रविवार, 24 दिसंबर 2023

  

गहरी चाल-40

 

एक घंटे के बाद हम सभी लोग हाल मे इकठ्ठे हो गये थे। मैने अपनी योजना उनके सामने रखनी आरंभ की… पोखरा से आने वाला ट्रक सुबह चार-छह बजे के बीच मे नाके पर पहुँचेगा। रात की शिफ्ट मे उस नाके पर तीन लोग रहते है। एक बैरियर पर तैनात रहता है और दूसरा अन्दर बैठ कर हिसाब रखता है। तीसरा ड्राईवर से पैसे वसूलता है और ट्रक के कागज जाँचने की ड्युटी पर तैनात रहता है। हम रात को दो बजे उस नाके को अपने कब्जे मे ले लेंगें। उन तीन आदमियों को गोदाम मे उठा लायेंगें। उनकी जगह हमारे तीन आदमी वहाँ पर तैनात हो जाएँगें। चार सैनिक उस केबिन के पीछे तैनात रहेंगें और इशारा मिलते ही ट्रक को कवर करके सबसे पहले ड्राईवर केबिन मे बैठे हुए जिहादियों को कब्जे मे कर लेंगें और फिर उस ट्रक को गोदाम मे सुरक्षित पहुँचा दिया जायेगा। कंटेनर मे बैठे हुए बाकी जिहादियों को गोदाम मे लाकर न्युट्रिलाइज करेंगें। किसी को कुछ पूछना है तो अभी पूछ लिजिये।

किसी ने कोई सवाल नहीं किया तो मैने सबकी ड्युटी बतानी आरंभ कर दी थी। कैप्टेन यादव केबिन मे बैठ कर हिसाब रखेंगें। थापा बेरियर पर रहेगा और मै वसूली का काम करुँगा। जो लोग आज गार्ड ड्युटी पर गोदाम मे होंगें वह अपनी ड्युटी पर तैनात रहेंगें। जैसे ही उन तीन नाके के कर्मचारियों को यहाँ लाया जायेगा तो दो सैनिक उनकी निगरानी पर तैनात हो जाएँगें। बचन सिंह और उसके साथ तीन सैनिक केबिन के पीछे तैनात रहेंगें और इशारा मिलते ही उस ट्रक को कवर कर लेंगें। एक शार्प शूटर स्नाईपर राइफल के साथ थापा के पास अंधेरे मे खड़ा रहेगा और ड्राईवर केबिन मे बैठे हुए लोगों पर नजर रखेगा। अगर वह किसी प्रकार का खतरा देखता है तो उस खतरे को तुरन्त प्रभावहीन करने के लिये वह अपने विवेक के अनुसार फायर कर सकता है। चार सैनिक जो ट्रक को कवर कर रहे होंगें वह ड्राईवर केबिन मे बैठे हुए लोगो को ट्रक से उतार कर गोदाम मे अपने साथियों के हवाले करके नाके के तीनो कर्मचारियों लेकर वापिस नाके पर छोड़ देंगें। शार्प शूटर उस ट्रक को गोदाम मे लाकर खड़ा कर देगा। उन तीनो कर्मचारियों के पहुँचने के बाद वह नाका उनके हवाले करने के बाद ही हम लोग वापिस गोदाम पर लौट कर आ जाएँगें। कोई शक? जब कोई जवाब नहीं मिला तो मैने कहा… बेशक। आप लोग आराम किजिये और डेड़ बजे वापिस इसी हाल मे मिलते है। इतनी बात करके मै वापिस संपर्क केन्द्र मे चला गया था।

…क्या वह फोन स्विच आफ हो गया? …नहीं सर, वह आन है और लगातार नेटवर्क टावर बदल रहा है। इसका मतलब है कि वह रास्ते मे है। …हमारी एक टीम यहाँ से बीस मील पर है। उन्हें बता दो कि उस कन्टेनर ट्रक पर हमारी निगाह जमी हुई है। उनके करीब पहुँचते ही हम उस ट्रक की पहचान के लिये उनकी डिवाइस पर बीप करेंगें। एक बार उस ट्रक की निशानदेही हो गयी तो नाके का काम सरल हो जाएगा। विजय कुमार अपने काम मे जुट गया था। टार्गेट की पहचान होने के बाद दुश्मन की गतिविधि और दूरी पर लगातार नजर बनाये रखने का प्रशिक्षण स्पेशल फोर्सेज के सभी सैनिकों को दिया जाता है। इस काम मे हम सभी कुशल थे। जब तक उसका फोन चालू रहेगा तब तक हम आसानी से बेरियर पर तैनात टीम को यहीं से उस ट्रक की पहचान असानी से करा सकते थे। उस जिहादी की बेवकूफी ने हमारा काम आसान कर दिया था।

डेड़ बजे हम सब एक बार फिर से हाल मे इकठ्ठे हो गये थे। एक बार फिर से सारी रणनीति को दोहरा कर सभी लोग निकल गये थे। हम जैसे ही गोदाम का शटर खोलने के लिये आगे बढ़े की तभी गार्ड ड्युटी पर तैनात सैनिक ने रुकने का इशारा किया और तभी मेरे कान मे लगे हुए टू-वे हेड्फोन मे उसकी आवाज पड़ी… सर, नाके पर पुलिस पेट्रोल की गाड़ी खड़ी हुई है। एकाएक चलते हुए सभी के कदम अपनी जगह पर रुक गये थे। कुछ मिनट गुजरने के बाद एक बार फिर उसकी आवाज कान मे पड़ी… सर, पुलिस पेट्रोल की गाड़ी हमारे गोदाम के सामने से निकल गयी है। आल क्लीयर। शटर खोल कर सभी लोग सड़क छोड़ कर अंधेरे मे छिपते-छिपाते नाके की ओर निकल गये थे। सबसे पहले बेरियर पर खड़े हुए आदमी को कब्जे मे लेकर उसकी जगाह थापा तैनात हो गया था। ट्रक से पैसे वसूली करने वाला व्यक्ति सबसे आखिर मे कब्जे मे किया था। कैप्टेन यादव ने केबिन मे बैठे हुए व्यक्ति को कब्जे मे किया और जैसे ही वसूली करने वाला टोकन कटवाने के लिये अन्दर आया तो मैने उसे कब्जे मे कर लिया था। कैप्टेन यादव अब टोकन काटने वाले के स्थान पर बैठ गया था और मै टोकन की पर्ची लेकर लाईन मे खड़े हुए ट्रक की ओर चला गया था। अब तक मै उनकी कार्यप्रणाली को समझ चुका था। सबसे पहले मै ट्रक के कागजात देख कर ड्राईवर का लाइसेंस चेक करके ट्रक का चक्कर लगा कर ड्राइवर से पैसे लेकर केबिन मे दाखिल होता और फिर यादव को ट्रक का नम्बर और पैसे देकर एक पर्ची लेकर वापिस उस ट्रक ड्राईवर को थमा कर थापा की ओर बेरियर उठाने का इशारा कर देता। उस ट्रक के हिलते ही दूसरा ट्रक उसके स्थान ले लेता था। एक बार फिर वही क्रिया दोहरायी जाती थी। चार बजे तक हमने यही काम लगभग सौ से ज्यादा ट्रक और अन्य गाड़ियों के साथ किया था।

साड़े चार बजे के करीब विजय कुमार ने कैप्टेन यादव को खबर दी कि बेरियर पर खड़ी हुई टीम ने उस ट्रक की निशानदेही कर ली है और उसके पीछे पिकअप मे लौट रहे है। मै जब पैसे जमा कराने के लिये गया तब कैप्टेन यादव ने मुझे इसकी जानकारी दे दी थी। मैने बाहर आकर सभी लोगों अब सावधान रहने का इशारा कर दिया था। बीस मील की दूरी लगभग आधे घंटे मे पूरी होने का अंदाजा लेकर मै जल्दी से जल्दी लाइन को छोटा करने मे व्यस्त हो गया था। पाँच बज कर पन्द्रह मिनट पर बिलावल ट्रान्सपोर्ट का एक छोटा कंटेनर ट्रक लाईन मे आकर लग गया था। उसके पीछे हमारी पिकअप भी आकर रुक गयी थी। टार्गेट अब हमारे सामने था। उसके आगे चार ट्रक पहले से लगे हुए थे। मैने अपनी गति थोड़ा धीमी करके अपने सभी साथियों को टार्गेट को पहचानने का अवसर दे दिया था। एक दो ट्रक के ड्राइवर के साथ वसूली के लिये बहस भी करके एक माहौल तैयार कर लिया था। जैसे ही वह कंटेनर ट्रक मेरे सामने आकर रुका तो सबसे पहले मेरी नजर ड्राईवर और उसके साथ बैठे हुए तीन लोगो पर पड़ी थी। सभी के कन्धों अन्यथा गले मे लिपटा हुआ पर वही चेक मार्का जिहादियों का गमछा पड़ा हुआ था। उनका चेहरा ही उनकी पहचान के लिये काफी था। मै धीरे से बड़बड़ाया… तीन लोग ड्राइवर के साथ केबिन मे है। मेरे स्नाईपर अपना निशाना साधने मे लग गये थे।

मै चलते हुए ड्राइवर साइड पर पहुँच कर बोला… गाड़ी के कागज दिखाओ। ड्राईवर ने गाड़ी के कागज खिड़की से बाहर निकाल कर देते हुए कहा… भाईजान पैसे पकड़ो और जल्दी फारिग करो। बड़ी दूर से ट्रक लेकर आया हूँ। …कहाँ से आ रहे हो? …बाहराइच से आ रहा हूँ भाई। …खाली ट्रक है? …सामान लाया हूँ। आम की पेटियाँ है। मैने आराम से कागज देखने के बाद कहा… लाईसेन्स। उसने जल्दी से लाईसेन्स निकाल कर मेरे हाथ मे थमा दिया। कुछ पल लाईसेन्स पर निगाह जमा कर मैने कहा… मियाँ नीचे उतरो। वह हड़बड़ा कर बोला… क्या हुआ भाईजान? …तुम्हारे लाईसेन्स को समाप्त हुए दो महीने हो गये है। इस ट्रक का चालान होगा। …ऐसा हर्गिज नहीं हो सकता। मै उसको अनसुना करके आगे बढ़ गया। ट्रक का चक्कर लगा कर मैने देख लिया था कि मेरे चारो साथी अंधेरे से निकल कर बाहर आ गये थे। मेरे साथियों ने अब तक ट्रक को कवर कर लिया था। मै पिक अप मे बैठे हुए साथियों को इशारा किया जिससे पीछे खड़े हुए कतार मे ट्रक हार्न वगैराह बजा कर जल्दबाजी न करें। अपना चक्कर पूरा करके मै कलेक्शन केबिन मे चला गया। कुछ मिनट वहाँ गुजार कर मै एक बार और फिर वापिस ड्राईवर के पास पहुँच कर बोला… अपना ट्रक लाइन से निकाल कर किनारे मे खड़ा करके अन्दर साहब से जाकर बात कर ले। इन सब सवारी को उतार दे क्योंकि ड्र्राईवर के साथ सिर्फ एक आदमी बैठ सकता है। साहब ने उन्हें देख लिया तो और उनका मुँह और फट जाएगा। यह बोल कर मै पीछे के ट्रक की ओर निकल गया था।

उसने ट्रक स्टार्ट किया और केबिन के पास ले जाकर रोक दिया। ड्राइवर ट्रक से उतर कर केबिन मे चला गया। उसके साथ बैठे हुए तीन जिहादी भी नीचे उतर कर केबिन के पास टहल कर अपने हाथ पाँव हिला कर अपने जोड़ खोलने मे लग गये थे। मैने अपने साथियों को इशारा किया और अगले ही पल वह बाज की तरह उनकी ओर झपटे और पल भर मे एक-एक आदमी को घसीटते हुए केबिन की आढ़ मे ले गये थे। जब तक ड्राइवर केबिन से बड़बड़ाता हुआ बाहर निकला तब तक हमारा शार्प शूटर उस ट्रक मे बैठ चुका था। वह ड्राईवर बड़बड़ाते हुए अपने ट्रक की चल दिया… सब साले चोर है। सिर्फ पैसा लूटने के लिये बैठे है। वह ट्रक की ओर बढ़ रहा था कि तभी उसका ट्रक स्टार्ट होकर आगे की ओर धीरे से हिला तो वह ठिठक कर रुक गया। जब तक वह कुछ समझ पाता तब तक चौथे सैनिक ने पीछे से उस पर एक वार किया। जब तक वह कुछ समझ पाता तब तक वह सैनिक उस ड्राईवर को गरदन से पकड़ कर केबिन के पीछे ले गया था। उन चारों को इतनी सफाई से हटाया गया था कि वहाँ पर कतार मे खड़े हुए ट्रकों मे बैठे हुए लोगों मे से कोई भी बैरियर के हालात को समझने की स्थिति मे नहीं था। अगले ही पल छोटा सा कंटेनर ट्रक बेरियर पार करके आगे निकल गया था। पिकअप सामने पहुँचते ही थापा ने जल्दी से बेरियर गिरा दिया था। जैसे ही पिकअप बेरियर के सामने रुकी उसी समय चार सैनिक उन चारों को अपने कन्धों पर उठाये तेजी से सामने आये और उन्हें बोरियों की भांति पिक अप के पीछे फेंक कर धड़धड़ाते हुए उसमे सवार हो गये थे। पलक झपते ही बेरियर उठ गया और पिकअप ट्रक तेजी से आगे निकल गया था। जब यह सब हो रहा था तब मै लाइन मे खड़े हुए ट्रक के ड्राईवर के साथ उलझा हुआ था। बामुश्किल पाँच ट्रक निकले होंगें कि दो सैनिकों के साथ तीनो नाके के कर्मचारी आते हुए दिखायी दे गये थे। बेरियर के सामने खड़े हुए ट्रक के पेपर्स लेकर मै अन्दर चला गया।

वह तीनो कर्मचारी सहमे हुए जैसे ही केबिन मे दाखिल हुए तो कैप्टेन यादव को देख कर पहचानते हुए उन्होंने पूछा… क्या आपको भी उन सैनिकों ने बंधक बना लिया था? मैने उनकी ओर पैसों की थैली बढ़ाते हुए कहा… नेपाल सेना के आदेश पर तुम्हारा काम हमने कर दिया है। मैने इसमे दस हजार रुपये अलग से तुम्हारे लिये रख दिये है जिससे इस बात का जिक्र तुम लोग किसी से भी मत करना। उन तीन के चेहरे पर अभी भी हवाईयाँ उड़ी हुई थी। वह फटी हुई आँखों से मुझे देख रहे थे। मैने एक बार फिर से बोलना आरंभ किया… जैसे तुम्हें उन सैनिकों ने हथियार दिखा कर यहाँ से हटाया था वैसे ही उन्होंने मेरे गोदाम पर भी कुछ देर के लिये कब्जा कर लिया था। हम तो कारोबारी लोग है तो सैनिकों से हम नहीं टकरा सकते। अगर तुमने अपना मुँह खोला तो कप्तान साहब चेतावनी देकर गये है कि किसी भी रात को उनकी टुकड़ी यहाँ आकर हमेशा के लिये सबकी जुबान बन्द कर देगी। अपनी जान और कारोबार बचाने के लिये यह पैसे दे रहा हूँ। अगर अपना मुँह बन्द रखने का वादा करोगे तो कल शाम को एक दस हजार की गड्डी और भिजवा दूँगा लेकिन भाई अगर किसी ने भी इस सैनिक कार्यवाही का जिक्र किया तो हम सभी नेपाल सेना के निशाने पर आ जाएँगें। सैनिकों की बात से पता चला है कि उनका आप्रेशन माओइस्टों के खिलाफ था। उनका नाका उनके हवाले करके हम तीनो पैदल अपने गोदाम की ओर चल दिये थे।

गोदाम मे पहुँच कर सबसे पहले उन चारों जिहादियों के बारे मे पता किया। वह चारों जमीन पर बेहोश पड़े हुए थे। …इन्हें होश मे लाओ। बोल कर मै उस कंटेनर ट्रक के करीब चला गया था। मैने अपने दो शार्प शूटर्स को इशारा किया तो वह अपनी स्नाईपर राइफल तान कर दरवाजे पर निशाना लगा कर बैठ गये थे। बाकी सैनिकों ने ट्रक को चारों ओर से घेर लिया था। सावरकर ने आगे बढ़ कर कंटेनर ट्रक का लोहे का दरवाजा खोला और तेजी से सामने से हट गया। थापा जोर से चिल्लाया… अन्दर जो भी हैं वह सभी अपने हाथ हवा मे उठाकर एक-एक करके बाहर आ जाओ। नेपाल सेना देश की सेवा मे सदैव तत्पर। कुछ पल बीतने के बाद सामान के पीछे से एक आदमी अपने हाथ सिर पर रख कर निकला और ट्रक से नीचे उतर कर एक किनारे मे खड़ा हो गया था। उसके पीछे फिर एक और आदमी निकल कर ट्रक से उतर कर किनारे मे खड़ा हो गया था। चार जिहादी जमीन पर बेहोश पड़े हुए थे और दो जिहादी एके-203 के निशाने पर जमीन पर बैठे हुए थे। जानकारी के हिसाब से एक आदमी अभी भी उन दोनो के साथ अन्दर था। इस आप्रेशन का यह सबसे कठिन हिस्सा था।

