काफ़िर-42
अँधेरा गहरा होता
जा रहा था। बिजली के बल्बों से मुजफराबाद का बाजार रौशन हो गया था। खरीदारों की भीड़
भी बढ़ गयी थी। …बानो आओ चले। वह उठ कर खड़ी हो गयी और चुपचाप मेरे पीछे चल दी थी। मै
बाजार से निकल कर तंग गलियों से होते हुए अन्दाजन हाईवे की दिशा मे चल पड़ा था। एक घंटे
चलने के बाद हम मुजफराबाद शहर से बाहर निकल आये थे। एस-3 हाईवे पर पहुँच कर पेड़ों की
आढ़ लेकर गंतव्य स्थान की दिशा मे चल दिये थे। सड़क के किनारे लहलहाते खेतों के साथ हमारे
सामने पहाड़ सिर उठाये खड़ा था। अब हमे सड़क पर चलने वाले लोगो की नजरों से बच कर खेतों
के रास्ते से होते हुए पहाड़ की तलहटी तक पहुँचना था। वह खालाओं जैसा बुर्का पहने मेरे
पीछे चल रही थी। शहर मे बुर्का पहने स्त्री पर कोई दूसरी बार नजर नहीं डालता परन्तु
इस वीराने मे बुर्कापोश स्त्री दूर से किसी का ध्यान खींचने के लिये काफी थी। अंधेरा
घना होता जा रहा था तो मैने महसूस किया कि अब उसका हुलिया बदलने का समय आ गया है। चारों
ओर नजर घुमा कर देखने के बाद उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए मै उसे पेड़ों के झुरमुट के
पीछे ले गया। वह अपना हाथ झटकार कर छुड़ाते हुए घुर्रा कर बोली… बड़े मियाँ आप यह क्या
कर रहे है।
झाड़ियो और पेड़ की
आढ़ मे पहुँच कर मैने कहा… बानो, अपना बुर्का उतारो। …बड़े मियाँ, आप यह क्या कह रहे
है। मै आपके सामने बेपर्दा नहीं हो सकती। मेरा धैर्य अब अपने चरम पर पहुँचने लगा था।
…बानो क्या तुम कंपनी बाग मे घूमने जा रही हो। वह चिढ़ कर बोली… बड़े मियाँ आप कैसा मजाक
कर रहे है। आपको नहीं पता कि कहाँ जाना है। …तो वहाँ कैसे जाओगी। इस तरफ पाकिस्तान
की फौज और सीमा के दूसरी ओर भारत की फौज बैठी हुई है। वह किसी को भी सीमा पर देख कर
बिना चेतावनी के गोली मार देते है। अब तुम्हें सोचना है कि तुम्हें बेपर्दा होना है
या तुम शहादत देने की ठान के आयी हो। मेरी बात सुन कर शायद पहली बार उसको इस नये खतरे
का एहसास हुआ था। उसके मुख से अनायस ही निकल गया… हाय अल्लाह। …बानो जल्दी करो। पूरी
रात चलना है। दिन की पहली रौशनी से पहले हमे हिन्दुस्तान मे दाखिल हो जाना है। मेरे
पास उसके लिये अब समय नहीं था। मैने घुर्रा कर कहा… बानो मै जा रहा हूँ। अगर मेरे साथ
चलना है तो इसे जल्दी से उतारो वर्ना वापिस चली जाओ। यह बोल कर मै चलने लगा। वह जल्दी
से मेरी ओर बढ़ी और मेरा हाथ पकड़ कर बोली… बड़े मियाँ, ठहरिये उतार रही हूँ। उसने पहले
अपनी चिलमन हटाई और फिर धीरे से बुर्के के बटन खोलने आरंभ किये। अब तो मेरे धैर्य की
इन्तिहा हो गयी थी।
मै आज की रात हर हालत
मे पाकिस्तानी सीमा पार करना चाहता था। मै आगे बढ़ा और उसके बुर्के को पकड़ कर एक झटका
दिया तो अगले ही पल सारे बटन एक ही बार मे या तो खुल गये और जो नहीं खुल सके थे वह
सिलाई समेत उधड़ कर जमीन्दोज हो गये थे। उसके कुर्ते को देख कर मैने अपने सिर पर हाथ
मारा क्योंकि चमकीली कढ़ाई का नमूना मेरी आँखों के सामने था। मैने जल्दी से अपने बैग
से अपना कुर्ता निकाल कर जमीन पर कुछ देर रगड़ कर उसकी ओर बढ़ाते हुए… इसको पहन लो। अबकी
बार उसने बिना किसी हील-हुज्जत के चुपचाप गन्दी मिट्टी से अटे हुए कुर्ते को पहन लिया।
अंधेरे मे मुझे उसका चेहरा तो साफ नहीं दिख रहा था परन्तु कद-काठी से वह एक जवान स्त्री
दिख रही थी। एक बार दिमाग मे आया कि उसका नाम पूछ लिया जाये परन्तु फिर कुछ सोच कर
चुप हो गया था।
एक नजर उसके कपड़ो
पर मार कर मैने उसके बुर्के को बीच मे से फाड़ कर दो भागों मे कर दिया। पहले उसकी लम्बी
सी गुथी हुई चोटी को पकड़ कर मरोड़ कर एक जूड़े मे तब्दील किया और फिर बुर्के के कपड़े
के एक हिस्से को उसके सिर पर पगड़ी की तरह बाँध कर अलग हो गया। वह कुछ पल वहीं खड़ी मुझे
