गहरी चाल-35
काठमांडू की फ्लाईट
मे बैठा हुआ मै अपने तीन दिन के बारे मे सोच रहा था। अजीत सर से पिछली रात को सभी मसलो
पर बात हुई थी। उनका विचार था कि सभी को कानूनी रुप से दिल्ली बुलवाना ही ठीक रहेगा
क्योंकि बांग्लादेश सरकार ने अपनी ओर से मदद का वादा किया था। अब्दुल्लाह नासिर के
लिये बांग्लादेश सरकार ने प्रत्यारोपण की सारी औपचारिकताएँ पूरी करने के लिये तीन दिन
का समय माँगा था। बाकी पन्द्रह जिहादियों को भिजवाने मे कुछ समय लग जायेगा। मैने अपना
शक उनके आगे रख दिया था कि अब्दुल्लाह ही जमात का मिशन लीडर था जो अपनी देख रेख मे
हिज्बुल के लोगों को प्रशिक्षण दिलवा रहा था। मै अगर अब्दुल्लाह को आप्रेशन खंजर के
केन्द्र मे रखता तो मुझे सारे डाट्स मिलते हुए लग रहे थे। अजीत सर भी मेरी बात से कुछ
हद तक सहमत थे। अब उसके दिल्ली पहुँचने के बाद ही पता चल सकेगा कि हमारा शक कितना सही
था।
होटल मे आरफा मेरा
इंतजार कर रही थी। उसे देखते ही मैने उसके बैंक के बारे मे पूछा तो उसने सारी जानकारी
एक कागज पर लिख कर मुझे पकड़ा दी थी। अजीत सर को जब मैने आरफा और अनमोल के बेटे के बारे
बता कर उनसे कहा कि क्या आप गोपीनाथ से बात करके कुछ मुआवजा और पेन्शन की सिफारिश कर
देंगें तो उन्होंने तुरन्त हामी भरते हुए कहा… उससे पूछ लेना कि क्या वह भारत आना चाहती
है तो उसका भी इंतजाम कर देंगें। मैने जब आरफा से इसके बारे मे पूछा तो उसने मना कर
दिया था। उसने चलते हुए मेरे सामने एक प्रस्ताव रखा कि ढाका मे वह गोल्डन इम्पेक्स
की शाखा खोलना चाहती है। हम जो सामान नेपाल मे बेच रहे है उसका कुछ हिस्सा अगर उसके
पास भिजवा दिया जायेगा तो वह यह काम यहाँ पर आसानी से कर सकेगी क्योंकि वह इस काम को
सीख गयी थी। मैने उस वक्त कोई वादा तो नहीं किया परन्तु इतना ही कहा कि इसके बारे मे
वकील के साथ बात करके ही कुछ किया जा सकता है। इसी उधेड़बुन मे दोपहर को काठमांडू पहुँच
गया था। कैप्टेन यादव एयरपोर्ट पर मुझे लेने आया हुआ था।
रास्ते मे उसने काम
के बारे मे बता कर नूर मोहम्मद के गोदाम के बारे बात करने लगा था। गोदाम के मालिक ने
उसकी आखिरी कीमत अस्सी लाख लगायी है। अगले दिन मिलने की बात करके वह मुझे घर पर छोड़
कर गोदाम चला गया था। तबस्सुम मेरी राह देख रही थी। मुझे अकेला देख कर वह थोड़ी दुखी
हो गयी थी लेकिन जब मैने उसे आरफा की माँ और उसके बेटे की बात बतायी तो वह खुद ही बोली
कि आरफा को पहले ही भेज देना चहिये था। कुछ देर उसके साथ बिता कर मै उपर हाल मे चला
गया था। जनरल रंधावा को अजीत सर ने बांग्ला देश के बारे मे पहले ही बता दिया था। …सर,
मै अब्दुल्लाह का फोन ले आया हूँ। उसकी कोन्टेक्ट लिस्ट के द्वारा जो बत्तीस लोग भारत
मे आ गये है उन्हें ट्रेस किया जा सकता है। जनरल रंधावा ने तुरन्त उसके मोबाईल का सारा
डेटा भेजने के लिये कह कर बात समाप्त कर दी थी। शाम तक उसके फोन के डेटा की मिरर इमेज
बना कर सारा डेटा जनरल रंधावा के पास भिजवा दिया था।
सारे काम समाप्त करके
मै वापिस नीचे आकर पूछा… अंजली, तुम अब आफिस का काम किसके हवाले करोगी? …अभी सोचा नहीं
है। फिलहाल मेरा आफिस अब नीचे से उपर आ गया है। …अब सातवाँ महीना लग गया है तो तुम्हें
ज्यादा सावधान रहने की जरुरत है। इसके लिये नीचे किसी एक व्यक्ति को कुछ महीने के लिये
यह काम क्यों नहीं सौंप देती? हम कुछ नामों पर चर्चा कर रहे थे कि तभी मेरे फोन की
घंटी बज उठी थी। …हैलो। …समीर तुम अभी वहीं हो या वापिस आ गये? …आज दोपहर को ही वापिस
लौटा हूँ। …वीसा के कागज देख लो और वह गारन्टी मांग रहे है। …मै कल आकर सारे कागज देख
लूँगा और गारन्टी के कागज भी पूरे कर दूँगा। शुजाल बेग की दोनो लड़कियाँ चली गयी? …हाँ।
अब तक तो दोनो अमरीका पहुँच गयी होंगी। …चलो इसी के साथ शुजाल बेग से किया वादा पूरा
हो गया। तुमसे कल सुबह मिलुंगा। खुदा हाफिज। तबस्सुम ने मेरी ओर देख कर पूछा… कौन थी?
