गहरी चाल-8
अगली सुबह चांदनी
को नींद से जगाते हुए मैने कहा… कामरेड अब उठ जाओ। वह पल्कें झपकाते हुए उनींदी आवाज
मे मेरे गले मे अपनी बाँहे डाल कर लटकती हुई बोली… क्या तुम कहीं जा रहे हो? उसके नग्न
वक्ष को धीरे से सहलाते हुए मैने उसके होंठ चूम कर जवाब दिया… हाँ। मुझे जाना है। वैसे
भी तुमने तो आज का दिन अपने वामपंथी साथियों के साथ बिताने का निर्णय लिया है। वह मुझे
अपने उपर खींचते हुए बोली… तुम्हारे कारण मुझे लगता नहीं कि मै चल सकूँगी? …क्यों क्या
हुआ? कुछ बोलते हुए उसकी निगाह अचानक शर्म से झुक गयी थी। वह धीरे से बोली… ऐसा मैने
पहली बार तुम्हारे साथ किया है। सारा जिस्म दुख रहा है। अपने आप को उसकी बाँहों की
कैद से छुड़ाते हुए मैने उसके होंठों को चूम कर जल्दी से कहा… इसके लिये थैंक्स। मै
वादा करता हूँ कि आज रात को तुम्हारे जिस्म का सारा दर्द सोख लूँगा लेकिन अभी मुझे
जाना होगा चांदनी। तुम कारण जानती हो। वह कुछ कहती उससे पहले उसे वहीं छोड़ कर मै कमरे
से बाहर निकल गया था।
जेसी के आफिस मे बैनर्जी
और वह बंगाली स्त्री मेरा इंतजार कर रहे थे। मैने पहुँचते ही बैनर्जी को मंजूर का हालचाल
देखने के लिये भेज दिया और फिर मैने उस स्त्री पर एक नजर डाल कर पूछा… तुम्हारा क्या
नाम है? एक पल के लिये वह झिझकी और फिर निगाहें झुका कर जल्दी से बोली… आरफा चौधरी।
…आरफा तुम हरकत उल अंसार के लिये क्या काम करती हो? उसने अपनी अनिभिज्ञता जाहिर करते
बंगाली मे कुछ जल्दी से कहा तो मैने इशारों मे समझाते हुए कहा… धीरे-धीरे बोलो। तभी
मेरे कान मे बैनर्जी की आवाज पड़ी… साहब, यह उनके जिहादियों के लिये लड़कियों का इंतजाम
करती थी। मैने सामने देखा तो बैनर्जी और मंजूर खड़े हुए थे।
मैने जल्दी से पूछा…
क्या मुदस्सर का पता चल गया? मंजूर ने सिर हिला कर हामी भरते हुए कहा… मुदस्सर ने अपनी
असलियत को सभी से छिपा कर रखा हुआ है। जिसको सब लोग मुदस्सर के नाम से जानते है वह
शाकिर नाम का दलाल है। मैने एक बार फिर से फाईल निकाल कर उसके सामने रखते हुए कहा…
वह कौन है? उसने आरफा के बताये हुए चित्र की ओर इशारा करते हुए कहा… सभी लोग इसे मुदस्सर
बता रहे है परन्तु यह शाकिर है। उसने कुछ चित्रों को पलटते हुए एक नये चेहरे को मेरे
सामने करते हुए कहा… यह मुदस्सर है। इसका असली नाम एजाज मूसा है। यह बांग्लादेश स्थित
हरकत-उल अंसार का कमांडर है। पाकिस्तानी और बांग्लादेशी की पहचान उनके रंग से आसानी
से की जा सकती है। जिसको अभी तक सभी मुदस्सर बता रहे है वह रंग मे सांवला है जब कि
पाकिस्तानियों का रंग काफी साफ होता है। एक ही झटके मे मुझे सब कुछ समझ मे आ गया था।
मुदस्सर ने अपनी पहचान छिपाने के लिये शाकिर नाम के व्यक्ति का इस्तेमाल किया था। आरफा
ने जिन पाँच लोगों की पहचान की थी उनमे से एक मूसा भी था लेकिन उसकी असलियत से वह भी
अनजान थी।
जेसी भी अपना अधिकारिक
राउन्ड लेकर आ चुका था। …जेसी, पहले इन पाँचों को सबसे अलग करना पड़ेगा। मै कुछ और बोल
पाता कि तभी मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। मैने जल्दी से फोन कान से लगाते हुए कहा…
हैलो। …मेजर, बांग्लादेश मे हरकत उल अंसार की उपस्थिति की पुष्टि हो गयी है। जो पाँच
फोटो तुमने भेजे थे उनमे से सभी की पहचान हो गयी है। उनमे से एक जाकिर मूसा का भाई
है जो साल भर पहले कश्मीर मे हिज्बुल का कमांडर था। एकाएक यह सुन कर मेरी धड़कन बढ़ गयी
थी। मैने जल्दी से कहा… सर, उसके भाई का नाम एजाज मूसा है। वही बांग्लादेश मे आजकल
हरकत उल अंसार का कमांडर है। …मेजर, यह हमारे लिये बहुत बड़ी कामयाबी की बात है। उन
सभी को अब वहाँ नहीं रखा जा सकता। मै उनको यहाँ लाने का इंतजाम करवाता हूँ लेकिन तब
तक उन सबकी सुरक्षा की जिम्मेदारी तुम्हारी है। …यस सर। मै बस इतना ही बोल पाया कि
दूसरी ओर से फोन कट गया था। मंजूर और बैनर्जी उत्सुक्ता से मेरी ओर देख रहे थे। मै
उठ कर खड़ा हो गया और मंजूर की पीठ थपथपाते हुए कहा… तुम नहीं जानते कि तुमने कितने
बड़े काम को अंजाम दिया है। जेसी उन पाँचों के लिये इंतजाम करने के लिये बाहर चला गया
था।
मेरे सामने कमरे मे
बैनर्जी और मंजूर के साथ आरफा भी एक किनारे मे चुपचाप बैठी हुई थी। आरफा की ओर इशारा
करते हुए मैने बैनर्जी से पूछा… अब इसका क्या करना है? …साहब, आप कहे तो अब इसको वापिस
