गहरी चाल-22
जीएचक्यू, रावलपिंडीं
रात गहरी होती जा
रही थी। पाकिस्तान फौज का हेडक्वार्टर्स मे चारों ओर अफरातफरी मची हुई थी। सभी जगह
यह चर्चा चल रही थी कि काठमांडू से ब्रिगेडियर शुजाल बेग का अपहरण हो गया है। जनरल शरीफ
के कमरे मे जनरल मसूंर बाजवा काठमांडू के हालात की रिपोर्ट दे रहा था। जनरल शरीफ दहाड़ा…
यह कैसे मुम्किन हो सकता है? दिल्ली से मुझे
खबर मिली है कि शुजाल बेग इस वक्त रा के हेडक्वार्टर्स मे बैठ कर सारी कहानी सुना रहा
है। उसे कनाडा मे बसाने का लालच दिया गया था तो वह रातों रात नेपाल की सीमा पार करके दुश्मन के साथ मिल गया है। यह आईएसआई की सबसे बड़ी
असफलता है। जनरल मंसूर कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था।
जनरल शरीफ ने पूछा…
वह वलीउल्लाह के बारे मे कितना जानता है? …जनाब, उसे बस इतना पता है कि वलीउल्लाह एक
स्त्री है जो सेना के लिये काम कर रही है। इससे ज्यादा वह उसके बारे मे कुछ नहीं जानता।
…और जिहाद काउंसिल के हमले के बारे क्या जानता है? …साहब, वही तो काठमांडू से आप्रेशन खंजर का संचालन कर रहा था। …तो क्या अब हमे
आप्रेशन खंजर को रद्द करना पड़ेगा? …नही जनाब, उसके पास जो तारीख है वह एक महीने के
बाद की है। हमारा मुख्य टार्गेट वही रहेगा लेकिन टार्गेट 1 & 2 बदल कर उसे झूठा
साबित करना पड़ेगा। मुख्य टार्गेट के बारे मे उसे बस इतना पता है कि अरब सागर के भारतीय
तेल के कुछ स्त्रोत हमारे निशाने पर है परन्तु वह कौनसे होंगें उसके ग्रिड रेफ्रेन्स
अभी तक हमने उसे नहीं दिये थे। मेरा सुझाव है कि अगर हम आप्रेशन खंजर का समय तीन महीने
बाद कर लेंगें तो तंजीमों को प्रशिक्षण का समय भी मिल जाएगा और भारतीय सुरक्षा एजेन्सियाँ
भी थोड़ी लचर हो जाएँगी। कुछ सोचने के बाद जनरल शरीफ ने कहा… शुजाल बेग का क्या करना
है। …सर, मेजर फारुख मीरवायज इस वक्त श्रीनगर मे है। मैने उसे सब काम छोड़ कर शुजाल
बेग को ढूंढने के काम पर लगा दिया है। उसका पता लगते ही फिदायीन हमले मे वह उसका काम
तमाम करवा देगा। जनरल शरीफ गहरी सोच मे डूब गया था।
कुछ देर सोचने के
बाद जनरल शरीफ ने कहा… तुम फौरन जिहाद काउंसिल की इमर्जेन्सी मीटिंग बुला कर बदले हुए
हालात के बारे मे जानकारी देकर आप्रेशन खंजर की तारीख बदलने के लिये कह दो। जनरल मंसूर
यह आप्रेशन खंजर हम दोनो के लिये महत्वपूर्ण
है। मेरी एक्स्टेन्शन और तुम्हारी प्रोमोशन इसी बात पर टिकी हुई है। अब इस आप्रेशन
का तुम स्वयं ही संचालन करोगे। इसी बीच मे मुझे जल्दी से जल्दी शुजाल बेग की मौत की
खबर मिलनी चाहिये। …जी जनाब। जनरल मंसूर ने अपने चेहरे पर आये हुए पसीने को जल्दी से
पौँछ कर कहा… जनाब इजाजत दिजिये। इतना बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गया था।
मै बिस्तर पर पड़ा
हुआ फारुख की बात समझने की कोशिश कर रहा था। उसकी आवाज सुनते ही मेरा दिमाग जैसे सुन्न
हो गया था। मुझे यह समझ मे नहीं आया कि उसने मुझसे इस बार तबस्सुम के बारे मे कोई बात
नहीं की थी। जब दिल मे चोर होता है तो दिमाग भी उस ओर ही चला जाता है। क्या उसे तबस्सुम
का पता चल गया है? मेरी नजर सोती हुई तबस्सुम पर पड़ी तो मैने धीरे से उसका गाल को सहला
दिया था। अचानक उसने अपनी आँखें खोली और पल्कें झपका कर मेरी ओर देख कर बोली… आप सोये
नहीं? …मुझे नींद नहीं आ रही है। तुम सो जाओ। वह मुस्कुरा कर बोली… अब्बा बनने मे डर
लग रहा है? मैने हंसते हुए कहा… तुम भूल रही हो कि मेरी दस साल की बेटी है और मेरी
एक बीवी है जिसका नाम आफशाँ है। …तो फिर आपको नींद क्यों नहीं आ रही है? …पता नहीं।
…वह फोन किसका आया था? एकाएक वह उठ कर बैठ गयी और मेरी ओर देख कर बोली… क्या अब्बू
का फोन आया था? वह मेरे चेहरे के बदलते हुए रंग को पढ़ने लगी थी। मै सावधान हो गया और
जल्दी से कहा… तुम्हारे अब्बू तुम्हारे दिमाग मे घूमते रहते है। नूर मोहम्मद का फोन
था उसकी पाकिस्तान की वापिसी रद्द हो गयी है। वह मुस्कुरा कर बोली …पता नहीं मुझे ऐसा
क्यों लगा कि अब्बू के फोन के कारण आपकी नींद उड़ गयी है। उसके गाल पर आये हुए गड्डे
को धीरे से चूम कर मैने कहा… अगर तुम्हारे अब्बू ने मुझे डराने की कोशिश की तो एक दिन
मेरे हाथ से जाया हो जाएँगें। वह कुछ नहीं बोली बस कुछ देर मुझे देखती रही थी। फिर
एक तेज नींद का झोंका आया और हम अपनी सपनों की दुनिया मे खो गये थे।
अगले दो दिन मेरे
सारे काम निपटाने मे निकल गये थे। बिस्ट के बचे हुए पचास हजार उसे दे दिये थे। उसे