…शैतान की खाला। तुम्हारे अब्बू से बचने के लिये वह भी बाहर निकलने के चक्कर मे है।
…जेनब और नफीसा वापिस अमरीका चली गयी? …हाँ, तुम्हारे ब्रिगेडियर साहब ने जाने से पहले
यह जिम्मेदारी मुझ पर डाल दी थी कि दोनो सुरक्षित यहाँ से वापिस भिजवा दूँ तो वह जिम्मेदारी
भी पूरी हो गयी।
यह बोल कर मै बेडरुम
मे जाकर लेट गया था। सफर की थकान थी परन्तु दिल के किसी कोने मे नफीसा के जाने का दुख
भी था। उस रात जो हुआ था एक पल मे मेरी आँखों के सामने से गुजर गया था। मै अचानक उठ
कर बैठ गया था। …क्या हुआ कोई बुरा सपना देख लिया था? तबस्सुम मुझे देख रही थी। मैने
लेटते हुए कहा… हाँ। तुम अभी भी इधर उधर घूम रही हो कभी थोड़ा आराम भी कर लिया करो।
मुझे डराने के लिये बहुत से लोग है कम से कम तुम तो मुझे मत डराओ। वह मेरे पास आकर
बैठ गयी और मेरे बालों मे उँगलियाँ फिराते हुए बोली… आपको तीसरा वादा याद है न? …बहुत
अच्छी तरह से याद है। उस शाम हम काफी देर तक बात करते रहे थे।
अगली सुबह से ही एक
बार फिर से भाग दौड़ शुरु हो गयी थी। जनरल रंधावा के फोन ने मुझे जगाया था। रात भर मे
सारे कोन्टेक्ट नम्बर और व्हाट्स एप ग्रुप्स के नम्बर की लिस्ट मेरे मेल बाक्स मे डाल
दी थी। जैसे ही तैयार होकर बाहर निकला तो कैप्टेन यादव का फोन आ गया कि जमीन का मालिक
ने शाम को मिलने का टाइम दिया है। नाश्ता करके सीधे बैंक का रुख किया और बीस लाख रुपये
का इलेक्ट्रानिक ट्रांस्फर आरफा के अकाउन्ट मे करवाये जिससे वह किसी ठीक-ठाक जगह पर
रहने का अपना इंतजाम कर सके। वहाँ से निकल कर मै अपने वकील से मिलने चला गया था। क्या
हम गोल्डन इम्पेक्स की एक शाखा ढाका मे खोल सकते है? वकील साहब ने कंपनी रजिस्ट्रेशन
के कागज देख कर कहा… इसमे तो किसी प्रकार की रोक नहीं है लेकिन जिस कंपनी के स्टाकिस्ट
आप बने हुए है उसके कागज देख कर ही बता सकता हूँ कि क्या आपकी कंपनी फार्वर्डिंग का
काम कर सकती है। जब तक वहाँ से बाहर निकला तो नीलोफर से मिलने उसके फ्लैट पर पहुँच
गया था।
अभी भी चार सैनिक
अपनी ड्युटी पर तैनात थे। नीलोफर ने वीसा के कागज सामने रखते हुए कहा… तुम एक बार देख
लो तो मै इसे एम्बैसी मे जमा करा देती हूँ। मैने सारे कागज पढ़ कर कहा… यह सब ठीक है।
तुम जमा तो कराओ। …समीर वह सिर्फ चौदह दिन का टूरिस्ट वीसा दे रहे है। …तुम्हें जेनब
ने बताया था कि टूरिस्ट वीसा लेकर वहाँ पहुँच कर किसी भी कोर्स मे एड्मिशन ले लेना
तो यह स्टूडेन्ट वीसा मे तब्दील करना आसान हो जाएगा। इसमे क्या मुश्किल है? उसने घूर
कर मुझे देखा तो मै उसकी परेशानी को समझते हुए कहा… सर्टीफिकेट नहीं होंगें और अगर
हुए भी तो वह नीलोफर के नाम से होंगें। ऐसी हालत मे स्टूडेन्ट वीसा मिलना मुश्किल होगा।
…अमरीका मे क्या और किसी तरह नहीं रुक सकते? …हाँ अगर किसी को फँसा कर शादी कर लोगी
तो रहने का पर्मिट मिल जाएगा। वह झल्ला कर बोली… कुछ और सोचो। …नीलोफर जब मै अठारह
साल का हुआ तो पहली बार श्रीनगर से बाहर निकला था। अभी मुझे एक साल भी पूरा नहीं हुआ
है कि जब पहली बार भारत से निकल कर नेपाल मे आ गया। एक दिन पहले ही बांग्लादेश होकर
आया हूँ। भला इस बारे मे मै तुम्हे क्या बता सकता हूँ। चौदह दिन के लिये घूमने चली
जाओ। जेनब तुम्हें किसी वकील से मिलवा देगी तो वह ही कोई रास्ता सुझा देगा। लाओ मुझे
वह गारन्टी वाला कागज दो। उसने एक कागज मेरे आगे कर दिया था। मैने वह कागज पढ़ने के
बाद कहा… यह नाबालिग बच्चों अथवा पत्नी के लिये गारन्टी का फार्म है। न तुम नाबालिग
हो और न ही मै तुम्हारा खाविन्द हूँ तो मै यह गारन्टी नहीं दे सकता। एक बार हम फिर
से वहीं पर पहुँच गये थे जहाँ से हमने अपनी बात शुरु की थी। बहुत मगजपच्ची करने के
बाद जब कुछ नहीं सूझा तो मै अगले दिन पर बात टाल कर वापिस चला आया था।
जब तक घर पहुँचा तब
तक कैप्टेन यादव आ गया था। गाड़ी पार्किंग मे खड़ी करके मै उसके साथ बैठ कर जमीन के मालिक
से मिलने चला गया। डीलर भी वहीं पर मिल गया था। नेपाल का पुराना खानदानी परिवार था।
पांच लाख का बयाना पकड़ा कर कागज तैयार करने के लिये कह दिया। मालिक ने तीन महीने का
