रविवार, 25 सितंबर 2022

 

 

काफ़िर-3

 

बोर्ड की परीक्षा देने के बाद हमारे सिर पर से पढ़ाई का भार हट गया था परन्तु आफशाँ के कम्पटीशन की परीक्षा की तैयारी निरन्तर चल रही थी। इन सबके बीच सेब का सीजन भी आरंभ हो गया जिसके कारण मुख्य रुप से मेरा काम अपने सेब के बागों की देखरेख का हो गया था। घर और सेबों के बीच मै उलझ कर रह गया था। अंधेरे मे घर से निकलता और जब तक थक हार कर घर लौटता तब तक सब सो चुके होते थे। जब कभी बाग नहीं जाना होता तब अम्मी को लेकर श्रीनगर मे स्थित सेबों के व्यापारियों के आफिस के चक्कर लगाने मे व्यस्त हो जाता था। उस दिन के बाद आयशा भी कभी मेरे सामने नहीं आयी थी। उसके घर के सामने से निकलते हुए हर बार उससे मिलने की चाह उग्र रुप ले लिया करती परन्तु उसके अब्बू और भाई के बारे मे सोचते ही सारी चाहत पल भर मे ही काफुर हो जाती थी।

बोर्ड की परीक्षा का नतीजा किसी भी दिन आ सकता था। इसी कारण हम तीनों के चेहरे पर डर के बादल मंडरा रहे थे। घर मे सिर्फ आलिया ही चारों ओर कूदती फांदती दिखाई देती थी। एक रोज हम तीनों मे कमरे मे बैठ कर बोर्ड की परीक्षा और उसके बाद आगे क्या करने के संधर्भ की बहस मे उलझे हुए थे कि अचानक अम्मी की आवाज हमारे कान मे पड़ी… आफशाँ तेरी सहेली आयी है। हम तीनो चुप हो गये और आफशाँ जल्दी से उठ कर कमरे से बाहर निकल गयी थी। …समीर, सच बता कि तू आगे क्या करने की सोच रहा है? अदा के प्रश्न ने मुझे यथार्थ की दुनिया मे ला कर पटक दिया था। …इस बारे मे अभी मैने कुछ सोचा नहीं है। वैसे भी इन नतीजों का मुझ पर क्या फर्क पड़ने वाला है। अम्मी ने तो पहले से तय कर रखा है कि आगे चल कर मुझे सेब के बागों का काम संभालना है। …नहीं समीर, अगर तू इस काम मे लग गया तो अब्बू तुझे जमात के काम मे उलझा देंगें। मै कुछ बोलता उससे पहले आयशा ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… अदा, यह काम समीर के बस का नहीं है। वहाँ तो अरबाज और अनवर जैसे ही कामयाब हो सकते है। उसकी बात सुन कर एक पल के लिये मै झेंप गया परन्तु अगले ही उसके मुख से अनवर का नाम सुनते ही मेरे तन बदन मे आग लग गयी थी। दोनो सहेलियाँ मुस्कुराती हुई हमारे सामने आकर बैठ गयी थी। मै आयशा को कुछ गुस्से मे बोलना चाहता था परन्तु आफशाँ और अदा के सामने मेरी आवाज नहीं निकल सकी थी। तीनो लड़कियों को वहीं छोड़ कर मै उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था।

बाहर लान मे कुर्सी डाल कर अम्मी धूप सेक रही थी। खिन्न मन से चलते हुए मै उनके पास चला गया था। मुझे देखते ही अम्मी ने कहा… समीर, वह दोनो कहाँ रह गयी? मैने चौंक कर कहा… कौन? …आयशा और आफशाँ स्कूल जा रही थी। उनको क्या हुआ? मैने मुस्कुरा कर कहा… लड़कियों को बात करने से फुर्सत मिले तो वह स्कूल के बारे सोचे। तिकड़ी मेरे कमरे मे बैठी हुई है। …समीर, तू इन दोनो को स्कूल पर छोड़ कर गियासुद्दीन की दुकान से कुछ सामान ले आना। सामान की लिस्ट आफशाँ के पास है। इतना बोल कर अम्मी आँख मूंद कर बैठ गयी। मै कुछ नानुकुर करता उससे पहले आफशाँ की आवाज मेरे कान मे पड़ी… चल समीर। हमे स्कूल जाना है। अम्मी अपना फरमान सुना चुकी थी इसलिये मै चुपचाप जीप की ओर चल दिया।

कुछ दूर निकलने आयशा ने कहा… आफशाँ तू स्कूल से हम दोनो के सर्टीफिकेट निकाल लेना और मै कोचिंग क्लास से दोनो के सर्टिफिकेट निकाल लूँगी। मैने जल्दी से कहा… मै तुम दोनो को स्कूल के बाहर छोड़ दूँगा क्योंकि मुझे गियासुद्दीन की दुकान से सामान लाना है। आफशाँ ने भड़कते हुए कहा… तो क्या हुआ। जब तक आयशा कोचिंग क्लास से सर्टीफिकेट लेगी तब तक तू गियासुद्दीन की दुकान से सामान खरीद कर इसे लेकर वापिस स्कूल आ जाना। क्या तू चाहता है कि हम बसों मे धक्के खाते हुए घर पहुँचे। आफशाँ की एक घुड़की से मेरी जुबान को ताला लगा दिया था। स्कूल के बाहर आफशाँ को छोड़ कर मै कोचिंग क्लास की दिशा मे चल दिया। कुछ दूर निकलने के आयशा ने धीरे से कहा… उस दिन के बाद न तो तू मिला न ही तू ने कोई बात की। क्या मेरी किसी बात से नाराज है? मैने कोई जवाब नहीं दिया तो वह मेरे पास सरक कर आ गयी और मेरी बाँह पकड़ कर बोली… समीर, मुझसे बात नहीं करेगा। एक पल चुप रहा और फिर चिड़ कर कहा… क्या तुझसे अनवर की बात करुँ? मेरा कटाक्ष सुन कर वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। गुस्से मे बोलने के तुरन्त बाद ही मुझे लगा कि मुझे ऐसे नहीं बोलना चाहिये था। आगे का रास्ता चुपचाप कटा और आयशा को कोचिंग क्लास के बाहर छोड़ कर मै गियासुद्दीन की दुकान की ओर चला गया था।

जब सारा सामान जीप मे लदवा कर वापिस कोचिंग क्लास पर पहुँचा तो आयशा सड़क के किनारे खड़ी हुई मेरा इंतजार कर रही थी। उसके जीप मे बैठते ही हम स्कूल की दिशा मे चल दिये थे। बड़ी हिम्मत करके मैने धीरे से कहा… आयशा। वह मुझे अनसुना करके बाहर देखती रही तो मैने एक बार फिर से कहा… आयशा मुझे माफ कर दे। इस बार उसने सिर घुमा कर मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… आई एम सौरी। वह कुछ पल एकटक मुझे घूरती रही फिर बोली… समीर, जीप को एक किनारे मे खड़ी कर दे। मैने तुरन्त जीप को धीमी करते हुए एक किनारे मे खड़ी कर दी थी। अबकी बार वह धीरे से बोली… तू मुझे फाहिशा और बदचलन समझता है। मैने जल्दी से कहा… हर्गिज नही। मै तेरे बारे ऐसा सपने मे भी नहीं सोच सकता। यह सही है कि उस दिन तुझे अनवर के साथ देख कर मेरा दिल टूट गया था। मुझे पता था कि आयशा मुझे अभी भी घूर रही है लेकिन मेरी हिम्मत उस से आँख मिलाने की नहीं हो रही थी। अचानक वह बोली… समीर, जीप स्टार्ट कर और चल जल्दी। आफशाँ इंतजार कर रही होगी। आफशाँ का नाम सुनते ही मै तुरन्त हरकत मे आ गया और जीप स्टार्ट करके स्कूल की ओर चल दिया।

…तूझे पता है कि मै तुझसे उम्र मे बड़ी हूँ। मैने जीप चलाते हुए धीरे से कहा… तो क्या हुआ? अनवर भी तो मेरा सहपाठी है। …तू निरा बेवकूफ है। वह अरबाज की उम्र का है। मैने चकरा कर उसकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोली… मुझे नहीं पता कि तू मुझ पर फिदा था। मैने झेंपते हुए कहा… मेरे स्कूल के सभी लड़के तुझ पर फिदा है। तुझसे दोस्ती करने के लिये तो वह छुट्टी होने से पहले तेरे स्कूल के बाहर चक्कर लगा रहे होते है। …मैने तुझे तो अपने स्कूल के बाहर कभी नहीं देखा। उसकी बात सुन कर मेरी रही सही हिम्मत भी जवाब दे गयी थी। स्कूल करीब आ गया था। मैने जल्दी से कहा… तेरे स्कूल मे मेरी चार बहनें पढ़ती है और अगर किसी एक ने भी मुझे तुम्हारे स्कूल के बाहर खड़ा देख लिया तो सोच ले मेरे घर पर मेरी कैसी गत बनेगी। स्कूल आ गया है प्लीज इस बात का जिक्र आफशाँ के सामने कभी मत करना। वह जल्दी से बोली… ठीक है लेकिन आज शाम को मुझे उसी पुलिया के पास मिलना। मै जब तक कोई जवाब देता तब तक जीप स्कूल के गेट के पास पहुँच गयी थी। जीप को देख कर आफशाँ तुरन्त सड़क पर आ गयी और जैसे ही जीप रुकी तो वह जल्दी से जीप मे सवार होते हुए बोली… इतनी देर कैसे लग गयी? मैने जल्दी से कहा… गियासुद्दीन की दुकान पर आज बहुत भीड़ थी। कुछ ही पलों मे दोनो सहेलियाँ अपनी बातों मे व्यस्त हो गयी थी। मै उन दोनो को लेकर घर की ओर चल दिया।

शाम हो गयी थी। मै कमरे से बाहर निकला तो मेरी नजर बाहर लान मे बैठी हुई अम्मी और तिकड़ी पर पड़ गयी थी। मै चलते-चलते ठिठक कर रुक गया। मेरी सारी उम्मीदों पर पानी फिरता हुआ दिख रहा था। मै कुछ सोच पाता कि तभी कारों और लोगों से भरी हुई जीपों का काफिला हमारे दरवाजे पर रुका तो एकाएक लान मे भगदड़ मच गयी थी। अम्मी को वहीं छोड़ कर तिकड़ी तेजी से कमरे की ओर निकल गयी थी। अगले कुछ पलों मे लोहे का गेट खोल कर अब्बू आते हुए दिख गये थे। बिना किसी से बात किये अब्बू अपने साथियों को लेकर बैठक की ओर बढ़ गये थे। अम्मी उठ कर रसोई की ओर चली गयी थी। बाहर निकलने का मौका देख कर मै तेज कदमों से चलते हुए घर के बाहर निकल गया था। सड़क पर जमात के कार्यकर्ताओं का जमघट लगा हुआ था। सभी से बचते-बचाते हुए मै पुलिया की दिशा मे निकल गया।

शाम गहरी हो गयी थी। पुलिया के पास पहुँच कर मैने अपनी नजरें चारों ओर दौड़ायी लेकिन आसपास कोई नहीं था। कुछ देर पुलिया के पास चहलकदमी करने के बाद जब आयशा नहीं दिखी तो वापिस लौटने के लिये जैसे ही मुड़ा तभी एक साया झाड़ियों के बीच से निकला और मेरा हाथ पकड़ कर झाड़ियों के पीछे खींच लिया। …आयशा! …बेवकूफ, वहाँ क्या कर रहा था। पिछली बार भी मै झाड़ियों के पीछे तेरा इंतजार कर रही थी। मेरे मुख से कोई आवाज नहीं निकली बस मै एकटक उसे देख रहा था। आज वह बुर्के के बजाय हिजाब मे थी। …क्या देख रहा? मेरी दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैने झिझकते हुए कहा… तू बहुत खूबसूरत है। वह मुस्कुरा कर मेरे सिर पर चपत लगा कर बोली… बेवकूफ, आफशाँ मुझसे कहीं ज्यादा खूबसूरत है। मै कुछ बोलता उससे पहले मेरा हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए बोली… चल उस ओर वहाँ पर इस वक्त कोई खतरा नहीं होगा। मै उसके साथ चल दिया। नाले के साथ एक छोटी सी पगडंडी पर चलते हुए हम कुछ ही देर मे एक शान्त सी जगह पर पहुँच गये थे। पहाड़ी नाला वहाँ से थोड़ी दूरी पर बह रहा था। एक साफ सी जगह देख कर वह बैठते हुए बोली… यह जगह ठीक है। एक नजर घुमा कर मैने उस स्थान का अंधेरे मे जायज़ा लिया तो वह जगह हमारे घरों के पीछे तराई का हिस्सा लग रही थी। मै उसके साथ चुपचाप बैठ गया।

…समीर। …हुँ। …तू मुझ पर फिदा है? …हुँ। …कुछ बोलेगा या सिर्फ ऐसे ही बैठा रहेगा? अबकी बार अपनी सारी झिझक और शर्म की तिलांजली देकर मैने जल्दी से कहा… आयशा, बहुत दिनो से कहना चाहता था लेकिन कहने की हिम्मत नहीं हुई। मै तुझसे मोहब्बत करता हूँ। वह चुपचाप मेरी ओर देखती रही और फिर धीरे से मेरा हाथ थाम कर बोली… समीर, कभी तो एक बार मुझसे अपने दिल की बात कहता। मैने हमेशा तुझे आफशाँ के भाई के रुप मे देखा है। मै चुप रहा तो वह धीरे से बोली… उस दिन अनवर के साथ देख कर क्या अब भी तू मुझसे मोहब्बत करने की सोच सकता है। उसके सवाल का जवाब देने की हिम्मत मुझमे नहीं थी। उसका हाथ मेरे हाथ मे था लेकिन मै कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था। अचानक वह बोली… समीर, अब सब कुछ पहले जैसे नहीं रहा। कसम से अगर मुझे तूने पहले एक इशारा भी किया होता तो मै अपनी जान तेरे नाम कर देती लेकिन अब बहुत देर हो गयी है। उसने मेरा चेहरा अपने दोनो हाथों मे लिया और मेरी आँखों मे झाँकते हुए बोली… समीर, तुझे मेरी कसम। उन लोगों का साथ छोड़ दे। अनवर अपने साथ दोस्तों के साथ कुछ महीनो के लिये सीमा पार जा रहा है। मैने उसकी ओर चौंक कर देखा तो वह तुरन्त बोली… तेरे और मेरे बीच मे अब कभी अनवर नहीं होगा। तेरे साथ मेरा दिल का रिश्ता है। इतना बोल कर वह मुझ पर झुकी और धीरे से मेरे होठों पर उसने अपने होंठ रख दिये थे। हमारे होंठों के स्पर्शमात्र से ही मेरे जिस्म मे एक बिजली कौंध गयी थी। मेरे लिये समय रुक गया था। कुछ पल के बाद वह अलग होते हुए बोली… यह हमारी आखिरी मुलाकात है। उसकी बात सुन कर मुझे गहरा धक्का लगा… क्यों? …समीर, मुझे यह गम जिन्दगी भर रहेगा कि मैने नादानी मे क्या खो दिया। न चाहते हुए भी अनवर का साया हमारे बीच मे हमेशा रहेगा इसीलिये यही हम दोनो के लिये अच्छा होगा। इतना बोल कर वह खड़ी हो गयी और तेजी से चलते हुए अंधेरे मे गुम हो गयी। मै कुछ देर वहीं बैठ कर बदले हुए हालात और अपने लुटे हुए अरमानों को संजोता रहा फिर उठ कर अपने घर की ओर चल दिया।

हमारे घर के बाहर भीड़ छंट चुकी थी। मैने दबे पाँव घर मे कदम रखा तो बैठक से अब्बा की दहाड़ती हुई आवाज कानों मे पड़ी… शमा, कल मुझे दो लाख रुपये चाहिये। मै दीवार के किनारे अंधेरे मे छिप कर खड़ा हो गया। अम्मी की आवाज मुझे साफ सुनाई दी… अभी दो दिन पहले ही तो आप पाँच लाख लेकर गये थे। ऐसे अगर खर्च करेंगें तो कुछ ही दिन मे हम सब सड़क पर आ जाएँगें। …बकवास मत करो। राजनीतिक पार्टी चलाने के लिये बहुत पैसे चाहिये। मुझे अगले हफ्ते सीमा पार जाना है। उसके लिये तैयारी करनी है। …कुछ अपने बच्चों के भविष्य के बारे मे भी सोच लिजिये। …अगर पैसों की कमी हो रही है तो एक बाग बेच दो। अम्मी की गुस्से मे आवाज गूँजी… हर्गिज नहीं। क्या आपको लगता है कि मुझे नहीं मालूम कि आप किस पर पैसे लुटा रहे है। बस इतना ही सुन सका था कि कमरे से मारने पीटने की आवाज आने लगी थी। मै अपने आप को रोक नहीं सका और तेजी से अम्मी के कमरे की ओर बढ़ा लेकिन तभी अंधेरे से निकल कर तिकड़ी ने मेरा रास्ता रोक लिया और वह मुझे पकड़ कर कमरे मे ले गयी। कमरे मे घुसते ही रुआँसी आवाज मे आफशाँ ने कहा… क्या कर रहा है समीर? …आफशाँ, वह अम्मी को मार रहे है तो मै कैसे चुप होकर बैठ जाऊँ। एक साथ तिकड़ी रोते हुए मुझे समझाने बैठ गयी और बेबस होकर वहीं बैठ गया। उस रात हम काफी देर तक चुपचाप बैठे रहे थे।

