काफ़िर-2
इतने अशांत माहौल मे भी हमारी स्कूली जिन्दगी
का अपना रोमांच था। कुछ ही दिन मे उस पत्थरबाजी की घटना को भुला कर अपने ही ख्वाब संजोने
मे जुट गये थे। उस घटना के बाद अरबाज के फरमानो को हम अनसुना करने लगे थे। जबसे मौलवी
साहब की असलियत सामने आयी थी तभी से “लड़की” हम तीन दोस्तों के बीच चर्चा का मुख्य विषय बन गया
था। कौनसी लड़की का किस लड़के के साथ दोस्ताना है और किस लड़की के पीछे कौनसा लड़का लगा
हुआ है। आसिया हमेशा मेरे दिमाग मे किसी कोने मे हमेशा जीवन्त रहती थी। फईम और अनवर
आये दिन कभी अपने मोहल्ले की खबर और कभी मेरे मोहल्ले की खबरें सुनाया करते थे। एक
दो बार हम टोह लेने के लिये शालीमार बाग और कभी निशात बाग भी घूमने के लिये निकल जाते
थे। पेड़ो की आढ़ मे बैठे हुए युगल जोड़े और उनकी हरकते देखने के बाद जब घर लौटते तब मन
ही मन अपने लिये हवाई किले बनाने मे जुट जाते थे। एक बार अरबाज को भी हमने निशात बाग
मे अपने मोहल्ले के डाक्टर इस्लाम की लड़की जरीना के साथ देखा था। उस वक्त उसने मुझे
देख कर अनदेखा कर दिया था परन्तु उसी शाम लौटते हुए उसने मुझे रास्ते मे रोक कर कहा…
समीर, इस बात को राज रखना। आसिया या आफशाँ को इसका पता नहीं चलना चाहिये। उस लड़ाई के
बाद उसने पहली बार मुझसे बात की थी। …नहीं भाई। मेरी ओर से आप बेफिक्र रहिये। यह बोल
कर मै अपने घर चला आया परन्तु उसके बाद मेरे दिल मे भी एक नयी चिंगारी सुलग उठी थी।
आसिया की बोर्ड की परीक्षा के कारण आसिया और
आफशाँ ने कोचिंग जाना आरंभ कर दिया था। अम्मी ने उन पर बाहर जाने की मनाही लगा दी थी
इसी कारण उनकी सहेलियों का हमारे घर मे तांता लगा रहता था। इसी प्रकार आफशाँ की सहेलियाँ
भी कोचिंग के सवाल हल करने के लिये आने लगी थी। मेरे दोस्त फईम और अनवर
हमारे घर से कुछ दूरी पर सड़क के किनारे नाले पर अकसर बैठे हुए दिखाई दे जाते
थे। एक दिन स्कूल से लौटते हुए फईम ने कहा… समीर, तेरे यहाँ परवीन आती है। क्या तू
मेरा एक पैगाम उस तक पहुँचा देगा। पहली बार मुझे उसने एक रास्ता दिखाया था जिसके द्वारा
मुझे भी कुछ कर गुजरने का मौका मिल सकता था। …मुझे नहीं पता कौन परवीन है। यहाँ तो
आये दिन कोई न कोई आया रहता है। इसका हल भी फईम ने निकाला और लड़कियों के लौटने के टाइम
पर उसने मुझे नाले पर बुला लिया था। कोचिंग क्लास के बाद आसिया और आफशाँ अपनी सहेलियों
के साथ लौटी तो फईम ने परवीन को इशारे से दिखाते हुए कहा… वह परवीन है। मैने भी नोट
किया कि परवीन ने एक उड़ती हुई नजर हम तीनो पर डाली फिर खिलखिला कर हँसती हुई आसिया
से बात करते हुए हमारे घर मे चली गयी थी। …यार परवीन तो आसिया की सहेली है। तुझसे तो
उम्र मे बड़ी है। भला वह क्यों तेरे चक्कर मे आएगी। …नहीं भाई, बहुत दिनों से वह लाईन
दे रही है। तूने देखा था। समीर मेरा पैगाम उस तक पहुँचा दे। …यार अगर आसिया को पता
चल गया तो वह मेरा जीना हराम कर देगी। न भाई मै नहीं कर सकता। तू कोई और चक्कर चला।
यह बोल कर मै तुरन्त वापिस अपने घर मे आ गया था।
मै अपने कमरे मे अकेला बैठ कर अपने लिये योजना
बना रहा था कि अचानक आसिया की आवाज मेरे कान मे पड़ी… समीर। मैने चौंक कर देखा तो आसिया
दरवाजे पर खड़ी हुई थी और गुस्से से मेरी ओर देख रही थी। …क्या हुआ? आसिया कमरे मे आयी
और दरवाजा बन्द करके मेरे साथ बैठते हुए बोली… उन लफंगों के साथ वहाँ नाले पर बैठ कर
क्या कर रहा था? पहली बार मे ही मेरी चोरी पकड़ी गयी थी। मैने हकलाते हुए कहा… वह मेरे
साथ पढ़ते है इसीलिये मिलने आये थे। …तू झूठ मत बोल। परवीन बता रही थी कि तुम लोग उसको
रास्ते मे छेड़ते हो। कुछ शर्म लिहाज है कि वह भी समाप्त हो गयी है। …नहीं आसिया। तूझे
कोई गलतफहमी हुई है। आज पहली बार मै वहाँ बैठा था। इतने दिनो से तुम और आफशाँ कोचिंग
से लौटती हो तो क्या तुमने या आफशाँ ने मुझे
वहाँ बैठे हुए देखा है। परवीन झूठ बोल रही है। मैने जल्दी से अपनी सफाई उसको दी तो
वह एक पल के लिये सोचने पर मजबूर हो गयी थी। …समीर, चल मेरे साथ। मेरा हाथ पकड़ कर वह
लगभग खींचते हुए अपने कमरे मे ले गयी। उस वक्त कमरे मे उसकी दो सहेलियाँ बैठी हुई थी।
उनमे से एक परवीन भी थी। …क्यों परवीन क्या यह लड़का तूझे परेशान करता है? परवीन के
चेहरे पर कोई भाव नहीं था परन्तु मेरी साँस गले मे अटक गयी थी। कुछ दूर बैठी आफशाँ
और उसकी तीन सहेलियाँ भी अब मुझे घूर रही थी।
परवीन ने मेरी ओर देख कर कहा… यह तू किसको
पकड़ लायी। मैने एक लम्बी साँस छोड़ कर आसिया की ओर देखा तो वह अभी भी मुझे घूर रही थी।
एकाएक आफशाँ खड़ी होकर बोली… यह हमारा भाई समीर है। परवीन ने एक नजर मुझ पर डाल कर कहा…
नहीं यार, यह नही। मैने जैसे ही कुछ बोलने के लिये मुँह खोला कि तभी आसिया बोली… समीर
तू जा और अब से अगर तू मुझे उन लफंगों के साथ नाले के आसपास भी दिखा तो अब्बा को बता
