रविवार, 25 फ़रवरी 2024

 

 

गहरी चाल-48

 

तिगड़ी बैठ कर पाकिस्तान-चीन सड़क परियोजना के मुद्दे पर चर्चा कर रही थी। अजीत कुछ सोच कर बोला… गोपीनाथ ने खबर दी है कि सड़क परियोजना के कारण पाकिस्तान की तंजीमों मे काफी रोष पनप रहा है। उसके बारे मे क्या करना है? वीके ने एक फाईल आगे बढ़ाते हुए कहा… चीन की अति महत्वाकांक्षी बेल्ट परियोजना की फाईल तुम्हारे सामने रख रहा हूँ। इसके कारण इस क्षेत्र मे उत्पन्न होने वाली सामरिक चुनौतियों पर सुरक्षा समिति की राय मांगी जा रही है। …वीके मैने पहले ही इसके बारे मे अपनी राय प्रधानमंत्रीजी के सामने रख दी थी। यह परियोजना किसी के लिये भी हितकर नहीं है। जनरल रंधावा ने दोनो को बीच मे टोकते हुए कहा… तुम दोनो भली भांति जानते हो कि आप्रेशन क्लीनआउट से पहले समीर को हमने इसी चुनौती के लिये एक ब्लू प्रिन्ट तैयार करने के लिये कहा था। उस विस्फोट के कारण हमारी योजना को भारी आघात लगा है। आप्रेशन खंजर मे शिकस्त खाने के बाद से ही मुझे इसी बात की आशंका थी। जनरल फैज की ओर से कुछ जवाबी कार्यवाही अवश्य होगी। अजीत ने कहा… तुम दोनो जानते हो कि सुरिंदर वहाँ पर गोपीनाथ के साथ क्या कर रहा था। यह भी तो हो सकता है कि आईएसआई ने चीन को इस योजना की जानकारी देकर उनकी मदद से इस काम को अंजाम दिया है। हमे इस मामले मे सावधानी बरतने की जरुरत है। वीके ने हामी भरते हुए पूछा… अपने मेजर के क्या हाल है? …वीके वह शारीरिक रुप से स्वस्थ हो गया है। कर्नल दीवान के अनुसार वह एक्यूट पोस्ट ट्रामा का शिकार हो गया है। इसलिये उसे फील्ड मे नहीं भेज सकते। जनरल रंधावा ने तुरन्त बात काटते हुए कहा… चार महीने से समीर अस्पताल मे भर्ती है। सुरिंदर के रिप्लेसमेन्ट के लिये लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। उसे अब फील्ड मे भेजना पड़ेगा। तीनो अभी इसी गुत्थी को सुलझाने मे लगे हुए थे कि अजीत का फोन बज उठा तो उनकी बातचीत को विराम लग गया।

अजीत जल्दी से काल लेते हुए बोला… हैलो। …सर, मै गोपीनाथ बोल रहा हूँ। सर, काबुल से खबर आयी है कि वहाँ के हालात बिगड़ते जा रहे है। पाकिस्तान फौज का तालिबान और तेहरीक के खिलाफ हमला जोर पकड़ता जा रहा है। इसके कारण पाकिस्तान के उत्तरी भाग मे पनपता हुआ रोष और विरोध की चिंगारी कहीं अफगानिस्तान मे नहीं पहुँच जाए। अगर ऐसा हो गया तो सारा किये कराये पर पानी फिर जाएगा। श्रीनिवास का कहना है कि हमे ब्रिगेडियर का रिप्लेसमेन्ट वहाँ पर जल्दी से जल्दी चाहिये। …गोपीनाथ, मुझे थोड़ा समय दो। आईविल गेट बेक टु यू। इतना बोल कर अजीत ने फोन काट दिया था। वीके और जनरल रंधावा की नजरें उस पर लगी हुई थी। …क्या हुआ अजीत? …उत्तरी पाकिस्तान मे सैन्य कार्यवाही होने के कारण हालात बिगड़ते जा रहे है। गोपीनाथ का कहना है कि उसे जल्दी से जल्दी ब्रिगेडियर का रिप्लेसमेन्ट चाहिये। …वह अपने किसी आदमी को वहाँ पर क्यों नहीं नियुक्त कर देता? …वीके ऐसा नहीं है कि वह किसी को नियुक्त नहीं कर सकता। उसकी परेशानी समझने की कोशिश करो कि उस आदमी को आतंकी तंजीमो के साथ सीआईए और अमरीका और अफगान फोर्सेज के साथ संबन्ध बना कर रखने पड़ेंगें। गोपीनाथ का स्टाफ इस काम को नहीं कर सकेगा। जनरल रंधावा अचानक उठते हुए बोला… अजीत इस काम के लिये समीर सबसे उपयुक्त था। एकाएक तीनो के चेहरों पर परेशानी की लकीर खिंच गयी थी।

जनरल रंधावा ने कुछ सोचते हुए कहा… हमने तो मेजर को लेकर एक डिफेसिव आफेन्स का पाईलट प्रोजेक्ट शुरु किया था। उस वक्त हमने नहीं सोचा था कि कुछ सालों मे ही यह प्रोजेक्ट सुरक्षा की दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण बन जाएगा। अजीत ने वीके की ओर देख कर कहा… यह तो वीके के दिमाग की उपज थी। उस वक्त तो हम लोग कुछ करने की स्थिति मे भी नहीं थे। हमने तो उसे अपने अनुभव से सिर्फ रास्ता दिखाया था। सारा काम तो उसने किया था। वीके ने साथ बैठे हुए अजीत सुब्रमनयम की पीठ पर धौल जमा कर कहा… मैने तो एक सैनिक तुम्हारे हवाले किया था लेकिन तुम दोनो ने उसे क्या बना दिया। जनरल रंधावा ने मुस्कुरा कर कहा… हमने तुम्हारे लिये उसे एक धारदार हथियार बना दिया है। वीके ने मुस्कुरा कर कहा… डिफेसिव आफेन्स प्रोजेक्ट की कामयाबी का सारा श्रेय असलियत मे तुम दोनो को जाता है। हमने उसे आंतरिक सुरक्षा के लिये तैयार किया था। इसका परिणाम हमने दीपक सेठी के केस मे देख लिया है। इसलिये मै उसे यहाँ की दीमक को साफ करने के लिये इस्तेमाल करना चाहता था। अजीत बोला… वीके, वह हमारा सबसे धारदार हथियार है। उसका उपयोग हमे सोच समझ कर करना चाहिये। बात करते हुए शाम हो गयी थी तो बैठक बर्खास्त करने से पहले अजीत ने कहा… सरदार, आज समीर से मिलने अस्पताल चलते है। …चल यार। वीके तू भी चल। …आज नहीं। मै अपने आफिस जा रहा हूँ। मेरा आफिस खुलने का समय होने वाला है। इतना बोल कर वीके अपने आफिस की ओर चल दिया। जनरल रंधावा ने चलते हुए कहा… प्रधानमंत्री जी की विदेश यात्रा पर होने के कारण इस बेचारे का आफिस कुछ दिन आधी रात तक चला करेगा। चल यार आज मेजर से मिलने चलते है। दोनो आफिस से बाहर निकल कर अजीत की कार की ओर बढ़ गये थे।

…मेजर समीर बट। कमांड अस्पताल मे प्रवेश करते हुए अजीत के कान मे यह नाम पड़ते ही उसकी नजर इन्फोर्मेशन डेस्क की ओर चली गयी थी। वहाँ पर एक स्त्री सस्पेन्डर मे नवजात शिशु को लिये डेस्क आफीसर से बहस कर रही थी। अजीत ठिठक कर रुक गया और फिर मुड़ कर बोला… सरदार, मै अभी आता हूँ तब तक तू समीर के कमरे की ओर चल। इतना बोल कर अजीत इन्फोर्मेशन डेस्क की चल दिया। वह डेस्क के किनारे पहुँच कर उनकी बात सुनने के लिये कुछ दूर खड़ा हो गया था। …पेशेन्ट का नाम मेजर समीर बट है। मै बस इतना जानना चाहती हूँ कि उनका रुम नम्बर क्या है? …मैडम, मैने आपको बताया है कि विजिटिंग टाइम समाप्त हो गया है। आप कल सुबह 8-10 और शाम को 5-7 के बीच आकर पता कर लिजियेगा। …मिस्टर मै समझ गयी लेकिन उनका कमरा नम्बर बताने मे आपको क्या तकलीफ है। …देखिये मै सिस्टम आफ कर चुका हूँ। जब आप उनसे अभी नहीं मिल सकती तो उनके रुम नम्बर के बारे मे जान कर क्या करेंगी। प्लीज आप कल सुबह आ जाईयेगा। इतना बोल कर वह काउन्टर छोड़ कर चल दिया था। 

वह स्त्री कुछ पल उसे जाते हुए देखती रही और फिर जैसे ही मुड़ कर जाने लगी तो अजीत ने आगे बढ़ कर उसका रास्ता रोक कर पूछा… बेटी किसके बारे मे पूछ रही हो? अंजली ने मुड़ कर उस व्यक्ति की ओर देखा तो एक पल के लिये वह चौंक गयी थी। वह उस आदमी को बहुत अच्छे से पहचानती थी। वह इंसान उसके लिये चलती-फिरती मौत थी। उसको अनसुना करके अंजली मुख्य द्वार की ओर चल दी लेकिन तभी अजीत ने उसे रोकते हुए कहा… अंजली कौल। वह ठिठक कर रुक गयी। …यही नाम है तुम्हारा। अंजली ठिठक कर रुक गयी थी। …अंजली मेरे साथ चलो। मै तुम्हें अभी समीर से मिलवा देता हूँ। एकाएक अंजली अजीब स्थिति मे फँस गयी थी। एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत सुब्रामन्यम का खतरा उसके सिर पर मंडरा रहा था। दूसरी ओर समीर को देखने की ललक उसे अजीत की बात मानने के लिये उकसा रही थी। उसने पहली बार निगाह उठा कर अजीत से धीरे से पूछा… आप मुझे जानते है? …हाँ। समीर मेरे साथ काम करता है। तुम काठमांडू से कब आयी? अंजली ने कोई जवाब नहीं दिया अपितु वह अब पहले से ज्यादा सतर्क हो गयी थी। …अंजली सौरी, कुछ हालात ऐसे बन गये थे कि हम तुम्हें खबर नहीं कर सके। …कैसी हालत है उनकी? …वह शारिरिक रुप से तो ठीक हो गया परन्तु ब्लास्ट के कारण पोस्ट ट्रामा का शिकार हो गया है। यह सुन कर एक पल के लिये अंजली का दिल बैठ गया था। वह अपने आप को रोक नहीं सकी और जल्दी से बोली… चलिये। वह अजीत के साथ चल दी।

इतनी देर मे पहली बार अंजली ने चलते हुए शिकायती लहजे मे कहा … सब कुछ जानते हुए भी आपने आज तक यह बात हमे बताने की कोशिश नहीं की जबकि इस दुर्घटना को हुए चार महीने हो गये है। अजीत ने जल्दी से बात बदलते हुए उस नवजात शिशु की ओर देखते हुए पूछा… अब तो यह दो महीने का हो गया होगा। इसका क्या नाम है? अबकी बार अंजली चिढ़ कर जवाब दिया… उसके पिता की अनुपस्थिति मे भला उसे कैसे नाम दिया जा सकता है। अजीत ने अबकी बार कुछ नहीं कहा और गलियारे मे मुड़ते ही एक कमरे की ओर इशारा करते हुए कहा… वह समीर का कमरा है। जनरल रंधावा कमरे के बाहर खड़े हुए अजीत का इंतजार कर रहे थे। अजीत दरवाजे पर पहुँच कर बोला… रंधावा यह समीर की पत्नी अंजली कौल है। …नमस्ते सर। जनरल रंधावा मुस्कुरा कर बोले… अच्छा हुआ पुत्तर तुम आ गयी। अब शायद उसकी रिकवरी जल्दी हो जाएगी। अजीत मेरे ख्याल से आज पहले इसे अन्दर जाने दे। कुछ सोच कर अजीत ने कहा… अंजली तुम अन्दर चली जाओ। अंजली कुछ क्षण वहीं खड़ी रही फिर आगे बढ़ कर दरवाजे पर दस्तक देकर अन्दर चली गयी थी।  

रोज की तरह अंधेरा हो गया था। इस अस्पताल मे एक दिन और गुजर गया था। हमेशा की तरह मै अजीत सर के इंतजार मे अपने कमरे मे टहल रहा था। मै जल्दी से जल्दी यहाँ से निकलना चाहता था परन्तु मुझे कोई भी डिस्चार्ज करने के लिये तैयार नहीं था। अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई तो मै उस ओर देखा कि तभी दरवाजा खोल कर एक लड़की ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे देख कर वह ठिठक कर वहीं रुक गयी थी। भारतीय परिधान मे वह स्त्री अपने सीने पर सस्पेन्डर मे एक नवजात शिशु को लिये मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी थी। मेरी नजर उसके चेहरे पर अटक गयी थी। वह एकटक मुझे देखती रही तो मैने जल्दी से पूछा… मै तुम्हें जानता हूँ परन्तु तुम्हारा नाम मुझे याद नहीं आ रहा है। तुम कौन हो? अपने दिमाग पर जोर डालते हुए मै उसका नाम याद करने की कोशिश करने लगा कि एकाएक मेरे दिमाग मे अचानक तेज पीड़ा की लहर उठी और मै अपना सिर दोनो हाथों मे थाम कर जमीन पर बैठ गया। वह तेजी से मेरी ओर झपटी लेकिन तभी उसके सीने से लगा हुआ बच्चा रोने लगा तो वह मुझे छोड़ कर अपनी गोदी मे लिये बच्चे को चुप कराने मे जुट गयी। तभी एक बार फिर दरवाजा खुला और अजीत सर और जनरल रंधावा ने कमरे मे प्रवेश किया। उन्हें देखते ही मै सावधान की मुद्रा मे खड़ा हो गया था।

…कैसे हो समीर? …फाइन सर। …पुत्तर, इसको पहचानता है? मैने उसकी ओर गौर से देखा तो वह जल्दी से बोली… यह अभी अपने दिमाग पर जोर डालने के काबिल नहीं है। प्लीज आप आज हमे अकेला छोड़ दिजीये। अजीत सर ने सिर हिलाते हुए अपने साथ खड़े हुए व्यक्ति से कहा… रंधावा वैसे भी हमे आज यहाँ आने मे बहुत देर हो गयी है। चल इन्हें बात करने दे। इतनी बात करके वह दोनो कमरे से बाहर निकल गये थे। तभी उस स्त्री के सीने से लगे हुए बच्चे ने कुनमुना आरंभ कर दिया। वह जल्दी से मेरे सामने बेन्च पर बैठते हुए बोली… अपना चेहरा दूसरी ओर कर लिजीये। मुझे बच्चे को दूध पिलाना है। कुछ पल के लिये मै ऐसे ही बैठा उसे देखता रहा था। उसने जल्दी से सस्पेन्डर उतार कर मेरी ओर देखे बिना अपने कुर्ते के बटन खोलना आरंभ किया तो मैने झेंप कर जल्दी से अपना चेहरा दीवार की ओर कर लिया था। कुछ देर के बाद उसने कहा… सुनिये। उसकी दिशा मे देखने से पहले एक पल के लिये मै झिझका फिर मैने पलट कर उसकी ओर देखा तो वह उस नन्हें से बच्चे को सीने से लगाये बैठी हुई थी। वह मुझे देख रही थी। …क्या आप मुझे नहीं पहचानते? उसकी आवाज मे छिपा दर्द उसकी नीली आँखों मे साफ झलक रहा था। कुछ बोलने से पहले मेरे होंठ एक क्षण के लिये काँपे फिर मैने धीरे से कहा… तुम्हारी धुंधली सी छवि मेरे जहन मे हरदम रहती है। तुम्हें देखते ही पहचान गया था परन्तु तुम्हारा नाम मेरे दिमाग के किसी कोने मे कहीं खो गया है। उसकी आँखें डबडबा गयी और वह धीरे से बोली… मेरा नाम। वह बस इतना ही बोली थी कि मेरे दिमाग मे छनाका सा हुआ और मै धीरे से बुदबुदाया… अंजली। वह मेरी ओर झपटी कि तभी बच्चे ने कुनमुना कर उसका स्तन छोड़ दिया तो उसने हड़बड़ा कर अनावरित स्तन को अपने कुर्ते से ढकते हुए बोली… आप मेरे साथ चलिये। उसने जल्दी से अपने कुर्ते के बटन बन्द किये और बच्चे को सस्पेन्डर मे डाल कर अपने कंधों पर पहनते हुए बोली… अपने कपड़े बदल लिजिये। मै अभी भी खड़ा हुआ उसको ताक रहा था। एकाएक हजारों भावनाओं का सैलाब मेरे जहन मे उमड़ा और मै झपट कर उसको अपनी बाँहों जकड़ कर खड़ा हो गया। वह कुछ पल ऐसे ही खड़ी रही फिर धीरे से बोली… घर चलिये। मेनका भी आपकी राह देख रही है।

