गहरी चाल-47
पठान सा दिखने वाला
चौकीदार लोहे का गेट खोल कर बाहर निकला और हमारी कार के पास पहुँच कर ड्राईवर से बोला…
क्या काम है? मोनिका तुरन्त बोली… अनवर साहब से मिलना है। उन्हें बता दिजिये कि सेठी
साहब की वाईफ मिलने के लिये आयी है। पठान वापिस चला गया था। …कौन है यह अनवर? …बिल्डर
है। इसका शराब का भी कारोबार है। दस मिनट के बाद उसी पठान ने लोहे का गेट खोल कर अन्दर
प्रवेश करने का इशारा किया और हमारी कार उस फार्म मे प्रवेश कर गयी थी। बाहर से तो
पता नहीं चल रहा था परन्तु अन्दर प्रवेश करते ही मुझे अंसार रजा के घर जैसा माहौल देखने
को मिला था। हथियारों से लैस युवकों की फौज फार्म मे चारों ओर फैली हुई थी। बड़ी सी
हवेली के सामने लान मे लोगों की बैठक लगी हुई थी। मोनिका और मै कार से उतर कर उस दिशा
मे चल दिये। सोफे पर अनवर-उल-हक बैठा हुआ लोगों से बातचीत मे उलझा हुआ था। मोनिका पर
नजर पड़ते ही उसने इशारे से अपने पास बुलाते हुए जोर से बोला… मोनिका, आज कैसे आना हुआ?
मोनिका उसके पास सोफे पर बैठते हुए बोली… अनवर साहब, आपकी रकम को वापिस करने मे कुछ
समय लग जाएगा। पुलिस ने सारा पैसा जब्त कर लिया है। दीपक उस पैसे को निकलवाने मे लगा
हुआ है। क्या आप इसमे हमारी कोई मदद कर सकते है? अनवर मुस्कुरा कर बोला… कौनसा थाना
पड़ता है? …आयानगर। कुछ सोच कर उसने पास खड़े हुए एक युवक से कहा… भाटी को फोन लगाना।
वह युवक मोबाईल पर नम्बर मिलाने मे जुट गया और जैसे ही दूसरी ओर से आवाज आयी तो वह
तुरन्त बोला… जनाब, अनवर साहब बात करेंगें। इतना बोल कर उसने फोन अनवर की ओर बढ़ा दिया
था।
…भाटी साहब, अनवर
बोल रहा हूँ। कल आयानगर मे कुछ जब्ती हुई है। वह मेरा माल है। जरा पता करके बताईये
कि क्या चक्कर है। कुछ देर बात करने के बाद अनवर ने फोन वापिस करते हुए मोनिका से कहा…
सरकारी अफसर की हत्या का मामला है। पैसा इतनी जल्दी नहीं निकल सकता। वह कोशिश करेगा
कि अगर कागजी कार्यवाही मे जब्ती का जिक्र नहीं हुआ तो आधे पैसे मिल जाएँगें। मोनिका
ने जल्दी से कहा… आधे पैसे मिल जाएँगें तो बाकी आधे का मै अगले हफ्ते तक इंतजाम करने
की कोशिश करती हूँ। अनवर ने बड़ी बेशर्मी से सबके सामने मोनिका की जाँघ को सहलाते हुए
कहा… वह हिसाब तो हो जाएगा परन्तु इस काम की फीस तो मुझे आपसे वसूल करनी है। बताईये
कब वसूली के लिये आ जाऊँ। मैने नोट किया कि सभी बैठे हुए लोग व उसके आस-पास खड़े हुए
युवक मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। मोनिका अपनी जाँघ पर उसके बढ़ते हुए हाथ को जल्दी से
पकड़ कर बोली… मुझे कुछ समय दिजिये। अनवर ने अभी तक मुझे अनदेखा किया हुआ था। वह मुस्कुरा
कर बोला… आज आप अपने बाडीगार्ड को साथ लायी है? मेरी ओर एक बार देख कर मोनिका जल्दी
से बोली… जी। अच्छा मै चलती हूँ। अनवर ने मेरी ओर देख कर बोला… मियाँ हमारे माल की
देखभाल ध्यान से करना। मुझे कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिये। मैने कुछ नहीं कहा तो वह
मोनिका से बोला… आप कहे तो अपने कुछ लोग आपकी हिफाजत मे लगा देता हूँ। तभी एक आवाज
मे कान मे पड़ी… समीर। मैने चौंक कर आवाज की दिशा मे देखा तो एक पल के लिये मेरी धड़कन
रुक गयी थी।
चाँदनी कुछ नौकरों
के साथ लान मे प्रवेश कर रही थी। नौकर बैठे हुए लोगों को चाय देने मे जुट गये थे और
वह मेरे पास आकर अनवर की ओर देखते हुए बोली… आपने इन्हें बैठने के लिये नहीं कहा। अनवर
भी चौंक गया था। वह मेरी ओर देख कर चांदनी से बोला… यह कौन है? चांदनी ने जल्दी से
कहा… इनके साथ हमारे पारिवारिक संबन्ध है। तभी शाईस्ता और उसके साथ बच्चों की फौज लान
मे आ गयी थी। मुझे देखते ही शाईस्ता ने तपाक से वही सवाल दोहरा दिया… समीर, तुम यहाँ
कैसे। तब तक रज़िया मेरे से लिपट कर बोली… अंकल, क्या मेनका भी आयी है? एकाएक मै अपने
आपको एक अजीब से माहौल मे फँसा हुआ महसूस करने लगा। अनवर ही नहीं अपितु वहाँ पर मौजूद
सारे लोग हैरतभरी निगाहों से मुझे देख रहे थे। मै अपनी झेंप मिटाने के लिये उन्हें
