गहरी चाल-38
मिनी बस मे बैठे हुए
सभी की नजर हम पर जम गयी थी। उसको वहाँ देख कर जिंदगी मे पहली बार उस पर गर्जा… तुम
यहाँ क्या कर रही हो? चलो बस से नीचे उतरो। वह हैरानी से मेरी ओर देखती रह गयी थी।
मैने उसका हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए आगे बढ़ा तो मेरे पीछे खिंचते हुए वह बोली… समीर,
तुम्हें कोई गलतफहमी हो गयी है। यह हमारी कंपनी के मालिक ताहिर साहब है। तुम गलती कर
रहे हो। अचानक ताहिर की आवाज मेरे कान मे पड़ी… आफशाँ, यह कौन है? वह मुड़ कर बोली… सर,
यह मेरे खाविन्द है, मेजर समीर बट। वह जल्दी से बोला… तुम जाओ आफशाँ। लीसा को फोन पर
सूचना दे देना कि वह तुरन्त वकील का इंतजाम करें। …नहीं सर मै आपको छोड़ कर कहीं नहीं
जा रही। तभी जनरल रंधावा का फोन आ गया। मैने उनको बात करने दिया और खुद जनरल रंधावा
से बात करने लगा… हैलो। …क्या हुआ? …सर, ताहिर उर्फ आदिल हमारे कब्जे मे आ गया है।
…गुड। …सर, हिज्बुल के आठ गाजी भी कब्जे मे आ गये है। चार अभी भी फरार है। …इसको डिटेन्शन
सेन्टर पहुँचा दो। …यस सर। मैने आफशाँ का हाथ पकड़ा और उसे जबरदस्ती बस से उतार कर कहा…
टैक्सी लेकर घर चली जाना। उसे वही पार्किंग मे छोड़ कर मै बस मे बैठ गया और ड्राईवर
को चलने का इशारा किया। हमारी मिनी बस आगे बढ़ गयी थी।
मै ताहिर के पास बैठते
हुए बोला… तुम्हारे साथ ही आप्रेशन खंजर का अंत हो गया। वह बड़े विश्वास से बोला… अच्छा।
चलो देखते है। …तुम वलीउल्लाह के हैंडलर हो तो क्या उसके बारे मे कुछ बताना चाहोगे
या थर्ड डिग्री के बाद ही मुँह खोलोगे? वह मेरी ओर देख कर बोला… मुझे डरा रहे हो?
…मै डरा नहीं रहा लेकिन सच्चायी बोल रहा हूँ। …मेजर तुम मेरे साथ कुछ नहीं कर सकोगे।
बहुत जल्दी तुम मुझे खुद यहाँ से रिहा करोगे। यह जितना जल्दी जान लोगे तो तुम्हारे
लिये अच्छा होगा। …आदिल मियाँ, यह अच्छा ही हुआ कि तुम पकड़े गये क्योंकि तुम्हारे जैसे
बहुत से लोग तो अपनी हूरों के साथ इस वक्त मजे कर रहे है। जो बच गये वह अस्पताल मे
पड़े हुए है। वह चार जिहादी कहाँ है? …उनसे भी जल्दी मिलोगे। यह बोल कर वह आराम से सीट
पर पीठ टिका कर बैठ गया था। मै उसके आत्मविश्वास को देख कर एक पल के लिये असहज हो गया
था। मेरा दिमाग मे उन चार जिहादियों की ओर चला गया था कि वह कोई बेजाह हरकत न कर दें।
मानेसर तक मै इसी तनाव मे रहा लेकिन जैसे ही मिनी बस ने एनएसजी के कैंम्पस का मुख्य
द्वार पार किया तो मैने चैन की सांस लेकर कहा… आदिल मियाँ अब काफी दिन तुम्हें यहीं
रहना है तो आदत डाल लेना।
अगले दस मिनट के बाद
मैने आदिल को पहले अफरोज के पास उसकी शिनाख्त कराने के लिये ले गया था। …दूल्हा भाई,
आपके कारण यह मुझे श्रीनगर से उठा लाये थे। उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मै उसे उसके
सेल मे छोड़ कर वापिस आकर अफरोज से मिला… अफरोज, एक दो दिन मे अब तुम्हें छोड़ देंगें।
उसे यह बता कर मै बाहर आ गया था। उन आठ हिज्बुल के जिहादियों को दूसरी जगह रख दिया
गया था। वापिस लौटते हुए काफी देर हो गयी थी। जब तक घर पहुँचा तब तक आफशाँ घर नहीं
पहुँची थी। मैने उसे फोन लगाया तो उसने घंटी बजते ही मेरा फोन काट दिया था।
…आयशा, आज हमने ताहिर
को पकड़ लिया है। अफरोज अब जल्दी छूट जाएगा। …समीर, आफशाँ अभी तक नहीं आयी क्या बात
है? उसे सारी कहानी सुना कर मैने कहा… वह नाराज है। कुछ देर मे आ जाएगी। यह कहते हुए
मै कपड़े बदलने चला गया था। मैने आधी रात तक उसका इंतजार किया। इसी बीच मैने कई बार
फोन पर बात करने की कोशिश की परन्तु उसका फोन स्विच आफ दिखा रहा था। आखिरकार मैने एक
बार फिर से कपड़े बदले और अपनी जीप लेकर नौसेना भवन की ओर चल दिया। आफशाँ की नाराजगी
मै समझ सकता था। उसे बस मे देख कर मुझे गहरा धक्का लगा था। वह समय ऐसा नहीं था कि मै
उसे कुछ सफाई देता इसलिए उसे पार्किंग मे छोड़ कर मै उनके साथ चला गया था। उसके नहीं
आने के कारण मुझे अब चिन्ता हो रही थी। रात को दो बजे जब मैने नौसेना भवन मे कदम रखा
तो वहाँ पर दस तरह के सावलों का जवाब देना पड़ गया था।
उसके हाल मे रात की
शिफ्ट चल रही थी। उसका आफिस अंधेरे मे डूबा हुआ था। मैने कुछ लोगों से आफशाँ के बारे
मे पूछा परन्तु किसी ने भी उसे नहीं देखा था। उसकी मेज पर रखी हुई डायरी को
अपनी जेब के हवाले करके मै वापिस अपने घर की ओर चल दिया। मै अपने बेडरुम मे काफी देर तक
आफशाँ के बारे मे सोचता रहा था। जब तेज नींद का झोंका आया तो मेरी आंख लग गयी। सुबह
देर से उठा और अपने कमरे से बाहर निकला तो आयशा से सामना हो गया। …आफशाँ नहीं लौटी?