अगली सुबह जब अम्मी ने उठाया तो घर मे सब कुछ सामान्य सा लग रहा था। …समीर, बैंक जाना है सो जल्दी से तैयार होजा। मै तैयार होने चला गया और हम सब एक बार फिर से अपने रोजमर्रा कार्यों मे व्यस्त हो गये थे। बैंक से लौटते हुए अम्मी ने एक नोटों का बंडल मेरे हाथ मे थमाते हुए कहा… मुझे घर पर छोड़ कर यह बंडल अपने अब्बू के पास पहुँचा देना। नोटों का बंडल हाथ मे पकड़ते ही कल रात की बात का रोष मेरी जुबान पर एकाएक आ गया… अम्मी, मै उनके पास नहीं जाऊँगा। मै जानता हूँ कि कल उन्होंने आपके साथ क्या किया था। गुस्से मे मेरी आवाज भर्रा गयी और बेबसी से मेरी आँखे छलक गयी थी। अम्मी ने प्यार से मेरी पीठ सहलाते हुए कहा… बेटा तू जल्दी से बड़ा होकर यह सारा काम संभाल लेगा तो तेरे अब्बा के अत्याचारों से मैं भी बच जाऊँगी। अपनी अम्मी को सांत्वना देते हुए मैने कहा… अम्मी, आप चिन्ता मत किजीए। यह बंडल कहाँ पहुँचाना है? एक पल के लिये अम्मी कुछ बोलने से झिझकी और फिर धीरे से बोली… आलम साहब के घर पर तेरे अब्बू इस बंडल का इंतजार कर रहे होंगें। …अपनी कोलोनी के बैंक वाले आलम साहब? …हाँ। अम्मी को घर के बाहर छोड़ कर मै आलम साहब के घर की ओर चल दिया।

हमारी कोलोनी के दूसरे छोर पर आलम साहब का घर था। मैने जैसे ही दरवाजे की घंटी बजाई तो कुछ पलों के बाद आलम साहब की बेटी शहनाज बाहर निकली और मुझे देखते ही चिड़ कर बोली… यहाँ किस लिये आया है? मै शहनाज को जानता था। वह आसिया के साथ पढ़ती थी। बोर्ड की परीक्षा के बाद उसने आगे पढ़ने से मना कर दिया था। आज उसके रंगढंग मुझे बदले हुए लग रहे थे। मैने हवा मे बंडल लहराते हुए कहा… अब्बू को यह बंडल देना है। वह दरवाजे से चिल्लायी… मकबूल साहब, समीर आया है। एक पल के लिये उसके मुख से अब्बू का नाम सुन कर मै चौंक गया था। जब तक हालात को समझ पाता तब तक अब्बू बाहर आते हुए दिखे तो मै सावधान हो गया। उन देख कर मैने धीरे से नजरें झुका कर कहा… सलाम अब्बू। …पैसे ले आया? …जी। इतना कह कर मैने नोटों का बंडल अब्बू के आगे कर दिया था। उन्होंने बंडल लेते हुए कहा… एक बार फिर से कह रहा हूँ कि जमात से जुड़ने का यही समय है। पढ़ाई करके तूने कौनसा लाट साहब बनना है। मेरे साथ काम करेगा तो यह लोग तेरी गुलामी करेंगें। मैने नजरें उठा कर अब्बू की ओर देखा तो वह शहनाज के कंधे पर बड़ी आत्मीयता के साथ हाथ रख कर मुझसे बात कर रहे थे। मैने जल्दी से कहा… मुझे इजाजत दिजीये। खुदा हाफिज। वह कुछ बोलते मै मुड़ कर अपने घर की दिशा मे चल दिया लेकिन शहनाज की चुलबुली हँसी मेरे कानों पड़ गयी थी।

अम्मी लान मे बैठी हुई मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखते ही उन्होंने पूछा… अब्बू मिल गये? …जी अम्मी। नोटों वाला बंडल उनके हवाले कर दिया है। …वह और कुछ बोले? …वह एक बार फिर से मुझे जमात के साथ जुड़ने के लिये कह रहे थे। …तूने क्या कहा? …कुछ नहीं। इतनी बात करके मैने अपने कमरे की ओर रुख किया। मेरे कमरे मे पहले से ही तिकड़ी मोर्चा खोल कर बैठी हुई थी। मुझे देखते ही आफशाँ ने पहला सवाल दागा… समीर, क्या यह सच है कि अब्बू आजकल शहनाज के साथ रह रहे है? मैने बस अपना सिर हिला दिया और अपने बेड पर लेट गया। आज जो कुछ भी देखा था वह मुझे काफी अटपटा सा लग रहा था। कुछ सोचते हुए मैने कहा… पता नहीं क्यों लेकिन शहनाज को देख कर ऐसा लगता है वह अब्बू के काफी करीब है। तभी अदा ने दबे हुए स्वर मे कहा… तो यह बात अफवाह नहीं अपितु सच है कि अब्बू ने दूसरा निकाह कर लिया है। उसकी बात सुनते ही मै झट से उठ कर बैठते हुए चौंक कर बोला… शहनाज से दूसरा निकाह? एकाएक तिकड़ी के बीच दबे हुए स्वर मे बहस आरंभ हो गयी थी।

मेरी आँखों के सामने कुछ महीने पहले का एक दृश्य घूम रहा था। जमात-ए-इस्लामी द्वारा छात्रों के लिये आयोजित एक कार्यक्रम में अनवर और फईम मुझे अपने साथ लेकर गये थे। उस कार्यक्रम मे जमात के युवा मोर्चे के कुछ छात्र नेताओं ने इस्लामिक जिहाद पर तकरीर करने के बाद एक पाकिस्तान से आये हुए मौलवी साहब के साथ मंच साझा किया था। उस मौलवी ने सीमा पार प्रशिक्षण के लिये सभी छात्रों को आमंत्रित करते हुए जन्नत का जिस तरह से वर्णन किया उसको सुनने के पश्चात शायद ही कोई होगा जो जमात-ए-इस्लामी से जुड़ना नहीं चाहता होगा। साथ ही सीमा पार जाने हर छात्र को पाँच हजार रुपये की छात्रवृत्ति देने का वादा भी किया जा रहा था। उसके बाद सभी लोग जमात का सदस्यता फार्म भरने मे व्यस्त हो गये थे। फार्म भरने के लिये अनवर और फईम ने मुझ पर बहुत दबाव डाला परन्तु अम्मी की हिदायत को याद करके उन्हें वहीं छोड़ कर मै चुपचाप बाहर निकल आया था।

उसी शाम को मैने पहली बार अब्बू को आलम साहब के घर के बाहर शहनाज के साथ देखा था। उस वक्त मुझे लगा कि शायद वह आलम साहब से बैंक के सिलसिले मे मिलने आये होंगें परन्तु इस रहस्योद्धाटन के पश्चात तो मेरी सारी सोच उलट गयी थी। शहनाज हमारे घर अकसर पढ़ाई के सिलसिले मे आसिया के साथ आती थी। इसी कारण हम सब उससे परिचित थे परन्तु इसके बारे मे तो कोई सोच भी नहीं सकता था। …समीर! अम्मी की आवाज गलियारे मे गूंजी तो एकाएक सभी सावधान हो गये थे। मै उठ कर बाहर जाने के लिये खड़ा हुआ था कि अम्मी ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… तेरे दोस्त बाहर बुला रहे है। तिकड़ी के सवाल-जवाब से बचने की मंशा से जल्दी से मै कमरे से बाहर निकल गया। गलियारे मे पहुँचते ही मेरी नजर लोहे के गेट के पर पड़ी जहाँ अनवर और फईम मेरा इंतजार कर रहे थे। उनको वहाँ खड़ा हुआ देख कर एक पल के लिये मै चौंक गया था।

अनवर और फईम आजतक कभी मेरे घर मे नहीं आये थे। वह दोनो हमेशा बाहर पुलिया पर ही मिला करते थे। अब्बू का खौफ मुझ पर ही नहीं मेरे दोस्तों पर भी काफी था। उनके पास पहुँच कर मैने दबे हुए स्वर मे पूछा… तुम दोनो यहाँ क्या कर रहे हो? अनवर ने जल्दी से कहा… अपनी जीप निकाल क्योंकि हमे कहीं पहुँचना है। …नहीं यार, मै जीप नहीं निकाल सकता क्योंकि अम्मी मुझे इसकी इजाजत हर्गिज नहीं देंगी। दोनो एक पल के लिये सकते मे आ गये लेकिन फिर फईम ने कहा… जीप को छोड़ हमारे साथ चल। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि वह क्या करना चाह रहे है। मैने एक बार मुड़ कर देखा तो अम्मी गलियारे मे खड़ी हुई हमे देख रही थी। …अम्मी, मै पुलिया तक जा रहा हूँ। कुछ देर मे वापिस आ जाउँगा। यह बोल कर मैने गेट खोला और बाहर निकल गया। कुछ दूर चलने के बाद मैने रुक कर पूछा… क्या चक्कर है? अबकी बार अनवर ने जवाब दिया… यार तुझे याद होगा कि हमने उस दिन जमात का फार्म भरा था। आज सुबह ही उन्होंने खबर की है कि कल वह हमे चार हफ्ते के लिये सीमा पार भेज रहे है। क्या तुझे भी बुलाया है? …मैने उनका फार्म ही नहीं भरा था तो भला वह मुझे क्यों बुलायेंगे। एकाएक दोनो चलते-चलते रुक गये थे। उनके चेहरे पर अब डर साफ झलक रहा था।

फईम ने अविश्वास से मुझे घूरते हुए पूछा… तूने फार्म नहीं भरा था। …नहीं। अनवर ने एक भद्दी सी गाली देकर कहा… यार हम दोनो इनके चक्कर मे फँस गये। मैने उनसे मना करने की कोशिश की थी तो वह धमकी देकर गये है कि कल अगर हम जमात के आफिस मे नहीं पहुँचे तो वह मेरे परिवार का समाजिक बहिष्कार कर देंगें। फईम ने भी उसकी हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा… यार, वह यही बात मुझसे भी कह कर गये है। हम बात करते हुए पुलिया तक पहुँच गये थे। उस पुलिया के एक किनारे पर बैठते हुए मैने पूछा… इसमे भला मै क्या कर सकता हूँ? …यार तू अपने अब्बा से बात करके सारे मामले को रफा-दफा करवा दे। हम सीमा पार जाना नहीं चाहते। अब्बू का जिक्र आते ही मै उठ कर खड़ा हो गया था। …पागल हो गये हो क्या, इस बारे मे बात की तो अब्बू मेरी खाल खींच लेंगें। इसमे मै तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। सारी दोस्ती को पल भर मे तिलांजली देकर दोनो ने एक साथ ही मुझ पर गालियों की बौछार कर दी थी।

सारी भड़ास निकालने के बाद फईम ने पूछा… क्या तेरे अब्बू के अलावा इस मामले मे हमारी कोई और इंसान मदद कर सकता है। कुछ सोच कर मैने कहा… काजी साहब का बेटा अरबाज जमात के युवा मोर्चे का लीडर है। एक बार उससे बात करके देख लो। दोनो ने एक स्वर मे कहा… वही साला तो आज सुबह हमे धमकी देकर गया था। एक बार फिर हम तीनों इस मुसीबत से बचने के बारे मे चर्चा करने बैठ गये थे। …अगर तुम दोनो अरबाज की दी हुई धमकी के बारे मे उसके अब्बू काजी इमरान साहब को बता दोगे तो शायद वह तुम्हारी इस मामले मे कोई मदद कर दें। दोनो को मेरा सुझाव तुरन्त पसन्द आ गया और उठते हुए बोले… शाम की नमाज के बाद उनसे बात करके देख लेते है। बस इतना बोल कर दोनो वापिस चले गये थे। मै अपने घर की ओर चल दिया था।

तिकड़ी लान मे बैठ कर मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देखते ही आफशाँ ने पूछा… वह दोनो यहाँ किस लिये आये थे। बात को टालते हुए मैने कह दिया… वह पूछने आये थे कि परीक्षा का नतीजा कब तक आ जाएगा। आलिया ने तुरन्त कहा… समीर झूठ बोल रहा है। वह इसको बुरी-बुरी गालियाँ दे रहे थे। मैने अपने कानों से सुना है। अनवर ने तो इसे धक्का देकर सड़क पर गिरा दिया था। तीनों मुझे घूर रही थी और मुझे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। एकाएक मैने दबे स्वर मे जल्दी से कहा… रात को कमरे पर सब बात दूँगा। अगर अम्मी को पता चल गया तो वह बहुत नाराज होंगी। मेरे मामले मे तिकड़ी मे अभी भी एकता थी। हमारी बात हमारे बीच मे रहती थी और अपने ज्यादातर मसले हम आपस मे ही सुलझा लिया करते थे। इसी कारण हम मे से किसी की शिकायत अम्मी और अब्बू के सामने सिर्फ घर के बाहर से ही पहुँच पाती थी। पहले आसिया हमारी लीडर थी और अब आफशाँ के कन्धे पर यह भार आ गया था। आफशाँ ने कहा… अब चुप हो जाओ। रात को बात करेंगें। मैने चैन की साँस ली क्योंकि मामला रात तक टल गया था।

रात को खाना खाने के पश्चात अम्मी अपना सारा काम निपटा कर जब अपने कमरे मे चली गयी तब आफशाँ और आलिया ने हमारे कमरे मे प्रवेश किया था। मै और अदा उन दोनो का इंतजार कर रहे थे। …अब बता समीर क्या बात थी? मैने जमात की मीटिंग से लेकर अरबाज की धमकी तक की सारी बात उनके सामने खोल कर रख दी थी। …तू उस मीटिंग मे क्यों गया था? …बस ऐसे ही अपने दोस्तों के साथ चला गया था। मेरा कोई खास मकसद नहीं था। किसी ने कुछ नहीं कहा बस तीनो गहरी सोच मे डूब गयी थी। कुछ देर के बाद आफशाँ ने कहा… समीर, इन लोगो का साथ छोड़ दे वर्ना एक दिन किसी बड़ी मुसीबत मे फँस जाएगा। तभी अदा ने उसकी बात काट कर कहा… अब्बू भी हमारे स्कूल मे लड़कियों को जमात से जोड़ने के लिये एक तकरीर देने के लिये आये थे। मैने जल्दी से पूछा… तुम मे से किसी ने तो वह फार्म नहीं भर दिया था? …जब मुझे यहाँ रहना ही नहीं है तो मै वह फार्म क्यों भरती। हम सभी जानते थे कि आफशाँ ने कश्मीर से बाहर निकलने का फैसला बहुत पहले से कर रखा था। हमारी महफिल कुछ देर के बाद बर्खास्त हो गयी और वह दोनो अपने कमरे मे वापिस चली गयी थी।

अपने बिस्तर पर लेटते हुए मैने पूछा… अदा, तूने तो वह फार्म नहीं भर दिया था। अपने लिहाफ से सिर निकाल कर वह बोली… तुझसे बिना पूछे तो मै वह फार्म नहीं भरती। क्यों क्या तू मुझे बिना बताये वह फार्म भर देता? …नहीं। एक बार फिर से कमरे मे शांति छा गयी थी। मेरे मन मे लगातार एक बात शाम से खटक रही थी। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि इस बारे मे किस से बात करुँ। मै उठ कर अदा के बेड की ओर चला गया और उसके सिरहाने के पास खड़ा होकर पूछा… अदा सो गयी क्या? उसने अपना चेहरा लिहाफ से निकाल कर मेरी ओर देख कर बोली… क्या नींद नहीं आ रही है? …नहीं, मुझे एक बात परेशान कर रही है। क्या अब्बा पाकिस्तान के लिये काम करते है? मेरी बात सुन कर वह उठ कर बैठ गयी और मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ बैठाते हुए बोली… तू ऐसी बात उनके बारे कैसे सोच सकता है। …जब वह अम्मी से लड़ रहे थे तो उन्होंने कहा था कि वह किसी काम के लिये सीमा पार जा रहे है। उनकी जमात के लोग अनवर और फईम जैसे लड़कों को प्रशिक्षण देने के लिये सीमा पार भेज रहे है। यहाँ पर तैनात भारतीय फौज आये दिन यहीं के लोगों को सीमा पार से आये आतंकवादी समझ कर गोली मार रही है। अब मुझे अब्बू के लिये डर लगने लगा है। मैने अपने मन की बात अदा के सामने खोल कर रख दी थी। अदा को देर तक जब कोई जवाब नहीं सूझा तब उसने कहा… तू बेकार अपना दिमाग इसमे लगा रहा है। अब्बू ऐसा कभी नहीं कर सकते है। उसकी बात सुन कर मेरा मन कुछ शांत हुआ और मै वापिस अपने बिस्तर पर आकर लेट गया था।

अगले दो दिन मै अम्मी के साथ सेब के व्यापारियों के आफिसों मे चक्कर लगाने मे व्यस्त रहा था। इस बीच मे अनवर और फईम की ओर से कोई खबर नहीं मिली थी। जुमे के रोज आफिस बन्द होने के कारण मै आराम से उठ कर तैयार हुआ और नाश्ता करने के बाद कुछ देर बाहर टहलने के लिये निकल गया था। रोजमर्रा की तरह तिकड़ी अपने काम मे व्यस्त थी। बाहर निकल कर पुलिया की ओर जाते हुए एकाएक अनवर और फईम का ख्याल आया तो मेरे कदम ठिठक कर रुक गये थे। पिछले दस साल से साथ होने के बावजूद उनके घर का पता मुझे मालूम नहीं था। बस इतना जानता था कि अनवर के अब्बू का टायरों का काम था। हम लोगों का साथ स्कूल और मदरसे तक ही रहता था। वह दोनो मुझे पुलिया पर छोड़ कर आगे निकल जाते थे। आसिया और आफशाँ की सहेलियाँ बोर्ड की परीक्षा के कारण पिछले दो सालों से हमारे घर आने लगी थी। शायद अब्बू के कारण हमारे सभी साथी आरंभ से ही हम से दूरी बना कर रखते थे। बहुत सोचने के बाद भी जब कोई हल समझ मे नहीं आया तो अरबाज से उनकी जानकारी लेने के लिये मै काजी साहब के घर की ओर मुड़ गया।