अनदेखा करके रज़िया को गोद मे उठा कर बोला… बिटिया, मेनका नहीं आयी लेकिन वह तुम्हें
बहुत याद करती है। शाईस्ता बोली… समीर, अन्दर चलो। अम्मी भी आयी है। मैने जल्दी से
कहा… शाईस्ता, मै यहाँ अपनी एक मित्र के साथ आया हूँ। मुझे उसके साथ वापिस जाना है।
मोनिका तब तक मेरे साथ आकर खड़ी हो गयी थी। चांदनी मोनिका को देखते ही बोली… बाजी, इन्हें
मै जानती हूँ। यह न्युज नेटवर्क की मालकिन मिसेज सेठी है। दोनो से अभिवादन करके मोनिका
बोली… समीर, मुझे जाना है। दीपक को भी खबर करनी है। …मै भी चल रहा हूँ। इतना बोल कर
मैने चांदनी से कहा… मै कुछ दिन अब यहीं रुक रहा हूँ। जल्दी ही फोन पर बात करके तुम्हारे
घर आऊँगा। फिलहाल मुझे इजाजत दो। इतना बोल कर मै मोनिका के साथ चल दिया था।
मै अपने आफिस मे बैठ
कर चन्द्रमोहन की हत्या से संबन्धित सभी जानकारी इकठ्ठी कर रहा था। हत्या की जानकारी
सभी अखबारों ने कवर की थी परन्तु एक करोड़ रुपये की नगदी मिलने की जानकारी किसी भी अखबार
मे नहीं थी। सारी जानकारी लेकर मै जनरल रंधावा के पास चला गया था। …पुत्तर, सुबह से
कहाँ था? …सर, अजीत सर के पास चलिये। एक जानकारी देनी है। …अजीत आज आफिस मे नहीं है।
तू बता क्या बात है। मैने कल रात से अब तक की सारी बात की जानकारी देने के पश्चात कहा…
उस कार मे एक करोड़ रुपये दीपक सेठी के थे। पुलिस इस बरामदगी को छिपा रही है या फिर
उस पैसे का हिस्सा-बाँट तय हो गया है। सर, इस बरामदगी की जाँच की आँच दीपक सेठी के
घर तक पहुँच रही है। उसका नेटवर्क समाप्त करने का यह सुनहरा अवसर है। जनरल रंधावा कुछ
पल सोचने के पश्चात बोले… पुत्तर, बड़े लोगों का मामला है। अजीत और वीके से बात करनी
पड़ेगी। …सर, वाणिज्य सचिव निखिल वागले भी उस पार्टी मे आया हुआ था। कुछ देर इसी बारे
मे चर्चा करके मैने पूछा… सर, ब्रिगेडियर चीमा की कोई जानकारी मिली? जनरल रंधावा ने
अपना सिर हिला कर मना करते हुए कहा… अभी तक एमआई से यही जानकारी मिली है कि सुरिंदर
अभी भी हमारी सीमा मे ही है। कुछ देर बात करने के बाद मै अपने आफिस मे वापिस आ गया
था।
शाम हो गयी थी। मेरे
फोन की घंटी बजी…हैलो। …समीर, मै अभी भी गुड़गाँवा मे हूँ। क्या तुम मुझे लेने यहाँ
आओगे? …मै वहीं आ रहा हूँ। डिनर करके वापिस यही आ जाएँगें। …ठीक है। मै तुम्हारा इंतजार
कर रही हूँ। इतनी बात करके नीलोफर ने फोन काट दिया था। मैने तय कर लिया था कि समाज
मे पलने वाले कुछ दीमकों का इलाज के लिये मुझे नीलोफर का इस्तेमाल करना पड़ेगा। मैने
अनवर-उल-हक के बारे मे आईबी की साईट से कुछ जानकारी निकाली थी परन्तु पढ़ नहीं सका था।
वह सारे कागज एक फाईल मे डाल कर मै आफिस से निकला और आठ बजे तक नीलोफर के फ्लैट मे
पहुँच गया था। वह चलने के लिये तैयार बैठी थी। …समीर उस फ्लैट के बजाय यहाँ क्यों नहीं
रुक जाते? …मेरा आफिस वहाँ से नजदीक है। छोटे से नोटिस पर आफिस पहुँचना होता है उसके
लिये वह जगह उप्युक्त है। कुछ पल सोचने के बाद वह बोली… सच बोलो कि मुझसे क्या काम
है? …दीपक सेठी को बर्बाद करने के साथ उसके सारे नेटवर्क को तबाह करना है। उसके लिये
मुझे तुम्हारी जरुरत है। इतनी बात करके मैने उसे चन्द्रमोहन, सेठी परिवार और अनवर की
सारी कहानी सुना कर कहा… अब तुम बताओ कि क्या तुम मेरे साथ यह काम करोगी? वह मुस्कुरा
कर बोली… जब अपनी जान तुम्हारे नाम कर दी है तो यह पूछना ही बेमानी है। बस इतनी बात
करके हम वहाँ से चल दिये थे।
रात का खाना हमने
रास्ते मे खाया और देर रात को अपने रक्षा अकादमी के फ्लैट मे आ गये थे। अगली सुबह से
नीलोफर अपने काम मे जुट गयी थी। मै तिगड़ी के सामने बैठा हुआ बी चन्द्रमोहन की कहानी
सुना रहा था। कुछ सोच कर अजीत सर बोले… समीर, चन्द्रमोहन के जरिये दीपक सेठी के नेटवर्क
पर प्रहार किया जा सकता है परन्तु उसमे एक अड़चन है। हम तीनो का एक मत है कि इस केस
को एनआईसी के हवाले कर दिया जाये लेकिन एनआईसी सिर्फ आतंकवाद से जुड़े हुए मामलों को
लेती है। …सर, आप ही बताईये कि क्या करना चाहिये? एकाएक वीके ने कहा… मेजर यही तो तुम्हारी
