सोमवार, 27 नवंबर 2023

  

गहरी चाल-36

 

साजिश उजागर होने के पश्चात कुछ सोचते हुए जनरल रंधावा खड़े हो गये… मेजर, मै अभी आता हूँ। यह बोल कर वह कमरे से बाहर चले गये थे। पाँच मिनट बाद वह वापिस कमरे मे आकर बोले… इसने ऐसी फिल्मी कहानी सुना दी कि ब्लैडर पर दबाव बढ़ गया था। अब्दुल्लाह उनकी बात सुन कर मुस्कुराया तो मेरे तन बदन मे आग लग गयी थी। अपने आप को नियंत्रित करने के लिये मैने कहा… सर, मै भी दबाव कम करके आता हूँ। यह बोल कर मै भी बाहर जाने के लिये उठा तो अफरोज बोला… समीर भाई मै भी आपके साथ चलूँ।  मैने उसे रुम मे एक दरवाजे को दिखाते हुए कहा… तुम वहाँ कर सकते है। मै अपने दिमाग को दुरुस्त करने के लिये बाहर जा रहा हूँ। बाहर खड़े सैनिकों मे से दो सैनिकों को अन्दर भेज कर मै गैलरी मे टहलने लगा था। अचानक मेरे फोन की घंटी बज उठी थी। …हैलो। …समीर, मै आयशा बोल रही हूँ। कल रात को फौज अफरोज भाईजान को उठा कर ले गये थे।  मुझे तुम्हारी मदद चाहिये। तुम दिल्ली मे कहाँ हो मै तुमसे अभी मिलना चाहती हूँ। …तुम कहाँ हो? …मै दिल्ली एयरपोर्ट पर अभी उतरी हूँ। तुम जहाँ भी हो मुझे पता बता दो मै वहीं पर पहुँच जाऊँगी। मैने कुछ सोच कर कहा… आयशा, मै इस वक्त आफिस मे नहीं हूँ। तुम्हारे ठहरने की यहाँ पर कोई व्यवस्था है? …नहीं इस बार तो होटल मे ठहरना पड़ेगा। पहले तो यहाँ पर मै अपने खाविन्द के आफिस के गेस्ट हाउस मे ठहरती थी। कोई होटल बता सकते हो? मेरे दिमाग मे दो ही होटल थे सुर्या और मेरेडियन। सुर्या मेरे आफिस से दूर था तो मैने कहा… मेरिडियन मे ठहर जाओ। …क्या बहुत महंगा तो नहीं है? मैने जल्दी से कहा… यहाँ तुम मेरी गेस्ट हो। तुम चेक इन करो। मै कुछ देर मे वहीं पहुँच रहा हूँ तब तक तुम आराम करो। मैने फोन काट दिया और वापिस कमरे मे चला गया।

जनरल रंधावा की आदिल के बारे मे अफरोज से पूछताछ चल रही थी। मुझे देखते ही वह बोला… समीर तुम ही बताओ कि मै इनको कैसे यकीन दिलाऊँ? कल रात से कह रहा हूँ कि मै किसी आदिल नाम के आदमी को नहीं जानता लेकिन कोई भी मेरी बात मानने को तैयार नहीं है। …समीर, यह झूठ बोल रहा है। मैने इसे कई बार उसके साथ श्रीनगर मे घूमते हुए देखा था। मै तो उसे पहली बार ढाका मे मिला था। एक बार जब मैने उसके बारे मे पूछा तो उसने उसे अपना बहुत अच्छा दोस्त बताया था। वह किसी लड़की के साथ हिज्बुल के गाजियों का प्रशिक्षण देखने के लिये हमारी बोट पर भी आया था। मैने उसको चुप कराते हुए हुए जेब से उसके फोन की कोन्टेक्ट लिस्ट निकाल कर उसके सामने रखते हुए कहा… अफरोज से आदिल का पता हम लगा लेंगें। यह तुम्हारे फोन से निकाली कोन्टेक्ट लिस्ट है। इनमे से उन बत्तीस गाजियों पर निशान लगा दो जो आदिल के साथ है। …मुझे याद नहीं? मेरी आवाज कड़ी हो गयी… अब्दुल्लाह अब आनाकानी करने का समय नहीं है। जो कह रहा हूँ वह करो अन्यथा तुम दोनो को यहाँ से सीधे कैंम्प मे ले जाया जाएगा। अफरोज को सिर्फ आदिल के बारे मे बताना है लेकिन तुम वहाँ से जिन्दा वापिस नहीं आ सकोगे। अब्दुल्लाह के लिये बस इतनी धमकी ही काफी थी। वह कागज मे लिखे हुए नाम पढ़ कर धीरे-धीरे निशान लगाने लगा था। कागज पर निशान लगाते हुए अचानक उसकी आँखें चमकने लगी थी। वह जल्दी से बोला… समीर, यह नम्बर आदिल का है। मैने कागज पर उस नम्बर को देखा और उस पर नाम आदिल के बजाय अफरोज का लिखा हुआ था। मैने उस नम्बर पर एक बड़ा सा गोला बनाया और फिर उसे कागज थमा दिया था। चार सौ नम्बरों मे से वह तीस पर निशान लगा कर बोला… दो इनमे से और है लेकिन उनके नम्बर मुझे याद नहीं है। मैने वह कागज उसके हाथ से ले लिया और जनरल रंधावा की ओर देखते हुए कहा… सर, अब यहाँ से चलते है। अफरोज को डिटेन्शन मे डाल कर बाद मे पूछताछ करेंगें। हम तीनो उस कमरे से बाहर निकल आये थे।

