रविवार, 3 सितंबर 2023

  

गहरी चाल-24

 

अजीत सर की हिदायत ने मेरे लिये एक नयी परेशानी खड़ी कर दी थी। आफिस से निकल कर सबसे पहले कनाट प्लेस की एक रेडीमेड दुकान से नयी शर्ट और पैन्ट खरीदी और उनके चेंजिंग रुम मे ही कपड़े बदल कर मै फारुख से मिलने के लिये काफी हाउस की दिशा मे निकल गया था। जब तक वहाँ पहुँचा तब तक सवा चार बज चुके थे। काफी हाउस मे काफी चहल पहल थी। फारुख मुझे कहीं नजर नहीं आ रहा था। किनारे मे एक खाली टेबल देख कर काफी का आर्डर देकर द्वार पर निगाह टिका कर बैठ गया था। कुछ देर के बाद फारुख ने काफी हाउस मे प्रवेश किया। आज वह अपना कश्मीरी लिबास त्याग कर शर्ट-पैंट मे था। उसने एक नजर चारों ओर घुमा कर मेरी ओर आते हुए बोला… मेजर, देर हो गयी। तभी मेरी काफी आ गयी थी तो मैने काफी की चुस्की लेकर कहा… कोई बात नही। काफी का आर्डर देकर वह मेरे सामने बैठ गया था। मेरी नजर अभी भी द्वार पर टिकी हुई थी। उसके पीछे चार आदमियों ने काफी हाउस मे प्रवेश किया और वह चारों भी कुछ दूरी पर जाकर बैठ गये थे। …मेजर, तुम्हारी युनीफार्म कहाँ गयी? मैने मुस्कुरा कर कहा… तो तुम मेरा पीछा कर रहे थे। उसने कोई जवाब नहीं दिया बस मेरी ओर एकटक देखता रहा।

फारुख ने दबी आवाज मे पूछा… मेजर, शुजाल बेग को कहाँ रखा है? अपनी काफी पीते हुए मैने पूछा… मेजर हया कौन है और वह इस वक्त कहाँ है? …क्या तुम्हें पता है कि हया कौन है? …अगर मुझे पता होता कि हया कौन है तो क्या मै तुमसे यहाँ बैठ कर बात कर रहा होता। अचानक वह मुस्कुरा कर बोला… मेरा मतलब वह नहीं था। तुम उसके नाम से अभी तक पता नहीं लगा सके तो अब मुझे तुम्हारी बुद्धि पर शक होने लगा है। मेरी आवाज अचानक कड़ी हो गयी थी… फारुख पहेलियों मे बात करना बन्द करके अगर सीधे मुद्दे पर आ जाओगे तो दोनो के लिये अच्छा होगा। अचानक वह संजीदा होकर बोला… मेजर, श्रीनगर मे मुझसे चूक हो गयी थी। उस दिन अगर एक इंच नीचे गोली लगी होती तो आज तुम यहाँ न होते। उसकी बात सुन कर एक मुस्कान मेरे होंठों पर तैर गयी थी। वह ताव खाते हुए बोला… इसमे मुस्कुराने की कौनसी बात है। अबकी बार मैने हँसते हुए कहा… सोच कर देखो कि अगर उस दिन मेरी पिस्तौल की नाल सिर्फ एक सूत उपर हो गयी होती तो इस वक्त तुम औरतों के कपड़े पहन कर लोगों की शादियों पर ढोलक की थाप पर नाच रहे होते। मेरी बात सुन कर उसका चेहरा गुस्से से विकृत हो गया था। …फारुख, मुद्दे पर जितनी जल्दी हम आ जाएँगें तो दोनो के लिये अच्छा होगा।

अबकी बार उसने बड़ी संजीदगी से कहा… मेजर हया इनायत मीरवायज का नाम सुन कर तुम्हें कुछ नहीं समझ आया। वह वलीउल्लाह की आईएसआई हैंडलर थी। अबकी बार हया का पूरा नाम उसके मुख से सुन कर मुझे झटका लगा था। …हया भी मीरवायज है? अबकी बार फारुख ने धीरे से कहा… वह खालिस मीरवायज है और मेरी छोटी बहन है। यह सुन कर मेरा दिमाग एक पल के लिये घूम गया था। भला कैसे एक भाई अपनी ही बहन का राज उसी के जानी दुश्मन के सामने उजागर कर रहा था। वह मुस्कुरा कर बोला… मै जानता हूँ कि तुम मेरी बात पर विश्वास नहीं करोगे लेकिन यही सच है। मुझसे पहले हया कश्मीर की तंजीमों की हैन्डलर थी। अगर उसका बस चलता तो तुम्हारी मौत बेहद दर्दनाक होती। मैने आश्चर्यचकित स्वर मे कहा… मेरे साथ उसकी कैसी दुश्मनी। मै तो उसे जानता भी नहीं हूँ। फारुख ने अबकी बार मुस्कुराते हुए कहा… तुमने अनजाने मे ही सही उसके हर मंसूबे को ध्वस्त किया था। उसके द्वारा रचित स्कूल गर्ल और पत्थरबाजी के लिये पैसों का रैकेट, जामिया मस्जिद मे ब्लास्ट, इत्यादि के कारण जमात खोखली हो गयी थी। इसका बदला लेने के लिये उसने तुम्हारी अम्मी और तुम्हारी बहन आलिया की हत्या की साजिश रची थी। अपने आप को संभालते हुए मैने पूछा… वह इस वक्त कहाँ है? …पता नहीं। जिस दिन उसकी बहन मिरियम की हत्या हुई थी वह तभी से इस्लामाबाद से गायब है। आईएसआई भी उसे ढूंढ रही है। कुछ दिन पहले ही हमे पता चला है कि वह नीलोफर की मदद से सीमा पार करके यहाँ पहुँच गयी है।

