रविवार, 25 अगस्त 2024

  

शह और मात-15

        

जनरल रंधावा के अनुसार मै ही अकेला वह शक्स था जो उन तीन बच्चों की शिनाख्त कर सकता था क्योंकि मैने उनके साथ सफर किया था। युनीसेफ का कम्पाउन्ड बीस एकड़ मे फैला हुआ था। अमरीकन सेना उस कम्पाउन्ड की सुरक्षा मे तैनात थी। बैरियर पर पहुँचते ही अपना आईकार्ड दिखा कर मै कम्पाउन्ड मे प्रवेश कर गया। स्टेशन निदेशक एक फ्रांसीसी महिला थी। मैने अपना परिचय देकर उन तीन अफगानी बच्चों के बारे मे पूछा जिनको भारतीय दूतावास ने सुरक्षा कारणों से वहाँ रखा था। उसने तुरन्त अपने असिस्टेन्ट को बुला कर बस इतना कहा… मिस्टर सैम को निषेध एरिया मे मिस्टर वाकर से मिलवा दिजिये। मै उस असिस्टेन्ट के साथ उस कम्पाउन्ड के ऐसे क्षेत्र की ओर चल दिया जहाँ सुरक्षा का इंतजाम काफी मजबूत था। मैदान मे बहुत से बच्चे अलग-अलग कार्यों मे व्यस्त थे। सभी अफगानी बच्चे दिख रहे थे। …इन बच्चों और दूसरे बच्चों मे क्या फर्क है? …सर, यह सभी बच्चे अमेरिकन या मित्र राष्ट्रों के साथ काम करने वाले शहीद अफगानी परिवारों के है अन्यथा दूतावास के द्वारा भेजे गये हाई वैल्यु एस्सेट के बच्चे है। मिस्टर वाकर हमे बाहर ही बच्चों के साथ खेलते हुए मिल गये थे।

वह असिस्टेन्ट मुझे मिस्टर वाकर से मिलवा कर वापिस चला गया था। …मिस्टर सैम वह तीनो बच्चे कल ही हमारे सुपुर्द किये गये थे। वह अभी डरे हुए है तो उनको हमने फिलहाल क्लास रुम मे छोड़ा है। मै वाकर के साथ क्लास रुम की ओर चल दिया था। एक क्लास रुम के बाहर पहुँच कर वह रुक कर बोला… आप उनसे मिलना चाहते है या दूर से ही शिनाख्त करेंगें। मै दरवाजे पर लगे हुए शीशे से अन्दर झांक कर बच्चों को देखने मे जुटा हुआ था। मुश्किल आठ बच्चे क्लास मे बैठे हुए अलग-अलग कार्यों मे उलझे हुए थे। मेरी नजर जीनत पर पड़ी जो कागज पर कुछ रंग भरने मे व्यस्त थी। …इस लड़की की शिनाख्त हो गयी है। मैने जब तक यह बोल ही पाया था कि तब तक वाकर दरवाजा खोल कर अन्दर प्रवेश कर चुका था। दरवाजा खुलते ही सभी बच्चों की नजर दरवाजे की ओर चली गयी थी। वाकर ने पश्तों मे पूछा… बच्चों यहाँ पर कैसा लग रहा है? उसको देख कर सभी बच्चों के चेहरे खिल गये थे। जीनत की नजर मुझ पर टिक हुई थी। इस वक्त सूट-टाई मे होने के कारण वह उलझ कर रह गयी थी। मुझे माला का लड़का भी दिख गया था। वह हाथ मे एक खिलौना लिये जमीन पर बैठा हुआ था। …मिस्टर वह तीन बच्चे कौन से है? …जीनत और अबरार यहाँ है। वाकर ने दोनो को अपने पास बुलाया और मुझसे बोला… यह दो बच्चे है। एक छोटी लड़की अरुसा को सुबह नर्सिंग स्टेशन मे शिफ्ट किया है। एक नजर दोनो पर डाल कर मै रुम से बाहर निकल कर बोला… इन दोनो की शिनाख्त हो गयी है। अरुसा की ओर चलिये। हम दोनो नर्सिंग स्टेशन की ओर चल दिये थे।

लम्बे से कारीडार को पार करके नर्सिंग स्टेशन मे प्रवेश करते हुए वाकर ने कहा… अरुसा से मिलने से पहले मनोविज्ञान के डाक्टर से आज्ञा लेनी पड़ेगी। अरुसा ट्रामा की शिकार है। वाकर ने क्लीनिक का दरवाज खोल कर अन्दर झांकते हुए पूछा… डाक्टर बेग, हम अरुसा को देखना चाहते है। अब वह कैसी है? …वह सो रही है। उसे एक सिडेटिव दिया है। आप दूर से देख लिजियेगा। वाकर ने मुझे अन्दर चलने का इशारा किया परन्तु मैने उसकी आढ़ से अन्दर झाँकते हुए डाक्टर बेग का चेहरा देखते ही जल्दी से मना करते हुए दबी आवाज मे कहा… डोन्ट डिस्टर्ब। बस इतना बोल कर मै वापिस चल दिया था। वह आवाज सुनते ही मेरा बदन पसीने से नहा गया था। वह जानी पहचानी आवाज थी। जैसे ही मैने उसका हिजाब मे ढका हुआ चेहरा देखा तो एक पल के लिये मेरी धड़कन रुक गयी थी। मै उस आवाज और चेहरे को अभी भूला नहीं था। वाकर मेरे साथ चलते बोला… हम उसे दूर से देख लेते तो बेहतर होता। …मिस्टर वाकर उन तीनो बच्चों की फाईल दिखा दिजिये। मै वाकर के साथ उसके आफिस की दिशा मे निकल गया था। मैने चलते हुए पूछा… मिस्टर वाकर आपके डाक्टर का क्या नाम है? …डाक्टर नफीसा बेग, मनोविज्ञान चिकित्सक है। तीन महीने की पोस्ट ट्रामा की इन्टर्नशिप के लिये यहाँ आयी है। क्या आप उसे जानते है? मैने जल्दी से मना करते हुए कहा… नहीं लेकिन सुरक्षा कारणों से हम भारतीय दूतावास के कार्य मे हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। जितने कम लोगों को मेरे बारे मे पता चले उतना अच्छा होगा। वाकर से तीनो बच्चों की फाईल से उनकी तस्वीर की कापी निकलवा कर मै जल्दी से जल्दी वहाँ से निकलना चाहता था। थोड़ी देर के बाद तीनो बच्चों की एप्लीकेशन की कापी लेकर मै वापिस काबुल लौट रहा था। मै जल्दी से जल्दी काबुल पहुँचना चाहता था। सूनी सड़क पर लैंडरोवर चलाते हुए काठमांडू की एक रात की स्मृति मेरे दिमाग मे उभर आयी थी।

अचानक सरिता के चेहरे की जगह एक बार फिर नफीसा का चेहरा मेरे सामने आ गया था। उसका चेहरा सामने आते ही मै उठ कर बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी मे रख उस पर झुक गया था। मेरे होंठों ने जैसे ही इस बार सरिता के होठों को स्पर्श किया मुझे वही गुलाबी पंखुड़ियों का स्वर्गिम एहसास हुआ था। उसके होंठों का रस पीकर उसके सुराहीदार गले पर अपनी मोहर लगा कर उसकी आंखों मे झांका तो उसी वक्त मुझे एहसास हुआ कि मै मतिभ्रम का शिकार हो गया था। मेरे आगोश मे नफीसा थी। मेरे जहन मे न जाने कैसे नफीसा की छवि उभर आयी थी। उसके जिस्म की बनावट का स्वर्गिम एहसास होते ही उसकी कंचन नग्न काया को बेदर्दी से अपने आगोश में जकड़ लिया था। सीने के उभार उसकी हर साँस पर उपर नीचे बैठ रहे थे और उनके शिखर पर गुलाबी स्तनाग्र उत्तेजनावश फूल कर खड़े हो चुके थे। मैंने झुक कर एक स्तनाग्र को अपने मुख में भर कर अपनी जुबान से उस पर वार किया और दूसरे को अपनी उंगलियों में फँसा कर हौले से तरेड़ दिया। यही क्रम मैं काफी देर तक बदल बदल कर करता रहा। उसके गुलाबी शिखर अब तक मेरी मेहनत से सुर्ख लाल हो चुके थे।

मैने सरिता का ऐसा रुप उस रात से पहले नहीं देखा था। वह नयी नवेली दुल्हन की तरह पेश आ रही थी। मैने अपनी पलकें झपका कर अपने दिमाग पर छाये नशे के बादलों को छाँट कर नीचे की ओर सरक गया। मेरी उँगलियाँ उसकी जांघों के बीच बालों से ढके हुए स्त्रीत्व के द्वार को टटोलने मे लग गयी थी। वह तड़प कर उठने को हुई परन्तु उसके पुष्ट गोल नितंब मेरे पंजे मे जकड़े होने के कारण वह अपने प्रयास मे असफल हो गयी थी। उसके मुख से लम्बी सिसकारी छूट गयी… अ…आ…ह। कुछ देर उसकी नाभि और कूल्हों के साथ खिलवाड़ करने के बाद एक बार फिर से बड़बड़ाया… अब तुम अपने आप को सारे बंधनों से मुक्त कर दो। मै नशे मे झूमता हुआ उपर की ओर सरक गया और उसके जिस्म पर छाते हुए उसके कान को चूम कर धीरे से फुसफुसाया… आज जानेमन मैंने तुम्हारे हर अंग पर अपनी मौहर लगा दी है। अचानक उसकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… प्लीज धीरे से किजियेगा। मै इस पल को जीवन भर संजो कर रखना चाहती हूँ। मैने उसके गालों को चूम कर कहा… तुम इस पल को जीवन भर याद रखोगी। मैंने उत्तेजना मे झूमते हुए भुजंग को अपनी मुठ्ठी मे जकड़ कर उसके स्त्रीत्व द्वार पर कुछ पल घिस कर उसके द्वार को खोल कर योनिमुख पर टिका दिया। उत्तेजना से भन्नाये हुए भुजंग का फूला हुआ सिर उसकी योनि मे प्रविष्ट होते ही उसके मुख से दबी हुई चीख निकल गयी थी। उसने मुझे कस कर अपनी बाँहों मे जकड़ लिया था  

लैंडरोवर चलाते हुए काठमांडू की घटना एक चलचित्र की भांति कुछ पलों मे मेरे मनसपटल से गुजर गयी थी। अभी तक नफीसा की सुनहली यादों पर आप्रेशन वलीउल्लाह की धूल पड़ी हुई थी। आज उसको यहाँ देख कर स्मृति पर पड़ी धूल की चादर एकाएक हट गयी थी। नफीसा ने अपनी मोहब्बत का हवाला देकर सरिता को ऐसा करने के लिये मजबूर किया था। सरिता ने मुझे नशे मे डुबो कर नफीसा के हवाले कर दिया था। मुझे वह पल अभी भी याद है कि… मैंने उत्तेजना मे झूमते हुए भुजंग को अपनी मुठ्ठी मे जकड़ कर उसके स्त्रीत्व द्वार पर कुछ पल घिस कर उसके द्वार को खोल कर योनिमुख पर टिका दिया। उत्तेजना से भन्नाये हुए भुजंग का फूला हुआ सिर उसकी योनि मे प्रविष्ट होते ही उसके मुख से दबी हुई चीख निकल गयी थी। उसने मुझे कस कर अपनी बाँहों मे जकड़ लिया थाअन्दर प्रविष्ट होने मे रुकावट का एहसास होते ही मै पल भर के लिये रुक गया था। मेरे नशे मे डूबे हुए दिमाग पर उसकी चीख ने एक वज्र का सा प्रहार किया था। मेरे दिमाग के किसी कोने मे बिजली की तेजी से एक बात उभरी… यह सरिता नहीं हो सकती। मैने पलकें झपका कर अपने घूमते हुए दिमाग को एक पल के लिये स्थिर किया और अपने आगोश मे जकड़ी हुई स्त्री के चेहरे की को देखा तो एक पल के लिये सन्न रह गया था। नफीसा के चेहरे पर पीड़ा की लकीरें खिंची हुई थी। उसी पल मेरा सारा नशा काफुर हो गया था। यह मतिभ्रम नहीं हकीकत थी। अगले ही क्षण मै करवट लेकर उससे अलग हो गया और जोर से अपने सिर को हिला कर लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठा और बाथरुम मे चला गया। नल को चला कर मै उसके नीचे बैठ गया था। बर्फ से ठंडे पानी की पहली धार सिर पर पड़ते ही दिमाग के साथ सारा जिस्म सुन्न पड़ गया था। दस मिनट नल के नीचे बैठने से दिमाग और जिस्मानी इंद्रियाँ सजग हो गयी थी। मैने अपने आप को धीरे से संभाला और बाहर निकल कर बिस्तर पर नजर डाली तो नफीसा और सरिता सहमी हुई बैठी थी। मैने उन्हें कुछ नहीं कहा और गीले बदन पर ही कपड़े पहन कर फ्लैट से बाहर निकल आया था।

