गहरी चाल-32
जीएचक्यू, रावलपिंडी
जनरल शरीफ के आफिस
मे उसकी मीटिंग सारे कोर कमांडरों के साथ हो रही थी। कमरे मे काफी तनावपूर्ण माहौल था। ब्रिगेडियर शुजाल
बेग की रिपोर्ट सबके सामने रखी हुई थी। सभी कोर कमांडरों ने अपनी नाराजगी जनरल शरीफ
के सामने जाहिर कर दी थी। पाकिस्तानी फौज की सबसे प्रभावशाली कोर कमांडर जनरल कमाल
हुसैन जान्जुआ बोला… जनरल, आप इतना बड़ा आप्रेशन लांच करने जा रहे थे और आपने इतना भी
नहीं सोचा कि एक बार इसकी चर्चा अपने कोर कमांडरों से कर लें। अगर आपकी योजना के विपरीत
दुश्मन ने जंग का मोर्चा खोल दिया होता तो क्या आप रातों रात अपने सभी कोर कमांडरों
को जंग की आग मे झोंक देते। आपकी जैसी बेवकूफी पहले भी एक जनरल ने कारगिल मे की थी
जिसका खामियाजा हम आज तक भुगत रहे है। हमे तो हैरानी हो रही है कि आप हमारी नौसेना
के दम पर दुश्मन से टकराने की सोच रहे है। उनकी नौसेना के आगे हमारी पूरी फ्लीट एक
घंटे भी नहीं टिक पायेगी। जनरल मंसूर बाजवा ने अचानक बोला… कोशिश करने… कमाल हुसैन
गुस्से मे दहाड़ते हुए बोला… मंसूर अपनी औकात मे रह कर बात करना। दलाल और फौजी मे फर्क
करना सीख ले। तू सेनेट मे नहीं बैठा है। यहाँ पर आठ जनरल ऐसे बैठे है जिनके बूट के
नीचे तूने काम किया है। हमारे पास वलीउल्लाह नाम का एस्सेट होने के बावजूद हम मे से
किसी को इसकी खबर नहीं है। क्या हमको भी कहीं आप ब्रिगेडियर शुजाल बेग की तरह खत्म
करने की योजना तो नहीं बना रहे है?
जनरल शरीफ ने हाथ
उठा कर कहा… कमाल जैसा तुम सोच रहे हो ऐसी बात नहीं है। यह हमारा निर्णय था कि आप्रेशन
खंजर के लांच होते ही आप लोगों को ब्रीफ कर दिया जाता। अचानक बलूच रेजीमेन्ट का कोर
कमांडर जनरल कमर जावेद बोला… जनरल अगर दुश्मन ने सैन्य कार्यवाही की तो हमारे पास कितने
दिन का लड़ने का स्टाक है? …वह नहीं कर सकता। उसने आज तक ऐसा नहीं किया है। …अगर करता
है तो हमारे पास सिर्फ दो दिन का स्टाक है। उसके बाद क्या आप परमाणु हथियार का इस्तेमाल
करने की हिम्मत रखते है? पता नहीं आप दोनो कौनसी सपनों की दुनिया मे जी रहे है। आप्रेशन
खंजर दुश्मन के सीने मे प्रहार करे न करे लेकिन एक बात तो तय है कि यह खंजर हमारे सीने
को छलनी जरुर करेगा। मै जनरल कमाल की बात से सहमत हूँ कि हमे फौरन इस आप्रेशन खंजर
को समाप्त कर देना चाहिये कि इससे पहले दुश्मन को इसकी जरा सी भी भनक मिले। अचानक सारे
कोर कमांडर खड़े हो गये और जनरल कमाल हुसैन जान्जुआ ने कहा… जनरल, आप अपने सभी कोर कमांडरों
का भरोसा खो चुके है। मै आपको खुदा का वास्ता देकर कह रहा हूँ कि आप इज्जत से अपने
पेपर्स राष्ट्रपति के पास भिजवा देंगें तो अच्छा होगा। जनरल कमाल ने बड़ी मुस्तैदी से
जनरल शरीफ को सैल्युट किया और मुड़ कर कमरे से बाहर निकल गया। उसके पीछे बाकी सभी कोर
कमांडर भी बाहर निकल गये थे।
मै अपने बेड पर लेटा
हुआ कल रात के बारे मे सोच रहा था कि तभी मेरे फोन की घंटी ने मेरा ध्यान भंग कर दिया
था। अजीत सर का फोन था। …मेजर। एक खुशखबरी देनी है। पाकिस्तान से सूचना मिली है कि
ब्रिगेडियर बेग के डोजियर के कारण जनरल शरीफ और जनरल बाजवा के खिलाफ उसके कोर कमाँडरों
ने विद्रोह कर दिया है। मेरी अभी कुछ देर पहले ही जनरल शरीफ से बात हुई है और मैने
आप्रेशन खंज़र के बारे बता दिया है। साथ ही चेतावनी भी दे दी है कि अगर ऐसी बेवकूफी
उसकी ओर से किसी भी तंजीम ने करने की कोशिश की तो हम पूरी सैन्य ताकत से उस पर प्रहार
करेंगें। मुझे पूरा विश्वास है कि अब आप्रेशन खंजर हमेशा के लिये उनकी फाईलों दफन होकर
रह जाएगा। इस आप्रेशन का आखिरी सिरा बांग्लादेश मे कहीं पर अपनी आखिरी साँसे ले रहा
है। उस पर प्रहार करने का समय आ गया है। आज कल मे ढाका पहुँच कर उसको भी समाप्त कर
दो जिससे यह खतरा हमेशा के लिये समाप्त हो जाये। …जी सर। मै आज ही ढाका के लिये निकलने
की तैयारी करता हूँ। …मेजर ख्याल रहे। वह नेपाल नहीं है। तुम्हारी ओर से कोई एक्शन
नहीं होना है। उनकी इन्टेलीजेन्स एक्शन लेगी बस तुम्हें उन्हें दिशा दिखाने की जरुरत
है। …सर, आप बेफिक्र रहिये। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।
तबस्सुम बड़े ध्यान
से मुझे देख रही थी। …आप ढाका जा रहे है? …हाँ, तीन दिन के लिये जाना है। आरफा भी मेरे
साथ जाएगी लेकिन उसने अपना निर्णय अभी तक मुझे नहीं बताया है। …कैसा निर्णय? मैने पास
खड़ी तबस्सुम का हाथ पकड़ कर अपने साथ बिठाते हुए कहा… वह बेचारी यहाँ अवैध रुप से आयी
थी। उसके पास यही एक मौका है कि जब वह वापिस अपने परिवार के पास लौट सकती है। …पर उसे
यहाँ क्या तकलीफ है? …तबस्सुम, यह उसको निर्णय लेना है। अगर वह वहीं रुकना चाहेगी तो
मै उसको यहाँ रोकने का प्रयास नहीं करुँगा और तुमसे भी यही उम्मीद रखता हूँ। उसने हमारे
बिन कहे अपनी मोहब्बत के कारण हमारी बहुत मदद की है। अब हमारा फर्ज है कि हम उसकी मदद
करें। तबस्सुम मेरा हाथ अपने हाथ मे लेकर बोली… आरफा बाजी के जाने के बाद मै बिल्कुल
अकेली हो जाउँगी। उसके पेट पर हाथ फिराते हुए मैने कहा… तुम अब अकेली कहाँ रह गयी?