मैने थापा को इशारा किया तो उसने कहा… एक आदमी अभी भी अन्दर है। वह शांति से बाहर आ जाये। एक मिनट के बाद मेनका को गोदी मे उठाये आफशाँ पहले सामान के पीछे से लड़खड़ाते हुए निकली और उसके पीछे चेक वाले सफेद गमछे से अपना चेहरा ढके एक जिहादी निकला था। मेनका का चेहरा पीला पड़ा हुआ था। आफशाँ की हालत भी अच्छी नहीं दिख रही थी। उसके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ी हुई थी। उसके रुखे बाल चेहरे पर बिखरे हुए थे। मेनका अपनी स्कूल युनीफार्म मे थी और आफशाँ अपने आफिस के वस्त्रों मे थी। दोनो के बाल धूल से अटे हुए थे। कपड़ो पर गन्दगी और सिलवटें साफ दिख रही थी। उनकी हालत देख कर एक पल के लिये मेरे दिमाग का फ्युज उड़ता उससे पहले जिहादी के हाथ मे एके-47 उन दोनो पर तनी हुई देख कर मै वापिस एन्काउन्टर के मोड मे आ गया था। वह जिहादी जोर से चिल्लाया… अपने हथियार डाल दो वर्ना यह दोनो मासूम बेवजह मारी जाएँगी। मैने अपने शार्प शूटरों की ओर देखा तो दोनो ने मना करते हुए इशारा किया कि जिहादी को शूट करने का क्लीयर शाट नहीं मिल रहा है। मै समझ गया कि उनकी लाईन आफ साईट मे मेनका और आफशाँ के जिस्म का कोई हिस्सा आ रहा था।

…रुक जा। उस जिहादी की आवाज गूँजी। मेनका को गोदी मे लिये आफशाँ ट्रक मे दरवाजे के पास पहुँच कर रुक गयी थी। उनकी आढ़ मे वह जिहादी अपनी एक-47 उनके पीछे ताने खड़ा हुआ था। हमारी जरा सी असावधानी उन दोनो के लिये घातक हो सकती थी। मै अभी भी सामने नहीं आया था। मै दरवाजे की आढ़ लेकर उसके जोड़ की झिरी से अन्दर के हिस्से का जायजा ले रहा था। उस जिहादी का पूरा ध्यान सामने की ओर लगा हुआ था। दरवाजे के जोड़ मे बनी हुई झिरी से उसका बाँया हिस्सा ही मै देख पा रहा था। किसी भी एक्शन के लिये सब मेरे आदेश का इंतजार कर रहे थे। मैने जल्दी से अपना टू-वे हेडफोन को आन करके पूछा… शूटर्स उसका दाँया कन्धा किसको साफ दिख रहा है? एक आवाज मेरे कान मे पड़ी… यस सर। मेरे लिये शाट क्लीयर है। …अब तुम ध्यान से सुनो कि तीन गिनने पर उसके कन्धे को अपना निशाना बना लेना। …यस सर। वह जिहादी लगातार सामने खड़ी टीम को धमकी दे रहा था। कैप्टेन यादव उसको लगातार हथियार डालने के लिये कह रहा था। हर गुजरता हुआ पल मुझे भारी लग रहा था। मैने अपनी ग्लाक-17 की नाल उस दरवाजे के जोड़ की झिरी पर टिका कर स्पीकर पर कहा… आल रेडी, तीन पर फायर करना। …एक…दो…तीन! अचानक दो फायर एक साथ हुए थे। मेरी ग्लाक ने उसके घुटने को निशाना बनाया और दूसरे फायर ने उसके कन्धे के चिथड़े उड़ा दिये थे। दो अलग जगह से फायर होने के कारण वह दिशा भ्रम का शिकार हो गया था। घुटने का जोड़ नष्ट होते ही वह अपने वजन के झोंक मे स्लो मोशन मे आगे की ओर आफशाँ पर झुका लेकिन तब तक आफशाँ अपनी गोदी मे मेनका को लिये ट्रक से नीचे कूद गयी थी। कैप्टेन यादव ने उन दोनो के गिरने से पहले ही अपनी बाँहें फैला कर उन्हें संभाल लिया था। कन्धे का जोड़ नष्ट होने के कारण एके-47 उसके हाथ से छिटक कर जमीन पर गिर गयी थी। वह औंधे मुँह जमीन पर गिर कर बेहोश हो गया था। सब कुछ इतनी तेजी से हुआ था कि देखने वालों के समझ मे नहीं आया कि यह सब अचानक कैसे हो गया था।

आफशाँ और मेनका भले ही घबरायी हुई थी परन्तु सही सलामत उनके चंगुल से निकल गयी थी। थापा को देखते ही मेनका जोर से चीखी… थापा अंकल। कैप्टेन यादव से अपना हाथ छुड़ा कर वह भाग कर थापा से लिपट गयी। आफशाँ ने थापा को देखते ही उससे पूछा… थापा, समीर कहाँ है? आफशाँ अपने पुराने स्वरुप मे वापिस आ गयी थी। मै दरवाजे की आढ़ से बाहर निकलने के बजाय ट्रक की ओट मे पीछे हट गया था। थापा ने जल्दी से कहा… मैडम, मेजर साहब यहाँ नहीं है। इस आप्रेशन को कैप्टेन साहब देख रहे थे। आफशाँ ने मेनका को उसके हाथों से लेकर अपने सीने से लगा कर कैप्टेन यादव की ओर देख कर कहा… शुक्रिया कैप्टेन। कैप्टेन यादव ने जल्दी से उसका अभिवादन किया और फिर थापा को इशारा करके बोला… मैडम, बच्ची पर इस घटना का बुरा असर पड़ा है। आप दोनो को सुरक्षित जगह पर रखने के लिये निर्देश मिले है। थापा आपको वहाँ छोड़ देगा। आप दोनो आराम किजिये। अबकी बार आफशाँ की आवाज बोलते हुए तीखी हो गयी थी… कैप्टेन, मुझे मेजर समीर से बात करवा दिजिये। कैप्टेन यादव को कुछ नहीं सूझा तो वह जल्दी से बोला… मैडम, थापा आपकी बात करा देगा। फिलहाल आप दोनो यहाँ से चले जाईए क्योंकि अभी हमे इनसे पूछताछ करनी है। आफशाँ कुछ नहीं बोली और मेनका को लेकर थापा के साथ चली गयी।

उनके जाने के बाद मै ट्रक के पीछे से निकल कर सबके सामने आ गया था। जमीन पर औंधे मुँह पड़े हुए जिहादी को उलट कर मैने उसके चेहरे पर बंधे हुए कपड़े को हटाया तो उसका चेहरा देखते ही तुरन्त उसको पहचान गया… कैप्टेन यादव, आज तुम्हारी टीम ने पांच लाख के इनाम का इंतजाम कर लिया है। आप लोगों ने हिज्बुल के कमांडर जाकिर मूसा को पकड़ा है। इसका मतलब है कि यह सभी हिज्बुल के गाजी है। इसे एक मारफीन का इन्जेक्शन देकर प्राथमिक फर्स्ट एड दे दो। इसके बाकी साथियों को बांध कर इसी कंटेनर मे डाल देना। मै मुड़ कर चलने लगा तभी कुछ याद आते ही मैने पलट कर कंटेनर पर नजर डालते हुए कहा… यह बोल रहे थे कि इसमे आम है। उसकी खुशबू तो अब तक गोदाम मे फैल जानी चाहिये थी। लेफ्टीनेन्ट देखो तो सही कि यह क्या लेकर आये है? सावरकर अपने साथ दो सैनिक लेकर कंटेनर मे चढ़ गया। पहली पेटी खोलते ही वह बोला… सर, इसमे हथियार है। हम वापिस कंटेनर की ओर मुड़ गये थे। …कैप्टेन, पता नहीं इन साले जिहादियों को कहाँ से इतने हथियार मिल जाते है। अब हमारे पास भी जगह कम पड़नी शुरु हो गयी है। …सर, इनके लिये नये गोदाम मे हमे एक बड़ा आयुध डिपो बनाना पड़ेगा। लकड़ियों की पेटियों मे ग्रेनेड, एके-47, चाईनीज असौल्ट राइफल, सैकड़ों राउन्ड मैग्जीन, इत्यादि निकले थे।

कुछ सोचते हुए मैने पूछा… इतने सारे हथियार देखने से लगता है कि फारुख यहाँ जंग के इरादे से आया है। अभी हम बात कर ही रहे थे कि सावरकर चिल्लाया… सर, जरा यहाँ आईये। उसकी आवाज की प्रतिक्रिया देख कर हम दोनो फौरन ट्रक पर चढ़ गये। एक पेटी अमरीकन डालर से भरी पड़ी हुई थी। सारी पेटियाँ जब खुल गयी तब ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह जिहादी न जाने कौन से बैंक आफ अमरीका मे डाका डाल कर लौट रहे थे। पाँच पेटियाँ अमरीकन डालर से भरी हुई थी। दो पेटियों मे चाईनीज करेन्सी के नोट थे। तीन पेटी युरो की गड्डियों से भरी हुई थी। कुछ सोच कर मैने कहा… कैप्टेन, इसको देख कर ऐसा लगता है कि फारुख यहाँ से निकल भागने की फिराक मे है। इन सब पेटियों को उठा कर स्टोर मे रखवा दो। मै दिल्ली मे बात करता हूँ कि इन सब का क्या करना है। कैप्टेन यादव के हवाले सारी पेटियाँ करके मै संपर्क केन्द्र मे चला गया था।

सुबह के छह बज रहे थे। मैने जनरल रंधावा का लिंक मांगा तो संपर्क होने मे कुछ समय लगा लेकिन उनका चेहरा स्क्रीन पर आते ही मैने कहा… सर, हिज्बुल के सात जिहादी हमारे कब्जे मे है। उनमे से एक जाकिर मूसा भी है। वह घायल है और उसे बचाना है तो तुरन्त अस्पताल पहुँचाना पड़ेगा। बताईये क्या करना है? …पुत्तर, तुम लोग इन जिहादियों को घायल क्यों करते हो? वह एक पल रुक कर मुस्कुरा कर बोले… अरे इन बेचारों की हूरें इनकी राह देख रही है। क्या तुम लोग नहीं चाहते कि यह उनसे जल्दी से जल्दी मिले। इन्हें ठिकाने लगा दो क्योंकि इनको लेकर सीमा पार कैसे करोगे। …सर, उस कंटेनर ट्रक मे हथियार के साथ करोंड़ो रुपये की विदेशी करेंसी भी मिली है। ऐसा लगता है कि फारुख मीरवायज भागने की फिराक मे है। अबकी बार जनरल रंधावा संजीदा होकर बोले… तुम्हारी बीवी और बच्ची का क्या हाल है? …सर, उन दोनो को बचा लिया गया है। …पुत्तर, उन दोनो की चिन्ता करने का समय है। उन बेचारियों पर इसका कितना बुरा प्रभाव पड़ा होगा। इस वक्त उन दोनो को तेरी जरुरत है। मेरी बात को ध्यान से सुन कि इस लाइन मे बहुत बार जो दिखता है वह सच नहीं होता। वह तेरी बीवी है और उसकी रक्षा करना तेरा धर्म है। इससे ज्यादा मै अभी कुछ नहीं बोल सकता। बस इस बार फारुख को बच कर निकलने मत देना।  …यस सर। दूसरी ओर से लाइन कट गयी थी।

मैने कैप्टेन यादव को जनरल रंधावा का संदेश सुना कर कहा… फारुख से बात करने के लिये इनका जिन्दा रहना जरुरी है। नीलोफर को भी कंटेनर से निकाल कर ले आओ। तभी मेरे मोबाइल फोन की घंटी बज उठी थी। …हैलो। दूसरी ओर से किसी की सांस की आवाज सुनाई दे रही थी। …आफशाँ। जब कुछ देर तक वह कुछ नहीं बोली मैने जल्दी से कहा… तुम फिलहाल आराम करो। मै कुछ देर मे वहाँ आ रहा हूँ। एक बार मेरी सारी बात सुन लेना क्योंकि बहुत सी बातों का तुम्हें पता नहीं है। उसके बाद तुम जैसा चाहोगी वैसा ही होगा। उसने बिना कुछ बोले फोन काट दिया था। तभी कैप्टेन यादव ने कहा… सर, मेरा ख्याल है कि आप्रेशन क्लीन आउट आरंभ करने से पहले आपको एक बार उन दोनो से मिल लेना चाहिये। मुझे लगता है कि थापा को देखते ही वह समझ गयी थी कि आप यहाँ पर उपस्थित होने के बावजूद उनसे मिलना नहीं चाह रहे है। मैने अपने सिर को झटक कर हामी भरते हुए कहा… कैप्टेन तुम नहीं समझ सकते। वह अपने आपको ऐसे काम के लिये दोषी मान रही है जो उसने नहीं किया है। मै उसको अभी कुछ भी कहूँगा तो वह यही समझेगी कि मै उसे बचाने की कोशिश कर रहा हूँ। वह इसके लिये हर्गिज तैयार नहीं होगी। वह बेहद स्वाभिमानी और जिद्दी है। वह अच्छे से जानती है कि इसका सीधा असर मुझ पर भी होगा।

हम हाल मे उनसे जब्त किये हुए सारे फोन मेज पर सजा कर बैठ गये थे। मुझे फारुख के फोन का इंतजार था। नीलोफर भी सूजी हुई आँखें लेकर मेरे सामने बैठ गयी थी। एक रात कंटेनर मे बन्द रहने के बाद उसके चेहरे की चमक धुमिल पड़ गयी थी। …मुझसे डबल क्रास करने परिणाम देख लिया कि अब सारी जिन्दगी ऐसे ही सेल मे गुजारनी पड़ेगी। …मैने तुमसे कौन सा डबल क्रास किया है? …तुम वलीउल्लाह को जानती थी उसके बावजूद तुमने मुझे नहीं बताया। वह सिर झुका कर बैठ गयी। अचानक वह बोली… उसको वलीउल्लाह बनाने का कोई दोषी है तो वह मै हूँ। मैने ही उसे मकबूल बट की छोटे बच्चे और बच्चियों के साथ रंगरलियाँ मनाते हुए की फिल्म दिखायी थी। उसके बाद मैने उससे यही कहा था कि वह हमारी मदद करे अन्यथा यह फिल्म मिडिया को सौंप दूंगी। …कब दिखायी थी? …जब वह तुम्हारी अम्मी की मौत पर श्रीनगर आयी थी। …तुम झूठ बोल रही हो। वह उस वक्त सारे समय वह मेरे साथ थी और मै उसे अच्छे से जानता हूँ। अगर ऐसी कोई बात होती तो वह मेरी नजरों से छिप नहीं सकती थी। नीलोफर ने मुस्कुरा कर कहा… अच्छा तो यह बताओ कि श्रीनगर एयरपोर्ट पर सिक्युरिटी चेक के सामने कौन अपने कान पकड़ कर उनके सामने खड़ा हुआ था। एक छनाके के साथ वह दृश्य मेरी आँखों के सामने से निकल गया था।

मैने नीलोफर की ओर देखा तो वह बोली… तुम ठीक समझे क्योंकि फारुख के कहने पर मै भी उसी प्लेन से मुंबई के लिये उनके साथ सफर कर रही थी। दिल्ली एयरपोर्ट पर उस फिल्म को मैने आफशाँ और अदा को दिखा कर अपनी बात मानने के लिये मजबूर कर दिया था। उसके दो या तीन महीने के बाद मुंबई मे फारुख ने पहली बार आफशाँ से इस बात के लिये संपर्क किया था। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी। अचानक बहुत सी उलझने सुलझती हुई लगने लगी। अदा मेरी बेवफाई के बजाय अपने अब्बू के कारनामों और ब्लैकमेल के कारण नर्वस ब्रेकडाउन का शिकार हुई थी। आफशाँ ने लौटने के बाद एक बार भी अपने अब्बू के बारे मे मुझसे नहीं पूछा था। मकबूल बट के घायल होने के बावजूद आफशाँ  और आसिया ने कभी मुझसे उसकी तबियत के बारे मे बात की थी। हर बार आसिया बस इतना कहती कि आफशाँ और मेनका का ख्याल रखना और जब भी समय मिले तो अदा से बात कर लेना। तीनो बहने बेचारी अजीब स्थिति मे फँस कर मुझे इनकी साजिश से दूर रखने की कोशिश मे जुटी हुई थी। मै सिर पकड़ मन ही मन मकबूल बट और फारुख को कोसने बैठ गया था।  

