काफ़िर-30
जन्नत के साथ रात
बिता कर एकाएक मुझे आफशाँ की याद आ गयी थी। दोनो ही अपनी ओर से मुझे पूरी तरह से संतुष्ट
करने का प्रयत्न करती थी। उस एकाकार मे अलग ही आनंद की अनुभुति होती थी क्योंकि दोनो
ही जिस्मानी संतुष्टि के लिये पुरजोर कोशिश मे जुट जाती थी। एलिस ने मुझे इसी विविधता
के बारे मे सिखाया था। एक लड़की और परिपक्व औरत के साथ संसर्ग मे कितना फर्क होता है।
जन्नत और आस्माँ के साथ एकाकार मे अब तक इसका एहसास मुझे हो गया था। एक के साथ शांत
समुद्र की निश्चल लहरों के ठहराव के साथ हर पल अनबूझी गहरायी का अनुभव था। दूसरे के
साथ चक्रवाती तूफान का अनुभव जो धीरे-धीरे गति पकड़ कर अपने वेग मे सब कुछ बहा कर ले
जाता था। जब से यह दोनो बहनें मेरे जीवन मे आयी थी तभी से मै एलिस के दिये गये गूड़
मंत्र को समझने मे कामयाब हो सका था।
…समीर। तुम्हारी जीप
आ गयी है। …कोई बात नहीं। यह कह कर मै तैयार होने चला गया था। एक घंटे के बाद मै अपने
आफिस की ओर जा रहा था कि अचानक कुछ सोच कर मैने कहा… हाजी मोहम्मद के घर चलो। मेरी
जीप शहर की ओर मुड़ गयी थी। कुछ ही देर मे हम हाजी मोहम्मद के घर पहुँच गये थे। आज पहले
जैसी चहल-पहल नहीं दिख रही थी। जामिया मस्जिद ब्लास्ट के बाद से उसके अनुयायियों की
भीड़ घट गयी थी। कुछ लोग होने बावजूद भी किसी ने मुझे घर के अन्दर प्रवेश करने से रोका
नहीं था। बड़ी बैठक मे हाजी साहब कुछ लोगो के साथ बैठ कर किसी मसले पर चर्चा कर रहे
थे। मुझे आता देख कर वह चुप हो गये थे। हाजी साहब ने सोफे पर बैठे हुए आदमी को इशारा
किया तो उस सोफे पर बैठे हुए सभी लोग उठ कर खड़े हो गये थे। मै सोफे पर बैठते हुए बोला…
सलाम वालेकुम हाजी साहब। काठमांडू की यात्रा आपकी कैसी रही? हाजी साहब अचकचा कर बोले…
मै तो देवबंद गया था। …ओह मुझे माफ किजीए। …मेजर साहब कैसे आना हुआ? …अब्दुल्लाह नासिर
से मिलने आया था। जरा उसको बुलवा दिजीए। …क्यों क्या हुआ? मैने एक नजर सब डाल कर कहा…
हाजी साहब, जामिया मस्जिद ब्लास्ट के सिलसिले मे उनसे बात करनी है। हाल ही मे नौग्राम
मे एक छापे के दौरान कुछ लोग सेना की गिरफ्त मे आये है और उन्होंने बताया है कि आपके
बेटे अब्दुल्लाह नासिर के कहने पर वह असला बारुद आपकी मस्जिद मे रखवा कर आये थे। अब
चुंकि इस केस की छानबीन मै कर रहा था और आपके बेटे का जिक्र आते ही मै खुद उससे बात
करने के लिये आ गया। आप तो जानते है वर्ना हम लोग कहीं खुद आते जाते नहीं है।
अचानक हाजी मोहम्मद
के साथ बैठे हुए एक आदमी बोला… तो आप क्या करते है। मैने उसको घूरते हुए कहा… कुछ खास
नहीं जनाब। शक के आधार पर बस हम उसे घर से उठवा लेते है। बाकी काम तो उसके परिवार के
लोग करते है। वह आदमी जैसे ही कुछ और बोलने को हुआ तभी हाजी मोहम्मद ने उसका हाथ पकड़
कर दबाते हुए जल्दी से कहा… समीर मियाँ, यही अब्दुल्लाह नासिर है। आपको जो भी बात करनी
है वह मेरे सामने इनसे कर लिजीए। मैने एक नजर उस आदमी पर डालकर कहा… हाजी साहब, क्या
मै इसको लेकर आपकी छोटी बैठक मे पूछताछ कर सकता हूँ। …अरे आप बेफिक्र होकर पूछ लिजीए
यहाँ पर सब अपने लोग है। मैने मुस्कुरा कर उस आदमी की ओर देखते हुए कहा… अब्दुल्लाह
नासिर अपना कोई फोटो आईकार्ड दिखाओ। वैसे तो मुझे पीआरसी कार्ड देखना चाहिए लेकिन चुंकि
तुम हाजी साहब के बेटे हो तो किसी भी फोटो आईकार्ड से काम चल जाएगा। वह आदमी हाजी मोहम्मद
की ओर देखने लगा और हाजी साहब हड़बड़ा कर बोले… समीर मियाँ उसकी क्या जरुरत है। जब मै
कह रहा हूँ कि यह मेरा बेटा अब्दुल्लाह नासिर है तो आपको इसकी और क्या पहचान चाहिए।
…हाजी साहब, पूछताछ की कागजी कार्यवाही पूरी करने के लिये तो इन्हें वहाँ आकर भी यही
सब कागज जमा कराने पड़ेंगें तो मैने सोचा कि अगर इनके कागज यहीं पर पूरे करवा देंगें
तो फिर इन्हें वहाँ आने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी।
हाजी साहब अचानक उठ
कर खड़े हो गये और धीरे से बोले… क्या अन्दर चल कर बैठ कर बात कर सकते है। मैने उठते
हुए कहा… क्यों नही। अब्दुल्लाह तुम भी चलो लेकिन अपना कार्ड पहले दिखा दो। अचानक मेरे
उपर कोई पीछे से झपटा लेकिन मेरे सामने खड़े हुए आदमी के चेहरे पर खिंची हुई लकीरों
ने मुझे तुरन्त सावधान कर दिया था। उसी वक्त हाजी साहब जोर से चिल्लाये… नहीं। अगले
ही पल मै अपने स्थान से हटते हुए तेजी से पंजो के बल घूमा और अपनी झोंक मे गिरते हुए
नवयुवक के सिर के बालों को पकड़ कर अपने पंजे मे फँसा कर खींचते हुए कहा… मियाँ जरा
संभल कर चलो। उस व्यक्ति के हाथ से एक लोहे की छ्ड़ फिसल कर कालीन पर गिर गयी थी। मैने
झुक कर कालीन पर पड़ी हुई लोहे की छड़ को उठाते हुए कहा… तुम्हारी लापरवाही के कारण किसी
के चोट लग जाती। फौजी तरीके से उसके बालों को पकड़ कर हिलाते हुए मैने कहा… हाजी साहब
एक मिनट पहले इस खबीस की औलाद को अपने गार्ड्स के हवाले करके फिर आपके साथ अन्दर चल
कर बात करता हूँ। उसके बाल पकड़ कर खींचते हुए मै मुख्य द्वार की ओर चल दिया। तभी शाहीन
