गहरी चाल-26
अजीत सर ने कहा… मेजर,
नफीसा को बाहर ले जाओ और हमारा इंतजार करो। मै नफीसा के पास चला गया और उसकी कलाई थाम
कर बोला… चलो नफीसा। वह चुपचाप शुजाल बेग को छोड़ कर मेरे साथ चल दी थी। हम दोनो पर्दा
हटा कर बाहर निकल कर आये थे। काउन्टर पर पहुँच कर मैने अपनी ग्लाक-17 लेकर उसकी मैगजीन
और सेफ्टी लाक चेक किया और फिर अपनी होल्स्टर मे डाल कर मुख्य द्वार की ओर बढ़ गया जहाँ
नफीसा मेरा इंतजार कर रही थी। …सौरी। मैने उसकी ओर देखा तो वह मुझे ही देख रही थी।
…अब्बू को देख कर मै अपने आप को रोक नहीं सकी। पहली बार मै उसको ध्यान से देख रहा था।
अभी तक मेरे दिमाग मे उसकी वही स्कूली छात्रा वाली छवि थी जो मैने नूर मोहम्मद के घर
पर देखी थी। ढीले-ढाले वस्त्रों के बावजूद उसके चेहरे पर मासुमियत के साथ मुझे अजीब
सी कशिश महसूस हो रही थी। …क्या देख रहे है? मैने झेंप कर खुले ग्राउन्ड की ओर देखते
हुए कहा… तुम्हें देख रहा था। …क्यों? मैने उसकी ओर देखा तो वह अभी भी मुझे देख रही
थी। उसकी आँखों मे पहले जैसी घबराहट और असहजता के बजाय एक नटखटपन झलक रहा था। वह मुझसे
नजरे मिला कर बात कर रही थी जिसके कारण मै असहज होता चला जा रहा था। …मेजर साहब क्या
मै इतनी खराब दिखती हूँ कि आप मेरी ओर देखना भी नहीं चाहते। इतना कह कर उसने मेरा हाथ
पकड़ लिया था। एक क्षण के लिये मुझे लगा कि नंगे बिजली के तार को मैने बेध्यानी मे छू
दिया है। मैने जल्दी से अपना हाथ छुड़ा कर उससे दूर होते हुए बोला… यह मिलिट्री कम्पाउन्ड
है। …ओह सौरी। आप अभी वर्दी मे है। इतना बोल कर वह मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी।
हम लगभग आधा घंटा
बाहर खड़े रहे थे लेकिन फिर किसी ने भी बात करने की कोशिश नहीं की थी। जनरल रंधावा और
अजीत सर मुख्य द्वार से निकल कर मेरे पास आकर बोले… मेजर, नफीसा को उसके अब्बा के पास
ले जाओ। ब्रिगेडियर तुमसे भी कुछ कहना चाहता है। कल सुबह नौ बजे मेरे आफिस मे मिलो।
…यस सर। इतना बोल कर दोनो वापिस चले गये थे। नफीसा को अपने साथ लेकर एक बार फिर से
वही पिस्तौल और फोन की औपचारिकता पूरी करके हम दोनो शुजाल बेग के सेल की ओर चल दिये
थे। शुजाल बेग अपने सेल मे टहल रहा था। हमने जैसे ही कमरे मे प्रवेश किया तो वह नफीसा
की ओर आकर बोला… नफीसा तुम कुछ देर के लिये बाहर चली जाओ। मुझे मेजर से कुछ कहना है।
वह जैसे ही जाने लगी तो मैने उसे रोकते हुए कहा… तुम्हें कहीं जाने की जरुरत नहीं है।
ब्रिगेडियर साहब आपको कुछ भी कहने की जरुरत नहीं है। आप लोग बात कर लिजिये और मै बाहर
इंतजार कर रहा हूँ। यह बोल कर मै सेल से बाहर निकल गया था। सेल के लोहे के गेट पर खड़े
हुए कमांडो से कहा… सैनिक एक कुर्सी का इंतजाम करो। पता नहीं कितनी देर लगेगी। एक कमांडो
तेजी से निकल गया और कहीं से एक कुर्सी लाकर रख दी थी। मै आराम से बैठ गया। बाप और
बेटी के बीच मे न जाने क्या बात हुई लेकिन आधे घंटे बाद वह बाहर निकल कर आयी और मुझसे
बोली… प्लीज उनसे एक बार बात कर लिजिये। उसका दिल रखने के लिये मै अन्दर चला गया था।
शुजाल बेग चलते हुए
मेरे पास आया और मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोला… मेजर, मेरी बात इतनी बुरी लग गयी कि
अब बात भी नहीं करना चाहते। …सर, ऐसी कोई बात नहीं है। …मेजर, मुझे खुशी है कि मेरी
मुलाकात तुमसे हो गयी। अभी तक मेरा पाला सिर्फ ऐसे लोगों के साथ रहा है कि मै फौज की
वर्दी मे शैतान बन गया था। तुमने मुझे इस वर्दी की अहमियत सिखा दी है। नफीसा कब वापिस
जा रही है? …सर, वह कल सुबह काठमांडू चली जाएगी। बेचारी जेनब उसे वहाँ कवर कर रही है।
…मेजर यह सच है क्या कि नूर मोहम्मद ने मुझे फँसाया है? …सर, आपने भी उसको फँसाया था
तो यह सब सोचने की जरुरत नहीं है। एक बात आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या आप फारुख मीरवायज
को जानते है? …हाँ, अफगानिस्तान मे उसने मेरे साथ कुछ दिन काम किया था। बेहद बददिमाग
और बहुत महत्वाकांक्षी इंसान है। …क्या आप मेजर हया इनायत मीरवायज को जानते है? …हया
जनरल मंसूर बाजवा के स्टाफ मे थी। रावलपिंडी मे कैप्टेन हया ने मेरी युनिट जोईन की
थी। …आपके अनुसार आजकल मेजर हया रावलपिंडी के जीएचक्यू मे काम कर रही है। …हाँ, उसके
