सोमवार, 27 नवंबर 2023

  

गहरी चाल-36

 

साजिश उजागर होने के पश्चात कुछ सोचते हुए जनरल रंधावा खड़े हो गये… मेजर, मै अभी आता हूँ। यह बोल कर वह कमरे से बाहर चले गये थे। पाँच मिनट बाद वह वापिस कमरे मे आकर बोले… इसने ऐसी फिल्मी कहानी सुना दी कि ब्लैडर पर दबाव बढ़ गया था। अब्दुल्लाह उनकी बात सुन कर मुस्कुराया तो मेरे तन बदन मे आग लग गयी थी। अपने आप को नियंत्रित करने के लिये मैने कहा… सर, मै भी दबाव कम करके आता हूँ। यह बोल कर मै भी बाहर जाने के लिये उठा तो अफरोज बोला… समीर भाई मै भी आपके साथ चलूँ।  मैने उसे रुम मे एक दरवाजे को दिखाते हुए कहा… तुम वहाँ कर सकते है। मै अपने दिमाग को दुरुस्त करने के लिये बाहर जा रहा हूँ। बाहर खड़े सैनिकों मे से दो सैनिकों को अन्दर भेज कर मै गैलरी मे टहलने लगा था। अचानक मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। …हैलो। …समीर, मै आयशा बोल रही हूँ। कल रात को फौज अफरोज भाईजान को उठा कर ले गये थे।  मुझे तुम्हारी मदद चाहिये। तुम दिल्ली मे कहाँ हो मै तुमसे अभी मिलना चाहती हूँ। …तुम कहाँ हो? …मै दिल्ली एयरपोर्ट पर अभी उतरी हूँ। तुम जहाँ भी हो मुझे पता बता दो मै वहीं पर पहुँच जाऊँगी। मैने कुछ सोच कर कहा… आयशा, मै इस वक्त आफिस मे नहीं हूँ। तुम्हारे ठहरने की यहाँ पर कोई व्यवस्था है? …नहीं इस बार तो होटल मे ठहरना पड़ेगा। पहले तो यहाँ पर मै अपने खाविन्द के आफिस के गेस्ट हाउस मे ठहरती थी। कोई होटल बता सकते हो? मेरे दिमाग मे दो ही होटल थे सुर्या और मेरेडियन। सुर्या मेरे आफिस से दूर था तो मैने कहा… मेरिडियन मे ठहर जाओ। …क्या बहुत महंगा तो नहीं है? मैने जल्दी से कहा… यहाँ तुम मेरी गेस्ट हो। तुम चेक इन करो। मै कुछ देर मे वहीं पहुँच रहा हूँ तब तक तुम आराम करो। मैने फोन काट दिया और वापिस कमरे मे चला गया।

जनरल रंधावा की आदिल के बारे मे अफरोज से पूछताछ चल रही थी। मुझे देखते ही वह बोला… समीर तुम ही बताओ कि मै इनको कैसे यकीन दिलाऊँ? कल रात से कह रहा हूँ कि मै किसी आदिल नाम के आदमी को नहीं जानता लेकिन कोई भी मेरी बात मानने को तैयार नहीं है। …समीर, यह झूठ बोल रहा है। मैने इसे कई बार उसके साथ श्रीनगर मे घूमते हुए देखा था। मै तो उसे पहली बार ढाका मे मिला था। एक बार जब मैने उसके बारे मे पूछा तो उसने उसे अपना बहुत अच्छा दोस्त बताया था। वह किसी लड़की के साथ हिज्बुल के गाजियों का प्रशिक्षण देखने के लिये हमारी बोट पर भी आया था। मैने उसको चुप कराते हुए हुए जेब से उसके फोन की कोन्टेक्ट लिस्ट निकाल कर उसके सामने रखते हुए कहा… अफरोज से आदिल का पता हम लगा लेंगें। यह तुम्हारे फोन से निकाली कोन्टेक्ट लिस्ट है। इनमे से उन बत्तीस गाजियों पर निशान लगा दो जो आदिल के साथ है। …मुझे याद नहीं? मेरी आवाज कड़ी हो गयी… अब्दुल्लाह अब आनाकानी करने का समय नहीं है। जो कह रहा हूँ वह करो अन्यथा तुम दोनो को यहाँ से सीधे कैंम्प मे ले जाया जाएगा। अफरोज को सिर्फ आदिल के बारे मे बताना है लेकिन तुम वहाँ से जिन्दा वापिस नहीं आ सकोगे। अब्दुल्लाह के लिये बस इतनी धमकी ही काफी थी। वह कागज मे लिखे हुए नाम पढ़ कर धीरे-धीरे निशान लगाने लगा था। कागज पर निशान लगाते हुए अचानक उसकी आँखें चमकने लगी थी। वह जल्दी से बोला… समीर, यह नम्बर आदिल का है। मैने कागज पर उस नम्बर को देखा और उस पर नाम आदिल के बजाय अफरोज का लिखा हुआ था। मैने उस नम्बर पर एक बड़ा सा गोला बनाया और फिर उसे कागज थमा दिया था। चार सौ नम्बरों मे से वह तीस पर निशान लगा कर बोला… दो इनमे से और है लेकिन उनके नम्बर मुझे याद नहीं है। मैने वह कागज उसके हाथ से ले लिया और जनरल रंधावा की ओर देखते हुए कहा… सर, अब यहाँ से चलते है। अफरोज को डिटेन्शन मे डाल कर बाद मे पूछताछ करेंगें। हम तीनो उस कमरे से बाहर निकल आये थे।

गार्ड ड्युटी पर खड़े सैनिकों से मैने कहा… उन तीनो को उसके पास पहुँचा दो लेकिन अब से बाहर के बजाय अन्दर ड्युटी दोगे। इस बात का ख्याल रखना कि कोई भी फोन लेकर अन्दर नहीं जाना चाहिये। उनको निर्देश देकर हम अस्पताल से बाहर निकल आये थे। अफरोज को सैनिको के हवाले करके उसे मानेसर भिजवा दिया था। हम दोनो टैक्सी पकड़ कर अपने आफिस की ओर चल दिये थे। …मेजर इतनी भयावह योजना के बारे मे कोई सोच भी नहीं सकता था। अगर एक भी प्लेटफार्म पर उनका कब्जा हो गया होता तो शुजाल बेग ने सच ही कहा था कि वह हमारे सीने खंजर समान होता। मैने उन्हें लिस्ट देते हुए कहा… सर, इन सभी नम्बरों को तुरन्त ट्रेकिंग और टेपिंग पर लगवा दिजिये। जनरल रंधावा ने वह लिस्ट लेते हुए पूछा… क्या अफरोज उस आदिल नाम के व्यक्ति को जानता है? …सर, हो सकता है कि वह जानता हो परन्तु मै यकीन के साथ कह सकता हूँ कि वह उस इंसान को आदिल के बजाय किसी और नाम से जानता है। …मेरा भी यही ख्याल है।

थोड़ी देर के बाद जनरल रंधावा उन दोनो के सामने अब्दुल्लाह की रिकार्डिंग सुना रहे थे। अजीत सर और वीके चुपचाप आप्रेशन खंजर की रुपरेखा सुन रहे थे। सारी रिकार्डिंग सुनने के बाद वीके ने अपनी ओर से पहली प्रतिक्रिया दी… अजीत, इनको सबक सिखाने का समय आ गया है। अजीत सर ने हामी भरते हुए कहा… इस बार तो इन्होंने हद कर दी। मेजर अगर श्रीनगर मे वह इज्तिमा आयोजित हो गया होता तो सोचो कि यह क्या नहीं कर गुजरते। इसमे कोई शक नहीं कि ऐसी योजना सीआईए ने बनायी होगी लेकिन बस उनसे यही गलती हो गयी कि उस योजना को कार्यान्वित करने के लिये उन्होंने शरीफ और बाजवा जैसे लोगो को चुना था। अब आगे क्या सोचा है? जनरल रंधावा ने वह लिस्ट दिखाते हुए कहा… सबसे पहले तो यह सभी नम्बर ट्रेकिंग और टेपिंग पर डाल रहे है। आदिल का उसने एक नम्बर दिया है। उस नम्बर को श्रीनगर के डेटाबेस पर चेक करता हूँ कि क्या यह नम्बर वहाँ है और अगर है तो किस नाम से है। अजीत सर ने कुछ सोचने के बाद कहा… ठीक है मेजर और आप उन पर नजर रखिये। मै फौज को सावधान रहने के लिये कह देता हूँ। वीके तुम इस योजना लेकर सीआईए से बात करो। उन्हें पता चल जाना चाहिये कि हम भी अब से शांत नहीं बैठेंगें। आईबी को प्रेस के लिये दी गयी पर्मिशन की तहकीकात पर लगा देता हूँ। कम से कम यह तो पता चले कि वह कौन गद्दार है जिसने यह पर्मिशन इन्हें दिलवायी थी। ओएनजीसी के टर्मिनल और प्लेटफार्म्स पर सुरक्षा कड़ी करने के निर्देश जारी कर देता हूँ। फिलहाल के लिये यही और फिर बदलते हुए हालात को देख कर अपनी रणनीति मे बदलाव करेंगें।

हम सब अपने आफिस की ओर चल दिये थे। मैने जनरल रंधावा से कहा… सर, मेरे लिये कोई काम है तो बता दिजिये वर्ना मै अपने पुराने कोन्टेक्ट्स से आदिल के बारे मे पता करने की कोशिश करता हूँ। …मेजर, अभी तो फिलहाल कोई खास काम नहीं है। पहले इन नम्बरों पर ध्यान केन्द्रित करते है। एक भी नम्बर एक्टिव मोड मे आते ही यह पता चल जाएगा कि वह आखिर कहाँ छिपे बैठे है। जनरल रंधावा को उनके आफिस के बाहर छोड़ कर मै आयशा से मिलने मेरीडियन होटल चला गया था।

होटल मे आयशा मेरा इंतजार कर रही थी। उसकी फोन पर बातचीत से वह अफरोज के लिये बड़ी फिक्रमंद लग रही थी। मुझे देखते ही उसने अफरोज के बारे मे बताना आरंभ कर दिया था। कुछ देर के बाद जब वह शांत हो गयी तब मैने कहा… मुझे देर इसी लिये हो गयी थी कि मै अफरोज का पता लगा रहा था। पता चला है कि वह इस वक्त सेना की कैद में है। …पर भाईजान ने अबकी बार ऐसा क्या कर दिया है? …क्या तुम अफरोज के आदिल नाम के किसी दोस्त को जानती हो? …नहीं। कौन है यह आदिल? …आदिल एक आतंकवादी है जिसकी सेना तलाश कर रही है। किसी ने सेना को खबर की थी कि उसने अफरोज को आदिल के साथ घूमते हुए कई बार श्रीनगर मे देखा था। सेना ने अफरोज को आदिल के बारे मे पता करने के लिये उठाया था लेकिन अफरोज ने साफ आदिल नाम के आदमी से अपने संबन्ध होने से साफ इंकार कर दिया है जिसके कारण सेना ने उसे कैद मे डाल दिया है। …समीर, इस नाम के किसी आदमी को हमने अफरोज के साथ कभी नहीं देखा है। मेरी बात का विश्वास करो। …एक बार निशात से पूछ कर देखो कि क्या उसे कुछ पता है। अफरोज अब तब तक बाहर नहीं आ सकता जब तक आदिल का पता नहीं चलता। वह अचानक मुझसे लिपट कर रोने लगी थी। उसे बड़ी मुश्किल से शांत करवा कर निशात से बात करी तो उसका भी जवाब वही था। अब मुझे भी यकीन होने लगा था कि आदिल उस आदमी का फर्जी नाम था। …आयशा, तुम वापिस अपने घर चली जाओ। तुम कब तक यहाँ बैठी रहोगी क्योंकि बिना आदिल के अफरोज नहीं छूट सकता। …नहीं बिना भाई के मै घर वापिस नहीं जाउँगी। अब्बू और अम्मी की हालत के बारे मे तुम जानते ही हो कि अफरोज भाईजान के लिये वह कितने परेशान है। …मै तुम्हारी मजबूरी समझ सकता हूँ लेकिन तुम यहाँ रह कर भी इस मामले मे कुछ नहीं कर सकती। …समीर, मै तुम पर भरोसा करके यहाँ आयी थी।

मै अजीब दुविधा मे फँस गया था। अफरोज को छोड़ना तो नामुमकिन था। आयशा को कैसे वापिस जाने के लिये राजी किया जाये। …अगर तुम वापिस नहीं जाओगी तो फिर घर चलो। वहीं पर रुक जाओ क्योंकि इस होटल मे रहोगी तो मै जल्दी ही पाई-पाई के लिये मोहताज हो जाऊँगा। वह भीगी पलकों से मुझे देख कर बोली… आज मुझे तुम्हारी जरुरत है। मैने उसकी ओर देखा लेकिन कोई जवाब नहीं दिया तो उसने पल्कें उठा कर मेरी ओर देख कर बोली… मुझे मालूम है कि तुमने मुझे आज भी उस निशात बाग के वाक्ये के लिये माफ नहीं किया है। मैने उसे अपनी बाँहों मे भर कर कहा… ऐसी बात नहीं है। उस दिन तुम्हें अनवर के साथ देख कर मेरा दिल टूट गया था परन्तु उसके कारण तुम्हारे प्रति मेरी आसक्ति कम नहीं हुई है। सच कहूँ तो जवानी मे कदम रखते ही तुम्हें पाने की चाहत थी। बहुत बार तुमसे बात करने की सोची लेकिन आसिया और आफशाँ के कारण कभी दिल की बात नहीं कह सका था। निशात बाग भी मेरी चाहत को फनाह नहीं कर सकी परन्तु अब समय के साथ हालात बदल गये है। एकाएक अपने पंजों पर उचक कर उसने अपने होंठ मेरे होंठ पर रख कर मुझे चुप करा दिया था।

मेरी बाँहें स्वत: ही उसके इर्द गिर्द लिपटती चली गयी। उसने अपने आप को मेरे हवाले कर दिया। वह मेरी पहली चाहत थी। मै अपने उसी स्कूल के जीवन मे चला गया था। स्कूल से भागे हुए युगल जोड़े की तरह हर चुम्बन पर उसके अंगों को एक-एक करके निर्वस्त्र करता चला गया। थोड़ी देर मे ही वह बिस्तर पर पूर्णत: निर्वस्त्र होकर एकाकार के लिये तड़प रही थी। जैसे ही उसके उन्नत पहाड़ियों की ओर अग्रसर हुआ उसने तड़प कर मेरी पकड़ से निकलने का प्रयास किया परन्तु तब तक मेरे हाथ, उँगलियाँ, होंठ और जुबान अपने कार्य में जुट गये थे। कभी गुलाबी चोटियों पर उँगलियाँ फिराता और कभी दो उँगलियों में अकड़े हुए किश्मिश जैसे स्तनाग्रों को फँसा कर खींचता, कभी पहाड़ियों को अपनी हथेलियों में छुपा लेता और कभी उन्हें जोर से मसक देता। वह आँखे मुदें हुए उत्तेजना से दोहरी होती चली जा रही थी। हम दोनो भले ही होटल के कमरे मे थे परन्तु मेरे लिये वह कमरा निशात बाग के लकड़ी वाले कमरे मे तब्दील हो गया था। वह दृश्य मेरी आँखों के सामने घूम रहा था।

मेरी उँगलियों ने नीचे सरक कर जुड़ी हुई चिकनी संतरे की फाँकों को अलग करके अकड़े हुए अंकुर के सिर पर जैसे ही ठोकर मारी तो उसके मुख से लम्बी सीत्कार निकल गयी थी। मेरी उंगली ने खून से लबालब भरे हुए अंकुर को रगड़ना आरंभ कर दिया। उसकी आनंद से भरी सिसकारियाँ बढ़ती चली गयी और मेरे होंठ उसकी उन्नत स्तनों का रस सोखने मे जुट गये थे। वह अपने आप को मेरे हवाले करके अपनी ही दुनिया मे खो गयी थी। अचानक वह छ्टपटा कर अलग होकर मेरे कपड़ों को जिस्म से अलग करने मे जुट गयी थी। थोड़ी देर के बाद दो नग्न जिस्म एक दूसरे मे गुथ से गये थे। अपने तन्नायें हुए हथियार को पकड़ कर उसके बहते हुए स्त्रीत्वद्वार पर टिका कर धीरे उसके अकड़े हुए अंकुर पर जैसे ही रगड़ा वह बल खा कर मचल उठी। उसकी इस क्रिया के कारण गुस्साया हुआ भुजंग धीरे से अपनी जगह बनाता हुआ सुरंग मे कर गया था। आनंद की पहली लहर के एहसास से जब तक वह अपने आपको नियंत्रित करती तब तक उसके गोल पुष्ट नितंबों को थाम कर मैने अपनी कमर पर अचानक दबाव बढ़ा दिया। उत्तेजना मे मदमाता भुजंग सारे संकरेपन को खोल कर अन्दर सरकता चला गया। उसके मुख से बस लम्बी सीत्कार के साथ… समीर.उ.अ..आह.अ.उउआ.आहआह.मर.र…गई…उई। उसके जिस्म मे उठती हुए हर स्पंदन को मै अपने कामांग पर महसूस कर रहा था। मेरे हाथ फिसल कर उसके पुष्ट नितंबों पर जकड़ गये थे। गहरी साँस लेकर मैने एक भरपूर वार किया तो मेरा भुजंग सारी बाधाओं को दूर करते हुए जड़ तक जाकर धँस गया। हमारे जोड़ टकराते ही आयशा की आँखे अचंभे से फैल गयी थी। उसके मुख से एक मीठी दर्दभरी सीत्कार कमरे मे गूंज गयी थी। उसके साथ ही एकाकार के चक्रवाती तूफान ने गति पकड़ ली थी। हर वार पर एक संतुष्टि भरी सीत्कार उसके मुख से विस्फुटित हो रही थी। जैसे-जैसे कमरे मे आये हुए तूफान ने गति पकड़नी आरंभ की वैसे-वैसे उसका जिस्म अनियंत्रित होता चला गया। वह कभी मचलती और कभी तड़पती और कभी बल खा कर मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लेती।