टाइम दिया था। जब तक सारे जंजाल से मुक्त हुआ तब तक अंधेरा हो गया था। कैप्टेन यादव
से रास्ते मे मैने कहा… अब उन चार सैनिको को वहाँ ड्युटी देने की जरुरत नहीं है। एक
को छोड़ कर बाकी को वापिस बुला सकते हो। यह सुरक्षा कवच शुजाल बेग की बेटियों के लिये
था। अब वह वापिस जा चुकी है तो अब उनकी जरुरत वहाँ नहीं है। उसने मुझे घर के बाहर छोड़
दिया था। मैने तब्स्सुम को नयी जमीन की डील की सूचना देते हुए कहा… तुम्हारी कंपनी
ने अपने पाँव फैलाना शुरु कर दिया है। वह मुस्कुरा कर बोली… जैसे मै फैल रही हूँ वैसे
ही मेरी कंपनी फैल रही है। हम दोनो खिलखिला कर हँस पड़े थे।
अगले दो दिन मेरे
वकील और बैंक के चक्कर मे निकल गये थे। सारे कागज देखने के बाद मेरे वकील ने बताया
था कि गोल्डन इम्पेक्स कंपनी अपनी शाखा खोल कर जिस सामान का वितरण करती है वह ढाका
मे भी कर सकती है क्योंकि वह भारतीय कंपनी ने अभी तक कोई अपना स्टाकिस्ट ढाका मे नियुक्त
नहीं किया है। मेरे वकील ने ही सुझाव दिया था कि वह नया गोदाम बैंक से लोन लेकर गोल्डन
इम्पेक्स कंपनी के नाम से खरीदना चाहिये। यही बात मैने आरफा को बता दी थी कि जैसी व्यवस्था
उसने काठमांडू मे देखी थी वैसा आफिस, रिहाईश और गोदाम अगर एक जगह ढाका मे मिल जाएगा
तभी फिर मै कानूनी तरीके वहाँ गोल्डन इम्पेक्स की शाखा खोलने की प्रक्रिया आरंभ करुँगा।
तीसरे दिन भारत सरकार
की ओर से सीमा सुरक्षा बल का एक डेलीगेशन अब्दुल्लाह को लेने के लिये ढाका पहुँच गया
था। बांग्लादेश सरकार ने अब्दुल्लाह नासिर को उनके हवाले कर दिया और भारत सरकार की
ओर से उन पन्द्रह पकड़े हुए हिज्बुल के जिहादियों के प्रत्यारोपण की औपचारिक चिठ्ठी
लेकर अपना कानूनी काम शुरु कर दिया था। उसी दिन सरिता ने फोन करके मिलने की इच्छा जताई
थी। काम के बोझ के कारण मैने उस दिन तो उसे टाल दिया था परन्तु मै जानता था कि वह फिर
कोशिश जरुर करेगी। अगले दिन मै जनरल रंधावा के साथ बैठ कर अब्दुल्लाह की लिस्ट की चर्चा
कर रहा था। …सर, आपने चार सौ से ज्यादा नम्बर दे दिये है। मुझे सिर्फ वह बत्तीस नम्बर
चाहिये जो प्रशिक्षण प्राप्त करके भारत मे किसी जगह बैठ कर हमला करने की योजना पर काम
कर रहे थे। अगर वही क्रास रेफ्रेन्सिंग वाले सोफ्टवेयर को इस्तेमाल किया जाये तो संख्या
मे भारी गिरावट आने की संभावना बढ़ जाएगी जिससे हमारा काम थोड़ा आसान हो जाएगा। जनरल
रंधावा ने आश्वासन देते हुए कहा… मै ब्रिगेडियर चीमा से बात करके देखता हूँ। बस उस
दिन मेरी उनसे इतनी ही बात हो सकी थी।
अगले दिन अब्दुल्लाह
दिल्ली पहुँच गया था। दो दिन बाद अजीत सर ने फोन किया…मेजर कल सुबह दिल्ली पहुंच जाओ।
मै समझ गया कि उससे पूछताछ का सिलसिला आरंभ होने का समय आ गया था। तबस्सुम का सातवाँ
महीना आरंभ हो चुका था। अब उसको अकेले छोड़ना मेरे लिये मुमकिन नहीं था। मेरी समझ मे
कुछ नहीं आ रहा था। मै अपनी गाड़ी लेकर सड़क पर बिना उद्देश्य के जा रहा था कि मुझे एनटीसी
की इमारत दिखी तो मैने अपनी गाड़ी सरिता के फ्लैट की ओर मोड़ दी थी। वह बहुत बार फोन
कर चुकी थी लेकिन मै अपने काम मे इतना उलझा हुआ था कि उससे मिलने का समय ही नहीं मिला
था। मैने अपनी गाड़ी पार्किंग मे खड़ी करके उसे फोन किया… हैलो। …सरिता इस वक्त मुझे
तुमसे मिलना है। …आप इस वक्त कहाँ है? …तुम्हारे फ्लैट के पास हूँ। …तो आप बाहर क्यों
खड़े है अन्दर क्यों नहीं आ जाते? …पिछली बार जब वहाँ आया था तो धोखा मिला था। इस बार
आने से पहले तुमसे पूछना चाहता था कि क्या मै आ सकता हूँ? …आपका इंतजार करते हुए एक
महीने से ज्यादा हो गया है। …मै आ रहा हूँ। इतना बोल कर मै अपनी गाड़ी से उतरा उसके
फ्लैट की ओर चल दिया था।
वह द्वार पर खड़ी हुई
थी। आज मेज पर कोई बोतल नहीं दिख रही थी। वह मेरे पास आकर चुपचाप बैठ गयी। …सरिता तुमने
जिस भावना से मुझे धोखा देने की कोशिश की थी उसका मुझे शुक्रिया कहना चाहिये परन्तु
जो तरीका इस्तेमाल किया था वह गलत है। वह कुछ नहीं बोली बस सिर झुका कर बैठी रही।
…आज कोई बोतल नहीं है? …छोड़ दी। मैने उसकी ओर देखा तो वह अभी शर्मिन्दा थी। मैने उसका
हाथ थाम कर कहा… जो हुआ उसे भूल जाओ। मुझे तुम्हारी मदद चाहिये। उसने सिर उठा कर मेरी