बता दिया था कि अबसे उस फोन को टैप करने की जरुरत नहीं है। इसी बीच अजीत सर ने वह पैसे
भी ट्रांस्फर करा दिये थे। कंपनी का काम बढ़ता चला जा रहा था। अब आफिस मे जगह कम पड़ने
लगी थी। अब आठ के बजाय चौदह लोग काम कर रहे थे। मेरी युनिट को भी जोड़ लिया जाये तो
चालीस लोगों का स्टाफ हो गया था। सबकी तनख्वाह और खर्चे निकालने के बाद भी एक हिस्सा
तबस्सुम के अकाउन्ट मे लगातार जमा हो रहा था। आरफा को भी तबस्सुम की हालत का पता चल
चुका था। उसने भी तबस्सुम के साथ नीचे आफिस मे बैठना शुरु कर दिया था। मै रोज सोचता
कि उसे आज बता दूँगा परन्तु उसके चेहरे पर आयी हुई चमक और खुशी को देख कर अपनी बात
कल पर टाल देता था। इसी पेशोपश मे तीन दिन और निकल गये थे।
एक रात मैने उसे कहा…
मुझे जल्दी ही वापिस जाना पड़ेगा। उसका चेहरा उतर गया था। दिल्ली यहाँ से दो घंटे की
दूरी पर है। शुक्रवार की शाम की फ्लाईट पकड़ कर यहाँ आ जाऊँगा और सोमवार की सुबह की
फ्लाईट पकड़ कर वापिस चला जाऊँगा। उसने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया लेकिन अगले दिन
से उसके चेहरे की खुशी गायब हो गयी थी। मैने उसे बहुत समझाया और खुश करने की कोशिश
करता परन्तु वह मुर्झाती चली जा रही थी। उसकी शक्ल मे मुझे अपनी अंजली की छवि दिखाई
देने लगी थी। जिस दिन अंजली को पता चला था कि मुझे दो महीने के बाद राष्ट्रीय रक्षा
अकादमी जोइन करनी है तभी से उसका भी चेहरा इसी प्रकार मुर्झा गया था। मैने कई बार रात
को महसूस किया था कि वह सोते-सोते जाग जाती थी। मै जानता था कि उसे शायद फिलहाल तकलीफ
होगी परन्तु अब हालात से समझौता करना उसे सीखना पड़ेगा। एक रात मैने उसे अपने मन की
बात कह दी… अगर तुम ऐसे ही दुखी रहोगी तो यहाँ पर सब कुछ छोड़ कर दिल्ली चलो। तुम्हें
दुखी करने के लिये मैने यह सब नहीं किया है। यह सब तुम्हारी खुशियों के लिये किया है।
भारत मे तुम्हारे अब्बू का डर मुझे हमेशा सताता रहता इसीलिये मै यहाँ आया था। यहाँ
पर तुम सुरक्षित हो और तुमने अपनी खुद की पहचान बना ली है। मेरी जरुरतें तो बहुत थोड़ी
है। मै तुम्हें दुखी देखता हूँ तो मेरा दिल टूट जाता है। मै जिस लाइन मे हूँ उस लाईन
मे बहुत से लोग सिर्फ इसलिये शहीद हो जाते है क्योंकि उनका ध्यान बँटा हुआ होता है।
क्या तुम चाहती हो कि मेरा भी दिमाग तुम्हारी ओर लगा रहे? अचानक वह भरभरा कर रो पड़ी
थी। उसके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। मै उसे अपने सीने से लगाये काफी देर तक
बैठा रहा था। लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि उस समय छह आतंकी असला और बारुद के साथ न
जाने कैसे पठानकोट एयरबेस मे घुस गये थे।
अभी सुबह भी नहीं
हुई थी कि मेरे फोन की घंटी ने मुझे उठा दिया था। …मेजर, पहली फ्लाईट लेकर फौरन दिल्ली
पहुँचों। पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला हुआ है। इस वक्त आप्रेशन जारी है। बस इतना बोल
कर अजीत सर ने फोन काट दिया था। तबस्सुम अभी सो रही थी। मै जल्दी से उठा और तैयार होने
चला गया। सुबह नौ बजे की पहली फ्लाईट पकड़नी थी इसीलिये मेरे पास ज्यादा समय नहीं था।
जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक निकलने का टाइम हो गया था। मैने कैप्टेन यादव को
बुलवा लिया था। चलने से पहले मैने सोचा कि उसे उठा कर अपने जाने की बात दूँ लेकिन मेरी
हिम्मत नहीं हुई तो मै चुपचाप निकल आया था। यादव ने मुझे एयरपोर्ट पर छोड़ दिया था।
रास्ते मे मैने उसे पठानकोट की घटना बता कर सावधान रहने के लिये कह दिया था। बारह बजे
तक मै अपने आफिस मे पहुँच गया था। एयरपोर्ट से आफिस की ओर जाते हुए मैने तबस्सुम को
पठानकोट के बारे मे बता कर कहा… प्लीज अपना और आने वाले मेहमान का ख्याल रखना। …आप
हमारी चिन्ता मत किजिये। बस इतना याद रखना कि हम दोनो आपका इंतजार कर रहे है।
अजीत सर एक मीटिंग
से निकले और दूसरी मीटिंग मे जाने से पहले मेरे पास आकर बोले… जनरल रंधावा को कमांड
सेन्टर मे रिपोर्ट करो। मै भी वहीं आ रहा हूँ। मैने जनरल मोहन्ती को फोन करके गाड़ी
मंगा ली थी। थोड़ी देर के बाद मै जनरल रंधावा के साथ बैठा हुआ पठानकोट का आप्रेशन बड़ी
सी स्क्रीन पर देख रहा था। हमारे सात एयरफोर्स के जवान मारे गये थे और तीस से ज्यादा
लोग घायल हो गये थे। सिर्फ छह आतंकियों ने पूरे एयरबेस को हिला कर रख दिया था। स्क्रीन
पर तबाही देख कर मेरा ही नहीं बल्कि वहाँ उपस्थित सभी लोगों का खून खौल रहा था। दो
घंटे बाद अजीत सर और वीके भी वहीं आ गये थे। …सर, मुझे मालूम था कि शुजाल बेग के गायब
