शह और मात-14
कुछ देर के बाद जब
सब कुछ शान्त हो गया तब मैने उन्हें आगे की कार्यवाही के बारे मे समझाने बैठ गया कि
किस तरह से कर्नल श्रीनिवास से मिलना है। मेरे बारे मे उन्हें पता नहीं लगना चाहिये
क्योंकि मै एक पाकिस्तानी नागरिक हूँ। माला ने गजल की ओर देखा तो वह अभी भी किसी सोच
मे डूबी हुई थी। वह तुरन्त गजल से बोली… बानो, अपने खाविन्द का ख्याल रखना। अगर हमे
पता चला कि तुम हमारे भाई को फिर से परेशान कर रही हो या वापिस जाने मे आनाकानी कर
रही हो तो अबकी बार हम तीनो तुम्हारी खबर लेने वापिस आ जाएँगी। गजल कुछ नहीं बोली बस
उसने धीरे से सिर हिला दिया था। बात करते हुए कब शाम हो गयी हमे पता ही नहीं चला था।
कर्नल श्रीनिवास के आने का समय हो गया था। आमेना और मेरा फोन नम्बर तीनो को देने के
बाद मै गजल को लेकर अपनी लैंडरोवर मे जाकर बैठ गया था। मेरी नजर उनकी इमारत पर जम गयी
थी। अंधेरा होते ही सड़क पर हमेशा की तरह घर लौटने वालों की चहल-पहल आरंभ हो गयी थी।
कुछ समय के बाद एक स्टेशन वेगन इमारत के आगे आकर रुकी और एक आदमी तेजी से उतर कर सिढ़ियों
की दिशा मे बढ़ गया और उसके पीछे हथियारों से लैस भारतीय सेना की वर्दी मे दो सैनिक
स्टेशन वैगन से उतर कर सिढ़ियों पर तैनात हो गये थे।
मैने अपनी घड़ी पर
नजर टिका दी थी। हर गुजरते पल के साथ मेरी धड़कन बढ़ती जा रही थी। …गजल चलो मेरे साथ।
एक पल के लिये वह चौंक गयी थी परन्तु वह जल्दी से गाड़ी से उतर कर मेरे साथ चल दी थी।
तभी सीढ़ियों से तीन बुर्कापोश स्त्रियाँ उतरती हुई दिखाई दी और उनके पीछे वही आदमी
आ रहा था। सड़क पर पहुँचते ही उन तीनो को दोनो सैनिकों ने अपने सुरक्षा घेरे मे लेकर
स्टेशन वैगन की ओर चल दिये। श्रीनिवास एक दृष्टि चारों ओर डाल कर स्टेशन वैगन की ओर
बढ़ गया। हम जब तक सीड़ियों से चढ़ कर पहली मंजिल पर पहुँचे तब तक स्टेशन वैगन जा चुकी
थी। पहली मंजिल से कुछ पल उसकी लाल टेल लाईट देख कर तीसरी मंजिल की दिशा मे चल दिया।
सीड़ियाँ चढ़ते हुए पता नहीं क्यों मुझे एक खालीपन का एहसास हो रहा था। आमेना दरवाजे
पर खड़ी मिल गयी थी। हमे आते हुए देख कर बोली… आपका काम खत्म हो गया। मैने मुस्कुरा
कर गजल के कन्धे पर हाथ रख कर आमेना से कहा… तुम्हारी अमानत तुम्हें सही सलामत वापिस
कर रहा हूँ। इसी के साथ हमारा करार समाप्त हो गया है। खुदा हाफिज। बस इतना बोल कर मै
वापिस चल दिया था। दोनो दरवाजे पर खड़ी मुझे देखती रही परन्तु बोली कुछ नहीं। लैंडरोवर
स्टार्ट करके मै गेस्ट हाउस की दिशा मे निकल गया था।
डिनर करके जब गेस्ट
हाउस पहुँचा तब तक नौ बज गये थे। कमरे मे पहुँचते ही कमांड सेन्टर मे जनरल रंधावा को
तीनो लड़कियों के बारे मे बता कर मैने उनकी रिकार्डिंग भी उनको भेज दी थी। जनरल रंधावा
ने बस इतना बताया था कि अजीत सर उन तीनो के लिये गोपीनाथ से लगातार संपर्क मे है। बस
इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। अपने बिस्तर पर लेट कर अंजली के साथ बिताये हुए
वक्त को याद करते हुए मेरी आँख लग गयी थी। पता नहीं कैसे अचानक चौंक कर मै जाग गया
और अपना स्मार्टफोन उठा कर उन लड़कियों की रिकार्डिंग सुनने बैठ गया था… बुर्हान
के परिवार का किसी पीरजादा फिरके से ताल्लुक था। धार्मिक शिक्षा और मेरा शुद्धिकरण
कराने के लिये बुर्हान मुझे बाकू ले गया था। वहाँ उसके पीर का बहुत बड़ा धार्मिक प्रशिक्षण
केन्द्र था।
यह बात मेरे दिमाग
के किसी कोने मे दब कर रह गयी थी। एक बार फिर से पीरजादा का नाम मेरे सामने आ गया था।
सोते हुए पता नहीं कैसे दिमाग मे जैसे ही यह ख्याल आया कि जोरावर का पता लगाने के लिये
अंजली बाकू गयी है मै चौंक कर उठ कर बैठ गया था। बाकू का पीरजादा कहीं अंजली का अब्बा
तो नहीं है? कुछ देर बिस्तर पर पड़े हुए इस सवाल का जवाब तलाशता रहा और जब कोई पुख्ता
सूत्र हाथ नहीं लगा तो सेटफोन पर अंजली के लिये जल्दी से एक मेसेज टाइप किया…
क्या बाकू के पीरजादा
फिरके का कोई संबन्ध तुम्हारे अब्बा और उनके फिरके के साथ है? इसका जवाब मुझे तुरन्त चाहिये।
उसका जवाब तुरन्त
तो नहीं अपितु कुछ देर के बाद आया… पीरजादा नाम के पाकिस्तान मे चार फिरके है। उनमे
से एक मीरवायज परिवार का है। बाकू के पीरजादा के बारे मे मेरे पास कोई जानकारी नहीं
है। क्यों अचानक तुम्हें क्या हुआ?