अब यह तुम्हारे पास है। इसके आने के बाद तो तुम्हारे पास मेरे लिये भी समय निकालना
मुश्किल हो जाएगा। वह मेरी ओर मुस्कुरा कर बोली… इसके आने मे अभी कुछ महीने शेष है।
उसको अपने सीने से लगा कर मैने समझाते हुए कहा… मैने ऐसा नहीं कहा है कि वहीं रुक जाएगी।
यह निर्णय हमे उस पर छोड़ देना चाहिये कि वह क्या चाहती है। इतनी बात करके मै तैयार
होने के लिये चला गया था लेकिन दिमाग के किसी कोने मे नफीसा और सरिता बैठी हुई थी।
कुछ देर के बाद मैने
अपना और आरफा का पासपोर्ट बांग्लादेश के दूतावास मे वीसा के लिये देकर वापिस लौट रहा
था कि तभी दिमाग मे आया कि नीलोफर के पासपोर्ट के बारे मे तो मै बिल्कुल भूल गया था।
मैने अपनी गाड़ी भारत के दूतावास की ओर मोड़ दी थी। दूतावास के बाहर पहुँच कर मैने शर्मा
को बाहर बुला लिया था। वह दूतावास से बाहर निकल कर मेरी ओर आ गया था। …मेजर साहब कैसे
है? …मै ठीक हूँ। आपसे एक सहायता मांगने आया हूँ। मैने नीलोफर का आधार कार्ड अपने पर्स
से निकाल कर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… इसका पासपोर्ट अर्जेन्ट मे चाहिये। यह हमारी एक
एस्सेट है। इसको जल्दी से जल्दी यहाँ से बाहर निकालना है। उसने आधार कार्ड को अपनी
जेब मे रखते हुए कहा… नूर मोहम्मद तो गायब हो गया है। आपको उसके बारे मे कुछ पता है?
…शर्माजी उसको वापिस पाकिस्तान बुला लिया गया था। …उसकी जगह कौन आया है? …आया था कहिए।
कर्नल शौकत अजीज ने उसका चार्ज लिया था। …कौन वही जिसकी दो दिन पहले हत्या हो गयी थी।
…जी। …अच्छा इजाजत दिजिये। यह पासपोर्ट कब तक तैयार हो जाएगा? …मेजर साहब, शाम तक आपके
आफिस मे पहुँचा दूँगा। मैने जल्दी से कहा… चार बजे मुझे अपना पासपोर्ट बांग्लादेश दूतावास
से लेने आना है। उसके बाद मै यहीं आ जाउँगा। शर्मा से विदा लेकर मै अपने घर की ओर चल
दिया था।
घर पहुँच कर अपना
लैपटाप खोल कर ढाका की फ्लाईट देखने बैठ गया था। हफ्ते मे तीन दिन ढाका की फ्लाईट थी।
आज की जा चुकी थी। अब दो दिन बाद की फ्लाईट थी। एक विकल्प था कि हम कलकत्ता से ढाका
जा सकते थे लेकिन वह भी कल ही हो सकता था। कुछ सोच कर मैने सीधी ढाका की फ्लाईट बुक
करके फिर यहाँ के हालात के बारे मे सोचना आरंभ कर दिया था। आईएसआई के नेटवर्क की कमर
टूट गयी थी लेकिन फिलहाल उनका नेटवर्क सिर कटे हुए दानव की भाँति था। अब जैसे ही कोई
नया आदमी आयेगा तो एक बार फिर से दानव उठ कर खड़ा हो जाएगा। मै अभी सोच रहा था कि तभी
आरफा सामने से निकलती हुई दिखी तो उसे आवाज देकर बुला लिया था।
…आरफा, दो दिन बाद
हम ढाका जा रहे है। मैने तुम्हारी आने-जाने की फ्लाईट कि टिकिट करवायी है लेकिन वापिस
आना न आना मैने तुम पर छोड़ दिया है। हमे तीन दिन मे उस जगह का पता लगाना है जहाँ पर
हिज्बुल के जिहादी प्रशिक्षण ले रहे थे। वह मुस्कुरा कर बोली… आप बेफिक्र रहिये। वहाँ
पहुँच कर पता चल जाएगा। उसको खुश देख कर मुझे तबस्सुम के साथ हमदर्दी हो रही थी। वह
बेचारी आरफा के जाने की बात सुन कर ही दुखी हो रही थी। आरफा के जाने के बाद मैने एक
नजर अपनी घड़ी पर डाली तो चार बजने वाले थे। तबस्सुम को बता कर मै बांग्लादेश दूतावास
की ओर चल दिया था। वीसा काउन्टर पर खासी भीड़ लगी हुई थी। मै हैरान था कि इतने सारे
लोग बांग्लादेश क्यों जा रहे थे। अचानक उस लाइन मे एक चेहरा देख कर मै सावधान हो गया
था। सिकन्दर रिजवी भी ढाका जा रहा था। मुझे जनरल रंधावा पर अचानक ताव आ गया था। मैने
उनसे साफ शब्दों मे कहा था कि उस पर कड़ी नजर रखी जाये। वह नेपाल पहुँच गया और अभी तक
उसकी खबर किसी ने नहीं दी थी। मै लाइन मे खड़ा अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। मेरा
नम्बर आया तो मैने रसीद आगे बड़ा दी थी। काउन्टर पर बैठे हुए आदमी ने रसीद देख कर दो
पासपोर्ट मेरी ओर बढ़ा दिये थे। दोनो पासपोर्ट पर वीसा की मौहर देख कर मै अपनी गाड़ी
की ओर बढ़ गया।
सिकन्दर रिजवी अभी
भी वहीं खड़ा हुआ अपने पासपोर्ट को चेक कर रहा था। कुछ सोच कर मै उसकी ओर चल दिया था।
…सलाम रिजवी साहब। पहचाना आपने? मुझे देख कर वह थोड़ा सा घबरा गया था। वह जल्दी से बोला…
अरे मियाँ आपको कैसे भूल सकता हूँ। आप यहाँ कैसे? …वीसा लगवाने आया था। कुछ माल ढाका
