काफ़िर-41
अगली सुबह तैयार होकर
मै अपने आफिस चला गया था। ब्रिगेडियर चीमा के आफिस मे सभी बैठे हुए फारुख के विषय पर
चर्चा कर रहे थे। …आओ मेजर। तुम्हारा इंतजार चल रहा था। सबका अभिवादन करके मै एक किनारे
मे बैठ गया। वीके ने कहा… सुरिंदर तुमने जवाब नहीं दिया? मैने
प्रश्नवाचक दृष्टि ब्रिगेडियर चीमा पर डाली तो अजीत ने कहा… हमने यह सवाल किया है कि
क्या हम फारुख के परिवार मे से किसी को यहाँ ला सकते है? हम जिस माहौल को बनाने की
बात कर रहे है वह यही है। उसको अगर पता चलता है कि उसके परिवार का कोई हमारे पास है
तो उसका टूटना आसान हो जाएगा। मै तो कुछ बोलने की स्थिति मे नहीं था परन्तु वीके ने
कहा… अजीत अगर हम ऐसा करते है तो फारुख का पुरानी स्थिति मे लौटना मुश्किल हो जाएगा।
उसके वापिस लौटने पर मंसूर बाजवा कभी उस पर विश्वास नहीं करेगा। जनरल रंधावा ने कहा…
परिवार की बात जाने दो। उसकी बेटी तबस्सुम का यहाँ होना ही उसके मनोबल को तोड़ने के
लिये पर्याप्त होगा। अबकी बार मैने जल्दी से कहा… सर, मुझे नहीं लगता कि यह सब इतना
आसान होगा। मीरवायज का परिवार जैश की सुरक्षा घेरे मे रहता है। यह सब मैने अपनी आँखों
से देखा है। मै काफी हद तक वीके सर की बात का समर्थन करता हूँ।
अजीत ने मेरी ओर देखते
हुए कहा… मेजर, अब सबसे बड़ा सवाल है कि वह वापिस अपने लोगों के बीच मे कैसे जाएगा?
तुम उसे उठा लाये। यह भी मान लिया कि वह तुम्हारे लिये काम करने के लिये तैयार हो गया
है। अब वह अपने लोगों मे वापिस कैसे जायेगा? यह समझ लो कि सबसे पहले उसे मंसूर बाजवा
को आश्वस्त करना पड़ेगा कि वह किसी खास काम से बाहर गया था। उसे अपने नेटवर्क को बताना
पड़ेगा कि आखिर क्यों वह इतने दिन उनके संपर्क मे नहीं था। इसके लिये वह जो भी कहानी
सुनायेगा उसके लिये उसे उप्युक्त साक्ष चाहिए जो उसकी कहानी की पुष्टि करेंगें। इसलिये
मै माहौल बनाने की बात कर रहा था। अगर उसकी बेटी गायब हो गयी तो फिर क्या होगा? सबसे
पहले उसके लोग जो उससे उसके गायब होने की बात पूछने वाले है वही लोग उसे उसकी बेटी
के गुम होने की खबर देने की कोशिश करेंगें। एक तरह से फारुख को गायब होने की वजह मिल
जाएगी और जब वह अपनी बेटी को लेकर वापिस अपने घर जाएगा तो अपने साथियों मे वापिस जाने
का उसे रास्ता भी मिल गया।
तीनो की रणनीति तबस्सुम
पर केन्द्रित होने के कारण मुझे नीलोफर की कही बात याद आ रही थी। ब्रिगेडियर चीमा ने
मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… सर, तबस्सुम को छोड़ कर कोई और माहौल बनाने की सोचते
है। लेकिन पहले हमे नीलोफर लोन उर्फ नीलोफर लखवी का क्या करना है? वह भी वापिस अपनी
दुनिया मे जाने के लिये तैयार बैठी हुई है। अजीत ने मेरी ओर देख कर कहा… मेजर, वह अगर
ऐसे ही वापिस चली गयी तो आईएसआई बिना सवाल पूछे ही उसकी हत्या करवा देगी। इन्टेलीजेन्स
सर्कल मे आउट आफ साईट का मतलब सिर्फ एक ही होता है कि दुश्मन ने तुमसे संपर्क साधा
है। उसके बाद अगर तुम उनके एजेन्ट को तोड़ कर अपने साथ नहीं ला सके तो इसका मतलब है
कि तुम्हारा कवर नष्ट हो गया है और फिर तुम उनके किसी काम के नहीं रहे। अगर तुम उसे
बिना तोड़े वापिस चले गये तो हमेशा के लिये एक तलवार तुम्हारे सिर पर मंडराती रहेगी
कि कहीं तुमको तो उसने तो नहीं तोड़ दिया है। दोनो ही मामले पूरे आप्रेशन के लिये घातक
साबित हो सकते है।
इन लोगों की बात सुन
कर तो मुझे अब नीलोफर की चिन्ता होने लगी थी। …सर पहले तो मुझे नीलोफर के बारे मे सोचना
है कि कैसे उसे यहाँ से बाहर निकला जाये? अजीत ने एक बार फिर से कहा… मेजर, वह क्या
अपने उन्हीं लोगों मे वापिस लौटना चाहती है? अगर ऐसा है तो फिर तुम्हें उसके लिये भी
माहौल बनाना पड़ेगा। अगर वह उनके बीच वापिस नहीं जाना चाहती तो फिर तो बहुत आसान है
