहादियों ने उन पर अन्धाधुन्ध फायरिंग आरंभ कर दी थी। स्पेशल फोर्सेज की टीम को जीप से उतरने का मौका भी नहीं मिल सका था। वह तो ड्राईवर की सूझबूझ थी जिसने तुरन्त जीप को आगे बढ़ा दिया था। दोनो बख्तरबंद जीप सुरक्षित वहाँ से निकल कर एक सुरक्षित स्थान पर पहुँच गयी थी। स्पेशल फोर्सेज के जांबाज धड़धड़ाते हुए बाहर निकले और फिर पोजीशन लेकर दुश्मन की ओर फायरिंग करते हुए आगे बढ़ना आरंभ कर दिया था। सब कुछ मेरी आँखों के सामने हो रहा था लेकिन मेरे कान मे कुट्टी की आवाज गूँज रही थी… मकबूल बट की बीवी को उसने गोली मार दी है।  कुट्टी की एक बार फिर से आवाज मेरे कान मे पड़ी… सर। एकाएक मेरे जिस्म मे हरकत हुई और स्पेशल फोर्सेज की फायरिंग का लाभ उठा कर मै सर्विस लेन की दिशा मे भाग निकला था।

मकबूल बट के मकान की सर्विस लेन के एक सिरे को मै कवर करके बैठ गया था। मै जानता था कि फारुख किसी भी हालत मे अब आगे से निकलने की कोशिश हर्गिज नहीं करेगा। यही सोच कर मै सर्विस लेन मे उसके पीछे से निकलने का इंतजार कर रहा था। शाम के धुन्धलके मे सर्विस लेन मे कुछ साये दिखते ही मेरी ग्लाक-17 ने आग उगलनी आरंभ कर दी थी। दो साये तो वहीं गली मे ढेर हो गये थे। बाकी लोग अंधेरे का फायदा उठा कर विपरीत दिशा मे निकल गये थे। मैने एक नपातुला रिस्क उठाया था परन्तु उस दिन किस्मत ने साथ नहीं दिया था। उन्होंने भागने के लिये मेरी दिशा के बजाय विपरीत दिशा चुनी थी। इसी कारण वहाँ से कुछ लोग फरार होने मे कामयाब हो गये थे। पता नहीं फरार होने वाले लोगों मे फारुख था कि नहीं? इसका जवाब तो मकान मे प्रवेश करके ही पता चल सकता था। यही सोच कर मै मुख्य सड़क की दिशा मे चल दिया था। कुछ देर पहले तक मकबूल बट के मकान के बाहर मौत तांडव कर रही थी परन्तु अब सब शांत हो चुका था। स्पेशल फोर्सेज की टीम बाहर पड़े हुए शवों को एक किनारे मे रख रही थी।

हमारी सिग्नल्स की बख्तरबंद जीप मकबूल बट के मकान के सामने आकर खड़ी हो गयी थी। मेरे साथी मेरा इंतजार कर रहे थे। मुझे देखते ही वह मेरी ओर आ गये। …सर, अब क्या निर्देश है? मै सादे नमाजियों वाले कपड़ों मे था। …इस टीम के लीडर को बुलाओ। कुट्टी फौरन स्पेशल फोर्सेज के टीम लीडर को ढूंढने के लिये चला गया था। अपने कपड़े बदलने के लिये मै बख्तरबंद जीप मे चला गया था। जब तक टीम लीडर आता तब तक मै अपनी स्पेशल फोर्सेज की काली डंगरी पहन कर बाहर निकल आया था। एम्बुलैंस लोहे के गेट पर खड़ी हुई थी। मै जैसे ही लोहे के गेट की ओर बढ़ा तभी स्ट्रेचर पर मकबूल बट और अब्दुल लोन को लेकर कुछ लोग मकान से बाहर निकल रहे थे। …सर। मैने मुड़ कर देखा तो कुट्टी के साथ टीम लीडर आ गया था। …कैप्टेन अन्दर का क्या हाल है? …सर, सिचुएशन अन्डर कंट्रोल। …इन दोनो के अलावा कोई और सरवाईवर? …नन अलाइव सर। एक पल के लिये मेरे दिल मे टीस उठी थी। अपने आप को जल्दी से संभाल कर मै आगे बढ़ते हुए बोला… कैप्टेन, मुख्य आरोपी की शिनाख्त के लिये मुझे अन्दर प्रवेश करना है। …चलिये सर। एक किनारे मे रखे हुए जिहादियों के शवों पर नजर डाल कर मै दरवाजा की ओर चल दिया।       