मेरे लिये पीरजादा
नाम की गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गयी थी। मैने अगला मेसेज टाइप किया… पहले पता
लगाओ कि क्या तुम्हारे अब्बा का कोई संबन्ध बाकू से है? जहाँ तक मुझे याद है कि जब
ताहिर उस्मान अब्बासी से पूछताछ चल रही थी तब उसने बताया था कि फारुख मीरवायज ने बाकू
मे काफी पैसा लगाया था। यह सब इत्तेफाक तो नहीं हो सकता। इसलिये फौरन बाकू छोड़ दो क्योंकि
वहाँ तुम्हारे लिये खतरा है।
अंजली को मैसेज भेज
कर मै दोबारा लेट गया। रात के तीन बज रहे थे और अब तक नींद समाप्त हो गयी थी। कुछ देर
मै बिस्तर पर पड़ा हुआ अपने आगे के कार्यक्रम की रुपरेखा बनाता और बिगाड़ता रहा था। सुबह
पाँच बजे मै तैयार होने के लिये चला गया था। सात बजे तक नाश्ता करके मै तैयार हो गया।
मैने एक बार सेटफोन पर नये मेसेज को चेक किया तो अंजली की ओर से कोई खबर नहीं आयी थी।
दो एके-47 और एक एके-53 और उनकी कुछ क्लिप्स अभी भी मेरी लैंडरोवर के पीछे पड़ी हुई
थी। उन हथियारों को भी ठिकाने लगाना था। कुछ सोच कर लैंडरोवर को लेकर मै सड़क पर निकल
गया। काबुल शहर से बाहर निकलते ही जलालाबाद के रास्ते पर काबुल नदी के पुल पर गाड़ी
रोक कर एके-53 और एक एके-47 को जलमग्न करके वापिस काबुल की ओर चल दिया। वहाँ से लौटने
से पहले बची हुई एक एके-47 और क्लिप्स को किसी आढ़े वक्त के लिये पीछे की सीट के नीचे
बने टूल बाक्स मे छिपा दिया था। जब तक काबुल पहुँचा तब तक नौ बज गये थे। मै वहाँ से
सीधे अमेरीकन एम्बैसी चला गया था।
डेटासेन्टर मे अपना
कार्ड इस्तेमाल करके मैने जैसे ही प्रवेश किया तो एक क्युबिकल पर अपनी नेम प्लेट “सैम
भट्ट” लगी हुई थी। अभी तक जो भी लोग उपस्थित थे वह सभी डेटासेन्टर मे तैनात थे। अपनी
सीट पर बैठते ही मेरी नजर अनायस ही शीशे के स्लाईडिंग दरवाजे की ओर चली गयी जहाँ से
एंथनी वालकाट प्रवेश कर रहा था। वह मेरे पास पहुँच कर बोला… सैम जलालाबाद की क्या रिपोर्ट
है? मैने पलट कर पूछा… एंथनी, तुम वहाँ कैसे पहुँच गये? वालकाट मुस्कुराते हुए बोला…
हमारे एयरबेस पर हमले की सूचना मिलते ही मै हमलावरों से पूछताछ करने के लिये जलालाबाद
एयरबेस पहुँचा था। रज्जाक से पूछ्ताछ के दौरान जब दाईश और दिलावर पठान का नाम आया तो
मै चौंक गया था। जब सेना ने देर रात को दिलावर पठान को पकड़ने के लिये उसके घर पर छापा
मारने का निर्णय लिया तब मैने भी उनकी टीम के साथ जाने का मन बना लिया। मै जानता था
कि अगर तुम सैन्य कार्यवाही मे फँस गये तो फिर तुम्हे बाहर निकालना मुश्किल हो जाएगा।
इसीलिये तुम्हें वहाँ से सुरक्षित निकालने के लिये मै उनकी रेड मे शामिल हो गया था।
अब तुम बताओ कि दिलावर पठान के बारे मे क्या रिपोर्ट है?
मैने जल्दी से कहा…
दिलावर और उसके बेटे दाईश के लिये काम करते है परन्तु ऐसा लग रहा है कि दाईश भी दो
फाड़ों मे बँट गया है। एक समूह सिकन्दर हक्कानी के साथ है और दूसरा समूह मुल्ला और उसके
साथियों के साथ है। दिलावर की दाईश दूसरे समूह की समर्थक है। एक और बात पता चली कि
हक्कानी समूह आजकल छोटे गुटों को अपने साथ विलय करने मे लगा हुआ है। इस बात की पुष्टि
अभी नहीं हुई है कि क्या कोई अमरीकन गुट भी हक्कानियों की मदद कर रहा है? मुझे बीच
मे टोकते हुए वालकाट ने पूछा… यह तुम किस आधार पर कह सकते हो? …हक्कानी नेटवर्क आखिर
क्यों छोटे गुटों को अपने समूह मे विलय कर रहा है। जब मै इसका जवाब ढूंढने की कोशिश
करता हूँ तो मुझे यही लगता है कि उनको यकीन है कि अमरीका जल्दी ही अफगानिस्तान छोड़
कर जाने वाला है और इसीलिये वह अपनी ताकत आने वाले समय के लिये बढ़ा रहे है। अगर तालिबान
के ज्यादा गुटों ने उनका समर्थन किया तो अफगानिस्तान की सत्ता उनके हाथ मे होगी। अगर
हक्कानी समूह के हाथ मे अफगानिस्तान की सत्ता आ गयी तो अपरोक्ष रुप से यहाँ की सत्ता
पाकिस्तान के हाथ मे आ जाएगी।
…सैम तुम्हारा आंकलन
बहुत हद तक ठीक है। हमारे स्टेट डिपार्टमेन्ट की भी यही सोच है तो अब इसका तोड़ क्या
हो सकता है? …एंथनी, इससे पहले मै कोई सलाह दूँ तुम्हारे लिये अच्छा होगा कि उस अमरीकन
गुट का पता लगाओ जो यहाँ की सत्ता हथियाने मे पाकिस्तान की मदद कर रहा है। …मै उनके
बारे मे कुछ हद तक जानता हूँ। …अगर तुम जानते हो तो मुझे अंधेरे मे क्यों रखा हुआ है।
वह कौन लोग है? …वह कुछ पाकिस्तानी प्रेमी सेनेटर्स है। उनका राजनितिक भविष्य इस्लामिस्टो
के हाथ मे है। …सबसे पहले तो हमे उन पर अंकुश लगाना होगा और फिर अखुन्डजादा और मुल्ला
