काफ़िर-40
खाली सभागार देख कर
मै सकते मे आ गया था। …सर यहाँ तो कोई भी नहीं है। जमात के कार्यकारी परिषद के सदस्यों
के बारे मे सोचते हुए मेरी नजर बालकोनी के शीशे से बाहर की ओर चली गयी थी। मुख्य द्वार
पर लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। …सुजान सिंह
पता करो कि परिषद की मीटिंग का क्या हुआ? सुजान सिंह तुरन्त उस मीटिंग का पता करने
के लिये निकल गया था। मैने स्थिति का जायजा लेने के लिये चारों ओर नजर दौड़ाई तो मेरी
नजर एक दरवाजे पर टंगी हुई नेम प्लेट पर टिक गयी थी। उस प्लेट पर पीतल के अक्षरों से
“मकबूल बट, कनवीनर”। कुछ सोच कर मै उस कमरे
की ओर चल दिया। लकड़ी के दरवाजे पर एक दस्तक देकर अन्दर की दिशा मे धकेला तो मेरी नजर
उस कमरे के साथ ही लगे एक दस-पन्द्रह लोगो के बैठने का शीशे से विभाजित छोटे से कान्फ्रेन्स
हाल पर पड़ी थी।
जमात-ए-इस्लामी की
आला कमान उस कान्फ्रेन्स हाल मे मौजूद थी। सदस्यों के बीच किसी मसले पर गहन चर्चा चलती
हुई लग रही थी। किसी की नजर अभी तक मुझ पर नहीं पड़ी थी। मैने अपने साथियों को पीछे
आने का इशारा किया और कान्फ्रेन्स हाल का दरवाजा खोल कर अन्दर प्रवेश कर गया। मुझे देख कर एकाएक सबके मुख पर ताला लग गया था। उनकी
नजरें मुझ पर टिक गयी थी। एक नजर सब पर डाल कर मैने कहा… सलाम-वाले कुम जनाब। माफ किजिएगा।
आपकी महफिल मे दख्ल देने के का मेरा कोई इरादा नहीं है परन्तु मुझे फारुख मीरवायज साहब
से कुछ जरुरी बात करनी है। फारुख जल्दी से खड़ा हुआ और बोला… मेजर साहब, क्या बाहर चल
कर बात कर सकते है। तब तक मेरे साथी हाल मे फैल कर सभी को कवर करके खड़े हो गये थे।
अचानक काजी इश्तियाक मोहम्मद उठ कर खड़ा हुआ और मुझ पर दहाड़ते हुए बोला… कंजर्फ लोग,
तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम्हारे नापाक कदम हमारे आफिस की देहलीज पर पड़े। अब एक भी
आदमी यहाँ से जिन्दा बच कर नहीं जाएगा। एकाएक हाल मे मौत की शांति छा गयी थी। जब किसी
ने कुछ नहीं कहा तो वह एक बार फिर से घुर्राया… काफिरों की फौज ने इस जगह को नापाक
कर दिया है। क्या तुम सबका खून पानी हो गया है? वह कुछ और बोलता कि तभी हाजी मोहम्मद
ने उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बिठाते हुए कहा… मियाँ क्या तुम्हारी अक्ल घास चरने चली
गयी है। चुपचाप बैठ जाओ। इससे पहले कोई कुछ और बोलता कि तभी मेरी आवाज उस कमरे मे गूँजी…
हम सिर्फ एक सरकार का नोटिस देने आये थे। एक पल रुक कर कुट्टी की ओर देखते हुए अबकी बार मै अपनी फौजी आवाज मे दहाड़ा… हवलदार इस
आदमी ने अभी सबके सामने हम सभी को जान से मारने की धमकी दी है। सबसे पहले इसको अपनी
गन पोइन्ट पर ले लो। अब अगर कोई और बीच मे बोले या रोकने की कोशिश करे तो उसे भी हिरासत
मे ले लेना। मै धीमे कदमों से चलता हुआ इश्तियाक मोहम्मद की ओर बढ़ गया था।
अधेड़ उम्र का इश्तियाक
मोहम्मद मुझे खा जाने वाली नजरों घूर रहा था। जैसे-जैसे मै आगे बढ़ रहा था वैसे-वैसे
सबकी आँखें भी मेरे साथ घूम रही थी। अबकी बार मैने कश्मीरी मे कहा… काजी इश्तियाक मोहम्मद
तुम्हें शायद हर चीज मे सियासत दिखती है। आज तुम्हारी नजरों का जाला हटा कर ही वापिस
जाऊँगा। यह कहते ही मै उस पर झपटा और जब तक वह संभल पाता तब तक उसके सिर के बालों को
मैने मुट्ठी मे जकड़ा और एक बल देने के बाद खींच कर उठाते हुए कहा… आज तुम्हारी बेवकूफी
के कारण यहाँ कितने सारे लोग मारे जाते। यह वर्दी देख रहे हो। यह छ्ह लोगों ने नहीं
पहनी है बल्कि बारह लाख की भारतीय फौज पहनती है। यह सिर पर ‘रेड बेरेट’ देख
रहे हो तो एक बार अपने हिज्बुल और जैश के यारों से इसके बारे मे पूछ लेना। इस टोपी
को देख कर हाथ मे एके-47 लिये हुए जिहादी की भी खड़े-खड़े पतलून गीली हो जाती है। उसको
बालों से पकड़ कर सबके सामने घसीटते हुए मैने कहा… काजी साहब तुम्हारी फाइल मैने देखी
है। चार बच्चों के साथ तुम्हारी हैवानियत की कहानी इस्लामिया मस्जिद की दीवारों मे
छिपी हुई है। अगर यहाँ पर किसी को पता नहीं है तो बता देता हूँ कि हमने पिछली रेड मे
चार बच्चों की लाश इनकी मस्जिद से बरामद की थी। पुलिस अभी जाँच कर रही है। इश्तियाक
मोहम्मद खुदा के लिये सियासत और इस वर्दी मे फर्क करना सीख लो। हम पहले गोली मारते
है बाद मे हमारी ओर से लोग सफाई देते है। उसके बाल अभी भी मेरी मुठ्ठी मे जकड़े हुए
थे और चलते हुए हर कदम पर उसके मुख से दर्द भरी आह निकल रही थी।
अरबाज के अब्बा हाजी