…अंजली मेरे पास दूसरे कपड़े नहीं है। …ऐसे ही चलिये। वह मेरी बाँह पकड़ कर मेरे साथ चल दी थी। बिना किसी रोक-टोक के हम अस्पताल से बाहर लान मे आ गये थे। अंधेरा गहराता जा रहा था। बाग मे अभी भी बहुत से लोग अस्पताल के कपड़ों मे टहल रहे थे। मै भी उस भीड़ मे शामिल हो गया था। मै उससे बहुत कुछ कहना चाहता था। तभी एक कार मेरे सामने आकर रुकी और दरवाजा खोल कर वह जल्दी से बोली… आईये। उसकी आवाज सुनते ही मै जल्दी से उस कार मे बैठ गया। हमारे बैठते ही कार आगे बढ़ गयी थी। कार चालक ने घूम कर मेरी ओर देख कर बोला… सलाम साबजी। मैने बड़ी सहजता से कहा… थापा, कैसे हो? तभी अंजली की कोहनी मेरी पसली से टकरायी तो मैने उसकी ओर देखा तो वह दबी आवाज मे बोली… मै याद नहीं हूँ लेकिन बाकी सब आपको याद है। मैने झेंप कर खिड़की से बाहर झाँका तो रात मे बिजली से रौशन हुई सड़कें और ट्रेफिक की आवाजाही बहुत दिनो के बाद मुझे देखने को मिली थी। सब कुछ जाना पहचाना था परन्तु अभी बहुत कुछ ऐसा था जो कहीं खो गया था। कुछ देर के पश्चात हमारी गाड़ी रक्षा अकादमी के फ्लैट के सामने पहुँच गयी थी। मै कार से निकल कर उसके साथ चल दिया। अचानक वह मुड़ कर बोली… मेनका को पहचानते है? तभी दरवाजा खोल कर मेनका मुझे देख कर चिल्लायी… अब्बू। वह मेरी टाँगों से लिपट गयी। मैने उसे गोदी मे उठाया और उसके साथ फ्लैट मे प्रवेश कर गया। सब कुछ जाना पहचाना था।

… हैलो। …सर, कमांड अस्पताल से कर्नल दीवान बोल रहा हूँ। आपका पेशेन्ट मेजर समीर बट कल रात से गायब है। …ऐसे कैसे हो सकता है। अजीत की आवाज एकाएक तेज हो गयी थी। …सर, फिलहाल सीसीटीवी की फुटेज से पता चला है कि कल रात वह किसी स्त्री के साथ थे। उसी के साथ वह अस्पताल के मुख्य गेट पर भी खड़े हुए थे। अब मेरे लिये क्या आदेश है? कुछ पल सोचने के पश्चात अजीत ने कहा… कर्नल दीवान फिलहाल कुछ मत किजीये। …जी सर। इतनी बात करके अजीत ने फोन काट दिया था। …अजीत किसका फोन था? …अंजली कल रात समीर को अपने साथ ले गयी है। तीनो के चेहरे पर परेशानी की लकीरें उभर आयी थी। वीके ने पूछा… अजीत, वह कहाँ जा सकते है? …वीके, वह अपने फ्लैट पर ही होंगें। कुछ दिन समीर को उसके साथ गुजारने दो। कर्नल दीवान के अनुसार अचानक हुए विस्फोट के शाक के कारण मेन्टल ब्लाक हो गया है। उसे पहली बार हर व्यक्ति और हर स्थान नया लगता है। उस व्यक्ति या स्थान से जुड़ी हुई स्मृति अगर सकारात्मक है तो तुरन्त उसके प्रति ब्लाक हट जाता है और उसके साथ और भी बहुत सी जुड़ी बातें, व्यक्ति व स्थान दिमाग मे उभरने लगते है। उस वक्त नकारात्मक स्मृति नहीं आनी चाहिये क्योंकि उसके आते ही वह वापिस मेन्टल ब्लाक का शिकार हो जाता है।

मेनका और बच्चे को कमरे मे सुला कर अंजली मेरे साथ बेड पर लेटते हुए बोली… क्या पोस्ट ट्रामा मे आपकी मेमोरी लास हो गयी है? …ऐसा नहीं है। कर्नल दीवान के अनुसार अचानक हुए विस्फोट के शाक के कारण मेन्टल ब्लाक हो गया है। …मै आपको बहुत कुछ आपके जीवन से जुड़ी हुई बातें बता सकती हूँ परन्तु वह कितना सच होगा इसका मुझे पता नहीं और इसीलिये मै चाहती हूँ कि सारे सवालों के जवाब आपको खुद ढूँढने चाहिये। मैने करवट लेकर अंजली की ओर देखा तो वह आंखें मूंद कर लेटी हुई थी। कुछ देर उसे ताकता रहा और फिर उसको अपने आगोश मे लेकर बोला… इसका मतलब तो यह हुआ कि तुम्हें भी मैने झूठ बोला है। मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपा कर वह धीरे से बोली… ऐसी बात नहीं है। यह भी सच है कि आपकी पिछली जिंदगी के बारे मे बहुत सी बातें मै नहीं जानती। इसीलिये मै अपने नजरिये को आप पर लादना नहीं चाहती। उसके बालों को धीरे से सहलाते हुए बोला… एक बात तो बता दो कि अगर अजीत सर ने पूछा कि मैने यहाँ बैठे कैसे ब्रिगेडियर चीमा का पता लगा लिया तो उसका जवाब क्या दूँगा? मैने महसूस किया कि मेरी बात सुन कर वह भी सतर्क हो गयी थी। कुछ पल रुक कर वह बोली… बस इतना बता दिजियेगा कि कश्मीर मे अपने पुराने नेटवर्क से संपर्क स्थापित करके यह जानकारी मिली थी। …अब तुम ही मुझे झूठ बोलने के लिये कह रही हो। उसने कुछ नहीं कहा बस मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर वह लेटी रही थी। कुछ ही देर मे हम सपनों की दुनिया मे खो गये थे।

…उठिये चाय पी लीजीये। मै चाय पीने बैठ गया था। अंजली अपने काम मे व्यस्त हो गयी थी। मै चाय पीते हुए काठमांडू के बारे मे सोच रहा था कि अंजली ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… आप जरा उन दोनो को संभालिये। मै उठ कर दूसरे कमरे मे चला गया था। मेनका उस शिशु के पास बैठ कर बतिया रही थी। वह अपने हवा मे हाथ पैर चलाते हुए किलकारी मार रहा था। मै उनके पास बैठते हुए मेनका से कहा… यह क्या बोल रहा है? …मेरी बात सुन कर वह खुश हो रहा है। …यह कौन है? मेनका ने अचरज से मेरी ओर देख कर कहा… अब्बू आप इसे नहीं पहचानते। यह मेरा छोटा भाई है। मैने जल्दी से अपनी बात बदलते हुए कहा… मेरा मतलब है कि इसका नाम क्या है? …अब्बू मैने इसका नाम केन रखा है। मैने चकरा कर उसकी ओर देख कर पूछा… केन…यह कैसा नाम है? तभी अंजली ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… मेनका की बार्बी डाल के बोय फ्रेन्ड का नाम केन है। क्यों मेनका? मेनका ने जल्दी से कहा… अम्मी क्या यह नाम अच्छा नहीं है? …बहुत अच्छा नाम है। मैने जल्दी से दोनो की बात को काटते हुए कहा… नहीं मै इसको रवि के नाम से बुलाऊँगा। एक साथ दोनो बोली… क्यों? …इसलिये कि…अचानक एक बार फिर से मेरा दिमाग एकाएक ब्लैंक हो गया था। मेरे चेहरे के भाव तुरन्त पढ़ कर अंजली बोली… मेनका जल्दी से फ्रिज से पानी की बोतल निकाल कर लाना और इतना बोल कर उसने मेरा चेहरा अपने सीने मे छिपा कर बालो को सहलाते हुए धीमे स्वर मे बोली… सब ठीक हो जाएगा। आप अपने आपको संभालिये। उसकी आवाज सुन कर अगले ही पल मेरा दिमाग शान्त होने लगा।       

मैने अपने आपको धीरे से अंजली से अलग किया और पानी की बोतल लिये खड़ी मेनका की ओर देखा तो वह डरी हुई लग रही थी। मैने मुस्कुरा कर उसके हाथ से बोतल लेते हुए कहा… मै भी इसे केन के नाम से ही बुलाऊँगा। अब तो खुश हो। मेनका के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गयी थी। मै जल्दी से पानी पिया और फिर मेनका को उठा कर अपने साथ बिठाते हुए कहा… इस केन के लिये बार्बी तुम्हें ढूँढनी पड़ेगी। मेरी बात सुन कर वह शर्मा कर बोली… अब्बू यह तो अभी बहुत छोटा है। …कोई बात नहीं लेकिन अबसे केन का ख्याल तुमको रखना पड़ेगा। देर रात को खाना खाने के पश्चात मै अपने कमरे मे लेट कर रवि नाम के बारे मे सोच रहा था कि तभी अंजली मेरे साथ लेटते हुए बोली… आप अपने दिमाग पर ज्यादा जोर मत डालिये। मैने उसकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोली… मै जानती हूँ कि आप उस नाम के बारे मे सोच रहे है। …वह दोनो सो गये? …हाँ। उनको सुला कर आ रही हूँ। उसकी ओर करवट लेकर बोला… तुम बहुत खतरनाक साबित हो रही हो क्योंकि अब तुम मेरा दिमाग भी पढ़ने लगी हो। वह मुस्कुरा कर बोली… इसमे मुझे कोई शक नहीं है। मै आपसे ज्यादा खतरनाक हूँ। वह मेरे सीने पर सिर रख कर बोली… काठमांडू कब चलने की सोच रहे है? …जल्दी से जल्दी यहाँ से जाना चाहता हूँ। कल चले? …इतनी जल्दी नहीं। इसी के साथ हमारी छेड़छाड़ आरंभ हो गयी थी। कुछ देर के बाद हम अपनी तेज चलती हुई साँसों को सयंत करने की कोशिश कर रहे थे। तभी डोर बेल की आवाज ने रात की शांति भंग कर दी थी। हम दोनो चौंक कर उठ कर बैठ गये। हम जब तक अपने कपड़े पहन कर कमरे से बाहर निकले तब तक दो बार घंटी और बज गयी थी।

न जाने कहाँ से अंजली ने एक पिस्तौल निकाली और मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली… आप मुझे कवर किजिये। मै दरवाजे पर देखती हूँ कि कौन है। पिस्तौल मेरे हाथ मे आते ही मेरा हाथ कांपने लगा जिसके कारण वह मेरे हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गयी थी। मैने जल्दी से पिस्तौल उठा कर उसके हाथ मे जबरदस्ती रखते हुए कहा… मुझे कवर करो। मै देखता हूँ कि कौन है। इतना बोल कर मै दरवाजे की ओर बढ़ गया था। दरवाजा खोलने से पहले मैने एक बार मुड़ कर अंजली की ओर देख कर दरवाजे को खोल दिया। अंधेरे मे से दो साये निकल कर मेरे सामने आकर खड़े हो गये थे। उनको देखते ही मेरे अन्दर का सैनिक तुरन्त हरकत मे आ गया और मुस्तैदी के साथ सैल्युट करके सावधान खड़ा होकर बोला… सर, इतनी रात को आप यहाँ पर कैसे आ गये? अजीत सर ने मुस्कुरा कर कहा… समीर तुम बिना बताये अस्पताल छोड़ कर यहाँ क्यों आ गये। उनके साथ खड़े वीके ने जल्दी से कहा… मुझे पहचानते हो मेजर? मैने जल्दी से झेंपते हुए कहा… सर, आप कैसी बात कर रहे है। मै आपको क्यों नहीं पहचानूँगा। …तो मेरा नाम बताओ। …सेवानिवृत लेफ्टीनेन्ट जनरल वी के नरसिंहमन। …और मै कौन हूँ। तभी पीछे से जनरल रंधावा निकल कर सामने आकर बोले तो एक बार फिर से झेंपते हुए मैने कहा… सर, प्लीज मुझ शर्मिन्दा मत किजिये मै आप तीनो को पहचानता हूँ। आईये अन्दर चलिये। तीनो मेरे साथ अन्दर आ गये थे। तभी पर्दे के पीछे से अंजली निकल कर हमारे सामने आकर नमस्ते करके मेरे साथ खड़ी हो गयी थी।

सोफे पर बैठते हुए जनरल रंधावा ने शिकायती स्वर मे पूछा… पुत्तर हमे बिना बताये तुम इसे अपने साथ लेकर अस्पताल से क्यों चली गयी थी? अंजली सिर झुकाये चुपचाप खड़ी रही तो अजीत सर ने जल्दी से कहा… सरदार, उस बेचारी को क्यों दोष दे रहे हो। बैठ जाओ अंजली इनकी बातों पर ध्यान मत दो। हम दोनो उनके सामने बैठ गये थे। तीनो बड़े ध्यान से मेरी ओर देख रहे थे। मैने पूछा… सर, ब्रिगेडियर चीमा ठीक तो है? …सौरी समीर। ब्रिगेडियर चीमा अभी भी कोमा मे है। उनके बचने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। कमांड अस्पताल के डाक्टर ने उन्हें ब्रेन डेड बता दिया है। इसी कारण देर रात को तुम्हें जगाना पड़ा है। मै चुपचाप उनकी ओर देख रहा था। अचानक जनरल रंधावा ने पूछा… समीर, उसका पता तुम्हें किसने बताया? सीधा सवाल मुझसे था। तीनो मेरी ओर देख रहे थे तो मै झूठ बोलने की स्थिति मे भी नहीं था। मैने एक नजर अंजली पर डाली और फिर धीरे से जवाब दिया… सर, ब्रिगेडियर चीमा का पता मुझे ने अंजली ने बताया था। तीनो की निगाहें अंजली पर टिक गयी थी। …अंजली क्या तुम बता सकती हो कि तुमने उसका पता कैसे लगाया था? अंजली कुछ पल चुप रही और फिर एक बार मेरी ओर देख कर उनसे बोली… सर, मेरी बाजी ने बताया था। वीके ने पूछा… तुम्हारी कौनसी बाजी ने युसुफजयी का पता दिया था? अचानक इस सवाल को सुन कर मै भी एक पल के लिये चकरा गया था। अबकी बार अंजली ने बड़ी दृड़ता से कहा… मै आपको नाम नहीं बता सकती। तीनो ने प्रश्नवाचक दृष्टि मुझ पर डाली तो मैने जल्दी से कहा… यह नीलोफर की बात कर रही है।

तीनो कुछ देर चुपचाप बैठे रहे फिर अजीत सर बोले… समीर, हमे जल्दी से जल्दी  ब्रिगेडियर चीमा का रिप्लेसमेन्ट देना है। क्या तुम ड्युटी जोइन करने मे सक्षम हो? मै कोई जवाब देता उससे पहले वीके ने कहा… अबकी बार ड्युटी जोइन करने से पहले हम तुम्हें कुछ दिनो के लिये स्पेशल फोर्सेज की ट्रेनिंग मे भेजना चाहते है। हम तुम्हारी शारिरिक और मानसिक स्थिति का आंकलन करना चाहते है। अभी तक मेजर हया का कुछ पता नहीं चला है। हमे शक है कि ब्रिगेडियर चीमा के अपहरण के पीछे उसका हाथ है। वह ऐसे कामो को पहले भी जम्मू और कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों मे बहुत बार अंजाम दे चुकी है। अंजली सिर झुकाये बैठी रही परन्तु उसकी पकड़ मेरे हाथ पर एक पल के लिये कस गयी थी। …पुत्तर, मेरी सलाह है कि तुम जल्दी से जल्दी मानेसर चले जाओ। इस मेजर हया ने हमारे सुरक्षा तंत्र और कश्मीर की व्यवस्था को पहले भी बहुत नुकसान पहुँचाया है। अब पता नहीं वह कौनसी नयी योजना को कार्यान्वित करने जा रही है। …जी सर। मै कल ही मानेसर मे रिपोर्ट कर दूँगा। अंजली जो अभी तक सिर झुकाये बैठी हुई थी वह अचानक बेहद दृड़ स्वर मे बोली… आप कहीं नहीं जा रहे है। अगर आप जबरदस्ती जाएँगें तो मै भी आपके साथ जाऊँगी। अचानक तीनो सकते मे आ गये थे। हम चारों काफी देर तक उसे समझाते रहे लेकिन स्त्री हट के आगे तो भला किसका बस चलता है। रात के तीन बज गये थे लेकिन कोई भी अंजली को समझा नहीं सका था। वह तीनो उसको स्पेशल फोर्सेज की सैन्य ट्रेनिंग की परिश्रम और मुश्किलों के प्रति आगाह करने मे जुटे हुए थे।