परीक्षा है। अब कैसे इस हत्या को तुम आतंकवाद से जोड़ कर इसमे एनआईसी को लाओगे? जनरल
रंधावा ने वीके की बात काटते हुए कहा… यार, यह इन्वेस्टीगेशन नहीं कर रहा है। इसे अंधेरे
मे न रख कर हमे इसका मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है। पुत्तर, दीपक सेठी को अनवर और
अंसार रजा के नेटवर्क से जोड़ने की कोशिश करोगे तो आतंकवाद का कनेक्शन जरुर मिल जाएगा।
मेरे लिये इतनी जानकारी ही काफी थी। मैने मुस्कुरा कर कहा… सर, एक हफ्ते मे वह कनेक्शन
भी निकल जाएगा। इतनी बात करके उनसे इजाजत लेकर मै अपने आफिस मे आ गया था।
आफिस पहुँच कर मैने
सबसे पहले शाईस्ता का नम्बर मिलाया तो उसने तुरन्त काल उठा कर कहा… हैलो। समीर, तुम्हारे
और आफशाँ के क्या हाल चाल है? …सब ठीक है। तुम कैसी हो? …मै अपने पाँव जमाने की कोशिश
कर रही हूँ। तुम कब मिल सकते हो? …जब तुम कहो लेकिन तुम्हारे अब्बू मुझे अब शायद बर्दाश्त
नहीं कर सकेंगें। …मै भी तुमसे कहीं और मिलना चाहती हूँ। बस चांदनी को मत बताना। …शाईस्ता,
तुम बताओ कब और कहाँ? …आज शाम सात बजे होटल सोफीटल सुर्या के काफी शाप मे मिलते है।
…ठीक है। बस इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था। मै अनवर उल-हक की फाईल खोल कर बैठ
गया। उसका और अंसार रजा का कोई सीधा संबन्ध नहीं मिल रहा था। काफी देर मगजपच्ची करने
के बाद अपनी कलाई की घड़ी पर नजर डाली तो शाम के छह बज गये थे। मेज पर पड़े हुए सारे
कागज समेट कर मै शाइस्ता से मिलने के लिये निकल गया था।
होटल सुर्या के रिसेप्शन
पर शाईस्ता मेरा इंतजार करती हुई मिली थी। मुझे होटल मे प्रवेश करते देख कर वह मेरे
पास आकर बोली… मेरे साथ चलो। मै उसके साथ चलते हुए बोला… हम कहाँ जा रहे है? वह कुछ
नहीं बोली और थोड़ी देर के बाद होटल के कमरे मे प्रवेश करके दरवाजा बन्द होते ही वह
मुड़ कर मुझ पर झपटी और मेरे गले मे बाँहें डाल कर लटक गयी। मैने उसे संभालते हुए पूछा…
क्या हुआ? मै कुछ और बोलता तब तक उसके होंठों ने मेरे मुख पर सील लगा दी थी। एक बार
फिर से एनएसजी कैम्पस मे हुए एकाकार को हम दोहराने मे जुट गये थे। तूफान गुजर जाने
के बाद बिस्तर पर शाईस्ता को अपनी बाँहों मे बाँधे उसके स्तनाग्र के साथ खेलते हुए
कहा… अब यह जलने के निशान मिटने लगे है। वह मचल कर बोली… समीर, जिस्मानी निशान भले
ही मिटने लगे है परन्तु वह दर्द का मंजर जहन मे हमेशा के लिये बस गया है। …अनवर साहब
के साथ तुम्हारे परिवार का क्या रिश्ता है? …कुछ नहीं। अनवर का मेरे सुसराल पक्ष अंसारियों
के साथ काफी गहरा कारोबारी रिश्ता रहा है। उसकी ओर से मेरे लिये निकाह का पैगाम आया
है। …तो क्या तुम अनवर साहब से निकाह करने के लिये राजी हो गयी? …हर्गिज नहीं। मै उसे
तब से जानती हूँ जब वह अंसारियों के लिये काम करता था। बड़े अंसारी की रहनुमाई मे उसने
अपना शराब और रियल एस्टेट का कारोबार जमाया है। …तुम्हारे अब्बू का इसके बारे मे क्या
विचार है? …अम्मी और अब्बू दोनो ही इस रिश्ते के पक्ष मे है परन्तु मैने मना कर दिया।
अगली सुबह जब हम होटल से बाहर निकले तब तक दोनो के कस बल ढीले हो गये थे परन्तु शाईस्ता
के जरिये मेरे हाथ अपनी योजना की कड़ी मिल गयी थी।
अगले चार दिन नीलोफर
और मै अपने-अपने काम मे व्यस्त हो गये थे। अंसार रजा की फाईल से मिले कुछ नाम और अनवर
के कारोबार का पुराना रिकार्ड छानने के बाद मुझे मुश्ताक अंसारी के साथ उसके गहरे
संबन्धों के पुख्ता सुबूत मिल गये थे। अंसारी परिवार तो पहले से ही आतंकवादी गतिविधियों
मे लिप्त था। दीपक सेठी के कारोबार और अनवर के साथ संबन्धों का खुलासा नीलोफर ने कर
दिया था। एक रात मोनिका के साथ गुजार कर मुझे उस कंपनी के नाम का पता चल गया जिसकी
रक्षा मंत्रालय मे दीपक सेठी दलाली कर रहा था। धीरे-धीरे सभी कड़ियाँ जुड़ती जा रही थी।
दूसरी ओर नीलोफर ने दीपक सेठी द्वारा उसी कंपनी के हवाले से लश्कर को अवैध हथियार बेचने
की छ्द्म साजिश रच डाली थी। एक ओर पैसों की तंगी मे फंसी मोनिका पर देनदारी के लिये