घूरती रही परन्तु बोली कुछ नहीं। उससे निगाह मिलाते हुए मैने बचे हुए कपड़े को उसके चेहरे पर बाँध कर ढक दिया था। अंधेरे मे अपनी कलाकारी पर एक नजर मार कर मैने कहा…
अब ठीक है। आओ चलो। अंधेरे का सहारा लेकर हम दोनो पगडंडी पकड़ कर खेतों की ओर निकल गये
थे। एक घंटे चलने के बाद हम पहाड़ की तलहटी पर पहुँच गये थे। मैने रुक कर दिशा ज्ञान
के अनुसार अपने दिमाग मे बिठाये हुए चिन्हों को पहचानने की अंधेरे मे कोशिश कर रहा
था। मेरी आँखें पहाड़ी दर्रे की तलाश कर रही थी। जब कुछ नहीं सूझा तो आगे बढ़ गया। हमे
चलते-चलते काफी समय हो गया था परन्तु अभी तक वह पहाड़ी नाला नहीं मिला था जिसके साथ-साथ
चलते हुए मै उतर कर यहाँ पहुँचा था। …बड़े मियाँ क्या तलाश कर रहे है? मैने कुछ बोलना
उचित नहीं समझा और आगे बढ़ गया। कुछ ही दूर चलने के बाद बहते पानी की आवाज सुन कर मै
तेजी से उस दिशा की ओर चल दिया। वह पीछे रह गयी तो मैने रुक कर उसे झिड़कते हुए कहा…
बानो, एक बात गाँठ बांध लो कि मै अब रुक नहीं सकता। इसलिये अब यहाँ से तुम्हें मेरे
साथ कदम से कदम मिला कर चलना पड़ेगा। थोड़ी दूर चलते ही नाले के साथ बना हुआ वह दर्रा
भी मिल गया था जहाँ से मै पहाड़ से नीचे उतरा था।
उसकी आवाज मेरे कान
मे पड़ी… बड़े मियाँ थक गयी हूँ। अब आगे नहीं चला जाता। अबकी बार मैने प्यार से समझाते
हुए कहा… बानो, आगे खड़ी चढ़ाई है। एक बार हम पहाड़ पर चढ़ गये फिर आगे का रास्ता आसान
है। वहाँ पहुँच कर आराम भी कर लेना और कुछ खा भी लेना। सारी रात चलना है। बिना कुछ
कहे वह लड़खड़ाती हुई मेरे पीछे चल दी थी। अंधेरे मे अपना हाथ भी नहीं दिख रहा था फिर
भी जैसे तैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे। अब तापमान भी अचानक गिर गया था। सर्दी ने अपना
प्रकोप दिखाना आरंभ कर दिया था। पता नहीं मुझे कि वह कैसे मेरे साथ चल रही थी परन्तु
हर पल मै अपने गंतव्य की ओर बढ़ता चला जा रहा था। खड़ी चड़ाई पर एक दूसरे को सहारा देते
हुए लड़खड़ाते हुए हम बढ़ते जा रहे थे। इस बीच उसने एक बार भी रुकने के लिये नहीं कहा
था। पहाड़ के समतल स्थान पर पहुँच कर एक सुरक्षित स्थान को देख कर मै धम्म से जमीन पर
बैठ गया और वह भी लड़खड़ाते हुए मेरे साथ बैठ गयी थी। हम दोनो हाँफ रहे थे। एक ओर पहाड़
की चट्टानों की आढ़ थी और सामने लम्बे चीनार और देवदार के पेड़ हमे सुरक्षा दे रहे थे।
कुछ समय हमे अपनी साँसों को नियन्त्रण करने मे लग गया था।
मैने अपना बैग खोला
और रुमाली रोटी मे कुछ सालन रख कर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… बानो। लम्बा सफर है। कुछ
खा लो। वह चुपचाप बैठ कर खाने लगी। कुछ देर आराम करने के बाद मैने कहा… आगे का रास्ता
आसान है परन्तु जरा सावधान रहना क्योंकि यहाँ से पाकिस्तानी फौज की पोस्ट अब ज्यादा
दूर नहीं है। मैने बैग से अपनी घड़ी निकाल कर अपनी कलाई पर बाँधते हुए समय पर नजर डाली
तो रात का दूसरा पहर समाप्त होने वाला था। पाकिस्तानी सीमा के लिये अभी तीन घंटे का
सफर बकाया था। मै चलने के लिये उठ कर खड़ा हो गया और मुझे देख कर वह भी उठ कर खड़ी हो
गयी थी। एक बार फिर से हमारा सफर आरंभ हो गया था।
दो घन्टे चलने के
बाद हम उस मोड़ पर पहुँच गये थे जहाँ से पाकिस्तानी पोस्ट कुछ दूरी पर थी। अब हमे एक
लम्बा चक्कर लगा कर पाकिस्तानी सीमा को पार करना था। मै एक पल के लिये रुक कर अपने
दिल की धड़कन की आवाज को अनसुना करके आसपास का जायजा ले रहा था कि अचानक कुछ कदमों की
आहट और बातचीत की आवाज मेरे कान मे पड़ी। मेरे पीछे चलती हुई वह अपने झोंक मे आगे बढ़ती
चली गयी थी। मैने उसकी ओर छलांग लगायी और उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर जमीन पर लोट कर
चट्टान की आढ़ मे चला गया। इस चक्कर मे लुढ़कते हुए मेरा घायल कन्धा सीधे जाकर चट्टान
