काफ़िर-32
मेरी आँखे अपने मानीटर स्क्रीन पर टिकी हुई
थी परन्तु मेरा दिमाग मिरियम की ओर लगा हुआ था। अचानक मेरे मोबाइल फोन की घंटी बज उठी थी।
…हैलो। दूसरी तरफ कुछ देर खामोशी छाई रही लेकिन वही तेज चलती हुई सांसे मुझे सुनाई
दे रही थी। कुछ पल के बाद एक पतली सी दबी हुई आवाज मेरे कान मे पड़ी… हैलो। …बोलो मिरियम
मै सुन रहा हूँ। दूसरी ओर फिर कुछ पल चुप्पी छाई रही तो मैने कहा… जब तुम्हें बात नहीं
करनी थी तो फोन क्यों किया। अबकी बार उसने धीरे से कहा… तुम क्या कर रहे हो? …आफिस
मे बैठा हुआ बस तुम्हें याद कर रहा था। …मुझे मत बनाओ। …तुम मेरी बात पर कैसे विश्वास
करोगी? …मै बाजार जा रही हूँ क्या तुम मुझे वहाँ मिल सकते है। …बिल्कुल। तुम कब और
कहाँ मिलोगी। …मुझे पता नहीं। घर के पास की मार्किट से कुछ सामान खरीदना है। …तुम्हारे
साथ कौन होगा? …ड्राईवर। …उसे कार मे बैठने के लिए कह कर तुम मार्किट मे अकेली आ जाना।
तुम्हारी सारी खरीदारी मै करवा दूँगा। कितने बजे निकलोगी। …ग्यारह बजे तक निकलूँगी।
…ठीक है। मै तुम्हें वहीं मिलुँगा। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया और कपड़े बदलने
के लिए अपने घर की ओर चल दिया।
मै ग्यारह बजे तक सोनवर मार्किट पहुँच गया
था। अपनी जीप एक किनारे मे खड़ी करके मै पेड़ की आढ़ लेकर उसका इंतजार करने लगा। साड़े
ग्यारह के करीब वह अपनी कार से उतर कर मार्किट मे चली गयी थी। मैने कुछ देर उसकी कार
पर नजर रखी लेकिन जब ड्राईवर कार से नहीं उतरा तो मै मार्किट मे चला गया। वह एक दुकान
के सामने घबरायी हुई सी खड़ी थी। वह बुर्के मे थी लेकिन उसका चेहरा बेपर्दा था। मै दबे
पाँव उसके पास जाकर पीछे से धीरे से सट कर कन्धा दबाते हुए बोला… मिरियम, तुम इतनी
ढकी हुई होगी तो तुम्हें कैसे पहचानूगाँ? मेरी आवाज सुनते ही उसके मुख से दबी हुई चीख
निकल गयी थी। उसने तुरन्त शर्मा कर अपने मुख पर हाथ रख लिया। उसकी निगाहों मे डर के
साथ ही एक खुशी भी झलक रही थी। …कहाँ रह गये थे? पीछे से निकल कर साथ खड़े होते हुए
मैने दबी आवाज मे कहा… तुम पहले अपनी खरीदारी कर लो। घर के सामान की खरीदारी करवाने
के बाद मैने कहा… यह सारा सामान ड्राईवर से घर भिजवा दो और उससे कह देना कि तुम कुछ
देर के बाद अपने आप घर आ जाओगी। …नहीं। मैने उसका हाथ पकड़ कर दबाव डालते हुए कहा… मिरियम
जैसा मै कह रहा हूँ चुपचाप वैसा करती चली जाओ। इतना बोल कर मैने दुकानदार से कहा… यह
सारा सामान कार मे रखवा दीजिए। इतना कह कर मिरियम को सामान के
पास छोड़ कर मै अपनी जीप लेने के लिए चला गया था। वह वहीं खड़ी कुछ देर मुझे जाते हुए
देखती रही थी।
जब तक मै वहाँ पहुँचा तब तक मिरियम अकेली सड़क
के किनारे खड़ी हुई थी। उसकी कार जा चुकी थी। मैने जीप उसके सामने रोकते हुए कहा… मिरियम
आ जाओ। वह झपट कर जीप मे बैठ गयी और मैने जीप आगे बढ़ा दी थी। कुछ दूर निकलने के बाद
मैने पूछा… अब बताओ क्या देखना चाहती हो? उसकी डर के मारे साँसे हलक मे अटकी हुई थी।
मैने जीप को सड़क से उतार कर किनारे मे खड़ा किया और उसके हाथों को अपने हाथों मे लेकर
कहा… डर लग रहा है? उसने सिर हिला कर अपनी मनोदशा से अवगत करा दिया था। बड़े अधिकार से
उसके चेहरे को दोनो हाथों मे लेकर उससे निगाह मिलाते हुए कहा… कभी स्कूल मे शैतानी
नहीं की है? उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने उसके गालों को सहला कर कहा… इसे वही शैतानी
समझ लो। मैने तो बहुत बार अब्बा को झाँसा दिया है। स्कूल की कह कर ग्राउंड मे खेलने
चला जाता था। मेरी बात सुन कर उसके गुलाबी होंठ पर एक कातिल मुस्कान तैर गयी थी। मैने
महसूस किया कि उसके लाल गाल शर्म से दहकने लगे थे। उसके गालों को सहलाते हुए मैने पूछा…
कहाँ चले? …कहीं भी। लेकिन मुझे जल्दी लौटना है। …शिकारे पर कभी बैठी हो? उसने जल्दी
से सिर हिलाकर मना किया तो मैने कहा… चार घंटे लग जाएँगें। …बहुत देर हो जाएगी। फिर
कभी शिकारे पर चलेंगें। …आओ तुम्हें पहाड़ की चोटी पर ले चलता हूँ जहाँ से सारा श्रीनगर
देख सकती हो। वह स्थान को मुझे शबनम ने पहली बार दिखाया था। मैने जीप जैसे ही सड़क पर
वापिस चढ़ाई तो ऊँचा-नीचा होने के कारण जीप ने लहरा कर झटका खाया। उसके झोंक मे मिरियम
डगमगा कर सरकते हुए बाहर गिरने को हुई तो उसको पकड़ने के लिए मैने अपना एक हाथ बढ़ाया
लेकिन झटके के कारण मेरा हाथ उसके सीने पर जाकर लगा। एक दर्दभरी चीख उसके मुख से निकल
गयी और वह निगाहें झुका कर अपना सीना पकड़ बैठ गयी थी।
मैने जीप रोक कर कहा… यह कार नहीं है। तुम बाहर
गिर जाती इसीलिए तुम्हें पकड़ने की कोशिश की थी। सौरी, बहुत तेज लगी है। वह कुछ नहीं
बोली तो मैने उसके हाथ हटाते हुए कहा… दिखाओ कहाँ लगी है। वह तुरन्त बोली… नहीं अब
ठीक है। …चलो मुझे कस कर पकड़ कर बैठ जाओ। एक बार फिर से वैसा ही झटका लगेगा जब इसे