ओर देखा तो मैने कहा… मेरी बीवी का सातवाँ महीना चल रहा है। मुझे कल सुबह काम से बाहर
जाना है। क्या तुम्हारी नजर मे कोई ऐसा है जो मेरी अनुपस्थिति मे उसका ख्याल एक घर
के सदस्य के रुप मे रख सकती है? मै यहाँ पर तुम्हारे सिवा किसी और पर विश्वास नहीं
कर सकता इसलिये तुमसे मदद मांगने आया हूँ। अचानक वह बड़े विश्वास से बोली… आप कल कब
जा रहे है? …मुझे तो कल सुबह ही जाना है। वह जल्दी से बोली… मेरे साथ चलिये। इतना बोल
कर वह खड़ी हो गयी थी। मै उठा और उसके साथ चल दिया। हम दोनो कुछ ही देर मे काठमांडू
से बाहर जा रहे थे।
सरिता मुझे रास्ता
बताते हुए चल रही थी। …मेरी माँ और मेरी बहन दीदी की देखभाल कर लेंगी। आपको उनकी फिक्र
करने की कोई जरुरत नहीं है। मेरी माँ ने सभी बच्चों को गाँव मे ही जन्म दिया है। वह
सब बातों को जानती और समझती है। कुछ ही देर मे हम दोनो उसके कच्चे मकान मे बैठे हुए
थे। उसने अपनी माँ से कुछ देर बात की और फिर बोली… चलिये दोनो चलने को तैयार है। …यहाँ
का क्या होगा? …वह सब पिताजी अपने आप देख लेंगें। यह बोल कर सरिता और उसकी माँ कुछ
देर के लिये बाहर चली गयी थी। मैने उसकी बहन से पूछा… तुम्हारा क्या नाम है? वह शर्मा
कर बोली… कविता। …तुम्हें हिन्दी समझ मे आती है? वह जल्दी से बोली… यहाँ हिन्दी सभी
समझते है। मेरी मम्मी को भी हिन्दी आती है। हम तो तराई के मधेशी जाति के है। थोड़ी देर
मे सरिता की माँ और उसकी छोटी बहन हमारे साथ काठमांडू की दिशा मे जा रहे थे। उसकी माँ
को देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गयी थी। उसकी बहन भी स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। मैने
सोचा कि वह तबस्सुम के आफिस के काम मे भी मदद कर सकती है। जब घर पहुँचा तो तबस्सुम
को उन दोनो से मिलवाया और उसने उनके रहने का इंतजाम आरफा के कमरे मे कर दिया था। उस
रात सरिता भी वहीं रुक गयी थी।
उस वक्त तो तबस्सुम
ने कुछ नहीं कहा परन्तु बेडरुम मे मेरे साथ लेटते हुए बोली… आपको इनको यहाँ लाने की
क्या जरुरत थी। मेरा काम तो चल रहा था। …अंजली, हम दोनो के लिये यह सब नया है। कल सुबह
मुझे दिल्ली जाना है। कुछ दिन वही पुराना रुटीन चलेगा। हमारे घर मे कोई बड़ा-बूढ़ा नहीं
है। हम दोनो की अम्मी नहीं है जो इस वक्त तुम्हारी देखभाल कर सकें। इस वक्त तुम्हें
एक अनुभवी की घर मे जरुरत है। माताजी तुम्हारा ख्याल रख लेंगीं और कविता बारहवीं पास
है तो वह तुम्हारे आफिस के काम मे मदद कर सकती है। कल को बच्चा होने के बाद क्या तुम्हें
पता है कि क्या करना चाहिये? उस समय भी तुम्हें इनकी जरुरत पड़ेगी। यही सोच कर मै इन्हें
लाया था। कुछ दिन इनके साथ गुजार कर देख लो और अगर ठीक नहीं लगता है तो इन्हें वापिस
छोड़ आऊँगा। प्लीज, यह यहाँ रहेंगी तो मेरी चिंता कम हो जाएगी। तबस्सुम ने कुछ नहीं
कहा बस मेरे गले मे बाँहें डाल कर बोली… आप बेफिक्र हो कर जाईये। यहाँ का काम हम सब
मिल कर संभाल लेंगें।
अगली सुबह वही पहली
फ्लाईट पकड़ कर बारह बजे तक अपने आफिस पहुँच गया था। मेरा इंतजार हो रहा था। आफिस पहुँचते
ही अजीत सर के आफिस मे पेशी हो गयी थी। मुझे देखते ही जनरल रंधावा ने कहा… एक मेजर
के कारण बेचारे जनरल और लेफ्टीनेन्ट जनरल की नौकरी चली गयी। क्या किसी ने पहले कभी
ऐसा सुना है? …सर, मै आपका मतलब नहीं समझा। अजीत सर ने मुस्कुरा कर कहा… जनरल शरीफ
ने इस्तीफा दे दिया है और लेफ्टीनेन्ट जनरल मंसूर बाजवा को सरकार ने समय से पहले सेवानिवृति
दे दी है। यह अभी कुछ देर पहले की खबर है। इसका श्रेय सिर्फ तुमको जाता है। अब आप्रेशन
खंजर का औपचारिक रुप से अंत हो गया है। कांग्रेचुलेशन्स मेजर। आप्रेशन काठमांडू अब
कहा जा सकता है कि सफल हो गया। …सर, यह आप्रेशन अभी समाप्त नहीं हुआ है। जिहाद काउन्सिल
की तंजीमे और उनके गाजी अभी भी इमां, तकवा जिहाद फि सबीलिल्लाह का नारा बुलंद
करके बैठे हुए है। हमे पहले उन बत्तीस लोगों को ढूंढना है जो इस काम को अंजाम देने
ले के लिये यहाँ छिप कर बैठे हुए है। जनरल रंधावा ने कहा… अब्दुल्लाह का मुँह खुलवाना