इसके साथियों के पास भिजवा देता हूँ। …हाँ, इसको उनके साथ रख सकते है क्योंकि अब इसको
कोई खतरा नहीं है। तभी आरफा जल्दी से बंगाली मे बोली… साहब, मुझे उनके पास मत भेजिये।
वह लोग मुझे मार देंगें। मुझे उसकी बात समझ मे नहीं आयी परन्तु मंजूर ने सिर हिलाते
हुए कहा… यह सही कह रही है साहब। फौज अब सबको सीमा पार वापिस भेजने की कार्यवाही करेगी।
अब तक सबको मालूम हो गया होगा कि उन पाँचों को पकड़वाने मे इसका हाथ है। सीमा पार करते
ही इसकी मौत निश्चित है। …तो तुम्हीं बताओ कि इसका क्या करें? अबकी बार आरफा ने फिर
से कहा… साहब, आप मुझे दिल्ली भिजवा दिजीए। उसकी बात का हिन्दी मे अनुवाद सुन कर एक
पल के लिये हम सभी चौंक गये थे। मै कुछ कहता कि तभी आरफा ने मंजूर की ओर देखते हुए
कहा… साहब, मुझे अकेले मे आपसे कुछ बात करनी है। एक पल के लिये मैने बैनर्जी और मंजूर
की ओर देखा तो वह दोनो भी आश्चर्य से आरफा को देख रहे थे। कुछ सोच कर मैने उन दोनो
को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया और उनके जाने के बाद मैने आरफा से कहा… बोलो। वह
एक पल के लिये सकपकायी और फिर धीरे से टूटी-फूटी हिन्दी मे बोली… साहब, मुझे दिल्ली
मे गोपीनाथ साहब से मिलना है। मुझे बताया गया था कि वह भारत सरकार के आला अफसर है।
यह नाम सुन कर एक पल के लिये मेरा सारा दिमाग झनझना गया था। जिस गोपीनाथ को मै जानता
था वह भारत की सबसे गोपनीय संस्था रा का निदेशक था।
इस खुलासे के बाद
तो दिल्ली और कलकत्ता के बीच वार्ताओं का तांता आरंभ हो गया था। हम लोगों के उपर से
दबाव हट गया था। हम शाम को खाने की टेबल पर बैठ कर आरफा चौधरी के बारे मे चर्चा कर
रहे थे कि तभी अचानक मंजूर बोला… साहब, कहीं बेग का दलाल यही शाकिर मुस्तफा तो नहीं
है? मै मूसा के चक्कर मे मंजूर की बेटियों के बारे मे तो बिल्कुल भूल चुका था। खाना
समाप्त करके हम तीनो शाकिर मुस्तफा नाम के दलाल से पूछताछ करने के लिये निकल गये थे।
जेसी ने पहले शाकिर मुस्तफा और शाकिर अली की असली पहचान जानने के लिये उसके कस बल ढीले
कर दिये थे। जब यह तय हो गया कि शाकिर मुस्तफा और शाकिर अली एक ही आदमी के नाम है तो
फिर मैने पूछा… क्या तुमने बेग से दो लड़कियों का सौदा किया था? …साहब हम तो शरणार्थी
कैंम्पों को चलाने वालों से ही लड़कियाँ खरीदते है। बेग से भी मैने दर्जन से ज्यादा
लड़कियाँ खरीदी है। एक पल के लिये हमारे मुँह पर ताला लग गया था। तभी मंजूर ने अपनी
बेटियों के हुलिये और उम्र के बारे मे बता कर पूछा… क्या तुमने ऐसी दो लड़कियों को बेग
से खरीदा था? शाकिर कुछ देर सोचने के बाद बोला… भाईजान ज्यादातर लड़कियों की उम्र और
हुलिया इसी प्रकार का होता है। कोई फोटो है तो दिखा दो? मंजूर ने बेबसी मे अपना सिर्फ
सिर हिला कर मना कर दिया था। कुछ देर मैने उससे उसके काम के बारे मे पूछताछ की तो उसने
बताया कि वह सिर्फ यहाँ पर शरणार्थी कैंम्पों मे दलाल का काम करता है। यहाँ से खरीदी
हुई लड़कियों को वह मुंबई और हैदराबाद के एजेन्टों को सौंप देता है। उसके बाद किसी को
पता नहीं कि उन लड़कियों के साथ क्या होता है। शाकिर से जब उसके एजेन्टों को बारे पूछा
तो उसने कुछ नाम बता कर कहा… साहब, हमारे पास कोई स्थायी एजेन्ट नहीं होते है। जब किसी
के पास कोई खरीददार होता है वह हमसे संपर्क साधता है। उसकी जरुरत के अनुसार हम लड़कियों
का इंतजाम करते है। मुझे नहीं पता कि वह खरीददार उन्हें अपने पास रखता है अथवा उन्हें
आगे बेच देता है। देर रात तक हम उससे पूछते रहे लेकिन उन दो लड़कियों का कोई पुख्ता
सुराग नहीं मिल सका था। आखिरकार मंजूर ने सब कुछ खुदा के भरोसे छोड़ कर कहा… साहब, अगर
किस्मत मे होगा तो मेरी बेटियाँ मिल जाएगी लेकिन अब से खुदा की कसम शरणार्थी कैंम्पों
से एक भी लड़की नहीं बिकने दूँगा। इतनी बात करके हम अपने होटल वापिस आ गये थे।
अगली शाम को आर्मी
के कार्गो हवाईजहाज मे बैठ कर मै दिल्ली की ओर जा रहा था। मेरे सामने बेड़ियों मे जकड़े
हरकत उल अंसार के पाँचो कैदी बैठे हुए थे। उन सबकी शिनाख्त हो गयी थी। राष्ट्रीय सुरक्षा
सलाहकार के आदेश पर पूर्वी कमांड की देखरेख मे उन पाँचों चरमपंथियों को दिल्ली भेजा
जा रहा था। मेरे साथ चांदनी बैठी हुई थी परन्तु उसके चेहरे पर असमंजस से ज्यादा उत्सुक्ता