हम दोनो के लिये समय रुक सा गया था। अचानक हम दोनो ही एक ही समय पर अपने चरम पर पहुँच गये थे। उसका जिस्म एक पल के लिए अकड़ा और फिर जोर का झटका खा कर उत्तेजना से कांप उठा था। उसके जिस्म के कंपन को महसूस करके मेरे अन्दर का ज्वालामुखी भी फट गया और हम दोनो का कामरस बेरोकटोक बहने लगा। तूफान गुजरने के पश्चात एक दूसरे को बाँहों मे लिये हम लस्त होकर पड़ गये थे। थोड़ी देर के बाद हम अलग हो कर बेड पर लेट गये… समीर। …हुं। …शुक्रिया। मैने करवट लेकर उसकी ओर देखा तो उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसको अपने निकट खींच कर उसके आँसू पौंछते हुए मैने पूछा… अपने किये पर क्या अब पछता रही हो? मेरी छाती पर मुक्का मार कर बोली… हाँ। अब पछता रही हूँ कि काश मैने खुद ही स्कूल मे पहल की होती तो कितना अच्छा होता। मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर वह बोली… समीर, अपने तलाक मे पाँच साल बाद आज पहली बार हिम्मत जुटायी थी। अगर आज तुम मुझे ठुकरा देते तो मै शायद मर ही गयी होती। उसके होंठों को चूम कर मैने कहा… चलो तैयार हो जाओ। मेरे घर चलो। आफशाँ तुम्हें देख कर बहुत खुश होगी। कल सोचता हूँ कि कैसे आदिल का पता लगाया जाये। हम दोनो जल्दी से तैयार हुए और जब तक बाहर आये तब तक अंधेरा हो गया था।

जब तक हम घर पहुँचे तब तक आफशाँ आ चुकी थी। आयशा को देख कर वह चौंक गयी थी। आयशा ने अफरोज के बारे मे बता कर कहा… सारी बात आदिल पर आकर रुक गयी है। उस रात दोनो सहेलियाँ काफी देर तक बात करती रही थी। उधर मेनका इतने दिनो की अपनी कहानी मुझे सुना रही थी। खाना खाकर मेनका को लेकर मै बाहर लान मे टहलने के लिये निकल गया था। आफशाँ और आयशा गेस्ट रुम मे अपनी बातों मे मग्न थी तो मेनका अपने स्कूल की कहानी सुनाने के लिये मेरे साथ बेडरुम मे आ गयी थी। थकान के कारण उसकी कहानी सुनते हुए मेरी आँख कब लग गयी मुझे पता ही नहीं चला। सुबह जब आँख खुली तो मेनका और आफशाँ दोनो ही आराम से मेरे साथ सो रही थी। मैने घड़ी पर नजर डाल कर मेनका को उठाया और उसे स्कूल के लिये तैयार होने के लिये भेज दिया। आफशाँ भी उठ गयी थी। …कल जल्दी सो गये थे? …तुम ही बताओ कि मै क्या करता। बहुत देर तक तुम्हारा इंतजार किया लेकिन जब तुम नहीं आयी तो सो गया। …सौरी। आज ऐसा नहीं होगा। इतनी बात करके मै तैयार होने चला गया। आज का दिन हमारे लिये काफी महत्वपूर्ण था।

अपने आफिस मे बैठ कर आदिल नाम की पहेली सुलझाने मे लगा हुआ था कि तभी दिमाग मे एक विचार आया तो जनरल रंधावा से मिलने चला गया। मुझे देखते ही जनरल रंधावा ने कहा… सारे फोन बन्द पड़े हुए है। रात से ही सभी नम्बरों पर नजर रखी जा रही है। एक भी फोन एक्टिव मोड मे आते ही हम उसकी लोकेशन ट्रेक कर लेंगें। …सर, फारेन्सिक विभाग से मुझे एक आर्टिस्ट की व्यवस्था करनी है। अब तक यह तो तय हो गया है कि आदिल को अब्दुल्लाह ने अफरोज के साथ देखा था। अफरोज का कहना है कि आदिल नाम के किसी भी शक्स को वह नहीं जानता है। इसका मतलब है कि वह आदमी अब्दुल्लाह से छ्द्म नाम से मिला था। फारेन्सिक वाले अब्दुल्लाह के विवरण पर एक तस्वीर तो बना सकते है। उस तस्वीर को अफरोज को दिखाएँगें तो शायद वह उसका असली नाम बता सके। …मेजर कोशिश करके देखने मे क्या हर्ज है। वैसे मेरा अनुभव कहता है कि ऐसी तस्वीरें असलियत से काफी परे होती है। इतना बोल कर वह फारेन्सिक विभाग मे किसी से बात करने मे व्यस्त हो गये थे। कुछ देर बात करने के बाद फोन काट कर बोले… मेजर दोपहर को उस आर्टिस्ट को लेकर अब्दुल्लाह से मिल लेना। वह आर्टिस्ट कुछ देर मे यहाँ पहुँच जाएगा।

एक बजे तक मै आर्टिस्ट को लेकर अबदुल्लाह के सामने बैठा हुआ था। …अब्दुल्लाह तुमने जिसको आदिल कहा है उसके चेहरे के बारे मे जो कुछ भी याद है इनको बताओ। यह आर्टिस्ट है जैसा तुम बताओगे वह उसका चित्र बना देंगें। फारेन्सिक का आर्टिस्ट अपना लैप्टाप खोल कर बैठ गया था। …उसके बाल कैसे थे? …छोटे बाल थे। …मांग उसने दाँये निकाली थी या बाँये? अपने लैपटाप पर उसने सात-आठ विभिन्न प्रकार के छोटे बाल दिखा कर पूछा… इनमे से क्या कोई एक स्टाईल उसके बालों से मैच करता है? अब्दुल्लाह ने उनमे से एक स्टाईल को चुन कर कहा… काफी हद तक यही उसके बालों जैसा लगता है। उसने अलग-अलग चेहरों की बनावट दिखाते हुए पूछा… उसके चेहरे की बनावट किससे मिलती जुलती है? इसी तरह आँखें, भौहें, नाक, होंठ और कान के अलग-अलग चित्र दिखा कर दो घंटे के बाद एक तस्वीर कंप्युटर पर बना कर दिखाते हुए आर्टिस्ट बोला… अब इस तस्वीर मे रंग भर कर कुछ बदलाव करके फाईनल चेहरे की तस्वीर बनाएँगें। एक बार फिर से सवाल जवाब का दौर आरंभ हो गया था। चार घंटे के अथक प्रयास के बाद एक तस्वीर उभर कर सामने आयी तो अब्दुल्लाह खुशी से चीखते हुए कहा… यही आदिल है। समीर भाई आपने कमाल कर दिया। फारेन्सिक आर्टिस्ट ने वह तस्वीर मेरे सामने कर दी थी। मैने उस तस्वीर पर एक नजर डाली तो वह 40-45 साल उम्र का एक अच्छे घर का कश्मीरी व्यवसायी लग रहा था। जिहादी जैसी कोई बात उसमे नहीं दिख रही थी। एक नजर भर कर देख कर मैने उस तस्वीर को अपनी पेन ड्राईव मे लेकर वहाँ से चल दिया। उस आर्टिस्ट को जब तक उसके आफिस के बाहर छोड़ा तब तक रात हो चुकी थी।

मैने जनरल रंधावा को फोन पर बताया कि मैने आदिल की तस्वीर बनवा ली है तो उन्होंने मुझे तुरन्त आफिस आने के लिये कह दिया। जब तक आफिस पहुँचा तब तक अजीत सर के कमरे मे वीके और जनरल रंधावा पहुँच चुके थे। मैने पेन ड्राईव अजीत सर के कंप्युटर मे लगा कर आदिल की तस्वीर दिखाते हुए कहा… सर, उस आदमी की तलाश करने के लिये अब हमारे पास एक तस्वीर है। कुछ देर बात करने के बाद अजीत सर ने कहा… समीर, अब आगे क्या करने का विचार है? …सर, कल सुबह सबसे पहले मै इस तस्वीर को लेकर अफरोज से मिलने जा रहा हूँ। वह ही इस आदमी की सच्चायी बता सकता है। अब्दुल्लाह हमे आदिल की कहानी सुना कर उलझाने की कोशिश भी कर सकता है। जनरल रंधावा ने पूछा… मेजर, इसमे उसका क्या फायदा होगा? …सर, यह भी हो सकता है कि वह किसी के लिये समय का इंतजाम कर रहा हो।

अचानक वीके ने मेरी बात काटते हुए पूछा… अजीत, आईबी के शर्मा ने उस पत्रकारों की पर्मिशन के बारे मे कोई पुष्टि की है। …हाँ, शर्मा ने बताया है कि तेरह तारीख को ओएनजीसी ने कुछ मुख्य राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय मिडिया के लोगों के साथ मुंबई के ताज होटल मे सालाना प्रेस वार्ता रखी है लेकिन उनके कार्यक्रम मे तेल के प्लेटफार्म की यात्रा का कोई प्रावधान नहीं है। उनकी सिक्युरिटी के अनुसार उनकी किसी भी बोट पर गैर-कंपनी या कंपनी के व्यक्ति की यात्रा प्रतिबन्धित है। प्लेटफार्म्स के कुअर्डिनेट्स और ग्रिड रेफ्रेन्स की जानकारी सिर्फ बोट के कप्तान या हेलीकाप्टर के पाईलट के पास ही होती है। सभी कर्मचारियों को हर दो महीने के बाद हेलीकाप्टर द्वारा लाया व ले जाया था। इस काम मे भी सप्लाई बोट का इस्तेमाल कभी नहीं होता है। आईबी इस वक्त अप्सरा ही नही बल्कि सभी बोट के काकपिट केबिन मे बैठने वाले मुख्य लोगों की जाँच कर रही है। अब्दुल्लाह की जानकारी के अनुसार तो पत्रकारों का दल अप्सरा पर औपचारिक अनुमति के साथ यात्रा करने जा रहा था। काफी देर तक अब तक मिली जानकारी के साथ माथापच्ची करने के बाद हम सब इसी नतीजे पर पहुँचे कि सुबह अफरोज से तस्वीर दिखा कर पूछताछ की जाये तो उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है।

उस रात अपने घर ग्यारह बजे तक पहुँच सका था। मुझे देखते ही आफशाँ बोली… तुम तो यहाँ आने के बाद भी घर मे दिखाई नहीं देते हो? …आफशाँ इस वक्त भी लौट आया तो गनीमत है वर्ना आज की रात लौटने की कोई संभावना नहीं दिख रही थी। कुछ खाना बचा है तो वह दे दो क्योंकि आजकल ऐसा लगने लगा है कि जैसे मेरे रोजे चल रहे है। आफशाँ खाना लगाने चली गयी और मै अपने कपड़े बदलने के लिये बेडरुम मे चला गया। खाना खाते हुए आफशाँ ने कहा… समीर तुम सोच भी नहीं सकते कि आयशा हमारी कंपनी की मालकिन थी। मैने चौंक कर आयशा की ओर देखा तो वह सिर झुका कर बैठी हुई थी। …क्या मतलब? …हमारी कंपनी डेल्टा साफ्टवेयर के मुख्य प्रमोटर ताहिर उस्मान अब्बासी है। वह उस दिन यहाँ पार्टी मे भी आये थे। वह आयशा के खाविन्द है। आयशा ने जल्दी से कहा… खाविन्द थे। अब उनसे मेरा कोई संबन्ध नहीं है। आफशाँ ने आयशा के कन्धे पर हाथ रख कर जल्दी से कहा… सौरी। ताहिर रिश्ते मे आयशा के चचा लगते है। मै चुपचाप खाना खाते हुए आफशाँ की कहानी सुन रहा था। अचानक बोलते हुए उसने कुछ ऐसा कहा कि मैने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वह मुझे देख कर बोली… क्या हुआ? …तुम अभी क्या बोल रही थी? …ताहिर साहब ने कुछ महीने पहले बांग्लादेश मे एक साफ्टवेयर की कंपनी खरीदी है। मै भी तब उनके साथ वहीं पर थी जब यह सौदा हुआ था। …नहीं उसके बाद क्या कहा था? …यही कि नयी कंम्पनी की खुशी मे उस  शाम मुझे मछुआरों की एक बोट पर बंगाल की खाड़ी घुमाने के लिये ले गये थे। वहाँ से ढाका शहर का नजारा बेहद मनोरम लग रहा था। अचानक अब्दुल्लाह की बात बिजली की तरह दिमाग मे कौंधी कि आदिल एक लड़की के साथ हिज्बुल के गाजियों का प्रशिक्षण देखने के लिये बोट पर आया था। यह विचार आते ही मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी थी।

अगली सुबह मै मानेसर के डिटेन्शन सेन्टर की ओर चल दिया था। अफरोज को वह तस्वीर दिखायी तो उत्तेजना से ओतप्रोत होकर चिल्लाया… समीर, यह तो ताहिर चचा की तस्वीर है। इन्हीं के साथ तो आयशा का निकाह हुआ था। समीर, इस तस्वीर का क्या मतलब है? …अब्दुल्लाह के अनुसार यही आदिल है। …यह नामुम्किन है। ताहिर चचा जमात और उसके जिहादियों से सख्त नफरत करते है। मै उसकी बात सुन रहा था परन्तु अब मेरा दिमाग आफशाँ की ओर चला गया था। अब मेरा दिमाग आफशाँ को वलीउल्लाह के स्थान पर रख कर देख रहा था। वह जमात के नेता की बेटी थी। वह भले सेना मे नहीं थी परन्तु सेना के लिये काम कर रही थी। मुझे मेरा आशियाना बर्बाद होते हुए लग रहा था। अचानक मुझे साँस घुटती हुई लगी और मैने जल्दी से कुछ लम्बी साँसे लेकर अपने आपको सयंत किया तो अफरोज की आवाज मेरे कान मे पड़ी… क्या हुआ समीर? मैने उठते हुए कहा… कुछ नहीं। अफरोज इस बात को अपने तक रखना। मै उनसे कह दूँगा कि तुम इस तस्वीर को नहीं पहचानते वर्ना ताहिर साहब और आयशा को भी सेना उठा लेगी। मुझे कुछ समय चाहिये इस मसले को सुलझाने के लिये। तब तक अपना मुँह बन्द रखना। मै चलता हूँ। यह बोल कर मै उठ कर बाहर निकल गया था।

सारा रास्ता मै अजीब सी दुविधा मे उलझा रहा था। आफशाँ के बारे सोच कर मेरा दिल बैठ गया था। ताहिर का नाम आते ही शक की सुई आफशाँ की ओर चली गयी थी। क्या वह हकीकत मे वलीउल्लाह हो सकती थी? इस प्रश्न का जवाब सोचने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। मै आफिस मे बैठा हुआ अपने आप से गड़े हुए शैतानों से जूझ रहा था। …समीर। अजीत सर ने अन्दर झाँकते हुए कहा तो मै चौंक गया था। वह अन्दर चले आये… अफरोज से मिल कर बात हो गयी? …यस सर। …उसने क्या बताया? एक पल के लिये तीव्र इच्छा हुई कि कह दूँ कि आदिल की पहचान नहीं हो सकी है परन्तु आप्रेशन खंजर के खतरे के सामने मेरी परेशानी तो कुछ भी नहीं थी। मैने धीरे से कहा… सर, उसने आदिल को पहचान लिया है। अजीत सर मेरे साथ आकर बैठ गये थे। मैने उन्हें सारी कहानी सुनाने के बाद आफशाँ के बारे मे बता कर कहा… सर, आप ही बताइये कि ऐसे हालात मे मुझे क्या करना चाहिये। अचानक अजीत सर ने मेरे कन्धे पर हाथ मार कर कहा… समीर, चलो आज कैन्टीन मे चल कर काफी पी कर आते है। मै उनके साथ कैन्टीन की ओर चल दिया।