अब हमारी प्रथमिकता होनी चाहिये। अजीत हम दोनो उसके पास जा रहे है। चलो मेजर। इतनी
बात करके हम दोनो बाहर निकल आये थे।
अब्दुल्लाह नासिर
को एक सरकारी अस्पताल मे रखा था। सेना की टीम गार्ड ड्युटी पर तैनात थी। अस्पताल के
किसी भी कर्मचारी को मरीज की असलियत नहीं पता थी। एक पाँव से लाचार होने के कारण उसके
भागने की भी कोई समस्या नहीं थी। आईकार्ड की चेकिंग के बाद ही हम उसके कमरे मे प्रवेश
कर सके थे। वह जाग रहा था जब हमने उसके कमरे मे प्रवेश किया था। उसका घायल पैर हवा
मे लटका हुआ था। इस हालत मे वह अपनी जगह से हिलने के भी योग्य नहीं था। मुझे देखते
ही उसके चेहरे पर बल पड़ गये थे। उसकी आँखों मे घृणा साफ झलक रही थी। हम दोनो उसके पास
पहुँच कर खड़े हो गये। जनरल रंधावा ने कहा… पुत्तर क्या हाल है? उसने कोई जवाब नहीं
दिया बस मुझे घूरता रहा। …भई मेजर कुछ बैठने का इंतजाम करवाओ। मैने बाहर खड़े हुए सैनिको
से कहा… दो स्टूल लाकर दे दिजिये। गार्ड ड्युटी पर तैनात एक सैनिक ने अस्पताल के दो
स्टूल कमरे मे लाकर रख दिये थे। जनरल रंधावा
काफी देर तक उसे समझाते रहे लेकिन वह तो जैसे मुँह सिल कर बैठ गया था।
जब काफी देर हो गयी
तो मैने कहा… सर, मैने आपको बताया था कि यह बिना थर्ड डिग्री के मुँह नहीं खोलेगा।
यहाँ से चलते है। अब्दुल्लाह, हमारी सेना ने दो दिन पहले हाजी साहब को घर से उठा लिया
था। एक बार ही टांग पर रोलर चलने से उनकी हड्डियाँ जवाब दे गयी थी। अगले दिन ही हाजी
साहब ने जिहाद काउंसिल के द्वारा तुम्हारे उपर जो जिम्मेदारी डाली गयी थी उसका लिखित
बयान मैजिस्ट्रेट के सामने दे दिया है। मेरी बात सुन कर उसने उठने की कोशिश की परन्तु
एक टाँग हवा मे लटकी होने के कारण वह धड़ाम से बिस्तर पर गिर गया था। वह चिल्ला कर बोला…
मेजर तुझ पर खुदा का कहर टूटेगा। तेरा कोई नाम लेवा नहीं होगा। वह कुछ देर तक कोसता
रहा और हम दोनो स्टूल पर बैठे हुए उसके गालियाँ सुनते रहे थे। जब वह शान्त होकर बैठ
गया तो मैने कहा… अब्दुल्लाह जिस काम की जिम्मेदारी तुम पर डाली गयी थी अब कैसे उसको
अंजाम दोगे? जनरल शरीफ और जनरल बाजावा की दुकान तो अब बन्द हो गयी है। इस बार उसने
चौंक कर पहली बार मेरी ओर देखा था। जनरल रंधावा ने एक बार फिर से कहा… पुत्तर तुम्हारी
माँ और बहन की जिंदगी खतरे मे है। अगर तुम समय से अपने साथियों के पास नहीं पहुँचे
तो वह लोग तुम्हारे घर पर पहुँच जाएँगें। तुम खुद ही सोच लो कि वह उनके साथ क्या करेंगें।
अगर तुम उन लोगो के बारे मे सब कुछ बता दोगे तो मै वादा करता हूँ कि उनको सुरक्षित
वहाँ से निकाल कर यहाँ पहुँचा दिया जाएगा। उसकी विवशता उसकी आँखों मे झलक रही थी।
…अब्दुल्लाह तुम्हारे
पन्द्रह हिज्बुल के जिहादियों ने पूछताछ के दौरान बीस आदमियों के नाम तो बता दिये है
जो पहले वहाँ प्रशिक्षण के लिये पहुँचे थे। अब सिर्फ बारह लोगो की पहचान होनी बाकी
है। एक बार वह हमारे हाथ लग गये तो बाकी का पता भी लग जाएगा परन्तु तुम्हारी अम्मी
और बहन के साथ जो होगा उसके जिम्मेदार तुम स्वयं होगे। चलिये जनरल साहब इसे मरने दो।
जब शाहीन लाहौर की किसी बदनाम गली मे पहुँच जाएगी तब इसको खबर कर देंगें। मै उठने लगा
तो वह जल्दी से बोला… ठहरो मेजर। मै वापिस बैठ गया। वह धीरे से बोला… मेजर, तुम मेरे
परिवार को यहाँ पहुँचा दोगे तो उसके बाद मै तुम्हें सब कुछ बता दूँगा। जनरल रंधावा
ने मेरी ओर देखा तो अबकी बार मैने संभल कर कहा… अब्दुल्लाह, समय गंवाने के बजाय तुम
अभी सब कुछ सच-सच बता दोगे तो कल शाम तक तुम्हारा परिवार यहाँ तुम्हारे पास होगा। जनरल
रंधावा ने कहा… बेटा, हम जितनी जल्दी उनको पकड़ लेंगें उतनी ही जल्दी खतरा टल जाएगा।
एक दो दिन मे अगर कहीं विस्फोट हो गया तो फिर हम कुछ नहीं कर सकेंगें। वह कुछ देर सोचने
के बाद बोला… मेजर, मै जानता हूँ कि एक हफ्ते मे पूरे हिन्दुस्तान मे कुछ नहीं होने
वाला है। जो कुछ भी होगा वह अगले महीने की बारह तारीख को होगा। इसलिये अगर रोकना चाहते
हो मेरे परिवार को कल तक लेकर आ जाओ। अफरोज और आदिल को भी यहीं ले आओगे तो सारे धमाके
अपने आप रुक जाएँगें। …अफरोज तो अपने इमरान काजी साहब का बेटा है। यह आदिल कौन है?
