रविवार, 11 जून 2023

  

गहरी चाल-12

 

दस बजने से कुछ मिनट पहले मै नीलोफर के फ्लैट के मुख्य द्वार के सामने खड़ा हुआ था। घंटी का बटन दबाते ही दरवाजा खुल गया था। उसके चेहरे पर आयी हुई बदहवासी साफ दिख रही थी। मैने जैसे ही फ्लैट मे प्रवेश किया वह मुझसे लिपट कर फफक को रो पड़ी थी। उसको कुछ देर अपनी बाँहों मे बाँधे वहीं खड़ा रहा और जब वह शान्त हो गयी तब उसे अलग करके पूछा… अब बताओ क्या हुआ? …समीर मै बर्बाद हो गयी। सेठी ने मेरा सारा पैसा लूट लिया। …साफ शब्दों मे समझाओ कि क्या हो हुआ? …मेरे दोनो ट्रक जिसमे फारुख का पैसा था वह मैने उसके हवाले कर दिये थे। वह मेरे पैसो को हवाला के जरिये ऐजरबैजान की राजधानी बाकू मे भिजवाने का इंतजाम कर रहा था। …बाकू क्यों? …उसका कहना था कि बाकू की बैंकिंग प्रणाली बेहद लचर है। वहाँ से पैसों को किसी भी पश्चिम के देश मे निकालना आसान होगा। …फिर क्या हुआ? …कल रात को उसका फोन आया कि मेरे दोनो ट्रक पुलिस ने पकड़ लिये है। मै रात को ही उससे मिलने के चली गयी थी लेकिन उसने मुझसे मिलने से इंकार कर दिया। अब तुम्हीं बताओ कि मै क्या करुँ? …तुमने मोनिका से बात करने की कोशिश की है? …कल रात को मैने उससे भी बात करने की कोशिश की थी परन्तु उसने भी मिलने से इंकार कर दिया। …अब क्या करने की सोच रही हो? …समीर, प्लीज मेरी मदद करो। तुम जानते हो कि मै पुलिस या सेठी से सीधे टकरा नहीं सकती क्योंकि अगर फारुख को मेरे बारे मे पता लग गया तो मेरी मौत निश्चित है। अब तक वह शांत हो गयी थी। उसकी दयनीय दशा देख कर मै अजीब सी स्थिति मे अपने आप को महसूस कर रहा था। एक ओर उसकी बेबसी देख कर खुश था परन्तु मन के किसी कोने मे उसके प्रति सहानुभुति का एहसास भी था क्योंकि मेरे अंतर्मन मे अपराधबोध का भी भाव था।

कुछ देर चुप्पी छायी रही तो नीलोफर ने भीगी पल्कों से मेरी ओर देखा तो मैने पूछा… तुम मुझसे क्या चाहती हो? …बस किसी तरह सेठी से मेरे पैसे निकलवा दो। कुछ सोच कर मैने कहा… मै मोनिका से बात करके देखता हूँ। तुम भी अंसार रजा से बात करके एक बार देख लो। …अंसार रजा भी गायब है। मुझे लगता है कि दोनो मिल कर मेरे सारे पैसे डकार गये है। मैने अपना फोन निकाल कर एक नम्बर डायल किया। …हैलो कौन बोल रहे है? …इतनी जल्दी मुझे भुला दिया। …समीर। …उस दिन बिना बात किये चली गयी थी। क्या कोई नाराजगी है? …नहीं। कुछ दिन तुम्हारे साथ रह कर मैने बहुत से सपने बुन डाले थे जो तुमने एक पल मे चकनाचूर कर दिये। खैर बताओ कैसे याद किया? …चांदनी, तुम्हारे अब्बा से मिलना चाहता था। …अब्बू तो चार दिन पहले कलकत्ता गये है। तुम फोन पर बात कर लो। कलकत्ता की सुनते ही मै सावधान हो गया और जल्दी से पूछा… क्या तुमने बेग के बारे मे उनसे कुछ कहा था? …पागल हो गये हो क्या। भला मै उन्हें यह बात कैसे बताती। …अच्छा किया। चांदनी मेरे पास उनका फोन नम्बर नहीं है। …ओह। तुम लिख लो। इतना बोल कर अंसार रजा के दो नम्बर लिखवा कर चांदनी बोली… समीर, क्या एक बार नये सिरे से हम मिल सकते है? …नये सिरे से क्यों चांदनी। हमारे संबन्ध ऐसे है कि जब भी कहोगी तो तुमसे मिलने के लिये सिर के बल चला आऊँगा। …प्लीज रहने दो। अच्छा अब मुझे जाना है। रात को फोन करुँगी। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था।

अंसार रजा का नम्बर नीलोफर को देकर मैने कहा… अंसार रजा कलकत्ता गया है। मुझे नहीं लगता कि वह इस मामले मे तुम्हारी कोई मदद कर सकेगा। …तुम चांदनी को कैसे जानते हो? कोई जवाब देने से पहले मै एक पल के लिये चुप हो गया था। नीलोफर ने तुरन्त कटाक्ष मारा… ओह तो जनाब उसके साथ भी इश्क फर्मा रहे है? मैने उसका जवाब देना उचित नहीं समझा परन्तु उससे पूछ लिया… क्या तुम बंगाल मे हसनाबाद के मोहम्मद अली बेग से परिचित हो? अबकी बार वह बोलते हुए रुक गयी थी। उसने मुझसे एक बार निगाह मिलायी और फिर तुरन्त नजरें नीचे करके बोली… जानती हूँ। वह फारुख के लिये काम करता है। मै चुप हो गया और सोचने लगा कि जमात और संयुक्त मोर्चे की बंगाल से कुछ-कुछ कड़ियाँ अब जुड़ने लगी है। …और कौन-कौन लोगों को तुम बंगाल मे जानती हो? अबकी बार वह तमक कर बोली… तुम मुझसे फारुख के गुर्गों के बारे मे पूछने आये हो या मेरी मदद करने के लिये? एक पल रुक कर उसकी आँखों मे झाँकते हुए मैने बात बदलते हुए पूछा… नीलोफर, अगर मै तुम्हारे आधे पैसे उनसे दिलवा दूँ तो तुम मेरे लिये क्या करोगी? वह झपट कर मुझे अपनी बाँहों मे कस कर जकड़ कर बोली… अपनी जान तुम्हारे नाम कर दूंगी। जबरदस्ती उससे अलग होकर मैने जल्दी से कहा… तुमने अपनी जान मेरे नाम उसी दिन कर दी थी जिस दिन मैने तुम्हें डिटेन्शन सेन्टर से बाहर निकाला था। …बोलो तुम्हें और क्या चाहिये? यह बोलते हुए वह अचानक खड़ी हो गयी और मेरी ओर देख कर बोली… यह नापाक जिस्म तुम्हारे लायक नहीं है। फिर भी अगर…मै तुरन्त उठ कर खड़ा हुआ और उसके मुँह पर अपनी हथेली रख कर बोला… बेवकूफ लड़की क्या इसके अलावा तुम्हारे दिमाग मे और कुछ नहीं आता है। मै चाहता हूँ कि पैसे मिलने के बाद तुम इन गलत धंधों से तौबा करके सौम्या कौल बन कर नयी जिन्दगी की शुरुआत करो। वह चुपचाप कुछ देर मुझे देखती रही और फिर मेरे पास आकर बोली… समीर, जब तक फारुख जिन्दा है तब तक मै मजबूर हूँ। …तभी तो मै चाहता हूँ कि तुम फारुख और हया को समाप्त करने मे मेरी मदद करो। उसने कोई जवाब देने के बजाय बस अपना सिर हिला दिया था।