मे कस्टम ने रोक लिया है उसको छुड़वाने के लिये जाना पड़ रहा है। आप यहाँ कैसे खड़े है,
आपकी गाड़ी कहाँ है? …मियाँ यहाँ गाड़ी कौन देगा। टैक्सी की राह देख रहा हूँ। …वाह रिजवी
साहब। मेरे होते हुए आप टैक्सी से जाएँगें। कमाल है। आईये चलिये आपको मै छोड़ देता हूँ।
…नहीं मियाँ आपको तकलीफ होगी। …रिजवी साहब, यहाँ की खासियत है कि यहाँ से जाने वाले
के लिये सिर्फ एक ही सड़क है। दरबार रोड के आखिर मे पहुँच कर ही रास्ता अलग-अलग दिशा
की ओर जाता है। ऐसा करते है कि अगर वहाँ पहुँच कर आपको अलग दिशा मे जाना होगा तो वहाँ
से टैक्सी पकड़ लिजियेगा। यहाँ पर टैक्सी आसानी से नहीं मिलती है। सिकन्दर रिजवी मेरे
साथ चल दिया था।
रास्ते मे भारतीय
दूतावास की इमारत देख कर मैने कहा… रिजवी साहब पाँच मिनट यहाँ रुकना पड़ेगा। बीवी का
नया पासपोर्ट लेना है। इतना बोल कर मैने सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी कर दी और उतर कर मैने
शर्मा को फोन पर खबर कर दी थी। थोड़ी देर मे वह नीलोफर का पासपोर्ट और आधार कार्ड मुझे
देकर वापिस चला गया था। …रिजवी साहब देख लिजिये पाँच मिनट से ज्यादा आपको इंतजार नहीं
करवाया। …आपका यहाँ काफी रसूख है वर्ना तो लाईन मे लग कर पासपोर्ट मिलता है। …यह रसूख
नहीं है रिजवी साहब। हम वतन है तो इतना लिहाज कर देते है। बताईये आप कहाँ ठहरे है?
अपने पार्टी गेस्ट हाउस मे ठहरा हूँ। …कुछ भी कहिये कम्युनिस्ट पार्टी का यहाँ पर जलवा
ही कुछ और है। वह तो रास्ते मे ही पड़ेगा। मै वहीं छोड़ देता हूँ। इतना बोल कर मै उसके
गेस्ट हाउस की ओर चल दिया था। …आप पार्टी के
काम से ढाका जा रहे है? …जी। मैने उसे पार्टी के गेस्ट हाउस पर उतार कर आगे निकल गया
था। इतनी देर मे मुझे इतना तो आभास हो गया था कि सिकन्दर रिजवी भले ही मेरी शक्ल को
पहचान गया होगा परन्तु मेरा नाम उसे याद नहीं था।
शाम हो चली थी घर
जाने के बजाय मै नीलोफर से मिलने के लिये उसके फ्लैट की ओर चल दिया था। हमारी युनिट
के चार सैनिक अभी भी उसके फ्लैट पर पहरा दे रहे थे। फ्लैट मे घुसते ही मेरी नजर सोफे
पर बैठी नफीसा पर पड़ी तो मेरे कदम एकाएक रुक गये थे। मुझे देखते ही नीलोफर उठते हुए
बोली… तीन दिन से कहाँ गायब थे? हम सब रोज तुम्हारी राह देख रहे थे। मैने मुस्कुरा
कर कहा… एक काम मे फँस गया था। नफीसा से कुछ दूरी बना कर मै सोफे के एक किनारे मे बैठ
गया था। …जेनब तुम दोनो ने अपने पासपोर्ट का क्या किया? …अर्जी लगाने गये थे लेकिन
वह पुलिस रिपोर्ट की कापी मांग रहे है। इसीलिये आपसे बात करना चाह रही थी। हम पुलिस
के चक्कर मे नहीं पड़ना चाहते। आप कहे तो एक बार नूर अंकल के घर चल कर अपना पर्स ले
आते है। …मुझे एक दिन का समय दो। इसके बारे मे सोच कर बताऊँगा। मैने नीलोफर से बात
करने के लिये मुँह खोला ही था कि तभी नफीसा ने गरदन घुमा कर मेरी ओर देखते हुए कहा…
आप जेनब के लिये सोचना क्योंकि मै कहीं नहीं जा रही हूँ। मेरी उससे आँख मिलाने की हिम्मत
नहीं हो रही थी। मैने मुस्कुरा कर सिर्फ इतना कहा… पासपोर्ट का मतलब टिकिट नहीं होता
या पासपोर्ट मिलने के बाद इस जगह को छोड़ना अनिवार्य नही हो जाता। उसे लेकर रखने मे
क्या बुराई है। उसके बाद जब मन चाहे तब इस्तेमाल कर लेना। जेनब और नीलोफर ने भी अपनी
गरदन हिला कर मेरी बात अनुमोदन कर दिया था।
…नीलोफर, मुझे तुमसे
कुछ बात करनी है। …हाँ बोलो। एक पल बोलने मे झिझका कि नफीसा उठते हुए बोली… क्या आप
हमारे सामने बात नहीं करना चाहते? मैने जल्दी से कहा… नहीं ऐसी बात नहीं है। प्लीज
तुम भी बैठ जाओ। वह चलते हुए बोली… लेकिन मुझे आपसे अकेले मे बात करनी है। मै अपने
कमरे मे जा रही हूँ। अपनी बात समाप्त करके अन्दर आ जाईएगा। यह बोल कर वह बेडरुम मे
चली गयी थी। नीलोफर ने जेनब की ओर देख कर पूछा… इसे अचानक क्या हो गया? जेनब उठते हुए
बोली… पता नहीं। मेजर साहब आप बात किजिये। मै तब तक आपके लिये चाय लेकर आती हूँ। वह
रसोई की ओर बढ़ गयी थी। मैने अपनी जेब से नीलोफर का पासपोर्ट निकाल कर दिखाते हुए कहा…
मेरा काम पूरा हो गया है। अब तुम्हें अपना वादा पूरा करना है। वलीउल्लाह कौन है? नीलोफर