के भाव नजर आ रहे थे। सारी भारतीय सुरक्षा एजेन्सियों को हरकत उल अंसार के बारे मे
सूचना दे दी गयी थी। इसी बीच आरफा की मांग ने अजीत को भी चौंका दिया था। इसी कारणवश
तुरन्त सभी को दिल्ली लाने का आदेश दिया गया था। नेपाल-बांग्लादेश कारीडार अब सभी सुरक्षा
एजेन्सियों की नजरों मे आ गया था। कलकत्ता मे स्थित उनके सभी कार्यालय अब तक सतर्क
हो गये थे। इसकी पुष्टि कल रात को बैनर्जी ने भी कर दी थी। कलकत्ता से चलने से पहले
जनरल बक्शी और कैप्टेन जेसी के साथ बैठ कर बंगाल मे उभरते हुए बरेलवी और देवबंदी चुनौतियों
पर अंकुश लगाने की योजना पर काफी देर चर्चा हुई जिसके बाद जनरल बक्शी ने कहा कि वह
अजीत सुब्रामन्यम से इस बारे मे बात करके ही किसी योजना पर अमल कर सकेंगें। मंजूर इलाही
ने कैप्टेन जेसी के साथ काम करने का फैसला किया था। मेरी सिफारिश पर फौज ने मंजूर को
जेसी की टीम मे गाइड के काम पर नियुक्त कर दिया था।
हवाईजहाज के शोर मे
अचानक चांदनी ने अपनी कोहनी मेरी पसली मे मारते हुए पूछा… यह लोग कौन है? मैने मना
करते हुए जवाब दिया… मुझे क्या मालूम। मेरा जवाब सुन कर चांदनी चुप हो गयी थी। तीन
घंटे का सफर कुछ देर पहले ही आरंभ हुआ था। मेरा दिमाग एजाज मूसा की बतायी हुई बातों
मे उलझा हुआ था। पाकिस्तानी आईएसआई को नेपाल से भारत मे घुसपैठ और बांग्लादेश पहुँचने
का नया रास्ता मिल गया था। एजाज मूसा ने पूछताछ के दौरान यह भी बताया कि बांग्लादेशी
और रोहिंग्या शरणार्थियों को एक खास उद्देश्य के लिये मुस्लिम बहुल क्षेत्रों मे भेजने
की जिम्मेदारी उस पर डाली गयी थी। उसके अनुसार हरकत-उल-अंसार का मुख्यत: एक ही उद्देश्य
था कि शरणार्थियों के द्वारा उपयुक्त समय पर अराजकता फैला कर भारत मे आंतरिक अस्थिरता
पैदा करना था। यह बात सुन कर अजीत ने तुरन्त पाँचों को लेकर दिल्ली पहुँचने का मुझे
निर्देश दिया था। मै गहरी सोच मे डूबा हुआ था कि चाँदनी की आवाज एक बार फिर से मेरे
कान मे पड़ी… समीर, उस बंगालिन को अपने साथ लेकर क्यों आये हो? मैने अपना सिर घुमा कर
कुछ दूरी पर सिर झुकाये बैठी आरफा पर एक नजर डाल कर मुस्कुरा कर कहा… क्यों कामरेड
उसे देख कर जलन हो रही है? चांदनी ने आँखें तरेरते हुए कहा… मै उस काली कलूटी से भला
क्यों जलने लगी। यह बोल कर वह मुँह फेर कर बैठ गयी थी।
बांग्लादेशी तस्करों
को जेल और बाकी सभी पकड़े गये लोगों को शरणार्थी कैम्प मे स्थानान्तरण कर दिया गया था।
मेरे कहने से आरफा का नाम अवैध रुप से घुसपैठ करने वाले शरणार्थियों की लिस्ट से हटा
दिया गया था। मै सारे रास्ते आरफा की बतायी हुई कहानी मे उलझा रहा था। उसने बताया था
कि ढाका स्थित भारतीय दूतावास मे अब्दुल गनी चौधरी नाम के एक व्यक्ति के साथ उसके जिस्मानी
संबन्ध बन गये थे। उसी के कहने पर वह शाकिर मुस्तफा से मिली थी जिसने बाद मे उसे एजाज
मूसा से मिलवाया था। कुछ दिन पहले एक रात को चौधरी उसके पास आया तो वह काफी घबराया
हुआ था। उसने जाने से पहले अपनी मोहब्बत की दुहाई देकर कहा था कि अगर उसे कुछ हो गया
तो वह किसी भी तरह दिल्ली मे गोपीनाथ से मिल कर उनको चौधरी के बारे मे बता देगी। दो
दिन के बाद जब उसे पता चला कि चौधरी की हत्या हो गयी है तो उसने शाकिर मुस्तफा की मदद
से सीमा पार करने की योजना बनायी थी। इसी पेशोपश मे सारे रास्ते उलझा रहा कि मुझे पता
ही नहीं चला कि हम कब दिल्ली पहुँच गये थे। एयरपोर्ट पर हथियारों से लैस सैनिकों का
दस्ता हमारा इंतजार कर रहा था। पाँचों चरमपंथियों को अपनी हिरासत मे लेकर वह लोग तुरन्त
चले गये थे। हम तीनों एयरपोर्ट से निकल कर टैक्सी पकड़ कर शहर की दिशा मे चल दिये थे।
रास्ते मे कुछ दूर
चलने के बाद चांदनी ने पूछा… समीर, तुम कश्मीर वापिस कब जा रहे हो? …अभी तो सीजन शुरु
नहीं हुआ है तो कुछ दिन यहाँ रहूँगा क्योंकि मेरी बीवी भी अब तक यहाँ पहुँच गयी होगी।
कुछ दिन उसे दिल्ली घुमा कर वापिस चला जाऊँगा। …तुम्हारा निकाह हो गया है तुमने बताया
नहीं? …कामरेड, तुमने पूछा नहीं तो भला मै कैसे बताता। अचानक यह बात सुन कर उसका चेहरा
उतर गया था। मैने मुस्कुरा कर कहा… कामरेड, वैसे भी तुम्हारी विचारधारा किसी रिश्ते
को तो मानती नहीं तो फिर क्या फर्क पड़ता है। लेकिन क्या तुम मेरी एक मदद कर सकती हो?
उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने कहा… मेरी बीवी गांव की गंवार और कम पढ़ी लिखी है।
मै चाहता हूँ कि तुम उसे अपनी तरह आधुनिक बना दो। तुम्हारा नशा मेरे सिर पर इतना चढ़
गया है कि अब अपनी बीवी के साथ रहना मुश्किल हो जाएगा। अगर उसमे हल्की सी तुम्हारी
झलक आ गयी तो शायद मेरे लिये जीना आसान हो जायेगा। क्या हमारी दोस्ती की खातिर तुम
इतना नहीं कर सकती? मेरी बात सुन कर वह एकाएक चुप हो गयी थी। जामिया मिलिया के गर्ल्स
हास्टल के बाहर वह उतर गयी और बिना कुछ बोले अन्दर चली गयी थी। टैक्सी ड्राइवर को अपने
कैंम्पस का पता देकर चलने
का इशारा किया और पीठ टिका कर आराम से बैठ गया। सफर की थकान अब दिमाग पर हावी हो रही
थी। कुछ ही देर मे हम कैंम्पस मे प्रवेश कर गये थे।
मेरा फ्लैट अंधेरे
मे डूबा हुआ था। मैने टैक्सी से उतर कर एक बार अपने फ्लैट पर नजर डाली और फिर अपनी
चाबी से फ्लैट का दरवाजा खोल कर अन्दर प्रवेश करते ही समझ गया कि तबस्सुम फ्लैट मे
नहीं है। मैने फ्लैट को रौशन किया और उसके कमरे मे जाकर चेक किया तो सभी कपड़े और उसका
सामान यथावत अलमारी मे रखा हुआ था। वह कहाँ चली गयी? यह सोचते हुए मै किचन की ओर चला
गया तो वहाँ पर भी सब कुछ साफ रखा हुआ था। रात के आठ बज रहे थे और मुझे समझ मे नहीं
आ रहा था कि इस वक्त तबस्सुम कहाँ गयी होगी? मै जैसे ही मुड़ा तो मेरी नजर आरफा पर पड़ी
जो फ्लैट के दरवाजे पर अभी भी खड़ी हुई थी। मै उसके पास चला गया और इशारे से तबस्सुम
का बेडरुम दिखाते हुए कहा… लंबे सफर से थक गयी होगी। तुम वहाँ आराम से रह सकती हो।
मुझे पता नहीं उसे मेरी बात कितनी समझ मे आयी परन्तु वह मेरा इशारा समझ कर बेडरुम की
ओर चली गयी थी। अब मुझे तबस्सुम की चिन्ता खाये जा रही थी। रह-रह कर मन मे बुरे ख्याल
आ रहे थे। आरफा का ख्याल आते ही रात के खाने का इंतजाम करने के लिये जैसे ही मै फोन
की ओर बढ़ा तभी दरवाजे पर हल्का सा खटका हुआ तो मैने मुड़ कर दरवाजे की ओर देखा तो एक
पल के लिये मै चौंक गया था। तबस्सुम दरवाजे पर खड़ी हुई अचरज भरी नजरों से मुझे देख
रही थी। उसे सामने देख कर मेरे मन मे एक खुशनुमा एहसास हुआ और जब तक वह समझ पाती तब
तक मै तेजी से आगे बढ़ कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोला… तुम इस वक्त बाहर कहाँ गयी
थी। तुम्हें यहाँ न देख कर मेरा दिल बैठ गया था।
मै लगातार कुछ पल
बड़बड़ाता रहा और वह असमंजस मे चुप खड़ी रही थी। जब सब कुछ शांत हो गया तो उसको छोड़ कर
मैने पूछा… तुम कहाँ गयी थी? …तीन मकान छोड़ कर वहाँ एक नया परिवार रहने आया है। उनके
घर गयी थी। आप कब आये? …अभी कुछ देर पहले आया था। तुम्हें यहाँ न देख कर मेरा दिल बैठ
गया था। …आप तो एक हफ्ते के लिये गये थे तो जल्दी कैसे वापिस आ गये? मैने मुस्कुरा
कर कहा… काम जल्दी खत्म हो गया तो तुम्हारी याद खींच लायी। वह मुस्कुरा कर बोली… आप
मुझे बना रहे है। अचानक उसका लिबास देख कर मैने कहा… यह कब बदलाव आया? पहली नजर मे
मुझे कुछ अजीब नहीं लगा था क्योंकि एक हफ्ते से चांदनी को ऐसे कपड़े मे देख रहा था।
वह फुलवारी प्रिंट की लम्बी सी फ्राक पहने हुए थी। उस फ्राक मे उसके जिस्म के सभी उभार,
कटाव, उतार व चड़ाव ज्यादा उभरे हुए लग रहे थे। उसकी मजबूत गोरी टाँगे ट्युबलाइट की
रौशनी मे चमक रही थी। मैने जब यह फ्राक खरीदी दी तब मैने सोचा नहीं था कि इन कपड़ों
मे तबस्सुम की काया पलट हो जाएगी। आज इस फ्राक मे भी वह काफी सहज दिख रही थी। मैने
महसूस किया कि एक हफ्ते मे उसके व्यक्तित्व मे काफी बदलाव आ गया था। वह झेंपते हुए
बोली… क्या यह ठीक नहीं लग रही है। …तुम बहुत सुन्दर लग रही हो। इसमे तुम्हारे अब्बा
भी तुम्हें पहचान नहीं सकेंगे। मेरी बात सुन कर पल भर मे उसका चेहरा खिल गया था।
अचानक मुझे आरफा की
याद आयी तो मैने कहा… तबस्सुम तुम्हारे कमरे मे आज की रात एक बंगाली औरत को ठहरा दिया
है। वह कल तक चली जाएगी। …वह कौन है? …बांग्लादेशी है। उसे हमारी भाषा समझ मे नहीं
आती। …उसका क्या नाम है? …आरफा। अचानक आरफा कमरे से बाहर निकल कर सामने आ गयी थी। तबस्सुम
को देख कर वह ठिठक कर वहीं खड़ी रह गयी। दोनो ने एक दूसरे को देखा और फिर मुस्कुरा कर
आरफा ने कुछ बंगाली मे मुझसे कहा लेकिन हम दोनो के पल्ले कुछ नहीं पड़ा तो मैने अपना
सिर हिला दिया था। उस रात मैने मेस से खाना मंगा लिया था। रात को तबस्सुम मेरे साथ
लेटते हुए बोली… क्या कल मेरे साथ उनके घर चलेंगें? …हाँ, आफिस से लौट कर उनके यहाँ
चलेंगें। वह कुछ देर बात करना चाहती थी परन्तु सफर की थकान मुझ पर हावी हो रही थी।
मुझे बस इतना याद है कि वह उस परिवार के बारे मे बता रही थी। उसको सुनते हुए मैने सपनो
की दुनिया मे खो गया था।
अगली सुबह आरफा को
लेकर मै टाइम से पहले अपने आफिस पहुँच गया था। अजीत सर ने आते ही मुझे बुला कर कहा…
गोपीनाथ कुछ देर मे पहुँच रहा है। वह लड़की कहाँ है? …सर, मेरे आफिस मे बैठी है। …यह
