बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

  

काफ़िर-39

 

एक पल के लिये मै उसका चेहरा देखता रह गया था। …नीलोफर, मुझे उसके खिलाफ वह सारे सुबूत चाहिये। वह कुछ देर सिर झुकाये बैठी रही और फिर मेरी ओर देख कर बोली… वह सूबूत मेरी इश्योरेंस पालिसी है। एक बार मैने वह तुम्हें दे दी तो फिर मेरे पास बचाव का कोई रास्ता नहीं बचेगा। जैश और लश्कर भी मुझसे खफा हो जाएँगें। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी। ब्रिगेडियर चीमा से इस मसले पर विमर्श किये बिना मै उसको कोई वायदा करने की स्थिति मे नहीं था। कुछ सोच कर मैने कहा…यह तुम भी जानती हो कि बिना सारे सुबूत देखे कोई भी कुछ कहने की स्थिति ने नहीं होगा। वह कुछ देर चुप रही और फिर मुस्कुरा कर बोली… उस सूबूत के लिये तुम्हे तो मुझे बाहर निकलना पड़ेगा। …अभी तुम्हारा बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं है। दो-तीन दिन मे फारुख जमात की एक मीटिंग मे आने वाला है। एक बार वह हमारे कब्जे आ गया तो फिर तुम बाहर जा सकती हो परन्तु तब तक तुम्हें यही रहना पड़ेगा। वह उठते हुए बोली… ठीक है समीर तो फिर उन सबूतों का तुम्हें इंतजार करना पड़ेगा। यह बोल कर वह कमरे मे चली गयी और मै वहीं बैठ कर सोचने लगा कि आखिर उसके दिमाग मे क्या चल रहा है।

सुबह मै ब्रिगेडियर चीमा के सामने बैठ कर आईएसआई के मास्टर प्लान की कहानी सुनाते हुए नीलोफर और फारुख की भुमिका के बारे मे बता रहा था। पाँच साल मे पाकिस्तान फौज सौ करोड़ रुपये से भारत को अस्थिर करने की योजना को कार्यान्वित करने की तैयारी कर रही है। …मेजर, इसके बारे मे मुझे उन तीनों से बात करनी होगी क्योंकि यह तो मेरे हाथ के बाहर की बात है। उनका जवाब सुन कर मै सोच मे पड़ गया था। …सर, एक बात बहुत दिनों से पूछना चाहता हूँ लेकिन आज तक हिम्मत नहीं जुटा सका था। वह तीनो सेवानिवृत अफसर होने के बाद भी रक्षा मामलों मे इतने प्रभावी कैसे हो सकते है? ब्रिगेडियर चीमा ने मुस्कुरा कर कहा… यह तो मुझे भी नहीं पता लेकिन अपने अनुभव के आधार पर इतना जरुर कह सकता हूँ कि उनकी बात को टालना या नकारना इतना आसान नहीं है। तीनो अलंकृत सरकारी अधिकारी रहे है और इसी कारण उन्होंने प्रशासनिक सिस्टम मे बेहद मजबूत नेटवर्क बना रखा है। ब्रिगेडियर चीमा की बात तर्क संगत होने के बावजूद मेरी समझ से बाहर थी। आज के परिपेक्ष मे केन्द्र और राज्य सरकार दोनो का ही रुख पाकिस्तान के लिये बेहद नर्म था। मै उनसे इजाजत लेकर अपने आफिस मे आकर बैठ गया था।

ब्रिगेडियर चीमा के आफिस मे बैठा हुआ था तब दो बार फैयाज खान का फोन आया था लेकिन मैने काल को रिजेक्ट कर दिया था। मैने फैयाज खान को फोन मिलाया और उसकी आवाज सुनते ही मैने कहा… अंकल, मै सीओ साहब के साथ मीटिंग मे था। …समीर, सारे कागज तैयार हो गये है। क्या मै सारे कागज तुम्हारे घर पर भिजवा दूँ? …अंकल, मै आपके आफिस मे आकर सभी कागज पर साइन कर दूँगा। …बेटा यह इतना आसान नहीं होगा। तुम्हारे साथ आसिया, आफशाँ और अदा के भी साइन चाहिये। मै कागज तुम्हारे घर भिजवा देता हूँ। तुम साइन करके डाक से उनके पास भेज कर उनसे दस्तखत करवा लेना। जब सब साईन हो जाएँगें तभी मै कानूनी प्रक्रिया आरंभ कर सकता हूँ। …ठीक है अंकल। आप सारे कागज मेरे घर पर भिजवा दिजीयेगा। थैंक्स। …बेटा, तुमने बैंक का काम कर लिया? …नहीं अंकल, आज ही कर दूँगा। पिछले कुछ दिनों से मै काम मे कुछ ऐसा फँस गया था कि बाकी काम करने का समय ही नहीं मिला। …आज याद से बैंक का काम कर लेना। …जी अंकल। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।