पहली बार मैने उस कैन्टीन मे आया था। अजीत सर को देखते ही पल भर मे पूरी कैन्टीन मे चुप्पी छा गयी थी। जब तक हमारी काफी आयी तब तक कैन्टीन लगभग खाली हो गयी थी। …तुम्हारी तर्कपूर्ण कहानी अच्छी हो सकती है परन्तु अभी भी तुम्हारे पास कोई पुख्ता सुबूत किसी बात का नहीं है। अब्दुल्लाह ने आदिल का नाम लिया और उसने एक तस्वीर बनाने मे मदद कर दी तो क्या इससे वलीउल्लाह वाली पहेली सुलझ गयी? एक पल रुक कर अजीत सर बोले… अफरोज ने उसी आदिल को ताहिर का नाम दिया तो इससे वह क्या वलीउल्लाह का कोन्टेक्ट बन गया? आफशाँ चुंकि ताहिर के आफिस मे काम कर रही है तो क्या आफशाँ आईएसआई के लिये काम कर रही है? तुमने तो कमाल कर दिया समीर कि बिना किसी सुबूत और सुनवाई के तुमने आफशाँ को वलीउल्लाह और गद्दार बना दिया। चलो मान लिया कि आफशाँ के पास बहुत सी जगहों के ग्रिड रेफ्रेन्स थे। परन्तु इसकी क्या गारन्टी है कि वही सारे ग्रिड रेफ्रेन्स आईएसआई को दे रही है? यह तो तुमने ही बताया था कि आईटी के लोग ग्रिड रेफ्रेन्स को कितनी आसानी से मांगने पर एक दूसरे को दे देते है। अगर तुम्हारी बात मान भी लूँ कि सच मे आफशाँ वलीउल्लाह है तो वह हमारे लिये बहुत काम की सिद्ध हो सकती है। मैने चौंक कर उनकी ओर देखा तो वह जल्दी से बोले… समीर, अभी ताहिर हमारी प्राथमिकता है। अगर वह आदिल है तो उसे पकड़ना हमारे लिये बहुत जरुरी है। इसी बीच आफशाँ पर ही नहीं बल्कि उसे से जुड़े हुए हर व्यक्ति पर नजर रखो। हम वलीउल्लाह के काफी करीब पहुँच गये है। आओ चले…चल कर उन दोनो को ताहिर की कहानी से अवगत करा देते है।

हम जैसे ही कौरीडार मे पहुँचे कि जनरल रंधावा की नजर हम पर पड़ी तो वह तेजी से हमारे पास आकर बोले… कहाँ घूमने गये थे? मै बीस मिनट से सभी कमरों के चक्कर लगा रहा हूँ। उन दिये गये नम्बरों मे एक नम्बर दो मिनट के लिये एक्टिव मोड मे आया था। उस फोन की लोकेशन वरली के इंडस्ट्रियल एरिया के एक शेड मे दिखायी गयी है। एनआईए की टीम इस वक्त उस शेड की जाँच के लिये निकली है। अजीत सर ने मुस्कुरा कर कहा… कभी कैन्टीन की ओर रुख किया है रंधावा। एक बार वहाँ काफी पी कर देख लो तो आफीसर्स मेस की काफी भूल जाओगे। जनरल रंधावा ने जल्दी से कहा… मै आफीसर्स मेस मे काफी पीने नहीं जाता। खैर मेजर अफरोज ने क्या बताया? अजीत सर ने कहा… उसने कहा है कि वह तस्वीर ताहिर उस्मान अब्बासी की है। आईबी मे शर्मा से कहो कि उसको पूछताछ के लिये बुला लें। मेजर, मुझे ताहिर के बारे मे पूरी रिपोर्ट कल सुबह अपनी मेज पर चाहिये। यह बोल कर वह कमरे की ओर चले गये थे। मै जनरल रंधावा के साथ उनके आफिस मे चला गया था।

जनरल रंधावा ने अपना स्क्रीन आन करके किसी से फोन पर कहा… मुंबई एनआईए की टीम से कनेक्ट करो। दो मिनट के बाद एक आदमी का चेहरा स्क्रीन पर आ गया था। …सर, आज की रेड मे बीस आदमी हिरासत मे ले लिये गये है। कुछ के पास हथियार मिले है परन्तु उनके पास कोई विस्फोटक बरामद नहीं हुआ है। बाम्ब डिस्पोजल टीम शेड की जाँच कर रही है। कोई भी सूचना मिलने पर आपको खबर दूँगा। मैने जल्दी से उसे रोकते हुए कहा… ठहरिये। इनसे पूछिये कि बारह लोग और थे वह कहाँ गये? …क्या? …इनकी टीम मे बत्तीस लोग थे। बीस आपने हिरासत मे ले लिये है तो बाकी बारह कहाँ है? …जी सर। वह आदमी स्क्रीन से गायब हो गया था। …सर, बीस गाजियों को तुरन्त यहाँ लाने का प्रबन्ध करना पड़ेगा। आप्रेशन खंजर की लगभग सारी पैदल फौज अब हमारे कब्जे मे आ गयी है। उनमे से कुछ काठमांडू की जेल मे  है और कुछ बांग्लादेश की जेल मे बंद है। बीस यहाँ पकड़े गये है तो अब जिहाद काउन्सिल की योजना तो आखिरी साँसे ले रही है। …मेजर, इनका मुखिया ताहिर उस्मान अब्बासी को पकड़ना अभी बाकी है। …सर, आईबी के शर्मा से बात किजिये। ब्रिगेडियर रंधावा ने दीपक शर्मा को फोन पर अजीत सर का निर्देश देते हुए कहा… जल्दी से जल्दी उसे बुलवाओ। इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। मैने उठते हुए कहा… सर, ताहिर उस्मान अब्बासी के सामने जाने से पहले उसके बारे मे मुझे जानकारी इक्ठ्ठी करनी है। मै चलता हूँ। यह बोल कर मै अपने आफिस जाने के बजाय बाहर निकल आया था।

मै सीधा अपने घर पहुँच गया था। आफशाँ आफिस जा चुकी थी। आयशा हाल मे बैठी हुई किसी सोच मे गुम थी। मुझे देख कर चौंक कर बोली… समीर तुम इतनी जल्दी कैसे आ गये। …मुझे तुमसे बात करनी थी। एकाएक वह सावधान हो कर बैठ गयी थी। मैने उसके आगे वह तस्वीर रखते हुए पूछा… तुम इसे जानती हो? वह तस्वीर देख कर एक पल के लिये स्तब्ध रह गयी थी। …यह ताहिर है। …अब्दुल्लाह इसे आदिल नाम का आतंकवादी बता रहा था। तुम इस आदमी के साथ तीन साल रही हो तो इसके बारे मे तुम मुझे कुछ बता सकती हो। वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। …आयशा, अगर यह आतंकवादी है तो यह जान लो की तुम्हारा भाई इसी के कारण सेना की कैद मे है। …समीर, यह जितना सच्चा और अच्छा इंसान दुनिया के सामने दिखता है वह इसके विपरीत बेहद क्रूर और व्यभिचारी आदमी है। शुरु मे तो मै कुछ नहीं समझ पायी परन्तु निकाह के एक महीने मे ही मुझे पता चल गया था कि इसे दूसरे को दर्द देकर कितनी खुशी मिलती है। कल जब मैने आफशाँ के मुँह से इसके लिये तारीफ सुनी तो मुझे लगा कि वह दुनिया को कैसे बेवकूफ बना रहा है।

मै उसके घरेलू मसलो पर चर्चा करने के लिये नहीं आया था। मैने जल्दी से कहा… वह इस वक्त कहाँ हो सकता है? …वह कहीं भी हो सकता है। देश भर मे उसके दस से ज्यादा आफिस है। आफशाँ की तो एक कंपनी है। उसकी और भी बहुत सी कंपनिया है। …अगर तुम्हें उसके बारे मे पता करना होता था तो तुम क्या करती थी? …उसकी सेक्रेटरी से बात करती थी। कुछ देर बाद ताहिर खुद फोन करके मुझसे बात कर लेते थे। …उसकी सेक्रेटरी कहाँ बैठती है? …बैंगलौर। …तुम्हारे पास उसका नम्बर है? आयशा ने अपना फोन निकाल कर कोन्टेक्ट लिस्ट से एक नम्बर निकाल कर देते हुए कहा… उसका नाम लीसा डिसूजा है। मैने जनरल रंधावा का नम्बर मिलाया और लीसा का नम्बर देते हुए कहा… सर, ताहिर की सेक्रेटरी लीसा का नम्बर है। इस नम्बर को ट्रेकिंग पर तुरन्त लगवा दिजीये। ताहिर इसे जरुर फोन करेगा अन्यथा वह उसे फोन करेगी। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।

आयशा मेरी ओर बड़े ध्यान से देख रही थी। …क्या हुआ? …मै सोच रही थी कि तुम इतना सब कुछ कैसे सोच लेते हो? …अफरोज इसी आदमी के कारण कैद मे पड़ा हुआ है। एक बार अफरोज जब फारुख के चक्कर मे था तब तुम मेरे पास आयी थी। अबकी बार इसके कारण तुम्हें परेशान होना पड़ गया। अचानक आयशा बोली… समीर, ताहिर ने ही अफरोज भाईजान को फारुख मीरवायज से मिलवाया था। ताहिर और फारुख पुराने दोस्त है। ताहिर का हमारे घर पर आना जाना लगा रहता था। अचानक फारुख मीरवायज का नाम अब्दुल्लाह, अफरोज और ताहिर उर्फ आदिल के साथ जुड़ने से पल भर मे ही सारे तार और कड़ियाँ आपस मे जुड़ गयी थी। …आयशा, क्या शाम तक एक कागज पर तुम ताहिर साहब के जानकारो और दोस्तों के नाम की लिस्ट बना सकती हो। …हाँ। …यह बात आफशाँ को पता नहीं चलनी चाहिये क्योंकि वह उसके आफिस मे काम करती है। उसने अपना सिर हिला दिया था।

आयशा से बात करके मै वापिस अपने आफिस की ओर चल दिया। आफिस पहुँच कर मैने ताहिर उस्मान अब्बासी के बारे मे खोजना आरंभ कर दिया था। बहुत ढूंढने के बाद भी उसके बारे मे मुझे ज्यादा कुछ नहीं पता चल सका था। जो फाइल मुझे वीके ने दी थी उसमे डेल्टा साफ्टवेयर के बारे मे बहुत कुछ जानकारी दी गयी थी परन्तु उसमे ताहिर उस्मान अब्बासी का जिक्र भी नहीं था। मै उठ कर जनरल रंधावा के कमरे की ओर चला गया था। मैने जैसे ही अन्दर झाँका कि तभी मेरे पीछे से जनरल रंधावा की आवाज आयी… मेजर किस को देख रहे हो। मैने मुड़ कर कहा… सर, आपको ही देखने के लिये आया था। उन बारह लोगो का कुछ पता चला? …एनआईए का कहना है कि वह आदिल के साथ गये थे। …इसका मतलब है कि ताहिर अब अपने सुरक्षा कवच को साथ लेकर घूम रहा है। सर, क्या उस फोन नम्बर को ट्रेकिंग पर आपने लगवा दिया? …हाँ, हम उसको ट्रेक ही नहीं रिकार्ड भी कर रहे है। हम अभी बात कर रहे थे कि तभी जनरल रंधावा की मेज पर पड़े हुए फोन की घंटी बजने लगी थी। उन्होंने जल्दी से फोन उठाया और फिर बात करते हुए बोले… समीर मेरे पास ही है। दो मिनट फोन कान से लगाये रहे और फिर फोन रख कर बोले… चलो पुत्तर लगता है कि फिर कहीं कोई पहाड़ टूट कर किसी से सिर पर गिरा है।

हम दोनो अजीत सर के कमरे की ओर चल दिये थे।

रविवार, 19 नवंबर 2023

  

गहरी चाल-35

 

काठमांडू की फ्लाईट मे बैठा हुआ मै अपने तीन दिन के बारे मे सोच रहा था। अजीत सर से पिछली रात को सभी मसलो पर बात हुई थी। उनका विचार था कि सभी को कानूनी रुप से दिल्ली बुलवाना ही ठीक रहेगा क्योंकि बांग्लादेश सरकार ने अपनी ओर से मदद का वादा किया था। अब्दुल्लाह नासिर के लिये बांग्लादेश सरकार ने प्रत्यारोपण की सारी औपचारिकताएँ पूरी करने के लिये तीन दिन का समय माँगा था। बाकी पन्द्रह जिहादियों को भिजवाने मे कुछ समय लग जायेगा। मैने अपना शक उनके आगे रख दिया था कि अब्दुल्लाह ही जमात का मिशन लीडर था जो अपनी देख रेख मे हिज्बुल के लोगों को प्रशिक्षण दिलवा रहा था। मै अगर अब्दुल्लाह को आप्रेशन खंजर के केन्द्र मे रखता तो मुझे सारे डाट्स मिलते हुए लग रहे थे। अजीत सर भी मेरी बात से कुछ हद तक सहमत थे। अब उसके दिल्ली पहुँचने के बाद ही पता चल सकेगा कि हमारा शक कितना सही था।

होटल मे आरफा मेरा इंतजार कर रही थी। उसे देखते ही मैने उसके बैंक के बारे मे पूछा तो उसने सारी जानकारी एक कागज पर लिख कर मुझे पकड़ा दी थी। अजीत सर को जब मैने आरफा और अनमोल के बेटे के बारे बता कर उनसे कहा कि क्या आप गोपीनाथ से बात करके कुछ मुआवजा और पेन्शन की सिफारिश कर देंगें तो उन्होंने तुरन्त हामी भरते हुए कहा… उससे पूछ लेना कि क्या वह भारत आना चाहती है तो उसका भी इंतजाम कर देंगें। मैने जब आरफा से इसके बारे मे पूछा तो उसने मना कर दिया था। उसने चलते हुए मेरे सामने एक प्रस्ताव रखा कि ढाका मे वह गोल्डन इम्पेक्स की शाखा खोलना चाहती है। हम जो सामान नेपाल मे बेच रहे है उसका कुछ हिस्सा अगर उसके पास भिजवा दिया जायेगा तो वह यह काम यहाँ पर आसानी से कर सकेगी क्योंकि वह इस काम को सीख गयी थी। मैने उस वक्त कोई वादा तो नहीं किया परन्तु इतना ही कहा कि इसके बारे मे वकील के साथ बात करके ही कुछ किया जा सकता है। इसी उधेड़बुन मे दोपहर को काठमांडू पहुँच गया था। कैप्टेन यादव एयरपोर्ट पर मुझे लेने आया हुआ था।

रास्ते मे उसने काम के बारे मे बता कर नूर मोहम्मद के गोदाम के बारे बात करने लगा था। गोदाम के मालिक ने उसकी आखिरी कीमत अस्सी लाख लगायी है। अगले दिन मिलने की बात करके वह मुझे घर पर छोड़ कर गोदाम चला गया था। तबस्सुम मेरी राह देख रही थी। मुझे अकेला देख कर वह थोड़ी दुखी हो गयी थी लेकिन जब मैने उसे आरफा की माँ और उसके बेटे की बात बतायी तो वह खुद ही बोली कि आरफा को पहले ही भेज देना चहिये था। कुछ देर उसके साथ बिता कर मै उपर हाल मे चला गया था। जनरल रंधावा को अजीत सर ने बांग्ला देश के बारे मे पहले ही बता दिया था। …सर, मै अब्दुल्लाह का फोन ले आया हूँ। उसकी कोन्टेक्ट लिस्ट के द्वारा जो बत्तीस लोग भारत मे आ गये है उन्हें ट्रेस किया जा सकता है। जनरल रंधावा ने तुरन्त उसके मोबाईल का सारा डेटा भेजने के लिये कह कर बात समाप्त कर दी थी। शाम तक उसके फोन के डेटा की मिरर इमेज बना कर सारा डेटा जनरल रंधावा के पास भिजवा दिया था।

सारे काम समाप्त करके मै वापिस नीचे आकर पूछा… अंजली, तुम अब आफिस का काम किसके हवाले करोगी? …अभी सोचा नहीं है। फिलहाल मेरा आफिस अब नीचे से उपर आ गया है। …अब सातवाँ महीना लग गया है तो तुम्हें ज्यादा सावधान रहने की जरुरत है। इसके लिये नीचे किसी एक व्यक्ति को कुछ महीने के लिये यह काम क्यों नहीं सौंप देती? हम कुछ नामों पर चर्चा कर रहे थे कि तभी मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। …हैलो। …समीर तुम अभी वहीं हो या वापिस आ गये? …आज दोपहर को ही वापिस लौटा हूँ। …वीसा के कागज देख लो और वह गारन्टी मांग रहे है। …मै कल आकर सारे कागज देख लूँगा और गारन्टी के कागज भी पूरे कर दूँगा। शुजाल बेग की दोनो लड़कियाँ चली गयी? …हाँ। अब तक तो दोनो अमरीका पहुँच गयी होंगी। …चलो इसी के साथ शुजाल बेग से किया वादा पूरा हो गया। तुमसे कल सुबह मिलुंगा। खुदा हाफिज। तबस्सुम ने मेरी ओर देख कर पूछा… कौन थी? …शैतान की खाला। तुम्हारे अब्बू से बचने के लिये वह भी बाहर निकलने के चक्कर मे है। …जेनब और नफीसा वापिस अमरीका चली गयी? …हाँ, तुम्हारे ब्रिगेडियर साहब ने जाने से पहले यह जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी थी कि दोनो सुरक्षित यहाँ से वापिस भिजवा दूँ तो वह जिम्मेदारी भी पूरी हो गयी।

यह बोल कर मै बेडरुम मे जाकर लेट गया था। सफर की थकान थी परन्तु दिल के किसी कोने मे नफीसा के जाने का दुख भी था। उस रात जो हुआ था एक पल मे मेरी आँखों के सामने से गुजर गया था। मै अचानक उठ कर बैठ गया था। …क्या हुआ कोई बुरा सपना देख लिया था? तबस्सुम मुझे देख रही थी। मैने लेटते हुए कहा… हाँ। तुम अभी भी इधर उधर घूम रही हो कभी थोड़ा आराम भी कर लिया करो। मुझे डराने के लिये बहुत से लोग है कम से कम तुम तो मुझे मत डराओ। वह मेरे पास आकर बैठ गयी और मेरे बालों मे उँगलियाँ फिराते हुए बोली… आपको तीसरा वादा याद है न? …बहुत अच्छी तरह से याद है। उस शाम हम काफी देर तक बात करते रहे थे।