बारे मे मुझे बस इतना ही पता है। …आप अंजली से मिल चुके है। क्या आपने उसमे और हया
मे कोई समानता देखी थी? शुजाल बेग ने एक पल मेरी ओर ध्यान से देखा और फिर बोला… नहीं,
दोनो मे जमीन-आसमान का फर्क है। मेजर, अंजली को मेरी ओर से शुक्रिया कह देना। उसी के
कारण मे आज अपनी बेटी से मिल सका हूँ। खुदा उसको सुखी रखे। वह तुम्हारे लिये खुदा की
नेयमत है उसे संभाल कर रखना। अचानक वह मुझसे गले मिल कर बोला… तुमसे मिल कर मुझे बहुत
खुशी हुई। वह अलग होकर बोला… खुदा हाफिज। मै उसे वहीं छोड़ कर बाहर निकल आया था। अपने
साथ नफीसा को लेकर मै वापिस चल दिया।
घर पहुँचते हुए शाम
हो चुकी थी। जीप के दरवाजे पर रुकते ही मेनका ने दरवाजा खोला और भाग कर मुझसे लिपट
गयी। उसे अपनी गोदी मे उठा कर उसकी कहानी सुनते हुए मै अन्दर आ गया था। नफीसा भी हमारे
साथ अन्दर आ गयी थी। चाय के लिये कह कर मै अपने कपड़े बदलने चला गया था। कुछ देर बाद
चाय पीते हुए मेनका की दिन भर की कहानी सुन रहा था। नफीसा मेरे फोन से जेनब से बात
कर रही थी। तभी आफशाँ की कार अन्दर घुसती हुई देख कर मेनका खुशी से चिल्लायी… अम्मी
आ गयी। मैने जल्दी से उसे उसकी प्रामिस के बारे मे याद दिला कर सावधान किया और दरवाजे
की ओर बढ़ गया। आफशाँ ने कार से उतरते ही मुझे दरवाजे पर खड़ा देख कर तेजी से मेरी ओर
बढ़ी और मुझसे लिपट कर बोली… मिस्ड यू। तब तक मेनका भी आकर आफशाँ से लिपट गयी थी। उन
दोनो के साथ मै अन्दर चला आया। ड्राइंग रुम के सोफे पर नफीसा को देख कर आफशाँ एकाएक
ठिठक कर रुक गयी तो मैने जल्दी से कहा… यह नफीसा है। मेरे सीओ साहब की बेटी है। आफशाँ
मुस्कुरा कर बोली… हैलो। नफीसा ने भी हाथ हिला कर उसका अभिवादन किया। तब तक आफशाँ का
ड्राईवर कार से सामान निकाल कर अन्दर आ गया था। आफशाँ ने उसे अपने कमरे की ओर इशारा
करके कहा… सब सामान उस कमरे मे रख दो। वह मेरे साथ बैठते हुए बोली… चार दिन भागते हुए
निकले है। मै थक गयी हूँ। …ढाका कैसा था? …अरे ढाका तो ठीक था लेकिन उस काम को बीच
मे छोड़ कर एक इमर्जेन्सी काल के कारण रविवार को पहली फ्लाईट पकड़ कर काठमांडू पहुँचना
पड़ा था। मैने मेनका की ओर देखा तो वह अपनी आँखें नचाते हुए मेरी ओर देख रही थी। मैने
झेंप कर जल्दी से कहा… फिलहाल अब तुम कहाँ से आयी हो? …अभी तो काठमांडू से आ रही हूँ।
तभी मेनका बोली… नफीसा
दीदी, कल काठमांडू वापिस जा रही है। कमाल है इस घर मे कोई काठमांडू से आया है और कोई
जा रहा है। आफशाँ ने नफीसा से पूछा… सही मे तुम कल काठमांडू जा रही हो या यह शैतान
की नानी फिर कोई नयी कहानी बना रही है। नफीसा ने मुस्कुरा कर कहा… मेनका सही कह रही
है। मै कल सुबह काठमांडू जा रही हूँ। …ओह, यह क्या संयोग है। दोनो हँस पड़ी थी। कुछ
देर हमारे साथ बैठने के बाद आफशाँ कपड़े बदलने के लिये चली गयी थी। नफीसा को पकड़ कर
मेनका अपना कमरा दिखाने के लिये ले गयी। मै अपने आप को कोस रहा था कि क्यों मैने वहाँ
इतना बखेड़ा खड़ा किया था। ब्रिगेडियर शुजाल बेग ने वलीउल्लाह का जो विवरण दिया था उसके
अनुसार स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट मे कोई सेना की महिला कर्मचारी थी। मेरे दिमाग के सभी
शक के कीड़े जो कल और आज तक कुलबुला रहे थे वह अब शांत हो गये थे। अब सिर्फ मुझे कमांड
सेन्टर मे उस महिला कर्मचारी को ढूंढना था जिसका किसी कश्मीरी तंजीम के नेता के साथ
कोई नाता रहा होगा। मै आराम से पाँव फैला कर बैठ गया। मन पर रखा हुआ बोझ एकाएक हटने
से अपने आप को हल्का महसूस कर रहा था। फारुख की बात भी झूठ निकली थी। अचानक अंजली का
चेहरा मेरी आँखों के सामने आ गया तो मैने महसूस किया कि तबस्सुम का चेहरा धीरे-धीरे
अंजली की जगह ले रहा था।
…यहाँ अकेले कैसे
बैठे हुए हो और मेनका कहाँ गयी? आफशाँ मेरे साथ सटते हुए बैठ गयी थी। …वह नफीसा की
टूर गाईड बन कर उसे अपना कमरा दिखाने ले गयी है। अचानक वह मुझसे लिपटते हुए बोली… नफीसा
को देख कर एक पल के लिये मै घबरा गयी थी कि तुमने कोई अपने लिये दूसरी पसंद कर ली है।
मैने उसे गले मे बाँह डाल कर जकड़ते हुए कहा… तुम्हारे भेजे मे इसके सिवा और कुछ नहीं
आता है। तुम्हारी शैतान की नानी मेरा सिर तोड़ देगी जिस दिन उसे पता चला कि मै उसके