मुस्कुरा कर बोली… इतनी जल्दी नहीं समीर। यहाँ से निकलने से पहले तुम्हे बता दूंगी।
मैने मन मसोस कर उसका पासपोर्ट उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… बैंक वाली बात के बारे मे कुछ
सोचा? अपना पासपोर्ट लेकर देखते हुए वह बोली… मेरा अकाउन्ट तो खुल गया है। बस यह पैसे
जमा कराने है। मै उठ कर चलने के लिये खड़ा हुआ तभी जेनब चाय लेकर आ गयी थी। मुझे चाय
का प्याला पकड़ाते हुए जेनब ने कहा… एक बार उस से भी बात कर लिजिये।
जेनब की बात को अनसुना
करते हुए मैने चाय पीते हुए कहा… नीलोफर, बस इतना याद रखना कि अगर इस बार बिना बताये
भागने की कोशिश की तो फिर हमारा करार समाप्त हो जाएगा। मै तीन दिन के लिये बाहर जा
रहा हूँ। तब तक अपने वीसा के सारे कागज वगैराह तैयार कर लेना। अगर वह किसी की गारन्टी
मांगेगें तो मै लौट कर दे दूंगा। मेरी चाय समाप्त हो गयी थी। मैने चलते हुए कहा… जेनब,
अब मुझे नूर मोहम्मद के घर के बारे मे जानकारी इकठ्ठी करनी है। तुम दोनो के पासपोर्ट
निकालना मेरी प्राथमिकता है। नफीसा को भी बता देना कि मेरी बात उसके अब्बू से हो गयी
है। वह सही सलामत जहाँ जाना चाहते थे वह पहुँच गये है। इतना बोल कर मै तेजी से चलते
हुए फ्लैट से बाहर निकल आया था। वहाँ से निकल कर मै अपने घर की ओर चल दिया था। अब इस
मामले मे तबस्सुम ही मेरी मदद कर सकती थी। मै घर पहुँच कर सीधे उसके पास चला गया था।
…तबस्सुम तुम्हारी
मदद चाहिये। …क्यों शबाना से बात करनी है? मैने मुस्कुरा कर कहा… अब तुम मुझे समझ गयी
हो। जेनब और नफीसा का पासपोर्ट उनके पर्स मे रखा है। क्या वह उनके पासपोर्ट निकाल कर
हमे दे सकती है? …वह बेचारी कैसे देगी? आपको जाना पड़ेगा। ऐसा क्यों नहीं करते कि हम
दोनो उससे मिलने के लिये उसके घर चलते है। …झांसी की रानी फिलहाल तुम्हें किसी भी प्रकार
के सफर करने से मना किया गया है। …क्यों क्या मै आपके साथ डाक्टर के पास नहीं जाती।
आईये चलते है। उसको टालते हुए मैने कहा… पहले एक बार फोन पर बात करके देख लो कि क्या
उसे नूर मोहम्मद की मौत का पता चल गया है। तबस्सुम ने तुरन्त अपना फोन उठाया और शबाना
का नम्बर मिलाने बैठ गयी थी। …घंटी बज रही है लेकिन वह फोन नहीं ले रही है। वह अपने
आप ही काल करेगी। तबस्सुम ने अपना फोन रख दिया था। …आरफा ने बताया कि आप दो दिन के
बाद ढाका जा रहे है। मैने दोनो पासपोर्ट दिखाते हुए कहा… हाँ। अभी वहाँ का वीसा लगवा
कर लौटा हूँ। …आप ढाका किस लिये जा रहे है? कुछ सोच कर मैने कहा… आफिस के काम से जाना
पड़ रहा है। बांग्लादेश की इन्टेलीजेन्स ने कुछ जमात के ठिकानों पर रेड डाली थी। वहाँ
कुछ ऐसे सुबूत मिले थे जिसका संबन्ध भारत मे होने वाले धमाकों से है। मुझे वह सुबूत
लाने के लिये भेजा जा रहा है। वह चुप होकर बैठ गयी थी।
कुछ देर के बाद उसे
वहीं आराम करने के लिये छोड़ कर मै उपर हाल मे चला गया था। मैने जनरल रंधावा से संपर्क
करने के लिये बोल कर अपना हेडफोन लगा कर उनसे बात करने के लिये तैयार हो गया था। दो
मिनट के बाद जनरल रंधावा का चेहरा स्क्रीन पर उभरा… बोलो मेजर। …सर, मैने सिकन्दर रिजवी
पर निगरानी रखने के लिये कहा था। …मेजर, वह हमारी नजरों मे कुछ दिन पहले तक था। राजस्थान
मे एक पुलिस एन्काउन्टर मे दो आतंकवादी पकड़े थे। उन्होंने सिकन्दर रिजवी के बारे मे
बताया था। एनआईए का एक दल उसे हिरासत मे लेने के लिये आजमगढ़ पहुँचा था। उसकी बिरादरी
के लोगो ने उनका रास्ता रोक लिया जिसके कारण वह बच कर भागने मे सफल हो गया। अब उसका
फोन नम्बर भी बन्द पड़ा हुआ है। तुम उसके बारे मे क्यों पूछ रहे हो? …सर, वह आज मुझे
बांग्लादेश दूतावास के बाहर मिला था। …काठमांडू में। …यस सर। वह कम्युनिस्ट पार्टी
के गेस्ट हाउस मे ठहरा हुआ है। परसों वह ढाका भागने की फिराक मे है। …थैंक्स मेजर।
अब इस आब्सरवेशन पोस्ट का फायदा मिलना शुरु हो गया है। मै वहाँ के डीजी से बात करता
हूँ। बस इतनी बात करके उन्होंने फोन काट दिया था। अब मुझे समझ मे आ गया कि क्यों सिकन्दर
रिजवी मुझे वहाँ देख कर घबरा गया था।
मै जब नीचे आया तो
तबस्सुम मुझे देखते ही बोली… चलिए मुझे अभी शबाना बाजी से मिलना है। …क्यों क्या हुआ?