और उसकी अम्मी तेजी से बाहर निकल कर आयी और मेरे आगे आकर खड़ी हो गयीं थी। शाहीन तुरन्त
बोली… समीर, यही मेरे अब्दुल्लाह भाईजान है। प्लीज इन्हें छोड़ दीजिए। मैने अपने हाथ
को घुमा कर उसके बालों को लपेट कर कहा… यह क्या मजाक है। तुम्हारे अब्बा उस आदमी को
अब्दुल्लाह बता रहे है और तुम इस खबीस को अब्दुल्लाह बता रही हो। इसने सबके सामने इस
छड़ से मुझ पर हमला करने की कोशिश की थी।
शाहीन ने जल्दी से
कहा… प्लीज, मेरी बात माने यही मेरे बड़े भाई अब्दुल्लाह नासिर है। मैने हाजी मोहम्मद
को घूर कर देखा तो उसने अपनी नजरें झुका ली थी। मैने एक ठोकर अब्दुल्लाह की पीठ पर
जमा कर उसे छोड़ दिया और वह वहीं कालीन पर औंधे मुँह जाकर गिर गया था। शाहीन और उसकी
अम्मी लपक कर उसे उठाने मे जुट गयी थी। मैने अपनी पिस्तौल निकाल कर सेफ्टी-लाक हटा
कर उस आदमी की ओर देखते हुए कहा… क्यों मियाँ आप पूछ रहे थे कि हम क्या करते है। मैने
तभी ट्रिगर दबा दिया और धाँय की आवाज बैठक मे गूंजी और गोली उसकी दोनो टांगों के बीच
से निकल कर पीछे सोफे मे जाकर धँस गयी थी। वह और हाजी मोहम्मद चीखते हुए सोफे से उठ
कर दूर भागे लेकिन गोली चलने की आवाज सुन कर मेरे चार साथी तब तक अपनी एके-203 ताने
अन्दर आकर सभी लोगों को निशाने पर लेकर खड़े हो गये थे।
मैने अपनी पिस्तौल
के सेफ्टी-लाक लगा कर कहा… इनमे से कोई भी हिले तो गोली मार देना। अब्दुल्लाह नासिर
को गिरेबान से पकड़ कर उठाते हुए मैने कहा… हाजी साहब, मै आपसे कितने सलीके से बात कर
रहा था और आपके कारण ही यह सब कुछ हुआ है। अब मुझे सेना के अफसर के तौर पर पूछताछ करनी
पड़ेगी। मैने खड़े हुए सुजान सिंह से कहा… हवलदार साहब, यहाँ पर मौजूद सभी लोगो को चेक
किजिए और जिसके पास कोई पहचान पत्र नहीं मिले उसे जीप मे बिठा दिजीए। मैने अब्दुल्लाह
को कुट्टी की ओर धकेलते हुए कहा… कुट्टी इसे अभी हिरासत मे लिजीए और यह अगर अपनी जगह
पर जरा सा भी हिले तो बिना वार्निंग के शूट कर दिजीएगा। कुट्टी फुर्ती से आगे बढ़ा और
अब्दुल्लाह को लेकर एक किनारे मे खड़ा हो गया। मै वापिस सोफे पर बैठते हुए बोला… हाजी
साहब क्या अब आप शराफत से बैठ कर बात करना चाहेंगें? हाजी मोहम्मद धम्म से सोफे पर
बैठ गया और मेरी ओर देख कर बोला… समीर मियाँ, उसे छोड़ दो। तुम उससे जो भी पूछना चाहते
हो वह यहीं पूछ लो। शाहीन तब तक मेरे पास आकर बोली… समीर, प्लीज इन्हें छोड़ दो। जो
भी पूछना है यहीं पूछ लो। मैने सभी लोगों की ओर देख कर कहा… कुट्टी इसे अन्दर बैठक
मे ले जाओ। शाहीन तुम और तुम्हारे अब्बा ही वहाँ बैठ सकते है। बाकी सभी यहीं रहेंगें।
यह बोल कर मै अन्दर चला गया।
मेरे पीछे शाहीन उसकी
अम्मी और हाजी साहब उस छोटी बैठक मे आ गये थे। कुट्टी ने सबके सामने अब्दुल्लाह को
ठोकर मार कर जमीन पर बिठा दिया था और उसके सिर पर अपनी क्लाशनीकोव की नाल टिका कर उसके
पीछे खड़ा हो गया। मै आराम से सोफे पर बैठ गया और हाजी साहब और उनकी बीवी सामने तख्त
पर बैठ गये थे। शाहीन एक किनारे मे खड़ी हो गयी थी। एक नजर सब पर डाल कर मैने पूछा…
अब्दुल्लाह क्या तुमने वह असला बारुद जामिया मस्जिद में रखवाया था? उसने कोई जवाब नहीं
दिया तो मैने हाजी साहब की ओर देखा तो बेबस से बैठे दिखायी दिये। …हाजी साहब, यह आपके
सामने अपना मुँह नहीं खोलेगा। कुछ दिन हम इसे अपने पास रखेंगें तो यह सब कुछ आराम से
बताएगा। मै जैसे ही उठने लगा तभी अब्दुल्लाह जल्दी से बोला… हाँ मैने ही रखवाया था।
मै वापिस बैठ गया… क्यों? …हिज्बुल के लिये। वह 15वीं कोर के हेडक्वार्टर्स पर हमला
करने की फिराक मे थे। …हिज्बुल मे यह किसका आप्रेशन था? …एरिया कमांडर जाकिर मूसा ने
यह योजना बनायी थी। …तुमने इस पूरी साजिश मे कौनसा किरदार निभाया था? …मै पीरज़ादा मीरवायज
और मूसा के बीच मे सिर्फ एक बिचौलिया था। …तुम उन दोनो को कैसे जानते हो? वह कुछ पल
चुप रहा और फिर धीरे से बोला… अब्दुल रज्जाक सैयद ने मुझे मीरवायज से मिलवाया था।
…कौन गोल्डन ट्रांसपोर्ट वाला? अब्दुल्लाह ने बस अपना सिर हिला दिया था। उसी समय मुझे
लगा था कि मै किसी तिलस्म मे फँसता जा रहा हूँ। अभी तक मै इसी नतीजे पर पहुँचा था कि
गोल्डन ट्रांस्पोर्ट के पीछे जकीउर लखवी है तो उसकी मीरवायज से कैसे ताल मेल बैठ सकती
है। अभी तक मीरवायज का नाम अजहर मसूद और जैश के साथ जुड़ा हुआ था। अब अब्दुल्लाह बता
रहा था रज्जाक ने उसे पीरजादा से मिलवाया था।
अब्दुल्लाह का एक
अध्याय पूरा हो गया था। …अब्दुल्लाह, तुम काठमांडू किस लिये गये थे? अब्दुल्लाह ने
तुरन्त हाजी मोहम्मद की ओर देखा तो मै समझ गया था कि बाप-बेटे किस चक्कर मे गये थे।
अरबाज ने संयुक्त मोर्चे की कहानी तो कुछ हद तक सुना दी थी। …क्यों मियाँ काठमांडू
किसलिये गये थे? अबकी बार हाजी साहब बोले… सुन्नी मुस्लिमों का इज्तिमा लगा था। इससे
पहले वह कुछ और गुमराह करते मैने पूछा… अब्दुल्लाह, क्या तुम जमील एहमद को जानते हो?