मकान के अन्दर प्रवेश करते ही मेरी नजर मिरियम पर पड़ी जो सिड़ियों के पास खून मे लथपथ पड़ी हुई थी। यह वह क्षण था जब उसकी लाश को देख कर पहली बार मुझे अपने कृत्य पर अफसोस और ग्लानि हो रही थी। वह बेचारी तो मेरी मोहब्बत मे पड़ कर जान गंवा बैठी परन्तु मेरी आत्मा पर हमेशा के लिये पाप का बोझ छोड़ गयी थी। उसे बेचारी को तो यह भी मालूम नहीं था कि मैने उसका इस्तेमाल कर रहा था। स्पेशल फोर्सेज के टीम लीडर ने बताया कि आधे घन्टे मे ही सारे जिहादियों को उनकी हूरों से मिलने के लिये भेज दिया था। उनको मकबूल बट और अब्दुल लोन सोफे पर घायल अवस्था मे मिले थे तो दोनो को कमांड अस्पताल मे भेज दिया गया था। …कैप्टेन मुख्य आरोपी फरार हो गया है। आपको दो जिहादियों की लाशें सर्विस लेन मे मिल जाएगी। इतना बोल कर मै बाहर निकल गया। थोड़ी देर के बाद स्थानीय पुलिस ने आकर एन्काउन्टर की रिपोर्ट बनायी और मिरियम की लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया। मेरा काम यहाँ पर खत्म हो गया था। मैने अपने साथियों से कहा कि वह लोग वापिस चले जाये और मै भारी मन से अपने घर चला गया था। आज की हार मुझे हर पल कचोट रही थी परन्तु मिरियम की मौत के कारण मै अपने आपको हर पल धिक्कार रहा था।

ब्रिगेडियर चीमा का फोन घर पहुँचते ही आ गया था। …मेजर, शिकार हाथ से निकल गया। …सर, हमेशा तो हम जीत नहीं सकते। बस अब हमे किसी तरह उन दोनो को बचाना है। वैसे एक जीत तो हमारी भी दर्ज हो गयी है कि अब इज्तिमा नहीं हो रहा है। मेरे पास उनकी रिकार्डिंग है। अब आप टाप ब्रास को बता सकते है कि इज्तिमा नहीं होगा और इसके बाद संयुक्त मोर्चे की कहानी कुछ महीने या साल भर के लिये टल गयी है। …मेजर, आज एक बात और गाँठ बाँध लो कि अगर जिन्दा रहोगे तभी दुश्मन पर अगला वार कर सकोगे। भावनाओं मे बह कर युद्ध भुमि मे इंसान सिर्फ जान से जाता है। नो लोन वुल्फ अटैक इज पर्मिटिड। …सौरी सर, मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। अगली बार से ध्यान रखूँगा। थैंक्स।

लान मे बैठी हुई जन्नत और आस्माँ मेरा इंतजार कर रही थी। मेरे उतरे हुए चेहरे को देख कर आस्माँ ने कुछ बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि मैने उसे चुप रहने का इशारा किया और अपने कमरे मे चला गया। मन अन्दर से खिन्न था तो मै कपड़े बदल कर बिस्तर पर पड़ गया। जन्नत ने आकर बताया कि आयशा आयी है। न चाहते हुए भी उठ कर बाहर आ गया था। आयशा से कह कर ही मैने दोनो को सिलाई-कढ़ाई सीखने के लिये वहाँ भेजा था। वह मेरे सामने बैठते हुए बोली… इतने दिन से कहाँ थे? …बाहर गया हुआ था। अभी कुछ देर पहले ही आया था। तुम सुनाओ तुम्हारा काम कैसा चल रहा है? …इन्होंने नहीं बताया कि वहाँ क्या चल रहा है। नीलोफर लोन के पास इस काम के लिये समय नहीं है। …आएशा, वह बहुत बड़े खेल का हिस्सा है। यह संस्था तो सिर्फ एक दिखावा है। …नहीं समीर। श्रीनगर का आफिस भले ही दिखावा हो परन्तु बाइस जिलों मे आफिस क्या कोई दिखावे के लिये खोल सकता है। …आयशा, वह जिस बड़े खेल की कल्पना कर रही है उस खेल मे तुम्हारा भाई एक अदना सा प्यादा है। तुम्हें जान कर शायद हैरानी होगी कि वह संयुक्त मोर्चे की वह एक महत्वपूर्ण सदस्या है। आयशा कुछ पल मुझे आश्चर्य से देखती रही फिर बोली… कई बार मै सोचती हूँ कि उसमे ऐसा क्या है जो हम मे नहीं है। मैने मुस्कुरा कर कहा… तुम तीनो मे नेता बनने का एक भी गुण नहीं है। तीनो एक साथ एक स्वर मे बोली… क्यों? …तुम मे जहरीली नागिन वाला एक भी गुण नहीं है। जहरीली नागिन हमेशा पलट कर वार करती है। उसकी चाल से उसके रास्ते का पता नहीं चलता, उसकी फुफकार से उसके डसने का पता नहीं चलता और जिसको वह डसती है वह पानी माँगने के काबिल नहीं रहता। यह सारे गुण नीलोफर मे है परन्तु तुम तीनों मे नहीं है। …लगता है कि तुम उसे बहुत अच्छे से जानते हो। मैने उनको कोई जवाब नहीं दिया परन्तु मन ही मन मै जानता था कि नीलोफर मे वह सारे गुण मौजूद है। एक ही बात मुझे सता रही थी कि वह मकबूल बट के साथ इतने दिनो से काम कर रही थी परन्तु आज के दिन ही वह वहाँ नहीं थी। क्या वह जानती थी कि वहाँ ऐसा कुछ होगा?  थोड़ी देर के बाद आयशा अपने घर चली गयी और मै अपने कमरे मे लेट कर उसी सवाल का जवाब ढूंढ रहा था।  