इस धोखे के कारण मैने उनके साथ सभी प्रकार के रिश्तों को समाप्त करने का निर्णय ले लिया था। अमानत मे ख्यानत करने का आत्मग्लानि का बोध मुझ पर कुछ दिन हावी रहा था। नफीसा और उसकी बहन जेनब को सुरक्षित वापिस अमरीका भेज कर कुछ हद तक अपनी गलती सुधारने की कोशिश करी थी। उस दिन के बाद मै वलीउल्लाह के बवंडर मे ऐसा उलझा कि फिर नफीसा और जेनब से मेरा संपर्क हमेशा के लिये टूट गया था। मरजान टाउन मे नफीसा को देख कर मेरा अतीत मेरे सामने आ गया था। नफीसा के सामने आते ही हमारा सारा आप्रेशन चौपट हो गया होता। वह मुझे भारतीय फौज के मेजर के रुप मे पहचानती थी। उस रात की घटना के बाद से वह मुझसे बेहद नाराज थी। उसने तो अपनी बहन जेनब और नीलोफर के सामने मेरा विरोध खुले आम करना शुरु कर दिया था। बड़ी मुश्किल से कैप्टेन यादव की मदद और नीलोफर के समझाने से उसे वापिस अमरीका भेजा था। मेरा मरजान टाउन आना ही इत्तेफक था। नफीसा का वहाँ होना एक अनहोनी घटना थी। मै जानता था कि दोबारा मुझे अब वहाँ जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इन्हीं ख्यालों मे उलझा हुआ मै काबुल पहुँच गया था। अपने गेस्ट हाउस पहुँच कर सबसे पहले मैने तीनो आवेदन पत्र को स्कैन करके जनरल रंधावा को शिनाख्ती रिपोर्ट भेज कर उन सबके वापिस जाने की औपचारिकता को पूरा किया और फिर अपनी आगे की रणनीति पर काम करने बैठ गया था।

आदमी सोचता कुछ है और होता कुछ है। शाम को ही वालकाट ने फोन पर बताया कि अगले हफ्ते जुमेरात को तुर्खैम सीमा के पास सभी अमरीका और मित्र राष्ट्रों के पक्ष के मुख्य दलो की गुप्त मीटिंग तय हो गयी है। अब जुमेरात से पहले मै काबुल से बाहर नहीं जा सकता था। अमरीका का नियन्त्रण क्षेत्र अफगानिस्तान का पूर्वी हिस्सा था। काबुल, जलालाबाद, कुन्दुज और मजार-ए-शरीफ अमरीकन फौज के नियन्त्रण मे था। कन्धार और हेरात के साथ सारा पश्चिमी हिस्सा नाटो फोर्सिज के नियन्त्रण मे था। मै सिर्फ अंदाजा लगा सकता था कि उस मीटिंग मे कौनसी तंजीमे भाग ले सकती है। तालिबान की ओर से ज्यादातर हमले पश्चिमी क्षेत्र मे हो रहे थे। सीमा पर मुल्ला मोइन के हमले अमरीकी फौज के बजाय हक्कानी समर्थक गुटों पर हो रहे थे। दाईश का अनुमान लगाना मुश्किल था। मै इसी जोड़-घटा मे उलझा हुआ था कि तभी अपने दरवाजे पर दस्तक सुन कर मै चौंक गया था। मैने अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी पर नजर डाली तो रात के बारह बज रहे थे। इस वक्त कौन हो सकता है? यही सोच कर मैने दरवाजा खोला तो सामने आमेना और गजल खड़ी हुई थी। मै कुछ बोलता उससे पहले वह दोनो कमरे मे प्रवेश कर गयी थी।

आज बुर्का त्याग कर आमेना और गजल हिजाब मे आयी थी। काशिफ को आमेना ने गोदी मे लिया हुआ था। दोनो के चेहरों पर एक नजर डाल कर मैने पूछा… कैसे आना हुआ? आमेना तुरन्त बोली… हमारी मदद करने के बारे मे क्या सोचा? …मै आज सारा दिन काबुल से बाहर रहा तो तुम्हारी समस्या के बारे मे सोचने का समय नहीं मिला। मुझे कुछ समय चाहिये। तभी गजल जल्दी से एक साँस मे बोली… मुझसे निकाह कर लिजिये तो सारी मुश्किल आसान हो जाएगी। एक पल के लिये उसका प्रस्ताव सुन कर मै हतप्रभ रह गया था। तभी आमेना बोली… जमाल के निशाने पर गजल है। मेरी हत्या करवा कर वह मेरे हिस्से का मालिक आसानी से बन जाएगा परन्तु गजल के बिना वह कंपनी पर काबिज नहीं हो सकेगा। उसकी बात सुन कर मैने मुस्कुरा कर कहा… दोनो बहने काफी सोच समझ कर आयी हो लेकिन मुझे सोचने के लिये समय चाहिये। मेरा जवाब सुन कर दोनो चुप हो गयी थी।

दोनो कुछ देर वहीं सोफे पर बैठी रही और फिर आमेना उठ कर बाथरुम मे चली गयी। मैने गजल से कहा… काशिफ को लेकर तुम बेड पर चली जाओ। काफी रात हो गयी है। वह काशिफ को लेकर बेड पर चली गयी और मै सोफे की गद्दियाँ लेकर एक बार फिर से कालीन पर फैल गया। आमेना बाथरुम से बाहर निकली और कमरे के हlलात का अवलोकन करके लाइट बुझा कर बेड की ओर बढ़ गयी। मै उनकी ओर पीठ करके लेट गया। आमेना की कहानी और काबुल मे नफीसा की उपस्थिति ने मेरे को एक अजीब सी परिस्थिति मे लाकर खड़ा कर दिया था। …समीर। …हुँ। …बेड पर काफी जगह है। तुम भी यहीं सो जाओ। …नहीं। रात काफी हो गयी है। तुम दोनो आराम से सो जाओ। इसी के साथ कमरे मे शांति छा गयी थी। मै आँख मूंद कर काफी देर तक लेटा रहा परन्तु थकान होने के बावजूद नींद कोसों दूर थी। अधचेतन अवस्था मे पहुँचा ही था कि मुझे अपनी पीठ पर किसी के धीरे से सटने का एहसास हुआ। मै चौंक कर उठने लगा मगर उसने मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर दबी आवाज मे बोली… मै हूँ।  मैने करवट लेकर उसकी ओर देखा तो आमेना बड़ी हसरत भरी निगाहों से मेरी ओर देख रही थी।

…आमेना। मै बस इतना ही बोल पाया था कि वह मुझ पर छा गयी थी। हम एक दूसरे के होंठों का रस सोखने मे जुट गये थे। स्ट्रीट लाईट की रौशनी पर्दे से छन कर कमरे मे आ रही थी। उसके गालों पर जहाँ मेरे होंठ टिकते वही जगह खून सी लाल हो जाती थी। उसके गुलाबी होंठ उत्तेजना की तपिश से सूख गये थे। एक लम्बा दौर उसके होंठों को लाल करने मे लग गया था। मेरे भार के नीचे वह मचल रही थी लेकिन निकलने मे अभी तक असफल रही थी। हमारी जुबाने एक दूसरे का रसास्वादन कर रही थी और हमारे होंठ एक दूसरे के अधरों का रसपान कर रहे थे। जब मै उसके होंठों को छोड़ कर नीचे गले की ओर सरका तब तक उसके होंठ गुलाबी से सुर्ख लाल हो गये थे। उसकी आखों मे झाँका तो उसकी आँखे नशे मे मुंदी हुई थी। धीरे से उससे अलग होते हुए मैने फुसफुसा कर कहा… यहीं पर रुक जाओ। गजल जाग जाएगी। धीरे से पल्कें झपका कर मेरे कान को जुबान से छेड़ते हुए बोली… वह कोई बच्ची नहीं है। अगर वह अभी तक औरत-मर्द के जिस्मानी संबन्धों से अनजान है तो जान लेने का यही समय है। इतना बोल कर वह एक बार फिर मुझ पर छा गयी।  

कुछ ही देर मे दोनो के जिस्म कामज्वर से धधक रहे थे। अब कपड़े जिस्म को काट रहे थे। अपने आस पास को भुला कर आनन फानन मे एक दूसरे के कपड़े उतारना शुरु कर दिया। कुछ ही पलों मे निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ एक बेल की भांति उलझ गये थे। सबसे पहले उन पहाड़ियों की घाटी पर मेरे होंठों ने वार किया और फिर कत्थई बुर्जियों से सुज्जित्त स्तनों पर मेरे होंठों और ऊँगलियों ने हमला कर दिया। एक स्तन पर मेरा हाथ काबिज हो गया और दूसरे स्तन पर मेरे होंठों ने कब्जा कर लिया था। मेरा हाथ उसके पुष्ट स्तन को कभी सहलाता और कभी रौंदता और मसकता। मेरी उँगलियों मे फँसे हुए अकड़े हुए अंगूर समान स्तनाग्र को पकड़ खींचता और कभी तरेड़ता और कभी दबा देता। कभी कत्थई परिधि पर मेरी जुबान चक्कर लगा कर सिर उठाये रसभरे अंगूर से खिलवाड़ करती और कभी उस अंगूर को होंठों मे दबा कर उसका रस निचोड़ने मे जुट जाती। मेरे होंठों के बीच फँसा हुआ अंगूर कभी जुबान का प्रहार सहता और कभी बेचारा दांतों के बीच फँस कर छटपटाता। हर वार पर वह तड़प उठती थी। कभी छूटने की चेष्टा करती और कभी मेरा सिर पकड़ अपने सीने पर जकड़ लेती। आमेना किसी दूसरी दुनिया मे पहुँच चुकी थी। उसकी उत्तेजना से भरी सिस्कारियाँ कमरे का वातावरण मादक बना रही थी।  

आमेना के सीने पर सैकड़ों निशान देकर मै उसकी कमर और नाभि पर छा गया था। वह मेरे हर वार पर जल बिन मछली की भांति तड़प रही थी। कमरे मे बस उसकी आहें और सिस्कारियाँ गूंज रही थी। उसकी केले के तने जैसी चिकनी माँसल जाँघें एक दूसरे से उलझ कर रह गयी थी। कामोत्तेजना से मेरा जिस्म भी काँप रहा था। उत्तेजना मे फुफकारते हुआ मेरा भुजंग ने उसके पेट पर और कभी जाँघ पर चोट मार कर अपनी उपस्थिति को दर्ज कर रहा था। वह अचकचा कर उठी और हमलावर को गरदन से पकड़ कर देखने लगी। मस्ती मे लहराते हुए भुजंग के सिर पर अपने होंठ टिका कर धीरे से उसे अपने मुख मे भर कर जुबान से मालिश करने लगी। उसकी उंगलियाँ भुजंग की गरदन से सरकती हुई जड़ तक चली गयी थी। उसकी नाजुक उंगलियों के स्पर्श से मेरे अन्दर खून का बहाव तेज हो गया था। अबकी बार उसे जबरदस्ती लिटा कर मै उस पर छा गया। मेरा कामांग अब उसके वर्जित क्षेत्र पर बार-बार चोट मार रहा था। मेरी उँगलियाँ सरकते हुए उसके स्त्रीत्व द्वार पर जा कर ठहर गयी थी। अपने वर्जित क्षेत्र पर मेरे स्पर्श के एहसास होते ही उसने बैठने की कोशिश की परन्तु उसके पुष्ट नग्न गोल नितंब मेरे शिकंजे मे फँस गये थे। इतनी देर मे उसके गदराये मखमली जिस्म से उठने वाले स्पन्दन और कंपन मुझे आगे बढ़ने के प्रेरित कर रहे थे।