गार्ड ड्युटी पर खड़े सैनिकों से मैने कहा… उन तीनो को उसके पास पहुँचा दो लेकिन अब से बाहर के बजाय अन्दर ड्युटी दोगे। इस बात का ख्याल रखना कि कोई भी फोन लेकर अन्दर नहीं जाना चाहिये। उनको निर्देश देकर हम अस्पताल से बाहर निकल आये थे। अफरोज को सैनिको के हवाले करके उसे मानेसर भिजवा दिया था। हम दोनो टैक्सी पकड़ कर अपने आफिस की ओर चल दिये थे। …मेजर इतनी भयावह योजना के बारे मे कोई सोच भी नहीं सकता था। अगर एक भी प्लेटफार्म पर उनका कब्जा हो गया होता तो शुजाल बेग ने सच ही कहा था कि वह हमारे सीने खंजर समान होता। मैने उन्हें लिस्ट देते हुए कहा… सर, इन सभी नम्बरों को तुरन्त ट्रेकिंग और टेपिंग पर लगवा दिजिये। जनरल रंधावा ने वह लिस्ट लेते हुए पूछा… क्या अफरोज उस आदिल नाम के व्यक्ति को जानता है? …सर, हो सकता है कि वह जानता हो परन्तु मै यकीन के साथ कह सकता हूँ कि वह उस इंसान को आदिल के बजाय किसी और नाम से जानता है। …मेरा भी यही ख्याल है।

थोड़ी देर के बाद जनरल रंधावा उन दोनो के सामने अब्दुल्लाह की रिकार्डिंग सुना रहे थे। अजीत सर और वीके चुपचाप आप्रेशन खंजर की रुपरेखा सुन रहे थे। सारी रिकार्डिंग सुनने के बाद वीके ने अपनी ओर से पहली प्रतिक्रिया दी… अजीत, इनको सबक सिखाने का समय आ गया है। अजीत सर ने हामी भरते हुए कहा… इस बार तो इन्होंने हद कर दी। मेजर अगर श्रीनगर मे वह इज्तिमा आयोजित हो गया होता तो सोचो कि यह क्या नहीं कर गुजरते। इसमे कोई शक नहीं कि ऐसी योजना सीआईए ने बनायी होगी लेकिन बस उनसे यही गलती हो गयी कि उस योजना को कार्यान्वित करने के लिये उन्होंने शरीफ और बाजवा जैसे लोगो को चुना था। अब आगे क्या सोचा है? जनरल रंधावा ने वह लिस्ट दिखाते हुए कहा… सबसे पहले तो यह सभी नम्बर ट्रेकिंग और टेपिंग पर डाल रहे है। आदिल का उसने एक नम्बर दिया है। उस नम्बर को श्रीनगर के डेटाबेस पर चेक करता हूँ कि क्या यह नम्बर वहाँ है और अगर है तो किस नाम से है। अजीत सर ने कुछ सोचने के बाद कहा… ठीक है मेजर और आप उन पर नजर रखिये। मै फौज को सावधान रहने के लिये कह देता हूँ। वीके तुम इस योजना लेकर सीआईए से बात करो। उन्हें पता चल जाना चाहिये कि हम भी अब से शांत नहीं बैठेंगें। आईबी को प्रेस के लिये दी गयी पर्मिशन की तहकीकात पर लगा देता हूँ। कम से कम यह तो पता चले कि वह कौन गद्दार है जिसने यह पर्मिशन इन्हें दिलवायी थी। ओएनजीसी के टर्मिनल और प्लेटफार्म्स पर सुरक्षा कड़ी करने के निर्देश जारी कर देता हूँ। फिलहाल के लिये यही और फिर बदलते हुए हालात को देख कर अपनी रणनीति मे बदलाव करेंगें।

हम सब अपने आफिस की ओर चल दिये थे। मैने जनरल रंधावा से कहा… सर, मेरे लिये कोई काम है तो बता दिजिये वर्ना मै अपने पुराने कोन्टेक्ट्स से आदिल के बारे मे पता करने की कोशिश करता हूँ। …मेजर, अभी तो फिलहाल कोई खास काम नहीं है। पहले इन नम्बरों पर ध्यान केन्द्रित करते है। एक भी नम्बर एक्टिव मोड मे आते ही यह पता चल जाएगा कि वह आखिर कहाँ छिपे बैठे है। जनरल रंधावा को उनके आफिस के बाहर छोड़ कर मै आयशा से मिलने मेरीडियन होटल चला गया था।

होटल मे आयशा मेरा इंतजार कर रही थी। उसकी फोन पर बातचीत से वह अफरोज के लिये बड़ी फिक्रमंद लग रही थी। मुझे देखते ही उसने अफरोज के बारे मे बताना आरंभ कर दिया था। कुछ देर के बाद जब वह शांत हो गयी तब मैने कहा… मुझे देर इसी लिये हो गयी थी कि मै अफरोज का पता लगा रहा था। पता चला है कि वह इस वक्त सेना की कैद में है। …पर भाईजान ने अबकी बार ऐसा क्या कर दिया है? …क्या तुम अफरोज के आदिल नाम के किसी दोस्त को जानती हो? …नहीं। कौन है यह आदिल? …आदिल एक आतंकवादी है जिसकी सेना तलाश कर रही है। किसी ने सेना को खबर की थी कि उसने अफरोज को आदिल के साथ घूमते हुए कई बार श्रीनगर मे देखा था। सेना ने अफरोज को आदिल के बारे मे पता करने के लिये उठाया था लेकिन अफरोज ने साफ आदिल नाम के आदमी से अपने संबन्ध होने से साफ इंकार कर दिया है जिसके कारण सेना ने उसे कैद मे डाल दिया है। …समीर, इस नाम के किसी आदमी को हमने अफरोज के साथ कभी नहीं देखा है। मेरी बात का विश्वास करो। …एक बार निशात से पूछ कर देखो कि क्या उसे कुछ पता है। अफरोज अब तब तक बाहर नहीं आ सकता जब तक आदिल का पता नहीं चलता। वह अचानक मुझसे लिपट कर रोने लगी थी। उसे बड़ी मुश्किल से शांत करवा कर निशात से बात करी तो उसका भी जवाब वही था। अब मुझे भी यकीन होने लगा था कि आदिल उस आदमी का फर्जी नाम था। …आयशा, तुम वापिस अपने घर चली जाओ। तुम कब तक यहाँ बैठी रहोगी क्योंकि बिना आदिल के अफरोज नहीं छूट सकता। …नहीं बिना भाई के मै घर वापिस नहीं जाउँगी। अब्बू और अम्मी की हालत के बारे मे तुम जानते ही हो कि अफरोज भाईजान के लिये वह कितने परेशान है। …मै तुम्हारी मजबूरी समझ सकता हूँ लेकिन तुम यहाँ रह कर भी इस मामले मे कुछ नहीं कर सकती। …समीर, मै तुम पर भरोसा करके यहाँ आयी थी।