मैने झल्ला कर कहा… फारुख, तुम मेरा समय बर्बाद कर रहे है। वह कहाँ है? जब तक यह नहीं बताओगे तब तक यह सौदा नहीं हो सकता। ऐसे तो जानकारी के लिये मै भी बता देता हूँ कि शुजाल बेग को यहीं पर कहीं रखा हुआ है। अभी तक तुमने मेजर हया के बारे मे कोई ऐसी चीज नहीं बतायी है जिससे उसकी शिनाख्त हो सके और न ही उसका पता बताया है जहाँ से उसे हिरासत मे लिया जा सके। फारुख ने जल्दी से कहा… समीर, हया को सिर्फ तुम ही पकड़ सकते हो। …कैसे? …तुम मिरियम को बहुत अच्छे से जानते हो इसीलिये तुम हया की पहचान आसानी से कर सकते हो। वह मिरियम की बड़ी बहन है। दोनो जुड़वा बहने सी लगती थी। इतना बोल कर वह चुप हो गया था। उसकी बात सुन कर सबसे पहले मेरे दिमाग मे तबस्सुम की छवि उभरी थी। मुझे अपना संसार ढहता हुआ लग रहा था। अचानक उसने मेरा हाथ पकड़ कर हिलाते हुए कहा… क्या हुआ? उसका हाथ झटक कर अपने आपको संभालते हुए मैने कहा… एक पल के लिये मिरियम की याद आ गयी थी। एक बात अभी भी मुझे समझ मे नहीं आयी कि एक बहन को तुम मेरे हाथों मरवाना चाह रहे हो और दूसरी बहन की हत्या तुमने मकबूल बट के हाथों से करा दी। तुम कैसे अपने आप को उन दोनो के भाई होने का दावा कर रहे हो। मीरवायज खानदान के निज़ाम मे बेटियों की हत्या करने की क्या कोई पुरानी परंपरा है? कुछ महीने पहले तुम मुझसे अपनी बेटी तबस्सुम की हत्या करवाना चाहते थे और अब अपनी बहन की हत्या की सुपारी दे रहे हो। क्या तुम्हारी बेटी तबस्सुम मिल गयी है जो अब अपनी बहन को मरवाना चाह रहे हो? इस प्रश्न ने फारुख की दुखती रग को छेड़ दिया था।

वह बौखला कर तेजी से उठते हुए गुस्से से बोला… मेजर तुमने मेरी बेटी की बात छेड़ कर बहुत बड़ी गलती कर दी है। अब यह सौदा नहीं हो सकता। मैने उठते हुए कहा… मैने तो उसी वक्त कह दिया था कि यह सौदा नहीं हो सकता क्योंकि तुम एक दोगले और धूर्त इंसान हो। अब मुझे तुम्हारी चाल समझ मे आ गयी है। तुम्हारी एक एजेन्ट हया अचानक गायब हो गयी है। आईएसआई को डर है कि कहीं वह वलीउल्लाह के लिये हमसे सौदा न कर ले तो तुमने मुझे उसके बारे मे एक फर्जी कहानी सुना कर मेरे हाथों उसकी हत्या करवाने की साजिश रची है। दूसरी ओर तुम खुद मंसूर बाजवा की नजरों मे चढ़ने के लिये मुझसे शुजाल बेग का पता पूछ कर उसकी हत्या करने की योजना बना कर बैठे हुए हो। इसीलिये फारुख मैने तुम्हें दोगला और धूर्त की उपाधि से नवाजा है। वह चुपचाप खड़ा मेरी बात सुनता रहा था। मैने चलते हुए कहा… जब तुम्हारे पास हया की कोई पुख्ता खबर हो तब फोन करना…खुदा हाफिज। इतना बोल कर मै काउन्टर की ओर बढ़ गया था। मैने जल्दी से अपनी काफी के पैसे दिये और बाहर निकल आया था।

अपनी घड़ी पर नजर डाली तो साड़े पाँच बज चुके थे। मैने मन ही मन सोचा कि फारुख हमारे किसी काम का नहीं है। मै अपनी जीप मे बैठा और थापा से कहा… घर चलो। हम घर की दिशा मे चल दिये थे। …थापा, आज किसी ने हमारा पीछा किया था। अब से ख्याल रखना और जब पूरा विश्वास हो जाए कि कोई पीछा नहीं कर रहा है तभी घर की ओर चलना। …जी साहब। कुछ देर जीप सड़क पर इधर उधर घूमती रही और फिर थापा ने कहा… साहबजी, कोई भी गाड़ी हमारा पीछा नहीं कर रही है। …चलो फिर घर चलते है। जीप अपने गंतव्य स्थान की ओर चल दी थी। जब तक घर पहुँचा तब तक अंधेरा हो गया था। आफशाँ की आफिस की कार पार्किंग मे खड़ी हुई देख कर मै समझ गया कि वह वापिस आ चुकी है। दरवाजे पर जीप से उतर कर मै अन्दर चला गया था। मेरे कपड़े देख कर दोनो माँ और बेटी ने एक ही सवाल एक साथ किया… युनीफार्म कहाँ गयी? मैने हाथ मे पकड़ा हुआ थैला उनकी ओर उछाल कर कहा… यहाँ है। इसको धोने डालने से पहले सारी चीजें निकाल लेना। मै बेडरुम मे चला गया और अपने कपड़े बदल कर जब तक बाहर निकला तब तक मेनका कन्धे पर लगे हुए रैन्क के चिन्ह को निकालने की कोशिश मे जुटी हुई थी।

मै उसके पास बैठ कर सीने पर लगी हुई बार और कन्धे पर लगी हुई रैन्क के चिन्ह के बारे मे समझाते हुए उनको निकालने का तरीका दिखाते हुए कहा… अब निकाल लोगी। वह मेरे हाथ से शर्ट छीनते हुए जोर से चिल्लायी… साहबजी, अब जवान इन्हें खुद निकालेगा। मैने आफशाँ की ओर देखा तो वह मुझे ही देख रही थी कि जैसे कह रही हो कि मैने बताया था न। अचानक आफशाँ ने कहा… समीर, मुझे तीन दिन के लिये आफिस के काम से ढाका जाना है। सोमवार को शाम तक वापिस आ जाउँगी। …कब जाना है? …कल सुबह। जाने की तैयारी करने के लिये मै जल्दी आ गयी थी। …तुम बेफिक्र होकर जाओ। अगर मुझे इस बीच मे कहीं जाना भी पड़ा तो जवान को अपने साथ ले जाऊँगा। यह सुन कर मेनका मेरी शर्ट छोड़ कर मेरे गले मे बाँहें डाल कर खूशी से झूल गयी थी।