साहब तुरन्त खड़े होकर बोले… समीर बेटा, इनसे गलती हो गयी। इन्हें माफ कर दो। इनका मतलब
यह नहीं था। मैने इश्तियाक मोहम्मद के बाल पकड़ कर उसकी आँखों मे देखते हुए कहा… क्या
काजी अंकल सही बोल रहे है? मेरी पकड़ उस वक्त इतनी मजबूत हो गयी थी कि वह सिर हिलाने
की स्थिति मे भी नहीं था। उसकी आँखों मे नफरत के बजाय अब आँसू तैर रहे थे। …हाजी साहब,
हम तो सरकारी काम से आये थे। मरने-मारने की बात तो इस खबीस ने की है। इतना बोल कर मैने
उसकी कमर पर पूरी ताकत से अपने बूट की ठोकर मार कर कुट्टी की ओर धकेल कर कहा… आज इसे
अपने साथ लेकर चलेंगें। इसको डिटेन्शन मे कुछ दिन रख कर उन चार बच्चों की हत्या का
स्टेटमेन्ट लेकर ही अब इसको दोजख भेजेंगें। अभी तक किसी ने बोलने की कोशिश नहीं की
थी। फारुख अभी भी अपने स्थान पर खड़ा हुआ था। मैने मुड़ कर सब पर एक नजर डाल कर फिर कहा…
आपकी सियासत की दुकान बाहर खड़ी है। मै सिर्फ फारुख साहब से मिलने आया था। मुझे आपसे
कोई काम नहीं है। जो कुछ भी हुआ उसके लिये माफी चाहता हूँ। हाँ तो फारुख साहब बाहर
बात किजीएगा या यहीं पर बात कर लें। फारुख ने जल्दी से कहा… हम बाहर चल कर बात कर लेते
है। …तो चलिये। इतना बोल कर मै द्वार की ओर चल दिया।
तभी हाजी मोहम्मद
ने उठते हुए बोले… समीर, काजी साहब को छोड़ दो। इनकी गलती की सजा इन्हें मिल गयी है।
तुम्हारे अब्बा का वास्ता है इन्हें छोड़ दो। मै चलते-चलते एक पल के लिये रुक गया और
एक बार फिर से जमीन पर बैठे हुए इश्तियाक मोहम्मद के बालों को मुठ्ठी मे जकड़ कर जोर
से हिलाते हुए पूछा… क्यों मियाँ सियासत का भूत उतरा कि नहीं? …समीर बेटा खुदा के लिये इन्हें छोड़ दो। एकाएक कुछ
और बुजुर्ग भी हाजी साहब के सुर मे सुर मिलाने लगे तब एक बार फिर कुट्टी की ओर देख
कर मैने कहा… अभी इसको छोड़ दो लेकिन सभी लोग इसकी शक्ल अपने दिमाग मे बिठा लो। अगली
बार सोपोर मे कोई एन्काउन्टर के लिये काल आये तो उन चार बच्चों का हिसाब उस दिन करके
ही वापिस लौटना। यह इस्लामिया मस्जिद का काजी है। कुट्टी ने सिर हिलाया और इश्तियाक
मोहम्मद को छोड़ दिया। वह जल्दी से कमरे से बाहर निकल कर जाने लगा तो मैने उसे अन्दर
धकेलते हुए कहा… अगर बाहर दंगा भड़काने की सोच रहे हो तो एक बार पहले यहाँ भी नजर डाल
लेना। हाजी साहब तुरन्त इश्तियाक मोहम्मद को पकड़ कर अपने साथ ले गये थे। फारुख के साथ
मै उस हाल से बाहर निकल आया और मेरे पीछे-पीछे मेरे साथी भी बाहर आ गये थे।
मैने कहा… तुम्हें
बताया था कि आज ताजपोशी मत करना फिर भी तुम नहीं माने। …मेजर, ताजपोशी तो पहले ही मुल्तवी
हो गयी थी। यह सब बैठ कर पैसों पर चर्चा कर रहे थे। …तुम आज तो कम से कम अन्दर नहीं
बैठते। बाहर मिल गये होते तो वहीं नोटिस थमा कर मै वापिस चला गया होता। हम बात करते
हुए जीप के पास आ गये थे। लोगों की भीड़ ने हम सब को घेर लिया था। मैने नोटिस की कापी
निकाल कर उसे देते हुए कहा… इस पर साईन करके मुझे इस नोटिस की पावती दे दो। दूसरी कापी
उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… यह तुम्हारी कापी है। उसने जल्दी से अपनी कापी जेब मे डाली
और मेरी कापी पर दस्तखत करके बढ़ाते हुए कहा… पहली बार जमात के सभी दिगज्जों को उनके
घर मे धमकी देकर जिंदा वापिस लौट रहे हो। बड़े किस्मत वाले हो। मैने उसके कन्धे को थपथपा
कर कहा… फारुख मियाँ, यह कहो कि तुम सभी लोग बड़े किस्मत वाले हो। आज सिर्फ छह आदमी
पूरी जमात-ए-इस्लामी और संयुक्त मोर्चे का सफाया करके निकल गये होते और यह भीड़ बस बाहर
खड़ी देखती रह गयी होती। तुम तो फौजी आदमी होने के बावजूद इतनी जरा सी बात नहीं समझ
सके तो लानत है। वह मुझे बड़े ध्यान से सुन रहा था लेकिन अचानक उसके चेहरे पर हवाईयाँ
उड़ती हुई साफ दिख रही थी। मै आगे बढ़ कर फारुख से गले मिल कर बोला… मियाँ फिर कभी मेरी
जरुरत पड़े तो खबर कर देना। खुदा हाफिज। मै जीप मे बैठा और हूटर बजते ही भीड़ ने रास्ता
छोड़ दिया था। फारुख को उसी भीड़ मे छोड़ कर हम जमात के कम्पाउन्ड से बाहर निकल गये थे।
मैने अपना काम कर दिया था और अब मुझे बस फारुख की प्रतिक्रिया का इंतजार था।
सड़क पर पहुँचते ही
मैने सेन्टर्ल एक्सचेन्ज का नम्बर मिला कर पूछा… वह नम्बर अभी भी चालू है। …जी जनाब।
…क्या लोकेशन है। …वह अभी वहीं है। उस पर चौबीस घंटे नजर रखो। अपना फोन काट कर मैने
ड्राइवर को निर्देश दिया… आफिस चलो। हम अपने आफिस की ओर चल दिये थे। कुट्टी धीरे से
