गहरी चाल-28
पाकिस्तान दूतावास,
काठमांडू
…क्या उसकी कुछ खबर
मिली? जनरल मसूंर बाजवा की आवाज सुनते ही कर्नल शौकत अजीज के चेहरे पर बैचैनी की लकीरें
खिंच गयी थी। वह जल्दी से बोला… जनाब, आपको जल्दी ही खबर करुँगा। हमें कुछ लीड्स मिली
है। …शौकत, तुमने ही कहा था कि अगर यह खबर फैल गयी तो वह तुरन्त सामने आकर हमें झूठा
साबित करने की कोशिश करेगा। परन्तु अभी तक ऐसा तो नहीं हुआ है। क्या यह माना जाये कि
वह अभी भी हिन्दुस्तानी फोर्सेज की कैद मे है? …नहीं जनाब, उसको काठमांडू मे देखा गया
है। हमारे पास पुख्ता सुबूत है। …तो फिर उसको उसके बिल से निकालने का उपाय सोचो। …जनाब
कुछ समय देंगें तो वादा करता हूँ कि उसको बेड़ियों मे जकड़ कर पाकिस्तान लेकर आउँगा।
…मियां पहले तो उसको ढूंढो उसके बाद यहाँ लाने की सोचना। …जी जनाब।
…शौकत, नूर मोहम्मद
के घर का क्या हाल है? …जनाब, दूतावास के सभी कर्मचारियों को बता दिया है कि इसके बारे
मे किसी से चर्चा करने की जरुरत नहीं है। कल शाम को उसकी बेटियाँ नूर मोहम्मद की बीवी
को लेकर किसी हिंदुस्तानी कारोबारी से मिलने गयी थी। वहाँ से वह देर रात को लौटी थी।
…कुछ पता चला कि वह कारोबारी कौन है? …जनाब, कुछ महीने पहले एक भारतीय कंपनी ने उसे
यहाँ के लिये पर अपना स्टाकिस्ट नियुक्त किया है। …उसके परिवार ने यह खबर किस तरह से
ली है? …जनाब, वैसे तो उसकी बीवी ने अभी तक कोई हंगामा तो नहीं खड़ा किया है। मैने उसे
सख्त लहजे मे समझा दिया है कि यह मसला फौजी का है इसलिये दूसरों के आगे सोच समझ कर
बोले।
…मौलाना ने कुछ बताया?
…नहीं जनाब। …हमने अपनी जाँच तो वहीं से शुरु की थी। वह शुजाल बेग के बारे मे कुछ नहीं
जानता है। …बांग्ला देश से अब फिदायीन वहाँ आना शुरु हो गये होंगें। …जी जनाब। मौलाना
के अनुसार चौबीस का दल काठमांडू पहुँच गया है। एक या दो दिन मे पचास का समूह भी यहाँ
पहुँच जाएगा लेकिन मौलाना ने कल मुझे बुला कर हथियारों और पैसों की मांग रखी है। उसका
कहना है कि यहाँ भीड़ इकठ्ठी नहीं होनी चाहिये। उन लोगों को पैसे और हथियार देकर जल्दी
से जल्दी हिन्दुस्तान भेज देना चाहिये। आप्रेशन शुरु करने लिये उन्हें समय से पहले
अपनी लोकेशन पर पहुँच जाना चाहिये। …तुमने पैसों और हथियारों का कोई वादा तो नहीं किया
है? …नहीं जनाब। मैने बस इतना कहा है कि वहाँ पहुँच कर मै उसकी बात आपके सामने रख दूँगा।
…ठीक है। बस यह याद रखना कि तुम दोनो मे से कोई एक यहाँ पहुँचेगा। खुदा हाफिज। इसके
साथ फोन कट गया था। जनरल की आखिरी लाइन सुन कर कर्नल शौकत अजीज की पेशानी पर पसीना
आ गया था। अपनी गिरती हुई साख को बचाने का उसके पास यही आखिरी मौका था।
कुछ सोच कर मैने सामने
खड़ी हुई सरिता से पूछा… अगर तुम चाहो तो मै बिस्ट से बात करके देख सकता हूँ। लेकिन
एक बात ध्यान रखना कि जो आदमी पचास हजार के लिये तुम्हारा साथ छोड़ सकता है तो क्या
गारन्टी है कि वह कल किसी और बात पर तुम्हारा साथ नहीं छोड़ देगा। सरिता ने एक कागज
का पुर्जा मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… यह मेरा पता है। शाम को एड्वांस की रकम लेकर आ जाईएगा।
मै आपको उस नम्बर का पता बता दूँगी और कल से दूसरे नम्बर की काल आपके फोन पर आनी शुरु
हो जाएगी। …शाम को मुझे एक काम है। मै देर रात तक ही आ सकूँगा तो तुम्हें कोई परेशानी
तो नहीं होगी। …आपका इंतजार करुँगी। इतना बोल कर वह वापिस चली गयी थी। सरिता के एडवांस
का इंतजाम शाम से पहले करना था तो मै वहाँ से सीधा अपने बैंक की ओर चल दिया।
बैंक का काम निपटा
कर मै अपने गोदाम की ओर रुख किया। गोदाम पर रोजमर्रा की तरह लोडिंग और अनलोडिंग का
काम चल रहा था। मै सीधा अपने संपर्क केन्द्र मे चला गया था। मैने सबसे पहले अजीत सर
से बात करके अभी तक की सारी जानकारी देकर पूछा… सर, आपकी उस मीटिंग का क्या परिणाम
निकला? …मेजर, आप्रेशन खंजर के कार्यान्वित होने से पहले ही हमे सैन्य कार्यवाही का
निर्देश मिल चुका है। तीनो सेना के अंग अलर्ट पर है और पठानकोट की घटना के लिये एक
मजबूत सैन्य प्रतिक्रिया के लिये उनसे सुझाव मांगे है। अब से पाकिस्तान फौज को भी नुकसान
झेलना पड़ेगा। कुछ देर अजीत सर से बात करने के बाद मैने जनरल रंधावा से बात की… सर,
उन नम्बरों का कुछ पता चला? …मेजर, उस चालीस की लिस्ट के सभी नम्बर कश्मीर के डेटाबेस
से मैच हो गये है। …यह तो बहुत अच्छी बात है। कश्मीर के डेटाबेस से सभी लोगों का विवरण
निकाल कर मुझे दे दिजिये। …मेजर, इतनी जल्दबाजी मत करो। वह चालीस नम्बर मिले जरुर है
परन्तु क्रास रेफ्रेन्सिंग मे वह नम्बर प्राथमिकता मे कभी नहीं रहे थे। कुछ मुख्य लोगों
के फोन की कोन्टेक्ट लिस्ट मे ही वह चालीस नम्बर पाये गये थे। यही कारण है कि वह नम्बर
कभी भी जाँच के लिये नहीं लिये गये थे। मुझे तुरन्त उनकी बात समझ मे आ गयी थी। …सर,
तो क्या उस भारतीय लिस्ट के नम्बरों का विवरण अभी तक नहीं मिल सका? …आज रात तक मिल
जाएगा। …सर, उन नम्बरों की टैपिंग करनी पड़ेगी क्योंकि फिदायीन भारत मे आकर उन्हीं लोगों
