रविवार, 27 अगस्त 2023

  

गहरी चाल-23

 

फारुख से मिलने से पहले मै अपने आपको वलीउल्लाह के मामले मे पूरी तरह से तैयार कर लेना चाहता था। मै आफिस मे बैठ कर वीके द्वारा दी गयी फाईल और जनरल मोहन्ती के द्वारा दी गयी रिपोर्ट के बीच कोई तारतम्य निकालने की कोशिश मे जुटा हुआ था। सबसे ज्यादा ग्रिड रेफ्रेन्स मांगने वाली डेल्टा साफ्टवेयर सौल्युशन्स थी जिसमे आफशाँ काम कर रही थी। उस कंपनी के मांगे हुए ग्रिड रेफ्रेन्स और अब तक फिदायीन और फारुख के यहाँ से मिले हुए ग्रिड रेफ्रेन्स मे कोई मेल नहीं दिख रहा था। मेरी जाँच का दायरा बाकी तीन कंपनी पर सिमट कर रह गया था। मैने अपना ध्यान स्काईलैब कन्सल्टिंग ग्रुप पर लगाया था। वह कंपनी थल सेना के लिये बल्क डेटा एनेलिसिस पर काम कर रही थी। उनके द्वारे मांगें हुए ग्रिड रेफ्रेन्स का मिलान उन पाये गये कुछ सात अंकों के नम्बरों से हो गया था। उस कंपनी के बारे मे वीके की फाईल बता रही थी कि बीस-बीस लोगों के तीन समूह अलग-अलग थल सेना की सूचनाओं पर काम कर रहे थे। मैने उन साठ काम करने वाले लोगो के बारे मे दी गयी जानकारी पढ़ना शुरु कर दिया था। सभी अच्छे कालेजों से पास करने वाले साफ्टवेयर इन्जीनियर थे लेकिन उनमे युवतियों की संख्या ज्यादा थी। यही पैटर्न मुझे आफशाँ के समूह मे भी दिखा था। इनमे से कौन वलीउल्लाह हो सकता था?

मैने तीसरी कंपनी स्काई टेलिकान को खंगालना शुरु किया। कुछ सात अंकों के नम्बर उनकी लिस्ट मे भी मिल गये थे। वह सेना के सारे संसाधनों के डाटा को अलग-अलग जगह से इकठ्ठा करके जरुरत के अनुसार कोडिंग देकर बल्क डेटाबेस बनाने के काम मे लगे हुए थे। उस कंपनी के सौ से ज्यादा लोग थलसेना के लिये काम कर रहे थे। दस-दस के समूह मे देश के ब्रिगेड हेडक्वार्टर्स मे वह तैनात थे। एक पच्चीस लोगों का समूह सेना भवन से मिली हुई सारी सूचनाओं का बल्क डेटाबेस तैयार करने मे कार्यरत था। यहाँ पर भी युवतियों की संख्या अनुपात मे ज्यादा थी। इसी प्रकार मैने चौथी कंपनी इन्फीकान साफ्टवेयर कंपनी को भी खंगालना आरंभ कर दिया था। यह कंपनी वायुसेना के लिये साफ्टवेयर सौल्युशन्स बना रही थी। इसमे भी वही पैटर्न देखने को मिला जैसे बाकी सब मे मिला था। उनके द्वारा मांगे हुए कुछ ग्रिड रेफ्रेन्स का मिले हुए सात अंकों के नम्बरों से मिलान हो गया था। बाकी काम और काम करने वालो मे वही पैटर्न देखने को मिला जैसा पहले तीन कंपनी मे देखने को मिला था। सामान्यता एक कंपनी का दूसरी कंपनी के साथ काम मे और काम करने वालो मे दूर-दूर तक कोई संबन्ध नहीं दिख रहा था। यहाँ तक कंपनी के प्रमोटर्स और बोर्ड के सदस्य भी अलग-अलग थे। इतनी मेहनत के बाद मै इसी नतीजे पर पहुँचा था कि अगर वलीउल्लाह एक आदमी है तो वह स्ट्रेटिजिक कमांड सेन्टर मे बैठा हुआ है। इतना तो अब तक मुझे समझ मे आ गया था कि वलीउल्लाह का निजि कंपनियों मे होना लगभग असंभव है। एन्काउन्टर मे पाये गये सात अंकों के अलग-अलग जगहों के ग्रिड रेफ्रेन्स सिर्फ कमांड सेन्टर मे ही मिल सकते थे।

मै अपना सिर पकड़ कर बैठा हुआ था कि जनरल रंधावा की आवाज गूंजी… मेजर, किस सोच मे डूबे हुए हो। चलो मेरे साथ अब कुछ काम भी कर लो। मै हड़बड़ा कर उठा और जनरल रंधावा के साथ चल दिया। …क्या सोच रहे थे मेजर? …सर, वलीउल्लाह को खोजने मे लगा हुआ था। अभी तक मै इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वलीउल्लाह कमांड सेन्टर मे कहीं पर बैठा हुआ है। मुझे वीके से इस मामले मे बात करनी पड़ेगी। …उसी से मिलने जा रहे है। अजीत भी वहीं बैठा हुआ है। हम दोनो वीके के कमरे मे दाखिल हो गये थे। वीके और अजीत सर बैठे हुए बात कर रहे थे। मै अभी तक पूरी तरह से गैर-फौजी नहीं बन सका था। पहले मुस्तैदी से सैल्युट किया और फिर चुपचाप जाकर एक किनारे मे जाकर बैठ गया। जनरल रंधावा ने कहा… वीके, मुंडा कुछ पूछना चाहता है। मैने चौंक कर जनरल रंधावा की ओर देखा तो वीके ने कहा… मेजर पूछ लो जो पूछना चाहते हो। मै एक पल के लिये बोलते हुए अटक गया था फिर अपने विचारों को इकठ्ठा करके मैने कहा… सर, आपकी दी हुई फाईल को देख कर मै इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि वलीउल्लाह अगर एक आदमी है तो वह कमांड सेन्टर मे बैठा हुआ है। यह बोल कर मैने सारी कार्यविधि उनके सामने खोल कर रख दी थी। तीनों मेरी खोज से सहमत थे परन्तु अजीत सर ने कहा… मेजर, मेरी सलाह है कि अभी से किसी निष्कर्ष पर मत पहुँचों क्योंकि हो सकता है कि वलीउल्लाह इसरो सेन्टर अथवा डीआरडीओ मे भी बैठा हो सकता है। …जी सर। यह भी मुम्किन है। वीके सर, बहुत दिनों से मै एक बात पूछना चाह रहा था। बी चन्द्रमोहन के बारे मे मैने आपको एक जानकारी दी थी लेकिन अभी भी वह रक्षा मंत्रालय मे बैठा हुआ है। इसी प्रकार निखिल वागले और बी सुब्रमन्यम को भी मैने कुछ ऐसे लोगों के साथ अकसर देखा है जो अजीत सर के अनुसार दलालों और पंचमक्कारों की श्रेणी मे आते है। बी चन्द्रमोहन को छोड़ दें तो बाकी दोनो तो राष्ट्रीय सुरक्षा स्ट्रेटिजिक कमेटी के सदस्य है। सब कुछ जानते बूझते भी हम उनका कुछ नहीं कर पा रहे है। ऐसा क्यों है?