अगली सुबह से ही एक बार फिर से भाग दौड़ शुरु हो गयी थी। जनरल रंधावा के फोन ने मुझे जगाया था। रात भर मे सारे कोन्टेक्ट नम्बर और व्हाट्स एप ग्रुप्स के नम्बर की लिस्ट मेरे मेल बाक्स मे डाल दी थी। जैसे ही तैयार होकर बाहर निकला तो कैप्टेन यादव का फोन आ गया कि जमीन का मालिक ने शाम को मिलने का टाइम दिया है। नाश्ता करके सीधे बैंक का रुख किया और बीस लाख रुपये का इलेक्ट्रानिक ट्रांस्फर आरफा के अकाउन्ट मे करवाये जिससे वह किसी ठीक-ठाक जगह पर रहने का अपना इंतजाम कर सके। वहाँ से निकल कर मै अपने वकील से मिलने चला गया था। क्या हम गोल्डन इम्पेक्स की एक शाखा ढाका मे खोल सकते है? वकील साहब ने कंपनी रजिस्ट्रेशन के कागज देख कर कहा… इसमे तो किसी प्रकार की रोक नहीं है लेकिन जिस कंपनी के स्टाकिस्ट आप बने हुए है उसके कागज देख कर ही बता सकता हूँ कि क्या आपकी कंपनी फार्वर्डिंग का काम कर सकती है। जब तक वहाँ से बाहर निकला तो नीलोफर से मिलने उसके फ्लैट पर पहुँच गया था।

अभी भी चार सैनिक अपनी ड्युटी पर तैनात थे। नीलोफर ने वीसा के कागज सामने रखते हुए कहा… तुम एक बार देख लो तो मै इसे एम्बैसी मे जमा करा देती हूँ। मैने सारे कागज पढ़ कर कहा… यह सब ठीक है। तुम जमा तो कराओ। …समीर वह सिर्फ चौदह दिन का टूरिस्ट वीसा दे रहे है। …तुम्हें जेनब ने बताया था कि टूरिस्ट वीसा लेकर वहाँ पहुँच कर किसी भी कोर्स मे एड्मिशन ले लेना तो यह स्टूडेन्ट वीसा मे तब्दील करना आसान हो जाएगा। इसमे क्या मुश्किल है? उसने घूर कर मुझे देखा तो मै उसकी परेशानी को समझते हुए कहा… सर्टीफिकेट नहीं होंगें और अगर हुए भी तो वह नीलोफर के नाम से होंगें। ऐसी हालत मे स्टूडेन्ट वीसा मिलना मुश्किल होगा। …अमरीका मे क्या और किसी तरह नहीं रुक सकते? …हाँ अगर किसी को फँसा कर शादी कर लोगी तो रहने का पर्मिट मिल जाएगा। वह झल्ला कर बोली… कुछ और सोचो। …नीलोफर जब मै अठारह साल का हुआ तो पहली बार श्रीनगर से बाहर निकला था। अभी मुझे एक साल भी पूरा नहीं हुआ है कि जब पहली बार भारत से निकल कर नेपाल मे आ गया। एक दिन पहले ही बांग्लादेश होकर आया हूँ। भला इस बारे मे मै तुम्हे क्या बता सकता हूँ। चौदह दिन के लिये घूमने चली जाओ। जेनब तुम्हें किसी वकील से मिलवा देगी तो वह ही कोई रास्ता सुझा देगा। लाओ मुझे वह गारन्टी वाला कागज दो। उसने एक कागज मेरे आगे कर दिया था। मैने वह कागज पढ़ने के बाद कहा… यह नाबालिग बच्चों अथवा पत्नी के लिये गारन्टी का फार्म है। न तुम नाबालिग हो और न ही मै तुम्हारा खाविन्द हूँ तो मै यह गारन्टी नहीं दे सकता। एक बार हम फिर से वहीं पर पहुँच गये थे जहाँ से हमने अपनी बात शुरु की थी। बहुत मगजपच्ची करने के बाद जब कुछ नहीं सूझा तो मै अगले दिन पर बात टाल कर वापिस चला आया था।

जब तक घर पहुँचा तब तक कैप्टेन यादव आ गया था। गाड़ी पार्किंग मे खड़ी करके मै उसके साथ बैठ कर जमीन के मालिक से मिलने चला गया। डीलर भी वहीं पर मिल गया था। नेपाल का पुराना खानदानी परिवार था। पांच लाख का बयाना पकड़ा कर कागज तैयार करने के लिये कह दिया। मालिक ने तीन महीने का टाइम दिया था। जब तक सारे जंजाल से मुक्त हुआ तब तक अंधेरा हो गया था। कैप्टेन यादव से रास्ते मे मैने कहा… अब उन चार सैनिको को वहाँ ड्युटी देने की जरुरत नहीं है। एक को छोड़ कर बाकी को वापिस बुला सकते हो। यह सुरक्षा कवच शुजाल बेग की बेटियों के लिये था। अब वह वापिस जा चुकी है तो अब उनकी जरुरत वहाँ नहीं है। उसने मुझे घर के बाहर छोड़ दिया था। मैने तब्स्सुम को नयी जमीन की डील की सूचना देते हुए कहा… तुम्हारी कंपनी ने अपने पाँव फैलाना शुरु कर दिया है। वह मुस्कुरा कर बोली… जैसे मै फैल रही हूँ वैसे ही मेरी कंपनी फैल रही है। हम दोनो खिलखिला कर हँस पड़े थे।

अगले दो दिन मेरे वकील और बैंक के चक्कर मे निकल गये थे। सारे कागज देखने के बाद मेरे वकील ने बताया था कि गोल्डन इम्पेक्स कंपनी अपनी शाखा खोल कर जिस सामान का वितरण करती है वह ढाका मे भी कर सकती है क्योंकि वह भारतीय कंपनी ने अभी तक कोई अपना स्टाकिस्ट ढाका मे नियुक्त नहीं किया है। मेरे वकील ने ही सुझाव दिया था कि वह नया गोदाम बैंक से लोन लेकर गोल्डन इम्पेक्स कंपनी के नाम से खरीदना चाहिये। यही बात मैने आरफा को बता दी थी कि जैसी व्यवस्था उसने काठमांडू मे देखी थी वैसा आफिस, रिहाईश और गोदाम अगर एक जगह ढाका मे मिल जाएगा तभी फिर मै कानूनी तरीके वहाँ गोल्डन इम्पेक्स की शाखा खोलने की प्रक्रिया आरंभ करुँगा।

तीसरे दिन भारत सरकार की ओर से सीमा सुरक्षा बल का एक डेलीगेशन अब्दुल्लाह को लेने के लिये ढाका पहुँच गया था। बांग्लादेश सरकार ने अब्दुल्लाह नासिर को उनके हवाले कर दिया और भारत सरकार की ओर से उन पन्द्रह पकड़े हुए हिज्बुल के जिहादियों के प्रत्यारोपण की औपचारिक चिठ्ठी लेकर अपना कानूनी काम शुरु कर दिया था। उसी दिन सरिता ने फोन करके मिलने की इच्छा जताई थी। काम के बोझ के कारण मैने उस दिन तो उसे टाल दिया था परन्तु मै जानता था कि वह फिर कोशिश जरुर करेगी। अगले दिन मै जनरल रंधावा के साथ बैठ कर अब्दुल्लाह की लिस्ट की चर्चा कर रहा था। …सर, आपने चार सौ से ज्यादा नम्बर दे दिये है। मुझे सिर्फ वह बत्तीस नम्बर चाहिये जो प्रशिक्षण प्राप्त करके भारत मे किसी जगह बैठ कर हमला करने की योजना पर काम कर रहे थे। अगर वही क्रास रेफ्रेन्सिंग वाले सोफ्टवेयर को इस्तेमाल किया जाये तो संख्या मे भारी गिरावट आने की संभावना बढ़ जाएगी जिससे हमारा काम थोड़ा आसान हो जाएगा। जनरल रंधावा ने आश्वासन देते हुए कहा… मै ब्रिगेडियर चीमा से बात करके देखता हूँ। बस उस दिन मेरी उनसे इतनी ही बात हो सकी थी।

अगले दिन अब्दुल्लाह दिल्ली पहुँच गया था। दो दिन बाद अजीत सर ने फोन किया…मेजर कल सुबह दिल्ली पहुंच जाओ। मै समझ गया कि उससे पूछताछ का सिलसिला आरंभ होने का समय आ गया था। तबस्सुम का सातवाँ महीना आरंभ हो चुका था। अब उसको अकेले छोड़ना मेरे लिये मुमकिन नहीं था। मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था। मै अपनी गाड़ी लेकर सड़क पर बिना उद्देश्य के जा रहा था कि मुझे एनटीसी की इमारत दिखी तो मैने अपनी गाड़ी सरिता के फ्लैट की ओर मोड़ दी थी। वह बहुत बार फोन कर चुकी थी लेकिन मै अपने काम मे इतना उलझा हुआ था कि उससे मिलने का समय ही नहीं मिला था। मैने अपनी गाड़ी पार्किंग मे खड़ी करके उसे फोन किया… हैलो। …सरिता इस वक्त मुझे तुमसे मिलना है। …आप इस वक्त कहाँ है? …तुम्हारे फ्लैट के पास हूँ। …तो आप बाहर क्यों खड़े है अन्दर क्यों नहीं आ जाते? …पिछली बार जब वहाँ आया था तो धोखा मिला था। इस बार आने से पहले तुमसे पूछना चाहता था कि क्या मै आ सकता हूँ? …आपका इंतजार करते हुए एक महीने से ज्यादा हो गया है। …मै आ रहा हूँ। इतना बोल कर मै अपनी गाड़ी से उतरा उसके फ्लैट की ओर चल दिया था।

वह द्वार पर खड़ी हुई थी। आज मेज पर कोई बोतल नहीं दिख रही थी। वह मेरे पास आकर चुपचाप बैठ गयी। …सरिता तुमने जिस भावना से मुझे धोखा देने की कोशिश की थी उसका मुझे शुक्रिया कहना चाहिये परन्तु जो तरीका इस्तेमाल किया था वह गलत है। वह कुछ नहीं बोली बस सिर झुका कर बैठी रही। …आज कोई बोतल नहीं है? …छोड़ दी। मैने उसकी ओर देखा तो वह अभी शर्मिन्दा थी। मैने उसका हाथ थाम कर कहा… जो हुआ उसे भूल जाओ। मुझे तुम्हारी मदद चाहिये। उसने सिर उठा कर मेरी ओर देखा तो मैने कहा… मेरी बीवी का सातवाँ महीना चल रहा है। मुझे कल सुबह काम से बाहर जाना है। क्या तुम्हारी नजर मे कोई ऐसा है जो मेरी अनुपस्थिति मे उसका ख्याल एक घर के सदस्य के रुप मे रख सकती है? मै यहाँ पर तुम्हारे सिवा किसी और पर विश्वास नहीं कर सकता इसलिये तुमसे मदद मांगने आया हूँ। अचानक वह बड़े विश्वास से बोली… आप कल कब जा रहे है? …मुझे तो कल सुबह ही जाना है। वह जल्दी से बोली… मेरे साथ चलिये। इतना बोल कर वह खड़ी हो गयी थी। मै उठा और उसके साथ चल दिया। हम दोनो कुछ ही देर मे काठमांडू से बाहर जा रहे थे।

सरिता मुझे रास्ता बताते हुए चल रही थी। …मेरी माँ और मेरी बहन दीदी की देखभाल कर लेंगी। आपको उनकी फिक्र करने की कोई जरुरत नहीं है। मेरी माँ ने सभी बच्चों को गाँव मे ही जन्म दिया है। वह सब बातों को जानती और समझती है। कुछ ही देर मे हम दोनो उसके कच्चे मकान मे बैठे हुए थे। उसने अपनी माँ से कुछ देर बात की और फिर बोली… चलिये दोनो चलने को तैयार है। …यहाँ का क्या होगा? …वह सब पिताजी अपने आप देख लेंगें। यह बोल कर सरिता और उसकी माँ कुछ देर के लिये बाहर चली गयी थी। मैने उसकी बहन से पूछा… तुम्हारा क्या नाम है? वह शर्मा कर बोली… कविता। …तुम्हें हिन्दी समझ मे आती है? वह जल्दी से बोली… यहाँ हिन्दी सभी समझते है। मेरी मम्मी को भी हिन्दी आती है। हम तो तराई के मधेशी जाति के है। थोड़ी देर मे सरिता की माँ और उसकी छोटी बहन हमारे साथ काठमांडू की दिशा मे जा रहे थे। उसकी माँ को देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गयी थी। उसकी बहन भी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। मैने सोचा कि वह तबस्सुम के आफिस के काम मे भी मदद कर सकती है। जब घर पहुँचा तो तबस्सुम को उन दोनो से मिलवाया और उसने उनके रहने का इंतजाम आरफा के कमरे मे कर दिया था। उस रात सरिता भी वहीं रुक गयी थी।

उस वक्त तो तबस्सुम ने कुछ नहीं कहा परन्तु बेडरुम मे मेरे साथ लेटते हुए बोली… आपको इनको यहाँ लाने की क्या जरुरत थी। मेरा काम तो चल रहा था। …अंजली, हम दोनो के लिये यह सब नया है। कल सुबह मुझे दिल्ली जाना है। कुछ दिन वही पुराना रुटीन चलेगा। हमारे घर मे कोई बड़ा-बूढ़ा नहीं है। हम दोनो की अम्मी नहीं है जो इस वक्त तुम्हारी देखभाल कर सकें। इस वक्त तुम्हें एक अनुभवी की घर मे जरुरत है। माताजी तुम्हारा ख्याल रख लेंगीं और कविता बारहवीं पास है तो वह तुम्हारे आफिस के काम मे मदद कर सकती है। कल को बच्चा होने के बाद क्या तुम्हें पता है कि क्या करना चाहिये? उस समय भी तुम्हें इनकी जरुरत पड़ेगी। यही सोच कर मै इन्हें लाया था। कुछ दिन इनके साथ गुजार कर देख लो और अगर ठीक नहीं लगता है तो इन्हें वापिस छोड़ आऊँगा। प्लीज, यह यहाँ रहेंगी तो मेरी चिंता कम हो जाएगी। तबस्सुम ने कुछ नहीं कहा बस मेरे गले मे बाँहें डाल कर बोली… आप बेफिक्र हो कर जाईये। यहाँ का काम हम सब मिल कर संभाल लेंगें।

अगली सुबह वही पहली फ्लाईट पकड़ कर बारह बजे तक अपने आफिस पहुँच गया था। मेरा इंतजार हो रहा था। आफिस पहुँचते ही अजीत सर के आफिस मे पेशी हो गयी थी। मुझे देखते ही जनरल रंधावा ने कहा… एक मेजर के कारण बेचारे जनरल और लेफ्टीनेन्ट जनरल की नौकरी चली गयी। क्या किसी ने पहले कभी ऐसा सुना है? …सर, मै आपका मतलब नहीं समझा। अजीत सर ने मुस्कुरा कर कहा… जनरल शरीफ ने इस्तीफा दे दिया है और लेफ्टीनेन्ट जनरल मंसूर बाजवा को सरकार ने समय से पहले सेवानिवृति दे दी है। यह अभी कुछ देर पहले की खबर है। इसका श्रेय सिर्फ तुमको जाता है। अब आप्रेशन खंजर का औपचारिक रुप से अंत हो गया है। कांग्रेचुलेशन्स मेजर। आप्रेशन काठमांडू अब कहा जा सकता है कि सफल हो गया। …सर, यह आप्रेशन अभी समाप्त नहीं हुआ है। जिहाद काउन्सिल की तंजीमे और उनके गाजी अभी भी इमां, तकवा जिहाद फि सबीलिल्लाह का नारा बुलंद करके बैठे हुए है। हमे पहले उन बत्तीस लोगों को ढूंढना है जो इस काम को अंजाम देने ले के लिये यहाँ छिप कर बैठे हुए है। जनरल रंधावा ने कहा… अब्दुल्लाह का मुँह खुलवाना अब हमारी प्रथमिकता होनी चाहिये। अजीत हम दोनो उसके पास जा रहे है। चलो मेजर। इतनी बात करके हम दोनो बाहर निकल आये थे।

अब्दुल्लाह नासिर को एक सरकारी अस्पताल मे रखा था। सेना की टीम गार्ड ड्युटी पर तैनात थी। अस्पताल के किसी भी कर्मचारी को मरीज की असलियत नहीं पता थी। एक पाँव से लाचार होने के कारण उसके भागने की भी कोई समस्या नहीं थी। आईकार्ड की चेकिंग के बाद ही हम उसके कमरे मे प्रवेश कर सके थे। वह जाग रहा था जब हमने उसके कमरे मे प्रवेश किया था। उसका घायल पैर हवा मे लटका हुआ था। इस हालत मे वह अपनी जगह से हिलने के भी योग्य नहीं था। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर बल पड़ गये थे। उसकी आँखों मे घृणा साफ झलक रही थी। हम दोनो उसके पास पहुँच कर खड़े हो गये। जनरल रंधावा ने कहा… पुत्तर क्या हाल है? उसने कोई जवाब नहीं दिया बस मुझे घूरता रहा। …भई मेजर कुछ बैठने का इंतजाम करवाओ। मैने बाहर खड़े हुए सैनिको से कहा… दो स्टूल लाकर दे दिजिये। गार्ड ड्युटी पर तैनात एक सैनिक ने अस्पताल के दो स्टूल कमरे मे लाकर रख दिये थे।  जनरल रंधावा काफी देर तक उसे समझाते रहे लेकिन वह तो जैसे मुँह सिल कर बैठ गया था।