…नहीं। मै चाय पीने बैठ गया। …मेनका कहाँ है? …वह स्कूल गयी है। मै जल्दी से तैयार
होकर एक बार फिर से नौसेना भवन की ओर चला गया था। उस हाल मे कदम रखते ही मेरी नजर आफशाँ
के केबिन की ओर चली गयी तो केबिन की लाईट जली देख कर एक उम्मीद की किरण दिखी।
मैने उसके केबिन का दरवाजा खोल कर अन्दर झांक कर देखा तो एक अनजान चेहरा आफशाँ की
कुर्सी पर बैठा हुआ था। उसके सामने काले कोट पहने पाँच वकील बैठे हुए थे। अचानक उसकी
नजर मुझ पर पड़ी तो वह बोला… अभी नहीं। मैने दरवाजा बन्द किया और बाहर की ओर चल दिया।
…आफशाँ कहाँ जा सकती
है? यह सवाल मै अपने आप से बार-बार पूछते हुए अपनी जीप के पास पहुँच गया था। अचानक
मेरे दिमाग मे एक विचार कौंधा तो मै फटाफट जीप मे बैठते हुए थापा से बोला… मेनका के
स्कूल चलो। थोड़ी देर मे मेनका के स्कूल की हेडमिस्ट्रेस के सामने बैठा हुआ था। चपरासी
ने आकर बताया कि आज मेनका स्कूल नहीं आयी है। …यह कैसे मुम्किन है। मैने खुद उसे
सुबह स्कूल बस मे बैठते हुए देखा था। हेडमिस्ट्रेस ने उसकी स्कूल बस के ड्राइवर और
कंडक्टर दोनो को बुलवा लिया था। थोड़ी देर के बाद दोनो मेरे सामने खड़े हुए थे। …क्या
मेनका नाम की लड़की को आपने स्कूल बस मे आज बिठाया था। कुछ सोच कर मेरे मकान की लोकेशन
के बारे मे पूछ कर कंडक्टर जल्दी से बोला… वह स्कूल बस मे बैठी जरुर थी परन्तु अगले ही स्टाप
पर उसकी मम्मी ने उसको बस से उतार लिया था। वह अपने साथ मेनका को लेकर चली गयी थी।
हेडमिस्ट्रेस से माफी मांग कर मै स्कूल से बाहर निकलते हुए सोच रहा था कि आफशाँ ने
क्या सोच कर ऐसा किया होगा? यह बात मेरी समझ से बाहर थी। यह उसकी तारिक के प्रति वफादारी
थी या कोई और खास बात उसके पीछे थी। इतने साल साथ रहने के बावजूद मै आफशाँ को जानते
हुए भी नहीं जान पाया था। अपने आफिस की ओर जाते हुए मै सारे रास्ते इसी के बारे मे
सोचते हुए अपने आप को धिक्कार रहा था।
आफिस पहुँचते ही जनरल
रंधावा से मुलाकात हो गयी। …सर, उसको हमने डिटेन्शन मे रख दिया है। …उसने कुछ बताया?
…सर, वह इतनी आसानी से वलीउल्लाह के बारे मे कुछ नहीं बतायेगा। …मेजर, उसे कुछ दिन
वहीं पड़े रहने दो। …सर, अब हमे अफरोज को छोड़ देना चाहिये। …हाँ, अब हमे उसकी कोई जरुरत
नहीं है। मै उसकी रिहाई का इंतजाम करवाता हूँ। …सर, एक नम्बर को ट्रेक और रिकार्ड करवाना
है। …किसका नम्बर है? …ताहिर के पास से यह नम्बर मिला है। शायद उसके द्वारा हमे वलीउल्लाह
तक पहुँचने का कोई सुराग मिल जाये। …मुझे वह नम्बर दो। मैने जल्दी से आफशाँ का फोन
नम्बर उन्हें देकर कहा… सर, मै स्ट्रेटिजिक कमांड सेन्टर मे बैठ कर इस नम्बर को खुद
मानीटर करना चाहता हूँ? …मेजर, आज यहाँ पर तुम्हारा रहना जरुरी है। पाकिस्तानी डेलीगेशन
पठानकोट एयरबेस की जाँच करने के लिये आज यहाँ पहुँच रहा है। इतना बोल कर जनरल रंधावा अपने कमरे
मे चले गये थे। मै अपने कमरे मे बैठ कर आफशाँ की डायरी खोल कर कोई सुराग तलाश करने
मे जुट गया। उसकी डायरी मे बहुत से नाम, पते व नम्बर थे परन्तु सभी साफ्टवेयर कंपनियों
से जुड़े हुए थे।
दो घंटे के बाद जनरल
रंधावा ने फोन पर बताया कि उस नम्बर को डाल तो दिया है परन्तु वह नम्बर स्विच आफ पड़ा
हुआ है। जैसे ही वह फोन एक्टिव मोड मे आयेगा कमांड सेन्टर तुम्हें तुरन्त खबर कर देंगें।
इस बात का तो मुझे भी शक था। अब मै सिर्फ इंतजार कर सकता था। मेरी मानसिकता मे हर घड़ी
बदलाव आ रहा था। जब वह रात को घर नहीं आयी थी तब मुझे उससे सहानुभुति हो रही थी। सुबह
जब पता चला कि वह मेनका को लेकर चली गयी तब मुझे उस पर गुस्सा आ रहा था। अब मुझे दोनो
की फिक्र हो रही थी। मुझे विश्वास था कि मेनका को वह कभी भी किसी खतरे मे नहीं डाल
सकती लेकिन फिर किस कारण उसने ऐसा कदम उठाया यह मेरी समझ से बाहर था। ऐसे ही बिना किसी
उद्देशय के उसकी डायरी के पन्ने पलट रहा था कि एक मुलाकातों के विवरण के बीच डायरी
के कोने मे एक मोबाईल नम्बर पेन्सिल से लिखा हुआ था। मेरा ध्यान उस ओर बिल्कुल नही
जाता क्योंकि ऐसा तो बहुत सी जगह दिख रहा था। आफशाँ ने फोन पर बात करते हुए किसी का
नम्बर लिया होगा जिसे उसने एक कोने मे जल्दी से नोट कर लिया था। इस नम्बर की ओर मेरा
ध्यान अचानक आकृष्ट सिर्फ इस कारण हुआ था कि वह नम्बर मुझे रटा हुआ था। तबस्सुम का
नम्बर उसे किसने दिया होगा?