अनवर लगातार दबाव डाल रहा था। इस निरन्तर दबाव के कारण मोनिका के कहने पर दीपक सेठी
आखिरकार लश्कर के छ्द्म खरीदार से सौदा करने के लिये मजबूर कर दिया गया था। हमने उनके
बीच हुई अलग-अलग स्थानों पर हुई मीटिंग्स की तस्वीरें और बातचीत की रिकार्डिंग का डोजियर
अगले तीन हफ्तों मे तैयार कर लिया था। अब बस आखिरी कड़ी जोड़नी रह गयी थी कि चन्द्रमोहन
की कार मे मिले एक करोड़ रुपये दीपक सेठी के थे जो उसे अनवर से मिले थे। हरियाणा पुलिस
के डीसीपी तेज प्रताप सिंह भाटी पर जब दबाव डाला गया तो वह आखिरी कड़ी भी जुड़ गयी थी।
तीन हफ्ते के हमारे अथक प्रयास के बाद एक दिन एनआईसी ने सेठी युगल को उठा लिया था।
उसी के साथ एक देश
विरोधी नेटवर्क कानून के शिकंजे मे बुरी तरह फँस गया था। दीपक सेठी से पूछताछ मे अन्य
लोगों के नाम एक-एक करके सामने आते जा रहे थे। कुछ हवाला कारोबार मे लिप्त थे और कुछ
फर्जी कंपनी बना कर काली कमाई को सफेद कर रहे थे। इसी प्रकार उसके कुछ करीबी वामपंथी
पत्रकारों के भी नाम भी सामने आ गये थे। वह पैसे लेकर खबर बनाने व रक्षा खरीदी पर झूठी
कहानियाँ तैयार करते थे। कुछ ही दिनों मे अलग-अलग सुरक्षा एजेन्सी हरेक दोषी के खिलाफ
केस दर्ज करके कड़ी कार्यवाही करने मे जुट गयी थी। हवाला रैकेट के कारण एनआईसी ने दीपक
सेठी के न्युज नेटवर्क का अकाउन्ट भी सील करवा दिया था। वीके के कहने से वित्त मंत्रालय
के दबाव के कारण बैंको ने अपने कर्जे की वापिसी के लिये कोर्ट मे कुर्की की अर्जी लगा
दी थी। जो राजनीतिक पार्टी दीपक सेठी को अभी तक संरक्षण देती थी अब वह भी विपक्ष मे
होने के कारण उसकी कोई खास मदद नहीं कर सकी थी। इस काम मे फँसने के कारण इस बीच मै
एक बार भी काठमांडू नहीं जा सका था। अंजली से हर दूसरे दिन फोन पर बात हो जाती थी।
मै तिगड़ी के सामने
बैठा हुआ अपनी रिपोर्ट दे रहा था। अजीत सर ने मेरी बात बीच मे काट कर कहा… समीर, हम
तुम्हें सीमा पार भेजने की सोच रहे है। मैने चौंक कर उनकी ओर देखा तो वह काफी संजीदा
दिख रहे थे। तभी वीके ने कहा… मेजर, गोपीनाथ हमसे ब्रिगेडियर चीमा का रिप्लेसमेन्ट
मांग रहा है। हम तुम्हारी राय जानना चाहते है। यह सवाल अचानक मेरे सामने आया था तो
मुझे समझ मे नहीं आया कि क्या जवाब दूँ। गोपीनाथ ने उस दिन हमे जो कुछ बताया था उसके
अनुसार पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तंजीमो के बीच समन्वय बना कर अमरीका को अफगानिस्तान
से सुरक्षित बाहर निकलने मे मदद करनी थी। जब मैने कोई जवाब नहीं दिया तो अजीत सर ने
कहा… समीर, हम नहीं चाहते कि तुम ब्रिगेडियर चीमा के रिप्लेसमेन्ट बनो परन्तु हम तुम्हें
वहाँ स्वतंत्र रुप से काम करने के लिये भेजने के पक्ष मे है। …सर, क्या आपकी प्राथमिकता
फिर से बदल गयी है? मेरे जिम्मे आपने यहाँ की दीमक साफ करने का काम सौंपा था। अजीत
सर ने कहा… ऐसी बात नहीं है लेकिन तुम्हारा असली मकसद पाकिस्तान को उनकी अपनी हक डाक्ट्रीन
का अनुभव कराना है। यह तुम्हारी परीक्षा की घड़ी थी। याद है तुमने अपनी रिपोर्ट मे क्या
लिखा था कि कश्मीर मे उनकी “लो-इन्टेनसिटी कानफ्लिक्ट” के जवाब मे हमे अपनी
सैन्य कार्यवाही उनके घर मे घुस कर करनी पड़ेगी। जब उनकी सेना को नुकसान पहुँचेगा तब
उन्हें अलगाववाद और जिहाद की असली कीमत का पता चलेगा। हम लोग कुछ दिनो से इस योजना
पर काम कर रहे थे। अब इस बारे मे हम तुम्हारी राय जानना चाहते है।
अबकी बार मैने कुछ
देर सोचने के पश्चात कहा… सर, इसके बारे मे मैने अपनी रिपोर्ट मे साफ लिखा था। पाकिस्तानी
समाज मे काफी गहरी टूट है और हमे इन्हीं दरारों को अपने लिये इस्तेमाल करना चाहिये।
अपनी सुविधा अनुसार इस्लाम के मुनाफिक ठेकेदारों का यह नारा है कि तेरा-मेरा रिश्ता
क्या, ला इलाही लिलिल्लाह। अगर सच पूछे तो उसी समाज मे एक नारा अकसर फसाद के लिये
लगाया जाता है- काफ़िर-काफ़िर, शिया काफ़िर। वहाँ वह धर्म के ठेकेदार बड़ी आसानी से सारा रिश्ता
भूल जाते है। इसी प्रकार अहमदिया, तबलीगी जमात, अहले हदीस, व अन्य ऐसे फिरके है जो