ओमर के समूह को मजबूत करने मे सहायता करनी होगी। …वह कैसे? …हक्कानी का प्रभाव कम करके
और दूसरे समूह की मदद करके ही हम इस चक्रव्युह को तोड़ने कामयाब हो सकते है। …गुड। इसका
एक्शन प्लान तैयार करो। …सौरी, एक्शन प्लान से पहले हमे जमीनी हकीकत को समझना जरुरी
है। यह जग जाहिर है कि तालिबान का मुख्य फाईनेन्सर एहमद हबीबुल्लाह अमरीका का समर्थक
है। मै उससे मिलना चाहता हूँ। …किसलिये? …एंथनी
एक बात तुम अच्छे से समझ लो कि मुझे काम करने की आजादी चाहिये। मै अगर अपनी हर कार्यवाही
का कारण बताने मे लग गया तो मुश्किल हो जाएगी। …मै सिर्फ पूछना चाहता हूँ कि क्या काम
है। हो सकता है कि तुम्हारा काम जान कर मै तुम्हें किसी और आदमी से मिलने की सलाह दूँ।
…एंथनी, मैने सुना है कि डूरंड लाईन के खिलाफ एक तालिबानी ने मोर्चा खोल दिया है। मै
सिर्फ यह जानना चाहता हूँ कि क्या उस तालिबानी को शीर्ष नेतृत्व का समर्थन प्राप्त
है। अबकी बार वालकाट ने कुछ सोच कर जवाब दिया… परवेज खान इस जानकारी के लिये उपयुक्त
व्यक्ति है। वह तालिबान का मुख्य रणनीतिकार है। उससे मिलने का मै इंतजाम कर दूँगा।
कुछ देर पश्चिमी सीमा पर उत्पात की बात करने के बाद वालकाट वापिस चला गया था। बातों-बातों
मे मैने उसे अपनी लैंडरोवर के बारे मे बता कर कह दिया कि यूएस एम्बैसी के द्वारा उसके
कागज तैयार करवा दिये जाये जिससे मेरी आवक-जावक मे कोई अड़चन नहीं आये।
उसके जाने के बाद
शाम तक मै आईपेड खोल कर सीआईए से खुफिया जानकारी निकालने की प्रेक्टिस करता रहा था।
सीआईए का डेटासेन्टर सूचना व जानकारी की खान साबित हो रही थी। तालिबान के सभी छोटे
और बड़े समूहों के नाम और उनके नेतृत्व की जानकारी बड़ी आसानी से उप्लब्ध हो गयी थी।
इसी प्रकार अफगानिस्तान के सभी संवेदनशील स्थानों की जानकारी भी मिल गयी थी। यह सभी
जानकारियाँ मैने अपने आईपेड पर उतार कर अपने एक्शन प्लान के बारे मे सोचने बैठ गया।
पहला सवाल दिमाग मे यही आ रहा था कि अमरीकी फोर्सेज के द्वारा किस प्रकार मुल्ला मोइन
की मदद कर सकते है? इतना तो तय था कि अमरीकी फौज सामने आकर तो मुल्ला मोइन की मदद नहीं
कर सकती थी। मै इस गुत्थी को सुलझाने मे उलझा हुआ था कि वालकाट ने फोन पर सूचना दी
कि कल सुबह ग्यारह बजे परवेज खान काबुल शहर से बाहर निकल कर पघमान की शाही मस्जिद मे
मिलेगा। तुम्हारे आईपेड पर लोकेशन मैप भेज दिया है। उसने बस इतनी बात की थी। मै परवेज
खान के बारे मे मालूमात इकठ्ठी करने बैठ गया था। शाम तक मुझे पता चल गया था कि परवेज
खान पिछली तालिबान सरकार मे रक्षा विभाग का उपमंत्री था। वह वफाजई नामके कबीले का मुखिया
था। उसके कबीले की अफगानी लोगों मे अपनी साख थी क्योंकि उसके अब्बा रुसी फौज से लड़ते
हुए शहीद हो गये थे। वह हाफिज था और शरिया को अफगानिस्तान मे नाफिज करने का मजबूत पैरोकार
है। अगले दिन की मीटिंग की तैयारी करके मै अपने गेस्ट हाउस की दिशा मे निकल गया था।
गेस्टहाउस मे पहुँच
कर अपने कपड़े बदल कर रात के खाने के बारे सोच रहा था कि तभी आमेना का फोन आ गया। उसने
आज रात खाने पर बुलाया था। एक बार तो मैने मना करने की सोची परन्तु कुछ सोच कर मैने
हामी भर दी थी। आधे घंटे बाद मै उनके फ्लैट के दरवाजे के सामने खड़ा हुआ था। पहली दस्तक
पर ही दरवाजा खुल गया और मुझे देखते ही आमेना चहकते हुए बोली… जहेनसीब। वह कुछ और बोलती
उससे पहले घर मे प्रवेश करते हुए मैने कहा… आमेना बीबी, भूख सता रही है। जल्दी से दस्तरखान
लगाओ। …आप बैठिये। मै आपके लिये खाना लगाती हूँ। इतना बोल कर वह किचन मे चली गयी और
मै अपने पाँव फैला का कर सोफे पर जा कर जम गया था। …गजल नहीं दिख रही है। …वह आज यहाँ
नहीं है। मै उसके बारे मे पूछना चाहता था परन्तु कुछ सोच कर चुपचाप बैठ गया। थोड़ी देर
के बाद बड़े से थाल मे कुछ मटन की बोटियाँ, रोगनजोश, चावल और रोटियाँ लेकर मेज पर रख
कर वह बड़ी अदा से बोली… उस बेचारी नादान को अपनी मोहब्बत के जाल मे तुमने आखिर फाँस
ही लिया। उसकी बात पर ध्यान न देकर मै खाने पर टूट पड़ा था। वह भी मेरे साथ खाना खाने
बैठ गयी थी। …उसके बारे मे कुछ सोचा है? …किसके बारे मे? …गजल के बारे मे पूछ रही हूँ।
क्या उसके साथ निकाह करोगे? खाना खाते हुए अचानक मेरे हाथ रुक गये थे। मैने उसकी ओर
देखा तो वह काफी गंभीर दिख रही थी।
…आमेना कुछ भी ख्याली
पुलाव बनाने से पहले अच्छे से समझ लो कि मै शादी शुदा और दो बच्चों का बाप हूँ। गजल