चाय पीते हुए मैने पूछा… तुम बांग्लादेश मे किसके लिये काम कर रही हो? …हमने उनके लिये कोई काम नहीं किया है। उनके साफ्टवेयर सिस्टम मे कुछ परेशानी आ रही थी तो उन्होंने हमसे मदद मांगी है। उसी को देखने के लिये जा रही हूँ। …ओह, तो तुम लोग दूसरी कंपनियों के लिये भी काम करते हो। …ऐसी बात नहीं है। एक कंपनी ने किसी बड़ी कंपनी से कीमती साफ्टवेयर खरीदा और कुछ साल बाद जब उनका करार समाप्त हो गया तो वह उसके आप्रेशन्स और मेन्टेनेन्स के लिये किसी दूसरी कंपनी को काम दे देते है। हम सभी साफ्टवेयर के लोग एक दूसरे के संपर्क मे रहते है और जब भी किसी का कोई काम अटकता है तो वह तुरन्त दूसरी कंपनी मे बैठे हुए अपने दोस्त से बिना झिझक पूछ लेता है। वह भी बताने मे नहीं झिझकता है क्योंकि पता नहीं कब उसे हमारी जरुरत पड़ जाये। इस मामले हमारी इंडस्ट्री बेहद खुले दिल की है। हमारे बीच प्रतिस्पर्धा मे ही दीवारें होती है लेकिन अगर परेशानी होती है तो मदद आसानी से कहीं से भी मिल जाती है।

अगले दिन सुबह आफशाँ ढाका चली गयी थी। शाम को मुझे काठमांडू के लिये निकलना था। आफशाँ के अचानक जाने के कारण मेरा सारा प्रोग्राम गड़बड़ा गया था। अपने आफिस पहुँच कर मैने मेनका की आने-जाने की टिकिट उसी फ्लाईट मे बुक करा दी थी। मै अजीत सर का इंतजार कर रहा था। कुछ देर के बाद मेरे इंटर्काम पर वीके ने कहा… मेजर, मेरे आफिस मे आओ। मै वीके के आफिस की ओर चल दिया था। दरवाजा खोल कर मैने अन्दर झांका तो तीनों बैठे हुए थे। …आओ मेजर। मै चुपचाप एक किनारे मे जाकर बैठ गया था। कुछ सोच कर वीके ने कहा… मेजर, तुम्हारा सुझाव है कि शुजाल बेग के सामने कोई प्रस्ताव रखना चाहिये जिससे उसके अन्दर नयी जीने की चाह अंकुरित हो सके। …सर, मुझसे बेहतर आपने मेरी बात रखी है। बिल्कुल मेरा यही प्रस्ताव है। जनरल रंधावा ने कहा… समीर, शुजाल बेग हमारे देश का दोषी है। उसे आतंकवाद फैलाने, उसके द्वारा हुए जान और माल के नुकसान के लिये सजा मिलनी चाहिये। ऐसी हालत मे उसे छोड़ने की बात करना बेहद संवेदनशील साबित हो सकता है। वह कुछ बताये या ना बताये लेकिन उस गुनाहगार को हम छोड़ नहीं सकते है। मैने वीके और अजीत सर की ओर देखा तो वह चुप बैठे हुए थे।

कुछ सोच कर मैने कहा… सर, क्या आप या सेना का कोई ट्रिब्युनल उसे मौत की सजा दे सकते है? मेरा मानना है कि अगर उसे सजा भी देनी होगी तो भी उसे हमारी न्यायिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। इसका मतलब है कि उसके खिलाफ हमे सुबूत इकठ्ठे करने पड़ेंगें और जैसी लचर हमारी न्याय व्यवस्था है इसकी कोई गारन्टी नहीं कि उसे कब तक सजा होगी। तब तक न जाने उसे छुड़ाने के लिये कितने प्रयास किये जाएँगें। हमारा एक महकमा बस शुजाल बेग मे उलझ कर रह जाएगा। पंच मक्कार उसके निर्दोष होने के कसीदे पढ़ना शुरु कर देंगें। वह जब कोर्ट मे जाएगा तब वह हमारे उपर इल्जाम लगायेगा कि हम उसका अपहरण करके यहाँ लाये थे। पाकिस्तान इसको अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश करेगा कि उनके दूतावास मे नियुक्त आदमी को भारत सरकार ने नेपाल की धरती से अपहरण किया है। सब कुछ जानते बूझते हम दुनिया के सामने सफाई देने के लिये बाध्य हो जाएँगें। इन सब पचड़ों मे पड़ने के बजाय उससे वलीउल्लाह और जिहाद काउंसिल के बारे मे पता करके उसको उन्हीं को सुपुर्द कर देंगें तो हम इन सब परेशानी से बच जाएँगें। अगर उसके लोगो ने उसे मार दिया तो हमारी आत्मा पर कोई बोझ नहीं होगा और अगर वह बच गया तो हमे उसकी मदद करनी चाहिये कि वह आराम से वापिस आईएसआई के हेडक्वार्टर्स मे बैठ जाये जिससे वक्त पड़ने पर वह हमारे कुछ काम आ सके। यही सोच कर मैने यह सुझाव दिया था।