दूँगी। अब्बा का नाम सुनते ही मेरी सारी दीवानगी एक पल मे ही काफुर हो गयी और उल्टे
पाँव अपने कमरे की ओर चल दिया। वहाँ पहुँच कर मन ही मन फईम को गाली दी और फिर चुपचाप
बैठ गया। आज तो बाल-बाल बच गया था। अदा कमरे मे आते ही बोली… समीर,आज स्कूल का काम
नहीं करना? मै तो पहले से फुँका बैठा हुआ था। …जा तू अपना काम कर। मुझे नहीं करना।
इतना कह कर मै कमरे से बाहर निकल गया। घर से बाहर निकल कर मै मुख्य सड़क की ओर चल दिया।
आसिया पर रह-रह कर मुझे गुस्सा आ रहा था कि किस तरह उसने मुझे अपनी सभी सहेलियों के
सामने शर्मिन्दा किया था। मै तो यह योजना बना रहा था कि उनके जरिए उनकी सहेलियों के
साथ जान पहचान बढ़ाउँगा लेकिन इस घटना के बाद तो मेरे सारे रास्ते बन्द हो गये थे। कुछ
देर चलते-चलते जब थक गया तो वापिस घर की ओर चल दिया।
अंधेरा हो चुका था और सड़क पर थोड़ी-थोड़ी देर
मे इक्का-दुक्का गाड़ियाँ रौशनी बिखेर कर चली जाती थी। पैदल चलने के कारण दिमागी हलचल
कुछ हद तक शांत हो गयी थी। जैसे ही अपने घर की सड़क के मोड़ से निकला तो मेरी नजर नाले
पर पड़ी जहाँ आसिया अकेली बैठी हुई थी। मै चलते हुए उसके साथ जाकर बैठ गया। …तुम यहाँ
कैसे बैठी हुई हो? …तुम्हारा इंतजार कर रही थी। …क्यों? अचानक वह मेरी ओर मुड़ी और मुझे
अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोली… सौरी। मुझे माफ कर दे समीर। मैने तुझे उनके साथ यहाँ बैठे
हुए देखा तो मुझे अच्छा नहीं लगा। उन लफंगों को मेरी सभी सहेलियाँ जानती है। …आसिया,
वह दोनो मेरे साथ स्कूल मे पढ़ते है। आज वह मेरे पास एक काम के लिये आये थे लेकिन मैने
उन्हें उसी वक्त मना कर दिया था। तेरी सहेली परवीन भी कोई दूध की धुली हुई नहीं है।
वह भी उनकी छिछोरी हरकतों पर प्रतिक्रिया देती रहती है। एक पल के लिये आसिया ने मेरी
आँखों मे झाँका और फिर धीरे से बोली… समीर मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि दूसरे क्या करते
है। मुझे तुझसे मतलब है। कम से कम तू ऐसी छिछोरी हरकत तो किसी के साथ मत करना। चल घर
चलें। इतना बोल कर वह उठ कर खड़ी हो गयी तो एकाएक मैने उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बिठाते
हुए बोला… आसिया, एक बात बहुत दिनों से कहना चाहता था लेकिन कभी हिम्मत नहीं हुई। आज
पहली बार बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटा कर बोल रहा हूँ। तुमने मुझे शैतान को भगाने का
खेल तो सिखा दिया परन्तु अब वही खेल मुझे निरन्तर परेशान कर रहा है। आसिया मेरा हाथ
पकड़ कर कुछ देर चुप बैठी रही और फिर निगाहें झुका कर धीरे से बोली… समीर, बचपन की शैतानियों
को वक्त के साथ भूल जाना अच्छा होता है। उसको दिल से लगाने की जरुरत नहीं है। उसकी
बात सुन कर मेरा दिल टूट गया और मैने पूछा… क्या तुम भूल सकती हो? …कोशिश तो कर ही
सकती हूँ। अगर नाकामयाब हो गयी तो अभी भी तुम मेरे बिस्तर पर ही सोते हो। मै वापिस
वहीं आ जाऊँगी। …मेरा क्या? …वही जो मैने कहा है। तुम भी कोशिश करके देख लो। अगर नाकामयाबी
मिले तो मै भी वहीं पर मिलूँगी जहाँ तुम्हें छोड़ा था। यह कह कर वह उठ गयी और मेरा हाथ
पकड़ कर खींचते हुए बोली… चलो वर्ना शैतानों की तिकड़ी हमे ढूँढते हुए यहाँ आ जाएगी।
हम दोनो वापिस घर की ओर चल दिये।
रात को अकेले बिस्तर पर लेटा हुआ मै आसिया
की बात सोच रहा था। उसकी बात मे कहीं न कहीं सच्चायी थी परन्तु वह चिंगारी लगातार जोर
पकड़ रही थी। क्या करुँ? इसी पेशोपश और उहापोह मे दिन निकलते जा रहे थे। पढ़ाई के साथ
सेब के कारोबार का भार भी बढ़ता जा रहा था। अम्मी के कहने पर मैने जीप चलानी सीख ली
थी। अब मेरा काम पढ़ाई के साथ अम्मी के कारोबार मे हाथ बटाना भी हो गया था। समय का पहिया
किसी के लिये रुकता नहीं है। इन्हीं सब हालात मे आसिया ने अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी
करके डाक्टरी पढ़ने के लिए कश्मीर से बाहर निकलने का फैसला कर लिया था। अब्बा ने बहुत
रोकने की कोशिश की परन्तु अम्मी के आगे उनकी एक नहीं चली। आसिया मेडिकल की पढ़ाई करने
के लिए बैंगलोर चली गयी और अब आफशाँ हमारी लीडर बन गयी। आसिया के जाने के बाद आफशाँ
के साथ अदा को रहने के लिये कहा परन्तु न जाने क्या हुआ कि अदा के बजाय आलिया उसके
कमरे मे रहने के लिये चली गयी थी। बाद मे अम्मी से पता चला था कि चुंकि हम दोंनो को
दसवीं की परीक्षा साथ देनी थी इसीलिए अदा के बजाय आलिया को आफशाँ के कमरे मे भेज दिया
था। मै और अदा दसवीं की परीक्षा की तैयारी मे जुट गये थे। सुबह स्कूल, दोपहर को कोचिंग
और रात को होम वर्क मे उलझ कर हम एक साल दुनिया को भूल गये थे। यहीं हाल आफशाँ का भी
बारहवीं के कारण हो गया था। दसवीं की बोर्ड परीक्षा देने के बाद पढ़ाई का सारा दबाव