से टकरा गया और अगले ही क्षण भीषण पीड़ा की तीव्र लहर मेरे जिस्म मे दौड़ गयी थी। बस
किसी तरह मेरी चीख मुँह मे घुट कर रह गयी थी। वह मेरे नीचे दब कर कसमसायी और मचली परन्तु
मेरे वजन के नीचे दबी होने कारण वह हिल भी नहीं पा रही थी। मेरा एक हाथ उसके मुख पर
कस गया था। कुछ ही मिनट के बाद तीस मीटर की दूरी से पाकिस्तानी रेन्जर्स का एक दल बात
करता हुआ हमारे सामने से निकल गया था। हम उनसे बाल-बाल बचे थे। मेरी धड़कन मुझे अपने
कानों मे सुनाई दे रही थी। मै उस पर पड़ा रहा जब तक वह लोग मेरी आँखों के सामने से ओझल
नहीं हो गये थे।
मेरे एक हाथ ने काम
करना बन्द कर दिया था। मैने अपना कम्बल संभाला और उस पर से हट कर एक किनारे मे अपना
हाथ पकड़ कर बैठ गया। वह कुछ दबे स्वर मे बड़बड़ायी लेकिन दर्द से मेरा सिर भन्ना रहा
था। कुछ देर हम वहीं चट्टान की आढ़ मे बैठे रहे और मै उस दल के लौटने की राह देख रहा
था। बीस मिनट के बाद वह दल बात करता हुआ हमारे सामने से चलता हुआ अपनी पोस्ट की ओर
निकल गया था। उनके जाने के बाद मुझे अपने निष्क्रिय हाथ का ख्याल आया। अचानक मैने महसूस
किया कि मेरे कुर्ते की बाँह गीली हो गयी है। खून की चिचिपाहट महसूस करते ही मैने अपने
बैग से एक कपड़ा निकाला और उसे फाड़ कर उसके हाथ मे देते हुए दबे स्वर मे कहा… बानो,
मेरे कन्धे से शायद खून बह रहा है इसलिये इस कपड़े से मेरे कन्धे और बाँह को जकड़ कर
बांध दो जिससे खून का दौरा धीमे हो जाये। वह कुछ पल अंधेरे मे मुझे घूरती रही फिर मेरे
हाथ से कपड़ा लेकर बड़ी बेदर्दी से मेरा कन्धा बाँध कर बोली… और टाइट कर दूँ। मै उसके
गुस्से को समझ सकता था इसलिये बिना कुछ कहे एक बार अपना हाथ धीमे से हिला कर कसाव को
महसूस करके कहा… …शुक्रिया। इतना काफी है।
मै उठ कर खड़ा हो गया।
…आओ चले। एक बार फिर से उसी रास्ते पर निकल गये थे जिस दिशा मे पेट्रोलिंग दल गया था।
चट्टानों को पार करते हुए हम उस जगह पर पहुँच गये थे जहाँ से कुछ दूरी पर कँटीले तारों
की बाढ़ दिखाई दे रही थी। …बानो, आगे का रास्ता खतरनाक है तो संभल कर चलना। हम दोनो
एक दूसरे का सहारा देते हुए एक-एक कदम जमाते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे। अभी भी वह
पहाड़ी नाला नहीं आया जिसके साथ चलते हुए मै पाकिस्तान की सीमा मे दाखिल हुआ था। वहाँ
बाढ़ टूटी हुई थी। अंधेरे मे उबड़ खाबड़ रास्ते पर चलते हुए एक बार फिर से तेज पानी के
बहाव की आवाज सुन कर दिशा ज्ञान के अनुसार मै उस ओर चल दिया। मुश्किल से कुछ कदम ही
चले थे कि तभी टप से मेरे सिर पर कुछ गिरा और फिर फूल से रोएँ जैसी बर्फ की बारिश आरंभ
हो गयी थी। अंधेरे मे कहीं कोई सिर ढकने की जगह नहीं दिख रही थी। ठंड से दांत किटकिटाने
लगे थे। बर्फबारी मे चट्टानों पर चलना और कठिन हो जाता है। हमेशा फिसलने और रपटने का
अंदेशा बना रहता है।
कँटीले तारों की बाढ़
की ओर अंधेरे मे इशारा करते हुए मैने कहा… बानो, बस वह तार देख रही हो। उसके पार जाना
है। मैने उसका हाथ पकड़ा और संभल कर चट्टान पर पाँव जमाते हुए खाली जगह की दिशा मे चल
दिया। बर्फ की पहली फुहार चट्टान पर पड़ कर एक चादर के जैसे जमीन को ढकती जा रही थी।
फिसलन के कारण बगल मे बहते हुए बर्फीले पानी के नाले मे गिरने का भी खतरा सदैव बना
हुआ था। एक दूसरे को संभालते हुए और सहारा देते हुए हमने तारों की बाढ़ पार करके भारतीय
सीमा मे प्रवेश कर गये थे। सुबह के पाँच बज रहे थे परन्तु अभी भी गहरा अंधेरा बना हुआ
था। एकाएक मुझे महमूद की बात याद आ गयी थी। …जनाब हमारी तरफ तो वैसे ही कोई खतरा
नहीं है। हमारे लिये खतरा तो तार पार करने पश्चात आरंभ होता है। उसका हाथ थामे मै चलता चला गया था। वह भी घिसटते