अचानक वह गुस्से मे तमतमा कर उठते हुए बोली… मै आप तीनो को चुनौती दे रही हूँ कि आपका मेजर समीर मुझसे किसी भी हालत मे बेहतर साबित नहीं हो सकता। मैने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वह उन तीनो को देख रही थी। वह फिर बोली… आप एक बार किसी और को मुझसे बेहतर साबित करके दिखा दिजिये तो मै दोनो बच्चों को लेकर वापिस काठमांडू चली जाऊँगी। इतना बोल कर वह चुप हो गयी और अन्दर जाते हुए बोली… आप मेरे बिना कहीं नहीं जा रहे है। हम चारों चुपचाप एक दूसरे को देख रहे थे परन्तु कोई भी कुछ बोलने की स्थिति मे नहीं था। कुछ देर के बाद अजीत सर बोले… समीर, अपने ब्लू प्रिन्ट पर काम करना शुरु कर दो क्योंकि अब तुम्हें सीमा पार करके वहां पर हक डाक्ट्रीन को कार्यान्वित करना है। ब्रिगेडियर चीमा के अपहरण का जवाब देना पड़ेगा जिससे जनरल फैज या उसके पालतू दोबारा ऐसा दुस्साहस दिखाने की कोशिश न कर सकें। …सर, मेरे ब्लू प्रिंट मे पैसा एक मुख्य धुरी है। फारुख से जब्त किया हुआ पैसा अभी तक मेरे गोदाम मे रखा हुआ है। मै एक स्लश फन्ड बनाने की सोच रहा हूँ। इसमे मुझे आपकी मदद चाहिये। वीके कुछ देर सोचने के बाद बोले… काठमांडू पहुँच कर एसबीआई की नयी बानेश्वर की शाखा के मैनेजर हरिओम थापा से मिल लेना। वह हमारा आदमी है। कल सुबह उसको निर्देश मिल जाएँगें। जनरल रंधावा ने पूछा… काठमांडू कब जा रहे हो? …सर, मै कल काठमांडू के लिये निकल जाता हूँ। …यही ठीक रहेगा।

तभी वीके ने कहा… क्या अंजली इसके लिये तैयार हो जाएगी? मै कुछ बोलता उससे पहले जनरल रंधावा बोले… इसमे तकलीफ क्या है। उसको भी इसके साथ ट्रेनिंग करने दो। पहले दिन ही वह तौबा करके शांत होकर बैठ जाएगी। मैने जल्दी से कहा… सर, आप क्या कह रहे है। वह वैसे ही बच्चों और कारोबार का भार अकेली संभाल रही है। अजीत सर बोले… समीर, सरदार ठीक बोल रहा है। वह कोई आसान ट्रेनिंग नहीं है। तुम स्पेशल फोर्सेज की स्पेशल अस्साल्ट आप्रेशन टीम के साथ ट्रेनिंग करोगे तो मुझे नहीं लगता कि अंजली वहाँ एक घंटे से ज्यादा भी टिक पाएगी। अगर वह अपने आप इस जिद्द को छोड़ देगी तो सबके लिये बेहतर होगा। उसे भी पता चलना चाहिये कि काली डंगरी पहने हुए जब एक सैनिक से सामना होता है तो उसके पीछे कितनी कड़ी मेहनत होती है। एकाएक तीनो उठ कर खड़े हो गये थे। मै समझ गया था कि अब उन्होंने निर्णय ले लिया था। उनको विदा करके मै वापिस सोफे पर बैठ गया था। मुझे कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा था।

बेडरुम का पर्दा हटा कर जैसे ही मैने अन्दर प्रवेश किया तभी अंजली की आवाज कान मे पड़ी… वह तीनो चले गये? मै दबे पाँव उसके करीब पहुँच कर उसके साथ लेटते हुए धीरे से बोला… तुम्हें आज क्या हो गया जो जिद्द पर अड़ गयी। वह कुछ नहीं बोली तो धीरे से उसे अपने निकट खींचते हुए मैने कहा… झाँसी की रानी मै तो पहले ही तुम्हारे आगे हार मान चुका तो उनको चुनौती देने की जरुरत क्या थी। बेचारे तीनो को समझ मे नहीं आ रहा था कि वह क्या बोलें। मेरी ओर करवट लेकर मेरी आँखों मे झाँकते हुए बोली… वह आपको ब्रिगेडियर चीमा के रिप्लेसमेन्ट बना कर कश्मीर भेजना चाहते है। मै आपको वहाँ अकेला नहीं जाने दे सकती। आपने खुद अनुभव कर लिया कि इस वक्त आप पिस्तौल चलाने के बजाय उठाने की भी स्थिति मे नहीं है। तो बताईये कैसे आप उनके साथ ट्रेनिंग कर सकेंगें? मै आपको ऐसी हालत मे तो हर्गिज जाने नहीं दूँगी। मै उसे कैसे बताता कि वह मुझे सीमा पार भेजने की योजना बना रहे है।  

अगले दिन हम सब काठमांडू जा रहे थे। कैप्टेन यादव को मैने चलने से पहले अपने पहुँचने की खबर कर दी थी। चार महीने के अंतराल के बाद मै काठमांडू जा रहा था। एयरपोर्ट पर कैप्टेन यादव हमारा इंतजार कर रहा था। …कैप्टेन तुम्हारी टीम के क्या हाल है? कैप्टेन यादव बड़ी गर्मजोशी से स्वागत करते हुए बोला… सर, माँ काली का आशिर्वाद है। इतने दिनो से आपकी सभी राह देख रहे थे। कुछ ही देर मे हमे घर पर उतार कर वह और थापा गोदाम की दिशा मे निकल गया था। दरवाजे पर पहुँच कर डोरबेल दबायी तो घंटी की कर्कश आवाज गूंज गयी थी। दरवाजा खुलते ही कविता हमे देख कर खुशी से चिल्लायी… दीदी। वह अंजली से लिपट कर रोने लगी। अम्मा भी रसोई से बाहर निकल आयी थी। मेनका दौड़ कर अम्मा से जाकर लिपट गयी थी। एकाएक घर मे कोहराम सा मच गया था। अम्माजी और कविता एक किनारे मे खड़ी हँस रही थी। कुछ देर के बाद जब सब कुछ शांत हो गया तो अंजली ने कहा… अम्माजी, सबको खाना खिला दिजीये। भूख लग रही है। रात को जब बेड पर लेटा तो बहुत दिनों के बाद मुझे सुकून का एहसास हो रहा था।

अगले दिन की शुरुआत अपने बैंक जाकर करी थी। अपना निजि अकाउन्ट चेक किया तो उसमे आठ करोड़ के करीब थे। मैने पाँच करोड़ रुपये नीलोफर के अकाउन्ट मे ट्रांस्फर करवाये और उसके बाद गोल्डन इम्पेक्स के अकाउन्ट पर नजर डाल कर मै बैंक से बाहर निकल आया था। मेरे अपने अकाउन्ट मे अभी भी तीन करोड़ के करीब की रकम बची हुई थी। गोल्डन इम्पेक्स के अकाउन्ट मे कुल जमा राशि लगभग सवा करोड़ थी। वहीं से मैने अंजली से फोन लगा कर पूछा… तुम कंपनी की तनख्वाह व अन्य अतिरिक्त खर्चे कौनसे अकाउन्ट से करती हो? …कंपनी के सारे खर्चे कंपनी के अकाउन्ट से किये जाते है। …और तुम्हारे अकाउन्ट का क्या हाल है? …लगभग सत्तर लाख के करीब होंगें। आपने ही तो पचास लाख जमा किये थे। बाकी हर महीने हमारा अकाउन्टेन्ट कमीशन के बचे हुए मुनाफे को मेरे खाते मे जमा कर देता है। आप यह सब क्यों पूछ रहे है? …कोई खास कारण नहीं है। मुझे कुछ पैसे दिल्ली मे ट्रांस्फर करने थे। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया और गोदाम की ओर निकल गया।

गोदाम पहुँच कर सबसे पहले मैने अपने आयुध मालखाने का निरीक्षण किया था। अभी भी हमारे मालखाने मे काफी हथियार उपलब्ध थे। सेम्टेक्स का ड्रम भी लगभग पूरा भरा हुआ था। कैप्टेन यादव ने सारा सामान दिखाते हुए पूछा… सर, उनसे जब्त किये हथियार भी यहीं रख दिये है। अब इतने सारे हथियारों का क्या करना है? …कैप्टेन, अभी इन्हें यहीं रहने दो लेकिन उचित समय देख कर आधे हथियार नये गोदाम मे रखवा देना। …सर, इन ट्रंकों का क्या करना है। हथियारों से ज्यादा मुझे खतरा इन ट्रकों से था। इसमे फारुख और नीलोफर से जब्त की हुई विदेशी करेंसी रखी है। यहाँ के हालात भी खराब होते जा रहे है। …कैप्टेन यादव किसी सैनिक को यहाँ बैठा कर सभी हथियारों की लिस्ट तैयार करवाओ तब तक इन ट्रंको को ठिकाने लगाने के बारे मे दिल्ली से बात करता हूँ। इतना बोल कर मै वहाँ से निकल कर संपर्क केन्द्र की ओर चला गया था। सबसे पहले मैने जनरल रंधावा से संपर्क किया। …सर एक दिन के लिये मुझे आपके एक्स्पर्ट की यहाँ जरुरत है। …क्या हुआ? …सर, आफिस के संचार सेटअप को डिस्मेन्टल करना है। अब उसकी वहाँ कोई जरुरत नहीं है। …ठीक है और कुछ? …सर, तंजीमो से जब्त किये हुए हथियार और बारुद की संख्या काफी हो गयी है। इन्हें यहाँ रखना भी खतरे से खाली नहीं है। इसके लिये हमे क्या करना चाहिये? …समीर, हमारी लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। बस दुश्मन बदल गया है। फिलहाल उन हथियारों को किसी सुरक्षित स्थान पर रखवा दो। …जी सर। इसी के साथ जनरल रंधावा ने लाइन काट दी थी।

…कुशाल सिंह अब अजीत सर से बात कराओ। अगले दो मिनट मे अजीत सर स्क्रीन पर आ गये थे। …समीर, आजकल वहाँ के हालात कैसे है? …सर, यहाँ की स्थिति बिगड़ती जा रही है। क्या आप वीके से पूछ कर बता सकते है कि मै कब उस मैनेजर से मिल सकता हूँ? …ठहरो। उन्होंने फोन पर बात करके कहा… उसे निर्देश मिल गये है। तुम उससे अब कभी भी मिल सकते हो। इतनी बात करके मैने फोन काट कर संपर्क केन्द्र से बाहर निकलने लगा तभी कुशाल सिंह बोला… साबजी उस सेन्टर को तो हम भी आसानी से डिस्मेन्टल कर सकते है। …ठीक है। मै कैप्टेन यादव से बात कर लेता हूँ। इतना बोल कर मै संपर्क केन्द्र से बाहर निकल आया था। कैप्टेन यादव को कुशाल सिंह को रिलीव करके आफिस भेजने के लिये कह कर मै एसबीआई की बानेश्वर ब्रांच की दिशा मे चल दिया।

एसबीआई का ब्रांच मैनेजर हरिओम थापा मुझे बाहर ही मिल गया था। वह सिक्युरिटी के गार्ड्स को कुछ निर्देश दे रहा था। दरवाजे पर तैनात गार्ड ने थापा की ओर इशारा करके मुझे बता दिया था। मैने जैसे ही अपना नाम समीर कौल बताया तो उसने तुरन्त पूछा… कौल साहब दो दिन पहले मुझे हेड आफिस ने आपके आने का प्रयोजन बता दिया था। कितना कैश होगा? …मुझे पता नहीं परन्तु काफी है। …कौल साहब आप अब कैश मंगवाने से पहले आप अपना एक अकाउन्ट हमारी ब्रांच मे खुलवा लिजिये। मैने सारी कागजी कार्यवाही पूरी करके समीर कौल के नाम से अपना अकाउन्ट खुलवा कर थापा की ओर देखा तो वह बोला… अब आप कैश मंगवा लिजिये। मैने कैप्टेन यादव को फोन मिला कर कहा… कैप्टेन सारे करेन्सी के ट्रकों को कंटेनर ट्रक मे रख कर एसबीआई की नये बानेश्वर ब्रांच पर आ जाईये। एक आर्म्ड गार्ड युनिट को उस ट्रक की सुरक्षा पर लगा देना। नो एनगेजम्न्ट बट शूट टु किल टु प्रोटेक्ट द ट्रक। …यस सर। अपने निर्देश देकर मै उनके इंतजार मे बैठ गया था। हरिओम थापा अपने काम मे व्यस्त हो गया था।

आधे घंटे के बाद कंटेनर ट्रक बैंक पर पहुँच गया था। ट्रक के पहुँचते ही हरिओम थापा को कंटेनर का सामान दिखाने के लिये मै उसके आफिस की ओर चल दिया। थापा अपने कुछ अधिकारियों के साथ बातचीत मे उलझा हुआ था। मुझे देखते ही उसने पूछा… कैश आ गया? …जी, आप एक बार चल कर देख लिजिये। वह मेरे साथ बाहर आ गया था। मैने कैप्टेन यादव को इशारा किया तो उसने एक-एक करके सारे ट्रंक और अटैची खोल कर दिखा कर पूछा… मैनेजर साहब, इसको कहाँ रखवाना है? इतना सारा कैश देख कर थापा तो पथरा गया था। वह हकलाते हुए बोला… कौल साहब यह क्या है? …विदेशी करेंसी है। …नहीं मेरा मतलब यह नहीं था। इसको गिनने मे तो रात हो जाएगी। इतनी काउन्टिंग मशीने हमारे पास नहीं है। …मैनेजर साहब अब यह आपकी जिम्मेदारी है। हरिओम थापा की पेशानी पर पसीना चमक रहा था। …क्या हुआ मैनेजर साहब? …कौल साहब मै इतनी सारी विदेशी करेंसी को क्या कह कर नेपाल रिजर्व बैंक को दिखा सकता हूँ। …अगर कोई परेशानी है तो क्या मै आपकी दिल्ली बात कराऊँ? अबकी बार वह जल्दी से बोला… नहीं कौल साहब। आप अपने साथियों से यह सारे ट्रंक और अटैची हमारे स्ट्रांग रुम मे रखवा दिजिये। मै सारी मशीनो को काउन्टिंग पर लगवा देता हूँ परन्तु इतनी नगद विदेशी करेंसी जमा करने के कारण इसकी जानकारी मुझे नेपाल रिजर्व बैंक को देना अनिवार्य है। …मैनेजर साहब, मै इस अकाउन्ट को नेपाल सरकार की नजर से दूर रखना चाहता हूँ। …सर, यह नामुम्किन है।

अपने स्लश फंड को सरकारों की नजरों से दूर रखना मेरी प्राथमिकता थी। कुछ सोच कर मैने पूछा… आप कब तक इसकी जानकारी को अपने पास रोक सकते है? …अड़तालीस घंटे। …थापा साहब, अगर यह सारा पैसा अड़तालीस घन्टे से पहले इस अकाउन्ट से निकल कर किसी दूसरे बैंक मे ट्रांस्फर हो जाता है तो उस हालात मे क्या आपको नेपाल रिजर्व बैंक को जानकारी देना अनिवार्य होगा? …हाँ, परन्तु अगर यह अकाउन्ट ही बन्द हो गया तो फिर यह हमारी जिम्मेदारी नहीं है। मैने जल्दी से कहा… आप गिनवाना आरंभ किजिये। मै कुछ देर मे वापिस आ रहा हूँ। मेरा इशारा मिलते ही कैप्टेन यादव ने अपने साथियों को निर्देश देना आरंभ कर दिया था। चार सैनिक सुरक्षा मे पोजीशन लेकर खड़े हो गये थे। बाकी सैनिक ट्रंक उठा कर थापा के साथ चल दिये थे। मुश्किल से बीस मिनट मे दस ट्रंक और दो अटैची स्ट्रांग मे रखवा दिये गये थे। चार काउन्टिंग मशीने और आठ बैंक के कर्मचारी तुरन्त काम पर लग गये थे। मै उन्हें वहीं छोड़ कर निकल गया था।

सभी प्रकार की करेंसी के नोट गिनवाने मे देर रात हो गयी थी। नोट गिनने मे लगे हुए कुछ बैंक के कर्मचारियों को छोड़ कर बाकी सब जा चुके थे। सारी करेंसी का विवरण और पावती रसीद लेकर मैने कहा… थापा साहब, इस अकाउन्ट का सारा पैसा कल सुबह अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक मे इस अकाउन्ट मे ट्रांसफर करके आप मेरा अकाउन्ट क्लोज कर दिजियेगा। इतना बोल कर मैने एक पर्ची उसकी ओर बढ़ा दी थी। उसने पर्ची पर एक नजर डाल मुझसे कहा… कल सुबह सारा पैसा ट्रांस्फर हो जाएगा। आप कागजी कार्यवाही पूरी कर दिजिये। सारी कागजी कार्यवाही पूरी करने के पश्चात हम वापिस गोदाम की ओर चल दिये थे। हमारे सिर का भार हटते ही सभी प्रसन्न दिख रहे थे। …सर, ऐसा ही कुछ आप हथियारों का भी प्रबन्ध करवा दिजियेगा जिससे हम आराम से कंपनी का काम कर सकें। …कैप्टेन, अब जल्दी ही उसका भी प्रबन्ध हो जाएगा। बस इतनी बात करके हमारा काफिला वहाँ से चल दिया था।