जनरल रंधावा ने दोनो को देखा और फिर मुस्कुरा कर बोले… समीर, हमने इसी बात पर काफी देर चर्चा कर चुके है। शुजाल बेग हमारे लिये जीता जागता टाइम बाम्ब है। यह खबर अगर किसी को लग गयी कि वह हमारे कब्जे मे है तो सभी एजेन्सियों के लिये मुसीबत खड़ी हो जाएगी। तभी अजीत सर ने पूछ लिया… फारुख ने कुछ बताया? …सर, फारुख हमे धोखा दे रहा है। वह मेजर हया को अपनी छोटी बहन बता रहा था जिसको इस वक्त आईएसआई ढूंढ रही है। वह वलीउल्लाह की हैन्डलर थी जो अब उनके लिये एक मुसीबत बन चुकी है। आईएसआई को डर है कि कहीं वलीउल्लाह की असलियत बताने के लिये वह हमसे सौदा न कर ले। उसको भी नहीं पता है कि मेजर हया इस वक्त कहाँ है। उसकी योजना है कि आईएसआई की असंतुष्ट एजेन्ट मेजर हया को हम ठिकाने लगा दे और हमारी मदद से वह शुजाल बेग को खुद ठिकाने लगा देगा। मुझे तो उसकी बात से अब तक इतना ही समझ मे आया है। …मेजर, उसके संपर्क मे रहना वर्ना शुजाल बेग को किसके हवाले करेंगें। …सर, पहले उसे आपके दोनो सवालों का जवाब देना पड़ेगा तभी हम उसके यहाँ से निकालने के बारे मे सोचेंगें।

वीके ने पूछा… क्या आज तुम उससे मिलने जा रहे हो? …नहीं सर, उसको इंतजार करने दिजिये। आज वह मेरे लिये कुछ जवाब तैयार करके बैठा होगा लेकिन जब मै नहीं पहुँचूँगा तो वह फिर नये सिरे से अपना जवाब तैयार करेगा। वीके ने अजीत की ओर देखा और फिर कुछ सोच कर कहा… ठीक है। हमारी ओर से तुम्हें वह प्रस्ताव रखने की छूट दे रहे है। …थैंक्स सर। मुझे विश्वास है कि वह जल्दी ही जो कुछ भी जानता है वह बता देगा। मै आज शाम की फ्लाईट से नेपाल जा रहा हूँ। मुझे शुजाल बेग की एक कमजोर नस को वहाँ से लेकर आना है। सोमवार को सुबह मै उसको अपने साथ लेकर शुजाल बेग से मिलने जाउँगा तो वह जरुर सब कुछ बताने के लिये राजी हो जाएगा। …वह कौन है? …सर, शुजाल बेग की आखिरी काल जेनब के पास से आयी थी। वह अपने साथियों के साथ नेपाल घूमने आना चाह रही थी। मुझे पता नहीं कि उसको शुजाल बेग के बारे मे पता चल गया है कि नहीं लेकिन अगर वह आयी होगी तो अपने अब्बा से बात करने के लिये वह जरुर राजी हो जाएगी। उसके बारे मे अजीत सर को पता है। उन्होंने अजीत सर की ओर देखा तो सिर हिला कर कहा… मैने जब वह नाम उसके सामने लिया था तो वह बौखला गया था। मुझे लगता है कि वह अगर उससे मिलेगी तो वह जरुर टूट जाएगा। कुछ देर उनसे बात करके मै अपने आफिस मे चला आया था।

एक बजे मै अपने घर की ओर निकल गया था। मेनका का सामान भी रखना था। घर पहुँच कर मैने मेनका को जब बताया कि काम के सिलसिले मे मुझे नेपाल जाना है तो वह तुरन्त अपना बैग पैक करने मे जुट गयी थी। थापा ने हमे एयरपोर्ट पर उतार दिया था और उसको छोड़ने से पहले मैने अपनी लौटने की फ्लाईट का समय बता कर उसे सोमवार को ग्यारह बजे एयरपोर्ट आने के लिये कह दिया था। मेनका पहली बार मेरे साथ सफर कर रही थी। उसके पास इतने सवाल थे लेकिन मेरा दिमाग सिर्फ एक सवाल पर अटका हुआ था। मेनका को होटल मे ठहराऊँ या अपने घर ले जाऊँ? कुछ सोच कर मैने कहा… मेनका यह बात अम्मी को भी पता नहीं चलनी चाहिये कि हम नेपाल गये थे। यह आफिस का मामला है इसलिये यह सीक्रेट हमारे और तुम्हारे बीच मे रहना चाहिये। हम एक घर मे रहेंगें जहाँ तुम्हें दो आंटी और बहुत से अंकल मिलेंगें। यह अब हमारा सीक्रेट होगा। वह चुपचाप सारी बात सुन कर दबी हुई आवाज मे बोली… यह हमारा सीक्रेट है। गाड प्रामिस। एक चैन की साँस लेकर मै पीठ टिका कर बैठ गया था।

छह बजे हम काठमांडू एयरपोर्ट पर उतर गये थे। कैप्टेन यादव एयरपोर्ट पर लेने आ गया था। मै और मेनका पिक-अप मे बैठे और घर की ओर चल दिये थे। …मेनका, यह यादव अंकल है। मेरे साथ काम करते है। कैप्टेन दूतावास पर कैसी सरगर्मी देखने को मिली है? …सर, सब शांत है। नूर मोहम्मद फिलहाल शुजाल बेग का सारा काम देख रहा है। कुछ जेनब और नफीसा का पता चला? …नहीं सर। ऐसा लगता है कि उनको पता लग गया होगा इसलिये उनका कार्यक्रम स्थगित हो गया है। …नूर मोहम्मद का फोन टैप कर रहे हो कि नहीं? …सर, उसके फोन पर हमारी निगाह है। अगर वह लड़कियाँ यहाँ आयी होती तो जरुर नूर मोहम्मद से बात करती परन्तु उन्होंने उससे अभी तक कोई बात नहीं की है। यही बात करते हुए हम आफिस पहुँच गये थे। …सर, गोदाम पर कल सुबह आपका इंतजार करेंगें। इतना बोल कर वह हमे बाहर छोड़ कर चला गया था। मैने मेनका का हाथ पकड़ा और अन्दर चला गया। आफिस बन्द हो चुका था। एक सैनिक गार्ड ड्युटी पर बैठा हुआ था।