के संरक्षण मे अपने काम को अंजाम देने की कोशिश करेंगें। …यह मै भी सोच रहा हूँ। एक
बार उन लोगो की जानकारी मिल जाए तो फिर बैठ कर उनके लिये भी रणनीति बनाएँगें। मैने
कुछ देर उनसे बात करने के बाद फोन काट दिया था। शाम के सात बजने वाले थे। यह सोच कर
कि सारी स्काउट टीम हाल मे एकत्रित हो गयी होंगी मैने अपना हेडफोन हटाया और हाल मे
चला गया था।
एक बार फिर से मै
हाल मे बैठ कर अपने साथियों के साथ बात करने बैठ गया था। शाही मस्जिद मे कल जैसा ही
हाल था। सुबह दस बजे मौलाना कादरी मस्जिद मे आया था। उसके बाद से वह बाहर नहीं निकला
था। आज भी उससे मिलने वालों का तांता लगा रहा था परन्तु पाकिस्तानी दूतावास से कोई
मिलने नहीं आया था। उन दो आदमियों की पहचान एजाज कंस्ट्रक्शन के यार्ड पर नजर रखने
वाली टीम ने कर ली थी। वह दोनो वहीं के आदमी थे। अब कुछ-कुछ साफ दिखने लगा था। मौलाना
कादरी की शाही मस्जिद और कंस्ट्रक्शन यार्ड के बीच का संबन्ध अब साफ हो गया था। मनोहर
लाल शर्मा ने बताया था कि वह यार्ड आईएसआई का हाटस्पाट है। इसका मतलब तो साफ था कि
आईएसआई पूरे दल बल के साथ उस यार्ड मे बैठी हुई है और मौलाना कादरी के जरिये वह शुजाल
बेग को पकड़ने की फिराक मे है। सारी बात सुनने के बाद मैने कहा… कप्टेन यादव लगता है
कि हमे यार्ड मे अब जाना पड़ेगा। उस यार्ड की सेटेलाईट इमेजिस निकलवा लो और फिर उस पर
हमला करने की योजना तैयार करो। कल शाम को बैठ कर उस योजना पर बातचीत करके फाईनल करेंगें।
एजाज कंस्ट्रक्शन यार्ड पर जो टीम निगरानी कर रही है वह कल वहाँ पर उपस्थित आदमियों
की संख्या का एक पुख्ता अंदाजा लेकर वापिस आयेगी। अपने निर्देश देकर मै अपनी गाड़ी मे
बैठा और सरिता के घर की ओर चल दिया था।
काठमांडू शहर के बाहर
एक हाउसिंग सोसाईटी का पता था। मुझे उसके घर पहुँचने मे पौने दस बज गये थे। अपनी गाड़ी
सोसाईटी के बाहर पार्किंग मे खड़ी करके पैदल ही अन्दर चला गया था। तीन मंजिले अपार्टमेन्ट
एक लाइन से बने हुए थे। रात गहरी होने के कारण सिर्फ इक्का-दुक्का लोग ही दिख रहे थे।
उसका मकान ढूंढने मे मुझे ज्यादा परेशानी नहीं हुई थी। उसका दरवाजा खुलते ही समझ गया
था कि वह हल्के नशे मे थी। …बहुत देर कर दी आपने आने मे। मै उसके साथ अन्दर चला गया।
दो कमरे का फ्लैट था। मेज पर शराब की बोतल देख कर ही समझ गया था कि वह किस दौर से गुजर
रही थी। वह सूती कपड़े के नाइट गाउन मे थी। वह धीरे से बोली… साहबजी, आप बैठिये। मै
कपड़े बदल कर आती हूँ। मैने जल्दी से उसे रोकते हुए कहा… कोई बात नहीं। ऐसे ही बैठ जाओ।
वह सामने बैठने के बजाय मेरे साथ बैठ गयी थी। …साहबजी, कम से कम आप तो मेरे साथ बैठ
कर पी सकते है। उसने सामने रखे हुए ग्लास मे शराब डाल कर अपने अनुसार पानी मिला कर
मेरी ओर बढ़ा दिया था। एक घूंट गले से उतार कर मैने कहा… सरिता, वह पता दे दो। मेरी
ओर देखते हुए वह बोली… इतनी जल्दी किस लिये साहब। आप पहली बार मेरे घर आये है मुझे
भी स्वागत करने दिजिये। मेरी जेब मे अठ्ठाईस नम्बरों की लिस्ट रखी हुई थी। मै जानता
था कि बिना उसकी मदद के सबका पता मिलना मेरे लिये नामुमकिन था।
अपने पैर मेज पर रख
कर मै आराम से बैठ कर एक घूँट भर कर बोला… कुछ खाने का सामान है या सिर्फ भूखे पेट
पिला कर स्वागत कर रही हो। वह झेंप कर उठते हुए बोली… अभी लायी। यह बोल कर वह तेजी
से रसोई की ओर चली गयी थी। …आप मटन तो खा लेते है? …इतनी भूख लग रही है कि मै तुम्हें
भी खा सकता हूँ। वह खिलखिला कर हँस पड़ी थी। पाँच मिनट मे कुछ मटन के पीस एक प्लेट मे
डाल कर उसने मेरे सामने रखते हुए कहा… आज आपको यहाँ से भूखा नहीं जाने दूंगी। एक घूँट
भर कर मैने उसकी ओर देखा तो वह मुझे देख रही थी। …क्या देख रही हो? …कुछ नहीं। वह मेरे
साथ बैठ गयी और प्लेट से मटन का टुकड़ा उठाकर मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली… कुछ खाते भी रहिये।
उसने धीरे से वह टुकड़ा मेरे खुले हुए मुँह मे रख दिया था। बहुत तीखा मसाला था। अभी
भी उसकी उँगलियों पर तरी लगी हुई थी। मैने उसके हाथ को पकड़ कर अपने मुँह की ओर ले गया
और उसकी उँगलियों को अपने मुंह मे डाल कर कुछ देर तक तरी चूसने के बाद छोड़ कर कहा…
तुम तो इस मटन के टुकड़े से भी ज्यादा तीखी हो। मैने एक घूँट लेकर कहा… तुम न तो पी
रही हो और न ही खा रही हो। क्या बात है? उसने जल्दी से अपना ग्लास उठा लिया और एक घूँट
भर कर बोली… आज बहुत दिनो के बाद किसी के साथ बैठी हूँ। मैने मटन का टुकड़ा उसकी ओर
बढ़ाया तो उसने मेरे हाथ से लेने का प्रयत्न किया तो मैने गरदन हिला कर मना किया तो
उसने धीरे से अपना मुँह खोल दिया। मैने उसके मुँह मे मटन का टुकड़ा रख कर अपनी उंगली
उसके होंठों पर फिराते हुए कहा… अब तुम भी तरी का स्वाद ले लो। उसने भी वही किया जो
मैने उसके साथ किया था। ऐसे ही बात करते हुए शराब की बोतल आधी हो गयी और सारे मटन के
टुकड़े साफ हो गये थे।
खाने और पीने के पश्चात
मैने अपनी जेब से पचास हजार की गड्डी मेज पर रख कर वह लिस्ट निकाल कर उसके आगे करते