…उनका फोन आया था। आज सुबह ही उनके दूतावास ने नूर मोहम्मद की मौत की खबर शबाना को
दी है। यह खबर सुन कर वह बेचारी टूट गयी। उसे बच्चों समेत वापिस पाकिस्तान भेजने की
तैयारी की जा रही है। तभी आरफा ने आकर एक बड़ा सा लिफाफा मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… यह
अभी आपके लिये कुरियर से आया है। मै लिफाफे को देखते ही पहचान गया था। शुजाल बेग का
डोजियर था। मैने उस पर मौहर लगी हुई देखी तो वह लिफाफा पाकिस्तान के बजाय श्री लंका
से आया था। इसका मतलब था कि शुजाल बेग ने यह सब पाकिस्तान से बाहर रह कर किया था। मैने
उस लिफाफे को संभाल कर रख दिया और तबस्सुम को लेकर शबाना से मिलने के लिये चल दिया
था।
रात के आठ बज रहे
थे। नूर मोहम्मद के घर के बाहर कड़ा पहरा लगा हुआ था। मैने गाड़ी को सड़क के किनारे खड़ी
करके तबस्सुम को लेकर लोहे की गेट की ओर चल दिया था। हमे अपनी ओर बढ़ता देख कर एक सैनिक
हमारे पास आया तो मैने जल्दी से कहा… शबाना जी से मिलना है। हम अभी नूर मोहम्मद साहब
के बारे मे खबर मिली तो गमी मे शामिल होने के लिये आये है। तबस्सुम की ओर देख कर वह
बोला… आपका क्या नाम है? …समीर और अंजली कौल। उनसे मिल कर वापिस चले जाएँगें। वह सैनिक
हमे वहीं छोड़ कर वापिस चला गया था। कुछ देर बाद आकर बोला… अन्दर चले जाईये। लेकिन सुरक्षा
कारणों से आपकी चेकिंग होगी। मैने जल्दी से कहा… मेरी चेकिंग आप कर सकते है लेकिन मेरी
बीवी को चेकिंग की बात तो दूर आप उसे छूने की कोशिश भी नहीं करेंगें। वह जल्दी से बोला…
नहीं आप गलत समझ रहे है। आपकी गाड़ी की चेकिंग करनी पड़ेगी। …गाड़ी यहीं बाहर खड़ी रहेगी।
हम अन्दर पैदल जाएंगे। हम उसके साथ चल दिये थे। हमारे पहुँचते ही किसी ने छोटा गेट
खोल दिया था। हम पैदल ही गेट से निकल कर घुमावदार रास्ते से होते हुए मुख्य द्वार पर
पहुँच गये थे।
एक सैनिक वहाँ खड़ा
हुआ था। वह हमे सीधा शबाना के पास ले गया था। सूजी हुई आँखें लिये शबाना सोफे पर बैठी
हुई थी। तबस्सुम को देख कर वह उठ कर खड़ी हो गयी और तबस्सुम से गले मिल कर दहाड़ मार
कर रोने लगी। तबस्सुम उसको सांत्वना दे रही थी और वह लगातार रोती चली जा रही थी। जब
वह शांत हो गयी तब मैने पूछा… यह कैसे हो गया? शबाना ने अपने आँसू पौंछ्ते हुए कहा…
आज मुझे बताया कि हार्ट एटैक होने के कारण दो दिन पहले वह खत्म हो गये थे। उन्हें एक
जरुरी काम के लिये रावलपिंडी बुलाया गया था। मीटिंग के दौरान यह हादसा हुआ था। जब तक
अस्पताल पहुँचे तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था।
तबस्सुम ने पूछा…
बच्चे कहाँ है? …सभी अपने कमरे मे है। …उन्हें बता दिया? …अंजली तुम ही बताओ कि यह
बात उन्हें कैसे बताऊँ। …आईये बाजी उनके पास चलते है। मैने उन्हें रोकते हुए पूछा…
आपके लिये उन्होंने कोई इंतजाम किया है? …भाईजान, बस इतना कहा है कि हमारी वापिसी अब
जल्दी से जल्दी हो जाएगी। इतनी बात करके वह दोनो बच्चों से मिलने के लिये चली गयी थी।
मै अकेला उस रुम मे बैठा रह गया था। मै जानता था कि वह लोग मेरी हर हरकत पर नजर रख
रहे थे। जब तक वह लौटी नहीं मै तब तक जहाँ बैठा हुआ था वहीं बैठा रहा था। उनको आता
हुआ देख कर मै उठ कर खड़ा हो गया। अंजली ने चलते हुए शबाना से गले मिल कर बोली… बाजी,
आपकी बहन यहीं पर है। आपको किसी भी चीज की जरुरत पड़े तो निसंकोच कह देना। बीच रात मे
उठ कर चली आऊँगी। शबाना हमे बाहर गेट तक छोड़ने आयी थी। मैने चलते हुए बस इतना ही कहा…
खुदा पर भरोसा रखिये। अपने जाने की तारीख की खबर दे दिजियेगा। हम आ जाएँगें। इतनी बात
करके हम बाहर निकल आये थे।
हम दोनो गाड़ी मे बैठे
और वापिस अपने घर की ओर चल दिये थे। कुछ दूर निकलने के बाद तबस्सुम ने दोनो पासपोर्ट
देते हुए कहा… शबाना बता रही थी कि शौकत अजीज ने नूर मोहम्मद की हत्या की है। मैने
उसकी ओर चौंक कर देखा तो वह बोली… उस कमीने ने शबाना को अपने साथ रखने का प्रस्ताव
दिया था। नूर मोहम्मद जिस दिन गायब हुआ उसी दिन शौकत अजीज इस घर मे उसके साथ रहने के
लिये आ गया था। …तुमने शबाना से पासपोर्ट की बात कब करी थी। …जब हम बच्चों से मिलने
गये थे। चारों बच्चे उसी कमरे मे बैठे हुए थे जिसमे वह दोनो रुकी थी। बच्चों से बात
करते हुए शबाना ने उनके पर्स से दोनो पासपोर्ट निकाल कर मुझे पकड़ा दिये थे। …यह सिर्फ
