रविवार, 28 जनवरी 2024

 

 

गहरी चाल-44

 

पिछली रात को मैने नोट किया था कि वार्ड मे सारी नर्से अपने नर्सिंग स्टेशन पर तैनात रहती है जिसके कारण कारीडोर खाली हो जाता है। मरीजों के साथ रुकने वाले सहायक ही कभी पानी लेने के लिये अथवा टहलने के लिये कारीडोर मे दिख जाते है। आज सुबह ही कैप्टेन यादव सादे कपड़ों की एक जोड़ी देकर गया था। वही सादे कपड़े बदल कर मै चलने के लिये तैयार हो गया था। एक बार धीरे से दरवाजा खोल कर मैने कारीडार का जायजा लिया और जैसे ही एक आदमी को जाते हुए देखा तो मै भी उसके साथ चल दिया। नर्सिंग स्टेशन पर सभी लोग अपने कामो मे व्यस्त थे। उनके सामने से निकलते हुए मैने उस व्यक्ति से पूछा… कैन्टीन कहाँ है? उसने भी चलते हुए कहा… मै वहीं जा रहा हूँ। आप मेरे साथ आ जाईये। बिना किसी रुकावट के हम नर्सिंग स्टेशन के सामने से निकल गये थे। अभी तक किसी का ध्यान हमारे उपर नहीं गया था। कैन्टीन अस्पताल के मुख्य द्वार के साथ ही थी जिसके कारण बिना किसी रोकटोक के मै आसानी से अस्पताल से बाहर आ गया था। एक किनारे मे लाइन से कुछ टैक्सी लगी हुई थी। एक टैक्सी लेकर मै अपने फ्लैट की ओर चल दिया। मन मे अनेक विचार आ रहे थे परन्तु आज अंजली से मिलने की ठान कर निकला था। कुछ देर के बाद अपने घर के बाहर जैसे ही उतरा तो लोहे के गेट पर तैनात बहादुर भागते हुए मेरे पास आया मैने इशारे से चुप किया और पूछा… मेमसाहब उपर है? उसने सिर्फ अपना सिर हिला दिया था। उसको वहीं छोड़ कर मै अन्दर चला गया और सिड़ियाँ चढ़ते हुए अपने फ्लैट के दरवाजे के सामने पहुँच कर एक पल के लिये खड़ा हो गया था। एक अजीब सी झिझक और कुछ खोने का डर जहन पर छाया हुआ था।

मैने दरवाजे को धीरे से धकेल कर देखा तो वह अन्दर से बन्द था। कुछ सोच कर मैने दरवाजे पर दस्तक दी और खुलने का इंतजार करने लगा। जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो एक बार फिर से जोर से दस्तक दी तो इस बार ड्राईंग रुम की लाइट जली तो समझ गया कि कोई दरवाजा खोलने के लिये आ गया है। एक खटके के साथ दरवाजा खुला तो सामने अंजली खड़ी हुई थी। …आप। मुझे देख कर वह चौंक गयी थी। मै भी उसको देखता रह गया था। तभी अचानक उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी और उसको रोता देख कर मुझे लगा कि किसी ने मेरा दिल निचोड़ दिया था। सब कुछ भूल कर मैने आगे बढ़ कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ लिया तो वह सिसक कर बोली… आपको तो वह दो दिन के बाद डिस्चार्ज करने वाले थे। …मै अस्पताल छोड़ कर भाग आया। इतने दिन से अस्पताल मे पड़ा हुआ हूँ और तुम एक बार भी मिलने नहीं आयी तो मै आज तुमसे मिलने खुद चला आया। मेरे जहन मे अनेक प्रश्न थे परन्तु उसको देख कर मै सब कुछ  भूल गया था। मैने दरवाजा भिड़ाते हुए पूछा… तुम अब तक जाग रही थी? उसने कोई जवाब नहीं दिया तो उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर कहा… झांसी की रानी रोते हुए अच्छी नही लगती। वह मुझसे अलग होते हुए बोली… इस वक्त आपको अस्पताल मे होना चाहिये था।

उसको अनसुना करके अपने साथ उसे बेडरुम मे ले जाते हुए मैने पूछा… तुम अस्पताल क्यों गयी थी?  उसने जब कोई जवाब नहीं दिया तो उसको जबरदस्ती बेड पर लिटाते हुए मैने कहा… तुम्हें आराम की जरुरत है। यह कह कर मै भी उसके साथ लेट गया। …थोड़ी ब्लीडिंग के कारण मुझे अस्पताल मे रुकना पड़ा था। कोई चिन्ता की बात नहीं है। …तुम समझ नहीं सकती कि मेरी क्या हालत थी। जब से अम्माजी ने तुम्हारे अस्पताल जाने की बात बतायी थी तब से मन मे एक बैचेनी थी। उस कमरे मे अकेले होने के कारण दम घुटता हुआ लग रहा था। तुम्हें तो वहाँ मेरे साथ होना चाहिये था। वह चुपचाप लेटी रही। रात के सन्नाटे मे उसकी चुप्पी मुझे अखरने लगी। कुछ पूछने के लिये मैने उसकी ओर देखा तो अचानक वह उठ कर बैठ गयी और सिर झुका कर बोली… मै वह नहीं हूँ जो आप मुझे आज तक समझ रहे थे। मैने एक बार फिर से उसको अपनी बाँहों मे कस कर अपने साथ लिटाते हुए कहा… मै जानता हूँ। जब हमने दोजख तक साथ रहने की कसम खायी है तो फिर तुम्हारा नाम तबस्सुम हो या हया इससे क्या फर्क पड़ता है। उसने भीगी पल्कों से मुझे देखा और एक बार फिर से फफक कर रो पड़ी थी। जब उसका मन शांत हो गया तो वह बोली… मै आफशाँ को नहीं बचा सकी। एक पल के लिये मुझे गहरा धक्का लगा लेकिन शायद मै इस खबर के लिये इतने दिनो मे तैयार हो गया था। आटोमेटिक एके-47 के क्रासफायर मे फँसने का मतलब एक गोली के बजाय पाँच-दस गोलियाँ होती है। उसका बचना तो नामुम्किन था यह अब तक मै दिमागी रुप से मान चुका था। अब उसकी पुष्टि भी हो गयी थी। कुछ देर मै चुप रहा तो वह बोली… उसकी अंतिम क्रिया मैने मेनका के हाथों से करवा दी थी। मै कुछ नहीं बोल सका था। आफशाँ की मौत का दर्द तो मेरे जहन मे धीरे-धीरे बैठ रहा था।

जब मन शान्त हो गया तो मैने गहरी साँस लेकर उसकी ओर देखा तो वह किसी सोच मे डूबी हुई थी। काफी देर चुप्पी खिंचने के कारण वह कराहते हुए उठ कर बैठते हुए बोली… क्या आप मेरी सच्चायी पहले से जानते थे। मैने मना करते हुए कहा… जब फारुख ने तुम्हारा नाम लिया तब मुझे पहली बार इसका एहसास हुआ था। उसके बाद तुम्हारे हाथ मे बेरेटा देख कर समझ गया कि तुम स्कूली छात्रा तो हर्गिज नहीं हो सकती मेजर हया इनायत मीरवायज। पता नहीं क्यों अभी तक यह नाम बोलते हुए मुझे झिझक हो रही थी परन्तु जब उसका नाम मेरे मुख से अनायस निकला तो मुझे कुछ अजीब नहीं लगा था। …मेनका कहाँ है? …गेस्ट रुम मे सो रही है। एक चैन की सांस लेकर मै उसके साथ लेट गया था। अचानक वह मेरी ओर करवट लेकर धीरे से बोली… श्रीनगर मे आपके घर पर हमला मैने करवाया था। इतना बोल कर वह एकाएक चुप हो गयी थी। उसने धीरे से मेरा हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा… मेरा यकीन किजीए वह दोनो कभी भी मेरे निशाने पर नहीं थी। मेरे निशाने पर आप थे परन्तु नीलोफर की गलत सूचना के कारण वह मेरा एक असफल आप्रेशन था। मै आपकी गुनाहगार हूँ। धीरे से उसके बालों को सहलाते हुए मैने पूछा… मेरे साथ तुम्हारी कैसी दुश्मनी मेजर? उसने एक बार डबडबायी आँखों से मुझे देखा और फिर बोली… मैने बड़ी मेहनत से तीन साल मे जमात का पूरा वित्तीय और कार्यकारी ढाँचा कश्मीर मे खड़ा किया था। मैने जमात के लिये कश्मीर मे एक ऐसा पुख्ता चरमपंथी तंजीमों और स्थानीय प्रशासन का नेटवर्क तैयार कर किया था जो कभी कोई सोच नहीं सकता था परन्तु आप न जाने कहाँ से बीच मे आ गये और सब कुछ तहस-नहस हो गया। जामिया मस्जिद के ब्लास्ट के कारण मंसूर बाजवा को मौका मिल गया और उसने मुझे कश्मीर डेस्क से हटा कर जीएचक्यू रावलपिंडी के आफिस मे बिठा दिया था। उसके बाद मुरी की घटना ने मुझे सेना छोड़ने पर मजबूर कर दिया और जब कोर्ट मार्शल की रिपोर्ट आयी तो मेरे पास वहाँ से भागने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था। इसके बाद मीरवायज परिवार ने भी मुझसे अपने सभी रिश्ते तोड़ दिये थे। उन्हीं दिनो मुझे नीलोफर से पता चला कि आपके कारण ही मेरा मुस्तकबिल तबाह हुआ था तो आपसे बदला लेने के लिये मैने अपने पुराने हिजबुल के साथियों के द्वारा उस रात को आपके घर पर हमला करवाया था।

