रविवार, 4 अगस्त 2024

 

 

शह और मात-13

 

आने वाले खतरे को देख कर मेरी सारी इंद्रियां सजग हो गयी थी। मेरी नजर मुख्य द्वार पर टिक गयी। गजल थोड़ा हिली तो मैने उसको कमर से पकड़ कर अपने पीछे कर लिया था। वह कुछ पल शान्त रही और फिर पीछे से निकल कर मेरे साथ आ कर बैठ गयी। अब मेरा दिमाग और जिस्म युद्ध के मोड मे आ चुका था। मेरी नजर लकड़ी के दरवाजे पर टिकी हुई थी। दरवाजे के हिलते ही मै समझ गया कि कोई दरवाजे को धीरे से खोलने का प्रयास कर रहा है। अपनी ग्लाक का सेफ्टी लाक हटा कर मुंडेर का सहारा लेकर मैने ग्लाक को द्वार की दिशा मे तान दिया। जैसे ही हमलावर ने दरवाजे को खोल कर पहला कदम अन्दर रखा…धाँय। मेरी ग्लाक ने सीसा उगल दिया था। दूरी ज्यादा होने के कारण निशाना चूक गया परन्तु गोली ने उसके पेट और नीचे के जिस्म को उधेड़ कर रख दिया था। इसमे मेरी कलाकारी कम और गोली की ट्रेजेक्टरी को सारा श्रेय मिलना चाहिये था। उस भयावह दृश्य को देख कर गजल ने मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर अपना चेहरा मेरे सीने मे छिपा लिया।

थोड़े से खुले हुए दरवाजे पर अपने साथी का हाल देख कर उस हमलावर के पीछे आने वाला व्यक्ति उलटे कदम वापिस लौट गया। मुझे कुछ समय मिल गया था तो धीरे से गजल की पीठ सहला कर कहा… तुम मेरे पीछे चली जाओ। सामने गोली का खतरा हरदम बना रहेगा। उसने सिर उठा कर मेरी ओर देखा कि तभी एक रेंगते हुए साये पर मेरी नजर पड़ी जो दीवार फाँदने की कोशिश मे लगा हुआ था। …धाँय। अबकी बार उस आदमी चीख मेरी पिस्तौल की आवाज से ज्यादा तेज निकली थी। उसी के साथ तीन चीजे एक साथ हुई थी। गोली चलने से रिकोईल के कारण उसका चेहरा मेरे चेहरे से टकरा गया था। अगर सच कहूँ तो उसके होंठ मेरे होंठ से टकरा गये थे। अपने आप को संभालने के लिये मैने उसे पकड़ने के लिये हाथ बढ़ाया तो मेरा हाथ उसके उभरे हुए सीने से टकरा गया और तीसरा उसका भार न संभाल पाने के कारण हम दोनो एक दूसरे को पकड़ कर जमीन पर लुड़क गये थे। कोई और समय और स्थान होता तो शायद गजल दिमाग पर छा गयी होती परन्तु इन हालात मे मैने उसे एक ओर धकेल कर बिना देखे दरवाजे की दिशा मे एक के बाद एक दो फायर कर दिये… धाँय…धाँय। दुश्मन को अब तक इतना एहसास करा दिया था कि हम भी हथियारों से लैस होकर उनके लिये घात लगा कर बैठे हुए है।

चूहे और बिल्ली का खेल लगभग दो घंटे चला था। एक मोर्चे से दाईश की एके-47 चलने का शोर कान मे सुनाई दे रहा था। दूसरे मोर्चे पर मै लाशें बिछाने मे जुटा हुआ था। सारा समय गजल मुझको पकड़ कर पीछे बैठी रही थी। फायरिंग बन्द होने के कुछ देर के बाद वैजयन्ती मेरे साथ बैठते हुए बोली… उस ओर से पिछले आधे घंटे से किसी ने दीवार फाँदने का प्रयास नहीं किया है। मेरे ख्याल से सब चले गये है। …नहीं फिलहाल रिस्क नहीं ले सकते है। दिन निकलने दो उसके बाद देखेंगें कि बाहर का क्या हाल है। …आठ लोग वहाँ मारे गये है। यहाँ का क्या हाल है? …छह यहाँ मारे गये है। आखिर यह लोग कौनसी तंजीम से है? …अल कैदा से अलग हुआ एक छोटा समूह है जिसको मुरतजा पश्तून नाम का एक पाकिस्तानी चला रहा है। वह दिलावर पठान का सौतेला भाई है।

चारों ओर रात की शांति छायी हुई थी। कुछ सोच कर मैने कहा… हमारी बात अधूरी रह गयी थी। वैजयन्ती मुझे सब पता है कि तुम जी के उन्नीकृष्नन की बेटी हो जो कालीकट के पोर्ट पर अकाउन्ट्स मे काम करते थे। तुम्हारा एक भाई भी है। उसने घूर कर मेरी ओर देखा तो मैने कहा… मुझे शोएब का भी पता है। यह सुनते ही उसका जिस्म काँप उठा था। …क्या तुम अपनी मर्जी से उसके साथ इस्तानबुल गयी थी? अबकी बार वह मेरी ओर देख कर बोली… आप कौन है? मै कुछ बोलता उससे पहले गजल ने जल्दी से कहा… बाजी यह मेरे खाविन्द है। …गजल, तुम्हारा खाविन्द तुम्हें बेवकूफ बना रहा है। यह जो दिखता है वह यह नहीं है। अबकी बार मैने गजल को अपने से अलग करके कहा… मेरी बीवी सच बोल रही है। मै यहाँ पर सिर्फ तुम्हारी मदद के लिये आया हूँ। उस दिन ट्रक पर तुमने जीनत के हाथ अपना आईकार्ड मेरी जेब मे क्यों डलवाया था? अबकी बार उसने मेरी ओर कुछ पल ध्यान से देखा और फिर हैरतभरी नजरों से बोली… आप ही हमारे साथ सफर कर रहे थे। आपकी दाड़ी और सिर के बाल कटने के कारण मै पहली नजर मे आपको पहचान नहीं सकी। अभी भी वह हैरत भरी निगाहों से मुझे देख रही थी।