एक पल वह बोलने मे झिझका और फिर जल्दी से बोला… वह वलीउल्लाह का मुख्य कोन्टेक्ट है।
उसे अफरोज जानता है। वलीउल्लाह का नाम सुनते ही हम दोनो के कान खड़े हो गये थे। उसे
वहीं छोड़ कर हम बाहर निकल आये थे।
…मेजर,फौरन श्रीनगर
जाओ और सबको लेकर जल्दी से जल्दी वापिस लौटो। बारह तारीख से पहले सभी को पकड़ना है।
मुझे तो आदिल के सिवा कुछ और सूझ नहीं रहा था। पहली बार मेरे पास हया के बाद वलीउल्लाह
का कोई कोन्टेक्ट मिला था। आफिस लौट कर इसकी सूचना हमने वीके और अजीत सर के सामने रख
दी थी। वीके के कुछ देर सोचने के बाद कहा… मेजर, तुम्हें अभी जाने की जरुरत नहीं है।
अजीत पहले ब्रिगेडियर चीमा से बात करो और उसका जवाब सुन कर ही हमे अगली कार्यवाही करने
की जरुरत पड़ेगी। अजीत सर ने अपना फोन उठा कर ब्रिगेडियर चीमा का नम्बर मिलाया… हैलो।
…ब्रिगेडियर साहब, हाजी मंसूर के परिवार की निगरानी हो रही है। हाजी मंसूर का परिवार,
इमरान काजी का बेटा अफरोज और उसका एक साथी आदिल, कल सुबह तक दिल्ली की फ्लाईट मे बैठाने
का काम तुम्हारी युनिट का है। शाम तक उनकी निशानदेही करके मुझको खबर करो और सुबह एयरफोर्स
के प्लेन से उन्हें यहाँ भिजवाने की व्यवस्था करो। इतना बोल कर अजीत सर ने फोन काट
दिया था।
अजीत सर ने कुछ सोच
कर कहा… मेजर, अभी तक जो हमने वलीउल्लाह के बारे मे समझा था वह अब्दुल्लाह की बातों
से गलत साबित हो रहा है। अब्दुल्लाह, अफरोज और आदिल का संबन्ध भले ही आप्रेशन खंजर
के साथ साफ नजर आ रहा है परन्तु आदिल यहाँ पर वलीउल्लाह का कोन्टेक्ट है यह बात मेरे
समझ मे नहीं आ रही है। …सर, उनका कनेक्शन तो जरुर है क्योंकि वह तीनो जमात के मुख्य
लोगों मे से है। शुजाल बेग के अनुसार वलीउल्लाह किसी जमात के नेता की बेटी है जो सेना
मे कार्यरत है। उन्होंने उसका कोडनेम वलीउल्लाह रखा हुआ है। हमारी जाँच से यह तो साफ
हो गया है कि स्ट्रेटिजिक कमांड युनिट मे ऐसी कोई को महिला सेनाधिकारी नहीं है जिसका
दूर-दूर तक संबन्ध किसी जमात के नेता के साथ कहा जा सकता है। अब आदिल ही उसके बारे
मे कुछ बता सकेगा। …मेजर, यह तभी मुमुकिन होगा जब आदिल ब्रिगेडियर चीमा के हाथ लगेगा।
जनरल रंधावा ने अपना शक सब के सामने रख दिया था। हम सब भी उनकी राय से सहमत थे। आफिस
खत्म हुए एक घंटे से ज्यादा हो गया था लेकिन शाम तक ब्रिगेडियर चीमा का फोन नहीं आया।
जनरल रंधावा ने एक
नजर घड़ी पर डाल कर कहा… अजीत इस से अच्छा होता कि समीर को श्रीनगर भेज देते। तुमने
उसे यहाँ रोक कर ठीक नहीं किया। अबकी बार वीके ने जवाब दिया… रंधावा, इसे वहाँ नहीं
भेजने का एक कारण था। ब्रिगेडियर चीमा और ब्रिगेडियर शर्मा पहले से ही इस बात से नाराज
है कि हमने उनके बजाय इसको यहाँ बुला लिया और जब उन्हें यह पता चलता कि इसे वहाँ इस
काम के लिये भेजा है तो उन दोनो की ओर से हमे कोई सहायता भी नहीं मिलती। ब्रिगेडियर
चीमा का फोन अभी तक नहीं आने का कारण यही हो सकता है कि आदिल उनके हाथ नहीं आया है
और फिलहाल उसकी तलाश चल रही होगी। आठ बजे ब्रिगेडियर चीमा का अजीत सर के पास फोन आया
था। आदिल को छोड़ कर बाकी सभी को उन्होंने अपने कब्जे मे ले लिया है और उन सभी को वह
कल सुबह दिल्ली भिजवा देगा। …आदिल का अब क्या करोगे मेजर? …सर, कल उनको आने दिजिये।
अफरोज से बात करके पहले आदिल के बारे मे जानकारी लेकर ही अपनी रणनीति बनानी पड़ेगी।
इतनी बात करके हमारी बैठक समाप्त हो गयी थी।
देर रात को मैने जब
अपने घर मे कदम रखा तब तक सब सोने जा चुके थे। दरबान मुझे अब पहचान गया था। टैक्सी
से उतरते ही उसने गेट खोल कर मेरा स्वागत किया और जल्दी से मेरा बैग उठा कर अन्दर चल
दिया था। मैने अपनी चाबी से दरवाजा खोल कर बैग ले लिया और अन्दर चला गया था। एक मध्यम
सी लाइट जल रही थी जिसने हाल को रौशन कर रखा था। मै सीधे अपने बेडरुम मे चला गया था।
आफशाँ वहाँ नहीं देख कर आश्चर्य जरुर हुआ लेकिन यह सोच कर कि वह मेनका के साथ उपर सो
गयी होगी तो अपने कपड़े बदल कर बिस्तर मे घुस गया था। सफर की थकान के कारण जल्दी गहरी
नींद मे सो गया था।
सुबह आफिस जल्दी पहुँचना
था तो अपने टेलीफोन पर अलार्म लगा कर सोया था। उसकी घंटी सुनते ही जल्दी से उठ कर तैयार
होने के लिये चल दिया था। आफशाँ अभी भी नीचे नहीं उतरी थी। मै अपना नाश्ता बनाने के
लिये रसोई मे आया तो रसोईया नाश्ता बनाने मे जुटा हुआ था। …तुम आज जल्दी कैसे आ गये?