नीलोफर की बात से इतना तो मै अनुमान लगा चुका था कि फारुख का मुख्य ठिकाना कुपवाड़ा मे है। परन्तु कुपवाड़ा मे उसका ठिकाना कहाँ है?  इसके बारे मे अभी तक मै अनजान था। कुछ सोच कर मै अपने घर की ओर चला गया था। नीलोफर अपने कमरे मे थी। …खाना मेज पर लगा दो। मेरी आवाज सुन कर वह बाहर निकल कर बोली… समीर आज जल्दी आ गये। …आज मुझे जल्दी वापिस लौटना है। तुम्हारे सुबूत के बारे मे बात करनी है। वैसे तुम उन सभी सूबूत के एवज मे हमसे क्या चाहती हो? …मुझे किसी भी फौजी इदारे पर विश्वास नहीं है परन्तु तुम पर भरोसा है। …तुम एक काफ़िर पर कैसे भरोसा कर सकती हो? उसने मुझे घूर कर देखते हुए कहा… अगर ऐसी बात होती तो मै तुम्हें कभी भी इस षड़यंत्र के बारे मे नहीं बताती। साफ-साफ बताओ कि क्या तुम मेरी सुरक्षा की जिम्मेदारी ले सकते हो या नहीं? मैने अब तक सामने बैठी हुई नागिन के इतने रंग देख चुका था कि अब मुझे उस पर लेशमात्र भी भरोसा नहीं था। मै जानता था कि पहला मौका मिलते ही वह मुझे आईएसआई के भेड़ियों के सामने फेंकने से भी नहीं हिचकिचायेगी परन्तु उसके रहस्योद्घाटन ने मुझे ही नहीं अपितु ब्रिगेडियर चीमा को भी हिला कर रख दिया था।

मैने उसकी ओर देखा तो वह मुझे बड़े ध्यान से देख रही थी। मेरी एक कमजोरी उसे मुझ पर हावी कर सकती थी। …क्या सोच रहे हो? …यही कि क्या मै तुम पर विश्वास कर सकता हूँ? वह मुस्कुरा कर बोली… यह तो समय बताएगा। …सिर्फ एक शर्त पर मै यह जिम्मेदारी उठा सकता हूँ कि तुम मौका मिलने पर मुझे डबल क्रास नहीं करोगी। हमारे करार का फौज से कोई लेना-देना नहीं है। यह करार खुदा के दो बंदों के बीच मे हुआ है। यह हमारे बीच अलिखित समझौता है कि मुश्किल घड़ी मे हम एक दूसरे की रक्षा करेंगें। यह बोल कर मैने अपनी हथेली पर थूक कर उसके आगे हाथ बढ़ा दिया था। मेरी हरकत देख कर वह मुस्कुरायी और अपनी हथेली पर थूक कर अपना हाथ मेरे हाथ मे देकर बोली… इस करार का खुदा गवाह है। …आमीन। हम गले मिल कर अलग हो गये थे। …मेरा हैन्ड बैग कहाँ है? …मेरे आफिस मे रखा हुआ है। …मुझे वह बैग चाहिये। मै उसका हैन्ड बैग लेने के लिये आफिस चला गया। सारे समय मै सोच रहा था कि मैने उसके हैन्ड बैग का सारा सामान निकाल कर अच्छी तरह से चेक किया था तो फिर मुझ से कैसे चूक हो गयी थी। कुछ देर के बाद हैन्ड बैग के साथ मै उसके सामने बैठा हुआ था। उसने अपने पर्स मे लगे हुए लैच को अलग करके कहा… मुझे लैपटाप चाहिये। मैने अपना लैपटाप आन करके उसके सामने कर दिया।  उसने लैच के एक हिस्से को दबा कर पेन्ड्राईव की तरह लैपटाप मे फिट कर दिया। उसकी उँगलियाँ की-बोर्ड तेजी से चलने लगी और अगले कुछ मिनट के बाद सारी फाईलें मेरे लैपटाप पर डाल कर बोली… आज से तुम मेरी इन्श्योरेन्स पालिसी हो। मैने लैपटाप के स्क्रीन पर नजर डाली तो उसने अठारह फाईल डाली थी। …बस यही है या और कुछ भी है? …फारुख के लिये बस इतना ही काफी है।

मैने अपनी घड़ी पर नजर डाली तो इन सब काम मे तीन बज गये थे। …मुझे अभी जाना होगा। शाम को इसके बारे मे बात करेंगें। यह बोल कर मै जैसे ही चलने के लिये उठा वह मेरा रास्ता रोक कर खड़ी हो गयी… मै भी चलूँगी। अब्बा को देखे हुए बहुत दिन हो गये है। …बाहर जाने मे खतरा है। …मै तुम्हारे साथ बाहर जा रही हूँ तो वह खतरा तुम्हारे लिये है। मेरे पास ज्यादा समय नहीं था तो मैने जल्दी से कहा… इस रुप मे तो बिल्कुल नहीं बाहर ले जाऊँगा। तुम्हें यह हुलिया बदलना पड़ेगा। मै जल्दी से उसे लेकर अपने कमरे मे चला गया और अलमारी से अपनी स्पेशल फोर्सेज की काले रंग की डंगरी निकाल कर उसकी ओर उछालते हुए कहा… यह पहन लो। वह मेरी ओर देख कर कुछ बोलना चाहती थी लेकिन तब तक मै अपनी ग्लाक-17 का निरीक्षण करने मे जुट गया था। मेरी डंगरी उठा कर वह बाथरुम मे चली गयी। कुछ देर के बाद वह स्पेशल फोर्सेज के सैनिक के रुप मे मेरे पीछे बैठ कर अस्पताल की ओर जा रही थी।