एक बार फिर से मैने कुरेदने की मंशा से पूछा… तुमने अपना आईकार्ड डालने का कारण नहीं बताया। अबकी बार वह धीरे से बोली… यह सच है कि मैने वह कार्ड आपको हिन्दुस्तानी समझ कर दिया था। …क्यों? …सिर्फ इसलिये कि अगर आपने वह कार्ड किसी तरह से हमारे दूतावास मे पहुँचा दिया तो शायद मुझे इस दोजख से हमेशा के लिये निजात मिल जाएगी। …यही तो मैने पूछा था कि क्या तुम इस दोजख से निकलना चाहती हो? एकाएक कुछ सोच कर उसकी आँखें छ्लक गयी थी। …वैजयन्ती, मै यहाँ सिर्फ तुम्हें इस दोजख से निकालने के लिये आया हूँ। क्या तुम मे यहाँ से निकलने की हिम्मत है? गजल ने धीरे से उसकी पीठ सहलाते हुए कहा… बाजी मेरे कहने पर इन पर एक बार यकीन करके देख लिजिये। वैजयन्ती ने धीरे से उसके गाल को सहला कर कहा… तुम अभी तक परिवार मे रही हो तो तुमने दुनिया का असली रुप नहीं देखा है। मैने वह जीवन जिया है जहाँ पहले मेरे खाविन्द ने मुझे अपने दोस्तों के सामने चन्द पैसों के लिये परोस दिया था। एक रोटी के लिये इस जिस्म को बेचने के लिये मै मजबूर हो गयी थी। मेरे खाविन्द के मरने के बाद दाईश के लड़ाकुओं की मौज के लिये मेरे पाँव मे बेड़ियाँ जकड़ कर एक तहखाने मे बन्द कर दिया था। वहाँ से किसी तरह बच कर भागी तो तस्करों के हाथ लग गयी तो उन्होंने मुझे एक गुलाम की तरह इन अफगानी लड़ाकुओं को बेच दिया था। जिस दिन पहली बार अपना घर छोड़ा था उसके बाद हर रोज हर किसी ने मुझको बस लूटा है। अब तो इसकी आदत पड़ गयी है। तुम अपने खाविन्द को लेकर जल्दी से जल्दी यहाँ से निकल जाओ। अगर एक बार तुम इनके चक्कर मे फंस गयी तो फिर इस नरक से कभी नहीं निकल सकोगी। गजल उसको एकटक देखती रह गयी थी।

कुछ सोच कर मैने पूछा… माला और सितारा का अनुभव भी तुम्हारे जैसा था। वह सिर झुकाये जमीन की ओर देखते हुए धीरे से बोली… माला एक पंजाबी लड़की है। वह पहली बार मुझे उस तहखाने मे मिली थी। वह एरनाकुलम से वहाँ पहुँची थी। उसको भी उसके आशिक ने इस नरक की आग मे जलने के लिये छोड़ दिया था। सितारा का असली नाम श्रीनिधि है। वह भी मोहब्बत के जाल मे फंस कर उस तहखाने मे पहुँची थी। हम सब की कहानी एक जैसी है। …यह बच्चे किसके है? …पता नहीं। …मै बाप के बारे मे नहीं पूछ रहा हूँ। क्या यह तुम तीनो के बच्चे है? …चार बार मै हामिला हुई लेकिन उन जालिमों के कारण सभी गर्भ बीच मे ही गिर गये थे। जीनत सितारा की बच्ची है। वह दोनो भी तीन चार बार हामिला हो चुकी है परन्तु समय से पहले ही जोर जबरदस्ती के कारण बीच मे ही गर्भपात हो गया था। वह असगर लड़का असलियत मे दिलावर पठान का खिलौना है। उसे रज्जाक किसी मदरसे से अपने लिये लेकर आया था। उसकी बात सुन कर मै मन ही मन सोच रहा था कि क्या इस कौम की इंसानियत मर चुकी है।

मैने उठते हुए कहा… मै तुम तीनो को यहाँ से निकाल कर हिन्दुस्तान भिजवा सकता हूँ लेकिन यह सुबह होने से पहले तुम्हें तय करना होगा। वह कुछ पल मुझे घूरती रही और फिर अचानक उठ कर चली गयी। गजल भी उसकी कहानी सुन कर सन्न रह गयी थी। एक निर्जिव मूर्ति कि भांति वह मुझे पकड़ कर बैठी रही। धीरे से उसको हिला कर मै बोला…गजल। वह चौंक कर हड़बड़ा कर मुझसे अलग होकर बोली… क्या आप इन तीनो को यहाँ से निकाल सकते है? …पता नहीं लेकिन कोशिश करने मे क्या हर्ज है। वह कुछ पल मुझे देखती रही और फिर अचानक झपट कर मुझसे लिपट कर रोने लगी। तभी वैजयन्ती, माला और सितारा आती हुई दिखी तो मैने जल्दी से कहा… गजल अपने आपको संभालो। वह तीनो आ रही है। गजल मुझे और कस कर पकड़ कर बैठ गयी थी। वैजयन्ती सामने बैठते हुए बोली… मैने इनको बता दिया है लेकिन यह अपने बच्चों को यहाँ छोड़ कर नहीं जा सकती। …तुम तीनो को यहाँ से निकालना ही मुश्किल काम है। अभी बच्चों को साथ लेकर निकलना तो नामुमकिन है। तीनो मलयालम मे बात करने लगी और मै गजल की पीठ सहलाते हुए समझाने मे लगा हुआ था। …इसको क्या हुआ? …कुछ नहीं। बस तुम्हारी कहानी सुन कर रो पड़ी। …समीर, हम तीनो यहाँ से निकलने के लिये तैयार है। बताओ क्या करना है। …तुम तीनो गजल के साथ लैंडरोवर मे जाकर बैठो लेकिन यहाँ से बाहर निकलते ही हवा मे फायरिंग करके सारी क्लिप समाप्त कर देना। बाकी मै संभाल लूंगा।