मै अभी तक उसकी बात चुपचाप सुन रहा था। मैने महसूस किया कि ब्रिगेडियर शुजाल बेग के डोजियर पढ़ने के पश्चात उसके प्रति काफी हद तक मेरे मन का द्वेश कम हो चुका था परन्तु अम्मी और आलिया की हत्या को भला मै कैसे भुला सकता था। अब उसकी कहानी सुन कर मन मे अन्तर्विरोधी भावनाओं के कारण अजीब सी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। मै कुछ बोलता उससे पहले वह मुझसे अलग हो कर बोली… आप इतना मत सोचिये। आपको एक बार देखने के लिये रुकी हुई थी। कल सुबह होने से पहले मै यहाँ से चली जाऊँगी। अचानक उसके जाने की बात सुन कर दिमाग मे छाये हुए असमंजस के बादल एकाएक पल भर मे स्वाहा हो गये थे। मैने झपट कर उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर सीने से लगा कर कहा… अंजली, मेजर हया इनायत मीरवायज का तो उसी दिन अंत हो गया जिस दिन तुमने मुझसे निकाह किया था। अब मुझे छोड़ कर जाने की बात सोचना भी नहीं। वह अपना चेहरा मेरे सीने मे छिपाये कुछ देर लेटी रही तो अपनी उलझनो के सुलझाने के लिये मैने पूछ लिया… एक बात मुझे समझ नहीं आयी कि सब कुछ जानने के बाद तुम्हारे पास इतने मौके थे कि तुम बहुत आसानी से अपना बदला ले सकती थी फिर क्यों नहीं लिया? वह कुछ पल चुप रही तो मैने झुक कर उसको देखा तो उसकी आँखें से निकलने वाले आँसू मेरी शर्ट भिगो रहे थे। मै भी उसके मन मे उठने वाले अन्तरविरोध को समझ रहा था। एक तरह से हम दोनो ही हालात के चक्रव्युह मे ऐसे फँसे युगल की थी कि कोई कुछ भी करने की स्थिति मे नहीं था।

कुछ पल रुक कर वह धीरे से बोली… आपकी अम्मी और बहन की हत्या का भार पहले से ही मेरे सिर पर था। मै भी आखिर फौजी हूँ तो भला इतनी बड़ी गलती की भरपाई कैसे करती। कोर्ट मार्शल की सजा को खुदाई न्याय समझ कर मै सब कुछ छोड़ कर बलूचिस्तान मे गुमनामी की जिंदगी गुजार रही थी। एक दिन जब मुझे नीलोफर से पता चला कि मिरियम की श्रीनगर मे हत्या हो गयी है तब एक बार फिर से मैने वापिस आने का निर्णय लिया। उसकी बात बीच मे काट कर मैने पूछा… तो नीलोफर के साथ मिल कर तबस्सुम की कहानी तुमने गड़ी थी? एक पल के लिये वह खामोश हो गयी फिर उसने निगाह उठा कर जिस तरह से मुझे देखा तो उसी क्षण मेरे लिये सब कुछ साफ हो गया था। वह धीरे से बोली… आपके साथ कुछ दिन गुजार कर आपके बारे मे बहुत कुछ समझ मे आ गया था। भले ही आप मुझे तबस्सुम समझ कर लाये थे परन्तु आपने मुझे अपनी फौज के हवाले नहीं किया क्योंकि फौजी कार्यवाही मे आपने फारुख की बेटी को उलझाना ठीक नहीं समझा था। अगर आपकी जगह कोई और होता तो अपने निजि हित के लिये वह तबस्सुम को बिना हिचक कुर्बान कर देता। उसके बाद जब आपके और मिरियम के बारे मे उस रात को पता चला तो पहली बार मुझे भी मोहब्बत के जज्बे का एहसास हुआ। उसी रात मैने फैसला कर लिया कि अब आपका साथ कभी नहीं छोड़ूँगी। जमात और बाजवा के कारण मिरियम की जान गयी थी तो उनको समाप्त करने के लिये आपसे बेहतर कोई और विकल्प मेरे पास नहीं था। अब मुझे कुछ खुद करने के बजाय बस आपकी मदद करने की जरुरत थी। मैने वही किया जिसके कारण बाजवा, शरीफ, फारुख और जमात की कहानी का हमेशा के लिये अंत हो गया।

…झाँसी की रानी मुझे उसी दिन समझ जाना चाहिये था जिस दिन तुमने नाईट कल्ब मे उस लड़के का नशा उतारा था। मेरी बात सुन कर इतनी देर मे वह पहली बार मुस्कुरायी तो मैने पूछ लिया… मिरियम ने अपने परिवार के बारे मुझे बताया था परन्तु उसने कभी तुम्हारा जिक्र मुझसे नहीं किया। मेरी ओर करवट लेकर वह बोली… मिरियम मेरी छोटी बहन थी। उसके पैदा होने से पहले ही मेरे चचा मुझे अपने साथ इस्लामाबाद ले गये थे। वह बेऔलाद थे तो उन्होंने ही मेरी परवरिश की थी। मेरे चचा सेना की आर्टीलरी कोर मे कर्नल थे। इसी कारण मेरा झुकाव शुरु से फौज के लिये रहा था। आईएसआई की कश्मीर डेस्क के कारण मेरा मुजफराबाद आना जाना बढ़ गया तब मेरी मुलाकात मिरियम से हुई थी। कुछ ही दिनो मे वह मेरे काफी करीब आ गयी थी। जब मुझे पता चला कि श्रीनगर मे मिरियम की हत्या हो गयी है तो मैने उसी क्षण उसके हत्यारों से बदला लेने के लिये निकल पड़ी थी।

मेरे सीने मे वह अपना चेहरा छिपा कर लेटी हुई थी। अचानक मुझे कुछ याद आया तो उसके चेहरे को अपने हाथ का सहारा देकर उठाया और उसकी नीली आँखों मे झाँकते हुए मैने पूछा… मेजर साहिबा, बेचारी तबस्सुम का क्या हुआ? …वह जहानाबाद मे मेरे लोगों के बीच सुरक्षित है। मै चौंक कर उठ कर बैठ गया। …क्या फारुख या पीरजादा ने उसे जहानाबाद मे ढूंढने की कोशिश नहीं की होगी? …उन्हें इस बात का इल्म नहीं है। तबस्सुम वैसे भी फारुख की बेटी नहीं है। …क्या मतलब? …वह असलियत मे पीरजादा साहब की बेटी है। …तब फारुख उसके लिये इतना क्यों छ्टपटा रहा था? …वह फारुख की मंगेतर है क्योंकि पीरजादा साहब ने उसके पैदा होते ही भविष्यवाणी की थी कि तबस्सुम का खाविन्द ही उनकी गद्दी पर बैठेगा। फारुख उसके जरिये फिरके की गद्दी पर काबिज होना चाहता था। मीरवायजों के रिश्तों के जाल मे मेरा दिमाग उलझ कर रह गया था। मुझे थकान महसूस होने लगी थी। उसके समीप बिस्तर पर फैलते हुए मैने कहा… अब मुझे छोड़ कर जाने की बात कभी मन मे नहीं लाना। कल सुबह तुम मेरे साथ अस्पताल चलोगी और तब तक वहीं रहोगी जब तक मै डिस्चार्ज नहीं होता।  

वह धीरे से बोली… मेरी सच्चायी अगर आपके लोगों को पता चल गयी तो आपके लिये मुसीबत खड़ी हो जाएगी। …अंजली तभी तो मैने यह सारा कारोबार तुम्हारे लिये काठमांडू मे खड़ा किया है। मेरे सीने मे अपना चेहरा छिपाते हुए वह बोली… अभी भी वक्त है सोच लिजीये। उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर उसके होंठ चूम कर मैने कहा… जब दोजख मे भी साथ रहने का वादा कर लिया है तो फिर क्या सोचना। अचानक मुझे कुछ याद आ गया था। उसकी आँखों मे झाँकते हुए मैने पूछा… कैप्टेन यादव बता रहा था कि तुमने फारुख को जिंदा जला दिया। उसका अंत इतना भयानक क्यों? उसका चेहरा एकाएक तमतमा गया था। कुछ पल वह चुप रही और फिर धीरे से बोली… मेरी हालत देख कर उसने ऐसी बात कही जिसे मै बर्दाश्त नहीं कर सकी तो मैने गुस्से मे थापा से अपनी इसुजु से डीजल निकलवाया और उस पर छिड़क कर उसको वहीं काफ़िरों की तरह जिंदा जला दिया था। शुक्र मनाईये कि आपका कोई आदमी इस बीच नहीं बोला अन्यथा उस रात को वह भी ज़ाया हो गया होता। मैने जल्दी से उसको शांत करने की मंशा से उसके तमतमाये गालों को सहलाते हुए कहा… झाँसी की रानी शांत हो जाओ। शांत हो जाओ। उस पर बुरा असर पड़ेगा जिसे तुम इस दुनिया मे ला रही हो। अब सब कुछ भुला कर तुम अंजली कौल बन जाओ। उसने धीरे से अपना सिर हिला दिया था।