होने का पता चलते ही पाकिस्तानी फौज ऐसा कुछ न कुछ करेगी परन्तु एयरबेस पर हमले के
बारे मे किसी ने नहीं सोचा होगा। जनरल रंधावा का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था। …शुजाल
बेग से क्या मतलब है मेजर? वायुसेना का एयर बेस जैसी जगह क्या कंपनी बाग है कि जहाँ
कोई भी टहलता हुआ आ सकता है। यह हमारी चूक है और हमे इसे स्वीकरना चाहिये। छ्ह आतंकी
अन्दर घुसते चले गये और हमारी सुरक्षा मे तैनात लोग सोते रहे। क्या देश की रक्षा ऐसे
की जाएगी। इसको अबकी बार ऐसे नहीं जाने दे सकते। अब उनको सबक सिखाने का समय आ गया है।
वीके और अजीत दोनो चुप थे।
थोड़ी देर बाद वीके
ने कहा… रंधावा, तुम ठीक कह रहे हो। हम दोनो एक मीटिंग से आये है। हमने भी यही बात
सबके सामने रखी थी लेकिन उनका कहना है कि इस बार चूक हमसे हुई है। इस समय कोई भी प्रतिकार
हमारी कमजोरी को दुश्मन के सामने जाहिर करेगा। हमे एक फूलप्रूफ योजना तैयार करने के
लिये कहा गया है। तीनो सेनाध्यक्षों को भी यही निर्देश दिया गया है। उनका कहना है कि
प्रतिकार का समय और जगह हम तय करेंगें लेकिन ऐसी चोट पहुँचानी है जिसकी गूंज पूरी दुनिया
मे सुनाई दे। अचानक अजीत सर ने पूछा… मेजर, तुम दो बार सीमा पार गये थे और वहाँ से
दो बार वापिस भी आये थे। क्या उसके बारे मे कुछ बता सकते हो? …सर, घुसपैठ का रास्ता
उत्तर कश्मीर से दक्षिण कश्मीर तक फैला हुआ है। सीमा के उस पार तंजीमों की मदद से दर्जन
से ज्यादा ऐसे ठिकाने बना रखे है जहाँ जिहादी समूह आकर कर रुक जाते है। वह हमारी पेट्रोलिंग
पार्टी पर दूर से नजर रखते है। जैसे ही मौका मिलता है एक समूह वह ठिकाना छोड़ कर आगे
बढ़ जाता है। उस जगह पर एक नया समूह आकर बैठ जाता है। पहला समूह कभी बचते-बचाते अन्दर
प्रवेश कर जाता है और कभी सीमा पार करते हुए भारतीय सेना द्वारा मारा जाता है। यही
सिलसिला चलता रहता है।
…अजीत अगर उन ठिकानों
पर कुछ दिन नजर रखी जाये तो शायद कुछ किया जा सकता है। अजीत सर कुछ नहीं बोले बस अपना
सिर हिला दिया था। …सर, मुजफराबाद के रास्ते पर ऐसे ही कुछ ठिकानों की हमने निशानदेही
की थी। ब्रिगेडियर चीमा के पास उन ठिकानो के कुअर्डिनेट्स है। कुछ दिन हम उन कुअर्डिनेट्स
पर नजर रखेंगें तो और घुसपैठ के दूसरे रास्तों पर भी वैसे ही ठिकाने पता किये जा सकते
है। अचानक अजीत सर ने उठते हुए कहा… रंधावा, ब्रिगेडियर चीमा से सारे कुअडिनेट्स लेकर
सीमा से लगे उन ठिकानो का पता लगाओ। अब से चौबीस घंटे उन ठिकानों पर नजर बनाये रख कर
एक पैटर्न ढूंढने की कोशिश करो। तुम मेरे साथ चलो मेजर। इतना बोल कर वह आगे बढ़ गये
थे। मै जल्दी से उठा और उनके पीछे चल दिया था। उनकी कार मे बैठते ही कार चल दी थी।
…मानेसर चलो।
थोड़ी देर के बाद हम
एनएसजी के कोम्पलेक्स मे पहुँच गये थे। …मेजर, शुजाल बेग को यहीं एक हाई सिक्युरिटी
सेल मे रखा हुआ है। अजीत सर मुझे अपने साथ लेकर एनएसजी के डिटेन्शन सेन्टर की ओर चल
दिये थे। कुछ देर के बाद हम शुजाल बेग के सामने बैठे हुए थे। शुजाल बेग की हवाइयां
उड़ी हुई थी। अजीत सर ने जैसे ही कमरे मे प्रवेश किया तो शुजाल बेग सावधान हो कर बैठ
गया था लेकिन जैसे ही मै उनके पीछे अन्दर आया तो मुझे देख कर वह चौंक कर खड़ा हो गया
था। अजीत सर ने कहा… ब्रिगेडियर साहब बैठिये। आप मुझे जानते है और यह मेजर समीर बट
है। हम दोनो उसके सामने जाकर बैठ गये थे। मेरी नजर शुजाल बेग पर जमी हुई थी। अजीत सर
अपना गला खंखार कर आराम से बोले… ब्रिगेडियर शुजाल बेग आपसे सिर्फ दो सवाल है। आप चाहें
तो जवाब दें अन्यथा चुप रहे यह आपके उपर निर्भर करता है। वलीउल्लाह का क्या राज है?
वह चुप रहा। …मेरा दूसरा सवाल है कि जिहाद काउंसिल की क्या योजना है? उसने कुछ नहीं
कहा लेकिन इस बार हमे देखने के बजाय वह कभी छ्त और कभी दरवाजे को देख रहा था।
अजीत सर ने मुस्कुरा
कर कहा… ब्रिगेडियर साहब, हम आपके साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं करेंगें लेकिन हम तुम्हारी
सीडी नेपाल सरकार को दे देंगें। इसका खुलासा होते ही मौलाना कादरी अपनी फिदायीन फौज
के साथ नेपाल को छोड़ कर पाकिस्तान निकल जाएगा। मैने आश्चर्य से अजीत सर की ओर देखा
तो वह बड़े शांत दिख रहे थे परन्तु शुजाल बेग का चेहरा धुआँ हो गया था। मुझे समझ मे
नहीं आया कि इससे उस जैसे आदमी पर क्या फर्क पड़ेगा लेकिन अगले ही पल वह पहली बार अजीत
सर से बोला… आप यह नहीं कर सकते। …क्यों ब्रिगेडियर साहब मै ऐसा क्यों नहीं कर सकता?