उन्हें सारी बात समझा कर मै जैसे ही बड़ी बी के कमरे के बाहर पहुँचा तभी फायरिंग आरंभ हो गयी थी। दो मिनट तक लगातार फायरिंग के पश्चात मैने बड़ी बी के कमरे के दरवाजे पर दस्तक दी और अगले ही पल वह दरवाजा खुलता चला गया था। बड़ी बी दरवाजे के बीचोबीच खड़ी हुई थी। मुझे देखते ही उन्होंने पूछा… वह अभी तक घात लगा कर बैठे हुए है। मैने जल्दी से कहा… वह लगातार हमला कर रहे है। अब तक मुठभेड़ मे उनके दस लोग मारे गये है लेकिन इस बार वह उन तीन लड़कियों के साथ मेरी बीवी को भी वह उठा कर ले गये है। मै उनके पीछे जा रहा हूँ तो और जब तक मै वापिस नहीं आता तब तक आप किसी के लिये दरवाजा मत खोलना। वादा तो नहीं कर रहा लेकिन अगर उन्हें बचा सका तो उन्हें वापिस लाने की कोशिश जरुर करुँगा। पता नहीं बड़ी बी मेरी बात कितना समझ पायी परन्तु मै उनको समझाने के बजाय तेजी से उलटे कदम मुख्यद्वार की ओर बढ़ गया। अंधेरा अभी भी घना था। ग्लाक अभी भी मेरे हाथ मे थी। पता नहीं बाहर का क्या हाल था इसलिये सावधानी बरतते हुए मै दीवार की आढ़ लेकर जैसे ही बाहर निकला कि तभी दो फायर एक साथ हुए… धाँय…धाँय। गजल की आवाज मेरे कान मे पड़ी… आ जाईये। अब कोई खतरा नहीं है। मै जल्दी से कदम बढ़ाते हुए अपनी लैंडरोवर की ओर निकल गया था।

लैंडरोवर की आढ़ लेकर वह तीनो मुझे कवर कर रही थी। गजल गाड़ी मे बैठी हुई मुझे आते हुए देख कर चिल्लायी… चलिये सब गाड़ी मे बैठ जाईये। तीनो मेरे पहुँचने से पहले गाड़ी मे बैठ चुकी थी। मैने गाड़ी स्टार्ट करके जैसे ही गियर बदल कर आगे बढ़ा कि तभी कहीं से एके-47 की फायरिंग की आवाज कान मे पड़ी परन्तु तब तक हम मोड़ पर आ गये थे। लैंडरोवर को मोड़ते ही हम गली से निकल कर सड़क पर पहुँच गये थे। ईदगाह मस्जिद पीछे रह गयी थी और लैंडरोवर रात के अंधेरे को चीरती हुई काबुल की दिशा मे निकल गयी थी। कुछ दूर निकलने के बाद माला की आवाज कान मे पड़ी… हमारे पीछे कोई नहीं आ रहा है। मैने गाड़ी की गति कम करते हुए पूछा… अभी भी वह लोग बाहर घात लगाये बैठे हुए थे तो तुम इतनी आसानी से कैसे बाहर निकल आये थे? …आसानी से किसने कहा। जान हथेली पर रख कर हम फायरिंग करते हुए बाहर निकले थे। इसके कारण हमलावरों को बचने के लिये गली छोड़ कर दीवार की आढ़ मे जाना पड़ गया था। मैने मुस्कुरा कर कहा… उन जिहादियों और लड़ाकुओं के साथ रह कर तुम तीनो भी जंगजू बन गयी हो। मेरी बीवी पर अपना साया मत पड़ने देना। मेरे साथ बैठी हुई गजल चहकते हुए बोली… आपके साथ रही तो मै भी जंगजू बन जाउँगी। उसकी बात को अनसुना करके मैने उन तीनो से कहा… बेफिक्र रहो। एक हफ्ते मे तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारे पास पहुँच जाएँगें। हमारे बीच बस इतनी बात हो सकी थी क्योंकि फिर सामान से भरे हुए ट्रकों के काफिले मे हमारी लैंडरोवर भी जुड़ गयी थी।

जब तक हम काबुल पहुँचे तब तक आसमान रौशन हो गया था। दिमाग मे एक ही बात घूम रही थी कि इन तीनो को लेकर कहाँ जाऊँ? तभी एक ख्याल आया तो मै तिलाई टाउन की ओर चल दिया। जानी पहचानी जगह देख कर गजल बोली… क्या आप मुझे घर छोड़ने जा रहे है? …वहाँ पता करने जा रहा हूँ कि क्या तुम्हारे फ्लैट के पास कोई और फ्लैट किराये पर मिल सकता है। अगर मिल गया तो कुछ दिनो के लिये मै इन्हें वहीं ठहरा दूँगा। …हमारे फ्लैट पर चलिये। इतनी सुबह कौन मिलेगा। …वहाँ पहुँच कर आमेना से क्या कहोगी? मेरा सवाल सुन कर एकाएक गजल चुप हो गयी। तभी पीछे बैठी वैजयन्ती बोली… समीर आपका घर कहाँ है? मैने जल्दी से कहा… मेरा घर तो पेशावर मे है। यहाँ तो मेरा सुसराल है। मै यहाँ गजल को विदा कराने के लिये आया था। तभी गजल बोली… कुछ दिनो की तो बात है। यह हमारे साथ रह लेंगी। कुछ सोच कर हम आमेना की फ्लैट की ओर चल दिये। कुछ ही देर मे हम आमेना के फ्लैट के सामने खड़े हुए थे। गजल ने दरवाजे पर दस्तक देते हुए आवाज लगायी… बाजी। दरवाजा खुलने मे कुछ समय लगा लेकिन आमेना ने जैसे ही दरवाजा खोला तो भीड़ को देख कर चौंक कर दो कदम पीछे हो गयी थी। मैने जल्दी से कहा… यह गजल की बाजी है। वैजयन्ती, माला और सितारा को आमेना से मिलवा कर हम फ्लैट मे प्रवेश कर गये थे। गजल को लेकर आमेना एक कमरे मे चली गयी और हम चारों वहीं बैठक मे रुक गये थे। …तुम्हारे हथियार कहाँ है? …आपकी गाड़ी मे है। …कोई बात नहीं। तभी कमरे से बाहर निकलते हुए आमेना बोली… दूल्हे भाई, कुछ दिन की तो बात है। मै तो वैसे ही अकेली रहती हूँ तो यह तीनो मेरे पास ठहर जाएँगी। मैने उन तीनो की ओर देखा तो माला जल्दी से बोली… अगर इनको कोई तकलीफ नहीं है तो हम यहीं रुक जाते है। कुछ देर बात करने के बाद मै वापिस उसी गेस्ट हाउस की ओर निकल गया था।