वापिस सड़क पर लेकर जाऊँगा। वह सरक कर मेरे निकट आ गयी और मेरा कुर्ता पकड़ कर बैठ गयी।
मैने झिड़कते हुए कहा… खुद भी गिरोगी और मेरा कुर्ता भी फाड़ दोगी। बड़े अधिकार से मैने
उसका हाथ पकड कर अपनी कमर मे डाल कर अपने से सटा कर अपनी पीठ के पीछे दबा लिया। अब
वह हिलने योग्य नहीं रही थी। उसका उभरा हुआ सीना मेरी बाँह से दब गया था। …मुझे कस
कर पकड़ना। यह कहते हुए एक बार फिर से मैने जीप को सड़क पर चढ़ा दिया। एक बार फिर से जीप
लहरायी लेकिन अब की बार मिरियम हिलने योग्य नहीं रही थी। बस कुछ पल के लिए उसका उभरा
हुआ सीना मेरी बाँह के नीचे आकर पिस गया था। उसके मुख से एक गहरी सिसकारी छूट गयी थी।
पूरे रास्ते वह मेरी बाँह से लिपटी रही और उसका उभरा हुआ सीना मेरी बाँह के नीचे दबा
हुआ लगातार रगड़ खा रहा था। एक ओर हमारी नजदीकियाँ और रास्ते भर लगातार अस्पष्ट इशारे
देकर मैने उसको सोचने पर मजबूर कर दिया था। मेरा सिर्फ एक ही उद्देश्य था कि वह मेरे
साथ कितना आगे जा सकती थी। अभी तक उसने एक बार भी मुझे आगे बढ़ने से रोका नहीं था।
थोड़ी देर मे हम शंकराचार्य मंदिर के परिसर
के बाहर पहुँच गये थे। एक बार मैने वहाँ से श्रीनगर वादी का पूरा नजारा देखा था। जीप
पार्किंग मे लगा कर हम दोनो मंदिर की दीवार के साथ चलते हुए पीछे चट्टानों की ओर पहुँच
गये थे। ठंडी हवा के तेज थपेड़े उसे मेरी ओर धकेल रहे थे जिसके कारण वह पत्थरों के बीच
चलते हुए लड़खड़ा रही थी। उसकी पतली कमर मे हाथ डाल कर मैने उसे अपने से सटा लिया और
उस स्थान पर ले गया जहाँ से सारा श्रीनगर शहर दिखाई दे रहा था। पहली नजर मे ही वह वादी
को देख कर मंत्रमुग्ध हो गयी थी। मेरा हाथ उसकी कमर पर था और वह मेरे सीने से लगी
हुई घाटी का मनोरम दृश्य देखने मे खो गयी थी। एक दिशा की ओर इशारा करते हुए उसे डल
झील दिखाते हुए कहा… एक दिन मेरे साथ शिकारे पर घूमने चलना तब तुम मुझफराबाद को भूल
जाओगी। दूसरी दिशा की ओर इशारे से दिखाते हुए कहा… वहाँ श्रीनगर एयरपोर्ट है। बडगाम
मे हमारा सेब का बाग है। अचानक उसके गाल को धीरे से सहला कर मैने कहा… परन्तु हमारे
सेब इनसे ज्यादा लाल नहीं है। इतना बोल कर मैने झुक कर उसके दहकते हुए गाल को चूम लिया।
मेरी इस हरकत से वह शर्म से दोहरी हो गयी थी।
मै उसको श्रीनगर शहर की कुछ मुख्य जगहों के
बारे बता रहा था परन्तु वह अपने किसी और ही ख्यालों मे गुम हो गयी थी। उसे अपनी बाँहों
मे संभाले हुए मै पास की एक चट्टान पर बैठ गया। मैने उसकी ओर देखा तो वह मुझे ताक रही
थी। उसकी आँखों मे एक अनमिटी प्यास और आमंत्रण की झलक दिख रही थी परन्तु एक झिझक निरन्तर
उसे आगे बढ़ने से रोक रही थी। नशे से बोझिल पल्कें और खुले हुए गुलाबी होंठों को देख
कर मैने झुक कर उसके कांपते हुए होंठों को धीरे से चूम लिया। एक गहरी आह उसके मुख से
निकल गयी थी। उसी के साथ एक दबी हुई चिंगारी अचानक दावानल की तरह उसमे भड़क गयी थी।
एकाएक मेरा चेहरे को अपने दोनो हाथों मे लेकर वह मेरे होंठों पर टूट पड़ी थी। मैने अपने
आप को उसके हवाले कर दिया था। मैने उसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया बस उसका लगातार
साथ देता रहा। मेरे हाथ उसके दोनो उन्नत उभारों को छेड़ने मे व्यस्त हो गये थे। उसने
अपना जिस्म मुझे सौंप दिया था। मेरी उंगलियाँ उसके हर उतार चढ़ाव को मापने मे जुट गयी
थी। अपरिपक्वता और जवानी के अलहड़पन से ज्यादा उसके एकाकीपन ने उसको मेरे इतने करीब
लाकर खड़ा कर दिया था।
वह कामातुरता मे भूल गयी थी कि वह कहाँ पर
है। उसके मुख से लगातर सीत्कार विस्फुटित हो रही थी। उसकी साँसे तेज हो गयी थी और उसका
गोरा चेहरा उत्तेजना से लाल सुर्ख हो गया था। मै उसके संवेदनशील स्थानों को लगातार
छेड़ रहा था और वह मेरे हर स्पर्श पर तड़प उठती थी। अचानक मैने महसूस किया कि उसकी पतली-पतली
उँगलियाँ धीरे से जाँघ से सरक कर मेरे पाजामे मे छिपे हुए भुजंग पर पहुँच गयी थी। कामोत्तेजना
से उसका जिस्म मेरे आगोश मे मचल रहा था। अभी तक मैने अपना होश पूरी तरह से गंवाया
नहीं था। मुझे अपने आसपास का ज्ञान था। सब कुछ भुला कर उसने अपने आप को मेरे हवाले
कर दिया था। वह तो किसी और ही दुनिया मे पहुँच गयी थी और मुझ पर भी धीरे-धीरे उसका
नशा हावी होता जा रहा था। अचानक दूर किसी कार के हार्न ने बड़ी निर्ममता से हमे यथार्थ
मे लाकर पटक दिया था। हम दोनो जल्दी से अलग हो गये और अपने कपड़े ठीक करते हुए अपनी
उखड़ी हुई साँसों को शान्त करने मे जुट गये।
मैने घड़ी पर नजर डाली तब एहसास हुआ कि मार्किट
से चले हमे दो घंटे हो गये थे। समय कैसे निकल गया हमे पता ही नहीं चला था। अचानक वह
खिलखिला कर हँस पड़ी और फिर धीरे से मेरे कान मे बोली… इसको संभालो वर्ना पजामा फट जाएगा।
अपनी झेंप मिटाने के लिये मैने जल्दी से कहा… अब चले। उसने मेरे उभरे हुए हिस्से की
