शह और मात-15
जनरल रंधावा के अनुसार
मै ही अकेला वह शक्स था जो उन तीन बच्चों की शिनाख्त कर सकता था क्योंकि मैने उनके
साथ सफर किया था। युनीसेफ का कम्पाउन्ड बीस एकड़ मे फैला हुआ था। अमरीकन सेना उस कम्पाउन्ड
की सुरक्षा मे तैनात थी। बैरियर पर पहुँचते ही अपना आईकार्ड दिखा कर मै कम्पाउन्ड मे
प्रवेश कर गया। स्टेशन निदेशक एक फ्रांसीसी महिला थी। मैने अपना परिचय देकर उन तीन
अफगानी बच्चों के बारे मे पूछा जिनको भारतीय दूतावास ने सुरक्षा कारणों से वहाँ रखा
था। उसने तुरन्त अपने असिस्टेन्ट को बुला कर बस इतना कहा… मिस्टर सैम को निषेध एरिया
मे मिस्टर वाकर से मिलवा दिजिये। मै उस असिस्टेन्ट के साथ उस कम्पाउन्ड के ऐसे क्षेत्र
की ओर चल दिया जहाँ सुरक्षा का इंतजाम काफी मजबूत था। मैदान मे बहुत से बच्चे अलग-अलग
कार्यों मे व्यस्त थे। सभी अफगानी बच्चे दिख रहे थे। …इन बच्चों और दूसरे बच्चों मे
क्या फर्क है? …सर, यह सभी बच्चे अमेरिकन या मित्र राष्ट्रों के साथ काम करने वाले
शहीद अफगानी परिवारों के है अन्यथा दूतावास के द्वारा भेजे गये हाई वैल्यु एस्सेट के
बच्चे है। मिस्टर वाकर हमे बाहर ही बच्चों के साथ खेलते हुए मिल गये थे।
वह असिस्टेन्ट मुझे
मिस्टर वाकर से मिलवा कर वापिस चला गया था। …मिस्टर सैम वह तीनो बच्चे कल ही हमारे
सुपुर्द किये गये थे। वह अभी डरे हुए है तो उनको हमने फिलहाल क्लास रुम मे छोड़ा है।
मै वाकर के साथ क्लास रुम की ओर चल दिया था। एक क्लास रुम के बाहर पहुँच कर वह रुक
कर बोला… आप उनसे मिलना चाहते है या दूर से ही शिनाख्त करेंगें। मै दरवाजे पर लगे हुए
शीशे से अन्दर झांक कर बच्चों को देखने मे जुटा हुआ था। मुश्किल आठ बच्चे क्लास मे
बैठे हुए अलग-अलग कार्यों मे उलझे हुए थे। मेरी नजर जीनत पर पड़ी जो कागज पर कुछ रंग
भरने मे व्यस्त थी। …इस लड़की की शिनाख्त हो गयी है। मैने जब तक यह बोल ही पाया था कि
तब तक वाकर दरवाजा खोल कर अन्दर प्रवेश कर चुका था। दरवाजा खुलते ही सभी बच्चों की
नजर दरवाजे की ओर चली गयी थी। वाकर ने पश्तों मे पूछा… बच्चों यहाँ पर कैसा लग रहा
है? उसको देख कर सभी बच्चों के चेहरे खिल गये थे। जीनत की नजर मुझ पर टिक हुई थी। इस
वक्त सूट-टाई मे होने के कारण वह उलझ कर रह गयी थी। मुझे माला का लड़का भी दिख गया था।
वह हाथ मे एक खिलौना लिये जमीन पर बैठा हुआ था। …मिस्टर वह तीन बच्चे कौन से है? …जीनत
और अबरार यहाँ है। वाकर ने दोनो को अपने पास बुलाया और मुझसे बोला… यह दो बच्चे है।
एक छोटी लड़की अरुसा को सुबह नर्सिंग स्टेशन मे शिफ्ट किया है। एक नजर दोनो पर डाल कर
मै रुम से बाहर निकल कर बोला… इन दोनो की शिनाख्त हो गयी है। अरुसा की ओर चलिये। हम
दोनो नर्सिंग स्टेशन की ओर चल दिये थे।
लम्बे से कारीडार
को पार करके नर्सिंग स्टेशन मे प्रवेश करते हुए वाकर ने कहा… अरुसा से मिलने से पहले
मनोविज्ञान के डाक्टर से आज्ञा लेनी पड़ेगी। अरुसा ट्रामा की शिकार है। वाकर ने क्लीनिक
का दरवाज खोल कर अन्दर झांकते हुए पूछा… डाक्टर बेग, हम अरुसा को देखना चाहते है। अब
वह कैसी है? …वह सो रही है। उसे एक सिडेटिव दिया है। आप दूर से देख लिजियेगा। वाकर
ने मुझे अन्दर चलने का इशारा किया परन्तु मैने उसकी आढ़ से अन्दर झाँकते हुए डाक्टर
बेग का चेहरा देखते ही जल्दी से मना करते हुए दबी आवाज मे कहा… डोन्ट डिस्टर्ब। बस
इतना बोल कर मै वापिस चल दिया था। वह आवाज सुनते ही मेरा बदन पसीने से नहा गया था।
वह जानी पहचानी आवाज थी। जैसे ही मैने उसका हिजाब मे ढका हुआ चेहरा देखा तो एक पल के
लिये मेरी धड़कन रुक गयी थी। मै उस आवाज और चेहरे को अभी भूला नहीं था। वाकर मेरे साथ
चलते बोला… हम उसे दूर से देख लेते तो बेहतर होता। …मिस्टर वाकर उन तीनो बच्चों की
फाईल दिखा दिजिये। मै वाकर के साथ उसके आफिस की दिशा मे निकल गया था। मैने चलते हुए
पूछा… मिस्टर वाकर आपके डाक्टर का क्या नाम है? …डाक्टर नफीसा बेग, मनोविज्ञान चिकित्सक
है। तीन महीने की पोस्ट ट्रामा की इन्टर्नशिप के लिये यहाँ आयी है। क्या आप उसे जानते
है? मैने जल्दी से मना करते हुए कहा… नहीं लेकिन सुरक्षा कारणों से हम भारतीय दूतावास
के कार्य मे हस्तक्षेप नहीं करना चाहते। जितने कम लोगों को मेरे बारे मे पता चले उतना
अच्छा होगा। वाकर से तीनो बच्चों की फाईल से उनकी तस्वीर की कापी निकलवा कर मै जल्दी
से जल्दी वहाँ से निकलना चाहता था। थोड़ी देर के बाद तीनो बच्चों की एप्लीकेशन की कापी
लेकर मै वापिस काबुल लौट रहा था। मै जल्दी से जल्दी काबुल पहुँचना चाहता था। सूनी सड़क