वह कुछ नहीं बोला लेकिन उसकी आँखों मे खौफ झलक रहा था। अजीत सर ने कहा… आपके परिवार
मे चौबीस लोग है। दूर-दराज के अगर रिश्तेदारों को भी मिला ले तो सत्तर के करीब हो जाएँगें।
उनमें से आपके दो बेटे और तीन बेटियाँ अमरीका मे पढ़ रहे है। मेरे पास पूरी लिस्ट है।
जिहाद काउंसिल का फतवा निकलते ही उन सत्तर लोगो की क्या दुर्गति होगी उससे तो आप भली-भांति
परिचित है। मंसूर बाजवा भी उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं करेगा क्योंकि उस तक हमने
खबर पहुँचा दी है कि पैसों के लिये आप भारतीय रा के साथ मिल गये है। मुझे उसी समय फारुख
के फोन का संबन्ध समझ मे आ गया था। अजीत सर चुपचाप उसके सामने बैठ गये थे।
ब्रिगेडियर शुजाल
बेग चुप बैठा रहा तो अजीत सर उठते हुए बोले… आपकी जैसी मर्जी। आपको फिक्र करने की जरुरत
नहीं है। मै जानता हूँ कि आपको टार्चर करके हमे ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा। लेकिन
वादा करता हूँ कि जिस दिन आपकी बेगमों पर उनका कहर टूटेगा उसकी पूरी जानकारी आपको जरुर
दे दूँगा। मुझे बहुत तकलीफ होगी जब मै आपको जेनब और नफीसा की दुर्गति की कहानी सुनाऊँगा।
चलो मेजर, ब्रिगेडियर साहब अगर अपने परिवार को जड़ से मिटा देना चाहते है तो भला इसमे
हम क्या कर सकते है। अजीत सर उठ कर चलने लगे तो अचानक वह उठ कर खड़ा होकर चिल्लाया…
अजीत तुम मुझे मार दो लेकिन यह मत करो। मै फौजी हूँ और तुमसे आशा करता हूँ कि तुम मुझसे
एक फौजी की तरह ही व्यवहार करोगे। मै तो अभी भी एक मूक दर्शक बना हुआ था। अजीत सर ने
कहा… वह तो मै कर रहा हूँ। …अजीत, अपनी दुश्मनी मुझसे निकालो लेकिन फौज कभी किसी के
बीवी बच्चों पर अत्याचार नहीं करती है। …यह बात आपके मुँह से अच्छी नहीं लगती है। वैसे
भी हम कहाँ कुछ कर रहे है। जो कुछ भी करेंगें, वह आपकी कौम के लोग करेंगें। भला इसमे
हम काफ़िरों को क्यों दोष दे रहे हो। अचानक अजीत सर की आवाज कड़ी हो गयी… शुजाल बेग,
मेरे दो सवालों का जवाब दे दो तो सिर्फ तकलीफ तुम्हें होगी वर्ना तुम्हारा पूरा परिवार
भुगतेगा। अब मै नहीं आऊँगा जब तक तुम मेरे सवालों का जवाब देने के लिये खुद नहीं बुलवाओगे।
हाँ पाकिस्तान मे तुम्हारे परिवार के साथ क्या हो रहा है उसकी जानकारी देने मेजर बट
आ जाया करेगा। यह बोल कर अजीत सर उस सेल से बाहर निकल गये थे। मै भी उनके पीछे चला
आया था।
कार मे बैठते हुए
मैने पूछा… सर, आप क्या समझते है कि यह ऐसे ही अपना मुँह खोल देगा। यह आईएसआई का सबसे
दुर्दान्त अफसर है। …मेजर, इसका मुँह खुलवाने के लिये तुमने टार्चर किया तो क्या गारन्टी
है कि यह तुम्हें सच बता देगा। केमिकल का इस्तेमाल करोगे भी तो उससे क्या हासिल होगा?
यह अपनी जान दे देगा लेकिन बताएगा नही। इसका मनोबल तोड़ना पड़ेगा और उसके लिये कुछ समय
लगेगा। …सर, फारुख ने मुझे फोन किया था। अजीत सर ने चौंक कर पूछा… कब? …दो दिन पहले।
वह शुजाल बेग की लोकेशन के बारे मे जानना चाहता है। उसके बदले मे वह मेजर हया की जानकारी
देगा जो आईएसआई के लिये वलीउल्लाह की हैंडलर है।
अजीत सर ने कुछ सोचते हुए कहा… ओह, इसका मतलब है कि शुजाल बेग का फतवा निकल
चुका है और बाजवा ने यह काम जैश को सौंपा है। …एक बार उससे भी मिल कर देख लो। शुजाल
बेग की लोकेशन बताने मे मुझे कोई हर्ज नहीं है लेकिन पहले उसे मेजर हया के बारे मे
बताना पड़ेगा। अगर उसकी जानकारी सच हुई तभी उसे शुजाल बेग की लोकेशन मिल सकती है। हम
बात करते हुए आफिस पहुँच गये थे। अंधेरा गहरा हो गया था। …मेजर तुम जाओ। मुझे अभी कुछ
काम है। यह बोल कर वह आफिस मे चले गये थे और मैने आफिस से अपना सामान उठाया और आफशाँ
के घर की ओर निकल गया था।
टैक्सी से उतरते ही
मेरा माथा ठनक गया था। लान मे पार्टी का इंतजाम रखा हुआ था। पच्चीस-तीस लोग वहाँ पर
ड्रिंक्स हाथ मे लिये बातों मे उलझे हुए थे। गेट पर खड़े हुए दरबान ने मुझे अन्दर जाने
से रोक दिया था। मै पार्टी मे जाने के लिय इच्छुक नहीं था इसीलिये मै लान से बच कर
सीधे घर मे घुसना चाह रहा था। मैने गेट पर खड़े हुए दरबान से कहा… थापा नाम के सिक्युरिटी
गार्ड को बुला दो। वह मुझे जानता है। एक पल के लिये वह सोच मे पड़ गया था लेकिन फिर
उसने इन्टर्काम पर किसी से कहा… थापा से मिलने के लिये कोई आया है। उसे गेट पर भेज
दो। थापा को आने मे कुछ देर लगी थी तो मै अपना बैग लेकर एक किनारे मे खड़ा हो गया लेकिन