और तुम भली भाँति जानती हो कि एक काम के लिये तुम्हारी मदद ली थी और उसके लिये मैने
तुम्हारी मुँह मांगी कीमत अदा की है। इसलिये यह पूछना ही बेमानी है कि क्या मै उसके
साथ निकाह करुँगा। मैने जल्दी से अपना खाना समाप्त किया और हाथ धोकर चलने के लिये तैयार
हो गया। आमेना ने तब तक मेज पर रखा हुआ सारा सामान हटा दिया था। …लजीज खाने के लिये
शुक्रिया। मै चलता हूँ। वह तमक कर मेरा हाथ पकड़ कर बोली… इतनी जल्दी क्या है। क्या
अपने पैसे नहीं वसूलने है। …मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है। बस अगर मेरे लिये कुछ कर सकती
हो तो प्लीज उस नासमझ को समझाने की कोशिश करो कि यह सिर्फ एक कारोबारी करार था। …तुम
बड़े बेमुरव्वत हो। …मै उसके भले की सोच कर कह रहा हूँ। उसे समझना चाहिये कि इस रिश्ते
मे रुसवाई के सिवा और उसके लिये और कुछ नहीं है। इतना बोल कर मै वहाँ से चल दिया। रास्ते
भर मै अपने आपको समझा रहा था कि मैने जो किया वह उन दोनो के लिये हितकर है।
अगले दिन सुबह तैयार
होकर पघमान की दिशा मे निकल गया था। कंपनी तिराहे तक सब कुछ शहरी लग रहा था परन्तु
शहर से बाहर निकलते ही रेगिस्तान सा सपाट पथरीला मैदान आंखों को चुभने लगा। सड़क की
हालत भी कोई अच्छी नहीं थी। अचानक पथरीला मैदान एकाएक चट्टानी पहाड़ियों मे तबदील होने
लगा और सड़क के साथ-साथ बहती हुई पघमान नदी के दर्शन होते ही हरी-भरी पहाड़ी घाटी मे
पहुँच गया था। पघमान बस स्टाप पर अचानक सड़क घूम कर वापिस मुड़ती हुई लगी तो बस स्टाप
पर खड़े हुए कुछ लोगो से शाही मस्जिद का रास्ता पूछा तो उन्होंने एक थोड़ी दूर पर एक
विशाल जफर पघमान द्वार की ओर इशारा करके बताया कि सीधे निकल जाओ। धूल भरी पथरीली सड़क
से द्वार पार करके मै पघमान मे प्रवेश कर गया था। देखने मे पघमान एक छोटा सा कस्बा
लग रहा था। लोगों से पूछते हुए आगे बढ़ता चला गया परन्तु शाही मस्जिद का किसी को पता
नहीं था। सभी मुझे दरार-ए-जरगर मस्जिद की राह दिखा रहे थे। काफी घूमने के पश्चात इतना
तो समझ मे आ गया था कि नदी के किनारे ही बसावट ज्यादा थी। मैने घड़ी पर नजर डाली तो
ग्यारह बजने मे कुछ मिनट शेष थे परन्तु शाही मस्जिद का कोई सुराग अभी तक नहीं मिला
था।
एक खंडहर के पास लैंडरोवर
खड़ी करके मै नीचे उतर कर वीराने मे टहलते हुए सोचने लगा कि जब यहाँ के रहने वाले को
शाही मस्जिद का पता नहीं है तो ऐसे हालात मे क्या करना चाहिये। मैने अपना आईपैड निकाल
कर एक बार फिर से लोकेशन मैप पर शाही मस्जिद को एक्टिव किया तो वह एक पुराने कब्रिस्तान
की ओर संकेत कर रहा था। कुछ सोच कर मै गाड़ी मे बैठा और कब्रिस्तान की दिशा मे निकल
गया। कुछ ही देर मे सड़क से उतर कर पथरीली कच्ची पगडंडी सी सड़क पर एक उँचे टावर के सामने
पहुँच कर मेरी नजर एक पुराने कब्रिस्तान पर पड़ी जो पहाड़ की तलहटी मे बने होने के कारण
मुख्य सड़क से दिखाई नहीं दे रहा था। कब्रिस्तान से कुछ दूरी पर एक टूटी हुई खंडहरनुमा
मस्जिद देखते ही मै उस ओर निकल गया था। दूर से लैंडरोवर की आवाज सुनते ही एकाएक उस
मस्जिद से दर्जन से ज्यादा हथियारबंद जिहादी बाहर निकलते हुए दिखे तो मैने अपनी लैंडरोवर
वहीं खुले मे खड़ी करके पैदल ही उनकी दिशा मे चल दिया। अगले कुछ मिनट मे मै उनके निशाने
पर बीच सड़क पर खड़ा हुआ था। सिर और मुँह पर कपड़ा बाँधे एक जिहादी ने पूछा… कहाँ जा रहा
है? …मुझे परवेज खान साहब से मिलना है। एंथनी वालकाट ने भेजा है। दो आदमी मेरी ओर झपटे
और मेरी तलाशी लेकर मुझे धकेलते बोले… चल। वह मुझे मस्जिद के पीछे हरे-भरे मैदान मे
ले आये थे।
…यहाँ इंतजार कर।
इतना बोल कर एक जिहादी तेजी से मस्जिद मे चला गया था। कुछ ही देर मे अपनी हथियारबंद
फौज से घिरा हुआ परवेज खान मस्जिद से निकला और मेरी ओर आते हुए बोला… खुशामदीद सैम
भाईजान। औपचारिकताएँ जब तक पूरी हुई तब तक पेड़ के नीचे दो कुर्सी लाकर मैदान मे रख
दी गयी थी। …आईये। मै उसके साथ चल दिया और उसकी फौज पूरे मैदान मे फैल गयी थी। कुर्सी
पर बैठते हुए उसने पूछा… एंथनी ने बताया था कि आप कुछ जानना चाहते है। …परवेज भाई,
इस वक्त सिकन्दर हक्कानी चमन बार्डर से तुर्खैम बार्डर तक सभी छोटे-बड़े गुटों को अपने
समूह मे विलय करने मे जुटा हुआ है। आपका मोर्चा दिनोदिन उनके सामने कमजोर पड़ता हुआ
दिखाई दे रहा है। आप लोग इसके बारे कुछ नहीं कर रहे है? …सैम भाई, उनके पीछे आईएसआई
और उसका पैसा काम कर रहा है। कतर मे हमारी तीन असफल वार्ता के पीछे हक्कानी नेटवर्क