काजी इमरान साहब का घर हमसे कुछ मकान छोड़ कर था। जुमे की नमाज का समय हो गया था। काजी साहब तो घर पर नहीं होंगें और यही सोच कर मैने उनके द्वार पर लगी हुई घंटी का बटन दबा दिया। काजी साहब की नौकरानी ने दरवाजा खोल कर बाहर की ओर झाँका तो मैने जल्दी से उसके सामने आकर कहा… मै पड़ोस के बट साहब के मकान मे रहता हूँ। क्या अरबाज घर पर है? तभी बालकोनी से आयशा ने बाहर झांका और मुझे देखते ही बोली… समीर क्या काम है? …मुझे अरबाज से काम है। क्या वह घर पर है? …रुक मै नीचे आती हूँ। यह बोल कर वह ओझल हो गयी और उसकी नौकरानी दरवाजा खोल कर अन्दर चली गयी। कुछ देर के बाद आयशा दरवाजे पर आकर बोली… अन्दर चल। मैने मना करते हुए पूछा… अरबाज से मिलना था। क्या वह घर पर है? …वह यहाँ नहीं है। दो दिन पहले वह अब्बा के काम से एक महीने के लिये बाहर गया है। मैने दबे हुए स्वर मे पूछा… सीमा पार? आयशा ने जल्दी अपना सिर हिला दिया तो इसके आगे बिना कोई बात किये उससे विदा लेकर मै अपने घर की ओर वापिस चल दिया था।

कुछ कदम चलने के बाद पता नहीं क्या सोच कर अपने घर के बजाय आलम साहब के घर की ओर मुड़ गया। मेरे दिमाग मे कल रात के प्रश्न घूम रहे थे। मुझे अब्बू के लिये चिन्ता सताने लगी थी। दो महीने पहले ही हमारे पड़ौस मे रहने वाले सैयद साहब को उनके घर से भारतीय फौज ने गिरफ्तार किया था। वह श्रीनगर कोरपोरेशन मे अधिकारी थे। उनकी गिरफ्तारी के बाद हमारी कोलोनी मे ही नहीं अपितु पूरे शहर मे बहुत से राजनीतिक दलों ने हंगामा किया परन्तु आज तक सैयद साहब का पता नहीं चल सका था। जैसे ही मै आलम साहब के घर की सड़क पर पहुँचा तो वहाँ अफरातफरी मची हुई थी। पुलिस और सेना के अधिकारी सैयद साहब के मकान की तलाशी मे जुटे हुए थे। सैयद साहब का परिवार सड़क पर खड़ा हुआ रोते हुए खुदा की दुहाई दे रहा था। शहनाज भी अपने घर से बाहर निकल कर सैयद साहब की बेइज्जती और बर्बादी की सारी कार्यवाही देख रही थी। मै जैसे ही कुछ कदम आगे बढ़ा तो शहनाज की नजर मुझ पर पड़ गयी थी। वह तेजी से मेरी ओर बढ़ी और मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मुख्य सड़क की दिशा मे चल दी थी।

मुख्य सड़क पर पहुँचते ही वह घुर्रा कर बोली… तू वहाँ क्या करने आया था? मैने अपना हाथ छुड़ाते हुए जल्दी से कहा… अब्बू से मिलने आया था। …वह घर पर नहीं है। …शहनाज वह कब से बाहर है? अचानक उसने घूम कर एक तमाचा मेरे गाल पर जड़ते हुए कहा… अबसे तमीज से बात करना सीख ले। एकाएक वार ने मुझे पल भर के लिये स्तब्ध कर दिया था। उसकी बात सुन कर मेरा ध्यान आसपास की ओर चला गया था। चारों ओर देखने पर जब आश्वस्त हो गया कि सड़क पर कोई नहीं था तो बीच सड़क पर हुई बेइज्जती से मेरा जिस्म गुस्से से काँपने लगा और मैने झपट कर उसका हाथ मरोड़ कर उसे पेड़ की आढ़ मे घसीटते हुए घुर्राया… आज तेरे इस हाथ को तोड़ दूँगा। तेरी इतनी हिम्मत कि तू मुझे मारेगी। वह दर्द से तड़प कर चीखी… कमीने तेरे अब्बू से कह कर तेरी खाल खिंचवा दूँगी। मेरा हाथ छोड़ नहीं तो शोर मचा कर लोगों को इकठ्ठा कर दूँगी। मैने अपनी पकड़ ढीली करते हुए कहा… मुझे क्यों मारा जबकि मै तुझसे कुछ पूछ रहा था? पकड़ ढीली होते ही वह छिटक कर मुझसे दूर होते हुए रुआंसी होकर बोली… क्या तूझे पता नहीं कि अब हमारा क्या रिश्ता है। मैने झेंपते हुए पूछा… तू ही बता दे कि हमारे बीच क्या रिश्ता है? अबकी बार वह सपाट स्वर मे बोली… मै तेरी अम्मी लगती हूँ। आगे से मुझसे इज्जत से बात किया कर। मेरा रोष अब मेरी आवाज मे झलक रहा था। …शहनाज, तूझे यह बोलते हुए शर्म नहीं आ रही है। मेरी अम्मी ने तुझे बिन माँ की बच्ची समझ कर हमेशा आसिया के सामान स्नेह दिया और आज तू उनकी बराबरी करने की कोशिश कर रही है। अगर अभी भी कहीं शर्म बची हो तो जाकर डूब मर। इतना कह कर मै उसे वहीं छोड़ कर चल दिया था। …समीर। उसने आवाज दी तो एक पल के लिये रुक गया था। वह मेरे करीब आयी और धीरे से बोली…  तेरे अब्बू दो दिन पहले शहर से बाहर गये है। मैने उसकी ओर मुड़ कर भी नहीं देखा और अपने घर की दिशा मे चल दिया।

बुझे मन से जैसे ही मैने घर मे प्रवेश किया तो मेरा सामना अम्मी से हो गया था। …समीर इस वक्त कहाँ घूम रहा था। तुझे पता है कि आजकल यहाँ के हालात खराब चल रहे है। …अम्मी, सैयद साहब के घर की तलाशी लेने के लिये पुलिस और फौज के लोग आये हुए है। उनके परिवार वालों को घर से बाहर निकाल कर पूछताछ चल रही है। अम्मी ने जल्दी से हाथ उठा कर कहा… खुदा रहम कर। फिर मेरा हाथ पकड़ कर कमरे की ओर चलते हुए बोली… इसीलिये तो कह रही थी कि घर से बाहर मत निकला कर। तभी तिकड़ी से हमारा सामना हो गया और मुझे देखते ही आफशाँ ने पूछा… जनाब सारा दिन कहाँ घूम रहे थे? मै कोई जवाब देता तभी अम्मी ने कहा… तुम तीनो भी सुन लो कि अबसे कोई घर के बाहर फिजूल बात के लिये नहीं निकलेगा। उन तीनो ने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा…सैयद साहब के घर पर पुलिस और फौज का छापा पड़ा है। अम्मी मुझे वहीं उनके पास छोड़ कर अपने कमरे की ओर चली गयी थी। मैने अपने कमरे की ओर रुख किया कि तभी अदा ने पूछा… किससे थप्पड़ खा कर आया है? मै कुछ बोलता उससे पहले आलिया बोली… ऐसे ही आवारागर्दी करेगा तो किसी फौजी ने मारा होगा।

तीनो मेरे साथ कमरे मे आ गयी और मेरे गाल को ध्यान से देखने मे लग गयी थी। धीरे से अपने गाल को सहलाते हुए मैने कहा… मुझे शहनाज ने थप्पड़ मारा था। मेरी बात सुन कर कुछ पलो के लिये तीनो सन्न खड़ी रह गयी थी। इससे पहले कोई पूछता मैने अब्बा की बात को छिपा कर पहले सैयद साहब के परिवार की हालत बता कर शहनाज के साथ घटित घटना की सारी जानकारी दे दी थी। तीनो चुपचाप सुनती रही और फिर कमरे से बाहर निकल गयी थी। मै अपने बिस्तर पर आँख मूंद कर लेट गया था। न जाने मेरी आँख कब लग गयी थी। एकाएक मेरी आँखों के सामने सैयद साहब के परिवार के लोगों के बेबस और डरे हुए चेहरे दिख रहे थे। तभी अचानक उनकी जगह मुझे अपने परिवार के चेहरे दिखाई दे रहे थे। मै चौंक कर उठ कर बैठ गया था। …क्या हुआ समीर? अम्मी की आवाज मेरे कान मे गूंजी तो मैने जल्दी से उनकी ओर देख कर कहा… कुछ नहीं अम्मी। एक बुरा सपना दे रहा था। मेरे सिर को धीरे से सहलाते हुए अम्मी ने कहा… सैयद साहब के परिवार की दशा देख कर घबरा गया है? कुछ पल चुप रहने के बाद मैने धीरे से अम्मी की ओर देख कर कहा… मुझे आप सभी की चिन्ता हो रही है। अम्मी कुछ देर चुप रही और फिर मेरे गाल को सहला कर बोली… समीर फिर कभी उस घर पर मत जाना। मैने एक बार अम्मी को ध्यान से देखा और फिर अपना सिर हिला दिया था। अम्मी मुझे वहीं छोड़ कर उठ कर खड़ी हो गयी और बाहर जाते हुए बोली… समीर, आज जीप का टैंक फुल करा लेना क्योंकि कल सुबह हमको बडगाम चलना है।   

अगली सुबह हम बडगाम जाने की तैयारी कर रहे थे कि एक घटना ने मेरी जिंदगी की दिशा और दशा बदल कर रख दी थी। मेरे सपनों का महल चूर-चूर हो कर बिखर गया था। सब कुछ जिसे मैने आज तक अपना समझ रहा था वह सब एकाएक पराया और अनजाना हो गया था। एक घटना ने मुझे अपने ही परिवार वालों की नजर मे काफ़िर बना दिया था।

रविवार, 11 सितंबर 2022

  

काफ़िर-2

 

इतने अशांत माहौल मे भी हमारी स्कूली जिन्दगी का अपना रोमांच था। कुछ ही दिन मे उस पत्थरबाजी की घटना को भुला कर अपने ही ख्वाब संजोने मे जुट गये थे। उस घटना के बाद अरबाज के फरमानो को हम अनसुना करने लगे थे। जबसे मौलवी साहब की असलियत सामने आयी थी तभी से “लड़की”  हम तीन दोस्तों के बीच चर्चा का मुख्य विषय बन गया था। कौनसी लड़की का किस लड़के के साथ दोस्ताना है और किस लड़की के पीछे कौनसा लड़का लगा हुआ है। आसिया हमेशा मेरे दिमाग मे किसी कोने मे हमेशा जीवन्त रहती थी। फईम और अनवर आये दिन कभी अपने मोहल्ले की खबर और कभी मेरे मोहल्ले की खबरें सुनाया करते थे। एक दो बार हम टोह लेने के लिये शालीमार बाग और कभी निशात बाग भी घूमने के लिये निकल जाते थे। पेड़ो की आढ़ मे बैठे हुए युगल जोड़े और उनकी हरकते देखने के बाद जब घर लौटते तब मन ही मन अपने लिये हवाई किले बनाने मे जुट जाते थे। एक बार अरबाज को भी हमने निशात बाग मे अपने मोहल्ले के डाक्टर इस्लाम की लड़की जरीना के साथ देखा था। उस वक्त उसने मुझे देख कर अनदेखा कर दिया था परन्तु उसी शाम लौटते हुए उसने मुझे रास्ते मे रोक कर कहा… समीर, इस बात को राज रखना। आसिया या आफशाँ को इसका पता नहीं चलना चाहिये। उस लड़ाई के बाद उसने पहली बार मुझसे बात की थी। …नहीं भाई। मेरी ओर से आप बेफिक्र रहिये। यह बोल कर मै अपने घर चला आया परन्तु उसके बाद मेरे दिल मे भी एक नयी चिंगारी सुलग उठी थी।

आसिया की बोर्ड की परीक्षा के कारण आसिया और आफशाँ ने कोचिंग जाना आरंभ कर दिया था। अम्मी ने उन पर बाहर जाने की मनाही लगा दी थी इसी कारण उनकी सहेलियों का हमारे घर मे तांता लगा रहता था। इसी प्रकार आफशाँ की सहेलियाँ भी कोचिंग के सवाल हल करने के लिये आने लगी थी। मेरे दोस्त फईम और अनवर हमारे घर से कुछ दूरी पर सड़क के किनारे नाले पर अकसर बैठे हुए दिखाई दे जाते थे। एक दिन स्कूल से लौटते हुए फईम ने कहा… समीर, तेरे यहाँ परवीन आती है। क्या तू मेरा एक पैगाम उस तक पहुँचा देगा। पहली बार मुझे उसने एक रास्ता दिखाया था जिसके द्वारा मुझे भी कुछ कर गुजरने का मौका मिल सकता था। …मुझे नहीं पता कौन परवीन है। यहाँ तो आये दिन कोई न कोई आया रहता है। इसका हल भी फईम ने निकाला और लड़कियों के लौटने के टाइम पर उसने मुझे नाले पर बुला लिया था। कोचिंग क्लास के बाद आसिया और आफशाँ अपनी सहेलियों के साथ लौटी तो फईम ने परवीन को इशारे से दिखाते हुए कहा… वह परवीन है। मैने भी नोट किया कि परवीन ने एक उड़ती हुई नजर हम तीनो पर डाली फिर खिलखिला कर हँसती हुई आसिया से बात करते हुए हमारे घर मे चली गयी थी। …यार परवीन तो आसिया की सहेली है। तुझसे तो उम्र मे बड़ी है। भला वह क्यों तेरे चक्कर मे आएगी। …नहीं भाई, बहुत दिनों से वह लाईन दे रही है। तूने देखा था। समीर मेरा पैगाम उस तक पहुँचा दे। …यार अगर आसिया को पता चल गया तो वह मेरा जीना हराम कर देगी। न भाई मै नहीं कर सकता। तू कोई और चक्कर चला। यह बोल कर मै तुरन्त वापिस अपने घर मे आ गया था।

मै अपने कमरे मे अकेला बैठ कर अपने लिये योजना बना रहा था कि अचानक आसिया की आवाज मेरे कान मे पड़ी… समीर। मैने चौंक कर देखा तो आसिया दरवाजे पर खड़ी हुई थी और गुस्से से मेरी ओर देख रही थी। …क्या हुआ? आसिया कमरे मे आयी और दरवाजा बन्द करके मेरे साथ बैठते हुए बोली… उन लफंगों के साथ वहाँ नाले पर बैठ कर क्या कर रहा था? पहली बार मे ही मेरी चोरी पकड़ी गयी थी। मैने हकलाते हुए कहा… वह मेरे साथ पढ़ते है इसीलिये मिलने आये थे। …तू झूठ मत बोल। परवीन बता रही थी कि तुम लोग उसको रास्ते मे छेड़ते हो। कुछ शर्म लिहाज है कि वह भी समाप्त हो गयी है। …नहीं आसिया। तूझे कोई गलतफहमी हुई है। आज पहली बार मै वहाँ बैठा था। इतने दिनो से तुम और आफशाँ कोचिंग से लौटती हो तो क्या तुमने  या आफशाँ ने मुझे वहाँ बैठे हुए देखा है। परवीन झूठ बोल रही है। मैने जल्दी से अपनी सफाई उसको दी तो वह एक पल के लिये सोचने पर मजबूर हो गयी थी। …समीर, चल मेरे साथ। मेरा हाथ पकड़ कर वह लगभग खींचते हुए अपने कमरे मे ले गयी। उस वक्त कमरे मे उसकी दो सहेलियाँ बैठी हुई थी। उनमे से एक परवीन भी थी। …क्यों परवीन क्या यह लड़का तूझे परेशान करता है? परवीन के चेहरे पर कोई भाव नहीं था परन्तु मेरी साँस गले मे अटक गयी थी। कुछ दूर बैठी आफशाँ और उसकी तीन सहेलियाँ भी अब मुझे घूर रही थी।

परवीन ने मेरी ओर देख कर कहा… यह तू किसको पकड़ लायी। मैने एक लम्बी साँस छोड़ कर आसिया की ओर देखा तो वह अभी भी मुझे घूर रही थी। एकाएक आफशाँ खड़ी होकर बोली… यह हमारा भाई समीर है। परवीन ने एक नजर मुझ पर डाल कर कहा… नहीं यार, यह नही। मैने जैसे ही कुछ बोलने के लिये मुँह खोला कि तभी आसिया बोली… समीर तू जा और अब से अगर तू मुझे उन लफंगों के साथ नाले के आसपास भी दिखा तो अब्बा को बता दूँगी। अब्बा का नाम सुनते ही मेरी सारी दीवानगी एक पल मे ही काफुर हो गयी और उल्टे पाँव अपने कमरे की ओर चल दिया। वहाँ पहुँच कर मन ही मन फईम को गाली दी और फिर चुपचाप बैठ गया। आज तो बाल-बाल बच गया था। अदा कमरे मे आते ही बोली… समीर,आज स्कूल का काम नहीं करना? मै तो पहले से फुँका बैठा हुआ था। …जा तू अपना काम कर। मुझे नहीं करना। इतना कह कर मै कमरे से बाहर निकल गया। घर से बाहर निकल कर मै मुख्य सड़क की ओर चल दिया। आसिया पर रह-रह कर मुझे गुस्सा आ रहा था कि किस तरह उसने मुझे अपनी सभी सहेलियों के सामने शर्मिन्दा किया था। मै तो यह योजना बना रहा था कि उनके जरिए उनकी सहेलियों के साथ जान पहचान बढ़ाउँगा लेकिन इस घटना के बाद तो मेरे सारे रास्ते बन्द हो गये थे। कुछ देर चलते-चलते जब थक गया तो वापिस घर की ओर चल दिया।