जब काफी देर हो गयी तो मैने कहा… सर, मैने आपको बताया था कि यह बिना थर्ड डिग्री के मुँह नहीं खोलेगा। यहाँ से चलते है। अब्दुल्लाह, हमारी सेना ने दो दिन पहले हाजी साहब को घर से उठा लिया था। एक बार ही टांग पर रोलर चलने से उनकी हड्डियाँ जवाब दे गयी थी। अगले दिन ही हाजी साहब ने जिहाद काउंसिल के द्वारा तुम्हारे उपर जो जिम्मेदारी डाली गयी थी उसका लिखित बयान मैजिस्ट्रेट के सामने दे दिया है। मेरी बात सुन कर उसने उठने की कोशिश की परन्तु एक टाँग हवा मे लटकी होने के कारण वह धड़ाम से बिस्तर पर गिर गया था। वह चिल्ला कर बोला… मेजर तुझ पर खुदा का कहर टूटेगा। तेरा कोई नाम लेवा नहीं होगा। वह कुछ देर तक कोसता रहा और हम दोनो स्टूल पर बैठे हुए उसके गालियाँ सुनते रहे थे। जब वह शान्त होकर बैठ गया तो मैने कहा… अब्दुल्लाह जिस काम की जिम्मेदारी तुम पर डाली गयी थी अब कैसे उसको अंजाम दोगे? जनरल शरीफ और जनरल बाजावा की दुकान तो अब बन्द हो गयी है। इस बार उसने चौंक कर पहली बार मेरी ओर देखा था। जनरल रंधावा ने एक बार फिर से कहा… पुत्तर तुम्हारी माँ और बहन की जिंदगी खतरे मे है। अगर तुम समय से अपने साथियों के पास नहीं पहुँचे तो वह लोग तुम्हारे घर पर पहुँच जाएँगें। तुम खुद ही सोच लो कि वह उनके साथ क्या करेंगें। अगर तुम उन लोगो के बारे मे सब कुछ बता दोगे तो मै वादा करता हूँ कि उनको सुरक्षित वहाँ से निकाल कर यहाँ पहुँचा दिया जाएगा। उसकी विवशता उसकी आँखों मे झलक रही थी।

…अब्दुल्लाह तुम्हारे पन्द्रह हिज्बुल के जिहादियों ने पूछताछ के दौरान बीस आदमियों के नाम तो बता दिये है जो पहले वहाँ प्रशिक्षण के लिये पहुँचे थे। अब सिर्फ बारह लोगो की पहचान होनी बाकी है। एक बार वह हमारे हाथ लग गये तो बाकी का पता भी लग जाएगा परन्तु तुम्हारी अम्मी और बहन के साथ जो होगा उसके जिम्मेदार तुम स्वयं होगे। चलिये जनरल साहब इसे मरने दो। जब शाहीन लाहौर की किसी बदनाम गली मे पहुँच जाएगी तब इसको खबर कर देंगें। मै उठने लगा तो वह जल्दी से बोला… ठहरो मेजर। मै वापिस बैठ गया। वह धीरे से बोला… मेजर, तुम मेरे परिवार को यहाँ पहुँचा दोगे तो उसके बाद मै तुम्हें सब कुछ बता दूँगा। जनरल रंधावा ने मेरी ओर देखा तो अबकी बार मैने संभल कर कहा… अब्दुल्लाह, समय गंवाने के बजाय तुम अभी सब कुछ सच-सच बता दोगे तो कल शाम तक तुम्हारा परिवार यहाँ तुम्हारे पास होगा। जनरल रंधावा ने कहा… बेटा, हम जितनी जल्दी उनको पकड़ लेंगें उतनी ही जल्दी खतरा टल जाएगा। एक दो दिन मे अगर कहीं विस्फोट हो गया तो फिर हम कुछ नहीं कर सकेंगें। वह कुछ देर सोचने के बाद बोला… मेजर, मै जानता हूँ कि एक हफ्ते मे पूरे हिन्दुस्तान मे कुछ नहीं होने वाला है। जो कुछ भी होगा वह अगले महीने की बारह तारीख को होगा। इसलिये अगर रोकना चाहते हो मेरे परिवार को कल तक लेकर आ जाओ। अफरोज और आदिल को भी यहीं ले आओगे तो सारे धमाके अपने आप रुक जाएँगें। …अफरोज तो अपने इमरान काजी साहब का बेटा है। यह आदिल कौन है? एक पल वह बोलने मे झिझका और फिर जल्दी से बोला… वह वलीउल्लाह का मुख्य कोन्टेक्ट है। उसे अफरोज जानता है। वलीउल्लाह का नाम सुनते ही हम दोनो के कान खड़े हो गये थे। उसे वहीं छोड़ कर हम बाहर निकल आये थे।

…मेजर,फौरन श्रीनगर जाओ और सबको लेकर जल्दी से जल्दी वापिस लौटो। बारह तारीख से पहले सभी को पकड़ना है। मुझे तो आदिल के सिवा कुछ और सूझ नहीं रहा था। पहली बार मेरे पास हया के बाद वलीउल्लाह का कोई कोन्टेक्ट मिला था। आफिस लौट कर इसकी सूचना हमने वीके और अजीत सर के सामने रख दी थी। वीके के कुछ देर सोचने के बाद कहा… मेजर, तुम्हें अभी जाने की जरुरत नहीं है। अजीत पहले ब्रिगेडियर चीमा से बात करो और उसका जवाब सुन कर ही हमे अगली कार्यवाही करने की जरुरत पड़ेगी। अजीत सर ने अपना फोन उठा कर ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिलाया… हैलो। …ब्रिगेडियर साहब, हाजी मंसूर के परिवार की निगरानी हो रही है। हाजी मंसूर का परिवार, इमरान काजी का बेटा अफरोज और उसका एक साथी आदिल, कल सुबह तक दिल्ली की फ्लाईट मे बैठाने का काम तुम्हारी युनिट का है। शाम तक उनकी निशानदेही करके मुझको खबर करो और सुबह एयरफोर्स के प्लेन से उन्हें यहाँ भिजवाने की व्यवस्था करो। इतना बोल कर अजीत सर ने फोन काट दिया था।

अजीत सर ने कुछ सोच कर कहा… मेजर, अभी तक जो हमने वलीउल्लाह के बारे मे समझा था वह अब्दुल्लाह की बातों से गलत साबित हो रहा है। अब्दुल्लाह, अफरोज और आदिल का संबन्ध भले ही आप्रेशन खंजर के साथ साफ नजर आ रहा है परन्तु आदिल यहाँ पर वलीउल्लाह का कोन्टेक्ट है यह बात मेरे समझ मे नहीं आ रही है। …सर, उनका कनेक्शन तो जरुर है क्योंकि वह तीनो जमात के मुख्य लोगों मे से है। शुजाल बेग के अनुसार वलीउल्लाह किसी जमात के नेता की बेटी है जो सेना मे कार्यरत है। उन्होंने उसका कोडनेम वलीउल्लाह रखा हुआ है। हमारी जाँच से यह तो साफ हो गया है कि स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट मे ऐसी कोई को महिला सेनाधिकारी नहीं है जिसका दूर-दूर तक संबन्ध किसी जमात के नेता के साथ कहा जा सकता है। अब आदिल ही उसके बारे मे कुछ बता सकेगा। …मेजर, यह तभी मुमुकिन होगा जब आदिल ब्रिगेडियर चीमा के हाथ लगेगा। जनरल रंधावा ने अपना शक सब के सामने रख दिया था। हम सब भी उनकी राय से सहमत थे। आफिस खत्म हुए एक घंटे से ज्यादा हो गया था लेकिन शाम तक ब्रिगेडियर चीमा का फोन नहीं आया।

जनरल रंधावा ने एक नजर घड़ी पर डाल कर कहा… अजीत इस से अच्छा होता कि समीर को श्रीनगर भेज देते। तुमने उसे यहाँ रोक कर ठीक नहीं किया। अबकी बार वीके ने जवाब दिया… रंधावा, इसे वहाँ नहीं भेजने का एक कारण था। ब्रिगेडियर चीमा और ब्रिगेडियर शर्मा पहले से ही इस बात से नाराज है कि हमने उनके बजाय इसको यहाँ बुला लिया और जब उन्हें यह पता चलता कि इसे वहाँ इस काम के लिये भेजा है तो उन दोनो की ओर से हमे कोई सहायता भी नहीं मिलती। ब्रिगेडियर चीमा का फोन अभी तक नहीं आने का कारण यही हो सकता है कि आदिल उनके हाथ नहीं आया है और फिलहाल उसकी तलाश चल रही होगी। आठ बजे ब्रिगेडियर चीमा का अजीत सर के पास फोन आया था। आदिल को छोड़ कर बाकी सभी को उन्होंने अपने कब्जे मे ले लिया है और उन सभी को वह कल सुबह दिल्ली भिजवा देगा। …आदिल का अब क्या करोगे मेजर? …सर, कल उनको आने दिजिये। अफरोज से बात करके पहले आदिल के बारे मे जानकारी लेकर ही अपनी रणनीति बनानी पड़ेगी। इतनी बात करके हमारी बैठक समाप्त हो गयी थी।

देर रात को मैने जब अपने घर मे कदम रखा तब तक सब सोने जा चुके थे। दरबान मुझे अब पहचान गया था। टैक्सी से उतरते ही उसने गेट खोल कर मेरा स्वागत किया और जल्दी से मेरा बैग उठा कर अन्दर चल दिया था। मैने अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर बैग ले लिया और अन्दर चला गया था। एक मध्यम सी लाइट जल रही थी जिसने हाल को रौशन कर रखा था। मै सीधे अपने बेडरुम मे चला गया था। आफशाँ वहाँ नहीं देख कर आश्चर्य जरुर हुआ लेकिन यह सोच कर कि वह मेनका के साथ उपर सो गयी होगी तो अपने कपड़े बदल कर बिस्तर मे घुस गया था। सफर की थकान के कारण जल्दी गहरी नींद मे सो गया था।

सुबह आफिस जल्दी पहुँचना था तो अपने टेलीफोन पर अलार्म लगा कर सोया था। उसकी घंटी सुनते ही जल्दी से उठ कर तैयार होने के लिये चल दिया था। आफशाँ अभी भी नीचे नहीं उतरी थी। मै अपना नाश्ता बनाने के लिये रसोई मे आया तो रसोईया नाश्ता बनाने मे जुटा हुआ था। …तुम आज जल्दी कैसे आ गये? …साहब बेबी के स्कूल जाने का टाइम होने वाला है। वह कुछ देर मे ही तैयार होकर नीचे आयेंगी तो उनका नाश्ता और लंच बना रहा हूँ। आप क्या लेंगें? …जो भी नाश्ता बना रहे हो वही ले लूँगा। मै अभी बात कर रहा था कि मेनका की आवाज गूँजी… भैया मेरा लंच बाक्स तैयार हो गया? मै रसोई से चिल्लाया… बेबी आज लंच नहीं बनेगा। मेरी आवाज सुनते ही वह चीखते हुए तेजी से उतरी… अब्बू। मुझे देख कर उछल कर मुझ पर चढ़ गयी। …आप कब आये? …कल रात को आया था। तुम्हारी अम्मी कहाँ है? वह मुस्कुरा कर बोली… उपर है। कल रात को आपको याद करते हुए मेरे साथ सो गयी थी। अब्बू आज मै स्कूल नहीं जाऊँगी। मैने जल्दी से कहा… तुम स्कूल नहीं गयी तो तुम्हारी अम्मी मुझे घर से बाहर निकाल देंगी। मुझे आज आफिस जल्दी जाना है। तुम जब तक स्कूल से आओगी तब तक मै भी आफिस से आ जाउँगा। उसके बाद मस्ती करेंगें। वह जल्दी से दूध पीकर एक ब्रेड हाथ मे लेकर बाहर निकल गयी थी। उसके पीछे रसोईया स्कूल बेग मे लंच बाक्स रख कर बाहर भागते हुए बोला… साहब, बेबी को बस मे बिठा कर अभी आ रहा हूँ। पहले दिन ही मुझे आफशाँ और मेनका की रोजमर्रा की जिन्दगी का आभास हो गया था। नाश्ता समाप्त करके थापा ने मुझे मेरे आफिस के बाहर उतार दिया था।

आफिस पहुँचते ही आफशाँ का फोन आ गया… समीर, तुम बिना मिले चले गये? …उपर गया था और तुम्हें सोते हुए देख कर उठाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। तभी मेरे फोन पर काल आ रही थी तो मैने कहा… दूसरी काल आ रही है। शाम को मिलता हूँ। यह बोल कर मैने फोन काट दिया और दूसरी काल ली… हैलो। …मेजर, जनरल रंधावा पहुँचने वाले है। उनके साथ एयरपोर्ट चले जाना। तुम सबको पहचानते हो इसलिये कोई शिनाख्त करने मे कोई परेशानी नहीं होगी। उनको लेकर अस्पताल चले जाना। आज अब्दुल्लाह को सारी योजना का खुलासा करना पड़ेगा। …जी सर। मैने अभी फोन काटा ही था कि जनरल रंधावा ने कमरे मे झाँकते हुए कहा… पुत्तर चले? …चलिये सर। एयरपोर्ट पर इंतजार कर लेंगें। …भई, वह सब हमारे साथ कैसे वापिस आयेंगें? मैने जनरल रंधावा की ओर देखा तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा… हम आर्मी की मिनी बस से एयरपोर्ट जा रहे है। उनके लिये कुछ सुरक्षा का भी इंतजाम करना था। थोड़ी देर मे हम मिनी बस मे बैठ कर एयरपोर्ट जा रहे थे।

एयरफोर्स का प्लेन उतरने के बाद एक लम्बा चक्कर लगा कर फौजी एरिया मे खड़ा हो गया था। हम बस लेकर वहीं बैठे हुए थे। जैसे ही हवाई जहाज का पिछला हिस्सा खुला तो सैनिकों की सुरक्षा मे हाजी मंसूर, उनकी बीवी और शाहीन आगे चल रहे थे। उनके पीछे सहमा हुआ अफरोज चल रहा था। मुझे देख कर दो चेहरों पर कुछ असर हुआ था। शाहीन का चेहरा खिल उठा था और अफरोज के चेहरे पर छाये हुए डर के बादल छंट गये थे। सभी को बस ने बैठा कर हम अस्पताल की ओर चल दिये थे। शाहीन तो अपनी अम्मी के पास बैठ गयी थी लेकिन अफरोज मेरे साथ बैठ कर बोला… समीर, यह क्या चक्कर है। मेरा इनके साथ कोई चक्कर नहीं है। मेरी बात मानो मै किसी आदिल नाम के व्यक्ति को नहीं जानता हूँ। रात भर तुम्हारे सैनिक मुझे धमकाते रहे है लेकिन मेरी बात मानने को तैयार नहीं है। भाई मैने तो जिस दिन इज्तमा कैन्सिल हुआ उसके दिन के बाद से ही जमात से नाता तोड़ लिया था। मुझे क्यों पकड़ लिया है। अचानक वह धीरे से बोला… आयशा आज दिल्ली आ रही है। वह एयरपोर्ट पर उतर कर तुम्हें फोन करेगी तो उसे बता देना कि मै तुम्हारे साथ हूँ। मै चुपचाप उसकी बात सुन रहा था लेकिन मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा था कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ।

एक घंटे के बाद हम सभी लोग अब्दुल्लाह के कमरे मे बैठे हुए थे। सबसे पहले हाजी साहब ने अपने बेटे की हालत देख कर अपना सारा रोष मुझ पर निकाला और उसके बाद उसकी अम्मी ने कुछ देर को हमे जम कर कोसा। जब सब शांत हो गया तो उसके बाद जनरल रंधावा ने कहा… अगर यह आज सही सलामत यहाँ है तो मेजर समीर के कारण है वर्ना बांग्लादेश की किसी जेल मे अख्तर नाम से सजा काट रहा होता और अगर मर गया होता तो लावारिस लाश की तरह कहीं ठिकाने लगा दिया गया होता। आप लोगो को पता भी नहीं चलता कि आपका बेटा क्या करने जा रहा था। इतना बोल कर उन्होंने पास खड़े सैनिक से कहा… अब इन्हें यहाँ से बाहर ले जाओ। हमे कुछ बात करनी है। दो सैनिक हाजी मंसूर को पकड़ कर कमरे से बाहर ले गये और उनके पीछे उनकी बीवी और शाहीन भी चले गये थे। अभी तक अफरोज के बारे मे कोई बात नहीं हुई थी। इससे पहले जनरल रंधावा अपनी पूछताछ आरंभ करते कि मैने पूछा… अब्दुल्लाह, अब अफरोज तुम्हारे सामने है। इसका कहना है कि वह किसी आदिल नाम के आदमी को नहीं जानता है। तुम कह रहे थे कि वह आदिल को जानता है। सबसे पहले इस बात को सिद्ध करो कि जो तुम कह रहे हो वह सच है क्योंकि उसके बाद ही हम तुम्हारी दूसरी बातों पर यकीन कर सकेंगें।