सिर पर से हट गया तो हमारे बीच एक बार फिर से पुराना रिश्ता मजबूत हो गया था। चारों
देर रात तक बैठ कर गप्पे मारते थे और जब अब्बा कहीं बाहर गये होते तो हम सभी अम्मी
के साथ किसी बाग का दौरा करने चले जाते थे। छुट्टियाँ ऐसे ही बीत रही थी।
ऐसा नहीं था कि कश्मीर घाटी के हालात सामान्य
हो गये थे। आये दिन फौजी कार्यवाही की खबरे सुनाई दे जाती थी। पत्थरबाजी की घटना भी
आम हो गयी थी परन्तु अरबाज के जाने के बाद से स्कूल का माहौल शान्त हो गया था। वैसे भी आये
दिन पत्थरबाजी व बम्ब विस्फोट के कारण शहर के ज्यादातर हिस्से मे कर्फ्यु लगा रहता
था जिसके कारण स्कूल भी अकसर बन्द रहा करते थे। इसके चलते हमारी पढ़ाई ज्यादातर घर या
कोचिंग क्लास मे हुआ करती थी। एक प्रकार से हम चारों बच्चों ने अपने आप को इस प्रकार
की अराजकता से दूर कर लिया था। अब्बा की राजनीतिक व्यस्तता के कारण सेब के बागों की
देखरेख का भार अब अम्मी पर आ गया था। पढ़ाई के बाद मुझे जो कुछ समय मिलता उसमे अम्मी
के साथ सेब के बागों की देखरेख मे निकल जाया करता था। फईम और अनवर से भी बाहर मिलना
लगभग बन्द हो गया था। इस कारण मेरा जीवन अपने घर तक सिमट कर रह गया था।
एक रात अदा उठ कर मेरे पास आकर बोली… समीर
तुम्हें याद है अपने मौलवी साहब की कहानी? रात के समय अब तक सब सो चुके थे। हम दोनो
अपना होम वर्क समाप्त करके सोने की तैयारी कर रहे थे कि एकाएक उसका यह सवाल सुन कर
मै उठ कर बैठ गया था। …अचानक अदा तुम्हें इसकी याद कैसे आ गयी? …नहीं, पूछना तो मै
पहले भी चाहती थी परन्तु…बोलते-बोलते वह चुप हो गयी थी। उसका हाथ पकड़ कर मैने उसे अपने
पास बिठा कर पूछा… परन्तु क्या? …यही कि भला दो मर्द यह कैसे कर सकते है। यह तो इस्लाम
मे हराम है। अचानक बोलते हुए उसकी आँखों मे मुझे एक शरारती चमक दिखाई दी तो मै सावधान
हो कर बोला… नहीं… बिल्कुल सोचना भी नहीं। वह मुस्कुरा कर बोली… प्लीज एक बार करके
देखते है। …नहीं, यह हमारे बीच मे हराम है। यह गुनाह है। अबकी बार वह तुनक कर बोली…
कोई बात नहीं तो फिर मै तुम्हारे दोस्त फईम से इसका अनुभव ले लेती हूँ। यह बोल कर वह
उठ कर अपने बिस्तर की ओर जाने लगी तो मैने उसको पकड़ कर बिठा लिया। …यह बात गलत है अदा।
फईम अच्छा लड़का नहीं है। …कोई बात नहीं फिर अनवर के साथ करके अनुभव कर लूँगी। मुझे
गुस्सा आने लगा था। मैने गुस्से मे उसे धक्का देकर कहा… ठीक है। तुम्हें जिसके साथ
करना है करो पर अब से मुझसे बात नहीं करना। यह कह कर मै अपना सिर लिहाफ से ढक कर लेट
गया।
वह वापिस नहीं गयी अपितु कमरे की लाईट बुझा
कर मेरा लिहाफ हटा कर मेरे साथ आकर लेट गयी थी। मुझ से लिपटते हुए उसने मेरे कान मे
फुसफुसा कर बोली… मै तो तुम्हारे साथ करके देखना चाहती थी। उसकी गर्म साँसे मेरे कान
से टकरा रही थी और मुझे गुदगुदी हो रही थी। एक एहसास जो आसिया के जाने के बाद मैने
दबा दिया था वह एक बार फिर से सिर उठाने लगा। वह चिंगारी जिसे मैने राख के ढेर के नीचे
दबा दी थी उसे हवा लगने से वह दुबारा सुलग उठी थी। …समीर, उसने पहले क्या किया था?
अपनी कोहनी के बल लेट कर मैने अदा की ओर देखा तो वह बड़ी उम्मीद से मुझे देख रही थी।
…बस एक बार। वह कुछ नहीं बोली बस उसने अपनी पल्कें झपका दी थी। मै धीरे से उसके चेहरे
पर झुक गया और अपने होंठों को एक पल के लिए उसके होंठ को छू कर हट गया। उसके कांपते
होंठों का क्षणिक स्पर्श ने मेरे जिस्म मे अजीब सी हलचल मचा दी थी। एक अनजाने एहसास
से हम दोनो की साँसे तेज चल रही थी और दिलों की धड़कन बढ़ गयी थी।
अदा ने अपनी साँस को काबू किया और फिर बोली…
समीर क्या उन्होंने बस इतना ही किया था। …नहीं। इतना बोल कर मै दुबारा उसके चेहरे पर
झुक गया था। मैने आहिस्ता से उसके होंठों पर अपने होंठ टिका दिये और धीरे से अपनी जुबान
उसके होंठ पर फिराया तो उसके होंठ स्वत: ही धीरे से खुल गये थे। मेरे होंठों मे उसका
निचला होंठ अनायस ही आ गया जिसे फँसा कर मैने उसका रस सोखना शुरु कर दिया। आसिया के
होंठों की याद एकाएक ताजा हो गयी थी। प्रकृति के अपने नियम होते है। उसकी बाँहे मेरे
चेहरे के इर्द-गिर्द कस गयी। वह भी उत्तेजना से ओत-प्रोत होकर मेरे होंठ को अपने मुख
मे दबा कर रस सोखने की कोशिश मे जुट गयी। मेरी कोहनी मेरा भार नहीं उठा पा रही थी एकाएक
मै भरभरा कर उस पर गिर गया। सारा नशा पल भर मे उतर गया और अपने आप को उससे अलग होने
के लिए जैसे ही मैने उसके उभरे हुए सीने पर हाथ टिकाया उसके मुख से वही चिरपरिचित गहरी
सिसकारी निकल गयी थी। एकाएक मै एक कुशल पुरुष की तरह उस पर कुछ देर के लिये छा गया।
आसिया के बजाय अदा के साथ पहला चुम्बन और उसके पुष्ट सीने का स्पर्श एक सवर्गिम एहसास
था।
हम चुपचाप लेट गये और काफी देर तक किसी ने
कुछ नहीं बोला। आखिरकार मैने कहा… अदा। …हुँ। …क्या हुआ मुझसे कोई गलती हो गयी थी?
उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मैने उचक कर उसकी ओर देखा तो वह अपनी स्वप्निल
दुनिया मे डूबी हुई थी। धीरे से उसे हिला कर मैने कहा… क्या हुआ। अचानक वह मुझसे लिपट
गयी और पागलों की तरह मेरे गालों को चूमने लगी। एक पल के लिए उसमे आये हुए बदलाव को
देख कर मै डर गया लेकिन फिर आसिया की याद एक बार फिर ताजा हो गयी थी। जब उसका तूफान
शांत हो गया तो धीरे से उसे अपने से अलग करके लेट गया। …समीर। …हुँम। …यह तुमने पहले
भी किसी के साथ किया है? मैने तमक कर कहा… पागल हो गयी हो क्या, भला मै यह किसके साथ
कर सकता हूँ। वह मुझे चिड़ाने के मकसद से बोली… पता नहीं, हो सकता है कि फईम या अनवर
के साथ तुमने किया हो। …अदा तुम सच मे पागल हो गयी हो। मेरी जिन्दगी मे मैने पहली बार
यह तुम्हारे साथ किया है। तुमने बताया नहीं कि तुम्हें कैसा लगा? एक बार फिर से मुझसे
लिपटते हुए वह बोली… तुमने सही कहा कि मै पागल हो गयी हूँ। अभी भी तुम्हारे होंठों
का स्वाद महसूस कर रही हूँ। …मै भी ऐसा ही कुछ महसूस कर रहा हूँ। …फिर मौलवी साहब ने
क्या किया? अचानक उसका हाथ सरक कर नीचे मेरे उत्तेजित अंग पर पड़ा तो मै चौंक कर उठ
कर बैठ गया।
…नही अदा, इससे आगे नहीं। मैने उसका हाथ पकड़
लिया परन्तु वह लगातार उसे पकड़ने का प्रयास कर रही थी। वह धीरे से बोली… क्या यह पहली
बार है जब मैने इसे छुआ है? भूल गये क्या जब आसिया ने इसको पकड़ कर हमे शैतान को जिस्म
से निकालना सिखाया था। उसके निरन्तर हठ के सामने मै कमजोर पड़ने लगा था। एक कमजोर क्षण
पर मैने उसका हाथ छोड़ दिया… तुम्हें जो करना है कर लो। छूट मिलते ही अदा ने उत्तेजना
से तन्नाते हुए अंग को अपनी मुठ्ठी मे जकड़ लिया और धीरे से मेरे कान मे बोली… यह इतना
बड़ा कब हो गया? मै चुप हो कर पड़ गया जैसे मैने अपने आप को उसके हवाले कर दिया था।
…मुझे देखना है। यह कहते हुए उसने मेरे पाजामे को ढीला करके नीचे सरका दिया। कपड़ों
की कैद से आजाद होते ही वह मस्त अजगर की भाँति लहराता हुआ अपने पूरे आकार मे उसके सामने था। अदा ने धीरे से पहले झूमते हुए
अंग को छुआ और फिर उसने उसको अपनी उँगलियों मे जकड़ लिया। एक बिजली का करंट मेरे जिस्म
मे दौड़ गया था। …समीर। …हुँ। मुझे इसे देखना है। …नहीं। इतना हो गया बस। मेरी आवाज
मे इस बार दृड़ता देख कर वह चुप हो गयी और धीरे से अपनी उंगलियों से सहलाते हुए मेरे
अंग की पूरी लंबाई नापने लगी। मै आँखे बन्द किये उसके हर स्पर्श से उत्पन्न होती हुई
तरंग को महसूस कर रहा था। अचानक वह उठ कर बैठ गयी और झूमते हुए सिर को स्थिर करके धीरे
से चूम लिया। मेरे उपर एक नशा हावी होता जा रहा था। उसके होंठ धीरे से खुले और उत्तेजना
से तन्नाये हुए अजगर के सिर को अपने मुँह मे लेकर अपनी जुबान से वार करने लगी। यह सब
मेरे लिये नया अनुभव था। उसके दो तरफा वार मेरे लिए असहनीय होता जा रहा था। पता नहीं
एकाएक मुझे लगा कि मेरी सारी इंद्रियाँ फट पड़ेंगी तो मैने उसका सिर अपने हाथों मे पकड़
कर जबरदस्ती नीचे की ओर धकेल दिया तभी मेरे जिस्म ने एक झटका लिया और मेरे अंग से सारी
ऊर्जा एक ज्वालामुखी के लावे की तरह बहना आरंभ हो गयी। अभी भी मेरा जनानंग अदा की मुँह
और ऊँगलियों मे फँसा हुआ था। हर स्पन्दन के साथ मेरा अंग लावा उगलता चला रहा था। कुछ
देर के बाद सब कुछ शांत हो गया था। मेरी सारी जिस्मानी उत्तेजना भी समाप्त हो गयी थी।
अदा भी हैरत से सब कुछ होता हुआ देख रही थी लेकिन अभी भी उसकी पकड़ कमजोर नहीं पड़ी थी
जैसे वह सब कुछ निचोड़ लेना चाहती थी।
बादल बरसने के बाद सबसे पहले गीलेपन का एहसास
होते ही हम दोनो के दिमाग मे एक ही ख्याल आया। …अदा बिस्तर और पाजामा गीला हो गया है।
सुबह अम्मी जब कमरा ठीक करने आएँगी तो उन्हें पता चल जाएगा। … समीर तुम बेकार डर रहे
हो। कुछ नहीं होगा। तुम अपना पाजामा बदल लो। इसको मै छिपा देती हूँ। जब नहाने जाऊँगी
तो तब इसे धोकर मै सुखा दूँगी। मैने महसूस किया कि इस घड़ी मे भी अदा पूरी तरह से सचेत
थी। तभी मुझे आसिया का ख्याल आया और मैने उसे लिटाते हुए कहा… यह तो अभी एक हिस्सा
हुआ है। अब दूसरे हिस्से का अनुभव भी कर लो। उसने चकरा कर मेरी ओर देखा तो मैने उसको
अपनी बाँहो मे समेट लिया और उसके कुर्ते के पीछे लगे हुए हुक को एक-एक करके खोलना आरंभ