पर लैंडरोवर चलाते हुए काठमांडू की एक रात की स्मृति मेरे दिमाग मे उभर आयी थी।
अचानक सरिता के चेहरे
की जगह एक बार फिर नफीसा का चेहरा मेरे सामने आ गया था। उसका चेहरा सामने आते ही मै
उठ कर बैठ गया और उसका सिर अपनी गोदी मे रख उस पर झुक गया था। मेरे होंठों ने जैसे
ही इस बार सरिता के होठों को स्पर्श किया मुझे वही गुलाबी पंखुड़ियों का स्वर्गिम एहसास
हुआ था। उसके होंठों का रस पीकर उसके सुराहीदार गले पर अपनी मोहर लगा कर उसकी आंखों
मे झांका तो उसी वक्त मुझे एहसास हुआ कि मै मतिभ्रम का शिकार हो गया था। मेरे आगोश
मे नफीसा थी। मेरे जहन मे न जाने कैसे नफीसा
की छवि उभर आयी थी। उसके जिस्म की बनावट का स्वर्गिम एहसास होते ही उसकी कंचन नग्न काया
को बेदर्दी से अपने आगोश में जकड़ लिया था। सीने के उभार
उसकी हर साँस पर उपर नीचे बैठ रहे थे और उनके शिखर पर गुलाबी स्तनाग्र उत्तेजनावश फूल
कर खड़े हो चुके थे। मैंने झुक कर एक स्तनाग्र को अपने मुख में
भर कर अपनी जुबान से उस पर वार किया और दूसरे को अपनी
उंगलियों में फँसा कर हौले से तरेड़ दिया। यही
क्रम मैं काफी देर तक बदल बदल कर करता रहा। उसके गुलाबी शिखर अब
तक मेरी मेहनत से सुर्ख लाल हो चुके थे।
मैने सरिता का ऐसा
रुप उस रात से पहले नहीं देखा था। वह नयी नवेली दुल्हन की तरह पेश आ रही थी। मैने अपनी
पलकें झपका कर अपने दिमाग पर छाये नशे के बादलों को छाँट कर नीचे की ओर सरक गया। मेरी उँगलियाँ उसकी
जांघों के बीच बालों से ढके हुए
स्त्रीत्व के द्वार को टटोलने मे लग गयी थी।
वह तड़प कर उठने को हुई परन्तु उसके पुष्ट गोल नितंब मेरे पंजे मे जकड़े होने के कारण
वह अपने प्रयास मे असफल हो गयी थी। उसके मुख से लम्बी सिसकारी छूट गयी… अ…आ…ह। कुछ देर उसकी नाभि और कूल्हों
के साथ खिलवाड़ करने के बाद एक बार फिर से बड़बड़ाया… अब तुम अपने आप
को सारे बंधनों से मुक्त कर दो। मै नशे मे झूमता हुआ उपर की ओर सरक
गया और उसके जिस्म पर छाते हुए उसके कान को चूम कर धीरे से फुसफुसाया… आज जानेमन मैंने तुम्हारे हर अंग पर अपनी मौहर लगा
दी है। अचानक उसकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… प्लीज धीरे से किजियेगा। मै इस पल को जीवन
भर संजो कर रखना चाहती हूँ। मैने उसके गालों को चूम कर कहा… तुम इस पल को जीवन भर याद
रखोगी। मैंने उत्तेजना मे झूमते हुए भुजंग को अपनी
मुठ्ठी मे जकड़ कर उसके स्त्रीत्व द्वार पर कुछ पल घिस कर उसके द्वार को खोल कर योनिमुख
पर टिका दिया। उत्तेजना से भन्नाये हुए भुजंग का फूला हुआ सिर उसकी योनि मे प्रविष्ट
होते ही उसके मुख से दबी हुई चीख निकल गयी थी। उसने मुझे कस कर अपनी बाँहों मे जकड़ लिया था।
लैंडरोवर चलाते हुए
काठमांडू की घटना एक चलचित्र की भांति कुछ पलों मे मेरे मनसपटल से गुजर गयी थी। अभी
तक नफीसा की सुनहली यादों पर आप्रेशन वलीउल्लाह की धूल पड़ी हुई थी। आज उसको यहाँ देख
कर स्मृति पर पड़ी धूल की चादर एकाएक हट गयी थी। नफीसा ने अपनी मोहब्बत का हवाला देकर
सरिता को ऐसा करने के लिये मजबूर किया था। सरिता ने मुझे नशे मे डुबो कर नफीसा के हवाले
कर दिया था। मुझे वह पल अभी भी याद है कि… मैंने उत्तेजना मे झूमते
हुए भुजंग को अपनी मुठ्ठी मे जकड़ कर उसके स्त्रीत्व द्वार पर कुछ पल घिस कर उसके द्वार
को खोल कर योनिमुख पर टिका दिया। उत्तेजना से भन्नाये हुए भुजंग का फूला हुआ सिर उसकी
योनि मे प्रविष्ट होते ही उसके मुख से दबी हुई चीख निकल गयी थी। उसने मुझे कस कर अपनी बाँहों मे जकड़ लिया था। अन्दर प्रविष्ट होने
मे रुकावट का एहसास होते ही मै पल भर के लिये रुक गया था। मेरे नशे मे डूबे हुए दिमाग
पर उसकी चीख ने एक वज्र का सा प्रहार किया था। मेरे दिमाग के किसी कोने मे बिजली की
तेजी से एक बात उभरी… यह सरिता नहीं हो सकती। मैने पलकें झपका कर अपने घूमते हुए दिमाग
को एक पल के लिये स्थिर किया और अपने आगोश मे जकड़ी हुई स्त्री के चेहरे की को देखा
तो एक पल के लिये सन्न रह गया था। नफीसा के चेहरे पर पीड़ा की लकीरें खिंची हुई थी।
उसी पल मेरा सारा नशा काफुर हो गया था। यह मतिभ्रम नहीं हकीकत थी। अगले ही क्षण मै
करवट लेकर उससे अलग हो गया और जोर से अपने सिर को हिला कर लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उठा
और बाथरुम मे चला गया। नल को चला कर मै उसके नीचे बैठ गया था। बर्फ से ठंडे पानी की
पहली धार सिर पर पड़ते ही दिमाग के साथ सारा जिस्म सुन्न पड़ गया था। दस मिनट नल के नीचे
बैठने से दिमाग और जिस्मानी इंद्रियाँ सजग हो गयी थी। मैने अपने आप को धीरे से संभाला