घर के दरवाजे पर पहुँच कर एक पल के लिये कुछ सोचने के लिये रुक गया लेकिन मेनका अपने झोंक मे दरवाजे को धक्का देकर खोलने लगी तो मैने जल्दी से घंटी का बटन दबा दिया। अगले ही पल तबस्सुम गेट खोल कर मेरी ओर झपटी परन्तु मेनका को बीच मे खड़ी देख कर ठिठक कर रुक गयी थी। …मेनका, यह तुम्हारी अंजली आंटी है। तभी आरफा भी आ गयी थी। …यह तुम्हारी आरफा आंटी है। तबस्सुम मेनका की ओर बढ़ी तो वह सिकुड़ कर मेरे पाँव से लिपट गयी थी। मैने उसे गोदी मे उठा कर अन्दर आ गया था। सोफे पर बैठ कर मैने मेनका से कहा… बेटा, तुम आँटी से बात नहीं करना चाहती? तबस्सुम उसके पास आकर अपना हाथ आगे बढ़ा कर बोली… मेरा नाम अंजली है। आपका क्या नाम है। मेनका ने उससे हाथ मिला कर कहा… मेरा नाम मेनका कौल है। तबस्सुम ने एक बार मेरी ओर देखा और फिर बोली… हमसे दोस्ती करोगी। आओ तुम्हें तुम्हारा रुम दिखा देती हूँ जहाँ तुम आराम से अपना बैग रख सकती हो। तबस्सुम उसका हाथ पकड़ कर गेस्ट रुम मे ले गयी और फिर उसको मकान दिखाने लगी। मै अपने कपड़े बदलने चला गया था। जब तक मै बाहर निकला तब तक मेनका की कहानी शुरु हो चुकी थी। तबस्सुम और आरफा से उसकी जान पहचान हो चुकी थी।

मै उपर हाल की ओर निकल गया था। वहाँ पर तैनात रेडियो आप्रेटर विजय कुमार ड्युटी पर बैठा हुआ था। …क्या हाल चाल है। अपने टर्मिनल पर बैठते हुए मैने पूछा… क्या आज दिल्ली से कोई खबर आयी है? …नहीं सर। बस एक रिपोर्ट भारतीय दूतावास से आयी है। यह बोल कर उसने वह रिपोर्ट अपने कंप्युटर पर खोल कर दिखा दी थी। वह रिपोर्ट राजनीतिक हालात पर थी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल टूटने की कगार पर पहुँच गयी थी। यह तो पिछले आठ महीने से चल रहा था। रिपोर्ट बन्द करके  मै कमांड सेन्टर की ओर से खबरें देखने बैठ गया था। कुछ देर वहाँ बैठने के बाद मै वापिस नीचे चला आया। मेनका खाना खाते हुए अपनी कहानी तबस्सुम को सुना रही थी। मै भी उसके साथ खाना खाने बैठ गया। जबसे आया था तबसे तबस्सुम से एक बार भी अकेले मे नहीं मिल सका था। वह भी संयम से दूर बैठी हुई मुझे देख लेती थी और जब निगाहें मिलती तो वह बस मुस्कुरा देती थी।

खाना खाने के बाद मै मेनका को लेकर बाहर सड़क पर टहलने के लिये ले गया था। जब से दिल्ली गया था तो हम तीनो खाना खाने के बाद लान मे कुछ देर टहल कर सोने चले जाते थे। सुनसान सड़क देख कर मेनका ने कहा… अब्बू यहाँ दिल्ली जैसी लाईट नहीं है। मैने उसे उँचे पहाड़ों की ओर इशारा करते हुए कहा… वहाँ ऐसे पहाड़ नहीं है। चंद्रमा की रौशनी मे दूर बर्फ की चोटियाँ चमक रही थी। वह वहीं खड़ी होकर कुछ देर देखती रही और फिर धीरे से बोली… ब्युटिफुल। हम टहल कर वापिस लौटे तब तक सब ओर शान्ति छा गयी थी। आरफा अपने कमरे मे चली गयी थी और तबस्सुम अपने कमरे मे थी। मै उसे गेस्टरुम मे ले गया और उसके साथ लेट गया। वह भी सफर से थक गयी थी तो कुछ देर मे सो गयी थी। कुछ देर उसके साथ लेटा रहा और फिर मै अपने कमरे की ओर चला गया था।

मै जैसे ही कमरे मे घुसा तबस्सुम ने झपट कर मुझे पीछे से जकड़ कर खड़ी हो गयी थी। मैने घूम कर उसे अपनी बाँहों मे भर लिया और उसके बहते हुए आँसुओं को देख कर बोला… मुझे समझ मे नहीं आया कि तुम खुशी मे रो रही हो अथवा दुख मे? उसने मेरे सीने पर मुक्का मार कर कहा… मेरे लिये आपको अब समय मिला है। उसे अपनी बाँहों मे लिये बिस्तर पर आकर लेट गया और फिर कुछ देर उससे डाक्टर और काम के बारे मे बात करके कहा… आज तुम पहली बार मेरी बेटी से मिली तो कुछ महसूस हुआ। अब जिसको तुम इस दुनिया मे ला रही हो तो उसकी अभी से तैयारी कर लो। दो दिन यह यहाँ होगी तो तुम्हें जिम्मेदारी का एहसास हो जाएगा। वह जल्दी से बोली… वह तो मुझे आज ही हो गया है कि उसके सामने आपसे दूरी बना कर रखनी पड़ेगी। मैने हंसते हुए कहा… जो मुझे कहना चाहिये वह तुम कह रही हो। कुछ देर बात करने के बाद दबी हुई भावनाएँ सिर उठाने लगी थी। बात छेड़खानी से शुरु होकर एकाकार की ओर बढ़ती चली गयी और फिर हम एक दूसरे की कामपिपासा को शांत करने मे जुट गये थे। जब तूफान गुजर गया तब वह बोली… आपके बिना यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। कुछ देर बात करने के बाद हम दोनो पर नींद हावी हो गयी थी।