मै अजीब दुविधा मे फँस गया था। अफरोज को छोड़ना तो नामुमकिन था। आयशा को कैसे वापिस जाने के लिये राजी किया जाये। …अगर तुम वापिस नहीं जाओगी तो फिर घर चलो। वहीं पर रुक जाओ क्योंकि इस होटल मे रहोगी तो मै जल्दी ही पाई-पाई के लिये मोहताज हो जाऊँगा। वह भीगी पलकों से मुझे देख कर बोली… आज मुझे तुम्हारी जरुरत है। मैने उसकी ओर देखा लेकिन कोई जवाब नहीं दिया तो उसने पल्कें उठा कर मेरी ओर देख कर बोली… मुझे मालूम है कि तुमने मुझे आज भी उस निशात बाग के वाक्ये के लिये माफ नहीं किया है। मैने उसे अपनी बाँहों मे भर कर कहा… ऐसी बात नहीं है। उस दिन तुम्हें अनवर के साथ देख कर मेरा दिल टूट गया था परन्तु उसके कारण तुम्हारे प्रति मेरी आसक्ति कम नहीं हुई है। सच कहूँ तो जवानी मे कदम रखते ही तुम्हें पाने की चाहत थी। बहुत बार तुमसे बात करने की सोची लेकिन आसिया और आफशाँ के कारण कभी दिल की बात नहीं कह सका था। निशात बाग भी मेरी चाहत को फनाह नहीं कर सकी परन्तु अब समय के साथ हालात बदल गये है। एकाएक अपने पंजों पर उचक कर उसने अपने होंठ मेरे होंठ पर रख कर मुझे चुप करा दिया था।

मेरी बाँहें स्वत: ही उसके इर्द गिर्द लिपटती चली गयी। उसने अपने आप को मेरे हवाले कर दिया। वह मेरी पहली चाहत थी। मै अपने उसी स्कूल के जीवन मे चला गया था। स्कूल से भागे हुए युगल जोड़े की तरह हर चुम्बन पर उसके अंगों को एक-एक करके निर्वस्त्र करता चला गया। थोड़ी देर मे ही वह बिस्तर पर पूर्णत: निर्वस्त्र होकर एकाकार के लिये तड़प रही थी। जैसे ही उसके उन्नत पहाड़ियों की ओर अग्रसर हुआ उसने तड़प कर मेरी पकड़ से निकलने का प्रयास किया परन्तु तब तक मेरे हाथ, उँगलियाँ, होंठ और जुबान अपने कार्य में जुट गये थे। कभी गुलाबी चोटियों पर उँगलियाँ फिराता और कभी दो उँगलियों में अकड़े हुए किश्मिश जैसे स्तनाग्रों को फँसा कर खींचता, कभी पहाड़ियों को अपनी हथेलियों में छुपा लेता और कभी उन्हें जोर से मसक देता। वह आँखे मुदें हुए उत्तेजना से दोहरी होती चली जा रही थी। हम दोनो भले ही होटल के कमरे मे थे परन्तु मेरे लिये वह कमरा निशात बाग के लकड़ी वाले कमरे मे तब्दील हो गया था। वह दृश्य मेरी आँखों के सामने घूम रहा था।

मेरी उँगलियों ने नीचे सरक कर जुड़ी हुई चिकनी संतरे की फाँकों को अलग करके अकड़े हुए अंकुर के सिर पर जैसे ही ठोकर मारी तो उसके मुख से लम्बी सीत्कार निकल गयी थी। मेरी उंगली ने खून से लबालब भरे हुए अंकुर को रगड़ना आरंभ कर दिया। उसकी आनंद से भरी सिसकारियाँ बढ़ती चली गयी और मेरे होंठ उसकी उन्नत स्तनों का रस सोखने मे जुट गये थे। वह अपने आप को मेरे हवाले करके अपनी ही दुनिया मे खो गयी थी। अचानक वह छ्टपटा कर अलग होकर मेरे कपड़ों को जिस्म से अलग करने मे जुट गयी थी। थोड़ी देर के बाद दो नग्न जिस्म एक दूसरे मे गुथ से गये थे। अपने तन्नायें हुए हथियार को पकड़ कर उसके बहते हुए स्त्रीत्वद्वार पर टिका कर धीरे उसके अकड़े हुए अंकुर पर जैसे ही रगड़ा वह बल खा कर मचल उठी। उसकी इस क्रिया के कारण गुस्साया हुआ भुजंग धीरे से अपनी जगह बनाता हुआ सुरंग मे कर गया था। आनंद की पहली लहर के एहसास से जब तक वह अपने आपको नियंत्रित करती तब तक उसके गोल पुष्ट नितंबों को थाम कर मैने अपनी कमर पर अचानक दबाव बढ़ा दिया। उत्तेजना मे मदमाता भुजंग सारे संकरेपन को खोल कर अन्दर सरकता चला गया। उसके मुख से बस लम्बी सीत्कार के साथ… समीर.उ.अ..आह.अ.उउआ.आहआह.मर.र…गई…उई। उसके जिस्म मे उठती हुए हर स्पंदन को मै अपने कामांग पर महसूस कर रहा था। मेरे हाथ फिसल कर उसके पुष्ट नितंबों पर जकड़ गये थे। गहरी साँस लेकर मैने एक भरपूर वार किया तो मेरा भुजंग सारी बाधाओं को दूर करते हुए जड़ तक जाकर धँस गया। हमारे जोड़ टकराते ही आयशा की आँखे अचंभे से फैल गयी थी। उसके मुख से एक मीठी दर्दभरी सीत्कार कमरे मे गूंज गयी थी। उसके साथ ही एकाकार के चक्रवाती तूफान ने गति पकड़ ली थी। हर वार पर एक संतुष्टि भरी सीत्कार उसके मुख से विस्फुटित हो रही थी। जैसे-जैसे कमरे मे आये हुए तूफान ने गति पकड़नी आरंभ की वैसे-वैसे उसका जिस्म अनियंत्रित होता चला गया। वह कभी मचलती और कभी तड़पती और कभी बल खा कर मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लेती।