कर दिया। वह एक पल के लिये मचली लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने अपना कुर्ता खुद ही उतार
दिया। मैने उसकी सलवार को जैसे ही छुआ वह उठ कर बैठने लगी लेकिन मैने उसे जबरदस्ती
लिटा दिया। वह आँख मुंदे लेट गयी और मेरे अगली हरकत का इंतजार करने लगी। अंधेरे शलवार
का नाड़ा ढीला करके मैने उसकी सलवार नीचे सरका दी तो उसने खुद ही अपने पाँव से शलवार
को अपने जिस्म से जुदा कर दिया। आसिया के प्रशिक्षण को टेस्ट करने का समय आ गया था।
मेरे होंठ उसके चेहरे को चूमते हुए गले पर पहुँच कर रुक गये थे। उसके कमसिन यौवन की
महक मेरे दिमाग पर छाने लगी थी। मेरी उँगलिया उसके गले से सरक कर उसके उभरे हुए सीने
की उन्नत गोलाईयों को नापते हुए उसके कंपन करते हुए स्तनाग्र को छेड़ने के लिये आगे
बढ़ गयी। मैने धीरे से उसके किश्मिश जैसे स्तनाग्र को अपनी दो उँगलियों मे फँसाकर धीरे
से तरेड़ा फिर अकड़ती हुई किश्मिश को अपने होंठों मे दबा कर अपनी जुबान से निरन्तर छेड़ना
आरंभ कर दिया। कभी उसकी गोलाईयों को सहलाता और कभी उनको पूरा अपने मुख मे भर कर उनका
रस सोखने लगता। कुछ देर मे ही उसकी कामोत्तेजना चरम पर पहुँच गयी थी। मेरा एक हाथ उसके
सीने से सरकता हुआ नीचे की ओर बढ़ने लगा। उसकी नाभि को छेड़ कर मेरी उँगलियाँ सरकते हुए
बालों के रोएँ के बीच छिपी हुई फूली संतरे सी जुड़ी हुई फाँकों पर पहुँच गयी थी। वह
लगातार मेरे स्पर्श से लगातार मचल रही थी। अब वह आगे बढ़ने के लिये तैयार थी। मेरी उँगलियों
ने धीरे से उन जुड़ी हुई फाकों को धीरे से खोला और उसके अन्दर सिर उठाये कली पर जैसे
ही मैने दस्तक दी तो उसके मुख से अजीब सी घुर्राहट निकल गयी थी। मैने अपने मुख मे दबी
हुई किश्मिश को निचोड़ कर उसका रस सोखते हुए अपनी उँगली को उसकी फूली हुई कली को निरन्तर
घिसना आरंभ कर दिया। अदा का जिस्म हर पल मचल रहा था। वह बल खा रही थी। वह बिन पानी
की मछली समान तड़प रही थी। उसके मुख से निरन्तर सिसकारी फूट रही थी। मै सब कुछ भुला
कर अपने काम मे जुटा हुआ था। एकाएक उसका जिस्म हवा मे उठा और उसके मुख से दबी हुई एक
लम्बी सी सीत्कार निकली और फिर उसके जिस्म मे कंपन आरंभ हो गया। वह किसी दूसरी दुनिया
मे पहुंच गयी थी। एक हवा के झोंके की तरह उसने जोर से झटका खाया और फिर बिस्तर पर ढेर
हो गयी। मै भी थक कर उसके बगल मे चुपचाप लेट गया।
कुछ देर के बाद हम दोनो उठे और जैसा वह बताती
गयी मै करता चला गया। कुछ ही देर मे हम एक बार फिर से बिस्तर पर लेटे हुए दबी हुई आवाज
मे बात कर रहे थे। एक पल रुक कर वह बोली… समीर, तुम्हें कैसा लगा? पहली बार स्खलन के
एहसास को शब्दों मे बयान करना जब मुश्किल हो गया तो मैने उसके होंठ चूम कर अंग्रेजी
मे कहा… एक्सक्युसिट। तुम्हें कैसा लगा? वह एक पल चुप रही फिर मुस्कुरा कर बोली… हेवनली।
मैने उसे बाँहों मे भर लिया और हम कुछ देर ऐसे ही लिपटे पड़े रहे थे। …बहुत देर हो गयी
है। मै अपने बिस्तर पर सोने जा रही हूँ। आज मै उसे अपने से दूर नहीं करना चाह रहा था।
उसे अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए मैने कहा… नहीं आज यहीं मेरे पास सो जाओ। उसे बाँहों
लिए मै जल्दी ही अपने सपनों की सुनहली दुनिया मे खो गया था।
अजान की पहली आवाज पर अदा ने मुझे जगा कर कहा…
जल्दी से उठ जाओ। अम्मी के आने से पहले एक बार फिर से देख लो। मै जल्दी से उठ गया और
एक बार सभी चीजों पर नजर डाल कर जब हम दोनो आश्वस्त हो गये तब नमाज के लिए तैयार होने
चले गये। सुबह सब कुछ हमेशा की तरह निकला था। अम्मी कमरे मे आयी भी और सब कुछ ठीक करके
चली भी गयी थी। कोचिंग क्लास से लौटते हुए अपने घर के मोड़ पर मेरी नजर फईम पर पड़ी जो
जल्दी मे कहीं जा रहा था। उसको आवाज देकर रोकते हुए मै उसके पास चला गया। …बहुत दिनों
से तू दिखा नहीं फईम। कहाँ घूम रहा था? फईम ने आँख मार कर कहा… यार परवीन के चक्कर
मे घूम रहा था। उसकी बात सुन कर एक पल के लिये मै चौंक गया था। बात बदलते हुए मैने
पुछा… और अनवर कहाँ है? फईम ने मेरे कन्धे पर हाथ मार कर कहा…
मेरे साथ चल। आज दिखाता हूँ कि अनवर क्या कर रहा है। हम दोनो
मुख्य सड़क की दिशा मे चल दिये। …हम कहाँ जा रहे है? …निशात बाग। कुछ ही देर मे हम निशात
बाग पहुँच गये थे।
…समीर, तू चुपचाप मेरे पीछे आ। हम बाग मे प्रवेश
कर गये थे। हर तरफ बाग मे बहार आयी हुई थी। रंगबिरंगे फूलों से सारा बाग भरा हुआ था।