कि उसे एक नया परिचय देकर हम दुनिया मे कहीं भी भेज सकते है। …सर, आज पूछ के देखता
हूँ कि वह क्या चाहती है। …मेजर, एक तरीका यह भी हो सकता है कि वह फारुख का काम यहाँ
पर संभाल कर एक कहानी तैयार करे कि फारुख किसी जरुरी काम से कश्मीर से बाहर गया है।
फिलहाल वह उसके काम को संभाल रही है। कुछ दिनो के बाद फारुख वापिस आकर अपना काम संभाल
लेगा और तब नीलोफर को हम नया परिचय देकर कहीं और भेज देंगें। उस रोज पहली बार मैने
महसूस किया था कि इतने दिन अजीत सुब्रामन्यम के साथ काम करके मुझे पर्दे के पीछे होने
वाले काम का काफी अनुभव हो गया था।
कुछ सोच कर मैने कहा…
सर, मै नीलोफर से आज बात करुँगा लेकिन अजीत सर ने जैसा कहा है मै अभी से दोनो पहलुओं
पर काम करना आरंभ कर दूँगा। नीलोफर और फारुख के लिये जैसा भी माहौल बनाना ठीक होगा
मै बनाने की कोशिश करुँगा। उसी के आधार पर नीलोफर और फारुख की वापसी की योजना बन जाएगी।
सब मेरी ओर देखने लगे थे। वीके ने हँसते हुए कहा…
अजीत तुमने मेजर को अपना चेला बना लिया है। तुम दोनो ही पाकिस्तान घूम कर आये हो इसीलिये
अब तुम दोनो की सोच एक सी होती जा रही है। जनरल रंधावा ने कहा… वीके, क्या इस बार सरकार
बदलने के कुछ आसार नजर आ रहे है? वीके ने कहा… रंधावा कोई
भी सरकार बने लेकिन बस कमजोर सरकार नहीं बननी चाहिये क्योंकि सौ करोड़ की योजना आगे
चल कर देश के लिये बेहद घातक साबित होगी। कुछ देर राजनीतिक गलियारों की कहानी सुनने
के बाद मैने उनसे विदा ली और अपने घर की ओर चल दिया।
हमेशा की तरह नीलोफर
सोफे पर बैठ कर कुछ पढ़ रही थी। जन्नत और आसमाँ मेरे कमरे मे बैठ कर अपनी बातों मे उलझी
हुई थी। …नीलोफर, तुमसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ। क्या तुम अपनी उसी दुनिया मे वापिस
जाना चाहती हो? उसने मेरी ओर देखा और एक पल सोच कर बोली… कभी नहीं। मैने हिचकिचाते
हुए कहा… क्या कुछ दिनो के लिये तुम फारुख का काम संभाल सकती हो। जैसे तुम पहले काम
करती थी वैसे ही कुछ दिन और उसकी अनुपस्थिति मे तुम उसका काम संभाल लेना चाहिये जिससे फारुख के वापिस लौटने के पश्चात
हम तुम्हें एक नया परिचय देकर तुम जहाँ भी रहना चाहोगी उसमे हम तुम्हारी मदद करेंगें।
…नहीं। मै अब यह काम नहीं कर सकती। …आखिर क्यों? …समीर, मै उस दुनिया मे कभी वापिस
नहीं जाना चाहती। …कोई बात नहीं परन्तु यह तो बता सकती हो कि आगे के बारे मे क्या सोचा
है? …कल से यही सोच रही हूँ पर कुछ समझ मे नहीं आ रहा है। कभी सोचती हूँ कि दिल्ली,
मुंबई या कलकत्ता चली जाऊँ परन्तु वहाँ पर मेरे बहुत से जानने वाले है। कमरे मे पड़े
रहने से भी अब मै बोर हो गयी हूँ और मै जल्दी से जल्दी बाहर निकलना चाहती हूँ। …तुम्हारी
सुरक्षा के कारण ही मै तुमसे यह कह रहा था। तुम्हारे गायब होने के कारण सभी सरकारी
एजेन्सियाँ तुम्हारी तलाश कर रही है। अगर तुम कुछ दिन फारुख की जगह संभाल लोगी तो इस
अनुपस्थिति को लोग आसानी से भूल जाएँगें। जब मामला ठंडा हो जाएगा तब आराम से तुम किसी
भी जगह जा सकोगी। वह कुछ देर सोचने के बाद बोली… अब जब मै वापिस अपने घर जाऊँगी तो
क्या कहूँगी? …यह मुझ पर छोड़ दो। मै जैसा कहता जाऊँ बस तुम वैसा करती जाना तो सभी के
लिये एक पुख्ता जवाब मिल जाएगा। …ठीक है। पहले मुझे सोचने दो।
मै वहाँ से अपने बिस्तर
पर जाकर लेट गया। मेरे कन्धे मे दर्द रुक-रुक कर उठ रहा था। मैने एक पेन किलर को लिया
और सोचने बैठ गया कि क्या तबस्सुम को यहाँ लाया जा सकता है? …क्या सोच रहे हो? नीलोफर
की आवाज सुन कर मैने दरवाजे की ओर देखा तो वह वहाँ खड़ी हुई मुझे देख रही थी। …कुछ नहीं।
तबस्सुम को यहाँ लाने के बारे मे सोच रहा हूँ। मेरी बात सुन कर उसकी आँखें विस्मय से
फैल गयी थी। …पागल हो गये हो क्या। …नहीं, मै सोच रहा हूँ। अभी कुछ निर्णय नहीं लिया
है। …अच्छा है। तबस्सुम को तुम भूल जाओ। …तुम समझ नहीं रही हो। कुछ दिन बाद फारुख अपने