हमारी आँखों से नींद कोसों दूर थी। वह अपना सिर मेरे सीने पर रख कर लेटी हुई थी। मै दिल्ली दरबार के बारे मे सोच रहा था। अचानक वह बोली… भाईजान ने काफ़िर की औलाद को अपनी कोख मे पालने के लिये मुझे दोजख मे जलने की बद्दुआ दी थी। उनका कहना था कि एक काफिर की हमबिस्तर बन कर मैने कुफ्र का गुनाह किया था। हया की बात को सुन कर मुझे लगा कि किसी ने मेरे दिल पर नश्तर से प्रहार किया है। काफिर शब्द मुझे अब एक गाली की तरह लगने लगा था मकबूल बट ने मुझे काफिर की औलाद बना दिया था। अबकी बार मेरी औलाद को फारुख ने वही नाम दे दिया था। इस काफिर शब्द से मुझे नफरत होने लगी थी। उसे अपने सीने से लगाये काफी देर तक लेटा रहा। आधी रात गुजर चुकी थी और नींद हम दोनो पर हावी होने लगी थी। कब हम दोनो ही अपने सपनो की सुनहली दुनिया मे खो गये पता ही नहीं चला था।

सुबह मुझे अंजली ने जल्दी से उठा कर बोली… प्लीज आप अस्पताल चले जाईये। मेरी हालत ऐसी नहीं है कि मै आपके साथ वहाँ रह सकूँ। बस दो दिन की बात है फिर तो आप वापिस यहीं आ जाएँगें। मै उठ कर चलने के लिये खड़ा हो गया तो अंजली मुझसे लिपट कर बोली… अपना ख्याल रखना। यह सुन कर दरवाजे की ओर चलते हुए मैने कहा… तुम भी अपना ख्याल रखना। इतनी बात करके मैने गेस्ट रुम का दरवाजा खोल कर एक बार सोती हुई मेनका को देखा और फिर अपने घर से बाहर निकल आया था। सड़क सूनी पड़ी हुई थी। मै जब तक कोई यातायात का कोई साधन देखता कि तभी अचानक लोहे का बड़ा गेट खुला और मेरी इसुजु बाहर निकल कर मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी थी। अंजली ड्राईविंग सीट पर बैठी हुई मुझे बैठने का इशारा करने लगी तो मै दरवाजा खोल कर उसमे बैठते हुए बोला… कोई टैक्सी या टेम्पो नहीं दिख रहा है। …इसीलिये मै आपको अस्पताल छोड़ देती हूँ। कुछ देर के बाद वह मुझे अस्पताल के बाहर छोड़ कर वापिस चली गयी थी।

नर्सिंग स्टेशन के सामने से निकलते हुए नर्स ने मुझे टोक दिया… आप इस वक्त कहाँ से आ रहे है? …सिस्टर, कमरे मे इतने दिन से बैठे हुए मै बोर हो गया था। सुबह टहलने के लिये मै बाहर लान मे चला गया था। यह बोलते हुए मै अपने कमरे की ओर चल दिया। अन्दर आते ही मैने कपड़े बदले और अपनी अधूरी नींद पूरी करने के लिये बेड पर लेट गया। कुछ ही देर मे गहरी नींद मे खो गया था। डाक्टर का राउन्ड शुरु होने से पहले नर्स मे मुझे उठा दिया था। दस बजे डाक्टर ने मेरे दोनो जख्म का निरीक्षण करके ड्रेसिंग करते हुए कहा… अब आपके घाव भर गये है। नर्स को कुछ दवाईयाँ और ड्रेसिंग के बारे मे बता कर वह चला गया था। सारा दिन मेरा अंजली की बतायी हुई बातों के बारे मे सोचते हुए निकला था। कुछ नये प्रश्न दिमाग मे कुलबुलाये तो अगली बार पूछने की सोच कर उसे टाल दिया। शाम को कैप्टेन यादव कुछ समय मेरे साथ गुजार कर वापिस चला गया था। मै अपने कमरे मे एक बार फिर से अकेला रह गया था।

रात गहराती जा रही थी। किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मै तुरन्त चौकन्ना हो कर बैठ गया। दरवाजा खुलते ही आगन्तुकों का चेहरा देखते ही मै सकते मे आ गया था। अजीत सर और जनरल रंधावा ने कमरे मे प्रवेश किया और मुस्कुरा कर मेरे पास आकर खड़े हो गये थे।  अजीत सर ने मुस्कुरा कर पूछा… मेजर क्या हाल चाल है? …सर, मै ठीक हूँ लेकिन आप यहाँ पर कैसे? …तुमसे बात नहीं हो पा रही थी इसलिये आज शाम की फ्लाईट लेकर हम दोनो तुमसे मिलने चले आये। फारुख और मकबूल बट की कहानी का अंत हो गया? …यस सर। अजीत सर ने अपना गला खंखारते हुए पूछा… इसी के साथ कोडनेम वलीउल्लाह की कहानी का भी अंत हो गया? …यस सर। एक पल रुक कर अजीत सर ने कहा… मेजर, उन दोनो का अंत होने के बाद हम चाहते है कि कोडनेम वलीउल्लाह को जारी रखा जाये। यादव ने खबर दी थी कि आफशाँ क्रासफायर मे घायल हो गयी थी। अब वह कैसी है? आफशाँ को यह काम ऐसे ही जारी रखना पड़ेगा। हम उसको अबकी बार सीधे वलीउल्लाह की टीम से जोड़ने की सोच रहे है। उनकी बात सुन कर मै चौंक गया था। मै समझ नहीं पा रहा था कि उनके दिमाग मे क्या चल रहा है। …सर आखिर कोडनेम वलीउल्लाह प्रोजेक्ट क्या है? एक बार अजीत सर ने जनरल रंधावा की ओर देखा और फिर बोले… डाक्ट्रीन आफ अल-तकिया के भारतीय स्वरुप को कोडनेम वलीउल्लाह कह सकते है। उनकी बात सुन कर मै और भी ज्यादा उलझ कर रह गया था।

अजीत सर बोले… मेजर, कोडनेम वलीउल्लाह हमारे सूचना तंत्र का एक पाइलट प्रोजेक्ट था। इसके जरिये हम अपनी झूठी और गैर जरुरती सूचना को अत्यन्त गोपनीय सूचना के आवरण मे लपेट कर पाकिस्तान सेना के शीर्ष नेतृत्व के पास पहुँचा रहे थे। इस प्रोजेक्ट के जरिये हमने पाकिस्तानी फौजी इदारे को व्यर्थ के काम मे उलझा दिया था। उस सूचना को पाने के लिये दुश्मन का फौजी इदारा अपने पैसे और समय को व्यर्थ नष्ट कर रहा था। इसी के साथ उस सूचना को डीकोड करने के लिये उनके सबसे बेहतरीन और आला दिमाग कई दिनों तक उसमे उलझ जाते थे। इस प्रोजेक्ट के कारण उस सूचना के जरिये हम दुश्मन की प्राथमिकता सूचि को अपने अनुसार फेर बदल करवाने मे भी कभी-कभी कामयाब भी हो रहे थे। इस प्रोजेक्ट का बीजारोपण तुम्हारी रिपोर्ट से हुआ था। तुम्हारी रिपोर्ट मे तुमने बताया था कि आतंकवाद का पहला कदम सूचना है। झूठी सूचना को इस्लाम की चादर मे लपेट कर जब यहाँ की जनता को बर्गलाया जाता है तब उस जनता मे से स्थानीय जिहादी पैदा होते है। इसके लिये तुमने सुझाव दिया था कि आतंकवाद से लड़ने के लिये अब हमे सूचना तंत्र को प्रथमिकता देनी पड़ेगी। सात अंको का कोड इसी सुझाव का पाईलट प्रोजेक्ट बन गया था। मै आश्चर्य से अजीत सर का चेहरा ताक रहा था। 