सुबह आठ बजे सरिता का फोन आ गया था। उसने उस फोन की लोकेशन होटल येती, दरबार रोड की बतायी थी। हमे फारुख के ठिकाना पता लग गया था। वहाँ पर हम कोई एक्शन नहीं ले सकते थे। जिस फोन का मुझे इंतजार था वह अभी तक नहीं आया था। नौ बजने से कुछ मिनट पहले मेज पर पड़ा हुआ एक फोन बज उठा था। मैने जल्दी से फोन उठा कर कान से लगा कर कहा… हैलो। …कौन बोल रहा है। …भाई समीर बोल रहा हूँ। दूसरी ओर से वह लगभग चीखा… क्या? …भाई, जाकिर भाई बुरी तरह घायल होकर बेहोश पड़े हुए है। उनका बचना मुश्किल लग रहा है। पोखरा से निकलते ही माओईस्टों से मुठभेड़ हो गयी थी। ट्रक को बहुत नुकसान हो गया है। हम दो लोग ही बचे है। …उन दोनो का क्या हुआ? …उन दोनो को तो माओइस्ट उठा कर अपने साथ ले गये है। …खुदा गारत करें उन खबीसों को लेकिन ट्रक मे माल की क्या हालत है? …भाई, सारी पेटियाँ ठीक ठाक ट्रक मे रखी हुई है। रईस भाई किसी ट्रक का इंतजाम करने के लिये गये है। जैसे ही ट्रक का इंतजाम होगा तो उसमे उन पेटियों को रखवा कर हम काठमांडू पहुँच जाएँगें। …काठमांडू पहुँचते ही मुझे इसी नम्बर पर सूचना देना। …जी भाई। फारुख ने फोन काट दिया था। कप्टेन यादव और नीलोफर मुझे अजीब सी नजरों से देख रहे थे।

कुछ देर के बाद मैने फारुख का नम्बर मिलाया तो वह अभी भी स्विच आफ बता रहा था। दस बजे फारुख की काल किसी दूसरे नम्बर से मेरे फोन पर आयी थी। …हैलो। …मेजर काठमांडू पहुँच गये। …फारुख तुम बताओ कि क्या तुम उन दोनो को लेकर पहुँच गये? …नहीं आता तो फोन क्यों करता मेजर। …मेरी आफशाँ से बात कराओ। …अभी नहीं पहले सौदे की जगह तय कर लेते है। कब और कहाँ मिलना है? …एक गार्डन आफ ड्रीम्स है। बहुत से लोग होंगे तो वहाँ मिलते है। हम दोनो के लिये अच्छा होगा। …नहीं, कोई भीड़भाड़ वाली जगह नहीं होनी चाहिये। …तो त्रिशुली हाईवे पर जंगल की ओर एक रास्ता कटता है। वहाँ पर फारेस्ट वालों का त्रिशूली रेस्त्रां है जो ज्यादातर खाली रहता है। वहाँ मिल सकते है। …कोई और जगह बताओ? …तो फिर काठमांडू शहर मे एक गोदाम है। वहाँ मिल सकते है। …मेजर, मै सोच कर बताता हूँ। इतनी बात करके उसने फोन काट दिया था। मैने काल रिकार्ड्स मे नम्बर देखा तो वही नम्बर था जिसके द्वारा वह जाकिर से बात कर रहा था। कैप्टेन यादव अपने साथियों को इकठ्ठा करने मे व्यस्त हो गया था।

…समीर। नीलोफर की आवाज ने मेरा ध्यान तोड़ दिया था। मैने उसकी ओर देखा तो वह बोली… क्या मुझे तुम आफशाँ से मिलवा सकते हो? उसकी बात सुन कर एक पल के लिये मेरे तन-बदन मे आग लग गयी थी। मेरी सारी परेशानी की जड़ तो मेरे साथ बैठी हुई थी। कुछ सोच कर मैने अपने आपको सयंत किया और उससे पूछा… क्या अकेला फारुख इस सारे फसाद के पीछे है? इस फसाद मे मेजर हया का क्या किरदार है? वह कुछ देर शून्य मे ताकती रही और फिर धीरे से बोली… इस फसाद की जड़ मे दो व्यक्ति है। एक फारुख है और दूसरा मकबूल बट है। मेजर हया के निशाने पर मकबूल बट है। उसने मिरियम की हत्या का बदला लेने के लिये अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया है। जिस जमात को उसने खड़ा किया था उसी जमात को धरातल मे मिलाने के लिये वह यहाँ आयी है। …अगर मकबूल बट उसका दुश्मन था तो फिर उसने अम्मी और आलिया की हत्या क्यों करवाई थी? नीलोफर ने अपनी अनिभिज्ञता जाहिर करते हुए धीरे से कहा… जब उसका तुम्हारा सामना हो तो उसी से पूछ लेना। इतनी बात करके नीलोफर ने एक बार फिर कहा… क्या मै आफशाँ से एक बार मिल सकती हूँ। आफशाँ का नाम सुन कर मेरी आँखों के सामने उसका बुझा हुआ चेहरा आ गया था। एकाएक मेरे दिल मे उसके प्रति उपजी नाराजगी और शिकायत पल भर मे फनाह हो गयी थी। अब उससे तुरन्त मिलने की इच्छा तीव्र हो गयी थी। …समीर क्या सोच रहे हो? मैने जल्दी से कहा… अभी नहीं। फारुख का अध्याय अंत करके फिर आराम से तुम सबसे मिलना। इसी के साथ हमारी बातचीत को विराम लग गया था।

नीलोफर के द्वारा खुलासे के बाद मेरे दिमाग मे फारुख और मकबूल बट की जोड़ी घूम रही थी। फारुख के सात गाजी मेरे कब्जे मे थे। वह कितने और जिहादियों को अपने साथ लेकर यहाँ आया होगा? इस प्रश्न का जवाब मेरे पास नहीं था परन्तु उस जवाब पर मेरी जिंदगी टिकी हुई थी। अगर वह 5-10 जिहादियों के साथ यहाँ आया है तो उससे भिड़ा जा सकता था।  परन्तु अगर 40-50 जिहादियों की फौज को अपने साथ लेकर चल रहा है तो उस हालत मे मेरा शहीद होना पहले ही तय हो गया था। …सर। मैने सिर उठा कर उस आवाज की ओर देखा तो मेरे सामने कैप्टेन यादव और लेफ्टीनेन्ट सावरकर खड़े हुए थे। …सर विपक्ष में कितने लोग होंगें? …पता नहीं। …सर हमे उसी को देख कर अपनी मोर्चाबन्दी करनी पड़ेगी। उस ट्रक मे मिला असला-बारुद विपक्ष की ताकत को साफ दर्शा रहा है। एक-47, सेम्टेक्स, कार्बाईन इत्यादि लेकर वह लोग पूरी तैयारी के साथ आये है। हमारे हाथ तो सिर्फ एक ट्रक लगा है परन्तु और भी इसी प्रकार उनके ट्रक अगर यहाँ पहुँचने मे कामयाब हो गये तो फिर मुठभेड़ के बाद यहाँ से सुरक्षा एजेन्सियों की नजरों से बच कर निकलना नामुमकिन हो जाएगा। कैप्टेन यादव ने स्थिति का आंकलन सही किया था। हमारे बीच भारी फायरिंग नेपाल की सुरक्षा एजेन्सियों का ध्यान हमारी ओर आकृष्ट करने मे सक्षम थी तो फिर उनकी नजरों से बच कर निकलना मुश्किल होगा। यही सोच कर मैने कहा… कैप्टेन मोर्चाबन्दी नये प्रकार से करनी पड़ेगी…वी विल शूट ओनली टु किल। …यस सर। …हमारे साथियों को छिप कर वार करना है। उद्देश्य सिर्फ एक गोली और एक दुश्मन। कोई शक। …नो सर।

अपने निर्देश देने के बाद मैने कुछ सोच कर कहा… कैप्टेन उसके साथ जिहादियों की संख्या 15-20 से ज्यादा नहीं हो सकती जब तक उसकी मदद के लिये यहीं पर उपस्थित आईएसआई के स्लीपर सेल एक्टिव न हो जायें। …सर, यह काम उसके लिये मुश्किल होगा क्योंकि पिछले चार महीने से हमने यहाँ पर आईएसआई के बहुत से एक्टिव जिहादियों का सफाया किया है। बड़ी सफाई से हमने उनके उच्च नेतृत्व को चुन-चुन कर साफ किया है। उनकी अनुपस्थिति मे स्लीपर सेल्स को एक्टिव करना नामुमकिन होगा। हमारी सूचना के अनुसार आईएसआई का यहाँ पर स्थापित पूरा जिहादी नेटवर्क लगभग ध्वस्त हो गया है। …कैप्टेन, दुश्मन को कभी कम करके आँकना नहीं चाहिये। …सर, मै सिर्फ स्थिति का आंकलन करके यह बात बोल रहा हूँ। …तो फिर सात हमारे कब्जे मे है इसलिये हमे 10-15 आधुनिक हथियारों से लैस जिहादियों के लिये मोर्चाबन्दी करने की जरुरत है। …जी सर। लेफ्टीनेन्ट सावरकर ने झिझकते हुए पूछा… सर, क्या मै इस आप्रेशन मे भाग ले सकता हूँ? …लेफ्टिनेन्ट तुम्हें पिछला फ्लैंक सुरक्षित रखना है क्योंकि दुश्मन एक नहीं दो है। कैप्टेन यादव की टीम फारुख को न्युट्रिलाईज करेगी और चुँकि मकबूल बट अभी तक सामने नहीं आया है तो उसको न्युट्रिलाइज करने के लिये तुम मेरे आफिस मे तैनात रहोगे। …यस सर। मैने अपनी व्युहरचना तैयार कर ली थी और अब मुझे फारुख के फोन का इंतजार था। कैप्टेन यादव और लेफ्टीनेन्ट सावरकर अपने साथियों को निर्देश देने के लिये चले गये थे।

मुजफराबाद        

बहुत दिनो के बाद जैश-ए-मोहम्मद का इज्तमा मुजफराबाद मे लगा था। संयुक्त इस्लामिक जिहाद काउन्सिल पर वज्रपात होने के बाद से सभी तंजीमें अपने-अपने उद्देशय को साधने मे जुट गयी थी। आप्रेशन खंजर के खुलासे के बाद से पाकिस्तानी फौज ने सभी तंजीमों से दूरी बना ली थी। पीरजादा मीरवायज अपनी मस्जिद मे बैठ कर जैश के लड़ाकूओं से बातचीत कर रहा था।

…अल्लाह ने हमारी तंजीम को एक मौका दिया था परन्तु एक काफ़िर के कारण सब कुछ फनाह हो गया। मसूद अजहर चुपचाप बैठ कर सारी बातचीत सुन रहा था। मौलवी एहसान मट्टू ने पूछा… आका हमे जल्द ही कुछ करना पड़ेगा वर्ना सारी तंजीमों पर हमारी पकड़ कमजोर पड़ जाएगी। लखवी की जमात आईएसआई के नये निदेशक जनरल फैज को साधने मे लगी हुई है। अगर एक बार वह अपने मंसूबे मे कामयाब हो गया तो हमारी मुश्किलें बढ़ जाएँगी। पीरजादा ने अपनी दाड़ी को धीरे से सहलाते हुए कहा… एहसान, अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। थोड़ा सब्र करो। पहली बार मसूद अजहर सबकी बात काट कर बोला… मेरे आका आज तक सभी सब्र करके बैठे हुए थे। अभी तक फारुख और आपके दामाद मकबूल बट की ओर से कोई खबर नहीं मिली है। पिछली बार फारुख ने कहा था कि जल्दी ही वह एक ऐसे काम को अंजाम देगा कि सीमा के उस पार की सरकार ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी फौज भी हिल जाएगी। क्या उसकी ओर से कोई खबर आपके पास आयी है? इसी के साथ सब की नजरें पीरजादा पर टिक गयी थी।

…मसूद, जल्दी ही वह काफ़िर हमारे कब्जे मे होगा। फारुख और मकबूल बट ने उस काफ़िर को इस बार अपने जाल मे ऐसा फंसाया है कि वह निकलना भी चाहे तो भी निकल नहीं सकेगा। एक बार वह हमारे कब्जे मे आ गया तो फिर हम जनरल फैज के बजाय नये सेनाअध्यक्ष जनरल अशरफ महमूद से बात करेंगें। वह काफ़िर एनएसए अजीत सुब्रामन्यम के लिये काम करता है। उसकी नस जब हमारे हाथ मे होगी तो हम जैसा कहेंगें वह वैसा करेगा। तभी बोल रहा हूँ कि सब्र रखो। अगले अड़तालीस घंटे मे तुमको पता चल जाएगा। मसूद अजहर चुप बैठ गया परन्तु मौलवी एहसान एकाएक बोला… आका आप ठीक कह रहे है। अगर किसी कारणवश फारुख और मकबूल बट अपने मकसद मे कामयाब नहीं हुए तब हमे क्या करना चाहिये? …अगर किसी कारण ऐसा नहीं हो सका तब भी हमारा एक लश्कर श्रीनगर मे तैनात है। युसुफजयी का इशारा मिलते ही हम 15 कोर के दिल पर ऐसी चोट मारेंगें कि भारतीय सेना पस्त हो जाएगी।

सभी दबी जुबान मे बात कर रहे थे। अचानक पीरजादा अपनी गद्दी से उठ कर चलते हुए बोला… मेरे बच्चों अब हम अड़तालीस घंटों के बाद फिर यहीं मिल कर अपनी कामयाबी का जश्न मनायेंगें। अल्लाह हाफिज। इतना बोल कर पीरजादा दरवाजे की ओर चल दिया। 

रविवार, 17 दिसंबर 2023

 

 

गहरी चाल-39

 

कुछ सोच कर अब्बासी ने बोलना आरंभ किया… मेजर, काजी इमरान साहब दूर के रिश्ते मे मेरे भाई लगते है। मेरा पुश्तैनी कनेक्शन कुपवाड़ा से है। दंगे और कर्फ्यु के कारण मै बैंगलोर पढ़ने के लिये आ गया था। यहीं पर कुछ साल साफ्टवेयर कंपनी मे नौकरी करने के बाद मैने अपनी एक छोटी सी साफ्टवेयर की कंपनी बैंगलोर मे डाली थी। युसुफजयी के घर मे मेरी मुलाकात पहली बार फारुख मीरवायज से हुई थी। वह अपना कारोबार जमाने के लिये पाकिस्तान से कश्मीर मे आया था। उसके बाद हमारी मुलाकात काफी दिन तक नहीं हुई थी। एक बार जब वह बैंगलौर आया तो मुझसे मिलने के लिये मेरे आफिस चला आया था। तब तक मेरा काम चल निकला था। उसी समय रक्षा मंत्रालय ने निजि साफ्टवेयर कंपनियों के लिये नयी स्कीम शुरु की थी। बिना पूंजी निवेश किये इस नयी स्कीम से जुड़ना मेरे लिये मुम्किन नहीं था। इसी कारण मै उन दिनो अपने लिये निवेशक ढूंढ रहा था। एक दिन फारुख मुझसे मिलने के लिये बैंगलोर आया था। वह कुपवाड़ा मे एक काल सेन्टर डालने की सोच रहा था। मैने उसे समझाया कि कश्मीर मे काल सेन्टर के बजाय अगर वह मेरी कंपनी मे अपना पैसा लगायेगा तो उसको आगे चल कर काफी मुनाफा होगा। उसने पैसे लगाने के लिये दो शर्त रखी थी। पहली शर्त थी कि मुझे अपनी कंपनी मुंबई मे खोलनी पड़ेगी होगी और दूसरी शर्त यह थी कि वह सारा पैसा हवाले के जरिये से दुबई से लगायेगा। कंपनी की हिस्सेदारी की बात पर उसने साफ कह दिया कि वह औपचारिक रुप से कंपनी का हिस्सा नहीं बन सकता लेकिन मुनाफे मे उसने तीस प्रतिशत हिस्सेदारी रखने की बात करी थी। मेरे लिये इससे बेहतर क्या हो सकता था। सारा पैसा उसका लगेगा परन्तु कंपनी का नियंत्रण मेरे हाथ मे रहेगा। मैने तुरन्त उसके प्रस्ताव को मान कर डेल्टा साफ्टवेयर खड़ी कर दी थी। मेजर, यहीं से ही मेरे पतन की कहानी शुरु हो गयी थी। मैने सोचा भी नहीं था कि यह काम करके मै दलदल मे फंसता चला जाउँगा।

यह बोल कर वह कुछ घड़ी के लिये चुप हो गया था। वह धीरे से सिर हिला कर फिर बोला… हवाले के पैसे के कारण मै उसके हाथ की कठपुतली बन कर रह गया था। काम शुरु होने के बाद उसने काफी दिनो तक कंपनी के काम मे हस्तक्षेप नहीं किया था। मै अकेला ही कंपनी का काम देख रहा था जिसके परिणामस्वरुप कंपनी तरक्की की राह पर चल दी थी। हमारी कंपनी को नौसेना का काम मिलने के बाद से फारुख ने मुझ पर धीरे-धीरे दबाव डालना शुरु किया। आरंभ मे वह छोटे-छोटे काम के लिये कहता था। जैसे उसके कहने पर आफशाँ को मैने अपनी कंपनी मे नौकरी पर रखा था। उसने एक बार कुपवाड़ा मे काल सेन्टर खोलने के लिये मदद मांगी थी। उसके काल सेन्टर को स्थापित करने के लिये मैने अपनी कंपनी के कुछ तकनीकी लोगों को कुपवाड़ा भेज दिया था। ऐसे छोटे-छोटे कामों के लिये मैने कभी कोई आपत्ति नहीं दर्शायी थी। एक दिन उसने मुझे बुला कर नौसेना के डेटाबेस से लड़ाकू जहाजों की संख्या की जानकारी मांगी तो पहली बार मुझे उसकी मंशा पर शक हुआ था। मै इतना दलदल मे फंस चुका था कि अब मै उसे मना करने की स्थिति मे नहीं था। पहले एक जानकारी दी फिर दूसरी जानकारी और फिर एक सिलसिला शुरु हो गया था। सब जानते बूझते हुए कि यह सब गलत और गैर कानूनी काम है फिर भी मै उसके काम को करने के लिये मजबूर हो गया था।