अगला दिन मेरा सारा समय जम्मू, कटरा और श्रीनगर की रिपोर्ट लिखने मे निकल गया था। एक बार मैने मिरियम की लाश के बारे पुलिस स्टेशन से पता लगाया परन्तु बहुत सी लाशें होने के कारण अभी तक उसकी लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका था। उन्होंने मुझे अगले दिन पता करने के लिये कह दिया था। शाम को मै कमांड अस्पताल की ओर निकल गया था। दोनो ही आईसीयू मे थे। अब्दुल लोन के कुछ परिवार वाले मुझे मिल गये थे। मकबूल बट के परिवार से सिर्फ मै था। डाक्टर ने मुझे बताया कि सीने मे तीन गोलियाँ मारी गयी थी। दोनो फेफेड़ें घायल हो गये थे। अब्दुल लोन की भी लगभग वही स्थिति थी। दोनो को साँस लेने मे तकलीफ हो रही थी। मै जैसे ही अस्पताल से बाहर आया मेरी नजर नीलोफर लोन पर पड़ी जो एक बेन्च पर अकेली बैठी हुई किसी सोच मे डूबी हुई थी। कुछ सोच कर मै उसकी ओर चल दिया।

…यहाँ अकेली बैठी क्या कर रही हो? उसने चौंक कर मेरी ओर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… तो अपने अब्बा को देखने तुम पहुँच गये। …मै तो तुम्हारे अब्बा को भी देखने आया था। …क्या मतलब? …तुम्हीं ने तो कहा था कि तुम अब्दुल लोन की मुँहबोली बेटी हो। …ओह। बस इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी। मिरियम ने मुझे उसका लखवी वाला कनेक्शन बता दिया था परन्तु उसको जाहिर करने का यह वक्त नहीं था। …नीलोफर, कल मिरियम की लाश मिल जायेगी। क्या तुम उसके आखिरी काम करने मे मेरी मदद कर सकोगी? वह कुछ पल सोचने के बाद बोली… नहीं। मेरी कुछ मजबूरी है। मैने उठते हुए कहा… कोई बात नहीं। लेकिन फारुख को सिर्फ इतना मेरी ओर से कह देना कि मै जल्द ही सुबूत के साथ मिरियम की हत्या के बारे मे पीरजादा मीरवायज को बता दूंगा। मेरी बात सुन कर वह ऐसे खड़ी हुई जैसे उसे किसी बिच्छू ने डंक मार दिया था। मै रुका नहीं और न ही मैने उसको फिर मुड़ कर देखा और पार्किंग की दिशा मे चल दिया।

आयशा, जन्नत और आस्माँ ने मिल कर मिरियम के सारे आखिरी काम किये और फिर एक रिश्तेदार की हैसियत से मैने रीति रिवाज के अनुसार उसके सारे कार्य सम्पन्न करा दिये थे। मेरे सीने पर मिरियम की मौत का बोझ था। मेरे कारण ही फारुख ने उसकी हत्या की थी। एक तरीके से मैने उस बेचारी को मौत मे मुँह मे झोंक दिया था। यही आत्मग्लानि मुझे बार-बार कचोट रही थी। मेरी आत्मा पर बोझ बढ़ता जा रहा था। पहले अदा का बोझ क्या कम था कि अब उसमे मिरियम का नाम भी जुड़ गया था। पता नहीं अभी और कितने गुनाह मेरे खाते मे दर्ज होने वाले थे।

नीलोफर से कही हुई बात ने अगले दिन ही अपना असर दिखा दिया था। दोपहर को मेरे मोबाइल फोन पर फारुख ने काल किया… मेजर साहब, उसकी मौत के लिये आप जिम्मेदार है। मुझ पर तोहमत मत लगाईये। मैने तो बस उसकी बेवफाई की सच्चायी आपके अब्बा को बता दी थी। उस बेचारी को गोली तो आपके अब्बा ने मारी थी। वह मेरी सबसे प्यारी बहन थी लेकिन उसका गुनाह माफी के लायक नहीं था। इसलिये धमकी देना बन्द कर दिजीये। मिरियम के अब्बा को मैने खबर कर दी है कि एक काफ़िर ने मेरी बहन को पथभ्रष्ट कर दिया था जिसके कारण उसको सजा देने का हक सिर्फ उसके खाविन्द की जिम्मेदारी थी। …फारुख मियाँ इस बार आप बच कर निकल गये। अगली बार जरुरी नहीं कि आपकी किस्मत आपका साथ देगी। …मेजर साहब, आप धमकी मत दिजीये। अगर आपके पास कोई मेरे खिलाफ सुबूत है तो मुझे गिरफ्तार करके सजा दिलवाईये। अगर सिर्फ तोहमत लगा कर आप मुझे हिरासत मे रखने की सोच रहे है तो आपका कानून मुझे अगले दिन छोड़ देगा। मै एक इज्जतदार कारोबारी हूँ। मेरे खिलाफ पुख्ता सुबूत लाईये, मै वादा करता हूँ कि खुद को कानून के हवाले कर दूँगा। अच्छा खुदा हाफिज। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था।