…समीर, वह सात अंकों का चक्कर इसरो के सेवानिवृत निदेशक रामास्वामी के दिमाग की उपज है। उस वक्त हम किसी सरकार के लिये काम नहीं कर रहे थे। ऐसे ही एक दिन बैंगलोर की आफीसर्स मेस मे ड्रिंक्स लेते हुए हमने इस बात की चर्चा रामास्वामी से की थी कि ऐसी कौनसी सूचना हो सकती है जिसको देखते ही दुश्मन के मन मे जिज्ञासा उत्पन्न हो जाये? स्वामी ने कुछ सोच कर ग्रिड रेफ्रेन्स के सात अंको के कोड का सुझाव दिया था। इतना बोल कर अजीत सर चुप हो गये और जनरल रंधावा की ओर देखने लगे। जनरल रंधावा बोले… पुत्तर तू सही कह रहा था कि उन सात अंकों के नम्बरों की कोई अहमियत नहीं थी। वह तो सरासर धोखा था। अजीत सर ने बीच मे बात काटते हुए कहा… इसरो का ग्रिड रेफ्रेन्स सिस्टम बेहद आधुनिक पाँच लेयर की सिक्युरिटी का कोडिंग सिस्टम है जिसे कोई भी बिना इसरो की मदद से डीकोड नहीं कर सकता। रामास्वामी ने कुछ सात अंकों के नम्बर हमे दे दिये थे। हमने वह नम्बर अपने गोपनीय चैनल के द्वारा आईएसआई तक पहुँचा दिये थे। इन नम्बरों की उपयोगिता को समझने मे बाजवा और शरीफ को पाँच महीने लग गये थे। आईएसआई का भारत मे उपस्थित नेटवर्क पूरी तरह से इन नम्बरों के बारे मे जानकारी जुटाने के लिये सक्रिय हो गया था। मेरा पुराना आईबी का अनुभव इस मामले मे बहुत काम आया था। हमने थोड़ी-थोड़ी जानकारी कुछ समय के अंतराल के बाद कुछ संधिग्ध लोगों के सामने अनायस ही लीक करवाना आरंभ कर दिया था। जैसे की एक बार हमने एक पाकिस्तानी रिपोर्टर के सामने कह दिया कि सात अंको के नम्बर हमारी सेटेलाइट की लोकेशन को चिन्हित करते है। अगली बार सात अंकों के नम्बर को हमने मिसाईल सिस्टम टार्गेट से जोड़ दिया था। टुकड़ो मे इस प्रकार की जानकारी मिलने से आईएसआई सतर्क हो गयी और आखिरकार शरीफ और बाजवा ने एक दिन इसके लिये अलग से एक गोपनीय युनिट बना कर इसी काम पर लगा दी थी।

यह सब सुन कर मेरे चेहरे पर हैरानी के निशान उभर आये थे। अजीत सर मेरी ओर मुस्कुरा कर बोले… समीर, तुमने सही पता किया था कि धरती पर किसी भी स्थान के दो कुअर्डिनेट्स तय है जिसको हम आम भाषा मे अक्षांश और देशांतर के नाम से जानते है। सारे नक्शे इसी पर आधारित होते है। इसमे कोई बदलाव नहीं हो सकता है। इसरो का ग्रिड रेफ्रेन्स सिस्टम अपने अनुसार 0 डिग्री को किसी भी स्थान पर मान कर दुनिया के अक्षांश और देशांतर मे परिवर्तन गोपनीयता के लिये कर देता है जिसको सिर्फ इसरो की टीम ही डिकोड कर सकती है। इसीलिये सिर्फ इसरो ही उस कोड के बारे मे जानता है और इसरो के बाहर किसी को पता नहीं कि रेफ्रेन्स पोइन्ट क्या लिया गया है। बाकी हमारी सारी कहानी झूठ पर आधारित थी। शरीफ और बाजवा ही नहीं अपितु पाकिस्तान के सभी आला दिमाग इसी काम मे उलझ कर रह गये थे। उस दिन जामिया मस्जिद के ब्लास्ट के बाद जो नम्बर तुमने ब्रिगेडियर चीमा को जाँचने के लिये दिये थे यह वही नम्बर थे जिन्हें हमने उनके पास चार महीने पहले एक वामपंथी पत्रकार के द्वारा पहुँचाये थे। जब वह नम्बर हमारे पास पहुँचे तभी हम समझ गये थे कि आईएसआई के लिये यह सात अंकों का कोड प्राथमिकता बन चुका है। उसके बाद तो हमारे लिये सब कुछ आसान हो गया था। इसमे कोई शक नहीं कि इस प्रोजेक्ट मे तुम्हारी प्रमुख भुमिका रही थी। तुमने आतंकवादी तंजीमों के नेटवर्क का पर्दाफाश करके हमारा काम आसान कर दिया था। नीलोफर और फारुख जब हमारे हाथ लगे तब तक हमारे सात अंकों के कोड को आईएसआई ने कोडनेम वलीउल्लाह दे दिया था। फारुख ने जब इसका जिक्र तुमसे किया तो उनकी सोच को पुख्ता करने के लिये हमने झूठे और सच्चे कुअर्डिनेट्स देकर पाकिस्तान की सुरक्षा एस्टेब्लिश्मेन्ट को ज्यादा उलझा दिया था।

अपनी झेंप मिटाने की कोशिश करते हुए मैने कहा… अजीत सर, आपने पाकिस्तानियों को ही धोखा नहीं दिया अपितु मुझे भी धोखे मे रख कर उनके सारे नेटवर्क को तहस नहस करवा दिया। एक बात तो मै भी समझ गया था कि भला अनपढ़ जिहादी अपनी जेब मे वह सात अंको के नम्बर को लेकर भला कश्मीर वादी मे क्या कर सकता था। अगर इन नम्बर को वह डीकोड करना भी चाहें तो उसके पास वैसे तकनीकी संसाधन भी होने चाहिये थे। भला एके-47 से वह इन नम्बरों को डीकोड तो हर्गिज नहीं कर सकता था। लेकिन सर आफशाँ इस चक्रव्युह मे कहाँ से फँस गयी? …मेजर यह उसकी बदकिस्मती है। आईएसआई का सारा नेटवर्क इसी काम पर लगा हुआ था कि उसका किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क हो जाये जो सात अंकों के कोड से संबन्ध रखता है। अपने शीर्ष नेतृत्व को प्रभावित करने के लिये फारुख मीरवायज ने वलीउल्लाह की आढ़ मे ताहिर और आफशाँ को प्यादे बना कर उसने उनका अपने अनुसार इस्तेमाल किया। उसने अपनी एस्टेबलिश्मेन्ट को यकीन दिलाया कि उसके हाथ एक ऐसा सोर्स लग गया है जिसकी पहुँच सेन्ट्रल कमांड युनिट मे है। अफसोस की बात है कि तुम्हारी पत्नी आफशाँ इसमे मकबूल बट के कारण बेवजह उलझ गयी थी। इसरो सभी को कोडिंग करके नम्बर दिया करती है इसलिये अगर वह नम्बर दुश्मन देश को मिल भी जाते तो भी वह उसके किसी काम के नहीं थे। इस काम के लिये तो हम आफशाँ के बहुत आभारी होने चाहिये क्योंकि वह जो भी नम्बर उनको दे रही थी वह सभी इसरो के कोडिड अंक थे। हम चाहते है कि आफशाँ जो काम कर रही थी वह करती रहे। हम दोनो इसीलिये यहाँ आये थे कि उसको यकीन हो जाये कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है। उसने तो अनजाने मे अपने राष्ट्र की सुरक्षा मे बेहतरीन योगदान दिया है। तुम भी उसे समझाने की कोशिश करना।

…सर, रेफ्रेन्स कोडिंग अगर आपका प्रोजेक्ट था तो आप वलीउल्लाह को क्यों ढूंढ रहे थे? …समीर, जो नम्बर हम लीक कर रहे थे वह तो हमे पता थे परन्तु जब अचानक कुछ नये नम्बर हमारी नजर मे आये तब हम सावधान हो गये थे। हमारा पाईलट प्रोजेक्ट अचानक कोडनेम वलीउल्लाह के नाम से हमारे सामने आ गया था। पहले फारुख ने बताया और फिर अनमोल बिस्वास ने हमारे उस शक को पुख्ता कर दिया था। हम समझ गये थे कि आईएसआई ने हमारे किसी ऐसे आदमी को अपने साथ काम करने के लिये राजी कर लिया है जो इस कोडिंग रेफ्रेन्स सिस्टम से जुड़ा हुआ है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरे की बात थी। उस व्यक्ति का पता लगाना हमारे लिये अनिवार्य हो गया था। अगर हमे उस आदमी का पता चल जाता तब वह सोर्स पाकिस्तानी एस्टेब्लिश्मेन्ट के शीर्ष नेतृत्व तक पहुँचने का हमारा स्थायी माध्यम बन जाता। उसके बाद तो हम जो चाहते पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेन्ट वही करती। मै अभी भी अविश्वास से अजीत सर की ओर देख रहा था। उन्होंने कितनी गहरी चाल की रचना की थी कि पूरा पाकिस्तानी फौजी इदारा पिछले डेढ़ साल से उन सात अंकों को डिकोड करने मे उलझ कर रह गया था। उन्होंने जिस डाक्ट्रीन को भारतीय स्वरुप मे बदल कर इस्तेमाल किया था उसको जान कर मै उनके दिमाग का कायल हो गया था।