इतना बोल कर अब्बासी अपना सिर पकड़ कर बैठ गया था। मैने उसके कंधे को थपथपा कर कहा… ताहिर जो हो गया है उसे बदला तो नहीं जा सकता लेकिन जब तुम अपनी गल्ती खुद स्वीकार करोगे तो तुम्हारे हालात देख कर कानून तुम्हारे प्रति नर्म रुख लेगा। उसने हामी भर कर फिर से कहा… मेजर, रक्षा मंत्रालय ने अब हमे डेटाबेस के साथ और भी नौसेना के काम देना अरंभ कर दिया था। आफशाँ भी नौसेना के प्रोजेक्ट मे काम कर रही थी। एक दिन फारुख ने मुझसे ग्रिड रेफ्रेन्स कोडिंग सिस्टम के बारे मे पता लगाने के लिये कहा तो मैने अपने प्रोजेक्ट हेड अय्यर से उसके बारे मे पूछा तो उसने बताने से साफ मना कर दिया था। अय्यर का कहना था कि यह अत्यन्त गोपनीय जानकारी है। जब यह बात मैने फारुख को बतायी तब उसने परोक्ष रुप से मेरी कंपनी के काम मे हस्तक्षेप करना आरंभ कर दिया था। पहले उसने अय्यर को नौसेना प्रोजेक्ट से हटा कर उसकी जगह आफशाँ को नियुक्त करवाया और फिर उसने कंपनी की कमान अपने हाथ मे लेकर मुझे दुनिया के आगे करके अन्य गैर कानूनी काम करने आरंभ कर दिये थे। मैने बीच मे टोकते हुए पूछा… किस प्रकार के गैर कानूनी काम? …बिना बोर्ड की सहमति लिये उसने कंपनी के पैसों का निवेश फर्जी कंपनियों मे करना आरंभ कर दिया था। उसने डेल्टा साफ्टवेयर के जरिये ग्वादर, काठमांडू, ढाका, बाकू, अश्काहबाद और ताशकंत मे नयी निजि कंपनियां खोल दी थी। इन सब के कारण मेरी कंपनी पर आर्थिक संकट मंडराने लगा था। इसका असर मेरी निजि जिंदगी पर भी पड़ रहा था। अपनी दबी हुई कुंठाओं के कारण अपने परिवार से दूर रहने लगा और अकेलेपन के कारण मेरे चारित्रिक पतन की शुरुआत हो गयी थी। देखते-देखते मेरा घर टूट गया और मेरा कारोबार मेरे हाथ से निकल कर फारुख के हाथ मे चला गया था।

…ताहिर क्या आफशाँ ने तुम्हें इसके बारे मे कभी कुछ बताया था? …मेजर, मुझे उसने खुद बताया था कि उसके अब्बू के कारण फारुख उसे ब्लैक मेल कर रहा है। इससे आगे पूछ कर मुझे शर्मिंदा मत किजिये। वह हमारा साथ अपने अब्बू के कारण दे रही थी। हम दोनो ही फारुख के हाथों की कठपुतली बन गये थे। मुझे यह बाद मे पता चला कि फारुख अपने मुनाफे से एक छोटी सी फर्जी साफ्टवेयर कंपनी स्थापित करके उस कंपनी को मुझे मुनाफे पर बेच कर अलग हो जाता था। उस मुनाफे को वह अपने आकाओं राहिल शरीफ, मंसूर बाजवा व अन्य मे जरुरत अनुसार बाँट दिया करता था। दो साल पहले उसने यह काम काठमांडू मे किया और पिछले साल ढाका मे किया था। इसी तरह उसने अन्य स्थानों पर भी डेल्टा साफ्टवेयर स्थापित किया था। हर स्थान पर फारुख की कंपनी को मै आदिल शेख बन कर खरीद लेता था। अगर मै कहता कि मेरी कंपनी मे फिलहाल पैसों की किल्लत है तो फारुख अपने मुनाफे के हिस्से से आदिल शेख के नाम से कंपनी खरीद लेता था। यह मुझे अभी हाल मे ही पता चला था कि फारुख ने अपना बांग्लादेशी पासपोर्ट और रेजीडेन्ट कार्ड आदिल शेख के नाम से बनवाया हुआ था।

मैने उसे रोक कर पूछा… तेरह तारीख को अप्सरा नाम की ओएनजीसी की सप्लाई बोट पर कौन जाने वाला था, तुम या फारुख?  …हम दोनो मे से कोई भी वहाँ जाने वाला नहीं था। उस टीम का नेतृत्व हिज्बुल का कमांडर जाकिर मूसा कर रहा था। उनकी योजना थी कि जब एक बार सागर विराट का प्लेटफार्म जाकिर मूसा के नियंत्रण मे आ जाएगा तब फारुख मुझे वलीउल्लाह बना कर भारत सरकार से बात करने के लिये आगे कर देगा। फारुख अपनी सारी मांगे मेरे मुँह से कहलवाता और फिर वह सारे मामले को सुलझाने के लिये ब्रिगेडियर चीमा के जरिये भारत सरकार से कुछ मांगो को मनवाने की कोशिश करता। उसकी बात सुन कर मै चकरा गया था। मैने पूछा… क्या तुम उसके लिये यह काम करने को तैयार हो गये थे? …मेजर तुम उसकी चाल को अभी तक नहीं समझे। उसने पहले से ही अपनी मांगों की मेरी विडियों रिकार्डिंग करा कर अपने पास रख ली थी। …तो क्या उसकी मांगों के बारे मे तुम्हें पता है? …यही तो मै कह रहा हूँ। मुझे उसने आश्वस्त किया था कि माँगों की रिकार्डिंग करके मै आराम से ताहिर उस्मान अब्बासी बन कर अपना कारोबार चलाता रहूँगा और वह आदिल नाम का छलावा बन कर सभी की आँखों मे धूल झोंक कर साफ बच कर निकल जायेगा।

…उसकी क्या मांगें थी? …उस एक प्लेटफार्म की आज कीमत के हिसाब से 1780 मिलियन डालर और सागर अनंत की आज की कीमत 890 मिलियन डालर केयमेन के एक बैंक के अकाउन्ट मे देने की बात थी। सभी तंजीमों के लोगों को जेल से छोड़ने की बात थी। आखिरी मांग थी कि भारतीय फौज जम्मू और कश्मीर को तुरन्त खाली करके निकल जाये। …भारत सरकार इनमे से एक भी मांग नहीं मानती। …यही तो वह चाहता था। आखिर मे वह सरकार से अपने कुछ खास लोगों को छुड़वा लेता और कुछ सौ मिलियन डालर लेकर उन गाजियों को सुरक्षित जाने का रास्ता देकर सारा मामला रफा-दफा करवा देता। इस मसले को सफलता पूर्वक सुलझा कर वह खुद कश्मीर और जमात का एक महत्वपूर्ण नेता बन जाता और सीमा के दूसरी ओर उसके आका भी अपने मंसूबों मे कामयाब हो जाते।  

अब सारी बात मुझे समझ मे आ चुकी थी। मैने मुस्कुरा कर कहा… ताहिर इसी कारण वह तुम्हें मारना चाहता है क्योंकि तुम्हें उसकी साजिश का पता है। तुम्हारी रिकार्डिंग उसके पास है और अगर तुम्हारी हत्या हो जाती है तो फिर तुम्हारे सिर पर सारी साजिश मढ़ कर वह साफ बच कर निकल जाएगा। मुझे एक अंग्रेजी कहावत याद आ गयी थी- रन विद द हेयर एन्ड हंट विद द हाउन्डस- की कहावत को चरितार्थ कर रहा था । अपना फोन उठा कर मैने कहा… सर, सब रिकार्ड हो गया। …मेजर, रिकार्ड तो हो गया है। हमारे भी कुछ प्रश्न है। कल मै और अजीत उससे बात करने के लिये आयेगें। उसे बता देना। …यस सर। इतनी बात करके मैने फोन काट कर उससे कहा… ताहिर, कल जनरल रंधावा और अजीत सर तुमसे कुछ बात करने आयेंगें। मेरी सलाह है कि वह जो भी पूछे उन्हें बता देना तो तुम्हारी रिहाई आसान हो जाएगी क्योंकि वही दोनो निर्णय लेंगें कि तुम्हें कब और कैसे छोड़ना है।

ताहिर अचानक उठ कर खड़ा होकर बोला… मेजर, अब आफशाँ और अपनी बच्ची को कैसे बचाओगे? …अब वहाँ पहुँच कर देखता हूँ कि क्या किया जा सकता है। इतना बोल कर मै उसके सेल से बाहर निकल आया था। दोपहर होने वाली थी। अभी भी मेरे दिमाग मे बहुत से सवाल घूम रहे थे लेकिन उन सवालों के जवाब बाद मे भी लिये जा सकते है। मैने थापा से कहा… मुझे एयरपोर्ट छोड़ दो। वह मुझे एयरपोर्ट की ओर लेकर चल दिया था। …साहबजी, मेमसाहब और मेनका बिटिया का कुछ पता चला? …पता नहीं लेकिन शायद इतवार को काठमांडू मे उनसे मिलना होगा। …साहब मै भी चलूँगा। …इस जीप का क्या होगा? …साहबजी इसे यहीं एयरफोर्स स्टेशन पर खड़ी कर देते है। …चलो ऐसा ही करो। हम एक बजे तक अपनी जीप एयरपोर्ट के एयरफोर्स स्टेशन की पार्किंग मे खड़ी करके पैदल एयरपोर्ट पहुँच गये थे। मै सीधा एयरलाईन के काउन्टर की ओर चला गया। वीकएन्ड होने के कारण फ्लाईट भरने का खतरा तो सदैव लगा रहता है। थापा की टिकिट करवा कर हम दोनो सिक्युरिटी चेक के लिये चले गये। सारी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद हम कैन्टीन मे जाकर बैठ गये थे। लंच करते हुए मैने थापा को फारुख के बारे मे बताते हुए कहा… काठमांडू मे पहुँच कर सबसे पहले एक ऐसी जगह तलाशनी है जहाँ पुलिस की नजर से बच कर उन लोगों से मिला जा सके। …सर, उनसे अपने गोदाम मे मिलना ठीक रहेगा। वह जगह सबकी देखी भाली है। …अगर वह वहाँ आने के लिये राजी नहीं हुआ तो फिर कौन सी जगह ठीक रहेगी। …सर, ऐसी तो बहुत सी जगह है। कल सुबह आपको सभी जगह दिखा दूँगा। बोर्डिंग की घोषणा होते ही हम दोनो गेट की ओर चल दिये थे।

शाम को छह बजे त्रिभुवन एयरपोर्ट पर उतर कर बाहर निकले तो कैप्टेन यादव दिख गया था। थापा को मेरे साथ देख कर वह पल भर के लिये मुझे भूल गया था। दोनो बड़ी आत्मीयता से मिले और फिर हम लोग पिक-अप मे बैठ कर घर की ओर चल दिये थे। …यहाँ की क्या खबर है? …सब शान्ति है। काम अच्छा चल रहा है। आजकल मैडम का आफिस मे आना नहीं हो रहा है तो सावरकर आफिस का काम संभाल रहा है। ऐसे ही बात करते हुए हम घर पहुँच गये थे। …कैप्टेन आप लोग जाओ और सबको इकठ्ठा करके रात को आठ बजे तक हम हाल मे मिलेंगें। यह बोल कर मै तबस्सुम से मिलने चला गया था।

वह सोफे पर बैठी हुई मेरा इंतजार कर रही थी। मुझे देख कर उठने लगी तो मैने आगे बढ़ कर उसे रोकते हुए कहा… आराम से बैठो। तुम्हारी देखभाल करने के लिये मै कुछ दिन की छुट्टी लेकर आया हूँ। क्या हाल चाल है? …सब ठीक चल रहा है। आज ही डाक्टर को दिखाने गयी थी। …क्या बताया? …कुछ खास नहीं बस कुछ टेस्ट किये और वापिस भेज दिया। तभी सरिता की माँ हाथ मे एक गिलास लेकर आ गयी थी। …बेटा तुम कब आये? …अभी आया था। उसने ग्लास तबस्सुम की ओर बढ़ाते हुए कहा… अंजली बिटिया इसे पी लो। इस समय तुम्हें ताकत की जरुरत है। पीने के बाद ग्लास को वापिस देते हुए अंजली बोली… अम्मा इतना तो मेरी अम्मी भी देखभाल नहीं करती जितना तुम करती हो। …नहीं बिटिया। अपनी बच्ची के लिये हर माँ ऐसे ही देखभाल करती है। मै उन दोनो को देख कर आश्वस्त हो गया था कि मेरी अनुपस्थिति मे तबस्सुम का ख्याल रखने वाला कोई यहाँ पर है। तभी कविता कुछ कागज लेकर आयी और मुझे देख कर ठिठक कर रुक गयी थी। …कविता कैसी हो? वह झेंप कर बोली… जी ठीक हूँ। वह कागज तबस्सुम की ओर बढ़ाते हुए बोली… दीदी ललितपुर से आर्डर आया है। उसके साथ यह चेक भी भिजवाया है। तबस्सुम ने कागज और चेक देख कर कहा… गोदाम मे इस कागज को भिजवा दो और कल सुबह यह चेक जमा करवा देना। पैसा मिलते ही इनकी इन्वोइस तैयार करके गोदाम भिजवा देना। …जी दीदी। वह वापिस चली गयी थी। …मै सोच रही हूँ कि कविता को अपने आफिस मे ही रख लेती हूँ। वह आफिस का सारा काम सीख गयी है। …यह तुम्हारा कारोबार है। इसमे मै क्या बोल सकता हूँ। कुछ देर उसके साथ बिता कर मैने कहा… मै गोदाम जा रहा हूँ जल्दी वापिस आ जाउँगा। मै उसे वहीं छोड़ कर गोदाम की ओर निकल गया था।

गोदाम मे सारी टीम हाल मे मेरा इंतजार कर रही थी। अपनी कुर्सी पर बैठ कर पहले सबका हाल पूछा और फिर आप्रेशन खंजर की कहानी सुना कर बताया कि कैसे उनके कारण पाकिस्तानी आप्रेशन तबाह हो गया था। कुछ देर उनको जिहादी और गाजियों के बारे मे बता कर मैने कहा… इस आप्रेशन का संचालक रविवार को काठमांडू मे मुझसे मिलेगा। उसने मेरी बीवी और बच्ची को दिल्ली से अगुवा किया है और यहाँ पर वह अपने आदमी के बदले मे उन्हें छोड़ेगा। बाकी तो सब ठीक है परन्तु इस सौदे मे सिर्फ एक परेशानी की बात है कि उसका आदमी मेरे पास नहीं है। ऐसी हालत मे अब हमे क्या करना चाहिये? यह सवाल मै आपके पास छोड़ना चाहता हूँ। मिलने की जगह और समय को हमे तय करना है लेकिन उससे पहले हमे एक काम करना पड़ेगा। वह लोग हवाई जहाज से दोनो को लेकर कभी नहीं आयेंगें तो फिर सड़क मार्ग ही बचता है। नेपाल मे आने के भारत की ओर से मुख्यत: छ्ह रास्ते है परन्तु काठमांडू मे प्रवेश करने के सिर्फ तीन रास्ते है। तीन आदमियों की टीम माओइस्टों के वेष मे अगर उन तीन रास्तों को कवर कर लेती है तो उनकी गाड़ियाँ और उनके ठहरने की जगह का पता लग जायेगा। पहली मीटिंग मे वह अकेला मिलने आयेगा तब आपके पास उन दोनो को आजाद कराने का एक मौका होगा क्योंकि उसकी ताकत आधी हो जाएगी। आधे लोग उसकी रक्षा मे लगे हुए होंगें और आधे लोग उन दोनो की निगरानी पर तैनात होंगें। यह मौका चूक गये तो फिर एक बार सौदे के दिन मिलना होगा। तब उनकी सारी ताकत उनके साथ होगी और फिर उन दोनो को छुड़ाना इतना आसान नहीं होगा। अपनी बात उनके सामने रख कर कर मैने फारुख का नम्बर कुशाल सिंह को देते हुए कहा… कमांड कंट्रोल को यह नम्बर देकर इस नम्बर को ट्रेकिंग और रिकार्डिंग पर लगाने के लिये अभी से कह दो। कुशाल सिंह नम्बर लेकर संपर्क केन्द्र मे चला गया और कुछ देर उनसे बात करने के बाद मै भी अपने घर की ओर वापिस चल दिया था।