और बाहर निकल कर बिस्तर पर नजर डाली तो नफीसा और सरिता सहमी हुई बैठी थी। मैने उन्हें
कुछ नहीं कहा और गीले बदन पर ही कपड़े पहन कर फ्लैट से बाहर निकल आया था।
इस धोखे के कारण मैने
उनके साथ सभी प्रकार के रिश्तों को समाप्त करने का निर्णय ले लिया था। अमानत मे ख्यानत
करने का आत्मग्लानि का बोध मुझ पर कुछ दिन हावी रहा था। नफीसा और उसकी बहन जेनब को
सुरक्षित वापिस अमरीका भेज कर कुछ हद तक अपनी गलती सुधारने की कोशिश करी थी। उस दिन
के बाद मै वलीउल्लाह के बवंडर मे ऐसा उलझा कि फिर नफीसा और जेनब से मेरा संपर्क हमेशा
के लिये टूट गया था। मरजान टाउन मे नफीसा को देख कर मेरा अतीत मेरे सामने आ गया था।
नफीसा के सामने आते ही हमारा सारा आप्रेशन चौपट हो गया होता। वह मुझे भारतीय फौज के
मेजर के रुप मे पहचानती थी। उस रात की घटना के बाद से वह मुझसे बेहद नाराज थी। उसने
तो अपनी बहन जेनब और नीलोफर के सामने मेरा विरोध खुले आम करना शुरु कर दिया था। बड़ी
मुश्किल से कैप्टेन यादव की मदद और नीलोफर के समझाने से उसे वापिस अमरीका भेजा था।
मेरा मरजान टाउन आना ही इत्तेफक था। नफीसा का वहाँ होना एक अनहोनी घटना थी। मै जानता
था कि दोबारा मुझे अब वहाँ जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। इन्हीं ख्यालों मे उलझा हुआ मै
काबुल पहुँच गया था। अपने गेस्ट हाउस पहुँच कर सबसे पहले मैने तीनो आवेदन पत्र को स्कैन
करके जनरल रंधावा को शिनाख्ती रिपोर्ट भेज कर उन सबके वापिस जाने की औपचारिकता को पूरा
किया और फिर अपनी आगे की रणनीति पर काम करने बैठ गया था।
आदमी सोचता कुछ है
और होता कुछ है। शाम को ही वालकाट ने फोन पर बताया कि अगले हफ्ते जुमेरात को तुर्खैम
सीमा के पास सभी अमरीका और मित्र राष्ट्रों के पक्ष के मुख्य दलो की गुप्त मीटिंग तय
हो गयी है। अब जुमेरात से पहले मै काबुल से बाहर नहीं जा सकता था। अमरीका का नियन्त्रण
क्षेत्र अफगानिस्तान का पूर्वी हिस्सा था। काबुल, जलालाबाद, कुन्दुज और मजार-ए-शरीफ
अमरीकन फौज के नियन्त्रण मे था। कन्धार और हेरात के साथ सारा पश्चिमी हिस्सा नाटो फोर्सिज
के नियन्त्रण मे था। मै सिर्फ अंदाजा लगा सकता था कि उस मीटिंग मे कौनसी तंजीमे भाग
ले सकती है। तालिबान की ओर से ज्यादातर हमले पश्चिमी क्षेत्र मे हो रहे थे। सीमा पर
मुल्ला मोइन के हमले अमरीकी फौज के बजाय हक्कानी समर्थक गुटों पर हो रहे थे। दाईश का
अनुमान लगाना मुश्किल था। मै इसी जोड़-घटा मे उलझा हुआ था कि तभी अपने दरवाजे पर दस्तक
सुन कर मै चौंक गया था। मैने अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी पर नजर डाली तो रात के बारह
बज रहे थे। इस वक्त कौन हो सकता है? यही सोच कर मैने दरवाजा खोला तो सामने आमेना और
गजल खड़ी हुई थी। मै कुछ बोलता उससे पहले वह दोनो कमरे मे प्रवेश कर गयी थी।
आज बुर्का त्याग कर
आमेना और गजल हिजाब मे आयी थी। काशिफ को आमेना ने गोदी मे लिया हुआ था। दोनो के चेहरों
पर एक नजर डाल कर मैने पूछा… कैसे आना हुआ? आमेना तुरन्त बोली… हमारी मदद करने के बारे
मे क्या सोचा? …मै आज सारा दिन काबुल से बाहर रहा तो तुम्हारी समस्या के बारे मे सोचने
का समय नहीं मिला। मुझे कुछ समय चाहिये। तभी गजल जल्दी से एक साँस मे बोली… मुझसे निकाह
कर लिजिये तो सारी मुश्किल आसान हो जाएगी। एक पल के लिये उसका प्रस्ताव सुन कर मै हतप्रभ
रह गया था। तभी आमेना बोली… जमाल के निशाने पर गजल है। मेरी हत्या करवा कर वह मेरे
हिस्से का मालिक आसानी से बन जाएगा परन्तु गजल के बिना वह कंपनी पर काबिज नहीं हो सकेगा।
उसकी बात सुन कर मैने मुस्कुरा कर कहा… दोनो बहने काफी सोच समझ कर आयी हो लेकिन मुझे
सोचने के लिये समय चाहिये। मेरा जवाब सुन कर दोनो चुप हो गयी थी।
दोनो कुछ देर वहीं
सोफे पर बैठी रही और फिर आमेना उठ कर बाथरुम मे चली गयी। मैने गजल से कहा… काशिफ को
लेकर तुम बेड पर चली जाओ। काफी रात हो गयी है। वह काशिफ को लेकर बेड पर चली गयी और
मै सोफे की गद्दियाँ लेकर एक बार फिर से कालीन पर फैल गया। आमेना बाथरुम से बाहर निकली
और कमरे के हlलात का अवलोकन करके लाइट बुझा कर बेड की ओर बढ़ गयी। मै उनकी ओर पीठ करके
लेट गया। आमेना की कहानी और काबुल मे नफीसा की उपस्थिति ने मेरे को एक अजीब सी परिस्थिति
मे लाकर खड़ा कर दिया था। …समीर। …हुँ। …बेड पर काफी जगह है। तुम भी यहीं सो जाओ। …नहीं।
रात काफी हो गयी है। तुम दोनो आराम से सो जाओ। इसी के साथ कमरे मे शांति छा गयी थी।
मै आँख मूंद कर काफी देर तक लेटा रहा परन्तु थकान होने के बावजूद नींद कोसों दूर थी।
अधचेतन अवस्था मे पहुँचा ही था कि मुझे अपनी पीठ पर किसी के धीरे से सटने का एहसास