ओर इशारा करके कहा… ऐसे जाओगे। मैने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बस उसका हाथ
पकड़ कर वापिस जीप की ओर चल दिया। अब तक हमारे बीच की सारी लाज शर्म की दीवारें ध्वस्त
हो चुकी थी। जीप मे बैठते ही एकाएक वह चुप हो गयी थी। उसके अन्दर उत्पन्न आत्मग्लानि
को कम करने हेतु मैने जीप स्टार्ट करते हुए मैने कहा… मिरियम, आज हमारे बीच जो भी हुआ
उसका सिर्फ मै ही जिम्मेदार हूँ। तुम बहुत सुन्दर हो और इसीलिये तुम्हारी सुन्दरता
को देख कर मै अपने आप को रोक नहीं सका। मैने सारा दोष अपने सिर मढ़ते हुए धीरे से कहा…
अब सब कुछ नियंत्रण मे है तो तुम मुझे पकड़ कर बैठ सकती हो। उसने एक बार मेरी ओर देखा
और फिर वह सरक कर मेरे निकट आ गयी और स्वयं ही अपनी बाँह मेरी कमर मे डाल कर मुझसे
सट कर बैठ गयी।
मैने जीप को गति देते हुए कहा… अगर आगे से
तुम मेरे साथ समय नहीं बिताना चाहती तो कोई बात नहीं। मै तुम्हारी मजबूरी समझ सकता
हूँ। बस मेरी एक बात याद रखना कि इस शहर मे अब तुम अकेली नही हो। वह कुछ नहीं बोली
बस अपने सीने को मेरी बाँह पर दबा कर मुझसे सट कर बैठ गयी थी। उसके घर से थोड़ा पहले
उसे छोड़ते हुए मैने मुस्कुरा कर कहा… शिकारे पर मेरे साथ जाना हो तो बता देना लेकिन
मै कोई वादा नहीं कर सकता कि ऐसा दोबारा नहीं होगा। उसने सिर उठा कर मेरी ओर देखा तो
हमारी निगाह टकरा गयी थी। मेरे चेहरे आयी मुस्कुराहट को देख कर उसका चेहरा शर्म से
लाल हो गया था। वह बस मुस्कुरा कर जीप से उतर कर तेज कदमों से चलते हुए अपने घर की
ओर चल दी। मै कुछ देर उसे जाते हुए देखता रहा। हर कदम पर उसके नितंब थरथराते हुए प्रतीत
हो रहे थे। जब वह आँखों से ओझल हो गयी तब मैने अपनी जीप को मोड़ कर अपने घर की दिशा
मे चल दिया। आज मैने मकबूल बट के घर मे सेंध लगा दी थी।
घर पहुँच कर अपने बिस्तर पर लेटे हुए मै सोच
रहा था कि आज के बाद वह एक दो दिन आत्मग्लानि का शिकार रहेगी और चाहते हुए भी बात करने
की हिम्मत नहीं करेगी। आखिर कब तक वह उस आग को दबा कर रख सकेगी जो आज मैने उसके अन्दर
भड़का दी थी। सुबह की आग जो मेरे अन्दर प्रजव्लित हुई थी उसको तो मैने आस्माँ के कस
बल ढीले करके बुझा दिया था परन्तु वह क्या करेगी? मुझे पता था कि मकबूल बट इज्तिमा
के कारण मिरियम को ज्यादा समय नहीं दे पा रहा होगा। इसीलिये मै उसके अगले निमन्त्रण
का इंतजार कर रहा था। बस देखना यह था कि वह कब तक हिम्मत जुटा कर मुझे फोन करती है।
ब्रिगेडियर चीमा से मिलने के लिये अभी मेरे पास तीन दिन थे।
अगले दिन जब अपने आफिस मे पहुँचा तो मेरी मेज
पर बड़ा सा डिब्बा रखा हुआ था। मैने जल्दी से डिब्बा खोल कर उसका सामान मेज पर फैलाना
आरंभ कर दिया। पाँच माईक्रोफोन, एक वाईफाई का मोडेम, एक छोटा सा संचार यंत्र और एक
रिकार्डिंग डिवाईस के साथ हेडफोन, सभी सामान को मेज पर फैला कर सोचने बैठ गया कि कैसे
इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। मै अभी इसके बारे मे सोच रहा था कि मेरे मोबाइल फोन
की घंटी बजी तो मैने झट से नम्बर चेक करते हुए कहा… मिरियम। …क्या तुम अभी आ सकते हो?
…क्यों? वह चुप हो गयी थी। मैने धीरे से कहा… मेरे बिना दिल नहीं लग रहा है? …हुँ।
…कहाँ आना है? …जहाँ तुमने कल छोड़ा था। …ठीक है। कितने बजे? …अभी आ जाओ। …क्यों अब्बा
नहीं है? …वह आज सुबह एक हफ्ते के लिए मुंबई गये है। …मै पहुँच कर फोन कर दूँगा। तुम
बाहर आ जाना। यह कह कर मैने फोन काट दिया था। मैने जल्दी से सारा सामान डिब्बे मे डाला
और उसे उठा कर अपनी जीप मे रख कर घर की ओर चल दिया। अपने कपड़े बदल कर कुछ ही देर के
बाद उस रेस्त्रां के पास पहुँच कर मैने मिरियम को फोन किया। …तुम पहुँच गये? …बस पहुँचने
वाला हूँ। मगर बुर्का मत पहनना। बस इतना बोल कर मैने फोन काट दिया और उसी मोड़ पर पेड़
के नीचे मैने अपनी जीप खड़ी कर दी थी जहाँ मैने उसे पहले छोड़ा था।
मिरियम हिजाब मे अपने घर से निकलते हुए गेट
पर खड़े पुलिसकर्मी से कुछ बोल कर धीमे कदमों से निगाहें झुकाये सड़क पर आ गयी थी। जैसे
ही उसने मेरी जीप देखी उसके कदम तेज हो गये थे। जीप मे बैठते ही वह बोली… चलो। मै वहीं
खड़ा रहा तो उसने मुझे घूर कर देखने लगी। … इतना समय तो दे दो कि मै तुम्हें देख कर
यकीन कर लूँ कि मै कोई सपना तो नहीं देख रहा हूँ। वह खिलखिला कर हँस पड़ी थी। मैने जीप
आगे बढ़ा दी थी। …आज हम कहाँ जा रहे है? …आज तुम्हें निशात बाग और शालीमार बाग दिखाने
ले जा रहा हूँ। शाम को शिकारे पर घूमने चलेंगें। यह सुन कर उसका चेहरा एक बच्चे की
तरह खिल गया था। कुछ ही देर मे हम डल झील का चक्कर लगा कर शालीमार बाग पहुँच गये थे।
पार्किंग मे जीप खड़ी करके हम दोनो ने शालीमार बाग मे चले गये थे। हर तरफ रंग बिरंगे
फूल खिले हुए थे। कुछ मौसम के कारण और कुछ बाग के माहौल के कारण सारा वातावरण बेहद