अजीत सर ने एक नजर अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी पर डाल कर कहा… मेजर, इस मामले मे काफ़िरों ने डाक्ट्रीन आफ अल-तकिया का मोमिनों से बेहतर इस्तेमाल किया है। अगर यह बात पाकिस्तान के फौजी इदारे को पता लग गयी तो वह किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रहेंगें। सरदार एक बज गया है चल कर कुछ घंटे आराम कर ले क्योंकि कल सुबह नौ बजे की फ्लाईट है। जनरल रंधावा उठते हुए बोले… पुत्तर अब आराम कर। अजीत सर भी उठ गये और चलते हुए बोले… अपने दिल पर इस बात का कोई बोझ मत रखना क्योंकि आफशाँ ने एक तरह से हमारी मदद की है। कुछ सोच कर मैने कहा… सर, आफशाँ को हम बचा नहीं सके। यह सुन कर दोनो धम्म से वापिस बैठ गये थे। उनकी कोडनेम वलीउल्लाह वाली परियोजना आफशाँ की मौत से धाराशायी हो गयी थी। अजीत सर कुछ सोच कर बोले… मेजर, आफशाँ की मौत से हमारे काउन्टर आफेन्सिव आप्रेशन को बहुत बड़ा आघात लगा है। इसकी भरपाई करने मे अब काफी समय लग जायेगा। चलिये सरदारजी अब नये सिरे से व्युहरचना तैयार करनी पड़ेगी। उनके साथ मै भी उठ कर खड़ा हो गया था। जनरल रंधावा ने चलते हुए कहा… मेजर जल्दी से अपनी ड्युटी पर वापिस आ जाओ। बहुत से काम बाकी है। मै उन्हें नीचे तक छोड़ने के लिये चल दिया। कार मे बैठते हुए अजीत सर ने धीरे से पूछा… मेजर हया इनायत मीरवायज का कुछ पता चला? मै कोई जवाब देता उससे पहले उनकी कार आगे बढ़ गयी थी। उनका प्रश्न सुन कर मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था। मै ठगा सा कुछ देर वहीं खड़ा उनको जाते हुए देखता रह गया था।

…अब कब तक आप वहीं खड़े रहेंगें? वह आवाज सुन कर मै चौंक कर मुड़ा तो अंजली मुख्य द्वार पर खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी। आगे बढ़ कर मैने उसे अपने आगोश मे जकड़ कर एक किनारे मे ले जाते हुए बोला… तुम कब आ गयी थी? …जब कमरे मे आपकी मीटिंग चल रही थी। …तुम उन्हें जानती हो? वह पल भर के लिये झिझकी फिर सिर उठा कर मेरी ओर देख कर बोली… आपकी राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के दो मुख्य लोग थे। हम दोनो कमरे की ओर चल दिये थे। …तुम तो आने से मना कर रही थी। …अपने आप को रोक नहीं सकी। …इनके आने से पहले मेरी भी यही स्थिति थी। हो सकता है आज देर रात को फिर से मै तुम्हारे पास पहुँच जाता। नर्सिंग स्टेशन के सामने से निकलते हुए नर्स ने एक बार फिर से टोक दिया… मिस्टर समीर इतनी रात को गेस्ट की अनुमति नहीं है। अंजली ने मुस्कुरा कर कहा… मै गेस्ट नहीं पेशेन्ट की अटेन्डेन्ट हूँ। उसका उभरा हुआ पेट और मेरी कमर मे उसकी बाँह को देख कर नर्स ने मुस्कुरा कर कहा… ओह सारी। उसको अनदेखा करके हम अपने कमरे मे चले गये थे।

…तुम मेरे बेड पर सो जाओ। वहाँ तुम आराम से लेट सकोगी। मै इधर अटेन्डेन्ट की बेन्च पर सो जाऊँगा। अंजली ने मना करते हुए कहा… नहीं मै ऐसे ही ठीक हूँ। मैने कोई जवाब नहीं दिया बस उसे धकेलते हुए बेड पर जबरदस्ती लिटा दिया और उसके साथ बेड के एक किनारे पर मै लेट गया था। वह मुझसे लिपटते हुए बोली… आपकी ऐसी आदत हो गयी है कि अकेले नींद नहीं आती। कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने कहा… यह लोग मुझे वापिस ड्युटी पर लौटने के लिये कह रहे थे। …आपको कब जाना है? …अभी मेरे पास एक हफ्ता है लेकिन तुम्हें इस हालत मे छोड़ कर जाने का मन नहीं है। …आप मेरी फिक्र मत किजीये। अम्मा और कविता मेरे पास है जो सब काम संभाल रही है। अब मेनका को भी नये सिरे से संभालने की जरुरत है। इस घटना का उस पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार की बात करते अचानक मुझे नीलोफर का ख्याल आया तो पूछ लिया… नीलोफर के पैसे और फारुख के पैसे गोदाम मे रखे हुए है। उसको ठिकाने लगाने से पहले यह पता करना जरुरी है कि उनमे नकली कितने है अन्यथा यहाँ पर एक नयी मुसीबत खड़ी हो जाएगी। पता नहीं आईएसआई इतने नकली नोट कहाँ से लाती है? एक बार उसका पता चल गया तो आईएसआई और आतंकवादियों की दुकान हमेशा के लिये बन्द हो जाएगी।

एकाएक अंजली मुझसे अलग होकर बोली… क्या आपको नहीं पता कि नकली नोटों की खपत सबसे ज्यादा मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री मे होती है। कभी सोचा है कि नीलोफर को दस करोड़ के नकली नोट हिन्दुस्तान की अर्थव्यवस्था मे खपाने ने कितना समय लगता? दस करोड़ रुपये तो कुछ भी नहीं है जितने नकली नोट आईएसआई एक महीने मे आपकी अर्थव्यवस्था मे डालती है। नकली नोटों का इस्तेमाल मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री से आरंभ होता है। एक सामान्य फिल्म मे सौ करोड़ लगते है। अगर दस करोड़ के नकली नोट उसमे झोंक भी दिये जाये तो भी वह ऊँट के मुँह मे जीरे जैसी बात होगी। उस फिल्म की कमाई चार सौ करोड़ असली रुपये अलग-अलग सिनेमा घर से इकठ्ठे होते है। वह सारा पैसा घूम कर करांची पहुँच जाता है। इसी तरह आईएसआई का नकली नोटों का कारोबार चल रहा है। यह तो आईएसआई ने भ्रम फैला रखा है कि नकली नोट आतंकवाद और हथियारों की खरीदफरोख्त मे लगता है। फारुख के दो ट्रकों मे तुम्हें असली नोट मिले होंगें क्योंकि ब्लैक के धंधे वाले इस मामले मे काफी सतर्क होते है। उनको नकली नोट देने का मतलब है नोट के वितरक और उससे जुड़े हुए सभी धंधो की मौत। मै अंजली का चेहरा ताक रहा था और उसने कुछ ही मिनट मे मुझे नकली करेन्सी और ब्लैक मार्किट का सारा ज्ञान दे दिया था।

बीच रात मे मै उसके पास से उठ कर अटेन्डेन्ट की बेन्च पर लेट गया था। कोडनेम वलीउल्लाह की जनक तिगड़ी थी जिसके नाम का प्रयोग फारुख अपने निजि फायदे के लिये कर रहा था। आफशाँ और ताहिर बेचारे कोडनेम की असलियत जाने बिना हालात के चलते उसकी शतरंज की बाजी मे प्यादे की भुमिका निभा रहे थे। आईएसआई का फिल्म इंडस्ट्री के साथ नकली करेन्सी नोटों के संबन्ध ने तो सारी कहानी ही पलट कर रख दी थी। इन्हीं सब के बारे मे सोचते हुए न जाने कब मै अपने सपनो की दुनिया मे खो गया था। सुबह मुझे नर्स ने उठा कर कहा… आप यहाँ क्यों सो रहे है? डाक्टर के राउन्ड का टाइम हो गया है। आप जल्दी से तैयार हो जाईये। तभी अंजली ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे जगा हुआ देख कर बोली… आपके लिये चाय लेने गयी थी। उसने जल्दी से प्याला मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… मै घर जा रही हूँ। …थोड़ी देर रुको। डाक्टर आने वाला है। आज हो सकता है कि वह डिस्चार्ज करने के लिये तैयार हो जाए। वह चुपचाप मेरे साथ बेन्च पर बैठ गयी। दस बजे डाक्टर ने आकर का घाव का नीरिक्षण किया और ड्रेसिंग करके बोला… मिस्टर समीर, सब कुछ ठीक है और अब आप कभी भी डिस्चार्ज स्लिप ले सकते है। …तो प्लीज आप आज ही मेरी डिस्चार्ज स्लिप बना दिजिये। एक घंटा अस्पताल की औपचारिकताएँ पूरी करने मे निकल गया था। बारह बजने से कुछ पहले मै अपनी इसुजु से वापिस घर की ओर चल दिया था।