है। वह अमरीका को यहाँ से निकलने नहीं देना चाहते। हमारे गुटों मे इतनी फूट है कि कोई
एक बात पर राजी नहीं होता। अखुन्ड्जादा की अपनी फरमाईशें है। इसी प्रकार जिरगे के मुख्य
सरदारों मे ओमार, फिरोज, जोरावर, शेरखान, मोहसिन व अन्य ने भी अपनी फरमाईशें रख दी
है। बस इसी फूट का हक्कानी फायदा उठा रहे है। अखुंड्जादा, ओमार, मोहसिन और जोरावर के
पास तीन से पाँच हजार के करीब लड़ाकू है। इसी प्रकार फिरोज और शेरखान के पास लगभग पाँच
हजार लड़ाकू है। उत्तरी भाग मे दोस्तम की उत्तरी अलाईन्स उज्बेक और ताजिक के लड़ाकुओं
हमारा विरोध कर रही है। वह कुछ और बोलता उससे पहले मैने पूछ लिया… परवेज भाई, आपसी
लड़ाई तो चलती रहेगी लेकिन आपके समूह की डूरंड लाईन पर क्या राय है? मेरा सवाल सुन कर
वह चौंक गया था। …इस पर हमारी कोई राय नहीं है। …तो मुल्ला मोईन आपके खिलाफ काम कर
रहा है? एकाएक वह उठ कर खड़ा हो गया और वापिस चलने लगा तो मैने पीछे से कहा… परवेज भाई,
यही मुद्दा आप सभी को हक्कानियों के सामने एक जुट खड़ा कर सकता है। दोस्तम तो अपनी राय
सबके सामने रख चुका है। अब यह निर्णय आपको लेना है। इतना बोल कर मै भी खड़ा हो गया था।
दो कदम चल कर वह वापिस
लौट कर अपने शब्दों को चबाते हुए बोला… मै डूरंड लाईन को नहीं मानता। खैबरपख्तून्ख्वा
हम पश्तूनो का है। अटक तक का खित्ता हमारा है। पाकिस्तान ने जबरदस्ती अंग्रेज हुकूमत
के साथ साँठगाँठ करके पख्तूनिस्तान को अपने कब्जे मे ले लिया था। उसे हमे वापिस लेना
है। यह मेरी निजि राय है। मैने जल्दी से कहा… दोस्तम की भी यही राय है। मुल्ला ओमर
की भी यही राय थी तो अब तालिबानियों को क्या हो गया है? …मियाँ तुम अमरीकन लोग अपने
निजि स्वार्थ के लिये ही हम पर इस मांग को छोड़ने का दबाव डाल रहे हो। …परवेज भाई, अमरीका
बाहर निकलना चाहता है। उसका इसमे निजि स्वार्थ है लेकिन इस एक मुद्दे पर आपके सभी छोटे
और बड़े गुट एक बड़ी ताकत बन कर हक्कानियों के सामने उभर सकते है। हक्कानी गुट इस मुद्दे
पर अलग-थलग पड़ जायेगा। …तुम्हारी सरकार नहीं मानेगी। …मैने मान लिया कि इसके लिये अमरीका
बहादुर नहीं मानेगा परन्तु आपकी जमात तो एक राय रख सकते है। …क्यों नहीं। हक्कानियों
को छोड़ कर बाकी सब तो इसका समर्थन करते है। …क्या जिरगे के मुख्य तालिबान सरदारों मे
ओमार, फिरोज, जोरावर, शेरखान और मोहसिन भी यही राय रखते है। …बिल्कुल। बस अमरीका के
कारण बोलने मे परहेज करते है। …क्या मै यह मान लूँ कि आप लोग मुल्ला मोइन के साथ है।
…क्या यह इसका प्रतीक नहीं है कि हमने उसे अभी तक रोकने की कोशिश नहीं की है। …परवेज
भाई, आप एक बार अपने जिरगा मे इस बात को उठाईये तो मै वादा करता हूँ की खैबर पख्तूनख्वा
के सभी छोटे-बड़े कबीले भी आपकी इस मांग के लिये आपके साथ खड़े हो जाएँगें। परवेज खान
कुछ पल मुझे घूरता रहा और फिर बोला… क्या बैतुल्लाह इसके लिये तैयार हो जाएगा? …दो
महीने के बाद सभी छोटे-बड़े कबीलों का जिरगा बैठ रहा है। मै चाहता हूँ कि आपके भी कुछ
लोग उस जिरगा मे शामिल होकर इस मुद्दे को उठाये। मै यकीन से कह सकता हूँ कि इस मुद्दे
पर चीन की खिलाफत करने के लिये बैतुल्लाह भी आपके साथ अपरोक्ष रुप से खड़ा हो जाएगा।
इस मुद्दे को अगर आपने उठा दिया तो चीन अपनी सड़क परियोजना की सुरक्षा के लिये आपको
हथियार के साथ पैसे भी देगा। …सैम भाई, मुझे कुछ समय दिजिये। …परवेज भाई, ध्यान रहे
कि एंथनी वालकाट को मेरी इस मंशा का पता है लेकिन अमरीकन होने के कारण उसे इसका विरोध
करना पड़ेगा। एक बार आप अपने लोगों मे बात कर लिजिये फिर अमरीकन सरकार को भी इस मुद्दे
पर आँख मूंदने के लिये मजबूर किया जा सकता है। अच्छा खुदा हाफिज। इतना बोल कर मै सड़क
की दिशा मे चल दिया था। परवेज खान कुछ देर तक मुझे जाते हुए देखता रहा और फिर जोर से
बोला… सैम भाई अपना फोन नम्बर देकर जाओ। मै जल्दी ही संपर्क करुंगा। मै वापिस मुड़ कर
उसके साथ नम्बर एक्स्चेन्ज करके बोला… शुक्रिया। मै जल्दी ही जिरगा की तारीख और जगह
की सूचना आपको दे दूंगा। बस इतनी बात करके मै वापिस काबुल की दिशा मे चल दिया था।
काबुल पहुँचते हुए
रात हो गयी थी। सड़क पर बैठ कर खाना खाया और फोन पर मेनका से बात करके जब तक गेस्ट हाउस
पहुँचा तब तक रात के दस बज चुके थे। सफर से बदन टूट रहा था। गेस्ट हाउस मे प्रवेश करते
ही मेरी नजर उन दोनो पर पड़ी तो मै ठिठक कर रुक गया था। तुम दोनो यहाँ क्या कर रही हो?