आतंकवाद के कारण सैलानियों का आगमन तो अब कम हो गया था परन्तु फिर भी हर पेड़ की आढ़
मे एक जोड़ा बैठा हुआ चुहलबाजी मे व्यस्त था। बेहद रुमानी माहौल था। …यार अनवर कहीं दिख नहीं रहा है। …अबे वह यहाँ नहीं मिलेगा। बाग के आखिरी
छोर पर माली का कमरा है। वह वहीं मिलेगा। हम दोनो उस दिशा मे बढ़ गये थे। माली का कमरा
दिखते ही फईम सावधान हो गया और मुझे इशारा करके दबे पाँव एक चक्कर लगा कर कमरे के पीछे
पहुँच गया। उसके पीछे-पीछे मै भी चला गया था। फईम ने खिड़की से अन्दर झाँका और फिर मुझे
इशारा किया तो मैने भी खिड़की के अन्दर झांका तो मै चौंक गया क्योंकि अनवर किसी लड़की को अपनी बांहों मे लिये चूम रहा था। हम चुपचाप अन्दर
का कार्यक्रम देखने बैठ गये। कुछ देर के बाद अनवर ने उस लड़की
के बुर्के को उसके जिस्म से अलग किया और फिर उसके कुर्ते को नीचे करके उसके अनावृत
गोलाईयों पर टूट पड़ा। वह लड़की उत्तेजना से अपना सिर इधर-उधर पटक रही थी परन्तु मुझे
उसकी शक्ल साफ दिखायी नहीं दे रही थी। अचानक फईम बड़बड़ाया… यार, परवीन आने वाली होगी।
तू आराम से बैठ कर देख मै अभी कुछ देर मे यहीं पर आता हूँ। इतना बोल कर फईम मुझे वहीं
छोड़ कर वापिस चला गया। उसके जाने के बाद एक बार फिर से अपनी निगाह उस खिड़की पर गड़ा
कर खड़ा हो गया।
अन्दर का दृश्य देख कर मेरी रगों मे खून का
दौरा एकाएक बढ़ गया था। अनवर ने एकाएक उस लड़की को खड़ा कर दिया
और अगले ही पल उसकी शलवार सरक कर उसके पैरों पर इकठ्ठी हो गयी थी। मेरी नजर उस लड़की
के चेहरे पर पड़ी तो एक पल के लिये मै चौंक गया था। …आयशा! तभी अनवर ने
उसे आगे की ओर झुका कर पीछे से अपना ऐंठा हुआ हथियार हाथ मे पकड़ कर उसके नितंबों के
बीच मे जगह बना कर वार कर आरंभ कर दिया। वह एक गुड़िया की भाँति अनवर
की बाँहों मे झूल रही थी और अनवर बेदर्दी से लगातार अपनी
कमर हिलाते हुए उस पर प्रहार करता चला जा रहा था। उस लड़की घुटी हुई चीखें मुझे बाहर
तक सुनाई दे रही थी। अब उसका यह हाल देखना मेरे लिये भारी होता जा रहा था। मेरे दिमाग
मे उस लड़की का चेहरा घूम रहा था। अरबाज की बहन के साथ अनवर को
देख कर मै सिहर उठा था। दिमाग का सारा जुनून पल भर मे उड़ गया था। अरबाज जमात उल हिन्द
का युवा नेता बन गया था। वह आये दिन स्कूल और कालेज के छात्र और छात्राओं के मोर्चे
निकाला करता था। हमारे मोहल्ले मे उसकी दादागिरी काफी प्रचलित थी। मै वापिस जाने के
लिये जल्दी से घूमा तभी मेरा पाँव किसी चीज पर फिसला और मेरा जिस्म लकड़ी के फट्टे से
जाकर टकरा गया। अपने आपको संभालते हुए भी मै जमीन पर लुढ़क गया था। मै जब तक संभल कर
खड़ा होता तब तक अनवर अपने पाजामे का नाड़ा बाँधते हुए बाहर निकला
और मुझे देख कर एक पल के लिये भौंचक्का खड़ा रह गया था। उसके पीछे-पीछे अपने कपड़े संभालते
हुए आयशा भी बाहर निकली और मुझे वहाँ देख कर वह भी जड़वत खड़ी रह गयी थी।
एकाएक अनवर जोर से हँसा
और मेरे पास आकर बोला… अबे समीर, खिड़की से अन्दर क्या देख रहा था। अपने कपड़े झाड़ते
हुए मैने बात को संभाला… यार, फईम ने मुझे आज यहाँ बुलाया था। अन्दर से आवाज आ रही
थी तो उसे देखने के लिये खिड़की की ओर चला गया लेकिन मेरा पैर फिसल गया और मै जमीन पर
लुढ़क गया। पर तू यहाँ क्या कर रहा है? अनवर ने आयशा को अपने निकट
खींच कर अपनी बाँहों मे भरते हुए बोला… यार, यह मेरी मोहब्बत है। बस कुछ पल अकेले मे
गुजारने के लिये यहाँ आ गये थे। उसने अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी को देख कर कहा… फईम
भी आने वाला होगा। चल बैठ कर बात करते है। बुर्के की चिलमन अपने चेहरे पर गिरा कर आयशा
बोली… मै जा रही हूँ। अनवर उसके पास चला गया और कुछ देर बात करके
आयशा को रुकसत करके मेरे पास आकर बोला… तू इसे जानता है? मैने जल्दी से कहा… नहीं यार।
इसे मैने पहले कभी नहीं देखा। अनवर ने मेरी पीठ पर धौल जमा कर
कहा… यार, यह तुम्हारे मोहल्ले की लड़की है। तू निरा अहमक है साले। चल फईम का यहीं बैठ
कर इंतजार करते है। आज वह अपनी महबूबा को यहाँ ला रहा है। हम दोनो उस काठ के कमरे से
कुछ दूरी पर पेड़ के नीचे बैठ गये थे। कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद अनवर ने कहा… वह देख फईम आ रहा है। चल उसके पास चलते है। …उसके साथ
वह बुर्कापोश कौन है। अनवर ने हँसते हुए कहा… वही है जिसके पास
वह तुझसे पैगाम पहुँचा रहा था। …परवीन?