वीके ने कुछ बोलने के लिये मुँह खोला ही था कि तभी अजीत सर ने कहा… मेजर, इस मसले पर बाद मे बात करेंगें। पहले जिस काम के लिये इकठ्ठा हुए है वह कर लेते है। तो वीके हमे शुजाल बेग का मनोबल तोड़ने के लिये एक कहानी गढ़नी पड़ेगी। इतना बोल कर अजीत सर ने अपनी योजना हम तीनो के सामने खोल कर रख दी थी। वीके और जनरल रंधावा ने एक दो सवाल किये और फिर कुछ सुझाव दिये जिसको अजीत सर ने अपनी योजना मे जोड़ने के बाद मेरी ओर देखते हुए कहा… मेजर, क्या यह काम तुम कर सकोगे? …सर, इसमे क्या मुश्किल है? …मेजर, तुम भूल रहे हो कि शुजाल बेग बेहद शातिर और अनुभवी फौजी है। आमने-सामने बैठ कर उसको धोखा देना इतना आसान नहीं होगा। वह तुम्हारे चेहरे पर बदलते हुए हर रंग को पढ़ने मे सक्षम है। अगर उसको जरा सा भी शक हो गया तो सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा। अजीत सर की चेतावनी सुन कर एक पल के लिये मुझे भी अपने उपर शक होने लगा था परन्तु इसी बीच जनरल रंधावा ने कहा… अजीत करके देखने मे क्या हर्ज है। अगर मेजर उसे यकीन दिलाने मे नाकामयाब हो भी गया तो फिर कोई नया पैंतरा सोचेंगें। अचानक पता नहीं मुझे क्या हुआ लेकिन मैने कहा… अजीत सर, क्या आप मुझे उससे अपनी तरह से डील करने दे सकते है? तीनो ने एक दूसरे को देखा और फिर अजीत सर ने कहा… समीर, वह घाघ इंसान है। अभी कुछ देर पहले तुमने कुछ आदमियों के नाम लिये थे। शुजाल बेग उन जैसे लोगो का नाश्ता करता है। इसलिये सावधान कर रहा हूँ। …सर, अगर मै अपनी कोशिश मे नाकामयाब हो गया तो भी आपकी योजनानुसार उसको मौलाना कादरी की जानकारी दे दूंगा। प्लीज सर, बस एक हफ्ता क्योंकि इसी बहाने मेरे अन्दर भी उसको कहानी सुनाने का आत्मविश्वास आ जाएगा। अजीत सर ने मुस्कुरा कर कहा… ठीक है। एक हफ्ता दे रहा हूँ। वीके आज की ड्रिंक्स तुम पर है। यह बोल कर दोनो जोर से हंस दिये थे।

जनरल रंधावा ने पूछा… भई मुझे भी बताओ कि क्या चक्कर है? वीके ने कहा… मैने अजीत से कहा था कि मेजर उसकी फोटोकापी बनता जा रहा है और बड़ी आसानी से शुजाल बेग को कहानी सुना देगा। लेकिन अजीत ने कहा कि मेजर मे अभी भी फौज की कुछ कमजोरियाँ विद्दमान है। वह एक दम झूठ नहीं बोल सकेगा और झूठ बोलने के लिये वह कुछ समय मांगेगा। तो मेजर अभी तक अजीत नहीं बन पाया है। जनरल रंधावा ने ठहाका मार कर कहा… इसका मतलब है कि अजीत मेजर को अच्छी तरह से जानता है। अजीत सर ने मुस्कुरा कर जवाब दिया… नहीं, इसका मतलब है कि तुम तीनो पर से वर्दी का असर अभी तक गया नहीं है। यही कारण है कि वीके सारे ऐसे धोखेधड़ी के काम मेरे सिर पर डाल देता है। मैने झेंप कर कहा… सर, वर्दी तो आपने भी पहनी है। …हाँ, बस यही फर्क है मेरी वर्दी गैर-फौजी थी। मै धूर्त नेताओं और दोगले सरकारी बाबुओं के बीच मे घिरा रहा था और तुम तीनो एक अनुशासित फौज का हिस्सा रहे हो। यही मेजर तुम्हारे पहले सवाल का जवाब भी है कि जिन सरकारी बाबुओं का तुमने जिक्र किया था वह सभी आचार-विचार से धूर्त और दोगले है। उन पर हमारी लगातार नजर है। जब तक नेताओं और बाबुओं का गठजोड़ बना हुआ है तो वह अपने पद का फायदा तब तक ले रहे है जब तक वह किसी राष्ट्रद्रोह का हिस्सा नहीं बनते है। एक बार उन्होंने वह लक्षमण रेखा पार की तो फिर वह वर्दी के निशाने पर होंगें और तब गठजोड़ भी उनके काम नहीं आयेगा। कुछ देर बात करने के बाद अजीत सर ने कहा… कल शुजाल बेग से मिलने चले जाना। …जी सर। …युनीफार्म मे जाना। …जी सर।