गेस्ट हाउस के कमरे मे पहुँचते ही मैने सेटफोन आन किया और नेटवर्क से जुड़ते ही कमांड सेन्टर का नम्बर मिलाते ही जनरल रंधावा की आवाज कान मे पड़ी… पुत्तर उस लड़की का क्या हुआ? …सर, एक के साथ दो फ्री मिल गयी है। …क्या मतलब? …सर, तीनो लड़कियाँ गैर मुस्लिम है और केरेला से है। तीनो केरेला से मुस्लिम लड़कों के साथ इराक पहुँची थी। वहाँ से दाईश के अफगान लड़ाकुओं के साथ यह तीनो जलालाबाद पहुँच गयी थी। मेरी उनसे ज्यादा बात नहीं हो सकी है। अब यहाँ से आगे की कार्यवाही आपको करनी है। एक और बात है कि इनके तीन बच्चे वहीं जलालाबाद मे रह गये है। कर्नल श्रीनिवास कोशिश करेगें तो वह बच्चे आसानी से वहाँ से बरामद किये जा सकते है। …समीर, अजीत और वीके से बात करके इनको सुरक्षित वापिस लाने इंतजाम करवाता हूँ। फिलहाल इन्हें कहाँ रखा है? …सर, उन्हें मैने अपने एक जानकार के यहाँ छोड़ा है। आप बेफिक्र रहिये। …पुत्तर, ओवर एन्ड आउट। उसी के साथ लाईन कट गयी थी। सेटफोन आन होते ही मेसेज चेक करना तो नियम बन गया था। एक नजर इन्बाक्स पर डाली तो अंजली का एक मेसेज डिस्प्ले पर दिख रहा था।

…आपके आँखों से आँसू छलकने की बात पढ़ कर बहुत देर तक रोती रही थी। इसी कारण मै आपसे फोन पर बात नहीं करना चाहती क्योंकि फिर मै अपने आप को रोक नहीं सकूँगी। एक-एक पल भारी लगने लगेगा। मेनका को आपसे दूर करने के लिये माफ कर दिजिये।

बार-बार उसका मेसेज पढ़ने के बाद मै अपना संदेश लिखने के लिये बैठ गया… अबसे मेनका और केन बोलना आरंभ कर दो। हम दोनो ही मेनका और केन के गुनाहगार है। मेरे आँसू की बात सुन कर इतनी विचलित हो गयी और एक बार भी यह नहीं सोचा कि तुम्हारे बिना मेरा क्या हाल होगा। तुम्हारा उद्देश्य नेक है तो कुछ कह नहीं सकता परन्तु तुमसे शिकायत तो कर सकता हूँ। 

मेसेज भेज कर मै थकान उतारने के लिये बाथरुम मे चला गया। गर्म पानी से नहाकर जब बिस्तर पर लेटा तो देर रात को ही उठा था। शायद भूख के कारण नींद टूट गयी थी। रात के दस बज रहे थे। रेस्त्रां से जो कुछ खाने को मिला वह मंगा कर क्षुधा शांत करके एक बार फिर से गहरी नींद मे खो गया। अगली सुबह किसी के दरवाजा पीटने के कारण नींद टूट गयी थी। मैने जल्दी से उठ कर दरवाजा खोला तो गजल को अकेली खड़ी हुई देख कर पूछा… इतनी सुबह यहाँ क्या कर रही हो। वह तीनो तो ठीक है। वह मुझे धक्का देकर अन्दर दाखिल हो गयी और गुस्से मे बोली… कल सुबह से आपकी कोई खबर नहीं मिली तो मुझे चिन्ता हो गयी थी। …सौरी। थकान के कारण सोता रह गया था। वहाँ तो सब ठीक है? …हाँ सब ठीक है। अचानक उसे न जाने क्या हुआ वह झपट कर मुझसे लिपट कर बोली… मै कुछ दिन अब आपके साथ यहीं पर रहूँगी। …तुम्हारी बाजी हर्गिज इसके लिये तैयार नहीं होगी। चलो तुम कुछ देर आराम से बैठो मै तैयार होकर आता हूँ। चाय और नाश्ते का आर्डर देकर मै तैयार होने के लिये चला गया था।

चाय-नाश्ता करके मैने कहा… चलो तुम को तुम्हारे फ्लैट पर छोड़ देता हूँ। वह तुरन्त बोली… मै आपके साथ रहने के लिये आयी हूँ। बाजी ने मुझे भेजा है। मै कुछ बोलता कि सेटफोन की घंटी ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया था। …हैलो। …समीर, उन तीनो को कर्नल श्रीनिवास के हवाले कर दो। वह उन्हें हमारी एम्बैसी के सेफ हाउस मे ठहरा देंगें और उनके बच्चों की बरामदगी होते ही उन सब को सुरक्षित दिल्ली पहुँचा देंगें। …सर, इससे तो कर्नल श्रीनिवास के सामने मेरा कवर नष्ट हो जायेगा। सारा आप्रेशन ही खतरे मे पड़ जाएगा। …तुम कोई रास्ता सुझाओ। …सर, आप कर्नल श्रीनिवास से उन लड़कियों के बारे मे बता दिजिये। कुछ ही देर मे वैजयन्ती कर्नल श्रीनिवास को फोन पर संपर्क करके उनके सामने संरक्षण की मांग रखेगी। अगर कर्नल श्रीनिवास को आपके निर्देश पहले मिल गये तो वह उनके पते पर पहुँच कर उन्हें खुद ही एम्बैसी के सेफ हाउस मे पहुँचा देगा। इस कार्यवाही मे मेरा कोई रोल नहीं होगा। …ओके। ऐसा ही करते है। …आपका ग्रीन सिगनल मिलने के बाद ही वैजयन्ती कर्नल श्रीनिवास को फोन करेगी। अजीत सर ने फोन काट दिया था। मैने गजल की ओर देखा तो वह विस्मय से मेरी ओर देख रही थी। …आप किससे बात कर रहे थे? …उन तीनो को हिन्दुस्तान भिजवाने के लिये एक हिन्दुस्तानी अफसर से बात कर रहा था। …तो क्या वह आज ही चली जाएंगी? …नहीं लेकिन आज से वह भारत की एम्बैसी मे रहेंगी। एम्बैसी यहाँ की पुलिस की मदद से उनके बच्चों को दिलावर पठान के घर से निकाल कर उनको सौंप देगी। उसके बाद सबको हिदुस्तान भेज दिया जायेगा। अब चले? यह सुन कर उसका चेहरा मुर्झा गया था।