जब तक मै अम्मी के बैंक पहुँचा तब तक ग्राहकों के लिये गेट बन्द हो चुका था। फौज की वर्दी को देख कर किसी ने मुझे रोकने की कोशिश भी नहीं की थी। बैंक मैनेजर को सारी बात बता कर फैयाज खान के सारे कागज देकर मैने पूछा… अब अकाउन्ट खोल कर इसके पैसे को ट्रांस्फर करने मे कितना समय लग जाएगा? …कागजी कार्यवाही पूरी करने मे दो दिन लगेंगें। इतनी बात करके मै बैंक से बाहर निकल आया था। जीप मे बैठते ही हमारा काफिला कमांड अस्पताल की ओर चल दिया। मैने अपने साथियों से कहा… आप सभी हमारे साथ अन्दर चलना। इन्हें अपने बीच मे रखना। मैने मुड़ कर नीलोफर की ओर देख कर कहा… नीलोफर तुम खासतौर से सुन लो कि वहाँ पर तुम कुछ नहीं बोलोगी। सारी बात मै करुँगा और तुम चुपचाप सुनोगी। अगर इसके लिये तैयार हो तो अन्दर चलोगी वर्ना हम यही से वापिस लौट रहे है। उसने सिर्फ अपना सिर हिला दिया था।

अस्पताल मे उतरते ही नीलोफर ने शिकायत की… मै तुम्हारे जूते पहन कर चल नहीं पा रही हूँ। मै वापिस मुड़ते हुए बोला… तो वापिस चलो। वह जल्दी से बोली… ओके। प्लीज चलो। …मुँह बन्द रखना। इतना बोल कर अपनी सुरक्षा टीम से घिरे हुए हम दोनो आईसीयू के बाहर पहुँच गये थे। ड्युटी डाक्टर से मकबूल बट और अब्दुल लोन की तबियत के जानकारी लेकर हम जैसे ही वापिस जाने के लिये मुड़े तो हमारा सामना फारुख मीरवायज, हाजी मोहम्मद और शेख इमरान काजमी से हो गया था। जमात के तीन दिग्गज अपने साथियों को देखने के लिये आये थे। मैने अपनी फौजी आवाज मे कहा… आप लोग चलिये और जीप तैयार रखिये मै अभी आता हूँ। मेरे साथी नीलोफर को घेरे मे लेकर अस्पताल से बाहर चले गये थे। मै उन तीनो के सामने खड़ा रह गया था। दुआ-सलाम करके फारुख मुस्कुरा कर बोला… मेजर साहब, बड़ी खुशी हुई आपको यहाँ देख कर। बट साहब भी बहुत खुश होंगें जब उन्हें पता चलेगा कि उनके फर्जन्द उनका हाल जानने के लिये आये थे। कैसे है बट साहब? …अभी तक दोनो की हालत मे कोई सुधार नहीं आया है। हाजी मोहम्मद और इमरान शेख दुआ पढ़ने लगे और मै फारुख की ओर देख रहा था और वह मंद-मंद मुस्कुरा रहा था।

दुआ समाप्त होते ही मैने जल्दी से कहा…फारुख साहब अच्छा हुआ आप यहाँ मिल गये। आपने नीलोफर को ऐसा गायब किया है कि फौज और पुलिस दोनो उसे ढूंढ-ढूंढ कर थक गयी है। वह कहाँ है? एक सवाल ने ही उसके चेहरे से मुस्कुराहट गायब कर दी थी। वह कुछ बोलता तभी मैने कहा… हाजी साहब, अब्बा और लोन साहब अस्पताल मे पहुँच गये है। नीलोफर को फारुख साहब ने गायब करवा दिया है। अब जमात की बागडोर के सिर्फ आप तीन दावेदार बच गये है। आप दोनो अपना खयाल रखियेगा क्योंकि आजकल जमात के पुराने लोगों के उपर बुरा साया मंडरा रहा है। फारुख ने भड़कते हुए कहा… समीर, तुम मुझ पर बेवजह आरोप लगा रहे हो। मैने पुलिस के सामने अपना बयान दर्ज करा दिया है। मुझे नहीं पता कि नीलोफर कहाँ है। अबकी बार मैने मुस्कुरा कर कहा… फारुख मियाँ, आप बेकार भड़क उठे। पुलिस और फौज मे बस यही फर्क है कि हम चन्द टुकड़ों के लिये इमान का सौदा नहीं करते है। वैसे आपकी जानकारी के लिये बता रहा हूँ कि फारेन्सिक रिपोर्ट भी आ गयी है। आपके दोनो नेता फौज की गोली से घायल नहीं हुए थे। फौज अपनी ओर से जाँच कर रही है और अब जल्द ही नीलोफर और इस मुठभेड़ के बारे मे आपसे भी पूछताछ होगी। उसके लिये आपके पास काफी समय है। आप तैयार रहियेगा। अच्छा खुदा हाफिज।