नीलोफर के फ्लैट से निकलते ही आफशाँ का संदेश मिल गया था। वह मेनका को लेकर जीआईपी एम्युजमेन्ट पार्क जा रही थी। तिगड़ी की ओर से अभी तक कोई निर्देश नहीं मिला था तो मै जीआईपी की दिशा मे निकल गया था। दो बातें मेरे दिमाग मे खटक रही थी। दीपक सेठी की ओर से ट्रकों के लिये कोई कार्यवाही अब तक क्यों नहीं की गयी और अंसार रजा का कलकता इसी समय जाना मेरी समझ से बाहर था। इन्हीं दोनो बातों के बारे मे सोचते हुए मै जीआईपी पार्क पहुँच गया था। जीआईपी के टिकिट काउन्टर पर स्कूली  बच्चों की भीड़ लगी हुई थी। कुछ ही देर मे टिकिट लेकर मै भी भीड़ मे खो गया था। अन्दर पहुँच कर मैने आफशाँ को फोन लगा कर पूछा… मेनका की अम्मी तुम इस वक्त कहाँ पर हो? …हम दोनो कार बम्प ड्राइव पर है। तुम यहीं आ जाओ। फोन काट कर उसकी बतायी हुई जगह पर कुछ देर के बाद पहुँच गया था। मेनका कार-ट्रेक पर तेजी से अपनी कार दौड़ा रही थी।

आफशाँ को पीछे से अपनी बाँहों मे जकड़ कर मैने पूछा… मुझे देर तो नही हुई है? …नहीं हम कुछ देर पहले ही यहाँ पहुँचे थे। हम दोनो रेलिंग के पास खड़े होकर मेनका को कार चलाते हुए देख कर एक दूसरे की सुनने मे व्यस्त हो गये थे। जब भी उसकी कार किनारे मे पड़े हुए टायर से टकराती आफशाँ के मुख से अनायस ही चीख निकल जाती थी। रेलिंग के पास खड़े हुए सभी बच्चों के अभिभावकों की हालत हमसे भिन्न नहीं थी। टाइम समाप्त होते ही मै मेनका को लेने निकासी द्वार पर पहुँच गया था। मुझे बाहर खड़ा देखते ही वह चीखती हुई मेरी ओर दौड़ पड़ी थी। उसको अपनी बाँहों मे उठा कर हवा मे घुमाते हुए पूछा… आज की पिकनिक मे मजा आ रहा है। वह तुरन्त अपना अनुभव बताने मे लग गयी थी। बहुत दिनो के बाद हम तीनो एक परिवार की तरह घूमने निकले थे। खुशी के साथ एक बैचेनी भी थी कि एक हफ्ते के बाद मुझे काठमांडू जाना था। दोपहर को लंच करके एक बार फिर मेनका अलग-अलग स्टाल देखने मे जुट गयी थी। कुछ ऐसी जगह थी जहाँ छोटे बच्चों का जाना निषेध था जिसका मेनका को सबसे ज्यादा दुख था। मेनका की अगली फरमाइश वाटरवर्ल्ड को देखने की थी तो हम उस दिशा मे चल दिये थे।

माँ और बेटी वाटरवर्ल्ड की तैयारी के साथ आयी थी। मुझे रैम्प पर बिठा कर दोनो कपड़े बदलने के लिये चली गयी थी। पूल मे हर तरफ युवा लड़के और लड़कियाँ, बच्चे और बूढ़े पानी के साथ अठखेलियाँ करते हुए दिख रहे थे। कुछ देर के बाद …अब्बू। दूर से एक पतली सी आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मैने उस दिशा मे सिर घुमाया तो मेनका हाथ हिला कर मेरा ध्यान अपनी ओर खींचने मे लगी हुई थी। मेनका का हाथ पकड़ कर आफशाँ भी अपने तैराकी गियर मे पूल के किनारे चलते हुए मेरी ओर आ रही थी। आफशाँ को पहली बार स्विमिंग कास्टयूम मे देख रहा था। वह बट परिवार मे सबसे सुन्दर तो पहले से थी परन्तु दिन के उजाले मे उसका गोरा रंग गुलाबी लग रहा था। वैसे तो बिना वस्त्र के मैने उसे बहुत बार देखा था परन्तु इस वक्त उसके जिस्म के हर उतार चड़ाव पर सिन्थेटिक कास्ट्युम चिपकने के कारण उसकी जिस्मानी कामुकता का एहसास कुछ ज्यादा ही प्रभावी लग रहा था। रैंम्प के चारों ओर बैठे हुए लोगो की निगाहें भी आफशाँ पर जम कर रह गयी थी। सीने की गोलाईयाँ उसके हर पग पर कास्टयूम से बाहर छलकने का असफल प्रयास करते हुए प्रतीत हो रहे थे। हर कदम पर उसका जिस्म थरथराता हुआ लग रहा था। मेरे करीब पहुँच कर अचानक वह झुकी और मेनका को गोदी मे उठा कर पूल मे कूद गयी। मेनका की तेज किलकारी मेरे कान मे गूंज गयी थी। आफशाँ उसे अपने सीने से लगाये पानी की सतह से उपर आयी और फिर एक किनारे मे पहुँच कर मेनका को तैरने का प्रशिक्षण देने मे जुट गयी थी। 