बोला… सर, आज तो आपने हमे भी हिला कर रख दिया था। उस मौलाना की पतलून गीली हो गयी थी।
उसने ऐसा क्या कहा था? …कुछ नहीं बस धमकी दे रहा था कि आज हम मे से कोई जिंदा बच कर
वहाँ से नहीं जाएगा। तभी थापा बोला… साहबजी जैसे ही आपने उसके बाल पकड़ कर घुमाये थे
तभी नायक साहब बोले कि भाई सेफ्टी लाक हटा दे। मैने हँसते हुए कहा… यह सियासी लोग है।
इनके बस का कुछ नहीं है। इनकी सारी ताकत वह भीड़ है जो बाहर खड़ी हुई थी। उनके दम पर
यह हर किसी को धमकी देते फिरते है। हम बात करते हुए आफिस पहुँच गये थे। जीप से उतरते
ही मैने अपने साथियों से कहा… अलर्ट रहना। किसी भी समय चलना पड़ सकता है। इतना बोल कर
मै ब्रिगेडियर चीमा के कमरे मे पहुँच गया था। …सर, मैने अपना काम कर दिया है। इस वक्त
वह कहाँ है? ब्रिगेडियर चीमा अपने कंप्युटर स्क्रीन पर निगाहें गड़ाये हुए थे। …मेजर
उसकी गाड़ी पर हमने ट्रेकर लगा दिया है। इस वक्त वह जमात के आफिस मे बैठा है। …सर अगले
कुछ घंटो मे वह कुछ करेगा। बस अब हमे उसके अगले कदम का इंतजार करना है। आज रात तक फारुख
हमारे कब्जे मे होना चाहिये।
हम दोनो बैठ कर अपनी
रणनीति बनाने मे व्यस्त हो गये थे। बाहर अंधेरा हो गया था। ब्रिगेडियर चीमा की एक टीम
जमात के आफिस से कुछ दूरी पर स्थित थी। दूसरी टीम नीचे तैयार बैठी हुई थी। शाम को सात
बजे मेरे फोन की घंटी बजी… हैलो। …मेजर साहब, मै आपसे मिलना चाहता हूँ। आप इस वक्त
कहाँ है। …फारुख मियाँ मै तो अभी अपने आफिस मे हूँ। आप एक घन्टे के बाद मेरे घर पहुँच
जाईएगा। तब तक मै भी अपने घर पहुँच जाऊँगा। मुझे यकीन है कि आपको मेरा घर तो पता होगा।
…मेजर साहब, एक घन्टे मे आपके घर पर मिलता हूँ। …मियाँ बस एक बात का ख्याल रखना कि
अपनी भीड़ को लेकर मत चलना। उच्चवर्गीय कोलोनी मे तुम्हारी जिहादी भीड़ हंगामा खड़ा कर
देगी। सर्विंग आफीसर के घर के बाहर वैसी भीड़
मुझे भी मुश्किल मे डाल देगी। अगर डर लगता है तो एक दो लोग अपने साथ रख लेना लेकिन
भीड़ नही। एक घन्टे के बाद मिलते है। खुदा हाफिज। मैने फोन काट दिया और ब्रिगेडियर चीमा
से कहा… सर, आपकी दूसरी टीम को मेरे घर पर तैनात किजीये। फारुख एक घन्टे मे वहाँ पहुँच
रहा है। मै चलता हूँ। मुझे गुड लक बोल कर ब्रिगेडियर चीमा फोन पर अपनी टीम को निर्देश
देने मे व्यस्त हो गये थे।
कुछ ही देर मे मै
अपनी टीम के साथ अपने घर की ओर जा रहा था। …सुजान सिंह आप अपने साथियों के साथ नाले
के पास उतर कर पैदल मेरे मकान मे पीछे से प्रवेश करके उसे सेनेटाईज करके फिर सारा पिछला
हिस्सा किसी अप्रत्याशित हमले को रोकने के लिये कवर करेंगें। सीओ साहब की टीम आगे से
सारे मकान को कवर करेगी। हमारी जीप ने जैसे ही कोलोनी प्रवेश किया तो सभी अलर्ट मोड
मे आ गये थे। जैसे ही नाले का मोड़ आया जीप की गति धीमी हो गयी थी। पाँचों चलती जीप
से उतर कर अंधेरे मे गुम हो गये। जीप मेरे घर के सामने रुकी तो मैने ड्राईवर से कहा…
तुम वापिस चले जाओ। जीप से उतर कर मै घर के अन्दर चला गया था। लान मे रखी हुई एक कुर्सी
पर बैठ कर मैने रहमत को आवाज लगायी तो एक साथ आस्माँ और रहमत भागते हुए रसोई से बाहर
निकले और मेरे सामने पहुँच कर सावधान मुद्रा मे खड़े हो गये। …चाय पिला दो। आज बहुत
थक गया हूँ। रहमत वापिस चला गया और आस्माँ वहीं खड़ी रही। मैने उसकी ओर देखा तो मुझे
लगा कि वह कुछ बोलना चाहती थी लेकिन मै अभी उससे बात करने की स्थिति मे नहीं था।
…आस्माँ, अभी थोड़ी
देर मे मुझसे मिलने कुछ लोग आने वाले है। तुम दोनो अन्दर ही रहना। इतना बोल कर मै स्थिति
के आंकलन करने मे लग गया था। ब्रिगेडियर चीमा की टीम भी हमारे पीछे आ रही थी तो अब
तक वह भी आगे का हिस्सा कवर करके बैठ गये होंगे। मेरी टीम घर का पिछला हिस्सा अब तक
कवर कर चुकी होगी यह सोच कर मै थोड़ा आश्वस्त हो कर बैठ गया था। रहमत चाय लेकर आया और
मेरे सामने चाय का प्याला रख कर जाने लगा तो मेरी नजर उसके चेहरे पर पड़ी तो वह कुछ
बताने की कोशिश कर रहा था। …रहमत जरा तुम यहीं रहो क्योंकि कोई मिलने आ रहा है। मै
जरा कपड़े बदल कर आता हूँ। इतना बोल कर मै तेजी से अपने कमरे मे चला गया। …कुछ तो गड़बड़
है। यही सोच मैने जोर से आवाज लगायी… आस्माँ। उसको आवाज देकर मै कमरे के एक किनारे
मे खड़ा हो गया। आस्माँ दरवाजे पर आकर खड़ी हो गयी थी। मैने अपने मुँह पर उँगली रख कर
उसे चुप रहने का इशारा करके पूछा… जन्नत कहाँ है? वह अपनी उँगली के इशारे से रसोई की
ओर दिखाते हुए बोली… वह खाना बना रही है। बोलते हुए उसने तीन उँगलियों से इशारा किया