हम दोनो एकाकार के लिए तैयार थे। मेरी उंगलियों ने उसके स्त्रीत्व के द्वार खोले और उसने मेरे झूमते हुए कामांग को गरदन से पकड़ कर दिशा दिखाते हुए धीरे से टिकाया और एक गहरी साँस लेकर रुक गयी थी। मैने धीरे से दबाव बढ़ाया तो उसके मुख से उत्तेजना भरी एक लम्बी सित्कार निकल गयी थी। मेरा कामांग अन्दर सरक गया था। उसकी सीत्कार सुन कर हमारी चोरी पकड़े जाने की डर से मैने बेड की ओर देखा तो गजल हमारी ओर देख रही थी। हमारी नजरें मिलते ही वह मुस्कुरायी परन्तु कामावेश के झोंक मे अपनी कमर पर लगातार दबाव बढ़ाता चला गया और एक आँख वाला अजगर सारी बाधाएँ पार करता हुआ अन्दर सरकता चला गया जब तक हमारे जोड़ एक दूसरे टकरा नहीं गये थे। मैने आमेना की ओर देखा तो उसके चेहरे पर दर्द के साथ उत्तेजना की लहर दिख रही थी। एक पल के लिए मै रुक गया और गजल की ओर देखने लगाआँखों की शर्म एक बार की होती है और फिर बेशर्मी हावी हो जाती है। अबकी बार कुछ पल के लिये उसकी आँखों मे अनायस ही मै खो गया था। तभी आमेना के जिस्म ने मुझे इशारा किया और हम दोनो अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गये थे। गजल की ओर देखते हुए वार पर वार करने लगा। मेरे हर वार पर वह कभी तड़प कर बचने की कोशिश करती और कभी उत्तेजना से ओतप्रोत होकर मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लेती। मेरे हर वार पर आमेना की उत्तेजना से भरी सित्कार न चाहते हुए अब कमरे मे गूंज रही थी। पता नहीं क्यों गजल की उपस्थिति के कारण मेरे अन्दर भड़की कामोत्तेजना एक नये आयाम पर पहुँच गयी थी।  

कामावेश मे आमेना की सिर्फ सिस्कारियाँ गूँज रही थी और कमरे मे तूफान वेग पकड़ चुका था। एक पल आया कि हम दोनो के लिए वक्त थम सा गया था। वह जोर से काँपी और धनुषाकार बनाते हुए हवा मे उठ गयी। मेरी बाँहों ने उसे थाम लिया कि तभी उसके जिस्म ने तीव्र झटका खाया और फिर काँपते हुए वह कालीन पर लस्त हो कर पड़ गयी। तभी मुझे भी ऐसा एहसास हुआ कि जैसे उसने मेरे कामांग को अपने शिकंजे जकड़ कर दोहना आरंभ कर दिया है। उसके गदराये हुए जिस्म के हर स्पंदन से मेरा जिस्म कामाग्नि से धधक रहा था। मै अपने चरम पर पहुँच गया था। पता नहीं क्या सोच कर मैने अपना गुस्से मे फुँफकारता हुआ एक आँख वाला अजगर आमेना की बहती हुई योनि से बाहर निकाल कर गजल के सामने कर दिया। आमेना के प्रेमरस मे नहाया हुआ मेरा जनांग धीमी रौशनी मे चमकता हुआ दिख रहा था। गजल फटी आँखों से मुँह खोले हतप्रभ उस मायावी एक आँख वाले अजगर को देखती रह गयी थी। तभी आमेना ने कुनमुना कर मेरी ओर देखा तो मेरी नजर का पीछा करते हुए गजल की ओर देख कर उठ कर बैठते  हुए बोली… बानो, अच्छे से देख लो कि बीवी की अपने खाविन्द के प्रति क्या जिम्मेदारी होती है। मेरी ओर देख कर बोली… समीर, इसे पता होना चाहिये कि खाविन्द और बीवी के बीच कैसे संबन्ध बनता है। इतना बोल कर वह मेरे हथियार को पकड़ कर अंदर धंसाने के बजाय अपनी दरार पर रगड़ने लगी। अबकी बार मोर्चा आमेना ने संभाल लिया था। कुछ ही देर मे एक बार फिर से मेरे वार शुरु हो गये थे। अबकी बार मै मानसिक रुप से गजल के जिस्म के साथ एकाकार कर रहा था। हर वार की चोट गहरी होती जा रही थी। कुछ ही देर मे मेरे अन्दर एक बार फिर से ज्वालामुखी धधकने लगा और आखिरी वार के साथ मेरे सारे बाँध छिन्न-भिन्न होकर बिखर गये थे। उत्तेजना के चरम पर पहुँचते ही कामरस बेरोकटोक बहने लगा। हम दोनो की साँसे उखड़ रही थी। गहरी साँसे लेते हुए हमने अपने आपको सयंत किया और फिर हम एक दूसरे को बाहों मे लिये कालीन पर लस्त हो पड़ गये थे। मैने धीरे से उसके बाल सहलाते कहा… अब तक तुम्हारी बहन के सिर से निकाह का भूत निकल गया होगा। इसलिये अब पिछली बातों को भूल कर अपने भविष्य के बारे मे सोचना शुरु करो। कुछ ही देर मे हम अपने सपनों की दुनिया मे खो गये थे।

…समीर। आमेना ने मुझको सुबह उठाया था। उसका चेहरा सुबह की धूप समान खिला लग रहा था। मुझसे रहा नहीं गया और मैने उठते हुए कहा… तुम बहुत सुन्दर हो आमेना। अपनी तारीफ सुनकर वह झेंप गयी थी। …तुम तैयार हो गयी? …हाँ। गजल तैयार होने गयी है। मै उठ कर बैठ गया। बीती रात की बात सोच कर मैने कहा… तुम दोनो जब तक नाश्ता करोगी तब तक मै तैयार होकर आता हूँ। मै तुम दोनो को फ्लैट पर छोड़ कर आफिस जाउँगा। इसी के साथ मेरी रोजमर्रा का कार्यक्रम शुरु हो गया था। जब तक मै आफिस के लिये तैयार हुआ तब तक वह दोनो नाश्ता समाप्त कर चुकी थी। उनको  फ्लैट पर छोड़ कर मै अपने आफिस की ओर निकल गया था। अपने आफिस पहुँच कर मै सीआईए डेटासेन्टर की मदद से जमाल कुरैशी के बारे मे जानकारी इकठ्ठी करने मे जुट गया। वह एक पाकिस्तानी कारोबारी बताया गया था। वह कुरैश ग्रुप के मालिक कमlल कुरैशी का बेटा था। कुरैश ग्रुप फिल्म उद्योग, इम्पोर्ट-एक्स्पोर्ट, रियल एस्टेट और गार्मेन्ट्स का कारोबार से जुड़ा हुआ था। उस ग्रुप का कारोबार पाकिस्तान के साथ कुछ पड़ोसी देशों मे फैला हुआ था। खुफिया रिपोर्ट्स मे उस ग्रुप के बारे मे आईएसआई के साथ संबन्धों का ब्यौरा भी दिया हुआ था। कुछ पड़ोसी देशों मे ड्र्ग्स वितरक और मानव तस्करी के भी उस पर कुछ आरोप लगे थे परन्तु पाकिस्तान सरकार मे प्रभाव होने के कारण हर आरोप से वह साफ बच गया था। पड़ोसी देशों मे कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ऐजरबैजान और आर्मिनिया थे। ऐजरबैजान की राजधानी बाकू मे कुरैश ग्रुप के इम्पोर्ट-एक्स्पोर्ट का हेडआफिस था। बाकू का नाम एक बार फिर से मेरे सामने आ गया था।

लंच टाइम पर मै आफिस से बाहर निकल गया था। दिमाग मे बहुत सी बातें कुलबुला रही थी। सड़क पर टहलते हुए अनायस ही मेरी नजर अमरीकन कोमप्लेक्स मे एक इमारत पर पड़ी। उस इमारत से नमाजियों की भीड़ निकलते हुए देख कर एक पल के लिये मै ठिठक कर रुक गया था। कुछ सोच कर उसी इमारत की ओर बढ़ गया और लान मे रखी हुई बेन्च पर बैठ कर सबसे पहला फोन मैने नीलोफर को मिलाकर पूछा… अपना कोई आदमी कराँची मे है? …क्यों? …मुझे जमाल कुरैशी के बारे मे पता लगाना है। क्या उसका कोई कनेक्शन मुंबई के माफिया के साथ है? …फिल्म या कोई अन्य खास कारोबार? …ड्रग्स और फिल्म। …पता करके बताती हूँ। तुम बताओ कब तक वापिस आ रहे हो? …अभी एक हफ्ते तो यहाँ रुकना पड़ेगा। तुम वहाँ का हाल सुनाओ। …समीर, सब ठीक है। ब्रिगेडियर नूरानी ने तुम्हारे सारे पैसे बैंक मे जमा करा दिये है। …यह नामुमकिन बात है। इसका तो यही मतलब है कि उसका बैंक के साथ बड़ा प्रगाड़ रिश्ता है अन्यथा नकली करेन्सी नोट वह बैंक मे कैसे जमा करा सकता है। उसने किस बैंक के द्वारा इस काम को अंजाम दिया था? …हबीब बैंक। …उसके प्रोमोटर्स का पता लगाओ। हमे अगर आईएसआई से टकरना है तो उसके नेटवर्क के ज्यादा से ज्यादा नोड्स का पता होना चाहिये। …और कुछ? …अल्ताफ और सादिक की ओर से क्या खबर है? …दोनो ने लगभग गिल्गिट से लेकर क्वेटा तक फैले हुए सभी छोटे और बड़े कबीलों के मुखियाओं के साथ संपर्क साध लिया है। आज से दूसरे महीने के तीसरे जुमे की नमाज के बाद जिरगा की बैठक चगई की ईदगाह मस्जिद मे होगी। उससे पहले हर हालत मे तुम्हें अपना फ्रंट मजबूत करने के लिये इस्लामाबाद मे होना जरुरी है।  …शुक्रिया। खुदा हाफिज। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।

मेरे पास अब तैयारी करने के लिये ज्यादा समय नहीं था। उनकी जिरगा होने से पहले मुझे बहुत से काम करने बाकी थे। एक बार फिर मै जिहाद और जिहादियों के बवंडर मे फँसने जा रहा था। बस समय के अनुसार फर्क इतना था कि पहले मै उनके सामने खड़ा था और अब उनके बीच मे रह कर मुझे काम करना था। मुझे यह भी यकीन था कि अब तक इस जिरगा की खबर आईएसआई तक पहुँच गयी होगी। उस दिन वहाँ पर वह भी भारी तादाद मे उपस्थित होंगें। यही सोचते हुए मै आफिस की दिशा मे चल दिया। मै जैसे ही अपनी सीट पर बैठा कि तभी वालकाट ने हाल मे प्रवेश किया। मुझे सीट पर बैठे देख कर वह मेरे पास आकर बोला… सैम, आप्रेशन जूलू की शुरुआती तैयारी के लिये क्या सोचा है? …आप्रेशन जूलू? …अमरीकन फोर्सेज को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकालने के आप्रेशन को जूलू नाम दिया है। …वहाँ कौनसी तंजीमो के प्रतिनिधि आ रहे है? …तालिबान के पाँच गुट, तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के दो गुट आ रहे है। बलोच रेसिस्टेन्स फ्रंट और उत्तरी अलाईन्स के दोस्तम के आने की संभावना है। …इनके अलावा और कौन होंगें? …हमारे यहाँ से हम दोनो, नाटो की ओर से एक प्रतिनिधि और भारत की ओर से एक प्रतिनिधि होगा। भारत की मध्यस्ता के कारण शायद इस बार ताजिक और उज्बेक सरकार के कुछ अधिकारी भी शामिल हो सकते है। मै समझ गया कि आप्रेशन जूलू जल्दी ही एक सच्चाई मे परिवर्तित होने जा रहा है। …सैम, यह मीटिंग आप्रेशन जूलू के आप्रेशनल ब्लू प्रिंट तैयार करने के लिये रखी गयी है। वालकाट के जाने के बाद मै कागज पर आढ़ी-तिरछी लाईनें खींचते हुए आप्रेशन जूलू को अपने मकसद के साथ समावेश करने के बारे मे सोचने बैठ गया।  