मै वहीं बैठ कर दूर से माँ और बेटी को पानी मे मस्ती करते हुए देख रहा था कि तभी वाटर स्लाईड से कुछ बच्चे फिसलते हुए बड़ी तेजी से नीचे आये और फिर स्लाईड के छोर पर पहुँच कर हवा मे उछल गये थे। पल भर के लिये मेरी नजर उनकी ओर चली गयी थी क्योंकि उनके गिरने की दिशा आफशाँ और मेनका की ओर थी। एक बच्ची हवा मे अपने आगे वाले बच्चे के सिर से टकरायी और फिर एक निर्जीव गुड़िया की भांति पानी मे गिर कर डूबती चली गयी। इतने शोर के बीच पता नहीं उसकी ओर किसी का ध्यान गया था कि नहीं परन्तु मै उस दुर्घटना को साक्षी था। मै अपने आप को रोक नहीं सका और तुरन्त बिना किसी की परवाह किये कपड़ों सहित अगले ही पल पानी मे कूद गया। अन्डरवाटर तैरते हुए पूल की तली पर मेरी नजर सैकड़ों पाँवों के बीच उस छोटी सी बच्ची को तलाश कर रही थी। मै अन्दाजे से उस स्थान पर पहुँच गया था जहाँ वह गिरी थी। मैने इधर-उधर नजर दौड़ाई लेकिन वह कहीं नहीं दिख रही थी। मेरी रोकी हुई साँस को भी अब छोड़ने का समय आ गया था। मै जैसे ही साँस लेने के लिये सतह की ओर रुख किया कि तभी पूल की दीवार के पास उस बच्ची को साँस लेने के लिये हाथ-पाँव चलाते हुए देखा। मै तेजी से उसकी ओर गया तब मेरी नजर उसकी नाक से रिसते हुए खून पर पड़ी तो मै चौंक गया था। मैने उसे तुरन्त पकड़ कर पानी की सतह से उपर निकाला और दो-चार गहरी साँस लेकर हवा मे उठाये जब तक किनारे पर पहुँचा तब तक तो बाहर हंगामा हो गया था। पूल के अधिकारी मुझे पकड़ने के लिये पूल के किनारे इधर उधर दौड़ रहे थे। रैम्प पर बैठे हुए लोग खड़े होकर मेरी ओर इशारा करते हुए चिल्ला रहे थे। मै उस बच्ची को लेकर किनारे पर आया और उसे जमीन पर उल्टा लिटा कर फर्स्ट एड प्रक्रिया देने मे जुट गया। कुछ पल गुजरने के बाद वह धीरे से छ्टपटाई फिर एक पानी की उल्टी करके एकाएक उठ कर बैठ गयी थी। उसकी नाक से खून अभी भी धीरे-धीरे रिस रहा था। जब तक मै पूल से बाहर निकला तब तक रैंम्प पर बैठे हुए लोगों की भीड़ हमे घेर कर खड़ी हो गयी थी।

उस बच्ची के साथी कुछ दूरी पर डरे सहमे से खड़े हुए हमे देख रहे थे। उस बच्ची के साथ बैठते हुए मै कुछ बोलता कि तभी वाटरवर्ल्ड के कर्मचारी मुझ पर बरस पड़े। …आप को जुर्माना भरना पड़ेगा। उस शोर गुल मे मेरे कान मे बस इतना पड़ा था। लाइफ गार्ड और अन्य कर्मचारियों ने हमारे आसपास की भीड़ को हटाना आरंभ कर दिया था। भीड़ छटने के बाद एक अधेड़ सा वर्दीधारी आदमी मेरे पास आकर बोला… आप अपनी बच्ची को लेकर मेरे आफिस मे आईये। उसे फर्स्ट एड की जरुरत है। एक नजर मैने उस बच्ची पर डाली तो तब तक उसकी नाक से खून का रिसना बन्द हो गया था। मैने खड़े होकर अपने गीले कपड़े झटकार और जूते से पानी निकालते हुए कहा… मिस्टर वह तो बाद मे आपके साथ चलूँगा लेकिन पहले इस बच्ची के साथ यहाँ कौन आया है उसका पता लगाईये। इतना बोल कर मै उस बच्ची को गोदी मे उठा कर रैंम्प की ओर चल दिया। वाटरवर्ल्ड के तीन-चार कर्मचारी मेरे साथ चल दिये थे। एक बार फिर से पूल मे लोगो की भीड़ अपनी मस्ती मे व्यस्त हो गयी थी। वही शोर गुल चारों ओर सुनाई दे रहा था। मै हैरान था कि अब किसी का ध्यान हमारी ओर नहीं था। रैंम्प पर बैठ कर धूप मे अपने गीले कपड़े सुखाते हुए मैने पहली बार उस बच्ची से पूछा… बिटिया आपका क्या नाम है? वह बच्ची अभी भी सहमी हुई थी। जब उसने कोई जवाब नहीं दिया तब मैने उन सहमे हुए तीन-चार बच्चों के झुन्ड की ओर इशारा करके कहा… वह तुम्हारे साथ है। तभी एक कर्कश सी बदहवासी मे निकली आवाज मेरे कान मे पड़ी… रज़िया। उस बच्ची ने तुरन्त उस ओर देखा और फिर वह जोर से चिल्लायी… अम्मी। इतना बोल कर वह अपना हाथ छुड़ा कर तुरन्त उस स्त्री की ओर भागी और उसके पाँवों से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी। वह बच्चे भी उस स्त्री को घेर कर खड़े हो गये थे।

मैने अपने साथ खड़े हुए वर्दीधारी आदमी से कहा… अच्छा होगा कि आप उनसे जाकर पता करे कि क्या हुआ था। उस व्यक्ति से बात करते हुए मेरी नजर पूल मे आफशाँ और मेनका को तलाश कर रही थी। तभी उन बच्चों की भीड़ के पीछे से मेनका का हाथ पकड़े आफशाँ निकली और मेरे पास आकर बोली… समीर क्या हो गया? मैने उस दिशा मे देखा तो एक बच्चा सारी घटना का जिक्र अपनी अम्मी से कर रहा था। बाकी बच्चे उसकी हाँ मे हाँ मिला रहे थे। मेरे साथ खड़ा हुआ वाटरवर्ल्ड का मैनेजर जो कुछ देर पहले तक अपने आफिस चलने की बात कर रहा था वह एकाएक बोला… मिस्टर क्या हुआ था? मैने जल्दी से सारी घटना सुनाने के बाद कहा… नासमझ बच्चे है। फिलहाल सभी सहमे हुए है तो आप कुछ देर के बाद उनसे पूछ लिजियेगा। मुझे भीगे हुए कपड़ों मे देख कर आफशाँ और मेनका अभी अचरज भरी नजरों से मुझे देख रही थी। …कुछ नहीं हुआ आफशाँ। एक बच्ची को पानी मे चोट लग गयी थी। उसे बचाने के लिये पानी मे कूदना पड़ गया था। …किसको? मैने इशारे से बच्चों की भीड़ को दिखाते हुए कहा… उनमे से मेनका जैसी एक छोटी बच्ची है। तुम दोनो कपड़े बदल कर आ जाओ तब तक मै यहीं बैठ कर अपने कपड़े सुखा रहा हूँ। आफशाँ को इतने नजदीक से स्विमिंग कास्ट्यूम मे देख कर मै अपनी झेंप मिटाने की कोशिश कर रहा था।