लोगों के बीच मे वापिस कैसे जायेगा। यही सोच कर मुझे लगा कि तबस्सुम एक अच्छा बहाना
हो सकता है। नीलोफर मेरे पास आकर बैठ गयी और कुछ देर सोचने के बाद वह बोली… समीर, तुम्हारे
लिये मै तबस्सुम को यहाँ ला सकती हूँ। एक पल के लिये मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं
हुआ। …क्या? …तबस्सुम को मै वहाँ से निकाल कर ला सकती हूँ। …कैसे? …इन दोनो लड़कियों
की मदद से उसे मै यहाँ ले आऊँगी लेकिन मेरी एक शर्त है। उठ कर बैठते हुए मैने कहा…
फिर वही लेन-देन पर उतर आयी हो। बोलो क्या शर्त है। …तुम्हारा काम हो जाने के बाद तुम
तबस्सुम को मेरे हवाले कर दोगे। मैने उसको घूर कर देखा और फिर झिड़कते हुए कहा… कभी
नहीं। तबस्सुम को मै दूसरी नीलोफर नहीं बनने दूँगा। मुझे समझाने के अंदाज मे नीलोफर
ने कुछ सोच कर कहा… मेरी बात ध्यान से सुनो। अगर तुम यह बताओगे कि उसकी बेटी यहाँ पर
तुम्हारे पास है तो क्या फारुख कभी मानेगा कि उसकी बेटी का दामन पाक साफ है? जरा सोच
कर देखो कि एक काफ़िर जिसने उसको धमकी दी थी भला क्या उसके पास उसकी बेटी महफूज रह सकती
है? कभी नहीं बल्कि मौका मिलते ही वह उसका कत्ल कर देगा। तुम्हें मीरवायज परिवार के
बारे कुछ पता नहीं है। आज भी अरब के कबीलों के दकियानूसी रिवाजों पर उनका घर चलता है।
मैने जल्दी से कहा… तो फिर तबस्सुम के बारे मे भूल जाओ। उस बेचारी मासूम को जीने दो
जैसे जी रही है। मै कोई और तरीका सोचता हूँ।
मै मन ही मन सोच रहा
था कि नीलोफर सही कह रही थी। फारुख यह बात मानने हर्गिज तैयार नहीं होगा। तभी मुझे
उन दिग्गजों का ख्याल आया कि अब उनके सामने यह काम न करने की क्या दलील दूँगा। अभी
रात आरंभ ही हुई थी कि ब्रिगेडियर चीमा का फोन आ गया… मेजर, अब्दुल लोन की दिल के दौरे
से मौत हो गयी है। यह सही समय है कि जब नीलोफर सबके समने आ सकती है। मेरे निर्देश पर
उन्होंने कल सुबह तक यह खबर दबा दी है। तुम उससे बात कर लो और रात ही रात मे उसे अस्पताल
पहुँचा दो। कल तक हम उसके वापिस जाने के लिये माहौल तैयार कर देंगें।
इंसान सोचता कुछ है
और होता कुछ है। मै तुरन्त उठ कर नीलोफर के कमरे मे चला गया था। वह जाग रही थी। मुझे
देखते ही वह बोली… क्या हुआ समीर? …बुरी खबर है। तुम्हारे अब्बा की दिल के दौरे से
मौत हो गयी है। …हाय अल्लाह। एक दर्द भरी आह उसके मुख से निकल गयी थी। वह बेहद संजीदा
स्वर मे बोली… इसी के साथ लखवी परिवार से मेरा आखिरी तार भी टूट गया। अब इस दुनिया
मे अपना कहने के लिये मेरा कोई नहीं है। वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। मै भी चुपचाप उसके
गम मे शरीक हो गया था। …समीर, तुम्हारे अब्बा का क्या हाल है? …पता नहीं। …सच पूछो
तो मुझे कुछ भी इस वक्त महसूस नहीं हो रहा है। …नीलोफर इस गम का धीरे-धीरे एहसास होगा।
फिलहाल तुम्हारे अब्बा की मृत्यु की जानकारी सुबह तक दबा दी गयी है। मेरे अधिकारियों
का कहना है कि यही एक मौका है जिसके कारण तुम वापिस अपने लोगों के बीच मे आसानी से
जाकर अपने अब्बा की गमी मे शरीक हो सकोगी। मै यह सब बोलते हुए शर्मसार हो रहा था परन्तु
मेरे पास इसके सिवा कोई और रास्ता भी नहीं था। नीलोफर ने मुझे घूर कर देखा तो मैने
जल्दी से कहा… मुझे गलत मत समझना लेकिन मै भी उनके सुझाव से सहमत हूँ। …समीर मै उस
जिंदगी मे वापिस नहीं जाना चाहती। …मै जानता हूँ। मेरा बस चलता तो मै तुम्हें उस जिंदगी
मे कभी वापिस जाने के लिये नहीं कहता लेकिन अगर कुछ दिन के लिये तुम वापिस चली जाती
हो तो तुम हमेशा के लिये सुरक्षित हो जाओगी। हम दोनो काफी देर तक हर पहलू पर बात करने
के पश्चात इस नतीजे पर पहुँचे कि नीलोफर कुछ दिनो के लिये फारुख का कार्यभार संभाल
लेगी। इसी दौरान उसको भी अपने सुरक्षित भविष्य के बारे मे भी ठंडे दिमाग से सोचने का