फईम ने आते हुए हमे दूर से देख लिया था तो
वह परवीन को काठ के कमरे मे छोड़ कर हमारे पास आकर बोला… फारिग हो गया? अनवर ने हँसते
हुए कहा… फारिग तो हो लिया लेकिन हमारे यार ने सब गुड़ गोबर कर दिया। साले ने डरा ही
दिया था। आज तो लगता है कि किला फतेह करने की ठान के आया है। फईम ने जल्दी से कहा…
पूरी कोशिश रहेगी। …यार अपनी मोहब्बत से एक बार मिलवा तो दे। …अभी नहीं। पहले किला
फतेह कर लूँ फिर मिलवा भी दूँगा। इतनी बात करके फईम उस काठ के कमरे मे चला गया और हम
टहलते हुए निशात बाग से बाहर निकल आये थे। मुझे मेरे दोस्तों से जलन होने लगी थी कि
वह कितनी आसानी से किला फतेह करने की बात कर रहे थे। कुछ देर अनवर की
कहानी सुनने के बाद मै कुढ़ता हुआ अकेला अपने घर की ओर चल दिया।
मै जैसे ही अपने घर की सड़क पर पहुँचने के लिये
मुड़ा कि तभी किसी ने दबी आवाज मे मेरा नाम पुकारा… समीर। एक पल के लिये मै ठिठक कर
खड़ा हो गया और चारों ओर नजर घुमायी लेकिन जब कोई नहीं दिखा तो मैने आगे कदम बढ़ाया तो
एक बार फिर से वही आवाज आयी… समीर। अबकी बार आवाज की दिशा का ज्ञान हो गया था तो मै
झाड़ियों की ओर बढ़ गया। जैसे ही झाड़ियों के पास पहुँचा तो मेरी नजर सहमी हुई आयशा पर
पड़ी जो सूखे नाले मे झाड़ियों की आढ़ लेकर दूसरी ओर खड़ी हुई मुझे इशारे से बुला रही थी।
…आयशा यहाँ क्या कर रही हो। किसी ने मुझे तुम्हारे साथ यहाँ देख लिया तो मै फालतू मे
मारा जाऊँगा। …समीर, अंधेरा होने के बाद मुझे नाले के पास मिलना। …मुझे नहीं मिलना
है। यह बोल कर मै अपने घर की ओर चल दिया। वह पीछे से बोली… तुम नहीं आये तो मै तुम्हारे
घर आ जाऊँगी। उसकी धमकी सुन कर एक पल के लिये मै चलते-चलते रुक गया और फिर तेज कदमों
से चलते हुए अपने घर पहुँच कर ही साँस ली थी। आयशा को देख कर मेरी धड़कन बढ़ गयी थी।
जब घर पहुँचा तो आफशाँ, आलिया, अदा रोजमर्रा
की तरह अपने आने वाले कल की बातों मे उलझे हुए थी। मुझे देखते ही आफशाँ ने कहा कि मेरे
लिये अब्बा का बुलावा आया है। सिर मुंडा कर ओले पड़ने जैसी हालत हो गयी थी। अभी बड़ी
मुशकिल से आयशा से पीछा छुड़ा कर आया था कि घर मे घुसते ही अब्बा का फरमान सुना दिया
गया था। मै उनके पास जाने के बजाय सीधे अम्मी के पास चला गया। मेरे पीछे-पीछे वह तीनो
भी वहीं आ गयी थी। …अम्मी कौन आया है? …क्यों क्या हुआ? मैने जल्दी से कहा… अब्बा ने
मुझे हाल मे बुलवाया है। …तो चले जा। …नहीं अम्मी तुम भी चलो। मै उन्हे लगभग खींचते
हुए बैठक की ओर चल दिया था। हमारे पीछे-पीछे तिकड़ी भी चल दी थी। अम्मी ने बैठक मे प्रवेश
करते हुए कहा… आपने किस लिए मुझे बुलाया है? अब्बा ने चकराते हुए कहा… मैने तो समीर
को बुलवाया था। यह कम्बखत तुम्हें क्यों बुला लाया। मैने धीरे से कमरे मे प्रवेश करते
हुए हुए कहा… अब्बा आदाब। उन्होंने मेरी ओर देख कर कहा… मैने इसे बुलाया था। तुम्हें
नहीं। तुम जाओ। परन्तु अम्मी अपनी जगह से नहीं हिली तो एक बार फिर से अब्बा ने कहा…
तुम जाओ शमा। मुझे समीर से काम है। …आप बता दीजिए क्योंकि अभी
इसे मेरे साथ बाजार जाना है।
अब्बा ने बड़े गर्वीले अंदाज मे कहा… तुम सुनना
चाहती हो तो ठीक है तुम भी सुनो। हमारी पार्टी जमात-ए-इस्लामी का युवा विंग खुल रहा
है। मै चाहता हूँ कि यह हमारी युवा विंग से जुड़ कर अपने दोस्तों के साथ मिल कर कश्मीरी
युवाओं को हमारी मुहिम से जोड़ने का काम करे। अगर अभी से यह पार्टी के साथ जुड़ जाएगा
तो यहाँ की राजनीति मे इसका भविष्य उज्जवल होगा। क्या कहती हो? मुझसे पूछने के बजाय
अब्बा ने अम्मी से पूछने की भारी गलती कर दी थी। अम्मी ने जल्दी से कहा… देखिए यह हमारे
बीच मे तय हुआ था कि आपकी राजनीति घर की चारदीवारी के बाहर तक रहेगी। आप समीर को इसमे
मत उलझाईए। इसे पढ़ाई करने दीजिए। यह उन आवारा लड़कों मे से नहीं
है जो सुबह से शाम तक सड़क नापते रहते है और आप जैसे लोगों के इशारे पर हंगामा और पत्थरबाजी
करते है। मै अपने बच्चों को इन चीजों से दूर रखना चाहती हूँ। इस साल आफशाँ भी पढ़ने
के लिए बाहर चली जाएगी। आप घर मे होते नहीं है तो बताईए कारोबार मे कौन मेरा हाथ बटाएगा।
अब्बा ने अपनी चाल चलते हुए कहा… एक बार इससे भी तो पूछ लो कि आखिर यह क्या चाहता है।
अब यह अठारह साल का होने जा रहा है तो कब तक इसे अपने पल्लू से बाँध कर रखोगी। अम्मी
एक बार फिर से अपने अभेद्य हथियार का इस्तेमाल करते हुए बोली… जब तक मै जिंदा हूँ तक