यह नाम सुन कर एक पल के लिये हाजी साहब चौंक गये थे। …हाजी साहब, मै जानता हूँ कि वह
आपका आदमी था। परन्तु अब्दुल्लाह ने जमील से बात करके हिज्बुल के बुरहान से दस लाख
रुपये मे किसी परिवार को मारने का सौदा किया था। …क्यों मियाँ? अब अब्दुल्लाह की आवाज
बन्द हो गयी थी। मैने उससे कई बार पूछा परन्तु वह कुछ भी बताने को तैयार नहीं था।
…अब्दुल्लाह क्या तुम उस खातून को जानते हो जिसने मेरे घर पर फोन किया था। वह कुछ नहीं
बोला लेकिन हाजी साहब जल्दी से बोले… समीर, क्या आप सिर्फ जामिया मस्जिद की पूछ्ताछ
करने आये थे? …नहीं हाजी साहब, आपके बेटे ने मेरे घर पर हिज्बुल के द्वारा फिदायीन
हमला करवाया था जिसमे मेरी अम्मी और आलिया मारे गये थे। शाहीन तेजी से उठी और अब्दुल्लाह
की गिरेबान पकड़ कर झिझोंड़ती हुई बोली… क्या यह सच है भाईजान? वह सिर झुकाये बैठा रहा
था।
अब चीजें मेरी बर्दाश्त
के बाहर जा रही थी। अपनी मनोस्तिथि को संभालते हुए मैने कहा… अब्दुल्लाह, तुम्हारी
हमारे घर से कोई दुश्मनी नहीं थी तो फिर तुमने ऐसा क्यों किया? अब्दुल्लाह ने हाजी
साहब की ओर एक बार देखा और फिर मेरी ओर देखते हुए बोला… समीर, क्या तुम नहीं जानते
कि उनकी हत्या क्यों हुई? मैने चौंकते हुए कहा… क्या मतलब तुम्हारा? …तुम्हारी बहन
आलिया और शाहीन के कारण जमात-ए-इस्लामी का पूरा बना बनाया नेटवर्क ध्वस्त हो गया। क्या
तुम सोच रहे थे कि तुमने इन दोनो को कुछ दिन के लिये छिपा लोगे तो क्या जमात के अब्दुल
गनी और जमील शेख इन्हें माफ कर देंगें? वह एक पल रुका फिर बोला… क्यों अब्बा, मकबूल
बट ने अगली किस्त देने से पहले कौन सी शर्त रखी थी? जैसे ही उसने मकबूल बट का नाम लिया
उसी वक्त मेरे कान खड़े हो गये थे।
मैने हाजी मोहम्मद
की ओर देखा तो उनका चेहरा धुआँ हो गया था। वह धीरे से बोले… मकबूल बट की बीवी ने एक
वसीयत तैयार करने की पेशकश अपने वकील से की थी। उसकी वसीयत के बारे मे मकबूल को पता
चल गया था। उसने मुझ पर दबाव डाला था कि वसीयत बनने से पहले उसकी बीवी को ठिकाने नहीं
लगाया तो वह पैसों की अगली किस्त नहीं देगा। इतना बोल कर हाजी साहब चुप हो गये थे।
मै हैरानी से बाप-बेटे को देख रहा था परन्तु मेरा दिमाग और जिस्म को लकवा मार गया था।
अब्दुल्लाह ने अब सारी बात बताने की ठान ली थी। वह बोला… समीर कसम खुदा की मै इस चक्कर
मे हर्गिज नहीं पड़ना चाहता था। अब्बा ने जब मुझसे इस बारे मे बात की तो मैने उन्हें
भी मना कर दिया था। मैने कुछ सोच कर कहा… एक बात मेरी समझ से बाहर है कि वह सभी लोग
तुमसे ही क्यों यह काम करवाना चाहते थे? …क्योंकि मै आईएसआई और हिज्बुल के जाकिर मूसा
के लिए बिचौलिये का काम करता था। आईएसआई के कहने पर ही मैने जाकिर मूसा के द्वारा शफीकुर
लोन और रज्जाक की भी हत्या करवायी थी। अब्दुल्लाह की कहानी सुन कर अब मेरा दिमाग उलझता
चला जा रहा था। अलगाववादियों की राजनीति मेरी समझ से बाहर थी।
मकबूल बट के निशाने
पर अम्मी और जमात के निशाने पर आलिया और शाहीन के बारे मे सोच ही रहा था कि अचानक अब्दुल्लाह
ने कहा… लेकिन समीर मेरा खुदा गवाह है कि इस काम के लिये मैने सभी से मना कर दिया था।
इस बार बोलते हुए मेरी आवाज लड़खड़ा गयी थी… तो फिर तुमने ऐसा क्यों किया? एक पल के लिये
अब्दुल्लाह चुप हो गया था। इस बार वह सिर झुका कर बोला… आईएसआई के दबाव के कारण मुझे
ऐसा करना पड़ा था। मैने चौंकते हुए पूछा… भला आईएसआई का हमारे घरेलू मामले मे पड़ने की
क्या जरुरत है। तुम किसको बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हो? …कारण मै नहीं जानता परन्तु
यही सच है। आईएसआई की महिला हैंडलर ने मीरवायज के द्वारा मुझे असला बारुद मुहैया करवाया
था। जामिया मस्जिद की असफलता के बाद वह मेरी जान की दुश्मन बन गयी थी। इसी कारण उसने
जाकिर मूसा की पेमेन्ट को भी रोक दिया था। सीमा पार आईएसआई और इधर हिज्बुल मेरी जान
के पीछे पड़ गये थे। मेरे लिये सभी रास्ते बन्द हो गये थे तो अपनी जान बचाने के लिये
भागता फिर रहा था। लेकिन कब तक भागता, आखिरकार एक दिन कुपवाड़ा मे उस महिला ने मुझे
पकड़ लिया था। उसने मेरे सामने एक नया प्रस्ताव रखा कि अगर मै जमात की मदद करुँगा तो