मै वापिस अपने कमरे मे आ गया था। अजीत सर ने सही कहा था कि यह जानकारी इसरो और डीआरडीओ से भी दी जा सकती है। मैने सारी फाइल बन्द की और शुजाल बेग के बारे मे सोचने बैठ गया था। उसके बारे मे मैने सारी इंटेल रिपोर्ट्स नेपाल जाने से पहले ही पढ़ ली थी। उसके बारे और कुछ जानने की मेरी इच्छा नहीं थी। तबस्सुम से बात करने के लिये मैने अपना फोन उठा कर उसका नम्बर लगाया… हैलो। …आपने कल फोन क्यों नहीं किया? …कल दिल्ली से बाहर गया था। देर रात तक लौटा इसलिये फोन नहीं कर पाया था। तुम अपनी सुनाओ। वहाँ पर सब ठीक है। …यहाँ सब ठीक है। इस जुमे की शाम को आ रहे है न? …हाँ, अगर किसी ने कोई गड़बड़ नहीं की तो शाम तक पहुँच जाऊँगा। कुछ देर काम के बारे मे चर्चा करने के बाद मैने फोन काट दिया था। उसकी आवाज सुन कर ही मेरा मन व्याकुल हो उठा था। पता नहीं आफशाँ के साथ कभी ऐसी व्याकुलता मैने महसूस नहीं की थी। आसिया और अदा से हफ्ते दो हफ्ते मे बात कर लेता था। मेजर हसनैन से भी अकसर बात हो जाती थी। काठमांडू की आने-जाने की टिकिट करवाने के बाद मै पीठ टिका कर बैठ गया था।  शाम हो गयी थी और आफिस बन्द होने का समय भी हो गया था। मै घर लौटने के लिये आफिस से निकल कर अपनी जीप की ओर जा रहा था कि तभी फोन की घंटी बजी। …हैलो। …मेजर, क्या कल मिल सकते हो? …हाँ, कल शाम को चार बजे काफी हाउस मे मिलते है। …ठीक है। बस इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था। मेरे जीप मे बैठते ही थापा घर की दिशा मे चल दिया था।

थापा मुझे दरवाजे के बाहर छोड़ कर जीप पार्किंग मे लगाने के लिये चला गया था। मैने अभी घंटी की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि मेनका दरवाजा खोल कर खड़ी हो गयी थी। मैने अन्दर प्रवेश करते हुए बोला… आज दिन भर क्या किया? …अब्बू चलो बाहर घूमने चलते है। …और अम्मी? …अम्मी भी आने वाली होंगी। आप चाय पियेंगें तब तक आ जाएँगी। वह भागती हुई किचन मे काम कर रहे नौकर से चाय बनाने की कह कर मेरे पास आकर बैठ गयी और फिर दिन भर की कहानी सुनाने मे व्यस्त हो गयी थी। चाय पीकर हम दोनो आफशाँ का इंतजार करने बैठ गये थे। मेनका के मुर्झाये हुए चेहरे को देख कर मैने आफशाँ को फोन लगाया तो उसने बताया कि उसे आने मे देर हो जाएगी। मैने फोन काट दिया और मेनका से कहा… अम्मी को आने मे देर हो जाएगी। चलो हम मैक्डोनल्ड चलते है। वह खुशी से उछलती हुई बाहर भागी और उसे पकड़ने के लिये मै उसके पीछे चल दिया। मैने जीप स्टार्ट करके पूछा… तुम्हें पता है कि मैक्डोनल्ड कहाँ है? बड़े आत्मविश्वास से बोली… मै बताती हूँ। वह रास्ता बता रही थी और मै उसके बताये हुए रास्ते पर चल दिया था। दो मोड़ काटते ही वह जोर से चिल्लायी… वह रहा। …तुम पहले भी आयी हो? …हाँ अम्मी के साथ बहुत बार आयी हूँ। मैने जीप को पार्किंग मे लगाया और मेनका को लेकर मैक्डोनल्ड मे चला गया था।

उसी ने अपना आर्डर दिया और मैने भी एक बिग मैक का आर्डर दे कर हम दोनो एक किनारे मे बैठ गये थे। उसकी आँखें सामने स्क्रीन पर टिकी रही थी जब तक उसका नम्बर नहीं आ गया। अपना नम्बर आते ही वह चिल्लायी… अब्बू अपना नम्बर आ गया है। ऐसा उत्साह और उतावलापन वहाँ पर आने वाला हर बच्चा दिखा रहा था और उसके साथ आये अभिभावक बेचारे झेंप कर जल्दी से काउन्टर का रुख कर लेते थे। मै दो ट्रे लेकर जैसे ही बैठा तभी आफशाँ ने फोन पर पूछा… समीर, सारा काम जल्दी समाप्त करके घर पहुँची और तुम दोनो मुझे छोड़ कर कहाँ चले गये? …यही मैक्डोनाल्ड पर बैठे हुए है। …ठीक है मै भी वहीं आ रही हूँ। उसने फोन काट दिया था। मेनका तो अपने बर्गर मे व्यस्त हो गयी थी। …तुम्हारी अम्मी भी यहीं आ रही है। उसने कोई जवाब नहीं दिया। मै अपना बर्गर खाने बैठ गया था। मेनका ने अचानक कहा… अम्मी आ गयी। मैने घूम कर देखा तो आफशाँ हमारी ओर आ रही थी। वह बैठते ही शिकायती स्वर मे बोली… मुझे घर पर छोड़ कर तुम बाप-बेटी यहाँ आ गये। जाओ मै तुम दोनो से बात नहीं करुँगी। मेनका बर्गर को छोड़ कर तुरन्त आफशाँ से लिपट कर बोली… हम तो आपका इंतजार कर रहे थे। अब्बू ने कहा कि आपको आने मे देर हो जाएगी तो हम यहाँ आ गये थे। पल भर मे ही दोनो की मस्ती शुरु हो गयी और मै आफशाँ के लिये आर्डर देने के लिये चला गया था। उसकी ट्रे लेकर जब तक लौटा तब तक आफशाँ ने मेरा बर्गर उठा कर खाना शुरु कर दिया था। हम दोनो उसकी कहानी सुनने के लिये बैठ गये थे। …समीर, जब इसके साथ होती हूँ तो मै अपने बचपन मे वापिस चली जाती हूँ। कुछ देर वहाँ गुजार कर हम तीनो जीप मे बैठे और एक लम्बा सा चक्कर लगा कर वापिस घर की ओर चल दिये थे।