तभी मुझे लगा जैसे कोई किसी को पुकार रहा है। मैने उस ओर देखा तो लोहे के गेट से हाथ
बाहर निकाल कर मेनका आवाज लगा रही थी… अब्बू…अब्बू। दरबान ने उसकी बात सुन कर मेरी
ओर देखा तो मैने कहा… मेरी बेटी है। अब अन्दर चला जाऊँ। उसने झेंपते हुए जल्दी से दरवाजा
खोल दिया था। मेनका भागते हुए मेरी ओर आयी और मैने उसको अपनी बाँहो मे उठा लिया था।
वह तेजी से कुछ बोलने लगी लेकिन मैने उसके मुँह पर उँगली रख कर कहा… तुम्हारी अम्मी
को सरप्राईज देंगें। हम लान मे खड़ी हुई भीड़ की नजरों से बचते-बचाते जैसे ही दरवाजे
पर पहुँचे तब तक थापा पहुँच गया था। उसने मुस्तैदी से सैल्युट किया और मेरा बैग लेते
हुए बोला… साहबजी आप कब आये? …सुबह आ गया था। यहाँ पर तो सब ठीक है। …जी साहब।
अपनी गोदी मे मेनका
को लिये मै घर मे दाखिल हो गया था। अपना बैग बेडरुम मे रखवा कर मैने कहा… थापा कल मेरे
साथ आफिस चलना है। सुबह जीप तैयार रखना। …जी साहबजी। मै मेनका को अपनी गोदी मे लेकर
बैठ गया था। …मुझे कैसे देख लिया? …अब्बू, मै खिड़की से बाहर देख रही थी तो मुझे आप
गेट पर खड़े हुए दिख गये थे। …मेरी मेनका बहुत समझदार हो गयी है। …आप कब आये? उसके सवालों
के जवाब देते हुए मैने कहा… कहाँ से देख रही थी? …अपने कमरे की खिड़की से देख रही थी।
आईये मै अम्मी को दिखाती हूँ। वह मुझे पकड़ कर अपने कमरे मे ले गयी थी। बड़े से शीशे
की खिड़की से नीचे लान मे खड़ी आफशाँ की ओर इशारा करके बोली… अम्मी। मै एक पल के लिये
आफशाँ को देख कर हतप्रभ रह गया था। वह अपने पाश्चात्य स्लिट गाउन मे सभी से हँस-हँस
कर बात कर रही थी। कद और काठी से वह सबसे हट के लग रही थी परन्तु गाउन ने उसके जिस्म
की कामुकता और भी ज्यादा बढ़ा दी थी। वहाँ पर सभी स्त्रियाँ पाश्चात्य वेशभूषा मे थी
परन्तु आफशाँ सबसे अलग लग रही थी। मैने आये हुए कुछ लोगों पर नजर डाली तो बहुत से लोग
मेरे लिये अन्जान थे। पता नहीं कुछ लोगों को देख कर मुझे ऐसा लग रहा था कि उनका संबन्ध
फोर्सेज से था। तभी मेरी नजर एक छोटे से समूह पर पड़ी तो उसमे कुछ जाने पहचाने चेहरे
दिख गये थे। मोनिका सेठी, दीपक सेठी, बी चन्द्रमोहन, निखिल वागले और बी सुब्रमन्यम
को देखते ही पहचान गया था। उनके साथ ही कुछ जानी पहचानी महिला पत्रकार भी खड़ी हुई थी।
मैने साथ खड़ी हुई
मेनका का हाथ पकड़ा और उसके साथ बतियाने लगा था। उसके पास बहुत सी बातें थी बताने के
लिये और पहली बार मै उसको धाराप्रवाह बोलते हुए सुन रहा था। वह अपने स्कूल, सहेलियाँ,
टीचर और खिलौनों से मेरा परिचय करा रही थी। मै भी इतने दिनो बाद उसको जानने की कोशिश
मे लगा हुआ था। …अब्बू आप बार-बार कहाँ चले जाते है? …बेटा, आर्मी जहाँ भेज देती है
वहाँ जाना पड़ता है। …अब आपको कब जाना है? …पता नहीं बेटा। अभी तो कुछ दिन यहीं हूँ।
मै थक कर उसके बिस्तर पर लेट गया था। वह मेरे सीने पर सिर रख कर अपने स्कूल की कहानी
सुना रही थी। मेरी आँखे बार-बार नींद से झपक रही थी। एक तेज नींद का झोंका आया और फिर
मै अपनी सपनों की दुनिया मे खो गया था।
जब मेरी आँख खुली
तो दिन निकल आया था। पूरी रात मैने मेनका के छोटे से बेड पर गुजार दी थी। मै उठ कर
उसके कमरे से बाहर निकला तो सुबह की लालिमा आसमान पर छायी हुई थी। मैने अपनी कलाई की
घड़ी पर नजर मारी तो सात बज चुके थे। मैने अपने लिये चाय बनायी और लान मे जाकर बैठ गया।
सुबह का अखबार खोल कर पठानकोट पर हुए हमले के बारे पढ़ने लगा। चाय समाप्त करके मैने
धीरे से आफशाँ के बेडरुम का दरवाजा खोलकर अन्दर देखा तो माँ और बेटी गहरी नींद मे सो
रही थी। मै दबे पाँव बाथरुम मे चला गया और जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक दोनो
सो रही थी। रात की पार्टी का असर था। मुझे दोनो की दिनचर्या के बारे मे कुछ पता भी
नहीं था। मै चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया और अपने नाश्ते की तैयारी मे जुट गया था।
मैने अपना नाश्ता समाप्त किया और फिर उन दोनो को उठाने के लिये बेडरुम मे चला गया था।
मैने झुक कर धीरे
से आफशाँ को हिलाया… आफशाँ। उसने धीरे से पल्कें झपकायी और मेरे गले मे बाँहे डाल कर
अपनी ओर खींचते हुए बोली… तुम बाहर क्यों नहीं आये। मैने उसके होंठ चूम कर कहा… कल
रात को तुम बहुत सुन्दर लग रही थी। मैने जैसे ही उसकी ओर हाथ बढ़ाया कि तभी मेनका ने