आईएसआई अपना पुराना हिसाब साफ कर देगी अन्यथा वह मुझे पीरजादा मीरवायज के हवाले कर
देगी।
मैने उसकी बात को
समझ कर कहा… यह तो मै समझ गया कि इस दबाव मे तुम यह काम करने के लिये तैयार हो गये
थे परन्तु जाकिर मूसा के रहते जमील अहमद ही क्यों? …जब मैने उसे अपनी और जाकिर मूसा
के बीच हुई नाराजगी के बारे मे बताया तो उसी ने मुझे जमील अहमद से संपर्क कराया जिसने
बुरहान के साथ दस लाख मे यह सौदा तय कराया था। मैने उसे बीच मे रोक कर पूछा… तुम उस
हैंडलर को जानते हो? …हाँ। …उसका क्या नाम है? …हया। यह नाम सुन कर एकाएक मै चौंक गया
था। …वह तुम्हें पहली बार कहाँ मिली थी? …मीरवायज की हवेली मे जकीउर लखवी और मंसूर
बाजवा के साथ आयी थी। …हया अब कहाँ है? …पता नहीं। वह वापिस पाकिस्तान चली गयी होगी।
…क्या उस हमले के बाद फिर हया से तुम्हारी बात हुई थी। …एक बार हुई थी। …तुम्हारा फोन
कहाँ है? उसने जेब से फोन निकाल कर दिखाते हुए कहा… तुम्हें मेरे फोन से क्या करना
है। …बस तुम्हारा काल रिकार्ड चेक करना है। अब्दुल्लाह फोन देने से एक पल के लिये झिझका
फिर लाक हटा कर उसने फोन मेरी ओर बढ़ा दिया था। मैने जल्दी से काल रिकार्ड निकाल कर
करीना का नम्बर सर्च मे डाल दिया। अगले ही पल स्क्रीन पर उसका नम्बर उभरा और कुल मिला
कर उसकी ओर से चार काल आयी थी। एक काल हमले वाले दिन शाम को आयी थी। मैने फोन की स्क्रीन
अब्दुल्लाह के सामने रखते हुए कहा… यही हया का नम्बर है। अब्दुल्लाह ने नम्बर देखा
और फिर मेरी ओर फटी आँखों से देखते हुए पूछा… इस नम्बर का तुम्हें कैसे पता चला? अब
मुझे समझ मे आ गया था कि हया का फोन इतने दिनो से क्यों नहीं मिल रहा था। उसने सीमा
पार करते ही सिम कार्ड निकाल कर नष्ट कर दिया गया होगा।
कुछ सोच कर मैने शाहीन
से पूछा… तुम्हारी कोई छोटी बहन है? शाहीन ने चौंकते हुए कहा… नहीं। तुम यह क्यों पूछ
रहे हो? …ऐसे ही पूछा था। जिस दिन हमारे यहाँ फिदायीन हमला हुआ था उसके बाद तुम कहीं
बाहर गयी थी? …मै तो यहीं पर थी। …तुम्हारा फोन? …अबदुल्लाह भाईजान ने मेरा फोन ले
लिया था। मैने एक बार फिर से अबदुल्लाह की ओर रुख किया… जमात के निशाने पर आलिया और
शाहीन थी तो यह कैसे बच गयी? पहली बार बोलते हुए अबदुल्लाह की नजरें झुक गयी थी। …तुम्हारे
घर पर फिदायीन हमला करवाने के पश्चात उसने शाहीन की जान बक्श दी थी परन्तु उसकी एक
शर्त थी कि मै शाहीन का फोन उसे लाकर दूँगा। …आखिर क्यों? …मुझे पता नहीं। बस उसने
इतना ही कहा था कि इज्तमा से पहले शाहीन घर से बाहर नहीं निकलनी चाहिये। अगर वह घर
से बाहर निकली तो फिर वह मारी जाएगी। यही मैने शाहीन को भी समझा दिया था। शाहीन ने
जल्दी से हामी भरते हुए अपना सिर हिला दिया था। अब तक कुछ-कुछ फिदायीन हमले की कहानी
मुझे समझ मे आ गयी थी। मैने उठते हुए हाजी मोहम्मद से कहा… हाजी साहब, इसने अपना जुर्म
कुबूल कर लिया है। इसे मुझे अपने साथ लेकर जाना पड़ेगा। कोई भी बोलने की स्थिति मे नहीं
था। अब्दुल्लाह नासिर को अपने साथ लेकर कुछ देर के बाद मै अपने आफिस की ओर जा रहा था।
अब्दुल्लाह को डिटेन्शन
रुम मे बन्द करके मै ब्रिगेडियर चीमा के पास चला गया था। मुझे देखते ही ब्रिगेडियर
चीमा बोले… तुमने बारामुल्ला मे तो हंगामा मचा दिया। एसपी शेख बुरा मान रहे थे कि उनकी
इजाजत के बगैर स्पेशल फोर्सेज के लोगों ने थाने पर कब्जा करके शरीफ लोगों को परेशान
किया है। मैने उनकी बात को अनसुना करके कहा… आप अब शेख साहब के लिये निर्देश जारी कर
दिजीए कि उन तीस बच्चों और बच्चियों पर नजर रखने की जिम्मेदारी थाना प्रभारी की होगी।
अगर इसमे कोई ढिलाई हुई तो एसपी साहब की जवाबदेही होगी। …मेजर, उनके साथ मीटिंग कैसी
रही? …सर, मैने अपनी तरफ से कोशिश तो पूरी की है। आगे समय बताएगा कि यह मीटिंग कितनी
कारगर साबित हुई है। हाँ इतना जरुर कह सकता हूँ कि एक जिला कवर होने से स्टैन्डर्ड
प्रोटोकोल के मुख्य हिस्से तैयार हो गये है। …गुड। क्या यह हंगामा दूसरे जिलों मे करना
उचित होगा? इससे स्थानीय प्रशासन बेहद नाराज हो जाएगा की सेना हमारे काम मे दखल दे