तो मै समझ गया कि तीन लोग रसोई मे है। …कमाल है आज बाकी लोग नहीं दिख रहे है। वह सब
कहाँ चले गये। अबकी बार आस्माँ ने जल्दी से कहा… वह सभी रसोई मे काम कर रहे है। मैने
उसे जाने का इशारा किया और अपना फोन निकाल कर सुजान सिंह का नम्बर मिला कर पूछा… लोकेशन
क्या है? …सर, मकान का पिछला हिस्सा कवर कर लिया है। …रसोई मे तीन हथियारबंद लोग बैठे
है। उसके दरवाजे पर पहुँच कर मुझे फोन करो।
मेरे फोन की घंटी
बजते ही मै अपने कमरे से तेजी से निकला और आस्माँ को आवाज देते हुए रसोई मे चला गया।
जैसे ही मैने रसोई मे कदम रखा मेरी नजर उन तीनो पर पड़ गयी थी। एक आदमी ने जन्नत के
गले पर मीट काटने वाली छुरी टिका रखी थी। एक आदमी ने मेरी ओर एके-47 तान रखी थी और
तीसरा आदमी अपनी राइफल कन्धे पर लटकाये मुझे घूर रहा था। …भाईजान आप लोग कौन है? कन्धे
पर राईफल लटकाये आदमी ने कहा… मेजर साहब, हम सिर्फ इसलिये आये है कि आपकी बातचीत मे
कोई खलल नहीं पड़े। अब तक इतना तो मै समझ गया था कि यह फारुख की स्काउटिंग पार्टी है
और इनकी मुझ पर गोली चलाने की कोई मंशा नहीं है। मेरी नजर उनके पीछे दरवाजे पर टिकी
हुई थी जो धीरे से खुल रहा था। उनका ध्यान बटाने के उद्देश्य से मैने कहा… फारुख यहीं
मिलने आ रहा है तो इस जोर जबरदस्ती की क्या जरुरत है। उस लड़की को छोड़ कर बाहर चलो।
आराम से बाहर बैठते है। भला इन लड़कियों या रहमत से फारुख को क्या खतरा हो सकता है?
अब तक तो आप लोगों ने पूरा घर छान लिया होगा कि इनके सिवा घर मे और कोई नहीं है। मै
उनसे बात कर रहा था और मेरी नजर पीछे के दरवाजे पर खड़े हुए सुजान सिंह और थापा पर टिकी
हुई थी। उन तीनो की पीठ उनकी ओर थी और मेरे साथी हमले के लिये तैयार थे।
मै उनका ध्यान भटकाने
के लिये कोई तरीका सोच ही रहा था कि तभी मेरे फोन की घंटी बज उठी तो सभी चौंक गये थे।
मेरा हाथ जेब की ओर फोन निकलने के लिये गया परन्तु अगले ही क्षण मेरा हाथ फोन के बजाय
कमर के पीछे फँसी हुई ग्लाक-17 पर चला गया था। जब तक कोई समझ पाता मेरी पिस्तौल उनकी
दिशा मे तन गयी थी। जब किसी की हमले की मंशा नहीं थी इसलिये वह असावधान थे। कोई मेरी
मंशा समझ पाता उससे पहले उसी झोंक मे सामने खड़े एक-47 लिये व्यक्ति पर मैने फायर कर
दिया। एक ही समय पर दो और फायर हुए और बचे हुए दोनो आदमी जमीन पर ढेर हो गये थे। मेरा
फोन अभी भी लगातार बज रहा था। मैने जल्दी से फोन लिया… हैलो। …मेजर, वह वहाँ से निकल
चुका है। कुछ देर मे वह तुम्हारे पास पहुँचने वाला होगा। …यस सर। मैने फोन काट कर जल्दी
से अपने साथियों से कहा… फौरन इन्हें यहाँ से हटाओ और इनके हथियार अपने कब्जे मे ले
लो। सुजानसिंह आप दोनो वापिस जाईये और पीछे के हिस्से को सिक्युर किजिये। इसके बारे
बाद मे बात करेंगें। इतना बोल कर मै रसोई से बाहर निकल कर लान मे आकर बैठ गया था।
थोड़ी देर के बाद एक
चमचमाती काली कार मेरे दरवाजे पर रुकी। एक आदमी कार से निकल कर कार का पिछला दरवाजा
खोल कर एक किनारे मे खड़ा हो गया था। फारुख मीरवायज आराम से बाहर निकला और आसपास का
जायजा लेकर लोहे के गेट पर पहुँच कर रुक कर बोला… सलाम मेजर साहब। क्या अन्दर आने की
इजाजत है? …आईये फारुख साहब। आपकी स्काउटिंग पार्टी के होते हुए भला मै आपको रोकने
की कैसे हिमाकत कर सकता हूँ। फारुख आराम से चलते हुए लान मे आ गया और मेरे सामने बैठते
हुए बोला… वह आपको नुकसान पहुँचाने की मंशा से नहीं आये थे। वह सिर्फ देखने आये थे
कि हमारी बातचीत मे कोई खलल न पड़े। औपचारिकतावश मैने पूछा… चाय लेंगें। उसने मना करते
हुए कहा… समीर मियाँ, एक बात शाम से मुझे चुभ रही है कि तुमने मुझे फौजी कैसे समझ लिया।
मै तो कभी फौज मे नहीं रहा। मैने मुस्कुराते हुए कहा… फारुख साहब इससे बेहतर फौजी की
पहचान और क्या हो सकती है कि वह समय खराब किये बिना सीधे मुद्दे पर आ जाता है। फारुख
मुझे बड़े ध्यान देखते हुए अन्दाजा लगाने की कोशिश कर रहा था।
मैने अबकी बार संभालते
हुए कहा… आपकी बहन मिरियम के साथ मेरे संबन्ध आपसे छिपे नही है तो फिर आप यह गलती कैसे
कर सकते है कि मिरियम ने आपके बारे मे मुझे नहीं बताया होगा। पता नहीं आपको मालूम है
कि नहीं लेकिन मिरियम को अपने फौजी भाई पर बेहद नाज था। जब भी वह मुझे वर्दी मे देखती
तो वह आपकी तारीफ करना नहीं भूलती थी। एक दो बार तो मुझे आपसे जलन होने लगी थी। खैर
उस बेचारी की कोई गलती नहीं थी क्योंकि वह आप पर घमन्ड करती थी। उसी ने मुझे आपके फौजी
