रविवार, 10 सितंबर 2023

   

 

गहरी चाल-25

 

एक पल के लिये मै जड़वत बैठा रह गया था। जब मुझे कुछ समझ मे आया तो उसके पीछे भागा लेकिन वह बाहर दिखायी नहीं दे रही थी। मेरी नजर पहले मुख्य द्वार पर पड़ी तो दरवाजा बन्द था। इसका मतलब वह घर से बाहर नहीं गयी थी। आरफा का दरवाजा बन्द देख कर मै कुछ सोच कर मेनका के कमरे की ओर चला गया। मैने भिड़े हुए दरवाजे को धीरे से धक्का दिया तो वह झोंक मे खुलता चला गया था। तबस्सुम मेनका के पास बैठी हुई शून्य मे ताक रही थी। उसका चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था और बेबसी मे वह लगातार अपनी मुठ्ठियाँ भींच रही थी। मै दरवाजे के बीचोंबीच खड़े होकर दबी आवाज मे बोला… हर कुछ जो दिखता है वह सच नहीं होता। वह मुझे घूरती रही लेकिन मैने जैसे ही उसकी ओर कदम बढ़ाया तो वह फुर्ती से उठ कर खड़ी हो गयी थी। अपने कदम पीछे खींचते हुए मैने कहा… बानो, यह स्थिति एक बार श्रीनगर मे उस रात को भी हमारे सामने आयी थी। आज फिर कह रहा हूँ कि एक बार मेरी बात शांति से सुन लो फिर जो भी तुम कहोगी बिल्कुल वैसा होगा। अभी भी उसकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे। गुस्से मे अभी भी उसकी मुठ्ठियाँ भिची हुई थी। मैने एक नजर सोती हुई मेनका पर डाल कर उसकी ओर देखते हुए दबी जुबान मे कहा… तुम जिस आदमी के साथ इतने दिन साथ रही बस उसे इतना ही समझ पायी कि वह एक हैवान है। अचानक वह धम्म से बिस्तर पर बैठ गयी और उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी।

मै उसके नजदीक चला गया था। उसको कंधो से पकड़ कर खड़ा किया और अपनी बाँहों मे जकड़ कर वहाँ से अपने कमरे की ओर चलते हुए कहा… मेरे साथ दोजख मे जाने का दम भरती हो लेकिन मुझ पर इतना भी विश्वास नहीं है। यह तुमने कैसे सोच लिया कि मै उस लड़की के साथ ऐसा कुछ कर सकता हूँ। तबस्सुम को अपने साथ बिस्तर पर बिठा कर मैने कहा… वह ब्रिगेडियर शुजाल बेग की बेटियाँ है। मै उनसे बस इसलिये अकेले मे मिलना चाहता था कि एक बार उन्हें उनके अब्बा से मिलवा दूँ जिससे वह अपनी जिद्द छोड़ कर सच्चायी बता दे। इतनी देर मे उसने पहली बार भीगी हुई पल्कों से मेरी ओर देखा तो  मैने कहा… मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो कल सुबह मेरे साथ वहाँ चल कर देख लेना। उसके होंठ कुछ बोलने के लिये काँपे तो मैने उसके होंठों पर उँगली रख कर चुप कराते हुए कहा… दो दिन पहले तुम्हारे अब्बा से दिल्ली मे मिला था। वह ब्रिगेडियर शुजाल बेग की हत्या की नीयत से वहाँ आया हुआ था। मुझसे वह सौदा करना चाहता था कि आईएसआई की मेजर हया इनायत मीरवायज  के बदले मे उसे शुजाल बेग का पता चाहिये था। क्या तुम हया इनायत मीरवायज को जानती हो? मेरी निगाहें उस पर टिकी हुई थी लेकिन उस नाम को सुन कर उसके चेहरे पर हल्की सी भी प्रतिक्रिया नहीं दिखी थी।

वह अब तक सयंत हो चुकी थी। मेरी ओर भीगी पल्कों से देखते हुए धीरे से बोली… मुझे उनसे कोई मतलब नहीं है। मेरा रिश्ता अब आपसे है लेकिन आपने भी मुझे इतने दिन धोखे मे रखा। आप मुझे पहले ही बता देते तो ऐसी गलतफहमी तो नहीं होती। उसके एक ही वार ने मेरी सारी धूर्तता और चालाकी को धाराशायी कर दिया था। मैने उसके हाथों को अपने हाथ मे लेकर कहा… तबस्सुम, मै यहाँ पर सिर्फ ब्रिगेडियर शुजाल बेग के लिये आया था। मै स्थायी रुप से यहाँ रहने की मंशा से हर्गिज नहीं आया था। यही सच है लेकिन तुमने मेरे सारी योजना को गडमड कर दिया। तुम अगर निकाह के लिये जोर नहीं डालती तो मै कभी भी यहाँ पर इतना बड़ा करोबार जमाने की नहीं सोचता। अपने काम को अंजाम देने के लिये मुझे सिर्फ एक फ्रंट की जरुरत थी। एक बार तुम्हारे साथ निकाह हो गया तो उसके बाद ही मुझे तुम्हारे लिये कुछ स्थायी इंतजाम करने की जरुरत महसूस हुई थी। भारत मे तुम्हारे अब्बू की नजरों से मै ज्यादा दिन तुम्हें बचा कर नहीं रख सकता था। मुझे यह जगह सुरक्षित लगी तो यहाँ एक स्थायी कारोबार डालने के लिये गंभीरता से सोचने लगा था। मै बोलते हुए एक पल के लिये रुक गया था।