तुम्हारी फौज मे मुम्किन है। ऐसा काफिरों की फौज मे कभी नहीं हो सकता। अगर ऐसी किसी
ने हिम्मत भी की होती तो उसकी सजा मौत है। वह घूर कर मेरी ओर देखते हुए बोली… वह फौज
मेरी नही है। अगर ऐसा किसी ने मेरे साथ किया होता तो वह उसी वक्त खुदा को प्यारा हो
गया होता। अब मेरा निकाह एक काफ़िर से हो गया है जो काफ़िरों की फौज मे अधिकारी है। इसलिये
ऐसा इल्जाम लगाने की कोशिश मत करना। अचानक मुझे अपनी भूल का एहसास हो गया था। मैने
जल्दी से स्टीयरिंग छोड़ कर अपने दोनो कान पकड़ते हुए कहा… झांसी की रानी मुझसे भूल हो
गयी, मुझे माफ कर दिजिये। अचानक गाड़ी ने लहका खाया तो वह चिल्लायी… आप क्या कर रहे
है। मैने जल्दी से स्टीयरिंग संभालते हुए कहा… सौरी। यह सारी गड़बड़ी अंजली और तबस्सुम
के चक्कर मे हो जाती है। अब से मै तुम्हें सिर्फ अंजली कहा करुँगा जिससे ऐसी गलती दोबारा
नहीं होगी। …यह तो मैने पहले ही कहा था लेकिन आप मेरी बात कहाँ मानते है।
उस रात काफी दिनो
के बाद चैन की नींद आयी थी। अगले दिन सुबह तैयार होकर नीलोफर के फ्लैट पर चला गया था।
मुझे सुबह आया देख कर नीलोफर चौंक गयी थी। …वह दोनो कहाँ है? नफीसा बेडरुम से बाहर
निकलते हुए अपने बाल लपेटते हुए एक जूड़ा सा बना कर बोली… आपके सपने देख रही थी और आप
सामने आ गये। काश कुछ और सोचा होता तो वह भी पूरा हो गया होता। उसके पीछे-पीछे जेनब
भी बेडरुम से निकल कर आ गयी थी। नीलोफर चाय बनाने चली गयी थी। दोनो मेरे सामने आकर
बैठ गयी थी। मैने जेब से उनके पासपोर्ट निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा… अमरीका मे तुम
दोनो कहाँ रहती हो? …मै न्युयार्क मे रहती हूँ और नफीसा को शिकागो जाना है। …मै तुम्हारी
टिकिट बनवा रहा हूँ। यहाँ से जितनी जल्दी निकल जाओगी उतनी जल्दी सुरक्षित हो जाओगी।
यह तुम्हारे अब्बू ने कहा है। शबाना भी पाकिस्तान लौट रही है। यह जगह दोनो परिवारों
के लिये अब सुरक्षित नहीं है।
नीलोफर भी आ गयी थी।
उनके पासपोर्ट देख कर वह खुशी से चीखते हुए बोली… समीर तुम जरुर कोई जिन्न हो क्योंकि
उनकी नाक के नीचे से यह पासपोर्ट निकाल लाये। मैने जल्दी से कहा… यह काम मैने नहीं
किया है। मेरी बीवी अंजली ने इस काम को अंजाम दिया है। उसे भी इन दोनो की चिन्ता सता
रही थी। इसलिये शुक्रिया करना है तो उसका करना। मै चाय पीकर जैसे ही चलने के लिये खड़ा
हुआ तो नफीसा ने कहा… मेरी टिकिट कराने की जरुरत नहीं है। आप मेरी टिकिट खरीद कर अपने
पैसे बेकार करेंगें। …कोई बात नहीं। मै टिकिट खरीद रहा हूँ क्योंकि मैने तुम्हारे अब्बू
से वादा किया था। अचानक नीलोफर बोली… नफीसा, यह जगह तुम दोनो के लिये सुरक्षित नहीं
है। आखिर तुम क्यों नहीं जाना चाहती। जेनब भी बोली… नफीसा, यह कैसा बचपना है। मेजर
साहब सही तो कह रहे है। नफीसा खड़ी हो गयी और मेरी ओर देखते हुए बोली… मेजर साहब आप
को पता है कि मै क्यों नहीं जा सकती। इतना बोल कर वह अपने कमरे मे चली गयी थी। दोनो
मेरा चेहरा देख रही थी। गुस्से से मेरा चेहरा लाल हो रहा था। …समीर क्या बात है? …कुछ
नहीं बस स्त्री हट है। मै अभी आता हूँ। यह बोल कर मै तेज कदमो से चलते हुए नफीसा के
कमरे मे चला गया था।
वह बिस्तर पर बैठी
शून्य मे घूर रही थी। दरवाजा बन्द होने की आवाज सुन कर उसने चौंक कर दरवाजे की ओर देखा
तो मुझे अपने सामने देख कर वह उठ कर खड़ी हो गयी थी। …कहिये मेजर साहब आज मेरी याद कैसे
आ गयी? मै कुछ पल उसे घूरता रहा और फिर धीरे से बोला… कहना तो बहुत कुछ है तुमसे परन्तु
आज कुछ कहने की स्थिति मे नहीं हूँ। इस वक्त तुम दोनो की सुरक्षा की जिम्मेदारी मुझ
पर है। अगर तुमको कुछ हो गया तो क्या मै अपने आप को कभी माफ कर सकूँगा? मैने आज तक
तुमसे कभी कुछ नहीं मांगा है लेकिन आज मांग रहा हूँ। अगर तुम मुझसे सच्ची मोहब्बत करती
हो तो प्लीज जितनी जल्दी हो सके यहाँ से निकल जाओ। वह कुछ देर मुझे देखती रही और फिर
बोली… सच बताईये आप किसको भुलाना चाह रहे है? एक पल के लिये मेरे मुख पर ताला लग गया
था। वह फिर बोली… उस रात सरिता के जरिये आप मुझे भुलाना चाह रहे थे। है न? मै कुछ भी
बोलने की स्थिति मे नहीं था। मै मुड़ कर वापिस जाने लगा तो वह अचानक रुआंसी होकर बोली…
उस रात जो कुछ भी हुआ उसके लिये मै शर्मिन्दा नहीं हूँ। भले ही उस रात आप नशे मे थे