घर पहुँचने तक रात के दस बज गये थे। सभी अपना काम समेट कर सोने जा चुके थे। मै अपने बेडरुम मे घुसा तब तक तबस्सुम भी सो चुकी थी। अपने कपड़े बदल कर मै भी उसके साथ लेट गया। आफशाँ और मेनका दिमाग पर छायी हुई थी। आफशाँ और तबस्सुम का संबन्ध मुझे विचलित कर रहा था। काफी देर तक करवट बदलता रहा और न जाने कब नींद का झोंका आया और मेरी आँख लग गयी थी। सुबह मुझे तबस्सुम ने जगाया था। …कल आपको लौटने मे काफी देर हो गयी थी। …दस बज गये थे। कल तुम जल्दी सो गयी थी। …अम्मा मुझे नौ बजे से सुलाना शुरु कर देती है। कहीं आना जाना होता नहीं तो जल्दी सोने की आदत पड़ गयी है। …अच्छी बात है। वह मेरे साथ बैठ गयी थी। …क्या तुम्हारी कभी आफशाँ से बात हुई है? उसने चौंक कर मेरी ओर देखते हुए कहा…क्या मतलब? …कुछ दिन पहले मै आफशाँ की डायरी देख रहा था। उसमे आफशाँ ने तुम्हारा नम्बर एक किनारे मे पेन्सिल से लिखा हुआ था। मैने सोचा कि शायद तुमने उससे कभी बात की है? …वह मुझे जानती नहीं है तो वह मुझसे क्यों बात करेगी? …फिर तुम्हारा नम्बर उसको किसने दिया? मैने उठते हुए उससे कहा… आज मुझे कुछ काम है तो हो सकता है कि लौटने मे मुझे देर हो जाएगी। इतना बोल कर मै तैयार होने के लिये चला गया था।

घर से निकल कर मै सीधा गोदाम पहुँचा तो यादव ने बताया कि उसकी टीम सुबह निकल गयी है। मै सीधे संपर्क केन्द्र मे चला गया था। कुशाल सिंह अपने काम पर लगा हुआ था। …उस फोन नम्बर का क्या हुआ? …सर, रात से उसको ट्रेकिंग और रिकार्डिंग पर लगा दिया है। फिलहाल वह नम्बर बन्द पड़ा हुआ है। जैसे ही किसी नेटवर्क से जुड़ेगा तो हमे तुरन्त पता चल जाएगा। वहाँ से बाहर निकल कर मै थापा के पास चला गया था। हम दोनो कुछ सुरक्षित स्थानों को देखने के लिये निकल गये थे। बहुत सी जगह देखने के बाद एक बार फिर वहीं पहुँच गये थे जहाँ हमने आईएसआई के चंगुल से जेनब को छुड़ाया था। …सर, यह बिल्कुल शान्त जगह है। आप उनसे यहाँ भी मिल सकते है। जंगल के किनारे सामने ही एक रेस्त्रां दिख रहा था जहाँ फारुख से मिला जा सकता था। हमने तीन जगह चुनी थी परन्तु मुठभेड़ के लिये यही जगह उप्युक्त लग रही थी। हम दोनो गाड़ी छोड़ कर उस रेस्त्रां के आसपास की जगह का अवलोकन करने के लिये पैदल निकल गये थे।

घने उँचे दरख्तों के जंगल के सामने वह रेस्त्रां सड़क के दूसरी ओर स्थित था। दूर-दूर तक कोई रिहाईश नहीं थी। उस रेस्त्रां से कुछ दूरी पर त्रिशूली हाईवे दिख रहा था। पुलिस की पोस्ट भी यहाँ से आधे घंटे की दूरी पर थी। सब लिहाज से वह रेस्त्रां फारुख से मिलने के लिये उचित स्थान लग रहा था। थापा अपने हिसाब से स्थिति का अवलोकन कर रहा था। …सर, अगर वह दोनो उसके साथ होंगें तो रेस्त्रां मे हम उनके साथ आमना-सामना नहीं कर सकेंगें। जो भी हमारी ओर से कार्यवाही होगी वह उनके बाहर निकलने पर ही हो सकेगी। हमारी युनिट मे दो शार्प शूटर है। वह जंगल मे रह कर सड़क पर खड़े हुए लोगों को आसानी से निशाना बन सकते है। मै भी उसकी बात से सहमत था। रेस्त्रां इतना बड़ा नहीं था कि वहाँ कोई सैन्य कार्यवाही करी जाए। कुछ देर के बाद हम वापिस काठमांडू शहर की ओर चल दिये थे। हमने तीन जगह तय की थी। पहला अपना गोदाम, दूसरा गार्डन आफ ड्रीम्स और तीसरा वही रेस्त्रां। गोदाम पहुँच कर मै अपने हथियारों का स्टाक देखने के लिये चला गया था। अभी भी फारुख की फौज को संभालने के लिये काफी स्टाक था।

हाल मे पहुँच कर मैने यादव से पूछा… उन मे से किसी ने कुछ खबर दी है? …नहीं सर। उनकी ओर से अभी तक कोई खबर नहीं आयी है। मै चुपचाप बैठ गया। …आपने कोई जगह चिन्हित की है? मैने हामी भरते हुए उन तीनों जगह के बारे मे बता कर कहा… कैप्टेन, यह उस पर निर्भर करता है कि वह कहाँ मिलना चाहेगा। …सर, खबर मिली है कि पाकिस्तान दूतावास मे आज अचानक दोपहर से ही काफी चहल पहल हो गयी है। अगर उन दोनो को दूतावास मे छोड़ कर वह आपसे मिलने आयेगा तो हमारे लिये मुश्किल खड़ी हो जाएगी। …कैप्टेन, उनके लिये दूतावास कोई स्थायी ठहरने की जगह नहीं हो सकती। एक रात के लिये उन्हें कहीं रुकना पड़ेगा और उस जगह का हमे समय से पहले पता चल जाना चाहिये। …यस सर। मैने स्क्रीन पर काठमांडू का नक्शा निकाल लिया था। मै सड़कों का अध्ययन करने बैठ गया। सुरक्षित प्रवेश और निकासी के रास्ते समझना मेरे लिये अनिवार्य हो गया था। यह अपना देश नहीं था इसीलिये हमे यहाँ की सुरक्षा एजेन्सियों से बच कर अपने काम को अंजाम देना था।

शाम हो गयी थी। …कैप्टेन, जैसे ही उनकी ओर से खबर मिले तो तुरन्त मुझे सुचित करना। यह कह कर मै अपनी गाड़ी मे बैठा और अपने घर की ओर चल दिया। रास्ते मे मुझे नीलोफर का ख्याल आया तो मैने अपनी गाड़ी उसके फ्लैट की दिशा मे मोड़ दी थी। हमेशा के जैसे उसके फ्लैट के बाहर सब शांत पड़ा हुआ था। मैने उसके दरवाजे पर दस्तक दी तो मेरी युनिट मे गनर बचन सिंह ने दरवाजा खोला था। मुझे देखते ही मुस्तैदी से सैल्युट करके रास्ता देते हुए बोला… साहबजी, वह बेडरुम मे है। …यहाँ का क्या हाल है? …सब कुछ ठीक है साहब। बेडरुम का दरवाजा खोल कर मै अन्दर चला गया था। नीलोफर बेड पर आंखे मूंद कर बैठी हुई कुछ सोच रही थी। कदमों की आहट सुन कर मुझे देखते ही वह चौंक कर बोली… समीर। मै उसके करीब जाकर बोला… मेरे आने की उम्मीद नहीं थी। वह जल्दी से बोली… कल दोपहर को फारुख का फोन आया था। उसे अपने पैसे वापिस चाहिये और उसके लिये वह काठमांडू आ रहा है। उसको जरुर तुमने बताया होगा कि मै यहाँ पर हूँ। मैने नीलोफर को आफशाँ और मेनका की कहानी बता कर कहा… वह तुम्हारे लिये नहीं आ रहा है। उसका मकसद कुछ और है। मैने उसे यहाँ बुलाया है। उसके अनुसार आफशाँ ही वलीउल्लाह है। वह धीरे से दूसरी दिशा मे खिसकी और अचानक उठने की कोशिश की परन्तु तब तक मैने झपट कर उसे पकड़ लिया था। उसकी गरदन मेरी बाँह के शिकंजे मे फँस गयी थी और मेरी टाँगें उसकी कमर पर कस गयी थी। वह हिलने-डुलने की भी स्थिति मे नहीं थी।

…तुम जानती थी कि आफशाँ ही वलीउल्लाह है लेकिन तुमने यह बात मुझसे क्यों छिपायी? वह कुछ नहीं बोली बस कुछ देर छूटने का प्रयत्न करती रही फिर जब वह थक गयी तो शिथिल हो कर शांत होकर बैठ गयी। …नीलोफर मैने समय-समय पर तुम्हारी मदद की परन्तु तुमने हमेशा मुझे धोखा देने की कोशिश की है। हमारे बीच का करार इसी वक्त से समाप्त हो गया है। अब मै खुद तुम्हें फारुख के हवाले करुँगा। वह कुछ नहीं बोली तो मैने उसके गले पर अपनी पकड़ को ढीले छोड़ते हुए अपनी पाँवों की गिरफ्त से आजाद करके कहा… अगर आफशाँ और मेनका की जान का खतरा न होता तो अब तक यह सुराहीदार गरदन को मै तोड़ चुका होता। अचानक वह तड़प कर बोली… तोड़ दो और मुझे इस जिंदगी से आजाद कर दो। मैने उसे छोड़ कर कहा… इतनी जल्दी क्या है। यह नेक काम फारुख करेगा। वह मुझसे अलग होकर बोली… तुम्हें क्या लगता है कि ऐसा करने से वह तुम्हें आफशाँ और मेनका को सौंप देगा। हर्गिज नहीं क्योंकि अब वह उनके जरिये तुम्हें अपनी उंगलियों पर नचायेगा। मै उसकी बात ध्यान से सुन रहा था परन्तु मेरी नजर उस पर टिकी हुई थी। वह खड़ी होकर बोली… मैने तुम्हें उसे प्लेट मे सजा कर दिया था। तुमने क्या किया? उस जैसे दोगले सांप को अपने अफसरों के हवाले कर दिया। उसने उन्हें शीशे मे उतार कर तुम्हारे ही पर काट दिये थे। उसने तुम्हें वहाँ से उठाकर दिल्ली फिंकवा दिया जिससे वह आसानी से जमात पर काबिज हो जाये। तुम्हारे कारण वह अपनी इस मुहिम मे कामयाब भी हो गया। अगर तुम उसी दिन तुम उसे गोली मार देते तो आज यह सब नहीं देखना पड़ता। वह बोलते हुए गुस्से से काँप रही थी।

मै अपने गुस्से पर अब तक काबू कर चुका था। …नीलोफर, मै तुम दोनो का खेल समझ चुका हूँ। मै लखवी और मीरवायज की अंतरकलह मे तुम्हारा हथियार नहीं बनूँगा। तुम्हारे परिवारों मे वर्चस्व की लड़ाई के चक्कर मे आफशाँ और मेनका की जिंदगी को दाँव पर नहीं लगा सकता। अब चलो मेरे साथ। मै उठ कर खड़ा हो गया और नीलोफर को लेकर बेडरुम से बाहर आ गया था। बचन सिंह फ्लैट के दरवाजे पर खड़ा हुआ था। …बचन सिंह, अब यहाँ रुकने की आवश्यकता नहीं है। फ्लैट को लाक करो और चलो मेरे साथ। मैने मुड़ कर नीलोफर की ओर देखा तो उसकी नजर अपनी अटैची पर जमी हुई थी। मैने आगे बढ़ कर उसकी अटैची उठा कर कहा… चिन्ता मत करो। इसे तुम्हारे साथ ही दफना दूँगा। मैने उसका हाथ पकड़ा और खींचते हुए बाहर निकल आया था। …समीर, बेवकूफ मत बनो। तुमने उसको यहाँ बुला कर बहुत भारी गलती की है। उसको अनसुना करके मै आगे बढ़ गया। बाहर अंधेरा हो गया था। हम तीनों फ्लैट से निकल कर अपनी गाड़ी के पास पहुँच गये। मैने उसकी अटैची पीछे की सीट पर डाल कर कहा… बचन सिंह पीछे बैठ कर इसे कवर करना। मैने उसके लिये दरवाजा खोल कर उसे बिठा कर सीट बेल्ट से जाम करके अपनी गाड़ी का स्टीयरिंग संभाल लिया था।

पहले मै अपने गोदाम चला गया था। मै अपने साथ नीलोफर को लेकर हाल मे आ गया। वहाँ कैप्टेन यादव भी पहुँच गया था। …कैप्टेन, उनकी ओर से अभी तक कोई खबर मिली? …नहीं सर। …नीलोफर अपना फोन दो। उसने अपने कुर्ते की जेब से फोन निकाल कर मेरी ओर सरका दिया। मैने उसका फोन उठा कर उसकी काल्स पर नजर डाल कर पूछा… फारुख ने किस नम्बर से तुम्हें फोन किया था। उसने फोन मेरे हाथ से लेकर एक नम्बर दिखाते हुए कहा… उसने इस नम्बर से फोन किया था। मैने उस नम्बर पर एक नजर डाली तो वही नम्बर हमने ट्रेकिंग पर लगा रखा था। …कैप्टेन इस पर नजर रखना। यह बोल कर मै संपर्क केन्द्र मे चला गया। विजय कुमार ने सिस्टम संभाल रखा था। …उस फोन की कोई खबर मिली है। …नहीं सर, अभी भी वह स्विच आफ पड़ा हुआ है। जब दिल्ली से चला था तभी से दिमाग मे एक भय सता रहा था कि अगर वह काठमांडू नहीं आया तो मेरी सारी योजना धरी की धरी रह जायेगी। नीलोफर से बात होने के बाद यह तो यकीन हो गया था कि वह काठमांडू आ रहा था।

मैने अपना हेडफोन कान पर लगाया और अजीत सर से बात करने के लिये लिंक जोड़ने के लिये कह दिया। मुझे दो मिनट इंतजार करना पड़ा था। अजीत सर का चेहरा स्क्रीन पर उभरते ही उनकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… समीर, छुट्टी मे भी काम से पीछा नहीं छूट रहा है। …सर, आप आज ताहिर से मिले होंगें। क्या कुछ और जानकारी उसने बतायी है? …समीर, कोई खास बात पता नहीं चली परन्तु एक बात जान कर बहुत अफसोस हुआ कि तुम्हारी पत्नी आफशाँ का कोडनेम वलीउल्लाह था। तुम्हारी नाक के नीचे वह हमारी गोपनीय जानकारी को ताहिर के जरिये दुश्मनों तक पहुँचा रही थी और तुम्हें इसकी भनक भी नहीं लगी। …सर, मुझे अभी भी इस बात पर विश्वास नहीं है। …समीर, आफशाँ  पिछले छह दिन से नौसेना भवन मे भी नहीं आयी है। तुम्हारा घर भी लाक पड़ा हुआ है। हमारी टीम उससे पूछताछ करने के लिये उसको तलाश कर रही है लेकिन वह अब तक फरार है। मै उम्मीद करता हूँ कि उसको फरार करवाने मे तुम्हारा कोई हाथ तो नहीं है। …सर, अगर आपको ऐसा लगता है कि उसको फरार करवाने मे मेरा हाथ है तो मेरी छुट्टी समाप्त होते ही मै कोर्ट मार्शल के लिये आत्मसमर्पण कर दूँगा। लेकिन तब तक तो आपको मेरी बात पर विश्वास करना चाहिये। जिस दिन हमने ताहिर को पकड़ा था उसी दिन फारुख मीरवायज ने आफशाँ और मेरी बेटी मेनका को बंधक बना लिया था। उन दोनो की जान बचाने के लिये की वह ताहिर उस्मान का कत्ल करवाना चाहता है। ताहिर अभी भी आपके पास सुरक्षित है। इससे ज्यादा मै आपको अपनी बेगुनाही का और क्या सुबूत दे सकता हूँ। …तो अब क्या करने की सोच रहे हो? …सर, फारुख मीरवायज मेरे हाथ से इस बार बच कर नहीं निकल सकता। …मेजर, कुछ भी करने से पहले ध्यान रहे कि यह तुम्हारी निजि लड़ाई नहीं है। …सर, मैने उस दिन भी आपको समझाने की कोशिश की थी कि ग्रिड रेफ्रेन्स कोडिंग सिस्टम की गोपनीयता पर अभी तक कोई आँच नहीं आयी है। इसलिये कोड नेम वलीउल्लाह मेरे लिये कोई मायने नहीं रखता है। फारुख मीरवायज ने मेरी बीवी और बच्ची को बंधक बनाया है तो यह मेरी निजि लड़ाई है। उसके लिये जो भी मुझे सजा मिलेगी उसके लिये मै तैयार हूँ लेकिन वह मेरे हाथ से इस बार नहीं बच सकेगा। …समीर, पागल मत बनो। काठमांडू इस काम के लिये सेफ जोन नहीं है। अगर तुम नेपाल सरकार के हाथ लग गये तो फिर तुम्हें छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा। …सर, सेना मे यह सिखाया गया है कि मिशन सर्वोपरि है और उसका परिणाम फिर चाहे कुछ भी हो। कल हमारे बीच मीटिंग तय हुई है। खुदा हाफिज। इतनी बात करके मैने लिंक काट दिया था।