गजल का उतरा हुआ चेहरा देख कर मैने पूछा… अब तुम्हें क्या हो गया? कोई जवाब दिये बिना वह चलने के लिये खड़ी हो गयी। पेशावरी सूट छोड़ कर अब मै वापिस एम्बैसी स्टाफ के कपड़ों मे आ गया था। मैने धीरे से उसके कन्धे को पकड़ कर घुमा कर अपने सामने किया और उसके चेहरे को अपने हाथ मे लेकर बोला… तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि वह तीनो अपने परिवार के पास वापिस चली जाएँगी। तुम यही चाहती थी तो इतना हसीन चेहरा मुर्झा क्यों गया? वह कुछ नहीं बोली परन्तु उसकी आँखों से आँसू छलक गये थे। उसको अपनी बाहों मे जकड़ कर धीरे से समझाते हुए कहा… पहले उनकी कहानी सुन कर रो रही थी और अब उनके जाने की बात सुन कर रो रही हो। वह कुछ देर तक मेरे सीने मे चेहरा छिपाये रोती रही और मै उसे उन तीनो के सुखी भविष्य के बारे मे बताता रहा था। जब वह शांत हो गयी तो मैने कहा… अब चलें? वह चुपचाप मेरे साथ चल दी थी। कुछ ही देर के बाद हम उन तीनो के सामने बैठे हुए थे। …वैजयन्ती मेरी बात हो गयी है। उन्होने भारतीय दूतावास मे कर्नल श्रीनिवास का नाम दिया है। तुम तीनो को यहाँ से निकाल कर वह दूतावास मे ठहरा देंगें। दूतावास के अधिकारी स्थानीय पुलिस की मदद से तीनो बच्चो को भी दिलावर के चंगुल से छुड़ा कर तुम्हारे हवाले कर देंगें। बच्चे मिलते ही वह तुम सबको हिन्दुस्तान भिजवा देंगें। इस काम मे एक-दो दिन लग जाएँगें क्योंकि तुम्हारे नये कागज तैयार करने पड़ेंगें। इसके लिये वह जो कुछ भी पूछे तुम सच-सच बता देना। वैजयन्ती के आईकार्ड के कारण उसकी जाँच हो गयी है। अगर तुम्हारे पास भी कोई ऐसा सुबूत है जो तुम्हें भारतीय बताता है तो वह उन्हें दे देना। वह अपने आप ही जाँच कर लेंगें। माला तुरन्त बोली… समीर, हम अपने परिवार के पास वापिस नहीं जा सकते। श्रीनिधी ने भी हामी भरते हुए माला की बात का अनुमोदन किया तो मैने कहा… कोई बात नहीं। मेरे कहने से एक बार अपने परिवार से जरुर मिलो और अगर लगे कि वह तुम्हें नहीं रखना चाहते तो नेपाल मे मेरा एक जानकार है जिसका कारोबार काफी फैला हुआ है। वह तुम्हें काम पर रख लेगा। तीनो ने अपना सिर हिला दिया था।

आमेना बोली… बाजी आपने यह नहीं बताया कि आप ऐसे दरिन्दों के चंगुल मे कैसे फँस गयी थी। तीनो ने एक दूसरे को एक बार देखा और फिर वैजयन्ती बोली… स्कूल मे एक लड़के की झूठी मोहब्बत के जाल मे फँस गयी थी। बाद मे पता चला कि मुझे इस्लाम कुबूल करवाने के लिये उसे मस्जिद से पाँच लाख रुपये मिले थे। यह बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गये थे। मैने अपने फोन को रिकार्डिंग पर लगा कर कहा… वैजयन्ती, यही मौका है जब तुम आराम से हमारे सामने हर उस इंसान का जिक्र कर सकती हो जिसने तुम्हें यहाँ तक पहुँचाया है। खुल कर बता दो। …समीर, यह अनुभव नासूर बन गया है। दबाने से सिर्फ मवाद ही निकलेगा। …तुम गलत सोच रही हो। अगर तुम अपनी कहानी सुना दोगी तो इससे कम से कम दूसरी लड़कियाँ तो ऐसे जाल मे नहीं फंसेगी। माला तुरन्त बोली… समीर सही कह रहा है। इसके सामने बोलने से कम से कम और लड़कियाँ तो इस नरक मे फँसने से बच जाएँगी।

एक साथ सभी वैजयन्ती को अपनी कहानी सुनाने के लिये कहने लगे तो वैजयन्ती बोली… मै दसवीं की परीक्षा देने की तैयारी कर रही थी। शोएब हमारे घर के पास रहता था। उसकी छोटी बहन मेरी क्लास मे पढ़ती थी जिसके कारण एक दूसरे के घर हमारा आना-जाना लगा रहता था। एक बार स्कूल से लौटते हुए शोएब ने मेरा रास्ता रोक कर मुझे अपनी मोहब्बत का पैगाम दिया तो मैने उसकी बहन से शिकायत कर दी थी। उस दिन के बाद से वह मुझे रोज तंग करने लगा। जब भी बाहर मिल जाता तो बदतमीजी करने से बाज नहीं आता। मेरी परीक्षा नजदीक आ रही थी तो मैने अपने अप्पा से उसकी शिकायत करी कि वह मुझे परेशान करता है। मेरे अप्पा ने उसके अब्बा से उसकी शिकायत की तो वह गुस्से से पागल हो गया और मुझे धमकी देने लगा। मेरे अप्पा ने उसकी शिकायत पुलिस मे कर दी तो वह अपने परिवार के रसूख और पैसों के बल पर छूट तो गया लेकिन वहीं से मेरी बदकिस्मती की दास्तान शुरु हो गयी। दसवीं की परीक्षा के बाद एक दिन उसने मुझे बाजार मे पकड़ लिया और तेजाब से भरी बोतल दिखा कर बोला कि अगर मै उसके साथ नहीं चली तो वह तेजाब मेरे मुँह पर फेंक देगा। ऐसे किस्से मैने बहुत सुने थे तो डर के मारे मै उसके साथ चली गयी। वह सारे रास्ते अपनी मोहब्बत की दुहाई देता रहा और साथ जीने मरने की कसम खाता रहा। छुट्टियाँ चल रही थी तो ज्यादा कुछ करने को नहीं था। एक बार फिर उसने बुलाया तो मिलने चली गयी थी। एक बार फिर से उसने साथ जीने-मरने की कसमे और बेपनाह मोहब्बत की दुहाई देने के बाद मेरे जिस्म से छेड़खानी शुरु करी तो मै गुस्से मे उठ कर जाने लगी। अगले ही पल उसकी मोहब्बत हैवानियत मे बदल गयी थी।