एक पल के लिये मुझे
ऐसा लगा कि मेरे जिस्म को 440 वोल्ट का झटका लगा था। पूरा जिस्म सिहर उठा था। तबस्सुम
का नम्बर आफशाँ के पास कब और कैसे पहुँच गया था। मैने डायरी का एक-एक पन्ना देखना फिर
से आरंभ कर दिया। पूरी डायरी मे और कहीं वह नम्बर दोबारा देखने को नहीं मिला था।
मैने अपना फोन उठा कर वही नम्बर मिलाया… हैलो। अंजली की जानी पहचानी आवाज कान मे पड़ी…
आप इस शुक्रवार को आ रहे है न कि एक बार फिर से कोई नया बहाना बनाने के लिये फोन
किया है? …मै आ रहा हूँ। यही बताने के लिये फोन किया था। तुम्हारी कैसी तबियत है?
…बिल्कुल फिट हूँ। यहाँ अम्मा मेरा ख्याल रखती है और कविता उपर और नीचे का काम संभाल
रही है। अम्मा के कारण अब मुझे अम्मी की कमी भी महसूस नहीं होती। आपने यह दूसरा काम मेरे
लिये सबसे अच्छा किया है। …पहला कौन सा काम था। तुम्हें मुजफराबाद से भगाने का? वह
खिलखिला कर हँस कर बोली… मुझसे शादी करने का। याद करिये कि आप मुझे भगा कर नहीं लाये
थे अपितु मै आपके साथ आयी थी। …अच्छा झांसी की रानी चलो मान लिया कि तुम मुझे भगा कर
लायी थी। कुछ देर बात करने के बाद मैने फोन काट दिया था। मैने जिस उद्देश्य से बात
की थी वह बात करने की मै हिम्मत नहीं जुटा सका था। मै फोन रख कर काठमांडू आने जाने की
टिकिट कराने मे व्यस्त हो गया।
शाम को जनरल रंधावा
ने बताया कि अफरोज के रिलीज के निर्देश दे दिये गये है। मैने डिटेन्शन सेन्टर मे फोन
पर बात करके बता दिया कि कल सुबह उसे मै खुद लेने आ रहा हूँ। आफिस टाइम समाप्त हो गया
था तो मै अब्दुल्लाह से मिलने उसके अस्पताल की ओर चला गया था। उसका परिवार उसके साथ
बैठा हुआ था। मुझे देखते ही सब सावधान हो गये थे। दो सैनिक अभी भी वही पर तैनात थे।
उसकी टांग अभी भी हवा मे लटकी हुई थी। शाहीन मेरे पास आकर बोली… भाईजान को कब तक छोड़
देंगें? …कुछ कहा नहीं जा सकता। कुछ देर के लिये आप सबको यहाँ से बाहर जाना पड़ेगा।
मुझे अब्दुल्लाह से कुछ पूछताछ करनी है। दोनो सैनिक तुरन्त उन सबको बाहर ले गये थे।
…अब्दुल्लाह, आदिल
को हमने कल पकड़ लिया है। अफरोज को भी सरकार ने छोड़ दिया है। यह तुम्हारे लिये अच्छी
खबर है। अगर इसी तरह से तुम सहयोग करोगे तो तुम भी जल्दी छूट जाओगे क्योंकि तुमने अभी
तक किसी ऐसे काम को यहाँ की धरती पर अंजाम नहीं दिया है जिसके कारण तुम्हें जेल जाना
पड़े। यही सच है जो तुम्हें समझ मे आना चाहिये। मेरी बात सुन कर उसकी आँखों मे आशा की
चमक आ गयी थी। …क्या पूछना चाहते हो? …इस पूरी साजिश मे फारुख मीरवायज की भुमिका क्या
थी? फारुख का नाम आते ही अचानक वह सावधान हो गया था। मैने अपनी जेब से आफशाँ की तस्वीर
निकाल कर उसके सामने करते हुए पूछा… उस रोज क्या यही लड़की है जो आदिल के साथ तुम्हारी बोट
पर आयी थी? उसने फोटो को ध्यान से देख कर बोला… यही लड़की आदिल के साथ आयी
थी। …क्या इनके साथ कोई और भी था? …नहीं यही दोनो थे। मैने आफशाँ की तस्वीर अपनी जेब
मे रख कर कहा… हाँ तो बताओ कि फारुख मीरवायज की क्या भुमिका थी? जो भी बोलोगे वह सोच
कर बोलना क्योंकि तुम्हारा यहाँ से छूटना इसी जवाब पर निर्भर करता है। वह कुछ देर के
लिये चुप हो गया था।
…समीर, जमात-ए-इस्लामी
की ओर से फारुख मीरवायज ने बहावलपुर के जिहाद काउन्सिल के इज्तिमे मे भाग लिया था।
वह जब लौट कर आया तब उसने इस योजना को जमात के सामने रखा था। हिज्बुल के जाकिर मूसा
और फारुख मीरवायज ने ही इस योजना को अमली जामा दिया था। उसी ने नेपाल और बांग्लादेश
की जमात-ए-इस्लामी के आफिस को हिज्बुल के लोगो को प्रशिक्षण देने के लिये राजी किया था। फारुख
ही इसके लिये पैसो और असला बारुद का इंतजाम कर रहा था। फारुख के कहने पर ही जमात ने
जैश, लश्कर, हरकत उल अंसार और हिज्बुल के लिये ढाका मे प्रशिक्षण का इंतजाम किया था।
दुख्तरान-अल-हिन्द की लड़कियों को भी वहीं भेजा गया था। …दुख्तरान अल हिन्द की ओर से
वहाँ कौन प्रशिक्षण का काम देख रहा था? …मंत्री युसुफजयी की बेटी मेहरीन ही सारा काम