मै चलने लगा तभी फारुख मेरे सामने आकर कर बोला… मेजर, तुम क्या कहना चाहते हो साफ-साफ कहो। …फारुख साहब भड़कने की कोई जरुरत नहीं है। यह दोनो जाँच के विषय है तो आपसे भी पूछताछ हो सकती है। अब तक की हमारी जाँच एक ओर इशारा कर रही है कि सारा खेल जमात-ए-इस्लामी की मुख्तियारी का है। वैसे भी शायद आप लोगों की जमात अपने नये नेता को चुनने जा रहे है। मेरी तरफ से आप सभी को शुभ कामनाएँ। मैने चलते-चलते कहा… हाँ फारुख साहब स्पेशल फोर्सेज की क्लाशनीकोव की गोलियाँ चौबीस जिहादियों के शरीर से मिली है परन्तु मकबूल बट, अब्दुल लोन और मिरियम बट के जिस्म से पिस्तौल की गोलियाँ मिली है जैसी पिस्तौल आपके फेंटें मे बंधी हुई है। बस इतना बोल कर मै अस्पताल से बाहर निकल गया था। जीप मे बैठते ही मै वापिस कोम्पलेक्स की ओर चल दिया था। …सर, एक गाड़ी हमारा पीछा कर रही है। …चौराहा पार करते ही सीआरपीएफ के बैरियर से आगे निकल कर उस गाड़ी को इंटर्सेप्ट करने की तैयारी करो। नीलोफर सावधान रहना।

हमारी जीप चौराहे को पार करके सीआरपीएफ के बैरियर के पास पहुँच कर धीमी हो गयी थी। पहले बैरियर को पार करके दूसरे बैरियर के मुहाने पर ड्राईवर ने जीप रोक दी थी तब तक वह गाड़ी पहले वाले बैरियर को पार करने के लिये आगे बढ़ गयी थी। मेरे पाँचो साथी फुर्ती से जीप से उतर कर पीछे आने वाली गाड़ी को निशाने पर लेकर घेर कर खड़े हो गये थे। बेरीकेड पर तैनात सीआरपीफ के जवान भी फौरन हरकत मे आ गये थे। हवलदार सुजान सिंह जोर से चिल्लाया… अपने हाथ उठा कार से बाहर निकल आओ। जीप से उतर कर मै एक किनारे मे खड़ा हो गया था। उस कार का दरवाजा खुला और आगे और पीछे से छ: आदमी अपने सिर पर हाथ रख कर बाहर निकल आये थे। सुजान सिंह ने उन सबको पहले सड़क पर एक किनारे बिठा दिया और मेरे बाकी साथी कार की तलाशी मे जुट गये थे। एक एके-47 और एक पिस्तौल कार की गद्दी के नीचे से मिल गयी थी। दोनो की मैगजीन कार के डैशबोर्ड मे रखी हुई मिल गयी थी। हम उन्हें लेकर सीआरपीफ की अस्थायी चौकी के पीछे ले गये और मेरे दो साथी जीप और कार को हटा कर रास्ता साफ करने मे जुट गये थे।

मैने पूछा… तुम लोग हमारा पीछा क्यों कर रहे थे? वह सभी सिर झुकाये बैठे रहे। हम ज्यादा देर यहाँ खुले मे रुक भी नहीं सकते थे। इसलिये हमने उन सभी के मोबाईल फोन जब्त किये और सबकी फोटो खींच कर उन्हें सीआरपीफ के हवाले कर दिया। दो अवैध हथियारों की कार से बरामदगी उन सबको थाने मे रोकने के लिये काफी थी। …यह सारे फोन एक दो दिन मे हम थाने मे जमा करा देंगें। बस उनके फोन लेकर हम कोम्प्लेक्स की ओर चल दिये। नीलोफर को घर पर छुड़वा कर सारे फोन लेकर मै कैप्टेन नीलकंठ से मिलने के लिये बेसमेन्ट मे चला गया था। कैप्टेन नीलकंठ तो नहीं मिला परन्तु वहीं पर बैठे हुए लोगों ने मुश्किल से दस मिनट मे सभी फोन के पासवर्ड और कोड तोड़ कर मुझे वापिस कर दिये थे। जमील अहमद के अनुभव के बाद से उनके फोन का महत्व मेरे समझ मे आ गया था। घर पहुँच कर सबसे पहले मैने सभी के काल रिकार्ड को चेक किया। अस्पताल से निकलने के समय के करीब एक फोन मे अनजान काल आयी थी। नीलोफर ने पूछा… क्या कर रहे हो? तुमने मुझे बताया नहीं कि फारुख से तुम्हारी क्या बात हुई थी। मैने उसको चुप रहने का इशारा किया और उस नम्बर पर काल का बटन दबा दिया।

कुछ देर घंटी बजने के बाद एक जानी पहचानी आवाज कान मे पड़ी… हैलो। मैने जल्दी से कहा… फारुख मियाँ तुमसे ऐसे बचपने की उम्मीद नहीं कर रहा था। तुम्हारे बेवकूफ साथी इस वक्त सीआरपीफ की हिरासत मे है। दो दिन बाद वह लोग उन्हें तोड़ेंगें फिर उनको शाहबाग थाने के हवाले कर देंगें। तुम्हें बस इतनी फिक्र करने की जरुरत है कि दो दिन की मार मे कोई अपना मुँह न खोल दे। उसके दो दिन के बाद कचहरी से जाकर सभी को जमानत देकर छुड़ा लेना। यह सब इसलिये बता रहा हूँ कि तुम अभी वहाँ जाकर बेचारों को छुड़ाने की गलती मत कर बैठना क्योंकि दो अवैध हथियार उनकी कार से बरामद हुए थे। चलो इसी बहाने तुम्हारा नम्बर मिल गया लेकिन अब यह नम्बर बन्द मत कर देना क्योंकि अगली खबर तुम्हारे फायदे की फिर मै कैसे दे सकूँगा। यह बोल कर मैने फोन काट दिया था।