अपने गेस्ट हाउस जाने से पहले मैने कुछ सोच कर आमेना के फ्लैट की ओर लैंडरोवर मोड़ दी थी। रात के आठ बज रहे थे जब मैने तिलाई टाउन मे प्रवेश किया था। इस समय तक सड़कें लगभग खाली हो जाती थी। आज भी हमेशा की तरह इक्के-दुक्के लोग सड़क पर आते-जाते दिख रहे थे। आमेना की इमारत के नजदीक पहुँच कर मैने लैंडरोवर को धीमे किया और जैसे ही उस इमारत के सामने पहुँचा मेरी नजर दो गाड़ियों पर पड़ी जो पहले से वहाँ खड़ी हुई थी। दोनो गाड़ियाँ धूल से अटी हुई थी। हथियारों से लैस चेहरा छिपाये दो जिहादी सीड़ियों के पास खड़े हुए थे। एक नजर मे स्थिति का आंकलन करके मै बिना रुके आगे निकल गया था। मेरे दिमाग मे बार-बार एक शब्द गूंज रहा था… जमाल के लोग पहुँच गये है…खतरा…खतरा…खतरा। दो इमारतें छोड़ कर तीसरी इमारत के सामने अपनी लैंडरोवर खड़ी करके मैने डैशबोर्ड से पहले ग्लाक-17 निकाल कर अपने खीसे मे अटकाई और फिर पीछे से एके-47 और उसके कुछ क्लिप्स लेकर इमारत के पीछे की लेन मे चला गया। एक नजर लेन मे डाल कर दीवार के सहारे चलते हुए वापिस आमेना की इमारत की दिशा मे चल दिया। उस इमारत के पीछे की लेन सुनसान पड़ी हुई थी। इतना तो समझ मे आ गया था कि सीढ़ियों के रास्ते से उनके फ्लैट मे नहीं पहुँचा जा सकता है। कुछ सोच कर मै वापिस मुड़ कर साथ वाली इमारत की सिढ़ियों से उसकी छत की ओर निकल गया और तीन फीट उँची पैरापट की दीवार फांद आमेना की इमारत की छत पर पहुँच गया था।

जैसे ही मैने सीढ़ियों के दरवाजे को खोला तो दरवाजा पीटने की आवाज आ रही थी। मै दबे पाँव सीढ़ियों से नीचे उतरा और दीवार की आढ़ लेकर अहाते मे झांका तो मुझे कुछ लोग दिखे जिनके चेहरे पर कपड़ा बंधा हुआ था और कंधे पर हथियार लटके हुए थे। दुश्मन की संख्या का ज्ञान लेने के लिये मै एक सीढ़ी और नीचे उतर गया। छ्ह जिहादी मेरी नजर के सामने थे। मेरे पास कोई साईलेन्सर-युक्त हथियार भी नहीं था। पहले फायर से ही मेरे स्थान और हथियार का पता लगाना बेहद आसान था। एके-47 आम  पिस्तौल की तरह अचूक नहीं होती क्योंकि कम समय मे ज्यादा गोलियाँ निकलने के कारण उसकी गोलियां छितरा जाती है। एके-47 के एक ही बर्स्ट मे दुश्मन के धाराशायी होने मे कोई संदेह नहीं था लेकिन एक ही बर्स्ट नीचे खड़े हुए जिहादियों को मेरी उपस्तिथि से आगाह कर देता। उसके बाद उन तीनो को यहाँ से सुरक्षित निकालना मेरे लिये कठिन हो जाता। कुछ सोच कर मै दबे पाँव नीचे उतर कर दरवाजे के बीचोंबीच एके-47 तान कर खड़ा हो गया और बिना सुचित किये आमेना के फ्लैट के सामने एकत्रित जिहादियों की भीड़ पर तीन छोटे बर्स्ट फायर करके आमेना के दरवाजे को पीटते हुए चिल्लाया… आमेना। इतने नजदीक से फायरिंग करने के कारण हवा मे उड़ती हुई गोलियों ने जिहादियों के जिस्म और दीवार दोनो को उधेड़ कर रख दिया था। दरवाजा खुलते ही मुझे देख कर गजल मुझसे लिपट गयी और आमेना गोदी मे काशिफ को उठाये काँपती हुई आवाज मे बोली…समीर। मेरे पास समय नहीं था। …ताला लेकर मेरे पीछे आओ। गजल ने जल्दी से अन्दर से ताला लाकर मुझे पकड़ा दिया। मैने पहले उनके दरवाजे पर ताला लगाया और फिर उन्हें अपने साथ लेकर चल दिया। मै उन्हें उसी रास्ते से वापिस अपनी लैंडरोवर की ओर चल दिया जिस रास्ते से मै वहाँ पहुँचा था। काफी सोच विचार कर मैने यह निर्णय लिया था कि अगर सीढ़ियों पर तैनात जिहादी फायरिंग की आवाज सुन कर उपर नहीं आये थे तो अभी भी वह सीढ़ियों के पास घात लगा कर बैठे हुए होंगें। उसी रास्ते से कुछ ही देर के बाद हम लैंडरोवर तक सुरक्षित पहुँच गये थे।

फायरिंग की आवाज ने सारी सोसाईटी मे हंगामा मचा दिया। आस-पास कि इमारत मे रहने वाले लोग घर से बाहर निकल कर सड़क पर आ गये थे। जब तक पुलिस आती तब तक हम तिलाई टाउन को पीछे छोड़ कर गेस्ट हाउस की दिशा मे जा रहे थे। …समीर, तुम्हें कैसे पता चला कि वह लोग हमे ढूंढते हुए वहाँ पहुँच गये थे। …मै तो सिर्फ तुमसे मिलने के लिये आया था। तुम्हारी सिढ़ियों मे उन्हें खड़ा देख कर मै समझ गया कि जमाल के लोग तुम्हारा पता लगाने मे कामयाब हो गये है। आमेना जल्दी से कुछ बुदबदायी और फिर काशिफ को अपनी बाँहों मे जकड़ कर बैठ गयी थी। सारे रास्ते फिर सभी खामोश बैठे रहे थे। जिंदगी और मौत के बीच इंसान को सिर्फ अपने खुदा का ही ख्याल आता है। मै सोच रहा था कि गेस्ट हाउस आज की रात के लिये तो शायद सुरक्षित हो सकता है परन्तु कल हर हालत मे एक नयी जगह की तलाश करना जरुरी हो गया है। गेस्ट हाउस पहुँच कर सबसे पहले मैने लैंडरोवर मे अपने हथियार छिपाये और फिर दोनो को लेकर अपने कमरे मे चला गया। दोनो के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी। इस वक्त बात करने की हिम्मत तो दोनो मे नहीं थी। सोफे पर बैठने बाद भी वह दोनो एक दूसरे को पकड़ कर बैठी हुई थी। तभी मेरे फोन की घंटी बजी तो मै काल लेते हुए अपने कमरे से बाहर निकल गया था।

…बोलो नीलोफर। …समीर, जमाल कुरैशी कोई छोटा-मोटा कारोबारी नहीं है। वह कुरैश ग्रुप के मlलिक कमाल कुरैशी का बेटा है। कमाल कुरैशी जनरल फैज का आदमी है। उसका मुख्य कारोबार आईएसआई के ड्रग्स नेटवर्क मे वितरण का है। आईएसआई उसके काले करोबार के जरिये सभी चरमपंथी तंजीमों को पैसे पहुँचाती है। औपचारिक रुप से वह कराँचीवुड मे फिल्मे व ड्रामे फाईनेन्सर व रियल एस्टेट का काम करता है। असलियत मे कुरैश ग्रुप के जरिये जनरल फैज अपना काला कारोबार चला रहा है। तुम्हें इस आदमी से दूर रहने की जरुरत है। …तो जनरल फैज की दुखती नस का नाम कुरैश ग्रुप और कुरैशी परिवार है। …बेवकूफ मत बनो। इनको मत छेड़ो। …नहीं छेड़ रहा। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया और वापिस कमरे मे चला गया था। दोनो सहमी हुई बैठी थी। मुझे देखते ही आमेना बोली…अब तक तुम्हें समझ मे आ गया होगा कि वह कितना जालिम इंसान है। क्या अब तुम हमारी मदद करोगे? मैने उस वक्त कोई जवाब देना ठीक नहीं समझा तो उनके खाने का प्रबन्ध करने के लिये रुम सर्विस को आर्डर देने मे व्यस्त हो गया।

डिनर के पश्चात कालीन पर फैलते हुए मैने कहा… अब तुम आराम करो। आमेना उठ कर मेरे साथ कालीन पर बैठते हुए बोली… तुम गजल से निकाह कर लोगे तो उस जालिम से हमेशा के लिये हमारा पीछा छूट जाएगा। …तुम इसे जितना आसान समझ रही हो वह इतना आसान नहीं है। यहाँ पर निकाह करके तुम दोनो सुरक्षित बाकू पहुँच भी गयी तो क्या वहाँ तुम दोनो बच जाओगी? तब तक गजल भी काशिफ को लेकर मेरे पास कालीन पर बैठ गयी थी। वह मेरा हाथ पकड़ कर बोली… मै कहीं नहीं जा रही हूँ। मै यहीं पर आपके साथ रहूँगी। मैने उसका हाथ थपथपाते हुए कहा… मुझे सोचने के लिये कुछ समय दोगी तो इस मुश्किल का हल भी निकल आयेगा अन्यथा जल्दबाजी मे लिया निर्णय हम सब पर भारी पड़ जाएगा। सबसे पहली चिन्ता इस बात की है कि कल सुबह यह गेस्ट हाउस भी छोड़ना पड़ेगा। अगर वह तुम्हारे फ्लैट तक पहुँच गये है तो वह इस गेस्ट हाउस पर भी जल्दी पहुँच जाएँगें। इसलिये पहले तुम्हें कल के बारे मे सोचने की जरुरत है। मेरी बात सुन कर दोनो चुप हो गयी थी। कुछ देर वह मेरे साथ बैठी रही और फिर मेरे साथ कालीन पर लेट गयी। मै उनकी मानसिक स्थिति को समझ रहा था तो मैने चुप रहना बेहतर समझा और आँख मूंद कर सोने की कोशिश मे जुट गया। मुझे याद नहीं कि कब नींद का झोंका आया लेकिन मुझे यकीन है कि उन दोनो ने वह रात जागते हुए काटी थी।

 

कराँची

…जमाल, काबुल से बुरी खबर आयी है। हमारे छह आदमी मारे गये है और दो आदमी पकड़े गये है। वह दोनो लड़कियाँ वहाँ से फरार हो गयी है। …क्या बकवास कर रहे हो? …जमाल तमीज से बात करो। …तुमसे दो लड़कियाँ पकड़ी नहीं गयी और मुझे तमीज सिखाने चले हो। मेरी जनरल फैज से बात कराओ। …जनरल फैज आफिस मे नहीं है। जमाल, तुम्हें समझना होगा कि यह हमारा आप्रेशन नहीं था। हमने सिर्फ उनकी लोकेशन का पता लगाया था। अफगानिस्तान मे फिलहाल हम डायरेक्ट एक्शन नहीं ले सकते। इसीलिये उन दोनो लड़कियों को वापिस लाने की जिम्मेदारी हमने दाईश के गुट को दी थी। …अब वह दोनो लड़कियाँ कहाँ है? …पता नहीं। हमारे लोग पता करने मे लगे हुए है। कुछ भी करने से पहले मुझे बस एक बात पूछनी है कि क्या कोई तुम्हारा विपक्षी गुट उनकी मदद कर सकता है? …नहीं। उन दोनो का किसी भी गुट से कोई संबन्ध नहीं है। …फिर एक अनजान देश मे उनकी मदद कौन कर रहा है। दाईश के छह लड़ाकू कैसे मारे गये है? …यह तुम पता करो। मै यकीन से कह सकता हूँ कि यह काम उनके बस का नहीं है। …यही बात तुम मौलाना फरीद को बता देना। अब दाईश भी उन दोनो की तलाश कर रही है। उनको क्या जवाब दोगे? …कर्नल हमीद, मुझे मौलाना फरीद की धमकी देने की कोशिश मत करना। इन जैसों मौलाना और मौलवियों की हैसियत मेरे टुकड़ों पर पलने वाले कुत्तों से ज्यादा नहीं है।  वह दोनो लड़कियाँ और बच्चा मुझे वन पीस मे वापिस चाहिये। अगर उनमे किसी एक को कुछ भी हुआ तो जनरल फैज का पूरा आप्रेशन तबाह हो जाएगा। …जमाल, हम उन्हें ट्रेस करने की पूरी कोशिश कर रहे है। मौलाना फरीद को तुम समझा दोगे तो ज्यादा बेहतर होगा। …ठीक है। जनरल फैज के लौटते ही उनकी मुझसे बात करा देना। इतनी बात करके जमाल ने लाईन काट दी थी।