समय मिल जाएगा। उसकी हामी मिलते ही हम लोग उसकी सुरक्षित वापिसी की तैयारी मे जुट गये
थे।
सुबह अब्दुल लोन के
फौत होने की खबर मिलते ही जमात-ए-इस्लामी के सभी दिग्गज नेता कमांड अस्पताल पहुँच गये
थे। फौजी अस्पताल होने के कारण किसी को अन्दर नहीं जाने दिया गया था। सबको अस्पताल
से कुछ दूरी पर मुख्य सड़क पर रोक दिया गया था। दोपहर को सफेद कपड़ों और हिजाब पहने नीलोफर
अस्पताल से बाहर निकल कर भीड़ को संबोधित करके वापिस चली गयी थी। हमारी मदद से नीलोफर
ने अब्दुल लोन की सियासी विरासत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। लोन के बाकी परिवार वाले
भी दोपहर तक आ गये थे जब उसका शव परिवारजनों के हवाले किया था तब तक सारी कागजी कार्यवाही
नीलोफर ने पूरी की थी। मकबूल बट के कारण मै भी वहीं पर उसके साथ खड़ा हुआ था। कुछ जमात
के बूढ़े लोगों ने नीलोफर से उसकी अनुपस्थिति के बारे पूछा तो उसने कह दिया कि वह तब
से अस्पताल मे थी और जब तबियत ज्यादा बिगड़ी तो वह दिल्ली और मुंबई के बड़े डाक्टरों
से सलाह मश्विरा लेने चली गयी थी। नीलोफर का आगमन बिना किसी सवाल-जवाब के आसानी से
तय हो गया था।
तीन दिन के लिये वह
अब्दुल लोन की हवेली मे रहने चली गयी थी। उसके साथ मेरी बात सिर्फ फोन पर होती थी।
उस समय मै उसके लिये फारुख बन गया था। आखिरी दिन मै भी अब्दुल लोन के घर श्रद्धाँजलि
देने के लिये चला गया था। जमात-ए-इस्लामी के लोगों ने मकबूल बट की तबियत के बारे मे
मुझसे पूछा था और मैने भी वही हमेशा का जवाब दिया… सब खुदा के हाथ मे है। तीन दिन बाद
अपने घर पहुँच कर नीलोफर ने फारुख के फोन की मांग रखी तो एक पल के लिये मै सोच मे पड़
गया था। ब्रिगेडियर चीमा का विचार था कि नीलोफर को इतना महत्व नहीं देना चाहिये। अगर
वह जमात पर काबिज हो गयी तो वह हमारे लिये एक नयी मुश्किल बन कर खड़ी हो जाएगी। नीलोफर
को समझाते हुए मैने कहा… फारुख के फोन को अभी तक हम क्रेक नहीं कर सके है। जैसे ही
उसका कोड क्रेक हो जाएगा वह फोन हम तुम्हें सौंप देंगें। तब तक तुम अपने फोन से काम
चलाओ। इसी के साथ हमने उसका फोन रिकार्ड करना आरंभ कर दिया था। फारुख के फोन को हमने
क्रेक करके उसमे फारुख की मशीनी आवाज रिकार्ड कर दी थी। जैसे ही कोई उसके फोन पर काल
आती तो फारुख की आवाज की रिकार्डिंग चालू हो जाती थी… मै फिलहाल बात करने की स्थिति
मे नहीं हूँ तो इसीलिये यह काल नीलोफर को फार्वर्ड कर रहा हूँ। उसके बाद फारुख की हर
काल नीलोफर के पास जाने लगी थी। एक तरीके से कुछ ही दिनो मे हमने फारुख के सारे नेटवर्क
की बागडोर नीलोफर के हाथ मे दे दी थी।
हमारे पास नीलोफर
की हर काल रिकार्ड हो रही थी। दो आदमी चौबीस घन्टे इसी काम पर लग गये थे। सुबह से शाम
तक वह सारी रिकार्डिंग सुन कर ब्रिगेडियर चीमा को रिपोर्ट दे देते थे। कोई मेरे काम
की बात होती तो मुझे बुला लिया जाता था। मै इसी बीच फारुख से भी मिल रहा था। उसके कहने
पर एक दिन मैने उसे वह दोनो फिल्में भी दिखा दी थी। वह लगभग टूटने की कागार पर था जिसके
लिये ब्रिगेडियर चीमा ने कमांड अस्पताल से कुछ मनोविज्ञान के डाक्टर भी फारुख से बात
करने के लिये भेजने आरंभ कर दिये थे। नीलोफर ने मुझसे मिलने के लिये बहुत बार कहा परन्तु
मैने उसे समझाया कि हम दोनो दुनिया के सामने एक साथ नहीं दिख सकते है। एक शाम मै अपने
घर के लान मे बैठा हुआ आसमान निहार था। शाम की चादर पर ढलते सूरज की लालिमा बिखरी हुई
बेहद सुन्दर दिख रही थी। अंधेरा भी होने लगा था और ठंडक भी बढ़ गयी थी। तभी नीलोफर का
फोन आया… समीर, एक महीने मे बर्फ के कारण मुजफराबाद का रास्ता बन्द हो जाएगा। उससे
पहले कुछ करने की जरुरत है। …जमात वाले पैसों के लिये शोर मचा रहे है। कम से एक ट्रक
तो निकलने दिया करो। …ठीक है। पैसों का ट्रक जब आयेगा तब मुझे खबर कर देना। मै अपनी