…आप यहाँ ब्रिगेडियर साहब के लिये क्यों आये थे? …श्रीनगर मे तुम्हारे अब्बू ने बताया था कि कोई वलीउल्लाह नाम का कोडनेम लिये गद्दार हमारे देश की कुछ महत्वपूर्ण सैन्य जानकारी आईएसआई को दे रहा है। वलीउल्लाह को पकड़ने के लिये तुम्हारे अब्बू ने मुझे वलीउल्लाह की हैंडलर मेजर हया इनायत मीरवायज को पकड़ने की सलाह दी थी। हया को तो मै खोज नहीं सका लेकिन दिल्ली और बंगाल मे एक कार्यवाही दौरान यह पता चला कि जिहादी काउंसिल कोई बहुत बड़ा फिदायीन हमला भारत मे करने की योजना बना रही है जिसका संचालन ब्रिगेडियर शुजाल बेग काठमांडू से कर रहा है। इसीलिये हम यहाँ पर शुजाल बेग को भारत ले जाने के लिये आये थे। …तो क्या उसने आपको बता दिया? …अभी नहीं लेकिन अगर उसने जल्दी नहीं बताया तो शुजाल बेग का पूरा परिवार बेवजह मारा जाएगा। हमारे पास शुजाल बेग की ऐसी सीडी है जिसे अगर हमने नेपाल सरकार को दे दी तो सारी पाकिस्तानी स्थित चरमपंथी तंजीमे शुजाल बेग को ही नहीं बल्कि उसके पूरे परिवार को बड़ी दर्दनाक मौत देंगी जिसमे जेनब और नफीसा भी शामिल है। मेरे सीओ साहब ने उस सीडी को नेपाल सरकार को देने का मन बना लिया था लेकिन मैने एक हफ्ते के लिये इस काम को टलवा दिया है। शुजाल बेग भले ही हमारा दुश्मन है लेकिन वह आखिर एक सैनिक है। उसके परिवार को उसके किये की सजा तो नहीं दी जा सकती बस यही सोच कर मैने शुजाल बेग का मुँह खुलवाने की जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली थी। अब अगर एक हफ्ते मे उसने वलीउल्लाह का राज और जिहादी काउंसिल की योजना का खुलासा नहीं किया तो वह सीडी नेपाल सरकार को दे दी जाएगी। मुझे लगता है कि जब जेनब और नफीसा उससे पूछेंगी तो हो सकता है कि वह शायद बता दे। वह अभी तक मेरी बात चुपचाप सुन रही थी।

अब तक वह शांत हो चुकी थी। मैने उसका हाथ छोड़ कर कहा… शुजाल बेग अपनी गलतियों को छिपाने के लिये नूर मोहम्मद को बलि का बकरा बना रहा था। मैने उसकी मदद की तो नूर मोहम्मद ने शुजाल बेग को प्लेट मे सजा कर हमारे हवाले कर दिया था। मैने सारी सच्चायी तुम्हारे सामने रख दी है। यह सब किसी सिविलियन को बताना मेरे लिये प्रतिबन्धित है। अब जब अपना जीवन ही तुम्हारे हाथ मे रख दिया है तो फिर तुमसे क्या छिपाना। मैने सारी सच्चायी तुम्हारे सामने रख दी है। अब जैसा तुम चाहोगी मै वही करुँगा। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। वह सिर झुकाये चुपचाप बैठी रही फिर धीरे से नजरें उठा मेरी ओर देख कर बोली… प्लीज, आप मुझे और शर्मिन्दा मत किजिये। फोन पर आपकी बात सुन कर ऐसी बात मेरे मन मे ही क्यों आयी मुझे पता नहीं। इतने दिनो से आपके साथ रहने के बाद भी मैने इतनी भारी गल्ती कैसे कर दी कि मै खुद ही अपनी ही नजरों मे गिर गयी हूँ। अब किस मुँह से आपसे माफी मांगू मुझे समझ मे नहीं आ रहा है। वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। मैने उसे पकड़ कर अपने सीने से लगा कर कहा… तुम्हारी कोई गल्ती नहीं है। यह तुम्हारी अच्छाई है कि तुमने शांति से मेरी बात सुनी वर्ना जरा सी बात पर लोगों के घर टूट जाते है। इस वक्त तुम्हारे शरीर मे बहुत से बदलाव हो रहे जिसके कारण गुस्सा आना स्वाभाविक है। उसके लिये मुझसे माफी मांगने की जरुरत नहीं है। बस एक बात गाँठ बांध लो कि जानबूझ कर मै कभी भी तुम्हारा दिल दुखाने की नहीं सोच सकता। बस अगर इतना विश्वास मुझ पर रखोगी तो वादा करता हूँ कि दोजख मे भी हमारा समय आराम से कट जाएगा। वह मुस्कुरायी और उसी के साथ हमारी सुलह हो गयी थी।

सुबह उठते ही तबस्सुम ने कहा… आप गार्डन आफ ड्रीम्स जा रहे है। हमे भी ले चलिये। इसी बहाने मेनका भी वहाँ घूम लेगी वर्ना कल सुबह तो आप दोनो वापिस चले जाएँगें। …तुम दोनो भी चलो। तुम अगर वहाँ होगी तो शायद जेनब बात करते हुए नहीं घबरायेगी। मै तैयार होने के लिये चला गया और तबस्सुम मेनका को तैयार करने के लिये चली गयी थी। दस बजे तक हम नाश्ता करके गार्डन आफ ड्रीम्स के लिये निकल गये थे। बेहद मनोरम प्रकृतिक धरोहर है। सर्दियों मे भी वहाँ पर चारों तरफ काफी हरियाली थी। दो काफी हाउस होने के कारण वहाँ पर पर्यटकों की काफी भीड़ लगी हुई थी। मेरी आँखें जेनब को तलाश रही थी। उस भीड़ मे उसे पहचानना मेरे लिये आसान भी नहीं था। मैने उसको सिर्फ एक बार देखा था तो अब मुझे भी अपने उपर शक होने लगा था। अचानक मेनका और तबस्सुम आगे बढ़ गये थे। मै उन्हें रोकने के लिये आवाज देने जा रहा था कि तभी मेरी नजर उन पर पड़ी जिनसे मिलने के लिये वह आगे बढ़ गये थे। जेनब नीचे झुक कर मेनका से बात कर रही थी और तबस्सुम से नफीसा बात कर रही थी। उनको देख कर मुझे लगा कि मेरे दिमाग मे जो उनकी जो छवि थी उससे तो वह काफी भिन्न दिख रही थी। नूर मोहम्मद के यहाँ तो वह दोनो ही मुझे स्कूल की लड़कियाँ लगी थी परन्तु इस समय टी-शर्ट और जीन्स मे तो दोनो ही उठती हुई उम्र की युवतियाँ लग रही थी।