आमेना जल्दी से बोली… यह आपसे बात करना चाहती है। मैने गजल की ओर देखा तो वह सिर झुकाये
खड़ी हुई थी। रिसेप्शन से अपने रुम की चाबी लेकर मैने पूछा… खाना खाया है कि नहीं? दोनो
ने कोई जवाब नहीं दिया तो मैने रिसेप्शन पर आर्डर देकर कमरे की ओर चल दिया। वह दोनो
मेरे पीछे कमरे मे चली आयी थी। …तुम दोनो आराम से बैठो। खाना आ रहा है। मै जरा यह धूल
की चादर साफ करके आता हूँ। इतना बोल कर अपना बैग एक किनारे मे पटक कर मै बाथरुम मे
घुस गया और गर्म पानी से नहाकर जब तक बाहर निकला तब तक खाना मेज पर लग चुका था। …मै
खाना खा कर आया हूँ। इतना बोल कर मै सेटफोन को आन करके अपने स्मार्टफोन पर वालकाट से
बात करने मे व्यस्त हो गया था। उसको आज की मीटिंग के बारे बता कर मैने सेटफोन पर नजर
डाली तो वह नेटवर्क से जुड़ चुका था और अंजली का मेसेज फ्लैश कर रहा था।
…यह जान कर खुशी हुई
कि बाप-बेटी मे बातचीत होने लगी है। हो सकता है कि आपका शक सही हो परन्तु बिना जोरावर
का पता लगाये बिना मै वापिस नहीं जाऊँगी। आप भी मुझे वापिस जाने के लिये मजबूर मत किजिये।
एक वही आखिरी सूत्र है जो हमे अदा तक पहुँचा सकता है। आप मेरी ओर से बेफिक्र रहिये।
आपकी झांसी की रानी इतनी कमजोर नहीं है। आई मिस यू।
दो-तीन बार मेसेज
पढ़ कर मैने सेटफोन एक ओर रख कर उनकी ओर देखा तो वह खाना समाप्त कर चुकी थी। अंजली का
मेसेज पढ़ कर हमेशा एक बेबसी और तनाव मेरे जहन पर हावी हो जाता था। उन दोनो की नजरें
मुझ पर टिकी हुई देख कर मैने फोन आफ करके मुस्कुरा कर उनसे पूछा… क्या देख रही हो?
…तुम्हारा चेहरा क्यों उतर गया? अबकी बार जवाब देते हुए एक पल के लिये मै रुक गया था।
इन दोनो को सच्चायी से रुबरु करा देने मे ही मेरी भलाई है कि सोच कर मैने कहा… कुछ
खास कारण नहीं है। मेरी बीवी ने बच्चों के कारण यहाँ आने से मना कर दिया है। आमेना
मुस्कुरा कर बोली… उससे मिलने के लिये बड़े बेकरार थे। तुम्हारी दूसरी बीवी तो यहाँ
है तो इतना दुखी होने की क्या जरुरत है। मैने गजल की ओर देखा तो वह बड़ी हसरत भरी निगाहों
से मेरी ओर देख रही थी। मै उसके साथ बैठ कर सिर पर हाथ फिरा कर धीरे से बोला… आमेना
की बात पर ध्यान मत दो। मै तुम्हारे किसी भी लायक नहीं हूँ। नादानी मे किसी गलतफहमी
का शिकार मत हो जाना। मै शादी-शुदा दो बच्चों का बाप हूँ। तुम थोड़ा और बड़ी हो जाओगी
तो एक दिन तुम्हारा राजकुमार तुम्हें अपने साथ ले जाएगा। तब तक तुम्हें उसका इंतजार
करना चाहिये। मुझे सिर्फ हवा के झोंकें की तरह समझ कर भूल जाओ। वह कुछ नहीं बोली बस
सिर झुकाये बैठी रही।
अचानक पहली बार नजर
उठा कर मेरी ओर देखते हुए गजल बोली… आपने मुझसे वादा किया था। अब आप अपने वादे से क्यों
मुकर रहे है। उसकी बात सुन कर एक पल के लिये मै भी सोच मे पड़ गया था। पता नहीं कब और
किस झोंक मे मैने उससे ऐसा वादा कर बैठा था। तभी आमेना ने कहा… आपने तीन दिन के लिये
इसको अपनी बीवी बनाया था। इसके लिये आपने एक लाख अफगानी दिये थे। हमारे यहाँ इसे मुताह
निकाह कहते है। तीन दिन आपके साथ रह कर आपने इसे वापिस कर दिया। इसके लिये हमे आपसे
कोई गिला शिकवा नहीं है लेकिन हमारी एक गुजारिश है। मैने उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि
डालते हुए पूछा… बोलो। वह कुछ देर मुझे देखती
रही और फिर बोली… समीर, हमे तुम्हारी मदद चाहिये। मैने मुस्कुरा कर कहा… यह तो मै पहले
ही समझ गया था कि सब कुछ एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। बताओ क्या मदद चाहिये? उसने
निगाह उठा कर मेरी ओर देखा तो उसकी आंखों मे आँसू झिलमिला रहे थे। आमेना मुझे हर पल
अपनी हरकतों से उलझाती जा रही थी। त्रिया चरित्र के बारे मे सोच कर मैने जल्दी से कहा…
आमेना यह ढकोसलेबाजी छोड़ कर सब कुछ साफ शब्दों मे कहो। वह सिर झुका कर बोली… हम दोनो
पाकिस्तान से भाग कर यहाँ छिप कर रह रहे है। हमे तुम्हारी मदद चाहिये। जैसे तुमने उन
तीनो को दिलावर के चंगुल से निकाल कर उनके घर पहुँचाया है वैसे ही हमे भी यहाँ से सुरक्षित
निकाल कर हमारे घर पहुँचा दो। उसकी बात सुन कर मेरा दिमाग और ज्यादा चकरा गया था।
…मुझे साफ-साफ बताओ
कि यह सारा चक्कर क्या है? …समीर, हम दोनो अपनी जान बचाने के लिये घर से भागी है। दो