हमेशा की तरह सुबह मेरी आँख जल्दी खुल गयी थी। मैने अपनी चाय बनायी और फिर तैयार होने के लिये चला गया था। जब तक तैयार हुआ तब तक तबस्सुम भी उठ गयी थी। उसकी भाग दौड़ भी शुरु हो गयी थी। शनिवार को आफिस मे आधा स्टाफ आता था तो काम का भार भी कम था। तबस्सुम मेनका को उठाने के लिये चली गयी थी। कुछ देर बाद मेनका भी तैयार होकर बाहर निकल आयी थी। …अंजली मै गोदाम जा रहा हूँ। वहाँ पहुँच कर मै गाड़ी वापिस भेज दूँगा तो क्या तुम मेनका को काठमांडू घुमाने के लिये ले जाओगी? …क्यों मेनका मेरे साथ काठमांडू घूमने के लिये चलोगी? वह मेरी ओर देख कर बोली… अब्बू आप भी हमारे साथ चलिये। …बेटा हमारा सीक्रेट याद है। आफिस का काम करना है। मेनका तुरन्त चुप हो गयी थी। …अंजली लौटते हुए गोदाम पर आ जाना फिर मै तुम्हारे साथ वापिस आ जाउँगा। इतनी बात करके मै अपने गोदाम की ओर निकल गया था।

गोदाम पहुँच कर हमारे ट्रक के ड्राइवर को अपनी गाड़ी देते हुए कहा… उन्हें जहाँ जाना हो ले जाना और लौटते हुए पहले यहाँ आना। इतना बता कर मै अपने हाल मे चला गया था। कैप्टेन यादव और लेफ्टीनेन्ट सावरकर कुछ साथियों के साथ मेरा इंतजार कर रहे थे। उनसे हफ्ते भर की रिपोर्ट लेकर मैने पूछा… बिलावल ट्रांस्पोर्ट के क्या हाल है? …सर, वह तो अभी तक बन्द है। …उस नाइट क्लब का कुछ हुआ? …कुछ नहीं सर। …शाही मस्जिद पर कौन नजर रख रहा है? जमीर ने कहा… मै जाता रहता हूँ। मौलाना कादरी तो पूरे हफ्ते घर से बाहर ही नहीं निकले और यहाँ स्थानीय नेपालियों और मुस्लिम समुदाय मे टेन्शन अभी तक बनी हुई है। …आईएसआई के बाकी हाटस्पाट्स पर क्या हाल है? …सर, शुजाल बेग के गायब होते ही सब अचानक शान्त हो गया है। पूरे हफ्ते एक भी जिहादी बाहर नजर नहीं आया है। खबर है कि बहुत से लोग काठमांडू छोड़ कर तराई मे चले गये है।

कुछ देर उनकी बात सुन कर मैने कहा… हमे यह जानना है कि कोई जेनब या नफीसा नाम की अमरीकन या पाकिस्तानी पर्यटक पिछले तीन दिन मे यहाँ आयी है। उसे सिर्फ बड़े होटल मे ढूंढने की जरुरत है। अमरीका से यहाँ कुछ गिनी चुनी फ्लाईट आती है। एक आदमी एयरपोर्ट जाकर ट्रेवल डेस्क से पता कर सकता है। मुझे बस इतना जानना है कि वह आयी है कि नही। उनसे संपर्क करने की कोई कोशिश न करे बस उनका पता लगते ही यहाँ खबर कर देना। मैने दो आदमियों को फोन पर बैठा दिया था और एक आदमी को एयरपोर्ट भेज कर मैने कैप्टेन यादव से पूछा… गोदाम के काम का क्या हाल है? …सर, हमने जल्दी एक और गोदाम नहीं लिया तो बहुत मुश्किल हो जाएगी। …कोई गोदाम तुमने देखा है? …सर, प्रापर्टी डीलर से पता चला है कि नूर मोहम्मद का गोदाम बिकाऊ है। उसने तो वह गोदाम किराये पर लिया था। उसका असली मालिक कोई और है। वह उस गोदाम को बेचना चाहता है। उसमे हमे कुछ खर्चा करना पड़ेगा लेकिन वह गोदाम हमे सस्ते मे मिल जाएगा। …तो इंतजार किस बात का है। आज ही उस डीलर से बात करो कि उसकी मांग क्या है और वह कितने मे दिलवा देगा। दो चार डीलर से बात करोगे तो उस जगह की सही कीमत पता चल जाएगी।

कुछ देर गोदाम के काम के बारे मे बात करने के बाद मै संचार केन्द्र मे चला गया था। वहाँ पर नूर मोहम्मद के फोन की रिकार्डिंग सुनने बैठ गया था। हफ्ते भर की रिकार्डिंग सुनने के बाद बस इतना ही पता चल सका था कि आईएसआई ने फिलहाल अपनी नेपाल युनिट को साइलेन्ट मोड मे डाल दिया था। बस उन बातों से एक खास बात ही पता चल सकी थी कि दुख्तरान-अल-हिन्द के लश्कर को भारत भेजने का निर्देश दिया गया था। इसके लिये मुझे नूर मोहम्मद से मिलना आवश्यक हो गया था। मैने कैप्टेन यादव से नूर मोहम्मद के बारे मे पता किया तो उसने बताया कि वह आजकल पाकिस्तान दूतावास मे बैठने लगा है। इसका मतलब था कि उससे सिर्फ घर पर ही मिला जा सकता था। मै हाल मे आकर बैठ गया था। दो तंजीमो के बारे मे तो मुझे जानकारी थी परन्तु दुख्तरान-अल-हिन्द नाम की तंजीम अभी तक एक पहेली बनी हुई थी। रिकार्डिंग के अनुसार उसे भारत जाने के लिये कहा गया था। मै उसके बारे मे सोच रहा था कि मेरी गाड़ी पहुंचने का संकेत मिला तो मै झटपट हाल से निकल कर यादव के आफिस की ओर चला गया था।