घर लौटते हुए अंजली ने कहा… यह अच्छा हुआ कि आफशाँ जन्नतनशीं हो गयी अन्यथा तुम्हारे लोग कोडनेम वलीउल्लाह के लिये उसको कभी नहीं छोड़ते। मैने चौंक कर अंजली की ओर देखा उसकी आँखें सड़क पर टिकी हुई थी। …क्या तुमने कल रात को उनकी बात सुन ली थी? अंजली ने मुड़ कर मेरी ओर देख कर कहा… क्या इसके लिये भी मुझे उनको सुनने की जरुरत है? प्रश्न का प्रश्न के रुप मे जवाब सुन कर मै चुप हो गया था। थोड़ी दूर निकलने के बाद अंजली ने कहा… मैने उनकी बात नहीं सुनी थी लेकिन इतना तो मै समझ सकती हूँ कि कोडनेम वलीउल्लाह प्रोजेक्ट का अंत तब तक नहीं हो सकता जब तक उसकी सच्चाई पाकिस्तानी फौज के सामने नहीं आती। बेचारी आफशाँ को पहले फारुख ने मकबूल बट के नाम से ब्लैक मेल किया और अब यह लोग उस बेचारी को गद्दारी के नाम पर ब्लैक मेल करके डबल एजेन्ट बनने के लिये दबाव डालते। …तुम कोडनेम वलीउल्लाह की सच्चाई जानती हो? उसने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर के बाद आफिस के बाहर गाड़ी रोक कर वह मेरी ओर देख कर बोली… चलिये घर आ गया। मैने मुस्कुरा कर कहा… अब मुझे तुमसे डर लगने लगा है। उसने मुझे आँख दिखायी तो मैने जल्दी से गाड़ी से उतरते हुए कहा… अब मुझे ऐसा लगने लगा है कि तुम हम सबसे बेहतर हो। वह मेरे साथ चलते हुए बोली… मै जानती हूँ कि मै उन सबसे बेहतर हूँ। मै उसके आत्मविश्वास को देख कर एक पल के लिये चलते-चलते रुक गया था। उसने जैसे ही मुड़ कर मेरी ओर देखा तो फिर तेज कदम बढ़ा कर मै उसके साथ चल दिया था।      

हम अपने फ्लैट मे पहुँच गये थे। अम्माजी को खाना तैयार करने के लिये बोल कर अंजली तैयार होने चली गयी थी। मै बिस्तर पर फैल कर अजीत सर की कहानी और अंजली की समीक्षा के बारे मे सोच रहा था। उसका सटीक आंकलन देख कर पहली बार मैने अपने सितारों का शुक्रिया अदा किया कि वह प्रतिद्वन्दी होने के बजाय मेरी पत्नी थी। अगर कहीं वह हमारी प्रतिद्वन्दी होती तो अब तक हम सब की नींद हराम हो गयी होती। …क्या सोच रहे है? मैने अंजली की ओर मुड़ कर देखा तो वह बाथरुम से निकल कर मुझे देख रही थी। एक खिली हुई धूप की रौनक उसके चेहरे पर विद्यमान थी। उसने अपने लंबे बाल सिर पर जूड़े के आकार मे बांधे हुए थे लेकिन कुछ गीले बाल उसके गालों से चिपक गये थे। एकाएक उसको इस रुप मे देख कर मुझे मिरियम की याद आ गयी थी। …क्या देख रहे है? मैने मुस्कुरा कर कहा… एक पल के लिये तुम मे मुझे मिरियम की झलक दिखी थी। एक स्कूली छात्रा के समान लग रही हो। अपने उभरे हुए पेट की ओर इशारा करके वह खिलखिला कर हँस कर बोली… अम्मी तो जरुर लग सकती हूँ परन्तु इस हालत मे मुझे कोई भी छात्रा नहीं समझेगा। वह कुछ और बोलती उससे पहले मेनका ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे देखते ही वह झपट कर मेरे पास आकर बोली… अब्बू अब आपकी चोट कैसी है?

सब कुछ भुला कर मेनका की बातों मे कुछ देर के लिये खो गया था।

रविवार, 21 जनवरी 2024

 प्रभु श्री राम के आशीर्वाद से 500 साल की प्रतीक्षा का अंत हुआ और 22 जनवरी 2024 को अयोध्याधाम मे भव्य राम मंदिर मे राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से करोड़ों हिन्दुओं के साथ अन्य राम भक्तों की आस्था फलित होने जा रही है। इस दिन को देखने के लिये लाखों राम भक्तों ने अपनी जान का बलिदान दिया है। प्रभु राम की कृपा से आज हम इस एतिहासिक घड़ी के साक्षी बन रहे है। इस अवसर पर मै हर उस राम भक्त को नमन कर रहा हूँ जिसके कारण हमे यह दिन देखना नसीब हुआ।  


जय श्री राम 

श्री राम मंदिर मे प्राण प्रतिष्ठा के उपलक्ष मे अपने सभी पाठकों और आपके समस्त परिजनों को मेरी ओर से हार्दिक शुभ कामनाऐं।  

आपका अपना 
वीर

रविवार, 14 जनवरी 2024

  

गहरी चाल-43

 

फारुख हमे कवर करता हुआ हमारे पीछे आकर खड़ा हो गया था। मकबूल बट सड़क पर पड़े हुए ट्रक के लोहे के कबाड़ की आढ़ मे चला गया था। …मेजर, मुँह खोलने की कोशिश मत करना। तुम सब मेरे निशाने पर हो। हम चुपचाप उस टूटे हुए ट्रक के साथ खड़े हुए सामने से आती हुई गाड़ी को देख रहे थे। जैसे-जैसे वह गाड़ी हमारे नजदीक आ रही थी वैसे-वैसे तनाव भी बढ़ता जा रहा था। मैने जल्दी से आफशाँ और नीलोफर को कमर से पकड़ कर अपने से सटा लिया था। वह हेड्लाइट निरन्तर नजदीक आ रही थी। इतना तो मुझे यकीन हो गया था कि वह सेना और पुलिस की गाड़ी तो हर्गिज नहीं हो सकती क्योंकि गाड़ी की छत पर फ्लैश लाईट और हूटर नहीं बज रहा था। अगर फारेस्ट वालों की पेट्रोल वैन हुई तो हम बहुत बड़ी मुसीबत मे फँस गये थे। एक ओर दो नेपाली सैनिको की लाश रेस्त्रां के मुख्य द्वार पर पड़ी हुई थी। दूसरी ओर जिहादियों को जमावड़ा हमे निशाने पर लेकर खड़ा हुआ था। रात के समय इस सड़क पर कोई निजि या पर्यटक कार के आने की संभावना तो बहुत कम थी। 

वह गाड़ी अंधेरे को चीरते हुए हमारी ओर बढ़ रही थी। उसकी हेडलाइट्स फुल बीम पर होने के कारण दूर से ही पूरी सड़क को रौशन कर रही थी। फारुख के साथी भी स्टेशन वेगनों के समीप मुस्तैदी के साथ खड़े हो गये थे। वह गाड़ी जैसे ही हमारे करीब पहुँची तो उसको देख कर मै चौंक गया। वह मेरी इसुजु लग रही थी। वह गाड़ी हमारे करीब पहुँचते हुए धीमी हो गयी थी। उसकी हेडलाइटस की रौशनी से आँखें चुँधिया गयी थी। फारुख की पिस्तौल हमारी दिशा मे तनी हुई थी। वह धीरे से घुर्राया… मेजर, अब कोई बेवकूफी करने की कोशिश मत करना। वह गाड़ी धीमे हो गयी परन्तु हमारे सामने रुके बिना ही वह आगे निकलते चली गयी थी। सबकी नजर उस इसुजु पर टिकी हुई थी। हेड्लाइट्स की रौशनी के पश्चात अंधरे मे एक पल के लिये मुझे साफ तो नहीं दिखा परन्तु ऐसा लगा कि इसुजु की खिड़की से किसी ने कोई चीज हवा मे उछाल दी थी। वह वस्तु उस गाड़ी की छत के उपर से होती हुई खड़ी हुई उन स्टेशन वैगनों की दिशा मे जाती हुई दिखायी दे गयी थी। फारुख की नजर भी उस हवा मे उड़ती हुई वस्तु पर पड़ गयी थी।

हम दोनो ही फौजी थे तो खतरे को भांप कर हमारी प्रतिक्रिया एक समान हुई थी। फारुख और मैने बचने के लिये छलांग लगायी। हम दोनो की छलांग मे बस इतना फर्क था कि उसने तेजी से मकबूल बट की दिशा मे छलांग लगा दी थी और मै अपने साथ आफशाँ और नीलोफर को लेकर सड़क के किनारे बने हुए बरसाती नाले मे कूद गया। उस वक्त मै बस इतना ही देख पाया था कि स्टेशन वैगन की दिशा एक भयानक विस्फोट हुआ था। उस विस्फोट के कारण हवा को चीरते हुये लोहे के टुकड़े हमारे सिर के उपर से निकल गये थे। कुछ पल अपनी बांहों मे आफशाँ और नीलोफर को बाँधे उस नाले मे पड़ा रहा। विस्फोट देख कर इतना तो समझ गया था कि उस इसुजु से एक ग्रेनेड उन स्टेशन वैगनों पर फेंका गया था। मैने धीरे से नाली से सिर बाहर निकाल कर सामने की ओर देखा तो बड़ा भयानक मंजर था। कुछ जिहादियों के क्षत-विक्षत जिस्म सड़क पर पड़े हुए थे। कुछ दिमागी रुप से सन्न हो कर जमीन पर घायल अवस्था मे बैठे हुए थे। एक स्टेशन वेगन तो पूरी तरह नष्ट हो गयी थी। बाकी पेट्रोल वेन और स्टेशन वैगन को भी काफी नुकसान हुआ लग रहा था।