अपना फोन मेज पर रखते हुए एक सवाल मेरे दिमाग मे आया कि क्या उसके खिलाफ हमारे पास कोई पुख्ता सुबूत है? हमारे पास एक भी सुबूत ऐसा नहीं था जिसको हम कोर्ट मे रख सकते थे। उसका आईएसआई का कनेक्शन और आब्सर्वेशन पोस्ट वगैराह जैसे मुद्दे सिर्फ शक और दूसरे लोगों के विचारों के आधार पर बनाये हुए थे। मिरियम के बताने पर ही मै इस नतीजे पर पहुँचा था कि वह आईएसआई मे काम करता था। अफगानिस्तान संबन्ध होने के कारण ही मुझे उस पर ड्र्ग्स और अवैध हथियार की तस्करी का शक हुआ था। परन्तु अभी तक मेरे पास ऐसा कोई ठोस सुबूत नहीं था जिसके कारण कानून से उसे सजा दिलवायी जा सकती थी। अनुमान के कारण किसी को दोषी नहीं कहा जा सकता था। शाम तक मै सारी पिछली बातों को सोचने के बाद इसी नतीजे पर पहुँचा था कि उसके खिलाफ कोई ठोस सुबूत हमारे पास नहीं था। एक मायने मे वह सच बोल रहा था कि हमारे पास उसके खिलाफ एक भी सुबूत नहीं है। पहली बार मुझे ऐसा लगा कि शायद मै ही अपने जाल मे फँसता चला जा रहा हूँ। कुछ सोच कर मैने अपने काल रिकार्ड से उसका नम्बर निकालने की सोची तो पहली नजर मे साफ हो गया था कि उसने सेटफोन से काल किया था। इसमे कोई शक नहीं था कि आम नागरिक के लिये सेटफोन का इस्तेमाल गैर कानूनी था। मेरी समस्या यह थी कि यह कैसे साबित होगा कि वह सेटफोन उसका था। एक पल मे ही मेरा विश्वास दोबारा से सुदृड़ हो गया था कि फारुख बेहद शातिर खिलाड़ी था।

शाम तक मै इसी नतीजे पर पहुँचा था कि मुझे अब अपनी रणनीति मे बदलाव लाना पड़ेगा। मेरे सामने कुछ लोग थे जो उसके काम से पूर्णत: वाकिफ थे। उनमे से दो तो जिन्दगी और मौत की जंग लड़ रहे थे। एक नीलोफर थी लेकिन उसका मुँह खुलवाना नामुमकिन था। दूसरा उसका कारोबारी पार्टनर युसुफजयी था लेकिन मुझे नहीं पता कि वह उसकी अस्लियत कितना जानता था। बाकी जो उसकी असलियत जानते थे वह सब सीमा के पार बैठे हुए थे। यही सोचते हुए मै अपने आफिस से निकल कर बाहर आ गया था। यही सोचते हुए मै अपने घर की ओर चल दिया। घर पर वीरानी सी छायी हुई थी। ठंड बढ़ने के कारण अब शाम को बाहर लान मे बैठना भी मुश्किल हो गया था। मैने जैसे ही घर मे कदम रखा वैसे ही दोनो बहनें अपने कमरे से निकल कर बाहर आ गयी थी। …तुम दोनो को उसके बारे मे कुछ पता चला? …कुछ नहीं। इतना बोल कर दोनो अपना मुँह लटका बैठ गयी थी। उन्हें वही छोड़ कर मै अपने कपड़े बदलने के लिये चला गया था।