संभाल रही थी। …वह तो फारुख की बीवी है। …समीर, यह अफवाह है। मेहरीन ने किसी के साथ
निकाह नहीं किया है। मैने उसकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोला… मेहरीन मेरे साथ बांग्लादेश
मे साहिबा के नाम से रह रही थी। एक ही पल मे मुझे दुख्तारान-अल-हिन्द की कहानी समझ
मे आ गयी थी। …तुम्हारे कहने का मतलब है कि इस सारी साजिश के पीछे फारुख और युसुफजयी
का हाथ है? उसने सिर्फ अपना सिर हिला दिया था।
मै वहाँ से बाहर निकला
तो हाजी मंसूर मेरे सामने आकर खड़े हो गये थे। …समीर, उसने सब कुछ बता दिया। …जी हाजी
साहब। अगर वह ऐसे ही सहयोग करेगा तो जल्दी छोड़ दिया जाएगा। वह कुछ नहीं बोले और वापिस
अपने परिवार के पास चले गये थे। मै वहाँ से निकला और अपने घर की ओर चल दिया था। आफशाँ
के बारे मे पता चलते ही अब मुझे यकीन हो गया था कि वह मेरे साथ दोहरी जिंदगी गुजार
रही थी। उसमे यह कब बदलाव आया इसके बारे मे मेरे लिये कुछ कहना मुश्किल था। मुझे अपने उपर
गुस्सा आ रहा था। खिन्न मन से मैने अपने घर मे प्रवेश किया तो आयशा सामने पड़ गयी थी।
उसे सुबह जल्दी तैयार होने के लिये कह कर मै अपने कमरे मे चला गया। अब यह कमरा मुझे
काटने को दौड़ रहा था। वहाँ की हर वस्तु मुझे आफशाँ के झूठ, धोखा और फरेब की गवाही देती
हुई लग रही थी। दिल के किसी कोने मे बेवफाई का एक दर्द भी महसूस कर रहा था। अपने सिर
को झटक कर मै मन ही मन बोला कि तेरे साथ कैसी बेवफाई, तू कौनसा दूध का धुला हुआ है। मेरे
लिये अब वहाँ बैठना मुश्किल हो गया था।
मै जल्दी से उस कमरे
से निकल कर मेनका के कमरे मे चला गया। उसके कमरे मे फिर भी एक सच्चायी थी कि वह मेरी
बेटी थी। उसकी मोहब्बत मे कोई धोखा नहीं था। उसके बिस्तर पर लेट गया और उसको आफशाँ
के चंगुल से निकालने के लिये सोचने लगा। मेनका के लिये आफशाँ उसकी अम्मी थी। अगर मैने
उसे जबरदस्ती आफशाँ से दूर करने की कोशिश की तो मुझे यकीन था कि वह हर्गिज मेरा साथ
नही देगी बल्कि मेरे खिलाफ ही विद्रोह कर देगी। मुझे घुटन महसूस हो रही थी। काफी देर
तक सोचने के बाद भी जब कोई हल नहीं मिला तब सब कुछ किस्मत के उपर छोड़ कर मै वहीं सो
गया था। बैचेनी के कारण रात मे कई बार नींद टूट गयी थी। सुबह जल्दी उठ कर मै तैयार
होने चला गया और आठ बजे आयशा को लेकर मानेसर निकल गया था।
मानेसर मे अफरोज को
बाहर आने मे ज्यादा समय नहीं लगा था। उसके रिलीज के आर्डर पहले ही हो चुके थे। दोनो
भाई बहन एक दूसरे से मिल कर रोये और फिर जब शान्त हो गये तो मैने पूछा… अब अपने आप
को इन लोगो से दूर रखना अफरोज। आयशा ने कहा… समीर, तुम हमे एयरपोर्ट छोड़ दो। उन दोनो
लेकर मै एयरपोर्ट की ओर चल दिया था। उनको एयरपोर्ट पर छोड़ते हुए मैने पूछा… टिकिट का
क्या किया? आयशा ने अफरोज की ओर देखते हुए कहा… अब्बू ने टिकिट करा दी है। उनसे विदा
लेकर मै जैसे ही अपनी जीप मे बैठने के लिये बढ़ा कि तभी आयशा ने मुझे रोक कर कहा… समीर,
मैने तुमसे आफशाँ और मेनका के बारे मे कुछ नहीं पूछा क्योंकि मै उसे बहुत अच्छे से
जानती हूँ। उसकी कोई मजबूरी होगी जिसके कारण वह बिना बताये चली गयी है। तुम्हें मेनका
के लिये फिक्र करने की जरुरत नहीं है क्योंकि मै जानती हूँ कि आफशाँ की जान उसमे बसती
है। मेरी सलाह है कि उसे गलत समझने की भूल मत करना और मुझे लगता है कि इस वक्त उसे
तुम्हारी हमदर्दी और मदद की जरुरत है। मैने चुपचाप उसकी बात सुन कर धीरे से कहा… वह
एक बार मुझसे कहती तो सही। इतना बोल कर मै जीप मे बैठा और अपने आफिस की ओर निकल गया।
सारे रास्ते मै आयशा
की बात के बारे मे सोच रहा था। आफिस मे प्रवेश करते ही मेरी पेशी अजीत सर के आफिस मे
हो गयी थी। …ताहिर उस्मान अब्बासी के वकील ने उसके लिये उच्च न्यायालय मे अपील डाली
है कि उसे सेना ने अकारण ही पकड़ लिया है। उसने तुम्हारे नाम से शिकायत दर्ज की है।
अभी न्यायालय को उस अपील को सुनना बाकी है और उसके बाद ही वह कोई निर्णय लेंगें। उसने