मै उनके पास चला गया था। …सलाम। दोनो ने सलाम किया और नफीसा ने तबस्सुम से पूछा… आप लोग मेनका को घुमाने के लिये आये है। अबकी बार मैने कहा… अंजली, मेनका को घुमाने के लिए आयी है लेकिन मै तुमसे मिलने आया हूँ। मेरी बात सुन कर दोनो के चेहरे पर डर की लकीरें खिंच गयी थी। दोनो के चेहरे पर घबराहट देख कर तबस्सुम ने कहा… घबराने की कोई जरुरत नहीं। तुम इन्हें बेफिक्र होकर सुन लो और फिर जो ठीक समझो वह करना। तबस्सुम की बात सुन कर जेनब सहज होकर बोली… नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। मैने पूछा… क्या तुमने यहाँ किसी से मिलने की बात कह कर आयी थी? …नहीं। हम सिर्फ यह बोल कर आयी है कि हम घूमने जा रहे है। मैने एक बार चारों दिशाओं मे देख कर कहा… तुम दोनो हमारे साथ बात करती हुई चलो जैसे कि परिवार के लोग यहाँ घूमने आये है। हम सब गार्डन के अन्दर चले गये थे। पेड़ों के बीच मे घूमते हुए वह सब मेरे आगे कुछ देर बात करते हुए चलते रहे और मै आसपास देखता हुआ चल रहा था कि कोई हमारा पीछा तो नहीं कर रहा है। जब मै पूरी तरह आश्वस्त हो गया कि कोई उनका पीछा नहीं कर रहा है तो मै उनके साथ चलने लगा।

उनके साथ चलते हुए मैने कहा… तुम्हारे अब्बू बिल्कुल ठीक है और मै तुम्हें उनसे मिलवा सकता हूँ। नफीसा चलते-चलते रुक गयी तो मैने आवाज कड़ी करते हुए कहा… रुको नहीं बस चलती रहो। मेरी बात सुन कर दोनो के चेहरों पर हवाइयां उड़ गयी थी। प्राकृतिक धरोहर के बीचोंबीच बड़ा सा खुला मैदान देख कर हम उस ओर बढ़ गये थे। बहुत से सैलानी सर्दियों की धूप का मजा लेने के लिये वहाँ बैठे हुए थे। एक सुनसान कोने मे हम सब भी जाकर बैठ गये थे। मेनका बैठे हुए पंछियों को उड़ाने मे व्यस्त हो गयी थी।  

अपने विचारों को एक तारतम्य मे बिठा कर मैने कहा… मुझे तुम्हारी मदद चाहिये। अब यह तुम पर है कि क्या तुम एक अनजान आदमी पर विश्वास कर सकती हो। तुम्हारे अब्बा इस वक्त भारतीय सेना के हाई-सिक्युरिटी सेल मे बन्द है। उनसे मिलने के लिये तुम्हे मेरे साथ दिल्ली चलना पड़ेगा। मेरी कल सुबह नौ बजे की फ्लाइट है। मैने तुम्हारे अब्बा से सिर्फ दो सवाल पूछे है लेकिन वह जवाब देने से इंकार कर रहे है। अगर वह जवाब नहीं देंगें तो फिर उन्हें कोई नहीं बचा सकता। क्या ऐसी हालत मे तुम उनसे मिलना चाहोगी? दोनो सिर झुकाये बैठी हुई थी लेकिन वह मेरा एक-एक शब्द ध्यान से सुन रही थी। तभी तबस्सुम ने कहा… कोई भी जवाब देने से पहले तुम्हें यह जान लेना चाहिये कि यह काफ़िरों की फौज के अफसर है। यह दुश्मन है लेकिन मै पूरी शिद्दत से इनकी जामिन हूँ कि यह तुम्हारे अब्बू को ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार को बचाने की कोशिश कर रहे है जिसमे तुम दोनो भी शामिल हो। एक पल रुक कर मैने कहा… उनसे एक भी ऐसा सवाल नहीं पूछा है जिसके जवाब देने के कारण उन्हें उनका कोई देशवासी गद्दार ठहरा सकता है। मै सिर्फ एक सैनिक की तरह दूसरे सैनिक की मदद करना चाहता हूँ। मै कोई गारन्टी नहीं दे रहा लेकिन यह भी हो सकता है कि अगर वह हमारी मदद करने के लिये तैयार हो गये तो हम उन्हें छोड़ भी सकते है।

वह दोनो चुपचाप मेरी बात सुन रही थी। …तुम दोनो को एक और बात समझना बहुत जरुरी है कि हमारे बीच मे हुई बात सिर्फ हमारे बीच मे रहनी चाहिये। अगर यह बात तुमने किसी और से की तो मैने साफ इंकार कर देना है क्योंकि औपचारिक तौर पर कोई नहीं जानता कि तुम्हारे अब्बा इस वक्त कहाँ पर है। पाकिस्तान मे उनके अधिकारी यह सोच रहे है कि वह पैसों की लालच मे हमसे मिल गये है जो कि बिल्कुल गलत है। इसीलिये उन्होंने अपने फिदायीन तुम्हारे अब्बा की हत्या करने के लिये भारत मे भेज दिये है। यह जानते हुए कि तुम्हारे अब्बू हमारे दुश्मन है मै फिर भी उन्हें सिर्फ फौजी होने के नाते बचाना चाहता हूँ। अब तुम्हें सोचना है कि क्या तुम उनसे एक बार मिल कर बात करना चाहती हो कि नहीं। बस इसमे मेरी ओर से सिर्फ एक ही शर्त है कि इसका निर्णय सिर्फ तुम दोनो को लेना है और इसके लिये तुम किसी और से सलाह नहीं ले सकती। मुझे तुम दोनो से बस इतनी बात करनी थी। अब मै मेनका को अपने साथ लेकर घूमने जा रहा हूँ और थोड़ी देर के बाद आऊँगा तब तक अपना जवाब सोच लेना। इतना बोल कर उन्हें तबस्सुम के पास छोड़ कर मै मेनका को लेकर घूमने के लिये निकल गया था।