मैने महसूस किया कि कल रात का साया आफशाँ के दिमाग से हट गया था। आज मैने उसे दिखाते हुए अपना फोन स्विच आफ करके जीप मे छोड़ते हुए कहा… आज कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा। वह झेंप गयी थी। मै अपने कपड़े बदलने के लिये चला गया था और आफशाँ मेनका को लेकर उसके कमरे मे चली गयी थी। मेनका को सुला कर आफशाँ ने झिझकते हुए बेडरुम मे प्रवेश किया तो मैने पूछा… क्या हुआ? वह दरवाजा बन्द करके मेरे करीब आते हुए बोली… मै कपड़े बदल कर आती हूँ। …वह पार्टी वाला गाउन पहन कर एक बार तो दिखा दो। वह हँस कर बोली… वह पार्टी मे पहनने के लिये किराये पर लायी थी और अगले दिन ही उसे लौटा दिया था। यहीं आकर मुझे पता चला था कि पार्टी के कपड़े किराये पर मिलते है। यह बोल कर जैसे ही वह कपड़े बदलने के लिये मुड़ी तभी उसकी कमर मे हाथ डाल कर अपने उपर खींचते हुए मैने कहा… जब यह उतरने ही है तो बदलने की क्या जरुरत। उसके मुख से एक दबी हुई चीख निकल गयी थी। उसका गुदाज बदन को मेरी उँगलियों का स्पर्श हुआ वह पिघलती चली गयी थी। उसके जिस्म के हर संवेदनशील से मै भली-भांति परिचित था। मेरे हाथों मे वह मोम की गुड़िया बन जाती थी। मै जैसे चाहता वह वैसे घड़ती चली जाती थी। उसके गाल और होंठों का रसपान मैने काफी देर तक किया था। एक-एक करके उसके कपड़े उसके जिस्म से जुदा हो गये थे। उसका नग्न जिस्म मेरे हाथों मे लगातार मचल रहा था। मै उसकी कामाग्नि धीरे-धीरे भड़काने मे जुट गया था। मेरे होंठ और मेरी उँगलियाँ उसके कोमल अंगों पर निरन्तर वार कर रहे थे।

अचानक आफशाँ ने मस्ती मे झूमते हुए भुजंग को अपनी मुठ्ठी मे जकड़ कर अपनी उँगलियों से उसके सिर को सहलाते हुए बोली… जरा इस जालिम को भी देख लूँ। इस से पहले वह कुछ और बोलती मेरे होंठ ने उसके दाएँ कान के पीछे से अपना कार्य शुरु करते हुए चेहरे के पास आ कर उसके होठों पर लगातार प्रहार करना आरंभ कर दिया था। थोड़ा रुक कर, मेरे होंठ गले से होते हु दो हसीन पहाड़ियों के बीचोंबीच बनी खाई पर पहुँच कर रुक गये थे। अंजली का मंगलसूत्र उसके सीने पर पड़ा हुआ था। अब मेरे निशाने पर उत्तेजना से सिर उठाये स्तनाग्र थे। मेरे होंठों के स्पर्श से उसके उरोज मे कंपन हो रहा था। अपने मुख में एक मचलती हुई पहाड़ी को भर कर अपनी जुबान के अग्र भाग से खड़े हुए स्तनाग्र को छेड़ना शुरु किया और दूसरी पहाड़ी को अपने हाथ में ले कर कभी सहलाता और कभी मसल देता था। मेरे स्पर्श से उसे कभी गुदगुदी का एहसास होता और कभी उसके नाजुक शरीर में सिहरन हो जाती थी। इन सब हरकतों से धीमी आँच में जलते हुउसके जिस्म मे कामाग्नि भड़क गयी थी। उसके जिस्म के संवेदनशील अंगो को अपने होंठों से छेड़ते हुए नीचे की ओर बढ़ने लगा। उसकी नाभि और कमर पर अपनी होंठों के निशान छोड़ मै एक कदम नीचे सरक गया तो उसने तुरन्त अपनी केले सी मासँल जाघों को खोल कर अपने चिकने बालरहित स्त्रीत्व को मेरे सामने कर दिया था।

मैने अबकी बार सीधे उसके स्त्रीत्व के द्वार पर हमला नहीं किया अपितु उसकी गुदाज जांघों पर होंठों से वार किया तो उसने मचल कर अलग होने का असफल प्रयास किया परन्तु उसकी माँसल जाँघों के कोमल हिस्सों पर अपने निशान छोड़ने आरंभ कर दिये थे। जब उसके मचलते हुए जिस्म ने इशारा किया तो मै उपर की ओर बढ़ गया। मैने उसके चिकने स्त्रीत्व द्वार अपनी जुबान से दस्तक दी उसके द्वार स्वयं ही धीरे से खुल गये और सिर उठाये अंकुर के दर्शन हो गये थे। मैने झुक कर अपनी जुबान से उसके सिर पर पहला वार किया और फिर जुबान से उसको नहला दिया। आफशाँ के मुख से उत्तेजना से परिपूर्ण एक गहरी सित्कार निकली और वह पूरी शक्ति लगा कर छूटने के लिये मचल उठी थी। मेरी जुबान उसके अकड़े अंकुर को निरन्तर छेड़ रही थी और मेरी उँगली उसकी गुफा की गहरायी नाप रही थी। उसके नितंबो को अपने पंजों मे जकड़े हुए मै लगातार उसके स्त्रीत्व पर निरन्तर वार कर रहा था और उसके मुख से घुटी हुई आहें और चीखें लगातार निकल रही थी। वह बार-बार उठने की कोशिश कर रही थी लेकिन मेरे आगे वह कुछ भी कर पाने असफल रही थी। अचानक उसकी टाँगे मेरी गरदन के इर्द गिर्द कस गयी और एकाएक वह हवा मे उठ गयी। उसका जिस्म थरथराया और एक झटका लेकर निढाल हो कर बिस्तर पर ढेर हो गया। मै उसको छोड़ कर उसके साथ लेट गया था।