मुझे पता था कि वलीउल्लाह के स्कैंडल की आग से मै खुद को भी नहीं बचा सकूँगा इसीलिये मैने काठमांडू चुना था। कोई भी आफशाँ की मजबूरी रही होगी परन्तु मुझे अभी भी पूरा विश्वास था कि ग्रिड कुअर्डिनेट्स देने से हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ है। जिस आदमी ने यह सारी कहानी रची थी वह जरुर अभी भी किसी उँचे ओहदे के पीछे छिप कर हिन्दुस्तान मे बैठा हुआ था। इसी कारण आफशाँ से मिलना जरुरी था। मै हेडफोन लगाये बैठा हुआ अभी भी सोच ही रहा था कि मेरे कान मे विजय कुमार की आवाज पड़ी… सर, वह दो फोन नम्बर जो आपने दिये थे उनमे से एक एक्टिव मोड मे आ गया है। उसकी लोकेशन ट्रेक कर रहे है। मैने जल्दी से हेडफोन उतारा और विजय कुमार के सामने स्क्रीन पर नजर गड़ा कर बैठ गया था। स्क्रीन पर लोकेशन ट्रेस करने का निशान लगातार चल रहा था। अचानक एक सेटेलाइट नक्शा स्क्रीन पर बनना आरंभ हो गया था। धीरे-धीरे वह नक्शा साफ होता चला गया और अचानक नक्शे के एक स्थान पर पहुँच कर केन्द्रित हो गया था। पाँच सेकन्ड के बाद एक स्थान उभरा और उसी के साथ उस जगह का पता उदित हो गया… 32, होटल ग्रान्डे, पोखरा।

…सर, वह उस नम्बर से काल कर रहा है। मैने जल्दी से अपना हेडफोन सिर पर लगाया और मेरे कान मे घंटी की आवाज सुनायी थी। …वह काल कहाँ कर रहा है उसका नम्बर नोट करो। तभी दूसरी ओर से फोन उठा लिया गया था।

…अस्लाम वालेकुम भाईजान, हम पोखरा पहुँच गये है। खानापीना करके दस बजे यहाँ से निकल कर कल सुबह तक काठमांडू पहुँच जाएंगें। …दोनो की क्या हालत है। …ठीक है जनाब। उन्हें खाना खिला दिया है। …किसी को कोई शक तो नहीं हुआ? …नहीं जनाब। सामान के पीछे बैठा रखा है। बस माओइस्टों के कारण जगह-जगह बेरियर का सामना करना पड़ रहा है। …उनसे उलझना नहीं। कितने आदमी साथ चल रहे है? …भाईजान मुझे मिला कर सात लोग है। …सावधान रहना। काठमांडू पहुँच कर तुरन्त खबर करना। …जी भाईजान।

बस इतनी बात करके फोन कट गया था। मैने वह नम्बर लेकर कहा… इस फोन को ट्रेक करते रहने। यह बोल कर मै वहाँ से बाहर निकल गया था। नीलोफर किसी सोच मे गुम बैठी हुई थी। इतना तो तय हो गया था कि पोखरा की ओर से आने वाले सारा ट्रेफिक काठमांडू मे हमारे गोदाम के सामने वाले नाके से गुजरेगा। एक सैनिक को नीलोफर की निगरानी पर लगा कर मै यादव को लेकर हाल से बाहर निकल आया था।

…कैप्टेन, यह कन्फर्म हो गया है कि फारुख मीरवायज काठमांडू मे आ चुका है। वह दोनो किसी कंटेनर ट्रक मे पोखरा से रात को दस बजे काठमांडू के लिये निकल रहे है। उसमे सात जिहादी बैठे हुए है। हमारे सामने दो विकल्प है कि हमारी टीम इसी समय नौबीसे के लिये निकल जाये और चौराहे के आसपास अपना मोर्चा लगा कर उन्हें वहाँ इन्टर्सेप्ट करे अन्यथा वह लोग सामने वाले नाके से ही काठमांडू मे प्रवेश करेंगें तब उन्हें यहाँ पर इन्टर्सेप्ट किया जाये। तुम बताओ कि कौन सा विकल्प ठीक रहेगा। वैसे तो हम उस फोन को फिलहाल ट्रेक कर रहे है लेकिन पता नहीं वह फोन कब स्विच आफ हो जाये। …सर, हम अगर उन्हें इस नाके पर इन्टर्सेप्ट करते है तो पूरी फायरपावर हमारे पास होगी। उनके बच कर निकलने की संभावना न के बराबर होगी। बीच रास्ते मे उस कंटेनर ट्रक को तभी इन्टर्सेप्ट कर सकते है कि जब हमे पता हो कि उनका कौनसा ट्रक है। …तुम ठीक लाइन पर सोच रहे हो। तो हमे अपना मोर्चा उस नाके पर लगाना चाहिये। …जी सर। …अपनी सभी टीम को वापिस बुला लो। और एक घंटे के बाद फिर बैठते है। …सर, एक टीम तो इसी सड़क पर बीस मील पर अपना बेरियर डाल कर बैठी हुई है। उसे वहीं रहने देते है। उनको अब खबर कर देते है है कि कंटेनर ट्रक पोखरा से आ रहा है। सात जिहादी उस कंटेनर ट्रक मे सफर कर रहे है। अगर वह उस ट्रक की पहचान कर लेते है तो हमारे लिये इस नाके पर उन्हें रोकना आसान हो जाएगा। फिर तो हमारे दो शार्प शूटर्स ही काफी है उस ट्र्क को सुरक्षित गोदाम मे पहुँचाने के लिये। …ठीक है कैप्टेन, उस नाके पर इन्टर्सेप्ट करने की तैयारी मे तुरन्त जुट जाओ। …सर, इस नीलोफर का क्या करना है? …फिलहाल इसको अपने आफिस मे बन्द कर दो। फारुख के लिये यह चारे के रुप मे काम आयेगी।

कैप्टेन यादव अपने काम पर लग गया था। मैने गोदाम से बाहर निकल कर सरिता को फोन किया… जी मुझे पता चला है कि आप आ गये है। सरिता इस वक्त किसी की जान खतरे मे है। सिर्फ तुम मेरी मदद कर सकती हो। …बोलिये मुझे क्या करना है? …यह नम्बर लिखो। मैने जल्दी से वह नम्बर देकर कहा… मुझे इसकी लोकेशन का पता करना है। तुम्हारे बिना मांगे वादा कर रहा हूँ कि इस काम के पैसे बिना मांगें मिल जाएँगें। …आप बेफिक्र रहिये। मेरी कल सुबह ड्युटी सात बजे की शिफ्ट मे है। आठ बजे तक आपको इस फोन की लोकेशन मिल जाएगी। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।

     

मुजफराबाद

…हया के बारे मे कुछ पता चला? …नहीं। परन्तु अब यह यकीन से कहा जा सकता है कि वह पाकिस्तान मे हर्गिज नहीं है। श्रीनगर से खबर मिली है कि वह कुछ समय के लिये वहाँ पर थी परन्तु यह पता नहीं चल सका है कि अब वह कहाँ है। हिन्दुस्तान मे हमारा नेटवर्क सक्रिय हो गया है। जल्दी ही हया का पता लगा लेंगें। …नीलोफर के लिये लखवी के लोग क्या कर रहे है? …मालिक वह तो छ्लावा बन गयी है। हिन्दुस्तान के अलग-अलग शहरों मे उसे देखा गया है। आखिरी बार उसे दिल्ली मे अंसार रजा और सेठी के साथ देखा गया था। अपने लोगों से पता लगा है कि वह वहाँ से फरार होने की फिराक मे है। …फारुख से बात हुई? …जी जनाब। फारुख जल्द ही आपके लिये एक बेशकीमती तोहफा ला रहा है। उसने आपके सबसे बड़े दुश्मन को अपने जाल मे फँसा लिया है। जल्दी ही उसे लेकर वह आपके सामने हाजिर होगा। …कौन? …मेजर समीर बट जिसने हमारे इज्तिमा की मुहिम को नष्ट किया था। उसी ने फारुख के कारोबार को बर्बाद करने की कोशिश की थी। इसी व्यक्ति के कारण आप्रेशन खंजर का पर्दाफाश हुआ था। मैने पता किया था कि वह भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का दाँया हाथ है। वह अगर हमारे कब्जे मे आ गया तो हमारा  और उनका फौजी इदारा हमारे इशारों पर नाचेगा। …आमीन।

रविवार, 10 दिसंबर 2023

 

 

गहरी चाल-38

 

मिनी बस मे बैठे हुए सभी की नजर हम पर जम गयी थी। उसको वहाँ देख कर जिंदगी मे पहली बार उस पर गर्जा… तुम यहाँ क्या कर रही हो? चलो बस से नीचे उतरो। वह हैरानी से मेरी ओर देखती रह गयी थी। मैने उसका हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए आगे बढ़ा तो मेरे पीछे खिंचते हुए वह बोली… समीर, तुम्हें कोई गलतफहमी हो गयी है। यह हमारी कंपनी के मालिक ताहिर साहब है। तुम गलती कर रहे हो। अचानक ताहिर की आवाज मेरे कान मे पड़ी… आफशाँ, यह कौन है? वह मुड़ कर बोली… सर, यह मेरे खाविन्द है, मेजर समीर बट। वह जल्दी से बोला… तुम जाओ आफशाँ। लीसा को फोन पर सूचना दे देना कि वह तुरन्त वकील का इंतजाम करें। …नहीं सर मै आपको छोड़ कर कहीं नहीं जा रही। तभी जनरल रंधावा का फोन आ गया। मैने उनको बात करने दिया और खुद जनरल रंधावा से बात करने लगा… हैलो। …क्या हुआ? …सर, ताहिर उर्फ आदिल हमारे कब्जे मे आ गया है। …गुड। …सर, हिज्बुल के आठ गाजी भी कब्जे मे आ गये है। चार अभी भी फरार है। …इसको डिटेन्शन सेन्टर पहुँचा दो। …यस सर। मैने आफशाँ का हाथ पकड़ा और उसे जबरदस्ती बस से उतार कर कहा… टैक्सी लेकर घर चली जाना। उसे वही पार्किंग मे छोड़ कर मै बस मे बैठ गया और ड्राईवर को चलने का इशारा किया। हमारी मिनी बस आगे बढ़ गयी थी।

मै ताहिर के पास बैठते हुए बोला… तुम्हारे साथ ही आप्रेशन खंजर का अंत हो गया। वह बड़े विश्वास से बोला… अच्छा। चलो देखते है। …तुम वलीउल्लाह के हैंडलर हो तो क्या उसके बारे मे कुछ बताना चाहोगे या थर्ड डिग्री के बाद ही मुँह खोलोगे? वह मेरी ओर देख कर बोला… मुझे डरा रहे हो? …मै डरा नहीं रहा लेकिन सच्चायी बोल रहा हूँ। …मेजर तुम मेरे साथ कुछ नहीं कर सकोगे। बहुत जल्दी तुम मुझे खुद यहाँ से रिहा करोगे। यह जितना जल्दी जान लोगे तो तुम्हारे लिये अच्छा होगा। …आदिल मियाँ, यह अच्छा ही हुआ कि तुम पकड़े गये क्योंकि तुम्हारे जैसे बहुत से लोग तो अपनी हूरों के साथ इस वक्त मजे कर रहे है। जो बच गये वह अस्पताल मे पड़े हुए है। वह चार जिहादी कहाँ है? …उनसे भी जल्दी मिलोगे। यह बोल कर वह आराम से सीट पर पीठ टिका कर बैठ गया था। मै उसके आत्मविश्वास को देख कर एक पल के लिये असहज हो गया था। मेरा दिमाग मे उन चार जिहादियों की ओर चला गया था कि वह कोई बेजाह हरकत न कर दें। मानेसर तक मै इसी तनाव मे रहा लेकिन जैसे ही मिनी बस ने एनएसजी के कैंम्पस का मुख्य द्वार पार किया तो मैने चैन की सांस लेकर कहा… आदिल मियाँ अब काफी दिन तुम्हें यहीं रहना है तो आदत डाल लेना।

अगले दस मिनट के बाद मैने आदिल को पहले अफरोज के पास उसकी शिनाख्त कराने के लिये ले गया था। …दूल्हा भाई, आपके कारण यह मुझे श्रीनगर से उठा लाये थे। उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मै उसे उसके सेल मे छोड़ कर वापिस आकर अफरोज से मिला… अफरोज, एक दो दिन मे अब तुम्हें छोड़ देंगें। उसे यह बता कर मै बाहर आ गया था। उन आठ हिज्बुल के जिहादियों को दूसरी जगह रख दिया गया था। वापिस लौटते हुए काफी देर हो गयी थी। जब तक घर पहुँचा तब तक आफशाँ घर नहीं पहुँची थी। मैने उसे फोन लगाया तो उसने घंटी बजते ही मेरा फोन काट दिया था।

…आयशा, आज हमने ताहिर को पकड़ लिया है। अफरोज अब जल्दी छूट जाएगा। …समीर, आफशाँ अभी तक नहीं आयी क्या बात है? उसे सारी कहानी सुना कर मैने कहा… वह नाराज है। कुछ देर मे आ जाएगी। यह कहते हुए मै कपड़े बदलने चला गया था। मैने आधी रात तक उसका इंतजार किया। इसी बीच मैने कई बार फोन पर बात करने की कोशिश की परन्तु उसका फोन स्विच आफ दिखा रहा था। आखिरकार मैने एक बार फिर से कपड़े बदले और अपनी जीप लेकर नौसेना भवन की ओर चल दिया। आफशाँ की नाराजगी मै समझ सकता था। उसे बस मे देख कर मुझे गहरा धक्का लगा था। वह समय ऐसा नहीं था कि मै उसे कुछ सफाई देता इसलिए उसे पार्किंग मे छोड़ कर मै उनके साथ चला गया था। उसके नहीं आने के कारण मुझे अब चिन्ता हो रही थी। रात को दो बजे जब मैने नौसेना भवन मे कदम रखा तो वहाँ पर दस तरह के सावलों का जवाब देना पड़ गया था।

उसके हाल मे रात की शिफ्ट चल रही थी। उसका आफिस अंधेरे मे डूबा हुआ था। मैने कुछ लोगों से आफशाँ के बारे मे पूछा परन्तु किसी ने भी उसे नहीं देखा था। उसकी मेज पर रखी हुई डायरी को अपनी जेब के हवाले करके मै वापिस अपने घर की ओर चल दिया। मै अपने बेडरुम मे काफी देर तक आफशाँ के बारे मे सोचता रहा था। जब तेज नींद का झोंका आया तो मेरी आंख लग गयी। सुबह देर से उठा और अपने कमरे से बाहर निकला तो आयशा से सामना हो गया। …आफशाँ नहीं लौटी? …नहीं। मै चाय पीने बैठ गया। …मेनका कहाँ है? …वह स्कूल गयी है। मै जल्दी से तैयार होकर एक बार फिर से नौसेना भवन की ओर चला गया था। उस हाल मे कदम रखते ही मेरी नजर आफशाँ के केबिन की ओर चली गयी तो केबिन की लाईट जली देख कर एक उम्मीद की किरण दिखी। मैने उसके केबिन का दरवाजा खोल कर अन्दर झांक कर देखा तो एक अनजान चेहरा आफशाँ की कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसके सामने काले कोट पहने पाँच वकील बैठे हुए थे। अचानक उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो वह बोला… अभी नहीं। मैने दरवाजा बन्द किया और बाहर की ओर चल दिया।

…आफशाँ कहाँ जा सकती है? यह सवाल मै अपने आप से बार-बार पूछते हुए अपनी जीप के पास पहुँच गया था। अचानक मेरे दिमाग मे एक विचार कौंधा तो मै फटाफट जीप मे बैठते हुए थापा से बोला… मेनका के स्कूल चलो। थोड़ी देर मे मेनका के स्कूल की हेडमिस्ट्रेस के सामने बैठा हुआ था। चपरासी ने आकर बताया कि आज मेनका स्कूल नहीं आयी है। …यह कैसे मुम्किन है। मैने खुद उसे सुबह स्कूल बस मे बैठते हुए देखा था। हेडमिस्ट्रेस ने उसकी स्कूल बस के ड्राइवर और कंडक्टर दोनो को बुलवा लिया था। थोड़ी देर के बाद दोनो मेरे सामने खड़े हुए थे। …क्या मेनका नाम की लड़की को आपने स्कूल बस मे आज बिठाया था। कुछ सोच कर मेरे मकान की लोकेशन के बारे मे पूछ कर कंडक्टर जल्दी से बोला… वह स्कूल बस मे बैठी जरुर थी परन्तु अगले ही स्टाप पर उसकी मम्मी ने उसको बस से उतार लिया था। वह अपने साथ मेनका को लेकर चली गयी थी। हेडमिस्ट्रेस से माफी मांग कर मै स्कूल से बाहर निकलते हुए सोच रहा था कि आफशाँ ने क्या सोच कर ऐसा किया होगा? यह बात मेरी समझ से बाहर थी। यह उसकी तारिक के प्रति वफादारी थी या कोई और खास बात उसके पीछे थी। इतने साल साथ रहने के बावजूद मै आफशाँ को जानते हुए भी नहीं जान पाया था। अपने आफिस की ओर जाते हुए मै सारे रास्ते इसी के बारे मे सोचते हुए अपने आप को धिक्कार रहा था।