लिये दूसरी अम्मी लेकर आया हूँ। अपने आप को मेरी गिरफ्त से छुड़ा कर बोली… मुझे उस पर
पूरा विश्वास है कि अगर तुम उसे मुझसे दूर रखने की कोशिश करोगे तो वह तुम्हारा सिर
जरुर तोड़ देगी। …आफशाँ यही विश्वास मेरी अम्मी को मुझ पर था। बस यही एक गम है कि उस
समय जब उन्हें मेरी सबसे ज्यादा जरुरत थी तब मै उनके पास नहीं था। अचानक वातावरण बोझिल
हो गया था। तभी मेनका की आवाज कान मे पड़ी… दीदी आप कुछ दिन यहीं पर रुक जाओ। उसकी आवाज
सुनते ही हम अलग हो गये थे। नफीसा और मेनका सीड़ियों से उतर कर हमारे पास बैठ गयी थी।
सब सोने चले गये थे।
मै और आफशाँ भी सोने की तैयारी कर रहे थे। अचानक आफशाँ ने कहा… समीर, क्या कभी तुम्हें
मुझ पर शक नहीं होता? …मुझे तुम पर क्यों शक होगा। हमारी शादी को ग्यारह साल हो गये
है। तुम्हें अगर मुझे छोड़ कर जाना होता तो तुम अब तक जा चुकी होती। मै तुम्हें बचपन
से जानता हूँ। अदा और तुममे एक फर्क है। वह किसी का दिल रखने के लिये एक बार के लिये
अपना मन मार लेगी परन्तु तुम किसी के आगे नहीं झुक सकती। अगर मै भी कहूँगा तो भी तुम
मेरी नहीं सुनोगी। अब ऐसी लड़की को मेरे सिवा और कौन बर्दाश्त करेगा। वह अचानक मुझ पर
झपट पड़ी और मुझ पर अपना वजन डाल कर बोली… क्या मै ऐसी हूँ? बस उसके बाद हम एक दूसरे
को पकड़ कर जोर आजमाइश मे जुट गये थे। जब थक कर चूर हो गये तो फिर एक दूसरे को बाँहों
मे जकड़ कर सो गये थे।
सुबह मुझे नौ बजे
से पहले आफिस पहुँचना था। मै जल्दी तैयार होकर नाश्ता करके आफिस निकल गया था। आफिस
पहुँचते ही सबसे पहले नफीसा की टिकिट करायी और फिर वीके की फाइल खोल कर बैठ गया था।
स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट मे बैठने वालों की संख्या सौ की थी। बाकी और सभी को मिला कर
स्टोर, सुरक्षा, कंप्युटर और अन्य पदाधिकारियों को मिला कर यही संख्या चार सौ के करीब
हो रही थी। उनमे महिलाओं की संख्या भी डेड़ सौ से उपर थी। स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट मे
बैठने वाली महिलाओं की संख्या चालीस थी। मैने हरेक नाम और उसके आगे दिया गया विवरण
ध्यान से पढ़ना आरंभ कर दिया था। भारत के सुदूर कोने से महिलायें आयी हुई थी। उस चालीस
मे से तीन जम्मू और दो कश्मीर डिविजन से आयी थी। जम्मू डिविजन से आयी तीनों महिलायें
कश्मीरी पंडित थी। कश्मीर डिविजन से आयी एक महिला सिख थी और एक मुस्लिम थी। सभी का
सेना मे बेहतरीन रिकार्ड मेरे सामने रखा हुआ था। किसी की देश भक्ति पर लेशमात्र भी
शक नहीं किया जा सकता था।
ठीक नौ बजे इन्टर्काम
पर बुलावा आ गया था। मै उठ कर अजीत सर के कमरे मे चला गया था। वहाँ पर तीनो बैठे हुए
थे। वीके ने पूछा…मेजर, वलीउल्लाह का कुछ पता चला? मैने सुबह का सारा ज्ञान उनके सामने
रख कर कहा… अन्दर बैठने वाली युनिट मे तो वह नहीं हो सकती है। मुझे कुछ और समय चाहिये।
अजीत सर ने कहा… मेजर, शुजाल बेग का क्या करना है? …सर, मेरी सलाह है कि उसे फारुख
के हवाले कर दिया जाये। वह यहाँ रहेगा तो हमारे लिये मुश्किल खड़ी हो जाएँगी। …उसके
लिये तुमने कोई योजना बनायी है? …अभी तो नहीं लेकिन उसकी बेटी दोपहर की फ्लाईट पकड़
कर चली जायेगी तो फिर उसके बारे मे सोचूँगा। अजीत सर ने वीके से कहा… पहले शुजाल बेग
की रिकार्डिंग सुन लो फिर इसके बारे मे बात करेंगें। इतना बोल कर उन्होंने जनरल रंधावा
को इशारा किया। तभी स्पीकर पर अजीत सर की आवाज गूंजी…
…शुजाल बेग आप्रेशन
खंजर क्या है?
…आप्रेशन खंजर तुम्हारी
अर्थव्यवस्था को चौपट करने की योजना है। जिहाद काउंसिल से जुड़ी हुई सभी चरमपंथी तंजीमे
एक ही समय पर जम्मू मे दो जगह और कश्मीर मे दो जगह फिदायीन हमला करेंगी। यह कवरिंग
आप्रेशन होगा क्योंकि आप्रेशन खंजर के निशाने पर मुख्य रुप से तुम्हारे अरब सागर मे
स्थित तेल के संयत्र है। जब तुम्हारी सेना जम्मू और कश्मीर मे उलझी हुई होगी तभी दो
फिदायीन युनिट अरब सागर मे तुम्हारे तेल के संसाधनों पर हमला करके उन्हें अपने कब्जे
मे लेकर नष्ट कर देंगी। जब तक तुम्हारी नौसेना हरकत मे आयेगी तब तक हमारी नौसेना उस
इलाके मे अपनी उपस्थिति दर्ज करवा देगी।
… कुछ करोड़ रुपये
का नुकसान होगा और इससे ज्यादा क्या होगा?