हुआ। मै चौंक कर उठने लगा मगर उसने मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर दबी आवाज मे बोली… मै
हूँ। मैने करवट लेकर उसकी ओर देखा तो आमेना
बड़ी हसरत भरी निगाहों से मेरी ओर देख रही थी।
…आमेना। मै बस इतना
ही बोल पाया था कि वह मुझ पर छा गयी थी। हम एक दूसरे के होंठों का रस सोखने मे
जुट गये थे। स्ट्रीट लाईट की रौशनी पर्दे से छन कर कमरे मे आ रही थी।
उसके गालों पर
जहाँ मेरे होंठ टिकते वही जगह खून सी लाल हो जाती थी। उसके गुलाबी होंठ उत्तेजना
की तपिश से सूख गये थे। एक लम्बा दौर उसके होंठों को लाल करने मे लग गया था। मेरे
भार के नीचे वह मचल रही थी लेकिन निकलने मे अभी तक असफल रही थी। हमारी जुबाने एक
दूसरे का रसास्वादन कर रही थी और हमारे होंठ एक दूसरे के अधरों का रसपान कर रहे
थे। जब मै उसके होंठों को छोड़ कर नीचे गले की ओर सरका तब तक उसके होंठ गुलाबी से
सुर्ख लाल हो गये थे। उसकी आखों मे झाँका तो उसकी आँखे नशे मे मुंदी हुई थी। धीरे से उससे अलग
होते हुए मैने फुसफुसा कर कहा… यहीं पर रुक जाओ। गजल जाग जाएगी। धीरे से पल्कें झपका
कर मेरे कान को जुबान से छेड़ते हुए बोली… वह कोई बच्ची नहीं है। अगर वह अभी तक औरत-मर्द
के जिस्मानी संबन्धों से अनजान है तो जान लेने का यही समय है। इतना बोल कर वह एक बार
फिर मुझ पर छा गयी।
कुछ ही देर मे दोनो
के जिस्म कामज्वर से धधक रहे थे। अब कपड़े जिस्म को काट रहे थे। अपने आस पास को भुला
कर आनन फानन मे एक दूसरे के कपड़े उतारना शुरु कर दिया। कुछ ही पलों मे निर्वस्त्र होकर
एक दूसरे के साथ एक बेल की भांति उलझ गये थे। सबसे पहले उन
पहाड़ियों की घाटी पर मेरे होंठों ने वार किया और फिर कत्थई बुर्जियों से
सुज्जित्त स्तनों पर मेरे होंठों और ऊँगलियों ने हमला कर
दिया। एक स्तन पर मेरा हाथ काबिज हो गया और दूसरे स्तन पर मेरे होंठों
ने कब्जा कर लिया था। मेरा हाथ उसके पुष्ट स्तन को कभी सहलाता और
कभी रौंदता और मसकता। मेरी उँगलियों मे फँसे हुए अकड़े हुए अंगूर समान स्तनाग्र
को पकड़ खींचता और कभी तरेड़ता और कभी दबा देता। कभी कत्थई परिधि पर मेरी
जुबान चक्कर लगा कर सिर उठाये रसभरे अंगूर से खिलवाड़ करती
और कभी उस अंगूर को होंठों मे दबा कर उसका रस निचोड़ने मे
जुट जाती। मेरे होंठों के बीच फँसा हुआ अंगूर कभी जुबान का
प्रहार सहता और कभी बेचारा दांतों के बीच फँस कर छटपटाता। हर वार पर वह तड़प उठती
थी। कभी छूटने की चेष्टा करती और कभी मेरा सिर पकड़ अपने सीने पर जकड़ लेती। आमेना किसी दूसरी
दुनिया मे पहुँच चुकी थी। उसकी उत्तेजना से भरी सिस्कारियाँ कमरे का
वातावरण मादक बना रही थी।
आमेना के सीने पर
सैकड़ों निशान देकर मै उसकी कमर और नाभि पर छा गया था। वह मेरे हर वार पर
जल बिन मछली की
भांति तड़प रही थी। कमरे मे बस उसकी आहें और सिस्कारियाँ गूंज रही थी। उसकी केले के
तने जैसी चिकनी माँसल जाँघें एक दूसरे से उलझ कर रह गयी थी। कामोत्तेजना से मेरा
जिस्म भी काँप रहा था। उत्तेजना मे फुफकारते हुआ मेरा भुजंग ने उसके पेट पर और कभी
जाँघ पर चोट मार कर अपनी उपस्थिति
को दर्ज कर रहा था। वह अचकचा कर उठी और हमलावर को गरदन से पकड़ कर देखने लगी। मस्ती
मे लहराते हुए भुजंग के सिर पर अपने होंठ टिका कर धीरे से उसे अपने मुख मे भर कर जुबान
से मालिश करने लगी। उसकी उंगलियाँ भुजंग की गरदन से सरकती हुई जड़
तक चली गयी थी। उसकी नाजुक उंगलियों के स्पर्श से मेरे अन्दर खून का बहाव तेज हो
गया था। अबकी बार उसे जबरदस्ती लिटा कर मै उस पर छा गया। मेरा कामांग अब उसके
वर्जित क्षेत्र पर बार-बार चोट मार रहा था। मेरी उँगलियाँ सरकते हुए उसके
स्त्रीत्व द्वार पर जा कर ठहर गयी थी। अपने वर्जित क्षेत्र पर मेरे स्पर्श के
एहसास होते ही उसने बैठने की कोशिश की परन्तु उसके पुष्ट नग्न गोल नितंब मेरे
शिकंजे मे फँस गये थे। इतनी देर मे उसके गदराये मखमली जिस्म से उठने वाले स्पन्दन
और कंपन मुझे आगे बढ़ने के प्रेरित कर रहे थे।
हम दोनो एकाकार के लिए तैयार थे।
मेरी उंगलियों ने उसके स्त्रीत्व के द्वार खोले और उसने मेरे झूमते हुए कामांग को
गरदन से पकड़ कर दिशा दिखाते हुए धीरे से टिकाया और एक गहरी साँस लेकर
रुक गयी थी। मैने धीरे से दबाव बढ़ाया तो उसके मुख से उत्तेजना भरी एक लम्बी
सित्कार निकल गयी थी। मेरा कामांग अन्दर सरक गया था। उसकी सीत्कार सुन
कर हमारी चोरी पकड़े जाने की डर से मैने बेड की ओर देखा तो गजल हमारी ओर देख रही थी।
हमारी नजरें मिलते ही वह मुस्कुरायी परन्तु कामावेश के झोंक मे अपनी कमर पर लगातार दबाव