पाकिस्तानी समाज को बाँट रहे है। एक दरार जो हाल ही मे हमारे सामने आयी है वह चरमपंथी
तंजीमो की है जिसमे मुख्यता तेहरीक, तालिबान, बलोच और सिन्ध लिब्रेशन फ्रंट है। हक
डाक्ट्रीन को अगर पाकिस्तान मे कार्यान्वित करना है तो हमे उन दरारों को खाई मे बदलने
की जरुरत है। मै एक पल के लिये चुप हुआ तो अजीत सर ने कहा… इसके लिये जल्दी से जल्दी
एक ब्लू प्रिंट तैयार करो। …जी सर। इसी के साथ हमारी मीटिंग समाप्त हो गयी थी। वहाँ
से चलने से पहले वीके ने कहा… मेजर, सेठी के केस को सफलतापूर्वक समाप्त करने के लिये
कांग्रेच्युलेशन्स। जनरल रंधावा ने मेरी पीठ थपथपा कर कहा… गुड माई बोय।
मै अपने आफिस मे बैठ
कर उस ब्लू प्रिंट के बारे मे सोच रहा था कि तभी अंजली का फोन आया तो मैने झट से काल
लेते हुए कहा… हैलो। …ब्रिगेडियर चीमा का पता लग गया है। उन्हें कुपवाड़ा मे युसुफजयी
के गोदाम मे रखा हुआ है। वह किसी भी दिन उन्हें सीमा पार भेज सकते है। जो भी करना है
वह जल्दी करो। यह सुनते ही मैने कहा… मै तुमसे बाद मे बात करुँगा। फोन काट कर मै अजीत
सर के आफिस की ओर भागा और जैसे ही उनका दरवाजा खोला तो अजीत सर और वीके किसी बहस मे
उलझे हुए थे। मुझे देखते ही अजीत सर बोले… क्या हुआ समीर? …सर, ब्रिगेडियर चीमा को
जैश ने कुपवाड़ा मे युसुफजयी के गोदाम मे रखा हुआ है। वह उन्हें सीमा पार भेजने की फिराक
मे है। यह सुनते ही दोनो खड़े हो गये थे। वीके तुरन्त बोले… तुम और जनरल रंधावा तुरन्त
एयरपोर्ट पहुचों। मै तुम्हारे जाने का इंतजाम कर रहा हूँ। मै वापिस मुड़ा और जनरल रंधावा
के आफिस की ओर निकल गया। आनन फानन मे दिल्ली और श्रीनगर मे फोन बजने आरंभ हो गये थे।
जब हम श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरे तब तक अंधेरा हो चुका था। एक स्पेशल फोर्सेज की युनिट
हमारा एयरपोर्ट पर इंतजार कर रही थी। श्रीनगर एयरपोर्ट पर एक हेलीकाप्टर तैयार खड़ा
हुआ था। स्पेशल फोर्सेज की टीम के साथ हम दोनो अगले कुछ मिनट मे कुपवाड़ा के लिये निकल
गये थे।
कुपवाड़ा मे एमआई के
आफिस को हमने आप्रेशन रुम मे परिवर्तित कर दिया था। कुपवाड़ा जिले का नक्शा मेज पर पड़ा
हुआ था। उसी नक्शे के उपर युसुफजयी के कारोबार की जानकारी की फाईल रखी हुई थी। कुपवाड़ा
जिले मे उसके एक नहीं आठ गोदाम अलग-अलग जगहों पर फैले हुए थे। फल की मंडी का गोदाम
तो मेरा देखा हुआ था परन्तु अन्य गोदामों की जानकारी हमारे पास अधूरी थी। …मेजर, हमारी
जाँच कैसे आगे बढ़ेगी? …सर, युसुफजयी के सभी गोदामों पर एक साथ तो छापा नहीं मारा जा
सकेगा तो बेहतर होगा कि आज रात को हम पहले अपना होमवर्क कर ले। कैप्टेन हमारी टीम मे
कोई हताहत नहीं होना चाहिये तो उसके लिये क्या जानकारी चाहिये। स्पेशल फोर्सेज का कैप्टेन
रावत बोला… सर, हमे उनके गोदाम और फायर-पावर और जिहादियों की संख्या के बारे मे पता
होना चाहिये। …कैप्टेन, तो आज रात का पहला होमवर्क वह गोदाम, दुश्मन की संख्या बल और
फायर पावर की जानकारी पता चलनी चाहिये। मै एक आदमी से परिचित हूँ जो युसुफजयी के कारोबार
को संभालता है। आज रात को ही उसे घर से उठाने की तैयारी करो परन्तु ख्याल रहे कि यह
खबर युसुफजयी और उसके आदमियों तक नहीं पहुँचनी चाहिये। इतनी बात करके मैने युसुफजयी
के कारोबार को संभालने वाला इरशाद बाबू का नाम और पता कैप्टेन भाटी के सामने रख दिया
था।
इरशाद को मै पहले
से जानता था। मुझे पता था कि वह युसुफजयी के कुछ खास आदमियों मे से एक है। …कैप्टेन
रावत, यह आदमी आपके लिये पहली कड़ी का काम करेगा। इसके जरिये कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए अगर
हमे उस गोदाम का सुबह तक पता लग गया तो आप्रेशन क्लीन आउट हमारे लिये आसान हो जाएगा।
मैने अपनी घड़ी पर नजर डाली तो रात के नौ बज रहे थे। ग्रीन सिगनल मिलते ही कैप्टेन रावत
अपनी टीम को लेकर निकल गया। एक आदमी को हमने युसुफजयी के मकान की निगरानी पर लगा दिया
था। ग्यारह बजे तक इरशाद हमारे सामने बैठा हुआ था। वह सहमा हुआ जमीन पर बैठ कर अपने