अगले दो दिन मेरा सारा समय सारी पुरानी रिपोर्ट्स को देखने मे गुजरा था। इस बार उन रिपोर्ट्स को मै सिर्फ फारुख की दृष्टि से देखते हुए कोई पैटर्न तलाश रहा था। आप्रेशन आघात-1 मे मेरे निशाने पर चरमपंथी तंजीमों की पैसों के स्त्रोत और उनको इसमे मदद करने वाले मुख्य किरदार थे। चार सेब के व्यापारी, पाँच ट्रांसपोर्टर और सात फार्म मालिक मेरे निशाने पर थे। चार व्यापारियों मे से शफीकुर लोन की हत्या हो गयी थी। बाकी तीन व्यापारियों का धन्धा एन्फोर्समेन्ट विभाग ने चौपट कर दिया था। सेब के व्यापार का मैदान साफ हो गया था। पाँच ट्रांसपोर्टर मे से सबसे बड़े गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी के मालिक अब्दुल रज्जाक की हत्या हो गयी थी। उसकी हत्या के कारण कंपनी की बागडोर अनौपचारिक तरीके से नीलोफर लोन के हाथों मे चली गयी थी। गोल्डन ट्रांस्पोर्ट कंपनी मूल रुप से लखवी परिवार की थी तो रज्जाक की मौत से उसकी बागडोर लखवी परिवार की बेटी के हाथ मे चली गयी थी। मुझे यह भी पता था कि बिना लखवी परिवार की मर्जी के कोई भी ट्रांस्पोर्टर काम नहीं कर सकता था। इसका अर्थ यही था कि बाकी चार ट्रांसपोर्टर भी लखवी परिवार पर आश्रित थे। सात सेब के फार्म मालिकों मे से शमा बट की हत्या हो गयी थी। बाकी छ: फार्म मालिकों के इतिहास का अंदाजा मुझे अम्मी ने दे दिया था। अप्रत्यक्ष तरीके से सभी सेब के बाग सात अलगाववादी और चरमपंथी नेताओं की बेनामी जायदाद थी।

आप्रेशन आघात-1 ने इन सबके बेहद संगठित और कार्यकुशल नेटवर्क को छिन्न-भिन्न कर दिया था। इसके कारण इनके काले बाजार मे नगदी की भारी तंगी हो गयी थी। पिछले एक साल मे उनके राज्य और राज्य से बाहर की अवैध धंधे की सप्लाई लाईन पर बार-बार हमला करके उनकी बची हुई नगदी के स्त्रोत भी लगभग बन्द कर दिये गये थे। इसका फायदा सेना और प्रशासन को होने लगा क्योंकि आतंकवाद और पत्थरबाजी की घटनाएँ जम्मू और कश्मीर मे कम हो गयी थी। सब कुछ मेरे सामने मेज पर रखा हुआ था लेकिन इसमे फारुख मीरवायज की भुमिका के बारे मे कुछ पता नहीं चल रहा था। आप्रेशन आघात-2 का लक्ष्य यहाँ की राजनीति और चरमपंथ के गठजोड़ पर प्रहार करने का था परन्तु उसके आरंभ होने से पहले ही संयुक्त मोर्चा के गठन ने हमारा सारा ध्यान भटका दिया था। जब मुझे कुछ भी समझ मे नहीं आया तो शाम को घर पहुँच कर मैने वीके से फोन पर बात की… सर, मुझे मार्ग दर्शन की आवश्यकता है। इतना बोल कर मैने उन्हें फारुख मीरवायज की सारी कहानी को सिलसिलेवार सुना कर पूछा… सर, फारुख मीरवायज का कनेक्शन और उसका उद्देशय मेरी समझ से बाहर है। आप्रेशन आघात-2 को आरंभ करने मे मेरी मदद किजीये। वीके ने कुछ सोच कर कहा… मेजर, क्या तुम दो दिन के लिये दिल्ली आ सकते हो। आराम से बैठ कर इस पर बात हो जाएगी। …यस सर। बस इतनी बात हमारे बीच मे हुई थी।

अगले दिन ब्रिगेडियर चीमा से तीन दिन की छुट्टी लेकर मै श्रीनगर से दिल्ली के लिये रवाना हो गया था। दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर फोन पर वीके को जब अपने पहुँचने की सूचना दी तो उसने मुझे धौलाकुआँ के आफीसर्स मेस मे शाम को सात बजे मिलने का समय दे दिया था। मैने आसिया को अपने पहुँचने की सूचना दी तो उसने कहा… समीर, मै अभी ड्युटी पर हूँ। तुम मेरे अपार्टमेन्ट चले जाओ। हम शाम को मिलेंगें। …आसिया, शाम को मेरी मीटिंग है और मुझे पता नहीं कब तक चलेगी। इसीलिये मै अपने आफीसर्स मेस मे रुक रहा हूँ। …मै कुछ नहीं सुन रही। तुम्हारी मीटिंग जब भी खत्म हो तुम मेरे पास आ जाना। यहाँ पर कब तक हो? …दो दिन। …कोई बात नहीं। उसने इतनी बात करके फोन काट दिया था। मै आसिया के अपार्टमेन्ट की ओर चल दिया था। उसके अस्पताल से उसका घर ज्यादा दूर नहीं था। उसके दरवाजे की घंटी बजाते ही एक पतली दुबली नाजनीन ने स्वागत करते हुए कहा… हैलो समीर। आई एम वैजयंती। मै डाक्टर आसिया के साथ काम करती हूँ। उसने अभी फोन पर बताया कि आप आ रहे है। वह उसका कमरा है। …थैंक्स। यह बोल कर मै आसिया के कमरे मे चला गया था। साफ सुथरा कमरा था। दिल्ली एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही मुझे गर्मी का एहसास हो गया था। जब तक आसिया के कमरे मे पहुँचा तब तक पसीने से नहा गया था। मैने जल्दी से एसी आन किया और फिर नहाने के लिये चला गया। जब तक तैयार हुआ तब तक कमरा बैठने लायक हो गया था।