लेकिन आपने अपनी मोहब्बत का इजहार मेरे सामने खुद किया था। वह कुछ और बोलती उससे पहले
मै दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया था। जेनब और नीलोफर बाहर खड़ी हुई मेरा इंतजार कर रही
थी। …अच्छा मै चलता हूँ। कल तक तुम दोनो की टिकिट मिल जाएगी। इतना बोल कर मै फ्लैट
से बाहर निकल आया था।
मुझे अपने उपर निरन्तर
गुस्सा आ रहा था। सरिता ने भी इसी बीच तीन चार बार फोन किया था लेकिन मैने उसका फोन
नहीं उठाया था। मै अपनी गाड़ी मे सिर पकड़ कर बैठ कर सोचने लगा कि अगर नफीसा अपनी जिद्द
पर अड़ी रही तब मै क्या करुँगा। इसी सोच मे गुम मै अपने घर वापिस आ गया था। लन्च समाप्त करके हम दोनो बेड पर
लेटे हुए थे। नफीसा से अपना दिमाग हटाने के लिये ब्रिगेडियर शुजाल बेग का डोजियर खोल
कर पढ़ने बैठ गया था। तीन भाग का डोजियर था। पहले भाग मे फौज मे क्या चल रहा था। कैसे
आईएसआई के निदेशक जनरल मंसूर बाजवा ने अफगानिस्तान और बलूचिस्तान मे करोड़ों रुपयों
का हेर फेर किया था। उसने तंजीमो के मुखियाओं की मदद से तीन साल मे अफगानिस्तान की
ड्र्ग्स का एक विस्तृत नेटवर्क खड़ा कर दिया था। मुख्य सेनाधिकारियों को लड़कियाँ और
पैसे मुहैया करा कर उनका डोजियर तैयार करता था। वक्त पढ़ने पर उन्हें उस डोजियर को दिखा
कर ब्लैक मेल भी करता था। सारे कोर कमांडरों के डोजियर उसने तैयार किये थे। उस डोजियर
मे उन्होंने कब किस प्रोजेक्ट या डील से कितना पैसा खाया था, किसकी बीवी, बहन अथवा
बेटी को अपने साथ सुला कर उसको तरक्की दी थी, किसकी दौलत कौनसे देश मे जमा है, इत्यादि
जैसी जानकारी उसने तारीख और लोगों के नाम भी दिये हुए थे। मै बस इतना ही समझ सका था
कि सारा सड़ा गला फौजी इदारा मंसूर बाजवा की मदद से जनरल शरीफ के हाथों की कठपुतली बना
हुआ था।
डोजियर पढ़ते-पढ़ते
मेरी नजर एक पैरा की ओर चली गयी थी जहाँ मेजर हया इनायत मीरवायज नाम लिखा हुआ था। वह
नाम देख कर मै उत्सुकतावश उसे पढ़ने बैठ गया था। उसमे किसी मुरी की घटना का जिक्र किया
था। कोर कमांडरों की एक कान्फ्रेंस मे हुए एक हादसे का जिक्र था। ब्रिगेडियर शुजाल
बेग उस कान्फ्रेंस का इंतजाम देख रहे थे। अतिथियों की सुविधा को मेजर हया की टीम देख
रही थी। उद्घाटन के लिये मंसूर बाजवा मुरी आया था। उद्घाटन की रात को मंसूर बाजवा ने
मेजर हया के साथ बलात्कार करने की कोशिश की तो हया ने उसकी पिस्तौल निकाल कर उसकी मर्दान्गी
को ही निशाना बना कर फायर कर दिया था। मंसूर बाजवा आखिरी समय पर घूम गया था जिसके कारण
उसकी मर्दान्गी तो जैसे-तैसे बच गयी परन्तु गोली ने उसके कूल्हे की हड्डी तोड़ दी थी।
मंसूर बाजवा को रातों रात रावलपिंडी के मिलिट्री अस्पताल मे इलाज के लिये भेज दिया
गया। वहाँ तो मंसूर बाजवा ने सिर्फ उसे एक्सीडेन्टल फायर की कहानी सुना कर केस दबा
दिया था परन्तु जब वह वापिस आया तो उसने एक फर्जी जाँच बिठायी और जाँच रिपोर्ट बनाने
काम उसने मेजर फारुख मीरवायज के हाथों दे दिया था। फारुख ने अपनी तरक्की के लिये अपनी
ही बहन के खिलाफ रिपोर्ट तैयार की थी। उस रिपोर्ट के आधार पर मेजर हया के खिलाफ हत्या
की साजिश का इल्जाम लगा कर कोर्ट मार्शल का आदेश दे दिया गया था। उस दिन से मेजर हया
वहाँ से फरार हो गयी थी। ब्रिगेडियर शुजाल बेग ने उस रात की घटना के तीन चश्मदीद गवाह
का नाम देकर लिखा था कि ऐसे आदमी के कारण विभाग ने एक बेहतरीन काबिल अफसर को हमेशा
के लिये खो दिया था।
मैने वह पैरा दो तीन
बार पढ़ा था। मै बहुत देर तक मेजर हया इनायत मीरवायज के बारे मे सोचता रहा फिर अगले
भाग को पढ़ने बैठ गया था। अगला भाग आप्रेशन खंजर था। उसमे वही कुछ बताया था जो शुजाल
बेग ने हमे बताया था। इधर बस एक खास चीज का पता चला था कि सारे कोर कमांडर इस आप्रेशन
से अनिभिज्ञ थे। तीसरा पैरा वलीउल्लाह के बारे मे था। मंसूर बाजवा ने किसी कशमीरी तंजीम
के नेता को ब्लैकमेल करके उसकी लड़की जो सेना मे काम कर रही थी उसको कोडनेम वलीउल्लाह
दिया था। वह लड़की समय-समय भारतीय सेना की गोपनीय जानकारी बाजवा को दे रही थी जिसे वह
आईएसआई की ओर से इंटेल रिपोर्ट के नाम से कमांडरों को ही नहीं बल्कि तंजीमो को भी दिया
करता था। पाकिस्तानी फौजी इदारे मे मंसूर बाजवा ने एक और प्रभावशाली गुप्त इदारा खड़ा
कर दिया था जो सिर्फ उसके इशारों पर काम करता था।
आखिरी भाग कहना अनुचित