…समीर। एक जानी पहचानी आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मैने चौंक कर उस ओर देखा तो एक पल के लिये हतप्रभ रह गया था। स्विमिंग कास्ट्यूम पहने चाँदनी और उसके साथ कुछ दो चार लड़के और लड़कियाँ मेरी ओर बढ़ते हुए दिखे तो मै जल्दी से खड़ा हो गया। चांदनी के पीछे वह स्त्री और बच्चों की भीड़ भी उसके साथ वहीं आ गयी थी। चाँदनी अचरज भरी नजरों से मेरी ओर देखते हुए बोली… तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो? वह स्त्री तुरन्त बोली… चांदनी, तुम इन्हें जानती हो? चांदनी अचकचा कर जल्दी से बोली… जी बाजी। यह मेरे साथ पढ़ते है। मेरे साथ खड़ी आफशाँ ने यह सुनते ही मुझे घूर कर देखा तो मैने जल्दी से कहा… आफशाँ ऐसी बात नहीं है। हम जामिया युनिवर्सिटी मे एक दो बार मिले थे तो इसलिये यह मुझे वहाँ का छात्र समझ रही है। चाँदनी की नजरें मेरे साथ खड़ी आफशाँ पर टिक गयी थी। दोनो एक दूसरे को नापने की कोशिश कर रही थी कि तभी रज़िया की अम्मी बोली… भाईजान, आपने मेरी बच्ची को बचा कर मुझ पर एहसान किया है। अल्लाह आप पर हजार नेयमतें बक्शे। बस इतना बोल कर वह भरभरा कर रो पड़ी थी। रज़िया अभी भी अपनी अम्मी के पाँव से लिपटी हुई सुबक रही थी। मै अपने आप को अजीब सी स्थिति मे उलझा हुआ पा रहा था। इतनी देर मे पहली बार आफशाँ बोली… समीर, हम कपड़े चेन्ज करके आते है। इतना बोल कर वह मेनका का हाथ थाम कर चेन्जिंग रुम की चल दी थी। मैने चांदनी पर नजर डाली तो अभी भी उसकी नजरें आफशाँ पर टिकी हुई थी। वह जल्दी से बोली… बाजी मै भी चेन्ज करके आती हूँ। तुम सब भी चलो। बच्चों के झुन्ड की अगुवाई करते हुए चांदनी भी चेन्जिंग रुम्स की दिशा मे चल दी थी।

मै अपने गीले जूतों को जोर से झटकार कर पहनते हुए पास खड़ी हुई स्त्री से बोला… रज़िया बेहद डरी हुई है। …जी भाईजान। आपने हमारे परिवार पर एहसान किया है। अगर आप नहीं होते तो शायद मेरी बच्ची…इतना बोल कर वह फफक कर रो पड़ी थी। पहली बार मैने उस स्त्री को ध्यान से देखा था। वह देखने मे आफशाँ और नीलोफर की हम उम्र लग रही थी। …जब तक वह सब कपड़े बदल कर आते है तब तक आईये हम वहाँ रैंम्प पर बैठ जाते है। इतना बोल कर मै रैम्प की ओर चल दिया और वह भी मेरे पीछे आ गयी थी। मैने बैठते हुए कहा… मै तो अपनी बीवी और बच्ची को पूल मे खेलते हुए देख रहा था। मेरी निगाह अचानक हवा मे टकराते हुए दो बच्चों की ओर चली गयी थी। रज़िया को पानी मे जिस हालत मे गिरते हुए देखा था तो मै अपने आप को रोक नहीं सका और उसको बचाने के लिये पूल मे कूद गया था। वह सिसकते हुए बोली… रज़िया मेरे जीने की अकेली वजह है। अगर उसको आज कुछ हो गया होता तो मै जीतेजी मर गयी होती। तभी वाटरवर्ल्ड का अधिकारी हमारे पास आकर बोला… सर, क्या आप इस दुर्घटना की कम्प्लेन्ट करने की सोच रहे है? मैने साथ बैठी हुई स्त्री की ओर इशारा करके कहा… वह इनकी बच्ची है। अगर यह कम्प्लेन्ट करना चाहती है तो मै अपना स्टेटमेन्ट देने के लिये तैयार हूँ। वह अधिकारी जल्दी से बोला… आप अपना नाम, पता और फोन नम्बर लिखवा दिजिये जिससे अगर यह लोग कमप्लेन्ट करते है तब हम आपके स्टेटमेन्ट के लिये आपसे संपर्क करेंगें। मै कुछ बोलता कि वह स्त्री बोली… वह आ गये। मेरी नजर उस ओर चली गयी थी जहाँ आफशाँ और चांदनी बात करते हुए बच्चों और दोस्तों के समूह के साथ हमारी ओर आ रहे थे। उस दृश्य को देख कर मेरे दिल की धड़कन अचानक बढ़ गयी थी।

आफशाँ मेरे पास आकर बोली… अब चलें। …हाँ चलते है। मैने उस अधिकारी से कहा… आपके खिलाफ शिकायत करना इनके उपर निर्भर करता है। हाँ अगर जरुरत पड़ेगी तो मै अपना स्टेटमेन्ट लिखित मे आपके पास भिजवा दूँगा। तभी चांदनी बोली… मै इनके मालिक को जानती हूँ। अब अब्बा ही इन्हें अपने हिसाब से डील करेंगें। तभी रजिया की अम्मी जल्दी से तेज स्वर मे बोली… चांदनी बेकार इस मामले को तूल मत दो। अब्बा को इसका पता चला तो मेरे लिये एक नयी आफत खड़ी हो जाएगी। उसके बाद तुम जानती हो कि क्या होगा। …बाजी, इनको सबक सिखाना जरुरी है। चांदनी की बात बीच मे काट कर मैने जल्दी से कहा… चांदनी अब मुझे इजाजत दो। अगर मेरे स्टेटमेन्ट की जरुरत पड़े तो मुझे खबर कर देना। वह जल्दी से बोली… समीर, हम भी आपके साथ बाहर चल रहे है। इतना बोल कर हम सभी वाटरवर्लड के निकासी द्वार की ओर चल दिये थे। आफशाँ मेरे साथ चलते हुए बोली… तुम चांदनी को कैसे जानते हो? …इसके अब्बा अंसार रजा प्रदेश के विधायक है। उन्होंने एक बार मुझे पार्टी मे बुलाया था। वहाँ इससे मुलाकात हुई थी। मेरे कपड़े और जूते अभी भी गीले थे तो चलने बड़ी असुविधा हो रही थी। मेनका का हाथ पकड़ कर आफशाँ मेरे साथ चल रही थी। चांदनी अपने परिवार और दोस्तों के साथ कुछ दूरी बना कर चल रही थी।