हुए कहा… सरिता, मुझे इन सब नम्बरों के पते चाहिये। उसका ध्यान लिस्ट के बजाय उस गड्डी
पर टिका हुआ था। …उठा लो। यह तुम्हारा एडवांस है। उसने मेरी ओर तिरछी निगाहों से देखा
और जैसे ही उसने गड्डी उठाने के लिये हाथ बढ़ाया मैने उसका हाथ पकड़ कर कहा… तुम्हारे
होठों पर अभी भी तरी लगी हुई है। वह अचानक मुझसे निगाहें मिला कर धीरे से बोली… आपको
ही तरी साफ करनी पड़ेगी। मैने उसका चेहरा पकड़ा और उसके होठों पर जुबान से वार करके हट
कर एक बार देख कर कहा… अभी और भी तरी लगी हुई है। इस बार उसके होंठ मेरे वार के लिये
धीरे से खुल गये थे। मै उसके होंठों का रसपान करने मे जुट गया था। उसके पतले नाजुक
गुलाबी होंठों का रस सोखने के पश्चात जब मै उससे अलग हुआ तो वह किसी दूसरी ही दुनिया
मे पहुँच गयी थी। एक लम्बी पारी के बाद उसके होंठ काँप रहे थे।
…सरिता अब वह पता
दे दो। वह झिझकते हुए बोली… कुछ देर और रुक जाईये। …देखो इसके आगे की राह बेहद नाजुक
है। इस वक्त उसके जिस्म की जरुरत के आगे उसके लिये सब कुछ बेमानी लग रहा था। वह जल्दी
से बोली… मै आपको सारे पते निकाल कर दे दूँगी लेकिन आप कुछ देर रुक जाईये। वह मेरी
जाँघ पर हाथ रख कर धीरे से सहलाते हुए सोये हुए भुजंग की ओर बढ़ी तो मैने उसका हाथ पकड़
कर कहा… सरिता, हमारे तुम्हारे बीच मे एक कारोबारी रिश्ता है। वह कामाग्नि मे जल रही
थी। वह मेरे करीब आकर अचानक बोली… साहब, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिये। बस इस वक्त मुझे
आपकी जरुरत है क्योंकि बहुत अकेली पड़ गयी हूँ। मै एक झटके से उठा और उसे अपनी बाँहों
मे उठा कर उसके बेडरुम की लेकर चलते हुए कहा… आओ आज मै तुम्हें चांद की सैर करा कर
लाता हूँ।
मेरे बाँहों मे वह
एक नाजुक सी गुड़िया लग रही थी। अपने बेड पर पहुँचते ही वह मेरे कपड़ों को मेरे जिस्म
से अलग करने मे जुट गयी थी। मेरी शर्ट, पैंट और बाक्सर के जुदा होते ही वह घुटने के
बल बैठ गयी और मेरे अर्धसुप्त भुजंग को अपने हाथों मे लेकर धीरे से उसके चिकने सिर
पर उंगलियाँ फेरते हुए बोली…आप मुस्लिम है? …क्यों? उसने कोई जवाब नहीं दिया बस भुजंग
के सिर पर उंगली फेर कर धीरे से झुकी और अपने मुँह मे भर कर अपनी जुबान से उसके सिर
को नहलाना आरंभ कर दिया। उसकी नाजुक उँगलियाँ भुजंग के इर्दगिर्द लिपट कर धीरे से जगाने
मे लग गयी थी। जवान कोमल जिस्म की सुगंध पाकर भुजंग धीरे-धीरे अपने असली स्वरुप मे
आ रहा था। बार-बार उसकी जुबान के वार और होंठों का स्पर्श पाकर भुजंग थोड़ी देर मे ही
अपने पूरे आकार मे झूमने लगा था। उसने अपने मुख से भुजंग का सिर आजाद कर दिया और नजर
भर कर झूमते हुए भुजंग को देख कर बोली… आईये अब मुझे चांद पर ले चलिये। एक झटके से
अपने गाउन को तन से जुदा करके वह बिस्तर पर जाकर लेट गयी और बाँहें फैला कर मुझे इशारा
किया। मै उसके साथ जाकर लेट गया और उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर अपने उपर लिटा लिया था।
दो नग्न जिस्म का
स्पर्श ही कामाग्नि भड़काने के लिये काफी था। उसके छोटे-छोटे स्तन और उनके शिखर पर बादामी
स्तनाग्र सिर उठाये मुझे चुनौती दे रहे थे। अगले ही पल मैने उसके सीने की पहाड़ियों
पर हमला कर दिया था। कभी उनको अपनी हथेली दबा कर मसकता और कभी पूरी पहाड़ी को अपने मुख
मे भर कर उसका रस सोखने मे जुट जाता। जब एक स्तन को लाल कर देता तो दूसरे स्तन पर धावा
बोल देता। शराब का नशा अब उस पर हावी हो रहा था। उसके अकड़े हुए बादामी स्तनाग्रों कभी
होंठों मे दबा कर उनका रस निचोड़ता और कभी कचकचा कर दांतों मे दबाकर धीरे से चबा देता।
उसका जिस्म मेरे हाथों मे लगातार मचल रहा था। मेरी उँगलिया, होंठ और जुबान की लगातार
छेड़खानी से उसक जिस्म एकाकार के लिये तड़प रहा था।
हम दोनों
निर्वस्त्र हो कर बेल की तरह एक दूसरे से लिपटे हुए एक दूसरे के जिस्म को स्पर्श
करते हुए नाजुकता, कोमलता और कठोरता को महसूस कर रहे थे। मेरी उँगलियाँ और मेरे
होंठ उसके जिस्म के पोर-पोर पर अपनी छाप छोड़ कर आगे बढ़ते जा रहे थे। वह कभी मचलती, कभी तड़पती और कभी
थरथरा उठती थी। उसकी नाजुक कोमल उँगलियाँ कामपिपासा मे
झूमते हुए भुजंग को गरदन से पकड़ कर धीरे-धीरे सहला रही थी।
उत्तेजना से वह अपने चरम पर पहुँच गयी थी। हम दोंनो अब
अभिसार के लिए तैयार हो गये थे। लक्ष्य मेरे सामने था और लक्ष्यभेदन के लिए मैने
उसके मचलते हुए जिस्म को स्थिर किया। उसने झूमते हुए भुजंग को अपने योनिद्वार पर आहिस्ता से
घिसते हुए दिशा दिखाई और मैने आगे बढ़ कर लक्ष्य के मुहाने पर उसे टिका दिया। सरिता भी एकाकार की अपेक्षा मे स्थिर
हो गयी परन्तु उसके जिस्म और स्नायुओं मे तनाव बढ़ता जा रहा था। मेरे होंठों ने
उसके होंठों को निचोड़ना आरंभ किया और अचानक मैने तेजी से अपनी कमर
पर दबाव डालते हुए आगे की ओर धकेला। उसी पल सरिता ने अपनी टांगे
खोल कर उत्तेजना से अकड़े हुए भुजंग का अपने जिस्म मे स्वागत किया। सारे संकरेपन को खोल
कर मेरा गुस्से मे तन्नाया भुजंग जड़ तक उसमे समा गया था। दो
जिस्म अब एक हो गये थे। एकाकार का अनुभव उसके लिये यह पहली बार नहीं