अपने दो दोस्तों के साथ मिल कर उसने मेरे साथ बलात्कार किया। जब वह मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था तब उसके दोस्त रशीद और शकील हमारी फोटो और विडियो फिल्म बना रहे थे। मेरी फोटो और फिल्म दिखा कर उन्होंने धमकी दी कि अगर मैने शोएब के साथ निकाह करने से मना किया तो वह फोटो और फिल्म मेरे अप्पा को दे देंगें और सोशल नेटवर्क पर डाल देंगें। उसी शाम शोएब एक मौलवी को पकड़ कर ले आया। मौलवी साहब ने मुझे इस्लाम कुबूल करवा कर जबरदस्ती मेरा निकाह शोएब के साथ पढ़वा दिया। …क्या तुम उस मौलवी को जानती थी? …नहीं। मुझे बाद मे पता चला कि वह मौलवी ईदगाह मस्जिद का इमाम शौकत कैसर था। बोलते हुए वैजयन्ती का हलक सूख गया था तो वह उठ कर पानी पीने चली गयी।

माला बोली… समीर, मेरे साथ बलात्कार व धमकी वगैराह जैसी बात नहीं हुई थी। वह पगधारी सिख बन कर मुझे गुरुद्वारे मे मिला था। उस समय मै भी स्कूल मे पढ़ती थी। गुरुद्वारे मे हमारा मिलना अकसर होने लगा तो मै बलजीत की ओर खिंचती चली गयी थी। जवानी मे पहला कदम रख चुकी थी और बलजीत के साथ ने मुझे अंधा कर दिया था। स्कूल से भाग कर कभी पार्क मे और कभी सिनेमा हाल मे बलजीत मेरे जिस्म के साथ छेड़खानी करके मेरी जिस्मानी आग को लगातार भड़काता चला जा रहा था। उसने मेरे साथ बलात्कार नहीं किया था। मैने स्वेच्छा से उसके साथ जिस्मानी संबन्ध बनाये थे। उसके बाद की कहानी वही है जो वैजयन्ती ने सुनाई थी। न जाने कब और कैसे उसने मेरी फोटो और फिल्म बनायी लेकिन एक दिन उसी को दिखा कर बलजीत ने जबरदस्ती मुझे इस्लाम कुबूल करवा कर मेरे साथ निकाह कर लिया था। गजल ने टोकते हुए कहा… बाजी, वह तो सरदार था। माला हंस कर बोली… पगली, वह सरदार नहीं था। वह सरदार बनने का ढोंग कर रहा था। उसका नाम बदरुद्दीन मेमन था। वह थ्रिसूर जिले के एक गाँव से पढ़ने के लिये थ्रिसूर शहर के बोय्ज होस्टल मे सरदार बन कर रहता था। एक बार जिस पर अपनी अस्मत लुटा दी तो अब वह चाहे बलजीत हो या बदरुद्दीन उससे क्या फर्क पड़ता है।

वैजयन्ती भी आ गयी थी और वह भी माला की कहानी सुन रही थी। माला जैसे ही चुप हुई वैजयन्ती तुरन्त बोली… श्रीनिधी को साकिब अन्सारी तिलकधारी सुनील श्रीनिवासन के रुप मे मिला था। वह अपने आपको अयप्पा का भक्त बताता था। हम सभी धोखा खा कर उस नर्क मे पहुँची थी। वह नर्क मोसुल के पास बादुश नाम की जगह पर दाईश के लड़ाकुओं का कैम्प था। उसके तहखाने मे कोई दर्जन भर लड़कियाँ थी। हम सब लड़कियों के एक पाँव को बेड़ी से जकड़ दिया था। जब भी किसी लड़ाकू को ज़िना करने की इच्छा होती तो वह तहखाने मे चला आता था। दो साल हमने उस नर्क मे साथ गुजारे थे। वह तो अमरीका की बमबारी के कारण बादुश तबाह हो गया तो हम वहाँ से बच कर भागने मे सफल हो गयी। …क्या खाक सफल हो गयी थी। मोसुल मे रोटी के लिये हम जिस्म बेचने पर मजबूर हो गये थे। हमारी जिन्दगी मे बस इतना ही फर्क आया था कि बादुश मे वह मुफ्त मे हमारे जिस्म को रौंदते थे और मोसुल हमे उसके लिये पैसे मिलते थे। जब मोसुल मे दाइश ने हमला किया तब हमारा दलाल हमे एर्बील से होते हुए बगदाद ले आया था। रास्ते मे हमारे साथ न जाने किस-किस ने हमबिस्तरी की थी। बगदाद मे हमारे दलाल ने हमसे अपना पीछा छुड़ाने के लिये वापिस लौटते हुए कुछ दाईश के पश्तून लड़ाकुओं को हम तीनो को बेच दिया था। अली और रज्जाक उन लड़ाकुओं के कारिन्दे बन कर उनके साथ चल रहे थे। ईरान पार करके जब हम बलोचिस्तान पहुँचे तब तक उनका हमसे मन भर गया था। अपना पीछा छुड़ाने के लिये उन्होंने हमे अपने कारिन्दे अली और रज्जाक के हवाले कर दिया। इस तरह से हम अपने जिस्म को नुचवा कर एक नर्क से दूसरे नर्क मे पहुँच गयी थी। गजल अभी तक चुपचाप उनकी बात सुन रही थी वह तपाक से बोली… बाजी जिस्म नुचवाने का…इससे पहले वह अपना वाक्य पूरा करती मैने जल्दी से उसके गले मे हाथ डाल कर मुँह बन्द करके कहा… बाद मे बता दूंगा। चुपचाप बैठ कर इनकी बात सुन लो। चारों खिलखिला कर हँस पड़ी थी। आमेना बोली… बानो, अभी तक समीर ने तुम्हारा जिस्म नहीं नोचा? मैने घूर कर आमेना को देखा तो वह मुस्कुरा कर बोली… वादे के पक्के हो। मैने चिढ़ कर जवाब दिया… तुम्हारे हवाले करने के बाद अब कोई मनाही नहीं है। अब इसे मुझसे बचा कर रखना।