दोनो को वहीं नाले मे छोड़ कर सामने का मंजर देखने के लिये मै जैसे ही उठा तो फारुख की आवाज मेरे कान मे पड़ी… सब बाहर निकलो। मैने सिर घुमा कर पीछे की ओर देखा तो वह अपनी एके-47 को हमारी ओर तान कर खड़ा हुआ था। मकबूल बट भी हमारी ओर पिस्तौल ताने खड़ा हुआ था। मैने दोनो को सहारा देकर उस नाले से बाहर निकाला और एक किनारे मे खड़ा हो गया। फारुख के चेहरे पर तनाव के साथ अब क्रोध भी झलक रहा था। उसकी एके-47 हम पर तनी हुई थी परन्तु वह हमारी ओर देखने के बजाय अपने दो गाजियों की ओर देख रहा था। फारुख का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। नीलोफर अपनी कोहनियों और घुटनों पर आयी हुई चोट को आंकलन कर रही थी। मेरी दोनों कोहनियाँ और घुटने भी घायल हो गये थे लेकिन मेरे पास अपनी चोट देखने का समय नहीं था।

मैने जल्दी से कहा… फारुख हमे यहाँ से तुरन्त निकल जाना चाहिये। इस धमाके की आवाज पुलिस चौकी तक पहुँच गयी होगी। फारुख की घुर्रा कर पूछा… मेजर, तुम्हारे साथी कहाँ है? उनसे कहो कि वह सामने आ जायें। उसका सारा ध्यान इस वक्त मेरी ओर लगा हुआ था। मेरे किसी भी जवाब पर वह ट्रिगर दबाने से नहीं हिचकता तो मैने चुप रहने मे ही अपनी भलाई समझी लेकिन वह गुस्से से चीखते हुए बोला… तुम्हारा मेजर मेरे निशाने पर है। अगर जल्दी सामने नहीं आये तो…वह पूरा बोल भी नहीं पाया था कि तभी दो फायर हुये और उसकी आँखों के सामने बचे हुए दो जिहादी भी शहीद हो गये थे। उसने पहली बार फुर्ती दिखाते हुए अपने आप को मेरी आढ़ लेकर अपनी एके-47 की नाल मेरी पीठ पर टिका कर बोला… मेजर अपने साथियों से कहो कि वह बाहर निकल आये। इतनी देर मे मकबूल बट पहली बार बोला… फारुख अपने आप को संभालो। जब तक यह खबीस की औलाद हमारे निशाने पर है तब तक कोई हमारा कुछ नहीं कर सकता। मैने समझाने वाले स्वर मे कहा… फारुख, तुम दोनो का खेल खत्म हो गया है। यह सभी सैनिक है। आत्मसमर्पण कर दोगे तो शायद बच जाओगे। अभी मै पूरा बोल भी नहीं सका था कि मकबूल बट की दिशा से एक फायर हुआ और मुझे लगा कि एक लोहे की गर्म सलाख मेरी बाँह को चीरती हुई निकल गयी थी। न चाहते हुए भी मेरे मुँह से चीख  निकल गयी थी। मकबूल बट जोर से चिल्लाया… बाहर निकल आओ वरना अगली गोली तुम्हारे मेजर के सिर मे लगेगी। तभी विपरीत दिशा से जंगल की ओर से एक फायर हुआ और अगले ही पल मकबूल बट जमीन पर औंधे मुँह गिरते हुआ दिखा तो फारुख सतर्क हो गया था। पहली बार हमारे पीछे जंगल की ओर से फायर हुआ था। हम दो तरफ से घिर गये थे। जमीन पर करहाते हुए मकबूल बट ने भद्दी से भद्दी गालियों की झड़ी लगा दी थी।

तभी कैप्टेन यादव के साथ तीन सैनिक अंधेरे मे डूबे हुए रेस्त्रां से बाहर निकलते हुए दिखायी दिये। उनको देख कर मकबूल बट एक पल के लिये चुप हो गया था। मेरा दायाँ हाथ सुन्न हो गया था लेकिन मेरा दिमाग अभी भी सुचारु रुप से काम कर रहा था। वह चारों अपने हथियार ताने सड़क पर हमारे सामने आकर खड़े हो गये थे। कैप्टेन यादव ने पहली बार अपने फौजी अन्दाज मे कहा… फारुख, तुम घेर लिये गये हो। यहाँ से निकलना अब तुम्हारे लिये मुम्किन नहीं है। फारुख जानता था कि अगर मुझे कुछ हो गया तो वह भी यहाँ से जिन्दा बच कर नहीं निकल सकेगा। मैने एक बार अपने साथ खड़ी हुई आफशाँ की ओर देखा और फिर कैप्टेन यादव को आँख से इशारा करते हुए धीरे से आगे की ओर झुका लेकिन फारुख ने अपनी एके-47 की नाल मेरी पसली मे गड़ा कर बोला… मेजर, यह चालबाजी मेरे साथ नहीं चल सकेगी। तुम भूल गये हो कि मै भी फौजी हूँ। तभी जंगल की ओर से फायर हुआ…धाँय…अबकी बार फारुख जमीन पर लोट गया था।

मैने मुड़ कर देखा तो अंधेरे मे से एक साया जंगल से निकला और धीमे कदमों से चलते हुए हमारे सामने आकर खड़ा हो गया था। उसकी बेरेटा का रुख फारुख की ओर था। मैने उसको देखा तो एक पल के लिये जड़वत खड़ा रह गया था। …भाईजान सलाम वालेकुम। मै लड़खड़ा गया और साथ खड़ी आफशाँ ने आगे बढ़ कर जल्दी से मुझे थाम लिया। …भाईजान तुमने सारी जिन्दगी दलाली की है तो भला तुम कब से फौजी हो गये? उसकी आवाज मे कोमलता के बजाय एक अजीब सा कड़कपन झलक रहा था। जमीन पर घायल पड़े हुए फारुख ने गरदन घुमा कर उसकी ओर देख कर जोर से चिल्लाया… हया। …जी भाईजान। नीलोफर, इस बाजवा के पालतू कुत्ते की गन उठा ले। उसने एक उड़ती हुई नजर उस पर डाल कर एक बार मेरी ओर देखा और फिर मकबूल बट की ओर चली गयी थी। …मकबूल बट आखिरी बार अपने खुदा को याद कर ले। एकाएक ट्रिगर पर उसकी उँगली कसते हुए देख कर मै लड़खड़ा कर उठा और तेजी से उसकी ओर बढ़ते हुए जोर से चिल्लाया… अंजली नहीं। प्लीज रुक जाओ। एक पल के लिये वह रुक कर मेरी ओर देखने लगी तभी मकबूल बट ने अपने पास पड़ी हुई पिस्तौल को उठा कर अंजली की दिशा मे फायर कर दिया था। मै तब तक झपट कर अंजली के सामने पहुँच गया था। वह गोली मेरी पीठ मे एक गर्म सलाख की तरह धँसती चली गयी और उसके वेग के कारण मै हवा मे उछल कर जमीन पर गिर गया था। मेरी नजर अंजली पर टिकी हुई थी। उसने एक के बाद एक दो फायर किये… धाँय…धाँय…और मकबूल बट का सिर तरबूज की भांति फट कर बिखर गया था। उसी पल एके-47 चलने की आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मैने उस दिशा मे सिर घुमाया लेकिन तभी एक तीक्षण पीड़ा के कारण मेरी आँखे खुल गयी और मेरे मुख से गहरी चीख निकल गयी थी। मै बेबस सा धरती पर पड़ा हुआ अपने पीछे झपटती हुई आफशाँ को हवा मे लहरा कर जमीन पर गिरते हुए देखता रह गया था। मेरा सब कुछ लुट गया था। यह मंजर देखते ही मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया था।

अचानक मेरे जिस्म मे हरकत हुई तो मैने अपनी आँखें झपकाते हुए खोली तो एहसास हुआ कि अंजली मुझे पकड़ कर सहारा देकर बैठाने की कोशिश कर रही थी। मै अंजली का सहारा लेकर सड़क पर बैठते हुए बोला… झाँसी की रानी। उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गयी थी और मेरी पलकें लगातार झपक रही थी। मेरे मानसपटल पर बेहोशी हावी होती जा रही थी। मेरी क्षीण होती हुई शक्ति को एक बार संजो कर मै जल्दी से बोला… मेरा तो सब कुछ लुट गया है। इस दरिन्दे को जिन्दा मत छोड़ना। बस इतना बोल कर मेरी आँखों के सामने आफशाँ के गिरने का दृश्य सामने आ गया था। मेरे लिये सब कुछ समाप्त हो गया और एक अजीब सी शांति अपने अन्दर महसूस करते हुए मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया था।