अंधेरा हो चुका था और सड़क पर थोड़ी-थोड़ी देर मे इक्का-दुक्का गाड़ियाँ रौशनी बिखेर कर चली जाती थी। पैदल चलने के कारण दिमागी हलचल कुछ हद तक शांत हो गयी थी। जैसे ही अपने घर की सड़क के मोड़ से निकला तो मेरी नजर नाले पर पड़ी जहाँ आसिया अकेली बैठी हुई थी। मै चलते हुए उसके साथ जाकर बैठ गया। …तुम यहाँ कैसे बैठी हुई हो? …तुम्हारा इंतजार कर रही थी। …क्यों? अचानक वह मेरी ओर मुड़ी और मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोली… सौरी। मुझे माफ कर दे समीर। मैने तुझे उनके साथ यहाँ बैठे हुए देखा तो मुझे अच्छा नहीं लगा। उन लफंगों को मेरी सभी सहेलियाँ जानती है। …आसिया, वह दोनो मेरे साथ स्कूल मे पढ़ते है। आज वह मेरे पास एक काम के लिये आये थे लेकिन मैने उन्हें उसी वक्त मना कर दिया था। तेरी सहेली परवीन भी कोई दूध की धुली हुई नहीं है। वह भी उनकी छिछोरी हरकतों पर प्रतिक्रिया देती रहती है। एक पल के लिये आसिया ने मेरी आँखों मे झाँका और फिर धीरे से बोली… समीर मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि दूसरे क्या करते है। मुझे तुझसे मतलब है। कम से कम तू ऐसी छिछोरी हरकत तो किसी के साथ मत करना। चल घर चलें। इतना बोल कर वह उठ कर खड़ी हो गयी तो एकाएक मैने उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बिठाते हुए बोला… आसिया, एक बात बहुत दिनों से कहना चाहता था लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई। आज पहली बार बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर बोल रहा हूँ। तुमने मुझे शैतान को भगाने का खेल तो सिखा दिया परन्तु अब वही खेल मुझे निरन्तर परेशान कर रहा है। आसिया मेरा हाथ पकड़ कर कुछ देर चुप बैठी रही और फिर निगाहें झुका कर धीरे से बोली… समीर, बचपन की शैतानियों को वक्त के साथ भूल जाना अच्छा होता है। उसको दिल से लगाने की जरुरत नहीं है। उसकी बात सुन कर मेरा दिल टूट गया और मैने पूछा… क्या तुम भूल सकती हो? …कोशिश तो कर ही सकती हूँ। अगर नाकामयाब हो गयी तो अभी भी तुम मेरे बिस्तर पर ही सोते हो। मै वापिस वहीं आ जाऊँगी। …मेरा क्या? …वही जो मैने कहा है। तुम भी कोशिश करके देख लो। अगर नाकामयाबी मिले तो मै भी वहीं पर मिलूँगी जहाँ तुम्हें छोड़ा था। यह कह कर वह उठ गयी और मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोली… चलो वर्ना शैतानों की तिकड़ी हमे ढूँढते हुए यहाँ आ जाएगी। हम दोनो वापिस घर की ओर चल दिये।

रात को अकेले बिस्तर पर लेटा हुआ मै आसिया की बात सोच रहा था। उसकी बात मे कहीं न कहीं सच्चायी थी परन्तु वह चिंगारी लगातार जोर पकड़ रही थी। क्या करुँ? इसी पेशोपश और उहापोह मे दिन निकलते जा रहे थे। पढ़ाई के साथ सेब के कारोबार का भार भी बढ़ता जा रहा था। अम्मी के कहने पर मैने जीप चलानी सीख ली थी। अब मेरा काम पढ़ाई के साथ अम्मी के कारोबार मे हाथ बटाना भी हो गया था। समय का पहिया किसी के लिये रुकता नहीं है। इन्हीं सब हालात मे आसिया ने अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी करके डाक्टरी पढ़ने के लिए कश्मीर से बाहर निकलने का फैसला कर लिया था। अब्बा ने बहुत रोकने की कोशिश की परन्तु अम्मी के आगे उनकी एक नहीं चली। आसिया मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए बैंगलोर चली गयी और अब आफशाँ हमारी लीडर बन गयी। आसिया के जाने के बाद आफशाँ के साथ अदा को रहने के लिये कहा परन्तु न जाने क्या हुआ कि अदा के बजाय आलिया उसके कमरे मे रहने के लिये चली गयी थी। बाद मे अम्मी से पता चला था कि चुंकि हम दोंनो को दसवीं की परीक्षा साथ देनी थी इसीलिए अदा के बजाय आलिया को आफशाँ के कमरे मे भेज दिया था। मै और अदा दसवीं की परीक्षा की तैयारी मे जुट गये थे। सुबह स्कूल, दोपहर को कोचिंग और रात को होम वर्क मे उलझ कर हम एक साल दुनिया को भूल गये थे। यहीं हाल आफशाँ का भी बारहवीं के कारण हो गया था। दसवीं की बोर्ड परीक्षा देने के बाद पढ़ाई का सारा दबाव सिर पर से हट गया तो हमारे बीच एक बार फिर से पुराना रिश्ता मजबूत हो गया था। चारों देर रात तक बैठ कर गप्पे मारते थे और जब अब्बा कहीं बाहर गये होते तो हम सभी अम्मी के साथ किसी बाग का दौरा करने चले जाते थे। छुट्टियाँ ऐसे ही बीत रही थी।

ऐसा नहीं था कि कश्मीर घाटी के हालात सामान्य हो गये थे। आये दिन फौजी कार्यवाही की खबरे सुनाई दे जाती थी। पत्थरबाजी की घटना भी आम हो गयी थी परन्तु अरबाज के जाने के बाद से स्कूल का माहौल शान्त हो गया था। वैसे भी आये दिन पत्थरबाजी व बम्ब विस्फोट के कारण शहर के ज्यादातर हिस्से मे कर्फ्यु लगा रहता था जिसके कारण स्कूल भी अकसर बन्द रहा करते थे। इसके चलते हमारी पढ़ाई ज्यादातर घर या कोचिंग क्लास मे हुआ करती थी। एक प्रकार से हम चारों बच्चों ने अपने आप को इस प्रकार की अराजकता से दूर कर लिया था। अब्बा की राजनीतिक व्यस्तता के कारण सेब के बागों की देखरेख का भार अब अम्मी पर आ गया था। पढ़ाई के बाद मुझे जो कुछ समय मिलता उसमे अम्मी के साथ सेब के बागों की देखरेख मे निकल जाया करता था। फईम और अनवर से भी बाहर मिलना लगभग बन्द हो गया था। इस कारण मेरा जीवन अपने घर तक सिमट कर रह गया था।   

एक रात अदा उठ कर मेरे पास आकर बोली… समीर तुम्हें याद है अपने मौलवी साहब की कहानी? रात के समय अब तक सब सो चुके थे। हम दोनो अपना होम वर्क समाप्त करके सोने की तैयारी कर रहे थे कि एकाएक उसका यह सवाल सुन कर मै उठ कर बैठ गया था। …अचानक अदा तुम्हें इसकी याद कैसे आ गयी? …नहीं, पूछना तो मै पहले भी चाहती थी परन्तु…बोलते-बोलते वह चुप हो गयी थी। उसका हाथ पकड़ कर मैने उसे अपने पास बिठा कर पूछा… परन्तु क्या? …यही कि भला दो मर्द यह कैसे कर सकते है। यह तो इस्लाम मे हराम है। अचानक बोलते हुए उसकी आँखों मे मुझे एक शरारती चमक दिखाई दी तो मै सावधान हो कर बोला… नहीं… बिल्कुल सोचना भी नहीं। वह मुस्कुरा कर बोली… प्लीज एक बार करके देखते है। …नहीं, यह हमारे बीच मे हराम है। यह गुनाह है। अबकी बार वह तुनक कर बोली… कोई बात नहीं तो फिर मै तुम्हारे दोस्त फईम से इसका अनुभव ले लेती हूँ। यह बोल कर वह उठ कर अपने बिस्तर की ओर जाने लगी तो मैने उसको पकड़ कर बिठा लिया। …यह बात गलत है अदा। फईम अच्छा लड़का नहीं है। …कोई बात नहीं फिर अनवर के साथ करके अनुभव कर लूँगी। मुझे गुस्सा आने लगा था। मैने गुस्से मे उसे धक्का देकर कहा… ठीक है। तुम्हें जिसके साथ करना है करो पर अब से मुझसे बात नहीं करना। यह कह कर मै अपना सिर लिहाफ से ढक कर लेट गया।

वह वापिस नहीं गयी अपितु कमरे की लाईट बुझा कर मेरा लिहाफ हटा कर मेरे साथ आकर लेट गयी थी। मुझ से लिपटते हुए उसने मेरे कान मे फुसफुसा कर बोली… मै तो तुम्हारे साथ करके देखना चाहती थी। उसकी गर्म साँसे मेरे कान से टकरा रही थी और मुझे गुदगुदी हो रही थी। एक एहसास जो आसिया के जाने के बाद मैने दबा दिया था वह एक बार फिर से सिर उठाने लगा। वह चिंगारी जिसे मैने राख के ढेर के नीचे दबा दी थी उसे हवा लगने से वह दुबारा सुलग उठी थी। …समीर, उसने पहले क्या किया था? अपनी कोहनी के बल लेट कर मैने अदा की ओर देखा तो वह बड़ी उम्मीद से मुझे देख रही थी। …बस एक बार। वह कुछ नहीं बोली बस उसने अपनी पल्कें झपका दी थी। मै धीरे से उसके चेहरे पर झुक गया और अपने होंठों को एक पल के लिए उसके होंठ को छू कर हट गया। उसके कांपते होंठों का क्षणिक स्पर्श ने मेरे जिस्म मे अजीब सी हलचल मचा दी थी। एक अनजाने एहसास से हम दोनो की साँसे तेज चल रही थी और दिलों की धड़कन बढ़ गयी थी।

अदा ने अपनी साँस को काबू किया और फिर बोली… समीर क्या उन्होंने बस इतना ही किया था। …नहीं। इतना बोल कर मै दुबारा उसके चेहरे पर झुक गया था। मैने आहिस्ता से उसके होंठों पर अपने होंठ टिका दिये और धीरे से अपनी जुबान उसके होंठ पर फिराया तो उसके होंठ स्वत: ही धीरे से खुल गये थे। मेरे होंठों मे उसका निचला होंठ अनायस ही आ गया जिसे फँसा कर मैने उसका रस सोखना शुरु कर दिया। आसिया के होंठों की याद एकाएक ताजा हो गयी थी। प्रकृति के अपने नियम होते है। उसकी बाँहे मेरे चेहरे के इर्द-गिर्द कस गयी। वह भी उत्तेजना से ओत-प्रोत होकर मेरे होंठ को अपने मुख मे दबा कर रस सोखने की कोशिश मे जुट गयी। मेरी कोहनी मेरा भार नहीं उठा पा रही थी एकाएक मै भरभरा कर उस पर गिर गया। सारा नशा पल भर मे उतर गया और अपने आप को उससे अलग होने के लिए जैसे ही मैने उसके उभरे हुए सीने पर हाथ टिकाया उसके मुख से वही चिरपरिचित गहरी सिसकारी निकल गयी थी। एकाएक मै एक कुशल पुरुष की तरह उस पर कुछ देर के लिये छा गया। आसिया के बजाय अदा के साथ पहला चुम्बन और उसके पुष्ट सीने का स्पर्श एक सवर्गिम एहसास था।

हम चुपचाप लेट गये और काफी देर तक किसी ने कुछ नहीं बोला। आखिरकार मैने कहा… अदा। …हुँ। …क्या हुआ मुझसे कोई गलती हो गयी थी? उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैने उचक कर उसकी ओर देखा तो वह अपनी स्वप्निल दुनिया मे डूबी हुई थी। धीरे से उसे हिला कर मैने कहा… क्या हुआ। अचानक वह मुझसे लिपट गयी और पागलों की तरह मेरे गालों को चूमने लगी। एक पल के लिए उसमे आये हुए बदलाव को देख कर मै डर गया लेकिन फिर आसिया की याद एक बार फिर ताजा हो गयी थी। जब उसका तूफान शांत हो गया तो धीरे से उसे अपने से अलग करके लेट गया। …समीर। …हुँम। …यह तुमने पहले भी किसी के साथ किया है? मैने तमक कर कहा… पागल हो गयी हो क्या, भला मै यह किसके साथ कर सकता हूँ। वह मुझे चिड़ाने के मकसद से बोली… पता नहीं, हो सकता है कि फईम या अनवर के साथ तुमने किया हो। …अदा तुम सच मे पागल हो गयी हो। मेरी जिन्दगी मे मैने पहली बार यह तुम्हारे साथ किया है। तुमने बताया नहीं कि तुम्हें कैसा लगा? एक बार फिर से मुझसे लिपटते हुए वह बोली… तुमने सही कहा कि मै पागल हो गयी हूँ। अभी भी तुम्हारे होंठों का स्वाद महसूस कर रही हूँ। …मै भी ऐसा ही कुछ महसूस कर रहा हूँ। …फिर मौलवी साहब ने क्या किया? अचानक उसका हाथ सरक कर नीचे मेरे उत्तेजित अंग पर पड़ा तो मै चौंक कर उठ कर बैठ गया।

…नही अदा, इससे आगे नहीं। मैने उसका हाथ पकड़ लिया परन्तु वह लगातार उसे पकड़ने का प्रयास कर रही थी। वह धीरे से बोली… क्या यह पहली बार है जब मैने इसे छुआ है? भूल गये क्या जब आसिया ने इसको पकड़ कर हमे शैतान को जिस्म से निकालना सिखाया था। उसके निरन्तर हठ के सामने मै कमजोर पड़ने लगा था। एक कमजोर क्षण पर मैने उसका हाथ छोड़ दिया… तुम्हें जो करना है कर लो। छूट मिलते ही अदा ने उत्तेजना से तन्नाते हुए अंग को अपनी मुठ्ठी मे जकड़ लिया और धीरे से मेरे कान मे बोली… यह इतना बड़ा कब हो गया? मै चुप हो कर पड़ गया जैसे मैने अपने आप को उसके हवाले कर दिया था। …मुझे देखना है। यह कहते हुए उसने मेरे पाजामे को ढीला करके नीचे सरका दिया। कपड़ों की कैद से आजाद होते ही वह मस्त अजगर की भाँति लहराता हुआ अपने पूरे आकार  मे उसके सामने था। अदा ने धीरे से पहले झूमते हुए अंग को छुआ और फिर उसने उसको अपनी उँगलियों मे जकड़ लिया। एक बिजली का करंट मेरे जिस्म मे दौड़ गया था। …समीर। …हुँ। मुझे इसे देखना है। …नहीं। इतना हो गया बस। मेरी आवाज मे इस बार दृड़ता देख कर वह चुप हो गयी और धीरे से अपनी उंगलियों से सहलाते हुए मेरे अंग की पूरी लंबाई नापने लगी। मै आँखे बन्द किये उसके हर स्पर्श से उत्पन्न होती हुई तरंग को महसूस कर रहा था। अचानक वह उठ कर बैठ गयी और झूमते हुए सिर को स्थिर करके धीरे से चूम लिया। मेरे उपर एक नशा हावी होता जा रहा था। उसके होंठ धीरे से खुले और उत्तेजना से तन्नाये हुए अजगर के सिर को अपने मुँह मे लेकर अपनी जुबान से वार करने लगी। यह सब मेरे लिये नया अनुभव था। उसके दो तरफा वार मेरे लिए असहनीय होता जा रहा था। पता नहीं एकाएक मुझे लगा कि मेरी सारी इंद्रियाँ फट पड़ेंगी तो मैने उसका सिर अपने हाथों मे पकड़ कर जबरदस्ती नीचे की ओर धकेल दिया तभी मेरे जिस्म ने एक झटका लिया और मेरे अंग से सारी ऊर्जा एक ज्वालामुखी के लावे की तरह बहना आरंभ हो गयी। अभी भी मेरा जनानंग अदा की मुँह और ऊँगलियों मे फँसा हुआ था। हर स्पन्दन के साथ मेरा अंग लावा उगलता चला रहा था। कुछ देर के बाद सब कुछ शांत हो गया था। मेरी सारी जिस्मानी उत्तेजना भी समाप्त हो गयी थी। अदा भी हैरत से सब कुछ होता हुआ देख रही थी लेकिन अभी भी उसकी पकड़ कमजोर नहीं पड़ी थी जैसे वह सब कुछ निचोड़ लेना चाहती थी।