कुछ तुम्हें बताया? …सर, वह कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। …कोई बात नहीं। कोर्ट और
कचहरी से कुछ हासिल नहीं होगा क्योंकि तुम फिलहाल सेना मे नहीं हो। जब तक वह तुम तक
पहुँचेंगें तब की तब देखेंगें। …सर, मुझे कुछ दिन की छुट्टी चाहिये। अजीत सर ने मेरी
ओर देख कर पूछा… घर पर सब खैरियत तो है? …सब कुछ ठीक है सर, बस मेरे कुछ निजि काम है।
वह मुस्कुरा कर बोले… कब से छुट्टी पर जाना चाहते हो? …इस सोमवार से दो हफ्ते की छुट्टी
चाहिये। …ठीक है, तुम छुट्टी के लिये एप्लाई कर दो। समीर बस एक बात का ख्याल रखना कि
जरुरत पड़ने पर तुम्हें बुलाया भी जा सकता है। …यस सर। इतनी बात करके मै बाहर आ गया
था।
आफिस से बाहर निकल
कर जीप मे बैठते ही मैने थापा से कहा… घर चलो। कुछ देर के बाद घर के सामने पहुँच कर
मेरी निगाह अन्दर चली गयी थी। सारा घर अंधेरे मे डूबा हुआ था। मकान मे प्रवेश करके
पहले सारे घर को रौशन किया और फिर बाहर हाल मे आकर बैठ गया था। मेरा दिमाग आफशाँ मे
लगा हुआ था। वह कहाँ जा सकती है? तबस्सुम का नम्बर आफशाँ की डायरी मे देख कर सब कुछ
तहस-नहस होता हुआ लग रहा था। दिमाग मे हजारों ख्याल आ रहे थे जिसमे अधिकतर बुरे थे
जिसके कारण मै किसी एक नतीजे पर नहीं पहुँच पा रहा था। इसी पेशोपश मे कब आँख लग गयी
पता ही नहीं चला था। सपनो के ताने-बाने मे उलझ कर अचानक मै छ्टपटा कर उठ कर बैठ गया
था। अभी सुबह नहीं हुई थी लेकिन रात का अंधियारा छंट चुका था। मै जल्दी से तैयार हुआ
और कुछ सोच कर मानेसर की ओर निकल गया। छुट्टी पर जाने से पहले एक बार ताहिर उस्मान
अब्बासी से मिलना चाहता था। एक घंटे के बाद मै उसके सामने बैठा हुआ था। …आज कैसे आना
हुआ मेजर? उसकी आवाज मे आज वह विश्वास नहीं झलक रहा था जो उस दिन मैने देखा था। दो
दिन की कैद मे उसके चेहरे की लाली की जगह पीलेपन ने ले ली थी। वह थका हुआ और तनाव मे
लग रहा था। …ताहिर, मुझे पता है कि तुम्हारी डोर किसी के हाथ मे है। फारुख मीरवायज
ने तुम्हें ऐसे चक्कर मे फँसा दिया है कि अगले बीस साल तुम्हें ऐसी या इससे भी बुरी
जगह पर गुजारने पड़ेंगें। तुम सोच रहे होगे कि मै यह सब तुम पर दबाव बनाने के लिये कह
रहा हूँ लेकिन ऐसा नहीं है। अब तक उसका ध्यान मुझ पर केन्द्रित हो गया था।
…मुझे यकीन है कि
तुम आप्रेशन खंजर के कर्ताधर्ता नहीं हो सकते लेकिन तुम्हारे कारण मेरी बीवी आफशाँ
भी उस जाल मे फँस गयी है। वह तुम्हारी कंपनी के ऐसे संवेदनशील विभाग मे काम कर रही
थी कि इस साजिश के कारण अब उस पर भी तुम्हारी मदद करने का चार्ज लग जाएगा। आफशाँ के
बारे मे विश्वास से कह सकता हूँ कि वह जानते बूझते तो हर्गिज ऐसा काम नहीं कर सकती
और अनजाने मे ही सही लेकिन वह भी ऐसे जघन्य अपराध का हिस्सा बन गयी है। तुम इतना जान
लो कि फारुख मीरवायज आईएसआई का एजेन्ट जरुर है परन्तु वह हमारे लिये काम कर रहा था।
इसका परिणाम है कि आप्रेशन खंजर के सभी मुख्य साजिशकर्ता इस वक्त या तो हमारी कैद मे
है अथवा मारे गये है। सीमा पार बैठे हुए जनरल शरीफ ने इस्तीफा दे दिया है और जनरल मंसूर
बाजवा को जबरदस्ती सेवानिवृत कर दिया गया है। जिहाद काउन्सिल का मुखिया जकीउर लखवी
और पीरजादा इस वक्त कहीं छिपकर बैठे हुए है। तुम्हारी आढ़ मे छिप कर फारुख ने आईएसआई
और हमारी सरकार को डबल क्रास किया है लेकिन इस साजिश मे उसका नाम औपचारिक रुप मे कहीं
नहीं है। अब सिर्फ तुम ही उसकी साजिश का पर्दाफाश कर सकते हो लेकिन अगर तुम्हारे दिल
मे कहीं इमां, तकवा जिहाद फि सबीलिल्लाह
की आरजू हिलोरें ले रही तो फिर कुछ मत बताना। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।
वह बड़े ध्यान से मेरी
बात सुन रहा था। उसके कन्धे पर हाथ रख कर उठते हुए कहा… रहा आफशाँ का तो उसको तो मै
कुछ भी करके इस झमेले से निकाल दूँगा। अगर ज्यादा परेशानी हुई तो उसको नेपाल के रास्ते