होगा क्योंकि शुजाल बेग ने अपनी ओर से आप्रेशन खंजर की खामियाँ और होने वाले खतरे से
आगाह किया था। उसका मानना था कि दुश्मन कार्गिल से सबक लेकर सीख चुका है और इसका परिणाम
पाकिस्तान की पूर्ण बर्बादी था। दुश्मन की नौसेना के आगे पाकिस्तान की पूरी फ्लीट एक
घंटे से ज्यादा टिक नहीं सकेगी। अगर कहीं भारत ने अपने पश्चिमी फ्रंट को खोल दिया तो
पाकिस्तान की फौज दो दिन से ज्यादा मुकाबला नहीं कर सकेगी। आखिर मे उसने लिखा था कि
परमाणु युद्ध भले ही विकल्प हो लेकिन पाकिस्तान कभी उसका इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं
करेगा क्योंकि भारत की तरफ से जब जवाबी हमला होगा तो पाकिस्तान नक्शे से साफ हो चुका
होगा। भारत सिर्फ एक करोड़ जान का नुकसान उठाएगा परन्तु जवाब मे उसकी बीस करोड़ आवाम
साफ हो जाएगी। यह भी तब है कि जब भारत अपनी ओर से पहल नहीं करता और कहीं उसने पहल की
तो इन दो आदमियों की बेवकूफी के कारण पूरा पाकिस्तान तबाह और बर्बाद हो जाएगा।
सारा डोजियर पढ़ कर
मेरी आँखें भारी होने लगी थी तो सारे कागज वापिस लिफाफे मे डाल कर अपने सिरहाने के
पास रख कर सो गया था। मेरी जब आँख खुली तो मेरी नजर तबस्सुम की ओर चली गयी थी। वह बड़े
ध्यान से डोजियर पढ़ रही थी। मै धीरे से उठा तो उसने मेरी ओर देखा तो उसकी आँखें एकाएक
छलक गयी थी। मैने जल्दी से उठ कर अपनी बाँहों मे कसते हुए कहा… अरे झांसी की रानी तुम्हारी
आँखों मे आँसू शोभा नहीं देते है। तुम यह क्या पढ़ने बैठ गयी और इसमे ऐसा तो कुछ नहीं
है जिसके कारण तुम दुखी हो गयी हो। यह सब तो फौज मे चलता रहता है। वह अगर आप्रेशन खंजर
करते है तो हम भी आप्रेशन तलवार करते है। हमारा काम है कि हम आप्रेशन खंजर को विफल
करे और उनकी फौज के लोग हमारी तलवार को विफल करने की कोशिश करते है। वह अचानक मुझसे
अलग होकर बोली… क्या आपके यहाँ कोई जनरल किसी मेजर की इज्जत लूटने की कोशिश कर सकता
है? …तो तुमने अपनी खाला की कहानी पढ़ ली है? वह सारे कागज वापिस लिफाफे मे डालने लगी
तो मैने उसका हाथ पकड़ कर कहा… जब मैने पूछा था तब तुमने कहा कि इस नाम से तुम्हारी
कोई खाला नहीं है। …तो क्या बताती। पीरजादा साहब ने फतवा जारी कर दिया था कि उनकी बेटी
का मीरवायज परिवार से कोई रिश्ता नहीं है। उसके नाम का फातिहा पढ़ कर उन्होंने अपनी
कौम को निर्देश दिया था कि अब से कोई हया का नाम नहीं लेगा। हया हमारे मीरवायज खानदान
के नाम पर बदनुमा दाग है। इतना बोल कर एक बार फिर से उसकी आँखें बहने लगी थी।
मैने उसे बाँहों मे
कस कर जकड़ते हुए कहा… मेरी झांसी की रानी आज पहली बार मुझे मेजर हया इनायत मीरवायज
से हमदर्दी हो रही है। अब मेरे कुछ-कुछ समझ मे आ रहा है। मैने ब्रिगेडियर साहब के सामने
एक शर्त रखी थी कि अगर वह हया को मेरे हवाले कर देंगें तो मै उन्हें छोड़ दूँगा लेकिन
शुजाल बेग जैसे आदमी ने भी यह कह दिया कि मेजर फिर मेरे रुकने का इंतजाम करो। एक बार
मैने नीलोफर से हया का पता बताने के लिये काफी हद तक धमकाया परन्तु वह बेइज्जत होने
को तैयार हो गयी परन्तु उसने हया के बारे मे कुछ भी बताने से इंकार कर दिया था। मै
सोच रहा था कि आखिर ऐसा क्या है उसमे कि शुजाल बेग और नीलोफर जैसे लोग भी उसके लिये
बेइज्जत और मरने के लिये तैयार हो गये थे। थोड़ा सा उसके बारे पढ़ कर कुछ-कुछ समझ मे
आ रहा है। तो मेरी झांसी की रानी अगर अब खुदा ने चाहा और कहीं उसका और मेरा आमना-सामना
हो गया तो उसे यह बात जरुर बताउँगा कि उसकी भतीजी ने उसके लिये कुछ आँसू छलकाये थे।
मेरी बात सुन कर वह मुस्कुरा कर बोली… तो फिर आप उस पर गोली नहीं चला सकोगे।
मैने उसके गाल को
सहला कर कहा… हया पर गोली तो मै वैसे भी नहीं चलाता क्योंकि अब वह फौजी नहीं है। अगर
कभी मेरा आमना-सामना हुआ तो उससे यह जरुर पूछता कि आखिर मेरी अम्मी और आलिया की हत्या
करने की साजिश उसने क्यों रची थी। वह फौजी थी तो उसे मुझ पर वार करना चाहिये था। अंजली
मुझसे लिपटते हुए बोली… बहुत दिनो के बाद आपने मेरे साथ इतना समय आज बिताया है। मैने
हंसते हुए कहा… बस इतने से खुश हो गयी तो क्या दोजख का प्रोग्राम कैन्सिल कर रही हो।
वह हंसते हुए बोली… अगर इतना समय मेरे साथ रोज बिताएंगें तो दोजख जाने की जरुरत नहीं
पड़ेगी। यह बोल कर वह उठ कर बाहर चली गयी थी। जेनब और नफीसा की टिकिट कराने के लिये
मै लैपटाप खोल कर बैठ गया था।