बादल बरसने के बाद सबसे पहले गीलेपन का एहसास होते ही हम दोनो के दिमाग मे एक ही ख्याल आया। …अदा बिस्तर और पाजामा गीला हो गया है। सुबह अम्मी जब कमरा ठीक करने आएँगी तो उन्हें पता चल जाएगा। … समीर तुम बेकार डर रहे हो। कुछ नहीं होगा। तुम अपना पाजामा बदल लो। इसको मै छिपा देती हूँ। जब नहाने जाऊँगी तो तब इसे धोकर मै सुखा दूँगी। मैने महसूस किया कि इस घड़ी मे भी अदा पूरी तरह से सचेत थी। तभी मुझे आसिया का ख्याल आया और मैने उसे लिटाते हुए कहा… यह तो अभी एक हिस्सा हुआ है। अब दूसरे हिस्से का अनुभव भी कर लो। उसने चकरा कर मेरी ओर देखा तो मैने उसको अपनी बाँहो मे समेट लिया और उसके कुर्ते के पीछे लगे हुए हुक को एक-एक करके खोलना आरंभ कर दिया। वह एक पल के लिये मचली लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने अपना कुर्ता खुद ही उतार दिया। मैने उसकी सलवार को जैसे ही छुआ वह उठ कर बैठने लगी लेकिन मैने उसे जबरदस्ती लिटा दिया। वह आँख मुंदे लेट गयी और मेरे अगली हरकत का इंतजार करने लगी। अंधेरे शलवार का नाड़ा ढीला करके मैने उसकी सलवार नीचे सरका दी तो उसने खुद ही अपने पाँव से शलवार को अपने जिस्म से जुदा कर दिया। आसिया के प्रशिक्षण को टेस्ट करने का समय आ गया था। मेरे होंठ उसके चेहरे को चूमते हुए गले पर पहुँच कर रुक गये थे। उसके कमसिन यौवन की महक मेरे दिमाग पर छाने लगी थी। मेरी उँगलिया उसके गले से सरक कर उसके उभरे हुए सीने की उन्नत गोलाईयों को नापते हुए उसके कंपन करते हुए स्तनाग्र को छेड़ने के लिये आगे बढ़ गयी। मैने धीरे से उसके किश्मिश जैसे स्तनाग्र को अपनी दो उँगलियों मे फँसाकर धीरे से तरेड़ा फिर अकड़ती हुई किश्मिश को अपने होंठों मे दबा कर अपनी जुबान से निरन्तर छेड़ना आरंभ कर दिया। कभी उसकी गोलाईयों को सहलाता और कभी उनको पूरा अपने मुख मे भर कर उनका रस सोखने लगता। कुछ देर मे ही उसकी कामोत्तेजना चरम पर पहुँच गयी थी। मेरा एक हाथ उसके सीने से सरकता हुआ नीचे की ओर बढ़ने लगा। उसकी नाभि को छेड़ कर मेरी उँगलियाँ सरकते हुए बालों के रोएँ के बीच छिपी हुई फूली संतरे सी जुड़ी हुई फाँकों पर पहुँच गयी थी। वह लगातार मेरे स्पर्श से लगातार मचल रही थी। अब वह आगे बढ़ने के लिये तैयार थी। मेरी उँगलियों ने धीरे से उन जुड़ी हुई फाकों को धीरे से खोला और उसके अन्दर सिर उठाये कली पर जैसे ही मैने दस्तक दी तो उसके मुख से अजीब सी घुर्राहट निकल गयी थी। मैने अपने मुख मे दबी हुई किश्मिश को निचोड़ कर उसका रस सोखते हुए अपनी उँगली को उसकी फूली हुई कली को निरन्तर घिसना आरंभ कर दिया। अदा का जिस्म हर पल मचल रहा था। वह बल खा रही थी। वह बिन पानी की मछली समान तड़प रही थी। उसके मुख से निरन्तर सिसकारी फूट रही थी। मै सब कुछ भुला कर अपने काम मे जुटा हुआ था। एकाएक उसका जिस्म हवा मे उठा और उसके मुख से दबी हुई एक लम्बी सी सीत्कार निकली और फिर उसके जिस्म मे कंपन आरंभ हो गया। वह किसी दूसरी दुनिया मे पहुंच गयी थी। एक हवा के झोंके की तरह उसने जोर से झटका खाया और फिर बिस्तर पर ढेर हो गयी। मै भी थक कर उसके बगल मे चुपचाप लेट गया। 

कुछ देर के बाद हम दोनो उठे और जैसा वह बताती गयी मै करता चला गया। कुछ ही देर मे हम एक बार फिर से बिस्तर पर लेटे हुए दबी हुई आवाज मे बात कर रहे थे। एक पल रुक कर वह बोली… समीर, तुम्हें कैसा लगा? पहली बार स्खलन के एहसास को शब्दों मे बयान करना जब मुश्किल हो गया तो मैने उसके होंठ चूम कर अंग्रेजी मे कहा… एक्सक्युसिट। तुम्हें कैसा लगा? वह एक पल चुप रही फिर मुस्कुरा कर बोली… हेवनली। मैने उसे बाँहों मे भर लिया और हम कुछ देर ऐसे ही लिपटे पड़े रहे थे। …बहुत देर हो गयी है। मै अपने बिस्तर पर सोने जा रही हूँ। आज मै उसे अपने से दूर नहीं करना चाह रहा था। उसे अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए मैने कहा… नहीं आज यहीं मेरे पास सो जाओ। उसे बाँहों लिए मै जल्दी ही अपने सपनों की सुनहली दुनिया मे खो गया था।

अजान की पहली आवाज पर अदा ने मुझे जगा कर कहा… जल्दी से उठ जाओ। अम्मी के आने से पहले एक बार फिर से देख लो। मै जल्दी से उठ गया और एक बार सभी चीजों पर नजर डाल कर जब हम दोनो आश्वस्त हो गये तब नमाज के लिए तैयार होने चले गये। सुबह सब कुछ हमेशा की तरह निकला था। अम्मी कमरे मे आयी भी और सब कुछ ठीक करके चली भी गयी थी। कोचिंग क्लास से लौटते हुए अपने घर के मोड़ पर मेरी नजर फईम पर पड़ी जो जल्दी मे कहीं जा रहा था। उसको आवाज देकर रोकते हुए मै उसके पास चला गया। …बहुत दिनों से तू दिखा नहीं फईम। कहाँ घूम रहा था? फईम ने आँख मार कर कहा… यार परवीन के चक्कर मे घूम रहा था। उसकी बात सुन कर एक पल के लिये मै चौंक गया था। बात बदलते हुए मैने पुछा… और अनवर कहाँ है? फईम ने मेरे कन्धे पर हाथ मार कर कहा… मेरे साथ चल। आज दिखाता हूँ कि अनवर क्या कर रहा है। हम दोनो मुख्य सड़क की दिशा मे चल दिये। …हम कहाँ जा रहे है? …निशात बाग। कुछ ही देर मे हम निशात बाग पहुँच गये थे।

…समीर, तू चुपचाप मेरे पीछे आ। हम बाग मे प्रवेश कर गये थे। हर तरफ बाग मे बहार आयी हुई थी। रंगबिरंगे फूलों से सारा बाग भरा हुआ था। आतंकवाद के कारण सैलानियों का आगमन तो अब कम हो गया था परन्तु फिर भी हर पेड़ की आढ़ मे एक जोड़ा बैठा हुआ चुहलबाजी मे व्यस्त था। बेहद रुमानी माहौल था। …यार अनवर कहीं दिख नहीं रहा है। …अबे वह यहाँ नहीं मिलेगा। बाग के आखिरी छोर पर माली का कमरा है। वह वहीं मिलेगा। हम दोनो उस दिशा मे बढ़ गये थे। माली का कमरा दिखते ही फईम सावधान हो गया और मुझे इशारा करके दबे पाँव एक चक्कर लगा कर कमरे के पीछे पहुँच गया। उसके पीछे-पीछे मै भी चला गया था। फईम ने खिड़की से अन्दर झाँका और फिर मुझे इशारा किया तो मैने भी खिड़की के अन्दर झांका तो मै चौंक गया क्योंकि अनवर किसी लड़की को अपनी बांहों मे लिये चूम रहा था। हम चुपचाप अन्दर का कार्यक्रम देखने बैठ गये। कुछ देर के बाद अनवर ने उस लड़की के बुर्के को उसके जिस्म से अलग किया और फिर उसके कुर्ते को नीचे करके उसके अनावृत गोलाईयों पर टूट पड़ा। वह लड़की उत्तेजना से अपना सिर इधर-उधर पटक रही थी परन्तु मुझे उसकी शक्ल साफ दिखायी नहीं दे रही थी। अचानक फईम बड़बड़ाया… यार, परवीन आने वाली होगी। तू आराम से बैठ कर देख मै अभी कुछ देर मे यहीं पर आता हूँ। इतना बोल कर फईम मुझे वहीं छोड़ कर वापिस चला गया। उसके जाने के बाद एक बार फिर से अपनी निगाह उस खिड़की पर गड़ा कर खड़ा हो गया।

अन्दर का दृश्य देख कर मेरी रगों मे खून का दौरा एकाएक बढ़ गया था। अनवर ने एकाएक उस लड़की को खड़ा कर दिया और अगले ही पल उसकी शलवार सरक कर उसके पैरों पर इकठ्ठी हो गयी थी। मेरी नजर उस लड़की के चेहरे पर पड़ी तो एक पल के लिये मै चौंक गया था। …आयशा! तभी अनवर ने उसे आगे की ओर झुका कर पीछे से अपना ऐंठा हुआ हथियार हाथ मे पकड़ कर उसके नितंबों के बीच मे जगह बना कर वार कर आरंभ कर दिया। वह एक गुड़िया की भाँति अनवर की बाँहों मे झूल रही थी और अनवर बेदर्दी से लगातार अपनी कमर हिलाते हुए उस पर प्रहार करता चला जा रहा था। उस लड़की घुटी हुई चीखें मुझे बाहर तक सुनाई दे रही थी। अब उसका यह हाल देखना मेरे लिये भारी होता जा रहा था। मेरे दिमाग मे उस लड़की का चेहरा घूम रहा था। अरबाज की बहन के साथ अनवर को देख कर मै सिहर उठा था। दिमाग का सारा जुनून पल भर मे उड़ गया था। अरबाज जमात उल हिन्द का युवा नेता बन गया था। वह आये दिन स्कूल और कालेज के छात्र और छात्राओं के मोर्चे निकाला करता था। हमारे मोहल्ले मे उसकी दादागिरी काफी प्रचलित थी। मै वापिस जाने के लिये जल्दी से घूमा तभी मेरा पाँव किसी चीज पर फिसला और मेरा जिस्म लकड़ी के फट्टे से जाकर टकरा गया। अपने आपको संभालते हुए भी मै जमीन पर लुढ़क गया था। मै जब तक संभल कर खड़ा होता तब तक अनवर अपने पाजामे का नाड़ा बाँधते हुए बाहर निकला और मुझे देख कर एक पल के लिये भौंचक्का खड़ा रह गया था। उसके पीछे-पीछे अपने कपड़े संभालते हुए आयशा भी बाहर निकली और मुझे वहाँ देख कर वह भी जड़वत खड़ी रह गयी थी।

एकाएक अनवर जोर से हँसा और मेरे पास आकर बोला… अबे समीर, खिड़की से अन्दर क्या देख रहा था। अपने कपड़े झाड़ते हुए मैने बात को संभाला… यार, फईम ने मुझे आज यहाँ बुलाया था। अन्दर से आवाज आ रही थी तो उसे देखने के लिये खिड़की की ओर चला गया लेकिन मेरा पैर फिसल गया और मै जमीन पर लुढ़क गया। पर तू यहाँ क्या कर रहा है? अनवर ने आयशा को अपने निकट खींच कर अपनी बाँहों मे भरते हुए बोला… यार, यह मेरी मोहब्बत है। बस कुछ पल अकेले मे गुजारने के लिये यहाँ आ गये थे। उसने अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी को देख कर कहा… फईम भी आने वाला होगा। चल बैठ कर बात करते है। बुर्के की चिलमन अपने चेहरे पर गिरा कर आयशा बोली… मै जा रही हूँ। अनवर उसके पास चला गया और कुछ देर बात करके आयशा को रुकसत करके मेरे पास आकर बोला… तू इसे जानता है? मैने जल्दी से कहा… नहीं यार। इसे मैने पहले कभी नहीं देखा। अनवर ने मेरी पीठ पर धौल जमा कर कहा… यार, यह तुम्हारे मोहल्ले की लड़की है। तू निरा अहमक है साले। चल फईम का यहीं बैठ कर इंतजार करते है। आज वह अपनी महबूबा को यहाँ ला रहा है। हम दोनो उस काठ के कमरे से कुछ दूरी पर पेड़ के नीचे बैठ गये थे। कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद अनवर ने कहा… वह देख फईम आ रहा है। चल उसके पास चलते है। …उसके साथ वह बुर्कापोश कौन है। अनवर ने हँसते हुए कहा… वही है जिसके पास वह तुझसे पैगाम पहुँचा रहा था। …परवीन?

फईम ने आते हुए हमे दूर से देख लिया था तो वह परवीन को काठ के कमरे मे छोड़ कर हमारे पास आकर बोला…  फारिग हो गया? अनवर ने हँसते हुए कहा… फारिग तो हो लिया लेकिन हमारे यार ने सब गुड़ गोबर कर दिया। साले ने डरा ही दिया था। आज तो लगता है कि किला फतेह करने की ठान के आया है। फईम ने जल्दी से कहा… पूरी कोशिश रहेगी। …यार अपनी मोहब्बत से एक बार मिलवा तो दे। …अभी नहीं। पहले किला फतेह कर लूँ फिर मिलवा भी दूँगा। इतनी बात करके फईम उस काठ के कमरे मे चला गया और हम टहलते हुए निशात बाग से बाहर निकल आये थे। मुझे मेरे दोस्तों से जलन होने लगी थी कि वह कितनी आसानी से किला फतेह करने की बात कर रहे थे। कुछ देर अनवर की कहानी सुनने के बाद मै कुढ़ता हुआ अकेला अपने घर की ओर चल दिया।

मै जैसे ही अपने घर की सड़क पर पहुँचने के लिये मुड़ा कि तभी किसी ने दबी आवाज मे मेरा नाम पुकारा… समीर। एक पल के लिये मै ठिठक कर खड़ा हो गया और चारों ओर नजर घुमायी लेकिन जब कोई नहीं दिखा तो मैने आगे कदम बढ़ाया तो एक बार फिर से वही आवाज आयी… समीर। अबकी बार आवाज की दिशा का ज्ञान हो गया था तो मै झाड़ियों की ओर बढ़ गया। जैसे ही झाड़ियों के पास पहुँचा तो मेरी नजर सहमी हुई आयशा पर पड़ी जो सूखे नाले मे झाड़ियों की आढ़ लेकर दूसरी ओर खड़ी हुई मुझे इशारे से बुला रही थी। …आयशा यहाँ क्या कर रही हो। किसी ने मुझे तुम्हारे साथ यहाँ देख लिया तो मै फालतू मे मारा जाऊँगा। …समीर, अंधेरा होने के बाद मुझे नाले के पास मिलना। …मुझे नहीं मिलना है। यह बोल कर मै अपने घर की ओर चल दिया। वह पीछे से बोली… तुम नहीं आये तो मै तुम्हारे घर आ जाऊँगी। उसकी धमकी सुन कर एक पल के लिये मै चलते-चलते रुक गया और फिर तेज कदमों से चलते हुए अपने घर पहुँच कर ही साँस ली थी। आयशा को देख कर मेरी धड़कन बढ़ गयी थी।

जब घर पहुँचा तो आफशाँ, आलिया, अदा रोजमर्रा की तरह अपने आने वाले कल की बातों मे उलझे हुए थी। मुझे देखते ही आफशाँ ने कहा कि मेरे लिये अब्बा का बुलावा आया है। सिर मुंडा कर ओले पड़ने जैसी हालत हो गयी थी। अभी बड़ी मुशकिल से आयशा से पीछा छुड़ा कर आया था कि घर मे घुसते ही अब्बा का फरमान सुना दिया गया था। मै उनके पास जाने के बजाय सीधे अम्मी के पास चला गया। मेरे पीछे-पीछे वह तीनो भी वहीं आ गयी थी। …अम्मी कौन आया है? …क्यों क्या हुआ? मैने जल्दी से कहा… अब्बा ने मुझे हाल मे बुलवाया है। …तो चले जा। …नहीं अम्मी तुम भी चलो। मै उन्हे लगभग खींचते हुए बैठक की ओर चल दिया था। हमारे पीछे-पीछे तिकड़ी भी चल दी थी। अम्मी ने बैठक मे प्रवेश करते हुए कहा… आपने किस लिए मुझे बुलाया है? अब्बा ने चकराते हुए कहा… मैने तो समीर को बुलवाया था। यह कम्बखत तुम्हें क्यों बुला लाया। मैने धीरे से कमरे मे प्रवेश करते हुए हुए कहा… अब्बा आदाब। उन्होंने मेरी ओर देख कर कहा… मैने इसे बुलाया था। तुम्हें नहीं। तुम जाओ। परन्तु अम्मी अपनी जगह से नहीं हिली तो एक बार फिर से अब्बा ने कहा… तुम जाओ शमा। मुझे समीर से काम है। …आप बता दीजिए क्योंकि अभी इसे मेरे साथ बाजार जाना है।

अब्बा ने बड़े गर्वीले अंदाज मे कहा… तुम सुनना चाहती हो तो ठीक है तुम भी सुनो। हमारी पार्टी जमात-ए-इस्लामी का युवा विंग खुल रहा है। मै चाहता हूँ कि यह हमारी युवा विंग से जुड़ कर अपने दोस्तों के साथ मिल कर कश्मीरी युवाओं को हमारी मुहिम से जोड़ने का काम करे। अगर अभी से यह पार्टी के साथ जुड़ जाएगा तो यहाँ की राजनीति मे इसका भविष्य उज्जवल होगा। क्या कहती हो? मुझसे पूछने के बजाय अब्बा ने अम्मी से पूछने की भारी गलती कर दी थी। अम्मी ने जल्दी से कहा… देखिए यह हमारे बीच मे तय हुआ था कि आपकी राजनीति घर की चारदीवारी के बाहर तक रहेगी। आप समीर को इसमे मत उलझाईए। इसे पढ़ाई करने दीजिए। यह उन आवारा लड़कों मे से नहीं है जो सुबह से शाम तक सड़क नापते रहते है और आप जैसे लोगों के इशारे पर हंगामा और पत्थरबाजी करते है। मै अपने बच्चों को इन चीजों से दूर रखना चाहती हूँ। इस साल आफशाँ भी पढ़ने के लिए बाहर चली जाएगी। आप घर मे होते नहीं है तो बताईए कारोबार मे कौन मेरा हाथ बटाएगा। अब्बा ने अपनी चाल चलते हुए कहा… एक बार इससे भी तो पूछ लो कि आखिर यह क्या चाहता है। अब यह अठारह साल का होने जा रहा है तो कब तक इसे अपने पल्लू से बाँध कर रखोगी। अम्मी एक बार फिर से अपने अभेद्य हथियार का इस्तेमाल करते हुए बोली… जब तक मै जिंदा हूँ तक तक तो मै उसे अपने पल्लू से बाँध कर रखूँगी उसके बाद अल्लाह रहम करे। फिर जो यह करना चाहे वह करे। मै रोकूँगी नही। वह मेरी ओर मुड़ कर बोली… समीर, आज ही जीप तैयार करके रखना क्योंकि कल सुबह हमे बडगाम जाना है। बैंक से पैसे निकाल कर मजदूरों का हिसाब भी करना है। यह बोल कर वह तुरन्त बैठक से बाहर निकल गयी। जैसे ही मै उनके पीछे जाने लगा तभी अब्बा की आवाज गूँजी… कब तक अम्मी के पीछे मेमने की तरह फिरता रहेगा। समीर एक बार ठंडे दिमाग से सोच कर देखना। यह बोल कर वह पैर पटकते हुए बाहर निकल गये और मै भागते हुए अम्मी के पास चला गया।