मैने अपने साथ लायी हुई सारी रिपोर्ट्स को मेज पर फैला कर बैठ गया था। कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई और फिर दरवाजा थोड़ा सा खुला और उसमे से आसिया का चेहरा निकला… हैलो। उसको देखते ही मै खड़ा हो गया और वह दरवाजा खोल कर मुझ पर झपटी और फिर मुझे कस कर बाहों मे भींच कर बोली… आज तो कमाल कर दिया। …क्या अस्पताल से छुट्टी ले ली है? …नहीं लंच ब्रेक था तो अपनी कैन्टीन से खाना लेकर यहाँ आ गयी। चलो बाहर, मुझे लंच करके जल्दी वापिस जाना है। अपनी मेज पर बिखरे हुए कागज देख कर वह कुछ बोलने को हुई तो मैने जल्दी से कहा… बेफिक्र रहना। जैसे पहले थी वैसे ही छोड़ कर जाऊँगा। हम दोनो कमरे से बाहर निकल आये और डाईनिंग टेबल पर खाना खाते बात करने लगे। …आसिया, एक बुरी खबर है। अभी कुछ दिन पहले एक आतंकवादी हमले मे अब्बा बुरी तरह से घायल होकर कमांड अस्पताल मे भर्ती है परन्तु उस हमले मे मिरियम की मौत हो गयी। यह सुन कर वह खामोश हो गयी और फिर उसने पूछा… अब कैसी हालत है? …तीन गोली सीने मे लगी थी। दोनो फेंफड़ों को नुकसान पहुँचा है फिलहाल उनकी हालत क्रिटिकल है। …और मिरियम? …उसका सारा काम मैने कर दिया था। …समीर, उन्हें इतनी आसानी से मरने मत देना। वह खाना बीच मे छोड़ कर उठ गयी और जाते हुए बोली… अच्छा शाम को मिलते है। वह रुकी नहीं और चली गयी।

शाम को मै तैयार होकर आफीसर्स मेस के लिये निकल गया था। आसिया तब तक अस्पताल से वापिस नहीं आयी थी। मैने आफीसर्स मेस की बार मे जब कदम रखा तो वह तिकड़ी एक कोने मे बैठी हुई दिख गयी थी। अभी बार मे भीड़ नहीं थी परन्तु लोगों ने आना आरंभ कर दिया था। उनका अभिवादन करके उनके सामने बैठ गया। वीके ने पूछा… हम स्काच ले रहे है। तुम क्या लोगे? …सर, मै भी वही ले लूँगा। जनरल रंधावा ने वहीं से किसी को इशारा किया और फिर बोले… हाँ मेजर, एक बार सारी कहानी दुबारा से सुना दो। मैने उनके सामने अपनी सारी कहानी खोल कर रखते हुए कहा… फारुख मीरवायज का इतिहास और उसके यहाँ आने का उद्देश्य मेरी समझ से बाहर है। सब कुछ जानते हुए भी उसने मुझे खुले आम चुनौती दी है। मै उसके इस आत्मविश्वास को देख कर जरा उलझ गया हूँ। मै यकीन से कह सकता हूँ कि वह कोई बहुत बड़ा खेल खेलने की फिराक मे है परन्तु मुझे उसकी मंशा समझ मे नहीं आ रही है। यह बोल कर मैने अपना गिलास उठा कर एक घूँट लेकर उनकी ओर देखने लगा।

अजीत ने सबसे पहले बोलना आरंभ किया… मेजर, एक मिनट के लिये उसके खेल के बारे सोचना बंद करके बस टेरर फाईनेन्स पर ध्यान केन्द्रित करो। एक सुव्यवस्थित सिंडिकेट का कार्यकुशल नेटवर्क तहस-नहस हो गया है। सप्लाई लाइन्स को तुमने अगर नष्ट नहीं किया है तो भी भारी नुकसान पहुँचा कर सभी के लिये एक आर्थिक मुश्किल खड़ी कर दी है। अब एक उन्मुक्त बाजार के रुप मे इसे देखने की कोशिश करोगे तो यह आर्थिक नियम है कि बाजार मे जब एक खिलाड़ी कमजोर पड़ता है तो उसकी जगह दूसरा ले लेता है। वह खिलाड़ी उस लड़खड़ाते हुए बाजार पर अपने संसाधनों के जरिये अपना एक छ्त्र एकाधिकार जमाने का प्रयत्न करता है। बाजार मे उपस्थित खिलाड़ियों की संख्या मे स्पर्धा सिर्फ खरीदारों के लिये अच्छी हो सकती है परन्तु उत्पादकों के लिये बाजार पर एकाधिकार ही ज्यादा फायदेमंद होता है। मेरा गिलास खाली हो गया था लेकिन मेरा दिमाग अजीत सर की बात सुन कर और भी ज्यादा उलझ गया था। हल्का सा सुरुर था तो मैने बिना झिझके कहा… सर, सच कहूँ तो आपकी बात भले ही आर्थिक नियमों पर एक अच्छी टिप्पणी हो सकती है परन्तु इसका मेरे सवाल से कोई संबन्ध निकलता हुआ तो नहीं दिख रहा है।