वह अपनी तेज चलती हुई साँसों को काबू करने का प्रयास करने लगी तो मै अपनी कोहनी के बल उठ कर उसको देखने लगा तो वह तुरन्त शर्मा कर करवट लेकर पीठ करके लेट गयी थी। मै उसके जिस्म से सट गया तो उत्तेजना से फुँफकारता हुआ भुजंग उसके नितंबों की दरार मे सिर रगड़ने लगा। उसके स्पर्श का एहसास होते ही वह जल्दी से पलटी उसने मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपा लिया था। उसके नग्न जिस्म को धीरे-धीरे सहलाते हुए एक बार फिर से उसके जिस्म पर अपने होंठों से वार करना आरंभ कर दिया था। अबकी बार आफशाँ उन्मुक्त होकर मेरे हर वार का जवाब देने लगी थी। एक बार फिर से कामाग्नि भड़कते ही वह प्रणयमिलन के लिये उग्र हो उठी थी। अपनी कोमल उँगलियों मे उत्तेजना मे झूमते हुए भुजंग को उसकी गरदन से पकड़ अपने स्त्रीद्वार के सम्मुख स्थिर किया और फिर द्वार के मुख पर रगड़ कर अपने कामरस से भिगो कर टिका दिया। मैने अपनी कमर पर दबाव डालते हुए धीरे से उसे अंदर सरका दिया। एक गहरी कामोत्तेजना की सीत्कार उसके मुख से निकल गयी थी। मेरा एक हाथ गोरी गुदाज पहाड़ियों को रौंदने में व्यस्त हो गया और मेरा मुख पहाड़ियों की गुलाबी बुर्जियों को लाल करने मे लग गया था। मै स्थिर होकर उसकी आँखों मे झाँका तो उसने आगे बढ़ने का इशारा किया। मैने धीरे से अपने भुजंग को पीछे खींच कर पूरी शक्ति से अपनी कमर को झटका दिया तो मस्ती मे झूमता हुआ भुजंग सारे संकरेपन को खोलते हुए अंदर सरकता हुआ जड़ तक जाकर धंस गया था।

आफशाँ मुख से एक घुटी हुई उत्तेजना से भरी चीख निकल गयी थी। उसके चेहरे पर बदलते हुए भाव और सिसकारियाँ उसके जिस्म मे होते एकाकार के मीठे दर्द का एहसास करा रही थी। उसने अपनी टाँगें मेरी कमर के इर्दगिर्द लपेट कर अपनी कमर को हिला कर भुजंग की लम्बाई नापने की कोशिश मे जुट गयी थी। वह कुछ देर प्रयास करती रही फिर निढाल होकर लेट गयी। मैने उसके नितंबों को अपने पंजों मे जकड़ कर फिर से एक करारा प्रहार किया। इस बार उसके मुख से संतुष्टिभरी सिसकारी निकल गयी थी। मेरे हाथ एक बार फिर से गोरी पहाड़ियों के मर्दन में व्यस्त हो गये और वहीं मेरा मुख गुलाबी बुर्जियों को लगातार लाल कर रहा था। उसके जिस्म मे होने वाले हर स्पंदन को मै महसूस कर रहा था। उसकी सिसकारियाँ और मेरी गहरी साँसों ने कमरे का वातावरण बहुत उत्तेजक बना दिया था। अचानक तूफान ने धीरे-धीरे वेग पकड़ना आरंभ किया और हम उसमे बहते चले गये थे। एक पल ऐसा आया कि उसका जिस्म ऐंठने लगा और धनुषाकार बना कर हवा मे उठ गया। उसकी बायीं बुर्जी का रस सोखता हु मैने त्तेजनावश उसको अपने दाँतों तले चबा दिया। उसी क्षण वह सिहर उठी और फिर झटके लेते हुए बिस्तर पर लस्त होकर पड़ गयी। उसी क्षण मेरे अन्दर भी ज्वालामुखी ने लावा उगलना आरंभ कर दिया। हम दोनों एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ कर निढाल हो कर बिस्तर पर पड़ गये थे। हम दोनो अपनी साँसे सयंत करने मे लग गये थे।

…समीर। …हुँ। …इस रात के लिये मुझे कितना इंतजार करना पड़ता है। तुम यह फौज की नौकरी क्यों नहीं छोड़ देते। …तुमसे बेहतर कौन समझ सकता है। यह अम्मी की इच्छा थी और इसीलिये मै यह नहीं कर सकता। मैने बहुत बार महसूस किया था कि जब भी अम्मी मुझे वर्दी मे देखती थी तो उनकी आँखों मे एक चमक आ जाती थी। अब तो मेरा तबादला यहीं हो गया है तो वह साल भर की बात तो खत्म हो गयी है। महीने भर के लिये कभी जाना पड़ता है तो वह तुम्हारे लिये ही आराम है। हम कुछ देर युंहि बात करते रहे और फिर अपने सपनो की दुनिया मे खो गये थे।

हमेशा की तरह मै सुबह जल्दी जाग गया था। अपनी चाय बनाई और कुछ देर लान मे टहल कर तैयार होने के लिये चला गया था। जब तक मै बाहर निकला तब तक आफशाँ उठ गयी थी। वह तैयार होने चली गयी थी। अपना नाश्ता बनाते हुए मैने थापा को बुला कर कह दिया था कि आज उसे अपनी युनीफार्म मे चलना होगा। आफशाँ तैयार हो कर बाहर आयी तब तक मै अपना नाश्ता करने बैठ गया था। …समीर, आज आफिस मे सब को पता चल जाएगा कि तुम वापिस आ गये हो। …क्यों। उसने अपने गले पर पड़े हुए निशान को दिखाते हुए कहा… यह काफी है उनको बताने के लिये कि तुम वापिस आ गये हो। …आज किसी तरह काम चला लेना। रात को वहाँ के बजाय तुम्हारे सीने पर अपनी उपस्थिति की मौहर लगा दिया करुँगा। …हिश्। तभी नौकर अन्दर आते हुए बोला… मेमसाहब, नाश्ते मे क्या बनाना है? …रघु, तुम आधा घंटा पहले आ जाया करो क्योंकि साहब तैयार होते ही नाश्ता मांगते है। तुम नहीं होते तो वह खुद बनाते है। …जी मेमसाहब, मै आठ बजे आ जाया करुँगा। मै नाश्ता करके अपनी स्पेशल फोर्सेज की युनीफार्म पहनने के लिये चला गया था।