था। वह उत्तेजना मे अपना सिर इधर-उधर
पटकने की असफल कोशिश कर रही थी।
कुछ देर स्थिर
रहने के बाद मैने उसके होठों को आजाद करते हुए कहा… सरिता अब हमारे कारोबारी
रिश्ते पर मौहर भी लग गयी है। वह कराहाते हुए बोली… आप बड़े जालिम है।
ऐसा लग रहा है कि जैसे किसी ने मुझे बीच से चीर दिया है। उसके कष्ट को
अनदेखा करते हुए मै अपनी राह पर चल पड़ा था। कुछ ही देर मे
सिस्कारियों और तेज चलती हुई साँसें कमरे मे गूँज रही थी। हर वार पर उसके मुख
से एक कामोत्तेजना से ओतप्रोत सित्कार निकल रही थी। हम एक दूसरे के
अन्दर भड़कती हुई कामाग्नि को बुझाने के लिए आगे बढ़ते जा रहे थे। तूफान अपने पूरे
वेग पर था। हमारे लिए वक्त थम सा गया था। एक समय
आया कि सरिता के मुख से सिस्कारियों की आवाज निकलनी एकाएक बन्द हो गयी थी। अचानक उसके मुख से
उत्तेजना से भरी किलकारी निकली और उसका जिस्म पल भर के लिए अकड़ा और फिर कुछ पल के बाद
वह निढाल हो बेड कर लस्त हो कर पड़ गयी थी। मै उसके जिस्म को
आँखें मूंद कर रौंदने मे लग गया था। शराब का नशा अब दिमाग पर हावी हो रहा था। उसका
कोमल जिस्म मेरे हर वार को बर्दाश्त कर रहा था। अचानक पता नहीं कैसे मेरी आँखों के
आगे सरिता की जगह नफीसा की छवि उभर आयी थी। एकाएक मेरे जिस्म मे उत्तेजना के साथ एक
अजीब सा तनाव उत्पन्न हो गया और उसी क्षण मै चरम सीमा पर पहुँच गया था। अपने ख्याल मे ही
मैने नफीसा के जिस्म से
खिलवाड़ करते हुए एक भरपूर आखिरी वार किया और
मेरे दिमाग मे विस्फोट हुआ और फिर बहुत देर से
उबलता हुआ ज्वालामुखी फट कर बेरोकटोक बहने लगा। सरिता को अपने कामरस से
सींच कर मै भी निढाल हो कर उस पर गिर गया था। काफी देर तक हम
वैसे ही पड़े रहे। वह धीरे से हिली तो मै उसके उपर से हट कर एक किनारे मे लेट गया था। वह कुछ देर ऐसे ही
पड़ी रही और फिर मेरे सीने पर सिर रख कर बोली… एक ही रात मे आपने बिशम्बर का भूत मेरे
दिमाग से निकाल दिया है। मेरे होंठों को चूम कर वह मेरे साथ लेट गयी थी।
कुछ देर बाद मै उठ
कर बैठते हुए बोला… सरिता अब मुझे चलना चाहिये। बहुत देर हो गयी है। मुझे वह पता दे
दो। वह धीरे से उठी और लड़खड़ाती हुई ड्राइंग रुम मे चली गयी। मै अपने जमीन पर पड़े हुए
कपड़ों को उठा कर पहनने मे व्यस्त हो गया। वह एक कागज का टुकड़ा मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली…
कल शाम को आकर आप बाकी पते भी ले जाईएगा। उसके नग्न जिस्म पर अपनी निशानियों को देख
कर उसके सीने की गोलाईयों को धीरे से सहला कर मैने कहा… सरिता, कल शाम को मिलते है।
उसकी काल कब से ट्रांस्फर होनी आरंभ हो जाएगी? वह मेरी उँगलियों के वार से बचते हुए
बोली… दस बजे के बाद से उसकी काल आपके फोन पर आनी शुरु हो जाएगी। अचानक वह मुझसे लिपटते
हुए बोली… आपसे नहीं पूछूँगी कि आप किस लिए यह सब कर रहे है। एक दोस्त के नाते कह रही
हूँ कि प्लीज यह काम गलत है इन्हें छोड़ दिजिये। उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर मैने कहा…
तुम गलत सोच रही हो। मै कोई जिहादी नहीं हूँ। इस वक्त किसी व्यक्ति की जान खतरे मे
है और उसकी जान बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। वह मुस्कुरा कर बोली… इस काम के लिये मुझे
आपके पैसे नहीं चाहिये। मैने उसको अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए कहा… तुम तो अभी से हमारा
कारोबारी रिश्ता तोड़ने की सोच रही हो। यह पैसे तुम्हारे है। अपना उधार चुकता करो और
नये सिरे से अपना जीवन शुरु करो। उसे वहीं छोड़ कर मै बाहर निकल गया था। रात के अंधेरे
मे हाउसिंग सोसाईटी से बाहर निकल कर अपनी गाड़ी उठाई और अपने घर की ओर चल दिया।
रास्ते मे अपने एकाकार
के बारे मे सोच रहा था। मेरे साथ यह पहली बार हुआ था कि अभिसार के क्षणों मे किसी और
की छवि मेरे दिमाग पर छा गयी थी। नफीसा का ख्याल आते ही मन आत्मग्लानि से भर उठा था।
अपना सिर झटक कर नफीसा का ख्याल दिमाग से निकाल कर सड़क पर ध्यान केन्द्रित किया। रात
को डेड़ बजे अपनी गाड़ी पार्किंग मे खड़ी करके मै अपने घर पर पहुँच गया था। तबस्सुम जाग
रही थी। मुझे घंटी बजाने की जरुरत नहीं पड़ी थी। मेरी गाड़ी की आवाज सुन कर वह दरवाजा
खोल कर खड़ी हुई थी। मै उससे कुछ कहे बिना सीधा बाथरुम मे चला गया और कपड़े उतार कर बर्फीले
ठंडे पानी के नीचे खड़ा हो गया। पानी की पहली बौछार पड़ते ही दिमाग और जिस्म सुन्न हो
गया था। सरिता और नफीसा दिमाग से गायब हो चुकी थी। मै शावर के नीचे कुछ देर खड़ा रहा
और फिर अपने आप को पौंछ कर बाथरुम से बाहर निकला और अपना बाक्सर पहन कर रजाई मे घुस
गया। जैसे ही मैने तबस्सुम को छुआ वह छिटक कर दूर होकर बोली… बर्फ से ठंडे लग रहे हो।
उसने जल्दी से हीटर मेरी दिशा मे घुमा दिया था। हल्की सी गर्मी पाकर ही नींद मेरे जहन
पर हावी होने लगी थी। तबस्सुम को अपनी बाँहों मे जकड़ कर मै अपनी सपनो की दुनिया मे
खो गया था।
रोजमर्रा की तरह अगली
सुबह मै समय से उठ गया था। तबस्सुम चाय की प्याली देते हुए बोली… कल कहाँ रह गये थे?