हम दोनो के लिये समय रुक सा गया था। अचानक हम दोनो ही एक ही समय पर अपने चरम पर पहुँच गये थे। उसका जिस्म एक पल के लिए अकड़ा और फिर जोर का झटका खा कर उत्तेजना से कांप उठा था। उसके जिस्म के कंपन को महसूस करके मेरे अन्दर का ज्वालामुखी भी फट गया और हम दोनो का कामरस बेरोकटोक बहने लगा। तूफान गुजरने के पश्चात एक दूसरे को बाँहों मे लिये हम लस्त होकर पड़ गये थे। थोड़ी देर के बाद हम अलग हो कर बेड पर लेट गये… समीर। …हुं। …शुक्रिया। मैने करवट लेकर उसकी ओर देखा तो उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसको अपने निकट खींच कर उसके आँसू पौंछते हुए मैने पूछा… अपने किये पर क्या अब पछता रही हो? मेरी छाती पर मुक्का मार कर बोली… हाँ। अब पछता रही हूँ कि काश मैने खुद ही स्कूल मे पहल की होती तो कितना अच्छा होता। मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर वह बोली… समीर, अपने तलाक मे पाँच साल बाद आज पहली बार हिम्मत जुटायी थी। अगर आज तुम मुझे ठुकरा देते तो मै शायद मर ही गयी होती। उसके होंठों को चूम कर मैने कहा… चलो तैयार हो जाओ। मेरे घर चलो। आफशाँ तुम्हें देख कर बहुत खुश होगी। कल सोचता हूँ कि कैसे आदिल का पता लगाया जाये। हम दोनो जल्दी से तैयार हुए और जब तक बाहर आये तब तक अंधेरा हो गया था।

जब तक हम घर पहुँचे तब तक आफशाँ आ चुकी थी। आयशा को देख कर वह चौंक गयी थी। आयशा ने अफरोज के बारे मे बता कर कहा… सारी बात आदिल पर आकर रुक गयी है। उस रात दोनो सहेलियाँ काफी देर तक बात करती रही थी। उधर मेनका इतने दिनो की अपनी कहानी मुझे सुना रही थी। खाना खाकर मेनका को लेकर मै बाहर लान मे टहलने के लिये निकल गया था। आफशाँ और आयशा गेस्ट रुम मे अपनी बातों मे मग्न थी तो मेनका अपने स्कूल की कहानी सुनाने के लिये मेरे साथ बेडरुम मे आ गयी थी। थकान के कारण उसकी कहानी सुनते हुए मेरी आँख कब लग गयी मुझे पता ही नहीं चला। सुबह जब आँख खुली तो मेनका और आफशाँ दोनो ही आराम से मेरे साथ सो रही थी। मैने घड़ी पर नजर डाल कर मेनका को उठाया और उसे स्कूल के लिये तैयार होने के लिये भेज दिया। आफशाँ भी उठ गयी थी। …कल जल्दी सो गये थे? …तुम ही बताओ कि मै क्या करता। बहुत देर तक तुम्हारा इंतजार किया लेकिन जब तुम नहीं आयी तो सो गया। …सौरी। आज ऐसा नहीं होगा। इतनी बात करके मै तैयार होने चला गया। आज का दिन हमारे लिये काफी महत्वपूर्ण था।

अपने आफिस मे बैठ कर आदिल नाम की पहेली सुलझाने मे लगा हुआ था कि तभी दिमाग मे एक विचार आया तो जनरल रंधावा से मिलने चला गया। मुझे देखते ही जनरल रंधावा ने कहा… सारे फोन बन्द पड़े हुए है। रात से ही सभी नम्बरों पर नजर रखी जा रही है। एक भी फोन एक्टिव मोड मे आते ही हम उसकी लोकेशन ट्रेक कर लेंगें। …सर, फारेन्सिक विभाग से मुझे एक आर्टिस्ट की व्यवस्था करनी है। अब तक यह तो तय हो गया है कि आदिल को अब्दुल्लाह ने अफरोज के साथ देखा था। अफरोज का कहना है कि आदिल नाम के किसी भी शक्स को वह नहीं जानता है। इसका मतलब है कि वह आदमी अब्दुल्लाह से छ्द्म नाम से मिला था। फारेन्सिक वाले अब्दुल्लाह के विवरण पर एक तस्वीर तो बना सकते है। उस तस्वीर को अफरोज को दिखाएँगें तो शायद वह उसका असली नाम बता सके। …मेजर कोशिश करके देखने मे क्या हर्ज है। वैसे मेरा अनुभव कहता है कि ऐसी तस्वीरें असलियत से काफी परे होती है। इतना बोल कर वह फारेन्सिक विभाग मे किसी से बात करने मे व्यस्त हो गये थे। कुछ देर बात करने के बाद फोन काट कर बोले… मेजर दोपहर को उस आर्टिस्ट को लेकर अब्दुल्लाह से मिल लेना। वह आर्टिस्ट कुछ देर मे यहाँ पहुँच जाएगा।