अजीत ने मुस्कुरा कर कहा… भई रंधावा, मुंडे का गिलास भरवाओ। इसके दिमाग मे पेट्रोल डालना पड़ेगा। तीनों ने एक साथ जोर से ठहाका लगाया और वीके ने कहा… मेजर, अब अजीत की बात को टेरर फाईनेन्स पर फिट करने की कोशिश करो। पहले सारा काला बाजार कुछ चन्द गिने चुने लोगों के हाथ मे था। उनका ही उस बाजार पर एकाधिकार होने के कारण उनका वहाँ की राजनीति पर भी प्रभाव था। वह भले ही सदस्य हो सकते है परन्तु सारे निर्णय वह खुद लेते थे कि सरकार किसकी होगी और वह उनके लिये क्या करेगी। इसीलिये अप्रत्यक्ष रुप से सारी सरकार पर भी उनका एकाधिकार था। वही हर जगह दिखाई देते थे चाहे वह सरकारी ठेका हो या व्यापार। अचानक एक आदमी ने उनकी सुव्यवस्थित संगठित नेटवर्क को छिन्न-भिन्न कर दिया और सारे बाजार मे आर्थिक मुश्किलों का दौर आरंभ हो गया। अचानक दुशमन देश का एक जासूस अपने आप को कारोबारी दिखाते हुए बाजार मे उतर जाता है। उसके पास संसाधनों की कमी नहीं है। वह उस बाजार पर अपना एकाधिकार जमा कर वहाँ की राजनीति को धीरे-धीरे पहले अपने प्रभाव क्षेत्र मे लाता है और फिर वह सरकार पर पूरी तरह काबिज हो जाता है। अबकी बार वीके के खुलासा सुनते ही दिमाग पर चड़ा हुआ सुरुर पल मे ही उतर गया था। मैने जल्दी से कहा… सर, फारुख तो यही कर रहा है।

जनरल रंधावा ने हँसते हुए कहा… अजीत तूने सही कहा था। पेट्रोल पड़ने से अब मेजर का दिमाग चलने लगा। यार एक और राउन्ड हो जाये। मैने झेंप कर नजरें नीची कर ली और सोचने लगा कि यह जरा सी बात मुझे समझ मे क्यों नहीं आयी कि फारुख एक-एक करके बाजार मे खड़े हुए लोगों को खरीद कर या हत्या करके सारे बाजार पर अपना एक छत्र एकाधिकार जमाने की कोशिश मे है। मैने निगाहें उठाकर अजीत सर की ओर देखा तो वह मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। मैने अजीत से कहा… सर, मुझे माफ कर दिजीये। यह बातें समझने के लिये अनुभव होना जरुरी है। अजीत ने मेरी पीठ पर धीरे से हाथ मारते हुए कहा… यार हमारे पास तो तीस-चालीस साल का अनुभव है तभी तो यहाँ बैठ कर ज्ञान बाँट रहे है। एक बार फिर से तीनो ने ठहाका लगाया और तीसरा राउन्ड आरम्भ हो गया था।

…सर, आपने ऐसा पेट्रोल डाला है कि अब दिमाग चलने लगा है। आपके सामने अब एक नयी कहानी रख रहा हूँ। इसका सारा श्रेय अजीत सर आपको अभी से दे रहा हूँ। मीरवायज समूह ने आईएसआई की मदद से कश्मीर के टेरर के बाजार पर फारुख मीरवायज के जरिये एकाधिकार जमाने का प्रयास किया है। वहीं दूसरी ओर लखवी परिवार भी इसी एकाधिकार की कोशिश अब्दुल लोन के जरिये कर रहा था। इसमे कोई शक नहीं कि अब्दुल लोन ने काफी हद तक इस पर अपना एक छ्त्र एकाधिकार स्थापित कर लिया था। परन्तु इसी बीच मे हमने चाहे अनजाने मे ही सही लखवी परिवार और उनके समर्थकों के नेटवर्क को भारी नुकसान पहुँचा कर उनकी पकड़ को कमजोर कर दिया जिसके कारण मीरवायज को अपने पाँव जमाने के लिये जगह मिल गयी थी। हमारे प्रभाव को कम करने के लिये फारुख मीरवायज ने लखवी परिवार को उस बाजार मे बराबर का हिस्सा देने का वायदा करके संधि कर ली जिसके रुप मे नीलोफर लोन उर्फ नीलोफर लखवी भी फारुख के साथ बाजार मे स्थापित हो गयी है। इसके परिणामस्वरुप अब हमारे दोनो दुशमन एक होकर अब हमसे टकराने की फिलहाल रणनीति बना रहे है। इसका एक परिणाम तो संयुक्त मोर्चे के गठन से हो गया है। वह तो मैने मकबूल बट के घर मे सर्वैलेन्स सिस्टम फिट करके उनके सारे मंसूबे ध्वस्त कर दिये अन्यथा अब तक वह इज्तिमा करके आधिकारिक रुप से वहाँ की राजनीति और बाजार पर काबिज हो गये होते और सीमा पार बैठ कर आईएसआई का जनरल मंसूर बाजवा बड़े मजे से इन दोनो को कठपुतलियों को अपने हिसाब से नचाने मे लगा हुआ होता।