तबस्सुम अपने साथ मेनका को लेकर अन्दर आ गयी थी। मेनका गोदाम मे रखे हुए सामान को विस्मय से देखते हुए एक जगह खड़ी हो गयी थी। दोनो कुछ बात कर रही थी जब मै उनके पास पहुँचा था। …मेनका काठमांडू मे क्या देखा? मुझे देखते ही तुबस्सुम से अपना हाथ छुड़ा कर वह मेरे पास आकर अपनी कहानी सुनाने लगी थी। कैप्टेन यादव भी तब तक आ गया था। …मै चलता हूँ। उनकी कोई खबर मिले तो तुरन्त मुझे खबर करना। यह बोल कर उन दोनो को लेकर मै गोदाम से बाहर निकल आया था। …अंजली क्या तुम अभी भी शबाना से बात करती हो? वह गाड़ी मे बैठते हुए बोली… आप तो ऐसे बात कर रहे है कि जैसे उससे मिले बहुत साल हो गये है। पिछले हफ्ते ही तो वह हमारे यहाँ डिनर करके गये थे। मैने अपनी बात को जल्दी से सुधारते हुए कहा… मुझे पाँच मिनट के लिये नूर मोहम्मद से मिलना चाहता हूँ। तुम जरा शबाना से पूछ कर देखो कि क्या हम मिलने आ सकते है लेकिन उन्हें यह नहीं लगना चाहिये कि हमे नूर मोहम्मद से मिलना है। उसने अपना फोन उठाया और शबाना से बात करके बोली… चलिये वह हमारे लिये चाय बना रही है। मैने नूर मोहम्मद के घर की दिशा मे अपनी गाड़ी का रुख कर दिया।

नूर मोहम्मद के घर के बाहर अब काफी सुरक्षा का इंतजाम दिख रहा था। ऐसा मुझे पहले नहीं दिखा था। मुख्य द्वार पर पास पहुँच कर मैने अपनी गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी की और हम तीनो पैदल लोहे के गेट की ओर चले गये थे। गेट पर खड़े हुए सुरक्षाकर्मी को मैने अपना नाम बताया तो उसने तुरन्त गेट खोल कर कहा आप अन्दर चले जाईये। शबाना दरवाजे पर खड़ी हुई थी। तबस्सुम को देखते ही वह झपट कर उससे मिली फिर मेनका की ओर देख कर बोली… कौल साहब आपकी साहेबजादी है? …जी। बस इतनी बात करके हम उनके लान मे जाकर बैठ गये थे। नूर मोहम्मद भी पहले से वहीं बैठा हुआ था। मुझे देखते ही वह उठ कर खड़ा होकर बड़ी गर्मजोशी से मिल कर बोला… समीर, मुझे पता नहीं था कि तुम भी आ रहे हो। मैने सोचा कि अंजली आ रही है। सहमी सी मेनका की ओर देख कर वह बोला… व्हू इज दिस ब्युटिफुल गर्ल। मेनका ने झिझकते हुए अपना नाम बताया और फिर मेरे पाँव से लिपट गयी थी। मै नूर मोहम्मद के साथ जाकर बैठ गया था। मेनका मुझे छोड़ कर तबस्सुम और शबाना के साथ जाकर बैठ गयी थी।

चाय पीते हुए मैने पूछा… अब तक तो सब ठीक हो गया होगा? …हाँ,अब सब ठीक है। अचानक उसने पूछा… शुजाल बेग का क्या हुआ? मैने महसूस किया कि तबस्सुम और शबाना मेरी ओर देखने लगी थी। मैने जल्दी से कहा… मुझसे क्यों पूछ रहे है। आपके वहाँ से निकलते ही मै भी वहाँ से चला गया था। क्यों उसके बाद क्या हुआ? शबाना ने जल्दी से कहा… आपको पता नहीं कि ब्रिगेडियर साहब बिना बताये कहीं चले गये है। तभी दो लड़कियाँ बाहर निकली और हमे बाहर लान मे बैठे देख कर अन्दर जाने लगी तो शबाना ने आवाज देकर कहा… नफीसा बेटे, मेनका को अन्दर ले जाओ। बच्चों के साथ इसका मन लग जाएगा बेचारी यहाँ बैठ कर बोर हो रही है। दोनो लड़कियाँ मेनका के पास आकर कुछ बोली और फिर उसका हाथ पकड़ कर अन्दर ले गयी। शबाना ने तबस्सुम से कहा… बेचारी यह दोनो यहाँ घूमने आयी थी लेकिन इनके आने से एक रात पहले ही ब्रिगेडियर साहब न जाने कहाँ चले गये। यह सुनते ही मेरे दिमाग मे घंटी बज गयी थी।

मेरे पूछने से पहले तबस्सुम ने पूछ लिया… यह ब्रिगेडियर साहब की बेटियाँ है? …हाँ। दोनो अमरीका मे पढ़ रही थी। वह तो ब्रिगेडियर साहब ने इन दोनो को एयरपोर्ट से लाने की इनकी ड्युटी लगा दी थी तो यह एयरपोर्ट पर लेने चले गये वर्ना यह बेचारी किसके पास जाती। मैने नूर मोहम्मद की ओर देखा तो वह मुझे देख रहा था। मै तो यहाँ दूसरे काम से आया था। मैने जल्दी से पूछा… नूर मोहम्मद साहब क्या आपने कभी दुख्तरान-अल-हिंद के बारे मे सुना है? शर्माजी पूछ रहे थे कि अगर आपको कुछ पता हो तो उनको बता दिजियेगा। तभी तबस्सुम ने टोकते हुए कहा… अब चलना नहीं है क्या? लेकिन नूर मोहम्मद ने जल्दी से कहा… समीर, मैने उनके बारे मे पहले सुना था लेकिन हाल मे ही दूतावास मे मेरी नियुक्ति के बाद यहाँ पर सक्रिय तंजीमों की लिस्ट मे उनका नाम मुझे नहीं दिखा था। उनका एक फोन नम्बर है तो अगर तुम वह नम्बर शर्माजी को दे दोगे तो अच्छा होगा। तबस्सुम कुछ बोलती उससे पहले मैने जल्दी से कहा… हाँ वह नम्बर आप मुझे दे दिजिये। वह उठ कर अन्दर चला गया तो मैने तबस्सुम से कहा… चलना है तो पहले मेनका को तो अन्दर से ले आओ। शबाना और तबस्सुम दोनो उठ कर मेनका को लेने अन्दर चली गयी थी। नूर मोहम्मद बाहर आया और उसने एक कागज मेरी ओर बढ़ा दिया था। मैने जल्दी से उसे अपनी जेब मे रख कर कहा… रात को नफीसा या जेनब से मेरी फोन पर बात करा देना। उनके अब्बा के बारे मे कुछ जरुरी बात बतानी है। तभी मेनका को लेकर तबस्सुम और शबाना बाहर आ गयी थी तो उससे ज्यादा मै कुछ और नहीं कह सका था। मैने मेनका को गोदी मे उठा लिया और दोनो का शुक्रिया अदा करके हम दोनो बाहर की ओर चल दिये थे।