बढ़ाता चला गया और एक आँख वाला अजगर सारी बाधाएँ पार करता हुआ अन्दर सरकता चला गया
जब तक हमारे जोड़ एक दूसरे टकरा नहीं गये थे। मैने आमेना की ओर
देखा तो उसके चेहरे पर दर्द के साथ उत्तेजना की लहर दिख रही थी। एक पल के
लिए मै रुक गया और गजल की ओर देखने लगा। आँखों की शर्म एक
बार की होती है और फिर बेशर्मी हावी हो जाती है। अबकी बार कुछ पल के लिये उसकी आँखों
मे अनायस ही मै खो गया था। तभी आमेना के जिस्म ने मुझे इशारा किया और हम दोनो
अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हो गये थे। गजल की ओर देखते हुए वार पर वार करने
लगा। मेरे हर वार पर वह कभी तड़प कर बचने की कोशिश करती और कभी
उत्तेजना से ओतप्रोत होकर मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लेती। मेरे हर वार पर आमेना
की उत्तेजना से भरी सित्कार न चाहते हुए अब कमरे मे गूंज रही थी। पता नहीं क्यों गजल
की उपस्थिति के कारण मेरे अन्दर भड़की कामोत्तेजना एक नये आयाम पर पहुँच गयी थी।
कामावेश मे आमेना की सिर्फ
सिस्कारियाँ गूँज रही थी और कमरे मे तूफान वेग पकड़ चुका था। एक पल आया कि हम दोनो
के लिए वक्त थम सा गया था। वह जोर से काँपी और धनुषाकार बनाते हुए हवा मे उठ गयी। मेरी बाँहों ने
उसे थाम लिया कि तभी उसके जिस्म ने तीव्र झटका खाया और फिर काँपते हुए वह कालीन पर लस्त हो कर पड़
गयी। तभी मुझे भी ऐसा एहसास हुआ कि जैसे उसने मेरे कामांग को अपने शिकंजे जकड़ कर
दोहना आरंभ कर दिया है। उसके गदराये हुए जिस्म के हर स्पंदन से मेरा जिस्म
कामाग्नि से धधक रहा था। मै अपने चरम पर पहुँच गया था। पता नहीं क्या सोच
कर मैने अपना गुस्से मे फुँफकारता हुआ एक आँख वाला
अजगर आमेना की बहती हुई योनि से बाहर निकाल कर गजल के सामने कर दिया। आमेना के प्रेमरस
मे नहाया हुआ मेरा जनांग धीमी रौशनी मे चमकता हुआ दिख रहा था। गजल फटी आँखों से मुँह
खोले हतप्रभ उस मायावी एक आँख वाले अजगर को देखती रह गयी थी। तभी आमेना ने कुनमुना
कर मेरी ओर देखा तो मेरी नजर का पीछा करते हुए गजल की ओर देख कर उठ कर बैठते हुए बोली… बानो, अच्छे से देख लो कि बीवी की अपने
खाविन्द के प्रति क्या जिम्मेदारी होती है। मेरी ओर देख कर बोली… समीर, इसे पता होना
चाहिये कि खाविन्द और बीवी के बीच कैसे संबन्ध बनता है। इतना बोल कर वह मेरे हथियार
को पकड़ कर अंदर धंसाने के बजाय अपनी दरार पर रगड़ने लगी। अबकी बार
मोर्चा आमेना ने संभाल लिया था। कुछ ही देर मे एक बार फिर से मेरे वार शुरु हो गये
थे। अबकी बार मै मानसिक रुप से गजल के जिस्म के साथ एकाकार कर रहा था। हर वार की चोट
गहरी होती जा रही थी। कुछ ही देर मे मेरे अन्दर एक बार फिर से ज्वालामुखी धधकने लगा
और आखिरी वार के साथ मेरे सारे बाँध छिन्न-भिन्न होकर बिखर गये थे। उत्तेजना के चरम
पर पहुँचते ही कामरस बेरोकटोक बहने लगा। हम दोनो की साँसे उखड़ रही
थी। गहरी साँसे लेते हुए हमने अपने आपको सयंत किया और फिर हम एक दूसरे को बाहों मे
लिये कालीन पर लस्त हो पड़ गये थे। मैने धीरे से उसके
बाल सहलाते कहा… अब तक तुम्हारी बहन के सिर से निकाह का भूत निकल गया होगा। इसलिये
अब पिछली बातों को भूल कर अपने भविष्य के बारे मे सोचना शुरु करो। कुछ ही देर मे हम
अपने सपनों की दुनिया मे खो गये थे।
…समीर। आमेना ने मुझको
सुबह उठाया था। उसका चेहरा सुबह की धूप समान खिला लग रहा था। मुझसे रहा नहीं गया और
मैने उठते हुए कहा… तुम बहुत सुन्दर हो आमेना। अपनी तारीफ सुनकर वह झेंप गयी थी। …तुम
तैयार हो गयी? …हाँ। गजल तैयार होने गयी है। मै उठ कर बैठ गया। बीती रात की बात सोच
कर मैने कहा… तुम दोनो जब तक नाश्ता करोगी तब तक मै तैयार होकर आता हूँ। मै तुम दोनो
को फ्लैट पर छोड़ कर आफिस जाउँगा। इसी के साथ मेरी रोजमर्रा का कार्यक्रम शुरु हो गया
था। जब तक मै आफिस के लिये तैयार हुआ तब तक वह दोनो नाश्ता समाप्त कर चुकी थी। उनको
फ्लैट पर छोड़ कर मै अपने आफिस की ओर निकल गया
था। अपने आफिस पहुँच कर मै सीआईए डेटासेन्टर की मदद से जमाल कुरैशी के बारे मे जानकारी
इकठ्ठी करने मे जुट गया। वह एक पाकिस्तानी कारोबारी बताया गया था। वह कुरैश ग्रुप के
मालिक कमlल कुरैशी का बेटा था। कुरैश ग्रुप फिल्म उद्योग, इम्पोर्ट-एक्स्पोर्ट, रियल
एस्टेट और गार्मेन्ट्स का कारोबार से जुड़ा हुआ था। उस ग्रुप का कारोबार पाकिस्तान के
साथ कुछ पड़ोसी देशों मे फैला हुआ था। खुफिया रिपोर्ट्स मे उस ग्रुप के बारे मे आईएसआई
के साथ संबन्धों का ब्यौरा भी दिया हुआ था। कुछ पड़ोसी देशों मे ड्र्ग्स वितरक और मानव