अब्दुल्लाह जल्दी से बोला… मैने आदिल को कई बार अफरोज के साथ देखा था। यह झूठ बोल रहा है। उसकी आवाज मे सच्चायी की दृड़ता झलक रही थी। अफरोज ने भी तुरन्त कहा… समीर, खुदा की कसम मै किसी आदिल को नहीं जानता। यह झूठ बोल रहा है। उसके चेहरे पर गुस्सा और रोष टपक रहा था। अचानक जनरल रंधावा ने कहा… इसकी सच्चायी तो हम पता लगा लेंगें लेकिन बारह तारीख की सच्चायी बताओ। एक पल के लिये वह चुप हो गया था। एक लम्बी साँस लेकर वह बोला… आप्रेशन खंजर बारह तारीख को सुबह हरकत उल अंसार और लश्कर के हमले से शुरु होगा। उनके निशाने पर श्रीनगर का 15वीं कोर का हेडक्वार्टर्स होगा। उसी शाम को जैश की ओर से फिदायीन हमला जम्मू के एयरबेस पर होगा। हिज्बुल की एक टीम तेरह की सुबह चार बजे मुंबई से कुछ मील दूर उरान मे ओनजीसी के टर्मिनल पर हमला करेंगें। भारत की सुरक्षा एजेन्सियों को समझ मे नहीं आयेगा कि अचानक क्या हो गया है। जब सुरक्षा एजेन्सियाँ तीन जगह उलझी हुई होंगी तब उसी दिन दस बजे हमारी बत्तीस गाजियों की टीम मुंबई के बंदरगाह पर खड़ी हुई अप्सरा नाम की ओएनजीसी की सप्लायी बोट पर पत्रकार बन कर सवार होंगे। सारी सरकारी पर्मिशन ली जा चुकी है।  वह सप्लायी बोट ओएनजीसी प्लेटफार्म सागर विराट और सागर अनंत को स्पेयर पार्ट्स, खाने का सामान व काम करने वालों की जरुरत का सामान हफ्ते मे दो बार पहुँचाती है। रास्ते मे गाजियों की टीम उस बोट को अपने कब्जे मे ले लेगी और पहले प्लेटफार्म सागर अनंत का सामान उतारेगी। सारा सामान उतारने मे करीब दो घंटे लगेंगें और इसी बीच हमारे गाजी पानी मे उतर कर उस प्लेटफार्म के बारह पिलर्स पर रिमोट कन्ट्रोल्ड सेम्टेक्स के एक्स्प्लोसिव्स लगा देंगें। उसके बाद वह बोट सागर विराट की दिशा मे जाएगी। वहाँ पहुँच कर एक बार फिर से हमारे गाजी उसके चौबीस पिलर्स पर रिमोट कन्ट्रोल्ड सेम्टेक्स की छ्ड़े लगा देंगें। एक रात वह बोट वही पर रुकती है। यानि तेरह तारीख की देर रात को सारे पिलर्स पर विस्फोटक लगाने के बाद सागर विराट के मुख्य आप्रेटिंग आफीसर को खबर कर दी जाएगी कि अब हम लोग सागर विराट को अपने कब्जे मे ले रहे है और अगर किसी ने रोकने की कोशिश की तो दोनो प्लेटफार्म एक साथ ही तबाह हो जाएँगें। हमारे सोलह गाजी सागर विराट के मुख्य कंट्रोल सेन्टर को अपने कब्जे मे ले लेंगें और बचे हुए सोलह गाजी अप्सरा पर रिमोट डिवाइस के साथ बैठे रहेंगें।

कुछ रुक कर उसने बोलना फिर से आरंभ कर दिया… उरान पर फिदायीन हमले का नेतृत्व मेरे हाथ मे था। उन बत्तीस गाजियों की कमान हिज्बुल के हाथ मे थी। आदिल के जिम्मे इस आप्रेशन खंजर के संचालन का काम था और वह चौदह की सुबह दुनिया के सारे मिडिया के लिये अपना पहला संदेश देगा। उसके दो दिन के बाद वह भारत सरकार के सामने अपनी मांगे रखेगा क्योंकि उनके दोनो तेल के बड़े प्लेटफार्म और पाँच सौ के करीब कर्मचारी हमारी रहमोकरम पर होंगें। इतना बोल कर वह चुप हो गया था। आप्रेशन खंजर के खुलासे ने हमे अन्दर तक झकझोर कर रख दिया था। जनरल रंधावा के चेहरे पर तनाव के लक्षण साफ दिख रहे थे। यह सुन कर अफरोज भी हक्का बक्का रह गया था। सच पूछो तो उस वक्त अब्दुल्लाह को छोड़ कर उस कमरे मे कोई भी कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था।

रविवार, 12 नवंबर 2023

 आप आप सभी मित्रों को मेरी ओर से दीपावली के शुभ अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएँ। उम्मीद करता हूँ  कि माँ लक्षमी आपके उपर धनधान्य की वर्षा करे और आपके और आपके परिवार के लिये सुख समृद्धि का आशीर्वाद दें।

इसी के साथ गोवर्धन और भाई दूज के लिये भी आप सभी को मेरी शुभ कामनायें। 

आपका वीर 

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गहरी चाल-34

 

एसपी रहमान के कमरे मे बैठ कर हम बात कर रहे थे कि तभी एक पुलिस वाले ने आकर सूचना दी कि मुजीबुर शेख आ गये है। एसपी रहमान ने मेरी ओर देखा तो मैने कहा… उसे बैठने के लिये कहो। हम उसे अभी बुलाते है। वह सिपाही वापिस चला गया था। …मेजर साहब उस वकील से आप क्या बात करने की सोच रहे है? …एसपी साहब इसमे क्या सोचना है। वकील साहब को उनके क्लाइन्ट के बारे मे बात करने के लिये बुलाया गया है। थोड़ा इंतजार कराईये जिससे लगे कि एसपी साहब किसी काम मे व्यस्त है। पन्द्रह मिनट के बाद रहमान ने फिर कहा… मेजर साहब उसे बुला लेते है। …अभी नही। पाँच मिनट बाद एक थानेदार ने दरवाजे पर दस्तक देकर प्रवेश किया और मुस्तैदी से सैल्युट मार कर बंगाली मे कुछ बोल कर खड़ा हो गया था। …यह महरुनिसा को लेकर आ गया है। …वह कहाँ है? …बाहर खड़ी हुई है। …इन्हें कहिये कि यह वापिस चले जाये। पूछ्ताछ के बाद उसे छोड़ देंगें। वह इन्स्पेक्टर मेरी बात समझ गया और उल्टे पैर वापिस लौट गया। मै बाहर निकल कर महरुनिसा के पास चला गया। वह घबरायी हुई खड़ी थी। बुर्के की चिलमन उसने हटा रखी थी। उसकी शक्ल देख कर मैने अन्दाजा लगाया कि वह कम उम्र की लड़की है तो सलाम करके मैने कहा… आप हिंदी समझती है? मेरी ओर देख कर वह डरते हुए बोली… साबजी थोड़ी बोल सकती हूँ। मैने कहा… आईये मेरे साथ। आपको कुछ देर इंतजार करना पड़ेगा। एसपी साहब किसी से पूछताछ कर रहे है। मै सामने वाले कमरे की ओर चल दिया जहाँ एसपी रहमान का निजि सचिव बैठता था।

एसपी रहमान के निजि सचिव के कमरे का दरवाजा खोल कर मै घुर्रा कर बोला… मुजीबुर कौन है? मैने जगह देकर महरुनिसा से कहा… आपको दोबारा बुलाने आउँगा। तब तक आप यहाँ बैठिये। मुजीबुर को देख वहाँ बैठा देख कर वह ठिठक कर रुक गयी थी। मुजीबुर भी उसे देख कर एक पल के लिये चौंक गया था। मै एसपी के पीए पर दहाड़ा… यह मुजीबुर कौन है। अबकी बार वकील साहब जल्दी से बोले… जनाब, मै एडवोकेट… मैने उसकी बात काटते हुए कहा… फिलहाल हमारे पास किसी एडवोकेट से मिलने का टाइम नहीं है। मैने तुरन्त पीए की ओर गरदन घुमा कर कहा… यह मुजीबुर कहाँ भाग गया। थाने मे खबर करो कि उसके चेम्बर से उठा कर उसे यहाँ लेकर आये। हिना और परवीन भी अभी तक नहीं आयी। …साहब, कंट्रोल रुम ने खबर दी है कि वह रास्ते मे है। …उस मुजीबुर को भी उठवा लो। अबकी बार वह जल्दी से बोला… जनाब, मै मुजीबुर शेख हूँ। मैने उसे घूर कर देखा… तुम तो अपने आप को एडवोकेट बता रहे थे। …जनाब मै एडवोकेट हूँ। मैने घूर कर देखते हुए कहा… चार-चार फ्राड और चारसौबीसी के केस तुम्हारे नाम पर चल रहे है और तुम अपने आप को एडवोकेट बता रहे हो। एकाएक उसकी वकालत सबके सामने मैने उतार दी थी। मैने महरुनिसा से कहा… आप आराम से बैठिये। पहले जो कुछ अभी तक पता चला है उसकी पूछताछ मुजीबुर से करनी है। यह बोल कर मुजीबुर के कन्धे पर हाथ रख कर लगभग धकेलते हुए मैने कहा… चलिये एडवोकेट साहब। हम दोनो एसपी रहमान के कमरे मे दाखिल हो गये थे। …बैठिये एडवोकेट साहब। उसकी हवाइंया उड़ी हुई थी। वह नजरे झुका कर बैठ गया था।

एसपी रहमान मेरी ओर देख कर बोला… यह भारतीय सेना के मेजर समीर बट है। जमात-ए-इस्लामी की जाँच के लिये आये है। मेजर साहब, मुजीबुर शेख आपके सामने है। जो पूछना है वह आप इनसे पूछ लिजिये। उसने जल्दी से बंगाली मे कुछ रहमान से कहा तो रहमान ने कहा… वकील साहब पूछ रहे है कि आप कौन होते है पूछ्ताछ करने वाले। मै इस आदमी को कोई जवाब नहीं दूंगा। मैने मुस्कुरा कर उसकी ओर देखते हुए कहा… एसपी साहब यह तो कानून बहुत अच्छे से जानता है। मैने जो इसके खिलाफ आपको सुबूत दिये है तो आप इसी वक्त इस पर मित्र देश के विरुद्ध साजिश, जाली करेन्सी का वितरण और पठानकोट मे ब्लास्ट का चार्ज लगा कर तुरन्त हिरासत मे ले लिजिये। आज ही फ्राड के जुर्म मे इसकी जमानत को रद्द करने की याचिका कोर्ट मे लगाईये और बाकी काम मुझ पर छोड़ दिजिये। हम तो ऐसे काम आये दिन ही करते रहते है। मुजीबुर अबकी बार वह हिन्दी मे बोला… आप मुझे धमकी दे रहे। मेरे खिलाफ क्या सुबूत है? अबकी बार मै खिलखिला कर हँस कर बोला… सुबूत कोर्ट मे पेश करने होंगें तो वहाँ करेंगें वकील साहब। फिलहाल तो आपको लाकअप मे जाना है। इसका कोई कानून है तो बता दिजिये कि लाकअप की ओर जाती हुई गाड़ी उलटनी नहीं चाहिये या लाकअप तोड़ कर भागने वाले आतंकवादी को गोली नहीं मार सकते। मेरी बात सुन कर एडवोकेट मुजीबुर शेख की पेशानी पर पसीने की बूंदे साफ दिख रही थी।

वह अपने आप को सयंत करते हुए बोला… आप क्या पूछना चाहते है? मैने एसपी रहमान की ओर देखा तो वह फटी हुई आँखों से मेरी ओर देख रहा था। …आप अपनी मर्जी से बात कर रहे है वकील साहब? उसने गरदन हिला दी थी। मैने आवाज कड़ी करते हुए कहा… मैने आपका जवाब नहीं सुना। वह जल्दी से बोला… जी अपनी मर्जी से बात कर रहा हूँ। मै आराम से कुर्सी पर बैठ कर बोला… एसपी साहब, आप गवाह है कि वकील साहब अपनी मर्जी से बोल रहे है। एसपी रहमान ने मुस्कुरा कर कहा… मेजर साहब आप सवाल पूछिये। …मुजीबुर तुम क्या जमात के ही केस लड़ते हो? अबकी बार वह जल्दी से बोला… नहीं जनाब। मै तो बहुत से और भी केस देखता हूँ। …तो तुम मे ऐसी क्या बात है कि जमात के मुन्नवर, आलम बेग और आलमगीर की पैरवी सिर्फ तुम कर रहे हो और कोई दूसरा वकील नहीं लिया गया? मेरा सवाल सुन कर वह गड़बड़ा गया था। वह अबकी बार संभल कर बोला… इसके बारे मे भला मै क्या बता सकता हूँ। वह तीनो मेरे पुराने क्लाइन्ट है। मैने एसपी रहमान से कहा… देखिये मैने बताया था न कि इस आदमी के उनसे पुराने संबध है। अपनी गलती का एहसास मुजीबुर को उसी समय हो गया था लेकिन मुँह से निकली बात तो वापिस नहीं ली जा सकती थी। …वकील साहब, आपने उनके लिये पहले कौन-कौन से और केसों मे पैरवी की है क्योंकि आलमगीर के खिलाफ बलात्कार, तस्करी, लूटमार, हत्या और दंगा फसाद के चौदह केस दर्ज है। अभी तक आपने कितने केस मे उसकी पैरवी की थी? अबकी बार मुजीबुर ने बस इतना ही कहा… जनाब मै सिर्फ वकील हूँ। मेरा उनके कामो से कोई नाता नहीं है।

एसपी रहमान को अब तक काफी मसाला मिल गया था। उसने पुलिस वाले अंदाज मे कहा… मुजीबुर, यहाँ जमात के आतंकवादी गतिविधियों के बारे मे पूछताछ हो रही है। अच्छा होगा कि तुम जो भी जानते तो वह बता दो क्योंकि कल अगर कोई दुर्घटना होगी तो सबसे पहले मै तुम्हें हिरासत मे लूंगा। तुम कानून के आदमी हो तो तुम्हें पता है कि सामान्य कानून की हद कहाँ समाप्त हो जाती है। 

अबकी बार मैने उसे सीधा सवाल किया… आलमगीर के बारे मे क्या जानते हो? …वह निहायत ही बदमाश आदमी है। …उसकी बीवी को जानते है? …जी। …वही जो बाहर बैठी है। आपने उसको क्या कहा था? अचानक उसके चेहरे का रंग उड़ गया था। …मियाँ इसका सोच कर जवाब देना क्योंकि उसने अपना बयान दे दिया है बस उसका लिखित बयान लेना बाकी है। मैने अचानक अपना सवाल बदल कर पूछा… मुजीबुर, तुम जमात के अख्तर काजी को जानते हो? …जी जनाब। …वह इस वक्त कहाँ मिलेगा? एकाएक वह चुप हो गया था। …कोई बात नहीं। यह बात आलमगीर तुमसे पूछ लेगा। वह जल्दी से बोला… जनाब, वह आपको मकबूल चौधरी की बोट पर मिलेगा। वह आजकल सारा समय बोट पर बिता रहा है। मै कुछ एसपी रहमान से बोलता उससे पहले वह उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था। मुजीबुर को कुछ समझ मे नहीं आया कि आखिर किस विषय मे पूछताछ की जा रही थी। वह कुछ बोलता उससे पहले मैने कहा… वकील साहब आप जा सकते है। वह हैरत से मेरी ओर देखता रहा और फिर उठ कर खड़ा हो गया। …वकील साहब बस इतना ख्याल रहे कि गवाह से मिलने या उसे बर्गलाने की कोशिश मत करना। एडवोकेट मुजीबुर शेख तेजी से कमरे से बाहर निकल गया और इस बार उसने लिफ्ट का भी इंतजार नहीं किया था।

मेहरुनिसा को एसपी रहमान के कमरे मे बिठा कर मै बाहर निकल आया और उसके पीए से कहा… किसी महिला पुलिस को तुरन्त बुलाओ। यह बोल कर मै एसपी रहमान के कमरे के बाहर खड़ा हो गया था। एसपी रहमान लौट कर वापिस आया और मुझे बाहर खड़ा देख कर बोला… आप यहाँ कैसे खड़े हुए है। क्या मुजीबुर का काम खत्म हो गया? …हाँ, अख्तर काजी का क्या किया? …मेरी युनिट पहले मकबूल चौधरी को उठाएगी और फिर उसके साथ उसकी बोट पर जाएगी। अख्तर काजी को लेकर वह शाम तक वापिस आ जाएँगें। …एसपी साहब, उस बोट पर जितने भी लोग है उन सभी को हिरासत मे लेना है। वही लोग है जिनको भारत मे उत्पात मचाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। एसपी रहमान उल्टे पाँव कंट्रोल रुम की ओर चला गया था। तभी एक लेडी कान्स्टेबल एसपी रहमान के कमरे का दरवाजा खोल कर अन्दर झांक कर वापिस जाने लगी तो मैने रोक कर कहा… महिला सस्पेक्ट से पूछताछ करनी है। तुम गवाही के लिये चुपचाप वहीं खड़ी रहना। …जी सर। उसको अपने साथ लेकर मै कमरे मे चला गया था।