आईएसआई का बांग्लादेश कनेक्शन बेहद संवेदनशील है। कुछ ही देर मे वीके और जनरल रंधावा भी
वही आ गये थे। सबसे पहले वीके ने कहा… मेजर, हसनाबाद
की घटना के बारे मे तुम्हारी रिपोर्ट और स्थानीय मिडिया रिपोर्ट्स मे जमीन आसमान का
अन्तर क्यों है। मुख्य मिडिया रिपोर्ट्स पिछले पाँच दिनों से उस घटना को सांप्रदायिक
दंगा बता रहे है। नयी सरकार आने के बाद से हिन्दु चरमपंथी हो गया है और हिन्दुओं मे
बढ़ती हुई असहिष्णुता के कारण अब यहाँ पर मुस्लिम अपने आप को असुरक्षित समझ रहे है।
…सर, यह बिल्कुल झूठ है। अजीत ने मुस्कुरा कर कहा… यह हम जानते है परन्तु देश वही जानता
है जो मिडिया उनके सामने रखता है। राजधानी मे बैठे हुए पत्रकार के भेष मे दलाल लोग
उसी बेमेल गठजोड़ का परिणाम है। यह गठजोड़ तीन असमानतर सतहों पर काम करता है। सबसे पहली
सतह वामपंथी बुद्धिजीवियों की होती है जिनकी जिम्मेदारी भुमिका, कथानक और योजना बनाने
की होती है। यह बाहरी ताकतों के साथ मिल कर पैसों और हथियारों का इंतजाम करते है। दूसरी
सतह पर स्थानीय राजनीतिक पार्टियाँ और समाज सेवी संस्थाओं और उनके अनुयायी होते है।
यह लोग स्थानीय सतह पर योजना को कार्यान्वित करते है। वह लोग आन्दोलन, मोर्चा, बन्द
और चक्का जाम जैसी वारदात मे हमेशा लिप्त रहते है। तीसरी सतह पर मिडिया, लेखक और सामान
विचार रखने वाले वामपंथी विचारक होते है जो मुख्यत: पहली और दूसरी सतह पर कार्य करने
वालो को बचाने का काम करते है। उनका मुख्य उद्देश्य अपने साथियों को समाज के सामने
पिड़ित बताना होता है। इन्हीं लोगो ने हसनाबाद की घटना को सांप्रदायिक दंगा बता कर गरीब
मुस्लिम समाज को पिड़ित बता कर केन्द्र सरकार को घेरने का प्रयत्न किया है।
मैने एक नजर सभी पर
डाल कर पूछ लिया… सर, इस कहानी के पीछे कौन है? अजीत ने मुस्कुरा कर कहा… जिस रोज तुमने
इस घटना की खबर की थी उसी दिन से मै सभी खबरों पर नजर रख रहा था। पहली सतह पर बंगाल
का मार्क्सवादी चेहरा तपन बिस्वास और उसके वामपंथी साथी
काम कर रहे थे। अगले दिन ही बंगाल के दूसरे जिलों मे कट्टरपंथी इस्लामिक गुट एकाएक
वामपंथी कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर सक्रिय हो गये थे। शिया-सुन्नी दंगों की खबर को
दबाने के लिये उन्होंने मालदा, मिदनापुर और अलग-अलग जिलों मे सांप्रदयिक दंगा भड़काने
की कोशिश दूसरी सतह पर की थी। इसके कारण हसनाबाद की घटना दब गयी थी। तीसरी सतह पर राजधानी
मे बैठे हुए सेठी के चैनल ने इस कहानी को सबसे पहले उठाया और बाद मे विशाल बैनर्जी
और अन्य दलाल पत्रकारों ने इस कहानी को अन्तरराष्ट्रीय हेडलाईन बना दिया था। अगले दिन
से अन्य मिडियाकर्मियों ने सोशल मिडिया पर इस खबर को फैलाना आरंभ कर दिया कि नयी सरकार
आने के बाद से मुस्लिम समाज अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रहा है। उसके बाद कलकत्ता
उच्च न्यायालय मे जनहित की याचिका डालते ही यह कहानी राष्ट्रीय पटल पर एक बड़ी खबर बन
कर उभरी थी। अगर एक लाइन मे समझना है तो पंच मक्कारों की मिली भगत ने तस्करी की आपसी
रंजिश को पहले शिया-सुन्नी मे बदला और फिर हमारे उदारवादी संचार माध्यम ने इसे सांप्रदायिक
दंगे मे तब्दील करके भारत मे अल्पसंख्यक आबादी को पिड़ित घोषित कर दिया। मेजर अब तुम्हें
समझ मे आ गया होगा कि दुश्मन की रणनीति और कार्यशैली कैसे झूठ पर टिकी हुई है। इसी
को हाईब्रिड वार कहा जाता है।
सारी कहानी अब तक
खुल कर मेरे सामने आ गयी थी। इस प्रकार के युद्ध का हक डाक्ट्रीन मे कोई जिक्र नहीं
था परन्तु धूर्तता और धोखा तो हक डाक्ट्रीन का मूल मंत्र था। कुछ सोच कर मैने पूछा…
सर, एजाज मूसा और उसके साथियों ने क्या कुछ बताया? अबकी बार वीके ने कहा… मेजर, किस्मत
से हमारे हाथ एक महत्वपूर्ण जानकारी लगी है। आज की मीटिंग इसी पर चर्चा के लिये रखी
है। जनरल रंधावा ने जल्दी से कहा… पाकिस्तान कोई बड़ा धमाका करने की योजना पर काम कर
रहा है। इसके लिये जमात-ए-इस्लामी के नेतृत्व मे बारह से ज्यादा पाकिस्तानी स्थित तंजीमे
पिछले कुछ दिनों से भारत के अलग-अलग हिस्सों मे सक्रिय हो गयी है। अभी तक यह पता नहीं
चल सका है कि उन्होंने किस प्रकार के धमाके की योजना बनायी है? …सर, जमात अगर इस धमाके
के पीछे है तो हमारे पास उनके लोगो की लम्बी फेहरिस्त है। हमे उन सभी लोगों की निगरानी
बढ़ा देनी चाहिए। तभी अजीत ने टोकते हुए कहा… मेजर, आईबी हरकत मे आ चुकी है। हमारी ओर
से उस लिस्ट के सभी लोगों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। अभी हाल ही मे पाकिस्तानी दूतावास
के एक कर्मचारी को हमने एक चीनी स्त्री के साथ देखा है। वह स्त्री चीन की नागरिक है
परन्तु वह यहाँ पर एक चीन की संचार कंपनी मे पिछ्ले दो साल से कार्यरत है। इसीलिए अब
हमारी सुरक्षा एजेन्सियाँ इस अभियान मे चीन के संबन्ध को भी तलाश कर रही है।
जनरल रंधावा कुछ सोच
कर बोले… अजीत, हाल मे सुनने मे आया है कि चीन की फौज अचानक हमारे पूर्वी सिरे पर सक्रिय