तस्करी के भी उस पर कुछ आरोप लगे थे परन्तु पाकिस्तान सरकार मे प्रभाव होने के कारण
हर आरोप से वह साफ बच गया था। पड़ोसी देशों मे कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ऐजरबैजान
और आर्मिनिया थे। ऐजरबैजान की राजधानी बाकू मे कुरैश ग्रुप के इम्पोर्ट-एक्स्पोर्ट
का हेडआफिस था। बाकू का नाम एक बार फिर से मेरे सामने आ गया था।
लंच टाइम पर मै आफिस
से बाहर निकल गया था। दिमाग मे बहुत सी बातें कुलबुला रही थी। सड़क पर टहलते हुए अनायस
ही मेरी नजर अमरीकन कोमप्लेक्स मे एक इमारत पर पड़ी। उस इमारत से नमाजियों की भीड़ निकलते
हुए देख कर एक पल के लिये मै ठिठक कर रुक गया था। कुछ सोच कर उसी इमारत की ओर बढ़ गया
और लान मे रखी हुई बेन्च पर बैठ कर सबसे पहला फोन मैने नीलोफर को मिलाकर पूछा… अपना
कोई आदमी कराँची मे है? …क्यों? …मुझे जमाल कुरैशी के बारे मे पता लगाना है। क्या उसका
कोई कनेक्शन मुंबई के माफिया के साथ है? …फिल्म या कोई अन्य खास कारोबार? …ड्रग्स और
फिल्म। …पता करके बताती हूँ। तुम बताओ कब तक वापिस आ रहे हो? …अभी एक हफ्ते तो यहाँ
रुकना पड़ेगा। तुम वहाँ का हाल सुनाओ। …समीर, सब ठीक है। ब्रिगेडियर नूरानी ने तुम्हारे
सारे पैसे बैंक मे जमा करा दिये है। …यह नामुमकिन बात है। इसका तो यही मतलब है कि उसका
बैंक के साथ बड़ा प्रगाड़ रिश्ता है अन्यथा नकली करेन्सी नोट वह बैंक मे कैसे जमा करा
सकता है। उसने किस बैंक के द्वारा इस काम को अंजाम दिया था? …हबीब बैंक। …उसके प्रोमोटर्स
का पता लगाओ। हमे अगर आईएसआई से टकरना है तो उसके नेटवर्क के ज्यादा से ज्यादा नोड्स
का पता होना चाहिये। …और कुछ? …अल्ताफ और सादिक की ओर से क्या खबर है? …दोनो ने लगभग
गिल्गिट से लेकर क्वेटा तक फैले हुए सभी छोटे और बड़े कबीलों के मुखियाओं के साथ संपर्क
साध लिया है। आज से दूसरे महीने के तीसरे जुमे की नमाज के बाद जिरगा की बैठक चगई की
ईदगाह मस्जिद मे होगी। उससे पहले हर हालत मे तुम्हें अपना फ्रंट मजबूत करने के लिये
इस्लामाबाद मे होना जरुरी है। …शुक्रिया। खुदा
हाफिज। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।
मेरे पास अब तैयारी
करने के लिये ज्यादा समय नहीं था। उनकी जिरगा होने से पहले मुझे बहुत से काम करने बाकी
थे। एक बार फिर मै जिहाद और जिहादियों के बवंडर मे फँसने जा रहा था। बस समय के अनुसार
फर्क इतना था कि पहले मै उनके सामने खड़ा था और अब उनके बीच मे रह कर मुझे काम करना
था। मुझे यह भी यकीन था कि अब तक इस जिरगा की खबर आईएसआई तक पहुँच गयी होगी। उस दिन
वहाँ पर वह भी भारी तादाद मे उपस्थित होंगें। यही सोचते हुए मै आफिस की दिशा मे चल
दिया। मै जैसे ही अपनी सीट पर बैठा कि तभी वालकाट ने हाल मे प्रवेश किया। मुझे सीट
पर बैठे देख कर वह मेरे पास आकर बोला… सैम, आप्रेशन जूलू की शुरुआती तैयारी के लिये
क्या सोचा है? …आप्रेशन जूलू? …अमरीकन फोर्सेज को अफगानिस्तान से सुरक्षित निकालने
के आप्रेशन को जूलू नाम दिया है। …वहाँ कौनसी तंजीमो के प्रतिनिधि आ रहे है? …तालिबान
के पाँच गुट, तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के दो गुट आ रहे है। बलोच रेसिस्टेन्स फ्रंट
और उत्तरी अलाईन्स के दोस्तम के आने की संभावना है। …इनके अलावा और कौन होंगें? …हमारे
यहाँ से हम दोनो, नाटो की ओर से एक प्रतिनिधि और भारत की ओर से एक प्रतिनिधि होगा।
भारत की मध्यस्ता के कारण शायद इस बार ताजिक और उज्बेक सरकार के कुछ अधिकारी भी शामिल
हो सकते है। मै समझ गया कि आप्रेशन जूलू जल्दी ही एक सच्चाई मे परिवर्तित होने जा रहा
है। …सैम, यह मीटिंग आप्रेशन जूलू के आप्रेशनल ब्लू प्रिंट तैयार करने के लिये रखी
गयी है। वालकाट के जाने के बाद मै कागज पर आढ़ी-तिरछी लाईनें खींचते हुए आप्रेशन जूलू
को अपने मकसद के साथ समावेश करने के बारे मे सोचने बैठ गया।
अपने गेस्ट हाउस जाने
से पहले मैने कुछ सोच कर आमेना के फ्लैट की ओर लैंडरोवर मोड़ दी थी। रात के आठ बज रहे
थे जब मैने तिलाई टाउन मे प्रवेश किया था। इस समय तक सड़कें लगभग खाली हो जाती थी। आज
भी हमेशा की तरह इक्के-दुक्के लोग सड़क पर आते-जाते दिख रहे थे। आमेना की इमारत के नजदीक
पहुँच कर मैने लैंडरोवर को धीमे किया और जैसे ही उस इमारत के सामने पहुँचा मेरी नजर
दो गाड़ियों पर पड़ी जो पहले से वहाँ खड़ी हुई थी। दोनो गाड़ियाँ धूल से अटी हुई थी। हथियारों
से लैस चेहरा छिपाये दो जिहादी सीड़ियों के पास खड़े हुए थे। एक नजर मे स्थिति का आंकलन
करके मै बिना रुके आगे निकल गया था। मेरे दिमाग मे बार-बार एक शब्द गूंज रहा था… जमाल