…काठमांडू से बाहर गया था। अपनी चाय पीते हुए मैने जमीन पर पड़ी पैंट उठा कर उसकी जेब
से सरिता का दिया हुआ कागज का टुकड़ा निकाल कर उस पते की ओर ध्यान से देखा तो वह नये
कोटेश्वर का पता था। यह उस फोन का पता था जिसने नूर मोहम्मद को अपने पास बुलाया था।
मुझे शुजाल बेग नाम की पहेली का एक सिरा मिल गया था। मै जल्दी से तैयार हुआ और नाश्ता
करके जैसे ही खड़ा हुआ कि मेरा एनटीसी वाला फोन बज उठा था। एक महिला की आवाज मेरे कान
मे पड़ी-
…हैलो। आप कहाँ है?
…अपने फ्लैट पर ही हूँ। तुम भी यहीं आ जाओ। तुम्हें कुछ शौकत के बारे मे पता है? …किस
बात का? …क्या वह पाकिस्तान वापिस चला गया?
…नहीं, वह अभी यहीं पर है। …नूर मोहम्मद का कुछ पता चला? …नहीं। …पता नहीं वह अचानक
कहाँ गायब हो गया है। …फोन पर ज्यादा देर बात करना ठीक नहीं है। बहुत दिन हो गये तुम्हें
देखे हुए। यहीं आ जाओ। …आपने बताया नहीं कि आपको मेरा नम्बर कहाँ से मिला? …उसे तुम्हारी
दोस्त कहूँ या दुश्मन लेकिन उसी ने दिया था। …मेजर हया? …और कौन हो सकता है। मै ज्यादा
देर बात नहीं कर सकता। अल्लाह हाफिज।
फोन कट गया था। महिला
की आवाज कुछ जानी पहचानी सी लग रही थी लेकिन उसका चेहरा दिमाग मे नहीं आ रहा था। मेरा
ध्यान उस आवाज पर लगा हुआ था कि तभी तबस्सुम की आवाज मेरे कान मे पड़ी… आप कुर्सी पकड़
कर कब तक ऐसे खड़े रहेंगें। आप बैठ कर बात कर लिजिये। मैने झेंप कर कुर्सी छोड़ कर दरवाजे
की ओर बढ़ते हुए कहा… मै गोदाम जा रहा हूँ। आज भी देर हो जाएगी। वह जल्दी से बोली… रुकिये।
पहले मुझे डाक्टर के पास ले चलिये। मैने मुड़ कर उसकी ओर देखा तो वह जल्दी से बोली…
सब ठीक है। रुटीन चेक अप के लिये आज का टाइम लिया था। मै उस पते पर जाकर देखना चाहता
था लेकिन तबस्सुम को लेकर अस्पताल की ओर चल दिया था। टेस्ट वगैराह और डाक्टर से मिलने
मे एक घंटे से ज्यादा लग गया था। इसी बीच मैने कैप्टेन यादव को वह पता देकर कह दिया
था कि किसी को उस मकान की चौबीस घंटे निगरानी पर लगा दे। उस मकान मे हर आने जाने पर
नजर रखे और मुम्किन हो तो उसकी तस्वीर भी उतार लेना। तबस्सुम को अपनी ओर आता देख कर
मैने फोन काट दिया। …चलिये डाक्टर ने बुलाया है। हम दोनो डाक्टर के केबिन की ओर चल
दिये थे।
कुछ देर तबस्सुम को
चेक करके डाक्टर ने उसे कुछ खाने और एक्सरसाईज के निर्देश देने के पश्चात मुझसे बोली…
छठा महीना आरंभ हो गया है। अब इन्हें आराम और खुश रहने की जरुरत है। यह अब आपकी जिम्मेदारी
है। तबस्सुम ने जल्दी से कहा… डाक्टर अब यह मुझे बिस्तर से भी उतरने के लिये मना कर
देंगें। मैने सिर्फ अपना सिर हिला दिया था। डाक्टर के केबिन से बाहर निकल कर अपनी गाड़ी
की ओर जाते हुए मैने कहा… कुछ दिनों के लिये तुम और आरफा दिल्ली क्यों नहीं चली जाती।
वहाँ पर आराम से रह सकोगी। तुम्हारी शिखा दीदी भी होंगी तो तुम्हारा मन लग जाएगा। मेरे
कारण तुम्हें नाहक ही परेशानी उठानी पड़ती है। …आपको यहाँ अकेले छोड़ कर मै कहीं नहीं
जाने वाली। मै चुप हो गया था। हम गाड़ी मे बैठे और घर की ओर चल दिये थे। तबस्सुम को
घर के बाहर उतार कर मै अपने गोदाम की ओर चल दिया था।
मै गोदाम के पास पहुँचा
ही था कि मेरा एनटीसी वाला फोन बज उठा था। मैने तुरन्त गाड़ी को किनारे मे लगा कर खड़ी
कर दी थी। मैने फोन को कान से लगाया तब तक उनकी बात आरंभ हो चुकी थी। इस बार वह किसी
और से बात कर रही थी…
…हाँ मेरी बात हो
गयी है। …तो उसने अपना ठिकाना बताया? …बताया भी और नहीं भी। उसका पता बताने के लिये
मुझे सारी रकम पहले चाहिये। मुझे तुम जैसों पर विशवास नहीं है। …इतनी जल्दी पैसों का
प्रबन्ध मै नहीं कर सकता। एक बार वह हाथ मे आ गया तो तुम्हारी रकम तुम्हें मिल जाएगी।