रुमानी हो गया था। बाग के ज्यादातर पेड़ के नीचे युगल जोड़े बैठे हुए दिख रहे थे।
हैरानी से चारों ओर देख कर मिरियम धीरे से
बोली… यह कैसी जगह है? …क्यों क्या हुआ? एक ओर इशारा करने के लिये जैसे ही उसने उंगली
उठायी मैने तुरन्त उसका हाथ पकड़ कर अपने समीप खींच कर कमर मे हाथ डालते हुए कहा… ऐसे
इशारा नहीं करते। वह बेचारे मोहब्बत मे डूबे हुए है और तुम उन्हें रुसवा करना चाहती
हो। …क्या यहाँ ऐसे खुले आम लोग बैठ सकते है? …सच पूछो तो नहीं लेकिन क्या सामाजिक
पाबन्दियों और उन छोटे-छोटे घरों मे क्या जवान लड़के और लड़कियाँ इतने सुकून से बैठ सकते
है? वह मेरा तर्क सुन कर चुप हो गयी थी। …मै भी तो तुम्हें यहाँ इसीलिये लाया हूँ कि
यहाँ के वातावरण मे डूब कर तुम भी कुछ देर के लिये सब कुछ भुला कर मेरे साथ रुमानी
हो जाओगी। …अच्छा जी। उसे अपने समीप खींचते हुए मैने कहा… मिरियम यहाँ पर ऐसे दृश्य
तो मै स्कूल टाइम से देख रहा हूँ। मेरा भी मन तो बहुत करता था परन्तु चार बहनों की
निगरानी मे कभी किसी लड़की से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा सका। आज पहली बार मै तुम्हारे
साथ यहाँ आया हूँ तो अभी तो वापिस जाने से रहा। उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी।
इतना बोल कर उसको खींचते हुए एक पेड़ की ओर चल दिया। वह भी मेरे साथ खिंचती हुई चली
आयी थी। हम दोनो दुनिया से मुँह मोड़ कर एक पेड़ की आढ़ लेकर घास पर बैठ गये थे।
…तुम्हारे मुजफराबाद में ऐसी कोई जगह है जहाँ
मोहब्बत करने वाले इतने सुकून से ऐसे बैठ सकते है? वह चुपचाप निगाहें झुकाये बैठी रही
तो मैने उसकी कमर मे हाथ डाल कर अपने सीने से लगा कर दुबारा से पूछा तो वह धीरे से
बोली… समीर, मै तुम्हारे साथ पहली बार घर से बाहर ऐसे निकली हूँ। अपनी हवेली से पहली
बार निकाह की रुकसती के समय बाहर निकली थी। आज तक मैने तो मुजफराबाद भी नहीं देखा है।
मैने धीरे से झुक कर उसके गाल को चूम कर कहा… अब मै तुम्हें दुनिया घुमाऊँगा। एकाएक
वह मुझसे लिपट गयी और अपना चेहरा मेरे सीने मे छिपा कर बोली… समीर मुझे तुमसे मोहब्बत
हो गयी है। खुदा के लिये मुझे रुसवा मत करना। उसकी बात ने एक पल मे मेरे जमीर ने झिंझोड़
कर रख दिया था। उसकी बात दिल के किसी कोने मे संजो कर मैने उसे अपनी बाँहों मे जकड़
कर कहा… हमारा रिश्ता चाहे कैसा भी हो लेकिन खुदा की कसम तुम्हें हर्गिज रुसवा नहीं
होने दूँगा। हम काफी देर तक वही बैठे रहे थे। एक दूसरे की धड़कनों को सुनते हुए सब कुछ
भुला कर हम दोनो अपनी ही बनायी हुई दुनिया मे खो गये थे। अनायस ही मैने अपनी घड़ी पर
नजर डाली तो मैने जल्दी से कहा… चलो शिकारे पर चलते है। हम दोनो उठ कर अपने कपड़ों की
सिलवटें ठीक करके निकासी द्वार की दिशा मे चल दिये थे। …समीर, बाहर तुम्हारे साथ घूमते
हुए मुझे सदैव डर सा लगा रहता है। हमारे घर इतने सारे लोग आते रहते है। पता नहीं कौन
कब मुझे तुम्हारे साथ इस हालत मे देख ले क्योंकि मै तो किसी को नहीं पहचानती।
कुछ ही देर के बाद हम शिकारे पर बैठे हुए डल
झील मे मनोरम अतुलनीय सौन्दर्य का लुत्फ ले रहे थे। शिकारे वाला हमे हनीमून पर आये
हुए सैलानी युगल समझ रहा था। वह अपनी रटी-रटाई टूटी-फूटी कमेंन्टरी मे डल झील के आसपास के पर्यटन स्पाट दिखा रहा था।
तभी एकाएक मैने धाराप्रवाह कश्मीरी मे शिकारेवाले से कहा… बड़े मियाँ ऐसी जगह दिखाओ जो
हम कश्मीरियों ने पहले कभी नहीं देखी हो। एक पल के लिये उसका मुँ ह खुला का खुला रह
गया था। …अगर ऐसी जगह नहीं दिखा सकते तो बड़े मियाँ अब हमारी ओर से मुँह फेर कर सामने
देखते हुए शिकारा आगे बढ़ाओ। वह झेंप कर मुस्कुराया और फिर हमारी ओर पीठ करके बैठ गया
था। मेरी उँगलियाँ तुरन्त उसके जिस्म को छेढ़ने मे जुट गयी थी। …तुमने क्या कहा जो वह
ऐसे बैठ गया? मिरियम को अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए मैने कहा… वहाँ बाग मे तुम्हें डर
लग रहा था क्योंकि लोग देख रहे थे। जैसे ही मेरा हाथ आगे बढ़ता तभी तुम उसे झटकार देती
थी। यहाँ पर अब हमे कोई नहीं देख रहा है तो अब तो प्यार करने कोई डर तो नहीं है। वह
खिलखिला कर हँस कर बोली… तो वहाँ बाग मे भी तुम कौनसा शांत बैठ गये थे। इसी के साथ
एक बार फिर से हमारी छेड़खानी और चुहलबाजी दौर आरंभ हो गया था। उस शाम मिरियम को कन्वेन्शन
सेन्टर की भव्य इमारत दिखा कर लौटते हुए दूसरी दिशा मे गगनचुम्बी पर्वत श्रंखला का
नजारा दिखाते हुए मैने बताया… एक दिन तुम्हें सोनमर्ग लेकर चलूँगा। किनारे की ओर लौटते
हुए हजरतबल की गुम्बद दिखा कर मैने कहा… इस झील के बारे मे एक बात बहुत प्रचलित है
कि अगर एक सिक्का झील मे गिरा कर कुछ मांगोगी तो खुदा तुम्हारी इच्छा जरुर पूरी करेगा।
उसने तुरन्त एक सिक्का मुझसे लेकर झील मे उछाल दिया था। शिकारे से उतर कर एक दूसरे