होने की बात बतायी थी। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। फारुख अभी भी चुपचाप मुझे देख
रहा था। अचानक वह मुस्कुराया और फिर बोला… यह बात सही है कि मै पाकिस्तान फौज मे था
परन्तु तुम सब कुछ जानने के बाद भी चुप रहे यह बात मेरी समझ से बाहर है। जितना मै तुम्हें
जानता और समझता हूँ मै यह बात मानने को तैयार नहीं हूँ कि तुम अपनी फौज से गद्दारी
कर सकते हो। मैने चौदह साल फौज मे काम किया है। फौजी तो बहुत देखें है परन्तु ऐसा वर्दी
का जुनून सिर्फ कुछ ही लोगों मे देखने को मिलता है। उनमे से तुम एक हो तो मेरी आँखों
मे धूल झोंकने के बजाय अच्छा होगा कि हम लोग साफ-साफ बात करें। अब मेरी नजर उस पर जमी
हुई थी। एक तरह से हम दोनो ही रिंग मे खड़े हुए प्रतिद्वंद्वियों की तरह एक दूसरे को
तौल रहे थे।
फारुख ने एक नजर चारों
ओर घुमा कर देखा और फिर कुछ सोच कर बोला… साफ-साफ बात करने का समय आ गया है। मैने हामी
भरते हुए कहा… अब तुम्हें बताना है कि तुम यहाँ किस लिये आये हो। वह मुझे कुछ देर घूरता
रहा और एक बार फिर से चारों ओर नजर घुमा कर बोला… समीर, यह तो मै नहीं बता सकता। उसके
साथ आये हुए दोनो आदमी भी अब दिखायी नहीं दे रहे थे। एक बार फिर से उसने अपनी नजरें
घुमायी तो मैने कहा… किसका इंतजार कर रहे हो? तुम्हारी स्काउटिंग पार्टी को उनकी हूरों
के पास भेज दिया गया है। दो आदमी जो तुम्हारे अंगरक्षक बन कर आये थे वह भी शायद अब
तक ठिकाने लगा दिये गये होंगें तो अब तुम्हारे लिये कोई और नहीं आने वाला है। इसलिये
अच्छा होगा कि अब हम खुल कर बात कर लें। उसके चेहरे पर अभी भी कोई शिकन नहीं दिख रही
थी। …तुम्हें मेरे और मिरियम के संबन्धों के बारे मे कैसे पता लगा? मेरा प्रश्न सुन
कर वह मुस्कुरा कर बोला… इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपते। अब मैने चुप रहना बेहतर
समझा तो अपना सिर हिला दिया था।
…समीर, तुम मेरे उपर
ज्यादा से ज्यादा क्या इल्जाम लगा सकते हो? यही कि मैने पाकिस्तान फौज मे नौकरी की
है। तुम्हारी गवाह भी अब नहीं रही तो यह कैसे साबित करोगे। वैसे भी मैने तीन साल पहले
फौज की नौकरी छोड़ कर अपना कारोबार जमा लिया था। अब मै कारोबारी आदमी हूँ। युसुफजयी
की बेटी से निकाह करके मै अब यहाँ का नागरिक बन चुका हूँ तो अब यह फौजी होने की बात
का मुझ पर कोई असर नहीं होगा। हाँ कुछ दिन शोर अवश्य मचा सकते हो परन्तु इससे मेरा
कुछ नहीं बिगड़ेगा। वह उठने लगा तो मैने जल्दी से कहा… फारुख कोई ऐसी गलती मत कर देना
कि मेरा शार्प शूटर तुम्हारी अचानक हरकत को मुझ पर हमला समझ कर कहीं गोली न चला दे।
तुम तो जानते होगे कि वह लोग बेहद संवेदनशील स्थिति मे बैठे हुए होते है। मेरी बात
सुन कर फारुख जल्दी से बैठ गया था। …तुम कह रहे थे कि अब तुम कारोबारी बन चुके हो।
इसमे कोई शक नहीं परन्तु तुम्हारा ड्रग्स और अवैध हथियारों का कारोबार अब हमारी नजरों
मे आ गया है। नेपाल से आने वाले दोनो ट्रकों की शिनाख्त हो चुकी है। नकली करेंसी नोट
और चरस का कनसाईन्मेन्ट युसुफजयी के कुपवाड़ा वाले गोदाम मे पहुँचने वाला था। फौज की
कहानी को एक बार तुम झेल भी लोगे परन्तु इस इल्जाम से कैसे बचोगे? फारुख कुछ देर मुझे
घूरता रहा और फिर जैसे उसका हाथ अपनी अचकन की ओर बढ़ा तो मेरी ग्लाक-17 उसकी ओर तन गयी
थी। …फारुख अपने हाथ वहीं रखो जहाँ से मुझे दिखते रहे।
मेरे फोन की घंटी
बज उठी थी। मैने जल्दी से फोन लेते हुए कहा… हैलो। …तुम कहाँ पर हो? …मै अभी फोन वापिस
करता हूँ। यह बोल कर मैने फोन काट कर कहा… यह तुम्हारे खिलाफ गवाही देने के लिये तैयार
हो गयी है। पहली बार उसके चेहरे पर तनाव के लक्षण उभर आये थे। वह धीरे से बोला… नीलोफर।
मैने मुस्कुरा कर कहा… और कौन हो सकता है। आखिर बीस करोड़ सालाना का चक्कर कोई छोटा
तो नहीं होता है। मेरे से शायद अपनी जीत के नशे मे यह चूक हो गयी थी। मुझे उसे इतना
नहीं बताना चाहिये था कि वह मरने मारने के लिये उतारु हो जाता। मेरी ग्लाक की चिन्ता
किये बगैर उसने झपट कर अपनी पिस्तौल निकाल कर मुझ पर फायर कर दिया था। जो गलती उसके
स्काउट ने की थी वही मुझसे भी हो गयी थी। मेरी ग्लाक उसकी ओर जरुर तनी हुई थी परन्तु
उसे गोली मारने की मेरी कोई मंशा नहीं थी। इसी कारण उसके हाथ मे पिस्तौल देख कर मैने
उसके टांगों की दिशा मे फायर किया जिसके कारण उसकी पिस्तौल का निशाना बिगड़ गया था।
उसकी गोली मेरे दिल के बजाय मेरे कन्धे मे लगी थी। अगले ही पल मुझे ऐसा महसुस हुआ कि