देर रात को अंजली के साथ लेटते हुए मैने कहा… आज मेरा यहाँ का सारा काम समाप्त हो गया है। कल मै वापिस जाने की सोच रहा हूँ। तभी अंजली मुझसे लिपटते हुए बोली… जनरल रंधावा ने बताया है कि अगले हफ्ते सोमवार को मानेसर मे सुबह नौ बजे रिपोर्ट करना है। यह सुन कर मै उठ कर बैठ गया और उसकी नीली आँखों झाँकते हुए कहा… क्या सच मे तुम मेरे साथ वापिस चलोगी? वह कुछ नहीं बोली तो मैने पूछा… क्या सोच रही हो? …मै मीरवायज हूँ। मै आईएसआई की सेवा से बर्खास्त अधिकारी हूँ। यह दोनो दाग अपने माथे पर लिये मै आपके साथ रह रही हूँ। क्या यह कम गुनाह है? मै अभी भी उसकी ओर देख रहा था। मैने मुस्कुरा कर कहा… एक गुनाह तुम भूल गयी कि तुम एक काफ़िर की बीवी और उसकी औलाद को जन्म देने वाली माँ भी हो। उसकी आँखें एक पल के लिये झिलमिला गयी थी। उसके बालों को सहलाते हुए मैने कहा… बानो अपने मन की बात मुझसे नहीं कह सकती तो फिर किससे कहोगी। इसमे हम दोनो बराबर के गुनाहगार है। मैने भी तो अपने लोगों से तुम्हारी सच्चायी छिपायी हुई है। मै भी तो दोषी हूँ। वह चुपचाप मेरी बात सुन रही थी अचानक वह उठ कर बैठ कर बोली… इसी बात से डरती हूँ। जब सच सब के सामने आयेगा तब आपको भी उसका परिणाम भुगतना पड़ेगा। …मेरी जान अब जो होगा देखा जाएगा लेकिन एक बात का हमेशा ख्याल रखना कि अब तुम अकेली नहीं हो। इतना बोल कर उसके सारे सवालों पर पूर्णविराम लगा कर उसको अपनी बाँहों जकड़ कर लेट गया था।

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

  

गहरी चाल-47

 

पठान सा दिखने वाला चौकीदार लोहे का गेट खोल कर बाहर निकला और हमारी कार के पास पहुँच कर ड्राईवर से बोला… क्या काम है? मोनिका तुरन्त बोली… अनवर साहब से मिलना है। उन्हें बता दिजिये कि सेठी साहब की वाईफ मिलने के लिये आयी है। पठान वापिस चला गया था। …कौन है यह अनवर? …बिल्डर है। इसका शराब का भी कारोबार है। दस मिनट के बाद उसी पठान ने लोहे का गेट खोल कर अन्दर प्रवेश करने का इशारा किया और हमारी कार उस फार्म मे प्रवेश कर गयी थी। बाहर से तो पता नहीं चल रहा था परन्तु अन्दर प्रवेश करते ही मुझे अंसार रजा के घर जैसा माहौल देखने को मिला था। हथियारों से लैस युवकों की फौज फार्म मे चारों ओर फैली हुई थी। बड़ी सी हवेली के सामने लान मे लोगों की बैठक लगी हुई थी। मोनिका और मै कार से उतर कर उस दिशा मे चल दिये। सोफे पर अनवर-उल-हक बैठा हुआ लोगों से बातचीत मे उलझा हुआ था। मोनिका पर नजर पड़ते ही उसने इशारे से अपने पास बुलाते हुए जोर से बोला… मोनिका, आज कैसे आना हुआ? मोनिका उसके पास सोफे पर बैठते हुए बोली… अनवर साहब, आपकी रकम को वापिस करने मे कुछ समय लग जाएगा। पुलिस ने सारा पैसा जब्त कर लिया है। दीपक उस पैसे को निकलवाने मे लगा हुआ है। क्या आप इसमे हमारी कोई मदद कर सकते है? अनवर मुस्कुरा कर बोला… कौनसा थाना पड़ता है? …आयानगर। कुछ सोच कर उसने पास खड़े हुए एक युवक से कहा… भाटी को फोन लगाना। वह युवक मोबाईल पर नम्बर मिलाने मे जुट गया और जैसे ही दूसरी ओर से आवाज आयी तो वह तुरन्त बोला… जनाब, अनवर साहब बात करेंगें। इतना बोल कर उसने फोन अनवर की ओर बढ़ा दिया था।

…भाटी साहब, अनवर बोल रहा हूँ। कल आयानगर मे कुछ जब्ती हुई है। वह मेरा माल है। जरा पता करके बताईये कि क्या चक्कर है। कुछ देर बात करने के बाद अनवर ने फोन वापिस करते हुए मोनिका से कहा… सरकारी अफसर की हत्या का मामला है। पैसा इतनी जल्दी नहीं निकल सकता। वह कोशिश करेगा कि अगर कागजी कार्यवाही मे जब्ती का जिक्र नहीं हुआ तो आधे पैसे मिल जाएँगें। मोनिका ने जल्दी से कहा… आधे पैसे मिल जाएँगें तो बाकी आधे का मै अगले हफ्ते तक इंतजाम करने की कोशिश करती हूँ। अनवर ने बड़ी बेशर्मी से सबके सामने मोनिका की जाँघ को सहलाते हुए कहा… वह हिसाब तो हो जाएगा परन्तु इस काम की फीस तो मुझे आपसे वसूल करनी है। बताईये कब वसूली के लिये आ जाऊँ। मैने नोट किया कि सभी बैठे हुए लोग व उसके आस-पास खड़े हुए युवक मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। मोनिका अपनी जाँघ पर उसके बढ़ते हुए हाथ को जल्दी से पकड़ कर बोली… मुझे कुछ समय दिजिये। अनवर ने अभी तक मुझे अनदेखा किया हुआ था। वह मुस्कुरा कर बोला… आज आप अपने बाडीगार्ड को साथ लायी है? मेरी ओर एक बार देख कर मोनिका जल्दी से बोली… जी। अच्छा मै चलती हूँ। अनवर ने मेरी ओर देख कर बोला… मियाँ हमारे माल की देखभाल ध्यान से करना। मुझे कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिये। मैने कुछ नहीं कहा तो वह मोनिका से बोला… आप कहे तो अपने कुछ लोग आपकी हिफाजत मे लगा देता हूँ। तभी एक आवाज मे कान मे पड़ी… समीर। मैने चौंक कर आवाज की दिशा मे देखा तो एक पल के लिये मेरी धड़कन रुक गयी थी।

चाँदनी कुछ नौकरों के साथ लान मे प्रवेश कर रही थी। नौकर बैठे हुए लोगों को चाय देने मे जुट गये थे और वह मेरे पास आकर अनवर की ओर देखते हुए बोली… आपने इन्हें बैठने के लिये नहीं कहा। अनवर भी चौंक गया था। वह मेरी ओर देख कर चांदनी से बोला… यह कौन है? चांदनी ने जल्दी से कहा… इनके साथ हमारे पारिवारिक संबन्ध है। तभी शाईस्ता और उसके साथ बच्चों की फौज लान मे आ गयी थी। मुझे देखते ही शाईस्ता ने तपाक से वही सवाल दोहरा दिया… समीर, तुम यहाँ कैसे। तब तक रज़िया मेरे से लिपट कर बोली… अंकल, क्या मेनका भी आयी है? एकाएक मै अपने आपको एक अजीब से माहौल मे फँसा हुआ महसूस करने लगा। अनवर ही नहीं अपितु वहाँ पर मौजूद सारे लोग हैरतभरी निगाहों से मुझे देख रहे थे। मै अपनी झेंप मिटाने के लिये उन्हें अनदेखा करके रज़िया को गोद मे उठा कर बोला… बिटिया, मेनका नहीं आयी लेकिन वह तुम्हें बहुत याद करती है। शाईस्ता बोली… समीर, अन्दर चलो। अम्मी भी आयी है। मैने जल्दी से कहा… शाईस्ता, मै यहाँ अपनी एक मित्र के साथ आया हूँ। मुझे उसके साथ वापिस जाना है। मोनिका तब तक मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी। चांदनी मोनिका को देखते ही बोली… बाजी, इन्हें मै जानती हूँ। यह न्युज नेटवर्क की मालकिन मिसेज सेठी है। दोनो से अभिवादन करके मोनिका बोली… समीर, मुझे जाना है। दीपक को भी खबर करनी है। …मै भी चल रहा हूँ। इतना बोल कर मैने चांदनी से कहा… मै कुछ दिन अब यहीं रुक रहा हूँ। जल्दी ही फोन पर बात करके तुम्हारे घर आऊँगा। फिलहाल मुझे इजाजत दो। इतना बोल कर मै मोनिका के साथ चल दिया था।

मै अपने आफिस मे बैठ कर चन्द्रमोहन की हत्या से संबन्धित सभी जानकारी इकठ्ठी कर रहा था। हत्या की जानकारी सभी अखबारों ने कवर की थी परन्तु एक करोड़ रुपये की नगदी मिलने की जानकारी किसी भी अखबार मे नहीं थी। सारी जानकारी लेकर मै जनरल रंधावा के पास चला गया था। …पुत्तर, सुबह से कहाँ था? …सर, अजीत सर के पास चलिये। एक जानकारी देनी है। …अजीत आज आफिस मे नहीं है। तू बता क्या बात है। मैने कल रात से अब तक की सारी बात की जानकारी देने के पश्चात कहा… उस कार मे एक करोड़ रुपये दीपक सेठी के थे। पुलिस इस बरामदगी को छिपा रही है या फिर उस पैसे का हिस्सा-बाँट तय हो गया है। सर, इस बरामदगी की जाँच की आँच दीपक सेठी के घर तक पहुँच रही है। उसका नेटवर्क समाप्त करने का यह सुनहरा अवसर है। जनरल रंधावा कुछ पल सोचने के पश्चात बोले… पुत्तर, बड़े लोगों का मामला है। अजीत और वीके से बात करनी पड़ेगी। …सर, वाणिज्य सचिव निखिल वागले भी उस पार्टी मे आया हुआ था। कुछ देर इसी बारे मे चर्चा करके मैने पूछा… सर, ब्रिगेडियर चीमा की कोई जानकारी मिली? जनरल रंधावा ने अपना सिर हिला कर मना करते हुए कहा… अभी तक एमआई से यही जानकारी मिली है कि सुरिंदर अभी भी हमारी सीमा मे ही है। कुछ देर बात करने के बाद मै अपने आफिस मे वापिस आ गया था।

शाम हो गयी थी। मेरे फोन की घंटी बजी…हैलो। …समीर, मै अभी भी गुड़गाँवा मे हूँ। क्या तुम मुझे लेने यहाँ आओगे? …मै वहीं आ रहा हूँ। डिनर करके वापिस यही आ जाएँगें। …ठीक है। मै तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ। इतनी बात करके नीलोफर ने फोन काट दिया था। मैने तय कर लिया था कि समाज मे पलने वाले कुछ दीमकों का इलाज के लिये मुझे नीलोफर का इस्तेमाल करना पड़ेगा। मैने अनवर-उल-हक के बारे मे आईबी की साईट से कुछ जानकारी निकाली थी परन्तु पढ़ नहीं सका था। वह सारे कागज एक फाईल मे डाल कर मै आफिस से निकला और आठ बजे तक नीलोफर के फ्लैट मे पहुँच गया था। वह चलने के लिये तैयार बैठी थी। …समीर उस फ्लैट के बजाय यहाँ क्यों नहीं रुक जाते? …मेरा आफिस वहाँ से नजदीक है। छोटे से नोटिस पर आफिस पहुँचना होता है उसके लिये वह जगह उप्युक्त है। कुछ पल सोचने के बाद वह बोली… सच बोलो कि मुझसे क्या काम है? …दीपक सेठी को बर्बाद करने के साथ उसके सारे नेटवर्क को तबाह करना है। उसके लिये मुझे तुम्हारी जरुरत है। इतनी बात करके मैने उसे चन्द्रमोहन, सेठी परिवार और अनवर की सारी कहानी सुना कर कहा… अब तुम बताओ कि क्या तुम मेरे साथ यह काम करोगी? वह मुस्कुरा कर बोली… जब अपनी जान तुम्हारे नाम कर दी है तो यह पूछना ही बेमानी है। बस इतनी बात करके हम वहाँ से चल दिये थे।

रात का खाना हमने रास्ते मे खाया और देर रात को अपने रक्षा अकादमी के फ्लैट मे आ गये थे। अगली सुबह से नीलोफर अपने काम मे जुट गयी थी। मै तिगड़ी के सामने बैठा हुआ बी चन्द्रमोहन की कहानी सुना रहा था। कुछ सोच कर अजीत सर बोले… समीर, चन्द्रमोहन के जरिये दीपक सेठी के नेटवर्क पर प्रहार किया जा सकता है परन्तु उसमे एक अड़चन है। हम तीनो का एक मत है कि इस केस को एनआईसी के हवाले कर दिया जाये लेकिन एनआईसी सिर्फ आतंकवाद से जुड़े हुए मामलों को लेती है। …सर, आप ही बताईये कि क्या करना चाहिये? एकाएक वीके ने कहा… मेजर यही तो तुम्हारी परीक्षा है। अब कैसे इस हत्या को तुम आतंकवाद से जोड़ कर इसमे एनआईसी को लाओगे? जनरल रंधावा ने वीके की बात काटते हुए कहा… यार, यह इन्वेस्टीगेशन नहीं कर रहा है। इसे अंधेरे मे न रख कर हमे इसका मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। पुत्तर, दीपक सेठी को अनवर और अंसार रजा के नेटवर्क से जोड़ने की कोशिश करोगे तो आतंकवाद का कनेक्शन जरुर मिल जाएगा। मेरे लिये इतनी जानकारी ही काफी थी। मैने मुस्कुरा कर कहा… सर, एक हफ्ते मे वह कनेक्शन भी निकल जाएगा। इतनी बात करके उनसे इजाजत लेकर मै अपने आफिस मे आ गया था।

आफिस पहुँच कर मैने सबसे पहले शाईस्ता का नम्बर मिलाया तो उसने तुरन्त काल उठा कर कहा… हैलो। समीर, तुम्हारे और आफशाँ के क्या हाल चाल है? …सब ठीक है। तुम कैसी हो? …मै अपने पाँव जमाने की कोशिश कर रही हूँ। तुम कब मिल सकते हो? …जब तुम कहो लेकिन तुम्हारे अब्बू मुझे अब शायद बर्दाश्त नहीं कर सकेंगें। …मै भी तुमसे कहीं और मिलना चाहती हूँ। बस चांदनी को मत बताना। …शाईस्ता, तुम बताओ कब और कहाँ? …आज शाम सात बजे होटल सोफीटल सुर्या के काफी शाप मे मिलते है। …ठीक है। बस इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था। मै अनवर उल-हक की फाईल खोल कर बैठ गया। उसका और अंसार रजा का कोई सीधा संबन्ध नहीं मिल रहा था। काफी देर मगजपच्ची करने के बाद अपनी कलाई की घड़ी पर नजर डाली तो शाम के छह बज गये थे। मेज पर पड़े हुए सारे कागज समेट कर मै शाइस्ता से मिलने के लिये निकल गया था।

होटल सुर्या के रिसेप्शन पर शाईस्ता मेरा इंतजार करती हुई मिली थी। मुझे होटल मे प्रवेश करते देख कर वह मेरे पास आकर बोली… मेरे साथ चलो। मै उसके साथ चलते हुए बोला… हम कहाँ जा रहे है? वह कुछ नहीं बोली और थोड़ी देर के बाद होटल के कमरे मे प्रवेश करके दरवाजा बन्द होते ही वह मुड़ कर मुझ पर झपटी और मेरे गले मे बाँहें डाल कर लटक गयी। मैने उसे संभालते हुए पूछा… क्या हुआ? मै कुछ और बोलता तब तक उसके होंठों ने मेरे मुख पर सील लगा दी थी। एक बार फिर से एनएसजी कैम्पस मे हुए एकाकार को हम दोहराने मे जुट गये थे। तूफान गुजर जाने के बाद बिस्तर पर शाईस्ता को अपनी बाँहों मे बाँधे उसके स्तनाग्र के साथ खेलते हुए कहा… अब यह जलने के निशान मिटने लगे है। वह मचल कर बोली… समीर, जिस्मानी निशान भले ही मिटने लगे है परन्तु वह दर्द का मंजर जहन मे हमेशा के लिये बस गया है। …अनवर साहब के साथ तुम्हारे परिवार का क्या रिश्ता है? …कुछ नहीं। अनवर का मेरे सुसराल पक्ष अंसारियों के साथ काफी गहरा कारोबारी रिश्ता रहा है। उसकी ओर से मेरे लिये निकाह का पैगाम आया है। …तो क्या तुम अनवर साहब से निकाह करने के लिये राजी हो गयी? …हर्गिज नहीं। मै उसे तब से जानती हूँ जब वह अंसारियों के लिये काम करता था। बड़े अंसारी की रहनुमाई मे उसने अपना शराब और रियल एस्टेट का कारोबार जमाया है। …तुम्हारे अब्बू का इसके बारे मे क्या विचार है? …अम्मी और अब्बू दोनो ही इस रिश्ते के पक्ष मे है परन्तु मैने मना कर दिया। अगली सुबह जब हम होटल से बाहर निकले तब तक दोनो के कस बल ढीले हो गये थे परन्तु शाईस्ता के जरिये मेरे हाथ अपनी योजना की कड़ी मिल गयी थी।  