हुए और कभी लड़खड़ाते हुए मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चल रही थी। सीमा पार किये एक घन्टा
हो गया था। बर्फबारी मे आगे बढ़ना मुश्किल होता चला जा रहा था। एक स्थान पर पहुँच कर
मै रुक गया। यहाँ पेड़ों का जाल ऐसा बुना हुआ था कि बर्फबारी से काफी हद तक बचाव हो
रहा था। घनी झाड़ियों को देख कर मैने कहा… बानो कुछ देर आराम कर लेते है। पेड़ों के नीचे
घनी झाड़ियों की आढ़ मे छिप कर हम दोनो बैठ गये थे।
चलते हुए सर्दी का
कहर महसूस नहीं हुआ था परन्तु बैठते ही कुछ देर मे ही लहू जमा देने वाली ठंड महसूस
होने लगी थी। अपना कम्बल मैने अपने चारों ओर कस लिया परन्तु फिर भी ठंड महसूस हो रही
थी। वह मेरे पास सरक कर बोली… बड़े मियाँ ठंड लग रही है। मैने जल्दी से कम्बल का एक
सिरा खोल कर उसको ढक दिया परन्तु उसके कारण हम दोनो ही ठिठुरने लगे थे। शर्म और लिहाज
को तिलांजली देकर मैने उसे अपनी एक बाँह मे जकड़ कर अपने सीने से लगा कर कम्बल को कस
कर चारों ओर लपेट कर बैठ गया। एक बार उसने छूटने की चेष्टा की थी परन्तु हालात को समझते
हुए मेरे सीने मे वह अपना चेहरा छिपा कर मेरे आगोश मे सिमट कर बैठ गयी थी। कुछ ही देर
मे जिस्मानी गर्मी ने कुछ हद तक कंपा देने वाली सर्दी से हमे निजात दिला दी थी। मेरा
एक हाथ सुन्न पड़ा हुआ था जिसे वह अपने सीने से लगा कर बैठी हुई थी। दूसरा हाथ से उसकी
पतली कमर को पकड़ कर मैने उसे अपने जिस्म से चिपका रखा था। एक घंटे गिरती बर्फ मे हम
एक दूसरे को बाँहों मे बाँधे बैठे रहे थे। मैने अपनी कलाई की घड़ी पर नजर डाली तो सुबह
के सात बज रहे थे। बादलों के कारण अंधेरा अभी भी घना था। …आओ चले। वह मुझे पकड़ कर बैठी
रही। …बानो, चलने का समय हो गया है। बस एक घंटे का रास्ता बचा है। वहाँ पहुँच कर जितनी
देर आराम करना चाहो तुम कर लेना। यहाँ पर खतरा है।
मैने उसे एक बार फिर
हिला कर कर कहा… बानो उठो। यह कह कर जैसे ही मै उठने लगा उसने मेरा चोट खाया हाथ और
कस कर अपने सीने पर दबा दिया था। मेरा हाथ तो सुन्न था परन्तु उसके दबाव के कारण एक
दर्द की लहर ने मेरे सारे जिस्म को हिला कर रख दिया था। मै उस पर बरसता लेकिन उसकी
अधखुली आँखों को देख कर मै तुरन्त अपने दर्द को पी गया और हड़बड़ा कर उससे अलग हो गया।
मैने जल्दी से कम्बल को अपने जिस्म पर लपेट कर उसे जबरदस्ती उठा कर चल दिया था। मेरे
कदम तेजी से बढ़ने लगे थे। वह मेरे पीछे खिंचती हुई चल पड़ी थी। भारतीय सेना की आउटपोस्ट
की रौशनी दूर से दिख रही थी। तंगधार अब यहाँ से कुछ घँटो का सफर था। उसे लेकर मै कुछ
दूर और चला लेकिन मेरी शक्ति क्षीण होती जा रही थी। एक पुरानी आउटपोस्ट का खंडहर देख
कर मै उस ओर बढ़ गया। उस खंडहर मे पहुँचने से गिरती हुई बर्फ से फिलहाल बचाव तो हो गया
था। अब कंधे का दर्द असहनीय होता जा रहा था। पेन किलर की डोज लेकर एक साफ जगह देख कर
मै जमीन पर फैल गया और वह भी मेरे साथ आकर बैठ गयी थी। मैने अपना कम्बल खोल कर एक सिरा
उस पर डाल कर लेट गया। मै कुछ ही देर मे अपनी सपनो की दुनिया मे खो गया था। मुझे याद
नहीं वह कब मेरे सीने मे चेहरा छिपा कर सो गयी थी। जब मेरी आँख खुली तब हम दोनो एक
दूसरे से गुथे हुए पड़े थे। बर्फ गिरनी बन्द हो गयी थी। बादल होने के बावजूद अब तक दिन
निकल आया था। बर्फ की सफेद चादर ने जमीन को ढक दिया था। जैसे ही मैने अपने आप को उससे
अलग किया वह करवट लेकर फिर सो गयी थी। अपनी घड़ी पर नजर डाली तो दोपहर के दो बज रहे
थे। मै उठ कर उस खंडहर से बाहर निकल गया था।
नित्य कर्म से निवृत
होकर जब तक मै लौटा तो देखा कि वह अभी भी कम्बल मे मुँह ढक सो रही थी। मेरा हाथ बिलकुल
जाम हो गया था। मैने अपनी बाँह पर नजर डाली तो दिन की रौशनी मे सफेद कुर्ते की बाँह
पर कत्थई रंग चढ़ गया था। मै समझ गया कि उस पत्थर की चोट के कारण रात को काफी खून बह