बाहर निकलते ही तिकड़ी मुझे घेर कर बैठ गयी थी। …क्यों अब से अब्बा की पार्टी के लिये काम करोगे? तभी अम्मी रसोई से बाहर निकली और तीनो को झिड़कते हुए बोली… सभी पढ़ाई मे मन लगाओ। मेरे घर मे कोई भी नेतागिरी नहीं करने वाला है। आफशाँ ने कहा… अम्मी नतीजे आते ही मै तो पढ़ने बाहर चली जाऊँगी पर यह तीनों क्या करेंगें। अदा ने तुरन्त जवाब दिया… तुम अपनी चिन्ता करो। मुझे पता है कि मुझे आगे क्या करना है। मुझे तो किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था क्योंकि मै अच्छे से जानता था कि सभी सेबों के बागान का काम मुझे ही देखना था। शाम तक यह बहस का सिलसिला हमारे बीच चलता रहा था। अंधेरा हो गया तो कमरे मे अदा रह गयी थी। कुछ देर तक मै चुपचाप बैठा रहा क्योंकि मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि आयशा मुझसे क्यों मिलना चाहती है। एक डर भी लगातार सता रहा था कि कहीं वह आज की कहानी आफशाँ को न सुना दे। मैने मन ही मन अपने आप को समझाया कि वह हर्गिज नहीं करगी क्योंकि इससे तो उसकी भी पोल खुल जाएगी। मै सोच मे डूबा हुआ था कि तभी अम्मी ने मुझे आवाज दी… समीर, जरा गियासुद्दीन की दुकान से चावल की दो बोरी लेकर आजा। …जी अम्मी। यह कह कर मैने जीप की चाबी उठाई और बाहर निकल गया।

गियासुद्दीन की दुकान शहर के एक सिरे पर थी। वहीं से घर का सारा सामान आता था। मैने अपने घर की सड़क का मोड़ जैसे ही काटा तो कुछ दूरी पर वही नाला दिखायी पड़ा जहाँ आयशा ने मुझे अंधेरा होने के बाद बुलाया था। एक पल के लिये मेरी धड़कन बढ़ गयी थी परन्तु कुछ सोच कर मैने अपनी जीप को पल भर के लिये नाले के पास ले जाकर खड़ी कर दी। एक बार इधर-उधर देख कर जैसे ही मैने आगे बढ़ने के लिये एक्सेलेरेटर पर पाँव जमाया आयशा तेजी से झाड़ियों से निकल कर जीप मे पीछे से चढ़ गयी। मैने इसके बारे सोचा भी नहीं था। …कहाँ जा रहा है? …गियासुद्दीन की दुकान से चावल की बोरी उठाने जा रहा हूँ। बोलो तुम क्या कहना चाहती थी? …जीप किनारे मे लगा कर खड़ी कर दे। एक पल के लिये उसकी बात सुन कर मुझे गुस्सा आया परन्तु फिर चुपचाप वही किया जो उसने कहा था।

जीप के बन्द होते ही वह कूद कर आगे आकर बैठ गयी थी। कुछ देर चुप रहने के बाद वह धीरे से बोली… तूने आज अन्दर क्या देखा था? एक पल के लिये मैने कहना चाहा कि कुछ नहीं परन्तु कुंठित मन को दुश्मन पर वार करके ही शांति मिलती है। …आज मैने सब कुछ देखा है। वह चौंक कर बोली… सब कुछ। …हाँ, जब से तुम दोनो अन्दर गये थे। वह एक पल के लिये चुप हो गयी और फिर धीरे से बोली… यह बात तू किसी को तो नहीं बताएगा? मै चुप बैठा रहा तो एक बार उसने फिर से पूछा तो मैने कहा… जब करते हुए तुझे डर नहीं लगा तो अब क्यों डर रही है। एकाएक उसकी आवाज भर्रा गयी… नहीं समीर तुझे खुदा की कसम है कि जो यह बात तूने किसी को बतायी। मै खुदकुशी कर लूँगी। मैने उसकी ओर देखा तो वह अभी भी अपने चेहरे को चिलमन के पीछे छिपाये बैठी हुई थी। एक पल मै खामोश रहा और फिर कुछ सोच कर बोला… ठीक है। मै किसी को इस बात का जिक्र नहीं करूँगा। …आफशाँ को भी नहीं। …ठीक है, आफशाँ को भी नहीं लेकिन अबसे मेरे साथ तुझे नर्मी से पेश आना होगा। वह जल्दी से बोली… ठीक है। उसी लहजे मे मैने कहा… जो मै कहूँगा वह बिना सवाल जवाब किये मानेगी। …हाँ मानूँगी। …जब बुलाऊँगा तब आयेगी। …हाँ आ जाऊँगी। अब जल्दी से मेरी कसम खा कि आज की बात किसी से नहीं कहेगा। …तेरी कसम आयशा मरता मर जाऊँगा लेकिन आज की बात किसी से नहीं कहूँगा। अचानक उसे न जाने क्या हुआ वह मुझसे लिपट गयी और मेरे गाल को चूम कर जल्दी से अलग होकर बोली… चल मुझे पहले नाले के पास छोड़ दे फिर सामान लेने शहर जाना। उसकी इस हरकत ने मुझे पानी-पानी कर दिया था।

इस्लामाबाद

मुख्य सुरक्षा सलाहकार के आफिस मे आईएसआई और फौज के कुछ अफसरों के साथ गोपनीय मीटिंग चल रही थी। इस मीटिंग मे कुछ जिहादी तंजीमों के मुखिया भी भाग ले रहे थे। आईएसआई के ब्रिगेडियर ने मुख्य सुरक्षा सलाहकार से पूछा… मुजफराबाद की फाइल का क्या हुआ? …जनाब, भारत सरकार मुजफराबाद का रास्ता खोलने के लिये राजी हो गयी है। अब सब कुछ आपके हाथ मे है। …इस रास्ते को लेकर काफी अड़चने है। पहले अपनी तंजीमों मे सुलह करवाओ क्योंकि रास्ता खुलते ही सभी तंजीमे इस रास्ते के वर्चस्व की लड़ाई मे जुट जाएँगी। मीरवायज और लखवी तो उस रास्ते के लिये लड़ मरेंगें। …जनाब, यह मुझ पर छोड़ दिजीये। यह रास्ता हमारे लिये कश्मीर का रास्ता खोल देगा। …बस ख्याल रहे कि अफगानिस्तान की तंजीमे यहाँ पर हावी नहीं होनी चाहिये। भारत यह रास्ता खोलने की बात सिर्फ अफ़गानिस्तान का लिंक मजबूत करने के लिये कर रहा है। …जनाब, हक्कानियों और तेहरीक को सिर्फ आप ही संभाल सकते है। आईएसआई की पूरी कोशिश रहेगी कि उन्हें वहाँ पर आने नहीं देंगें। इसके लिये ही मीरवायज और लखवी को हम मजबूत कर रहे है। 

रविवार, 4 सितंबर 2022

 


 

काफ़िर -1

               

मेरी कहानी भी उसी वर्ष और उसी उच्चवर्गीय कोलोनी से आरंभ हुई थी। मेरा नाम समीर बट है। मेरी अम्मी हमेशा मेरा जन्म उस नरसंहार के परिणाम के रुप मे ही याद रखती थी। चार बहनों के बीच मै अकेला बेटा होने के कारण अपनी अम्मी और बहनों का हमेशा से लाडला रहा था। आसिया और आफशाँ मुझसे बड़ी थी और अदा और आलिया मुझसे छोटी थी। मेरे अब्बा मकबूल बट के होने या न होने से मेरी छोटी सी दुनिया पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। वैसे भी उनका सारा समय घर से बाहर गुजरता था। उनके लौटते ही सारा घर शांत हो जाता और फिर देर रात तक हमारी बैठक मे लोगों का आना जाना लगा रहता था। इसीलिए उनकी जिन्दगी मे हमारे लिए और हमारी जिन्दगी मे उनके कोई जगह नहीं थी। मेरी अम्मी और बहनें ही मेरी दुनिया थी। इन से बाहर की दुनिया को मैने सिर्फ घृणा और हिकारत भरी नजरों से देखा था। शायद एक कारण वह औरत भी थी जो हमारे घर मे रहती जरुर थी परन्तु उसका हमसे कोई सरोकार नहीं था। वह हमेशा कमरें मे बंद रहती थी। मेरी अम्मी और अब्बा ही उसके कमरे जाया करते थे और बाकी सभी को उसके कमरे मे जाने की सख्त मनाही थी।  

उस औरत को दिन मे मैने हमेशा गुम सुम बैठा हुआ देखा था। बहुत बार रात मे उसकी दर्दनाक चीखें भी सुनी थी। उसकी चीखें सुन कर हम सभी बच्चे एक दूसरे का हाथ पकड़े लिहाफ मे दुबक जाया करते थे। कई बार हमने अम्मी से उस औरत के बारे मे पूछा भी था परन्तु वह हमेशा यह कह कर बात टाल देती… बेचारी दुखियारी है। उस नरसंहार मे इसका सब कुछ चला गया था। आसिया मुझसे चार साल बड़ी थी इसलिए उसे जल्दी अक्ल आ गयी थी। एक रात जब उस औरत की चीखें सुन कर हम लिहाफ मे दुबके हुए बैठे थे तब आसिया ने रहस्योद्घाटन किया कि अब्बा उस औरत मे छिपे हुए शैतान को निकालने के लिए पीट रहे है। तब से हमारे मन मे एक बात बैठ गयी थी कि उस औरत मे शैतान बैठा हुआ है। जब भी आसिया को बात मनवानी होती तो वह हमसे कहती कि उस औरत के कमरे मे छोड़ कर आ जाएगी तो हम सब उसकी बात तुरन्त मान लेते थे।  

आसिया और आफशाँ उम्र मे बड़ी होने के कारण मुझ पर जान छिड़कती थी। अदा मेरी दोस्त की तरह हमेशा छाया की तरह मेरे साथ रहती थी और आलिया से हर बात पर तकरार होती थी। हमारे बीच सुबह से शाम तक कई बार किसी न किसी बात पर तकरार होती परन्तु आज तक हमारी कोई शिकायत अम्मी तक नहीं पहुँचती थी। आसिया ही हमारे सारे झगड़े सुलझा दिया करती थी। जब भी हम पाँचों मे से किसी एक से भी कोई गलती या नुकसान हो जाता तो हम सभी अम्मी के सामने सिर झुका कर खड़े हो जाते थे। बच्चों पर अब्बा के गुस्से की गाज गिरने से पहले अम्मी हमेशा ढाल की तरह उनके सामने खड़ी हो जाती थी। सभी की स्कूली पढ़ाई भी आरंभ हो गयी थी। चारों ने लड़कियों के स्कूल मे जाना आरंभ कर दिया था और मुझे लड़को के स्कूल मे भर्ती करा दिया था। रोज रात को सोने से पहले हम सब दिन भर की स्कूल की बातें सुनाया करते थे। समय के चक्र के साथ ऐसे ही कुछ छोटी-छोटी खुशियाँ आपस मे बाँटते हुए हमारा बचपन बीत रहा था।   

एक रात आसिया घबरायी हुई कमरे मे आयी और चुपचाप मेरे पास आकर बैठ गयी। उसका चेहरा लाल सुर्ख हो रहा था। उसकी साँसे तेज चल रही थी। …आसिया क्या हुआ? मैने धीरे से पूछा तो वह चौंक गयी थी। …तू अभी सोया नहीं? …तुम्हारे बिना मुझे नींद नहीं आती है। तुम कहाँ गयी थी और क्या हुआ? वह कुछ नहीं बोली बस मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर लेट गयी थी। उत्तेजनावश उसका जिस्म काँप रहा था। उसकी जकड़ से आजाद होने के लिये मैने धीरे से उसके उभरे हुए सीने को धकेलते हुए अलग होना चाहा तो आसिया के मुख से दबी हुई एक आह निकल गयी थी। मैने जल्दी से फुसफुसा कर पूछा… तुम्हें क्या हो गया है? आसिया मेरे गाल पर बोसा देकर धीरे से मेरे कान मे बोली… समीर, मेरे सीने मे हल्का दर्द हो रहा है। प्लीज इन्हें थोड़ा सहला दे। मैने रबर जैसी गोलाईयों को धीरे-धीरे सहलाना आरंभ कर दिया। कुछ ही देर मे उसके मुख से अजीब सी आहें विस्फुटित होने लगी थी। एकाएक उसने मेरा हाथ पकड़ कर रोक कर कहा… समीर, अब ठीक हो गया। मै चुपचाप उसके उभरे हुए सीने मे एक बार फिर से मुँह छिपा कर लेट गया और उसकी बाँहे स्वत: मेरे इर्द-गिर्द लिपट गयी थी। सुबह तक मै सब कुछ भूल गया था।

कुछ दिन बाद मै स्कूल से लौटा तो देखा कमरे मे आसिया और आफशाँ किसी गहरी चर्चा मे डूबी हुई थी। मुझे देखते ही दोनो चुप हो गयी तो मैने पूछा… क्या हुआ? …कुछ नहीं समीर। यह बोल कर दोनो कमरे से बाहर चली गयी। मै भी अपना बैग पटक कर उनके पीछे चला गया। मुझे अपने पीछे आता हुआ देख कर आसिया ने कहा… समीर एक बात कहूँ तो किसी को बताएगा तो नहीं। …नहीं, क्यों क्या हुआ? आसिया ने आफशाँ की ओर देखा और वह कुछ बोलती कि तभी आफशाँ जल्दी से बोली… आसिया ने अब्बा को उस औरत के अन्दर छिपे हुए शैतान को बाहर निकालते हुए देखा है। यह सुन कर मै चौंक गया था। उस औरत के नाम से हम सभी बेहद खौफ खाते थे। मैने हैरानी भरे स्वर मे पूछा… तुमने यह कब देख लिया? दोनो कुछ नही बोली और एकटक मेरी ओर देखती रही और फिर वापिस कमरे मे चली गयी। मै उनके पीछे कमरे मे आ गया और बोला… आसिया एक बार मुझे भी देखना है। तभी अदा और आलिया ने कमरे मे प्रवेश किया तो आसिया ने मेरा हाथ कस कर दबा कर चुप रहने का इशारा किया।

…क्या देखना है समीर? अदा ने मुझसे पूछ लिया। अब बात दबानी दोनो के लिए भारी हो गयी थी। आफशाँ ने अदा से कहा… पहले दरवाजा बंद कर दे। अगले ही पल हम सिर जोड़ कर उसी औरत के अन्दर से शैतान भगाने की बात कर रहे थे। सभी अपनी ओर से समझने की कोशिश कर रहे थे परन्तु आसिया द्वारा वर्णित  क्रिया किसी के समझ मे नहीं आ रही थी। एकाएक आसिया ने कहा… समीर और अदा तुम दोनो अपने कपड़े उतारो। सर्दी के मौसम मे भला कोई कैसे कपड़े उतार सकता है। मैने जल्दी से कहा… नहीं इतनी ठंड मे तो बिल्कुल नहीं। तुम वैसे ही बता दो। एकाएक सारी लड़कियाँ मेरे कपड़े उतरवाने के पीछे पड़ गयी और आखिरकार उन्होंने मेरे कपड़े उतरवा कर ही दम लिया। थोड़ी देर मे अदा और मै जन्मजात नग्न उन तीनों के सामने खड़े हुए सर्दी से काँप रहे थे। आसिया ने उस रात हम दोनो के जरिए सभी को शैतानी ताकतों से लड़ने और उनको मार भगाने के रहस्य का पर्दाफाश किया था। उस दिन पता चला कि अल्लाह ने मुझे उस शैतान को मारने का हथियार दिया है और अदा के पास वह गुफा थी जहाँ शैतान छिप कर बैठ जाता है। उसी रात शैतान ने आसिया पर हमला कर दिया था।

अन्धेरे से डर लगने के कारण मै हमेशा आसिया के साथ सोता था। उस रात सोते हुए वह अचानक दर्द से तड़पते हुए उठी और अपना पेट पकड़ कर दोहरी हो गयी और उसको करहाते देख कर मै भी उठ गया था। मैने लाईट जलाई और अम्मी को बुलाने के लिए जा रहा था कि तभी मेरी नजर बिस्तर पर पड़ी तो मै चौंक गया। हमारी चादर खून से रंग गयी थी। उसकी शलवार की ओर इशारा करके मैने जल्दी से कहा… आसिया, तुम्हारी उसी जगह से खून निकल रहा है। इस हंगामे मे अब तक सारी चौकड़ी उठ कर बैठ गयी थी और हैरत से आसिया की शलवार से रिसते हुए खून को देख रही थी। उसे दर्द मे तड़पते हुए मै देख नहीं सका तो भाग कर अम्मी को बुलाने के लिए चला गया। अम्मी ने जब आसिया की हालत देखी तो वह मुस्कुरा कर बोली… घबराने की कोई बात नहीं है। वह आसिया को अपने साथ ले गयी और हम चुपचाप एक किनारे मे सहमे हुए खड़े रह गये थे। सबसे ज्यादा अदा और मेरी हालत खराब थी क्योंकि हमे लग रहा था कि अब शैतान का अगला हमला हम पर होगा। उस रात आसिया वापिस नहीं आयी लेकिन शैतान को भगाने के लिए हम सब इकठ्ठे हो कर मौलानाजी की कुछ रटी हुई आयतें बुदबुदाते रहे थे।