…तुम्हारी अर्थव्यवस्था
के दिल पर खंजर से वार होगा। तुम कहोगे कि तुम्हारी नौसेना का उद्देश्य फिदायीन के
खिलाफ एक्शन लेने का है और हम कहेंगें कि यह सैनिक कार्यवाही हमारी नौसेना और हमारी
संप्रभुता पर हमला है। दोनो नौसेना जब आमने-सामने खड़ी होंगी तब अनौपचारिक रुप से खाड़ी
से मिलने वाले तुम्हारे तेल का रास्ता भी रुक जायेगा। हमारी ओर से कोशिश होगी कि इसको
जितने दिनो के लिये रोका जाये उतना ही अच्छा होगा और तुम चाहोगे कि जल्दी से जल्दी
वह रास्ता खुल जाये। ऐसी हालत मे तुम्हारे पास सैन्य कार्यवाही का विकल्प बचता है परन्तु
क्या आज तक तुम्हारी सरकार ने कभी फिदायीन हमले के लिये हमारे खिलाफ कोई सैन्य कार्यवाही
की है जो अब करोगे? दूसरी ओर तुम्हारे संयत्रो का लाखों गैलन तेल समुद्र को प्रदुषित
कर रहा होगा जिसको तुम पहले रोकने की कोशिश करोगे। तुम्हें तीन तरफा मार पड़ेगी और इतनी
बड़ी सेना होने के बावजूद तुम कुछ नहीं कर सकोगे। अगर कुछ करने की कोशिश भी करोगे तो
फिर हमारी शाहीन, गजनवी और हत्फ मिसाइल किस काम आँयेगी। हमे पूरा यकीन है कि तुम कुछ
नहीं करोगे। हमारे चन्द फिदायीन के आगे तुम्हारी अर्थव्यवस्था घुटनों पर आ जायेगी।
…शुजाल बेग, यह कब
करने की सोच रहे हो? …तीन महीने मे इस काम को अंजाम देना था। जब गर्मी लगभग पूरे भारत
पर अपने चरम पर होगी तब यह हमले होने है। तब तक हमारे घुसपैठ के रास्ते भी खुल जाते
और तुम्हारे यहाँ तेल की खपत भी अपने चरम पर होती। अगर तीन महीने तेल की सप्लायी रुक
गयी तो फिर तुम्हारी अर्थव्यवस्था का क्या होगा? जरा सोच कर देखो कि खुदाई खंजर की
चोट तुम्हें कितनी महंगी पड़ेगी।
कुछ देर के लिये कमरे
मे सन्नाटा छा गया था। वीके ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा… आप्रेशन खंजर को रोकना हमारी
प्राथमिकता है। अजीत सर ने हामी भरते हुए कहा… अब काउन्टर औफेन्सिव का समय आ गया है।
आप्रेशन खंजर एक मूल सिद्धांत पर टिका हुआ है कि हम फिदायीन हमले के खिलाफ पाकिस्तान
पर सैन्य कार्यवाही नहीं कर सकते। हमे उसके इसी सिद्धांत पर वार करना है। परमाणु शक्ति
होने के कारण अभी तक हमारी ओर से सैन्य कार्यवाही पर अंकुश लगा हुआ था। अब हम उनके
हर फिदायीन हमले के लिये उनकी दो तीन चौकियाँ नष्ट कर देंगें और जरुरत पड़ी तो उनके
घर मे घुस कर उनको मारेंगें। इसी बहाने उनकी परमाणु शक्ति वाली गीदड़ भभकी को भी टेस्ट
करके देख लिया जाये। वीके ने भी अपना समर्थन देते हुए कहा… अगली राष्ट्रीय सुरक्षा
कमेटी मे इस सुझाव को रख देना। पाकिस्तान की फौजी हुकूमत को अब बताने का समय आ गया
है।
जनरल रंधावा ने कुछ
सोचते हुए कहा… यह नीतिगत फैसला है। अजीत यह ठीक है लेकिन आप्रेशन खंजर तो हमारे सिर
पर लटका हुआ है। इसके लिये भी तैयारी करनी है। अजीत सर ने कहा… सरदारजी, कुछ महीने
पहले की पाकिस्तानी नौसैनिक एक्सरसाइज याद है। उसको अगर अनमोल बिस्वास की भेजी हुई जानकारी
के साथ मिला कर देखोगे तो पता चल जाएगा कि एक्सरसाईज नही बल्कि आप्रेशन खंजर की तैयारी
का ट्रेलर मात्र था। उनकी नौसेना के सभी जहाज और पनडुब्बियाँ हमारे चार सबसे बड़े तेल
के प्लेटफार्म सम्राट, विराट, विशाल और अनंन्त से कोई 800 नाटिकल मील दूरी पर थे। उस
वक्त हमने यह सवाल किया था कि क्या उनके निशाने पर यह तेल के कुएँ हो सकते है? हमने
उस वक्त सोचा था कि ऐसी बेवकूफी की उम्मीद उनसे नहीं है। आप्रेशन खंजर इस बात का प्रमाण
है कि वह ऐसी बेवकूफी करने की सोच रहे है। जनरल रंधावा अब हमारे पास दो विकल्प है कि
उन्हें यह बेवकूफी करने दे और फिर एक ही वार मे उनकी सारी फ्लीट को नेस्तनाबूद करके
चैन से बैठ जाये। दूसरा विकल्प है कि हमे उनके टार्गेट का पता है तो अपनी सुरक्षा बढ़ा
देते है। उनकी कोशिश को समय से पहले ही विफल कर दिया जाये तो आप्रेशन खंजर हमेशा के
लिये फाइल मे दब कर रह जायेगा। हम तीनो अजीत सर के चेहरे को देख रहे थे।
वीके ने कहा… रंधावा
हमे वापिस ड्राइंग बोर्ड पर बैठना चाहिये। आप्रेशन खंजर के लिये कमांड सेन्टर से तुम
संचालन करो और समीर तुम फील्ड का काम संभालोगे। इसी के साथ रंधावा तुमने सीमा के साथ
लगे हुए उन ठिकानों की निशानदेही कर ली है जिसका इस्तेमाल फिदायीन करते है। अगले फिदायीन
हमले के जवाब की तैयारी अभी से शुरु कर देनी चाहिये। वीके ने अपनी घड़ी पर नजर मार कर
उठते हुए कहा… आज शाम को एक बार फिर यहीं बैठ कर शुजाल बेग के बारे मे सोचते है। इसी
के साथ हमारी मीटिंग समाप्त हो गयी थी। जनरल रंधावा ने मेरे कंधे पर हाथ मार कर कहा…
समीर पुत्तर तूने उस शुजाल बेग को सही जवाब दिया था। उसे पता होना चाहिये कि वह किस
फौज से लड़ने की सोच रहा था। अजीत सर ने उठते हुए कहा… रंधावा, यह तो मुझसे भी आगे निकल
गया है। मेजर तुम समझ गये थे कि मैने तुम्हें वर्दी मे जाने के लिये क्यों कहा था?