गया था। मैने धीरे से उसके चेहरे पर से कम्बल हटाया तो उसका चेहरा देख कर एक पल के
लिये मेरी धड़कन रुक गयी थी। उसके चेहरे पर बंधा हुआ कपड़ा खुल गया था। हुबहू मिरियम
की छवि मेरी आँखों के सामने थी। कुछ देर तक मै उसके चेहरे मे खो गया था। मुझे अभी भी
अपनी नजरों पर यकीन नहीं हो रहा था। मैने धीरे से उसके चेहरे छू कर देखा तो वही रंग
और रुप था। मै एक टक उसे घूर रहा था कि अचानक उसकी पल्कें हिली और धीरे से खुली फिर
झपकी और एकाएक वह चीख कर उठ कर बैठ गयी। उसकी चीख ने मुझे यथार्थ मे लाकर पटक दिया
था। …बानो मै हूँ। सुलेमान। उसने धीरे से अपनी आँखें खोल कर झपकायी और फिर मेरी ओर
देखते ही उसकी बड़ी-बड़ी आँखें फैल गयी थी। अपने कन्धे को दिखाते हुए मैने जल्दी से कहा…
अब उस गाँठ को खोल दो। उसने उठ कर जल्दी से कन्धे पर बंधी हुई गाँठ को खोल दिया। गाँठ
खुलते ही खून का दौरा जोर पकड़ता हुआ सा मुझे लगा तो एक बार उस हाथ को धीरे से हिला
कर देखा तो वह हिलने योग्य हो गया था। मै जल्दी से कहा… बाथरुम जाना है तो पीछे चली
जाओ। वहाँ पर पानी का इंतजाम भी है। यह बोल कर मैने अपना बैग खोल कर मार्फीन के इन्जेक्शन
का एक डोज तैयार किया और अपनी हाथ की नस को ढूंढ कर इन्जेक्शन लगा कर बैठ गया। वह अभी
भी आँखें फाड़े मुझे देख रही थी।
वह धीरे से बोली…
बहुत दर्द हो रहा है? मैने मुस्कुरा कर कहा… बानो, क्या अब्बा से मिलने नहीं जाना है।
बाथरुम के लिये पीछे चली जाओ। हमे अभी कुछ दूर और चलना है। मेरी बात सुन कर अचानक उसे
करन्ट सा लगा और वह झपट कर खड़ी हो गयी। मैने उँगली से पीछे की ओर इशारा किया तो वह
उस दिशा मे चली गयी। थोड़ी देर के बाद वह मेरे साथ बैठती हुई कांपती आवाज मे बोली… आप
कौन है? मैने मुस्कुरा कर कहा… सुलेमान। …नहीं। आप सुलेमान नहीं हो सकते। …चलो। अब
तुम तो अपना नाम बता सकती हो? …तबस्सुम। उसका नाम सुन कर मुझे एक धक्का लगा और फिर
मन ही मन मैने अपने खुदा का शुक्रिया किया क्योंकि मेरा अंदाजा सही था। नीलोफर अपनी
इंश्योरेन्स पालिसी का इंतजाम करने की कोशिश कर रही थी। …चलो तबस्सुम तुम्हें तुम्हारे अब्बू के पास पहुँचाना
है। वह दबे स्वर मे बोली… क्या आप अब्बा के लिये काम करते है? मैने प्यार से उसकी पगड़ी
पर हाथ मार कर उसे हटाते हुए कहा… बानो धीरे-धीरे तुम्हें सब पता चल जाएगा। सबसे पहले
हमे जल्दी से जल्दी श्रीनगर पहुँचना है। अभी भी वह अविश्वास से मुझे ताक रही थी। कुछ
सोच कर मैने कहा… बानो पहले कुछ पेट पूजा कर लेते है। यहाँ से शाम को आगे का रास्ता
तय करेंगें। इतना बोल कर अपने बैग से बचाकुचा पैकेट खोल कर उसके सामने रख दिया था।
खाना खाते हुए उसने
एक बार फिर पूछा… सच बताईये कि आप कौन है? मैने मुस्कुरा कर कहा… तबस्सुम मै तुम्हारा
दुश्मन हर्गिज नहीं हो सकता। वह अभी भी मुझे शक भरी नजरों से देख रही थी। खाना समाप्त
करने पश्चात मैने उठते हुए पूछा… क्या सुलेमान को तुम जानती हो? उसने अपना सिर हिला
कर मना किया तो मैने हँसते हुए कहा… इसका मतलब यह हुआ कि तुम किसी बूढ़े से आदमी की
उम्मीद कर रही थी? वह मेरी बात सुन कर झेंप गयी थी। कोई जवाब देने के बजाय वह जल्दी
से उठ कर खड़ी हो गयी थी। दिन ढलना आरंभ हो गया था। कुछ ही देर मे अपना सामान समेट कर
हम दोनो तंगधार की दिशा मे चल दिये थे। यहाँ से आगे का रास्ता बेहद आसान था। चीनार
और देवदार के पेड़ों की आढ़ मे चलते हुए अंधेरा होने से पहले हमारा आमना-सामना बीएसफ
की स्काऊट पार्टी से हो गया था। …हाल्ट। मै वहीं स्थिर खड़ा हो गया था। तबस्सुम मेरा
हाथ पकड़ कर मेरी आढ़ मे खड़ी हो गयी थी। उसका जिस्म अनजाने डर से काँप रहा था। …बानो
डरो मत। इतना बोल कर मैने अपनी बाँह उसकी कमर मे डाल कर अपने से सटा कर खड़ा हो गया
था।
तीन सिपाहियों की