अगले चार दिन नीलोफर और मै अपने-अपने काम मे व्यस्त हो गये थे। अंसार रजा की फाईल से मिले कुछ नाम और अनवर के कारोबार का पुराना रिकार्ड छानने के बाद मुझे मुश्ताक अंसारी के साथ उसके गहरे संबन्धों के पुख्ता सुबूत मिल गये थे। अंसारी परिवार तो पहले से ही आतंकवादी गतिविधियों मे लिप्त था। दीपक सेठी के कारोबार और अनवर के साथ संबन्धों का खुलासा नीलोफर ने कर दिया था। एक रात मोनिका के साथ गुजार कर मुझे उस कंपनी के नाम का पता चल गया जिसकी रक्षा मंत्रालय मे दीपक सेठी दलाली कर रहा था। धीरे-धीरे सभी कड़ियाँ जुड़ती जा रही थी। दूसरी ओर नीलोफर ने दीपक सेठी द्वारा उसी कंपनी के हवाले से लश्कर को अवैध हथियार बेचने की छ्द्म साजिश रच डाली थी। एक ओर पैसों की तंगी मे फंसी मोनिका पर देनदारी के लिये अनवर लगातार दबाव डाल रहा था। इस निरन्तर दबाव के कारण मोनिका के कहने पर दीपक सेठी आखिरकार लश्कर के छ्द्म खरीदार से सौदा करने के लिये मजबूर कर दिया गया था। हमने उनके बीच हुई अलग-अलग स्थानों पर हुई मीटिंग्स की तस्वीरें और बातचीत की रिकार्डिंग का डोजियर अगले तीन हफ्तों मे तैयार कर लिया था। अब बस आखिरी कड़ी जोड़नी रह गयी थी कि चन्द्रमोहन की कार मे मिले एक करोड़ रुपये दीपक सेठी के थे जो उसे अनवर से मिले थे। हरियाणा पुलिस के डीसीपी तेज प्रताप सिंह भाटी पर जब दबाव डाला गया तो वह आखिरी कड़ी भी जुड़ गयी थी। तीन हफ्ते के हमारे अथक प्रयास के बाद एक दिन एनआईसी ने सेठी युगल को उठा लिया था।

उसी के साथ एक देश विरोधी नेटवर्क कानून के शिकंजे मे बुरी तरह फँस गया था। दीपक सेठी से पूछताछ मे अन्य लोगों के नाम एक-एक करके सामने आते जा रहे थे। कुछ हवाला कारोबार मे लिप्त थे और कुछ फर्जी कंपनी बना कर काली कमाई को सफेद कर रहे थे। इसी प्रकार उसके कुछ करीबी वामपंथी पत्रकारों के भी नाम भी सामने आ गये थे। वह पैसे लेकर खबर बनाने व रक्षा खरीदी पर झूठी कहानियाँ तैयार करते थे। कुछ ही दिनों मे अलग-अलग सुरक्षा एजेन्सी हरेक दोषी के खिलाफ केस दर्ज करके कड़ी कार्यवाही करने मे जुट गयी थी। हवाला रैकेट के कारण एनआईसी ने दीपक सेठी के न्युज नेटवर्क का अकाउन्ट भी सील करवा दिया था। वीके के कहने से वित्त मंत्रालय के दबाव के कारण बैंको ने अपने कर्जे की वापिसी के लिये कोर्ट मे कुर्की की अर्जी लगा दी थी। जो राजनीतिक पार्टी दीपक सेठी को अभी तक संरक्षण देती थी अब वह भी विपक्ष मे होने के कारण उसकी कोई खास मदद नहीं कर सकी थी। इस काम मे फँसने के कारण इस बीच मै एक बार भी काठमांडू नहीं जा सका था। अंजली से हर दूसरे दिन फोन पर बात हो जाती थी।

मै तिगड़ी के सामने बैठा हुआ अपनी रिपोर्ट दे रहा था। अजीत सर ने मेरी बात बीच मे काट कर कहा… समीर, हम तुम्हें सीमा पार भेजने की सोच रहे है। मैने चौंक कर उनकी ओर देखा तो वह काफी संजीदा दिख रहे थे। तभी वीके ने कहा… मेजर, गोपीनाथ हमसे ब्रिगेडियर चीमा का रिप्लेसमेन्ट मांग रहा है। हम तुम्हारी राय जानना चाहते है। यह सवाल अचानक मेरे सामने आया था तो मुझे समझ मे नहीं आया कि क्या जवाब दूँ। गोपीनाथ ने उस दिन हमे जो कुछ बताया था उसके अनुसार पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तंजीमो के बीच समन्वय बना कर अमरीका को अफगानिस्तान से सुरक्षित बाहर निकलने मे मदद करनी थी। जब मैने कोई जवाब नहीं दिया तो अजीत सर ने कहा… समीर, हम नहीं चाहते कि तुम ब्रिगेडियर चीमा के रिप्लेसमेन्ट बनो परन्तु हम तुम्हें वहाँ स्वतंत्र रुप से काम करने के लिये भेजने के पक्ष मे है। …सर, क्या आपकी प्राथमिकता फिर से बदल गयी है? मेरे जिम्मे आपने यहाँ की दीमक साफ करने का काम सौंपा था। अजीत सर ने कहा… ऐसी बात नहीं है लेकिन तुम्हारा असली मकसद पाकिस्तान को उनकी अपनी हक डाक्ट्रीन का अनुभव कराना है। यह तुम्हारी परीक्षा की घड़ी थी। याद है तुमने अपनी रिपोर्ट मे क्या लिखा था कि कश्मीर मे उनकी “लो-इन्टेनसिटी कानफ्लिक्ट” के जवाब मे हमे अपनी सैन्य कार्यवाही उनके घर मे घुस कर करनी पड़ेगी। जब उनकी सेना को नुकसान पहुँचेगा तब उन्हें अलगाववाद और जिहाद की असली कीमत का पता चलेगा। हम लोग कुछ दिनो से इस योजना पर काम कर रहे थे। अब इस बारे मे हम तुम्हारी राय जानना चाहते है।

अबकी बार मैने कुछ देर सोचने के पश्चात कहा… सर, इसके बारे मे मैने अपनी रिपोर्ट मे साफ लिखा था। पाकिस्तानी समाज मे काफी गहरी टूट है और हमे इन्हीं दरारों को अपने लिये इस्तेमाल करना चाहिये। अपनी सुविधा अनुसार इस्लाम के मुनाफिक ठेकेदारों का यह नारा है कि तेरा-मेरा रिश्ता क्या, ला इलाही लिलिल्लाह। अगर सच पूछे तो उसी समाज मे एक नारा अकसर फसाद के लिये लगाया जाता है- काफ़िर-काफ़िर, शिया काफ़िर।  वहाँ वह धर्म के ठेकेदार बड़ी आसानी से सारा रिश्ता भूल जाते है। इसी प्रकार अहमदिया, तबलीगी जमात, अहले हदीस, व अन्य ऐसे फिरके है जो पाकिस्तानी समाज को बाँट रहे है। एक दरार जो हाल ही मे हमारे सामने आयी है वह चरमपंथी तंजीमो की है जिसमे मुख्यता तेहरीक, तालिबान, बलोच और सिन्ध लिब्रेशन फ्रंट है। हक डाक्ट्रीन को अगर पाकिस्तान मे कार्यान्वित करना है तो हमे उन दरारों को खाई मे बदलने की जरुरत है। मै एक पल के लिये चुप हुआ तो अजीत सर ने कहा… इसके लिये जल्दी से जल्दी एक ब्लू प्रिंट तैयार करो। …जी सर। इसी के साथ हमारी मीटिंग समाप्त हो गयी थी। वहाँ से चलने से पहले वीके ने कहा… मेजर, सेठी के केस को सफलतापूर्वक समाप्त करने के लिये कांग्रेच्युलेशन्स। जनरल रंधावा ने मेरी पीठ थपथपा कर कहा… गुड माई बोय।

मै अपने आफिस मे बैठ कर उस ब्लू प्रिंट के बारे मे सोच रहा था कि तभी अंजली का फोन आया तो मैने झट से काल लेते हुए कहा… हैलो। …ब्रिगेडियर चीमा का पता लग गया है। उन्हें कुपवाड़ा मे युसुफजयी के गोदाम मे रखा हुआ है। वह किसी भी दिन उन्हें सीमा पार भेज सकते है। जो भी करना है वह जल्दी करो। यह सुनते ही मैने कहा… मै तुमसे बाद मे बात करुँगा। फोन काट कर मै अजीत सर के आफिस की ओर भागा और जैसे ही उनका दरवाजा खोला तो अजीत सर और वीके किसी बहस मे उलझे हुए थे। मुझे देखते ही अजीत सर बोले… क्या हुआ समीर? …सर, ब्रिगेडियर चीमा को जैश ने कुपवाड़ा मे युसुफजयी के गोदाम मे रखा हुआ है। वह उन्हें सीमा पार भेजने की फिराक मे है। यह सुनते ही दोनो खड़े हो गये थे। वीके तुरन्त बोले… तुम और जनरल रंधावा तुरन्त एयरपोर्ट पहुचों। मै तुम्हारे जाने का इंतजाम कर रहा हूँ। मै वापिस मुड़ा और जनरल रंधावा के आफिस की ओर निकल गया। आनन फानन मे दिल्ली और श्रीनगर मे फोन बजने आरंभ हो गये थे। जब हम श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरे तब तक अंधेरा हो चुका था। एक स्पेशल फोर्सेज की युनिट हमारा एयरपोर्ट पर इंतजार कर रही थी। श्रीनगर एयरपोर्ट पर एक हेलीकाप्टर तैयार खड़ा हुआ था। स्पेशल फोर्सेज की टीम के साथ हम दोनो अगले कुछ मिनट मे कुपवाड़ा के लिये निकल गये थे।

कुपवाड़ा मे एमआई के आफिस को हमने आप्रेशन रुम मे परिवर्तित कर दिया था। कुपवाड़ा जिले का नक्शा मेज पर पड़ा हुआ था। उसी नक्शे के उपर युसुफजयी के कारोबार की जानकारी की फाईल रखी हुई थी। कुपवाड़ा जिले मे उसके एक नहीं आठ गोदाम अलग-अलग जगहों पर फैले हुए थे। फल की मंडी का गोदाम तो मेरा देखा हुआ था परन्तु अन्य गोदामों की जानकारी हमारे पास अधूरी थी। …मेजर, हमारी जाँच कैसे आगे बढ़ेगी? …सर, युसुफजयी के सभी गोदामों पर एक साथ तो छापा नहीं मारा जा सकेगा तो बेहतर होगा कि आज रात को हम पहले अपना होमवर्क कर ले। कैप्टेन हमारी टीम मे कोई हताहत नहीं होना चाहिये तो उसके लिये क्या जानकारी चाहिये। स्पेशल फोर्सेज का कैप्टेन रावत बोला… सर, हमे उनके गोदाम और फायर-पावर और जिहादियों की संख्या के बारे मे पता होना चाहिये। …कैप्टेन, तो आज रात का पहला होमवर्क वह गोदाम, दुश्मन की संख्या बल और फायर पावर की जानकारी पता चलनी चाहिये। मै एक आदमी से परिचित हूँ जो युसुफजयी के कारोबार को संभालता है। आज रात को ही उसे घर से उठाने की तैयारी करो परन्तु ख्याल रहे कि यह खबर युसुफजयी और उसके आदमियों तक नहीं पहुँचनी चाहिये। इतनी बात करके मैने युसुफजयी के कारोबार को संभालने वाला इरशाद बाबू का नाम और पता कैप्टेन भाटी के सामने रख दिया था।

इरशाद को मै पहले से जानता था। मुझे पता था कि वह युसुफजयी के कुछ खास आदमियों मे से एक है। …कैप्टेन रावत, यह आदमी आपके लिये पहली कड़ी का काम करेगा। इसके जरिये कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए अगर हमे उस गोदाम का सुबह तक पता लग गया तो आप्रेशन क्लीन आउट हमारे लिये आसान हो जाएगा। मैने अपनी घड़ी पर नजर डाली तो रात के नौ बज रहे थे। ग्रीन सिगनल मिलते ही कैप्टेन रावत अपनी टीम को लेकर निकल गया। एक आदमी को हमने युसुफजयी के मकान की निगरानी पर लगा दिया था। ग्यारह बजे तक इरशाद हमारे सामने बैठा हुआ था। वह सहमा हुआ जमीन पर बैठ कर अपने खुदा को याद कर रहा था। एमआई के मेजर गिल ने पूछताछ शुरु करी… युसुफजयी कहाँ है? वह हकलाते हुए बोला… जनाब, मुझे पता नहीं। वह अपने घर पर होंगें। कैप्टेन रावत सीधे मुद्दे पर आकर बोला… हमे पता चला है कि हमारा एक फौजी अफसर जैश ने अगुवा करके युसुफजयी के किसी गोदाम मे रखा हुआ है। उसे कौनसे गोदाम मे रखा है? यह सवाल सुनते ही इरशाद आतंकित होकर गिड़गिड़ा कर बोला… जनाब, कसम खुदा की मुझे इसके बार मे कोई जानकारी नहीं है। …तो किसके पास इसकी जानकारी होगी? इस बार उसकी जुबान को जैसे लकवा मार गया था। दो सैनिकों ने उसकी कुछ देर हड्डियो।को नर्म किया और एक बार फिर से वही प्रश्न दोहराया गया तो इस बार वह कराहते हुए बोला… जनाब, तंगधार पर एक हमारा गोदाम है। सुनने मे अकसर आता है कि ज्यादातर घुसपैठियों को वहाँ पर रखा जाता है। कैप्टेन रावत ने तुरन्त नक्शा उसके सामने रख कर पूछा… तंगधार मे वह गोदाम कहाँ पर है? वह कुछ देर नक्शे को देखता रहा और फिर अपनी उँगली से रेखांकित करके बोला… जनाब इस मस्जिद के पीछे एक गोदाम है। कैप्टेन रावत ने मेरी दिशा मे देखा तो मैने पूछा… उस गोदाम का काम कौन देखता है? …आफताब। …इस वक्त वह कहाँ मिलेगा? अबकी बार इरशाद जल्दी से बोला… हलीम चौक पर उसका घर है। एक बार फिर से एक टीम आफताब को उठाने के लिये निकल गयी थी।

सुबह छह बजे तक आठों गोदाम के चार केयरटेकर हमारे आफिस मे अधमरी हालत मे पड़े हुए थे। अभी तक ब्रिगेडियर चीमा की कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पायी थी। हमने आठों गोदाम पर निगरानी लगा दी थी। स्पेशल फोर्सेज की टीम फुल एलर्ट पर बैठी हुई थी। उनसे पूछताछ का सिलसिला बदस्तूर रात से ही चल रहा था। जनरल रंधावा दिल्ली से संपर्क साध कर बैठे हुए थे। आठों गोदामो को सेटेलाईट सर्वैलैंन्स पर लगा दिया था। अब तक मिली रिपोर्ट के आधार पर यही निष्कर्ष निकला था कि ब्रिगेडियर चीमा उनमे से किसी भी गोदाम पर नहीं थे। हमारे पास समय कम रह गया था। सुबह दस बजे तक उन चारों के गायब होने की खबर फैल जाने का डर था। सुबह सात बजे जनरल रंधावा ने पूछा… पुत्तर अब क्या करना चाहिये? …सर, अगर किसी गोदाम मे कोई घायल व्यक्ति होता तो डाक्टर की आवक-जावक दिखती और दवाई वगैराह की खरीद-फरोख्त के कुछ निशान जरुर मिलते। जिहादियों और गाजियों की फौज वहाँ तैनात होती परन्तु ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है। मेरा मानना है कि उनके लिये ब्रिगेडियर चीमा एक हाई वैल्यु एस्सेट है और वह उनको युँहिं मरने के लिये नहीं छोड़ सकते। इसीलिये मुझे लगता है कि वह इन आठ गोदामों मे से किसी एक मे भी नहीं है। कैप्टेन रावत ने भी मेरी बात का अनुमोदन करते हुए कहा… सर, मेरा भी यही ख्याल है।