करवट ली तो मै हड़बड़ा कर उससे अलग हो गया था। वह खिलखिला कर हँस पड़ी थी। …अभी भी उससे
डर लगता है कि मुझे तुम्हारे साथ देख कर तुम्हें मारना शुरु कर देगी। मैने झेंपते हुए
कहा… नहीं। अब वह बहुत समझदार हो गयी है। कल तुम्हारी कमी मेनका ने पूरी कर दी थी।
मै उसकी कहानियाँ सुनते हुए सो गया था। आफशाँ उठ कर बैठ गयी थी। …मै पार्टी के बाद
उसको देखने के लिये उसके कमरे मे आयी तो देखती हूँ कि बाप और बेटी दोनो गहरी नींद मे
सो रहे थे। तुम्हें तो उठा नहीं सकती थी तो इसे यहाँ ले आयी थी। …इसको स्कूल नहीं जाना
है? …नहीं। समीर तुम्हें कुछ भी याद नहीं है। आजकल सर्दियों की छुट्टी चल रही है। यह
महारानी सुबह दस बजे से पहले नहीं उठेगी। …आफशाँ मुझे आफिस मे रिपोर्ट करना है। मै
चलता हूँ। …तुमने नाश्ता किया? …हाँ। यह बोल कर मै चल दिया तो आफशाँ जल्दी से उठी और
मेरी ओर दौड़ती हुई आई और पीछे से पकड़ कर बोली… तीन महीने बाद मिले भी और चल दिये। मैने
घूम कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए कहा… अभी फिलहाल मै यहीं हूँ। कल रात की कसर आज
रात को निकालूँगा फिलहाल चलता हूँ। वह मुझे दरवाजे तक छोड़ने चली आयी थी और फिर मेरे
जीप मे बैठते ही वह वापिस चली गयी थी।
थापा को साउथ ब्लाक
कह कर मै पीठ टिका कर आराम से बैठ गया था। कुछ देर के बाद मै अपने आफिस मे बैठ कर पठानकोट
की रिपोर्ट पढ़ रहा था। जैश ने हमला किया था। सभी मरने वाले आतंकी सीमा पार से आये थे।
अचानक जनरल रंधावा मेरे कमरे मे झांकते हुए बोले… मेजर आओ चलें। मै जल्दी से उठ कर
उनके साथ चल दिया था। रास्ते मे अजीत सर का कमरा पड़ा तो जनरल रंधावा ने दरवाजे पर हल्की
सी दस्तक देकर अन्दर झाँका तो अजीत सर भी कमरे से बाहर निकल आये थे। हम तीनो आफिस से
बाहर निकल कर अजीत सर की कार मे बैठ गये थे। थोड़ी देर मे एयरफोर्स के हेलीकाप्टर मे
बैठ कर हम तीनों पठानकोट एयरबेस की ओर जा रहे थे। एयरबेस पर उतरते ही एयरफोर्स की जीप
मे बैठ कर हम लोग हमले की कार्यविधि समझने मे लग गये थे। एनआईए के एक अधिकारी ने हमको
मुख्य द्वार से लेकर आतंकियों को जहाँ मार गिराया था उस रास्ते को दिखाते हुए कहा…
ऐसा लगता है कि उनको रास्ते का पता था। अचानक मैने कहा… सर, मै उन आतंकियों के शव देखना
चाहता हूँ। अजीत सर ने फोन पर किसी से बात की और फिर ड्राइवर से कहा… सिविल अस्पताल
चलो। सिविल सस्पताल की शवगृह मे छहों आतंकियों के शव रखे हुए थे। मैने सबकी शक्ल को
ध्यान से देखा और अपने फोन के कैमरे से उनकी तस्वीर उतार कर मैने कहा… सर, उस दिन निजामुद्दीन
मे जिन लोगों के जाली कागजात मिले थे उनमे से मुझे यह दो लोग लग रहे है। जैश के तार
दिल्ली तक जुड़े हुए है। …मेजर, इसकी जाँच एनआईए के हाथों मे है। पहले उनको अपनी जाँच
रिपोर्ट देने दो फिर बैठ कर देखेंगें कि हमे क्या करना है। पठानकोट एयरबेस का स्टेशन
कमांडर ग्रुप कैप्टेन बी एस नायर पहले से ही काफी तनाव मे था। उसने एयरफोर्स की आंतरिक
जाँच की रिपोर्ट देते हुए बताया था कि प्रात: तीन बजे मुख्य द्वार के चार सुरक्षाकर्मियों
की हत्या करके छह आतंकी एयरबेस मे दाखिल हुए थे। उनके निशाने पर फ्युल डम्पयार्ड था।
हमले का पता चलते ही उनको डम्प्यार्ड से कोई पचास मीटर पहले घेर लिया गया था। अगर कहीं
वह अपने मकसद मे कामयाब हो जाते तो भारी नुकसान उठाना पड़ सकता था। शाम तक हम वापिस
दिल्ली लौट आये थे।
मुझे वही आफिस मे
छोड़ कर अजीत सर और जनरल रंधावा चले गये थे। मै अपने आफिस मे बैठ कर उन छ्ह आतंकियों
की आईबी की फाइल मे मिली फोटो के साथ मिलान कर रहा था। मुझे उस वक्त दो चेहरे ऐसे लगे
थे जिनको मैने उस फाइल मे देखा था परन्तु जब मैने मिलान किया तो चार आतंकियों की शिनाख्त
हो गयी थी। कुछ सोच कर मैने आईबी के निदेशक दीपक शर्मा का नम्बर मिला कर बात करके साबिर
अली वाले केस के बारे मे पता किया तो उसने बताया कि साबिर अली को हाईकोर्ट से जमानत
मिलने के कारण छोड़ना पड़ा था। अब साबिर अली कहाँ है पूछने पर उसने कहा… अपने घर पर है।
कोर्ट की तारीख पर उसका वकील पेश हो जाता है। …क्या उसकी कोई निगरानी कर रहा है? …मेजर,
हमारे पास इतना स्टाफ नहीं है कि सभी पर निगरानी लगायी जा सके। वैसे भी रोज ही कोई
उससे भी ज्यादा संवेदनशील मामला सामने आ जाता है तो पुराने केस कोर्ट के हवाले करके