हो गयी है। यह भी हो सकता है कि चीन की फौजी मदद के द्वारा हमारी फौज का ध्यान बँटा
कर पाकिस्तान कुछ पश्चिमी सिरे पर बड़ा करने की तो नहीं सोच रहा है? …इसके बारे मे कुछ
कहा नहीं जा सकता परन्तु हमारी फौज सभी सीमाओं पर किसी भी झड़प के लिये तैयार है। अभी
बात चल रही थी कि तभी फोन की घंटी घनघना उठी। अजीत ने जल्दी से फोन उठाया और फिर कुछ
सुन कर कहा… अन्दर भेज दो। फोन रख कर अजीत ने कहा… गोपीनाथ आ गया है। तुम उस लड़की को
लेकर कान्फ्रेन्स हाल मे पहुँच जाओ। हम सभी वहीं पहुँच रहे है। उनको वहीं छोड़ कर मै
अपने कमरे मे चला गया था। आरफा एक किनारे मे सहमी हुई बैठी थी। मुझे आता देख कर वह
उठ कर खड़ी हो गयी थी। …आओ मेरे साथ चलो। गोपीनाथ आ गये है। उसे अपने साथ लेकर मै कान्फ्रेंस
हाल की ओर चल दिया। आरफा कुछ कदम चलने के बाद टूटी-फूटी हिंदी मे बोली… आप उन्हें पहचानते
है? …तुम फिक्र मत करो। यह वही गोपीनाथ है जिसके बारे मे अब्दुल ने तुमसे जिक्र किया
था। जब हमने कान्फ्रेंस हाल मे प्रवेश किया तो हाल खाली पड़ा हुआ था। हम दोनो चुपचाप
मेज के एक किनारे मे बैठ गये थे।
थोड़ी देर के बाद तीनों
दिग्गजों ने रा के निदेशक गोपीनाथ के साथ हाल मे प्रवेश किया और हमारे सामने आकर बैठ
गये थे। गोपीनाथ की नजरें आरफा पर टिकी हुई थी। अजीत की आवाज गूँजी… गोपीनाथ, यह आरफा
चौधरी है। गोपीनाथ कुछ बोलता उससे पहले मैने कहा… सर, कुछ भी बताने से पहले यह विश्वास
करना चाहती है कि आप ही गोपीनाथ है। मेरी बात सुन कर गोपीनाथ ने मुस्कुरा कर अपनी जेब
से अपना परिचय पत्र निकाल कर उसके सामने रख कर बंगाली मे कहा… जिस आदमी को तुम अब्दुल
गनी चौधरी के नाम से जानती हो उसका असली नाम अनमोल बिस्वास था। एकाएक आरफा के
चेहरा खिल उठा था। कुछ बंगाली मे बड़बड़ाते हुए उसने अपने ब्लाउज मे हाथ डाल कर एक मुड़ा-तुड़ा
कागज निकाल कर गोपीनाथ के सामने रख दिया था। सबकी आँखें उस कागज पर जम गयी थी। गोपीनाथ
ने वह कागज उठाया और खोल कर पढ़ा और फिर अजीत की ओर बढ़ा दिया। तीनों ने एक नजर कागज
पर डाल कर आरफा की ओर देखा तो वह संजीदा हो उठी थी। उसकी बड़ी-बड़ी आखों मे आँसू झिलमिला
रहे थे। गोपीनाथ ने कुछ देर उससे बंगाली मे बात की और फिर उसे वापिस मेरे आफिस मे भिजवा
दिया था।
उसके जाने के बाद
गोपीनाथ ने कहा… मेजर, तीन हफ्ते पहले अनमोल की लाश ढाका पुलिस को एक गंदे नाले मे
मिली थी। तुम्हारे अनुसार यह लड़की लगभग एक हफ्ते पहले सीमा पार करते हुए तुमने पकड़ी
थी। मैने मेज पर पड़े हुए कागज को उठा कर उस नजर डालते हुए कहा… जी सर। उस कागज पर अंग्रेजी
मे लिखे हुए शब्दों को पढ़ कर मेरा दिमाग चकरा गया था।
‘मेरा नाम अनमोल बिसवास है। इस कागज के टुकड़े
को तुरन्त रा के निदेशक के पास पहुँचा दीजिए। इसमे भारत के खिलाफ कोडनेम वलीउल्लाह
के नाम से आईएसआई की नापाक साजिश “आप्रेशन खंजर” का खुलासा किया गया है।‘
बस इतना ही लिखा हुआ
था। मैने कागज को उलट-पलट कर देखा तो उसके सिवा और कुछ भी नहीं लिखा हुआ था। अजीत ने
मुस्कुराते हुए कहा… मेजर, इसमे जितने भी अंग्रेजी अक्षर ‘आई’ पर बिन्दु है उसमे से
एक माइक्रो डाट फिल्म हो सकती है। अनमोल शहीद हो गया परन्तु वह आरफा की मदद से अपना
काम से पूरा कर गया है। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि उसकी शहादत को हम जाया न होने
दें। गोपीनाथ तुरन्त माईक्रोफिल्म को डीकोड करके मुझे इसकी जानकारी दो। हम यहीं पर
तुम्हारा इंतजार कर रहे है। गोपीनाथ उस कागज के टुकड़े को लेकर हाल से बाहर निकल गया
और मै आने वाली चुनौती के बारे मे सोचने लगा। एकाएक इस मीटिंग की मंशा अब मुझे समझ
मे आ गयी थी। मूसा से मिली हुई जानकारी के कारण एकाएक भारतीय सुरक्षा तंत्र चौकन्ना
हो गया था लेकिन ‘कोडनेम वलीउल्लाह’ और “आप्रेशन खंजर” ने एक बार फिर से हमारे सामने एक नयी चुनौती खड़ी
कर दी थी। अब वह नाम और उस नाम से जुड़ा प्रोजेक्ट खुल कर सबके सामने आ गया था।
राष्ट्रीय सुरक्षा
सलाहकार अजीत के चेहरे पर परेशानी के भाव साफ विद्दमान थे। उसने सोचते हुए कहा… अब
इसमे कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान कुछ बड़ा करने वाला है। वह क्या करने वाले है और उनके
निशाने पर कौन है अन्यथा वह कहाँ हमला करने की सोच रहे है? इन सवालों का जवाब पता करने
के लिये हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। हमने पहले से ही आईबी, रा और सीबीआई को इस बारे
मे सुचित कर दिया है और वह सारे राज्यों की पुलिस के साथ सीधे संपर्क मे है। जनरल रंधावा
ने तुरन्त कहा… अजीत, सभी सुरक्षा एजेन्सियाँ फिलहाल अंधेरे मे हाथ मार रही है। हमे
जल्दी से जल्दी इस साजिश का पर्दाफाश करना पड़ेगा। …रंधावा, तुम सही कह रहे हो। यही
बात मैने वीके से कही थी। अभी तक दुश्मन की रणनीति का हमारे
पास कोई सुराग नहीं है। कल रात को रा के निदेशक के साथ इस मसले पर मेरी बात हुई थी