मैने झेंपते हुए कहा… नहीं सर। उस वक्त मुझे पता नहीं था। अगर सच पूछिये तो जब वह मोमिनों
के जलाल की बात कर रहा था तो एक बार के लिये मेरा मन किया कि उसकी लड़की को बालों से
पकड़ कर खींचते हुए उसके सामने लाकर पटक कर एक बार दिखा देता हूँ लेकिन फिर वर्दी का
ख्याल आ गया था। उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि शायद आप जानते थे कि ऐसा हो सकता है इसीलिये
आपने मुझे वर्दी मे जाने के लिये कहा था। …समीर, शुजाल बेग को बेवकूफ समझने की गलती
मत करना। उसके बारे मे सोचो कि उसके साथ क्या करना है। …सर, आप ही बताईये कि उसे फारुख
के हवाले करना है या उसको आप सुरक्षित सीमा पार भिजवाना चाहते है? …मेजर, यह तुम्हें
निर्णय लेना है। इतना बोल कर दोनो मुझे छोड़ कर आगे निकल गये थे। मेरे दिमाग मे एक नयी
योजना ने जन्म ले लिया था।
मै अपने आफिस से निकला
और मानेसर की ओर चल दिया था। थोड़ी देर के बाद मै शुजाल बेग के सामने बैठा हुआ था।
…ब्रिगेडियर साहब, आपकी जान के लिये मुझे पाकिस्तान की ओर से फारुख मीरवायज ने मुँह
मांगी कीमत देने की बात रखी है। आपकी फौज ही अब आपकी हत्या करने की तैयारी मे जुट गयी
है। ऐसी स्थिति मे क्या आप वापिस जाना चाहते है? …मेजर, फारुख तो एक प्यादा है। यह
सब मंसूर बाजवा का चलाया हुआ चक्कर है। मै अगर किसी तरह पाकिस्तान पहुँच गया तो उन
सब की दुकान बन्द हो जाएगी। …मै आपको नफीसा के साथ काठमांडू भिजवा सकता हूँ। आपके लिये
इतने दिन गायब रहने का बहाना भी मिल जायेगा और वहाँ से आप आसानी से पाकिस्तान पहुँच
जाएँगें। वह कुछ देर मुझे देखता रहा और फिर धीरे से बोला… बेकार माइन्ड गेम मे पड़े
बिना तुम्हें जो कुछ भी पूछना है वह पूछ लो। …आपको मेरी बात भले ही दिलासा लग रही होगी
लेकिन इस वक्त मै आपको छोड़ने की बात कर रहा हूँ। …किस लिये? …कि आप पाकिस्तान पहुँच
कर मेजर हया इनायत मीरवायज को मेरे हवाले कर देंगें। शुजाल बेग ने तुरन्त मना करते
हुए कहा… मेजर, हो सकता है कि पहले अपनी आजादी के लिये मै तुम्हारे साथ उसका सौदा कर
लेता परन्तु अब वर्दी की शान समझ मे आ गयी है इसलिये मै ऐसा हर्गिज नहीं कर सकता।
उसकी बात सुन कर एक
बात समझ मे आ गयी थी कि शुजाल बेग के पाकिस्तान पहुँचते ही बहुत सी दुकाने बन्द हो
जाएगी। अब इस आदमी को कैसे सुरक्षित पाकिस्तान पहुँचाया जाये? अब यह सवाल मेरे दिमाग
मे घूम रहा था। …क्या सोच रहे हो मेजर? …आपको
सुरक्षित पाकिस्तान कैसे भेजा जाये? …अगर तुम सच मे मुझे छोड़ना चाहते हो तो नेपाल की
सीमा मे छोड़ दो वहाँ से पाकिस्तान जाने का अपना रास्ता मै खुद बना लूंगा। मैने उठते
हुए कहा… मै अजीत सर से बात करके आपके निकलने का इंतजाम करता हूँ। यह बोल कर मै बाहर
निकल गया था। दोपहर तक मै अपने आफिस पहुँच गया था। जीप से उतरते ही थापा को नफीसा को
लाने के लिये घर भेज दिया था। नफीसा के आते ही उसे एयरपोर्ट जाते हुए सारी बात समझा
दी थी कि वह मिरियम का वोटर कार्ड को दिखा कर बोर्डिंग करे और त्रिभुवन एयरपोर्ट पर
जेनब और अंजली उसको मिल जाएँगें। मैने उसे यह भी बता दिया था कि एक दो दिन मे उसके
अब्बा भी काठमांडू पहुँच जाएँगे। यह सुन कर एक पल के लिये वह ठगी सी खड़ी रह गयी थी।
अचानक अपनी बाँहें फैला कर मुझसे लिपट कर रोने लगी। मै कुछ बोलता उससे पहले अपना चेहरा
मेरे सीने मे छिपाये वह धीरे से बोली… आपका एहसान मै जिन्दगी भर नहीं भूलूँगी। मैने धीरे से उसके बालों को सहलाते हुए कहा… इसमे
मेरा कोई एहसान नहीं है। अगर कोई परेशानी हो तो अंजली को खबर कर देना। अपनी निगाहें
उठा कर मेरी ओर देखा तो उसकी आँखों मे आँसू झिलमिला रहे थे। मैने उसके चेहरे को अपने
हाथों मे लेकर जल्दी से कहा… मै तो सोच रहा था कि यह खबर सुन कर तुम खुश हो जाओगी।
उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी। …अब्बू कह रहे थे कि उनसे मै आखिरी बार मिल रही
हूँ। उनसे दोबारा मिलने की मेरी सारी उम्मीद खत्म हो गयी थी। आप सच कह रहे है। …मैने
तुमसे अभी तक कोई झूठ बोला है? उसने एक बार मेरी ओर ध्यान से देखा और फिर गरदन हिला
कर मना कर दिया। मै उससे अलग हो गया और इमीग्रेशन काउन्टर की ओर इशारा करके कहा… टाइम