स्काउट पार्टी ने हम दोनो कवर कर लिया था। दो सिपाही अपनी मशीन गन तान कर कुछ दूरी
पर खड़े हो गये थे। हवलदार रैंक का सिपाही मेरे पास आकर बोला… कौन है भाई? मैने कश्मीरी
मे कहा… जनाब हम बक्खरवाल समाज से है। इतना बोल कर मैने अपना पीआरसी कार्ड उसकी ओर
बढ़ा दिया था। …समीर बट। …जी जनाब। …यह कौन है? …मेरी बीवी तबस्सुम है। उस हवलदार ने
तबस्सुम के चेहरे पर टार्च की रौशनी मार कर मेरी ओर देख कर पूछा… इस वक्त यहाँ क्या
कर रहा है? …जनाब, यहाँ से कुछ दूरी पर इसके अब्बा की कब्र है। आज ही के दिन दो साल
पहले एक आतंकवादी हमले मे वह फौत हो गये थे। उनकी कब्र पर फातिहा पढ़ने के लिये हम आज
यहाँ आये थे। मै जानता था कि उसके समझ मे मेरी कोई बात नहीं आ रही थी। उसके लिये बस
वह पीआरसी कार्ड ही मेरी पहचान थी। मै अपनी असलियत अभी जाहिर नहीं करना चाहता था। …कहाँ
रहता है? …कुपवाड़ा। कुछ पल वह चुप रहा और कुछ सोच कर मेरा पीआरसी कार्ड मेरी ओर बड़ाते
हुए बोला… तेरी घरवाली का कार्ड कहाँ है? …जनाब घर पर है। …कोई बात नहीं। इसे हमारे
पास छोड़ जा और तू घर जाकर इसका कार्ड लेकर वापिस आजा। तबस्सुम चुपचाप सारी बात सुन
रही थी।
अचानक वह हिली तो
मैने उसको कस कर अपने से सटाते हुए पहली बार साफ हिन्दी मे कहा… हवलदार साहिब आप 15
कोर मे वायरलैस पर ब्रिगेडियर चीमा से मेरे बारे मे शिनाख्त कर सकते है। आपने जो अभी
मेरी बीवी के बारे मे कहा है वह इसे आपकी पहली गलती समझ कर अनसुना कर रहा हूँ। आप चाहे
तो हमे हिरासत मे ले लिजिये। मेरी बात सुन कर हवलदार सकते मे आ गया था। काउन्टर इन्टेलीजेन्स
के मुखिया ब्रिगेडियर चीमा के नाम से इस हिस्से मे तैनात सभी लोग परिचित थे। हवलदार
तुरन्त बात बदल कर बोला… तुम चीमा साहब को कैसे जानते हो? …जनाब, मै उनके घर पर काम
करता हूँ। …तुम दोनो यहीं खड़े रहो। मै अभी आता हूँ। इतना बोल कर वह हमे वहीं छोड़ कर
अपने साथियों की ओर चला गया। तबस्सुम को अभी भी मैने अपनी बाँह मे जकड़ रखा था। वह कुछ
देर अपने साथियों के साथ मंत्रणा करने के पश्चात वह लौट कर बोला… तुम दोनो जल्दी से
दफा हो जाओ क्योंकि शिफ्ट बदलने का समय हो गया है। वह कुछ और बोलता उससे पहले तबस्सुम
को लेकर मै तंगधार की दिशा मे आगे बढ़ गया था। अंधेरा गहरा होता जा रहा था।
उस मुठभेड़ के बाद
हमारा आमना-सामना किसी और स्काउट पार्टी से नहीं हुआ था। कुछ दूर निकलने के बाद वह
चलते हुए बोली… अगर वह दबाव डालते तो क्या आप मुझे उनके पास छोड़ कर चले जाते? मैने
मुस्कुरा कर कहा… जब मैने तुम्हें अपनी बीवी बताया तो यह बात उसी वक्त तय हो गयी थी
कि मै तुम्हें वहाँ अकेला उनके पास छोड़ कर नहीं जा सकता था। उसके बाद वह कुछ नहीं बोली
थी। मेरा कन्धा पके फोड़े की तरह तड़क रहा था। मेरा हाथ पीड़ा से लगातार झनझना कर सुन्न
पड़ता जा रहा था। दर्द के कारण चलते हुए मै असावधान हो गया था। अचानक मेरा पाँव उबड़-खाबड़
जमीन पर पड़ा जिसके कारण मै लड़खड़ा गया था। मुझे सहारा देने के लिये उसने तुरन्त आगे
बढ़ कर मेरा घायल हाथ पकड़ लिया तो मेरे मुख से एक दर्दभरी आह निकल गयी थी। उसने जल्दी
से मेरा हाथ छोड़ कर पूछा… क्या बहुत दर्द हो रहा है? मैने मना करते हुए कहा… बानो कुछ
देर यहीं रुक जाते है। इतना बोल कर मै धम्म से जमीन पर बैठ गया था। वह मेरे नजदीक बैठते
हुए बोली… अब कितनी दूर है? …अब थोड़ी दूर रह गया है। इतना बोल कर मैने मार्फीन का एक
डोज तैयार किया और इन्जेक्शन लगा कर आँख मूंद कर पेड़ का सहारा लेकर बैठ गया। वह चुपचाप
मुझे ताक रही थी। वह मेरा हाथ पकड़ कर धीरे सहलाते हुए बोली… आप कुछ देर आराम कर लिजिये।
मार्फीन का असर होना आरंभ हो गया था। मुझे याद नहीं लेकिन जब मैने अपनी आँखें खोली
तो वह मेरा सिर अपनी गोद मे लिये बैठी हुई थी।
…अब दर्द कैसा है?