नौ बजने मे कुछ मिनट पहले युसुफजयी के मकान पर तैनात सैनिक ने खबर दी कि एक एम्बुलैन्स आयी है। उस एम्बुलैन्स के आते ही एकाएक घर मे चहल-पहल बढ़ गयी थी। जनरल रंधावा ने युसुफजयी के मकान को सेटेलाईट सर्वैलैन्स पर लगवा दिया। पहली सेटेलाईट इमेज मिलते ही मेरे लिये सारी तस्वीर साफ हो गयी थी। मै उस इमेज को स्क्रीन पर बड़ा करके उंगली से रेखांकित करके दिखाते हुए बोला… ब्रिगेडियर चीमा का पता लग गया है। उन्हें इस आउटहाउस मे रखा हुआ है। जितने भी छोटे बिन्दु दिखायी दे रह है वह सभी उस आउटहाउस पर तैनात गाजियों की फौज है। उन स्पाट्स को गिनने के पश्चात मेजर गिल बोला… पच्चीस जिहादी बाहर पहरा दे रहे है। मै अनुमान लगा रहा हूँ कि पाँच-दस गाजी आउटहाउस के अन्दर भी तैनात होंगें। अगले एक घन्टे मे ब्रिगेडियर चीमा के वहाँ होने के पुख्ता सुबूत हमे मिल गये थे। सुबह दस बजे तक युसुफजयी के घर पर हंगामा मच चुका था। उसके चार मुख्य सहायक रातों रात गायब हो गये थे। कैप्टेन रावत के साथ बैठ कर मै आउटहाउस पर हमला करने की योजना बनाने मे जुट गया था।

हमारा आप्रेशन क्लीन आउट दोपहर दो बजे शुरु हो गया था। राष्ट्रीय राईफल्स की पच्चीस सदसीय युनिट के साथ कैप्टेन यादव की स्पेशल फोर्सेज की टीम का संचालन मेरे हाथ मे आ गया था। मैने अपनी योजना उनके सामने रखते हुए कहा… हमारा उद्देश्य ब्रिगेडियर साहब को वहाँ से सुरक्षित निकालना है और इस कोशिश मे हर रुकावट को हटाना आपकी जिम्मेदारी है। मै किसी भी एक्शन से पहले युसुफजयी को कब्जे मे लेने के पक्ष मे हूँ। एक बार वह हमारे कब्जे मे आ गया तो आपका काम आसान हो जाएगा। इतना बता कर मैने उनके सामने पूरी योजना खोल कर रख दी थी। जनरल रंधावा से ग्रीन सिगनल मिलते ही स्पेशल फोर्सेज की युनिट को अपने साथ लेकर मै इलाके के थाने पर पहुँच गया था। हमे देखते ही थाने मे हलचल मच गयी थी। थाना इंचार्ज हमे देख कर सकते मे आ गया था। मैने कहा… थानेदार साहब, मै दिल्ली से युसुफजयी से कुछ पूछताछ करने के लिये आया हूँ। हम सीधे उसके घर भी जा सकते है लेकिन हमे देखते ही इलाके मे दहशत का माहौल हो जाएगा। इसलिये मैने सोचा कि एक बार आपसे बात कर लेनी चाहिये। यह रुटीन पूछताछ है। मै सोच रहा था कि अगर मै अकेला आपके साथ उनके पास बात करने के लिये जाऊँगा तो फिर ज्यादा हंगामा नहीं होगा। इस बारे मे आपका क्या ख्याल है? कुछ ही देर के बाद इलाके के थानेदार के साथ मै पुलिस जीप मे चार सिपाहियों को लेकर युसुफजयी के घर पर पहुँच गया था। थानेदार और सिपाहियों को द्वार पर तैनात सभी लोग पहचानते थे तो इसलिये हमे उस मकान मे प्रवेश करने मे कोई परेशानी नहीं हुई थी।

पुलिस के सिपाहियों को द्वार पर छोड़ कर एक आदमी बड़ी इज्जत से हम दोनो को बैठक मे बिठा कर युसुफजयी को बुलाने के लिये चला गया था। तब तक राष्ट्रीय राईफल्स की टुकड़ी उसके मकान के चारों ओर फैल कर आसपास के इलाके को सेनेटाईज करके मोर्चा संभालने मे जुट गयी थी। कैप्टेन रावत की टीम युसुफजयी के मकान की पूर्वी दिशा की कम्पाउन्ड वाल के सिरे पर मेरे इशारे का इंतजार कर रही थी। अब एक-एक पल भारी लग रहा था। युसुफजयी के आते ही थानेदार ने खड़े होकर मुस्तैदी सैल्युट किया तो वह बोला… अरे मुस्तफा कैसे आना हुआ? युसुफजयी के पीछे-पीछे दो सेमी-आटोमेटिक हथियारों से लैस जिहादियों ने कमरे मे प्रवेश किया और उसके बैठते ही वह दोनो उसके पीछे खड़े हो गये थे। थानेदार को देख कर शायद वह थोड़े बेपरवाह हो गये थे क्योंकि उनकी गन की नाल अभी भी जमीन की ओर थी। थानेदार ने जल्दी से कहा… जनाब, मेजर साहब दिल्ली से आये है और वह आपसे कुछ पूछना चाहते है। युसुफजयी ने मेरी ओर देख कर पूछा… बोलो मेजर क्या जानना चाहते हो? …जनाब, एक तहकीकात के सिलसिले मे आना पड़ा है। युसुफजयी उखड़ कर बोला… मुद्दे की बात करो मेजर। मेर पास बेकार की बात सुनने का टाइम नहीं है। मैने जल्दी से कहा… जनाब, इस वक्त कुपवाड़ा मे सेना का सर्च आप्रेशन चल रहा है। हमारी फौज के एक ब्रिगेडियर को किसी अलगाववादी तंजीम ने अगुवा करके इसी जिले मे कहीं रखा है। आपके घर की तलाशी के उद्देश्य से थानेदार साहब को अपने साथ लेकर आया हूँ। मैने बड़े सपाट से स्वर मे अपनी बात रख दी थी। यह बोलते हुए मेरा हाथ अपनी ग्लाक की मूठ पर कस गया था। युसुफजयी ने कुछ नहीं कहा परन्तु उसके पीछे खड़ा हुआ एक जिहादी तुरन्त घुर्रा कर बोला… अबे पागल हो गया है। साले यहाँ मरने आया है। दूसरा जिहादी अपनी गन की नाल की दिशा मेरी ओर करते हुए चिल्लाया… मालिक हुक्म दो इसको अभी दोजख भेज देता हूँ। वह कुछ और बोलता उससे पहले मेरी ग्लाक-17 उसकी ओर तन गयी थी। मै घुर्राया… तुझे पुलिस और फौज की वर्दी मे फर्क नहीं दिखता। वह कुछ समझ पाता तब तक मैने उस पर दो फायर किये और वह वहीं ढेर हो गया। जब तक कोई कुछ समझ पाता तब तक मैने दो फायर और किये तो दूसरा जिहादी भी अपने हिस्से की हूरों से मिलने निकल गया था। कुछ ही पलों मे युसुफजयी का सुरक्षा कवच ध्वस्त हो गया था।

मै फुर्ती से उठा और युसुफजयी के उपर छलांग लगा कर उसके पास चला गया था। मैने एक सोची समझी रिस्क ली थी। कमरे मे उपस्थित कोई भी व्यक्ति उम्मीद नहीं कर सकता था कि मै बिना चेतावनी के उन पर फायर कर सकता हूँ। जिहादी भले ही सबके सामने मारने की धमकी दे सकता है परन्तु स्पेशल फोर्सेज पर सामने से फायर करने मे हिचकिचाते जरुर है। बस इसी मानसिकता का लाभ मैने लिया था। थानेदार को तो जैसे लकवा मार गया था। तब तक फायरिंग की आवाज सुनकर कमरे के बाहर खड़े हुए सिपाहियों के साथ कुछ जिहादियों ने कमरे मे प्रवेश किया लेकिन तब तक युसुफजयी मेरे निशाने पर आ गया था। उसके सिर पर ग्लाक की नाल टिका कर मै घुर्राया… विधायक जी अगर आप या आपका कोई आदमी जरा सा भी अपनी जगह से भी हिला तो आपकी कहानी समाप्त हो जाएगी।  फायर की आवाज ने कम्पाउन्ड की दीवार के साथ खड़ी हुई स्पेशल फोर्सेज को आगे बढ़ने का इशारा कर दिया था। अभी पाँच मिनट भी नहीं बीते थे कि बाहर एक धमाका हुआ और फिर सिरीज मे धमाके होने लगे थे। आटोमेटिक गन की फायरिंग की आवाज के साथ इंसानी चीख पुकार की आवाज भी अब कमरे मे सुनाई देने लगी थी। युसुफजयी जोर से मुझ पर चिल्लाया… मेजर बाहर क्या हो रहा है? मैने बड़े आराम से कहा… राष्ट्रीय राईफल्स और स्पेशल फोर्सेज का संयुक्त क्लीन आउट आप्रेशन चल रहा है। बस ब्रिगेडियर साहब की सुरक्षित बरामदगी के बाद ही अब यह आप्रेशन रुकेगा। मै कुछ और बोलता कि तभी धड़धड़ाते हुए चार राष्ट्रीय राईफ्ल्स के सैनिकों ने कमरे मे प्रवेश किया और सभी को निशाने पर लेकर मुझसे बोले… सर, मुख्य गेट और आउटहाउस का रास्ता क्लीयर कर दिया है। जव वह रिपोर्ट कर रहा था तब तक दूसरा सैनिक जिहादियों के हथियार इकठ्ठे करने मे जुट गया था।

आधे घन्टे के बाद कैप्टेन रावत ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे देखते ही बोला… सर, ब्रिगेडियर साहब मिल गये है। सारी जगह सेनेटाईज कर दी गयी है। मैने थानेदार से कहा… इन सभी को हिरासत मे ले लो। इतना बोल कर मैने युसुफजयी को कालर से पकड़ कर उठाते हुए कहा… विधायक जी चलिये। उसे लगभग धकेलते हुए आउट हाउस की दिशा मे चल दिया। घर के पीछे बड़े से मैदान पर राष्ट्रीय राईफल्स के सैनिकों ने मोर्चाबन्दी कर रखी थी। कुछ सैनिक घायलों को इकठ्ठा करने मे लगे हुए थे और कुछ शवों को वहाँ से हटा रहे थे। आउट हाउस के द्वार पर स्पेशल फोर्सेज तैनात थी। मेरे साथ चलते हुए कैप्टेन रावत ने कहा…सर, ब्रिगेडियर साहब कोमा है। उन्हें तुरन्त अस्पताल भेजने का इंतजाम करना पड़ेगा। मैने फोन पर जनरल रंधावा से बात करके तुरन्त एयर एम्बुलैन्स भेजने के लिये कह कर ब्रिगेडियर चीमा को देखने चला गया। उनके चेहरे पर आक्सीजन मास्क लगा हुआ था। एक हाथ मे ड्रिप और सीने और पाँव की चोट पर ड्रेसिंग बंधी हुई थी। मैने उनकी नब्ज टटोल कर देखी तो बहुत धीरे चल रही थी। युसुफजयी मेरे साथ खड़ा हुआ था। …विधायक जी, ब्रिगेडियर साहब को अगुवा करके आपने बहुत भारी गलती कर दी है। अब आपको पुलिस के बजाय फौज से भी निपटना होगा। हमारी कार्यशैली से आप परिचित है। इतना बोल कर मै युसुफजयी को धकेलते हुए आउटहाउस से बाहर निकल आया था।

…कैप्टेन हमारे सैनिकों की क्या हालत है? …सर, आठ राष्ट्रीय राईफल्स के जवान घायल है और दो स्पेशल फोर्सिज के जवान घायल हो गये है। …कोई हताहत हुआ? …नो सर। हमने सभी को बेस असपताल मे शिफ्ट कर दिया है। एयर एम्बुलैन्स के पहुँचते ही ब्रिगेडियर चीमा को उनके हवाले करके हम सारा फैला हुआ काम समेटने मे जुट गये थे। युसुफजयी के घर पर सेना की कार्यवाही की खबर फैलते ही एसपी और डीएम भी पहुँच गये थे। रेन्ज के मुख्य अधिकारी भी पहुँचने लगे थे। शाम तक उनके सवाल-जवाब और कागजी कार्यवाही पूरी हो पाई थी। काफी देर तक इसी बात पर बहस होती रही कि युसुफजयी किसकी हिरासत मे रहेगा। जनरल रंधावा ने सारे पुलिस महकमे व सरकार को हिला कर रख दिया था। युसुफजयी पर फौज के ब्रिगेडियर को अगुवा करने का आरोप था। आखिरकार दिल्ली से फोन आने के पश्चात फौज और पुलिस के बीच का गतिरोध समाप्त हुआ तो युसुफजयी को हमारे हवाले करके राष्ट्रीय राईफल्स की युनिट वापिस लौट गयी थी। मै फोन पर जनरल रंधावा को रिपोर्ट देते हुए अपनी गाड़ी की ओर बढ़ रहा था कि तभी हमारी गाड़ी की आढ़ मे एक भयंकर विस्फोट हुआ । मेरे पीछे युसुफजयी को लेकर कैप्टेन रावत अपनी टीम के साथ चल रहा था। तभी किसी ने मुझे धक्का दिया और कोई मुझसे पीछे से पूरी ताकत से टकराया। मेरे और और एक पल के लिये मुझे लगा कि मेरे पाँवों के नीचे से जमीन निकल गयी है। मै हवा मे तैरता हुआ किसी भारी बोझ को उठाये धरती पर मुँह के बल गिरा। जमीन पर गिरते हुए मेरी आँखों के सामने आखिरी दृश्य आग के दावानल से बच कर निकलते हुए बुर्कापोश महिला का था। उसके बाद मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया था। 

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

 

 

गहरी चाल-46

 

अपने आफिस से गुड़गाँवा की ओर निकलने मे मुझे देर हो गयी थी। नीलोफर मेरा इंतजार अपने फ्लैट मे कर रही थी। मुझे देखते ही वह झपट कर मेरी ओर आयी और मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोली… तुम ठीक हो? अपने आपको उससे अलग करते हुए मैने पूछा… तुम्हारा दुश्मन तो समाप्त हो गया तो यहाँ पर किस लिये छिप कर बैठी हो? मेरी बात को अनसुना करके वह रुआँसी आवाज मे बोली… उस दिन तुम्हें जमीन पर गिरते देख कर मेरी जान ही निकल गयी थी। मैने आफशाँ को पकड़ने की बहुत कोशिश की परन्तु वह हाथ छुड़ा कर तुम्हारे पीछे चली गयी। मैने उसको अपने साथ सोफे पर बिठाते हुए धीरे से कहा… नीलोफर, जो गया उसको बदला तो नहीं जा सकता लेकिन अगर तुम पहले ही मुझे उसके बारे मे बता देती तो उसका ऐसा अन्त नहीं होता। अब तुम बताओ कि मुझे किस लिये बुलाया है। …समीर, लश्कर से खबर मिली है कि पीरजादा कुछ बड़ा करने की साजिश रच रहा है। मुझे तुम्हारी और हया की चिन्ता सता रही है। मैने घुर्रा कर कहा… यह समझ लो कि हया मर चुकी है। मेरे साथ जो रह रही है वह अंजली है। अगर अगली बार हया का नाम तुम्हारी जुबान पर आया तो वह तुम्हारा आखिरी दिन होगा। वह कुछ नहीं बोली तो मैने पूछा… पीरजादा क्या करने की सोच रहा है? …पता नहीं। कुछ सोच कर मैने कहा… आज ही खबर मिली है कि पीरजादा मीरवायज ने कश्मीर मे जैश के द्वारा ब्रिगेडियर चीमा का अपहरण करवाया है। क्या अपने नेटवर्क से उनके बारे मे पता करवा सकती हो? वह कुछ सोच कर बोली… कोशिश कर सकती हूँ। …अगर तुम ब्रिगेडियर चीमा का पता बता दोगी तो तुम्हारे एक ट्रक माल का पैसा अगले ही दिन तुम्हारे अकाउन्ट मे होगा। उसने मेरी ओर शक भरी नजरों से देखा तो मैने जल्दी से कहा… तुम्हारी कसम। अगले ही दिन सारा पैसा तुम्हारे अकाउन्ट मे होगा।