देख रेख मे उस ट्रक को तुम्हारे पास पहुँचा दूँगा। मैने उसकी काल जैसे ही काटी कि तभी
मेरे आफिस से फोन आ गया… सर, अभी आ जाईये। आपको एक रिकार्डिंग सुननी चाहिये। मैने अपने
आफिस की ओर चल दिया।
मेरे पहुँचते ही उन्होंने
एक रिकार्डिंग चला दी थी। नीलोफर किसी स्त्री से बात कर रही थी। …बानो तुम मानशेरा
के पास ट्रेनिंग कैम्प पर पहुँच जाना। वहाँ पर तुम्हें सुलेमान मियाँ मिल जाएँगें।
…मै कैसे उन्हें पहचानूँगी। …वह तुम्हें पहचान लेगा। वह तुम्हें आसानी से बार्डर पार
करा कर मेरे पास छोड़ देगा। तुम्हारे अब्बू की हालत नाजुक है। वह तुमसे मिलना चाहते
है। दूसरी स्त्री रुआँसी होकर बोली… बाजी, मै जुमे की नमाज शुरु होते ही घर से निकल
जाऊँगी और शाम तक मानशेरा के ट्रेनिंग कैम्प पर पहुँच जाऊँगी। …बानो ख्याल रहे कि इसकी
किसी को कानोकान खबर नहीं होनी चाहिये। तुम्हारे अब्बू की जान खतरे मे है। मै बड़ी मुश्किल
से तुमसे बात कर पायी हूँ। अच्छा बानो सुलेमान नाम याद रखना। खुदा हाफिज। रिकार्डिंग समाप्त हो गयी थी।
…सर, मुझे यह समझ मे नहीं आया कि यह रिकार्डिंग किस
विभाग मे डाली जाये। इसीलिये मुझे ब्रिगेडियर चीमा ने कहा कि आपसे बात करके ही तय कर
सकता हूँ। …क्या ऐसी काल पहले भी की गयी है? …नही सर, वैसे तो कुछ निजि मसलों पर काल
होती रहती है लेकिन हम उन्हें ज्यादा महत्व नहीं देते है। जब काल मे किसी कन्साइन्मेन्ट
या ट्रक अथवा किसी मीटिंग या घुसपैठ की बात होती है तभी हम सावधान हो जाते है और फिर
ब्रिगेडियर चीमा को रिपोर्ट कर देते है। बातों से यह चुंकि घुसपैठ से जुड़ी हुई काल
लग रही थी परन्तु यह वैसी तंजीमो के घुसपैठ की बात नहीं थी तो मेरे समझ मे नहीं आया
कि इसे निजि माना जाये या घुसपैठ की काल मान कर तुरन्त बार्डर पर सूचना दूँ। इसीलिये
मैने आपको काल किया था। क्या आप बता सकते है कि इस काल को किस श्रेणी मे डाला जाये?
मेरा दिमाग इस वक्त
बहुत तेजी से चल रहा था। आखिर बानो कौन है और नीलोफर क्या करने की सोच रही है? कुछ
सोच कर मैने जल्दी से पूछा… यह काल कहाँ की गयी थी मुझे इसका नम्बर दो। उसने जल्दी
से एक नम्बर कागज पर लिख कर मेरी ओर बढ़ा दिया था। मै नम्बर हाथ मे लेकर सोच रहा था
कि आज सोमवार है। चार दिन बाद वह स्त्री मानशेरा के ट्रेनिंग कैम्प पहुँच जाएगी। अचानक
मुझे नीलोफर की एक बात ने दिमाग पर हथौड़े की तरह प्रहार किया जिसके कारण मेरा जिस्म
झनझना गया था। अगर वह लड़की तबस्सुम हुई और वह नीलोफर के हाथ लग गयी तो वह हमारा खेल
हम पर भारी पड़ जाएगा। उसको इस्तेमाल करके वह
हमारे लिये एक ऐसी मुश्किल खड़ी कर देगी जिसके कारण उसका पलड़ा भारी हो जाएगा। मैने जल्दी
से कहा… इस काल को फिलहाल निजि स्लाट मे डाल दो। मै एक दो दिन मे जाँच करके बता दूँगा
कि इसका क्या करना है। मै वहाँ से सीधे घर लौट आया था।
क्या नीलोफर ने फारुख
की लड़की को अगुवा करने की योजना बनायी है? अगर ऐसा हुआ तो हम बड़ी मुश्किल मे फँस जाएँगें।
एक मासूम लड़की हमारे चक्रव्युह मे अकारण ही तीन मुख्य धड़ों की केन्द्र बिन्दु बन जाएगी।
अगर मेरी सोच गलत सबित हो गयी तो नीलोफर हमारे हाथ से निकल जाएगी और कहीं मेरी सोच
सही साबित हो गयी तो हम नीलोफर के जाल मे बुरी तरह फंस जाएँगें। इसका जिक्र मै ब्रिगेडियर
चीमा से भी नहीं कर सकता था। उनके लिये तो वह लड़की एक मोहरे से ज्यादा नहीं थी। फारुख
और नीलोफर को अपने काबू मे करने के लिये वह तुरन्त फारुख की लड़की का अगुवा करने का
निर्देश जारी कर देंगें। ऐसी हालत मे मुझे क्या करना चाहिये? कुछ सोच कर मै उठ कर जन्नत
के पास चला गया… जन्नत हमें अभी मुजफराबाद के लिये निकलना है। आस्माँ तुरन्त बोली…
आपका घायल कंधा अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ है। भला ऐसी हालत मे क्या आप सफर कर सकेंगें?