से यहाँ से बाहर भिजवा दूंगा। तुम अपने बारे मे सोच कर देखो कि तुम यहाँ से कैसे बाहर
निकलोगे? तुम्हारे वकील ने अपील लगायी है लेकिन रासुका मे यह अपील तुम्हारे किसी काम
नहीं आयेगी। सेना ने हिरासत मे लिया है तो अगले पाँच साल तक तुम्हारा वकील अपना सिर
पटक कर मर जायेगा लेकिन तुमसे मुलाकात नहीं कर सकेगा। उतने दिनों मे तो तुम्हारे खिलाफ
इतने सुबूत इकठ्ठे हो जाएँगें कि हम अगर तुम्हें कानून के हवाले कर भी देंगें तो भी
तुम बाहर नहीं निकल सकोगे। मै जो कहना चाहता था वह मैने कह दिया है। अब तुम्हें सोचना
है कि आगे क्या करना है। अगर सब कुछ बताना चाहते हो तो खबर कर देना अन्यथा यह हमारी
आखिरी मुलाकात है। खुदा हाफिज। इतना बोल कर मै चल दिया था। लोहे के बन्द दरवाजे पर
मैने दस्तक दी तो बाहर खड़े गार्ड ने दरवाजा खोल दिया था।
…मेजर। एक मिनट ठहरो।
मै रुक गया और मुड़ कर उसकी ओर देखा तो वह मेरी ओर बढ़ते हुए बोला…अगर मै सच बता दूंगा
तो क्या मुझे छोड़ दिया जायेगा। …छोड़ना या नहीं छोड़ना तो सच सुनने के बाद ही कह सकता
हूँ। हाँ इस बात की गारन्टी दे सकता हूँ कि तुम्हारे साथ सरकार और सेना की सहानुभुति
होगी और वह अपनी ओर से लगाये हुए सारे चार्ज हटाने की पूरी कोशिश करेंगें। वह कुछ पल
चुप रहा और फिर बोला… तो फिर बैठ जाओ। मै जो जानता हूँ वह सब बता देता हूँ। …ताहिर
इसे रिकार्ड करना पड़ेगा जिससे यह साबित हो जाये कि तुमने अपनी इच्छा से सारी बात बतायी
है। उसने अपना सिर हिला दिया था। डिटेन्शन रुम मे फोन लाने की मनाही थी तो पहले जनरल
रंधावा से बात करके मैने अपना फोन अन्दर मंगवा लिया था। मैने अपने फोन को आन किया और
ताहिर से पूछा… क्या मेरा शक सही है। उसने धीरे से अपनी गरदन हिला दी थी।
जैसे ही मेरा फोन
नेटवर्क से जुड़ा तो मैने अपने फोन को उठाया कि तभी उसकी घंटी बज उठी थी। मैने स्क्रीन
पर उभरे हुए नम्बर को देख कर तुरन्त स्पीकर आन करते हुए… हैलो। …मेजर, फोन क्यों बन्द
कर रखा है। आज शाम को उसी काफी हाउस मे मिलते है। …मै तीन बजे के बाद नहीं मिल सकता
क्योंकि मै बाहर जा रहा हूँ। …मेजर। …फारुख मेरी बात ध्यान से सुनो कि मिलने का समय
और जगह मै तय करता हूँ तुम नही। …मेजर, आज समय और जगह सिर्फ मै तय करुँगा। वलीउल्लाह
मेरे कब्जे मे है। तुम मेरा एक काम कर दो और मै वलीउल्लाह को तुम्हारे हवाले कर दूँगा।
…फारुख तुम फिर सौदेबाजी पर उतर आये। बोलो क्या काम है? …मुझे पता चला है कि तुमने
ताहिर उस्मान को हिरासत मे लिया है। …हाँ, तो क्या वह तुम्हारा आदमी है? …नहीं, उसका
हैंडलर वलीउल्लाह है। अगर उसने मुँह खोल दिया तो वलीउल्लाह बेवजह मारा जाएगा जो तुम
बिल्कुल भी नहीं चाहोगे। …क्यों वलीउल्लाह को तो वैसे भी मरना होगा। …मेजर, मुझे यकीन
है कि वलीउल्लाह को देखने के बाद तुम उसे बचाने के लिये अपनी जान दाँव पर लगा दोगे।
मै तो तुम्हारी भलाई की बात कर रहा हूँ। एक फाल्स फ्लैग आप्रेशन मे ताहिर का एन्काउन्टर
कर दोगे तो वलीउल्लाह भी बच जायेगा और तुम्हें अपनी जान भी नहीं देनी पड़ेगी। ताहिर
को मार दोगे तो वलीउल्लाह के साथ तुम्हें तुम्हारी बेटी भी फ्री मे मिल जाएगी। …तुम्हारी
बात पर अब मुझे कोई विश्वास नहीं है। मेरी बेटी अपनी माँ के साथ है। …मेजर, उसकी माँ
ही तो वलीउल्लाह है। …क्या बकते हो? …बिल्कुल मेजर, आफशाँ ही वलीउल्लाह है। …नामुम्किन।
कोई नया पैंतरा इस्तेमाल करो। …मेजर, यही सच्चायी है। दोनो माँ और बेटी मेरे कब्जे
मे है। एक जान के बदले मे दो जान दे रहा हूँ। तुम्हारे फायदे का सौदा है। ताहिर को
ठिकाने लगा दो और अपनी बीवी और बच्ची को ले जाओ। मैने एक नजर ताहिर उस्मान पर डाली
तो वह सब सुन कर सकते मे आ गया था।
…फारुख, अगर तुम जो
कह रहे हो वह सच है तो यह सौदा भारत की धरती पर हर्गिज नहीं हो सकता। इस रविवार को
आफशाँ और मेनका को लेकर काठमांडू पहुँच जाओ। मै ताहिर को लेकर वहीं पहुँच जाता हूँ।
उन दोनो को मेरे हवाले कर दो और मै ताहिर को तुम्हारे हवाले कर दूंगा। उसके बाद उसके साथ