जैसे किसी ने पिघलता हुआ सीसा मेरे जिस्म मे भर दिया था। ऐसा सिर्फ फिल्मों मे होता
है कि गोली लगने बाद भी हीरो उठ कर गुन्डो के साथ मार-पीट कर लेता है। उसी हाथ से पिस्तौल
पकड़ कर वह विलेन को गोली मार देता है। असली जिंदगी मे गोली लगते ही वह हिस्सा पूरी
तरह निष्क्रिय हो जाता है। जिस गति से गोली आकर लगती है वह इंसानी जिस्म को हवा मे
उड़ा देती है। मै भी गोली लगते ही कुर्सी समेत पीछे लुड़क गया था। मेरी किस्मत अच्छी
थी कि मेरी गोली ने उसके घुटने को घायल कर दिया था।
मै जमीन पर लेटे-लेटे
जोर से चिल्लाया… नो शूटिंग…नो शूटिंग। मेरे साथी पीछे से बाहर निकल कर आ गये थे। फारुख
को उन्होंने कवर कर लिया था। वैसे भी वह कहीं नहीं जाने वाला था। कुट्टी ने मुझे सहारा
देकर बिठाया और एक डोज मार्फीन का इन्जेक्शन लगा कर कुछ देर के लिये दर्द कम कर दिया
था। गोली लगने के बाद मेरा दिमाग दर्द से सुन्न हो गया था। इन्जेक्शन के बाद मैने ब्रिगेडियर
चीमा की टीम को जल्दी से निर्देश देना आरंभ कर दिया। फारुख को डिटेन्शन युनिट भेजने
के बाद कुट्टी ने मेरे घाव की अस्थायी ड्रेसिंग कर दी थी। उस गोली ने किसी रक्त की
नस को ध्वस्त नहीं किया था जिसके कारण रक्तस्त्राव कम हो रहा था। आग मे तपती हुई गोली
ने मांस मे धंसते ही घाव को अपने आप ही सील कर दिया था। मै फोन पर ब्रिगेडियर चीमा
से बात करने मे व्यस्त हो गया और बात करते हुए मार्फीन ने अपना असर दिखाना आरंभ कर
दिया। मेरे हाथ की शक्ति क्षीण होने लगी और अचानक मेरे हाथ से फोन छिटक गया और मै बेहोश
हो गया था।
मुझे पता नहीं कि
फिर क्या हुआ था। मेरी जब आँख खुली तो कमांड अस्पताल मे पाया था। कन्धे पर पट्टी बंधी
हुई थी। मैने अपना दूसरा हाथ हिला कर देखा और फिर उसका सहारा लेकर धीरे से उठ कर बैठ
गया। मेरे रुम मे कोई नहीं था। मै उठ कर बाथरुम मे गया और प्रकृतिक जरुरत को पूरा करके
मैने बेड के नजदीक घंटी को दबा कर नर्स को बुला कर पूछा… कब से यहाँ हूँ? …मेजर साहब
दूसरा दिन है। …कन्धे का क्या हाल है? …सब ठीक है। गोली निकाल दी गयी है। घाव को सील
कर दिया गया है। …क्या कोई मेरे यहाँ से अटैन्डेन्ट है? …नहीं सर। …सिस्टर, मुझे एक
फोन करना है। …इस वक्त रात के दो बज रहे है। सुबह कर लिजीएगा। …हाँ क्यों नही। थैंक्स।
वह एक नींद की गोली खिला कर वापिस चली गयी थी। मै फारुख के बारे मे सोचते हुए सपनों
की दुनिया मे खो गया था। जब सुबह आँख खुली तब सबसे पहले ब्रिगेडियर चीमा पर नजर पड़ी
थी। मै धीरे से उठ कर बैठ गया।
…सर, उसके क्या हाल
है। …वह डिटेन्शन युनिट मे हमारी निगरानी मे है। सब ठीक है। बस फिलहाल कहीं भागने वाला
नहीं है। तुम बताओ कि यह सब कैसे हो गया? …सर, मेरी गलती थी। मुझे सबसे पहले उसकी गन
ले लेनी थी। …माई बोय। अब कैसा फील कर रहे हो। …सर, मै तो डिस्चार्ज लेकर घर वापिस
जाना चाहता हूँ। फारुख से बात करने का समय आ गया है। जब तक वह ठीक होगा तब तक वह मानसिक
रुप से तैयार हो जाना चाहिये। कुछ देर बात करने के बाद ब्रिगेडियर चीमा ड्युटी डाक्टर
से बात करने के लिये चले गये थे। मै उठ कर बाथरुम की ओर चला गया। हाथ-मुँह धोकर जब
तक बाहर निकला तब तक डिस्चार्ज पेपर्स तैयार हो गये थे। मेरी टीम भी आ चुकी थी। मैने
अस्पताल के कपड़े बदल कर अपनी डंगरी पहनी और अपनी जीप मे बैठ कर डिटेन्शन युनिट की ओर
चल दिया। यह मुलाकात मेरे लिये बेहद खास थी।
मै सीधे फारुख के
सेल की ओर चला गया। वह बेड पर लेटा हुआ था। वह देखने मे ठीक ठाक दिख रहा था परन्तु
उसका एक पाँव प्लास्टर मे लिपटा हुआ हवा मे लटक रहा था। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर
तनाव की लकीरें खिंच गयी थी। …आओ मेजर। जरा सा निशाना चूक गया। मैने मुस्कुरा कर कहा…
कोई बात नहीं। अब समय आ गया है कि तुम जान लो कि यहाँ से आगे बिना सहयोग दिये तुम कहीं
नहीं जाने वाले। एक ही इल्जाम तुम्हें काल कोठरी मे जिंदगी गुजारने के लिये काफी होगा।
…वह कौन सा इल्जाम है? …आईएसआई के साथ तुम्हारा संबन्ध इसके लिये काफी है। वह कुछ नहीं
बोला तो मैने कहा… मै जानता हूँ फारुख मीरवायज कि तुम एक फौजी हो और अगर मै तुम्हारी
जगह पाकिस्तान मे पकड़ा जाता तो भी मै अपना मुँह नहीं खोलता। हम दोनो ही जानते है कि
पकड़े जाने पर हमारे साथ क्या होगा। …चलो अच्छा है मेजर कि तुम्हारे बारे मे मेरा आंकलन
गलत नहीं था। …मेजर फारुख मीरवायज हम चाहते है कि तुम अब से हमारे लिये काम करो। इस