सुबह अम्मी ने आकर हमारे सहमे हुए चेहरे देख कर एक नया रहस्योद्घाटन किया कि आसिया बिल्कुल ठीक है और उस पर किसी शैतान ने हमला नहीं किया था अपितु अब वह बच्ची नहीं रही है। अम्मी ने प्यार से समझाया कि हर लड़की जब बचपन से जवानी मे कदम रखती है तो सभी के साथ ऐसा होता है। मेरी तीनों बहने आँखें फाड़ कर कौतुहलवश अम्मी की बातें ध्यान से सुन रही थी। तभी अदा ने पूछा… अम्मी, समीर को खून नहीं निकलेगा? एक पल के लिए अम्मी झेंप गयी और फिर मुझे अपनी बाँहों मे भर कर बोली… यह सिर्फ लड़कियों के साथ होता है। यह बात बता कर उस दिन पहली बार हमारी एकता को अम्मी ने छिन्न-भिन्न कर दिया था। तीनों मेरी ओर अजीब नजरों से देख रही थी। मै अन्दर ही अन्दर खुश था कि मुझ पर शैतान कभी भी हमला नहीं कर सकेगा। दो दिन के बाद रात को आसिया मेरे साथ लेटते हुए बोली… समीर, स्कूल मे तेरी अरबाज से किस बात पर लड़ाई हुई थी। मैने जल्दी से आसिया के मुँह पर हाथ रख कर कहा… तुझे खुदा की कसम है कि यह बात किसी को नहीं बताएगी। आसिया ने फिर दबी आवाज मे पूछा… कसम से किसी को नहीं बताउँगी पर हुआ क्या था? मुझे उसकी बहन आयशा ने बताया कि तेरे साथ उसकी मार पिटाई हुई थी। वह बदमाश लड़का है तू उस से दूर ही रहना। जब मैने कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली… ठीक है तो कल मै अरबाज से पूछ लूँगी। मैने जल्दी से कहा… वह तेरे बारे मे गलत बोल रहा था इसीलिए हमारे बीच लड़ाई हुई थी। …क्या बोल रहा था? …यही कि मेरी मोहब्बत का पैगाम आसिया तक पहुँचा दे क्योंकि अब तेरी बहन जवान हो गयी है। आसिया ने मुझे अपनी बाँहों जकड़ते हुए कहा… वह तुझसे बड़ा है। तुझे डर नहीं लगा। …मै किसी से नहीं डरता। अगर उसने फिर तुम्हारे बारे मे बकवास की तो वह दुबारा पिटेगा। मेरी बात सुन कर आसिया कुछ देर चुप पड़ी रही और मेरा हाथ पकड़ कर अपने दिल पर रख कर धीरे से बोली… समीर, तू भी कसम खा कि हमारे बीच की बात को किसी को नहीं बताएगा। …खुदा की कसम, मरते मर जाऊँगा पर किसी को नहीं बताऊँगा।

कुछ देर तक वह मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ी पड़ी रही फिर अचानक आसिया का हाथ सरक कर नीचे मेरे पाजामे मे छिपे हुए खुदाई हथियार पर पहुँच गया तो मैने झपट कर उसका हाथ पकड़ लिया। वह धीरे से मेरे कान मे फुसफुसा कर बोली… समीर, मेरी गुफा मे शैतान छिप कर बैठ गया है। मुझे डर लग रहा है। प्लीज मुझे मत रोक। एक पल के लिये शैतान के खौफ के कारण मेरा जिस्म अकड़ कर रह गया था परन्तु आसिया का ख्याल आते ही मैने उसका हाथ तुरन्त छोड़ दिया। आसिया एकाएक अपनी कोहनी के बल उठी और मेरे चेहरे पर झुक कर मेरे होंठ चूम कर बोली… तुझे कसम है। कुछ देर तक वह उस हथियार को पजामे के उपर से सहलाती रही और फिर उसने मेरा पाजामा नीचे सरका दिया। वह कभी मेरे गाल को चूमती और कभी मेरे होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने की कोशिश करती। मै चुपचाप उसके हर कार्य मे सहयोग कर रहा था। हर घड़ी उसकी उत्तेजना की तीव्रता बढ़ती चली जा रही थी। एक अजीब से नशे से मेरी आँखें भी बोझिल हो रही थी। एकाएक उसने अपने उभरे हुए सीने को मेरे मुख पर लगा कर कहा… समीर, मेरा दूध पी ले। मैने उसके कुर्ते के उपर से ही उसके अरिपक्व स्तन को अपने मुख मे भर कर उसका दूध सोखना आरंभ कर दिया। एक पल के लिये वह तड़प कर मचली परन्तु फिर उसने मेरा हाथ पकड़ कर शलवार से ढकी हुई अपनी गुफा पर रख कर रगड़ना आरंभ कर दिया। …समीर, शैतान को बाहर निकालने के लिये मेरी गुफा को धीरे-धीरे सहला जैसे मै तेरे हथियार को सहला रही हूँ। जैसा वह कहती गयी, उसी के अनुसार मै करता चला गया। कुछ देर तक उसका साथ निबाहने के बाद मैने कहा… आसिया, वह बाहर निकला कि नहीं। मै थक गया हूँ। एकाएक उसके मुख से अजीब सी सिसकारी निकली और उसका जिस्म काँपने लगा। सब कुछ छोड़ कर मै उठ कर बैठ गया और उसकी ओर देखा तो वह आँखें बन्द किये किसी दूसरी ही दुनिया मे खोई हुई थी। मैने दबे स्वर मे उसे पुकारा… आसिया। उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने उसे पकड़ कर हिलाया। अबकी बार उसने धीरे से आँखें खोली और मुझे देख कर मुस्कुरा कर बोली… शैतान कम्बख्त निकल भागा। यह कह कर उसने मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लिया और चुपचाप लेट गयी। मुझे बस इतना ही समझ मे आया कि मैने आसिया की गुफा मे छिपे हुए शैतान को बाहर निकाल फेंका है। इसी खुशी मे जल्दी ही मै भी अपनी सपनों की दुनिया मे खो गया था।

सुबह मुझे आसिया ने उठाया और अपनी कसम याद दिला कर वह तैयार होने चली गयी। स्कूल मे एक बार फिर मेरा सामना अरबाज से हुआ लेकिन वह अपने दोस्तों के साथ मुझे अनदेखा करके निकल गया था। हमारी लड़ाई की खबर अब तक स्कूल मे फैल गयी थी। मेरे दोस्त भी उस दिन के बाद से मुझे तवज्जो देने लगे थे। शाम को मदरसे से लौटा तो कमरे मे चारों लड़कियों की कमरे मे सभा चल रही थी। मुझे देखते ही सब चुप हो गयी तो मैने अपना बस्ता एक किनारे मे फेंक कर पूछा… क्या बात चल रही है। अदा तुरन्त तुनक कर बोली… समीर, तू स्कूल मे क्या गुल खिला रहा है। अरबाज के साथ क्यों मारपीट की थी? मैने आसिया की ओर घूर कर देखा तो वह सिर हिला कर मना करते हुए बोली… समीर, इनकी भी सहेलियों के भाई तेरे स्कूल मे पढ़ते है। उसी वक्त एक बात मुझे समझ मे आ गयी थी कि स्कूल की बात इनसे छिपाना नामुमकिन है। इलाके मे रहने वाले सभी परिवारों के बच्चे उन्ही स्कूल मे जाते थे जहाँ मै और मेरी बहनें जाती थी। इसका मतलब साफ था कि यह बात जल्दी ही अम्मी और अब्बा तक भी पहुँच जाएगी। मै अभी इसका तोड़ सोच ही रहा था कि तभी नाश्ता लेकर अम्मी ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे देखते ही बोली… समीर, तेरा चेहरा क्यों उतरा हुआ है। आलिया को मौका मिल गया और उसने जल्दी से कहा… अम्मी, यह अब स्कूल मे गुन्डागर्दी करने लगा है। अम्मी ने मेरी ओर देखा लेकिन तभी अदा बोली… अम्मी, वह अरबाज तो हर किसी को परेशान करता है। वह तो अपनी बहनो के साथ भी मार पिटाई करता रहता है। बस फिर क्या था मेरी सारी बहने एक साथ अरबाज की कहानी सुनाने बैठ गयी थी। उस वक्त तो अम्मी ने कुछ नहीं कहा परन्तु रात को सोने से पहले मेरे पास आकर बोली… समीर, ऐसे लड़कों से दूर रहा कर। तुझे कुछ हो गया तो मै जीतेजी मर जाऊँगी। मुझे अपनी बाँहों मे भर कर कुछ देर रोती रही और फिर चुपचाप उठ कर चली गयी। चारों लड़कियाँ चुपचाप सारा दृश्य देखती रही और अम्मी के जाते ही मुझे घेर कर लड़ाई का किस्सा सुनने के लिये बैठ गयी थी। उस रात स्कूल के लड़कों और लड़कियों के कहानी-किस्सों का दौर देर रात तक चलता रहा था।

अगले दो दिन मेरी दिनचर्या सामान्य रही स्कूल से मदरसा और मदरसे से घर परन्तु तीसरे दिन शाम को अरबाज और उसके साथियों ने मुझे मदरसे से अकेले लौटते हुए देख कर घेर लिया था। एक बार फिर से लड़ाई का दौर आरंभ हो गया था। मार खाने के बाद जब तक घर लौटा तब तक मेरी कमीज फट चुकी थी और नाक से खून बह रहा था। अम्मी और नौकरों से छिपते-छिपाते जब मै अपने कमरे मे पहुँचा तो मेरी हालत देख कर चौकड़ी मे हड़कम्प मच गया था। आसिया ने बात संभालते हुए सबको चुप कराया और वह मेरी मरहम पट्टी मे जुट गयी थी। सभी लड़कियों ने अम्मी को न बताने की कसम खाई और फिर मेरी तीमारदारी मे लग गयी। अगले ही दिन हमारी सारी कोशिशों पर पानी फिर गया था। इमरान काजी, अरबाज के अब्बा, अपने बेटे को लेकर शाम को हमारे घर पर आ गये और अब्बा से मेरी शिकायत कर दी कि मैने पत्थर मार कर उनके बेटे का सिर फोड़ दिया है। जब तक मै मदरसे से घर पहुँचा तब तक तो सारा कांड समाप्त हो चुका था। आसिया, आफशाँ, अदा और आलिया ने अम्मी के सामने मेरी पैरवी कर दी थी। मेरी फटी हुई रक्त-रंजित कमीज अम्मी को दिखा कर बताया कि कैसे अरबाज ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर मुझे अकेला देख कर मारा था। उसके बाद तो मेरी अम्मी ने अब्बा के सामने इमरान काजी को ऐसी खरी खोटी सुनायी कि बाप और बेटा चुपचाप वापिस चल दिये थे। मेरे घर मे प्रवेश करते ही अदा मुझे पकड़ कर एक किनारे मे ले गयी और सारी बात बता कर कहा… अम्मी कमरे मे तेरा इंतजार कर रही है। मै डरते-डरते अम्मी के सामने पहुँचा तो मुझे देखते ही मुझसे लिपट कर रोने लगी और काजी परिवार को जम कर कोसने लगी। मै उन्हें समझा ही रहा था कि तभी अब्बा की आवाज मेरे कानों मे पड़ी… अरे मर्द बच्चा है। इस उम्र मे यह सब नहीं करेगा तो कब करेगा। तुम इसे अपने आँचल मे कब तक बांध कर रखोगी। अब्बा दरवाजे पर खड़े हुए दिखे तो झपट कर मै अपनी अम्मी की आढ़ मे चला गया। अब्बा कुछ पल खड़े रहे और फिर बोले… मै बाहर जा रहा हूँ। हो सकता है लौटने मे कुछ दिन लग जाये। बस इतना बोल कर वह वहाँ से चले गये। अम्मी कुछ देर मेरे साथ बैठी रही और फिर प्यार पुचकार कर रसोई की ओर चली गयी थी।

उसी रात आसिया पर एक बार फिर से शैतान ने हमला किया लेकिन इस बार आसिया एक कदम आगे बढ़ गयी थी। अबकी बार उसने अपना कुर्ता और शलवार दोनो ही ढीला करके अपने जिस्म से अलग कर दिया। पहली बार अंधेरे मे मैने उसके बेदाग जिस्म की मुलायम चिकनी त्वचा को छूआ था। नींबू के आकार की गोलाईयाँ और उनके शिखर पर किश्मिश को अपने मुख मे दबा कर उसका रस सोखता तो वह उतना ही फूल कर अकड़ जाता था। एक बैचेनी का एहसास मुझे अपने हथियार मे भी महसूस होने लगा था। मेरे शैतानी मेरुदंड को आसिया कभी सहलाती और कभी हिलाती जिसके कारण अब उसमे ऐंठन आरंभ होने लगी थी। उसकी गुफा के मुख पर मेरा हाथ रखते ही वह मचलती और उसके मुख से दबी हुई आहें और सिसकारी निकलनी आरंभ हो जाती थी। उसकी गुफा से लगातार कुछ पनीला सा द्रव्य बहता रहता था जिसके कारण मेरा हाथ पूरा भीग जाता था। कुछ ही रातों के बाद मुझे शैतान के निकलने की पहचान भी हो गयी थी। जैसे ही वह मचल कर काँपती थी तो मुझे समझ मे आ जाता था कि अब शैतान निकल कर भाग गया है। धीरे-धीरे इस खेल मे हम दोनो ही पारंगत होते चले जा रहे थे। अब मुझे शैतान को भगाने मे मजा आने लगा था। बोर्ड की परीक्षा के कारण आसिया के बारहवीं मे आते ही अम्मी ने आसिया और आफशाँ को अलग कमरा दे दिया और हम तीन ही उस कमरे मे रह गये थे।

इतना सब कुछ होने के बाद भी कभी दिन के उजाले मे न तो मैने न ही आसिया ने इसके बारे मे कोई बात की थी। हम दोनो ही अपनी-अपनी कसमों से बंधे हुए थे। मुझे याद है कि उस के बाद से आसिया और आफशाँ के व्यवहार और वेषभूषा मे भी काफी बदलाव आ गया था। वक्त के साथ मै अपने स्कूल के दोस्तों मे व्यस्त होता चला गया। मेरा ज्यादा समय उनके साथ गुजरने लगा था। मदरसे मे जाकर दीन की शिक्षा लेना लड़कों के लिए अनिवार्य था इसीलिए स्कूल से आकर मुझे दो घंटे मदरसे मे जाकर नमाज और कुरान की आयतें रटनी पड़ती थी। खुत्बे और तकरीरों के दौर मे जिहाद का मतलब समझाया जाता था। अल्लाह की ओर से काफिरों के लिए दिये गये दिशा निर्देशों के बारे मे बताते हुए मौलवी साहब हमे यकीन दिलाते थे कि कैसे इस्लाम की नींव को पुख्ता करने के लिए काफिरों का कत्ल वाजिब है। मेरे लिए मदरसा एक इस्लामी शिक्षा का केन्द्र बन गया था। सच्चे इस्लाम की पैरोकारी करते हुए कभी-कभी मौलवी साहब मदरसे के बच्चों को जिहादी बनने के लिए अलग-अलग कार्य देते थे। कभी कुछ लड़कों को सड़क के पास बनी हुई फौजी चौकी पर जा कर दूर से सिपाहियों को देख कर जमीन पर तीन बार थूक कर वापिस आना होता था। कभी जमीन पर पड़ा हुआ पत्थर उठा कर उनकी चौकी पर फेंकना होता था। कभी पाँच दस बच्चों का झुन्ड बना कर उन फौजियों को गाली देना अन्यथा उनके सामने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा कर वापिस आना होता था। मै भी इस काम मे बड़-चड़ कर हिस्सा लेने लगा था। स्कूल मे वह आजादी नहीं थी लेकिन अपने दोस्तों के बीच बड़ा और निडर होने की यही पहचान बन गयी थी। एक दिन की घटना ने मौलवी साहब और मदरसे से मेरा मोह भंग कर दिया था।

बहुत दिनों से मेरी कक्षा के कुछ लड़के घर लौटते हुए मौलवी साहब के बारे ऊल-जुलूल बातें सुना रहे थे। मुझे तो हर्गिज विश्वास नहीं हुआ कि कोई खुदा का नेक बन्दा ऐसी गलीच हरकत भी कर सकता है। अन्त मे मेरे कुछ दोस्तों ने तय किया कि एक बार खुद देख लिया जाए कि उनकी बात मे कितनी सच्चायी है। तय कार्यक्रम के अनुसार, एक शाम हम मस्जिद के पीछे कुछ दूरी पर बने हुए मौलवी साहब के अहाते मे जाकर छिप कर खड़े हो गये थे। कुछ देर के बाद मौलवी साहब आते हुए दिखाई दिये तो मेरी धड़कन बढ़ गयी थी। उनके साथ एक छोटा लड़का भी चल रहा था। मौलवी साहब उसके सिर पर हाथ फिराते हुए प्यार से बात करते हुए अपने कमरे मे चले गये और दरवाजा भिड़ा कर अन्दर से बन्द कर दिया। कुछ देर हम चुपचाप खड़े रहे और फिर दबे पाँव जाकर भिड़े हुए दरवाजे की झिरी मे से अन्दर झाँकने लगे। उस लड़के को गोद मे बिठा कर मौलवी साहब कुछ समझा रहे थे कि तभी उनकी एक अजीब सी हरकत ने मुझे चौंका दिया था। वह कुछ बोलते हुए धीरे से झुके और एकाएक उन्होने उस लड़के के होंठ को चूम लिया। मै जड़वत खड़ा रह गया था। मै ही क्यों मेरे साथ आये दोनो लड़के भी हैरानी से अन्दर का दृश्य देख रहे थे।