…देखो जुमे तक मेरा मुजफराबाद पहुँचना जरुरी है। जल्दी से सामान बांधो और चलो।
अपने कन्धे की हालत
देख कर मुझे लगा कि इतनी लम्बी ड्राईविंग मेरे लिये मुश्किल होगी तो मैने रात को ही
अपने ड्राईवर को बुलवा लिया था। जल्दी से अपने स्कूली बैग मे अपनी पिस्तौल और कुछ पुराने
बक्खरवाल समाज के कपड़े रख कर चलने के लिये तैयार हो गया था। मैने एक मोटा सा कम्बल
अपने जिस्म पर लपेट लिया और रात को दस बजे दोनो लड़कियों को लेकर मै कुपवाड़ा के लिये
निकल गया था। अगर फारुख की बेटी तबस्सुम को यहाँ लाने की नीलोफर साजिश रच रही है तो
यह मै हर्गिज नहीं होने दे सकता था। …जन्नत बार्डर पार करके मुजफराबाद पैदल पहुँचने
मे कितना समय लग जाएगा? …लगभग डेड़ दिन लगता है। सीमा पार तो सिर्फ अंधेरे मे ही कर
सकते है लेकिन सीमा तक पहुँचने मे आठ घंटे और फिर सीमा पार करके मुजफराबाद तक का रास्ता
तय करने मे आठ घंटे लग जाते है। जन्नत से कुछ और जानकारी लेकर मै आराम से पैर फैला
कर जीप मे लेट गया था।
नान-स्टाप चल कर हम
सुबह दस बजे तक कुपवाड़ा पहुँच गये थे। कुछ खाने पीने का सामान बैग मे डाल कर शाम होने
से पहले हम तंगधार पहुँच गये थे। वहाँ आस्माँ, जीप और ड्राईवर को छोड़ कर जन्नत को अपने
साथ लेकर पहाड़ी नालो के सहारे चलते हुए अपनी आखिरी आउटपोस्ट पर हम दोनो देर रात तक
पहुँच गये थे। मेरा कन्धे का घाव अब तड़क रहा था और धीरे से हिलने पर पूरा हाथ दर्द
से झनझना उठता था। एक पेन किलर लेकर हम दोनो पेड़ों की आढ़ मे बैठ गये। …अब यहाँ से आगे
का रास्ता बताओ। जन्नत ने आगे का रास्ता इशारे से दिखाते हुए कहा… इस नाले के साथ-साथ
चलते हुए आप सीमा पर पहुँच जाएँगें। सीमा पर कंटीले तारों की बाढ़ लगी हुई है। आपको
कंटीले तार के साथ चलते हुए टूटी हुई बाढ़ को खोजना पड़ेगा। वह जगह नीचे के बजाय ऊँचे
स्थान पर मिलने की ज्यादा संभावना है। आपने बाढ़ को पार कर लिया तो वहाँ से आठ घंटे
का रास्ता है। मै आपके साथ चल तो रही हूँ। …नहीं जन्नत, यह काम मुझे अकेले ही करना
पड़ेगा। तुम यहाँ से वापिस लौट जाओ। तंगधार पहुँच कर रविवार दोपहर तक मेरा इंतजार करना
उसके बाद वापिस श्रीनगर चले जाना। बस इतना ख्याल रखना कि किसी को इसकी खबर नहीं होनी
चाहिये। खुदा हाफिज। जन्नत कुछ बोल पाती उससे पहले मै नाले के साथ चलते हुए अंधेरे
मे खो गया था।
स्पेशल फोर्सेज के
दौरान ऐसे रास्तों पर चलने का मुझे काफी अनुभव था परन्तु एक साल से ज्यादा आफिस मे
बैठने के कारण थोड़ी देर मे ही उबड़-खाबड़ जगह पर चलने के कारण पाँव कांपने लगे थे। गहरे
अंधकार मे अनुमान से लगातार मै आगे बढ़ता चला जा रहा था। जन्नत के अनुसार पगडंडी का
रास्ता अंधेरे मे चलने के लिये सुरक्षित था। बस उस रास्ते पर तंजीमों की घुसपैठ का
खतरा हमेशा मंडराता रहता था। कुछ दूर निकलने के पश्चात मैने सावधानीवश नाले की पगडंडी
छोड़ कर उससे कुछ समानतंर दूरी बना कर चलना आरंभ कर दिया था। जन्नत से मिली जानकारी
और नक्शों के कारण इस रास्ते के घुसपठियों के लगभग सभी ठिकानो का मुझे पता चल गया था।
अपने आप को उनकी नजर से बचा कर मै आगे बढ़ता जा रहा था। वैसे भी अकेले आदमी को अंधेरे
मे छिपने के लिये अनेक जगह मिल जाती है। ठंड बढ़ती जा रही थी परन्तु लगातार उबड़-खाबड़
रास्ते पर चलने के कारण कुछ ही देर मे मेरा जिस्म पसीने से भीग गया था। पाँच घंटे लगातार
चलने के बाद कुछ दूरी पर भारतीय पोस्ट की रौशनी मुझे दिख गयी थी। दिन निकलने मे अभी
कुछ घंटे शेष थे। मै जल्दी से जल्दी कंटीले बाढ़ पार करके पाकिस्तानी सीमा मे पहुँचना
चाहता था। उससे पहले भारतीय सीमा पर तैनात पेट्रोलिंग पार्टी का अभी मुझे इंतजार करना
था।
मै कुछ देर के लिये
चट्टानों की आढ़ लेकर आराम करने के लिये बैठ गया। साँस तेज चल रही थी और तापमान भी लगातार
गिर रहा था। आधे घंटे के इंतजार के बाद भारतीय पेट्रोलिंग पार्टी मेरे सामने से आगे
निकल गयी थी। उनके वापिस लौटने के लिये मै चुपचाप वहीं बैठा रहा था। उनके लौटते ही