रही है। …सर, इनकी गैर जिम्मेदारी के कारण ही बात इतनी बिगड़ गयी है। स्थानीय पुलिस
वाले ही हमारे सामने उनको हमारे खिलाफ भड़का रहे थे जब तक उन्हें पता नहीं चला कि मै
भी कश्मीरी हूँ। वह पुलिस के साथ कभी पत्थरबाजी नहीं करते क्योंकि सारे पुलिसवालें
उनके समाज मे से आते है। सर, कल कुछ बच्चियों से बात करके पता चला कि उन पर दबाव डाला
जाता है कि वह उस भीड़ मे शामिल होकर सामने खड़ी हो जाएँ। अगर कोई लड़की मना करती है तो
उसका घर से बाहर निकलना मुश्किल कर देते है। क्या हम ऐसे बच्चों के लिये एक हेल्पलाईन
चालू कर सकते है? ब्रिगेडियर चीमा कुछ सोचने के बाद बोले… क्यों नहीं। कम से कम इस
बहाने कुछ बच्चे तो हमारे संपर्क मे आ जाएँगें।
कुछ देर पत्थरबाजी
पर चर्चा करने के पश्चात मैने कहा… सर, अब्दुल्ला नासिर को आज मैने जामिया मस्जिद मे
असला बारुद रखने के लिये डिटेन्शन रुम मे बन्द कर दिया है। अब आप पूछताछ करना चाहे
तो कर सकते है। सर, उसके अनुसार वह सारा असला बारुद हमारे हेडक्वार्टर्स पर फिदायीन
हमले के लिये था। इस आप्रेशन का संचालन हिज्बुल
का कमांडर जाकिर मूसा कर रहा था। ब्रिगेडियर चीमा उठ कर खड़े होकर बोले… इस आदमी से
तो बहुत सारे लोग बात करना चाहेंगें। चलो, एक बार इससे मिल कर देखते है कि यह कितने
पानी मे है। हम दोनो डिटेन्शन सेन्टर की ओर चल दिये थे। अब्दुल्लाह नासिर से कुछ देर
बात करने के बाद ब्रिगेडियर चीमा ने उसे अपनी टीम के हवाले कर दिया और बाहर निकल कर
बोले… यह आसानी से टूट जाएगा। इसे जल्दी छोड़ देंगें। इसी बहाने हमारा एक आदमी तो उस
संयुक्त मोर्चे मे शामिल हो जाएगा। शाम को जब मै अपने घर पहुँचा तो हाजी साहब का पूरा
परिवार मेरे घर पर बैठा हुआ था।
…अब्दुल्लाह कहाँ
है? …फौज अभी पूछताछ कर रही है। शाहीन और उसकी अम्मी अपने बेटे से मिलने की गुहार लगाने
लगी तो मैने कहा… जब तक वह हमारे पास है तब तक वह सुरक्षित है। अगर वह हमारी मदद करेगा
तो मै वादा कर रहा हूँ कि हम उसे जल्दी छोड़ देंगें। हाजी साहब कुछ देर के बाद बोले…
समीर, आईएसआई का मंसूर बाजवा अपने पूरे लश्कर के साथ काठमांडू मे आया हुआ था। उसे फारुख
मीरवायज वहाँ लाया था। उसी ने हम सभी के आने-जाने और रहने का सारा खर्चा भी उठाया था।
मै यह सब इसलिये बता रहा हूँ कि यहाँ पर संयुक्त मोर्चा बनना लगभग तय हो गया है। अब्दुल्लाह
को अगर छोड़ दोगे तो वह आगे चल कर तुम्हारे काफी काम आ सकता है। तभी शाहीन ने कहा… समीर,
मै आपसे कुछ बात करना चाहती हूँ और यह बोल कर वह मेरे कमरे मे चली गयी थी। मै उसके
पीछे चला गया था। …समीर, क्या तुम भाईजान को छोड़ दोगे? …शाहीन, मेरा बस चलता तो शायद
कभी नहीं लेकिन तुम्हारे अब्बा सही कह रहे है। अगर वह काम करने को राजी हो गया तो उस
पर लगाये हुए सारे इल्जाम वापिस ले लिये जाएँगें। मैने शाहीन की आँखों मे झाँका तो
उसकी आँखों मे मेरे प्रति रोष भरा हुआ था। …तुम भले ही उन्हें छोड़ दो लेकिन आलिया की
मौत का बदला मै लेकर रहूँगी। इतना बोल कर वह मुड़ कर जाने लगी तो मैने उसे लपक पर कमर
से पकड़ कर अपनी बाँहों मे जकड़ लिया था। …क्या तुम मेरे बारे मे ऐसा सोचती हो? अभी कुछ
नहीं करेंगें शाहीन। अब्दुल्लाह की मदद से हया को पहले पकड़ना है फिर मै और तुम मिल
कर आलिया और अम्मी का हिसाब आराम से चुकायेंगे। मैने उसके होंठ को चूम कर छोड़ दिया
था। वह जल्दी से कमरे से बाहर निकल गयी थी। वह कुछ देर बैठ कर वापिस चले गये थे।
अगली सुबह मै अपनी
टीम को लेकर पूँछ चला गया था। इस बार सबसे पहले मै जिले के एसपी से मिला था। उसके सामने
अपना उद्देश्य साफ करके सभी चिन्हित बच्चों और बच्चियों को वहीं बुलवा लिया था। एक
बार फिर वही वातावरण बना कर मैने अपनी बात सबके सामने रख दी थी। एसपी साहब भी सेना
के इस प्रयत्न से काफी प्रभावित दिख रहे थे। शाम से पहले ही हम वापिस श्रीनगर आ गये
थे। मुझे घर पर छोड़ कर मेरी टीम कोम्पलेक्स की ओर चली गयी थी। अम्मी के वकील फैयाज
खान लान मे बैठ कर मेरा इंतजार कर रहे थे। मै लोहे का गेट खोल कर उनके सामने लान मे
बैठ गया। रहमत को आवाज देकर मैने चाय लाने के लिये बोल कर पूछा… अंकल कैसे आना हुआ?