जमाल ने एक नम्बर मिलाया और जवाब सुनते से ही बोला… अस्स्लाम वालेकुम फरीद साहब। जमाल कुरैशी बोल रहा हूँ। …वालेकुम मियाँ। कैसे याद किया? …कर्नल हमीद ने बताया कि उसने दो लड़कियों को काबुल से कराँची पहुँचाने का काम आपके गुट को दिया था। …मियाँ वह दोनो छिनाल मेरे छह लड़ाकुओं को हलाक करके निकल गयी। मेरे आदमी उन्हें काबुल मे ढूंढ रहे है। फरीद की बात को बीच मे काटते हुए जमाल ने कहा… उन दोनो को सही सलामत कराँची पहुँचाना है। कीमत तुम्हारी और काम मेरा। कर्नल हमीद से जो लेना है वह ले लेना लेकिन वह दोनो मुझे बच्चे के साथ सही सलामत चाहिये। …मियाँ, हमने तो बदला लेने की ठानी थी लेकिन तुमने कहा है तो वही होगा। …शुक्रिया। इतनी बात करके जमाल ने फोन काट दिया था।

रविवार, 18 अगस्त 2024

  

शह और मात-14

 

कुछ देर के बाद जब सब कुछ शान्त हो गया तब मैने उन्हें आगे की कार्यवाही के बारे मे समझाने बैठ गया कि किस तरह से कर्नल श्रीनिवास से मिलना है। मेरे बारे मे उन्हें पता नहीं लगना चाहिये क्योंकि मै एक पाकिस्तानी नागरिक हूँ। माला ने गजल की ओर देखा तो वह अभी भी किसी सोच मे डूबी हुई थी। वह तुरन्त गजल से बोली… बानो, अपने खाविन्द का ख्याल रखना। अगर हमे पता चला कि तुम हमारे भाई को फिर से परेशान कर रही हो या वापिस जाने मे आनाकानी कर रही हो तो अबकी बार हम तीनो तुम्हारी खबर लेने वापिस आ जाएँगी। गजल कुछ नहीं बोली बस उसने धीरे से सिर हिला दिया था। बात करते हुए कब शाम हो गयी हमे पता ही नहीं चला था। कर्नल श्रीनिवास के आने का समय हो गया था। आमेना और मेरा फोन नम्बर तीनो को देने के बाद मै गजल को लेकर अपनी लैंडरोवर मे जाकर बैठ गया था। मेरी नजर उनकी इमारत पर जम गयी थी। अंधेरा होते ही सड़क पर हमेशा की तरह घर लौटने वालों की चहल-पहल आरंभ हो गयी थी। कुछ समय के बाद एक स्टेशन वेगन इमारत के आगे आकर रुकी और एक आदमी तेजी से उतर कर सिढ़ियों की दिशा मे बढ़ गया और उसके पीछे हथियारों से लैस भारतीय सेना की वर्दी मे दो सैनिक स्टेशन वैगन से उतर कर सिढ़ियों पर तैनात हो गये थे।

मैने अपनी घड़ी पर नजर टिका दी थी। हर गुजरते पल के साथ मेरी धड़कन बढ़ती जा रही थी। …गजल चलो मेरे साथ। एक पल के लिये वह चौंक गयी थी परन्तु वह जल्दी से गाड़ी से उतर कर मेरे साथ चल दी थी। तभी सीढ़ियों से तीन बुर्कापोश स्त्रियाँ उतरती हुई दिखाई दी और उनके पीछे वही आदमी आ रहा था। सड़क पर पहुँचते ही उन तीनो को दोनो सैनिकों ने अपने सुरक्षा घेरे मे लेकर स्टेशन वैगन की ओर चल दिये। श्रीनिवास एक दृष्टि चारों ओर डाल कर स्टेशन वैगन की ओर बढ़ गया। हम जब तक सीड़ियों से चढ़ कर पहली मंजिल पर पहुँचे तब तक स्टेशन वैगन जा चुकी थी। पहली मंजिल से कुछ पल उसकी लाल टेल लाईट देख कर तीसरी मंजिल की दिशा मे चल दिया। सीड़ियाँ चढ़ते हुए पता नहीं क्यों मुझे एक खालीपन का एहसास हो रहा था। आमेना दरवाजे पर खड़ी मिल गयी थी। हमे आते हुए देख कर बोली… आपका काम खत्म हो गया। मैने मुस्कुरा कर गजल के कन्धे पर हाथ रख कर आमेना से कहा… तुम्हारी अमानत तुम्हें सही सलामत वापिस कर रहा हूँ। इसी के साथ हमारा करार समाप्त हो गया है। खुदा हाफिज। बस इतना बोल कर मै वापिस चल दिया था। दोनो दरवाजे पर खड़ी मुझे देखती रही परन्तु बोली कुछ नहीं। लैंडरोवर स्टार्ट करके मै गेस्ट हाउस की दिशा मे निकल गया था।

डिनर करके जब गेस्ट हाउस पहुँचा तब तक नौ बज गये थे। कमरे मे पहुँचते ही कमांड सेन्टर मे जनरल रंधावा को तीनो लड़कियों के बारे मे बता कर मैने उनकी रिकार्डिंग भी उनको भेज दी थी। जनरल रंधावा ने बस इतना बताया था कि अजीत सर उन तीनो के लिये गोपीनाथ से लगातार संपर्क मे है। बस इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। अपने बिस्तर पर लेट कर अंजली के साथ बिताये हुए वक्त को याद करते हुए मेरी आँख लग गयी थी। पता नहीं कैसे अचानक चौंक कर मै जाग गया और अपना स्मार्टफोन उठा कर उन लड़कियों की रिकार्डिंग सुनने बैठ गया था… बुर्हान के परिवार का किसी पीरजादा फिरके से ताल्लुक था। धार्मिक शिक्षा और मेरा शुद्धिकरण कराने के लिये बुर्हान मुझे बाकू ले गया था। वहाँ उसके पीर का बहुत बड़ा धार्मिक प्रशिक्षण केन्द्र था।

यह बात मेरे दिमाग के किसी कोने मे दब कर रह गयी थी। एक बार फिर से पीरजादा का नाम मेरे सामने आ गया था। सोते हुए पता नहीं कैसे दिमाग मे जैसे ही यह ख्याल आया कि जोरावर का पता लगाने के लिये अंजली बाकू गयी है मै चौंक कर उठ कर बैठ गया था। बाकू का पीरजादा कहीं अंजली का अब्बा तो नहीं है? कुछ देर बिस्तर पर पड़े हुए इस सवाल का जवाब तलाशता रहा और जब कोई पुख्ता सूत्र हाथ नहीं लगा तो सेटफोन पर अंजली के लिये जल्दी से एक मेसेज टाइप किया…

क्या बाकू के पीरजादा फिरके का कोई संबन्ध तुम्हारे अब्बा और उनके फिरके के साथ है?  इसका जवाब मुझे तुरन्त चाहिये। 

उसका जवाब तुरन्त तो नहीं अपितु कुछ देर के बाद आया… पीरजादा नाम के पाकिस्तान मे चार फिरके है। उनमे से एक मीरवायज परिवार का है। बाकू के पीरजादा के बारे मे मेरे पास कोई जानकारी नहीं है। क्यों अचानक तुम्हें क्या हुआ?  

मेरे लिये पीरजादा नाम की गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गयी थी। मैने अगला मेसेज टाइप किया… पहले पता लगाओ कि क्या तुम्हारे अब्बा का कोई संबन्ध बाकू से है? जहाँ तक मुझे याद है कि जब ताहिर उस्मान अब्बासी से पूछताछ चल रही थी तब उसने बताया था कि फारुख मीरवायज ने बाकू मे काफी पैसा लगाया था। यह सब इत्तेफाक तो नहीं हो सकता। इसलिये फौरन बाकू छोड़ दो क्योंकि वहाँ तुम्हारे लिये खतरा है।

अंजली को मैसेज भेज कर मै दोबारा लेट गया। रात के तीन बज रहे थे और अब तक नींद समाप्त हो गयी थी। कुछ देर मै बिस्तर पर पड़ा हुआ अपने आगे के कार्यक्रम की रुपरेखा बनाता और बिगाड़ता रहा था। सुबह पाँच बजे मै तैयार होने के लिये चला गया था। सात बजे तक नाश्ता करके मै तैयार हो गया। मैने एक बार सेटफोन पर नये मेसेज को चेक किया तो अंजली की ओर से कोई खबर नहीं आयी थी। दो एके-47 और एक एके-53 और उनकी कुछ क्लिप्स अभी भी मेरी लैंडरोवर के पीछे पड़ी हुई थी। उन हथियारों को भी ठिकाने लगाना था। कुछ सोच कर लैंडरोवर को लेकर मै सड़क पर निकल गया। काबुल शहर से बाहर निकलते ही जलालाबाद के रास्ते पर काबुल नदी के पुल पर गाड़ी रोक कर एके-53 और एक एके-47 को जलमग्न करके वापिस काबुल की ओर चल दिया। वहाँ से लौटने से पहले बची हुई एक एके-47 और क्लिप्स को किसी आढ़े वक्त के लिये पीछे की सीट के नीचे बने टूल बाक्स मे छिपा दिया था। जब तक काबुल पहुँचा तब तक नौ बज गये थे। मै वहाँ से सीधे अमेरीकन एम्बैसी चला गया था।

डेटासेन्टर मे अपना कार्ड इस्तेमाल करके मैने जैसे ही प्रवेश किया तो एक क्युबिकल पर अपनी नेम प्लेट “सैम भट्ट” लगी हुई थी। अभी तक जो भी लोग उपस्थित थे वह सभी डेटासेन्टर मे तैनात थे। अपनी सीट पर बैठते ही मेरी नजर अनायस ही शीशे के स्लाईडिंग दरवाजे की ओर चली गयी जहाँ से एंथनी वालकाट प्रवेश कर रहा था। वह मेरे पास पहुँच कर बोला… सैम जलालाबाद की क्या रिपोर्ट है? मैने पलट कर पूछा… एंथनी, तुम वहाँ कैसे पहुँच गये? वालकाट मुस्कुराते हुए बोला… हमारे एयरबेस पर हमले की सूचना मिलते ही मै हमलावरों से पूछताछ करने के लिये जलालाबाद एयरबेस पहुँचा था। रज्जाक से पूछ्ताछ के दौरान जब दाईश और दिलावर पठान का नाम आया तो मै चौंक गया था। जब सेना ने देर रात को दिलावर पठान को पकड़ने के लिये उसके घर पर छापा मारने का निर्णय लिया तब मैने भी उनकी टीम के साथ जाने का मन बना लिया। मै जानता था कि अगर तुम सैन्य कार्यवाही मे फँस गये तो फिर तुम्हे बाहर निकालना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिये तुम्हें वहाँ से सुरक्षित निकालने के लिये मै उनकी रेड मे शामिल हो गया था। अब तुम बताओ कि दिलावर पठान के बारे मे क्या रिपोर्ट है?