…यह क्या कर रहे थे? …अभी बताता हूँ। मैने फौरन अपने फोन से सेन्टर्ल एक्स्चेंज को फारुख का नम्बर देते हुए कहा… इस नम्बर को लोकेशन ट्रेकिंग पर लगा दो। अगर कनेक्शन टूट जाये तो फौरन मुझे खबर करना। अपना निर्देश देकर मै आराम से सोफे पर फैल गया था। नीलोफर ने एक बार फिर से कहा… तुमने बताया नहीं कि तुम्हारी उसके साथ क्या बात हुई थी। मैने उस पर नजर डाली तो वह काली डंगरी पहने कमर पर ग्लाक-17 लटकाये खड़ी हुई थी। वह देखने तो वैसे ही काफी सुन्दर थी परन्तु डंगरी के कारण उसके जिस्मानी उतार चढ़ाव बेहद आकर्षक लग रहे थे। उसके काले लंबे बाल छुपाना मेरे लिये एक चुनौती थी तो उसके बालों को बड़ी निर्दयता से लपेट कर सिर पर जूड़े के रुप मे बाँध कर सरदारों के पटके की तरह काले कपड़े से ढक दिया था। …ऐसे क्या देख रहे हो? …अपनी कलाकारी देख रहा हूँ। …कौनसी? उसकी ओर इशारा करते हुए बोला… ऐसा खूबसूरत सैनिक हमारी पूरी स्पेशल फोर्सेज मे नहीं होगा। पहली बार मुझे उसके चेहरे पर हया के लक्षण दिखायी दिये थे। वह बिना कुछ बोले तुरन्त लड़खड़ाते हुए अपने कमरे मे चली गयी थी।

कुछ देर बाद उसकी आवाज सुनाई दी… समीर यहाँ आओ। मै उठ कर उसके कमरे की ओर चल दिया था। वह अपने जूते खोलने के लिये झुकी हुई थी परन्तु डंगरी उसके टाँगों के जोड़ मे फँस कर उसे पूरी तरह झुकने नहीं दे रही थी। मुझे देखते ही सीधे खड़े होकर बोली… तुमने जूते ऐसे बाँधे है कि मै झुक कर इन्हें खोल नहीं पा रही हूँ। तुम इन्हें खोलने मे मेरी मदद करो। पता नहीं उसके इस रुप को देख कर उसे थोड़ा सताने के लिये मैने कहा… हम भी तो इसे अकेले पहनते और उतारते है। …कैसे उतारते हो? …हम पहले अपने जूते नहीं उतारते है। …तो फिर कैसे? …मै दिखा सकता हूँ लेकिन एक शर्त पर कि तुम चुपचाप खड़ी रहोगी। उसने जल्दी से गरदन हिलायी तो मैने कहा… सीधी खड़ी हो जाओ। मै उसके नजदीक जाकर डंगरी की जिप पकड़ कर तेजी से नीचे खींची तो वह उछल कर दूर होते हुए अपने सीने को ढकते हुए जल्दी से जिप बन्द करते हुए घुर्रायी… यह कैसी बदतमीजी है। …बिना त्तुम्हारी सहमति के मैने कुछ नहीं किया है। यही तरीका होता है। वह खा जाने वाली निगाहों से मुझे देखती रही तो मैने पूछा… अब आगे बताऊँ या तुम खुद कर लोगी। कुछ देर वह मुझे देखती रही फिर एक बार झुकने की कोशिश के बाद बोली… ठीक है आगे बताओ। …नहीं। पहले तुम हाँ बोलती हो फिर मुझे जलील करती हो। अपने आप करो। मै आराम से उसके बिस्तर पर बैठ गया।

एक दो बार उसने फिर से कोशिश करके देख लिया तो वह बोली… अच्छा कुछ नहीं करुँगी। प्लीज बताओ न। …सोच लो। …सोच लिया। अब बताओ। एक बार फिर से मै उसके नजदीक चला गया लेकिन इस बार वह डटी रही परन्तु जैसे ही मैने जिप को हाथ लगाया उसका जिस्म तनाव के कारण अकड़ गया था। अबकी बार मैने धीरे से जिप को नीचे तक खींच कर डंगरी को आगे से खोल दिया था। उसकी सीने की गोलाईयाँ अन्तर्वस्त्र से आधी से ज्यादा बाहर छलक रही थी। सपाट बेदाग पेट नाभि तक का दृश्य मेरी आखों के सामने आ गया था। एक पल के लिये मै उन गोलाईयों को घूरता रहा तो वह घुर्रायी… कुछ करने की सोचना भी नहीं। जल्दी से मैने पीछे से डंगरी को दोनो कंधों से पकड़ा और केले के छिलके की तरह पीछे से नीचे खींच कर कहा… अपनी बाँहें निकाल लो। डंगरी उसके उठते हुए कुल्हों पर पहुँच कर अटक गयी थी। उसको वहीं छोड़ कर हटते हुए मैने कहा… अब झुक कर अपने जूते खोलो। यह बोल कर मै उसे वहीं छोड़ कर अपने कपड़े बदलने चला गया था। जब तक मै कपड़े बदल कर बाहर निकला तब तक वह आराम से सोफे बैठी हुई मेरी राह ताक रही थी।