तक तो मै उसे अपने पल्लू से बाँध कर रखूँगी उसके बाद अल्लाह रहम करे। फिर जो यह करना
चाहे वह करे। मै रोकूँगी नही। वह मेरी ओर मुड़ कर बोली… समीर, आज ही जीप तैयार करके
रखना क्योंकि कल सुबह हमे बडगाम जाना है। बैंक से पैसे निकाल कर मजदूरों का हिसाब भी
करना है। यह बोल कर वह तुरन्त बैठक से बाहर निकल गयी। जैसे ही मै उनके पीछे जाने लगा
तभी अब्बा की आवाज गूँजी… कब तक अम्मी के पीछे मेमने की तरह फिरता रहेगा। समीर एक बार
ठंडे दिमाग से सोच कर देखना। यह बोल कर वह पैर पटकते हुए बाहर निकल गये और मै भागते
हुए अम्मी के पास चला गया।
बाहर निकलते ही तिकड़ी मुझे घेर कर बैठ गयी
थी। …क्यों अब से अब्बा की पार्टी के लिये काम करोगे? तभी अम्मी रसोई से बाहर निकली
और तीनो को झिड़कते हुए बोली… सभी पढ़ाई मे मन लगाओ। मेरे घर मे कोई भी नेतागिरी नहीं
करने वाला है। आफशाँ ने कहा… अम्मी नतीजे आते ही मै तो पढ़ने बाहर चली जाऊँगी पर यह
तीनों क्या करेंगें। अदा ने तुरन्त जवाब दिया… तुम अपनी चिन्ता करो। मुझे पता है कि
मुझे आगे क्या करना है। मुझे तो किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था क्योंकि मै
अच्छे से जानता था कि सभी सेबों के बागान का काम मुझे ही देखना था। शाम तक यह बहस का
सिलसिला हमारे बीच चलता रहा था। अंधेरा हो गया तो कमरे मे अदा रह गयी थी। कुछ देर तक
मै चुपचाप बैठा रहा क्योंकि मुझे समझ मे नहीं आ रहा था कि आयशा मुझसे क्यों मिलना चाहती
है। एक डर भी लगातार सता रहा था कि कहीं वह आज की कहानी आफशाँ को न सुना दे। मैने मन
ही मन अपने आप को समझाया कि वह हर्गिज नहीं करगी क्योंकि इससे तो उसकी भी पोल खुल जाएगी।
मै सोच मे डूबा हुआ था कि तभी अम्मी ने मुझे आवाज दी… समीर, जरा गियासुद्दीन की दुकान
से चावल की दो बोरी लेकर आजा। …जी अम्मी। यह कह कर मैने जीप की चाबी उठाई और बाहर निकल
गया।
गियासुद्दीन की दुकान शहर के एक सिरे पर थी।
वहीं से घर का सारा सामान आता था। मैने अपने घर की सड़क का मोड़ जैसे ही काटा तो कुछ
दूरी पर वही नाला दिखायी पड़ा जहाँ आयशा ने मुझे अंधेरा होने के बाद बुलाया था। एक पल
के लिये मेरी धड़कन बढ़ गयी थी परन्तु कुछ सोच कर मैने अपनी जीप को पल भर के लिये नाले
के पास ले जाकर खड़ी कर दी। एक बार इधर-उधर देख कर जैसे ही मैने आगे बढ़ने के लिये एक्सेलेरेटर
पर पाँव जमाया आयशा तेजी से झाड़ियों से निकल कर जीप मे पीछे से चढ़ गयी। मैने इसके बारे
सोचा भी नहीं था। …कहाँ जा रहा है? …गियासुद्दीन की दुकान से चावल की बोरी उठाने जा
रहा हूँ। बोलो तुम क्या कहना चाहती थी? …जीप किनारे मे लगा कर खड़ी कर दे। एक पल के
लिये उसकी बात सुन कर मुझे गुस्सा आया परन्तु फिर चुपचाप वही किया जो उसने कहा था।
जीप के बन्द होते ही वह कूद कर आगे आकर बैठ
गयी थी। कुछ देर चुप रहने के बाद वह धीरे से बोली… तूने आज अन्दर क्या देखा था? एक
पल के लिये मैने कहना चाहा कि कुछ नहीं परन्तु कुंठित मन को दुश्मन पर वार करके ही
शांति मिलती है। …आज मैने सब कुछ देखा है। वह चौंक कर बोली… सब कुछ। …हाँ, जब से तुम
दोनो अन्दर गये थे। वह एक पल के लिये चुप हो गयी और फिर धीरे से बोली… यह बात तू किसी
को तो नहीं बताएगा? मै चुप बैठा रहा तो एक बार उसने फिर से पूछा तो मैने कहा… जब करते
हुए तुझे डर नहीं लगा तो अब क्यों डर रही है। एकाएक उसकी आवाज भर्रा गयी… नहीं समीर
तुझे खुदा की कसम है कि जो यह बात तूने किसी को बतायी। मै खुदकुशी कर लूँगी। मैने उसकी
ओर देखा तो वह अभी भी अपने चेहरे को चिलमन के पीछे छिपाये बैठी हुई थी। एक पल मै खामोश
रहा और फिर कुछ सोच कर बोला… ठीक है। मै किसी को इस बात का जिक्र नहीं करूँगा। …आफशाँ
को भी नहीं। …ठीक है, आफशाँ को भी नहीं लेकिन अबसे मेरे साथ तुझे नर्मी से पेश आना
होगा। वह जल्दी से बोली… ठीक है। उसी लहजे मे मैने कहा… जो मै कहूँगा वह बिना सवाल
जवाब किये मानेगी। …हाँ मानूँगी। …जब बुलाऊँगा तब आयेगी। …हाँ आ जाऊँगी। अब जल्दी से
मेरी कसम खा कि आज की बात किसी से नहीं कहेगा। …तेरी कसम आयशा मरता मर जाऊँगा लेकिन
आज की बात किसी से नहीं कहूँगा। अचानक उसे न जाने क्या हुआ वह मुझसे लिपट गयी और मेरे
गाल को चूम कर जल्दी से अलग होकर बोली… चल मुझे पहले नाले के पास छोड़ दे फिर सामान
लेने शहर जाना। उसकी इस हरकत ने मुझे पानी-पानी कर दिया था।
इस्लामाबाद
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