मै चट्टानों के पीछे से निकल कर कंटीले बाढ़ की ओर चल दिया। इस रास्ते का बस एक फायदा
मुझे बताया गया था कि यहाँ पर कंटीले तारों की बाड़ जगह-जगह से टूटी हुई थी। कभी पत्थर
खिसकने के कारण और कभी भीषण हिमपात से तारों की बाड़ नष्ट हो जाती थी। एक लम्बा सा चक्कर
काट कर मै आध घन्टे मे भारतीय सीमा के पार पहुँच गया था। पाकिस्तानी पोस्ट की रौशनी
यहाँ से साफ दिख रही थी। सर्द रात मे चौकी के गार्ड्स पेट्रोलिंग के बजाय आराम से अन्दर
बैठना पसन्द करते है और बस इसी का फायदा उठा कर मै आसानी से पाकिस्तान की सीमा मे प्रवेश
कर गया था। जब तक मै पाकिस्तान की सीमा मे प्रवेश किया तब तक सुर्य की पहली किरण ने
आसमान रौशन कर दिया था। अब यहाँ से आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं था। चट्टानों से बनी
हुई खोह मे एक उपयुक्त स्थान देख कर मैने अपना डेरा वहीं डाल दिया था।
मेरा घायल कन्धा अब
तड़कने लगा था। असहनीय पीड़ा के कारण मेरा जिस्म और दिमाग भी सुन्न हो गया था। पेन किलर
की एक डोज लेकर मै आँखें मूंद कर बैठ गया। सुर्य की थोड़ी सी गरमाहट मिलते ही मै गहरी
नींद मे खो गया था। थकान और दवाई के कारण कब दिन निकला और फिर कब दोपहर हुई मुझे पता
ही नहीं चला था। जब मेरी आँख खुली तब तक दिन ढलना आरंभ हो गया था। उसी खोह मे अपने
रोजमर्रा के कार्य करने के पश्चात थोड़ी पेट पूजा करके मै आगे बढ़ने के लिये तैयार हो
गया था। बस अब मुझे अंधेरा होने का इंतजार था। अंधेरा होते ही मैने पहाड़ की चढ़ाई आरंभ
कर दी थी। चार मील की सीधी चढ़ाई के पश्चात बाकी का रास्ता आसान था। मुश्किल से दो घंटे
मे ही मेरी धौंकनी चलनी आरंभ हो गयी थी। बिना रुके मै आगे बढ़ता चला गया था। आधी रात
को मैने पहाड़ पार कर लिया था अब सिर्फ पहाड़ से उतरना बचा था। पेन किलर की एक डोज लेकर
कुछ देर मैने आराम किया और फिर आगे चल दिया। तीन घन्टे चलने के बाद आगे का रास्ता कुछ
जाना पहचाना सा लगने लगा था। एक बरसाती नाला पकड़ कर आगे चल दिया। शुक्रवार की फज्र
की नमाज से पहले मै मुजफराबाद शहर मे पहुँच गया था। बस स्टैन्ड के शेड की आढ़ मे एक
किनारे मे लेट गया और थकान से बेहाल होकर जल्दी ही गहरी नींद मे डूब गया था। सुबह बसों
के शोर से मेरी नींद टूट गयी थी। वहीं बस स्टैन्ड पर मै नित्य कामों से निवृत होकर
एक ठेले से कुछ खाने का सामान लिया और सड़क के किनारे बैठ कर नाश्ता करके फोन की दुकान
की ओर बढ़ गया था।
टेलिफोन बूथ से मैने
वही नम्बर मिलाया जिस पर नीलोफर ने फोन किया था। कुछ देर घन्टी बजने के बाद एक पतली
सी दबी हुई आवाज मेरे कानो मे पड़ी… हैलो। …बानो, मै सुलेमान बोल रहा हूँ। …आप फोन क्यो
कर रहे हो। मै टाईम से पहुँच जाऊँगी। …बानो, मेरी बात सुनो। मेरे कन्धे मे चोट लग गयी
है इसलिये समय पर मानशेरा नहीं पहुँच सकूँगा। मुजफराबाद के परेड ग्राउन्ड के साथ ही
एक बस स्टैन्ड है। क्या तुम वहाँ पहुँच सकती हो? …बड़े मियाँ, वहाँ बहुत से लोग मुझे
पहचानते है। फिर कुछ सोच कर वह बोली… आप दो बजे तक गड़ी हबीबुल्लाह के बस स्टैन्ड पर
आ जाईये। मै आपको वहीं मिल जाऊँगी। …ठीक है। मै वहाँ पहुँचने की कोशिश करता हूँ। बानो,
एक बात का ख्याल रखना कि इस फोन को बन्द करके वहीं घर पर छोड़ कर आना वर्ना वह लोग इसके
जरिये आसानी से तुम्हें ढूंढ लेंगें। …जी बड़े मियाँ। मै आपको दो बजे गड़ी के बस स्टैन्ड
पर मिल जाऊँगी। अल्लाह हाफिज।
मैने उसी दुकान से
कुछ हिन्दुस्तानी रुपये बदलवा कर एक बस पकड़ कर गड़ी हबीबुल्लाह की ओर निकल गया था। मै
एक बजे तक गड़ी हबीबुल्लाह के बस स्टैन्ड पर पहुँच गया था। लश्कर के जिहादियों की तरह
मैने अपने सिर पर अफगानी पगड़ी और चेहरे को चेक के गमछे से ढका हुआ था। उसको दो बजे
आना था तो अपना कम्बल ओढ़ कर बस स्टैन्ड के शेड मे बैठ गया था। जैसे तैसे समय निकलता
जा रहा था। दो बजे एक बस आयी और उसमे कुछ लोग उतर कर अपने रास्ते चले गये थे। वह लड़की
नदारद थी। अगली बस भी ऐसे ही आकर चली गयी थी। तीन बजने वाले थे और अब मुझे खतरे का
निरंतर आभास हो रहा था। कुछ सोच कर मै उठ कर खड़ा हुआ तभी एक बुर्कापोश महिला अचानक