मैने उठते हुए कहा… बानो, अब ठीक है। आओ चले। इतना बोल कर मै खड़ा हो गया। हम दोनो तंगधार
की दिशा मे चल दिये थे। सुबह की पहली किरण निकलते ही हम तंगधार पहुँच गये थे। उसे रोक
कर उसकी आँखों मे झाँकते हुए मैने कहा… बानो, यहाँ से आगे तुम्हें बहुत सी बातों का
पता चलेगा लेकिन डरने की जरुरत नहीं है। उसने धीरे से अपना सिर हिला दिया था। हम आगे
बढ़ गये थे। मेरी जीप मुझे वहीं खड़ी हुई मिल गयी थी जहाँ मैने उसे छोड़ा था। कोई आसपास
नहीं दिखा तो मैने जीप का हार्न बजा दिया। अगले ही क्षण मेरा ड्राईवर एक कमरे से निकल
कर भागता हुआ बाहर आया और मुझे देखते ही एक करारा सा सैल्युट मार कर बोला… साबजी, वह
सामने होटल मे ठहरी हुई है। मै अभी उन्हें बुला कर लाता हूँ। इतना बोल कर वह दौड़ते
हुए उनको बुलाने के लिये चला गया था। कुछ ही देर मे दोनो बहने उसके साथ चलती हुई बाहर
आ गयी थी। मुझे देखते ही दोनो तेजी से भागते हुए मेरी ओर आयी परन्तु मेरी रंगी हुई
बाँह को देख कर दोनो की चीख निकल गयी थी। मैने जल्दी से कहा… कुछ नहीं हुआ है। सब ठीक
है। तुमने होटल का हिसाब कर दिया? जन्नत ने जल्दी से कहा… जी। …चलो जीप मे बैठो। अभी
बहुत लम्बा सफर करना है। हम लोग जीप मे बैठ कर तुरन्त श्रीनगर की ओर चल दिये थे।
एक बार बीच मे कुछ
खाने के लिये रुक कर रात तक हम श्रीनगर मे दाखिल हो गये थे। मैने ड्राइवर से कहा… पहले
कमांड अस्पताल चलो। यह हाथ दिखाना है। थोड़ी देर मे कमांड अस्पताल की इमर्जेन्सी मे
अपना कन्धा दिखाने पहुँच गया था। उन्होंने घाव का निरीक्षण किया और दोबारा बैन्डेज
करके मेरे हाथ को स्लिंग मे डाल कर कहा… मेजर साहब, इन्फेक्शन हो गया था। उसका इलाज
कर दिया है लेकिन इसे हाथ को स्थिर रखिये वर्ना यह घाव नहीं भरेगा। उन्होंने कुछ गोलियाँ
खाने के लिये देकर मुझे जाने की इजाजत दे दी थी। अपना इलाज करा कर मै दूसरी मंजिल पर
स्थित आईसीयू की ओर चला गया था। ड्युटी डाक्टर से मैने मकबूल बट के बारे पूछा तो पता
चला कि अब उसकी तबियत स्थिर हो गयी है लेकिन अभी भी वह बेहोश है। यह जानकारी लेकर मै
अस्पताल से बाहर निकल कर जीप के पास पहुँचा तो तबस्सुम के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ी हुई
थी। जब से तंगधार मे हमारे बीच मे बातचीत हुई थी उसके बाद से तबस्सुम चुप हो गयी थी।
मै जानता था कि उसकी समझ से सब कुछ बाहर है लेकिन मैने फिलहाल कोई सफाई देने की कोशिश
नहीं की थी। अपने घर पहुँच कर मैने कहा… तबस्सुम इसे अपना घर समझो। आज इनके साथ इनके
कमरे मे सो जाओ। कल तुम्हारे लिये दूसरा इंतजाम कर दूंगा। अब मै सोने जा रहा हूँ। बस
इतना बोल कर मै अपने कमरे मे चला गया और बिस्तर पर पड़ते ही अपने सपनों की दुनिया मे
खो गया था।
इस्लामाबाद
जनरल मंसूर अपने सामने
बैठे हुए अफसरों पर नाराज हो रहा था। …फारुख कँहा है। उसकी किसी को खबर नहीं है। जमात
-ए-इस्लामी की ताजपोशी के दिन से वह गायब है। हमारे लोग क्या कर रहे है? …जनाब, नीलोफर
को पता है। वही फारुख के साथ लगातार संपर्क मे है। जिस दिन ताजपोशी होनी थी उस दिन
फारुख के कहने पर उसे मुल्तवी कर दिया गया था। शायद उसे पहले से किसी खतरे का अंदाजा
हो गया था। दूसरा अफसर अचानक उसकी बात को काटते हुए बोला… जनाब, मुजफराबाद से फारुख
की बेटी तबस्सुम अपने किसी यार के साथ भाग गयी है। जैश के लोग तीन दिन से कुत्तों की
तरह सारे इलाके को छान रहे है। इसकी पुष्टि अभी तक मीरवायज परिवार ने नहीं किया है
परन्तु हमारे स्काउट ने यह खबर दी है। जनरल मंसूर जोर से दहाड़ा… उन हरामखोरों को वहाँ