कुछ सोच कर मैने पूछा… वैजयन्ती, माला और श्रीनिधी एक नर्क से दूसरे नर्क का सफर तो पता चल गया। यह नहीं पता चला कि तुम पहले उस नर्क मे कैसे पहुँच गयी थी। वैजयन्ती ने जवाब दिया… आयशा के नाम से शोएब के साथ इस्तानबुल हनीमून मनाने के लिये आयी थी। शोएब को मस्जिद मे दाईश का एक दलाल मिला जिसने उसे पैसों का लालच देकर बगदाद जाने के लिये उकसाया था। पाँच लाख रुपये जो मिले थे वह खत्म हो गये थे तो शोएब मुझे लेकर सड़क के रास्ते से बगदाद की ओर निकल गया था। सिरिया मे घुसते ही उसे दाईश की टुकड़ी मिली तो तुरन्त उस टुकड़ी मे शामिल हो गया था। पता नहीं क्यों उन्होंने उसे हथियार नहीं दिये और खाना बनाने के लिये रसोई मे लगा दिया था। एक दिन दाईश के कमांडर से उसकी किसी बात पर कहा सुनी हो गयी तो उन्होंने उसे गोली मार कर वही रेगिस्तान मे छोड़ दिया। उसकी मौत के बाद मै पूरी टुकड़ी की बेवा बन गयी थी। जिसका मन करता वह मुझे हमबिस्तरी करने के लिये मजबूर कर देता था। उस टुकड़ी के साथ चलते हुए मै बादुश पहुँची थी।

मैने माला की ओर देखा तो वह बोली… बदरुद्दीन तो दाईश मे शामिल होने के लिये बगदाद आया था। उसको भी मस्जिद से पाँच लाख मिले थे। बगदाद मे दाईश के कैम्प मे उसको सफाई का काम दिया था। मुझे रसोई का काम दिया था। वहाँ पर अंग्रेज आदमी और अंग्रेज लड़कियों की चलती थी। वह मुख्तियार बने हुए थे। हम जैसे लोग निचले दर्जे के माने जाते थे। आये दिन उनके जुल्म बढ़ते जा रहे थे। एक दिन बदरुद्दीन ने कैम्प से भागने की कोशिश करी तो उसको शरिया अनुसार सजा मिली और अगले ही दिन मुझे बुलाया गया और मेरी आँखों के सामने उसे फायरिंग दस्ते के सामने खड़ा करके गोली मार दी थी। मुझे बेवा का खिताब तो नहीं दिया लेकिन लड़ाकुओं की हमबिस्तरी के लिये मुझे भी मजबूर कर दिया था। जब बगदाद कैम्प पर हमला हुआ तब मुझे एक टुकड़ी के हवाले कर दिया जो बादुश जा रही थी। इस तरह मै उस नर्क मे पहुँची थी।

मैने श्रीनिधी की ओर देखा तो वह इतनी देर मे पहली बार बोली… साकिब मुझे दिल्ली लेकर आया था। कुछ दिन मेरे साथ रहने के बाद वह मुझे आरिफ नाम के एक कारोबारी को बेच कर वापिस चला गया था। आरिफ के साथ कुछ महीने रही फिर उसने कुरैशी नाम के दोस्त के हवाले कर दिया था। कुरैशी मुझे लेकर काठमांडू आया और वहाँ पर बुर्हान सुलेमानी नाम के लड़के के हवाले करके वापिस चला गया था। बुर्हान सुलेमानी एक नेपाली रईस कारोबारी का बेटा था। बुर्हान के परिवार का किसी पीरजादा फिरके से ताल्लुक था। धार्मिक शिक्षा और मेरा शुद्धिकरण कराने के लिये बुर्हान मुझे बाकू ले गया। वहाँ उसके पीर का बहुत बड़ा धार्मिक प्रशिक्षण केन्द्र था। हम उसके केन्द्र मे दो हफ्ते रहे थे। वहाँ पर मेरी शुद्धि हुई और दो हफ्ते के बाद उनके फिरके मे मेरा दाखिला हो गया था। उन दो हफ्ते मे बुर्हान की मानसिकता भी बदल गयी थी। वह एक ऐयाश कारोबारी से कट्टर जिहादी बन गया था। खलीफा का राज्य स्थापित करने के लिये वह मुझे सड़क के रास्ते से तबरीज और फिर एर्बिल पहुँचा था। यहाँ पहुँच कर वह दाईश से जुड़ गया था। कुछ महीने के बाद एर्बिल के अमरीकी हमले मे बुर्हान शहीद हो गया था। उसके साथियों को सिरिया जाने का आदेश मिला तो वह लोग मुझे बादुश कैम्प मे छोड़ कर सिरिया निकल गये थे। इस तरह से मै उस नर्क मे पहुँची थी।  

कुछ देर सारी लड़कियों मे सवाल जवाब का दौर चलता रहा लेकिन मेरा दिमाग अजीत सर के ग्रीन सिगनल पर केन्द्रित था। दोपहर को अजीत सर ने फोन पर बताया कि उनकी गोपीनाथ से बात हो गयी है और कर्नल श्रीनिवास को उन तीनो लड़कियों को दिल्ली भेजने के निर्देश जारी हो गये है। वैजयन्ती से कहो कि वह कर्नल श्रीनिवास को फोन करके वहीं बुला ले। कर्नल श्रीनिवास अपनी सुरक्षा मे उन्हें सेफ हाउस पहुँचा देगा और फिर उनके बच्चों को लाने के लिये अफगान सरकार पर दबाव डालेगा। …जी सर। उन तीनो लड़कियों को उसके हवाले करके मै आपको फोन पर सुचित कर दूंगा। अब आपको उनकी सुरक्षा का प्रबन्ध देखना पड़ेगा। …समीर, तुम बेफिक्र रहो। वह हमारी बेटियाँ है और उनको सुरक्षित वापिस लाने की हमारी जिम्मेदारी है। इतनी बात करके अजीत सर ने फोन काट दिया था।

…वैजयन्ती तुम उस आदमी को फोन लगाओ। मैने आमेना से फोन लेकर कर्नल श्रीनिवास का नम्बर मिलाया और उसकी आवाज सुनते ही मैने फोन वैजयन्ती को पकड़ा दिया था। जैसा उसे समझया था वैजयन्ती उसी प्रकार संरक्षण के लिये कर्नल श्रीनिवास को तिलाई टाउन का पता देकर फोन काट दिया था। …वह कह रहा था कि शाम को वह हमको लेने आयेगा। एकाएक इस खबर को सुनते ही तीनो के चेहरे पर तनाव की लकीरें खिंच गयी और कमरे मे चुप्पी छा गयी थी। वैजयन्ती मेरी ओर देख कर धीरे से बोली… समीर कोई गड़बड़ तो नहीं होगी? …तुम तीनो को सुरक्षित भारत पहुँचाने की मेरी जिम्मेदारी है। मैने अभी जिससे बात की थी उसने मुझे आश्वासन देकर कहा है कि अपनी तीन बेटियों की घर वापिसी की जिम्मेदारी अब भारत सरकार की है। तुम्हारे अप्पा को भी सूचना दे दी गयी है। वह तुम्हें एयरपोर्ट पर मिलेंगें। एक और बात है कि तुम्हारा भाई थम्बी आजकल बैंग्लोर मे किसी साफ्टवेयर कंपनी मे काम कर रहा है। उसको तुम्हारे बारे मे अभी तक नहीं बताया है। एक बार अपने अप्पा से मिल लो उसके बाद तय करना कि आगे क्या करना है। माला और श्रीनिधी बड़ी उम्मीद से मुझे देख रही थी। मैने उठ कर उनके पास जाकर उनके सिर पर हाथ रख कर बोला… मुझे अपना भाई समझो। अगर कभी भी किसी मुश्किल मे हो तो बेहिचक अपने भाई को याद कर लेना। दोनो उठ कर मुझसे लिपट कर रोने लगी। सारा माहौल गमगीन हो गया था।