मेरे सामने उसने किसी को फोन लगा कर बात करने पश्चात कहा… पता लगाओ कि उन्होने ब्रिगेडियर चीमा को कहाँ रखा है? बस इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था। …किसको फोन किया? …क्या तुम अपने मुखबिर के बारे मे मुझे कभी बताते हो? एक बार फिर से कमरे मे चुप्पी छा गयी थी। …नीलोफर, यह सच है कि मैने तुम्हें दो बार धोखा दिया है। तुम्हें शिकायत करने का उतना ही हक है जितना मुझे तुमसे शिकायत करने का हक है। …समीर, मेरा खुदा गवाह है कि मैने तुम्हें धोखे तब दिये थे जब तक हमारे बीच मे वह पाक करार नहीं हुआ था। उसके बाद मैने सिर्फ सच्चायी छिपाने का गुनाह किया था। अंजली की असलियत से मै भी वाकिफ नहीं थी। हया मेरी हैंडलर थी तो मै उसे जानती थी परन्तु वह कब अंजली बन गयी इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं थी। तभी मेरी नजर अपनी घड़ी पर पड़ी तो मैने जल्दी से कहा… काफी देर हो गयी है मुझे चलना चाहिये। वह जल्दी से बोली… तुम आज यहीं रुक जाओ। वैसे भी अकेली रहते हुए बोर हो गयी हूँ। उसकी मंशा को भाँपते हुए मै अचकचा कर उठा…नहीं, मै अपने घर वापिस जा रहा हूँ। इतना बोल कर मै चल दिया था। देर रात को जब आफशाँ के मकान मे दाखिल हुआ तब तक एक बज गया था।

सुबह अपने समय से उठा और हमेशा की तरह चाय का प्याला लिये लान मे आकर बैठ गया। आज मुझे बहुत से काम निपटाने थे। आफशाँ की असामयिक मौत के कारण मेरा सारा घरबार चौपट हो गया था। कंपनी का दिया मकान खाली करना था। गेट पर तैनात चौकीदार, घर मे काम करने वाले लोगों का हिसाब करना बाकी था। उसके आफिस व बैंक के काम पूरे करने थे। अगले चार दिन मेरे इस काम मे निकल गये थे। मैने कैप्टेन यादव से बात करके थापा को पहले दिन ही वापिस बुलवा लिया था। उसके आने से मुझे घर और आफिस के सारे काम समेटने मे काफी मदद मिल गयी थी। आधा दिन अपने दफ्तर मे बिता कर बाकी समय आफशाँ की गृहस्थी को समेटने मे लग गया था। अभी तक मैने आसिया और अदा को मकबूल बट और आफशाँ की मौत की जानकारी नहीं दी थी। मन ही मन रोज सोचता लेकिन हिम्मत ही नहीं हो रही थी। रोजाना नीलोफर से ब्रिगेडियर चीमा के बारे मे पूछ लिया करता था। हर बार एक ही जवाब मिलता कि वह पता कर रहे है। सारी गृहस्थी समेटने के पश्चात मै अकादमी के फ्लैट मे वापिस लौट आया था। एक बार फिर से वही रोजमर्रा की जिन्दगी आरम्भ हो गयी थी।

अजीत सर के आफिस मे तिगड़ी के सामने मै बैठा हुआ था। अजीत सर ने पूछा… समीर, अब उस लिस्ट के बारे मे क्या करने की सोच रहे हो? मैने कहा… सर, मेरा ख्याल है कि इस काम के लिये हमे सुरक्षा एजेन्सी का इस्तेमाल करना बेहतर विकल्प होगा। वीके ने जल्दी से कहा… नहीं। इसमे सुरक्षा एजेन्सी का इस्तेमाल तभी बेहतर विकल्प होगा जब हमारे पास उनकी गद्दारी के सुबूत होगें। क्या तुम्हारे पास चन्द्रमोहन के खिलाफ सुबूत है? सुरक्षा एजेन्सियों की जवाबदेही कोर्ट के प्रति होती है। अगर साक्ष्य कमजोर हुए तो सुरक्षा एजेन्सियों के लिये नयी मुसीबत खड़ी हो जाएगी। जनरल रंधावा ने हामी भरते हुए कहा… अजीत, इनकी सफाई जरुरी है। अजीत सर ने कुछ सोच कर बोला… आप लोग अगर मेरी बात से सहमत है तो मेरा एक सुझाव है। उस लिस्ट मे दिये गये सभी नामों की छटनी करके हमे पहले उन लोगों को चुनना चाहिये जिन्होंने आर्थिक अपराध किया है। उन लोगों को साक्ष्य के साथ हमे सुरक्षा एजेन्सियों के हवाले कर देना चाहिये। जो लोग समाज मे वैमन्स्य फैला रहे है उनके लिये अलग रणनीति होनी चाहिये। हर मर्ज का इलाज अलग है। इतना बोल कर वह चुप हो गये थे। अभी तक मै चुपचाप उनकी बात सुन रहा था। …क्यों समीर क्या तुम कुछ कहना चाहते हो? …जी सर। आपने ब्रिगेडियर चीमा के लिये क्या सोचा है। जैश के दुस्साहस के लिये हमे एक मजबूत जवाबी कार्यवाही करने की जरुरत है। अपने घर मे पलने वाली दीमक को हम कभी भी साफ कर सकते है परन्तु सीमा पार बैठे हुए षड़यन्त्रकारियों को ठिकाने लगाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिये। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।

वीके ने एक बार अजीत सर की ओर देखा और फिर जनरल रंधावा की ओर देखते हुए बोले… मेजर, इसके बारे मे हमने कुछ सोचा है। जब वक्त आयेगा तब उसका खुलासा करेंगें परन्तु फिलहाल तुम यहाँ की दीमक साफ करने का ब्लू प्रिंट तैयार करो। मेरे प्रस्ताव को तिगड़ी ने सिरे से खारिज कर दिया था। अबकी बार बोलते हुए मेरी आवाज दबी हुई कुंठा के कारण कठोर हो गयी थी। …सर, इस काम के लिये मै अपनी रणनीति खुद तैयार करुँगा क्योंकि नीलोफर की लिस्ट के साथ, मेरे पास तीन और लिस्ट है। एक अंसार रजा ने लिस्ट दी थी। दूसरी लिस्ट मैने जमात से ली है और तीसरी लिस्ट मुझे ताहिर और फारुख से मिली है। एकाएक तीनो एक साथ बोले… नहीं समीर। जनरल रंधावा जल्दी से बोले… पुत्तर, मै हमेशा स्थायी सफाई का पक्षधर रहा हूँ परन्तु इस काम के लिये मै अजीत की रणनीति को बेहतर मानता हूँ। पुत्तर तुझे याद है कि तूने हसनाबाद मे कौनसी रणनीति का इस्तेमाल किया था। बेग और रिजवी जैसे कट्टरपंथियों को भिड़ा कर तूने बड़ी सफाई से दारुल-उलुम के सपने को ध्वस्त किया था। इसी रणनीति को पैना हथियार बनाने की इस बार तेरी परीक्षा है। मैने अचरज से जनरल रंधावा की ओर देखा तो वह काफी संजीदा दिख रहे थे।

वीके ने कुछ पल गुजरने के बाद कहा… मेजर, हम एक योजना पर काम कर रहे है। इस योजना मे तुम्हारी मुख्य भुमिका होगी लेकिन उसके लिये तुम्हें मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार होना जरुरी है। यह ट्रेनिंग ग्राऊन्ड है जहाँ तुम अपनी उसी रणनीति को इस्तेमाल करके उसे और भी ज्यादा प्रभावी बना सकते हो। अजीत ने गरदन हिलाते हुए कहा… समीर, लिस्ट तुम्हारे पास है। अब तुम्हें सोचना है कि उन लोगों की किस तरह सफाई की जा सकती है। अंसार रजा की लिस्ट मे दिये गये बहुत से नामों की सफाई एनआईसी कर चुकी है। इसी प्रकार बाकी लोगों के लिये भी तुम्हें उसी रणनीति पर काम करने के बारे मे सोचना चाहिये। कुछ देर तिगड़ी इस रणनीति पर चर्चा करती रही थी। मीटिंग समाप्त करने से पहले अजीत सर बोले… समीर, यह तुम्हारी परीक्षा है। हम इस बार कोई निर्देश नहीं देंगें परन्तु तुम्हारी कार्यविधि पर लगातार नजर रखेंगें। बेस्ट आफ लक। इतनी बात करके सब खड़े हो गये थे। मै और जनरल रंधावा उन्हें वहीं छोड़ कर अपने आफिस की दिशा मे चल दिये थे।

अपने आफिस मे पहुँच कर जैसे ही मै बैठा कि तभी फोन की घंटी बज उठी थी। …हैलो। …आप वहाँ पहुँच कर मुझे भूल गये। …नहीं पिछले चार दिन मै आफशाँ के कामों मे उलझ गया था। अब मै तुम्हारे फ्लैट मे वापिस आ गया हूँ। तुम कैसी हो? …आज डाक्टर को दिखाने गयी थी। सब ठीक है तो आप बेफिक्र रहिये। …अंजली, तुम्हारे अब्बा ने पहला हमला कर दिया है। ब्रिगेडियर चीमा को जैश अगुवा करके सीमा पार ले जाने की फिराक मे है। वह कुछ पल चुप रही और फिर झिझकते हुए बोली…आप कहें तो मै कुछ करुँ। …हर्गिज नहीं। अब तुम अंजली हो इसलिये अपने नेटवर्क से दूर रहना। हमारी फौज इनसे डील करने मे पूर्णत: सक्षम है। इसीलिये मै तुम्हें बताना नहीं चाहता था परन्तु फिर हमारे रिश्ते को ध्यान मे रख कर मैने तुम्हें बताया है कि सावधान रहना। हल्का सा भी खतरे का आभास हो तो तुरन्त खबर करना। …आप बेफिक्र रहिये। मेनका का उस स्कूल मे एडमिशन कर दिया है। वह हास्टल मे भर्ती हो गयी है। इस बार क्या आप यहाँ आ रहे है। …अंजली, ब्रिगेडियर चीमा के मुझ पर बहुत एहसान है। इस बार मेरा वहाँ आना मुम्किन नहीं होगा परन्तु वादा करता हूँ कि अगले जुमे की शाम मै तुम्हारे साथ बिताउँगा। कुछ देर बात करने के बाद उसने फोन काट दिया था। मै सारी लिस्ट मेज पर फैला कर बैठ गया था। कुछ देर लिस्ट मे दिये गये नामों का आंकलन करने के बाद एक चित्र मेरे जहन मे उभरा तो मैने उन नामों को अलग-अलग करके एक नयी लिस्ट बनाने मे जुट गया था। इस काम को करते हुए मुझे समय का पता ही नहीं चला था।

जब मै सारा काम समेट कर चलने के लिये तैयार हुआ तब तक रात के आठ बज चुके थे। अपनी जीप की ओर जाते हुए मैने एक नम्बर मिलाया और दूसरी ओर से जवाब मिलते ही पूछा… तुम अपने फ्लैट पर हो? …हाँ। …मै कुछ देर मे वहीं पहुँच रहा हूँ। मेरा इंतजार करो। हम साथ डिनर करेंगें। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया था। थापा तब तक पार्किंग से जीप निकाल कर गेट पर पहुँच गया था। जीप मे बैठेते ही मैने कहा… गुड़गाँव चलो। इतना बोल कर मै अपनी नयी रणनीति बनाने मे व्यस्त हो गया था। गुड़गाँव पहुँचते ही थापा ने पूछा… साबजी कहाँ जाना है? मेरा ध्यान टूट गया था। …मै रास्ता बता रहा हूँ। उसे रास्ता बताते हुए हम कुछ देर मे नीलोफर की सोसाईटी के सामने पहुँच गये थे। मैने नीलोफर का नम्बर मिलाया और उसकी आवाज सुनते ही मैने कहा… मै पहुँच गया हूँ। तुम नीचे आ जाओ। इतना बोल कर मैने थापा से कहा… गाड़ी मोड़ कर गेट के पास लगा लो।

कुछ देर के बाद नीलोफर सोसाईटी के मुख्य द्वार की ओर बढ़ती हुई दिखायी दी तो एक पल के मेरी पलक झपकनी बन्द हो गयी थी। वह अपने पुराने सौम्या कौल के परिधान मे थी। वह उसी गहरे नीले रंग की साड़ी ब्लाउज मे थी। ललाट पर एक लाल बिंदी, कानों मे झुमके और गले मे एक महंगा जगमगाता हुआ हार पड़ा हुआ था। उसका ब्लाउज आगे से इतना कटा हुआ था कि आधे से ज्यादा एक सीने की गोलाई बाहर झाँक रही थी और दूसरे सीना पल्लू के पीछे छिपा हुआ था। उसकी साड़ी नाभि से नीचे बंधी हुई थी। इसके कारण चलते हुए उसका सारा जिस्म थिरकते हुए प्रतीत हो रहा था। नीले रंग मे उसका दूध सा गोरा रंग अलग से दमक रहा था। सब आने जाने वालों की नजरें उसके जिस्म की गोलाईयों और उतार-चढ़ाव को नाप रही थी। गेट पर पहुँचते ही उसकी नजर मुझ पर पड़ गयी थी। वह मेरे करीब पहुँच कर बोली… अब इस खटारा को छोड़ कर नयी गाड़ी ले लो। थापा मुँह फाड़े नीलोफर को देख रहा था। …हैलो थापाजी, यहाँ कब आये? थापा जल्दी से जीप से उतर कर मुस्तैदी से सैल्युट मार कर बोला… मेमसाहब, पहली नजर मे आपको पहचान नहीं सका। …अब सड़क पर कब तक खड़ी रहोगी। चलो जल्दी से बैठो। मुझे भूख लग रही है। नीलोफर को बीच मे बिठाया और हम वहाँ से चल दिये थे।

मैने दबी आवाज मे कहा… इतना बनने संवरने की जरुरत नहीं थी। …क्यों? मैने बात बदलते हुए पूछा… डिनर के लिये कहाँ चले? …वहीं चलते है जिस रेस्त्रां का उस दिन अंसार रजा ने उद्घाटन किया था। आज वहाँ पर एक पार्टी है। मैने थापा को रेस्त्रां का पता बताया और हमारी जीप उस रेस्त्रां की दिशा की ओर बढ़ गयी। कुछ ही देर मे उस रेस्त्रां के पोर्टिको मे जीप से उतरे तो मैने उतरते हुए थापा से कहा… जीप पार्क करके तुम भी अन्दर आकर डिनर कर लेना। …जी साबजी। हम दोनो उतर कर रेस्त्रां की ओर बढ़े तभी नीलोफर ने झपट कर मेरी कमर मे हाथ डाल कर सटते हुए कहा… हम एक पार्टी मे आये है। मैने कुछ नहीं कहा परन्तु उसके सामीप्य से जरा असहज हो गया था। अपनी झेंप मिटाने के लिये मैने कहा… आज तुम बिजलियाँ गिरा रही हो तो देखने वाले मुझसे जलेंगें। वह मुस्कुरा कर बोली… आज से मैने अपनी जिन्दगी तुम्हारे नाम कर दी है। जलने वालो को जलने दो। …एक ट्रक के पैसे तुम्हारे अकाउन्ट मे अभी ट्रांस्फर नहीं हुए है। …कोई बात नहीं। तभी मेरी नजर एक युगल जोड़े पर पड़ी तो मै ठिठक कर रुक गया था। सामने रेस्त्रां के एक हिस्से मे सेठी युगल कुछ लोग के साथ बैठ कर ड्रिंक्स ले रहे थे। उनकी नजर हम पर अभी पड़ी नहीं थी। मैने जल्दी से अपने आप को अलग करते हुए कहा… तुम्हें इनके यहाँ होने का पता था? …हाँ। मुझे चन्द्रमोहन ने इसी पार्टी के लिये बुलाया था। मै तैयार हो रही थी जब तुम्हारा फोन आया था। तभी मोनिका सेठी की नजर हम पर पड़ी तो वह एक पल के लिये हम दोनो को देखती रह गयी। नीलोफर उन सबको अनदेखा करके उनकी महफिल से कुछ दूरी पर लगी हुई एक खाली टेबल की ओर बढ़ गयी थी।

मैने फुसफुसा कर कहा… क्या हुआ? वह बैठते हुए बोली… क्या तुम नहीं जानते? मैने मुस्कुरा कर कहा… तुम्हारे ट्रक का हिसाब मै करुँगा तो फिर उनसे किस बात की नाराजगी? वह कुछ नहीं बोली और रेस्त्रां का मेन्यु देखने लगी। मैने दबी आवाज मे कहा… नीलोफर, अगर इनको सबक सिखाना है तो तुम्हें मेरे साथ काम करना पड़ेगा। …समीर, अगर मेरा बस चले तो मै सेठी परिवार को बर्बाद कर दूँगी। इनकी दगाबाजी के कारण मै पैसे-पैसे के लिये मोहताज हो गयी थी। मैने धीरे से उसका हाथ दबा कर उसे शांत करते हुए कहा… अगर तुम मेरे साथ काम करोगी तो मै इन सबको बर्बाद कर दूँगा। उसने मेन्यु से निगाह हटा कर मुझे घूर कर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… जानेमन, अगर अंजली ने तुम्हें इस हालत मे मेरे साथ देख लिया तो वह मेरा खून पी जाएगी। एकाएक उसके चेहरे पर आया तनाव शांत हो गया था। एक बार फिर से वह अपने पुराने स्वरुप मे आ गयी थी। उसने वेटर को आर्डर दिया और मेरी ओर देखने लगी तो मैने कहा… कुछ दिनो के लिये तुम मेरे फ्लैट मे शिफ्ट हो जाओ। उसकी आँखो मे एकाएक शरारत चमकने लगी… समीर एक बार सोच लो, मै तो शिफ्ट हो जाऊँगी परन्तु क्या अंजली सौतन को बर्दाश्त कर लेगी? मैने झेंपते हुए जल्दी से कहा… तुम बेफिजूल की बात सोच रही हो। तब तक हमारी मेज पर ड्रिंक्स सर्व हो गयी थी।