…समीर, अब बताओ कि उससे तुम्हारी क्या बात हुई थी। मैने उसे सारी बातों से अवगत करा कर कहा… जमात के दो महत्वपूर्ण लोगों के दिमाग मे मैने फारुख के प्रति शक तो डाल दिया है। वह चाहे इस वक्त भले ही उसके साथ खड़े हुए है परन्तु अब वह उससे थोड़ा सावधान जरुर हो जाएँगें। जब वह अपने लोगो मे इस बात की चर्चा करेंगें तो उनके दिमाग मे कहीं न कहीं एक डर यह भी होगा कि फौज की नजर इस वक्त फारुख पर है। …इससे तुम्हें क्या फायदा? …कि अब उसका दिमाग जमात से हट कर मेरी कहानी पर लगा हुआ होगा। उसके आत्मविश्वास को मैने हिला दिया है और अब वह अपने आप को बचाने के लिये गलती पर गलती करेगा। पहली गलती वह कर चुका है क्योंकि उसके छ: आदमी अब पुलिस की हिरासत मे है। इस गलती के कारण उसका फोन नम्बर मेरे पास आ गया और उसके आदमियों का नेटवर्क भी मेरे सामने खुल गया है। नीलोफर मेरी बात ध्यान से सुन कर समझने की कोशिश कर रही थी। …अब आगे तुम क्या करोगे? …वक्त आने पर बता दूँगा।

हमने साथ खाना खाया और फिर वह अपने कमरे मे चली गयी थी। मै जमात की मीटिंग के बारे मे सोच रहा था। मै उठ कर जैसे ही रात मे टहलने के लिये बढ़ा कि तभी नीलोफर अपने कमरे से बाहर आते हुए बोली… आज अकेले टहलने के लिये जा रहे हो। …तुम भी चलो। वह भी मेरे साथ बाहर टहलने चल दी थी। मै फारुख को जमात की मीटिंग मे असहज करने की सोच रहा था परन्तु कैसे? …समीर, क्या तुम उन चारों के साथ भी ऐसी बदमाशी करते थे? मै अपनी सोच मे गुम था तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर हिला कर कहा… तुम्हारा ध्यान कहीं और लगा हुआ है। मैने जल्दी से पूछा… सौरी, तुम क्या कह रही थी। उसने अपना प्रश्न एक बार फिर से दोहरा दिया। उसका सवाल सुन कर मैने मुस्कुरा कर कहा… तुम उस चंडाल चौकड़ी को सीधा मत समझ लेना। आज तक मै ही उनकी बदमाशी का शिकार हुआ हूँ क्योंकि दो मुझसे उम्र मे बड़ी होने के कारण मुझ पर दादागिरी करती थी और दो मुझसे छोटी होने के कारण उनकी जिद्द के आगे मुझे हमेशा झुकना पड़ता था।

एकाएक नीलोफर ने अनजाने मे ही मेरे अतीत को याद दिला कर भावुक कर दिया था। …उन चारों का किरदार भिन्न था। वह चारों कमरे मे मेरी बास थी परन्तु किसी और के सामने वह चारों मेरा सुरक्षा कवच बन कर सामने खड़ी हो जाती थी। वह धीरे से बोली… अब्बा तो मुझे छोड़ कर पहले ही चले गये थे। तायाजी और चचाजान के परिवार से उस घर मे मेरे साथ पाँच भाई और चार बहनें रहते थे परन्तु सभी मुझे अपने से अलग-थलग रखते थे। मुझे लगता है कि तुमने मुझसे बेहतर बचपन गुजारा है। …हो सकता है लेकिन इसमे अम्मी की भुमिका ज्यादा रही थी। वह हमेशा दीवार की भांति मेरे सामने खड़ी रहती थी। जब अम्मी नहीं होती वह चारों अम्मी की जगह ले लेती थी। मै उसको अपने बचपन के कुछ यादगार संस्मरण सुनाने लग गया था। जब हम घर मे घुसे तो उसकी आँखें भीगी हुई थी।

…क्या हुआ? …कुछ नहीं, मुझे तुमसे जलन हो रही है। …क्यों। …क्योंकि मेरे पास ऐसी कोई याद नहीं है जिसे मै तुम्हें सुना सकूँ। अकेलेपन के कारण ही मै ऐसी छोटी-छोटी खुशियों से मरहूम रही थी। वक्त पर वह सभी एक हो जाते थे और मै अकेली पड़ जाती थी। काफ़िर होने बावजूद वह सब आज भी तुम्हारे साथ खड़ी है और एक मै हूँ कि मेरा सब कुछ परिवार के लिये भेंट चढ़ गया परन्तु आज भी कोई मेरे साथ नहीं खड़ा है। हम दोनो की जिंदगी मे बस यही एक फर्क है जिसके कारण आज तुम यहाँ हो और मै अपने ही लोगों से बचने की कोशिश कर रही हूँ। उसकी कुँठा उसके चेहरे पर दिखाई दे रही थी। मैने आगे बढ़ कर उसे अपनी बाँहों मे बाँध कर कहा… जो हो गया उसे भूल जाओ। अब हमारे बीच मे ऐसा करार है कि तुम हमेशा मुझे अपने साथ खड़ा देखोगी। एक पल के लिये उसके जिस्म मे तनाव आया लेकिन फिर अगले पल ही उसका जिस्म मेरे आगोश मे सिमट गया था। कुछ पल उसे अपने आगोश मे बाँधे रहा और फिर उसे छोड़ कर कहा… तुम अब आराम करो। मै सोने जा रहा हूँ। कल सुबह बैठ कर फारुख के बारे मे सोचेंगे। इतना बोल कर मै अपने कमरे मे चला गया था।