आधे घंटे के बाद जब मै लौटा तो मैने देखा कि वह दोनो तबस्सुम से बात कर रही थी। मुझे देखते ही वह सब चुप हो गये थे। …तो फिर क्या सोचा? जेनब ने कहा… हमने सोच लिया है कि एक बार अब्बा से मिल कर उनसे बात करना जरुरी है। …तो मेरे साथ कौन चल रहा है? …हम दोनो चल रही है। …नहीं यह नहीं हो सकता। यहाँ से एक के जाने मे ही मुश्किल होगी और अगर दोनो यहाँ से चली गयी तो यहाँ पाकिस्तानी दूतावास मे विस्फोटक स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। वैसे भी एक यहाँ रुक कर दूसरी को आसानी से कवर कर सकती है। दोनो ने गुपचुप बात की और फिर जेनब ने कहा… नफीसा आपके साथ चली जाएगी। मै यहाँ पर सब कुछ संभाल लुँगी। …ठीक है। …नूर मोहम्मद अंकल को क्या कह कर जाओगी? इतनी देर मे तबस्सुम पहली बार बोली… नफीसा आज की रात हमारे यहाँ रुक जाएगी। सुबह वहीं से आपके साथ एयरपोर्ट चली जाएगी। जेनब वापिस जाकर शबाना बाजी से कह देगी कि नफीसा अपने दोस्तों के साथ पोखरा चली गयी है। दो-तीन दिन मे वापिस आ जाएगी। मै उसी वक्त समझ गया था कि तबस्सुम के कारण ही वह इतनी जल्दी मेरे साथ चलने के लिये तैयार हो गयी थी। …ठीक है। सारी बात तय होने के बाद हम लोग मेनका के कारण एक बार फिर से पारिवारिक स्थिति मे आ गये थे।

तबस्सुम मेरे साथ आकर बैठ गयी थी। …तुमने मुझसे पूछे बिना तो कोई वादा तो नहीं किया है। वह कुछ देर चुप रही और फिर मेरी ओर देख कर बोली… बस एक वादा किया है कि अगर उनके अब्बा आपकी मदद करने के लिये तैयार हो गये तो आप उन्हें छोड़ देंगें। मैने दबी आवाज मे झिड़कते हुए कहा… तुमने ऐसा वादा क्यों कर दिया। मैने सिर्फ यह कहा है कि हो सकता है कि हम उन्हें छोड़ देंगें लेकिन…। …लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। आप अपनी ओर से उन्हें छुड़वाने की पूरी कोशिश करना। मैने झल्ला कर तबस्सुम के सिर को पकड़ कर हिला कर कहा… कभी तो इसका भी इस्तेमाल कर लिया करो। वह आईएसआई का सबसे दुर्दान्त अफसर है। अगर फिर कभी सामना हो गया तो बिना झिझके वह मुझे और तुम्हें जिन्दा दीवार मे चिनवा देगा। …कोई बात नहीं। यह क्या उसका कम एहसान होगा कि वह हमे एक साथ दीवार मे चिनवा देगा। मै जानता था कि शुजाल बेग को छोड़ना इतना आसान नहीं होगा लेकिन हम सभी जानते थे कि उसको वहाँ पर हमेशा के लिये रखा भी नहीं जा सकता था। मै उसे कैसे बताता कि इन दोनो के अब्बा या तबस्सुम के अब्बा मे से सिर्फ एक ही इंसान पाकिस्तान जिन्दा वापिस जायेगा।

मैने उठते हुए कहा… चलो कैफे मे बैठ कर कुछ खा-पी कर वापिस चलते है। वहीं से घर की ओर निकल जाएंगें। हम सभी कैफे की ओर चल दिये थे। हम पेड़ों के बीच बनी हुई पगडंडी पकड़ जैसे आये थे वैसे ही कैफे की ओर चल दिये थे। जैसे ही हम बाग से निकल कर सड़क पर पहुँचे कि अचानक मेरी नजर एक स्त्री और उसके दो साथियों पर पड़ी जो अपनी बातों मे उलझे हुए कैफे के सामने से गुजर रहे थे। मेरे कदम चलते-चलते एकाएक रुक गये थे। उस स्त्री को देख कर मेरा सारा जिस्म झनझना गया था। वही चेहरा और कद-काठी देख कर एक पल के लिये मेरे होश उड़ गये थे। तबस्सुम और दोनो बहने अपनी झोंक मे एक कदम आगे निकल गयी थी। मै मेनका का हाथ पकड़ कर खड़ा हुआ उस स्त्री को पीछे से देख रहा था। अचानक मेनका चिल्लायी… अम्मी। तबस्सुम ने घूम कर हमारी ओर देखा और तभी वह स्त्री भी चौंक कर आवाज की दिशा मे मुड़ी लेकिन तब तक मैने जल्दी से मेनका के मुख पर हाथ रख कर अपनी गोदी मे उठा लिया और पंजों पर घूम कर तेजी से कैफे के सामने इकठ्ठी हुई भीड़ मे घुस गया था। पल भर मे ही मेरा जिस्म पसीने से नहा गया था। मेरे हाथ और पाँव काँप रहे थे। आफशाँ तो ढाका गयी थी तो वह यहाँ काठमांडू मे क्या कर रही है और उसके साथ वह दोनो आदमी कौन थे? उनमे से एक आदमी को मैने नूर मोहम्मद की पार्टी मे देखा था।

तबस्सुम भीड़ को चीरते हुए मेरे पास आकर बोली… आपको क्या हुआ? मैने जल्दी से अपने आप को संभालते हुए कहा… कुछ नहीं। मेनका को गलतफहमी हो गयी थी। उसे लगा कि उसकी अम्मी उसके सामने से निकल गयी थी तो उसने आवाज लगा दी थी। इससे पहले कोई बखेड़ा खड़ा होता मै उसे लेकर यहाँ चला आया। मेनका तुरन्त बोली… नहीं अब्बू, मैने अम्मी को देखा था। …बेटा, तुम्हारी अम्मी यहाँ कैसे हो सकती है। वह इस वक्त ढाका मे है। आज तुम जरुर अंकल और आंटी के बीच लड़ाई करवा देती। अम्मी को आवाज लगाने से पहले देख तो लेती कि क्या वह तुम्हारी अम्मी है। चलो अब घर चलते है। मेरा मूड उखड़ गया था। मेनका भी मुझसे नाराज होकर चुप बैठ गयी थी। हम अपनी गाड़ी मे सवार हुए और वापिस चल दिये थे। मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था। कुछ दूर चलने के बाद जब दिमाग शांत हुआ तो मैने गाड़ी दरबार रोड की ओर मोड़ कर सीधे मैक्डोनल्ड के सामने ले जाकर खड़ी करके कहा… मुझे भूख लग रही है। जिसको भी कुछ खाना पीना है वह मेरे साथ चले। तबस्सुम, जेनब और नफीसा बोली कि हमे भी भूख लग रही है। तबस्सुम ने कहा… चलिये आज बर्गर ओर कोक का लंच हो जाए। मैने सिर झुकाये बैठी हुई मेनका से अपनी फौजी आवाज मे जल्दी से पूछा… जवान क्या बर्गर खायेगा? मेनका ने सिर उठा कर मेरी ओर देखा और फिर झेंपते हुए बोली… यस सर, जवान बर्गर खायेगा। यह बोल कर उसने तबस्सुम के सीने मे अपना चेहरा छिपा लिया था।