एक बजे तक मै आर्टिस्ट को लेकर अबदुल्लाह के सामने बैठा हुआ था। …अब्दुल्लाह तुमने जिसको आदिल कहा है उसके चेहरे के बारे मे जो कुछ भी याद है इनको बताओ। यह आर्टिस्ट है जैसा तुम बताओगे वह उसका चित्र बना देंगें। फारेन्सिक का आर्टिस्ट अपना लैप्टाप खोल कर बैठ गया था। …उसके बाल कैसे थे? …छोटे बाल थे। …मांग उसने दाँये निकाली थी या बाँये? अपने लैपटाप पर उसने सात-आठ विभिन्न प्रकार के छोटे बाल दिखा कर पूछा… इनमे से क्या कोई एक स्टाईल उसके बालों से मैच करता है? अब्दुल्लाह ने उनमे से एक स्टाईल को चुन कर कहा… काफी हद तक यही उसके बालों जैसा लगता है। उसने अलग-अलग चेहरों की बनावट दिखाते हुए पूछा… उसके चेहरे की बनावट किससे मिलती जुलती है? इसी तरह आँखें, भौहें, नाक, होंठ और कान के अलग-अलग चित्र दिखा कर दो घंटे के बाद एक तस्वीर कंप्युटर पर बना कर दिखाते हुए आर्टिस्ट बोला… अब इस तस्वीर मे रंग भर कर कुछ बदलाव करके फाईनल चेहरे की तस्वीर बनाएँगें। एक बार फिर से सवाल जवाब का दौर आरंभ हो गया था। चार घंटे के अथक प्रयास के बाद एक तस्वीर उभर कर सामने आयी तो अब्दुल्लाह खुशी से चीखते हुए कहा… यही आदिल है। समीर भाई आपने कमाल कर दिया। फारेन्सिक आर्टिस्ट ने वह तस्वीर मेरे सामने कर दी थी। मैने उस तस्वीर पर एक नजर डाली तो वह 40-45 साल उम्र का एक अच्छे घर का कश्मीरी व्यवसायी लग रहा था। जिहादी जैसी कोई बात उसमे नहीं दिख रही थी। एक नजर भर कर देख कर मैने उस तस्वीर को अपनी पेन ड्राईव मे लेकर वहाँ से चल दिया। उस आर्टिस्ट को जब तक उसके आफिस के बाहर छोड़ा तब तक रात हो चुकी थी।

मैने जनरल रंधावा को फोन पर बताया कि मैने आदिल की तस्वीर बनवा ली है तो उन्होंने मुझे तुरन्त आफिस आने के लिये कह दिया। जब तक आफिस पहुँचा तब तक अजीत सर के कमरे मे वीके और जनरल रंधावा पहुँच चुके थे। मैने पेन ड्राईव अजीत सर के कंप्युटर मे लगा कर आदिल की तस्वीर दिखाते हुए कहा… सर, उस आदमी की तलाश करने के लिये अब हमारे पास एक तस्वीर है। कुछ देर बात करने के बाद अजीत सर ने कहा… समीर, अब आगे क्या करने का विचार है? …सर, कल सुबह सबसे पहले मै इस तस्वीर को लेकर अफरोज से मिलने जा रहा हूँ। वह ही इस आदमी की सच्चायी बता सकता है। अब्दुल्लाह हमे आदिल की कहानी सुना कर उलझाने की कोशिश भी कर सकता है। जनरल रंधावा ने पूछा… मेजर, इसमे उसका क्या फायदा होगा? …सर, यह भी हो सकता है कि वह किसी के लिये समय का इंतजाम कर रहा हो।

अचानक वीके ने मेरी बात काटते हुए पूछा… अजीत, आईबी के शर्मा ने उस पत्रकारों की पर्मिशन के बारे मे कोई पुष्टि की है। …हाँ, शर्मा ने बताया है कि तेरह तारीख को ओएनजीसी ने कुछ मुख्य राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय मिडिया के लोगों के साथ मुंबई के ताज होटल मे सालाना प्रेस वार्ता रखी है लेकिन उनके कार्यक्रम मे तेल के प्लेटफार्म की यात्रा का कोई प्रावधान नहीं है। उनकी सिक्युरिटी के अनुसार उनकी किसी भी बोट पर गैर-कंपनी या कंपनी के व्यक्ति की यात्रा प्रतिबन्धित है। प्लेटफार्म्स के कुअर्डिनेट्स और ग्रिड रेफ्रेन्स की जानकारी सिर्फ बोट के कप्तान या हेलीकाप्टर के पाईलट के पास ही होती है। सभी कर्मचारियों को हर दो महीने के बाद हेलीकाप्टर द्वारा लाया व ले जाया था। इस काम मे भी सप्लाई बोट का इस्तेमाल कभी नहीं होता है। आईबी इस वक्त अप्सरा ही नही बल्कि सभी बोट के काकपिट केबिन मे बैठने वाले मुख्य लोगों की जाँच कर रही है। अब्दुल्लाह की जानकारी के अनुसार तो पत्रकारों का दल अप्सरा पर औपचारिक अनुमति के साथ यात्रा करने जा रहा था। काफी देर तक अब तक मिली जानकारी के साथ माथापच्ची करने के बाद हम सब इसी नतीजे पर पहुँचे कि सुबह अफरोज से तस्वीर दिखा कर पूछताछ की जाये तो उसके बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है।