…समीर, तुम क्या करने की सोच रहे हो? …दीपक सेठी को बर्बाद करने के बारे मे सोच रहा हूँ। हमारे बीच एक बार फिर चुप्पी छा गयी थी। मैने एक घूँट भर कर पूछा… चन्द्रमोहन और वागले का भी हिसाब चुकाना है। …समीर, सेठी के प्रमुख फाईनेन्सरों मे दो बिल्डर है। गुरु नानक बिल्डर का मालिक सरताज सिंह और पीजे ग्रुप का मालिक मुन्नवर-उल-हक है। दोनो ने काफी पैसा राजनीतिक संरक्षण के लिये दीपक सेठी के कारोबार मे लगाया है। मोनिका उन बिल्डरों के साथ डील करती है। एकाएक मरे दिमाग मे एक ख्याल आया तो मैने धीरे से पूछा… मोनिका पर दबाव डाला जाये तो क्या उनके पैसों की ट्रेल को वह उजागर कर देगी? …पता नहीं। हम कुछ देर अलग-अलग योजनाओं पर चर्चा करने के पश्चात इसी नतीजे पर पहुँचे कि मोनिका के द्वारा दीपक सेठी को बर्बाद आसानी से किया जा सकता है। …मै अभी आती हूँ। इतना बोल कर नीलोफर उठ कर टायलेट की दिशा मे चली गयी थी। उसके जाते ही मेरे फोन की घँटी बजी तो मैने स्क्रीन पर नजर डाली तो मोनिका का फोन था। …हैलो। …समीर, उस छिनाल सौम्या के कारण तुमने मुझे देख कर अनदेखा कर दिया। मेरी नजर मोनिका पर टिकी हुई थी। वह मेरी ओर देखते हुए फोन पर बात कर रही थी। …तुमने तो फिर कभी याद नहीं किया। …कल क्या कर रहे हो? …कुछ खास नहीं। …कल मेरिडियन मे बारह बजे काफी शाप मे मिलते है। तभी नीलोफर आती हुई दिखी तो मैने जल्दी से कहा… कल बारह बजे मेरीडियन की काफी शाप मे मिलते है। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया था।

वह मेरे साथ बैठते हुए बोली… किससे बात कर रहे थे? …मोनिका का फोन था। वह कल मुझसे मिलना चाहती है। मेरा ग्लास उठा कर व्हिस्की का एक घूँट भरने के बाद बोली… क्या करने की सोच रहे हो? …अभी कुछ सोचा नहीं परन्तु कल उससे बात करने के बाद सोचूँगा कि उस पर दबाव कैसे डाला जा सकता है। बात करते हुए हमने अपनी ड्रिंक्स समाप्त करी और फिर खाना खाकर जैसे ही चलने के लिये खड़े हुए कि तभी मेरी नजर चन्द्रमोहन पर पड़ी जो नशे मे धुत अपने साथ बैठी हुई स्त्री के साथ बड़ी बेहयाई के साथ छेड़खानी कर रहा था। एक अन्य आदमी के साथ दीपक सेठी किसी गहन चर्चा मे उलझा हुआ था। मोनिका से आँख मिलाते हुए मैने अपना हाथ बढ़ा कर नीलोफर को कमर से पकड़ कर अपने साथ सटा कर द्वार की ओर बढ़ गया। बाहर निकलते ही मैने कहा… नीलोफर तुम टैक्सी लेकर वापिस चली जाओ। कल अपना सामान तैयार रखना। थापा तुम्हें लेने आ जाएगा। मै इतना ही बोल सका था कि तब तक थापा मेरी जीप लेकर आ गया था। नीलोफर ने कुछ नहीं कहा और द्वार पर खड़े हुए वेलेट से एक टैक्सी मंगवा कर अपनी सोसाईटी की दिशा मे निकल गयी थी।

मै अपनी जीप मे बैठा और थापा ने जैसे ही जीप आगे बढ़ायी कि तभी मैने कहा… जीप को वापिस पार्किंग मे लगा दो। उसने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… तुम्हारी पिस्तौल दे दो। थापा ने जीप के टूल बाक्स से एक ग्लाक-17 निकाल कर मेरे हाथ मे रखते हुए कहा… साबजी इसमे बस एक राउन्ड बचा है। …थापा, पार्किंग मे देखो कि कोई सरकारी कार तो नहीं खड़ी है? थापा कार खोजने के लिये निकल गया था। बी चन्द्रमोहन को देखते ही मेरे दिमाग मे एक ख्याल आया था। हम एक घन्टा पार्किंग मे खड़े रहे थे। रेस्त्रां से सेठी की पार्टी मे आये हुए लोगों को बाहर निकलते देख कर मै सावधान हो गया। कुछ देर के बाद चन्द्रमोहन लड़खड़ाता हुआ रेस्त्रां से अकेला बाहर निकला और सफेद एम्बैसेडर मे बैठ कर अपनी दिशा मे चल दिया। कार पर रक्षा मंत्रालय का पार्किंग स्टिकर लगा हुआ था। उसके निकलते ही कुछ दूरी बना कर हम उसके पीछे चल दिये थे। चन्द्रमोहन को ठिकाने लगाने का मुझे एक अवसर बिन मांगें मिल गया था। अब मेरा दिमाग बड़ी तेजी से चल रहा था।

एमजी रोड पर पहुँचते ही मुझे सुनसान रास्ते का आभास हो गया था। …थापा, एम्बैसेडर को ओवरटेक करो। आज इसका एन्काउन्टर करना है। एक खाली स्थान देख कर मेरी जीप ने उस कार को ओवरटेक किया और फिर थापा ने एक उप्युक्त जगह पर जीप को सड़क पर तिरछी खड़ी कर दी थी। जैसे ही वह कार हमारे नजदीक पहुँची तो सड़क पर तिरछी खड़ी हुई जीप को देख कर उसकी गति धीमी हो गयी थी। जीप के करीब पहुँचते ही मेरी ग्लाक ने दो फायर किये और कार के ड्राइवर की इहलीला समाप्त हो गयी थी। वह अम्बैसेडर कार दिशाहीन होकर लहकी और सड़क के बीच बने हुए डिवाईडर से टकरा कर उस चढ़ कर रुक गयी थी। नशे मे धुत चन्द्रमोहन का सिर अगली सीट से टकरा कर लहुलुहान हो गया था। मै जीप से उतर कर तेजी से उस कार की ओर झपटा और वहाँ पहुँच कर मैने चन्द्रमोहन के सिर को निशाना बना कर दो फायर किये और फिर तेजी से अपनी जीप मे बैठते हुए कहा… वापिस नीलोफर की सोसाईटी की ओर चलो। हमारी जीप ने यूटर्न किया और नीलोफर के फ्लैट की दिशा मे निकल गये थे। जब तक मै नीलोफर के फ्लैट पर पहुँचा रात के तीन बज गये थे।

अगली सुबह मेरी आँख खुली तो अपने आप को बिस्तर पर नग्न पाया और मेरे साथ नीलोफर गहरी नींद मे सो रही थी। दिन की रौशनी मे उसके गले और सीने पर बहुत से नीले निशान बीती रात की कहानी बयान कर रहे थे। दिन की रौशनी मे उसका गोरा गरदराया नग्न जिस्म दमक रहा था। मै चौंक कर उठ कर बैठ गया। मेरे हिलने के कारण नीलोफर की पल्कें फड़फड़ाई और फिर एकाएक आँखें खोल कर मुझे देख कर मुस्कुरा कर एक भरपूर कातिलाना अंगड़ाई लेकर उठ कर बैठते हुए बोली… कल रात के लिये शुक्रिया। मेरे दिमाग मे बहुत सारे प्रश्न घूम रहे थे। मैने अपनी कलाई पर नजर डाली तो सुबह के दस बज रहे थे। सब कुछ त्याग कर मै तेजी से उठ कर बाथरुम मे घुस गया। जब तक तैयार होकर बाहर निकला तब तक नीलोफर बालकनी मे झूले पर बैठ कर चाय पी रही थी। …नीलोफर, कल रात जो कुछ भी हुआ उसके बारे मे बाद मे बात करुँगा। अपने रोजमर्रा का सामान और कुछ कपड़े जल्दी से बैग मे डालो। मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। …तुम जाओ। मै अपने आप वहाँ पहुँच जाऊँगी। …तुम्हें पता है कि मेरा फ्लैट कहाँ है? …नहीं। …तो कैसे पहुँचोगी? वह कुछ नहीं बोली तो मैने जल्दी से कहा… रक्षा अकादमी के आफीसर्स रेजीडेन्स पर पहुँच कर मुझे फोन कर लेना। इतना बोल कर मै उसे वहीं छोड़ कर चल दिया था। थापा मेरा इंतजार कर रहा था। जीप मे बैठते ही मैने कहा… मेरिडियन होटल चलो। जब तक मेरिडियन की काफी शाप मे प्रवेश किया तब तक सवा बारह बज रह थे।

काफी शाप मे प्रवेश करने के बाद मैने अपनी नजरें घुमा कर देखा तो दूर एक कोने मे मोनिका काफी का प्याला पकड़े मेरी ओर देख रही थी। मै उसकी ओर बढ़ गया। उसके सामने बैठते हुए मैने पूछा… ज्यादा देर तो नहीं हुई। वह तुनक कर बोली… सौम्या के साथ रात कैसी कटी? मैने मुस्कुरा कर कहा… बेहद खूबसूरत। वह कुछ बोलती कि तब तक वेटर आ गया था। …एक अमेरीकानो। मैने अपना आर्डर देकर उसकी ओर देख कर कहा… जलो मत। मैने उससे ज्यादा खूबसूरत रात इसी होटल मे तुम्हारे साथ काटी है। यह सुन कर उसके गालों पर शर्म की लालिमा छा गयी थी। …तुम जब यहाँ थे तो मुझे फोन क्यों नहीं किया? …मैने पहले दिन ही कह दिया था कि तुम फोन करोगी तो हमारी बात होगी लेकिन मै तुम्हें काल कभी नहीं करुँगा। …क्यों? …मै सेठी साहब से दुश्मनी नहीं ले सकता। अच्छा सौम्या के साथ तुम्हारा क्या चक्कर हो गया कि वह तुमसे बात नहीं करना चाहती? मोनिका कुछ नहीं बोली तो मैने पूछा… अगर यहाँ बात करने मे झिझक रही हो तो मेरे कमरे मे चले? उसने मुझे घूर कर देखा और फिर मुस्कुरा कर बोली… कल रात की थकान तुम्हारे चेहरे से अभी तक उतरी नहीं है। …यह थकान पुलिस की पूछताछ की है। उसने चौंक कर देखा तो मैने कहा… तुम्हें पता नहीं कि कल देर रात को एमजी रोड पर बी चन्द्रमोहन और उसके ड्राईवर की हत्या हो गयी है। …क्या? वह चीखते हुए खड़ी हुई और उसी पल धम्म से कुर्सी पर बैठ गयी थी। उसके चेहरे का रंग उड़ गया था।

उसकी प्रतिक्रिया देख कर मै भी अचंभित था। …क्या हुआ मोनिका? तभी उसका फोन बजा और जल्दी से काल लेते हुए बोली… हैलो। दूसरी ओर से कुछ कहा गया जिसके जवाब मे वह बोली… दीपक, हम बर्बाद हो गये। अब उसके पैसे का क्या करोगे? दूसरी ओर से फिर कुछ कहा गया तो वह बोली… मै अकेली उसके पास नहीं जाऊँगी। तुम भी मेरे साथ चलो। वह कुछ देर तक फोन पर बहस करती रही और मै अपनी काफी के घूँट भरते हुए उसकी एक-एक बात को सुन रहा था। वह फोन काट कर उठते हुए बोली… सौरी मुझे जाना है। जैसे ही वह चलने को हुई तो मैने उसका हाथ पकड़ कर जबरदस्ती अपने साथ बिठाते हुए पूछा… मै रोकूँगा नहीं परन्तु साफ-साफ बताओ कि क्या परेशानी है। अगर रुपये-पैसे की समस्या है तो मुझे बताओ। मै दे दूँगा। वह कुछ पल चुप रही और फिर उठते हुए बोली… लाख दो लाख की बात नहीं है समीर। यहाँ करोड़ों का नुकसान हो गया है। मैने वेटर को बिल लाने का इशारा किया और फिर उससे बोला… मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा तो चाह कर भी मै तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। …समीर, मै तुम्हें कुछ भी बताने की स्थिति मे नहीं हूँ। बिल का पेमेन्ट करते हुए मुझे जो कुछ  भी उसकी बातों से समझ मे आया था उसकी जानकारी के आधार पर पूछा… चन्द्रमोहन को कल रात तुमने पैसे दिये थे? उसने चौंक कर मेरी ओर देखा तो मैने कहा… यहाँ की पुलिस मे मेरी अच्छी पहचान है। तुम कहो तो उस पैसे को दिलवाने के लिये किसी से बात करुँ। वह कुछ पल मुझे देखती रही और फिर चलते हुए बोली… क्या तुम मेरे साथ चल सकते हो? …चलो। मै उसके साथ चल दिया। कुछ देर के बाद हम दोनो उसकी कार से एक दिशा मे निकल गये थे।

रास्ते मे वह बोली…समीर, हम जिसके पास चल रहे है वह एक बिल्डर है। बेहद लीचड़ किस्म का व्यक्ति है। उससे मैने एक करोड़ रुपये कैश मे उठा कर कल रात को ही चन्द्रमोहन को दिये थे। उसकी हत्या हो गयी और मेरा एक करोड़ रुपया फँस गया है। …चन्द्रमोहन तो एक सरकारी बाबू है तो एक करोड़ रुपये उसको किस लिये दिये थे? वह हिचकिचाते हुए बोली… दीपक की एक फाईल उसके पास है। तीन हजार करोड़ की रक्षा खरीदी का मामला है। दीपक ने चन्द्रमोहन के साथ उस आर्डर को अपने पक्ष मे करवाने के लिये सौ करोड़ रुपये का सौदा किया था। कल रात को ही उसे एक करोड़ का एडवान्स दिया था। मै उसकी बात सुन रहा था परन्तु मेरा दिमाग दीपक सेठी और उसके नेटवर्क को ध्वस्त करने की योजना बना रहा था। गाजियाबाद से कुछ मील आगे निकलने के पश्चात मोनिका की कार एक विशाल से फार्म हाउस के लोहे के गेट के सामने खड़ी हो गयी थी।

 

कुपवाड़ा

एक नौकर दौड़ता हुआ कमरे मे दाखिल हुआ और चिल्लाते हुए बोला… मालिक उसकी हालत निरन्तर खराब होती जा रही है। युसुफजयी ने फाइल पर से निगाह उठा कर आने वाले को घूरते हुए पूछा… उसे अब क्या हो गया? …जनाब, डाक्टर साहब का कहना है कि वह कोमा मे चला गया। यह सुनते ही युसुफजयी उठ कर खड़ा हो गया और उस नौकर के साथ अपनी हवेली के पीछे बने हुए आउटहाउस की ओर तेज कदमों से चल दिया। मन ही मन सोचते हुए वह अचानक बोला… अगर उसको कुछ हो गया तो बुड्डे ने हंगामा खड़ा कर देना है। साथ चलते हुए नौकर ने अपने मालिक की ओर देखा तो मालिक के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी।

आउटहाउस पहुँच कर डाक्टर को देखते ही युसुफजयी ने पूछा… ऐसा कैसे हो गया? …जनाब, अचानक उसका शुगर लेवेल घट गया था जिसके कारण वह कोमा मे चला गया है। वैसे भी ज्यादा खून बहने के कारण पहले से ही उसकी हालत काफी नाजुक थी। …क्या उसे ठीक नहीं किया जा सकता? …जनाब हम अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे है लेकिन अगले चौबीस घंटे उस पर भारी है। उसे अस्पताल मे शिफ्ट करवा दिजिये क्योंकि वहाँ पर उसके बचने की संभावना ज्यादा है। युसुफजयी ने एक नजर बिस्तर पर पड़े हुए व्यक्ति पर डाल कर बाहर निकलते हुए डाक्टर से कहा… उसे जल्दी से जल्दी यहाँ होश मे लाने की कोशिश करो। इसे अस्पताल मे नहीं रख सकते। …जी जनाब। बस इतना बोल कर युसुफजयी अपने आफिस की ओर चल दिया था।

अभी भी पिछले कुछ दिनों की घटनाओं के कारण वह पहले से ही काफी विचलित था। अब एक नयी मुसीबत उसके सामने आकर खड़ी हो गयी थी। मन ही मन वह पीरजादा और जैश को गाली दे रहा था कि उन्होंने उसे इस राजनीतिक उठा-पटक के दौर मे फालतू मे उलझा दिया था।