पर किस लिये तैनात किया था। उस घर के लोगों पर चौबीस घंटे निगाह रखने के लिये उन्हें
वहाँ छोड़ा था तो वह लड़की उनकी निगाह से बच कर कैसे निकल गयी। जनरल मंसूर गुस्से मे
चहलकदमी करने लगा था।
एक अफसर जो अभी तक
चुप था वह बोला… जनाब, उस लड़की का फोन बरामद कर लिया है। गायब होने से पहले उसके नम्बर
पर तीन काल श्रीनगर से आयी थी। हमारा अनुमान है कि वह नम्बर फारुख या नीलोफर का हो
सकता है लेकिन अभी तक पुष्टि नहीं हो सकी है। …नीलोफर से बात हुई? …नहीं जनाब। इस वक्त
नीलोफर के खिलाफ सेना की ओर से नोटिस निकला हुआ है तो सावधानीवश हम उसको सीधे काल नहीं
कर रहे है। लखवी के जरिये ही हमे श्रीनगर की सूचना मिल रही है। मेरी बात जकीउर लखवी
से हुई थी और मैने उसे फारुख का पता लगाने के लिये कहा है। मकबूल बट अभी भी अस्पताल
मे है तो जमात का कनेक्शन भी फिलहाल के लिये कटा हुआ है। जनरल मंसूर ने पूरी ताकत से
मेज पर हाथ मार कर कहा… हमारे जितने भी एजेन्ट कश्मीर मे बैठे हुए उन्हें तुरन्त एक्टिव
कर दो। फारुख का पता लगना बेहद जरुरी है।
एक वृद्ध अफसर बोला…
जनाब, मुझे एक शक हो रहा है। कहीं फारुख अपनी बेटी ढूंढने के लिये तो नहीं गायब हुआ
है? उस बुढ्ढे मीरवायज के हाथ अगर वह लड़की लग गयी तो उसका हश्र बेहद दर्दनाक होगा।
इसी कारण फारुख अपनी बेटी को बचाने के लिये यहाँ न पहुँच गया हो? जनरल मंसूर अपनी कुर्सी
पर बैठ कर बोला… एक छिनाल के लिये पूरा आप्रेशन खतरे मे पड़ गया है…लाहौल विला कुव्वत।
इतना बोल कर वह गहरी सोच मे डूब गया था।
आखीर कार बानो और समीर सारी बाधाये पार करके सही सलामत श्रीनगर पहूंच गये, निलोफर शायद बानो को अगवा करके समीर और फारुख दोनो को ब्लॅकमेल करनेके फिराकमे थी, उसका दाव तो उलटा पड गया, देखते है अब निलोफर क्या चाल चलेगी.
जवाब देंहटाएंप्रशान्त भाई आपका सोचना सही है कि नीलोफर दोनो पर दबाव डालना चाहती थी। उसकी चाल विफल हो गयी परन्तु सीमा पार बैठे हुए उसके आकाओं की योजना तो जस की तस है। उनसे पार पाना इतना आसान नहीं हो सकता। आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
हटाएंबहुत ही जबरदस्त अंक और आखिर कार समीर और तबस्सुम गिरते पड़ते अपने लक्ष्य में पहुंच गए। मगर इसीके चलते फारूक बुरी तरह फंस चुका है।आगे क्या होगा यह देखना मजेदार होगा
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई शुक्रिया। मेरा विश्वास किजिये कि हक डाक्ट्रीन को इतनी आसानी से काउन्टर नहीं किया जा सकता है। आगे-आगे देखिये कि होता है क्या।
हटाएंबहोत देर करते हो, हुजूर आते आते🤔😏
जवाब देंहटाएंहुजूर, समझने की कोशिश किजिये कि कुछ मजबूरियाँ जरुर रही होगी।
हटाएंTime has changed so you are requested to increase the POST FREQUENCY, else loss of interest is directly proportional.
जवाब देंहटाएंOfcourse Mr Nath, time has changed. However, I may not be able to heed to your request due to creative reasons. Twice a week update may result in loss of interest is a risk but shabby plot and writing will definitely lose readers. I hope you will try to understand my limitation. Thanks a ton.
हटाएंवक्त और हालात दोनोसे विरभाई और उनकी कहाणी अलग है, बहोत सालोके वीरान अंतरालके बाद भी ये जुडाव वैसाही रहा, ये आप हम जैसे अनके "अफगाण" की पहली कडी के पहले अक्षर के साथ सफर करनेवाले चाहनेवालोसे पुछ सकते है.
जवाब देंहटाएंइतने दिनो तक साथ निबाहने के लिये शुक्रिया।
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