मैक्डोनल्ड मे प्रवेश करते ही मेनका के दिमाग से कैफे की घटना के बारे मे सब कुछ निकल गया और उसकी जगह अब बिग मैक ने ले ली थी। वह मेरे साथ लाइन मे लग गयी। हमारा नम्बर आते ही उसने अपना और बाकी सब का आर्डर लिखवाना शुरु कर दिया था। उसके सामान्य होते ही एक बार फिर उसकी बातों का सिलसिला आरंभ हो गया था। थोड़ी देर मे मेनका सबको अलग-अलग बर्गर और उनके साथ मिलने वाले खिलौनों के बारे मे बता रही थी। गार्डन आफ ड्रीम्स की घटना अब तक सबके दिमाग से निकल चुकी थी। लंच के दौरान यह तय हुआ कि जेनब लोकल टैक्सी लेकर अपने घर चली जाएगी और नफीसा हमारे साथ आज रात रहेगी। उन्होंने अपनी एक ही परेशानी हमारे सामने रखी थी कि नफीसा के लिये कपड़ों का कैसे इंतजाम होगा। उसकी मदद के लिये तबस्सुम ने कहा… मेरे पास कुछ कपड़े है। वह पहन कर देख लेना अगर फिट आ गये तो ठीक है वर्ना नये खरीद लेना। अच्छा है इसी बहाने नफीसा को नये कपड़े खरीदने का मौका तो मिलेगा। सारा माहौल इसी के साथ काफी खुशनुमा हो गया था।

जेनब को लोकल टैक्सी बैठाते हुए मैने कहा… मेरे साथ नफीसा सुरक्षित है। घबराने की जरुरत नहीं है। वह दो दिन मे वापिस आ जाएगी। बस दो दिन के लिये तुम यहाँ पर नूर मोहम्मद अंकल और शबाना आंटी को संभाल लेना। अगर तुम्हें नफीसा से फोन पर बात करनी हो तो अंजली के आफिस चली जाना तो वह तुम्हारी बात करा देगी। जेनब ने चलते हुए बस इतना कहा… प्लीज इसका ख्याल रखियेगा और अब्बा को मेरी ओर से सलाम कह दिजियेगा। मैने उसे आश्वस्त करके वापिस भेज दिया था। यह तो मै अच्छी तरह से जानता था कि जब नूर मोहम्मद को नफीसा नहीं दिखेगी तो सबसे पहले मुझ पर शक करेगा कि मैने उसे मनोहर लाल शर्मा के हवाले कर दिया होगा। मै यह भी जानता था कि वह इसके बारे मे वह किसी को कुछ भी बताने की स्थिति मे नही था तो वह जेनब की बताई हुई कहानी के अनुसार ही चलने के लिये बाध्य हो जाएगा।

मैक्डोनल्ड से निकल कर हम सभी गोदाम की ओर चले गये थे। उन्हें गाड़ी मे छोड़ कर मै यादव से मिलने चला गया। मुझे देखते ही उसने कहा… सर, उस गोदाम के बारे मे हमने पता लगाया है। मालिक एक करोड़ मांग रहा है। पांच एकड़ का प्लाट है लेकिन सिर्फ दो एकड़ कवर किया हुआ है। तीन डीलर तीन कीमत बता रहे है। अब आपको फाईनल करना है। …मुझे नहीं अंजली को फाईनल करना है। जो सबसे सस्ती कीमत बता रहा है उसे आफिस मे अंजली से मिला देना। लेकिन मै इसके लिये तुम्हारे पास नहीं आया हूँ। अभी से कमांड सेन्टर को सुचित कर दो कि पाकिस्तान दूतावास और नूर मोहम्मद पर चौबीस घंटे नजर रखें और अगर कोई हलचल दिखे तो तुरन्त मुझे खबर करे। कैप्टेन यादव ने वक्त की नजाकत समझते हुए कुछ नहीं कहा और वापिस लौटने लगा तो मैने उसे रोकते हुए कहा… कैप्टेन कल सुबह मुझे एयरपोर्ट जाने के लिये लिफ्ट चाहिये। सात बजे तक पहुँच जाईयेगा। …यस सर। बस इतनी बात करके वह संपर्क केन्द्र की ओर चला गया और मै अपनी गाड़ी की ओर चल दिया था। थोड़ी देर मे हम घर पर पहुँच गये थे। घर पहुँच कर सबसे पहले मैने नफीसा की टिकिट मिरियम बट के नाम से उसी फ्लाइट पर बुक करवायी और फिर मैने अपना फोन निकाल कर अजीत सर का नम्बर मिलाया। …हैलो। …सर, उसकी एक बेटी को मै अपने साथ लेकर कल सुबह दिल्ली पहुँच रहा हूँ। आप वहाँ उससे मिलने की इजाजत दिलवा दिजियेगा। …गुड। अजीत सर ने फोन काट दिया था।

तबस्सुम और आरफा ने नफीसा का इंतजाम मेनका के साथ कर दिया था। सभी थक गये थे तो रात को कुछ हल्का खाकर सोने के लिये चले गये थे। तबस्सुम ने लेटते ही प्रश्न किया… वहाँ पर आफशाँ को आपने देखा था। …हाँ। वह वही थी। मेनका ने उसे पहचान लिया था। …आपने उसे रोका क्यों नही? मैने जल्दी से कहा… यह मत सोचना कि मै तुमसे नहीं मिलवाना चाहता था। वह जिनके साथ जा रही थी उनमे से एक आदमी को मैने नूर मोहम्मद की पार्टी मे देखा था। अब भला आफशाँ मुझे ढाका का बता कर काठमांडू मे क्या कर रही थी और ऐसे आदमी के साथ उसका क्या संबन्ध हो सकता है? इसका जवाब जाने बिना मुझे लगा कि वहाँ पर आफशाँ से बात करना उचित नहीं होगा। …आपने बेचारी मेनका को युंहि डाँट दिया। उस बेचारी का मुँह जरा सा रह गया था। …कमाल है कि तुम्हें उसका चेहरा दिखा लेकिन मेरी हालत नहीं दिखी जिसकी बीवी उससे कह कर गयी थी कि वह ढाका जा रही है और वह उसे काठमांडू के एक पार्क मे दो लोगों के साथ दिखायी देती है। वह मुझसे लिपटते हुए बोली… देखने मे आफशाँ बेहद खूबसूरत है। मै अपना दिमाग आफशाँ से हटाना चाह रहा था लेकिन तबस्सुम उसकी बात करके मुझे असहज किये जा रही थी। उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर मैने कहा… बानो, आज मै तुम्हारे और आफशाँ की हर खूबसूरत चीज के बीच समानता और असमानता के बारे बताता हूँ। अब ध्यान से गिनती चलो क्योंकि फिर कभी नहीं बताउँगा। उसने शर्मा कर छूटने का प्रयत्न किया परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