को बाँहों मे बाँधे हम दोनो अपनी जीप की ओर चल दिये थे। कुछ देर के बाद मैने उसको रेस्त्रां
के सामने छोड़ते हुए कहा… कल ग्यारह बजे मै तुम्हारा यहीं पर इंतजार करुँगा। भूलना नहीं।
उसने मुस्कुरा कर सिर हिला दिया और अपने घर की दिशा मे चली गयी। मै वहीं कुछ देर बैठा
रहा और फिर भारी मन से वापिस अपने घर की दिशा मे चल दिया।
अगले दिन ठीक ग्यारह बजे मिरियम अपने घर से
बाहर निकली और मेरी जीप देख कर मेरी ओर चली आयी थी। वह जल्दी से मेरी जीप मे बैठी और
उसे लेकर मै कोम्पलेक्स की दिशा मे चल दिया। …आज हम कहाँ जा रहे है? मैने कोई जवाब
नहीं दिया। मैने जैसे ही जीप अपने घर के बाहर रोकी तो वह हिचकिचाते हुए बोली… यह किसका
घर है? मैने उसका हाथ थाम कर कहा… चलो। वह झिझकते हुए मेरे साथ घर मे प्रवेश कर गयी
थी। …सरकार ने यह जगह मुझे रहने के लिए दी है। अधिकारपूर्वक मैने उसका हाथ थाम कर कहा…
आओ तुम्हें कुछ दिखाता हूँ। वह मेरे साथ खिंचीं हुई मकान के पिछले हिस्से मे आ गयी
थी। यहाँ से बर्फ से ढकी पहाड़ों की शृंखला साफ दिखाई दे रही थी। कुछ देर के लिए वह
प्रकृतिक सौंदर्य मे खो सी गयी थी। मै उसके पीछे चला गया और उसकी कमर को पकड़ कर अपने
से सटाते हुए उसके कान मे धीमे से बोला… तुम्हें बाहर एक डर सदैव सताता रहता है। अब
कैसा लग रहा है? उसने छूटने का प्रयास किया परन्तु विफल रही। मैने झुक कर उसके गले
को चूम कर उसके कान मे कहा… आज तुम बेहद खूबसूरत लग रही हो। एक हाथ से उसके हिजाब की
गाँठ खोल कर हटाते हुए उसे घूमा कर अपने सामने कर लिया था।
वह निगाहें झुकाए छुईमुई सी मेरे सामने सिकुड़ी
खड़ी हुई थी। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। हमारी निगाहें टकरायी तो वह लपक कर मेरी
बाँहों मे आ गयी और मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपा कर खड़ी हो गयी। उसको अपनी बांहों
मे जकड़ते हुए मैने कहा… आओ अन्दर चलते है। वह कुछ नहीं बोली बस उसने धीरे से सिर हिला
दिया था। उसकी कमर मे हाथ डाल कर उसे मै अपने बेडरुम मे ले आया।
…तुम अपना फेयरन उतार कर आराम से बैठो। खाने का समय हो गया था तो अपने आर्डरली को आवाज
लगा कर कहा… दो लोगों का खाना मेज पर लगा कर चले जाना। रात को मै अपने घर जाऊँगा। आर्डरली
खाना लगाने मे व्यस्त हो गया और मै वापिस बेडरुम मे आ गया था। मिरियम अपना फेयरन उतार
रही थी। मैने आगे बढ़ कर उसकी मदद करके उसका फेयरन उतार कर उसके हाथ मे पकड़ा दिया। फेयरन
को तह करके एक किनारे मे रख कर वह मेरी ओर देखने लगी। मेरी नजर उस पर जमी हुई थी।
चटख लाल रंग के शनील के कुर्ते और शलवार मे
वह मेरे सामने खड़ी हुई थी। मैने आगे बढ़ कर उसके गले मे पड़े हुए स्कार्फ को हटा कर उसके
बंधे हुए बालों को खोल दिया और फिर उससे थोड़ी दूर खड़े होकर देखने लगा। लाल रंग के कुर्ते
के कारण उसका गोरा रंग सिंदुरी लग रहा था। उसके चेहरे पर आलिया का अल्हड़पन और जिस्मानी
उतार-चढ़ाव मे आफशाँ की झलक दिख रही थी। मै कुछ देर तक उसके रुप और
लावण्य मे खो सा गया था। …क्या देख रहे हो? मैने मुस्कुरा कर कहा… क्या पहले कभी अपने
आप को आईने मे ध्यान से देखा है? शर्म से उसके गाल लाल हो गये थे। …चलो चल कर खाना
खा लो। …अभी भूख नहीं है। …तो कुछ ठंडा पी लो। कोका कोला रखी हुई है। उसने अपने सूखे
हुए होंठों पर जुबान फिरा कर कहा… मुझे प्यास लग रही है। उसे वहीं छोड़ कर मै कमरे से
बाहर निकल गया। मेरा आर्डरली खाना लगा कर जा चुका था। मैने मुख्य द्वार बन्द किया और
उसे आवाज दी… मिरियम यहीं आ जाओ। वह झिझकते हुए बाहर आ गयी थी। मैने फ्रिज से कोका
कोला निकाल कर उसके हाथ मे थमा कर कहा… ठंडी है। इसलिए धीरे-धीरे पीना। उसने धीरे से
एक सिप लेकर मेरी ओर देखते हुए पूछा… तुम नहीं पिओगे? …अभी नहीं। आओ सोफे पर बैठ कर
आराम से बात करते है। वह मेरे साथ अपने आप ही सट कर बैठ गयी थी।
दो-तीन घूँट भरने के बाद वह बोली… तुम आज मुझे
यहाँ क्या दिखाने लाये हो? मैने धीरे से उसको अपने आगोश मे जकड़ कर उसके गाल को धीरे
चूम कर कहा… आज यहाँ तुम्हें अपनी मोहब्बत से रुबरु करने के लिये लाया हूँ। उसने अपने
जिस्म को मेरी बाँहों मे ढीला छोड़ दिया। उसकी नग्न बाँह को प्यार सहलाते हुए मैने पूछा…
मिरियम, तुम्हारे अब्बा मुजफराबाद मे क्या करते है? …वह पाकिस्तान के धार्मिक पीर है।
उनकी जमात मे सारा उत्तरी पाकिस्तान का सुन्नी समाज आता है। उनके नाम से अनेक मस्जिदें
और मदरसे चलते है। उस पर झुक कर उसके माथे को चूम कर मैने पूछा… फारुख मीरवायज तुम्हारे
क्या लगते है? …बड़े भाईजान है। …तो उन्होने तुम्हारे ऐसे बेमेल निकाह के लिए मना नहीं
किया? …समीर, पीर साहब के फैसले को मना करने की किसी मे हिम्मत नहीं है। हमारी जमात
मे उनका कहा पत्थर पर लकीर मानी जाती है। …तुम्हारे फारुख भाईजान का क्या कारोबार है?