युनीफार्म पहन कर अपनी रेड बेरेट को सिर पर ठीक से लगाते हुए बाहर निकला तो मुझे युनीफार्म मे देख कर आफशाँ ने कहा… मेनका तुम्हें युनीफार्म मे देखना चाहती है। मै उसे लेकर आती हूँ। यह बोल कर वह झटपट मेनका को उठाने चली गयी थी। मैने डिनर टेबल के पीछे लगे हुए आईने मे देखते हुए अपनी बेरेट को ठीक से सेट किया कि तभी पीछे से मेनका की किलकारी की आवज सुन कर मुड़ कर उसकी ओर देखा तो हैरानी से मेरी ओर देख रही थी। …क्या हुआ? …अब्बू आपको पहली बार ऐसे देखा है। मैने उसको गोदी मे उठा कर कहा… बेटा, जब अस्पताल से छोटी सी मेनका को लेकर घर जा रहा था तब भी मै युनीफार्म था। इसमे ऐसी क्या बात है। वह शर्मा कर मुझसे लिपट गयी थी। उसकी आँखों मे मुझे वैसी ही चमक दिखी थी जैसी अपनी अम्मी की आँखों देखी थी। अपने सीने और कन्धों पर लगे हुए निशानो को समझाते हुए कहा… अब बाहर से थापा अंकल को बुला लाओ। वह मेरी गोद से उतर कर थापा को बुलाने चली गयी थी। वह मुस्कुराती हुई थापा के साथ अंदर आकर बोली… थापा अंकल भी आर्मी मे है। थापा ने आते ही मुस्तैदी के साथ सैल्युट किया जिसका जवाब मैने देते हुए पूछा… जवान चलने के लिये रेडी है। …जी जनाब। वह अपने फौजी अंदाज मे मुड़ा और बाहर निकल गया था। मेनका के लिये एक नयी चीज मिल गयी थी। उसने भी थापा की तरह उचक कर सैल्युट किया और उसी लहजे मे बोली… जवान चलने के लिये रेडी है। मैने जल्दी से कहा… जी जनाब। आफशाँ जोर से हँसते हुए बोली… आज के बाद तुम्हारी जवान अब इसी भाषा मे बात करना शुरु कर देगी। मै भी हँसते हुए उनसे विदा लेकर बाहर निकल गया और थोड़ी देर मे हम मानेसर की ओर जा रहे थे।

ट्रेफिक के कारण हमे एनएसजी परिसर मे पहुँचने मे ज्यादा समय लग गया था। हाई सिक्युरिटी सेल मे जाने के लिये मुझे कमान्डेन्ट की बात अजीत सर से करानी पड़ी थी। शुजाल बेग से मिलने की औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद ही मुझे उससे मिलने की इजाजत मिली थी। मेरी ग्लाक-17 को सिक्युरिटी ने बाहर ही जमा करवा दिया था। दो सेना पुलिस के जवान मुझे लेकर शुजाल बेग के सेल की ओर चले गये थे। उन्होंने सेल का लोहे के गेट का ताला खोल कर मुझे अन्दर प्रवेश करने दिया और फिर वह दोनो गेट पर तैनात हो गये थे। शुजाल बेग अपने बेड पर लेटा हुआ था। मुझे अन्दर आता हुआ देख कर एक पल के लिये सहम गया था।

उसके बेड के किनारे पर बैठते हुए मैने जल्दी से कहा… ब्रिगेडियर साहब, घबराने की कोई जरुरत नहीं है। अभी तक अजीत सर ने वह सीडी नेपाल सरकार को नहीं दी है। मै सिर्फ आपसे कुछ बात करने के लिये आया हूँ। एक बार फिर से वह शून्य मे देखने लगा था। …ब्रिगेडियर साहब, उन दो जानकारियों के लिये क्या आपकी ओर से कोई मांग है? पहली बार उसने मुझे घूर कर देखा और फिर बोला… मेजर तुम्हारी मौत। …सर, आप और हम फौजी है। जान तो हर फौजी अपनी हथेली पर लेकर चलता है। बस वह एक चीज से हमेशा डरता है कि कोई उसके उपर बेवजह तोहमत न लगा दे। अबकी बार उसने मुझे घूर कर नहीं देखा था। …आप अगर ठंडे दिमाग से सोच कर देखिये कि आपसे कौनसी दो जानकारियाँ मांगी है। क्या वह जानकारी देकर आप देशद्रोही बन जाएँगें? पहली जानकारी हमारे बीच मे कौन गद्दार है और दूसरी जानकारी जिहादी काउंसिल की क्या योजना है। यह आपको कैसे गद्दार बनाती है क्या वह मुझे एक वरिष्ठ फौजी अफसर के तौर पर समझा सकते है।

वह कुछ देर मेरी ओर देखता रहा और फिर पहली बार मुस्कुरा कर बोला… मेजर,  मेरा मुँह खुलवाने के लिये अजीत को कोई नया हथकंडा सूझा है। …नहीं सर। मैने अजीत सर से आपसे मिलने के लिये इजाजत खुद मांगी थी। इसके कारण सीडी की कहानी एक हफ्ते के लिये मुल्तवी कर दी गयी है। मेरा भी परिवार है और मेरी भी बेटी है। मै हर्गिज नहीं चाहूँगा कि किसी फौजी के परिवार पर ऐसी आपदा आये। इसीलिये मै आपसे समझने के लिये आया था। आपके पास हजार ऐसे सोर्स होंगें जो यहाँ बैठ कर आपको हमारी खुफिया जानकारी दे रहे है। वलीउल्लाह के अंत से आपके सारे सोर्स समाप्त नहीं हो जाएँगें। इसी प्रकार जिहाद काउन्सिल भी ऐसा नहीं है कि इसके बाद फिदायीन हमले करना बन्द कर देगी। यह सिलसिला तो चलता रहेगा लेकिन सिर्फ यह दो जानकारी पर पर्दा डाल कर आप अपने पूरे परिवार को तबाह कर देंगें। इसका औचित्य मुझे समझ मे नहीं आ रहा है। फौज मे हमेशा हमे निर्णय लेने की क्षमता के बारे मे यही समझाया गया है कि कोई भी निर्णय को कोलेटरल के हिसाब से माप लेना चाहिये। इस मामले मे जब मै अपनी ओर से मापता हूँ तो आपके निर्णय मे कोलेटरल का नुकसान कहीं ज्यादा है। गद्दारों की सीमा के दोनो ओर कोई कमी नहीं है। एक जाएगा उसकी जगह सौ खड़े हो जाएँगें। फिदायीन हमले का भी ऐसा ही हाल है कि एक असफल हो गया तो सौ की और कोशिश होगी। भले ही कोलेटरल नुकसान यहाँ माल का नहीं है अपितु सत्तर जान का है वह भी आपके अपने परिवार की जान का है। ब्रिगेडियर साहब बस यही चीज आपसे समझने के लिये मै आया हूँ। अब वह मुझे ध्यान से देखने लगा था। जो नफरत उसकी आँखों मे प्रवेश करते हुए मैने देखी थी अब वह नहीं दिख रही थी।