…साहब बेबी के स्कूल जाने का टाइम होने वाला है। वह कुछ देर मे ही तैयार होकर नीचे
आयेंगी तो उनका नाश्ता और लंच बना रहा हूँ। आप क्या लेंगें? …जो भी नाश्ता बना रहे
हो वही ले लूँगा। मै अभी बात कर रहा था कि मेनका की आवाज गूँजी… भैया मेरा लंच बाक्स
तैयार हो गया? मै रसोई से चिल्लाया… बेबी आज लंच नहीं बनेगा। मेरी आवाज सुनते ही वह
चीखते हुए तेजी से उतरी… अब्बू। मुझे देख कर उछल कर मुझ पर चढ़ गयी। …आप कब आये? …कल
रात को आया था। तुम्हारी अम्मी कहाँ है? वह मुस्कुरा कर बोली… उपर है। कल रात को आपको
याद करते हुए मेरे साथ सो गयी थी। अब्बू आज मै स्कूल नहीं जाऊँगी। मैने जल्दी से कहा…
तुम स्कूल नहीं गयी तो तुम्हारी अम्मी मुझे घर से बाहर निकाल देंगी। मुझे आज आफिस जल्दी
जाना है। तुम जब तक स्कूल से आओगी तब तक मै भी आफिस से आ जाउँगा। उसके बाद मस्ती करेंगें।
वह जल्दी से दूध पीकर एक ब्रेड हाथ मे लेकर बाहर निकल गयी थी। उसके पीछे रसोईया स्कूल
बेग मे लंच बाक्स रख कर बाहर भागते हुए बोला… साहब, बेबी को बस मे बिठा कर अभी आ रहा
हूँ। पहले दिन ही मुझे आफशाँ और मेनका की रोजमर्रा की जिन्दगी का आभास हो गया था। नाश्ता
समाप्त करके थापा ने मुझे मेरे आफिस के बाहर उतार दिया था।
आफिस पहुँचते ही आफशाँ
का फोन आ गया… समीर, तुम बिना मिले चले गये? …उपर गया था और तुम्हें सोते हुए देख कर
उठाने की हिम्मत नहीं जुटा सका। तभी मेरे फोन पर काल आ रही थी तो मैने कहा… दूसरी काल
आ रही है। शाम को मिलता हूँ। यह बोल कर मैने फोन काट दिया और दूसरी काल ली… हैलो।
…मेजर, जनरल रंधावा पहुँचने वाले है। उनके साथ एयरपोर्ट चले जाना। तुम सबको पहचानते
हो इसलिये कोई शिनाख्त करने मे कोई परेशानी नहीं होगी। उनको लेकर अस्पताल चले जाना।
आज अब्दुल्लाह को सारी योजना का खुलासा करना पड़ेगा। …जी सर। मैने अभी फोन काटा ही था
कि जनरल रंधावा ने कमरे मे झाँकते हुए कहा… पुत्तर चले? …चलिये सर। एयरपोर्ट पर इंतजार
कर लेंगें। …भई, वह सब हमारे साथ कैसे वापिस आयेंगें? मैने जनरल रंधावा की ओर देखा
तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा… हम आर्मी की मिनी बस से एयरपोर्ट जा रहे है। उनके लिये
कुछ सुरक्षा का भी इंतजाम करना था। थोड़ी देर मे हम मिनी बस मे बैठ कर एयरपोर्ट जा रहे
थे।
एयरफोर्स का प्लेन
उतरने के बाद एक लम्बा चक्कर लगा कर फौजी एरिया मे खड़ा हो गया था। हम बस लेकर वहीं
बैठे हुए थे। जैसे ही हवाई जहाज का पिछला हिस्सा खुला तो सैनिकों की सुरक्षा मे हाजी
मंसूर, उनकी बीवी और शाहीन आगे चल रहे थे। उनके पीछे सहमा हुआ अफरोज चल रहा था। मुझे
देख कर दो चेहरों पर कुछ असर हुआ था। शाहीन का चेहरा खिल उठा था और अफरोज के चेहरे
पर छाये हुए डर के बादल छंट गये थे। सभी को बस ने बैठा कर हम अस्पताल की ओर चल दिये
थे। शाहीन तो अपनी अम्मी के पास बैठ गयी थी लेकिन अफरोज मेरे साथ बैठ कर बोला… समीर,
यह क्या चक्कर है। मेरा इनके साथ कोई चक्कर नहीं है। मेरी बात मानो मै किसी आदिल नाम
के व्यक्ति को नहीं जानता हूँ। रात भर तुम्हारे सैनिक मुझे धमकाते रहे है लेकिन मेरी
बात मानने को तैयार नहीं है। भाई मैने तो जिस दिन इज्तमा कैन्सिल हुआ उसके दिन के बाद
से ही जमात से नाता तोड़ लिया था। मुझे क्यों पकड़ लिया है। अचानक वह धीरे से बोला… आयशा
आज दिल्ली आ रही है। वह एयरपोर्ट पर उतर कर तुम्हें फोन करेगी तो उसे बता देना कि मै
तुम्हारे साथ हूँ। मै चुपचाप उसकी बात सुन रहा था लेकिन मेरी समझ मे कुछ नहीं आ रहा
था कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ।
एक घंटे के बाद हम
सभी लोग अब्दुल्लाह के कमरे मे बैठे हुए थे। सबसे पहले हाजी साहब ने अपने बेटे की हालत
देख कर अपना सारा रोष मुझ पर निकाला और उसके बाद उसकी अम्मी ने कुछ देर को हमे जम कर
कोसा। जब सब शांत हो गया तो उसके बाद जनरल रंधावा ने कहा… अगर यह आज सही सलामत यहाँ
है तो मेजर समीर के कारण है वर्ना बांग्लादेश की किसी जेल मे अख्तर नाम से सजा काट
रहा होता और अगर मर गया होता तो लावारिस लाश की तरह कहीं ठिकाने लगा दिया गया होता।
आप लोगो को पता भी नहीं चलता कि आपका बेटा क्या करने जा रहा था। इतना बोल कर उन्होंने