…नहीं। तुम पहले रकम का इंतजाम कर लो और उसके बाद पता पूछना। …शायद तुम भूल रही हो
कि उसकी बेटियाँ भी यहीं पर है। अगर हमने उन दोनो को उठवा लिया तो उनको छुड़वाने के
लिये वह खुद सामने आ जाएगा। …करके देख लो। शौकत अजीज के आदमी उन दोनो की चौबीस घन्टे
निगरानी कर रहे है। …कर्नल काठमांडू मे है। …हाँ, कल शाम को ही वह शबाना से भी मिला
था। मुझे लगता है कि जो तुम करने की सोच रहे हो वह कर्नल आज कल मे करने जा रहा है।
तुम कर्नल को तो जानते हो कि वह एक तीर से तीन का शिकार करेगा। …अच्छा बताओ वह रकम
कहाँ पहुँचानी है? …डिलिवरी का पता लिख लो। रकम मिलते ही तुम्हें ब्रिगेडियर का पता
मिल जाएगा। तुम्हारा लश्कर यहीं काठमांडू मे है? …तुम सिर्फ पता बता दो तो अगले दस
मिनट मे वह हमारे कब्जे मे होगा। …तुम पाँच मिनट मे रकम पहुँचा दोगे तो अगले दस मिनट
मे उसे अपने कब्जे मे ले लेना।
फोन कट गया था। इतना
तो मै समझ गया था कि वह स्त्री शुजाल बेग को डबल क्रास करने की फिराक मे है। उसने किसके
साथ शुजाल बेग का सौदा किया था। एक नाम बिजली की तरह मेरे दिमाग मे कौंधा… फारुख मीरवायज।
वह नाम दिमाग मे आते ही दूसरा नाम स्वत: ही सामने आ गया… मेजर हया इनायत मीरवायज। अगले
ही पल उस स्त्री की पहली काल याद आ गयी जिसमे उसने मेजर हया को अपने दोस्त या दुश्मन
के तौर पर पहचान की थी। इसका मतलब साफ था कि यह दोनो कोई और ही लोग थे। वह स्त्री शुजाल
बेग की विश्वसनीय थी परन्तु उस स्त्री का संबन्ध मेजर हया इनायत मीरवायज के साथ भी
था। कुछ देर सोचने के बाद इस नतीजे पर पहुँचा कि इस पहेली को तो कोटेश्वर जाकर ही सुलझाया
जा सकता है। मैने अपनी कोम्बेट जैकट सीट के पीछे से निकाल कर उसकी जेब मे अपनी ग्लाक-17
को निकाल कर चेक किया और फिर दुश्मन के साथ दो-दो हाथ करने के लिये जैकेट पहन कर सीधा
कोटेश्वर के पते की ओर निकल गया।
गाड़ी ड्राईव करते
हुए मैने कैप्टेन यादव का नम्बर लगाया और उसकी आवाज सुनते ही मैने कहा… उस पते पर जो
आदमी निगरानी कर रहा है उसको कहो कि वह तुरन्त मुझसे फोन पर बात करे। मै उसी ओर जा
रहा हूँ। कुछ ही मिनट के बाद ही मेरे फोन पर लेफ्टीनेन्ट सावरकर ने फोन किया… सर।
…उस मकान की लोकेशन बताओ। …एयरपोर्ट रोड पर नये कोटेश्वर की ओर से एक सड़क मिलती है।
वहाँ से कोई 500 मीटर पर वह हाउसिंग सोसाईटी है। तीन मंजिला इमारत अभी फिलहाल आधी बनी
हुई है। प्रवेश करते ही बांयी ओर पहली इमारत मे वह फ्लैट पहली मंजिल पर है। अभी सोसाईटी
मे कंस्ट्रक्शन का काम बन्द पड़ा हुआ है। हम सामने वाली इमारत की छत से उस फ्लैट पर
नजर रख रहे है। जब से आये है तभी से मुख्य दरवाजा बन्द है। …क्या कोई और लोग भी उस
मकान की निगरानी कर रहे है? …अभी तक तो ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा है। …ठीक है लेफ्टीनेन्ट।
तुम्हारे साथ कोई और भी है। …जी सर मेरे साथ दो सैनिक है। एक तो परछांई बन कर दूसरी
छत से हम पर नजर रख रहा है। राज कुमार मेरे साथ है। …गुड। मै भी वहीं पहुँच रहा हूँ।
फोन काट कर मैने अपना ध्यान सड़क पर लगा दिया था।
बीस मिनट मे उस हाउसिंग
सोसाईटी के पास पहुँच गया था। शाम की धुंध धीरे-धीरे तराई मे फैल रही थी। अंधेरा होने
लगा था। मुख्य सड़क पर अपनी पिक-अप देख कर मैने उसके साथ अपनी गाड़ी खड़ी करके तारों की
बाढ़ जिधर से टूटी हुई थी उधर से उस हाउसिंग सोसाईटी मे दाखिल हो गया। बिना प्लास्टर
की नंगी दीवारें देख कर सोसाईटी की हालत का पता एक नजर मे चल गया था। पहले ब्लाक की
अधबनी सीढ़ियों से मै सीधे छत पर चला गया था। सावरकर और राजकुमार उसी छत पर तैनात थे।
मैने एक नजर घुमा कर उनकी परछांई जमीर पर नजर डाली तो सामने वाले ब्लाक से उसने तुरन्त
उठ कर हाथ हिला कर अपनी मौजूदगी का एहसास करा दिया था। …क्या खबर है लेफ्टीनेन्ट?