मैने जल्दी से कहा… दिलावर और उसके बेटे दाईश के लिये काम करते है परन्तु ऐसा लग रहा है कि दाईश भी दो फाड़ों मे बँट गया है। एक समूह सिकन्दर हक्कानी के साथ है और दूसरा समूह मुल्ला और उसके साथियों के साथ है। दिलावर की दाईश दूसरे समूह की समर्थक है। एक और बात पता चली कि हक्कानी समूह आजकल छोटे गुटों को अपने साथ विलय करने मे लगा हुआ है। इस बात की पुष्टि अभी नहीं हुई है कि क्या कोई अमरीकन गुट भी हक्कानियों की मदद कर रहा है? मुझे बीच मे टोकते हुए वालकाट ने पूछा… यह तुम किस आधार पर कह सकते हो? …हक्कानी नेटवर्क आखिर क्यों छोटे गुटों को अपने समूह मे विलय कर रहा है। जब मै इसका जवाब ढूंढने की कोशिश करता हूँ तो मुझे यही लगता है कि उनको यकीन है कि अमरीका जल्दी ही अफगानिस्तान छोड़ कर जाने वाला है और इसीलिये वह अपनी ताकत आने वाले समय के लिये बढ़ा रहे है। अगर तालिबान के ज्यादा गुटों ने उनका समर्थन किया तो अफगानिस्तान की सत्ता उनके हाथ मे होगी। अगर हक्कानी समूह के हाथ मे अफगानिस्तान की सत्ता आ गयी तो अपरोक्ष रुप से यहाँ की सत्ता पाकिस्तान के हाथ मे आ जाएगी।

…सैम तुम्हारा आंकलन बहुत हद तक ठीक है। हमारे स्टेट डिपार्टमेन्ट की भी यही सोच है तो अब इसका तोड़ क्या हो सकता है? …एंथनी, इससे पहले मै कोई सलाह दूँ तुम्हारे लिये अच्छा होगा कि उस अमरीकन गुट का पता लगाओ जो यहाँ की सत्ता हथियाने मे पाकिस्तान की मदद कर रहा है। …मै उनके बारे मे कुछ हद तक जानता हूँ। …अगर तुम जानते हो तो मुझे अंधेरे मे क्यों रखा हुआ है। वह कौन लोग है? …वह कुछ पाकिस्तानी प्रेमी सेनेटर्स है। उनका राजनितिक भविष्य इस्लामिस्टो के हाथ मे है। …सबसे पहले तो हमे उन पर अंकुश लगाना होगा और फिर अखुन्डजादा और मुल्ला ओमर के समूह को मजबूत करने मे सहायता करनी होगी। …वह कैसे? …हक्कानी का प्रभाव कम करके और दूसरे समूह की मदद करके ही हम इस चक्रव्युह को तोड़ने कामयाब हो सकते है। …गुड। इसका एक्शन प्लान तैयार करो। …सौरी, एक्शन प्लान से पहले हमे जमीनी हकीकत को समझना जरुरी है। यह जग जाहिर है कि तालिबान का मुख्य फाईनेन्सर एहमद हबीबुल्लाह अमरीका का समर्थक है।  मै उससे मिलना चाहता हूँ। …किसलिये? …एंथनी एक बात तुम अच्छे से समझ लो कि मुझे काम करने की आजादी चाहिये। मै अगर अपनी हर कार्यवाही का कारण बताने मे लग गया तो मुश्किल हो जाएगी। …मै सिर्फ पूछना चाहता हूँ कि क्या काम है। हो सकता है कि तुम्हारा काम जान कर मै तुम्हें किसी और आदमी से मिलने की सलाह दूँ। …एंथनी, मैने सुना है कि डूरंड लाईन के खिलाफ एक तालिबानी ने मोर्चा खोल दिया है। मै सिर्फ यह जानना चाहता हूँ कि क्या उस तालिबानी को शीर्ष नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है। अबकी बार वालकाट ने कुछ सोच कर जवाब दिया… परवेज खान इस जानकारी के लिये उपयुक्त व्यक्ति है। वह तालिबान का मुख्य रणनीतिकार है। उससे मिलने का मै इंतजाम कर दूँगा। कुछ देर पश्चिमी सीमा पर उत्पात की बात करने के बाद वालकाट वापिस चला गया था। बातों-बातों मे मैने उसे अपनी लैंडरोवर के बारे मे बता कर कह दिया कि यूएस एम्बैसी के द्वारा उसके कागज तैयार करवा दिये जाये जिससे मेरी आवक-जावक मे कोई अड़चन नहीं आये।

उसके जाने के बाद शाम तक मै आईपेड खोल कर सीआईए से खुफिया जानकारी निकालने की प्रेक्टिस करता रहा था। सीआईए का डेटासेन्टर सूचना व जानकारी की खान साबित हो रही थी। तालिबान के सभी छोटे और बड़े समूहों के नाम और उनके नेतृत्व की जानकारी बड़ी आसानी से उप्लब्ध हो गयी थी। इसी प्रकार अफगानिस्तान के सभी संवेदनशील स्थानों की जानकारी भी मिल गयी थी। यह सभी जानकारियाँ मैने अपने आईपेड पर उतार कर अपने एक्शन प्लान के बारे मे सोचने बैठ गया। पहला सवाल दिमाग मे यही आ रहा था कि अमरीकी फोर्सेज के द्वारा किस प्रकार मुल्ला मोइन की मदद कर सकते है? इतना तो तय था कि अमरीकी फौज सामने आकर तो मुल्ला मोइन की मदद नहीं कर सकती थी। मै इस गुत्थी को सुलझाने मे उलझा हुआ था कि वालकाट ने फोन पर सूचना दी कि कल सुबह ग्यारह बजे परवेज खान काबुल शहर से बाहर निकल कर पघमान की शाही मस्जिद मे मिलेगा। तुम्हारे आईपेड पर लोकेशन मैप भेज दिया है। उसने बस इतनी बात की थी। मै परवेज खान के बारे मे मालूमात इकठ्ठी करने बैठ गया था। शाम तक मुझे पता चल गया था कि परवेज खान पिछली तालिबान सरकार मे रक्षा विभाग का उपमंत्री था। वह वफाजई नामके कबीले का मुखिया था। उसके कबीले की अफगानी लोगों मे अपनी साख थी क्योंकि उसके अब्बा रुसी फौज से लड़ते हुए शहीद हो गये थे। वह हाफिज था और शरिया को अफगानिस्तान मे नाफिज करने का मजबूत पैरोकार है। अगले दिन की मीटिंग की तैयारी करके मै अपने गेस्ट हाउस की दिशा मे निकल गया था।

गेस्टहाउस मे पहुँच कर अपने कपड़े बदल कर रात के खाने के बारे सोच रहा था कि तभी आमेना का फोन आ गया। उसने आज रात खाने पर बुलाया था। एक बार तो मैने मना करने की सोची परन्तु कुछ सोच कर मैने हामी भर दी थी। आधे घंटे बाद मै उनके फ्लैट के दरवाजे के सामने खड़ा हुआ था। पहली दस्तक पर ही दरवाजा खुल गया और मुझे देखते ही आमेना चहकते हुए बोली… जहेनसीब। वह कुछ और बोलती उससे पहले घर मे प्रवेश करते हुए मैने कहा… आमेना बीबी, भूख सता रही है। जल्दी से दस्तरखान लगाओ। …आप बैठिये। मै आपके लिये खाना लगाती हूँ। इतना बोल कर वह किचन मे चली गयी और मै अपने पाँव फैला का कर सोफे पर जा कर जम गया था। …गजल नहीं दिख रही है। …वह आज यहाँ नहीं है। मै उसके बारे मे पूछना चाहता था परन्तु कुछ सोच कर चुपचाप बैठ गया। थोड़ी देर के बाद बड़े से थाल मे कुछ मटन की बोटियाँ, रोगनजोश, चावल और रोटियाँ लेकर मेज पर रख कर वह बड़ी अदा से बोली… उस बेचारी नादान को अपनी मोहब्बत के जाल मे तुमने आखिर फाँस ही लिया। उसकी बात पर ध्यान न देकर मै खाने पर टूट पड़ा था। वह भी मेरे साथ खाना खाने बैठ गयी थी। …उसके बारे मे कुछ सोचा है? …किसके बारे मे? …गजल के बारे मे पूछ रही हूँ। क्या उसके साथ निकाह करोगे? खाना खाते हुए अचानक मेरे हाथ रुक गये थे। मैने उसकी ओर देखा तो वह काफी गंभीर दिख रही थी।

…आमेना कुछ भी ख्याली पुलाव बनाने से पहले अच्छे से समझ लो कि मै शादी शुदा और दो बच्चों का बाप हूँ। गजल और तुम भली भाँति जानती हो कि एक काम के लिये तुम्हारी मदद ली थी और उसके लिये मैने तुम्हारी मुँह मांगी कीमत अदा की है। इसलिये यह पूछना ही बेमानी है कि क्या मै उसके साथ निकाह करुँगा। मैने जल्दी से अपना खाना समाप्त किया और हाथ धोकर चलने के लिये तैयार हो गया। आमेना ने तब तक मेज पर रखा हुआ सारा सामान हटा दिया था। …लजीज खाने के लिये शुक्रिया। मै चलता हूँ। वह तमक कर मेरा हाथ पकड़ कर बोली… इतनी जल्दी क्या है। क्या अपने पैसे नहीं वसूलने है। …मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है। बस अगर मेरे लिये कुछ कर सकती हो तो प्लीज उस नासमझ को समझाने की कोशिश करो कि यह सिर्फ एक कारोबारी करार था। …तुम बड़े बेमुरव्वत हो। …मै उसके भले की सोच कर कह रहा हूँ। उसे समझना चाहिये कि इस रिश्ते मे रुसवाई के सिवा और उसके लिये और कुछ नहीं है। इतना बोल कर मै वहाँ से चल दिया। रास्ते भर मै अपने आपको समझा रहा था कि मैने जो किया वह उन दोनो के लिये हितकर है।

अगले दिन सुबह तैयार होकर पघमान की दिशा मे निकल गया था। कंपनी तिराहे तक सब कुछ शहरी लग रहा था परन्तु शहर से बाहर निकलते ही रेगिस्तान सा सपाट पथरीला मैदान आंखों को चुभने लगा। सड़क की हालत भी कोई अच्छी नहीं थी। अचानक पथरीला मैदान एकाएक चट्टानी पहाड़ियों मे तबदील होने लगा और सड़क के साथ-साथ बहती हुई पघमान नदी के दर्शन होते ही हरी-भरी पहाड़ी घाटी मे पहुँच गया था। पघमान बस स्टाप पर अचानक सड़क घूम कर वापिस मुड़ती हुई लगी तो बस स्टाप पर खड़े हुए कुछ लोगो से शाही मस्जिद का रास्ता पूछा तो उन्होंने एक थोड़ी दूर पर एक विशाल जफर पघमान द्वार की ओर इशारा करके बताया कि सीधे निकल जाओ। धूल भरी पथरीली सड़क से द्वार पार करके मै पघमान मे प्रवेश कर गया था। देखने मे पघमान एक छोटा सा कस्बा लग रहा था। लोगों से पूछते हुए आगे बढ़ता चला गया परन्तु शाही मस्जिद का किसी को पता नहीं था। सभी मुझे दरार-ए-जरगर मस्जिद की राह दिखा रहे थे। काफी घूमने के पश्चात इतना तो समझ मे आ गया था कि नदी के किनारे ही बसावट ज्यादा थी। मैने घड़ी पर नजर डाली तो ग्यारह बजने मे कुछ मिनट शेष थे परन्तु शाही मस्जिद का कोई सुराग अभी तक नहीं मिला था।

एक खंडहर के पास लैंडरोवर खड़ी करके मै नीचे उतर कर वीराने मे टहलते हुए सोचने लगा कि जब यहाँ के रहने वाले को शाही मस्जिद का पता नहीं है तो ऐसे हालात मे क्या करना चाहिये। मैने अपना आईपैड निकाल कर एक बार फिर से लोकेशन मैप पर शाही मस्जिद को एक्टिव किया तो वह एक पुराने कब्रिस्तान की ओर संकेत कर रहा था। कुछ सोच कर मै गाड़ी मे बैठा और कब्रिस्तान की दिशा मे निकल गया। कुछ ही देर मे सड़क से उतर कर पथरीली कच्ची पगडंडी सी सड़क पर एक उँचे टावर के सामने पहुँच कर मेरी नजर एक पुराने कब्रिस्तान पर पड़ी जो पहाड़ की तलहटी मे बने होने के कारण मुख्य सड़क से दिखाई नहीं दे रहा था। कब्रिस्तान से कुछ दूरी पर एक टूटी हुई खंडहरनुमा मस्जिद देखते ही मै उस ओर निकल गया था। दूर से लैंडरोवर की आवाज सुनते ही एकाएक उस मस्जिद से दर्जन से ज्यादा हथियारबंद जिहादी बाहर निकलते हुए दिखे तो मैने अपनी लैंडरोवर वहीं खुले मे खड़ी करके पैदल ही उनकी दिशा मे चल दिया। अगले कुछ मिनट मे मै उनके निशाने पर बीच सड़क पर खड़ा हुआ था। सिर और मुँह पर कपड़ा बाँधे एक जिहादी ने पूछा… कहाँ जा रहा है? …मुझे परवेज खान साहब से मिलना है। एंथनी वालकाट ने भेजा है। दो आदमी मेरी ओर झपटे और मेरी तलाशी लेकर मुझे धकेलते बोले… चल। वह मुझे मस्जिद के पीछे हरे-भरे मैदान मे ले आये थे।