बार वह मेरी ओर देख कर मुस्कुराया और फिर हंसते हुए बोला… मै इतनी देर से सोच रहा था
कि कब तुम यह बात करोगे। चलो अच्छा है कि तुमने अपनी मंशा जाहिर कर दी है। मेरा जवाब
वही है जो तुम्हारा होता। मै उसको समझने की कोशिश कर रहा था। मै कुछ देर के लिये चुप
हो गया था।
…फारुख, हमे मीरवायज
परिवार के इतिहास के बारे मे कुछ बेहद गोपनीय जानकारी का पता चला है कि उनके भी शौक
उस काजी इश्तियाक मोहम्मद के जैसे थे जिसे उस दिन भरी महफिल मे मैने जलील किया था।
एकाएक उसके चेहरे पर उसके भीतर का भय उजागर हो गया था। वह धीरे से बड़बड़ाया… अफवाह तो
बहुत होती है। उन पर कोई विश्वास नहीं करता। वैसे भी तुम कह रहे हो कि इतिहास है तो
अब उसका गवाह कौन हो सकता है। सब मर खप गये है तो गड़े मुर्दो को उखाड़ने मे किसी की
दिलचस्पी नहीं होगी। …तुम सही कह रहे हो लेकिन अगर मै कहता हूँ कि एक आईएसआई के मेजर
ने अपने साथियों की मदद से उन बच्चों के कंकाल निकाल कर झेलम मे बहाये थे तो सुबूत
भी मिल जाएगा और गवाह भी मिल जायेगा। तुम्हारे पास का काफी समय है आराम से बैठ कर सोचना
कि हमने अगर यह कहानी रिलीज कर दी तो पीरजादा और उनके परिवार का क्या हश्र होगा तुम
खुद अनुमान लगा सकते हो। अचानक फारुख जोर से चीख कर बोला… तुम्हें उस हरामजादी छिनाल
ने बताया होगा। जिस दिन तुमने ऐसी कोई कहानी रिलीज करी तो खुदा की कसम उसको ऐसी मौत
मिलेगी कि उसकी रुह कांप उठेगी। …फारुख मियाँ अभी भी तुम मेरी बात नहीं समझे। हमारी
फौज तुम्हारी आईएसपीआर की तरह झूठी अफवाह नहीं उड़ाती है। तुम्हारे साथियों मे से किसी
ने वह सारा मंजर रिकार्ड करके हमे दिया है। वह तो अब हमारे पैसों पर विदेश मे ऐशोआराम
की जिन्दगी बिता रहा है लेकिन तुम और तुम्हारा परिवार एक बहुत बड़ी मुश्किल मे आ गये
है। नीलोफर का तो सिर्फ इतना गुनाह है कि उसने मुझे एक नाम अनजाने मे दिया था। बाकी
काम तो हमारी रा ने किया है।
फारुख का प्रतिरोध
एकाएक क्षीण पड़ चुका था। अब आखिरी वार करने का समय आ गया था। …फारुख भाई आप तबस्सुम
को तो भली भांति जानते है। नीलोफर ने मुझे उस आदमी का नाम सिर्फ एक शर्त पर दिया था
कि तबस्सुम के साथ भी वही सब किया जाये जो आपने उसके साथ किया था। अचानक वह जोर से
चिंघाड़ कर मेरे उपर झपटा लेकिन उसका पाँव बंधा होने के कारण वह दर्द से चीख कर बिस्तर
पर गिर गया था। उसने बेबस नजरों से मेरी ओर देखते हुए कहा… साले काफ़िर की औलाद मुझे
तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। फौजी होकर तू ऐसी गिरी हुई सोच रखता है। लानत है तुझ पर
और तेरे खून पर। यह बोल कर उसने जमीन पर थूक दिया। मै आराम से खड़ा हुआ और उसके पास
जाकर बोला… सिर्फ सोचने भर से मेरे खून की तारीफ तुम कर रहे हो परन्तु उस खून का क्या
जिसने यह दुश्कृत्य किया था। तुम्हारे पास सोचने के लिये काफी समय है। आराम से सोच
लो और जब किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाओ तो मुझे खबर कर देना। नीलोफर से मैने वही सब तबस्सुम
के साथ करने का वादा किया है तो मेरे पास भी उसके बारे मे सोचने के लिये काफी समय है।
इतना बोल कर मै उसके सेल से बाहर निकल आया था। ब्रिगेडियर चीमा सेल के बाहर मेरा इंतजार
कर रहे थे।
…मेजर, गुड जाब डन।
तभी उनके पीछे वह तिकड़ी भी मुस्कुराती हुई बाहर निकल आयी थी। अजीत ने मेरी ओर देख कर
कहा… आई एम प्राउड आफ यू बोय। अब बाकी का काम सुरिंदर पर छोड़ दो। काउन्टर इन्टेलीजेन्स
वाले ऐसे मामलों मे बेहद कुशल होते है। हम सब बात करते हुए डिटेन्शन सेन्टर से बाहर
निकल आये थे। वीके ने चलते हुए पूछा… अजीत, क्या लगता है फारुख
टूटेगा की नहीं? …जरुर टूटेगा लेकिन उसके लिये पहले एक माहौल तैयार करना पड़ेगा। कल
आराम से बैठ कर बात करेंगें। आज इस बेचारे को आराम करने दो। उनसे इजाजत लेकर मै कोम्पलेक्स
की ओर चला गया था। सुजान सिंह ने मुझे बता दिया था कि दोनो लड़कियों को उसी रात कोम्पलेक्स
मे छोड़ दिया था। मै जीप से उतर कर घर मे चला गया। मुझे देखते ही दोनो लड़कियों ने पूरा
घर सिर पर उठा लिया था। नीलोफर ने कुछ नहीं कहा लेकिन सबके शांत होने के बाद वह बोली…
वह कहाँ है? …जहाँ तुम्हें रखा था। अब तुम जहाँ जाना चाहो जा सकती हो। अब तुम्हारे
लिये कोई खतरा नहीं है। उसने कुछ नहीं कहा लेकिन वह मेरे सामने बैठ गयी थी। कुछ देर
उससे बात करने के बाद मैने कहा… मै अपने कमरे मे जा रहा हूँ। मुझे थकान महसूस हो रही