…सर, कुछ देर पहले ही खाने का सामान देने के लिये कोई आया था। राजकुमार ने डिजिटल कैमरा
मेरे आगे कर दिया था। दरवाजा खुलने के बाद उसने तीन फोटो खींचे थे। एक स्त्री सामान
लेती हुई दिख रही थी। उसका चेहरा साफ नजर नहीं आ रहा था। शुजाल बेग की वहाँ पर उपस्थिति
की कोई निशानी अभी तक मुझे नहीं मिली थी। …और कितने लोग इस फ्लैट मे होंगें? …सर, सुबह
से हमे तो किसी भी फ्लैट मे कोई नहीं दिखा है। कंस्ट्रक्शन का काम भी बन्द पड़ा हुआ
है। यहाँ बस मुख्य आगमन गेट पर एक चौकीदार जरुर तैनात है। इस वक्त वह भी गार्ड रुम
मे नशे मे धुत पड़ा हुआ है।
मै अपनी पीठ दीवार
पर टिका कर जमीन पर बैठ गया था। इतना तो मै समझ गया था कि शौकत अजीज उन दोनो लड़कियों
को कब्जे मे लेकर शुजाल बेग पर दबाव डाल कर उसे मारने की योजना बना रहा है। शबाना के
साथ दोनो लड़कियाँ भी परोक्ष रुप से शौकत के कब्जे मे थी। सावरकर की आवाज कान मे पड़ी…
सर, फिदायीन सर्च पार्टी पहुँच गयी है। मैने जल्दी से उठ कर सावरकर की बताई हुई दिशा
मे देखा तो लकड़ी के पोल पर टंगे हुए बल्ब की धीमी रौशनी मे चार जिहादी दो-दो की टीम
मे एक दूसरे को कवर करते हुए आगे बढ़ रहे थे। …तुम्हारे पास हथियार है? …जी सर। …नो
एन्गेजमेन्ट। मेरे सिगनल का इंतजार करना। यह बोल कर मै तेजी से सिढ़ियाँ उतरता हुए अपने
फोन पर सावरकर का नम्बर डायल करते हुए नीचे पहुँच गया था। मै अभी कम्पाउन्ड मे नहीं
पहुँच पाया था कि तभी पाकिस्तान दूतावास की एक कार कम्पाउन्ड के बीचोंबीच मे आकर खड़ी
हो गयी थी। काले शीशे होने के कारण अन्दर का कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। चारो जिहादी
एक दूसरे को कवर करना भूल कर कार के पास आ कर खड़े हो गये थे। पश्चिमी सूट मे एक व्यक्ति
कार से उतर कर उन जिहादियों से बात करने के लिये खड़ा हो गया था। मेरी ग्लाक मेरे हाथ
मे आ गयी थी। मैने फोन पर कहा… सावरकर। … सर। …तुम दोनो फौरन नीचे आ जाओ। इतना बोल
कर मैने फोन काट दिया था। तब तक वह व्यक्ति अपने साथ दो जिहादियों को लेकर सामने वाले
ब्लाक की सीढ़ियों की ओर चल दिया था।
दो जिहादी उसकी कार
को कवर करके खड़े हो गये थे। सावरकर और राज कुमार तब तक मेरे पास पहुँच गये थे। …अपना
चेहरा कवर कर लो। यह बोलकर मैने जल्दी से स्पेशल फोर्सेज का नकाब निकाल कर अपना चेहरा
ढक लिया था। एक पल रुक कर मैने कहा… मै कार
को कवर कर रहे जिहादियों को निशाना बनाने जा रहा हूँ। क्या तुम बाकी दो जिहादियों को
संभाल लोगे। …यस सर, हम सिड़ियों की ओर जाते हुए जिहादियों को समाप्त कर देंगें। इतना
बोल कर वह उन तीनो की दिशा मे बढ़ने के लिये तैयार हो गये थे। मैने ग्लाक से पहली बार
मे दो फायर किये तो कार के दूसरी ओर खड़े जिहादी को पता ही नहीं चल सका। अगले ही पल
वह कटे हुए वृक्ष की तरह जमीन पर गिर गया था। …धाँय…धाँय…फायर की आवाज गूंजते ही सावरकर
और राजकुमार भागते हुए उन तीनो के नजदीक पहुँच गये थे। फायर कi आवाज सुन कर वह तीनो
ठिठक कर रुके तभी सावरकर और राजकुमार ने अगले ही पल दोनो जिहादियों को भी उनके हिस्से
की हूरों से मिलने के लिये डिस्पैच कर दिया था। अलग-अलग स्थान से फायरिंग की आवाज सुन
कर जब तक कार के सामने खड़ा हुआ जिहादी कुछ समझ पाता तब तक मै अपनी ग्लाक ताने उसके
सामने पहुँच गया था। …धाँय…धाँय…पोइन्ट ब्लैंक रेन्ज से हुए दो फायर ने उसके सीने को
उधेड़ दिया था। उसका निर्जीव जिस्म कार के दरवाजे से टकराया और जमीन पर ढेर हो गया।
सूट पहने हुए व्यक्ति को तब तक सावरकर और राजकुमार ने अपने कब्जे मे कर लिया था।
मैने कार का दरवाज
खोल कर अन्दर झांक कर देखा तो ड्राईवर स्टीयरिंग व्हील के नीचे सिर छिपाये उकड़ू बैठा
हुआ मिला और पीछे की सीट पर नफीसा भी सिर झुका कर बैठी हुई थी। मैने ड्राईवर की गुद्दी
पर पिस्तौल रख कर ट्रिगर दबा दिया। ……धाँय…कार मे एक धमाका हुआ और उसके साथ ही नफीसा
की हृद्यविदारक चीख गूंज गयी थी। मैने पीछे का दरवाजा खोल कर नफीसा को गरदन से पकड़
कर बाहर खींचते हुए जोर से चिल्लाया… जेनब कहाँ है? वह मुझे शायद पहचानने की स्थिति
मे नहीं थी परन्तु ड्राईवर का हश्र देख कर आतंकित होकर काँपती आवाज मे बोली… घर पर
है। मैने एक नजर सोसाईटी के तीनो ब्लाक पर डाली तो किसी भी बालकोनी मे कोई नहीं दिख
रहा था। अगर कोई होगा भी तो शायद गोलियों की आवाज सुन कर दुबक गया होगा। हमारे आने
की खबर अब तक फ्लैट मे ठहरी हुई स्त्री को भी लग गयी होगी। मैने नफीसा को गरदन से पकड़ा
और उस आदमी के पास पहुँच कर मैने जमीर से कहा… इन चारों के हथियार कब्जे मे करके इनकी
लाश को कार मे डाल कर पोस्टमार्टम के लिये भिजवा दो। इन साहब को भी चेक कर लिया है?