…आफशाँ मै वापिस जाना चाहता हूँ। तुम्हारा क्या विचार है? आफशाँ कोई जवाब देती उससे पहले मेनका बोली… अब्बू बस एक राईड लेकर वापिस चलेंगें। मैने अपनी फ्रेंन्ड से प्रामिस की है। मैने आफशाँ की ओर देखा तो उसने रज़िया की ओर इशारा करके कहा… महारानी जी ने मेरी-गो राउन्ड पर उसके साथ राईड करने का फैसला किया है। …कोई बात नहीं। मै सामने पार्क मे बैठ जाता हूँ। प्लीज, तुम इसे राईड करवा कर ले आओ। तब तक मेरे कपड़े भी थोड़े से सूख जाएँगें। आफशाँ ने हामी भरते हुए चांदनी के ग्रुप से कहा… हम मेरी-गो-राउन्ड पर राईड के लिये जा रहे है। तभी रज़िया ने अपनी अम्मी से कहा… अम्मी मै भी उसके साथ राईड पर जाऊँगी। उसकी अम्मी बेचारी वाटरवर्ल्ड के हादसे के कारण वैसे ही घबराई हुई थी तो वह जल्दी से बोली… हर्गिज नहीं। हम घर वापिस जा रहे है। आफशाँ उनके पास चली गयी और मै सामने पार्क की ओर बढ़ गया था।

पार्क मे एक खाली स्थान देख कर मै घास पर लेट गया। जाती हुई धूप के कारण कपड़े सुखाना तो मुश्किल था। …समीर। मैने गरदन घुमा कर देखा तो चांदनी और रज़िया की अम्मी मेरे साथ आकर बैठ गयी थी। जल्दी से उठ कर बैठते हुए मैने पूछा… आप लोग राइड लेने नहीं गये? …नहीं। बाजी को चक्कर आते है। एक बार फिर से हमारे बीच मे चुप्पी छा गयी थी। …तुम मुझे बेवकूफ बना रहे थे। आफशाँ तो काफी पढ़ी-लिखी है। पहली बार तो मुझे चांदनी की बात समझ मे नहीं आयी परन्तु तभी चांदनी ने कहा… यह मेरी बड़ी बहन शाईस्ता है। इन्होंने भी बीटेक किया है। मैने शाईस्ता की ओर देखा तो उसकी नजर मेरी-गो-राउन्ड पर टिकी हुई थी। …चांदनी इनके पति को क्या हुआ? चांदनी कुछ बोलती उससे पहले शाईस्ता ने मुड़ मेरी ओर देख कर कहा…  वह गैंग वार मे मारे गये थे। उसने जिस तरह से कहा था मुझे बड़ा अजीब लगा लेकिन फिर भी मैने संभल कर कहा… खुदा के आगे किसका बस चलता है। अबकी बार वह बेहिचक बोली… समीर, यह सब बेकार की बात है। मेरे पति आजमगड़ के बाहुबली थे। वह चुनाव मे खड़े होने की तैयारी कर रहे थे परन्तु दुश्मनों ने घात लगा कर उनके काफिले पर हमला किया था। ऐसे लोगों का अंत ऐसा ही होता है। मेरी किस्मत ही खराब थी कि क्या सोच कर अब्बू ने मेरा निकाह ऐसे परिवार मे करा दिया। उसकी कुंठा उसके स्वर मे झलक रही थी। चांदनी चुपचाप सिर झुकाये बैठी सब सुन रही थी। मै कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था।

एकाएक शाईस्ता बोली… आफशाँ भी मेरी तरह बीटेक है। आपने उसे अपना मुस्तक्बिल बनाने का मौका दिया तो आज वह अपनी कंपनी की स्टेशन हेड बन गयी है। उसका आत्मविश्वास उसकी बोली और हाव-भाव मे साफ झलकता है। मै उसे क्या बताता तो मैने जल्दी से कहा… शाईस्ता वह तो आप अब भी कर सकती है। रज़िया के भविष्य के लिये आपको अपना मुस्कतक्बिल खुद बनाना पड़ेगा। अगर इसमे आफशाँ आपकी कुछ मदद कर सकती है तो वह जरुर करेगी। इतनी देर मे पहली बार चांदनी बोली… समीर, तुम बाजी की परेशानी नहीं समझ रहे हो। इनके सुसराल वाले इसके लिये हर्गिज राजी नहीं होंगें। क्या तुमने कभी अंसारी का नाम सुना है? इस नाम का दबदबा पूरे प्रदेश मे है। उनके खिलाफ जाने की मंत्री से लेकर संत्री तक की मजाल नहीं है। मेरे अब्बू भी उनके रिश्ते को नहीं ठुकरा सके थे। अंसारियों का प्रदेश मे ऐसा आतंक व्याप्त है। शाईस्ता ने तुरन्त नसीहत देते हुए कहा… चांदनी तू ऐसी गलती कभी मत करना। उनकी बातचीत से वातावरण बेहद बोझिल हो गया था।

कुछ रुक कर बात बदलने की नीयत से मैने पूछा… अचानक तुम्हारे अब्बू को ऐसा क्या जरुरी काम पड़ गया कि उनको कलकत्ता जाना पड़ा? …बरेलवी और देवबंद का एक डेलीगेशन हाल मे हुए दंगो की जाँच करने के लिये कलकत्ता गया है। …बेग की हत्या? चांदनी ने घूर कर मेरी ओर देखा और फिर धीरे से हामी भर कर अचानक बोली… समीर, क्या तुम बाजी को आजमगड़ से निकालने मे मेरी मदद कर सकते हो? मैने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वह काफी संजीदा लग रही थी। शाईस्ता भी हतप्रभ सी उसी को देख रही थी। मै कुछ बोलता उससे पहले शाईस्ता गुस्से मे चिल्लायी… तू क्या पागल हो गयी है। तू नहीं जानती कि उनसे टक्कर लेना अब्बू के बस की बात नहीं है तो समीर को शहीद करवाने पर क्यों तुली हुई है। …बाजी अगर कुछ समय के लिये यह अपने साथ आपको कश्मीर ले गये तो आप नये सिरे से अपनी जिंदगी के बारे मे सोच सकती है। शाईस्ता अभी भी चांदनी को गुस्से से घूर रही थी। कुछ सोच कर मैने कहा… चांदनी क्या मुसीबत से भागने से कभी कोई हल निकलता है? मै इन्हें अपने साथ कश्मीर ले गया तो वह भी इनके लिये एक तरह से जेल की तरह हो जाएगी। शाईस्ता कुछ बोलती तभी बच्चों के साथ आफशाँ आती हुई देख कर वह चुप हो गयी और उठ कर उनकी ओर चली गयी। चांदनी भी उठ कर शाईस्ता के पीछे जाते हुए दबी आवाज मे बोली… समीर, रात को फोन पर बात करुँगी। उनके समूह से विदा लेकर आफशाँ और मेनका मेरे साथ आकर बैठ गये थे।