साल पहले मेरा निकाह जमाल कुरैशी नाम के आदमी के साथ हुआ था। वह कँराची के बहुत बड़े
व्यापारी है। गजल मेरी छोटी बहन है। हमारा परिवार ऐजरबैजान के कुछ चन्द बड़े घरानो मे
से एक है। वहाँ पर मेरे अब्बा का शिपिंग और ट्रांस्पोर्ट का कारोबार काफी फैला हुआ
है। चार महीने पहले मेरे अब्बा की एक एक्सीडेन्ट मे मौत हो गयी थी। पर यह कहानी झूठी
थी क्योंकि गजल ने अब्बा की हत्या होते हुए अपनी आँखों से देखी थी। मै अपने अब्बा के
अंतिम कार्यो के लिये जब बाकू गयी तब मुझे गजल ने सब कुछ बताया था। मै गजल को अपने
साथ लेकर कँराची आ गयी और तभी से जमाल मुझ पर गजल के साथ दूसरा निकाह करने का दबाव
डाल रहा था। एक शाम को जमाल का कुछ लोगों के साथ पैसों को लेकर झगड़ा हो गया था। मै
उस वक्त बालकनी मे खड़ी हुई उनकी सारी तकरार सुन रही थी। उस वक्त गजल भी मेरे साथ थी।
उनकी तकरार से पता चला कि जमाल का सारा कारोबार ड्र्ग्स के वितरण का था और वह रुसी
माफिया के साथ मिल कर अब्बा की कंपनी के जरिये ड्रग्स इधर-उधर भेजता था। अब्बा को उसके
काले कारनामे का जैसे ही पता चला तो उसने रुसी माफिया की मदद से मेरे अब्बा की हत्या
करवा दी थी। वह गजल से दूसरा निकाह करके अब्बा के सारे कारोबार को हथियाने की फिराक
मे था। इसका पता चलते ही हम दोनो उसी रात सबकी नजर बचा कर काशिफ को लेकर वहाँ से निकल
भागे। अब जमाल और रुसी माफिया के लोग हमे ढूंढ रहे है। प्लीज हमारी मदद करो। इतना बोल
कर वह चुप हो गयी।
कुछ सोच कर मैने पूछा…
मुझे किस आधार पर तुमने इस काम के लिये चुना? …तुमने हमसे मदद मांगी थी लेकिन गजल का
इंकार सुन कर जब तुम एक लाख रुपये मेज पर छोड़ कर चले गये थे। हम तभी समझ गयी थी कि
पैसों के लालच मे तुम हमसे दगाबाजी हर्गिज नहीं करोगे। जब उन तीन लड़कियों को छुड़ाने
की कहानी हमारे सामने आयी तब हमने निर्णय लिया कि अपनी असलियत बता कर तुमसे मदद मांगी
जा सकती है। प्लीज हमारी मदद करो। तभी गजल उठ कर मेरे साथ बैठते हुए बोली… आपने मुझसे
वादा किया था कि मेरी हर मुश्किल मे आप मेरी मदद करेंगें। प्लीज हमे उस जल्लाद के चंगुल
से निकालिये। मैने उसके सिर पर धीरे से चपत लगा कर कहा… मैने तुमसे वादा किया है कि
जब भी तुम्हें मेरी जरुरत होगी तो तुम्हें सिर्फ कहने की जरुरत है। वह एकटक मुझे कुछ
पल देखती रही और झपट कर मुझसे लिपट कर भरभरा कर रोने लगी। उसको चुप कराने मे मुझे कुछ
वक्त लग गया था। उसे अपने से अलग करके मैने उठते हुए कहा… बहुत देर हो गयी है। कल सुबह
मुझे आफिस भी जाना है। आराम से बैठ कर सोचेंगें कि इन हालात मे क्या करना चाहिये। इतना
बोल कर सोफे से गद्दियाँ उठा कर मै कालीन पर लेट गया। आमेना बच्चे को सुलाने मे जुट
गयी और गजल बिस्तर के एक किनार पर बैठी हुई अभी भी गहरी सोच मे डूबी हुई थी। थकान के
कारण मुझे भी नींद के झोंकें आ रहे थे। कालीन पर लेटते ही मै अपने सपनों की दुनिया
मे खो गया था।
अगली सुबह उन्हें
उनके फ्लैट पर छोड़ कर मै अपने आफिस की दिशा मे निकल गया था। काबुल शहर के सूने हिस्से
के बीच से गुजरते हुए सड़क से अपनी गाड़ी उतार कर एक किनारे मे खड़ी करके मैने जनरल रंधावा
का नम्बर लगा कर परवेज खान से हुई बातचीत का ब्यौरा देकर पूछा… सर, कर्नल श्रीनिवास
की क्या रिपोर्ट है? …तीनो लड़कियाँ दूतावास के सेफ हाउस मे है। …और उनके बच्चे? …समीर,
पुलिस ने बच्चो को यूनीसेफ के कैम्प मे भेज दिया है। तुमने उन्हें देखा है तो एक बार
उनकी शिनाख्त कर दो। …वह कौन से कैम्प मे है? …मरजान टाउन। अचानक वीके की आवाज गूंजी…
मेजर कैसे हो? तभी अजीत सर की आवाज कान मे पड़ी… समीर। …जी सर। परवेज खान ही नहीं बहुत
से छोटे-बड़े तालिबान के गुट डूरन्ड लाईन को अफगान-पाक सीमा नहीं मानते है। मै पाकिस्तान
मे होने वाले जिरगा मे इसे मुद्दा बनाने की सोच रहा हूँ। …समीर, यह मुद्दा तब उठाने
की जरुरत है कि जब तालिबान का शीर्ष नेतृत्व भी वहाँ पर हो अन्यथा इसे आगे के लिये
रखना। तभी वीके की आवाज कान मे पड़ी… मेजर, तीन बातों का ख्याल रखना। पहला, यह पश्तूनों
और पठानों के लिये मुद्दा हो सकता है परन्तु बलोच, उज्बेक और ताजिक के लिये यह कोई
मुद्दा नहीं है। दूसरा, हक्कानी नेटवर्क या सिराजुद्दीन हक्कानी भी पश्तून है और उसका