खुदा को याद कर रहा था। एमआई के मेजर गिल ने पूछताछ शुरु करी… युसुफजयी कहाँ है? वह
हकलाते हुए बोला… जनाब, मुझे पता नहीं। वह अपने घर पर होंगें। कैप्टेन रावत सीधे मुद्दे
पर आकर बोला… हमे पता चला है कि हमारा एक फौजी अफसर जैश ने अगुवा करके युसुफजयी के
किसी गोदाम मे रखा हुआ है। उसे कौनसे गोदाम मे रखा है? यह सवाल सुनते ही इरशाद आतंकित
होकर गिड़गिड़ा कर बोला… जनाब, कसम खुदा की मुझे इसके बार मे कोई जानकारी नहीं है। …तो
किसके पास इसकी जानकारी होगी? इस बार उसकी जुबान को जैसे लकवा मार गया था। दो सैनिकों
ने उसकी कुछ देर हड्डियो।को नर्म किया और एक बार फिर से वही प्रश्न दोहराया गया तो
इस बार वह कराहते हुए बोला… जनाब, तंगधार पर एक हमारा गोदाम है। सुनने मे अकसर आता
है कि ज्यादातर घुसपैठियों को वहाँ पर रखा जाता है। कैप्टेन रावत ने तुरन्त नक्शा उसके
सामने रख कर पूछा… तंगधार मे वह गोदाम कहाँ पर है? वह कुछ देर नक्शे को देखता रहा और
फिर अपनी उँगली से रेखांकित करके बोला… जनाब इस मस्जिद के पीछे एक गोदाम है। कैप्टेन
रावत ने मेरी दिशा मे देखा तो मैने पूछा… उस गोदाम का काम कौन देखता है? …आफताब। …इस
वक्त वह कहाँ मिलेगा? अबकी बार इरशाद जल्दी से बोला… हलीम चौक पर उसका घर है। एक बार
फिर से एक टीम आफताब को उठाने के लिये निकल गयी थी।
सुबह छह बजे तक आठों
गोदाम के चार केयरटेकर हमारे आफिस मे अधमरी हालत मे पड़े हुए थे। अभी तक ब्रिगेडियर
चीमा की कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल पायी थी। हमने आठों गोदाम पर निगरानी लगा दी थी।
स्पेशल फोर्सेज की टीम फुल एलर्ट पर बैठी हुई थी। उनसे पूछताछ का सिलसिला बदस्तूर रात
से ही चल रहा था। जनरल रंधावा दिल्ली से संपर्क साध कर बैठे हुए थे। आठों गोदामो को
सेटेलाईट सर्वैलैंन्स पर लगा दिया था। अब तक मिली रिपोर्ट के आधार पर यही निष्कर्ष
निकला था कि ब्रिगेडियर चीमा उनमे से किसी भी गोदाम पर नहीं थे। हमारे पास समय कम रह
गया था। सुबह दस बजे तक उन चारों के गायब होने की खबर फैल जाने का डर था। सुबह सात
बजे जनरल रंधावा ने पूछा… पुत्तर अब क्या करना चाहिये? …सर, अगर किसी गोदाम मे कोई
घायल व्यक्ति होता तो डाक्टर की आवक-जावक दिखती और दवाई वगैराह की खरीद-फरोख्त के कुछ
निशान जरुर मिलते। जिहादियों और गाजियों की फौज वहाँ तैनात होती परन्तु ऐसा कुछ नहीं
दिख रहा है। मेरा मानना है कि उनके लिये ब्रिगेडियर चीमा एक हाई वैल्यु एस्सेट है और
वह उनको युँहिं मरने के लिये नहीं छोड़ सकते। इसीलिये मुझे लगता है कि वह इन आठ गोदामों
मे से किसी एक मे भी नहीं है। कैप्टेन रावत ने भी मेरी बात का अनुमोदन करते हुए कहा…
सर, मेरा भी यही ख्याल है।
नौ बजने मे कुछ मिनट
पहले युसुफजयी के मकान पर तैनात सैनिक ने खबर दी कि एक एम्बुलैन्स आयी है। उस एम्बुलैन्स
के आते ही एकाएक घर मे चहल-पहल बढ़ गयी थी। जनरल रंधावा ने युसुफजयी के मकान को सेटेलाईट
सर्वैलैन्स पर लगवा दिया। पहली सेटेलाईट इमेज मिलते ही मेरे लिये सारी तस्वीर साफ हो
गयी थी। मै उस इमेज को स्क्रीन पर बड़ा करके उंगली से रेखांकित करके दिखाते हुए बोला…
ब्रिगेडियर चीमा का पता लग गया है। उन्हें इस आउटहाउस मे रखा हुआ है। जितने भी छोटे
बिन्दु दिखायी दे रह है वह सभी उस आउटहाउस पर तैनात गाजियों की फौज है। उन स्पाट्स
को गिनने के पश्चात मेजर गिल बोला… पच्चीस जिहादी बाहर पहरा दे रहे है। मै अनुमान लगा
रहा हूँ कि पाँच-दस गाजी आउटहाउस के अन्दर भी तैनात होंगें। अगले एक घन्टे मे ब्रिगेडियर
चीमा के वहाँ होने के पुख्ता सुबूत हमे मिल गये थे। सुबह दस बजे तक युसुफजयी के घर
पर हंगामा मच चुका था। उसके चार मुख्य सहायक रातों रात गायब हो गये थे। कैप्टेन रावत
के साथ बैठ कर मै आउटहाउस पर हमला करने की योजना बनाने मे जुट गया था।
हमारा आप्रेशन क्लीन
आउट दोपहर दो बजे शुरु हो गया था। राष्ट्रीय राईफल्स की पच्चीस सदसीय युनिट के साथ
कैप्टेन यादव की स्पेशल फोर्सेज की टीम का संचालन मेरे हाथ मे आ गया था। मैने अपनी
योजना उनके सामने रखते हुए कहा… हमारा उद्देश्य ब्रिगेडियर साहब को वहाँ से सुरक्षित