सुबह जल्दी तैयार होकर मै अपने आफिस निकल गया था। सबसे पहले मैने अपने लैपटाप की सारी फाईले अपने सिक्युर सिस्टम पर डाल कर सरसरी नजरों से सारी फाईल खोल कर देख ली थी। बेहद विस्फोटक फाईलें थी। एक ही फाईल के आधार पर फारुख की सारी जिंदगी भारतीय जेल मे कट सकती थी। आईएसआई का मेजर अगर भारत मे पकड़ा जाता है तो जासूसी के कारण वह सारी जिंदगी भर जेल मे निकालेगा। वह दो फाईलें तो मीरवायज परिवार को हमेशा के लिये बर्बाद करने के लिये काफी थी। ब्रिगेडियर चीमा के आफिस मे जाकर मैने कहा… सर, आज फारुख का जमात-ए-इस्लामी मे ताजपोशी का दिन है। मै चाहता हूँ कि उसके ताजपोशी के समय पर आपका एक नोटिस उसे सर्व किया जाये। …मेजर तुम क्या करने की सोच रहे हो। …सर, उस पर अब दबाव बढ़ाने का समय आ गया है। उसके सामने सिर्फ दो विकल्प होंगें- पहला, वह मुझसे मिलने की बात करेगा और दूसरा, वह यहाँ से भागने की कोशिश करेगा। बस उस वक्त उसे हम अपनी गिरफ्त मे ले सकते है। एक बार वह हमारे हाथ लग गया तो फिर फारुख के खिलाफ मेरे पास बहुत सुबूत है कि उनको देख कर वह हमारे इशारों पर नाचेगा। …मेजर, अगर उसकी ताजपोशी हो गयी तो फिर वह हमारी पहुँच से बाहर हो जाएगा। …सर, उसकी ताजपोशी आज तो हर्गिज नहीं हो सकेगी। इसी के लिये मुझे आपकी ओर से नोटिस चाहिये। ब्रिगेडियर चीमा गहरी सोच मे डूब गये थे।

मैने अपनी जेब से छ्ह मोबाईल फोन उनकी मेज पर रख कर कहा… सर, यह सभी फोन फारुख के साथियों के है। मै चाहता हूँ कि काउन्टर इन्टेलीजेन्स की टीम इनके फोन से कोन्टेक्ट लिस्ट और व्हाट्स एप के ग्रुप के सदस्यों पर अपनी ओर से कार्यवाही करके सभी को अपने नेटवर्क मे लाने की कोशिश करे। …मेजर, यह काम तो इन्टेल के लोग कर लेंगें परन्तु मुझे चिंता फारुख की ओर से हो रही है। अगर हमारा पासा उल्टा पड़ गया तो वह हमारे हाथ से हमेशा के लिये निकल जाएगा। …सर, यह रिस्क तो उठाना पड़ेगा। मै तो चाहता था कि उसको अभी उठा लेना चाहिये परन्तु अजीत सर के अनुसार हमे उस पर दबाव बना कर अपने पाले मे लाना है। इसीलिये हम सबके सामने उसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकते है क्योंकि हमसे बात करने के बाद उसे वापिस अपने लोगों मे जाना पड़ेगा। हल्का सा भी उस पर शक का दाग लग गया तो फिर वह हमारे किसी काम का नहीं रहेगा। ब्रिगेडियर चीमा ने कुछ सोच कर कहा… मेरी टीम तुम्हारे इशारे का इंतजार करेगी। तुमसे इशारा मिलते ही वह तुरन्त हरकत मे आ जाएँगें। …सर, कुछ शार्प शूटर्स आपकी टीम मे होने चाहिये जो उसके सुरक्षा कवच को साफ कर सकें। ब्रिगेडियर चीमा अपने असिस्टेन्ट को बुला कर नोटिस की डिक्टेशन देने मे व्यस्त हो गये थे।

वहीं से मैने अपने फोन से फारुख का नम्बर मिलाया तो दूसरी ओर से उसकी आवाज आयी… हैलो, मेजर साहब। कैसे याद किया? …क्या करुँ फारुख साहब दिल है कि मानता नहीं। आपको एक खबर देना चाहता हूँ। आज की ताजपोशी को स्थगित करवा दोगे तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा। तुम्हारे नाम का नोटिस निकल गया है। सेना की चार टीम वह नोटिस सर्व करने के लिये निकल गयी है। एक टीम जमात के आफिस की ओर आ रही है। अगर जमात की भरी महफिल मे वह नोटिस तुम्हें सर्व किया गया तो तुम्हारी ताजपोशी तो दूर जमात की आला कमान तुम्हें पहचानने से भी इंकार कर देगी। …आखिर यह सब तुम मेरे लिये क्यों कर रहे हो? …यह बात तुम कभी नहीं समझ सकते फारुख मियाँ क्योंकि तुम्हारे माथे पर काफ़िर का दाग नहीं लगा है। मेरे माथे पर यह दाग लगा है तो उसे धोने की कोशिश कर रहा हूँ। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया था। ब्रिगेडियर चीमा तुरन्त बोले… मेजर यह क्या मजाक है। पहले तुम नोटिस निकलवाते हो और फिर उसको खबर भी कर रहे हो। यह सब मेरी समझ से बाहर है। …सर, नोटिस ताजपोशी रोकने का हथियार है। मै आपका नोटिस सर्व करने अब जमात के आफिस जा रहा हूँ। एक्सचेन्ज इस वक्त उसका नम्बर ट्रेक कर रहा है। अब यहाँ से आपकी टीम फारुख को ट्रेक करेगी और फिर मेरे इशारे का इंतजार करेगी। ब्रिगेडियर चीमा ने नोटिस मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… मेजर, भले ही मै तुम्हारे इस कदम से खुश नहीं हूँ लेकिन हालात को देखते हुए मुझे कोई और विकल्प इस वक्त सूझ भी नहीं रहा है।