बस स्टैन्ड के पीछे से निकली और झिझकते हुए मेरे पास आकर दबी आवाज मे बोली… सुलेमान
मियाँ। मैने उसकी ओर देख कर जल्दी से सिर हिला दिया। काले बुर्के की चिलमन से मुझे
उसकी सिर्फ दो बड़ी-बड़ी आँखें दिखाई दी थी। इस रुप मे उस स्त्री के चेहरे और उम्र का
अन्दाजा लगाना मेरे लिये कठिन था। मैने जल्दी से कहा… बानो, तुम कहाँ रह गयी थी। इतनी
देर हो गयी कि मै अब वापिस जा रहा था। …बड़े मियाँ, मै यहाँ से कुछ दूर पहले उतर गयी
थी। वहाँ से पैदल यहाँ पहुँची हूँ। आपके कन्धे को क्या हो गया था। मैने जल्दी से कहा…
कुछ नहीं बिटिया, आज सुबह एक बस से टकरा गया था। सब ठीक है। आओ चले। यह बोल कर सड़क
पार करके मै मुजफराबाद की दिशा मे जाने वाले बस स्टैन्ड पर खड़ा हो गया था।
वह जल्दी से मेरे
पीछे आयी और दबी आवाज मे बोली… बड़े मियाँ हम वहाँ नहीं जा सकते। वहाँ मुझे लोग पहचान
लेंगें। …बानो, वहीं से हमे सीमा पार करनी है। तुम चिन्ता मत करो। अचानक उसकी आवाज
तीखी हो गयी… बड़े मियाँ आप समझ नहीं रहे है। मै वहाँ नहीं जा सकती। …ठीक है, तो फिर
सियालकोट चलते है। …बड़े मियाँ, मुझे श्रीनगर जल्दी से जल्दी पहुँचना है। हम इतनी दूर
नहीं जा सकते। इंतजार की कुंठा और घायल कन्धे की पीड़ा से मेरा दिमाग से झनझना रहा था।
वह बिना सोचे समझे लगातार मेरी बात काट रही थी। मेरा दिमाग गर्म होने लगा था। अबकी
बार मेरी आवाज थोड़ी कड़ी हो गयी… बानो, मै यहाँ आराम से बैठ जाता हूँ। तुम सोच कर बता
दो कि जल्दी पहुँचना है या देर से। क्योंकि जल्दी पहुँचना है तो मुजफराबाद जाना पड़ेगा
अन्यथा अगर तुम्हें कोई और छोटा रास्ता पता है तो मुझे बता दो। मै कम्बल लपेट कर दीवार
पर पीठ टिका कर बैठ गया। वह कुछ देर चुपचाप बैठी रही और इसी दौरान मुजफराबाद जाने वाली
दो बसें और मेरे सामने से निकल गयी थी। मै अपने उपर नियन्त्रण खोता जा रहा था। हर बीतते
पल के साथ मुझे खतरा बढ़ता हुआ दिख रहा था।
अबकी बार जैसे ही
मुजफराबाद की बस आयी मैने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ा और लगभग खींचते हुए उस बस मे चढ़ गया
था। बस मे भीड़ होने के कारण वह कुछ बोलने की स्थिति मे नहीं थी। शाम पाँच बजे तक हम
मुजफराबाद पहुँच गये थे। बस स्टैन्ड पर उतर कर मै बाजार की दिशा मे चल दिया। वह चुपचाप
मेरे पीछे चलती हुई आ गयी थी। एक बिरयानी के ठेले की आढ़ मे उप्युक्त स्थान देख कर हम
दोनो बैठ गये। मेरा कन्धा एक बार फिर से दर्द से झनझना रहा था। अपना ध्यान दर्द से
हटा कर मैने धीरे से पूछा… बानो, अपने साथ कुछ खाना वगैराह लायी हो? उसने सिर हिला
कर मना किया तो मैने ठेले से कुछ रुमाली रोटियाँ और मटन सालन खरीद कर अपने बैग मे रख
लिया और उसी के ठेले से अपनी बोतल मे पानी भर कर रात की तैयारी पूरी कर ली थी। लम्बा
पहाड़ी सफर था जिसके लिये फिलहाल मुझे आराम करना जरुरी था। अंधेरा होने मे अभी कुछ समय
था तो कम्बल मे मुँह छिपा कर बैठ गया था।
हो न हो ये "बानो" ही फारुख कि बेटी "तब्बसुम" हो, शायद इसको अगवा करके निलोफर फारुखसे बदला लेना चाहती है,फौज और समीर को ब्ल्याकमेल करना चाहती हो, हां पर लागता तो यही है के फारुख से सुत समेत बदला लेना अब उसका मेन अजेंडा है, वैसे भी फौज और समीर के वजहसे जमात की बागडोर उसके हाथमे आ ही गयी है. ये निलोफर का कॅराक्टर "आशिया अंद्राबी" नाम की काश्मिर की एक जिहादी औरत से काफी मेल खाता है...
जवाब देंहटाएंप्रशान्त भाई धन्यवाद। सभी एक दूसरे से फायदा लेने की फिराक मे है। अब देखना यह है कि कौन किस से क्या फायदा लेने की फिराक मे है। आगे देखिये होता है क्या।
हटाएंमहाकाल शिव शंभो की रात्री महाशिवरात्री की वीरभाई और सभी दोस्तोंको हार्दिक शुभकामना "हर हर महादेव"
जवाब देंहटाएंहर हर महादेव…
हटाएंइस बानो के चक्कर में समीर किसी नई मुसीबत में फसे गा
जवाब देंहटाएंहरमन भाई मुसीबत किसी भी रुप मे सामने आ जाती है। कहानी से जुड़े रहने के लिये धन्यवाद।
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