निकालना है और इस कोशिश मे हर रुकावट को हटाना आपकी जिम्मेदारी है। मै किसी भी एक्शन
से पहले युसुफजयी को कब्जे मे लेने के पक्ष मे हूँ। एक बार वह हमारे कब्जे मे आ गया
तो आपका काम आसान हो जाएगा। इतना बता कर मैने उनके सामने पूरी योजना खोल कर रख दी थी।
जनरल रंधावा से ग्रीन सिगनल मिलते ही स्पेशल फोर्सेज की युनिट को अपने साथ लेकर मै
इलाके के थाने पर पहुँच गया था। हमे देखते ही थाने मे हलचल मच गयी थी। थाना इंचार्ज
हमे देख कर सकते मे आ गया था। मैने कहा… थानेदार साहब, मै दिल्ली से युसुफजयी से कुछ
पूछताछ करने के लिये आया हूँ। हम सीधे उसके घर भी जा सकते है लेकिन हमे देखते ही इलाके
मे दहशत का माहौल हो जाएगा। इसलिये मैने सोचा कि एक बार आपसे बात कर लेनी चाहिये। यह
रुटीन पूछताछ है। मै सोच रहा था कि अगर मै अकेला आपके साथ उनके पास बात करने के लिये
जाऊँगा तो फिर ज्यादा हंगामा नहीं होगा। इस बारे मे आपका क्या ख्याल है? कुछ ही देर
के बाद इलाके के थानेदार के साथ मै पुलिस जीप मे चार सिपाहियों को लेकर युसुफजयी के
घर पर पहुँच गया था। थानेदार और सिपाहियों को द्वार पर तैनात सभी लोग पहचानते थे तो
इसलिये हमे उस मकान मे प्रवेश करने मे कोई परेशानी नहीं हुई थी।
पुलिस के सिपाहियों
को द्वार पर छोड़ कर एक आदमी बड़ी इज्जत से हम दोनो को बैठक मे बिठा कर युसुफजयी को बुलाने
के लिये चला गया था। तब तक राष्ट्रीय राईफल्स की टुकड़ी उसके मकान के चारों ओर फैल कर
आसपास के इलाके को सेनेटाईज करके मोर्चा संभालने मे जुट गयी थी। कैप्टेन रावत की टीम
युसुफजयी के मकान की पूर्वी दिशा की कम्पाउन्ड वाल के सिरे पर मेरे इशारे का इंतजार
कर रही थी। अब एक-एक पल भारी लग रहा था। युसुफजयी के आते ही थानेदार ने खड़े होकर मुस्तैदी
सैल्युट किया तो वह बोला… अरे मुस्तफा कैसे आना हुआ? युसुफजयी के पीछे-पीछे दो सेमी-आटोमेटिक
हथियारों से लैस जिहादियों ने कमरे मे प्रवेश किया और उसके बैठते ही वह दोनो उसके पीछे
खड़े हो गये थे। थानेदार को देख कर शायद वह थोड़े बेपरवाह हो गये थे क्योंकि उनकी गन
की नाल अभी भी जमीन की ओर थी। थानेदार ने जल्दी से कहा… जनाब, मेजर साहब दिल्ली से
आये है और वह आपसे कुछ पूछना चाहते है। युसुफजयी ने मेरी ओर देख कर पूछा… बोलो मेजर
क्या जानना चाहते हो? …जनाब, एक तहकीकात के सिलसिले मे आना पड़ा है। युसुफजयी उखड़ कर
बोला… मुद्दे की बात करो मेजर। मेर पास बेकार की बात सुनने का टाइम नहीं है। मैने जल्दी
से कहा… जनाब, इस वक्त कुपवाड़ा मे सेना का सर्च आप्रेशन चल रहा है। हमारी फौज के एक
ब्रिगेडियर को किसी अलगाववादी तंजीम ने अगुवा करके इसी जिले मे कहीं रखा है। आपके घर
की तलाशी के उद्देश्य से थानेदार साहब को अपने साथ लेकर आया हूँ। मैने बड़े सपाट से
स्वर मे अपनी बात रख दी थी। यह बोलते हुए मेरा हाथ अपनी ग्लाक की मूठ पर कस गया था।
युसुफजयी ने कुछ नहीं कहा परन्तु उसके पीछे खड़ा हुआ एक जिहादी तुरन्त घुर्रा कर बोला…
अबे पागल हो गया है। साले यहाँ मरने आया है। दूसरा जिहादी अपनी गन की नाल की दिशा मेरी
ओर करते हुए चिल्लाया… मालिक हुक्म दो इसको अभी दोजख भेज देता हूँ। वह कुछ और बोलता
उससे पहले मेरी ग्लाक-17 उसकी ओर तन गयी थी। मै घुर्राया… तुझे पुलिस और फौज की वर्दी
मे फर्क नहीं दिखता। वह कुछ समझ पाता तब तक मैने उस पर दो फायर किये और वह वहीं ढेर
हो गया। जब तक कोई कुछ समझ पाता तब तक मैने दो फायर और किये तो दूसरा जिहादी भी अपने
हिस्से की हूरों से मिलने निकल गया था। कुछ ही पलों मे युसुफजयी का सुरक्षा कवच ध्वस्त
हो गया था।
मै फुर्ती से उठा
और युसुफजयी के उपर छलांग लगा कर उसके पास चला गया था। मैने एक सोची समझी रिस्क ली
थी। कमरे मे उपस्थित कोई भी व्यक्ति उम्मीद नहीं कर सकता था कि मै बिना चेतावनी के
उन पर फायर कर सकता हूँ। जिहादी भले ही सबके सामने मारने की धमकी दे सकता है परन्तु
स्पेशल फोर्सेज पर सामने से फायर करने मे हिचकिचाते जरुर है। बस इसी मानसिकता का लाभ