नये केस मे उलझ जाते है। कुछ देर बात करके मैने फोन काट दिया और न्यायपालिका की लचर
कानूनी व्यवस्था के हालात देख कर मन खिन्न हो गया था।
मै आफिस से निकल कर
जीप मे बैठा और घर की ओर चल दिया था। …साहबजी यह मेम साहब का आफिस है। मैने उड़ती हुई
नजर उस इमारत पर नजर डाली तो एक पल के लिये चौंक गया था। आफशाँ नौसेना भवन मे काम कर
रही थी। यह कैसे मुमकिन हो सकता है? भला एक निजि कंपनी के लोग इतने संवेदनशील आफिस
मे क्या कर रहे थे। मुझे लगा कि फौज की जिंदगी के कारण मै दुनिया से बिल्कुल कट कर
रह गया हूँ। थापा मुझे दरवाजे पर उतार कर जीप को पार्किंग मे लगाने के लिये चला गया
था। मेनका मुझे दरवाजे पर ही मिल गयी थी। उसकी बातें सुनता हुआ मै अन्दर आ गया था।
आफशाँ अभी आफिस से लौटी नहीं थी। मैने नौकर से चाय बनाने के लिये कह कर कपड़े बदलने
चला गया था। जब तक कपड़े बदल कर आया तब तक चाय बन चुकी थी। एक बार फिर से मेनका से उसके
दिन भर का समाचार सुनने बैठ गया था। उसकी बातें सुनने मे मुझे अपना बचपन याद आ गया
था कि कैसे हम पाँचों रात मे बैठ कर सारे दिन के अनुभव सुनाने बैठ जाते थे।
थोड़ी देर के बाद आफशाँ
ने घर मे प्रवेश किया और हमे बातें करते देख कर वहीं हमारे साथ बैठ गयी थी। कुछ देर
हमारे साथ बैठ कर आफशाँ अपने कपड़े बदलने चली गयी और मै और मेनका लान मे टहलने के लिये
चले गये थे। …अब्बू मेरे सभी दोस्त छुट्टियों मे बाहर घूमने जाते है। आप मुझे कभी बाहर
नहीं लेकर गये है। …तुम कहाँ जाना चाहती हो? वह सोच मे पड़ गयी थी। अचानक वह बोली… पेरिस।
उसकी मांग सुन कर मै चौंक गया था। …अभी तुमने भारत तो देखा नहीं तो फिर वहाँ जाकर क्या
देखोगी। पहले तुम्हें भारत देखना चाहिये और उसके बाद पेरिस देखना क्योंकि तभी तुम दोनो
जगह के महत्व को समझ सकती हो। पेरिस मे क्या देखना चाहती हो? उसने तुरन्त कहा… एफिल
टावर। …क्या तुमने कुतुब मीनार देखी है? …नहीं। …झूलती मीनार देखी है? नहीं। …तो बताओ
जब यह दो भारतीय टावर तुमने नहीं देखे तो एफिल टावर को देखने मे क्या मजा आयेगा। मेरी
बात सुन कर वह सोच मे डूब गयी थी। तभी मेनका को अपनी गोदी मे लेकर आफशाँ मेरे साथ बैठते
हुए बोली… अब्बू ने बेचारी को किस चीज मे उलझा दिया है। …अम्मी… एक बार फिर से उसकी
कहानी शुरु हो गयी थी।
कुछ देर इधर उधर की
बात करने के बाद मैने पूछा… कल शाम की पार्टी किस खुशी मे थी? …मुंबई से हमारे सीईओ
आये थे। वह कुछ लोगों से मिलना चाहते थे तो उनके लिये पार्टी रखी थी। …तुम सब को जानती
थी? …हाँ। क्यों पूछ रहे हो? …कल मेरी नजर निखिल वागले पर पड़ी थी। तुम उसे कैसे जानती
हो? …वह वाणिज्य सचिव है। तुम्हें पता है कि वह कितनी महत्वपूर्ण पोस्ट पर बैठा हुआ
है लेकिन बेहद लीचड़ इंसान है। …और बी चन्द्रमोहन? इस बार उसने तुरन्त कुछ नहीं कहा
परन्तु संभलते हुए बोली… समीर, मुझे समझ मे नहीं आता कि ऐसे गिरे हुए लोग इतने उँचे
पदों पर कैसे पहुँच जाते है। …तुमने बताया नहीं कि बी चन्द्रमोहन कैसा आदमी है? उसने
एक बार मेनका की ओर देखा और जल्दी से बोली… कुत्ता है साला। उसके मुँह से ऐसी बात सुन
कर मुझे हँसी आ गयी थी। तभी मेनका उचक कर बोली… अम्मी बेड वर्ड। आफशाँ झेंपते हुए बोली…
नो बेटा, मैने सिर्फ कुत्ता कहा था। यह कोई गलत वर्ड नहीं है। मेनका और आफशाँ की बहस
शुरु हो गयी और हमारी बातचीत पर रोक लग गयी थी।
खाना खाने के बाद
मेनका को लेकर हम दोनो लान मे टहलने चले गये थे। …आज थापा बता रहा था कि तुम नौसेना
भवन मे काम करती हो। …क्यों तुम्हें नहीं पता था? …मुझे तो यह भी नहीं पता कि तुम्हारे
आफिस का क्या नाम है। …कमाल करते हो। इतनी बार तुम मेरे आफिस आये लेकिन तुम्हें मेरी
कंपनी का नाम नहीं पता। मेरी कंपनी का नाम डेल्टा साफ्टवेयर सौल्युशन्स है। हम नौसेना
के लिये बल्क डेटा एनेलिटिक्स के साफ्टवेयर बनाते है। …ओह, तो फिर तुम्हें नौसेना की
लोकेशन के ग्रिड रेफ्रेन्स कहाँ से लेती हो? बोलते-बोलते वह अचानक चुप हो गयी थी। मैने
उस पर ज्यादा दबाव नहीं डाला लेकिन इतना महसूस कर लिया था कि वह यह सुन कर ही असहज
हो गयी थी। जिस उत्साह से वह अपने काम के बारे मे बात कर रही थी अचानक ही ग्रिड रेफ्रेन्स
की बात सुन कर वह संभल कर बोलने लगी थी। कुछ देर टहलने के बाद मेनका ने शोर मचाना शुरु
किया तो मैने उसे गोदी मे उठा लिया और अन्दर चले आये थे। …समीर इसे मुझे दे दो। मै