के लोग पहुँच गये है…खतरा…खतरा…खतरा। दो इमारतें छोड़ कर तीसरी इमारत के सामने अपनी
लैंडरोवर खड़ी करके मैने डैशबोर्ड से पहले ग्लाक-17 निकाल कर अपने खीसे मे अटकाई और
फिर पीछे से एके-47 और उसके कुछ क्लिप्स लेकर इमारत के पीछे की लेन मे चला गया। एक
नजर लेन मे डाल कर दीवार के सहारे चलते हुए वापिस आमेना की इमारत की दिशा मे चल दिया।
उस इमारत के पीछे की लेन सुनसान पड़ी हुई थी। इतना तो समझ मे आ गया था कि सीढ़ियों के
रास्ते से उनके फ्लैट मे नहीं पहुँचा जा सकता है। कुछ सोच कर मै वापिस मुड़ कर साथ वाली
इमारत की सिढ़ियों से उसकी छत की ओर निकल गया और तीन फीट उँची पैरापट की दीवार फांद
आमेना की इमारत की छत पर पहुँच गया था।
जैसे ही मैने सीढ़ियों
के दरवाजे को खोला तो दरवाजा पीटने की आवाज आ रही थी। मै दबे पाँव सीढ़ियों से नीचे
उतरा और दीवार की आढ़ लेकर अहाते मे झांका तो मुझे कुछ लोग दिखे जिनके चेहरे पर कपड़ा
बंधा हुआ था और कंधे पर हथियार लटके हुए थे। दुश्मन की संख्या का ज्ञान लेने के लिये
मै एक सीढ़ी और नीचे उतर गया। छ्ह जिहादी मेरी नजर के सामने थे। मेरे पास कोई साईलेन्सर-युक्त
हथियार भी नहीं था। पहले फायर से ही मेरे स्थान और हथियार का पता लगाना बेहद आसान था।
एके-47 आम पिस्तौल की तरह अचूक नहीं होती क्योंकि
कम समय मे ज्यादा गोलियाँ निकलने के कारण उसकी गोलियां छितरा जाती है। एके-47 के एक
ही बर्स्ट मे दुश्मन के धाराशायी होने मे कोई संदेह नहीं था लेकिन एक ही बर्स्ट नीचे
खड़े हुए जिहादियों को मेरी उपस्तिथि से आगाह कर देता। उसके बाद उन तीनो को यहाँ से
सुरक्षित निकालना मेरे लिये कठिन हो जाता। कुछ सोच कर मै दबे पाँव नीचे उतर कर दरवाजे
के बीचोंबीच एके-47 तान कर खड़ा हो गया और बिना सुचित किये आमेना के फ्लैट के सामने
एकत्रित जिहादियों की भीड़ पर तीन छोटे बर्स्ट फायर करके आमेना के दरवाजे को पीटते हुए
चिल्लाया… आमेना। इतने नजदीक से फायरिंग करने के कारण हवा मे उड़ती हुई गोलियों ने जिहादियों
के जिस्म और दीवार दोनो को उधेड़ कर रख दिया था। दरवाजा खुलते ही मुझे देख कर गजल मुझसे
लिपट गयी और आमेना गोदी मे काशिफ को उठाये काँपती हुई आवाज मे बोली…समीर। मेरे पास
समय नहीं था। …ताला लेकर मेरे पीछे आओ। गजल ने जल्दी से अन्दर से ताला लाकर मुझे पकड़ा दिया। मैने पहले उनके दरवाजे पर ताला लगाया और फिर उन्हें अपने साथ लेकर चल दिया। मै उन्हें उसी रास्ते से वापिस अपनी लैंडरोवर की
ओर चल दिया जिस रास्ते से मै वहाँ पहुँचा था। काफी सोच विचार कर मैने यह निर्णय लिया
था कि अगर सीढ़ियों पर तैनात जिहादी फायरिंग की आवाज सुन कर उपर नहीं आये थे तो अभी
भी वह सीढ़ियों के पास घात लगा कर बैठे हुए होंगें। उसी रास्ते से कुछ ही देर के बाद
हम लैंडरोवर तक सुरक्षित पहुँच गये थे।
फायरिंग की आवाज ने
सारी सोसाईटी मे हंगामा मचा दिया। आस-पास कि इमारत मे रहने वाले लोग घर से बाहर निकल
कर सड़क पर आ गये थे। जब तक पुलिस आती तब तक हम तिलाई टाउन को पीछे छोड़ कर गेस्ट हाउस
की दिशा मे जा रहे थे। …समीर, तुम्हें कैसे पता चला कि वह लोग हमे ढूंढते हुए वहाँ
पहुँच गये थे। …मै तो सिर्फ तुमसे मिलने के लिये आया था। तुम्हारी सिढ़ियों मे उन्हें
खड़ा देख कर मै समझ गया कि जमाल के लोग तुम्हारा पता लगाने मे कामयाब हो गये है। आमेना
जल्दी से कुछ बुदबदायी और फिर काशिफ को अपनी बाँहों मे जकड़ कर बैठ गयी थी। सारे रास्ते
फिर सभी खामोश बैठे रहे थे। जिंदगी और मौत के बीच इंसान को सिर्फ अपने खुदा का ही ख्याल
आता है। मै सोच रहा था कि गेस्ट हाउस आज की रात के लिये तो शायद सुरक्षित हो सकता है
परन्तु कल हर हालत मे एक नयी जगह की तलाश करना जरुरी हो गया है। गेस्ट हाउस पहुँच कर
सबसे पहले मैने लैंडरोवर मे अपने हथियार छिपाये और फिर दोनो को लेकर अपने कमरे मे चला
गया। दोनो के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थी। इस वक्त बात करने की हिम्मत तो दोनो मे
नहीं थी। सोफे पर बैठने बाद भी वह दोनो एक दूसरे को पकड़ कर बैठी हुई थी। तभी मेरे फोन
की घंटी बजी तो मै काल लेते हुए अपने कमरे से बाहर निकल गया था।
…बोलो नीलोफर। …समीर,
जमाल कुरैशी कोई छोटा-मोटा कारोबारी नहीं है। वह कुरैश ग्रुप के मlलिक कमाल कुरैशी
का बेटा है। कमाल कुरैशी जनरल फैज का आदमी है। उसका मुख्य कारोबार आईएसआई के ड्रग्स
नेटवर्क मे वितरण का है। आईएसआई उसके काले करोबार के जरिये सभी चरमपंथी तंजीमों को
पैसे पहुँचाती है। औपचारिक रुप से वह कराँचीवुड मे फिल्मे व ड्रामे फाईनेन्सर व रियल
एस्टेट का काम करता है। असलियत मे कुरैश ग्रुप के जरिये जनरल फैज अपना काला कारोबार