उस रात अपने घर ग्यारह बजे तक पहुँच सका था। मुझे देखते ही आफशाँ बोली… तुम तो यहाँ आने के बाद भी घर मे दिखाई नहीं देते हो? …आफशाँ इस वक्त भी लौट आया तो गनीमत है वर्ना आज की रात लौटने की कोई संभावना नहीं दिख रही थी। कुछ खाना बचा है तो वह दे दो क्योंकि आजकल ऐसा लगने लगा है कि जैसे मेरे रोजे चल रहे है। आफशाँ खाना लगाने चली गयी और मै अपने कपड़े बदलने के लिये बेडरुम मे चला गया। खाना खाते हुए आफशाँ ने कहा… समीर तुम सोच भी नहीं सकते कि आयशा हमारी कंपनी की मालकिन थी। मैने चौंक कर आयशा की ओर देखा तो वह सिर झुका कर बैठी हुई थी। …क्या मतलब? …हमारी कंपनी डेल्टा साफ्टवेयर के मुख्य प्रमोटर ताहिर उस्मान अब्बासी है। वह उस दिन यहाँ पार्टी मे भी आये थे। वह आयशा के खाविन्द है। आयशा ने जल्दी से कहा… खाविन्द थे। अब उनसे मेरा कोई संबन्ध नहीं है। आफशाँ ने आयशा के कन्धे पर हाथ रख कर जल्दी से कहा… सौरी। ताहिर रिश्ते मे आयशा के चचा लगते है। मै चुपचाप खाना खाते हुए आफशाँ की कहानी सुन रहा था। अचानक बोलते हुए उसने कुछ ऐसा कहा कि मैने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वह मुझे देख कर बोली… क्या हुआ? …तुम अभी क्या बोल रही थी? …ताहिर साहब ने कुछ महीने पहले बांग्लादेश मे एक साफ्टवेयर की कंपनी खरीदी है। मै भी तब उनके साथ वहीं पर थी जब यह सौदा हुआ था। …नहीं उसके बाद क्या कहा था? …यही कि नयी कंम्पनी की खुशी मे उस  शाम मुझे मछुआरों की एक बोट पर बंगाल की खाड़ी घुमाने के लिये ले गये थे। वहाँ से ढाका शहर का नजारा बेहद मनोरम लग रहा था। अचानक अब्दुल्लाह की बात बिजली की तरह दिमाग मे कौंधी कि आदिल एक लड़की के साथ हिज्बुल के गाजियों का प्रशिक्षण देखने के लिये बोट पर आया था। यह विचार आते ही मेरे दिल की धड़कन बढ़ गयी थी।

अगली सुबह मै मानेसर के डिटेन्शन सेन्टर की ओर चल दिया था। अफरोज को वह तस्वीर दिखायी तो उत्तेजना से ओतप्रोत होकर चिल्लाया… समीर, यह तो ताहिर चचा की तस्वीर है। इन्हीं के साथ तो आयशा का निकाह हुआ था। समीर, इस तस्वीर का क्या मतलब है? …अब्दुल्लाह के अनुसार यही आदिल है। …यह नामुम्किन है। ताहिर चचा जमात और उसके जिहादियों से सख्त नफरत करते है। मै उसकी बात सुन रहा था परन्तु अब मेरा दिमाग आफशाँ की ओर चला गया था। अब मेरा दिमाग आफशाँ को वलीउल्लाह के स्थान पर रख कर देख रहा था। वह जमात के नेता की बेटी थी। वह भले सेना मे नहीं थी परन्तु सेना के लिये काम कर रही थी। मुझे मेरा आशियाना बर्बाद होते हुए लग रहा था। अचानक मुझे साँस घुटती हुई लगी और मैने जल्दी से कुछ लम्बी साँसे लेकर अपने आपको सयंत किया तो अफरोज की आवाज मेरे कान मे पड़ी… क्या हुआ समीर? मैने उठते हुए कहा… कुछ नहीं। अफरोज इस बात को अपने तक रखना। मै उनसे कह दूँगा कि तुम इस तस्वीर को नहीं पहचानते वर्ना ताहिर साहब और आयशा को भी सेना उठा लेगी। मुझे कुछ समय चाहिये इस मसले को सुलझाने के लिये। तब तक अपना मुँह बन्द रखना। मै चलता हूँ। यह बोल कर मै उठ कर बाहर निकल गया था।

सारा रास्ता मै अजीब सी दुविधा मे उलझा रहा था। आफशाँ के बारे सोच कर मेरा दिल बैठ गया था। ताहिर का नाम आते ही शक की सुई आफशाँ की ओर चली गयी थी। क्या वह हकीकत मे वलीउल्लाह हो सकती थी? इस प्रश्न का जवाब सोचने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। मै आफिस मे बैठा हुआ अपने आप से गड़े हुए शैतानों से जूझ रहा था। …समीर। अजीत सर ने अन्दर झाँकते हुए कहा तो मै चौंक गया था। वह अन्दर चले आये… अफरोज से मिल कर बात हो गयी? …यस सर। …उसने क्या बताया? एक पल के लिये तीव्र इच्छा हुई कि कह दूँ कि आदिल की पहचान नहीं हो सकी है परन्तु आप्रेशन खंजर के खतरे के सामने मेरी परेशानी तो कुछ भी नहीं थी। मैने धीरे से कहा… सर, उसने आदिल को पहचान लिया है। अजीत सर मेरे साथ आकर बैठ गये थे। मैने उन्हें सारी कहानी सुनाने के बाद आफशाँ के बारे मे बता कर कहा… सर, आप ही बताइये कि ऐसे हालात मे मुझे क्या करना चाहिये। अचानक अजीत सर ने मेरे कन्धे पर हाथ मार कर कहा… समीर, चलो आज कैन्टीन मे चल कर काफी पी कर आते है। मै उनके साथ कैन्टीन की ओर चल दिया।