मैने लिया था। थानेदार को तो जैसे लकवा मार गया था। तब तक फायरिंग की आवाज सुनकर कमरे
के बाहर खड़े हुए सिपाहियों के साथ कुछ जिहादियों ने कमरे मे प्रवेश किया लेकिन तब तक
युसुफजयी मेरे निशाने पर आ गया था। उसके सिर पर ग्लाक की नाल टिका कर मै घुर्राया…
विधायक जी अगर आप या आपका कोई आदमी जरा सा भी अपनी जगह से भी हिला तो आपकी कहानी समाप्त
हो जाएगी। फायर की आवाज ने कम्पाउन्ड की दीवार
के साथ खड़ी हुई स्पेशल फोर्सेज को आगे बढ़ने का इशारा कर दिया था। अभी पाँच मिनट भी
नहीं बीते थे कि बाहर एक धमाका हुआ और फिर सिरीज मे धमाके होने लगे थे। आटोमेटिक गन
की फायरिंग की आवाज के साथ इंसानी चीख पुकार की आवाज भी अब कमरे मे सुनाई देने लगी
थी। युसुफजयी जोर से मुझ पर चिल्लाया… मेजर बाहर क्या हो रहा है? मैने बड़े आराम से
कहा… राष्ट्रीय राईफल्स और स्पेशल फोर्सेज का संयुक्त क्लीन आउट आप्रेशन चल रहा है।
बस ब्रिगेडियर साहब की सुरक्षित बरामदगी के बाद ही अब यह आप्रेशन रुकेगा। मै कुछ और
बोलता कि तभी धड़धड़ाते हुए चार राष्ट्रीय राईफ्ल्स के सैनिकों ने कमरे मे प्रवेश किया
और सभी को निशाने पर लेकर मुझसे बोले… सर, मुख्य गेट और आउटहाउस का रास्ता क्लीयर कर
दिया है। जव वह रिपोर्ट कर रहा था तब तक दूसरा सैनिक जिहादियों के हथियार इकठ्ठे करने
मे जुट गया था।
आधे घन्टे के बाद
कैप्टेन रावत ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे देखते ही बोला… सर, ब्रिगेडियर साहब मिल
गये है। सारी जगह सेनेटाईज कर दी गयी है। मैने थानेदार से कहा… इन सभी को हिरासत मे
ले लो। इतना बोल कर मैने युसुफजयी को कालर से पकड़ कर उठाते हुए कहा… विधायक जी चलिये।
उसे लगभग धकेलते हुए आउट हाउस की दिशा मे चल दिया। घर के पीछे बड़े से मैदान पर राष्ट्रीय
राईफल्स के सैनिकों ने मोर्चाबन्दी कर रखी थी। कुछ सैनिक घायलों को इकठ्ठा करने मे
लगे हुए थे और कुछ शवों को वहाँ से हटा रहे थे। आउट हाउस के द्वार पर स्पेशल फोर्सेज
तैनात थी। मेरे साथ चलते हुए कैप्टेन रावत ने कहा…सर, ब्रिगेडियर साहब कोमा है। उन्हें
तुरन्त अस्पताल भेजने का इंतजाम करना पड़ेगा। मैने फोन पर जनरल रंधावा से बात करके तुरन्त
एयर एम्बुलैन्स भेजने के लिये कह कर ब्रिगेडियर चीमा को देखने चला गया। उनके चेहरे
पर आक्सीजन मास्क लगा हुआ था। एक हाथ मे ड्रिप और सीने और पाँव की चोट पर ड्रेसिंग
बंधी हुई थी। मैने उनकी नब्ज टटोल कर देखी तो बहुत धीरे चल रही थी। युसुफजयी मेरे साथ
खड़ा हुआ था। …विधायक जी, ब्रिगेडियर साहब को अगुवा करके आपने बहुत भारी गलती कर दी
है। अब आपको पुलिस के बजाय फौज से भी निपटना होगा। हमारी कार्यशैली से आप परिचित है।
इतना बोल कर मै युसुफजयी को धकेलते हुए आउटहाउस से बाहर निकल आया था।
बहुत ही जबरदस्त अंक और इसी के साथ समीर को जो बहुत दिन से अगवा करने के प्लान बन रहे थे वो अब सफल हो गए मगर कहीं न कहीं समीर को फसाने में उस बुरखापोश लड़की का हाथ मगर कौन है वो यह अगले अंक में शायद पता चल जाए, जिस मैं बहुत हद तक शक अदा या फिर नीलोफर हो सकती है या फिर शायद समीर के दिल के टुकड़े करने के लिए हया भी हो सकती है मगर इसका चांस बहुत कम है क्यूं की उसको अगर यह प्लान कामयाब करना था तो पहले से कर लेती। अगले अंक का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई शुक्रिया।
हटाएंशाईस्ता की वजहसे एक बडा देशद्रोही आतंकी नेटवर्क समीरने तबाह कर लिया. ब्रिगेडियर चीमा की जान तो समिरने बचा ली, पर क्या ये आत्मघाती हमला था युसुफजई को हमेशा के लिये ठंडा करनेके लिये?शायद वो इसमे कामयाब हो गये. समीर नकाबपोश औरत की वजहसे शायद गंभीर चोटील ना हो, क्या ये निलोफर हो सकती है? शायद हां भी और ना भी, क्यूंकी तबस्सुम का लास्ट मंथ चल रहा डिलिव्हरी का, तो वो इस हालत मे नहीं हैं के समिर को बचाने आ जाये. पर समिर को ये ब्रिगेडियर चीमा की इंफो भी तो उसनेही दी है, कुछ कह नहीं सकते.
जवाब देंहटाएंप्रशांत भाई शुक्रिया।
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