सुबह तबस्सुम ने मुझे टाइम से जगा दिया था। मै तैयार होने के लिये चला गया और वह नफीसा और मेनका को तैयार होने के लिये कहने चली गयी थी। ठीक सात बजे कैप्टेन यादव अपनी पिक-अप लेकर आ गया था। कुछ ही देर मे हम एयरपोर्ट की दिशा मे जा रहे थे। यादव एयरपोर्ट पर हमे छोड़ कर वापिस चला गया था। जीन्स और टी-शर्ट छोड़ कर नफीसा ने तबस्सुम का कुर्ता और शलवार पहन लिया था। अपनी चुनरी से उसने अपना सिर ढक कर मेनका की उंगली पकड़ कर वह मेरे साथ चल रही थी। …नफीसा यह कार्ड और पासपोर्ट अपने पास रख लो। पाकिस्तानी या अमरीकन पासपोर्ट के साथ तुम भारत मे बिना वीसा के प्रवेश नहीं कर सकोगी। बस अपना नाम याद कर लो जिससे अगर किसी ने पूछा तो तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। मैने मिरियम का वोटर कार्ड और पासपोर्ट उसके हवाले कर दिया था। अब मेनका से बात करने की बारी थी। …मेनका हमारे बीच कौनसा सीक्रेट है? अचानक उसे याद आ गया तो वह झेंप कर बोली… सौरी। मै भूल गयी थी। …तुमने गाड प्रामिस किया है। अबकी बार यह गलती नहीं होनी चाहिये। जब हम काठमांडू गये ही नहीं तो तुमने अम्मी को कैसे देख लिया था। मैने मेनका को गोदी मे उठा लिया और नफीसा के साथ चलते हुए हम सिक्युरिटी चेक की ओर बढ़ गये थे। काठमांडू और दिल्ली एयरपोर्ट पर अपने कार्ड के साथ ही मैने मेनका और मिरियम का कार्ड को बढ़ा दिया था। बिना किसी परेशानी के हम लोग एयरपोर्ट से बाहर निकल आये थे। थापा हमारा इंतजार कर रहा था। उन दोनो को अपने साथ बैठा कर मै बारह बजे तक अपने घर पहुँच गया था।

मैने जल्दी से अपनी युनीफार्म पहनी और अपनी कैप लगाते हुए बाहर निकला तो देखा मेनका उसका हाथ पकड़ कर अपना मकान दिखाने मे जुटी हुई थी। …मेनका, नफीसा दीदी को मेरे साथ अभी जाना है। उसको शाम को सारा घर दिखा देना। मुझे युनीफार्म मे देख कर एक पल के लिये नफीसा थोड़ा असहज हो गयी थी। मै उसके नजदीक चला गया और मुस्कुरा कर कहा… तुमे यहाँ पर दोस्तों के बीच हो तो घबराने की जरुरत नहीं है। पहली बार उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर गयी थी। कुछ देर के बाद हम मानेसर की ओर जा रहे थे। लम्बा रास्ता था और दिल्ली के बीच से गुजर रहे थे। वह मेरे साथ बैठी हुई अभी भी नर्वस लग रही थी। वह पहली बार यहाँ आयी थी तो इसलिये उसे सहज करने के लिये मै जीप चलाते हुए उसे दिल्ली दर्शन कराने लगा। हम जब भी किसी खास जगह के सामने से गुजरते तो उसके बारे मे बताता हुआ चल रहा था। …यह पाकिस्तान का दूतावास है। उसने चेहरा घुमा कर मस्जिदनुमा गुम्बद को देखते हुए कहा… यह हमारा दूतावास कम मस्जिद ज्यादा लग रही है। दूतावास तो वह इमारत लग रही है। …वह अमरीकन दूतावास है। बस इसी तरह की बात करते हुए जा रहे थे कि अचानक एक बस ने हमारी जीप को ओवरटेक किया और अचानक उसने सामने आकर ब्रेक मार दिया। उस बस से बचने के लिये मैने तुरन्त ब्रेक दबा दिये। नफीसा का ध्यान बाहर की ओर लगा हुआ था तो वह झोंक मे आगे की ओर झुकी तभी उसे बचाने के लिये मैने अपना हाथ स्टीयरिंग से हटा कर उसके सामने कर दिया था। वह अपने वेग आगे झुकते हुए मेरे हाथ से टकरायी और उसके मुख से एक दर्द भरी आह निकल गयी थी। मैने जीप रोक कर उसकी ओर देखा तो वह अपना सीना पकड़ कर बैठी हुई थी। …सौरी। मै इसके आगे कुछ नहीं बोल सका था। उसने डबडबायी आँखों से मेरी ओर देखा और फिर निगाहें झुका कर बैठ गयी। मैने पीछे बैठे हुए थापा से कहा… तुम स्टीयरिंग व्हील संभाल लो। इसे बीच मै बैठा लेते है। नफीसा को बीच मे बैठा कर हम कुछ देर मे एनएसजी कोम्पलेक्स पहुँच गये थे। मुख्य द्वार पर सुरक्षाकर्मियों को देख कर एक पल के लिये वह विचलित हो गयी थी। मैने उसका हाथ धीरे से अपने हाथ मे लेकर कहा… यहाँ पर तुम्हें डरने की कोई जरुरत नहीं है। बेरियर पर अपना परिचय पत्र दिखा कर हम सीधे उस ओर चल दिये जहाँ शुजाल बेग को रखा हुआ था।