पहली बार मैने उस कैन्टीन मे आया था। अजीत सर को देखते ही पल भर मे पूरी कैन्टीन मे चुप्पी छा गयी थी। जब तक हमारी काफी आयी तब तक कैन्टीन लगभग खाली हो गयी थी। …तुम्हारी तर्कपूर्ण कहानी अच्छी हो सकती है परन्तु अभी भी तुम्हारे पास कोई पुख्ता सुबूत किसी बात का नहीं है। अब्दुल्लाह ने आदिल का नाम लिया और उसने एक तस्वीर बनाने मे मदद कर दी तो क्या इससे वलीउल्लाह वाली पहेली सुलझ गयी? एक पल रुक कर अजीत सर बोले… अफरोज ने उसी आदिल को ताहिर का नाम दिया तो इससे वह क्या वलीउल्लाह का कोन्टेक्ट बन गया? आफशाँ चुंकि ताहिर के आफिस मे काम कर रही है तो क्या आफशाँ आईएसआई के लिये काम कर रही है? तुमने तो कमाल कर दिया समीर कि बिना किसी सुबूत और सुनवाई के तुमने आफशाँ को वलीउल्लाह और गद्दार बना दिया। चलो मान लिया कि आफशाँ के पास बहुत सी जगहों के ग्रिड रेफ्रेन्स थे। परन्तु इसकी क्या गारन्टी है कि वही सारे ग्रिड रेफ्रेन्स आईएसआई को दे रही है? यह तो तुमने ही बताया था कि आईटी के लोग ग्रिड रेफ्रेन्स को कितनी आसानी से मांगने पर एक दूसरे को दे देते है। अगर तुम्हारी बात मान भी लूँ कि सच मे आफशाँ वलीउल्लाह है तो वह हमारे लिये बहुत काम की सिद्ध हो सकती है। मैने चौंक कर उनकी ओर देखा तो वह जल्दी से बोले… समीर, अभी ताहिर हमारी प्राथमिकता है। अगर वह आदिल है तो उसे पकड़ना हमारे लिये बहुत जरुरी है। इसी बीच आफशाँ पर ही नहीं बल्कि उसे से जुड़े हुए हर व्यक्ति पर नजर रखो। हम वलीउल्लाह के काफी करीब पहुँच गये है। आओ चले…चल कर उन दोनो को ताहिर की कहानी से अवगत करा देते है।

हम जैसे ही कौरीडार मे पहुँचे कि जनरल रंधावा की नजर हम पर पड़ी तो वह तेजी से हमारे पास आकर बोले… कहाँ घूमने गये थे? मै बीस मिनट से सभी कमरों के चक्कर लगा रहा हूँ। उन दिये गये नम्बरों मे एक नम्बर दो मिनट के लिये एक्टिव मोड मे आया था। उस फोन की लोकेशन वरली के इंडस्ट्रियल एरिया के एक शेड मे दिखायी गयी है। एनआईए की टीम इस वक्त उस शेड की जाँच के लिये निकली है। अजीत सर ने मुस्कुरा कर कहा… कभी कैन्टीन की ओर रुख किया है रंधावा। एक बार वहाँ काफी पी कर देख लो तो आफीसर्स मेस की काफी भूल जाओगे। जनरल रंधावा ने जल्दी से कहा… मै आफीसर्स मेस मे काफी पीने नहीं जाता। खैर मेजर अफरोज ने क्या बताया? अजीत सर ने कहा… उसने कहा है कि वह तस्वीर ताहिर उस्मान अब्बासी की है। आईबी मे शर्मा से कहो कि उसको पूछताछ के लिये बुला लें। मेजर, मुझे ताहिर के बारे मे पूरी रिपोर्ट कल सुबह अपनी मेज पर चाहिये। यह बोल कर वह कमरे की ओर चले गये थे। मै जनरल रंधावा के साथ उनके आफिस मे चला गया था।

जनरल रंधावा ने अपना स्क्रीन आन करके किसी से फोन पर कहा… मुंबई एनआईए की टीम से कनेक्ट करो। दो मिनट के बाद एक आदमी का चेहरा स्क्रीन पर आ गया था। …सर, आज की रेड मे बीस आदमी हिरासत मे ले लिये गये है। कुछ के पास हथियार मिले है परन्तु उनके पास कोई विस्फोटक बरामद नहीं हुआ है। बाम्ब डिस्पोजल टीम शेड की जाँच कर रही है। कोई भी सूचना मिलने पर आपको खबर दूँगा। मैने जल्दी से उसे रोकते हुए कहा… ठहरिये। इनसे पूछिये कि बारह लोग और थे वह कहाँ गये? …क्या? …इनकी टीम मे बत्तीस लोग थे। बीस आपने हिरासत मे ले लिये है तो बाकी बारह कहाँ है? …जी सर। वह आदमी स्क्रीन से गायब हो गया था। …सर, बीस गाजियों को तुरन्त यहाँ लाने का प्रबन्ध करना पड़ेगा। आप्रेशन खंजर की लगभग सारी पैदल फौज अब हमारे कब्जे मे आ गयी है। उनमे से कुछ काठमांडू की जेल मे  है और कुछ बांग्लादेश की जेल मे बंद है। बीस यहाँ पकड़े गये है तो अब जिहाद काउन्सिल की योजना तो आखिरी साँसे ले रही है। …मेजर, इनका मुखिया ताहिर उस्मान अब्बासी को पकड़ना अभी बाकी है। …सर, आईबी के शर्मा से बात किजिये। ब्रिगेडियर रंधावा ने दीपक शर्मा को फोन पर अजीत सर का निर्देश देते हुए कहा… जल्दी से जल्दी उसे बुलवाओ। इतना बोल कर उन्होंने फोन काट दिया था। मैने उठते हुए कहा… सर, ताहिर उस्मान अब्बासी के सामने जाने से पहले उसके बारे मे मुझे जानकारी इक्ठ्ठी करनी है। मै चलता हूँ। यह बोल कर मै अपने आफिस जाने के बजाय बाहर निकल आया था।

मै सीधा अपने घर पहुँच गया था। आफशाँ आफिस जा चुकी थी। आयशा हाल मे बैठी हुई किसी सोच मे गुम थी। मुझे देख कर चौंक कर बोली… समीर तुम इतनी जल्दी कैसे आ गये। …मुझे तुमसे बात करनी थी। एकाएक वह सावधान हो कर बैठ गयी थी। मैने उसके आगे वह तस्वीर रखते हुए पूछा… तुम इसे जानती हो? वह तस्वीर देख कर एक पल के लिये स्तब्ध रह गयी थी। …यह ताहिर है। …अब्दुल्लाह इसे आदिल नाम का आतंकवादी बता रहा था। तुम इस आदमी के साथ तीन साल रही हो तो इसके बारे मे तुम मुझे कुछ बता सकती हो। वह सिर झुका कर बैठ गयी थी। …आयशा, अगर यह आतंकवादी है तो यह जान लो की तुम्हारा भाई इसी के कारण सेना की कैद मे है। …समीर, यह जितना सच्चा और अच्छा इंसान दुनिया के सामने दिखता है वह इसके विपरीत बेहद क्रूर और व्यभिचारी आदमी है। शुरु मे तो मै कुछ नहीं समझ पायी परन्तु निकाह के एक महीने मे ही मुझे पता चल गया था कि इसे दूसरे को दर्द देकर कितनी खुशी मिलती है। कल जब मैने आफशाँ के मुँह से इसके लिये तारीफ सुनी तो मुझे लगा कि वह दुनिया को कैसे बेवकूफ बना रहा है।