इसे सुला कर आती हूँ। उसने मेनका को गोदी मे लिया और उसके कमरे मे चली गयी और मै अपने
बेडरुम मे आ गया था।
मै बेड पर अभी बैठा
ही था कि मेरी फोन की घंटी बज उठी थी। घंटी की आवाज सुनते ही मुझे लगा कि आज की रात
फिर काली हो जाएगी। मैने जल्दी से फोन के स्क्रीन पर नजर डाली तो फारुख का नाम देख
कर सावधान हो गया था। …हैलो। …मेजर मेरे काम का क्या हुआ? …मैने पता लगा लिया है लेकिन
उसके लिये मेरी कुछ शर्त है। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। कुछ क्षण इंतजार करने के
बाद वह बोला… तुमने शर्त नहीं बतायी। …अब जो भी बात होगी वह आमने सामने होगी। …नामुमकिन।
…तो कोई बात नहीं। जब मिलने की हिम्मत जुटा लो तो फिर पूछ लेना। मेरी ओर से यह पक्का
है कि फोन पर यह काम नहीं होगा। वह कुछ पल चुप रहा और फिर बोला… एक बार फिर से मुझे
फंसाने की योजना बना रहे हो। …फारुख अब मुझे तुम्हें फंसाने की जरुरत नहीं है। तुम
तो वैसे ही ब्रिगेडियर चीमा के जाल मे फंसे हुए हो लेकिन तुम शायद भूल गये कि मेरे
पास अभी भी वह सीडी है तो अब तुम्हें फंसाने के लिये मुझे मेहनत करने की जरुरत नहीं
है। यह सौदा आमने सामने होगा क्योंकि वलीउल्लाह की हैंडलर मेजर हया की जानकारी मिलने
के बाद ही तुम्हें ब्रिगेडियर शुजाल बेग की लोकेशन दूँगा। इतना बोल कर मै चुप हो गया
था। तभी मेरी नजर दरवाजे की ओर चली गयी जहाँ आफशाँ खड़ी हुई मेरी बात सुन रही थी। उसकी
हवाइयां उड़ी हुई लग रही थी। मैने अपने होंठों पर उँगली रख कर उसे चुप रहने का इशारा
किया और फारुख के जवाब का इंतजार करने लगा। जब उसकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई
तो मैने कहा… अच्छा सोच कर जवाब देना और अगली बार से फोन इतनी देर रात को मत किया करो।
यह वक्त मियाँ-बीवी का निजि वक्त होता है। उसने जल्दी से कहा… ठीक है लेकिन जगह मे
बताऊँगा। …कोई बात नहीं। जगह तुम बताना और मिलने का समय मै दूँगा। फारुख लेकिन इतनी
रात को फोन मत किया करो। यह वक्त शरीफ लोगो के सोने का होता है। इतना बोल कर मैने फोन
काट दिया था।
आफशाँ अभी भी वही
जड़वत खड़ी हुई थी। …फारुख मीरवायज का फोन था। तुम्हें क्या हुआ है? तुम क्यों फारुख
का नाम सुन कर डर गयी हो। मैने उसे अपनी बांहों मे जकड़ कर कहा… आफशाँ, अनायस ही तुमने
हमारी बात सुन ली है लेकिन यह सिर्फ अपने तक रखना अन्यथा हम दोनो ही मुश्किल मे फँस
जाएँगें। कुछ देर पहले उसकी आंखों मे जो वासना का उन्माद हिलोरें ले रहा था अब उसकी
जगह डर ने ले ली थी। मुझे समझ मे नहीं आया कि फारुख के नाम से वह इतनी दहशत मे क्यों
आ गयी थी।
injar hai bhai post ka
जवाब देंहटाएंसाईरस भाई आपकी अगली पोस्ट की बेताबी मेरा उत्साह बढ़ाती है। आपकी जर्रानवाजी के लिये शुक्रिया।
हटाएंपहली बार लग रहा, फारुख नाम का तुफान समीर के निजी जिंदगी मे भुचाल ला देगा, आफशा का डर बता रहा वो किसीं अंजाने चक्रव्यूहमे फस गयी है, क्या उसकी कंपनी किसीं देश विघातक काममे लगी पडी है, जो जाणे अंजाने ISI को मदत पहूंचा रही हो. देखणा दिलचस्प होगा समीर कैसे इससे पार पाता है, और आफशा को भी तो इस सबसे सही सलामत बाहर निकालना है.
जवाब देंहटाएंप्रशांत भाई धन्यवाद। काफिर से ही फारुख की काली करतूत सामने आने के कारण ही वह ब्रिगेडियर चीमा के चंगुल मे फंस गया था। अब यह देखना होगा कि इस कड़ी मे वह कोई नया तूफान लाने की स्थिति मे है भी या नहीं।
हटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति जब पहले भी अफशा के ऊपर सन्देह हुआ समीर को तो कोई न कोई युक्ति दे कर उसने वो संदेह खारिज कर दिया मगर अभी फारूक से हुई बातचीत और आफशा का चेहरे का उड़ा हुआ रंग कुछ न कुछ झोल के बारे मैं चुहल करती नजर आ रही है, खैर उस और से भी मोहरे चल दिए गए हैं,अब आगे देखते हैं क्या होता है।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई जब अपने संदेह के घेरे मे आते है तब दिमाग की सारी सोच पलट जाती है। तब दिमाग उन सारे हालात पर केन्द्रित हो जाता है जो अपनो को संदेह के घेरे से बाहर निकाल सकता है। अनजान व्यक्ति के लिये दिमाग की प्रतिक्रिया एकदम उलट हो जाती है। दिमाग उन सभी हालात पर केन्द्रित हो जाता है जो उसे मुजरिम बना सकती है। यही जीवन का सत्य है। शुक्रिया।
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