हो गया है। वह एक पल के लिये उसके होंठ कुछ बोलने के लिये फड़फड़ाये लेकिन वह एकाएक मुड़ी
और आगे बढ़ गयी। मै वहाँ तब तक खड़ा रहा जब तक तो वह सिक्युरिटी चेक करा कर आगे नहीं
चली गयी थी। उसके ओझल होते ही मै वापिस अपने आफिस की ओर चल दिया था।
पाँच बजे एक बार फिर
इन्टर्काम पर बुलावा आ गया था। वह तीनो बैठे हुए किसी बात पर चर्चा कर रहे थे। …आओ
मेजर। मेरे बैठते ही उन्होंने सवाल दाग दिया था। …शुजाल बेग का क्या सोचा? अपनी दिन
भर की उठा पटक की बात करने के बाद मैने कहा… उसने हया के लिये साफ मना कर दिया है।
…तो तुमने क्या सोचा? …सर, उसे छोड़ना तो है। पहले मै सोच रहा था कि उसको फारुख के हवाले
कर दूँगा लेकिन एक बात तो तय है कि अगर वह सही सलामत पाकिस्तान पहुँच गया तो जनरल मंसूर
बाजवा की दुकान बन्द हो जाएगी। अगर आईएसआई मे अस्थिरता हो गयी तो आप्रेशन खंजर को भी
झटका लग जायेगा। मेरे सामने यह दो विकल्प है। पहला उसे सुरक्षित काठमांडू पहुँचा दिया
जाये अन्यथा दूसरा उसे नेपाल की सीमा मे दाखिल करवा कर उसके पीछे फारुख को लगा दिया
जाये। जिसके पास ज्यादा ताकत होगी वह बच जायेगा। तीनो ने एक दूसरे को देखा और फिर अजीत
सर ने कहा… हमारे निशाने पर प्यादा नहीं है बल्कि उसके मालिक जनरल शरीफ और मंसूर बाजवा
है। शुजाल बेग को सुरक्षित काठमांडू पहुँचा दिया जायेगा तो वह बेहतर विकल्प साबित होगा।
…सर, उसे हमारे काठमांडू फ्रंट का पता लग चुका है। तीनो एक बार फिर से चर्चा करने बैठ
गये थे। आखिर मे यही तय हुआ कि उसे काठमांडू पहुँचा देना ही ठीक रहेगा। अजीत सर ने
कहा… आज रात के अंधेरे मे तुम दोनो को हेलीकाप्टर से उसी बीएसएफ के हेलीपेड पर उतार
देते है जहाँ से लिया था। वहाँ से तुम दोनो सीमा पार करके काठमांडू की ओर निकल जाना।
मैने आफशाँ को फोन
पर बता दिया था कि एक जरुरी काम के सिलसिले मे दो दिन के लिये बाहर जाना पड़ रहा है।
रात के अंधेरे मे शुजाल बेग को एयरपोर्ट पहुँचा दिया गया था। देर रात को हम रक्सौल
पहुँच कर नेपाल की सीमा मे दाखिल हो गये थे। बीरगंज से काठमांडू के लिये टैक्सी मिल
गयी थी। लम्बा सफर था तो आराम से बात करने का मौका मिल गया था। …ब्रिगेडियर साहब, आपको
मेरी असलियत का पता चल गया है। अब आप जब चाहेंगें आप मेरे कारोबार को बंद करा देंगें।
शुजाल बेग ने मेरी ओर देख कर कहा… मेजर, तुम्हारा धमकी देने का तरीका नायाब है। तुम
जानते हो कि मैने अगर तुम्हारे फ्रंट का राज खोलने की कोशिश की तो उस सेल की सारी रिकार्डिंग
मुझे फायरिंग स्कायड के सामने खड़ा कर देगी। तुम्हारे पास अभी भी वह सीडी है जिसके कारण
तुम मुझे कभी भी कान से पकड़ कर कुछ भी करवा सकते हो। मैने मुस्कुरा कर कहा… मै जानता
था कि आप काफी समझदार है। आपको धमकी देने की मुझे जरुरत नहीं पड़ेगी। उस रात हमारी काफी
देर तक अनेक विषयों पर बात हुई थी।
सुबह की पहली किरण
निकलते ही हम काठमांडू मे प्रवेश कर गये थे। …मेजर मुझे शाही मस्जिद के पास उतार देना।
यहाँ से आगे का रास्ता मुझे खुद तय करना होगा। शाही मस्जिद पर पहुँच कर मैने कहा… ब्रिगेडियर
साहब, आपके सारे पत्ते अभी भी मेरे हाथ मे है लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि अगर मै आप
पर हया के लिये अभी भी दबाव डालूँगा तब भी आप मुझे साफ इंकार कर देंगें। क्या मै गलत
सोच रहा हूँ? शुजाल बेग टैक्सी से उतरते हुए बोला… तुम भी अब मुझे समझने लगे हो। …ऐसी
क्या मजबूरी है। क्या उसके साथ कोई पुराना इश्क का चक्कर है? वह ठहाका मार कर हँस कर
बोला… मेजर, वह जेनब की उम्र की है। उसके दिमाग का मै लोहा मानता हूँ। इतना बोल कर
वह चल दिया था। टैक्सी मुझे मेरे घर के बाहर छोड़ कर वापिस चली गयी थी। आरफा ने दरवाजा
खोला था। मुझे देख कर वह चौंक गयी तो मैने उसकी पीठ थपथपा कर कहा… मै ही हूँ। यह सपना
नहीं है तुम भी जाकर सो जाओ। मै भी सोने जा रहा हूँ। यह बोल कर मै अपने कमरे मे चला
गया था। तबस्सुम गहरी नींद मे सो रही थी। मैने जल्दी से कपड़े उतारे और बाक्सर पहन कर
अपनी रजाई मे घुस गया था। थोड़ी सी गर्मी मिलते ही तेज नींद का झोंका आया और मै सपनो
की दुनिया मे खो गया था।
जब नींद टूटी तो दोपहर