…मेजर, कितने साल की सर्विस है तुम्हारी? …बारह साल हो गये है। …स्पेशल आप्रेशन्स ग्रुप से हो? …जी सर। …तुम्हारा लाजिक तो कुछ हद तक सही है लेकिन कुछ बात लाजिक से उपर होती है। …जैसे सर। …जैसे देश की संप्रभुता और देश का फायदा। मैने मुस्कुरा कर कहा… सर, मै अभी भी नहीं समझ पाया हमारे यहाँ के गद्दार से आपके देश की संप्रभुता पर कैसे हमला है अन्यथा उस गद्दार के कारण हमे जरुर कुछ नुकसान होगा लेकिन आपके लिये क्या फायदा है? अगर हमे नुकसान पहुँचा कर आपको फायदा मिलता है तो फिर तो कोई बात नहीं। ब्रिगेडियर साहब सच पूछिये तो हमारे यहाँ बड़े लोग एक सीख देते है कि जो भी कोई किसी के लिये गड्डा खोदता है सबसे पहले वही उसमे गिरता है। हमे नुकसान पहुँचा कर आप अपना भी नुकसान कर रहे है। चलिये मान लेता हूँ कि आप इसमे कामयाब हो भी गये तो आपको या पाकिस्तान को इसमे क्या फायदा होगा? फायदा भले हो न हो लेकिन एक बात तो तय है कि इसका आपको बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। आप आराम से सोचिये सर। आपके अनुभव के आगे तो मेरी कोई हैसियत नहीं है। इसीलिये तो आपके पास कुछ सीखने के लिये आया हूँ। मै कल फिर आ जाउँगा। अच्छा खुदा हाफिज। मै उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था। मेरे निकलते ही शुजाल बेग को उसके सेल मे बन्द कर दिया गया था। मैने सिक्युरिटी से अपनी ग्लाक-17 लेकर उसकी मैगजीन चेक करके कमान्डेन्ट से मिलने चला गया था।

मुझे उस हाई सिक्युरिटी के कमान्डेन्ट से यहाँ के प्रवेश के बारे कुछ पूछना था। एक हफ्ते मे मेरे अभी कई चक्कर लगने थे। शुजाल बेग से मिलने के लिये कोई स्थायी सुविधा के लिये मुझे क्या करना होगा? इसी सवाल का जवाब जानने के लिये मै उससे मिलने चला गया था। उसने कहा… मेजर, एनएसए ने आपके लिये आर्डर कर दिये है। सिर्फ आप ही कैदी से मिल सकते है। बस ख्याल रहे कि कोई भी प्रतिबन्धित वस्तु लेकर आप वहाँ नहीं जा सकते है। इतनी बात करके मै अपनी जीप मे बैठा और अपने आफिस की ओर चल दिया था। अपने आफिस मे पहुँचते ही अजीत सर ने बुला लिया था। …मेजर, आज शुजाल बेग से पहली मुलाकात कैसी रही? मैने अपनी बातचीत का पूरा ब्यौरा देने के बाद कहा… सर, क्या हम उसको अपनी ओर से कोई पेशकश रख सकते है? …मेजर, उसके लिये पैसों का प्रलोभन कोई मायने नहीं रखता है। उसकी सिर्फ एक ही मांग होगी कि उसे छोड़ दिया जाये जो कि नामुम्किन है। …क्यो सर? अजीत सर ने चौंक कर मेरी ओर देख कर कहा… तुम सिरियस तो हो। …जी सर, बहुत सोचने के बाद मै इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उसको यहाँ रख कर हम उसका ज्यादा से ज्यादा क्या उपयोग कर लेंगें। एक बोझ की तरह वह बस यहाँ पड़ा रहेगा। फिलहाल उसे इस बात का यकीन हो गया है कि अब उसकी बाकी जिन्दगी उस सेल मे गुजरेगी तो वह क्यों हमारी सहायता करेगा। हाँ अगर इस जानकारी के बदले उसे यहाँ से निकलने का मौका दिया जाए तो वह जरुर हमारी सहायता करने के लिये तैयार हो जाएगा।

अजीत सर ने झल्ला कर कहा… मेजर, तुम बड़ी बचकानी बात कर रहे हो। …सर, आप ही बताईये कि उसे हम सेल मे बिठा कर क्या कर लेंगें? …मेजर, कुछ नहीं तो कम से कम हमारा काठमांडू का फ्रंट तो सुरक्षित है। …सर, आप ठीक कह रहे है। लेकिन अगर हम उसे फारुख के हवाले कर देंगें तो यकीनन दोनो मे से एक की मौत होना तो निश्चित है। शुजाल बेग मारा गया तो फारुख की पहुँच मंसूर बाजवा तक हो जाएगी और कहीं शुजाल बेग बच कर पाकिस्तान पहुँच गया तो उसकी नब्ज आगे भी हमारे हाथ मे ही रहेगी। इतनी देर मे पहली बार अजीत सर ने मेरी बात पर संजीदगी से सोचना आरंभ कर दिया था। कुछ देर सोचने के बाद अजीत सर ने कहा… इसमे कोई शक नहीं कि वह यहाँ पर हमारे लिये एक बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं है। अगर वह वापिस पाकिस्तान पहुँच जाता है तो फिर एक आईएसआई के ब्रिगेडियर तक हमारी पहुँच हो जाएगी। मेजर, एक बार वीके और रंधावा से भी इस मामले मे बात कर लेनी चाहिये। उसी के अनुसार फिर हम उसका ग्राउन्ड तैयार करेंगें।