आफिस पहुँचते ही जनरल रंधावा से मुलाकात हो गयी। …सर, उसको हमने डिटेन्शन मे रख दिया है। …उसने कुछ बताया? …सर, वह इतनी आसानी से वलीउल्लाह के बारे मे कुछ नहीं बतायेगा। …मेजर, उसे कुछ दिन वहीं पड़े रहने दो। …सर, अब हमे अफरोज को छोड़ देना चाहिये। …हाँ, अब हमे उसकी कोई जरुरत नहीं है। मै उसकी रिहाई का इंतजाम करवाता हूँ। …सर, एक नम्बर को ट्रेक और रिकार्ड करवाना है। …किसका नम्बर है? …ताहिर के पास से यह नम्बर मिला है। शायद उसके द्वारा हमे वलीउल्लाह तक पहुँचने का कोई सुराग मिल जाये। …मुझे वह नम्बर दो। मैने जल्दी से आफशाँ का फोन नम्बर उन्हें देकर कहा… सर, मै स्ट्रेटिजिक कमांड सेन्टर मे बैठ कर इस नम्बर को खुद मानीटर करना चाहता हूँ? …मेजर, आज यहाँ पर तुम्हारा रहना जरुरी है। पाकिस्तानी डेलीगेशन पठानकोट एयरबेस की जाँच करने के लिये आज यहाँ पहुँच रहा है। इतना बोल कर जनरल रंधावा अपने कमरे मे चले गये थे। मै अपने कमरे मे बैठ कर आफशाँ की डायरी खोल कर कोई सुराग तलाश करने मे जुट गया। उसकी डायरी मे बहुत से नाम, पते व नम्बर थे परन्तु सभी साफ्टवेयर कंपनियों से जुड़े हुए थे।

दो घंटे के बाद जनरल रंधावा ने फोन पर बताया कि उस नम्बर को डाल तो दिया है परन्तु वह नम्बर स्विच आफ पड़ा हुआ है। जैसे ही वह फोन एक्टिव मोड मे आयेगा कमांड सेन्टर तुम्हें तुरन्त खबर कर देंगें। इस बात का तो मुझे भी शक था। अब मै सिर्फ इंतजार कर सकता था। मेरी मानसिकता मे हर घड़ी बदलाव आ रहा था। जब वह रात को घर नहीं आयी थी तब मुझे उससे सहानुभुति हो रही थी। सुबह जब पता चला कि वह मेनका को लेकर चली गयी तब मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था। अब मुझे दोनो की फिक्र हो रही थी। मुझे विश्वास था कि मेनका को वह कभी भी किसी खतरे मे नहीं डाल सकती लेकिन फिर किस कारण उसने ऐसा कदम उठाया यह मेरी समझ से बाहर था। ऐसे ही बिना किसी उद्देशय के उसकी डायरी के पन्ने पलट रहा था कि एक मुलाकातों के विवरण के बीच डायरी के कोने मे एक मोबाईल नम्बर पेन्सिल से लिखा हुआ था। मेरा ध्यान उस ओर बिल्कुल नही जाता क्योंकि ऐसा तो बहुत सी जगह दिख रहा था। आफशाँ ने फोन पर बात करते हुए किसी का नम्बर लिया होगा जिसे उसने एक कोने मे जल्दी से नोट कर लिया था। इस नम्बर की ओर मेरा ध्यान अचानक आकृष्ट सिर्फ इस कारण हुआ था कि वह नम्बर मुझे रटा हुआ था। तबस्सुम का नम्बर उसे किसने दिया होगा?

एक पल के लिये मुझे ऐसा लगा कि मेरे जिस्म को 440 वोल्ट का झटका लगा था। पूरा जिस्म सिहर उठा था। तबस्सुम का नम्बर आफशाँ के पास कब और कैसे पहुँच गया था। मैने डायरी का एक-एक पन्ना देखना फिर से आरंभ कर दिया। पूरी डायरी मे और कहीं वह नम्बर दोबारा देखने को नहीं मिला था। मैने अपना फोन उठा कर वही नम्बर मिलाया… हैलो। अंजली की जानी पहचानी आवाज कान मे पड़ी… आप इस शुक्रवार को आ रहे है न कि एक बार फिर से कोई नया बहाना बनाने के लिये फोन किया है? …मै आ रहा हूँ। यही बताने के लिये फोन किया था। तुम्हारी कैसी तबियत है? …बिल्कुल फिट हूँ। यहाँ अम्मा मेरा ख्याल रखती है और कविता उपर और नीचे का काम संभाल रही है। अम्मा के कारण अब मुझे अम्मी की कमी भी महसूस नहीं होती। आपने यह दूसरा काम मेरे लिये सबसे अच्छा किया है। …पहला कौन सा काम था। तुम्हें मुजफराबाद से भगाने का? वह खिलखिला कर हँस कर बोली… मुझसे शादी करने का। याद करिये कि आप मुझे भगा कर नहीं लाये थे अपितु मै आपके साथ आयी थी। …अच्छा झांसी की रानी चलो मान लिया कि तुम मुझे भगा कर लायी थी। कुछ देर बात करने के बाद मैने फोन काट दिया था। मैने जिस उद्देश्य से बात की थी वह बात करने की मै हिम्मत नहीं जुटा सका था। मै फोन रख कर काठमांडू आने जाने की टिकिट कराने मे व्यस्त हो गया।

शाम को जनरल रंधावा ने बताया कि अफरोज के रिलीज के निर्देश दे दिये गये है। मैने डिटेन्शन सेन्टर मे फोन पर बात करके बता दिया कि कल सुबह उसे मै खुद लेने आ रहा हूँ। आफिस टाइम समाप्त हो गया था तो मै अब्दुल्लाह से मिलने उसके अस्पताल की ओर चला गया था। उसका परिवार उसके साथ बैठा हुआ था। मुझे देखते ही सब सावधान हो गये थे। दो सैनिक अभी भी वही पर तैनात थे। उसकी टांग अभी भी हवा मे लटकी हुई थी। शाहीन मेरे पास आकर बोली… भाईजान को कब तक छोड़ देंगें? …कुछ कहा नहीं जा सकता। कुछ देर के लिये आप सबको यहाँ से बाहर जाना पड़ेगा। मुझे अब्दुल्लाह से कुछ पूछताछ करनी है। दोनो सैनिक तुरन्त उन सबको बाहर ले गये थे।

…अब्दुल्लाह, आदिल को हमने कल पकड़ लिया है। अफरोज को भी सरकार ने छोड़ दिया है। यह तुम्हारे लिये अच्छी खबर है। अगर इसी तरह से तुम सहयोग करोगे तो तुम भी जल्दी छूट जाओगे क्योंकि तुमने अभी तक किसी ऐसे काम को यहाँ की धरती पर अंजाम नहीं दिया है जिसके कारण तुम्हें जेल जाना पड़े। यही सच है जो तुम्हें समझ मे आना चाहिये। मेरी बात सुन कर उसकी आँखों मे आशा की चमक आ गयी थी। …क्या पूछना चाहते हो? …इस पूरी साजिश मे फारुख मीरवायज की भुमिका क्या थी? फारुख का नाम आते ही अचानक वह सावधान हो गया था। मैने अपनी जेब से आफशाँ की तस्वीर निकाल कर उसके सामने करते हुए पूछा… उस रोज क्या यही लड़की है जो आदिल के साथ तुम्हारी बोट पर आयी थी? उसने फोटो को ध्यान से देख कर बोला… यही लड़की आदिल के साथ आयी थी। …क्या इनके साथ कोई और भी था? …नहीं यही दोनो थे। मैने आफशाँ की तस्वीर अपनी जेब मे रख कर कहा… हाँ तो बताओ कि फारुख मीरवायज की क्या भुमिका थी? जो भी बोलोगे वह सोच कर बोलना क्योंकि तुम्हारा यहाँ से छूटना इसी जवाब पर निर्भर करता है। वह कुछ देर के लिये चुप हो गया था।

…समीर, जमात-ए-इस्लामी की ओर से फारुख मीरवायज ने बहावलपुर के जिहाद काउन्सिल के इज्तिमे मे भाग लिया था। वह जब लौट कर आया तब उसने इस योजना को जमात के सामने रखा था। हिज्बुल के जाकिर मूसा और फारुख मीरवायज ने ही इस योजना को अमली जामा दिया था। उसी ने नेपाल और बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी के आफिस को हिज्बुल के लोगो को प्रशिक्षण देने के लिये राजी किया था। फारुख ही इसके लिये पैसो और असला बारुद का इंतजाम कर रहा था। फारुख के कहने पर ही जमात ने जैश, लश्कर, हरकत उल अंसार और हिज्बुल के लिये ढाका मे प्रशिक्षण का इंतजाम किया था। दुख्तरान-अल-हिन्द की लड़कियों को भी वहीं भेजा गया था। …दुख्तरान अल हिन्द की ओर से वहाँ कौन प्रशिक्षण का काम देख रहा था? …मंत्री युसुफजयी की बेटी मेहरीन ही सारा काम संभाल रही थी। …वह तो फारुख की बीवी है। …समीर, यह अफवाह है। मेहरीन ने किसी के साथ निकाह नहीं किया है। मैने उसकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोला… मेहरीन मेरे साथ बांग्लादेश मे साहिबा के नाम से रह रही थी। एक ही पल मे मुझे दुख्तारान-अल-हिन्द की कहानी समझ मे आ गयी थी। …तुम्हारे कहने का मतलब है कि इस सारी साजिश के पीछे फारुख और युसुफजयी का हाथ है? उसने सिर्फ अपना सिर हिला दिया था।

मै वहाँ से बाहर निकला तो हाजी मंसूर मेरे सामने आकर खड़े हो गये थे। …समीर, उसने सब कुछ बता दिया। …जी हाजी साहब। अगर वह ऐसे ही सहयोग करेगा तो जल्दी छोड़ दिया जाएगा। वह कुछ नहीं बोले और वापिस अपने परिवार के पास चले गये थे। मै वहाँ से निकला और अपने घर की ओर चल दिया था। आफशाँ के बारे मे पता चलते ही अब मुझे यकीन हो गया था कि वह मेरे साथ दोहरी जिंदगी गुजार रही थी। उसमे यह कब बदलाव आया इसके बारे मे मेरे लिये कुछ कहना मुश्किल था। मुझे अपने उपर गुस्सा आ रहा था। खिन्न मन से मैने अपने घर मे प्रवेश किया तो आयशा सामने पड़ गयी थी। उसे सुबह जल्दी तैयार होने के लिये कह कर मै अपने कमरे मे चला गया। अब यह कमरा मुझे काटने को दौड़ रहा था। वहाँ की हर वस्तु मुझे आफशाँ के झूठ, धोखा और फरेब की गवाही देती हुई लग रही थी। दिल के किसी कोने मे बेवफाई का एक दर्द भी महसूस कर रहा था। अपने सिर को झटक कर मै मन ही मन बोला कि तेरे साथ कैसी बेवफाई, तू कौनसा दूध का धुला हुआ है। मेरे लिये अब वहाँ बैठना मुश्किल हो गया था। 

मै जल्दी से उस कमरे से निकल कर मेनका के कमरे मे चला गया। उसके कमरे मे फिर भी एक सच्चायी थी कि वह मेरी बेटी थी। उसकी मोहब्बत मे कोई धोखा नहीं था। उसके बिस्तर पर लेट गया और उसको आफशाँ के चंगुल से निकालने के लिये सोचने लगा। मेनका के लिये आफशाँ उसकी अम्मी थी। अगर मैने उसे जबरदस्ती आफशाँ से दूर करने की कोशिश की तो मुझे यकीन था कि वह हर्गिज मेरा साथ नही देगी बल्कि मेरे खिलाफ ही विद्रोह कर देगी। मुझे घुटन महसूस हो रही थी। काफी देर तक सोचने के बाद भी जब कोई हल नहीं मिला तब सब कुछ किस्मत के उपर छोड़ कर मै वहीं सो गया था। बैचेनी के कारण रात मे कई बार नींद टूट गयी थी। सुबह जल्दी उठ कर मै तैयार होने चला गया और आठ बजे आयशा को लेकर मानेसर निकल गया था।

मानेसर मे अफरोज को बाहर आने मे ज्यादा समय नहीं लगा था। उसके रिलीज के आर्डर पहले ही हो चुके थे। दोनो भाई बहन एक दूसरे से मिल कर रोये और फिर जब शान्त हो गये तो मैने पूछा… अब अपने आप को इन लोगो से दूर रखना अफरोज। आयशा ने कहा… समीर, तुम हमे एयरपोर्ट छोड़ दो। उन दोनो लेकर मै एयरपोर्ट की ओर चल दिया था। उनको एयरपोर्ट पर छोड़ते हुए मैने पूछा… टिकिट का क्या किया? आयशा ने अफरोज की ओर देखते हुए कहा… अब्बू ने टिकिट करा दी है। उनसे विदा लेकर मै जैसे ही अपनी जीप मे बैठने के लिये बढ़ा कि तभी आयशा ने मुझे रोक कर कहा… समीर, मैने तुमसे आफशाँ और मेनका के बारे मे कुछ नहीं पूछा क्योंकि मै उसे बहुत अच्छे से जानती हूँ। उसकी कोई मजबूरी होगी जिसके कारण वह बिना बताये चली गयी है। तुम्हें मेनका के लिये फिक्र करने की जरुरत नहीं है क्योंकि मै जानती हूँ कि आफशाँ की जान उसमे बसती है। मेरी सलाह है कि उसे गलत समझने की भूल मत करना और मुझे लगता है कि इस वक्त उसे तुम्हारी हमदर्दी और मदद की जरुरत है। मैने चुपचाप उसकी बात सुन कर धीरे से कहा… वह एक बार मुझसे कहती तो सही। इतना बोल कर मै जीप मे बैठा और अपने आफिस की ओर निकल गया।

सारे रास्ते मै आयशा की बात के बारे मे सोच रहा था। आफिस मे प्रवेश करते ही मेरी पेशी अजीत सर के आफिस मे हो गयी थी। …ताहिर उस्मान अब्बासी के वकील ने उसके लिये उच्च न्यायालय मे अपील डाली है कि उसे सेना ने अकारण ही पकड़ लिया है। उसने तुम्हारे नाम से शिकायत दर्ज की है। अभी न्यायालय को उस अपील को सुनना बाकी है और उसके बाद ही वह कोई निर्णय लेंगें। उसने कुछ तुम्हें बताया? …सर, वह कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। …कोई बात नहीं। कोर्ट और कचहरी से कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि तुम फिलहाल सेना मे नहीं हो। जब तक वह तुम तक पहुँचेंगें तब की तब देखेंगें। …सर, मुझे कुछ दिन की छुट्टी चाहिये। अजीत सर ने मेरी ओर देख कर पूछा… घर पर सब खैरियत तो है? …सब कुछ ठीक है सर, बस मेरे कुछ निजि काम है। वह मुस्कुरा कर बोले… कब से छुट्टी पर जाना चाहते हो? …इस सोमवार से दो हफ्ते की छुट्टी चाहिये। …ठीक है, तुम छुट्टी के लिये एप्लाई कर दो। समीर बस एक बात का ख्याल रखना कि जरुरत पड़ने पर तुम्हें बुलाया भी जा सकता है। …यस सर। इतनी बात करके मै बाहर आ गया था।

आफिस से बाहर निकल कर जीप मे बैठते ही मैने थापा से कहा… घर चलो। कुछ देर के बाद घर के सामने पहुँच कर मेरी निगाह अन्दर चली गयी थी। सारा घर अंधेरे मे डूबा हुआ था। मकान मे प्रवेश करके पहले सारे घर को रौशन किया और फिर बाहर हाल मे आकर बैठ गया था। मेरा दिमाग आफशाँ मे लगा हुआ था। वह कहाँ जा सकती है? तबस्सुम का नम्बर आफशाँ की डायरी मे देख कर सब कुछ तहस-नहस होता हुआ लग रहा था। दिमाग मे हजारों ख्याल आ रहे थे जिसमे अधिकतर बुरे थे जिसके कारण मै किसी एक नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहा था। इसी पेशोपश मे कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला था। सपनो के ताने-बाने मे उलझ कर अचानक मै छ्टपटा कर उठ कर बैठ गया था। अभी सुबह नहीं हुई थी लेकिन रात का अंधियारा छंट चुका था। मै जल्दी से तैयार हुआ और कुछ सोच कर मानेसर की ओर निकल गया। छुट्टी पर जाने से पहले एक बार ताहिर उस्मान अब्बासी से मिलना चाहता था। एक घंटे के बाद मै उसके सामने बैठा हुआ था। …आज कैसे आना हुआ मेजर? उसकी आवाज मे आज वह विश्वास नहीं झलक रहा था जो उस दिन मैने देखा था। दो दिन की कैद मे उसके चेहरे की लाली की जगह पीलेपन ने ले ली थी। वह थका हुआ और तनाव मे लग रहा था। …ताहिर, मुझे पता है कि तुम्हारी डोर किसी के हाथ मे है। फारुख मीरवायज ने तुम्हें ऐसे चक्कर मे फँसा दिया है कि अगले बीस साल तुम्हें ऐसी या इससे भी बुरी जगह पर गुजारने पड़ेंगें। तुम सोच रहे होगे कि मै यह सब तुम पर दबाव बनाने के लिये कह रहा हूँ लेकिन ऐसा नहीं है। अब तक उसका ध्यान मुझ पर केन्द्रित हो गया था। 