 

पश्चिमी थिएटर कमांड, काशगर

स्ट्रेटिजिक कमांड की अहम् बैठक हो रही थी। पश्चिमी थिएटर कमांड का जनरल शेनजेन अपने अधिकारियों की बात बड़े ध्यान से सुन रहा था। …सर, सीपैक का सारा काम स्कार्दू के बाद ठप्प पड़ा हुआ है। पाकिस्तान फौज हमारे लोगो को सुरक्षा देने मे अस्मर्थ दिखायी दे रही है। जनरल फैज का कहना है कि अगली किस्त मिलने के बाद ही वह सुरक्षा की गारन्टी दे सकेंगें। …इस बारे मे जनरल रहमत का क्या कहना है? …सर, जनरल रहमत ने इसके लिये कामरान सरकार को जिम्मेदार बताया है। उसका कहना है कि जब तक सरकार पहल नहीं करेगी तब तक आगे सड़क बनाने के लिये जमीन के अधिकार नहीं मिल सकते। तभी दूसरा अधिकारी बोला… सर, ग्वादर स्ट्रेच का तो इससे भी बुरा हाल है। वहाँ सड़क का काम तो चल रहा है परन्तु जान और माल का नुकसान बहुत ज्यादा हो रहा है। बहुत सी कंपनियों ने काम बन्द कर दिया है। हर कदम पर सरकारी अफसर पैसा मांगते है। सेना के कोर कमांडर को पैसा पहुँचाने के बाद भी काम नहीं होता है। सभी कंपनियाँ यही शिकायत कर रही है। फौज और नौकरशाह एक दूसरे की नहीं सुनते। डीसी को पैसे देकर काम करवाने की सोचते है तो सेना काम रुकवा देती है और सेना को पैसे देते है तो डीसी का आफिस पर्मिशन नहीं देता है। अब ऐसे हालात मे कंपनी क्या करे। एक के बाद एक अधिकारी अपने-अपने काम के हिस्से की कहानी सुना रहा था। सभी की शिकायत जनरल शेनजेन चुपचाप सुन रहा था। उसका एडीसी एक नोट पैड पर सबकी शिकायत दर्ज कर रहा था।

सबके बोलने के बाद जनरल शेनजेन बोला… हम पहले ही इस प्रोजेक्ट पर काफी पैसा लगा चुके है। काम बन्द होने से काफी नुकसान झेलना पड़ेगा। हमारी सरकार ने अबकी बार साफ शब्दों मे कामरान सरकार और जनरल रहमत को कह दिया है कि सड़क का काम देखने के बाद ही अगली किस्त दी जाएगी। तभी एडीसी धीरे से बोला… सर, गिल्गिट मे हुए हमले के बारे मे अभी तक पाकिस्तान सरकार ने कुछ नहीं किया है। पोलिट्ब्युरो ने तुरन्त रिपोर्ट माँगी है। जनरल शेनजेन ने अपने एक अधिकारी की ओर इशारा करके पूछा… कर्नल क्या गिल्गिट हादसे मे जनरल फैज ने कोई नयी जानकारी दी है? …नहीं सर लेकिन यह पता चला है कि खुदाई शमशीर नाम की तंजीम अब गिल्गिट से निकल कर खैबर पख्तूनख्वा मे छोटी बड़ी कट्टर तंजीमो के साथ मिल कर अपने पाँव पसार रही है। जनरल शेनजेन कुछ पल चुप रहने के बाद बोला… क्या काम शुरु करने के लिये हमे अब उन तंजीमो से बात करनी पड़ेगी? …सर, उन कबीलों मे हमारे प्रति काफी रोष पनप रहा है। …तो? …सर, इसके लिये तो जनरल रहमत और जनरल फैज पर दबाव डालना पड़ेगा। जनरल शेनजेन ने मीटिंग समाप्त करते हुए कहा… मै फिलहाल इस मसले को उनकी शर्तों पर सुलझाने के पक्ष मे नहीं हूँ। काम बन्द रहने दिजिये। इतना बोल कर वह उठ कर खड़ा हो गया था।   

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही जबरदस्त अंक और केरेला से आई लड़कियां के कहानी एक दूसरे से अलग होकर भी एक जैसी है और सब में धोखा और कट्टरपंथी गुट के छल के शिकार हुए, वहीं खुदाई शमशीर अब एक छोटे से तंजीम न होकर चाइनीज के गले की हड्डी बन चुका है, अब यह देखना है की समीर के राह में और क्या क्या आना बाकी है।

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    1. शुक्रिया अल्फा भाई। अभी समीर को अपने आप्रेशन को सफल बनाने के लिये बहुत कुछ करना होगा। जिरगा तो सिर्फ पहल है।

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    1. साईरस भाई देरी के लिये माफी चाहता हूँ क्योंकि पिछले हफ्ते मै यात्रा मे व्यस्त था। मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि आप दोस्तों को इंतजार नहीं करना पड़े परन्तु कभी-कभी हालात मजबूर कर देते है। शुक्रिया भाई।

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  3. वैजयंती और बाकी लडकियोंकी कहानी बहोत ही दर्दनाक है, ये साले हरामखोर जिहादी और उनके मददगार कीसी भी सुरत में जिने लायक नही है.

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  4. प्रशांत भाई शुक्रिया। यह इनकी निकृष्ट सोच का परिणाम है। इनके लिये यहाँ पर स्त्री लूट का माल है और वहाँ पर इस कुकृत्य के लिये इनके लिये 72 हूरों को इंतजाम है। कितनी गहरी सोच है भाई। बहुत खूब।

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