तुम्हें जो करना है वह करो। मुझे मेरी बीवी और बच्ची सही सलामत चाहिये। …मेजर, यह सौदा
इतनी दूर नहीं हो सकता। …फारुख, यह सौदा अब वहीं होगा जहाँ न तुम्हारी चलेगी और न मेरी
चलेगी। अगर आफशाँ वलीउल्लाह है तो यह जगह तो अब वैसे भी उसके लिये सुरक्षित
नहीं है। तुम उसे जरुर मेरे हवाले यहाँ कर दोगे लेकिन हमेशा के लिये यह तलवार मेरे
सिर पर लटकती रहेगी। इसलिये अब वह भारत के बाहर ही सुरक्षित रह सकती है। रविवार को
अब फोन करना तब सौदे का समय और जगह का निर्णय कर लेंगें। बस इतना ख्याल रखना कि अगर
उन दोनो मे से किसी को हल्की सी खरोंच भी लगी तो फारुख तुम्हारे लिये यह धरती छोटी
पड़ जायेगी। यह बोल कर मैने फोन काट दिया था।
मैने उसकी ओर देख
कहा… सुन लिया ताहिर उस्मान अब्बासी कि तुम्हारे मालिक ने मुझे तुम्हारे नाम की सुपारी
दी है और उसके बदले मे वह मेरी बीवी और बच्ची को मेरे हवाले कर देगा। वह सिर झुकाये
बैठा हुआ था। अचानक उसने मेरी ओर देख कर कहा… तो अपनी बीवी और बच्ची को बचाने के लिये
अब तुम मुझे उसके हवाले कर दोगे? मैने मुस्कुरा कर कहा… मेरा ऐसा कोई विचार नहीं है।
वैसे भी यहाँ से मै तुम्हें बिना इजाजत के नहीं निकाल सकता तो काठमांडू कैसे ले जा
सकता हूँ। तुम इस वक्त सेना की कैद मे हो और इसीलिये सुरक्षित भी हो। अपनी बीवी और
बच्ची को बचाने के लिये मै खुद सक्षम हूँ और इसके लिये मुझे तुम्हारी जरुरत नहीं है।
जरा सोच कर देखो कि जब तुम जैसे लोग जेल की यातना भुगत रहे होंगें तो उस वक्त फारुख
हमारी पकड़ से दूर जिंदगी के मजे लूट रहा होगा। मेरी बात सुन कर एकाएक उसके बुझे हुए
चेहरे पर नफरत और शर्म की लकीरें खिंच गयी थी। अचानक ताहिर मेरा हाथ पकड़ कर बोला… मेजर,
आफशाँ और मै हालात के शिकार है। फारुख हम दोनो को ब्लैकमेल कर रहा था। मैने अपने फोन
की रिकार्डिंग आन करके एक बार जनरल रंधावा से कन्फर्म किया और फिर उसके सामने फोन रख
कर बोलने का इशारा किया। कुछ पल रुक कर उसने बोलना आरंभ कर दिया था।
रावलपिंडीं
एक अज्ञात जगह पर
कुछ व्यक्तियों के बीच एक गोपनीय मीटिंग चल रही थी। उनमे से दो व्यक्तियों के जिस्म
पर खाकी वर्दी थी। बाकी तीन लोग सादे पठानी लिबास मे थे। एक क्षण के लिये रुक कर वर्दीधारी
ने सभी पर नजर डाल कर कहा… आप्रेशन खंजर का अंत हो गया है। जनरल शरीफ और जनरल बाजवा
कल रात को पाकिस्तान छोड़ कर चुपचाप निकल गये है। जमात-ए-इस्लामी का अध्यक्ष मकबूल बट
भी कश्मीर से गायब हो गया है। इन सभी घटनाओं के कारण वलीउल्लाह भी अब जल्द ही सबकी
नजरों मे आ जाएगा। इन सभी हालात से निबटने के लिये इस मीटिंग को रखा गया है। दूसरा
वर्दीधारी तुरन्त बोला… जनरल साहब मेरी बात वाशिंग्टन से हुई है। उनका सुझाव है कि
फारुख मीरवायज और मकबूल बट अब हमारे नेटवर्क के लिये भार बन गये है। पीरजादा जो अब
तक उनकी बात चुपचाप सुन रहा था वह तुरन्त तिलमिला कर बोला… आप फारुख की हत्या नहीं
कर सकते। …बड़े मियाँ आप समझने की कोशिश नहीं कर रहे है। …जनरल साहब मै आपकी बात समझ
रहा हूँ। पहले आप लोग सुनहरे भविष्य की कामना मे साजिशें रचते है। जब मामला उल्टा पड़
गया तो अपना हाथ झाड़ने के लिये अपने ही लोगों को मरने के लिये वहाँ छोड़ देते है। तभी
एक वर्दीधारी व्यक्ति जो काफी समय से चुप था उसने वृद्ध को बीच मे टोका… बड़े मियाँ
अभी तक मै आपके सामने सच्चायी रखने से झिझक रहा था। सबकी नजरें उस पर जम गयी थी। वह
उठ कर खड़ा होते हुए बोला… सीआईए ने फारुख की काल रिकार्ड्स और लोकेशन का विवरण देकर
कर उसके बारे मे विस्तृत जानकारी हमे दी है। फारुख के कारण हमारा आप्रेशन खंजर विफल
हो गया है। …तुम और तुम्हारी सीआईए झूठ बोल रही है। मेरा बेटा ऐसा हर्गिज नहीं कर सकता।
पीरजादा मीरवायज अचानक उठ कर खड़ा हो गया और अपने साथ बैठे हुए लोगों की ओर देख कर बोला…
मै तुम्हारे फौजी इदारे की ईंट से ईंट बजा दूँगा। अबकी बार वह वर्दीधारी घुर्रा कर