चला रहा है। तुम्हें इस आदमी से दूर रहने की जरुरत है। …तो जनरल फैज की दुखती नस का
नाम कुरैश ग्रुप और कुरैशी परिवार है। …बेवकूफ मत बनो। इनको मत छेड़ो। …नहीं छेड़ रहा।
इतनी बात करके मैने फोन काट दिया और वापिस कमरे मे चला गया था। दोनो सहमी हुई बैठी
थी। मुझे देखते ही आमेना बोली…अब तक तुम्हें समझ मे आ गया होगा कि वह कितना जालिम इंसान
है। क्या अब तुम हमारी मदद करोगे? मैने उस वक्त कोई जवाब देना ठीक नहीं समझा तो उनके
खाने का प्रबन्ध करने के लिये रुम सर्विस को आर्डर देने मे व्यस्त हो गया।
डिनर के पश्चात कालीन
पर फैलते हुए मैने कहा… अब तुम आराम करो। आमेना उठ कर मेरे साथ कालीन पर बैठते हुए
बोली… तुम गजल से निकाह कर लोगे तो उस जालिम से हमेशा के लिये हमारा पीछा छूट जाएगा।
…तुम इसे जितना आसान समझ रही हो वह इतना आसान नहीं है। यहाँ पर निकाह करके तुम दोनो
सुरक्षित बाकू पहुँच भी गयी तो क्या वहाँ तुम दोनो बच जाओगी? तब तक गजल भी काशिफ को
लेकर मेरे पास कालीन पर बैठ गयी थी। वह मेरा हाथ पकड़ कर बोली… मै कहीं नहीं जा रही
हूँ। मै यहीं पर आपके साथ रहूँगी। मैने उसका हाथ थपथपाते हुए कहा… मुझे सोचने के लिये
कुछ समय दोगी तो इस मुश्किल का हल भी निकल आयेगा अन्यथा जल्दबाजी मे लिया निर्णय हम
सब पर भारी पड़ जाएगा। सबसे पहली चिन्ता इस बात की है कि कल सुबह यह गेस्ट हाउस भी छोड़ना
पड़ेगा। अगर वह तुम्हारे फ्लैट तक पहुँच गये है तो वह इस गेस्ट हाउस पर भी जल्दी पहुँच
जाएँगें। इसलिये पहले तुम्हें कल के बारे मे सोचने की जरुरत है। मेरी बात सुन कर दोनो
चुप हो गयी थी। कुछ देर वह मेरे साथ बैठी रही और फिर मेरे साथ कालीन पर लेट गयी। मै
उनकी मानसिक स्थिति को समझ रहा था तो मैने चुप रहना बेहतर समझा और आँख मूंद कर सोने
की कोशिश मे जुट गया। मुझे याद नहीं कि कब नींद का झोंका आया लेकिन मुझे यकीन है कि
उन दोनो ने वह रात जागते हुए काटी थी।
कराँची
…जमाल, काबुल से बुरी
खबर आयी है। हमारे छह आदमी मारे गये है और दो आदमी पकड़े गये है। वह दोनो लड़कियाँ वहाँ
से फरार हो गयी है। …क्या बकवास कर रहे हो? …जमाल तमीज से बात करो। …तुमसे दो लड़कियाँ
पकड़ी नहीं गयी और मुझे तमीज सिखाने चले हो। मेरी जनरल फैज से बात कराओ। …जनरल फैज आफिस
मे नहीं है। जमाल, तुम्हें समझना होगा कि यह हमारा आप्रेशन नहीं था। हमने सिर्फ उनकी
लोकेशन का पता लगाया था। अफगानिस्तान मे फिलहाल हम डायरेक्ट एक्शन नहीं ले सकते। इसीलिये
उन दोनो लड़कियों को वापिस लाने की जिम्मेदारी हमने दाईश के गुट को दी थी। …अब वह दोनो
लड़कियाँ कहाँ है? …पता नहीं। हमारे लोग पता करने मे लगे हुए है। कुछ भी करने से पहले
मुझे बस एक बात पूछनी है कि क्या कोई तुम्हारा विपक्षी गुट उनकी मदद कर सकता है? …नहीं।
उन दोनो का किसी भी गुट से कोई संबन्ध नहीं है। …फिर एक अनजान देश मे उनकी मदद कौन
कर रहा है। दाईश के छह लड़ाकू कैसे मारे गये है? …यह तुम पता करो। मै यकीन से कह सकता
हूँ कि यह काम उनके बस का नहीं है। …यही बात तुम मौलाना फरीद को बता देना। अब दाईश
भी उन दोनो की तलाश कर रही है। उनको क्या जवाब दोगे? …कर्नल हमीद, मुझे मौलाना फरीद
की धमकी देने की कोशिश मत करना। इन जैसों मौलाना और मौलवियों की हैसियत मेरे टुकड़ों
पर पलने वाले कुत्तों से ज्यादा नहीं है। वह दोनो लड़कियाँ और बच्चा मुझे वन पीस मे वापिस चाहिये।
अगर उनमे किसी एक को कुछ भी हुआ तो जनरल फैज का पूरा आप्रेशन तबाह हो जाएगा। …जमाल,
हम उन्हें ट्रेस करने की पूरी कोशिश कर रहे है। मौलाना फरीद को तुम समझा दोगे तो ज्यादा
बेहतर होगा। …ठीक है। जनरल फैज के लौटते ही उनकी मुझसे बात करा देना। इतनी बात करके जमाल
ने लाईन काट दी थी।
जमाल ने एक नम्बर
मिलाया और जवाब सुनते से ही बोला… अस्स्लाम वालेकुम फरीद साहब। जमाल कुरैशी बोल रहा
हूँ। …वालेकुम मियाँ। कैसे याद किया? …कर्नल हमीद ने बताया कि उसने दो लड़कियों को काबुल
से कराँची पहुँचाने का काम आपके गुट को दिया था। …मियाँ वह दोनो छिनाल मेरे छह लड़ाकुओं
को हलाक करके निकल गयी। मेरे आदमी उन्हें काबुल मे ढूंढ रहे है। फरीद की बात को बीच
मे काटते हुए जमाल ने कहा… उन दोनो को सही सलामत कराँची पहुँचाना है। कीमत तुम्हारी
और काम मेरा। कर्नल हमीद से जो लेना है वह ले लेना लेकिन वह दोनो मुझे बच्चे के साथ
सही सलामत चाहिये। …मियाँ, हमने तो बदला लेने की ठानी थी लेकिन तुमने कहा है तो वही
होगा। …शुक्रिया। इतनी बात करके जमाल ने फोन काट दिया था।
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