ढल रही थी। तबस्सुम और आरफा कहीं नहीं दिखी तो तैयार होने चला गया। जैसे ही तैयार होकर
बाहर निकला कि तबस्सुम सामने पड़ गयी थी। …तुमने यह नहीं पूछा कि मै आज यहाँ कैसे आ
गया? …मुझे पता है कि आप ब्रिगेडियर साहब को छोड़ने आये है। एक पल के लिये मै उसकी ओर
देखता रह गया था। मुझे समझ नहीं आया कि उसने यह कैसे अंदाजा लगाया था। अचानक वह आगे
बढ़ कर अपने पंजों के बल उचकी और मेरे गाल को चूम कर बोली… अपने दिमाग पर जोर मत डालिये।
जेनब ने फोन पर बताया था कि उसके अब्बू काठमांडू पहुँच गये है। उसने सिर्फ आपको शुक्रिया
कहने के लिये फोन किया था। मैने उसे अपनी बाँहों मे भरते हुए कहा… आज रात को इस शुक्रिये
का तुमसे हिसाब वसूल करुँगा। इतनी बात करके मै गोदाम की ओर चल दिया। अपने संपर्क केन्द्र
मे पहुँच कर पहले मैने फोन पर अजीत सर को शुजाल बेग के सही सलामत काठमांडू पहुँचने
की सूचना दी और फिर अपनी वापिसी के टिकिट को बुक कराने मे व्यस्त हो गया। अपना सारा
काम समाप्त करके कुछ देर कैप्टेन यादव के साथ बिता कर मै अपने घर की ओर चल दिया था।
आफिस लगभग खाली हो
गया था। अपनी गाड़ी पार्क करके मै अपने घर मे चला गया। दोनो अभी आफिस मे बैठी हुई किसी
काम मे व्यस्त थी। चाय के लिये बोल कर मै अपने कमरे मे आ गया था। मै सोच रहा था कि
शुजाल बेग के सामने आते ही पाकिस्तानी दूतावास मे हलचल मच जाएगी। तबस्सुम और आरफा भी
गाड़ी को देख कर उपर आ गयी थी। सब रोजमर्रा के काम समाप्त करके जब सोने का समय हुआ तो
तबस्सुम मेरे साथ लेटते हुए बोली… अब कुछ महीने के लिये छुट्टी हो गयी है। मैने कोई
जवाब नहीं दिया बस उसको बाँहों मे लिये पड़ा रहा था। …आपकी आफशाँ से बात हुई? …हाँ उसने
खुद ही बताया था कि काम के सिलसिले मे एक दिन के लिये उसे काठमांडू जाना पड़ा था। …तो
फिर आप क्या सोच रहे है? …एक बात मुझे समझ नहीं आयी कि ब्रिगेडियर सब कुछ बताने को
तैयार हो गया था परन्तु उस मेजर हया के लिये वह अपना सब कुछ दाँव पर लगाने के लिये
तैयार था परन्तु क्यों? ब्रिगेडियर जैसे आदमी से मुझे ऐसी उम्मीद नहीं थी। तबस्सुम
ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो मैने अपना सिर झटकार कर कहा… मेरी जान कल सुबह की फ्लाईट
है तो मुझे जल्दी उठना है। सो जाओ।
सुबह तबस्सुम ने मुझे
टाइम से उठा दिया था। मै तैयार होकर जैसे ही निकलने वाला था कि तभी मुझे याद आया कि
कैप्टेन यादव को बताना भूल गया था। …अंजली, कैप्टेन यादव को बुलाना भूल गया। इस वक्त
यहाँ टैक्सी भी नहीं मिलेगी। मै गाड़ी लेकर एयरपोर्ट जा रहा हूँ। कैप्टेन यादव से कह
देना कि वह पार्किंग से गाड़ी ले आये। वह मेरे साथ बाहर निकलते हुए बोली… चलिये मै आपको
छोड़ देती हूँ। …तुम्हें गाड़ी चलानी आती है? …क्यों क्या सिर्फ इसे चलाने का ठेका आप
मर्दों ने ही ले रखा है। मैने आश्चर्य से उसकी ओर देखते हुए कहा… तुमने मुझे आज तक
इसके बारे मे कभी नहीं बताया। … कभी आपने पूछा नहीं तो मै क्यों बताती। अब चलिये। मै
चुपचाप उसके साथ चल दिया। अपनी इसुजु की चाबी उसकी ओर उछाल कर मैने कहा… अब से तुम
गाड़ी चलाओगी और मै आराम से बैठूँगा। उसने स्टीयरिंग संभाल लिया और स्टार्ट करके रिवर्स
मे गाड़ी पार्किंग से बाहर निकाली और कुछ ही देर मे हम एयरपोर्ट की ओर चल दिये थे।
वह आराम से गाड़ी चलाते
हुए बोली… आपको डर लग रहा है? …क्यों? …आप चुपचाप बैठे हुए है। मैने मुस्कुरा कर कहा…
तुम इतनी रहस्यमयी हो कि हर बार मुझे चौंका देती हो। जब मुझे लगता है कि मै तुम्हे
जानने लगा हूँ तभी तुम कुछ ऐसा कर देती हो कि मै सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ कि अभी
भी तुम्हारी बहुत सी परतें खुलना बाकी है। हम बात करते हुए एयरपोर्ट पहुँच गये थे।
मै गाड़ी से नीचे उतर कर चलने लगा तो वह तेजी उतर कर मेरे पीछे आयी और मुझे अपनी बाँहों
मे बाँध कर बोली… आपने मेरी ड्राईविंग के बारे मे कुछ नहीं कहा। मैने घूम कर उसकी आँखों
मे झाँकते हुए कहा… अभी पता नहीं और कितने झटके दोगी। तुम ड्राइविंग टेस्ट मे पास हो
गयी हो। उसने अपनी जेब से नेपाल का ड्राईविंग लाईसेन्स निकाल कर दिखाते हुए कहा… यहीं
पर कार चलानी सीखी थी। पिछले हफ्ते ही लाईसेन्स बना है। मैने उसको बाँहों मे जकड़ कर