तीनों मेरी बात ध्यान से सुन रहे थे। अपने गिलास से एक घूँट भर कर मैने कहा… सर, आप्रेशन आघात-2 का लक्ष्य अब मेरे सामने है। हमे इन दोनो के बीच मे इतना मवाद फैला देना है कि इन दोनो परिवारों के बीच हुई संधि टूट जाये। वीके ने पूछा… मेजर,पर कैसे? …सर अभी मैने कुछ सोचा नहीं है। मुझे कुछ समय दिजिये। कल तक मै कुछ सोच कर आपके सामने अपनी योजना को रख दूँगा। अजीत ने कुछ सोचने के बाद कहा… वीके कल शाम को हम एक बार फिर यहीं पर मिलते है। मेजर तुम यहाँ कब तक हो? …कल यहीं हूँ लेकिन परसों मुझे वापिस लौटना है। …नहीं, कल शाम को नहीं मिल सकते। ऐसा करते है कि एयरपोर्ट पर मिल लेते है। …मेजर कितने बजे की फ्लाईट है? …दो बजे। …परसों सुबह ठीक है दस बजे एयरपोर्ट पर मिलते है। …यस सर, एक बात और है सर कि मैने ब्रिगेडियर चीमा को इस मीटिंग के बारे मे कुछ नहीं बताया है। अब वहाँ पहुँच कर आप्रेशन आघात-2 के बारे मे उन्हें बता दूँगा।

मैने घड़ी पर नजर डाली तो रात के दस बज चुके थे। तीनों ने कहा… आज देर हो गयी है। यहीं पर खाना खाकर चलते है। हम चारों डाईनिंग एरिया मे जाकर बैठ गये थे। खाने के दौरान उन्होंने मेरे परिवार के बारे पूछना आरंभ कर दिया तो मैने आफशाँ और मेनका के बारे मे बताते हुए कहा… वह मुंबई मे एक निजि साफ्टवेयर कंपनी मे काम करती है लेकिन वह नौकरी छोड़ भी दे परन्तु बच्ची के कारण वह एक सुरक्षित जगह रहना चाहती है। यही सब बातें करते हुए हमने खाना समाप्त किया और अल्विदा करके चल दिये। अजीत ने चलते हुए पूछा… मेजर, तुम्हारे पास कोई ट्रांस्पोर्ट है या फिर टैक्सी पकड़ने की सोच रहे हो। …सर, टैक्सी से जाऊँगा। …चलो मै छोड़ दूँगा। कहाँ ठहरे हुए हो? …सर, मै चला जाऊँगा। उसने हंसते हुए कहा… ड्राईवर है आओ तुम्हें मै छोड़ दूँगा। मैने पता बताया और उसके साथ चल दिया। बारह बजने मे कुछ मिनट थे जब मै आसिया के अपार्टमेन्ट के सामने उतरा था। इस वक्त उसके सामने नशे की हालत मे जाते हुए मेरी तबियत कोफ्त हो रही थी।  

बंद दरवाजे के सामने खड़ा हुआ अब मै पछता रहा था कि मै वहीं आफीसर्स मेस मे क्यों नहीं ठहर गया था।

3 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा अंक रहा मगर मिरियाम का मौत एक अप्रत्याशित घटना थी और कहीं ना कहीं समीर के विवेक इसके लिए उससे धिक्कार कर रहा है, और मिरबायाज और लखवी परिवार का गठजोड़ एक बहुत ही संवेदनशील बात होती जा रही है समीर के लिए।

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    1. मित्र, मिरियम की मौत भले ही अप्रत्याशित घटना लगे परन्तु दुश्मन को कभी भी कम आंकने की गलती नहीं करनी चाहिये। समीर ने फारुख को आंकने मे गलती की थी। भला इतने भारी बंदोबस्त बावजूद फारुख कैसे सबको धोखे मे रख कर मकबूल बट के मकान पर पहुँच गया था। यही गलती समीर को भारी पड़ गयी थी। इस घटना का क्या परिणाम होगा यह अभी देखना बाकी है। शुक्रिया दोस्त।

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