आफशाँ मुझे बड़े गौर से देख रही थी परन्तु मेनका के कारण वह बोलने से हिचक रही थी। मैने मुस्कुरा कर कहा… जो तुम्हारे दिमाग मे चल रहा है उस कचरे को निकाल कर बाहर फेंक दो। वह दोनो प्रदेश के सबसे खुंखार माफिया से संबन्ध रखती है। प्लीज अब घर चलो। इन कपड़ों मे अगर कुछ देर और बैठा रहा तो फिर तुम्हें मेरी तीमारदारी करनी पड़ेगी। वह मुस्कुरा कर बोली… मेनका आओ घर चलते है। हम तीनो पार्क के निकासी द्वार की ओर चल दिये थे। …तुम्हारी कार का क्या हुआ? …वह तो मैने वापिस भेज दी थी। हम तुम्हारे साथ वापिस जाएँगें। हम एम्युजमेन्ट पार्क से बाहर निकल कर पार्किंग की दिशा मे चल दिये थे। आफशाँ मेरे साथ चलते हुए धीमे से बोली… समीर, वह लड़की तुम पर फिदा है। उससे दूरी बना कर रखना। मैने उसकी ओर देखा तो वह मेनका पर नजर जमाये हुए थी। चलते-चलते उसकी कमर मे हाथ डाल कर अपने समीप खींच कर मैने कहा… मैने आज जो देखा है उसके बाद सच पूछो तो किसी और के बारे मे सोचना तो मुमकिन नहीं है। …सब के सामने यह क्या कर रहे हो? …अपनी बीवी के साथ कर रहा हूँ तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। ऐसे ही छेड़खानी करते हुए और मेनका की कहानी सुनते हुए हम जीप मे सवार होकर शाम तक घर पहुँच गये थे।

खाने के पश्चात लान मे बैठ कर मैने आफशाँ को शाईस्ता और चाँदनी के बारे बताया तो वह अचरज से मेरी ओर देखते हुए बोली… इतने खतरनाक लोग है। …हाँ। इसलिये तुम भी सावधान रहना। …समीर, अगर शाईस्ता चाहे तो मै उसको अपने आफिस मे प्रोग्रामर की तरह रख सकती हूँ। …नहीं। ऐसा हर्गिज मत करना। इन लोगों से दूरी बना कर रखना। एक कट्टर वामपंथिन है और दूसरी प्रदेश की माफिया की बहू है। मै अभी आफशाँ से बात कर ही रहा था कि चांदनी का फोन आ गया। मैने जल्दी से काल लेकर कहा… बोलो चांदनी। …समीर, प्लीज इस मामले मे मेरी मदद करो। बाजी का जिन्दगी वहाँ पर जहन्नुम बन चुकी है। कुछ सोच कर मैने कहा… कुछ भी मदद करने से पहले मुझे तुम्हारे अब्बू और अंसारी के बारे सारी जानकारी चाहिये क्योंकि तुम मुझे माफिया, बरेलवियों और देवबंदियों के साथ टक्कर लेने के लिये बोल रही हो। मेनका और आफशाँ की सुरक्षा मेरे लिये ज्यादा जरुरी। …तुम्हें जो कुछ भी जानकारी चाहिये वह बताओ। …मुझे कुछ समय दो। मै सोच कर बता दूँगा। …ठीक है। लेकिन जल्दी करना क्योंकि बाजी सिर्फ एक हफ्ते के लिये यहाँ पर है। अगले हफ्ते उन्हें वापिस आजमगड़ लौटना है। …ओके। बस इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। आफशाँ साथ बैठी हुई हमारी बात सुन रही थी। …तुम उनकी मदद करने की सोच रहे हो? …नहीं। मैने इसके बारे कुछ और सोचा है।

अगले दिन सुबह आफिस पहुँच कर अंसारी परिवार के बारे मे सारी जानकारी एकत्रित करके मै तिकड़ी के सामने बैठ कर अंसार रजा और अंसारी परिवार की कहानी सुना रहा था। …सर, एक यह मौका है कि जब हम दारुल उलुम देवबंद और दारुल उलुम बरेलवी के विरुद्ध इस्लामिस्टो द्वारा पोषित माफिया को आमने-सामने खड़ा कर सकते है। वीके ने तुरन्त पूछा… कैसे? …सर, अंसार रजा बरेलवी फिरके को मानता है। उसके कहने पर शाईस्ता और उसकी बेटी रज़िया को अगर हम सुरक्षा देंगें तो अंसारी गिरोह तुरन्त इसके विरोध मे उतरेगा। अंसारी परिवार देवबंदी फिरके से ताल्लुक रखता है। इसके जवाब मे अंसार रजा के लिये दारुल उलुम बरेलवी से जुड़े हुए सभी लोग दारुल उलुम देवबंदी के विरोध मे खड़े हो जाएँगें। एक बार इन दो गुटों के बीच मे फूट पड़ गयी तो फिर इसका असर अन्य राज्यों तक पहुँच जाएगा। एक तरह से हक डाक्ट्रीन के गज्वा-ए-हिन्द के मन्सूबों की कमर टूट जाएगी। अबकी बार जनरल रंधावा ने प्रश्न किया… मेजर, भला अंसार रजा हमारे पास क्यों आयेगा? …सर, यह मुझ पर छोड़ दिजिये। मै ऐसे हालत खड़े कर दूँगा की अंसार रजा आपके पास आकर अपने परिवार की सुरक्षा की गुहार लगाएगा। वीके ने कुछ सोच कर कहा… मेजर, पाँच महीने के बाद प्रदेश मे चुनाव है। ऐसा अगर हो गया तो इस्लामिस्टों की एकता छिन्न-भिन्न हो जाएगी। इस काउन्टर आफेन्सिव आप्रेशन के लिये गो अहेड। उनसे हरी झंडी मिलते ही मै अपनी व्युहरचना तैयार करने मे जुट गया था।

अपने आफिस मे पहुँच कर मैने पहला फोन चांदनी को लगाया… हैलो। …बोलो समीर। …शाईस्ता और रज़िया को लेकर फौरन कहाँ मिल सकती हो? वह कुछ सोच कर बोली… उन दोनो को घर से लेकर निकलना तो बहुत मुश्किल होगा। …मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। आज या कभी नहीं। वह जल्दी से बोली… मै उन दोनो को लेकर दो बजे तक सुर्या होटल पहुँच जाऊँगी। …ठीक है। बस इतना बोल कर मैने फोन काट दिया था। कैप्टेन यादव की टीम की परीक्षा की घड़ी आ गयी थी। उनकी टीम मानेसर मे मे अस्थायी तौर पर दो बिलावल ट्रांस्पोर्ट के ट्रकों पर तैनात थी। मैने अगला फोन कैप्टेन यादव को लगाया था। …कैप्टेन अपने साथ चार सिपाहियों को लेकर दो बजे तक सुर्या होटल के रिसेप्शन पर पहुँच जाना। …जी सर। बस इतनी बात करके मै आराम से दोपहर की तैयारी मे जुट गया था। ठीक दो बजने से दस मिनट पहले मै सुर्या होटल के पोर्च मे अपनी जीप खड़ी करके रिसेप्शन पर कैप्टेन यादव की प्रतीक्षा करने बैठ गया था।