वह मेरा प्रश्न सुन कर एकाएक चुप हो गयी थी।
मैने एक बार झुक कर उसके गुलाबी होंठों को
अपने कब्जे मे ले लिया और कुछ देर रसपान करने के बाद जब उठा तब तक उस पर वासना का ज्वर
हावी हो गया था। उसका जिस्म अब उसके काबू मे नहीं रहा था। कुछ दिनों से सुलगती हुई
भावनाएँ एकाएक भड़क उठी थी। मिरियम का जिस्म कामोत्तेजना से जल रहा था और वह एकाकार
के लिए तड़प रही थी। उसने मेरा चेहरा दोनो हाथों
में ले कर अपने कँपकँपाते होंठों मे मेरे होंठों को कैद कर लिया। मेरे हाथ
स्वत: ही उसके सीने के पुष्ट उभारों पर
पहुँच गये थे। शनील के कुर्ते के नीचे उसने कुछ नही पहना था। रेशमी स्पर्श से उसके
स्तनाग्र को सिर उठा कर खड़े हो गये थे। मेरी उंगलियाँ उसकी गोलाईयों पर अकड़ी हुई बुर्जियों
को टटोल कर निरन्तर छेड़ रही थी। जैसे ही मै अपनी दो उंगलियों मे फँसा कर एक बुर्जी
को तरेड़ा वह मेरी बाँहों मे मचल कर बोली… समीर, मै मर जाऊँगी। अचानक मिरियम मुझसे अलग होकर लड़खड़ाते हुए
खड़ी हो गयी थी। मैने उठ कर उसे जल्दी से संभाला और अपने बेडरुम मे ले गया।
उसकी साँसे तेज चल रही थी। वह मेरा सहारा लिये निगाहें झुकाए खड़ी
रही लेकिन शायद पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। मैने पहल की और उसके कुर्ते
को धीरे से खोल कर उसके जिस्म को अनावरित करना आरंभ कर दिया। वह मचलती रही और बार-बार
मुझे दूर धकेलती रही परन्तु कपड़े उतारने वह मेरा सहयोग लगातार कर रही थी। कुर्ता हटते
ही दिन की रौशनी मे दूध जैसे रंग की काया मेरे सामने उदित हो गयी थी। सीने की पुष्ट गोलाईयाँ और उन पर सिर उठाये बादामी रंग के स्तनाग्रों
को देख कर मेरी धमनियों में भी रक्त का प्रवाह
बढ़ गया था। सपाट पेट पर उसकी शलवार बंधी हुई थी। मैने
आगे बढ़ कर नाड़े का सिरा पकड़ा और धीरे से खींच दिया। अगले ही पल उसकी शलवार सरकते हुए
जमीन पर इकठ्ठी हो गयी थी। मेरी दृष्टि उसके सीने से सरकती हुई उसकी नाभि और पतली कमर के साथ उठते हुए कटाव लेते हुए गोल नितंब
से होती हुई घुँघराले बालों से ढके हुए कटिप्रदेश पर जा कर
रुक गयी थी। सब कुछ मिला कर मुझे लगा कि जैसे जन्नत की कोई हूर
मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी थी। अपनी नग्नता छिपाने की कोशिश करते हुए वह लड़खड़ा गयी
थी। उसके हिलने से उसके स्तनों मे होते हुए स्पंदन मेरी नजरों से बच नहीं सके थे। उसके
सामने मैने अपने कपड़े उतारने शुरु किये तो कुछ पल तो वह मुझे
देखती रही और फिर निगाहें झुका कर खड़ी हो गयी थी। अगले कुछ पलों मे पूर्ण निर्वस्त्र
होकर मै उसके सामने खड़ा हो गया था।
…मिरियम। उसने निगाहें उठा कर मेरी ओर देखा
तो मुझे निर्वस्त्र देख कर वह शर्मा कर पलट गयी परन्तु मैने आगे बढ़ कर उसे अपनी बाँहों
मे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया और उसके मचलते हुए जिस्म को अपने
जिस्म से ढक दिया था। कुछ देर तक हम दोनो एक दूसरे के होंठों का रसपान करने
मे उलझ गये थे। अचानक मिरियम अपना हाथ नीचे
की ओर ले जाती हुई बोली… जरा देखूँ तो…कहते हुए उसने मेरे उत्तेजना मे झूमते
हुए पौरुष को अपनी मुठ्ठी में लेकर नापते हुए बहकी हुई आवाज मे
बोली…बब…बड़ा ज़ालिम है।
इस से पहले वह कुछ और बोलती मेरे होंठ ने उसके दाएँ कान के
पीछे से अपना कार्य शुरु करते हुए चेहरे के पास पहुँच कर पंखुडी
से होठों पर लगातार प्रहार करना आरंभ कर दिया था। थोड़ा रुक
कर, मेरे होंठ उसके गले
से होते हुए दो हसीन पहाड़ियों के बीचोंबीच बनी खाई पर पहुँच कर
रुक गये थे। अब मेरे निशाने पर उत्तेजना से फूले हुए स्तनाग्र
थे। मेरे होंठों के स्पर्श से उसके उरोज मे कंपन
हो रहा था। अपने मुख में एक मचलती हुई पहाड़ी को भर कर अपनी
जुबान के अग्र भाग से खड़े हुए स्तनाग्र को छेड़ना शुरु किया
और दूसरी पहाड़ी को अपने हाथ में ले कर कभी सहलाता और कभी मसल
देता था। मेरे स्पर्श से उसे कभी गुदगुदी का एहसास होता और कभी उसके नाजुक जिस्म में सिहरन हो जाती थी। इन सब हरकतों से धीमी आँच में जलते हुए उसके जिस्म मे निरन्तर कामाग्नि भड़कती जा
रही थी। वह एकाकार के लिए तैयार हो गयी थी परन्तु आज मै उसे ऐसे सफर पर ले जाना चाह
रहा था कि वह आज के हर पल को जीवन भर अपनी यादों मे हमेशा के लिये संजों कर रख ले।
मैंने प्यार से मिरियम की पीठ को सहलाते
हुए उसके होंठों को अपने होंठों के कब्जे में ले कर उसकी सिसकारियों को दबा दिया। उसके
जवाँ जिस्म की आग के आगे मै भी पिघलने लगा था। परन्तु मैने किसी
तरह अपनी उमड़ती भावनाओं पर अंकुश लगाया और उसके जिस्म के संवेदनशील अंगो को अपने होंठों
से छेड़ते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगा। उसकी नाभि और कमर पर अपने होंठों के निशान छोड़ मै
एक कदम नीचे सरक गया था। एक पल रुक कर धीरे से मैने उंगलियों से घुंघराले बालों को
हटा कर उसके स्त्रीत्व द्वार पर नजर डाल कर उसकी केले सी चिकनी जाँघ पर अपने होंठ टिका
दिये थे। वह मचल कर उठने लगी परन्तु तब तक मै उसकी दोनो टाँगो को खोल कर उसके बीच अपने
लिये जगह बना चुका था। उसने छूटने का अथक प्रयास किया परन्तु उसकी माँसल जाँघों के
कोमल हिस्सों पर अपने होंठों के निशान छोड़ने आरंभ कर दिये थे। उसके मचलते हुए जिस्म
ने इशारा किया तो मै उपर की ओर बढ़ता चला गया। मेरे सामने बालों ढका हुआ स्त्रीत्व द्वार
था। मेरी उँगलियों ने धीरे से द्वार को खोल कर छिपे हुए अंकुर को अनावरित किया और फिर