मैने नोटिस की तीन चार कापी करवायी और अपनी जीप मे जाकर बैठ गया। घर जाते हुए मैने अरबाज को फोन मिलाया… हैलो समीर। …वहाँ का क्या हाल है। कितने बजे बैठ रहे हो? …लोग आने शुरु हो गये है। एक घंटे मे कार्यवाही शुरु हो जाएगी। …फारुख वहाँ पर है? …हाँ कुछ देर पहले तो यहीं था। …अरबाज जैसे ही कुछ ताजपोशी मे गड़बड़ी होते हुए देखो तो मुझे खबर कर देना। खुदा हाफिज। मैने फोन काट दिया और जीप से उतर कर अन्दर चला गया। नीलोफर अपने कमरे मे थी। मैने जल्दी से अपनी कोम्बेट युनीफार्म पहन कर कमरे से बाहर निकला तो मेरा सामना नीलोफर से हो गया था। मुझे युनीफार्म मे देख कर वह ठिठक कर रुक गयी थी। अपने हथियार मेज पर रख कर मैने सबसे पहले ग्लाक-17 मे मैगजीन डाल कर सेफ्टी लाक लगा कर होल्स्टर मे डाली और फिर अपनी क्लाशनीकोव-203 को चेक करके कन्धे पर लटका कर चलने के लिये तैयार हो गया। अपनी ‘रेड बेरट’ सिर पर लगा कर शीशे मे देखते हुए सेट करके जैसे ही आगे बढ़ा तभी नीलोफर ने पूछा… तुम कहीं जा रहे हो? …हाँ, फारुख से बात करनी है। …जमात की मजलिस मे ऐसे जाओगे, क्या पागल हो? वह देखते ही तुम्हें गोली मार देंगें। …यही तो तुम जैसों ने गलतफहमी पाल रखी है। अच्छा खुदा हाफिज।

कुछ देर मे हम जमात के हेडक्वार्टर्स की ओर जा रहे थे। मैने अपने साथियों से कहा… हम युद्ध मे नहीं जा रहे है लेकिन वहाँ पर युद्ध जैसे ही हालात होंगे तो इस लिये घुसते ही पूरे हाल को कवर कर लेना और हल्का सा खतरा देखते ही फायर करके खतरे को मिटा देना। कोई शक। …नो सर। हम सभी कोम्बेट गियर मे थे। मेरे साथियों के जिस्म पर तो ग्रेनेड बाक्स भी टंगे हुए थे। कुछ ही देर मे हम जमात के हेडक्वार्टर्स पहुँच गये थे। मुख्य गेट पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। भीड़ से कुछ दूरी पर पहुँचते ही ड्राइवर ने हूटर चला दिया था। उसकी आवाज गूंजते ही भीड़ अपने आप रास्ता देने लगी थी। हमारी जीप उसी गति से चलती हुई सीधे मुख्य द्वार के सामने पहुँच कर रुक गयी। मैने जीप से उतर कर एक नजर घुमा कर भीड़ पर डाली और फिर जेब से नोटिस निकाल कर दो-दो सीड़ियां फलांगते हुए जमात के आफिस मे प्रवेश कर गया था। मेरे साथी भी तुरन्त कोम्बेट फार्मेशन बनाते हुए मेरे पीछे आ गये थे। किसी ने हमे रोकने की कोशिश नहीं की थी। मै तेज कदमों से चलते हुए सभागार की दिशा मे चल दिया। सभागार के द्वार पर पहुँच कर एक क्षण के लिये मै रुक गया था। मेरे एक साथी ने आगे बढ़ कर बड़ा सा दरवाजा अन्दर की ओर ठेल दिया। सभागार के अन्दर का दृश्य देख कर मै ही नहीं अपितु मेरे साथी भी चौंक गये थे। मध्य्म रौशनी मे सभागार का अन्दर का दृश्य सभी को साफ दिख रहा था।

मुख्य स्टेज फूलों से सजा हुआ था परन्तु सभागार खाली था।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर अंक आखिर कार फारुख को भोगोड़ा बना ही दिया समीर ने मगर निलोफोर के रहस्य अभी भी सुलझ नहीं रही है, समीर के मदत से शायद वो जमात का बागडोर अपने अंदर लेने की मंसूबे में है और अभी भी वो सारा सच समीर के साथ साँझ नहीं किया है खैर अभी समीर के अगले चाल चलने का इंतज़ार है कैसे वो फेज 2 शुरू करेगा।

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    1. एविड भाई शुक्रिया। जैसे सब सोच रहे है तो क्या फारुख का टूटना इतना आसान होगा। आईएसआई को कम आँकने की गलती मत करना। काउन्टर इन्टेलीजेन्स के खेल मे जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता वह दिखता नहीं।

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