…यस सर। मेरे तीनो साथी अपने काम मे लग गये थे।
वह आदमी मुझे घूरते
हुए दहाड़ा… आप कौन है और क्या आप दूतावास की गाड़ी नहीं पहचानते है। मै तुरन्त आवाज
कड़ी करके बोला… नेपाल स्पेशल फोर्सेज। दूतावास के कर्मचारी कलाश्नीकोव लेकर नहीं चलते
है। वह जल्दी से बोला… मेरा नाम कर्नल शौकत अजीज है। मै पाकिस्तान दूतावास मे काम करता
हूँ। मै तो यहाँ किसी से मिलने आया था लेकिन मुझे उन्होंने बंधक बना लिया। मैने उसे
आगे धकेलते हुए कहा… कर्नल साहब, चलिये चल कर उनसे अपनी शिनख्त करवा दिजिये जिनसे आप
मिलने आये थे। आपको हम छोड़ देंगें। नफीसा की गरदन अभी भी मेरे हाथों मे थी। मैने गरदन
पकड़ कर हिलाते हुए पूछा… क्या यह लड़की भी उनकी साथी है? …जी। शौकत अजीज चुपचाप सीड़ियाँ
चढ़ने लगा तो उसको पीछे से मैने कहा… कर्नल साहब अभी भी आप मेरे शक के दायरे मे है इसलिये
कोई भी अनायस हरकत हुई तो मै गोली मार दूँगा। नफीसा की गरदन पकड़ कर सिड़ियाँ चढ़ते हुए
मैने कहा… अब यह साली जिहादनें भी मैदान मे उतर गयी है। वह सहमी हुई लड़खड़ाती हुई मेरे
आगे चल रही थी।
हम सब उस फ्लैट के
बाहर पहुँच कर रुक गये। शौकत अजीज दरवाजे पर लगी हुई घंटी को दबा कर एक साइड मे खड़ा
हो गया। कुछ पल रुकने के बाद एक बार फिर से उसने घंटी दबा दी थी। कुछ कदमो की आहट हुई
तो वह दरवाजे के सामने से हट गया था। मै भी सावधान हो गया। एक खटके के साथ दरवाजा खुला
और थोड़ा सा दरवाजा खोल कर एक स्त्री ने झिरी से बाहर झांकते हुए पूछा… आपको किससे मिलना
है? उस स्त्री का चेहरा देख कर मै एक पल के लिये चौंक गया था। शौकत अजीज कुछ बोलता
उससे पहले मैने जोर से अपने जूते की ठोकर दरवाजे पर पूरी ताकत से मारी तो वह दरवाजा
चेन समेत भड़ाक की आवाज से पूरा खुला जिसकी चपेट मे वह स्त्री आ गयी थी। एक दर्दनाक
चीख उसके मुख से निकली और वह स्त्री अपना सीना दबाये दर्द से दोहरी होकर जमीन पर बैठ
गयी थी। मै जोर से घुर्राया… नेपाल स्पेशल फोर्सेज। मैने शौकत अजीज को अपनी पिस्तौल
से इशारा करते हुए अन्दर बढ़ने का इशारा करते हुए कहा… कर्नल साहब यह तो आपको जानती
नहीं है तो यहाँ पर आप किससे मिलने आये थे? शौकत अजीज जल्दी से बोला… जनाब, हमारे दूतावास
के ब्रिगेडियर शुजाल बेग यहाँ रहते है। …तो बुलाईये उन्हें। मै अभी भी नफीसा की गरदन
थामे जमीन पर बैठी हुई उस स्त्री को घूर रहा था।
वह नेपाली औरत के
वेष मे और कोई नहीं नीलोफर थी। उसको ब्रिगेडियर शुजाल बेग के साथ देख कर मेरा दिमाग
चकरा गया था। तभी शुजाल बेग एक स्वचलित राईफल ताने हमारे सामने आकर बोला… शौकत अपनी
पिस्तौल फेंक कर अन्दर आ जाओ। शौकत ने जल्दी से कहा… मेरे पास पिस्तौल नही है। …तो
अपने कुत्ते से कहो कि वह अपनी पिस्तौल फेंक दें। मैने शौकत अजीज को आगे की ओर धक्का
देकर कहा… कमाल है कर्नल साहब, यहाँ तो हर ओर जिहादियों की फौज खड़ी हुई है।
बहुत ही जबरदस्त अंक और निलोफर नाम की जो नागिन कश्मीर में समीर के होश उड़ाए रखी थी अब वो नेपाल पहुंच गई है, और तो और सूजाल बेग का उसके साथ होना यह दर्शाता है के निलोफर ने समीर को वॉलीउल्हा के बारे में सच नहीं बताया है, और फोन पर जो स्त्री सुबह बात की थी वो निलोफर ही थी जिसका आवाज सुनकर भी समीर पहचान नहीं पाया था। नफीसा की यादें अब समीर को सताने लगी है कहीं कुछ गडबड न हो जाए कुछ वीक मोमेंट में।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई शुक्रिया। नीलोफर एक बार फिर सामने आ गयी है। उसके डबल क्रास का क्या परिणाम होता है यह देखना बाकी है। नफीसा एक कमजोरी बन कर उभर रही है लेकिन क्या वह उतनी ही जहरीली है जितनी नीलोफर है। आगे देखिये होता है क्या।
हटाएंऔर आफसा के बारे में यह अभी लग रहा है जैसे वो अपने ऊपर से संदेह हटाने के लिए वो IT कंपनी में दूसरे लड़की को लापरवाही से को- ऑर्डिनेट दे दी समीर के सामने जैसे बताना चाहती हो की जिस को- ऑर्डिनेट को बचाने के लिए यह फौजी लोग इतना खून बहा रहे हैं उनके लिए महज कुछ अंक ही है।देखते हैं यह किसी का गहरी चाल कब किसकी पर्दाफाश करेगी।
जवाब देंहटाएंयहाँ शतरंज की बिसात पर सभी चालें चल रहे है। अल्फा भाई यही तो देखना है कि कौन यह सारी चाल चल रहा है। शुक्रिया दोस्त।
हटाएंjabardast post brother
जवाब देंहटाएंसाईरस भाई धन्यवाद।
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसरिता का बिष्ट का भूत तो समीरने भगा दिया😉 अब तो कारोबारी रिस्ता भी पक्का हो गया है, देखते है आगे कहा तक जाता है. निलोफर का नया रूप देखनेको मिल रहा, क्या नफिसा जिहादी लडकी है? आगे इसका भी पता लग जायेगा.
जवाब देंहटाएंसरिता का एक भूत तो भगा दिया परन्तु कहीं उसके सिर पर एक नया जिन्न न बैठ जाये। अगर ऐसा हो गया तो एक नयी मुश्किल खड़ी हो जाएगी। नीलोफर का यह रुप कोई नया नहीं है। वह तो शुरु से जिहाद मे लिप्त है। नफीसा का किरदार अभी उभरा है तो अभी कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। प्रशांत भाई शुक्रिया।
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