मैने झुक कर अपनी जुबान से उस पर पहला वार किया। मिरियम के मुख से उत्तेजना से परिपूर्ण
एक गहरी सीत्कार निकली और वह पूरी शक्ति लगा कर छूटने के लिये मचल उठी थी। मेरी जुबान
उसके अकड़े अंकुर को निरन्तर छेड़ रही थी और मेरी उँगली उसकी गुफा की गहरायी नाप रही
थी। उसके नितंबो को अपने पंजों मे जकड़े हुए मै लगातार उसके स्त्रीत्व पर निरन्तर वार
कर रहा था और उसके मुख से घुटी हुई आहें और चीखें लगातार निकल रही थी। वह बार-बार उठने
की कोशिश कर रही थी लेकिन मेरे आगे वह कुछ भी कर पाने अभी तक असफल रही थी। अचानक उसकी
टाँगे मेरी गरदन के इर्द गिर्द कस गयी और एकाएक वह हवा मे उठ गयी। उसका जिस्म थरथराया
और फिर एक झटका लेकर निढाल हो कर बिस्तर पर ढेर हो गया। उसको छोड़ कर मै उसके साथ लेट
गया था।
वह अपनी तेज चलती हुई साँसों को काबू करने का प्रयास करने लगी तो मै अपनी कोहनी
के बल उठ कर उसको देखने लगा तो वह तुरन्त शर्मा कर करवट लेकर पीठ करके लेट गयी। मै
उसके जिस्म से सट गया तो उत्तेजना से फुँफकारता हुआ अजगर उसके नितंबों की दरार मे सिर
रगड़ने लगा। उसके स्पर्श का एहसास होते ही वह जल्दी से पलटी और मेरे सीने मे उसने अपना
चेहरा छिपा लिया था। उसके नग्न जिस्म को धीरे-धीरे सहलाते हुए एक बार फिर से उसके जिस्म
पर अपने होंठों से वार करना आरंभ कर दिया। अबकी बार मिरियम उन्मुक्त होकर मेरे हर वार
का जवाब देने लगी थी। एक बार फिर से कामाग्नि भड़कते ही वह प्रणयमिलन के लिये उग्र हो
उठी थी। अपनी पतली कोमल उँगलियों मे उत्तेजना मे झूमते हुए भुजंग को उसकी गरदन से पकड़
उसने अपने स्त्रीद्वार के सम्मुख स्थिर किया और फिर द्वार के मुख पर रगड़ कर अपने कामरस
से भिगो कर टिका दिया। मैने अपनी कमर पर दबाव डालते हुए धीरे से उसे
अंदर सरका दिया। एक गहरी कामोत्तेजना की सीत्कार उसके मुख से
निकल गयी थी। मेरा एक हाथ गोरी गुदाज पहाड़ियों को रौंदने में व्यस्त
हो गया और मेरा मुख पहाड़ियों की गुलाबी बुर्जियों को लाल करने
मे लग गया था। एलिस का सिखाया हुआ हुनर आज भरपूर काम आ रहा था। मैने स्थिर होकर उसकी
आँखों मे झाँका तो उसके जिस्म ने मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया। मैने अपनी कमर पर दबाव
बढ़ाया तो मेरा भुजंग झूमता हुआ सारे संकरेपन को खोलते हुए अंदर
सरकता चला गया। उसके चेहरे पर बदलते हुए भाव और सिसकारियाँ उसके जिस्म मे होते
एकाकार के मीठे दर्द का हर घड़ी एहसास करा रहा
था। वह कभी छूटने के लिए तड़पती और कभी बाँहों मे मचल जाती लेकिन मेरी मजबूत
पकड़ के आगे उसके सारे प्रयास विफल हो गये थे। पल भर के लिए मै रुक गया था।
मिरियम आँखे बन्द किये एक पल के लिए तड़पी फिर अपनी टाँगें मेरी कमर के इर्दगिर्द
लपेट कर उसने अपनी कमर को पूरी ताकत से एक भरपूर झटका दिया जिसके कारण एक ही वार मे उत्तेजना मे मदमस्त मेरा भुजंग सारी बाधाएँ तोड़ते हुए
जड़ तक धंस कर बैठ गया था। उसके मुख से एक घुटी हुई दर्द भरी चीख निकल गयी थी। उसकी आँखें खुल गयी और दर्द से उसका चेहरा विकृत हो
गया था। वह कुछ क्षणों के लिए शिथिल हो कर पड़ी रही तो मैने उसके कान को चूमते हुए धीरे से फुसफुसाया… इतनी जल्दी की
क्या जरुरत थी। उसने आँखें खोल कर मुझे देखा और फिर मुस्कुरा
कर बोली… अगली बार ख्याल रखूँगी। उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर अपने जिस्म से ढक दिया
और अगले ही पल हम दोनों बेल की तरह लिपट कर एक
दूसरे के अंगों के साथ छेड़खानी करने में लग गये थे। मैंने अपनी उफनती हुई भावनाओं को काबू में करके अपने आप को थोड़ा सा
पीछे खीच कर फिर से एक करारा प्रहार किया। इस बार उसके मुख से संतुष्टिभरी सिसकारी निकल गयी थी। मेरे हाथ एक बार
फिर से गोरी पहाड़ियों के मर्दन में व्यस्त हो गये और
वहीं मेरा मुख गुलाबी बुर्जियों को लगातार लाल
कर रहा था। उसके जिस्म मे होने वाले हर स्पंदन को मै महसूस कर रहा था। मिरियम
की सिसकारियाँ और मेरी गहरी साँसों ने कमरे का वातावरण बहुत उत्तेजक
बना दिया था। अचानक तूफान ने धीरे-धीरे वेग पकड़ना आरंभ किया और हम उसमे बहते
चले गये थे। एक पल ऐसा आया कि उसका जिस्म ऐंठने लगा और धनुषाकार बना कर हवा मे उठ गया।
उसकी बायीं बुर्जी का रस सोखता हुए मैने उत्तेजनावश उसको अपने
दाँतों तले चबा दिया। उसी क्षण वह सिहर उठी और फिर झटके लेते
हुए बिस्तर पर लस्त होकर पड़ गयी। उसी क्षण मेरे अन्दर भी ज्वालामुखी ने लावा उगलना
आरंभ कर दिया और कामरस बेरोकटोक बहने लगा। हम दोनों एक दूसरे को
अपनी बाहों में जकड़ कर निढाल हो कर बिस्तर पर पड़ गये थे।
उसके बाद हम दोनो अपनी साँसे सयंत करने मे लग गये थे।
कुछ देर के बाद वह मुझसे लिपटते हुए बोली…
समीर, अब मै वापिस नहीं जाऊँगी। उसकी बात सुन कर मै सावधान हो गया था। उसके रुपहले
सपनों पर मै अभी वज्रपात नहीं करना चाहता था। …मिरियम, क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे
भाईजान आफशाँ से निकाह करना चाहते थे परन्तु वह मुझे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। वह
तुम्हें मेरे साथ नहीं रहने देंगें। मेरी बात सुन कर अचानक वह संजीदा हो गयी थी। वह
मेरे सीने पर सिर रखते हुए बोली… समीर, अगर हमारे रिश्ते के बारे मे उन्हें पता लग
गया तो तुम्हारे अब्बा मुझे जान से मरवा देंगें। एक बार फिर से आत्मबोध होते ही उसका
भय उस पर हावी हो रहा था। …क्या हुआ? …समीर, हमारे बारे मे अगर भाईजान को पता चल गया