…यहाँ इंतजार कर। इतना बोल कर एक जिहादी तेजी से मस्जिद मे चला गया था। कुछ ही देर मे अपनी हथियारबंद फौज से घिरा हुआ परवेज खान मस्जिद से निकला और मेरी ओर आते हुए बोला… खुशामदीद सैम भाईजान। औपचारिकताएँ जब तक पूरी हुई तब तक पेड़ के नीचे दो कुर्सी लाकर मैदान मे रख दी गयी थी। …आईये। मै उसके साथ चल दिया और उसकी फौज पूरे मैदान मे फैल गयी थी। कुर्सी पर बैठते हुए उसने पूछा… एंथनी ने बताया था कि आप कुछ जानना चाहते है। …परवेज भाई, इस वक्त सिकन्दर हक्कानी चमन बार्डर से तुर्खैम बार्डर तक सभी छोटे-बड़े गुटों को अपने समूह मे विलय करने मे जुटा हुआ है। आपका मोर्चा दिनोदिन उनके सामने कमजोर पड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। आप लोग इसके बारे कुछ नहीं कर रहे है? …सैम भाई, उनके पीछे आईएसआई और उसका पैसा काम कर रहा है। कतर मे हमारी तीन असफल वार्ता के पीछे हक्कानी नेटवर्क है। वह अमरीका को यहाँ से निकलने नहीं देना चाहते। हमारे गुटों मे इतनी फूट है कि कोई एक बात पर राजी नहीं होता। अखुन्ड्जादा की अपनी फरमाईशें है। इसी प्रकार जिरगे के मुख्य सरदारों मे ओमार, फिरोज, जोरावर, शेरखान, मोहसिन व अन्य ने भी अपनी फरमाईशें रख दी है। बस इसी फूट का हक्कानी फायदा उठा रहे है। अखुंड्जादा, ओमार, मोहसिन और जोरावर के पास तीन से पाँच हजार के करीब लड़ाकू है। इसी प्रकार फिरोज और शेरखान के पास लगभग पाँच हजार लड़ाकू है। उत्तरी भाग मे दोस्तम की उत्तरी अलाईन्स उज्बेक और ताजिक के लड़ाकुओं हमारा विरोध कर रही है। वह कुछ और बोलता उससे पहले मैने पूछ लिया… परवेज भाई, आपसी लड़ाई तो चलती रहेगी लेकिन आपके समूह की डूरंड लाईन पर क्या राय है? मेरा सवाल सुन कर वह चौंक गया था। …इस पर हमारी कोई राय नहीं है। …तो मुल्ला मोईन आपके खिलाफ काम कर रहा है? एकाएक वह उठ कर खड़ा हो गया और वापिस चलने लगा तो मैने पीछे से कहा… परवेज भाई, यही मुद्दा आप सभी को हक्कानियों के सामने एक जुट खड़ा कर सकता है। दोस्तम तो अपनी राय सबके सामने रख चुका है। अब यह निर्णय आपको लेना है। इतना बोल कर मै भी खड़ा हो गया था।

दो कदम चल कर वह वापिस लौट कर अपने शब्दों को चबाते हुए बोला… मै डूरंड लाईन को नहीं मानता। खैबरपख्तून्ख्वा हम पश्तूनो का है। अटक तक का खित्ता हमारा है। पाकिस्तान ने जबरदस्ती अंग्रेज हुकूमत के साथ साँठगाँठ करके पख्तूनिस्तान को अपने कब्जे मे ले लिया था। उसे हमे वापिस लेना है। यह मेरी निजि राय है। मैने जल्दी से कहा… दोस्तम की भी यही राय है। मुल्ला ओमर की भी यही राय थी तो अब तालिबानियों को क्या हो गया है? …मियाँ तुम अमरीकन लोग अपने निजि स्वार्थ के लिये ही हम पर इस मांग को छोड़ने का दबाव डाल रहे हो। …परवेज भाई, अमरीका बाहर निकलना चाहता है। उसका इसमे निजि स्वार्थ है लेकिन इस एक मुद्दे पर आपके सभी छोटे और बड़े गुट एक बड़ी ताकत बन कर हक्कानियों के सामने उभर सकते है। हक्कानी गुट इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ जायेगा। …तुम्हारी सरकार नहीं मानेगी। …मैने मान लिया कि इसके लिये अमरीका बहादुर नहीं मानेगा परन्तु आपकी जमात तो एक राय रख सकते है। …क्यों नहीं। हक्कानियों को छोड़ कर बाकी सब तो इसका समर्थन करते है। …क्या जिरगे के मुख्य तालिबान सरदारों मे ओमार, फिरोज, जोरावर, शेरखान और मोहसिन भी यही राय रखते है। …बिल्कुल। बस अमरीका के कारण बोलने मे परहेज करते है। …क्या मै यह मान लूँ कि आप लोग मुल्ला मोइन के साथ है। …क्या यह इसका प्रतीक नहीं है कि हमने उसे अभी तक रोकने की कोशिश नहीं की है। …परवेज भाई, आप एक बार अपने जिरगा मे इस बात को उठाईये तो मै वादा करता हूँ की खैबर पख्तूनख्वा के सभी छोटे-बड़े कबीले भी आपकी इस मांग के लिये आपके साथ खड़े हो जाएँगें। परवेज खान कुछ पल मुझे घूरता रहा और फिर बोला… क्या बैतुल्लाह इसके लिये तैयार हो जाएगा? …दो महीने के बाद सभी छोटे-बड़े कबीलों का जिरगा बैठ रहा है। मै चाहता हूँ कि आपके भी कुछ लोग उस जिरगा मे शामिल होकर इस मुद्दे को उठाये। मै यकीन से कह सकता हूँ कि इस मुद्दे पर चीन की खिलाफत करने के लिये बैतुल्लाह भी आपके साथ अपरोक्ष रुप से खड़ा हो जाएगा। इस मुद्दे को अगर आपने उठा दिया तो चीन अपनी सड़क परियोजना की सुरक्षा के लिये आपको हथियार के साथ पैसे भी देगा। …सैम भाई, मुझे कुछ समय दिजिये। …परवेज भाई, ध्यान रहे कि एंथनी वालकाट को मेरी इस मंशा का पता है लेकिन अमरीकन होने के कारण उसे इसका विरोध करना पड़ेगा। एक बार आप अपने लोगों मे बात कर लिजिये फिर अमरीकन सरकार को भी इस मुद्दे पर आँख मूंदने के लिये मजबूर किया जा सकता है। अच्छा खुदा हाफिज। इतना बोल कर मै सड़क की दिशा मे चल दिया था। परवेज खान कुछ देर तक मुझे जाते हुए देखता रहा और फिर जोर से बोला… सैम भाई अपना फोन नम्बर देकर जाओ। मै जल्दी ही संपर्क करुंगा। मै वापिस मुड़ कर उसके साथ नम्बर एक्स्चेन्ज करके बोला… शुक्रिया। मै जल्दी ही जिरगा की तारीख और जगह की सूचना आपको दे दूंगा। बस इतनी बात करके मै वापिस काबुल की दिशा मे चल दिया था।

काबुल पहुँचते हुए रात हो गयी थी। सड़क पर बैठ कर खाना खाया और फोन पर मेनका से बात करके जब तक गेस्ट हाउस पहुँचा तब तक रात के दस बज चुके थे। सफर से बदन टूट रहा था। गेस्ट हाउस मे प्रवेश करते ही मेरी नजर उन दोनो पर पड़ी तो मै ठिठक कर रुक गया था। तुम दोनो यहाँ क्या कर रही हो? आमेना जल्दी से बोली… यह आपसे बात करना चाहती है। मैने गजल की ओर देखा तो वह सिर झुकाये खड़ी हुई थी। रिसेप्शन से अपने रुम की चाबी लेकर मैने पूछा… खाना खाया है कि नहीं? दोनो ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने रिसेप्शन पर आर्डर देकर कमरे की ओर चल दिया। वह दोनो मेरे पीछे कमरे मे चली आयी थी। …तुम दोनो आराम से बैठो। खाना आ रहा है। मै जरा यह धूल की चादर साफ करके आता हूँ। इतना बोल कर अपना बैग एक किनारे मे पटक कर मै बाथरुम मे घुस गया और गर्म पानी से नहाकर जब तक बाहर निकला तब तक खाना मेज पर लग चुका था। …मै खाना खा कर आया हूँ। इतना बोल कर मै सेटफोन को आन करके अपने स्मार्टफोन पर वालकाट से बात करने मे व्यस्त हो गया था। उसको आज की मीटिंग के बारे बता कर मैने सेटफोन पर नजर डाली तो वह नेटवर्क से जुड़ चुका था और अंजली का मेसेज फ्लैश कर रहा था।

…यह जान कर खुशी हुई कि बाप-बेटी मे बातचीत होने लगी है। हो सकता है कि आपका शक सही हो परन्तु बिना जोरावर का पता लगाये बिना मै वापिस नहीं जाऊँगी। आप भी मुझे वापिस जाने के लिये मजबूर मत किजिये। एक वही आखिरी सूत्र है जो हमे अदा तक पहुँचा सकता है। आप मेरी ओर से बेफिक्र रहिये। आपकी झांसी की रानी इतनी कमजोर नहीं है। आई मिस यू।

दो-तीन बार मेसेज पढ़ कर मैने सेटफोन एक ओर रख कर उनकी ओर देखा तो वह खाना समाप्त कर चुकी थी। अंजली का मेसेज पढ़ कर हमेशा एक बेबसी और तनाव मेरे जहन पर हावी हो जाता था। उन दोनो की नजरें मुझ पर टिकी हुई देख कर मैने फोन आफ करके मुस्कुरा कर उनसे पूछा… क्या देख रही हो? …तुम्हारा चेहरा क्यों उतर गया? अबकी बार जवाब देते हुए एक पल के लिये मै रुक गया था। इन दोनो को सच्चायी से रुबरु करा देने मे ही मेरी भलाई है कि सोच कर मैने कहा… कुछ खास कारण नहीं है। मेरी बीवी ने बच्चों के कारण यहाँ आने से मना कर दिया है। आमेना मुस्कुरा कर बोली… उससे मिलने के लिये बड़े बेकरार थे। तुम्हारी दूसरी बीवी तो यहाँ है तो इतना दुखी होने की क्या जरुरत है। मैने गजल की ओर देखा तो वह बड़ी हसरत भरी निगाहों से मेरी ओर देख रही थी। मै उसके साथ बैठ कर सिर पर हाथ फिरा कर धीरे से बोला… आमेना की बात पर ध्यान मत दो। मै तुम्हारे किसी भी लायक नहीं हूँ। नादानी मे किसी गलतफहमी का शिकार मत हो जाना। मै शादी-शुदा दो बच्चों का बाप हूँ। तुम थोड़ा और बड़ी हो जाओगी तो एक दिन तुम्हारा राजकुमार तुम्हें अपने साथ ले जाएगा। तब तक तुम्हें उसका इंतजार करना चाहिये। मुझे सिर्फ हवा के झोंकें की तरह समझ कर भूल जाओ। वह कुछ नहीं बोली बस सिर झुकाये बैठी रही।

अचानक पहली बार नजर उठा कर मेरी ओर देखते हुए गजल बोली… आपने मुझसे वादा किया था। अब आप अपने वादे से क्यों मुकर रहे है। उसकी बात सुन कर एक पल के लिये मै भी सोच मे पड़ गया था। पता नहीं कब और किस झोंक मे मैने उससे ऐसा वादा कर बैठा था। तभी आमेना ने कहा… आपने तीन दिन के लिये इसको अपनी बीवी बनाया था। इसके लिये आपने एक लाख अफगानी दिये थे। हमारे यहाँ इसे मुताह निकाह कहते है। तीन दिन आपके साथ रह कर आपने इसे वापिस कर दिया। इसके लिये हमे आपसे कोई गिला शिकवा नहीं है लेकिन हमारी एक गुजारिश है। मैने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि डालते हुए पूछा… बोलो।  वह कुछ देर मुझे देखती रही और फिर बोली… समीर, हमे तुम्हारी मदद चाहिये। मैने मुस्कुरा कर कहा… यह तो मै पहले ही समझ गया था कि सब कुछ एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। बताओ क्या मदद चाहिये? उसने निगाह उठा कर मेरी ओर देखा तो उसकी आंखों मे आँसू झिलमिला रहे थे। आमेना मुझे हर पल अपनी हरकतों से उलझाती जा रही थी। त्रिया चरित्र के बारे मे सोच कर मैने जल्दी से कहा… आमेना यह ढकोसलेबाजी छोड़ कर सब कुछ साफ शब्दों मे कहो। वह सिर झुका कर बोली… हम दोनो पाकिस्तान से भाग कर यहाँ छिप कर रह रहे है। हमे तुम्हारी मदद चाहिये। जैसे तुमने उन तीनो को दिलावर के चंगुल से निकाल कर उनके घर पहुँचाया है वैसे ही हमे भी यहाँ से सुरक्षित निकाल कर हमारे घर पहुँचा दो। उसकी बात सुन कर मेरा दिमाग और ज्यादा चकरा गया था।