ठीक दो बजे कैप्टेन यादव अपने चार साथियों के साथ सुर्या होटल मे प्रवेश किया। सभी अपनी ब्लैक डंगरी मे आधुनिक हथियारों से सुसज्जित थे। मुझे सोफे पर बैठा देख कर कैप्टेन यादव मेरी ओर चला आया था। …तुम अपने साथियों के साथ काफी शाप मे जाकर आराम से काफी का लुत्फ लो। बस ख्याल रहे कि कोई सुरक्षा मे चूक नहीं होनी चाहिये। कैप्टेन यादव तुरन्त मुड़ा और अपने साथियों को लेकर काफी शाप की ओर चला गया था। मुझे अब चांदनी का इंतजार था। घड़ी की सुई लगातार आगे बढ़ रही थी परन्तु चांदनी का अता पता दूर-दूर तक नहीं था। क्या मेरी रणनीति पहले पायदान पर पहुँचने से पूर्व धाराशायी हो गयी? ऐसा विचार बार-बार मुझे परेशान कर रहा था। चांदनी ने भी सूचना देने की जरुरत नहीं समझी थी। उसको फोन करके मै पूछना चाहता था परन्तु चांदनी को भी मै कोई सुराग देने के पक्ष मे नहीं था। तीन बजने वाले थे तो मै यह सोच कर उठ कर खड़ा हो गया कि अब मुझे नये सिरे से अपनी योजना तैयार करनी पड़ेगी। तभी सफेद आडी पोर्च मे आकर रुकी और उसमे से चांदनी उतरती हुई देख कर मै तुरन्त सोफे पर बैठ गया था। दोनो बहनें जल्दी से कार से उतरी और रज़िया को लेकर लगभग भागते हुए रिसेप्शन एरिया मे प्रवेश किया। मुझे सोफे पर बैठे हुए देख कर वह दोनो ठिठक कर रुक गयी थी।

…तुम अभी तक इंतजार कर रहे हो? …क्यों क्या मुझे इंतजार नहीं करना चाहिये था? सवाल का जवाब सवाल से देकर मै उठ कर खड़ा हो गया और रज़िया को गोद मे उठा कर बोला… तुम्हारे साथ कोई सुरक्षाकर्मियों की फौज भी आयी है? …नहीं। उनसे पीछा छुड़ाने के कारण हमे देर हो गयी। …चलो काफी शाप मे बैठ कर आराम से बात करते है। हम लोग काफी शाप की दिशा मे चल दिये। …समीर, क्या करने की सोच रहे हो? …अभी तो कुछ खास नहीं। आराम से बैठ कर बात करते है।  काफी शाप मे एक नजर कैप्टेन यादव पर डाल कर हम लोग एक किनारे की टेबल पर जाकर बैठ गये थे। रज़िया के लिये आईसक्रीम और तीनो के लिये काफी का आर्डर देने के पश्चात मैने शाईस्ता से पूछा… क्या तुम उस परिवार से हमेशा के लिये अपना पीछा छुड़ाना चाहती हो? शाईस्ता अभी भी घबरायी हुई लग रही थी। चांदनी जल्दी से बोली… हाँ। …इसका जवाब मुझे शाईस्ता से सुनना है क्योंकि आने वाले समय मे इसको उनके सामने खड़े होकर बोलना है। अगर इसमे हिम्मत नहीं है तो फिर मै इस काम मे हाथ नहीं डाल सकता। यह आखिर इसका और इसकी बेटी प्रश्न है। एक बार इसने मन बना लिया तो वादा करता हूँ कि इसके साथ आखिर तक खड़ा रहूँगा।

एकाएक शाइस्ता ने नजरें उठा कर मेरी ओर देखा और कुछ बोलते-बोलते रुक गयी। …चांदनी तुम रज़िया को लेकर दूसरी टेबल पर बैठ जाओ। चांदनी ने एक पल मुझे देखा और फिर रज़िया को लेकर कुछ दूरी पर जाकर बैठ गयी। उनके हटते ही शाईस्ता ने धीरे से कहा… समीर, मै वहाँ हर्गिज नहीं जाऊँगी। उसने एक बार सामने बैठी चांदनी और रज़िया को देखा और फिर निगाह झुका कर बोली… प्लीज तुम मुझे उस जहन्नुम मे जाने से बचा लो। इसके लिये मै कुछ भी करने को तैयार हूँ। …किसी के दबाव मे अपनी बात से पलटोगी तो नही? …रज़िया के कारण मै उनके आगे मजबूर थी लेकिन अब नहीं। मैने अपना एक हाथ उसकी और बढ़ा कर कहा… वादा? वह तुरन्त मेरा हाथ पकड़ कर बोली… वादा। मैने इशारे से चांदनी को बुला कर पूछा… इस समय तुम्हारे घर पर सुरक्षा के क्या इंतजाम है? …प्रदेश की पुलिस के दर्जन सिपाहियों की ड्युटी घर पर लगी हुई। अब्बू की कार्यकर्ताओं की फौज तो चौबीस घंटे वहीं पर तैनात रहती है। शाईस्ता तुरन्त बोली… चांदनी, वह गुंडो की फौज है। मैने बीच मे टोकते हुए पूछा… अंसारी परिवार के घर पर भी क्या ऐसे ही गुंडो की फौज तैनात रहती है? …हाँ, उससे भी कई गुना ज्यादा। उन दोनो की बात सुनने के पश्चात मैने कहा… चांदनी तुम अपने अब्बू के सभी जानकार, दोस्त व पार्टनर्स के नाम एक कागज पर नोट करके मुझे दे दो। इसी प्रकार शाईस्ता तुम भी अंसारी परिवार के लोगों के नाम बताओ। दोनो एक साथ बोली… क्यों? …इसलिये कि अगर वह लोग इनकी मदद या प्रभाव के जरिये शाईस्ता और रज़िया पर कोई दबाव बनाने की कोशिश करेंगें तो हमे उन सबके लिये पहले से तैयारी करनी पड़ेगी। लड़ाई का पहला उसूल होता कि अपने दुश्मन को ठीक से पहचानो। हम दो सबसे प्रभावशाली परिवारों से दुश्मनी मोल लेने जा रहे है तो उनको जानना बहुत जरुरी है। चांदनी ने तुरन्त पूछा… अभी बताना पड़ेगा? …नहीं। आराम से सोच कर और समझ कर वह लिस्ट व्हाट्स एप पर मुझे भेज देना। शाईस्ता ने प्रश्नवाचक दृष्टि मुझ पर डाली तो मैने कहा… अब तुम मेरे साथ जाओगी तो आराम से मुझे अपनी लिस्ट दे देना। टेबल पर चुप्पी छा गयी थी।