थापा हम दोनो को मुख्य द्वार के सामने उतार कर वापिस पार्किंग की दिशा मे चला गया था। …नफीसा, क्या अभी भी सीने मे दर्द हो रहा है? वह कुछ नहीं बोली बस सिर झुका कर खड़ी रही। …एक बार मुस्कुरा दो वर्ना तुम्हारे अब्बू को लगेगा कि हमने तुम्हारे साथ ज्यादती की है। उसने धीरे से निगाह उठा कर मेरी ओर देखा और मुस्कुरा कर बोली… चलिये। हम दोनो डिटेन्शन सेन्टर के गेट की ओर चल दिये थे। मै काउन्टर की ओर चला गया और अपना परिचय पत्र दिखा कर कहा… शुजाल बेग से मिलना है। इतना बोल कर मैने अपनी ग्लाक-17 निकाल कर उसकी मेग्जीन चेक की और फिर सेफ्टी लाक चेक करके काउन्टर पर खड़े हुए आदमी की ओर बढ़ा दी थी। नफीसा की जाँच के लिये एक महिला सुरक्षाकर्मी को बुलाना पड़ा था जिसके कारण हमे काउन्टर पर कुछ देर लग गयी थी। सिक्युरिटी चेक के बाद दो सैनिक हमे शुजाल बेग के सेल की ओर लेकर चल दिये थे। जैसे पहले किया था वैसे ही एक सैनिक ने लोहे के दरवाजे पर पड़े हुए ताले को खोल कर एक किनारे मे खड़ा हो गया और फिर दूसरे सैनिक ने दरवाजा खोल कर मुझे अन्दर जाने का इशारा किया तो मैने कहा… तुम गेट के पास खड़ी रहना। पहले मै उनसे बात करुँगा, जब मै तुम्हें इशारा करुँ तब तुम उनके सामने आना। मैने उसका हाथ पकड़ा और हम दोनो उस कमरे मे दाखिल हो गये थे। लोहे का गेट बन्द होते ही एक नजर नफीसा पर डाल कर मै पर्दा हटा कर शुजाल बेग के सामने पहुँच गया था।

…आओ मेजर। मै चुपचाप उसके बिस्तर के पास रखे हुए स्टूल पर जाकर बैठ गया। …क्या बात है मेजर तुम अगले दिन की कह कर आज आ रहे हो।  …ब्रिगेडियर साहब, मुझे तीन दिन के लिये नेपाल जाना पड़ा था। आपने मेरे प्रश्न के बारे मे सोचा है? …हाँ सोचा था लेकिन कोई जवाब देने से पहले एक बात जानना चाहता हूँ। तुम कौन से बट हो? …क्यों? …तुम मोमिन तो हर्गिज नहीं हो क्योंकि मुझे तुम्हारी बातों से बुजदिल काफ़िर की बू आती है। …आपको काफ़िर बुजदिल लगते है? …और क्या। मै तुम्हारे कब्जे मे हूँ और फिर भी तुम मेरे आगे गिड़गिड़ा कर सवाल पूछ रहे हो। …तो आप ही बताईये कि आपकी मोमिनों की फौज कैसे पूछती? वह मुस्कुरा कर बोला… सवाल का जवाब नहीं मिलता तो तुम्हारे सारे नाखून खिंचवा देता और तुम्हारी थैली को शिकंजे मे फँसा कर पीस देता। शुजाल बेग ने एक गर्वीली मुस्कान के साथ बोला… हम लोग तो मुर्दे से उगलवा लेते है। हमारे जलाल के आगे तो अच्छे-अच्छे थर्रा जाते है। …तो आपको लगता है कि यह सब करके आप हम काफिरों का मुँह खुलवा सकते है। …हाँ क्यों नहीं। …तो क्या आप यह सब करके कैप्टेन कालिया का मुँह खुलवा सके थे? एक पल के लिये वह चुप होकर मुझे घूरने लगा तो मैने कहा… ब्रिगेडियर साहब, आपके साथ अगर मै यह सब करुँगा तो क्या आप सब कुछ मुझे बता देंगे। वह घुर्रा कर बोला… एक बार करके क्यों नहीं देख लेते।

मै उसको कुछ पल देखता रहा और फिर मैने आराम से कहा… जिस काफ़िर को आप बुजदिल कह रहे है तो क्या आप भूल गये कि वह काफ़िर आपके साथ आपके परिवार के सत्तर लोगों को मरवाने का दम रखता है। रही बात मेरी बात तो मै आपको इतना बता सकता हूँ कि मेरी रगों मे काफ़िर का खून है परन्तु एक मुस्लिम स्त्री ने मेरी परवरिश की है। शुजाल बेग का चेहरा धुआँ हो गया था। वह फटी हुई आँखों से मेरी ओर देख रहा था। मैने मुस्कुरा कर कहा… ब्रिगेडियर साहब, उस बुजदिल काफ़िर अजीत सर का सख्त निर्देश था कि आपसे पूछताछ करते हुए मुझे वर्दी मे होना होगा। क्या आपको पता है कि उन्होंने ऐसा निर्देश मुझे क्यों दिया था? शुजाल बेग मेरी ओर देख रहा था। एक पल रुक कर मैने कहा… सिर्फ इसलिये कि वह जानते है कि इस वर्दी की इज्जत की खातिर मै आपके साथ ऐसा कोई काम नहीं करुँगा जो इस वर्दी को शर्मसार कर देगी। यह वर्दी मेरे जिस्म पर न होती तो शुजाल बेग मै तुम्हें काफ़िरों की फौज का दूसरा चेहरा भी दिखा सकता था। मेरे हिसाब से उन जाहिलों को जिनको तुम पाल रहे हो उनके साथ रह कर तुम भी अपने आप को गाज़ी समझने लगे हो। ऐसा भी नहीं है कि मुझे तुम पर दया आ रही है। मै तुम्हारी विकृत मानसिकता से वाकिफ हूँ इसलिये तुम्हें देख कर मुझे नफरत होती है। यह बुजदिली सिर्फ इसलिये दिखा रहा हूँ क्योंकि एक फौजी होने के कारण मुझे तुम्हारे परिवार पर दया आती है।   