मैने आलमगीर की फाइल निकाल कर उसके सामने रखते हुए कहा… मेहरुनिसा बीबी, उस वकील को तुम जानती हो? …जी। …कैसे? एकाएक उसका चेहरा लाल हो गया था। वह धीरे से बोली… हमारे पड़ोसी है। …आलमगीर से कब निकाह हुआ था? …दो महीने पहले। …उससे पहले कहाँ रहती थी? …गुलशन टाउन। …वकील साहब कैसे आदमी है? वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। कच्ची उम्र की लड़की थी और उसकी एक हरकत ने उनके बीच की सारी बात खोल कर रख दी थी। जैसे ही उनका आमना सामना हुआ तो उसके चेहरे के भाव और आखों मे पल भर के लिये तबदीली आ गयी थी कि जैसे वह पूछ रही हो कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो? उसी पल मै समझ गया था कि वह दोनो काफी नजदीक थे। मेरा काम तो मुजीबुर ने कर दिया था। मेहरुनिसा की अब कोई जरुरत नहीं थी लेकिन जब उसे बुलाया था तो कुछ पूछना होगा सोच कर मैने सामने पड़ी हुई फाईलों से सभी तस्वीरें निकाल कर एक-एक करके दिखाते हुए पूछा… इनको कभी देखा है? मुन्नवर और आलम बेग की तस्वीर को देख कर उसने मना कर दिया था लेकिन अख्तर की तस्वीर को वह कुछ देर ध्यान से देखती रही थी। उसने कुछ बोलने से पहले मेरी ओर देखा तो मैने उसकी आँखों मे एक डर का साया देख कर आवाज कड़क करके पूछा… बीबी, यह निहायत ही खतरनाक आदमी है। इसे पहले कभी देखा है? वह जल्दी बोली… साहब यह आदमी दो दिन से मेरे घर मे रह रहा है। अपने आपको मेरे खाविन्द का दोस्त बता कर घुस आया था। पल भर के लिये मै सकते मे आ गया था। पुलिस कान्सटेबल को उसके पास छोड़ कर मै कंट्रोल रुम ढूंढने के लिये बाहर निकल गया था।

गैलरी मे कोई नहीं दिखा तो कुछ कदम एक दिशा मे जाकर वापिस लौटने के लिये मुड़ा तो सामने से आते हुए एसपी रहमान मुझे देख कर बोला… मेजर क्या ढूंढ रहे हो? …आपको ढूंढ रहा था। अख्तर बोट पर नहीं है वह आलमगीर के घर पर पिछ्ले दो दिन से ठहरा हुआ है। …क्या? मै उसे लेकर मेहरुनिसा के पास आ गया था। रहमान ने मेहरुनिसा से बंगाली कुछ बात की फिर जल्दी से बोला… मेजर साहब इसे लेकर मेरे पीछे चले आओ। वह अपने फोन पर किसी से बात करते हुए तेज कदमों से चलते हुए आगे निकल गया था। हम दोनो उसके पीछे चल दिये थे। जब तक हम नीचे पहुँचे तब तक रहमान कार मे बैठ चुका था और हमारा इंतजार कर रहा था। हमारे कार मे बैठते ही पुलिस कार आगे बढ़ गयी थी।

…मेजर, मैने इसके स्थानीय थाने मे बात करके इसके घर की निगरानी पर उन्हें लगा दिया है। अब उसको जिंदा पकड़ने के लिये थाने चल कर कोई योजना बनानी पड़ेगी। …एसपी साहब, वह आतंकवादी है जो मरने मारने की सोच बना कर बैठा है। मेरी बात मानिये अपने पुलिस वालों से सिर्फ निगरानी करने के लिये कहिये क्योंकि अगर पुलिस एक्शन लेगी तो ऐसी मुठभेड़ मे आपको काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। उसके जैसे लोगो से निपटने का हमारा रोजाना का काम है। यह पुलिस के बस का काम नहीं है। मुझे मेहरुनिसा के साथ अन्दर जाने दिजिये और अपनी पिस्तौल कुछ देर के लिये मुझे दे दिजीये। एसपी रहमान पूरे रास्ते सोचता रहा फिर जैसे ही उसका घर नजदीक आया तो अपनी पिस्तौल मेरी ओर बढ़ाते हुए बोला… मेजर, अपना ख्याल रखना। …आप बेफिक्र रहिए एसपी साहब। बस यह पता कर लिजिए कि वह अभी भी घर के अन्दर है या नही? रहमान ने फोन पर पूछ कर सख्त निर्देश दे दिये कि कोई कुछ अपनी ओर से एक्शन नहीं लेगा। उस घर से हम दोनो कार से कुछ दूर पहले ही उतर गये थे।

…महरुनिसा तुम्हें कुछ देर के लिये मुझे वकील साहब की तरह समझना पड़ेगा। मैने पिस्तौल की मैगजीन चेक की और सेफ्टी लाक लगा कर कहा… बुर्के के नीचे क्या पहना है? …कुर्ता और शलवार। हम एक पेड़ की आढ़ मे खड़े हो गये और मैने उसे पिस्तौल पकड़ा कर कहा… इसे अपने जिस्म पर कहीं छिपा लो। उसने पिस्तौल लेकर अपने बुर्के मे हाथ डाल कर पिस्तौल छिपा कर हाथ बाहर निकाल कर बोली… चलें। …कहाँ छिपायी है? वह झेंप कर बोली… छिपा दी है। आपको जब जरुरत पड़ेगी तब निकाल कर दे दूंगी। मेरे पास बात करने का समय नहीं था। मैने उसकी कमर पर हाथ फिरा कर चेक किया लेकिन पिस्तौल नहीं मिली तो मैने झटके के साथ उसके वर्जित क्षेत्र मे टटोल कर देखा तो पिस्तौल उसने अपने अन्तर्वस्त्र मे छिपायी थी। …संभल कर चलना वर्ना पिस्तौल के भार से कहीं नीचे खिसक गयी तो बेइज्जत हो जाओगी। उस बेचारी ने अपना बुर्के को आगे से थाम लिया और मेरे साथ चल दी थी। ऐसे ही चलते हुए हम दोनो उसके मकान मे प्रवेश कर गये थे।

घर मे घुसते ही उसके चेहरे पर घबराहट के लक्षण साफ उजागर हो रहे थे। उसको देख कर ही सारी कहानी खुल जाती। उसने अपना बुर्का उतार कर एक खूँटी पर टाँग दिया और मेरी ओर देखने लगी। अख्तर काजी अभी तक सामने नहीं आया था। मुझे इतना आभास हो गया था कि वह यहीं कहीं है और हम पर नजर रख रहा है। अचानक मैने झुक कर एक झटके से महरुनिसा को अपनी बाँहों मे उठाया तो उसकी चीख निकल गयी थी। मैने हंसते हुए कहा… बेडरुम कहाँ है जानेमन। उसकी आवाज कांप गयी… आपको इतनी जल्दी क्या है। फूल सी हल्की महरुनिसा एक बच्ची की तरह मेरी बाँहों मे झूल गयी थी। उसने बेडरुम की ओर इशारा करके कहा… इतने उतावले तो मत बनिये। …मेरी जान अन्दर चलो तो सही इस नायब हुस्न का दीदार करना है। वह जल्दी से बोली… आप धीरे नहीं बोल सकते। अन्दर भाईजान हो सकते है। मैने इतनी देर मे मकान का जायजा ले लिया था। दो कमरे एक रसोई और बाथरुम की निशानदेही कर चुका था। मेरा अनुमान के अनुसार अख्तर सिर्फ इन दो कमरो मे हो सकता था।

मेरी नजरें दोनो कमरों मे से एक कमरे को चुनने की सोच रही थी कि तभी पीछे से आवाज कान मे पड़ी… ओह मेजर साहब। आप यहाँ पर क्या करने आये है? अब्दुल्लाह नासिर हमारे पीछे से निकल कर सामने आ गया था। उसके हाथ मे पकड़ी हुई क्लाशनीकोव हमारी ओर तनी हुई थी। वह अपनी किस्मत पर इतरा रहा था। मैने महरुनिसा को बाँहों मे उठा रखा था तो इस वक्त मै कुछ भी करने की स्थिति मे नहीं था। वह आगे बढ़ा और जल्दी से मेरी तलाशी लेकर बोला… बहुत पुराना हिसाब चुकता करना है। इस छिनाल के चक्कर मे आप कैसे पड़ गये? एक बात तो तय हो गयी थी कि वह देखते ही मुझे गोली मारने की फिराक मे नहीं था। मुझे जल्दी ही कुछ करना था लेकिन क्लाशनीकोव के सामने मेरी जरा सी चूक हम दोनो के लिये घातक बन सकती थी।

मैने मेहरुनिसा को धीरे से जमीन पर खड़ा करके उसको देखते हुए कहा… मियाँ मैने तुम्हें पहचाना नहीं। क्या इसका तुम्हारे साथ भी कोई चक्कर है? वह हँस कर बोला… हाजी मोहम्मद के बेटे अब्दुल्लाह नासिर को आप इतनी जल्दी भूल गये। मैने चकराते हुए कहा… ओह तुम हो, यह तुमने कैसा हाल बना लिया है। उस वक्त तो तुम ठीक ठाक दिखते थे। जिहादी कब से बन गये? उसने क्लाशनीकोव से इशारा करते हुए कहा… चलिये बेडरुम मे चलिये। आज इस छिनाल का भी हिसाब कर दूँगा। मैने मुस्कुरा कर कहा… वह तो ठीक है लेकिन आलमगीर को क्या बताओगे? बेडरुम की ओर जाते हुए मैने अपने आगे मेहरुनिसा को कर लिया था। मेरी आढ़ मिलते महरुनिसा ने चलते हुए पिस्तौल निकाल कर हाथ मे ले ली थी। बेडरुम मे घुसते हुए उसने एक ठोकर मुझे मारी और मै महरुनिसा को अपनी बाँहों मे बाँध कर औंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ा था। उसी क्षण महरुनिसा ने पिस्तौल मेरे हाथ मे रख दी थी। मै औंधे मुँह अब्दुल्लाह की ओर पीठ करके उसके उपर पड़ा रहा और इसी बीच मैने पिस्तौल का सेफ्टी लाक हटा दिया था।

मैने करवट लेकर महरुनिसा को अपने उपर खींच कर पिस्तौल उसके जिस्म की आढ़ मे छिपा ली थी। मुझे बस एक मौके की तलाश थी। मैने बड़ी बेशर्मी से महरुनिसा के कुरते मे अपना हाथ डाल कर उसके सीने की गोलाईयों से खेलते हुए कहा… मियाँ तुमने यहाँ आकर सारा मजा किरकिरा कर दिया है। आज इसके जिस्म को निचोड़ने की नीयत से आया था लेकिन यहाँ भी तुम जैसे जिहादी पहुँच गये। मियाँ लानत है इस किस्मत पर कि साले जिहादी कहीं भी चैन से नहीं रहने देते। यार क्या कुछ देर के लिये मुझे इसके साथ अकेला नहीं छोड़ सकते? मैने उसके स्तन को कस कर दबाया तो दर्द से दोहरी होकर आगे झुक गयी थी। इससे दो कार्य सिद्ध हो गये थे कि पहला यह कि पिस्तौल सीधी करने की जगह बन गयी थी और दूसरा उसका ध्यान मेहरुनिसा की ओर चला गया था। मेरा हाथ अभी भी उसकी गोलाईयों को नाप रहा था। उसका सारा ध्यान मेरे हाथ पर टिका हुआ था। मैने एक के बाद एक दो फायर किये और मेहरुनिसा कर लेकर बिस्तर पर लुड़क दूसरी ओर चला गया था। जब तक अब्दुल्लाह कुछ समझ पाता वह अपने वजन को संभालने के लिये लड़खड़ाया जिसके कारण हाथ मे पकड़ी हुई क्लाशनीकोव हवा मे लहराती हुई छूट कर जमीन पर गिर गयी थी। पहले फायर ने उसका घुटने को तोड़ दिया था जिसके कारण वह लड़खड़ाया और दूसरे फायर ने उसके कूल्हे को घायल कर दिया जिसके कारण एक दिशा मे गिरता चला गया था। उसके गिरते ही मैने महरुनिसा को धकेल कर पहले क्लाशनीकोव उठा ली और फिर जमीन पर पड़े हुए अब्दुल्लाह नासिर को कवर करते हुए महरुनिसा से कहा… बाहर जाकर उन्हें अन्दर बुला लाओ।

थोड़ी देर के बाद अब्दुल्लाह को लेकर हम लोग अस्पताल की ओर जा रहे थे। अब्दुल्लाह होश मे था लेकिन उसका एक हिस्सा सुन्न कर दिया गया था। …मेजर साहब, इसकी गिरफतारी का सारा श्रेय आपको जाता है परन्तु औपचारिक घोषणा मे आपका नाम नहीं होगा। मैने मुस्कुरा कर कहा… एसपी साहब आप बस उनको और पकड़ लिजिये जो हिज्बुल के जिहादी बोट पर है। मेरा यहाँ का काम समाप्त हो जाएगा। अब्दुल्लाह ने बीच मे टोका… मेजर वहाँ तो एक ही टीम मिलेगी। बाकी तो जा चुके है उनका क्या करोगे। मै कुछ बोलता उससे पहले वह मुस्कुरा कर बोला… मेजर खंजर तो निकल गया है। अब तो वह तुम्हारे सीने मे घुस कर ही रुकेगा। एसपी रहमान ने तुरन्त मेरी ओर देखा तो एक पल के लिये मै भी सकते मे आ गया था। …अब्दुल्लाह, अस्पताल मे तुम उन जाने वाले बाकी लोगों बारे मे भी बताओगे। मैने उसकी स्प्लिन्ट मे बन्धी हुई टांग को एकाएक हवा मे उठा कर छोड़ दिया था। उसकी दर्दनाक चीख ऐम्बुलेन्स मे गूंज गयी थी। …एसपी साहब यह सब यहाँ के नहीं है। यह सब भारत के नागरिक है। इसके कागज तो आज शाम तक मिल जाएँगें तो इसे भारत के हवाले करने की कार्यवाही आपको शुरु करनी पड़ेगी। …मेजर साहब, इसके लिये आपको एक बार डीजी साहब से बात करनी पड़ेगी। …कागज मिलते ही मै उनसे बात कर लूँगा।

उसी शाम मै अपने दूतावास से अब्दुल्लाह नासिर के कागजात लेकर डीजी सदाकत हुसैन से मिला था। उनको सारे कागजात देते हुए मैने निवेदन किया कि जो पन्द्रह हिज्बुल के जिहादी बोट से पकड़े गये थे उनसे पूछताछ करने की इजाजत मिल जायेगी तो आप्रेशन खंजर की पूरी साजिश से पर्दा उठ जाएगा। सदाकत हुसैन ने इजाजत देते हुए कहा… मेजर समीर उन पन्द्रह मे हमारा कोई नागरिक हुआ तो उससे पूछताछ एसपी रहमान करेंगें। …जी सर। यह बात करके मै बाहर निकल आया था। मैने एसपी रहमान से कहा… सदाकत हुसैन साहब को मेरी पूछताछ का ढंग शायद पसन्द नहीं आया। …जेल सुप्रिटेन्डेन्ट ने जरुर आपकी शान मे उन्हें काफी कुछ बताया होगा। …एसपी साहब यही फौजी और गैर-फौजी कार्यशैली मे फर्क है। आप खुद सोच कर दिखिये कि जिहादियों के दिल मे क्या कानून के प्रति कोई डर है। वर्दी मे खड़ा हुआ कान्स्टेबल इनकी नजरो मे कीड़े से ज्यादा कुछ नहीं है। वह बेचारा कानून से बंधा हुआ है और इनके लिये कानून की कोई अहमियत ही नहीं है। इसीलिए जब आतंकवादी का सामना करना होता है तो उसे युद्ध की तरह लेना पड़ता है। आप चिन्ता मत किजिये उस समूह मे एक भी यहाँ का नगरिक नहीं होगा लेकिन यहाँ के नागरिक मकबूल चौधरी को अब आपको संभालना होगा। काफी देर हो गयी थी तो अगले दिन मिलने की बात करके मै वापिस होटल की ओर चल दिया था।

अपने होटल पहुँचते हुए रात के नौ बज गये थे। मै सीधा आरफा के कमरे मे चला गया था। वह काफी देर से मेरा इंतजार कर रही थी। …आज कहाँ चले गये थे? मैने बैठते हुए कहा… आज हमने अख्तर और उसके साथियों को पकड़ लिया है। मेरा यहाँ का सारा काम समाप्त हो गया है। मै कल तक यहाँ हूँ तुम अपना जवाब सोच कर बता देना। यह सुन कर उसका चेहरा उतर गया था। बात बदलने के लिये मैने कहा… खाना वगैराह मंगा लेते है। सुबह नाश्ते के बाद सारा दिन भागने मे निकल गया है। चलो मेरे कमरे मे वहाँ खाना मंगा लेंगें। …आज आप यहीं खाना मंगा लिजिये। मैने रुम सर्विस को आर्डर दिया और हाथ मुँह धोने के लिये चला गया था। …आज मै साहिबा से मिली थी। उसके और अख्तर के बीच मे किसी बात पर मतभेद हो गया है जिसके कारण वह तीन महीने से उससे नहीं मिला है। …अगर तुम यहाँ रहना चाहती हो तो तुम्हे अब उन लोगो से सारे रिश्ते समाप्त कर देने चाहिये। इसी दौरान खाना आ गया था।