शाम का छुटपुटा होना आरंभ हो गया था। हम अपने घर की ओर जा रहे थे कि तभी तबस्सुम ने पूछा… क्या ब्रिगेडियर साहब के गायब होने मे आपका कोई हाथ है? …है भी और नहीं भी। …क्या मतलब? …आराम से घर पर चल कर बात करेंगें। वह चुप होकर बैठ गयी थी। उसका सवाल सुन कर मै सावधान हो गया था। जब से मै काठमांडू आया था तभी से फारुख की बात को याद करके उसके हावभाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था। वह किसी भी एंगल से एक फौजी अफसर नहीं लगती थी। मेजर हया इनायत मीरवायज जैसी कोई चीज मुझे उसमे नजर ही नहीं आ रही थी। अगर तबस्सुम के वेष मे हया मेरे साथ इतने दिनो से रह रही थी तो मेरी हत्या करने के लिये उसको अनगिनत मौके मिले थे। मैने गाड़ी चलाते हुए अपने दिमाग से फारुख का ख्याल निकालने के लिये अपना सिर झटकारा तो उसने पूछा… क्या सोच रहे थे? …तुम्हारे बारे मे सोच रहा था। …अच्छा जी। आप मेरे बारे मे भी सोचने लगे है। मै कोई जवाब देता तब तक हम घर पर पहुँच गये थे।

उन दोनो को घर पर छोड़ कर मै हाल मे चला गया था। मैने कमांड सेन्टर मे जनरल रंधावा को दुख्तरान-अल-हिंद के बारे मे बात करके नूर मोहम्मद के दिये हुए नम्बर को उन्हें देकर उसे ट्रेक और टैप करने के लिये कह दिया था। मै वापिस नीचे आकर उनकी बातों मे उलझ गया था। मेनका भी थक गयी थी तो खाना खाने के बाद तबस्सुम उसे सुलाने के लिये चली गयी थी। मै अपने कमरे मे चला गया था। मै अभी लेटा ही था कि मेरे फोन की घन्टी बज उठी थी। मैने स्क्रीन पर नजर डाली तो कोई अनजान नम्बर था। मैने जल्दी से फोन कान पर लगा कर कहा… हैलो। …मै जेनब बोल रही हूँ। …जेनब, मेरी बात ध्यान से सिर्फ सुनो। अगर तुम अपने अब्बा के बारे जानना चाहती हो तो कल सुबह 10-11 के बीच मे मुझे गार्डन आफ ड्रीम्स मे मिलना। अगर हमारी मुलाकात की बात किसी को पता चली तो हमारी मीटिंग कैन्सिल है। …मै आपको कैसे पहचानूँगी। …मै तुम्हें पहचानता हूँ। कल सुबह 10-11 बजे के बीच गार्डन आफ ड्रीम्स मे मिलेंगें। खुदा हाफिज। मैने फोन काट दिया था।

फोन काट कर मेरी नजर दरवाजे की ओर अनायस ही चली गयी थी। तबस्सुम वहाँ पर खड़ी हुई मुझे घूर रही थी। उसकी आँखों मे घृणा के साथ क्रोध के अंगारे बरस रहे थे। एक पल के लिये मुझे लगा कि मेरी चोरी पकड़ी गयी है। वह मेरे पास चलती हुई आई और गुस्से से काँपती हुई आवाज मे बोली… आपसे मैने कभी ऐसी उम्मीद नहीं की थी। आप आदमी नहीं हैवान है। उस बेचारी को भी आप…गुस्से मे वह पूरा भी नही बोल सकी और मुड़ कर तेजी से कमरे से बाहर निकल गयी थी।

6 टिप्‍पणियां:

  1. जबरदस्त अंक और समीर के लिए ये क्या हो गया तबस्सुम ने तो फोन करते हुए समीर को सुन लिया मगर इसके साथ गलतफहमी का भी शिकार हो गई, मेनका को देख कर तबस्सुम पर अभी मातृत्व सुख की एहसास होने लगी है। अफशा की भी गुत्थी न सुलझी अभी फारूक की कहानी अब समीर को भी तबस्सुम की भी शक की चसमे से देखने लगा है।

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    1. अगर गलतफहमी है तो बातचीत से सुलझायी जा सकती है परन्तु उसके लिये दोनो को अपनी जिद्द छोड़नी पड़ती है। कुछ परतें खुलेंगी और कुछ उलझेंगी। अल्फा भाई शुक्रिया इतने दिन साथ निबाहने के लिये।

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    1. साईरस भाई शक की सुई तो घूमती रहेगी लेकिन यह कोई बूझो तो जानो वाली प्रतियोगिता नहीं है। हरेक परत खुलेगी तो और उलझा देगी। धन्यवाद।

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  3. तबस्सुम और मेनका की गट्टी तो गई, और जेनब की वजहसे गलतफहमी का शिकार भी हो गई. वैसे जेनब को चारे की तरह यूज करणे का आयडिया तो अच्छा था शुजाल बेग के खिलाफ, पर लगता है दाव उलटा ना पड जाये. तबस्सुम के तेवर देखके तो यही लग रहा, शुजालबेग के बारे मे उसने जब पुछा था तभी समीर को अंदेशा हुवा तो था पर शायद ये बात उसके दिमागसे आयी गई हो गई, अब सामने बिकट संकट घडी उत्पन्न हो गई है, देखते है समिर इस पारिवारीक उलझन से कैसे पार पाता है.

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    1. प्रशांत भाई शुक्रिया। गलतफहमी दूर हो सकती है लेकिन एक दूसरे पर विश्वास करने की जरुरत है। हमे यह नहीं भूलना चाहिये कि पारिवारिक उलझन से बड़ी समस्या समीर के सिर पर खड़ी है।

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