फैयाज खान ने बताया…
समीर, तुम्हारे अब्बा ने एक नया नोटिस अपने वकील के हाथ मेरे पास भिजवाया है। …कोई
बात नहीं। आप उसका जवाब दे दिजीए। …बेटा उन्होंने पूरी वसीयत पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया
है। उनका कहना है कि तुम्हारा बट परिवार से कोई संबन्ध नहीं है। तुम काफ़िर हो जिसको
उनकी पत्नी शमा बट ने पाला था। उसी लड़के ने शमा बट को गुमराह करके सारी जायदाद अपने
नाम करा ली है। मैने फैयाज खान की ओर देख कर कहा… तो क्या उस आदमी के कहने से मै काफ़िर
हो जाऊँगा। …ऐसी बात नहीं है। …अंकल, कानूनी रुप से मुझे अगर साबित करना है कि मै मकबूल
बट की औलाद हूँ तो उसके लिये क्या सुबूत चाहिए? …जन्म प्रमाण पत्र, स्कूल सर्टिफिकेट,
पास्पोर्ट, इत्यादि। …यह सभी चीजें मेरे पास है। …मुझे सभी की एक-एक कापी चाहिये।
…अंकल, आप मेरे आफिस को क्यों नहीं लिखते कि मेरा असली परिचय क्या है। सरकारी दस्तावेज
मे मेरे पिता और माता का नाम है। क्या वह काफी नहीं है? फैयाज खान कुर्सी से उठते हुए
बोले… समीर, मेरा फर्ज था कि मै तुम्हें सारी बात से अवगत करा दूँ सो मैने बता दिया
है। वैसे मै जानता हूँ कि इसमें कोई तथ्य नहीं है लेकिन समाज मे तो शक जरुर डाल देगा।
…अंकल, पहले उनसे कहिये कि उनके पास कोई ऐसा सुबूत है जो मुझे काफ़िर साबित करें और
उसके बाद वसीयत पर प्रश्नचिन्ह लगायें। इतना बोल कर मै उठ कर खड़ा हो गया। मुझे देख
कर वकील साहब भी उठ कर खड़े हो कर बोले… अच्छा समीर मै चलता हूँ। खुदा हाफिज।
वकील साहब के जाने
के बाद लान मे बैठ कर मै सोच रहा था कि अगर मकबूल बट अब खुल कर सामने आ गया है तो एक
बार उससे मिलना जरुरी हो गया था। वह मुझे अब यहाँ के मुस्लिम समाज मे काफ़िर के रुप
मे बदनाम करना चाहता है। कानूनी रुप से मै जानता था कि वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता
था परन्तु अगर काफ़िर शब्द मेरे नाम के साथ जुड़ गया तो यहाँ पर मेरे बहुत से समीकरण
गड़बड़ा जाने का खतरा था। इसी विषय के बारे मे सोचते हुए न जाने कब अपने सपनों की दुनिया
मे खो गया था। सुबह तैयार होकर अपने आफिस जा रहा था कि तभी कुछ सोच कर मकबूल बट के
मकान की ओर जीप मोड़ दी थी। इतना तो मै पहले ही पता कर चुका था कि मकबूल बट ने अपना
नया आलीशान मकान कहाँ बनाया था। श्रीनगर की एक उच्चवर्गीय वीआईपी कोलोनी मे उसने दो मंजिला बड़ा आलीशान मकान बनवाया
था। जमात-ए-इस्लामी का शीर्ष नेता होने के कारण उसके घर पर जम्मू-कश्मीर पुलिस का चौबीस
घंटे पहरा लगा रहता था। मकबूल बट के घर पहली बार जा रहा था। उसके आलीशान मकान के सामने
पहुँच कर जीप को सड़क से उतार कर एक किनारे पर खड़ी करके मै बड़े से लोहे के गेट की ओर
चल दिया। चार पुलिस गार्ड्स उस गेट पर तैनात थे।
अपने आफिस के लिये निकला था तो मै अपनी वर्दी
मे था। मैने अपनी ट्रेड मार्का मैरुन कैप सिर पर सजाई हुई थी। मुझे गेट की ओर बढ़ते
हुए देख कर एक पुलिस गार्ड मुझे रोक कर बोला… आपको किससे मिलना है? मैने अपने सीने
पर लगी हुई नेमप्लेट दिखाते हुए कहा… मेरा नाम समीर बट है। मकबूल बट मेरे अब्बा है।
एक पल के लिए सभी खड़े हुए पुलिस वाले मेरी ओर आ गये थे। वह आदमी शर्मिन्दा होकर बोला…
माफ कीजिए साहब। मैने पहले कभी आपको देखा नहीं है इसीलिए गलती
हो गयी। …कोई बात नहीं। अपनी तसल्ली के लिए अन्दर खबर कर दीजिए कि
मेजर समीर बट आयें है। सबकी नजर मुझ पर टिकी हुई थी। तभी हवालदार जल्दी से बोला… आप
अन्दर चले जाईए मेजर साहब। यह कहते हुए उसने लोहे का गेट खोल दिया था। मै चुपचाप आगे
बढ़ गया। लंबे से गलियारे को पार करके मै घर के मुख्य द्वार पर पहुँचा ही था कि तभी
लकड़ी का दरवाजा खुला और मिरियम बाहर निकल आयी थी। मुझे देख कर मुस्कुरा कर बोली… सुन
कर विश्वास नहीं हुआ इसलिए बाहर चली आयी। मैने नोट किया कि आज भी वह बेपर्दा और फेयरन
मे थी। मुझे देख कर उसका गुलाबी चेहरा खिल उठा था। उसके चेहरे पर आये हुए भावों को
देख कर एक पल के लिये मै चौंक गया था।
एक गहरी नजर उस पर डाल कर मैने ठहरी हुई आवाज
मे धीरे से कहा… मुझे अब्बा से मिलना है। वह बड़े अदब से बोली… वह तो घर पर नहीं है।
आप अन्दर आईए। उसका अल्हड़पन और उत्साह देख कर मैने झिझकते हुए कहा… मिरियम, अभी तक
तुम्हें मैने सिर्फ बुर्के मे देखा था। आज तुमको इस रुप मे देख
कर मुझे अब्बा से इर्ष्या हो रही है। मेरी बात सुन कर उसकी बड़ी-बड़ी आँखे शर्म से झुक
गयी थी। मै कुछ पल उसे देखता रहा और फिर मुस्कुरा कर पूछा… अब्बा कब तक आएँगे? वह झिझकते
हुए बोली… आप पहली बार आयें है। अन्दर आईए न। …नहीं फिर कभी। अब्बा कब आएँगें। …पता
नहीं वह शहर से बाहर गये हुए है। …मिरियम बुरा मत मानना। मै फौजी हूँ इसीलिए साफ बोलता
हूँ। मुझे अपने अब्बा पर गुस्सा आ रहा है कि वह इतनी खूबसूरत लड़की को घर मे अकेला छोड़
कर बाहर घूम रहे है। खैर उन्हें बता देना कि मै आया था। अच्छा चलता हूँ खुदा हाफिज़।
यह कह कर मै वापिस जाने के लिए मुड़ा तो वह जल्दी से बोली… हमारे साथ एक चाय पीकर चले
जाईएगा। …नहीं इस घर मे तो कभी नहीं। इसका कारण तुम भी जानती हो। हाँ चाय ही पीनी है
तो मेरे साथ चलो। तुम्हारे घर के पास एक रेस्त्राँ है। वहाँ चाय पिला देना। मेरी बात
सुन कर वह असमंजस मे पड़ गयी थी। मैने उसकी झिझक देखी तो जल्दी से कहा… कोई बात नहीं।
मै चलता हूँ। यह कह कर उसे वहीं खड़ा छोड़ कर मै वापिस गेट की ओर चल दिया। मै कुछ कदम
ही चला था कि वह तेजी से मेरे पास आकर बोली… रुक जाइए मै कपड़े बदल कर आती हूँ। …रहने
दो। मुझे तुम इन कपड़ों मे बेहद सुन्दर दिख रही हो। ऐसे ही चलो। …पर्स तो ले लूँ। मैने
एक बार फिर से कहा… रहने दो। आज चाय मै पिला देता हूँ अगली बार तुम पिला देना। यह कह
कर मै चल दिया। वह एक पल के लिए झिझकी फिर कुछ सोच कर मेरे साथ
चल दी थी।
गेट पर पुलिस वाले उसको देखते ही सावधान की
मुद्रा मे खड़े हो गये थे। …मै अभी आ रही हूँ। घर खुला है ख्याल रखना। यह बोल कर वह
मेरे साथ चल दी थी। मै सबको अनदेखा करके सड़क के मोड़ पर बने हुए छोटे से रेस्त्रां की
ओर चल दिया था। वह सिर झुकाए मेरे साथ चल रही थी। …क्या नीलोफर घर मे नहीं है? मेरा
प्रश्न सुन कर उसने जल्दी से सिर हिलाकर मना करते हुए कहा… बाजी हमारे साथ नहीं रहती।
उसके साथ तो आपके अब्बा के कारोबारी ताल्लुकात है। जब वह यहाँ होते है तब भी नीलोफर
बाजी यहाँ नहीं आती है। रेस्त्रां ने बाहर खुले मे कुछ मेज कुर्सियाँ लगा रखी थी। धूप
खिल रही थी तो हम बाहर बैठ गये थे। वह मेरे साथ आ तो गयी थी परन्तु अब घबरायी हुई लग
रही थी। बार-बार वह इधर-उधर देख कर निगाहें झुका कर बैठी हुई थी। …क्या डर लग रहा है?