…बाजी और रज़िया के बारे मे घर पर क्या कहूँगी? वह दोनो मेरे साथ आयी है। …क्या कह कर आयी थी? …शापिंग करने जा रही है। …एक शापिंग माल मे चली जाओ। वहाँ पर पहुँच कर शाईस्ता और रज़िया को मै अपने साथ लेकर निकल जाऊँगा। उसके बाद तुम घर पर उनके गायब होने की कहानी सुना देना। बाकी काम मुझ पर छोड़ दो। मेरी बात सुन कर दोनो बहनें विचलित हो गयी थी। …मुझ पर विश्वास करो। चांदनी ने अबकी बार शाईस्ता से कहा… बाजी, इस पर आप विश्वास कर सकती है। शाईस्ता कुछ देर चुप रही और फिर एक गहरी साँस छोड़ कर बोली… समीर, मुझे अब तुम्हारी चिन्ता हो रही है। हमारे कारण तुम नाहक ही अपनी जान जोखिम मे डाल रहे हो। …शाईस्ता तुम मेरी फिक्र मत करो। चांदनी इस बात की गवाह है। शाईस्ता ने चांदनी की ओर देखा तो एक पल लिये झेंप गयी थी। …बाजी आपको सारी कहानी फिर कभी बताऊँगी। पहले यहाँ से किसी शापिंग माल मे चलते है। इतना बोल कर वह दोनो खड़ी हो गयी थी।

वहाँ से निकलने से पहले मैने कैप्टेन यादव को पीछे आने का इशारा किया और फिर अपनी जीप से उनकी कार के पीछे हो लिया। वह पार्किंग मे कार खड़ी करके एक शापिंग माल मे चली गयी थी। मै भी कुछ देर के बाद कैप्टेन यादव को निर्देश देकर उनके पीछे चला गया था। उनको ढूंढने मे मुझे कुछ समय लग गया था। वह अब मेरी नजरों के सामने थी। वह टहलते हुए दुकानों मे सजे हुए सामान पर निगाह डालते हुए आगे बढ़ रही थी। मैने उनके करीब पहुँच कर चलते हुए धीरे से कहा… चांदनी तुम अब इनसे अलग हो जाओ। इतना बोल कर मै आगे बढ़ गया था। चांदनी ने शाईस्ता से कुछ कहा और पीछे की ओर चल दी थी। शाईस्ता अपनी गोदी मे रज़िया को उठाये आगे बढ़ गयी थी। मै फायर एस्केप के निकासी द्वार पर पहुँच कर ठहर गया था। जैसे ही शाईस्ता मेरे सामने पहुँची मैने अपनी बाँह उसकी कमर मे डाल कर अपनी ओर खींचते हुए बोला… आओ चले। मेरी इस अचानक हरकत से एक पल के लिये वह हड़बड़ा गयी थी। रज़िया भी सहम गयी थी। तब तक एक हाथ से मैने लकड़ी के दरवाजे को धकेल कर खोल चुका था। शाईस्ता खिंचती हुई मेरे साथ दरवाजे के पार चली गयी थी। दोनो के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ी हुई साफ झलक रही थी। मुझ पर नजर पड़ते ही रज़िया मुस्कुरायी तो मैने जल्दी से कहा… आओ चलें। बस इतनी बात हो सकी थी। मैने रज़िया को गोदी मे लिया और तेजी से सीड़ियों के रास्ते से हम तीनो शापिंग माल के बाहर निकल आये थे। कुछ दूर निकलने के बाद एनएसजी की बख्तरबंद गाड़ी हमारे करीब आकर रुकी और उसका दरवाजा खुल गया। शाईस्ता और रज़िया को लेकर मै उस गाड़ी मे प्रवेश करते हुए बोला… लेट्स गो। दरवाजा तुरन्त बन्द हुआ और गाड़ी आगे बढ़ गयी। …शाईस्ता तुम आराम से इसमे बैठो। मै अपनी जीप से तुम्हारे पीछे आ रहा हूँ। तब तक कैप्टेन यादव ने कहा… सर, पार्किंग आ गयी है। मै जल्दी से बख्तरबंद गाड़ी से उतर कर अपनी जीप की ओर बढ़ गया था। मेरे उतरते ही वह गाड़ी आगे बढ़ गयी थी।

अपनी जीप मे बैठते ही मैने फोन पर जनरल रंधावा को सुचित कर दिया था… सर, मिशन एकम्पलिश्ड। उसके पश्चात मै एनएसजी के मानेसर कैम्पस की दिशा मे चल दिया था। दारुल उलुम बरेलवी और दारुल उलुम देवबंद के बीच हुए गठजोड़ को तोड़ने का मौका अचानक खुदा ने मुझे दे दिया था। अब इसको सफल करना मेरी जिम्मेदारी थी।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही जबरदस्त मोड पे कहानी पहुंच चुकी जिन दोनो समूहों ने अपना गांठ सांठ करके जो आतंकी हमला कर रहे थे अब वो बिखरने वाली है और इसका रास्ता शाइस्ता और राजिया का उस बाहुबली परिवार से छुड़ा कर समीर ने शुरुआत कर दिया है मगर कहीं न कहीं इसमें अफशा और मेनका का जान जोखिम में डाल दिया है समीर ने, खैर आगे क्या होता है यह देखना दिलचस्प होगा।

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    1. शुक्रिया अल्फा भाई। उनको छुड़ाना मकसद नहीं था लेकिन उनको छुड़ाने के पीछे उसका मकसद हक डाक्ट्रीन को कमजोर करने का था। अब वह इसमे कितना सफल होता है वह देखना अभी बाकी है।

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  2. कहाणी काफी दिलचस्प मोडपे आ गयी, आफशा और चांदणीकी मुलाकातने समीर नामके शातीर दिमागी इंसानके होश फाखता कर दिये, यहा हेराफेरी मुवीका डायलॉग याद आया"औरत का चक्कर बाबूभैय्या", यहा समीर भैय्या केहना पडेगा. कभीना कभी बानो, आफशा, अदा का सामना होनाही है, समीर को इन सबका सामना एक दिन करना ही है.तब कहाणी किस करवट बैठती है देखणा मजेदार होगा.

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    1. औरत का चक्कर है प्रशांत भैया जिसके कारण बरेलवी और देवबंदी गुटों के बीच का नापाक गठजोड़ टूटने की कागार पर पहुँच जाएगा। बीवी और प्रेमिका आमने-सामने आ जाने से किसी भी पुरुष के होश फाख्ता हो जाएँगें तो बेचारे समीर की हालत इससे भिन्न कैसे हो सकती है।

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  3. यहा एक और बात जोडणी पडेगी, ये रजिया की अम्मी कही मजबुरीमे समीर के गले की हड्डी न बन जाये, आय मिन अपना समीर एलिस का शिष्य है और लेडी किलर भी तो है.😉😎

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    1. गले की हड्डी बने न बने लेकिन यह तो तय हो गया कि हक डाक्ट्रीन को जमीन पर उतारने वालों के लिये शाईस्ता और रजिया गले की हड्डी जरुर बन जाएगी। आपने सही फर्माया कि एलिस की ट्रेनिंग उसके काम आ रही है लेकिन एक बात और भी है कि वह रिश्तों के मामले मे हमेशा उलझ कर रह जाता है। प्रशांत भाई शुक्रिया।

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