परन्तु उसके पास भी इस बारे मे कोई जानकारी नहीं है परन्तु अब शायद इसका कोई सुराग
लग जाए। मै अब इस काम की जिम्मेदारी मेजर पर डालना चाहता हूँ।
मैने चौंक कर अजीत
सर की ओर देखा तो अजीत ने कहा… मेजर, हम सब की राय है कि तुम्हें फील्ड आप्रेशन को
संभालना पड़ेगा और यहाँ आफिस मे जनरल रंधावा इस मुहिम का संचालन करेंगें। वह सभी सुरक्षा
एजेन्सियों के साथ हर पल संपर्क मे रहेंगें। …यस सर। हम अभी चर्चा कर ही रहे थे कि
गोपीनाथ ने तेजी से हाल मे प्रवेश किया और अजीत के सामने दो कागज रखते हुए कहा… अजीत,
बुरी खबर है। पहली आतंकवादी तंजीमो का संयुक्त मोर्चा तीन जगहों पर एक साथ फिदायीन
हमला करने की सोच रहा है जिसका उद्देश्य हमारी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाने
का है। अनमोल के अनुसार उनके जिहादी बांग्लादेश मे दो जगह प्रशिक्षण ले रहे है। पहला,
दक्षिण बांग्लादेश के डेल्टा क्षेत्र पर उनके तीन फिदायीन समूह प्रशिक्षण ले रहे है।
उनके दो समूह बंगाल की खाड़ी मे प्रशिक्षण ले रहे है। अनमोल ने खबर की है कि आईएसआई
इस काम का संचालन नेपाल मे अपने फैले हुए नेटवर्क के द्वारा कर रही है। दूसरी खबर और
भी ज्यादा खतरनाक है। कोई पाकिस्तानी एजेन्ट हमारी सेन्ट्रल कमांड मे बैठ कर हमारी
खुफिया सैन्य जानकारी आईएसआई को दे रहा है। उस गद्दार का कोडनेम वलीउल्लाह है।
इस वलीउल्लाह के जरिये वह आप्रेशन खंजर लाँच करने की साजिश रच रहे है। एकाएक कमरे मे
शांति छा गयी थी। दोनो खबरें हमारे लिये बड़े भारी खतरे की सूचक थी।
कुछ देर तक चर्चा
करने के बाद मैने पूछा… सर, आरफा चौधरी का क्या करना है। वह बांग्लादेशी नागरिक है।
वीके ने कहा… आरफा को कुछ
दिनो के लिये तुम अपने घर पर रख लो क्योंकि तुम्हारे कैंम्पस जैसी सुरक्षित जगह और कहीं नहीं दिख रही
है। है। तब तक हम उसके कागजात तैयार करवाते है। अजीत सर की योजना पर मौहर लगा कर गोपीनाथ,
वीके और अजीत सर चले गये
थे। जनरल रंधावा की देखरेख मे फील्ड आप्रेशन्स का मै संचालन करुँगा और जनरल रंधावा
सभी सुरक्षा एजेन्सियों के साथ हर पल संपर्क बना कर रखेंगें। इस बीच मिलिट्री इन्टेलीजेन्स
एजाज मूसा और पकड़े हुए अन्य फिदायीनों से पूछताछ करने मे जुट गयी थी। सब कुछ तय होने
के बाद हाल मे जनरल रंधावा और मै रह गये थे।
…मेजर, सबसे पहले
आने वाले खतरे से निपटने के लिये काठमांडू पर आईएसआई की गतिविधियों पर नजर रखनी पड़ेगी।
इन्टेल रिपोर्ट्स के अनुसार हाल ही मे नेपाल मे स्थित पाकिस्तान दूतावास मे आईएसआई
का सबसे कुख्यात ब्रिगेडियर शुजाल बेग नियुक्त हुआ है। मेरा अनुमान है कि वही इस आप्रेशन
खंजर का संचालन कर रहा है। तुम काठमांडू जाने की तैयारी करो तब तक मै आईबी और रा से
वहाँ पर स्थित अपने नेटवर्क से जानकारी इकठ्ठी करवाता हूँ। इतना बोल कर जनरल रंधावा
अपने आफिस की ओर चले गये और मै अपने आफिस मे चला आया था। आरफा एक कोने पड़े हुए सोफे
पर अकेली बैठी मेरा इंतजार कर रही थी। मुझको देखते ही वह खड़ी हो गयी थी। इतने दिनो
मे पहली बार मैने आरफा पर एक भरपूर नजर डाली थी। सस्ते से सूती ब्लाउज और धोती से उसका
साँचे मे ढला हुआ जिस्म ढके हुए होने के बाद भी उसकी उन्नत और पुष्ट जिस्मानी गोलाईयाँ
का एहसास करा रहा था। उसकी निगाहें झुकी होने के बावजूद वह तिरछी निगाहों से मुझे देख
रही थी। हमारी आँखें चार होते ही उसकी आँखों मे अभिसारिक चंचलता की झलक दिखायी दे रही
थी। परस्त्री संसर्ग के कारण इन अदाओं से मै पूर्णता वाकिफ था लेकिन पता नहीं क्यों
मै एक पल के लिये असहज हो गया था। जल्दी से अपने आप को संभालते हुये मैने कहा… काफी
देर हो गयी है। आओ चले। अपना आफिस बन्द करके उसको अपने साथ लेकर मै फ्लैट की ओर चल
दिया।
फ्लैट पर पहुँचते
ही तबस्सुम ने कहा… चलिये वह लोग हमारा इंतजार कर रहे है। …कहाँ जाना है? …आपको कल
बताया था न कि अपने नये पड़ौसियों ने हमे चाय पर बुलाया है। आरफा को फ्लैट पर छोड़ कर
मै उसके साथ चल दिया था। प्रोफेसर सुरेश पेंडारकर का राष्ट्रीय रक्षा कालेज मे लेकचरार
के पद पर हाल ही मे नियुक्ति हुई थी। तबस्सुम की उनकी पत्नी शिखा से जान पहचान थी।
बड़ी गर्मजोशी के साथ उन्होंने हमारा स्वागत किया था। प्रोफेसर साहब ने चाय पीते हुए
कहा… आपकी पत्नी बता रही थी कि आप बाहर गये हुए थे। …जी। …आप इसी कालेज मे काम करते
है? …नहीं सर, मै सेना मे काम करता हूँ। यहाँ पर डेप्युटेशन पर आतंकवाद और स्पेशल आप्रेशन्स
विषय की आफीसर्स को प्रशिक्षण दिया करता था परन्तु हाल ही मे मेरी नियुक्ति वापिस सेना
भवन मे हो गयी है। आप यहाँ पर कौन से कोर्सेज लेते है? …मै तो इसरो मे काम करता था।
इसरो की ओर से मुझे भी यहाँ तीन साल के डेप्युटेशन पर भेजा गया है। मेरा विषय सूचना
और संचार माध्यम है। तभी प्रोफेसर साहब की पत्नी शिखा ने कहा… घर आकर भी आफिस की बात
कर रहे है। समीर आपकी पत्नी बेहद सीधी है। मै हैरान हूँ कि आज के जमाने मे कैसे उसे