पास खड़े सैनिक से कहा… अब इन्हें यहाँ से बाहर ले जाओ। हमे कुछ बात करनी है। दो सैनिक
हाजी मंसूर को पकड़ कर कमरे से बाहर ले गये और उनके पीछे उनकी बीवी और शाहीन भी चले
गये थे। अभी तक अफरोज के बारे मे कोई बात नहीं हुई थी। इससे पहले जनरल रंधावा अपनी
पूछताछ आरंभ करते कि मैने पूछा… अब्दुल्लाह, अब अफरोज तुम्हारे सामने है। इसका कहना
है कि वह किसी आदिल नाम के आदमी को नहीं जानता है। तुम कह रहे थे कि वह आदिल को जानता
है। सबसे पहले इस बात को सिद्ध करो कि जो तुम कह रहे हो वह सच है क्योंकि उसके बाद
ही हम तुम्हारी दूसरी बातों पर यकीन कर सकेंगें।
अब्दुल्लाह जल्दी
से बोला… मैने आदिल को कई बार अफरोज के साथ देखा था। यह झूठ बोल रहा है। उसकी आवाज
मे सच्चायी की दृड़ता झलक रही थी। अफरोज ने भी तुरन्त कहा… समीर, खुदा की कसम मै किसी
आदिल को नहीं जानता। यह झूठ बोल रहा है। उसके चेहरे पर गुस्सा और रोष टपक रहा था। अचानक
जनरल रंधावा ने कहा… इसकी सच्चायी तो हम पता लगा लेंगें लेकिन बारह तारीख की सच्चायी
बताओ। एक पल के लिये वह चुप हो गया था। एक लम्बी साँस लेकर वह बोला… आप्रेशन खंजर बारह
तारीख को सुबह हरकत उल अंसार और लश्कर के हमले से शुरु होगा। उनके निशाने पर श्रीनगर
का 15वीं कोर का हेडक्वार्टर्स होगा। उसी शाम को जैश की ओर से फिदायीन हमला जम्मू के
एयरबेस पर होगा। हिज्बुल की एक टीम तेरह की सुबह चार बजे मुंबई से कुछ मील दूर उरान
मे ओनजीसी के टर्मिनल पर हमला करेंगें। भारत की सुरक्षा एजेन्सियों को समझ मे नहीं
आयेगा कि अचानक क्या हो गया है। जब सुरक्षा एजेन्सियाँ तीन जगह उलझी हुई होंगी तब उसी
दिन दस बजे हमारी बत्तीस गाजियों की टीम मुंबई के बंदरगाह पर खड़ी हुई अप्सरा नाम की
ओएनजीसी की सप्लायी बोट पर पत्रकार बन कर सवार होंगे। सारी सरकारी पर्मिशन ली जा चुकी
है। वह सप्लायी बोट ओएनजीसी प्लेटफार्म सागर
विराट और सागर अनंत को स्पेयर पार्ट्स, खाने का सामान व काम करने वालों की जरुरत का
सामान हफ्ते मे दो बार पहुँचाती है। रास्ते मे गाजियों की टीम उस बोट को अपने कब्जे
मे ले लेगी और पहले प्लेटफार्म सागर अनंत का सामान उतारेगी। सारा सामान उतारने मे करीब
दो घंटे लगेंगें और इसी बीच हमारे गाजी पानी मे उतर कर उस प्लेटफार्म के बारह पिलर्स
पर रिमोट कन्ट्रोल्ड सेम्टेक्स के एक्स्प्लोसिव्स लगा देंगें। उसके बाद वह बोट सागर
विराट की दिशा मे जाएगी। वहाँ पहुँच कर एक बार फिर से हमारे गाजी उसके चौबीस पिलर्स
पर रिमोट कन्ट्रोल्ड सेम्टेक्स की छ्ड़े लगा देंगें। एक रात वह बोट वही पर रुकती है।
यानि तेरह तारीख की देर रात को सारे पिलर्स पर विस्फोटक लगाने के बाद सागर विराट के
मुख्य आप्रेटिंग आफीसर को खबर कर दी जाएगी कि अब हम लोग सागर विराट को अपने कब्जे मे
ले रहे है और अगर किसी ने रोकने की कोशिश की तो दोनो प्लेटफार्म एक साथ ही तबाह हो
जाएँगें। हमारे सोलह गाजी सागर विराट के मुख्य कंट्रोल सेन्टर को अपने कब्जे मे ले
लेंगें और बचे हुए सोलह गाजी अप्सरा पर रिमोट डिवाइस के साथ बैठे रहेंगें।
बहुत ही गहरी साजिश रची गई है अब सच में लग रहा है की कुछ भी हो सकता है क्यों की आतंकी संगठन द्वारा रची गई यह प्लान एक बार शुरू होने से ऑटोमैटिक काम करने लगती अगर मुख्य आरोपीयों को पकड़ भी लिया जाए तो फिर भी यह फिदायीन हमले रुकने वाला नही है,और अभी एक और मौका आया है समीर के पास वलीउल्लाह को जानने और पकड़ने के लिए, देखते हैं वो इस मौके को भुना पता है की नही। खैर खुबसूरत अंक और जबरदस्त लेखनी, अगले अंक के बेसब्री में इंतजार करते हुए वीर भाई।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई शुक्रिया। आज की देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ। अब साजिश खुल कर सामने आ गयी है। वलीउल्लाह की पहेली भी खुलने की कगार पर पहुँच गयी है।
हटाएंpost ka intjar hai bhai
जवाब देंहटाएंसाईरस भाई आज कहानी के प्लाट मे उलझने के कारण देरी के लिये क्षमाप्रार्थी हूँ। अब कहानी अपने अंतिम मोड़ पर पहुँच गयी है इसलिये अब सभी कड़ियों को जोड़ना जरुरी हो गया है। धन्यवाद दोस्त इतने दिनो तक साथ निबाहने के लिये।
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