कहा… बानो, यह सब मुझे पहले बता देती तो मुझे झटका तो नहीं लगता। …अगर आपको बता देती
तो क्या आप सबके सामने मुझे ऐसे सबके सामने जकड़ते? मैने निगाहें घुमा कर देखा तो बहुत
से लोग अपनी गाड़ियों से निकल कर फ्लाईट पकड़ने के लिये अन्दर जा रहे थे। किसी का ध्यान
हमारी ओर नहीं था। बिजली की तेजी से झुक कर उसके होंठ चूम कर मै गेट की ओर बढ़ गया था।
वह वहीं खड़ी हुई मुझे जाते हुए देखती रही थी। गेट पार करके मैने मुड़ कर उसकी ओर देखा
तो वह हाथ हिला कर गाड़ी की ओर चली गयी थी।
अपना बोर्डिंग पास
लेकर मै सिक्युरिटी चेक के लिये चला गया था। अभी बोर्डिंग मे टाइम था तो मै लाउन्ज
मे बैठ कर टीवी पर नेपाल की न्युज देख रहा था। नेपाली भाषा मुझे समझ नहीं आ रही थी
परन्तु माओइस्टों के प्रदर्शन को देख कर समझ गया था कि यहाँ पर काफी राजनीतिक हलचल
हो रही थी। बोर्डिंग की घोषणा होते ही मै उठ कर खड़ा हो गया था। अचानक मेरी दृष्टि टीवी
के स्क्रीन पर पड़ी तो एक खबर पढ़ कर चौंक गया था। पुलिस को एक लावारिस लाश शाही मस्जिद
के परिसर से मिली थी। मेरे कदम आगे बढ़ते हुए रुक गये थे। स्क्रीन पर शाही मस्जिद की
तस्वीर दिखा रहे थे और स्क्रीन के एक कोने मे लाश की तस्वीर फ्लैश हो रही थी। शुजाल
बेग का ख्याल आते ही मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी थी। उसकी हत्या होने का मतलब था कि आप्रेशन
खंजर अभी भी कार्यान्वित होने की दिशा मे बढ़ रहा है। एक बार मन हुआ कि मुझे रुक कर
सारी परिस्थिति का आंकलन करके लौटना चाहिये परन्तु अगले ही पल ध्यान आया कि वह तीनो
मेरी राह देख रहे होंगें।
अचानक एयरलाइन्स की
ओर से मेरे नाम की घोषणा होने लगी थी। एयरलाइन्स का स्टाफ मुझे ढूँढने के लिये इधर-उधर
भाग रहा था। कुछ सोच मै बोर्डिंग गेट की ओर चल दिया। मेरे पहुँचते ही आनन-फानन मे मुझे
हवाई जहाज मे बिठा दिया गया और मेरे बैठते ही हवाई जहाज दिल्ली के लिये रवाना हो गया
था। वैसे भी अगर शुजाल बेग की हत्या हो गयी थी तो भी मेरा दिल्ली जाना जरुरी था। अगर
वह बच गया फिर तो कोई बात नहीं थी। यही सोच कर मै हवाईजहाज मे बैठ गया था। दिल्ली एयरपोर्ट
पर थापा आ गया था। जीप मे बैठते ही मैने भारतीय दूतावास मे मनोहर लाल शर्मा से कहा
कि वह पुलिस से पता लगा कर मुझे खबर करे कि शाही मस्जिद मे मरने वाले आदमी की क्या
शिनाख्त हो गयी। बारह बजे आफिस पहुँचते ही एनएसए का सेक्रेटरी मेरे दरवाजे पर खड़ा हुआ
मेरी राह देख रहा था। मुझे देखते ही बोला… आपको साहब ने बुलाया है। अपने आफिस न जाकर
मै सीधे अजीत सर से मिलने चला गया था। अजीत सर और जनरल रंधावा बैठे हुए थे। मुझे देखते
ही अजीत सर ने कहा… क्या तुम्हें पता चला कि शुजाल बेग की हत्या हो गयी है? अभी नेपाल
से खबर मिली है कि शाही मस्जिद के अन्दर जो लाश मिली थी उसकी शिनाख्त पाकिस्तानी दूतावास
ने कर दी है। दूतावास ने बताया है कि मरने वाले का नाम ब्रिगेडियर शुजाल बेग था।
सारे रास्ते मुझे
जिसका डर था वही हो गया था। मेरी सारी मेहनत पर किसी ने पानी फेर दिया था।
सही मायने में आज का अंक पढ़के पता चल रहा की कहानी में कितने गहरी चाल चल रही है एक दूसरे के तरफ चाहे ऊपरी हिस्से में हो या कहीं पीठ पीछे, अब समीर का सुजल बेग के लेके आना और आते ही मस्जिद के पास कत्ल हो जाना यह दर्शाता है की कहीं न कहीं समीर की पल पल की खबर किसी के पास पहुंचती जा रही है,और तो और अभी जेनब की ऊपर भी मेरे को शक हो रहा है की जब समीर ने उसको हया के बारे में पूछा तब उसने उसका वर्णन जेनाब की तरह बताया,खैर अफसा को लेकर पिछले अंक में जो गरमा गर्मी हो रही थी अब थोड़े देर के लिए वो शांत हो गई है मगर कब तक यह देखना दिलचस्प होगा? समीर का आगे एक्शन मोड में देखने मिलेगा यह सुनकर बहुत अच्छा लगा,खैर अगले अंक की अपेक्षा में।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई शुक्रिया। चलिये यह जान कर खुशी हुई कि आपको भी लगने लगा है कि गहरी चाल की व्युहरचना तैयार हो गयी है।
हटाएंintjar hai
जवाब देंहटाएंसाईरस भाई आपका इंतजार समाप्त हुआ। शुक्रिया दोस्त।
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