अभी तक यहाँ की हवा नहीं लगी है। उसकी वजह से मेरा मन लग गया है। आप खुशकिस्मत है वर्ना
आज कल की लड़कियों के नखरों से तो भगवान बचाये। उसके बाद शिखा और तबस्सुम की कहानी आरंभ
हो गयी थी। कुछ देर उनके साथ बैठ कर हम वापिस अपने फ्लैट की ओर चल दिये थे।
…तुमने उन्हें अपने
बारे मे क्या बताया है? …मेरा नाम मिरियम बट है। मै उन्हें और क्या बता सकती थी। आपके
बारे मे पूछा तो मैने आपका नाम बता दिया था। आप सेना मे अफसर है इससे ज्यादा मै आपके
बारे मे क्या जानती हूँ जो उन्हें बताती। …हमारी शादी कब हुई? …बचपन मे हमारी शादी
हो गयी थी। बस आपके साथ रहने कुछ महीने पहले आयी थी। मैने उसकी पीठ थपथपा कर कहा… बहुत
अच्छे अब तुम भी मेरी तरह झूठ बोलने लगी हो। वह अचानक तमक कर बोली… अब जब मेरा सारा
जीवन ही झूठ पर टिका है तो फिर अभी से मैने प्रेक्टिस आरंभ कर दी है। उसकी बात ने एक
बार फिर से मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था। …उसको तो आप आज कहीं छोड़ कर आने वाले थे
तो क्या हुआ? …जब तक उसके कागज तैयार होते है तब तक उसको यहीं रखना पड़ेगा। हम वापिस
अपने फ्लैट मे आ गये थे। मैने मेस मे फोन करके खाना मंगा लिया था। आरफा ने हमारे साथ
बैठ कर भोजन किया और फिर वह वापिस अपने कमरे मे चली गयी थी। बिना पूछे ही तबस्सुम ने
मुझे अपना निर्णय बता दिया था। यही सोचते हुए मै उसे लेकर अपने कमरे मे आ गया था।
"काफिर" के उपसंहार में जो अनमोल विश्वास की मौत हुई थी उसका आज खुलासा हो गया है मगर इसके साथ साथ उसने भारत के विरुद्ध चल रहे सदी के सबसे खतरनाक घुसपेठ और आतंकी हमले की सूचना दे गया है, अब समीर को फिर से फील्ड में तबादला हो गया है और अब की बारी नेपाल में सेंध मारने की उसको ऑर्डर है , अब तबस्सुम ने भी खुलकर जीना थोड़ा बहुत सीखने लगी है, मगर अरफा चौधरी नामकी तूफान क्या समीर और तबस्सुम के निजी जीवन को तहस नहस करेगी या उनको करीब ला देगी, यह देखना मजेदार होगा।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई धन्यवाद। अनमोल बिस्वास ने भारत के खिलाफ साजिश का एक सुराग दिया है लेकिन उनके असली उद्देश्य को जानने के लिये समीर को न जाने कितनी मेहनत करनी पड़ेगी। तबस्सुम को भी जिन्दा और सुरक्षित रहने के लिये नये परिवेश मे ढलना पड़ेगा। आपने सही सोचा है कि आरफा इस नये रिश्ते को पुख्ता करने मे मदद करती है या नये बनते हुए रिश्ते के बीच अड़चन पैदा करने की कोशिश करती है।
हटाएंnice blog dear
जवाब देंहटाएंसाईरस भाई धन्यवाद।
हटाएंवीर भाई,
जवाब देंहटाएंशानदार एवं लाजवाब। एक ही बार मे मैने लगातार सारे एपिसोड पढ़ डाले। तारीफ़ के लिए शब्द कम पड़ रहे हैँ।
राज भाई शुक्रिया। दोस्त एक ही बार मे सारे एपीसोड पढ़ कर रचना मे हर बदलते हुए क्षण को महसूस करना आसान हो जाता है परन्तु एक-एक अध्याय को पढ़ कर अगले अध्याय के इंतजार मे रचना के साथ जुड़ाव और दिमागी कुश्ती का मजा ही कुछ और होता है। गहरी चाल की पहली कड़ी काफ़िर है। क्या आपने काफ़िर के सभी अध्याय भी पढ़ लिये है। उसके उपर आपकी प्रतिक्रिया जानना जरुर चाहूंगा।
हटाएंएक और धमाकेदार अपडेट्स, पाकी isi के साजिशकी परते दर परते खुल रही है, आखीरकर तबस्सुमने समीर को अपना निर्णय सुना दिया, शायद ही उसके सामने इसके शिवा कोई और विकल्प था भी वैसे.
जवाब देंहटाएंदेखते है आरफा चौधरी और
क्या क्या रहस्य अपनेमे दबाये बैठी है.
प्रशांत भाई धन्यवाद। आप ठीक समझ रहे है कि साजिश की परतें धीरे-धीरे खुलेंगी परन्तु कैसे और कब वह समय बताएगा। तबस्सुम और आरफा की अपनी मजबूरी है।
हटाएंऔर हां चांदणी बेचारीका दिल टुट गया, पर मेरा मानना है समीर ने इन जिहादी वामपंथीयोंमे एक स्लीपर सेल बिठा दिया जो शायद आगे चलके काम आ जाये. वैसे उसका ब्रेन वॉश तो पुरी तरह नही हूवा, पर बेग, मौलाना और सेक्स स्लेव बनती मदरसेकी औरते और बच्चीयोंके सचने उसे अंदर तक हिला दिया.
जवाब देंहटाएंप्रशांत भाई लगता है कि मेरी रचना की सभी नायिकाओं के साथ आपका जुड़ाव ज्यादा गहरा है। चांदनी का किरदार एक कट्टर जिहादिन वामपंथी का है। उस विचारधारा मे समझौता सिर्फ अपनी जरुरत अनुसार किया जाता है परन्तु बदलाव मुमकिन नहीं है । शायद इसी कारण वामपंथ का उदारवाद दुनिया भर मे कट्टरता के साथ देता हुआ दिख रहा है।
हटाएंहां आप ठीक समझे, पिछले 15 दिनमे अफगाणसे लेके CIA तक सारी रचनाये वापस पढ डाली, मुझे अफगाण मे झरीना सकिना हुमा कायनात कॅथी मर्जीना नफिसा सब नायकाये पसंद है, हर एक का कहाणीमे अपना स्पष्ट वजूद है, ऐसाही फ्रेया और जारा के साथ भी है, मुझे यहा मर्जीना और जारा का कॅरॅक्टर सेम लगा, ऐसाही शिरीन और नफिसा का लगा, CIA वाली क्युटसी एना अब्राहाम को कैसे भुले. हर नायिका अपना कॅरॅक्टर लेके बैठी है. मुझे झरीना और डॉ आऐशा का हमेशा बुरा लगा, बेचारी को जादा लाईफ नही मिली, उनके साथ नाईन्सफी हुई ऐसा बार बार लगा. यहा काफिर मे तो कितनी सारी है 😉😎😃
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