है। यह बोल कर मै उठ कर अपने कमरे मे चला गया था।
कुछ देर के लिये बिस्तर
पर लेट गया। बहुत सी बातें मेरे दिमाग मे घूम रही थी। थोड़ा आराम करने के बाद मै कपड़े
बदल कर बाहर आ गया था। …समीर खाना लग गया है। नीलोफर की बात सुन कर मै उसके साथ डाईनिंग
टेबल पर खाना खाने बैठ गया। …नीलोफर, आज मै फारुख से मिला था। तुम ठीक कह रही थी कि
वह सारे सुबूत उसके सामने बेमानी थे। उसकी सारी अकड़ और घमन्ड सिर्फ तुम्हारी खबर से
पल भर मे चकनाचूर हो गयी थी। …और तबस्सुम? …हाँ उसका नाम सुनते ही वह गुस्से से पागल
हो गया था। सारी कहानी सुना कर मैने कहा… तुम
पर बस इतना दोष है कि तुमने हमे उस आदमी का नाम दिया था। बाकी का सारा काम हमारे लोगों
ने किया था। …वह तुम्हारी बात मान गया? …पता नहीं लेकिन क्या उसके पास कोई और चारा
है? …समीर, तुम्हें क्या लगता है कि वह मान जाएगा। …पता नहीं लेकिन उसके पास मुझे नहीं
लगता कि कोई दूसरा विकल्प बचा है। जन्नत और आस्माँ अभी तक मेरे सामने नहीं आयी थी।
कुछ देर नीलोफर से बात करके मै वापिस अपने कमरे मे चला गया था। कुछ देर के बाद दोनो
बहनें मेरे पास आकर बैठ गयी। …तुम दोनो कहाँ थी? तुम्हें तो मेरे पास अस्पताल मे होना
चाहिये था। जन्नत मेरे पास आकर बोली… तुम्हें गोली लगते देख कर मेरी तो जान ही निकल
गयी थी। आस्माँ मुझसे लिपटते हुए बोली… हम दोनो तुम्हारे साथ जाना चाहती थी परन्तु
जन्नत के कहने पर रुक गयी थी। …क्यों? …इतने सारे अफसर देख कर हम डर गयी थी कि कहीं
फिर से तुम्हारी बदनामी न हो जाये। कुछ देर तक वह दोनो मेरी सेवा मे जुटी रही और जैसे
ही दवाई का असर हुआ तो मै उनके साथ बात करते हुए गहरी नींद मे सो गया था।
रात को मै जब टहलने
के लिये बाहर निकला तो नीलोफर मेरे साथ चल दी थी। …यह दोनो लड़कियाँ कौन है? उसे मैने
सारी कहानी सुनाने के बाद कहा… बस तब से यह मेरे साथ घूम रही है। अब मुझे जल्दी ही
इनके बारे मे भी कुछ सोचना पड़ेगा। यह दोनो हमेशा तो मेरे साथ नहीं रह सकती है। हम बात
करते हुए लौट रहे थे कि तभी मेरे दिमाग मे एक बात आयी… नीलोफर, फारुख ने मुझे बताया
था कि उसने युसुफजयी की बेटी से निकाह कर लिया है। इसमे कितनी सच्चायी है? …तुम्हें
क्या करना है? …अगर वह युसुफजयी का दामाद है तो एक दो दिन मे पुलिस की पूछताछ शुरु
हो जाएगी। युसुफजयी यहाँ के प्रशासन पर दबाव डालेगा। …ऐसा मुझे नहीं लगता क्योंकि एक-दो
महीने के लिये तो फारुख न जाने कितनी बार गायब हुआ है। समीर एक बात तो तय है कि जितनी
जल्दी तुम उसे अपने साथ काम करने के लिये राजी कर लोगे उतना ही तुम्हारे लिये बेहतर
होगा। …तुम ठीक कह रही हो। हम बात करते हुए घर वापिस आ गये थे। नीलोफर अपने कमरे मे
चली गयी थी और जन्नत और आस्माँ मेरे कमरे मे बैठी हुई मेरा इंतजार कर रही थी।
फारूख इतनी जल्दी काबू में आ सकता है क्या,सांप पर भरोसा,मौलाना की हेकड़ी तो निकल गई,वीर भाई की कहानी में कब क्या आ जाए,कुछ पहले से नही कह सकते,जबर्दस्त लेखनी👌👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हरमन भाई। इस काम मे विश्वास तो किसी पर नहीं किया जा सकता। नीलोफर और फारुख पर तो बिलकुल नहीं।
हटाएंधांसू अपडेट, घटनाओने काफी वेग पकडा है, समीर को गोली लगना फारुख को भी गोली लगना, हॉस्पिटल, 2 दिनके डिटेन्शनमे न तुटनेवाला फारूक कंकाल की बातसे भिगी बिल्ली बन गया, क्या फारुख जैसा घाग आदमी फौज का मुखबिर बनेगा?
जवाब देंहटाएंप्रशांत भाई डबल एजेन्ट बनना इतना आसान नहीं है। ऐसे हालात मे मानसिक संतुलन रखना बेहद कठिन होता है। अब देखना है कि फारुख सेना के दबाव मे क्या करता है। शुक्रिया दोस्त।
हटाएंबहुत ही जबरदस्त अंक रहा मगर नीलोफोर का समीर के करीब आना कुछ तो गड़बड़ी की और इशारा कर रही है। अभी समीर का पूरा ध्यान नीलोफर से हटके फारूक के ऊपर हो चुका है और कहीं ना कहीं यह मौका है निलोफोर के लिए समीर को कूच करने के लिए। फिर फारूक का सर्चिंग पार्टी का समीर के घर में घुस के आसमां और जन्नत को बंधक बनाना समीर के लिए चिन्ता जनक बात है शायद अगले अंक में इसका जिक्र हो।
जवाब देंहटाएंअगले अंक के प्रतीक्षा में
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई माफ करना। कुछ मजबूरियाँ थी जिसके कारण पोस्ट नहीं कर सका था लेकिन आपकी टिप्पणी के लिये शुक्रिया। नीलोफर और फारुख के किरदारों को समझना इतना आसान नहीं है। दोनो अपने निजि फायदे के लिये कुछ भी कर सकते है।
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