मौलवी साहब ने बात करते हुए एक बार धीरे से उस लड़के को फिर से चूमा और उसके होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगे। पल भर मे मुझे शैतान वाला खेल याद आ गया था। वह लड़का उनकी पकड़ मे छटपटाया परन्तु मौलवी साहब ने उसे कस कर थाम लिया था। अचानक अनवर धीरे से फुसफुसाया… मौलवी के हाथ पर नजर डाल। हमारी नजर उस ओर अनायस ही चली गयी तो देखा कि मौलवी का एक हाथ उस लड़के की झूलती हुई टाँगो के बीच मे उसकी नुन्नी को पकड़ कर धीरे से सहला रहा था। हम लोग एक पल के लिए दरवाजे से पीछे हट गये और जाने लगे तभी फईम ने कहा… यार देख तो ले कि वह मौलवी उस लड़के के साथ और क्या करता है। यह हम तीनों के लिए एक नया अनुभव था। एक बार फिर से तीन जोड़ी आँखे दरवाजे की झिरी पर टिक गयी थी। इस बार का दृश्य देख कर मेरे जिस्म मे अचानक वही पुरानी ऐठन होने लगी थी। मौलवी साहब ने अब तक अपना पजामा खोल कर नीचे गिरा दिया था। वह जबरदस्ती उस लड़के की गरदन पकड़ कर उसके मुख मे अपना लिंग डालने की कोशिश कर रहे थे। वह लड़का रो रहा था लेकिन मौलवी साहब ने जबरदस्ती अपना लिंग उसके मुँह मे ठूस दिया। इससे आगे अब देखना मुझे असहनीय लग रहा था।

मै वहाँ से हटने लगा परन्तु फईम और अनवर के आगे मेरी एक नहीं चली। अन्दर मौलवी साहब की बहशियानी हरकत बड़ती जा रही थी। वह लड़का अब चुपचाप मौलवी साहब के आदेशानुसार अपने मुख का इस्तेमाल कर रहा था। एकाएक मौलवी उठ कर खड़ा हो गया और उसने लड़के को गोदी मे उठा कर तख्त पर उल्टा लिटा कर उसका पाजामा नीचे सरका दिया। वह लड़का चुपचाप तख्त पर पड़ा रहा और मौलवी ने अपने तने हुए अंग को उसके नितंबों के बीच मे फंसाने मे जुट गये थे। हमें अब मौलवी साहब का सिर्फ नग्न पीछे का हिस्सा दिख रहा था। अचानक मौलवी साहब ने अपनी कमर को जोर से धक्का दिया तो उस लड़के की चीख कमरे मे गूँज गयी थी जिसे सुनकर हम तीनों डर के मारे काँप गये थे। मौलवी साहब उस लड़के को कमर से पकड़ कर रौंदने मे लग गये। आगे मुझसे देखा नहीं गया और मै वहाँ से हट कर दूर जाकर खड़ा हो गया था। मेरी कनपटी तड़क रही थी। मेरी साँसे तेज चल रही थी। मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि वहाँ क्या हो रहा था। कुछ देर बाद फईम और अनवर मेरे पास आकर बोले… मौलवी साहब फारिग हो गये है। भागों यहाँ से। हम अपना थैला लेकर वहाँ से सरपट भाग लिये थे। अपने मोहल्ले के पास पहुँच कर रुके और जैसे ही हमारी नजरें मिली तो तीनों एक बार जोर का ठहाका मार कर हँस पड़े थे। सारा तनाव पल भर मे उड़ गया था। अनवर ने धीरे से कहा… बहुत बेगैरत और हरामी मौलवी है। तुम्हें पता है कि वह लड़का कौन है? तुरन्त फईम ने कहा… वह मदरसे के अनाथालय का लड़का है। मैने उसे कई बार मदरसे मे देखा है। मैने अपनी जिज्ञासा मिटाने के लिए पूछ लिया… वह हरामी मौलवी कर क्या रहा था? दोंनो ने मेरी ओर आश्चर्य से देख रहे थे। …समीर तुझे पता नहीं कि वह हरामी क्या कर रहा था? इसी के साथ मेरे दोस्तों ने मेरी अज्ञानता समाप्त करने हेतु स्त्री-पुरुष संबन्धों और जन्नत मे हूरों और गुलाम लड़कों के साथ क्या होता है बताना शुरु कर दिया। देर रात को जब मै अपने घर मे घुसा तब तक एक अबोध बालक से युवक बन गया था।

…समीर कहाँ रह गया था? मुझे देखते ही अम्मी ने पूछा लेकिन मै तो अब किसी दूसरी दुनिया मे था। …अम्मी अब मै बड़ा हो गया हूँ। तुम मेरी चिन्ता मत किया करो। यहीं बाहर नाले पर दोस्तों से बात कर रहा था। …अच्छा जी। तू अभी आठवीं मे आया है और अभी से अपने आप को बड़ा समझने लगा। मै तो तेरी चिन्ता तब भी करुँगी जब तेरे बच्चे बड़े हो जाएँगें। चल कर खाना खाले। अब तक सब खाना खा चुके है। तेरे अब्बा भी आने वाले होंगें। अब्बा का सुनते ही सारी हेंकड़ी पल भर मे निकल गयी और अपनी अम्मी से लिपटते हुए मैने जल्दी से कहा… अम्मी भूख लग रही है। मेरी अम्मी हँसते हुए बोली… अब्बा का नाम सुनते ही नवाब साहब को भूख लगने लगी। यह कह कर वह मुझे लेकर रसोई की ओर चल दी। खाना खा कर मै जब कमरे मे घुसा तो अदा मेरी राह देख रही थी। …तुम कहाँ रह गये थे? मै उसे क्या बताता कि मै क्या सीख कर आया हूँ। …बस दोस्तों के साथ बैठ गया था। अदा मेरे पास आकर खड़ी हो गयी और फिर धीरे से बोली… समीर मै खाने पर तुम्हारा इंतजार कर रही थी। तुमने खाना खा लिया? अचानक मुझे अपनी गलती का एहसास होते ही मैने पुचकारते हुए कहा… मै भूल गया था। मैने खाना खा लिया। यह सुन कर उसका चेहरा उतर गया था। वह चुपचाप बाहर चली गयी और मै वहाँ खड़ा पछता रहा था। आसिया और आफशाँ पर पढ़ाई के दबाव के कारण हमारा मिलना कम हो गया था। आलिया कभी फुदकती हुई हमारे पास आ जाती और कभी उनके पास चली जाती थी। सिर्फ अदा ही हम उम्र होने के कारण मेरे साथ रहती थी। हम साथ खाते और साथ पढ़ते थे। उस रात मुझे लगा कि वह कड़ी भी मैने तोड़ दी थी।

कुछ देर के बाद अदा खाना खाकर कमरे आयी तो मैने उसे पकड़ कर कहा… अदा आज के बाद मै फिर कभी ऐसे नहीं करुँगा। मुझे माफ कर दे। चल बैठ पहले होम वर्क निपटा लेते है फिर मै तुझे आज की कहानी सुनाऊँगा। उसके बाद हम स्कूल का काम करने बैठ गये लेकिन मेरा दिमाग तो मौलवी साहब मे लगा हुआ था। …समीर आज तुम्हें क्या हो गया है? इतनी देर मे तुमने एक अक्षर भी नहीं लिखा है। मै जल्दी से स्कूल का काम निपटाने मे लग गया। एक ही कक्षा मे होने के कारण हम एक दूसरे की पढ़ाई मे मदद करते थे। बहुत बार मै उसका काम कर देता था और बहुत बार वह मेरा काम करने मे मदद कर देती थी। रात को स्कूल का सारा काम सामप्त करके सोने के लिए अपने-अपने बिस्तर मे घुस गये थे। कुछ देर तक आलिया की कहानी सुनने के बाद मैने कहा… सोने दे आलिया। कल सुबह स्कूल जाना है। यह कह कर मै सिर ढक कर सो गया। कुछ देर के बाद किसी के हिलाने से मेरी नींद टूट गयी तो मुझे एहसास हुआ कि अदा मेरे साथ लेटी हुई थी। मैने चौंक कर दबी आवाज मे कहा… तुम यहाँ क्या कर रही हो। क्या हुआ? …समीर तुमने कहा था कि तुम बताओगे कि आज क्या हुआ था। एकाएक मेरे मुख को ताला लग गया था। …बोल न क्या हुआ था? मुझे मालूम था कि यह बिना सुने मेरा पीछा नहीं छोड़ेगी इसलिए मैने धीरे से कहा… मेरी कसम खा कर बोल कि यह बात किसी को भी नहीं बताएगी। उसने सिर उठा कर एक बार मेरी ओर देखा फिर कसम दोहरा कर बोली… चलो बताओ। एक पल रुक कर मैने मौलवी साहब की कहानी शुरु से आखिर तक उसे सुना दी थी। वह चुपचाप सारी कहानी सुन कर उठी और अपने बिस्तर पर जाकर सो गयी। उस कहानी को दोहरा कर एक बार फिर से मेरे जिस्म मे तनाव उत्पन्न होना आरंभ हो गया था।

अगले कुछ दिन मै स्कूल मे खाली समय मे अपने दोस्त फईम और अनवर के साथ बैठ कर उनके अधकचरे स्त्री-पुरुष संबन्धी ज्ञान को लेकर अपनी ज्ञान वृद्धी मे जुट गया था। उस दिन के बाद ही मैने अम्मी से मदरसे जाने के लिए मना कर दिया था। उन्होंने मुझ पर ज्यादा जोर नहीं दिया परन्तु घर पर अपने साथ नमाज पढ़ने के लिए बिठाना आरंभ कर दिया था। अब दीन की तालीम मुझे अम्मी देने लगी थी। एक दिन हमारे घर पर बिजली गिरी जब अब्बा ने दहाड़ते हुए मुझे पुकारा… समीर इधर आईए। पूरे घर मे हड़कम्प मच गया था। आसिया, आफशाँ, अदा और आलिया दौड़ती हुई आंगन मे इकठ्ठी हो गयी थी। मै उनकी आढ़ मे खड़ा हुआ डर से काँप रहा था। तभी अम्मी रसोई से निकल कर मेरे पास आयी और मेरा हाथ पकड़ कर बोली… चल मेरे साथ। एक बार फिर से अब्बा की दहाड़ गूँजी… समीर। अम्मी उनके कमरे मे घुसती हुई बोली… क्या हुआ? मै उनकी आढ़ लेकर खड़ा हो गया था। मेरी नजर सामने पड़ी तो मौलवी साहब बैठे हुए दिखे तो मै और ज्यादा घबरा गया था। …समीर मेरे सामने आओ। मेरी अम्मी मेरा हाथ पकड़ कर खड़ी रही और इस बार वह बोली… क्या हुआ पहले बताईए? अम्मी को इस तरह से बोलते हुए देख कर अब्बा की आवाज मे हल्की सी नरमी आयी… यह पिछले पाँच दिन से मदरसे नहीं जा रहा है तो आखिर यह कहाँ जाता है?  …कहीं नहीं जा रहा है। घर मे रहता है और मेरे से दीन की तालीम ले रहा है। क्यों क्या तालीम लेने के लिए इसका मदरसे जाना जरुरी है? अब्बा चुपचाप मौलवी साहब की ओर देखने लगे तो मौलवी साहब गला खंखारते हुए धीरे से बोले… बीबी दीन की तालीम कहीं से भी मिल सकती है। परन्तु उस तालीम से जुड़ी हुई कुछ खास बातें जो इस्लाम मे हुजूर ने सिर्फ मर्दों के लिए बताया है वह उसे सिर्फ मदरसे मे ही मिल सकती है। इसीलिए मैने बट साहब से अर्ज किया था कि उनके साहेबजादे का मदरसे मे आना जरूरी है।

मेरी अम्मी ने पहली बार मेरे अब्बा के सामने खिलाफत का झंडा बुलन्द करते हुए कहा… मौलवी साहब आपका कहना सही है परन्तु उस तालीम को वह कभी भी ले सकता है। फिलहाल मै उसे तालीम दे रही हूँ वही काफी है। मै जानती हूँ कि आप मदरसे मे इन बच्चों से दीन की तालीम की आढ़ मे क्या करवा रहे है। मै नहीं चाहती कि यह हिन्दुस्तानी फौजियों को जा कर पत्थर मारे या उन्हें गाली दे। कल को इसे कुछ हो गया तो मै क्या करुँगी। फिर अम्मी ने अपना आखिरी और सबसे पुख्ता वार अब्बा पर आँसू बहाते हुए किया… कसम है आपको। मुझे अपने से चिपका कर बोली…मै अपने इकलौते बेटे को इनके पास जिहादी बनने तो हर्गिज नहीं भेजूँगी। यह बोल कर मेरा हाथ पकड़ अम्मी मुझे खींचते हुए कमरे से बाहर निकल आयी थी।  मेरे अब्बा चुपचाप सारी बात सुन कर मौलवी साहब के साथ अन्य बात करने मे व्यस्त हो गये थे। मै अपनी अम्मी के साथ चलते हुए खुशी से हवा मे कूदा… मेरी प्यारी अम्मी। एक साथ चारों बहनें मुझसे लिपट गयी और अम्मी को हँसते हुए पकड़ कर झूल गयी थी। एक ही पल मे अब्बा का सारा खौफ सभी के जहन से निकल गया था। सभी के समझ मे आ गया था कि अब्बा से बचने के लिए अम्मी से बड़ी हमारे पास कोई ढाल नहीं है।

दिन गुजरते चले गये और हम सब अपनी स्कूली पढ़ाई मे व्यस्त हो गये थे। हमारे मोहल्ले के बाहर जिहाद जोर पकड़ता जा रहा था। हमारे स्कूल के लड़के भी सड़को पर उतर कर भारतीय फौज पर पत्थरबाजी करने लगे थे। अरबाज बारहवीं कक्षा के दल का मुखिया बन गया था। आये दिन वह अपने साथियों के साथ निकल कर स्कूल के अन्य लड़को को जिहादी फरमान सुना दिया करता था। स्कूल अब जिहादी अड्डा बन गया था। टीचर और अन्य स्टाफ भी मूक दर्शक बन कर बैठ गया था।

एक दिन अरबाज अपने कुछ साथियों के हमारी कक्षा मे आकर बोला… आज स्कूल की छुट्टी है और सभी बच्चे यहाँ से मदरसे चौक के लिये निकलेंगें। इतना बोल कर उसने अपने एक साथी को इशारा करके बोला… असद, अपनी देखरेख मे इस क्लास के सभी लड़को को वहाँ पर एकत्रित करने कi जिम्मेदारी तेरी है। बस इतना बोल कर वह असद को वहीं छोड़ कर अपने बाकी साथियों को लेकर बाहर निकल गया था। कुछ ही देर मे स्कूली बच्चों की भीड़ मदरसे चौक की ओर चल पड़ी थी। स्कूली बच्चों की भीड़ कुछ ही देर मे चौक पर एकत्रित हो गयी थी। मै भी अपने साथियों के साथ भीड़ से हट कर एक किनारे मे खड़ा हो गया था। कुछ ही मिनट बीते थे कि इन्डियन आर्मी के काफिले की अगवानी करने वाली आर्मी की जीप हूटर बजाते हुए आती हुई दिखाई दी तो एक पल के लिये बच्चों भगदड़ मच गयी थी। जब तक जीप चौराहे पर पहुँची तब तक सारी सड़क पर स्कूली बच्चे इधर-उधर भागते हुए दिख रहे थे। वह जीप चौराहे से कुछ दूरी पर आकर रुक गयी और उसके साथ ही फौज का काफिला भी एकाएक रुक गया था। जब तक किसी के समझ मे आता तब तक अचानक छ्तों से पत्थर बरसने आरंभ हो गये थे। एकाएक फौजी दस्ता ट्रक से कूद कर चौराहे की ओर दौड़ा कि तभी एक पेट्रोल बम्ब हवा मे तैरते हुए उनके सामने गिरा और फिर सड़क पर आग फैल गयी थी। फौजी कमांडर लगातार हवा मे फायर करते हुए अपने माइक पर सड़क खाली करने का निर्देश देने लगा और फौजी दस्ता अपनी गन हमारी दिशा मे तान कर बढ़ने लगा। मेरा जिस्म पत्थरा कर जड़वत खड़ा रह गया था।

…समीर भाग यहाँ से। मेरे कान मे अनवर की आवाज सुनायी दी तो मै होश मे आ गया और अपने कदम पीछे खींचते हुए हम मुड़ कर स्कूल की दिशा मे भाग लिये थे। मेरे कानों मे गोलियाँ चलने की आवाज निरन्तर गूंज रही थी। मुझे याद नहीं कि कैसे परन्तु अपने स्कूल के पास पहुँच कर ही हम रुके थे। मेरे दोनो साथियों की हालत भी कुछ मेरी तरह थी। हमारे चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी और सारा जिस्म तनाव से काँप रहा था। स्कूल पहुँचते ही हम धम्म से धरती पर बैठ गये थे। हमारी सांस उखड़ती हुई लग रही थी। …भाई आज बाल-बाल बच गये। अकरम ने मेरी पीठ पर धौल जमा कर काँपती हुई आवाज मे कहा लेकिन मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था। अपने आप को सयंत करके हम अपने-अपने घर की ओर चले गये थे। उस शाम सब कुछ बदल गया था। अब फौज भी पत्थरबाजों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने लगी थी। ज्यादा हंगामा होने के कारण अब वह गोलियाँ भी चलाने लगे थे। आये दिन कहीं बम्ब फटता और कहीं पत्थरबाजी हो जाती थी। परिणामस्वरुप किसी न किसी घर मे आये दिन मौत का मातम मन रहा होता था अन्यथा कर्फ्यु लग जाता था। भारतीय फौजी कार्यवाही भी लगातार बढ़ती जा रही थी। हम भी स्कूल से लौटते हुए कभी-कभी उस जनाजे मे शामिल हो जाते थे। यह सब देख कर मेरे मन मे भी फौज के प्रति रोष भरता जा रहा था। अब्बा भी राजनीतिक गलियारे मे कदम रख चुके थे और कट्टर इस्लामिक पृथकवादियों के समूह मे जाने माने नाम बन कर उभर रहे थे। हर जुमे को उनकी तकरीर किसी न किसी मस्जिद मे होने लगी थी। रोजाना वह कौम के मुद्दों पर बोलते हुए लोकल चैनल पर दिख जाते थे। उनकी इस व्यस्तता के कारण हम पाँचों खुश थे क्योंकि हमारे दिमाग से अब्बा के डर का साया हट गया था।