उसने जल्दी से सिर हिला कर मना किया तो मैने तुरन्त पूछा… मिरियम घर मे अकेली रह कर
बोर नहीं हो जाती? अबकी बार उसने निगाहें उठा कर मेरी ओर देख कर कहा… मै घर मे कैद
हो कर रह गयी हूँ। तभी वेटर आ कर हमारे पास खड़ा हो गया। मैने उसे चाय लाने के लिए कह
कर एक बार फिर से मिरियम की ओर देखा तो वह मुझे देख रही थी। हमारी निगाहें टकराते ही
वह मुस्कुरायी तो मैने मुस्कुरा कर कहा… अगर तुम रिश्ते मे मेरी अम्मी नहीं लगती तो
अभी तुम्हें अपने साथ जबरदस्ती बाहर घुमाने ले जाता। वह शर्मा कर एक बार फिर से निगाहें
झुका कर बैठ गयी थी।
…कभी तुम्हारा बाहर घूमने का मन नहीं करता?
वह चुप रही तो मैने कहा… आलिया और तुम्हारी उम्र मे कोई ज्यादा फर्क नहीं है। वह एक
जगह टिक कर बैठ नहीं सकती थी। आफिस से लौटते ही वह मेरा जीना दूभर कर देती थी। वह बहन
कम और मेरी दोस्त ज्यादा थी। …आप उससे बहुत मोहब्बत करते थे? आलिया का जिक्र करते ही
मेरा मन दुखी हो गया था। मैने हामी भरते हुए कहा… मेरी सबसे अच्छी दोस्त चली गयी। मै
एक बार फिर से चुप हो गया था। चुप्पी के कुछ पल बीत जाने के बाद उसने निगाहें उठा कर
मेरी ओर देखा तो उसकी बड़ी-बड़ी आँखें झिलमिला रही थी। मैने उसका मेज पर रखा हुआ हाथ
अपने हाथ मे लेकर कहा… क्या हुआ मिरियम? …कुछ नहीं। …घर की याद आ रही है क्या? यह सुनते
ही उसकी आँखें छलक गयी थी। उसके कोमल हाथ को धीरे से सहलाते हुए मैने कहा… मै तुम्हारी
परेशानी समझ सकता हूँ। अब्बा को हमने भी बहुत कम घर मे देखा है। हम सभी भाई-बहनों के
साथ तो वह बड़े बेरुखे ढंग से पेश आते थे परन्तु तुम पर तो वह जान लुटाते होंगें। तभी
वेटर हमारे सामने चाय रख कर वापिस चला गया था।
मैने चाय पीते हुए पूछा… तुम्हारा नाम मिरियम
लखवी है? उसने जल्दी से कहा… यह आपसे किसने कहा। हम मीरवायज है? …ओह सौरी, पता नहीं
ऐसी गलती मुझसे कैसे हो गयी। उसके व्यवहार से अब तक साफ हो गया था कि वह भी एकाकीपन
से बुरी तरह त्रस्त है। …मिरियम अगर कभी अकेलेपन से बोर हो रही होगी तो बेहिचक मुझसे
बात कर सकती हो। आलिया और अम्मी के जाने बाद एक प्रकार से अब मै भी अकेला हो गया हूँ।
कम से कम हम एक दूसरे से बात करके दिल तो बहला सकते है। वह कुछ नहीं बोली बस उसने सिर
हिला दिया था। मैने जेब से एक कागज निकाला और उस पर अपना फोन नम्बर लिख कर उसकी ओर
बढ़ाते हुए कहा… यह अपने पास रख लो। जब भी तुम्हारा मन करे तो मुझसे बात कर लेना। अब
वापिस चलें? यह सुन कर वह उठ कर खड़ी हो गयी। मैने उठते हुए मुस्कुरा कर कहा… लगता है
कि मै तुम्हें पसन्द नहीं आया। मैने तो सिर्फ इसलिए पूछा था कि तुम मुझसे कुछ देर और
रुकने के लिए कहती लेकिन कोई बात नहीं। चलो चलते है। यह कह कर मै पैसे देने के लिए
जैसे ही आगे बढ़ा तो उसने मेरा हाथ थाम कर रोकते हुए कहा… कुछ देर के लिए और रुक जाईए।
मैने हँसते हुए कहा… तुम इतने प्यार से कहोगी तो मै तुम्हें छोड़ कर कभी वापिस नहीं
जा सकूँगा। उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था। अबकी बार मैने मुस्कुरा कर कहा… आलिया
का चेहरा भी मेरी बात सुन कर लाल हो जाता था। बस एक फर्क है कि तुम्हारे चेहरे पर शर्म
की लालिमा है उसका चेहरा गुस्से से लाल हो जाता था। इतना बोल कर उसे वहीं छोड़ कर मै
पैसे देने के लिए चला गया था।
…आओ चलते है लेकिन भूलना नहीं कि अगली बार
चाय तुम पिलाओगी। उसने मुस्कुरा कर कहा… वादा। हम वापिस घर की ओर चल दिये। अब तक हमारे
बीच झिझक की दीवार ढह चुकी थी और मेरी बात पर मिरियम कभी-कभी खिलखिला कर हँस देती थी।
कुछ दूर चलने के बाद मैने कहा… मिरियम आज मै बहुत खुश हूँ। …क्यों? …इसलिए तुमने अगली
बार मिलने का जो वादा किया है। अचानक उसने चलते-चलते बड़ी बेतकलुप्फी से मेरे कंधे पर
मुक्का मारते हुए हँसते हुए कहा… समीर तुम बहुत बदमाश हो। …ठहरो अभी, तुमने मेरी बदमाशी
देखी कहाँ है। चलते-चलते मैने एक नजर सड़क पर नजर घुमा कर धीरे से उसके थिरकते हुए नितंब
को धीरे से सहला दिया तो वह बिदक कर आगे बढ़ कर रुक गयी थी। मै चुपचाप चलते हुए उसके
नजदीक पहुँचा तो वह आँखे तरेर कर बोली… यह क्या हरकत थी। …बहुत देर से तुम्हें छू कर