…मुझे साफ-साफ बताओ कि यह सारा चक्कर क्या है? …समीर, हम दोनो अपनी जान बचाने के लिये घर से भागी है। दो साल पहले मेरा निकाह जमाल कुरैशी नाम के आदमी के साथ हुआ था। वह कँराची के बहुत बड़े व्यापारी है। गजल मेरी छोटी बहन है। हमारा परिवार ऐजरबैजान के कुछ चन्द बड़े घरानो मे से एक है। वहाँ पर मेरे अब्बा का शिपिंग और ट्रांस्पोर्ट का कारोबार काफी फैला हुआ है। चार महीने पहले मेरे अब्बा की एक एक्सीडेन्ट मे मौत हो गयी थी। पर यह कहानी झूठी थी क्योंकि गजल ने अब्बा की हत्या होते हुए अपनी आँखों से देखी थी। मै अपने अब्बा के अंतिम कार्यो के लिये जब बाकू गयी तब मुझे गजल ने सब कुछ बताया था। मै गजल को अपने साथ लेकर कँराची आ गयी और तभी से जमाल मुझ पर गजल के साथ दूसरा निकाह करने का दबाव डाल रहा था। एक शाम को जमाल का कुछ लोगों के साथ पैसों को लेकर झगड़ा हो गया था। मै उस वक्त बालकनी मे खड़ी हुई उनकी सारी तकरार सुन रही थी। उस वक्त गजल भी मेरे साथ थी। उनकी तकरार से पता चला कि जमाल का सारा कारोबार ड्र्ग्स के वितरण का था और वह रुसी माफिया के साथ मिल कर अब्बा की कंपनी के जरिये ड्रग्स इधर-उधर भेजता था। अब्बा को उसके काले कारनामे का जैसे ही पता चला तो उसने रुसी माफिया की मदद से मेरे अब्बा की हत्या करवा दी थी। वह गजल से दूसरा निकाह करके अब्बा के सारे कारोबार को हथियाने की फिराक मे था। इसका पता चलते ही हम दोनो उसी रात सबकी नजर बचा कर काशिफ को लेकर वहाँ से निकल भागे। अब जमाल और रुसी माफिया के लोग हमे ढूंढ रहे है। प्लीज हमारी मदद करो। इतना बोल कर वह चुप हो गयी।

कुछ सोच कर मैने पूछा… मुझे किस आधार पर तुमने इस काम के लिये चुना? …तुमने हमसे मदद मांगी थी लेकिन गजल का इंकार सुन कर जब तुम एक लाख रुपये मेज पर छोड़ कर चले गये थे। हम तभी समझ गयी थी कि पैसों के लालच मे तुम हमसे दगाबाजी हर्गिज नहीं करोगे। जब उन तीन लड़कियों को छुड़ाने की कहानी हमारे सामने आयी तब हमने निर्णय लिया कि अपनी असलियत बता कर तुमसे मदद मांगी जा सकती है। प्लीज हमारी मदद करो। तभी गजल उठ कर मेरे साथ बैठते हुए बोली… आपने मुझसे वादा किया था कि मेरी हर मुश्किल मे आप मेरी मदद करेंगें। प्लीज हमे उस जल्लाद के चंगुल से निकालिये। मैने उसके सिर पर धीरे से चपत लगा कर कहा… मैने तुमसे वादा किया है कि जब भी तुम्हें मेरी जरुरत होगी तो तुम्हें सिर्फ कहने की जरुरत है। वह एकटक मुझे कुछ पल देखती रही और झपट कर मुझसे लिपट कर भरभरा कर रोने लगी। उसको चुप कराने मे मुझे कुछ वक्त लग गया था। उसे अपने से अलग करके मैने उठते हुए कहा… बहुत देर हो गयी है। कल सुबह मुझे आफिस भी जाना है। आराम से बैठ कर सोचेंगें कि इन हालात मे क्या करना चाहिये। इतना बोल कर सोफे से गद्दियाँ उठा कर मै कालीन पर लेट गया। आमेना बच्चे को सुलाने मे जुट गयी और गजल बिस्तर के एक किनार पर बैठी हुई अभी भी गहरी सोच मे डूबी हुई थी। थकान के कारण मुझे भी नींद के झोंकें आ रहे थे। कालीन पर लेटते ही मै अपने सपनों की दुनिया मे खो गया था।

अगली सुबह उन्हें उनके फ्लैट पर छोड़ कर मै अपने आफिस की दिशा मे निकल गया था। काबुल शहर के सूने हिस्से के बीच से गुजरते हुए सड़क से अपनी गाड़ी उतार कर एक किनारे मे खड़ी करके मैने जनरल रंधावा का नम्बर लगा कर परवेज खान से हुई बातचीत का ब्यौरा देकर पूछा… सर, कर्नल श्रीनिवास की क्या रिपोर्ट है? …तीनो लड़कियाँ दूतावास के सेफ हाउस मे है। …और उनके बच्चे? …समीर, पुलिस ने बच्चो को यूनीसेफ के कैम्प मे भेज दिया है। तुमने उन्हें देखा है तो एक बार उनकी शिनाख्त कर दो। …वह कौन से कैम्प मे है? …मरजान टाउन। अचानक वीके की आवाज गूंजी… मेजर कैसे हो? तभी अजीत सर की आवाज कान मे पड़ी… समीर। …जी सर। परवेज खान ही नहीं बहुत से छोटे-बड़े तालिबान के गुट डूरन्ड लाईन को अफगान-पाक सीमा नहीं मानते है। मै पाकिस्तान मे होने वाले जिरगा मे इसे मुद्दा बनाने की सोच रहा हूँ। …समीर, यह मुद्दा तब उठाने की जरुरत है कि जब तालिबान का शीर्ष नेतृत्व भी वहाँ पर हो अन्यथा इसे आगे के लिये रखना। तभी वीके की आवाज कान मे पड़ी… मेजर, तीन बातों का ख्याल रखना। पहला, यह पश्तूनों और पठानों के लिये मुद्दा हो सकता है परन्तु बलोच, उज्बेक और ताजिक के लिये यह कोई मुद्दा नहीं है। दूसरा, हक्कानी नेटवर्क या सिराजुद्दीन हक्कानी भी पश्तून है और उसका खैबर पख्तूनख्वा मे काफी प्रभाव है। जिरगा बलोचिस्तान मे होगा तो छोटे कबीलो के लिये बेहतर साबित होगा। आखिरी और तीसरा, तालिबान इस वक्त अमरीकन फोर्सेज के बजाय गनी की सरकार की दुश्मन है। वह जानते है कि अमरीका के कारण उनके घरों मे चूल्हा जल रहा है अन्यथा अफगान सरकार तो सिर्फ डालर हड़पने मे व्यस्त है। आसान भाषा मे तालिबान के साथ अमरीका का एजेन्ट बन कर बातचीत करना और रणनीति बनाना ज्यादा आसान है। …शुक्रिया सर। जनरल रंधावा ने बीच मे टोकते हुए कहा… पुत्तर, उन तीनो लड़कियों के बारे मे अजीत से पूछ ले। वह गोपीनाथ और श्रीनिवास से संपर्क मे है। …सरदार, मेरी बात वीके ने बीच मे काट दी थी। तीनो की शिनाख्त पूरी हो गयी है। कल या परसों तक वह दिल्ली पहुँच जाएँगी। जनरल रंधावा ने जल्दी से कहा… पुत्तर, पता लगाओ कि पीरजादा मीरवायज और बाकू के बीच मे क्या कोई संबन्ध है कि नहीं? …यस सर। इतना बोल कर उन्होनें लाईन काट दी थी। कुछ सोच कर मै मरजान टाउन की दिशा मे चल दिया था।

 

काशगर, चीन

पश्चिमी थियेटर कमान के मुख्यालय मे मीटिंग चल रही थी। फौजी जनरल कुछ अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए बोला… स्कार्दू एयरबेस पर रेड अलर्ट घोषित कर दिया है। हमारी 21वीं एयरबोर्न डिविजन चरमपंथी गुटों पर हमले के लिये तैयार है। सीपैक के अलग-अलग हिस्सों पर लगातार चरमपंथी दल हमला कर रहे है। हाल ही मे खुदाई शमशीर ने अपने पाँव खैबर पख्तून्ख्वा मे जमाने शुरु कर दिये है। पाकिस्तान की सेना हर बार सुरक्षा का आश्वासन देती है परन्तु अभी तक नाकाम साबित हुई है। …सर, पाकिस्तानी फौज हर बार अपना शोक दर्ज करवा देती है परन्तु करती कुछ नही। …सर, पाकिस्तान सरकार ने आपको वह छूट नहीं दी है जो उन्होंने अमरीका को दे रखी है। एयरबोर्न डिविजन बिना पाकिस्तान सरकार की आज्ञा के उनके हवाई स्पेस मे नहीं उड़ सकती। पश्चिमी थियेटर कमान का जनरल शी वांग सबकी बात चुपचाप सुन रहा था। वह खुद भी पाकिस्तानी एस्टेब्लिश्मेन्ट से नाराज था। उसने सूचना दी थी कि पख्त्तूनख्वा, आजाद कश्मीर के सभी छोटे और बड़े कबीले वाले चीन के खिलाफ एक हो रहे है। आईएसआई और फौज ने अभी तक कोई कार्यवाही करने की कोशिश नहीं थी।

अचानक जनरल शी वांग बोला… सारे छोटे और बड़े कबीले खुदाई शमशीर की अगुवाई मे हमारे खिलाफ एक हो रहे है। चार सौ के करीब हमारे नागरिक अब तक मारे जा चुके है। पिछले तीन साल मे यह आँकड़ा हजार पार कर चुका है। एयरबोर्न डिविजन अगर बिना उनकी आज्ञा के हमला नहीं कर सकती तो हमारी इन्फेन्ट्री क्या कर रही है? हमारी पैदल सेना तो उन आतंकवादियों को मुँह तोड़ जवाब दे सकती है। क्या खुदाई शमशीर के कारनामे को गिल्गिट के बाद खैबर पख्तूनख्वा मे दोहराना चाहते है? उधर बलूच भी ग्वादर से लेकर क्वैटा तक हमारे काम करने वालों पर निरन्तर हमला कर रहे है। पाकिस्तानी फौज अभी तक उनके मुख्य लोगों को पकड़ नहीं सकी है। ऐसी हालत मे हमे क्या करना चाहिये इसके लिये यह मीटिंग बुलायी गयी है। एक दूसरे की खामियाँ गिनाने से हल नहीं निकलेगा। एक फौजी कमांडर बोला… जनाब, हम इन तंजीमो को खरीद क्यों नहीं लेते?  तभी एक सेना मुख्यालय से मनोनीत किया हुआ पार्टी कार्यकर्ता बोला… हमारा उद्देश्य बेल्ट एन्ड रोड परियोजना को पूरा करना है। सीपैक उस परियोजना का एक छोटा सा हिस्सा है। अगर हम छोटे से हिस्से को पूरा नहीं कर सकते तो इतनी बड़ी परियोजना को पूरा कैसे कर सकते है। नयी कामरान सरकार ने तो काम बन्द करने की धमकी दे दी है। …जनाब इस रुकावट मे अमरीका का हाथ है। …नहीं, इन्टेलीजेन्स रिपोर्ट बता रही है कि कोई बाहरी ताकत हमको विफल करने पर तुली हूई है। …क्या अमरीका के सिवा और कोई इतनी हिम्मत दिखा सकता है। सब बहस करने मे उलझ गये थे।