बोला… बैठ जा बुड्डे और मेरी बात ध्यान से सुन क्योंकि तूने फौजी इदारे पर तंज कसा
है। हम चाहे तो तेरी खाल मे अभी भूसा भर कर तेरी मस्जिद के मुख्य द्वार पर लटका सकते
है। जिन तंजीमो पर तुझे गुमान है उनमे से एक भी आदमी तेरे लिये खड़ा नहीं होगा। तुम
लोग हमारे फेंकें हुए टुकड़ो पर पलने वाले कुत्ते हो इसलिये भूल कर भी मालिक को काटने
की कोशिश मत करना अन्यथा तुम्हारी सारी नस्ल साफ हो जएगी। तेरी बेटी हया से हमे जानकारी
मिली है कि आजकल तेरा बेटा भारतीय सेना के ब्रिगेडियर सुरिंदर सिंह चीमा के इशारों
पर नाच रहा है। तेरे बेटे की कहानी का अंत होने का समय तय हो गया है। इतना बोल कर वह
चुप हो गया लेकिन कमरे मे मौत की शांति छा गयी थी।
कुछ देर के बाद पठानी
सूट मे एक वृद्ध बोला… जनरल साहिब आप अब क्या करने की सोच रहे है? …मै सभी तंजीमों
को समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि मामला हाथ से निकल गया है। ब्रिगेडियर शुजाल बेग
ने फौजी इदारे मे ऐसी फूट डाल दी है कि इसको संभालना नामुम्किन हो गया है। शुजाल बेग
के जरिये हया ने हम तक फारुख की गद्दारी की सूचना पहुँचाई थी। इसी कारण हम पीरजादा
मीरवायज की बेटी हया से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे है। इसमे हमे पीरजादा की मदद
चाहिये। इसी प्रकार लखवी साहब हम चाहते है कि आप अपनी बेटी नीलोफर से संपर्क साधने
की कोशिश किजिये। हमने अपने कश्मीर स्थित स्लीपर सेल को भी इसी काम के लिये सक्रिय
कर दिया है। उन दोनो को आप्रेशन खंजर से संबन्धित सभी लोगों की जानकारी है। इस असफल
आप्रेशन को समेटने के लिये हमे उनकी मदद चाहिये। क्या इस काम मे आप हमारी सहायता करेंगें?
वहाँ बैठे हुए सभी लोग एक दूसरे को देखने लगे परन्तु किसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
कुछ देर सोचने के
बाद पीरजादा मीरवायज बोला… जनरल साहब तंजीमो की ओर से मै सिर्फ इतना वायदा कर सकता
हूँ कि हम लोग मिल कर इसको समेटने मे आपकी जरुर मदद करेंगें। मुझे आपकी ओर से एक गारन्टी
चाहिये कि आपके लश्कर हमसे बिना पूछे सीमा पार कुछ नहीं करेंगें। सबने अपनी सहमति मे
सिर हिला कर दर्शा दी थी।
बहुत ही जबरदस्त अंक, और जिस बात के लिए समीर हमेशा टालता रहता था या फिर उसके लिए अपने आप को तैयार कर रहा था की कोई अपना उसके देश के खिलाफ साजिश रच रहा है तो वो घड़ी आ चुकी है की वो कैसे उसको हैंडल करे मगर अभी भी वो पहेली नही सूझ रही है की आखिर वो हया इनायत कहां है और क्या है वॉलीउल्ला का सच, खैर कहानी अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुका है तो देखते हैं क्या क्या आगे देखने को मिलता है।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई धन्यवाद। अब एक-एक चाल और उसके संचालकों की अस्लियत धीरे-धीरे खुलने का समय आ गया है। प्लीज ऐसे ही साथ बनाये रखियेगा।
हटाएंघटनाक्रम तेजीसे बदल रहा, कभी लगता है सब कुछ खत्म हो गया, कभी एक आशा की डोर बाकी है ऐसा प्रतीत होता है. एक बात तो लग रही के फारुख ने समीर को गुमराह करनेके लिये आफशा को वलिउल्लाह बताया हो, ऐसा स्टाँग फिलिंग आ रहा, बाकी तो विरभाई को मालुम. एक बात तो पक्की हो गयी, समीर की जिंदगी और साथ साथ तब्बसुम की जिंदगी भी घोर मझदार मे फस गयी. देखते है समीर इन सबसे कैसे पार पाता है.
जवाब देंहटाएंप्रशांत भाई शुक्रिया। घटनाक्रम के साथ अब सबकी चालें खुलती जा रही है। अब देखना होगा कि कौन बेहतर चालबाज सिद्ध होता है। समीर के साथ नीलोफर, तबस्सुम, आफशां और मेनका भी इनकी चालों का शिकार है। अब वह सब इनसे कैसे पार पायेगें यह देखना बाकी है।
हटाएंab agle 7 din bekrari main katenge
जवाब देंहटाएंसाईरस भाई आपकी बेकरारी उचित है क्योंकि अब सारे राज खुलने का समय आ गया है। सारी साजिशें और साजिशकर्ता अब धीरे-धीरे सामने आ रहे है। शुक्रिया भाई इतने दिन साथ निबाहने के लिये।
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