…अजीत सर, आज शाम को चार बजे मै काफी हाउस मे फारुख से मिल रहा हूँ। वह शुजाल बेग की लोकेशन जानने के लिये मिल रहा है। क्या करना है? …जरुर मिलो लेकिन उससे कुछ समय मांग लेना। …सर, मै चाहता हूँ कि आज की मीटिंग के बाद उस पर चौबीस घंटे की निगरानी लगा दी जाये जिससे कि यह पता चल जाये कि वह यहाँ किन लोगों से संपर्क कर रहा है। वह अपनी फिदायीन फौज तो कश्मीर से साथ लेकर नहीं आया होगा परन्तु वह जरुर यहाँ पर ही किसी से मिल कर शुजाल बेग तक पहुँचने का इंतजाम करेगा। अजीत सर ने फोन उठाया और जनरल रंधावा को तुरन्त मिलने के लिये कह कर मुझसे बोले… तुम्हारा मिलने का टाइम तो होने वाला है। तुम चलो मै रंधावा से मिल कर कुछ करता हूँ। बस कोशिश करके पाँच बजे तक उसे रोक कर रखना। मेजर युनीफार्म मे उससे मिलने मत जाना। …यस सर। इतना बोल कर मै जल्दी से बाहर निकला और लगभग भागते हुए अपनी जीप के पास पहुँच गया था।

 

भारत-नेपाल सीमा

भारत-नेपाल सीमा पर एक वीरान इलाके मे प्रदेश की पुलिस, सीमा सुरक्षा बल और एनआईए के एजेन्ट्स खेत मे पड़ी हुई लाशों का मुआईना करते हुए बातचीत कर रहे थे। …एसपी साहब ने इन सभी लाशों को पोस्टमार्टम के लिये भेजने के निर्देश दिये है। …फिलहाल यह आप्रेशन एनआईए का है। सीमा सुरक्षा बल और एनआईए के जोइन्ट आप्रेशन मे यह सभी मुठभेड़ मे मारे गये है। पहले सारी कागजी कार्यवाही हमे पूरी करनी है उसके बाद हम यह लाशें स्थानीय पुलिस क हवाले करेंगें। आपको यहाँ सिर्फ शिनाख्त करने के लिये बुलाया गया है। क्या आप इनमे से किसी को पहचानते है? एसआई और हेड कान्स्टेबल टार्च की रोशनी मे मरने वालों का चेहरा देख कर लगातार आतंकित हो रहे थे। सबके चेहरे देखने के बाद एसआई तेज प्रताप बोला… जनाब इन लोगों को आप ही ठिकाने लगा देंगें तो बेहतर होगा। एनआईए के उप-निदेशक ने उसको घूर कर देखा तो वह जल्दी बोला… सर, यह खबर का पता चलते ही प्रदेश मे आग लग जाएगी। दंगा भड़क जाएगा। …क्यों क्या इनके हथियार आपको नहीं दिख रहे है। यह सब पाकिस्तान से आये हुए जिहादी है। सारे जब्त किये गये हथियार इस बात का प्रमाण है। अबकी बार एसआई डरते हुए बोला… जनाब, एक तो इनमे से माफिया डान मुश्ताक अंसारी है। बाकी उसका एक भाई और उसके गैंग के शार्प शूटर्स है। पूरा पूर्वी हिस्सा दंगे की चपेट मे आ जाएगा। उप निदेशक अवस्थी ने सीमा सुरक्षा बल के डिप्टी कमान्डेन्ट की ओर देख कर एसआई तेज प्रताप से पूछा… क्या सभी अंसारी गैंग के आदमी है? …उन दो को छोड़ कर बाकी सभी अंसारी गैंग के लोग है। कुछ देर चर्चा करने के बाद तीनो फोन पर अपने-अपने अधिकारियों को मरने वालों की जानकारी देकर आगे की कार्यवाही के बारे मे बात करने मे व्यस्त हो गये थे।

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस बार की अंक ज्यादातर फारूक और बेग के लिए तिकड़म भिड़ाने में लगा और लगता है की कुछ बहुत बड़ा चीज पीठ पीछे हो रहा है जिसका वर्णन आखिरी भाग में गैंग वार से हुई मौत को देख कर हुए लगता है, तबस्सुम/अंजली के बारे में अफसा को समीर कब बताएगा यह देखना दिलचस्प होगा।

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    1. अल्फा भाई धन्यवाद। यह सच्चाई है कि कोई आपकी उन्नति और संपन्नता से खुश नहीं होता। दोस्त पीठ पीछे से वार करता है और दुश्मन सामने और पीछे से वार करता है। आप शायद भूल गये है कि अंसार रजा की दी हुई सारी जानकारी पर एनआईए एक्शन मोड आ गयी थी। जिस मौके को आप दिलचस्प कह रहे है वह बेहद विस्फोटक स्थिति भी हो सकती है।

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  2. क्या ये गॅंगवार हो सकता है? मुझे नही लगता, ये एनआयए का ऑपरेशन लगता है, क्या रजा ने इसकी सूचना दी होगी? हो भी सकता है, फोर्सेस के हाथसे उसका कट्टर दुश्मन जो सफा हो गया. कुछ कह नही सकते, चांदनीकी बहन का एक इंतकाम तो पुरा हुवा. आगे पता चलेगा क्या हुवा था.

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  3. प्रशांत भाई आपने ठीक समझा। काठमांडू आप्रेशन आरंभ होने से पहले शाईस्ता के कारण दारुल उलुम देवबंद और दारुल उलुम बरेलवी के गठजोड़ की साजिश खुल कर सामने आ गयी थी। अंसार रजा से प्राप्त की हुई जानकारी के कारण एनआईए एक्शन मोड मे आ गयी है। धन्यवाद भाई।

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