तो यहाँ कत्लेआम हो जाएगा। मेरा निकाह एक शर्त पर हुआ था कि तुम्हारे अब्बा मेरे भाईजान
को यहाँ पर अपना कारोबार जमाने मे मदद करेंगें। …तुमने बताया नहीं कि तुम्हारे भाईजान
का क्या कारोबार है। वह पल भर के लिए चुप हो गयी और फिर उठ कर बैठते हुए बोली… समीर,
वह फौज मे तुम्हारी तरह बड़े अफसर है। पहले वह अफ़गानिस्तान मे काम करते थे परन्तु अब
वह यहाँ पर अपना कारोबार जमाना चाहते है। उसकी बात सुन कर मै भी उठ कर बैठ गया था।
यह सुन कर मेरे सिर पर से मिरियम की मोहब्बत का बुखार उतर चुका था। मेरा दिमाग बहुत
तेजी से अब चल रहा था।
फारुख पहले अफ़गानिस्तान मे था। अब वह यहाँ
कश्मीर मे कारोबार जमाने की सोच रहा है। वह पाकिस्तान फौज मे अफसर था। भला यह कैसे
हो सकता है? अफगानिस्तान मे पाकिस्तानी फौज के बजाय आईएसआई सक्रिय थी। इसका मतलब साफ
था कि फारुख आईएसआई मे काम करता था। अब मुझे धीरे-धीरे समझ मे आ रहा था कि वह क्यों
आफशाँ से निकाह करना चाहता था। अफ़गानिस्तान कनेक्शन का मतलब था कि वह ड्र्ग्स और अवैध
हथियारों मे पूरी तरह डूबा हुआ हो सकता था। तभी वह पाकिस्तान के अवैध गेटवे कुपवाड़ा
मे बसने की सोच रहा था। मुझे उस इज्तिमा का ख्याल आया क्योंकि संयुक्त मोर्चा बनाने
का उद्देश्य तो फारुख मीरवायज का था। …क्या
सोच रहे हो समीर? मैने उसकी ओर देखा तो वह मोहब्बत भरी निगाहों से मेरी ओर देख रही
थी। उसके जिस्म पर कुछ निशान उभरने लगे थे। मैने मुस्कुरा कर उसको अपने आगोश मे लेकर
कहा… मै यह सोच रहा था कि मेरी नयी अम्मी के जिस्म पर मैने कितनी बेदर्दी से निशान
लगाये है। मिरियम ने तुनक कर मेरे सीने पर मुक्का मार कर बोली… मै तुम्हारी अम्मी नहीं
हूँ। मैने हंसते हुए कहा… यह तो मैने अपनी पहली मुलाकात मे तुम्हें साफ कर दिया था
कि तुम मेरी अम्मी नहीं हो सकती और दूसरी मुलाकात मे मैने तुम्हारे प्रति अपनी मंशा
साफ कर दी थी। उसने शर्मा कर अपना सिर हिला दिया था।
कुछ देर हम ऐसे ही पड़े रहे और फिर मैने उससे पूछा… क्या तुम नीलोफर को पहले से जानती हो? …हाँ। यह मेरे सामने दूसरा खुलासा हुआ था। नीलोफर लोन का व्यक्तितित्व और कार्य काफी हद तक मेरे लिये अब तक रहस्यमयी बना हुआ था। इस खुलासे से साफ हो गया था कि वह भी फारुख की तरह पाकिस्तान से आयी थी। मिरियम कपड़े पहनने के लिये खड़ी हो गयी थी। …आज अब्बा घर पर नहीं है तो यहीं रुक जाओ। …नहीं समीर। घर वापिस जाना होगा। …मिरियम तुम्हें छोड़ने का अभी मेरा मन नहीं है। …समीर अब जाने दो। इतना बोल कर वह अपने कपड़े पहनने मे जुट गयी थी। अपने कपड़े पहनते हुए बीच-बीच मे मै फारुख और मिरियम के बारे उससे सवाल पूछता जा रहा था। कुछ देर के बाद हम दोनो जीप मे बैठ कर कोम्प्लेक्स से बाहर निकल कर उसके घर की दिशा मे जा रहे थे।
देश के लिए क्या क्या करना पड़ता है वीर भाई😜😜
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंहरमन भाई देश की सुरक्षा के लिये लोग अपनी जान पर खेल जाते है तो यह क्या चीज है। बुरहान वानी नामक हिज्बुल के आतंकवादी को भारतीय फौज ने उसकी महिला मित्र की मदद से जन्नत भेजा था। शुक्रिया दोस्त
हटाएंमिरियम तो बैठ गयी आपके अजगरपे 😉😄 ये बहोत बडी सेन्धमारी हो गयी मकबूल के घरमे, अब सारे एपराटस wifi, mic, Modem मकबूल के घर फिट किये जा सकते है, पर विरभाई आप मिरियम को अपने सरकारी घर ले गये, तो एक सवाल दिमाग कुल्बुला रहा आसमा और जन्नत कहा थी, वो भी तो आपके साथ रह रही है ना😉🤔
जवाब देंहटाएंप्रशान्त भाई वहाँ पर समीर के दो घर है। पहला घर तो उसका पैतृक मकान है और दूसरा घर सरकारी है जो उसे रेजीडेन्शियल कोम्प्लेक्स मे है। जन्नत और आस्माँ फिलहाल उसके पैतृक घर मे रह रही है। जब भी कोम्प्लेक्स का जिक्र आयेगा तो वह उसका सरकारी आवास होगा अन्यथा वह उसका पैतृक मकान है जहाँ उसने अपना बचपन गुजारा था। आपके प्रश्न के लिये धन्यवाद।
हटाएंकामुक दृश्य का सुंदर चित्रण के साथ बहुत से चीजों का खुलासा हुआ और हो न हो अपने जमीर को दबा कर समीर ने जो किया है वो सिर्फ देश के हित के लिए, मगर कहीं न कहीं बेचारी मिरियम इस में फंस ने जा रही है। खैर मीरियम का भाई वो पाकिस्तानी एजेंट है जिसको कश्मीर में प्लांट किया गया है।
जवाब देंहटाएंएविड भाई शुक्रिया। अभी तक नीलोफर लोन का इतिहास मीरवायज के साथ जोड़ा जा रहा था। मिरियम ने नीलोफर का लखवी कनेक्शन उजागर किया है। सोच कर देखिये कि दो पाकिस्तानी दुर्दान्त तंजीमे अगर एक साथ हो गयी तो आन्त्रिक सुरक्षा के लि्ये कितनी बड़ी चुनौती हो जाएगी।
हटाएंहरमनभाई, देश के लिए क्या क्या करना पड़ता है वीर भाई को😜😜
जवाब देंहटाएंजैसे एक अमिरजादेने एक नौकर को कहा
"बता सेक्स मजा है या सजा"
तो वो बोला
"साहब मजा ही होगा !! 😜
वरणा वो भी आप हमसे करवाते"😜
यहां उलटा है ये सेक्स देशहित मे तो है,
पर नाते रीश्तेमे सजा के रुपमे ही देखा जायेगा..
समीर के लिये ये किसी दुधारी तलवारसे कम नही.
देशहित चुने या नाते रिश्ते चुने,
उसने देशहित चुना, भले सेक्स मजा देता हो😜😜
प्रशान्त भाई आपकी टिप्पणी के लि्ये बस इतना ही कह सकता हूँ कि देश हित सर्वोपरि है। सेक्स तो महज चन्द मिनट का मजा है। शायद यही सच्चाई को भुला कर हमारे अपने लोग अकसर पाकिस्तानी हनीट्रेप के शिकार हो जाते है। बु्रा है परन्तु यही सच है।
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