पेट भर गया था तो नींद हावी होने लगी थी। मै उसके बिस्तर पर लेट गया था। …लाईये आज मै आपकी थकान उतार देती हूँ। मैने मुस्कुरा कर कहा… उस रात की तरह? वह झेंप कर नीचे देखने लगी थी। मैने उसको अपने नजदीक खींच कर कहा… क्या आज रात को यहीं तुम्हारे पास ठहर जाऊँ? उसने मेरी ओर देखा तो उसकी आँखो ने उसके अन्दर सुलगती हुई कामाग्नि को बयाँ कर दिया था। वह मेरी शर्ट के बटन खोलते हुए बोली… आप कल दिन मे मेरे साथ एक घंटे के लिये चल सकते है? …तुम्हें जब चलना हो मुझे बता देना। मै तुम्हारे साथ चल दूँगा। मेरी शर्ट उतरने के बाद कुछ ही देर मे पैन्ट और बाक्सर भी जुदा हो गये थे। उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया और मेरी पीठ पर बैठ कर अपनी उँगलियों का जादू दिखाने लगी। वह जिस हिस्से को भी दबाती थी जिस्म को चैन आ जाता था। कुछ देर कंधे और पीठ दबाने के बाद वह मेरे नितंबों को गूँधने लगी और फिर सरक कर मेरी टाँगो पर आ गयी थी। आधे घंटे मे दिन भर की सारी थकान मिट गयी थी और जिस्म हल्का महसूस करने लगा था। मै करवट लेकर सीधे लेटते हुए कहा… अब इसका क्या होगा। कैसे मतवाले हाथी की तरह झूम रहा है। मैने उसके ब्लाउज के हुक खोलते हुए उसके भारी सीने के साथ छेड़खानी करते हुए उसे निर्वस्त्र करना आरंभ कर दिया। 

…आप कितने गोरे है? इस जालिम का सिर टमाटर की फूल कर लाल हो गया है। …यह तुम्हारे कारण इतना उतावला हो रहा है। उसका चेहरा लहराते हुए भुजंग के सामने आ गया था। उसने नागिन की तरह अपनी जिबहा निकाल कर मस्ती मे झूमते हुए भुजंग के सिर पर पहला प्रहार किया। मेरी एक ठंडी आह निकल गयी थी। उसके होंठ धीरे से खुल गये थे और उन खुले होठों को उसने भुजंग के सिर पर टिका कर दबाव डाला तो वह अन्दर प्रवेश करता चला गया। उसकी जुबान ने उस टमाटर जैसे सिर के साथ अठखेलियाँ करना आरंभ कर दिया था। उसकी उँगलियाँ मेरे भुजंग की गरदन पकड़ उसकी मालिश मे जुट गयी थी। उसके दूसरे हाथ ने अंडकोशों के साथ खेलना आरंभ कर दिया था। अचानक एलिस की याद आ गयी थी जिसने मुझे एक युवक से पुरुष बनाया था। उसने ही सिखाया था कि एक स्त्री कैसे पुरुष को नियंत्रित करती है। उस रात आरफा टूट कर अपनी मोहब्बत का एहसास कराने मे जुट गयी थी। उसका जिस्म एक नागिन के तरह मेरे जिस्म से आधी रात तक खिलवाड़ करता रहा था। उसने मुझ पर अपने अनुसार अलग-अलग तरीके का इस्तेमाल किया और मैने भी उसकी खुशी के लिये हर भरसक प्रयत्न किया था। जब हम दोनो ही थक कर चूर हो गये तब एक दूसरे से गुथे हुए सपनो की दुनिया मे खो गये थे। 

सुबह वह उठी और मुझे जगा कर बोली… आप तैयार हो जाईये। हम नाश्ता साथ करेंगें। …तुम तैयार होकर मेरे कमरे मे आ जाना। मै वहीं नाश्ता मंगा लूंगा। मैने जल्दी से अपने कपड़े पहने और अपने कमरे मे चला गया था। नौ बजे तक मै तैयार हो गया था। मैने नाश्ते का आर्डर दिया ही था कि वह भी तैयार होकर आ गयी थी। नाश्ते के दौरान उसने कहा… आप पहले मेरे साथ चलिये क्योंकि एक बार आप अपने काम मे लग गये तो फिर आपका निकलना मुश्किल हो जाएगा। आज मुझे भी ऐसी कोई जल्दी नहीं थी तो मैने भी उसके साथ चलने की हामी भर दी थी। नाश्ता समाप्त करके जैसे ही हम होटल के रिसेप्शन पर आये कि तभी पुलिस की कार मुझे लेने आ गयी थी।  …क्या उस जगह पुलिस की कार से जा सकते है? …बाहर उतर जाएँगें। हम दोनो कार मे बैठ गये और आरफा ने ड्राईवर को एक पता दे दिया। मैने एक बात महसूस की थी कि ढाका मे कोई भी जगह ज्यादा दूर नहीं थी परन्तु ट्रेफिक के कारण टाइम लगता था।

एक जगह पुराने ढाका के पास पहुँच कर ड्राईवर ने कहा… सर, वह जगह आ गयी है। मैने आरफा की ओर देखा तो वह आँख मूंद कर मेरे कंधे पर सिर रख कर बैठी हुई थी। …आरफा। वह चौंक कर उठ गयी थी। …तुमने जिस जगह का पता दिया था वहाँ पहुँच गये है। उसने खिड़की के बाहर देख कर जल्दी से बोली… यहीं उतरना है। मैने ड्राईवर से कहा… यहीं पर मेरा इंतजार करो। यह बोल कर मै आरफा के साथ चल दिया। घुमावदार गलियों मे से गुजरते हुए वह एक पूराने से विशाल मकान मे मुझे ले गयी। एक नजर घुमा कर मैने उस इमारत का जायजा लिया तो पता चला कि उस इमारत मे बहुत से परिवार रह रहे थे। …हम कहाँ जा रहे है? …चलिये तो सही। वह पहली मंजिल पर एक कमरे के बाहर जाकर खड़ी हो गयी। उसने धीरे से दरवाजे पर दस्तक दी और दरवाजे को धकेला तो वह खुलता चला गया था। मेरी नजर एक बूढ़ी औरत पर पड़ी जो जमीन पर बैठ कर सब्जी काट रही थी। उसी के पास एक पाँच-छह साल का पतला दुबला बच्चा बैठ कर बंगाली मे बात कर रहा था। आरफा ने जैसे ही उस कमरे मे कदम रखा तो दोनो ने सिर उठा कर उसकी ओर देखा। एकाएक बूढ़ी महिला बंगाली मे कुछ बोलने लगी और वह बच्चा उसको एक टक देखता रह गया था।

आरफा ने कहा… अन्दर आ जाइये। यह मेरी माँ है और वह मेरा बेटा अमन है। मै अन्दर आ गया लेकिन बैठने के लिये कोई चीज नहीं दिखी तो दीवार से पीठ टिका कर जमीन पर बैठ गया था। वह माँ से कुछ बंगाली मे बोली तो उसकी माँ ने मेरी ओर देखते हुए कुछ कहा जो मेरे पल्ले नहीं पड़ा तो आरफा ने कहा… आपको शुक्रिया कह रही है। उसने अपने बच्चे को गोद मे उठाया और मेरे पास लाकर बोली… यह अनमोल बिस्वास की निशानी है। एकाएक सब कुछ मेरे सामने साफ हो गया था। …तुम इतने दिन से वहाँ पर थी लेकिन एक बार भी इनके बारे मे नहीं बताया आखिर क्यों? वह चुपचाप बैठी रही। मैने उसके बच्चे को अपने पास बुलाया तो वह झिझकते हुए मेरे पास आकर खड़ा हो गया… तुम्हारा नाम क्या है। मेरी भाषा एक बार फिर रोड़ा बन गयी थी। आरफा ने उसे बंगाली मे बतया तो वह शर्माते हुए बोला… अमन। …तुम जब वहाँ थी तो इनका गुजारा कैसे चल रहा था। …अनमोल के कुछ पैसे थे और कुछ मेरे जेवर थे। उन्हीं से गुजारा हो रहा था। अब आप ही बताईये इन दोनो को यहाँ छोड़ कर अब मै कैसे वापिस जा सकती हूँ।

हम कुछ देर बात करते रहे और फिर मैने उठते हुए कहा… सबसे पहले आज ही अपना बैंक अकाउन्ट खुलवा लो। शाम को मुझे तुम्हारे बैंक की सारी जानकारी चाहिये। अब से अमन मेरा बेटा है। इसकी पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी मेरी है। तुम्हें अब इनकी चिन्ता करने की जरुरत नहीं है। अनमोल बिस्वास का जो भी सरकारी मुआवजा होगा वह तुम्हें दिलवा दूँगा लेकिन अब तुम कोई इज्जत वाला काम यहाँ शुरु करो और अपनी अम्मी और बच्चे को यहाँ से निकाल कर किसी साफ और अच्छी जगह पर रहो। तुम्हारा मुझ पर ही नही मेरी सरकार पर भी एहसान है। मुझे जाना है शाम को होटल मे मिलना। आज मेरा आखिरी दिन है। कल सुबह मै चला जाऊँगा लेकिन अब से अमन मेरा बेटा है। इसको कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिये। आरफा को सुबकती हुई वहीं छोड़ कर मै किसी तरह गलियों के जाल से निकल कर मुख्य सड़क पर आ गया था। पुलिस की कार वहीं खड़ी हुई थी जहाँ मैने उसे छोड़ा था। बड़े भारी मन से कार मे बैठा और एसपी रहमान के आफिस की ओर चल दिया था।

मुझे देखते ही एसपी रहमान ने कहा… मेजर साहब आज देर कैसे हो गयी? मै तो सोच रहा था कि आप आज सुबह ही आ जाएँगे। …एक काम मे फँस गया था। एसपी साहब बोट पर पकड़े गये लोगों से मिल सकता हूँ। …हाँ, उसी के लिये आपका इंतजार कर रहा था। हम दोनो उनसे पूछताछ करने के लिये निकल गये थे। स्थानीय थाने के लाकअप मे उन्हें रात के लिये रखा था। आज उनके खिलाफ चार्ज लगा कर जेल भेजना है। मेरी शिनाख्त पर ही वह चार्ज लगाने का सोच रहे थे। रहमान की कार मे बैठ कर हम स्थानीय थाने की ओर चल दिये थे। पास ही थाना था तो इस बार हम जल्दी वहाँ पहुँच गये थे।

थाने की हालत भी कोई खास अच्छी नहीं दिख रही थी। बीस लोग हिरासत मे लिये गये थे। …मेजर साहब, इनमे पाँच लोग तो स्थानीय है जो बोट पर काम करते थे। आपके लिये पन्द्रह लोग इन तीन सेल मे बन्द है। …मकबूल चौधरी का क्या हुआ? …वह भी हिरासत मे है लेकिन उसे हमने कहीं और रखा हुआ है। मै पहले सेल मे एसपी रहमान के साथ चला गया था। पाँच लोग शक्ल से ही खुंखार आतंकवादी लग रहे थे। …तुम्हारा हिज्बुल से ताल्लुक है? किसी ने कोई जवाब नहीं दिया तो अबकी बार मैने कश्मीरी मे कहा… एक बात सोच लो कि तुम्हें यहाँ की जेल मे रहना है या वापिस कश्मीर जाना है। यह तुम्हारी मर्जी है। वैसे एक बात बता देना चाहता हूँ कि तुम जैसे गोरे लड़के एक रात भी यहाँ की जेल मे बच नहीं सकोगे। दस पन्द्रह छ्टे हुए बंगाली कैदी तुम्हें अपनी रखैल बना कर रखेंगें। जहाँ तक आरोप है तो वह अवैध हथियार, आतंकवाद और यहाँ पर जितने भी ब्लास्ट हुए है उन सबके इल्जाम तुम पर लगाये जाएँगें। फाँसी होगी तो परेशानी कम है लेकिन अगर चौदह साल की सजा हो गयी तो जीतेजी जहन्नुम पहुँच जाओगे। अगर अपना सही नाम और पता बता दोगे तो तुम्हारी शिनाख्त करके तुम्हें कश्मीर वापिस भेज दिया जायेगा। वहाँ जेल मे रहोगे तो भी अपने परिवार से मिल सकोगे। अब सब कुछ तुम्हारे उपर निर्भर करता है। कुछ लोग कश्मीरी मे ही एक दूसरे से बहस करने मे जुट गये थे। कुछ देर के बाद पांच मे से तीन लोगों ने अपने सही नाम और पता बता कर पूछा… यह हमे वापिस भेजने को तैयार हो जाएँगें। मैने एसपी रहमान को इशारा किया कि वह अब इनके बयान नोट कर सकता है। उसे वहीं छोड़ कर मै दूसरे सेल मे चला गया था। वही बात करके मै तीसरे सेल मे चला गया था। उधर भी मैने वही कहा था। दो घंटे मे पन्द्रह मे से ग्यारह लोग अपने बयान लिखवाने मे व्यस्त हो गये थे। बाकी चार के बारे मे उनके साथियों ने सब कुछ बता दिया था। चलने से पहले मैने कहा… एसपी साहब इनके बयान की एक कापी मुझे दे दिजियेगा। कल दिल्ली पहुँच कर मै इनके बारे मे तहकीकात करवा कर इनके शिनाख्ती के कागज आपके पास भिजवा दूँगा। हम दोनो बात करते हुए थाने के बाहर आ गये थे।

वहाँ से निकल कर हम दोनो अस्पताल पहुँच गये। रात को ही अख्तर का आप्रेशन कर दिया गया था। उसका एक पाँव तो लगभग बेकार हो गया था। उसके वार्ड के बाहर पुलिस का पहरा लगा हुआ था। जब हम उसके पास पहुँचे थे तब तक वह होश मे आ चुका था। …अब्दुल्लाह नासिर तुझे अब सोचना है कि अख्तर बन कर बांग्लादेशी जेल मे कैदी बन कर जीवन गुजारना है अन्यथा अब्दुल्लाह बन कर श्रीनगर चलना है। एक बार फिर से मैने वही कहानी कश्मीरी मे उसे सुना दी थी। वह कुछ नहीं बोला तो मैने कहा… शाहीन को मैने तुम्हारे बारे मे बता दिया है। वह मुँह फेर कर लेट गया था। …अब्दुल्लाह मुझे यह पता है कि आप्रेशन खंजर अरब खाड़ी मे हमारे समुद्री तेल के संसाधनों पर फिदायीन हमले की योजना है। वह योजना तो शुरु होते ही फेल हो गयी है। डाक्टर ने बताया है कि शायद अभी भी तुम अपने दोनो पाँव पर चल सकोगे परन्तु अब भी अगर तुमने मुँह नहीं खोला तो यहाँ से निकलने से पहले मै तुम्हारी ऐसी हालत कर दूँगा कि शायद दूसरी टांग से भी नहीं चल पाओगे। उसने करवट लेकर मेरी ओर देख कर बोला… मेजर, इस खंजर की ऐसी खासियत है कि दाँये हाथ को नहीं पता कि बाँया हाथ क्या कर रहा है। मुझे सिर्फ इतना पता है कि इस आप्रेशन को तीन महीने मे होना था लेकिन अब वह एक महीने मे हो जाएगा। बत्तीस लोग बोट पर प्रशिक्षण लेकर जा चुके है। आखिरी पन्द्रह का ग्रुप दो दिन बाद जाना था। मै उनके ही कारण यहाँ रुका था। वह बत्तीस गाजी इस वक्त तुम्हारे देश मे कहाँ है और क्या कर रहे है किसी को नहीं पता। अब तुम उनको रोक सको तो रोक कर देख लो। मेरी लड़ाई तो समाप्त हो गयी है तुम्हें जो करना है वह कर लो।

मुझे पूरा यकीन था कि इसे सब कुछ पता है परन्तु यह इतनी आसानी से बताने वाला नहीं था। दूसरे देश मे जोर आजमाइश करने के लिये मुझे अजीत सर ने पहले ही मना कर दिया था। मैने यही सोचा कि एक बार दिल्ली पहुँच गया तो यह अपने आप तोते की तरह बोलना शुरु कर देगा। उसको वहीं छोड़ कर एसपी रहमान के साथ बाहर निकल आया था। …रहमान साहब बस आप एक काम कर दिजिये कि इसका फोन आप जमा करने के बजाय मुझे दे दिजिये। उससे हम इसके लोगों को आसानी से ट्रेस कर सकेंगें। एसपी रहमान ने उस वक्त कुछ नहीं कहा परन्तु जब मै सदाकत हुसैन और सभी से विदा लेकर आफिस से बाहर आया तो रहमान मुझे कार तक छोड़ने आया था। कार मे बैठने से पहले आखिरी बार हाथ मिलाते हुए उसने वह फोन मुझे देते हुए कहा… इसका जिक्र मैने जब्ती मे नहीं किया है। …थैंक्स। मै कार मे बैठा और होटल की ओर चल दिया। मेरे पास उन पन्द्रह लोगो के बयान की कापी भी थी। अब अजीत सर के लिये काम बढ़ गया था।