देखना चाहता था। इसलिये मै अपने आप को रोक नहीं सका। हम दोनो चुपचाप मकबूल बट के घर
की ओर चल दिये थे। यह हमारी पहली मुलाकात थी। हमारे बीच मे बस इतनी बात हुई थी। मैने
उसे गेट पर छोड़ते हुए कहा… मिरियम, अब्बा को बता देना कि मै आया था। बस इतना कह कर
मै अपनी जीप की ओर बढ़ गया और वह घर के अन्दर चली गयी थी।
कुछ देर के बाद मै अपने आफिस मे बैठ कर मकबूल
बट के घर मे सेंधमारी करने की योजना बना रहा था। आज की मुलाकात से मेरे लिये बहुत सी
बातें साफ हो गयी थी। पहले मैने सोच रहा था कि मिरियम का संबन्ध लखवी परिवार से है
परन्तु जब उसने मीरवायज कहा तो एक पल के लिये मै चौंक गया था। पाकिस्तान की दो सबसे
बड़ी कश्मीरी तंजीमों के साथ मकबूल बट अपने रिश्ते मजबूत कर लिये थे। मुजफराबाद मे मेरी
आँखों के सामने जकीउर लखवी के मजमे मे उसने शिरकत की थी। दूसरी ओर, मीरवायज परिवार
के साथ उसने अपना रिश्ता जोड़ लिया था। यह क्या चक्कर है? मुझे यकीन होने लगा था कि
मकबूल बट इस शतरंज की बिसात पर कोई प्यादा नहीं अपितु एक प्रमुख किरदार था। आईएसआई
की पहल पर संयुक्त मोर्चा बन रहा था। फारुख मीरवायज पैसों से मोर्चे की मदद कर रहा
था। इस सब मे नीलोफर लोन की भुमिका अभी भी एक पहेली बनी हुई थी। मिरियम ने बताया था
कि मकबूल बट के उसके साथ कारोबारी संबन्ध है। मै जानता था कि मकबूल बट का सियासत के
अलावा कोई और कारोबार नहीं था तो यह कैसा संबन्ध था? काफी देर तक मगजपच्ची करने के
बाद भी जब कोई हल निकलता हुआ नहीं दिखा तो मै अपने आफिस के बाहर टहलने निकल गया था।
रात को मै जैसे ही बिस्तर पर लेटा कि मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। मैने जल्दी से नम्बर देखा तो वह एक नया नम्बर था। मैने हया के बारे मे सोचते हुए फोन उठाया था। …हैलो। दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला परन्तु किसी की तेज साँसे मुझे सुनायी दे रही थी। …हैलो। जब दूसरी ओर से कोई जवाब नहीं मिला तो मैने यह कह कर फोन काट दिया… जब बात करनी हो तभी फोन करना। यह सोने का समय है और मुझे आराम करने दो। फोन काटने के पश्चात मै मिरियम के बारे मे सोचने के लिये मजबूर हो गया था। वह मेरे लिये केवल एक साधन थी परन्तु उसके अल्हड़पन और सादगी ने अनायस ही मुझे उलझा कर रख दिया था। उसकी भावनाओं के साथ खेलने के लिये मेरी आत्मा निरन्तर मुझे रोक रही थी। सोने से पहले आखिरकार मन ही मन मैने निश्चय किया कि इस काम के लिये मिरियम का इस्तेमाल मै हर्गिज नहीं कर सकता।
आज के अंक में बहुत कुछ था,अम्मी और आलिया के कत्ल के मुख साजिश कर्ता का पता चल गया,मकबूल भट के मकान में घुस पैठ वी हो गई,एक्शन मोड़ में भी आए, जबर दस्त अंक था वीर भाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया हरमन भाई। मुख्य साजिशकर्ता के पता चलने से क्या अलगावादी सोच पर अंकुश लग सकता है। एक चला जाएगा तो उसकी जगह दूसरा ले लेगा। हो सकता है कि वह पहले से भी ज्यादा उत्पात मचाने की हैसियत रखता हो।
हटाएंबहुत बढ़िया अंक मगर शाहीन के छोटी बहन के भेस में समीर से मिलने आई लड़की अब समीर के लिए खतरा बन चुकी है हो न हो उसको शाहीन और समीर के बीच खुफिया जानकारी प्रदान की संदेह हो चुकी है जो आगे जाके दोनो को खतरे में डालेगा और आलिया ऐसा कौनसा गले का कांटा बन गई थी जिसको खुद पाकिस्तान के खुफिया विभाग ने ऊपर पहुंचाने के ले प्लान बनाना पड़ा । और अभी पता चल चुका है वो विषकन्या हया ही है? है ना?🥴
जवाब देंहटाएंविषकन्या की पहेली तो एविड भाई आपको सुलझानी है। हमे यह भी नहीं भूलना चाहिये कि उन दो लड़कियों के कारण स्कूल गर्ल्स सेक्स स्कैन्डल दुनिया के सामने आया था। उनके कारण जमात को आर्थिक चोट लगी थी और उनकी कठपुतली राज्य सरकार चली गयी थी।आपका धन्यवाद भाई लेकिन विषकन्या अभी भी एक रहस्य है जिसके बारे मे अभी सोचना बन्द मत करना।
हटाएंअब यह वाकई जटिल स्थिति हो चुकी है अगर हया वो विषकन्या नही है, क्यों की वो ऐसी पात्र है जो हर बार को पलटने की मादा रखती है और हो न हो ये कोई समीर की कोई अपनी है जो समीर को गभीर आघात दे सकती है।
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