खैबर पख्तूनख्वा मे काफी प्रभाव है। जिरगा बलोचिस्तान मे होगा तो छोटे कबीलो के लिये
बेहतर साबित होगा। आखिरी और तीसरा, तालिबान इस वक्त अमरीकन फोर्सेज के बजाय गनी की
सरकार की दुश्मन है। वह जानते है कि अमरीका के कारण उनके घरों मे चूल्हा जल रहा है
अन्यथा अफगान सरकार तो सिर्फ डालर हड़पने मे व्यस्त है। आसान भाषा मे तालिबान के साथ
अमरीका का एजेन्ट बन कर बातचीत करना और रणनीति बनाना ज्यादा आसान है। …शुक्रिया सर।
जनरल रंधावा ने बीच मे टोकते हुए कहा… पुत्तर, उन तीनो लड़कियों के बारे मे अजीत से
पूछ ले। वह गोपीनाथ और श्रीनिवास से संपर्क मे है। …सरदार, मेरी बात वीके ने बीच मे
काट दी थी। तीनो की शिनाख्त पूरी हो गयी है। कल या परसों तक वह दिल्ली पहुँच जाएँगी।
जनरल रंधावा ने जल्दी से कहा… पुत्तर, पता लगाओ कि पीरजादा मीरवायज और बाकू के बीच
मे क्या कोई संबन्ध है कि नहीं? …यस सर। इतना बोल कर उन्होनें लाईन काट दी थी। कुछ
सोच कर मै मरजान टाउन की दिशा मे चल दिया था।
काशगर, चीन
पश्चिमी थियेटर कमान
के मुख्यालय मे मीटिंग चल रही थी। फौजी जनरल कुछ अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए बोला…
स्कार्दू एयरबेस पर रेड अलर्ट घोषित कर दिया है। हमारी 21वीं एयरबोर्न डिविजन चरमपंथी
गुटों पर हमले के लिये तैयार है। सीपैक के अलग-अलग हिस्सों पर लगातार चरमपंथी दल हमला
कर रहे है। हाल ही मे खुदाई शमशीर ने अपने पाँव खैबर पख्तून्ख्वा मे जमाने शुरु कर
दिये है। पाकिस्तान की सेना हर बार सुरक्षा का आश्वासन देती है परन्तु अभी तक नाकाम
साबित हुई है। …सर, पाकिस्तानी फौज हर बार अपना शोक दर्ज करवा देती है परन्तु करती
कुछ नही। …सर, पाकिस्तान सरकार ने आपको वह छूट नहीं दी है जो उन्होंने अमरीका को दे
रखी है। एयरबोर्न डिविजन बिना पाकिस्तान सरकार की आज्ञा के उनके हवाई स्पेस मे नहीं
उड़ सकती। पश्चिमी थियेटर कमान का जनरल शी वांग सबकी बात चुपचाप सुन रहा था। वह खुद
भी पाकिस्तानी एस्टेब्लिश्मेन्ट से नाराज था। उसने सूचना दी थी कि पख्त्तूनख्वा, आजाद
कश्मीर के सभी छोटे और बड़े कबीले वाले चीन के खिलाफ एक हो रहे है। आईएसआई और फौज ने
अभी तक कोई कार्यवाही करने की कोशिश नहीं थी।
अचानक जनरल शी वांग
बोला… सारे छोटे और बड़े कबीले खुदाई शमशीर की अगुवाई मे हमारे खिलाफ एक हो रहे है।
चार सौ के करीब हमारे नागरिक अब तक मारे जा चुके है। पिछले तीन साल मे यह आँकड़ा हजार
पार कर चुका है। एयरबोर्न डिविजन अगर बिना उनकी आज्ञा के हमला नहीं कर सकती तो हमारी
इन्फेन्ट्री क्या कर रही है? हमारी पैदल सेना तो उन आतंकवादियों को मुँह तोड़ जवाब दे
सकती है। क्या खुदाई शमशीर के कारनामे को गिल्गिट के बाद खैबर पख्तूनख्वा मे दोहराना
चाहते है? उधर बलूच भी ग्वादर से लेकर क्वैटा तक हमारे काम करने वालों पर निरन्तर हमला
कर रहे है। पाकिस्तानी फौज अभी तक उनके मुख्य लोगों को पकड़ नहीं सकी है। ऐसी हालत मे
हमे क्या करना चाहिये इसके लिये यह मीटिंग बुलायी गयी है। एक दूसरे की खामियाँ गिनाने
से हल नहीं निकलेगा। एक फौजी कमांडर बोला… जनाब, हम इन तंजीमो को खरीद क्यों नहीं लेते? तभी एक सेना मुख्यालय से मनोनीत किया हुआ पार्टी
कार्यकर्ता बोला… हमारा उद्देश्य बेल्ट एन्ड रोड परियोजना को पूरा करना है। सीपैक उस
परियोजना का एक छोटा सा हिस्सा है। अगर हम छोटे से हिस्से को पूरा नहीं कर सकते तो
इतनी बड़ी परियोजना को पूरा कैसे कर सकते है। नयी कामरान सरकार ने तो काम बन्द करने
की धमकी दे दी है। …जनाब इस रुकावट मे अमरीका का हाथ है। …नहीं, इन्टेलीजेन्स रिपोर्ट
बता रही है कि कोई बाहरी ताकत हमको विफल करने पर तुली हूई है। …क्या अमरीका के सिवा और कोई
इतनी हिम्मत दिखा सकता है। सब बहस करने मे उलझ गये थे।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, तीनों लड़कियों को उस घर से निकालने के प्लान सफल रहा अब आगे देखना है की क्या होता है अब बात फिर से अंजली/ हया और अदा के किडनैप के इर्द गिर्द घूमती नजर आ रही है, देखते हैं आगे क्या होता है।
जवाब देंहटाएंइंसान सोचता कुछ है और होता कुछ है। हालात के चक्रव्युह मे फँसने के बाद इंसान को अपना रास्ता स्वयं ही ढूंढना पड़ता है। शुक्रिया अल्फा भाई।
हटाएं