वह कुछ पल मुझे घूरता रहा और फिर संजीदा होकर बोला… बैठ जाओ मेजर। क्या सवाल है तुम्हारे? …वलीउल्लाह कौन है? …वलीउल्लाह एक कोडनेम है। एक कश्मीरी तंजीम के नेता ने हमारा संपर्क एक लड़की से कराया जो तुम्हारी सेना की स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट के लिये काम कर रही थी। उसी लड़की का कोडनेम वलीउल्लाह है। मेरी युनिट की सबसे काबिल अफसर कैप्टेन हया इनायत मीरवायज वलीउल्लाह की हैंडलर थी। इसलिये पाकिस्तान के सारे फौजी इदारे मे सिर्फ कैप्टेन हया ने ही उसे देखा है। वलीउल्लाह के मामले को दबाने के लिये कैप्टेन हया को मेजर हया बना कर बाजवा ने उसे रावलपिंडी के एडमिन आफिस मे बिठा दिया था। वलीउल्लाह के बारे मे बस इतना ही जानता हूँ। …क्या आप उस कश्मीरी तंजीम का नाम या उसके नेता का नाम बता सकते है? …कश्मीरी तंजीमों के साथ मेरा सीधा संपर्क काठमांडू आकर ही हुआ था। मैने ज्यादा समय अफगानिस्तान और बलूचिस्तान मे बिताया है। आप्रेशन खंजर को कार्यान्वित करने के लिये जनरल शरीफ ने मुझे बलूचिस्तान से बुला कर कश्मीर डेस्क का चार्ज दिया था। उस तंजीम और उसके नेता को सिर्फ जनरल बाजवा जानता है। यह तुम्हारे पहले सवाल का जवाब है। इतना बोल कर शुजाल बेग चुप हो गया था। तभी मेरे कानों मे कदमों की आहट सुनाई पड़ी तो मैने मुड़ कर देखा तो मेरी नजर जनरल रंधावा पर पड़ी थी। उनके साथ अजीत सर और नफीसा खड़े हुए थे। नफीसा का चेहरा डर के मारे सफेद हो रखा था। मै उठ कर खड़ा हुआ और मुस्तैदी से सैल्युट करके एक किनारे मे खड़ा हो गया था।

शुजाल बेग की निगाहें नफीसा पर टिक गयी थी। उसकी आँखों से आँसू झरझर बह रहे थे। वह अचानक अपने अब्बू को देख कर जोर से चीखी और तेजी से उसके करीब पहुँच कर उससे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी थी। मुझे कहर भरी आँखों से घूरते हुए शुजाल बेग घुर्राया… मेजर, तूने अपनी बुजदिली का सुबूत आखिर दे ही दिया। तू तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था। मुझ पर दबाव डालने के लिये मेरी बेटी को यहाँ उठा लाया। इसके साथ तूने क्या किया? उसकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे। नफीसा को अपने सीने से लगाये वह बोला… अब यह भी बता दे कि यह काफ़िर के गन्दे खून का असर है कि मोमिनों की परवरिश का नतीजा? उसकी बात सुन कर मै अपने आपको रोक नहीं सका था। मैने उसकी ओर बढ़ते हुए कहा… सर, कुछ देर पहले तो यह मोमिनों के जलाल की बात कर रहा था। अपनी बेटी को मेरे साथ देख कर इस मोमिन के जलाल की हवा निकल गयी। यह मोमिन तो बहुत बुजदिल निकला। मै कुछ और बोलता उससे पहले जनरल रंधावा की आवाज गूंजी… मेजर सावधान। अगले ही पल मेरे जिस्म मे आटो मोड प्रतिक्रिया हुई और मै सावधान की मुद्रा मे वहीं खड़ा हो गया था। अजीत सर उसके नजदीक पहुँच कर नफीसा के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले… ब्रिगेडियर, जो तुमने बलूचिस्तान, पख्तुनिस्तान और काठमांडू मे किया है तो भला उसके आगे तुम कैसे सोच सकते हो। यह बेटी इस वक्त काफ़िरों की फौज के संरक्षण मे है। इसकी मर्जी के बिना इसे कोई छू भी नहीं सकता। शुजाल बेग अपनी बेटी को चुप कराते हुए अभी भी मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूर रहा था।

4 टिप्‍पणियां:

  1. अब धीरे धीरे वलीउल्लाह की कोहरा धीरे धीरे हटती जा रही है पहले अफ्शा का झूठ समीर के सामने आना और फिर सुजाल बेग का यह बोलना की वो एक कश्मीर के तंजीम के नेता की पहचान की लड़की है और भारतीय सेना के लिए काम कर रही है,अब क्या होगा वो बहुत ही रोचक होगा मगर नफीसा नाम से आपके पिछली कहानी की वो खुंकार औरत याद आ गई। अब यहां उस नाम की लड़की क्या करती है देखना है।

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    1. अल्फा भाई शुक्रिया। आपका कहना सही है कि शक का घेरा बढ़ता जा रहा है। आफशाँ और तबस्सुम के बाद नफीसा ने जरुर कुछ नया सोचने के लिये आपको मजबूर कर दिया होगा। यही उत्सुक्ता बनाये रखियेगा।

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  2. अल्फा भाईने ठीक कहा, ये शुजाल बेग की बेटी नफिसाने तालिबान वाली नागिन नफिसा की याद ताजा कर दी. अच्छा हुवा बानो की गलतफहमी एक प्याले के तूफान से जादा नही बढी. आफशा के बांग्लादेश बताकर जाना और नेपालमे दिख जाना उसे और शक के गहरे घेरेमे लाके खडा कर रहा है, उसपे शुजाल बेगने एक और बम फोड दिया, एक काश्मीरी तंजीम के नेता ने उसका संपर्क एक लड़की से कराया जो सेना की स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट के लिये काम कर रही थी, आफशा की कंपनी भी तो सेना के लीये सॉफ्टवेअर बनाती है, मकबुल बट काश्मिरी तंजिम का नेता रह चुका है. कही ये तार वापस काश्मीर तो नही जुड रहे. आफशा कैसे इस संशय के घेरे से बाहार आती है ये देखणा दिलचस्प होगा, कही ये अफगाण की रुखसार की राह पे तो नही चल रही, समीरके फोनसे फारूख का जिक्र आया तो भी उसकी डर के मारे हालत खराब हो गई थी. समीर के आगे मुसीबतोका पहाड खडा हो गया है.

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    1. प्रशांत भाई आपके दिमाग का मै लोहा मानता हूं कि जिस तरह से आपने अफगान सीरीज को अपने दिमाग मे बिठा लिया है। मेरे हर किरदार को आप उस सीरीज के किसी किरदार से जोड़ देते है जो मेरे लिये हरदम नयी चुनौती खड़ी कर देती है। अब आगे चल कर देखना होगा कि क्या इन किरदारों मे अफगान सीरीज के किरदारों मे कोई समानता है। शुक्रिया दोस्त आप मुझे पहले से आगाह कर देते है।

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