…मुझे यकीन है कि तुम आप्रेशन खंजर के कर्ताधर्ता नहीं हो सकते लेकिन तुम्हारे कारण मेरी बीवी आफशाँ भी उस जाल मे फँस गयी है। वह तुम्हारी कंपनी के ऐसे संवेदनशील विभाग मे काम कर रही थी कि इस साजिश के कारण अब उस पर भी तुम्हारी मदद करने का चार्ज लग जाएगा। आफशाँ के बारे मे विश्वास से कह सकता हूँ कि वह जानते बूझते तो हर्गिज ऐसा काम नहीं कर सकती और अनजाने मे ही सही लेकिन वह भी ऐसे जघन्य अपराध का हिस्सा बन गयी है। तुम इतना जान लो कि फारुख मीरवायज आईएसआई का एजेन्ट जरुर है परन्तु वह हमारे लिये काम कर रहा था। इसका परिणाम है कि आप्रेशन खंजर के सभी मुख्य साजिशकर्ता इस वक्त या तो हमारी कैद मे है अथवा मारे गये है। सीमा पार बैठे हुए जनरल शरीफ ने इस्तीफा दे दिया है और जनरल मंसूर बाजवा को जबरदस्ती सेवानिवृत कर दिया गया है। जिहाद काउन्सिल का मुखिया जकीउर लखवी और पीरजादा इस वक्त कहीं छिपकर बैठे हुए है। तुम्हारी आढ़ मे छिप कर फारुख ने आईएसआई और हमारी सरकार को डबल क्रास किया है लेकिन इस साजिश मे उसका नाम औपचारिक रुप मे कहीं नहीं है। अब सिर्फ तुम ही उसकी साजिश का पर्दाफाश कर सकते हो लेकिन अगर तुम्हारे दिल मे कहीं इमां, तकवा जिहाद फि सबीलिल्लाह  की आरजू हिलोरें ले रही तो फिर कुछ मत बताना। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।

वह बड़े ध्यान से मेरी बात सुन रहा था। उसके कन्धे पर हाथ रख कर उठते हुए कहा… रहा आफशाँ का तो उसको तो मै कुछ भी करके इस झमेले से निकाल दूँगा। अगर ज्यादा परेशानी हुई तो उसको नेपाल के रास्ते से यहाँ से बाहर भिजवा दूंगा। तुम अपने बारे मे सोच कर देखो कि तुम यहाँ से कैसे बाहर निकलोगे? तुम्हारे वकील ने अपील लगायी है लेकिन रासुका मे यह अपील तुम्हारे किसी काम नहीं आयेगी। सेना ने हिरासत मे लिया है तो अगले पाँच साल तक तुम्हारा वकील अपना सिर पटक कर मर जायेगा लेकिन तुमसे मुलाकात नहीं कर सकेगा। उतने दिनों मे तो तुम्हारे खिलाफ इतने सुबूत इकठ्ठे हो जाएँगें कि हम अगर तुम्हें कानून के हवाले कर भी देंगें तो भी तुम बाहर नहीं निकल सकोगे। मै जो कहना चाहता था वह मैने कह दिया है। अब तुम्हें सोचना है कि आगे क्या करना है। अगर सब कुछ बताना चाहते हो तो खबर कर देना अन्यथा यह हमारी आखिरी मुलाकात है। खुदा हाफिज। इतना बोल कर मै चल दिया था। लोहे के बन्द दरवाजे पर मैने दस्तक दी तो बाहर खड़े गार्ड ने दरवाजा खोल दिया था।

…मेजर। एक मिनट ठहरो। मै रुक गया और मुड़ कर उसकी ओर देखा तो वह मेरी ओर बढ़ते हुए बोला…अगर मै सच बता दूंगा तो क्या मुझे छोड़ दिया जायेगा। …छोड़ना या नहीं छोड़ना तो सच सुनने के बाद ही कह सकता हूँ। हाँ इस बात की गारन्टी दे सकता हूँ कि तुम्हारे साथ सरकार और सेना की सहानुभुति होगी और वह अपनी ओर से लगाये हुए सारे चार्ज हटाने की पूरी कोशिश करेंगें। वह कुछ पल चुप रहा और फिर बोला… तो फिर बैठ जाओ। मै जो जानता हूँ वह सब बता देता हूँ। …ताहिर इसे रिकार्ड करना पड़ेगा जिससे यह साबित हो जाये कि तुमने अपनी इच्छा से सारी बात बतायी है। उसने अपना सिर हिला दिया था। डिटेन्शन रुम मे फोन लाने की मनाही थी तो पहले जनरल रंधावा से बात करके मैने अपना फोन अन्दर मंगवा लिया था। मैने अपने फोन को आन किया और ताहिर से पूछा… क्या मेरा शक सही है। उसने धीरे से अपनी गरदन हिला दी थी।

जैसे ही मेरा फोन नेटवर्क से जुड़ा तो मैने अपने फोन को उठाया कि तभी उसकी घंटी बज उठी थी। मैने स्क्रीन पर उभरे हुए नम्बर को देख कर तुरन्त स्पीकर आन करते हुए… हैलो। …मेजर, फोन क्यों बन्द कर रखा है। आज शाम को उसी काफी हाउस मे मिलते है। …मै तीन बजे के बाद नहीं मिल सकता क्योंकि मै बाहर जा रहा हूँ। …मेजर। …फारुख मेरी बात ध्यान से सुनो कि मिलने का समय और जगह मै तय करता हूँ तुम नही। …मेजर, आज समय और जगह सिर्फ मै तय करुँगा। वलीउल्लाह मेरे कब्जे मे है। तुम मेरा एक काम कर दो और मै वलीउल्लाह को तुम्हारे हवाले कर दूँगा। …फारुख तुम फिर सौदेबाजी पर उतर आये। बोलो क्या काम है? …मुझे पता चला है कि तुमने ताहिर उस्मान को हिरासत मे लिया है। …हाँ, तो क्या वह तुम्हारा आदमी है? …नहीं, उसका हैंडलर वलीउल्लाह है। अगर उसने मुँह खोल दिया तो वलीउल्लाह बेवजह मारा जाएगा जो तुम बिल्कुल भी नहीं चाहोगे। …क्यों वलीउल्लाह को तो वैसे भी मरना होगा। …मेजर, मुझे यकीन है कि वलीउल्लाह को देखने के बाद तुम उसे बचाने के लिये अपनी जान दाँव पर लगा दोगे। मै तो तुम्हारी भलाई की बात कर रहा हूँ। एक फाल्स फ्लैग आप्रेशन मे ताहिर का एन्काउन्टर कर दोगे तो वलीउल्लाह भी बच जायेगा और तुम्हें अपनी जान भी नहीं देनी पड़ेगी। ताहिर को मार दोगे तो वलीउल्लाह के साथ तुम्हें तुम्हारी बेटी भी फ्री मे मिल जाएगी। …तुम्हारी बात पर अब मुझे कोई विश्वास नहीं है। मेरी बेटी अपनी माँ के साथ है। …मेजर, उसकी माँ ही तो वलीउल्लाह है। …क्या बकते हो? …बिल्कुल मेजर, आफशाँ ही वलीउल्लाह है। …नामुम्किन। कोई नया पैंतरा इस्तेमाल करो। …मेजर, यही सच्चायी है। दोनो माँ और बेटी मेरे कब्जे मे है। एक जान के बदले मे दो जान दे रहा हूँ। तुम्हारे फायदे का सौदा है। ताहिर को ठिकाने लगा दो और अपनी बीवी और बच्ची को ले जाओ। मैने एक नजर ताहिर उस्मान पर डाली तो वह सब सुन कर सकते मे आ गया था।

…फारुख, अगर तुम जो कह रहे हो वह सच है तो यह सौदा भारत की धरती पर हर्गिज नहीं हो सकता। इस रविवार को आफशाँ और मेनका को लेकर काठमांडू पहुँच जाओ। मै ताहिर को लेकर वहीं पहुँच जाता हूँ। उन दोनो को मेरे हवाले कर दो और मै ताहिर को तुम्हारे हवाले कर दूंगा। उसके बाद उसके साथ तुम्हें जो करना है वह करो। मुझे मेरी बीवी और बच्ची सही सलामत चाहिये। …मेजर, यह सौदा इतनी दूर नहीं हो सकता। …फारुख, यह सौदा अब वहीं होगा जहाँ न तुम्हारी चलेगी और न मेरी चलेगी। अगर आफशाँ वलीउल्लाह है तो यह जगह तो अब वैसे भी उसके लिये सुरक्षित नहीं है। तुम उसे जरुर मेरे हवाले यहाँ कर दोगे लेकिन हमेशा के लिये यह तलवार मेरे सिर पर लटकती रहेगी। इसलिये अब वह भारत के बाहर ही सुरक्षित रह सकती है। रविवार को अब फोन करना तब सौदे का समय और जगह का निर्णय कर लेंगें। बस इतना ख्याल रखना कि अगर उन दोनो मे से किसी को हल्की सी खरोंच भी लगी तो फारुख तुम्हारे लिये यह धरती छोटी पड़ जायेगी। यह बोल कर मैने फोन काट दिया था।

मैने उसकी ओर देख कहा… सुन लिया ताहिर उस्मान अब्बासी कि तुम्हारे मालिक ने मुझे तुम्हारे नाम की सुपारी दी है और उसके बदले मे वह मेरी बीवी और बच्ची को मेरे हवाले कर देगा। वह सिर झुकाये बैठा हुआ था। अचानक उसने मेरी ओर देख कर कहा… तो अपनी बीवी और बच्ची को बचाने के लिये अब तुम मुझे उसके हवाले कर दोगे? मैने मुस्कुरा कर कहा… मेरा ऐसा कोई विचार नहीं है। वैसे भी यहाँ से मै तुम्हें बिना इजाजत के नहीं निकाल सकता तो काठमांडू कैसे ले जा सकता हूँ। तुम इस वक्त सेना की कैद मे हो और इसीलिये सुरक्षित भी हो। अपनी बीवी और बच्ची को बचाने के लिये मै खुद सक्षम हूँ और इसके लिये मुझे तुम्हारी जरुरत नहीं है। जरा सोच कर देखो कि जब तुम जैसे लोग जेल की यातना भुगत रहे होंगें तो उस वक्त फारुख हमारी पकड़ से दूर जिंदगी के मजे लूट रहा होगा। मेरी बात सुन कर एकाएक उसके बुझे हुए चेहरे पर नफरत और शर्म की लकीरें खिंच गयी थी। अचानक ताहिर मेरा हाथ पकड़ कर बोला… मेजर, आफशाँ और मै हालात के शिकार है। फारुख हम दोनो को ब्लैकमेल कर रहा था। मैने अपने फोन की रिकार्डिंग आन करके एक बार जनरल रंधावा से कन्फर्म किया और फिर उसके सामने फोन रख कर बोलने का इशारा किया। कुछ पल रुक कर उसने बोलना आरंभ कर दिया था।

 

रावलपिंडीं

एक अज्ञात जगह पर कुछ व्यक्तियों के बीच एक गोपनीय मीटिंग चल रही थी। उनमे से दो व्यक्तियों के जिस्म पर खाकी वर्दी थी। बाकी तीन लोग सादे पठानी लिबास मे थे। एक क्षण के लिये रुक कर वर्दीधारी ने सभी पर नजर डाल कर कहा… आप्रेशन खंजर का अंत हो गया है। जनरल शरीफ और जनरल बाजवा कल रात को पाकिस्तान छोड़ कर चुपचाप निकल गये है। जमात-ए-इस्लामी का अध्यक्ष मकबूल बट भी कश्मीर से गायब हो गया है। इन सभी घटनाओं के कारण वलीउल्लाह भी अब जल्द ही सबकी नजरों मे आ जाएगा। इन सभी हालात से निबटने के लिये इस मीटिंग को रखा गया है। दूसरा वर्दीधारी तुरन्त बोला… जनरल साहब मेरी बात वाशिंग्टन से हुई है। उनका सुझाव है कि फारुख मीरवायज और मकबूल बट अब हमारे नेटवर्क के लिये भार बन गये है। पीरजादा जो अब तक उनकी बात चुपचाप सुन रहा था वह तुरन्त तिलमिला कर बोला… आप फारुख की हत्या नहीं कर सकते। …बड़े मियाँ आप समझने की कोशिश नहीं कर रहे है। …जनरल साहब मै आपकी बात समझ रहा हूँ। पहले आप लोग सुनहरे भविष्य की कामना मे साजिशें रचते है। जब मामला उल्टा पड़ गया तो अपना हाथ झाड़ने के लिये अपने ही लोगों को मरने के लिये वहाँ छोड़ देते है। तभी एक वर्दीधारी व्यक्ति जो काफी समय से चुप था उसने वृद्ध को बीच मे टोका… बड़े मियाँ अभी तक मै आपके सामने सच्चायी रखने से झिझक रहा था। सबकी नजरें उस पर जम गयी थी। वह उठ कर खड़ा होते हुए बोला… सीआईए ने फारुख की काल रिकार्ड्स और लोकेशन का विवरण देकर कर उसके बारे मे विस्तृत जानकारी हमे दी है। फारुख के कारण हमारा आप्रेशन खंजर विफल हो गया है। …तुम और तुम्हारी सीआईए झूठ बोल रही है। मेरा बेटा ऐसा हर्गिज नहीं कर सकता। पीरजादा मीरवायज अचानक उठ कर खड़ा हो गया और अपने साथ बैठे हुए लोगों की ओर देख कर बोला… मै तुम्हारे फौजी इदारे की ईंट से ईंट बजा दूँगा। अबकी बार वह वर्दीधारी घुर्रा कर बोला… बैठ जा बुड्डे और मेरी बात ध्यान से सुन क्योंकि तूने फौजी इदारे पर तंज कसा है। हम चाहे तो तेरी खाल मे अभी भूसा भर कर तेरी मस्जिद के मुख्य द्वार पर लटका सकते है। जिन तंजीमो पर तुझे गुमान है उनमे से एक भी आदमी तेरे लिये खड़ा नहीं होगा। तुम लोग हमारे फेंकें हुए टुकड़ो पर पलने वाले कुत्ते हो इसलिये भूल कर भी मालिक को काटने की कोशिश मत करना अन्यथा तुम्हारी सारी नस्ल साफ हो जएगी। तेरी बेटी हया से हमे जानकारी मिली है कि आजकल तेरा बेटा भारतीय सेना के ब्रिगेडियर सुरिंदर सिंह चीमा के इशारों पर नाच रहा है। तेरे बेटे की कहानी का अंत होने का समय तय हो गया है। इतना बोल कर वह चुप हो गया लेकिन कमरे मे मौत की शांति छा गयी थी।

कुछ देर के बाद पठानी सूट मे एक वृद्ध बोला… जनरल साहिब आप अब क्या करने की सोच रहे है? …मै सभी तंजीमों को समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि मामला हाथ से निकल गया है। ब्रिगेडियर शुजाल बेग ने फौजी इदारे मे ऐसी फूट डाल दी है कि इसको संभालना नामुम्किन हो गया है। शुजाल बेग के जरिये हया ने हम तक फारुख की गद्दारी की सूचना पहुँचाई थी। इसी कारण हम पीरजादा मीरवायज की बेटी हया से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे है। इसमे हमे पीरजादा की मदद चाहिये। इसी प्रकार लखवी साहब हम चाहते है कि आप अपनी बेटी नीलोफर से संपर्क साधने की कोशिश किजिये। हमने अपने कश्मीर स्थित स्लीपर सेल को भी इसी काम के लिये सक्रिय कर दिया है। उन दोनो को आप्रेशन खंजर से संबन्धित सभी लोगों की जानकारी है। इस असफल आप्रेशन को समेटने के लिये हमे उनकी मदद चाहिये। क्या इस काम मे आप हमारी सहायता करेंगें? वहाँ बैठे हुए सभी लोग एक दूसरे को देखने लगे परन्तु किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।

कुछ देर सोचने के बाद पीरजादा मीरवायज बोला… जनरल साहब तंजीमो की ओर से मै सिर्फ इतना वायदा कर सकता हूँ कि हम लोग मिल कर इसको समेटने मे आपकी जरुर मदद करेंगें। मुझे आपकी ओर से एक गारन्टी चाहिये कि आपके लश्कर हमसे बिना पूछे सीमा पार कुछ नहीं करेंगें। सबने अपनी सहमति मे सिर हिला कर दर्शा दी थी।