मै उसके घरेलू मसलो पर चर्चा करने के लिये नहीं आया था। मैने जल्दी से कहा… वह इस वक्त कहाँ हो सकता है? …वह कहीं भी हो सकता है। देश भर मे उसके दस से ज्यादा आफिस है। आफशाँ की तो एक कंपनी है। उसकी और भी बहुत सी कंपनिया है। …अगर तुम्हें उसके बारे मे पता करना होता था तो तुम क्या करती थी? …उसकी सेक्रेटरी से बात करती थी। कुछ देर बाद ताहिर खुद फोन करके मुझसे बात कर लेते थे। …उसकी सेक्रेटरी कहाँ बैठती है? …बैंगलौर। …तुम्हारे पास उसका नम्बर है? आयशा ने अपना फोन निकाल कर कोन्टेक्ट लिस्ट से एक नम्बर निकाल कर देते हुए कहा… उसका नाम लीसा डिसूजा है। मैने जनरल रंधावा का नम्बर मिलाया और लीसा का नम्बर देते हुए कहा… सर, ताहिर की सेक्रेटरी लीसा का नम्बर है। इस नम्बर को ट्रेकिंग पर तुरन्त लगवा दिजीये। ताहिर इसे जरुर फोन करेगा अन्यथा वह उसे फोन करेगी। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।

आयशा मेरी ओर बड़े ध्यान से देख रही थी। …क्या हुआ? …मै सोच रही थी कि तुम इतना सब कुछ कैसे सोच लेते हो? …अफरोज इसी आदमी के कारण कैद मे पड़ा हुआ है। एक बार अफरोज जब फारुख के चक्कर मे था तब तुम मेरे पास आयी थी। अबकी बार इसके कारण तुम्हें परेशान होना पड़ गया। अचानक आयशा बोली… समीर, ताहिर ने ही अफरोज भाईजान को फारुख मीरवायज से मिलवाया था। ताहिर और फारुख पुराने दोस्त है। ताहिर का हमारे घर पर आना जाना लगा रहता था। अचानक फारुख मीरवायज का नाम अब्दुल्लाह, अफरोज और ताहिर उर्फ आदिल के साथ जुड़ने से पल भर मे ही सारे तार और कड़ियाँ आपस मे जुड़ गयी थी। …आयशा, क्या शाम तक एक कागज पर तुम ताहिर साहब के जानकारो और दोस्तों के नाम की लिस्ट बना सकती हो। …हाँ। …यह बात आफशाँ को पता नहीं चलनी चाहिये क्योंकि वह उसके आफिस मे काम करती है। उसने अपना सिर हिला दिया था।

आयशा से बात करके मै वापिस अपने आफिस की ओर चल दिया। आफिस पहुँच कर मैने ताहिर उस्मान अब्बासी के बारे मे खोजना आरंभ कर दिया था। बहुत ढूंढने के बाद भी उसके बारे मे मुझे ज्यादा कुछ नहीं पता चल सका था। जो फाइल मुझे वीके ने दी थी उसमे डेल्टा साफ्टवेयर के बारे मे बहुत कुछ जानकारी दी गयी थी परन्तु उसमे ताहिर उस्मान अब्बासी का जिक्र भी नहीं था। मै उठ कर जनरल रंधावा के कमरे की ओर चला गया था। मैने जैसे ही अन्दर झाँका कि तभी मेरे पीछे से जनरल रंधावा की आवाज आयी… मेजर किस को देख रहे हो। मैने मुड़ कर कहा… सर, आपको ही देखने के लिये आया था। उन बारह लोगो का कुछ पता चला? …एनआईए का कहना है कि वह आदिल के साथ गये थे। …इसका मतलब है कि ताहिर अब अपने सुरक्षा कवच को साथ लेकर घूम रहा है। सर, क्या उस फोन नम्बर को ट्रेकिंग पर आपने लगवा दिया? …हाँ, हम उसको ट्रेक ही नहीं रिकार्ड भी कर रहे है। हम अभी बात कर रहे थे कि तभी जनरल रंधावा की मेज पर पड़े हुए फोन की घंटी बजने लगी थी। उन्होंने जल्दी से फोन उठाया और फिर बात करते हुए बोले… समीर मेरे पास ही है। दो मिनट फोन कान से लगाये रहे और फिर फोन रख कर बोले… चलो पुत्तर लगता है कि फिर कहीं कोई पहाड़ टूट कर किसी से सिर पर गिरा है।

हम दोनो अजीत सर के कमरे की ओर चल दिये थे।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही खूब और जबरदस्त अंक और इसी के साथ जो वॉलीउल्लाह का सुई था वो फिर से समीर के गले की कांटा बन कर निकलने लगा है जिसको वो ना तो निगल पा रहा है और ना उसको पूरी तरह से बाहर फेंक पा रहा है, और अजीत बखूबी समीर को समझाया और उसका ध्यान उस ओर से हटाए जिसके वजह से बेखयाली में अगर समीर से जो गलती होने का संभावना था अब वो फिर से पूरे होशों हवास में का करेगा। देखते हैं की यह को कांटा चुभ रही है बहुत देर से वो किसका रूप बनके बाहर आएगी।

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    1. धन्यवाद अल्फा भाई। अब एक-एक करके सबकी साजिश और चाल से रुबरु होने का समय आ गया है।

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