मेरी आँख धीरे से खुली परन्तु तेज रौशनी के कारण आँखें स्वत: ही मुंद गयी थी। मैने उठ कर बैठने की कोशिश की लेकिन मेरे सिर मे पीड़ा की तेज लहर उठी जिसके कारण मै अपना सिर पकड़ कर लेट गया था। मैने लेटे-लेटे चारों ओर नजर घुमा कर स्थिति का जायजा लिया तो एहसास हुआ कि मै पथरीली जमीन पर लेटा हुआ हूँ। चारों ओर गहरा अंधेरा छाया हुआ था। तेज रौशनी सिर्फ एक दिशा की ओर आ रही थी। अबकी बार कैप्टेन यादव ने सहारा देकर मुझे बैठाते हुए पूछा… सर, आप ठीक है? मैने धीरे से सिर हिला कर कहा… हाँ ठीक हूँ। मैने अबकी बार आँख खोल कर अपने आसपास नजर डाली तब एहसास हुआ की मै सड़क के किनारे बैठा हुआ था। सामने खड़ी हुई पिक-अप की हेडलाइट ने सारी जगह को रौशन कर रखा था। …सर, यहाँ से हमे तुरन्त निकलना पड़ेगा। …कितनी देर मै बेहोश रहा? …सर, एक घन्टे से ज्यादा हो गये है। कैप्टेन यादव ने सहारा देकर मुझे खड़ा किया तो एक बार फिर से मुझे चक्कर आ गया था। अपने आपको संभालने के लिये मैने जल्दी से कैप्टेन यादव को पकड़ लिया और उसका सहारा लेकर पिक-अप की ओर चल दिया। मेरे साथियों ने मुझे घेर कर कवर कर लिया था। अचानक सारा पिछला घटनाक्रम याद आते ही मै चलते हुए ठिठक कर रुक गया।

…कैप्टेन, फारुख का क्या हुआ? …सर, अंजली मैडम ने उसको जिंदा जला दिया। इतना बोल कर कैप्टेन यादव अपने साथियों को पिक-अप मे बैठने का निर्देश देने मे लग गया था। अगले कुछ मिनट के बाद हमारी पिक-अप त्रिशुली हाईवे पर दौड़ रही थी। …सर, आपका दाँया कन्धा घायल है और पीठ मे अभी भी गोली फंसी हुई है। हमने मार्फीन का इन्जेक्शन देकर उसके दर्द को कुछ देर के लिये कम तो कर दिया है लेकिन हमे जल्दी से जल्दी इसका इलाज करवाना पड़ेगा। आपका काफी खून बह गया है। तभी आगे बैठे हुए एक सैनिक की आवाज गूँजी… सर, सामने नर्सिंग होम का निशान दिख रहा है। कैप्टेन यादव ने तुरन्त कहा… उस ओर ले चलो। हाईवे से लिंक रोड लेते हुए हमारी पिक-अप उस नर्सिंग होम की ओर मुड़ गयी थी। कुछ ही देर मे हम नर्सिंग होम के सामने पहुँच गये थे। मुझे चक्कर आ रहा था और बड़ी मुश्किल से अपने आप को होश मे रखने की कोशिश कर रहा था। पिक-अप रुकते ही कैप्टेन यादव तेजी से उतर कर नर्सिंग होम के अन्दर चला गया और मेरे साथ बैठे हुए एक सैनिक ने मुझे सहारा देकर पिक-अप से नीचे उतार दिया। मेरी नजर तभी नर्सिंग होम के द्वार पर पड़ी जहाँ से अर्दली एक स्ट्रेचर लेकर बाहर निकलता हुआ दिखायी दिया तो मै लड़खड़ाते हुए उस दिशा मे चल दिया। कमजोरी और मार्फीन के कारण दिमाग सुन्न होता चला गया था।

मेरी जब आँख खुली तो अबकी बार अपने आपको नर्सिंग होम के बिस्तर पर पड़ा हुआ पाया था। कैप्टेन यादव मेरे सिरहाने खड़ा हुआ था। सामने की ओर एक वृद्ध सा डाक्टर और उसके साथ नर्स खड़ी हुई थी। मेरे दो साथी द्वार पर खड़े हुए थे। मुझे होश मे आता देख कर डाक्टर ने आगे बढ़ कर जल्दी से मेरी नब्ज को टटोल कर देखा और फिर अपने गले मे लटके हुए स्टेथेस्कोप को मेरे सीने पर लगा कर मेरी धड़कन चेक करने के बाद बोला… सब ठीक है। अभी इन्हें कुछ दिन आराम करने की जरुरत है। कैप्टेन यादव ने मुझे सहारा देकर बैठाते हुए पूछा… सर, गोली निकाल दी है। बैठते हुए मैने भी महसूस किया कि अब मेरे सिर मे दर्द भी नहीं था और चक्कर भी नहीं आ रहे थे। दिमाग ने भी सुचारु रुप से काम करना आरंभ कर दिया था। मैने जल्दी से कहा… कैप्टेन, हम यहाँ पर ठहर नहीं सकते। हमे निकलना चाहिये। …यस सर। कैप्टेन यादव ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया और डाक्टर को देख कर बोला… थैंक्स डाक्टर। डाक्टर ने कुछ नहीं कहा बस उसने धीरे से अपना सिर हिला दिया था। हम चारों जब बाहर निकल कर आये तब मुझे एहसास हुआ कि दिन निकला हुआ था। सुर्य की रौशनी मे आँखें पल भर के लिये चुंधियाँ गयी थी। मेरे दिमाग मे बहुत से प्रश्न उठ रहे थे परन्तु फिलहाल मै जल्दी से जल्दी वहाँ से निकलना चाहता था। जमीन पर गिरती हुई आफशाँ का दृश्य एक पल के लिये मेरी आँखों के सामने से निकल गया था। 

कुछ ही देर मे हम वापिस त्रिशुली हाईवे पर पहुँच गये थे। … कितने दिन अस्पताल मे बेहोश रहा? …तीन दिन। …हमारी टीम मे कोई हताहत हुआ? …नहीं सर। सब सुरक्षित है। …कैप्टेन सीधे गोदाम पर चलो। मुझे अपनी रिपोर्ट फाइल करनी है। …बचन सिंह गोदाम की ओर चलो। हम बात करते हुए गोदाम पहुँच गये थे। कुछ देर बाद मै स्क्रीन के सामने बैठ कर जनरल रंधावा से बात कर रहा था। …फारुख की कहानी का अंत हो गया? …यस सर। फारुख के साथ मकबूल बट भी मारा गया। जमात अब बिना सिर की संस्था बन गयी है। …पुत्तर, पाकिस्तान से खबर मिली है कि जिहाद काउन्सिल भी छिन्न-भिन्न होकर बिखर गयी है। तुम वापिस कब आ रहे हो? …सर, मै दो हफ्ते की छुट्टी पर हूँ। छुट्टी समाप्त होते ही वापिस ड्युटी पर पहुँच जाऊँगा। …वीके और अजीत चाहते है कि तुम जल्दी से जल्दी वापिस रिपोर्ट करो। ऐसा करो कि तुम अभी अजीत से फोन पर बात कर लो। वह तुमसे कोई जरुरी बात करना चाहता है। …जी सर। इतनी बात करके संपर्क टूट गया तो विजय कुमार ने पूछा… सर, दोबारा कन्नेक्ट करुँ? …नहीं रहने दो। मेरी बात हो गयी है। मै वहाँ से उठ गया और अपना मोबाइल निकाल कर अजीत सर का नम्बर मिलाया।

दो घंटी के बाद ही उनकी आवाज कान मे गूंजी… समीर। …सर। …क्या तुम्हारा काम समाप्त हो गया? …जी सर। एक पल के लिये मै खामोश हो गया था। …क्या हुआ समीर? …कुछ नहीं सर। मुझे समझ मे नहीं आ रहा कि फारुख ने आफशाँ को ही क्यों कोडनेम वलीउल्लाह  के लिये चुना था। …समीर, जब तुम दोनो वापिस आओगे तब मै इसके बारे मे खुल कर समझा दूँगा। बस इतना जान लो कि कोडनेम वलीउल्लाह  असलियत मे हमारा काउन्टर आफेन्सिव का एक पाइलट प्रोजेक्ट था। आफशाँ तो बेचारी अनजाने मे उसका कवर बन गयी थी। यही सच्चायी है। इस लिये अपने दिल मे आफशाँ के लिये कोई द्वेष मत रखना। …जी सर। …तुम जब वापिस ड्युटी जोईन करोगे तब इस प्रोजेक्ट के बारे मे विस्तार से चर्चा होगी। गुड लक। इतनी बात करके उन्होंने फोन काट दिया था। अपने साथ खड़े कैप्टेन यादव से मैने पूछा… अंजली और नीलोफर कहाँ है? …सर, अंजली मैडम उसको अपने साथ ले गयी थी। …और मेनका? …सर, वह भी अंजली मैडम के पास है। तभी मुझे कुछ याद आया तो मैने पूछा… कैप्टेन मैने आफशाँ को गिरते हुए देखा था। वह ठीक तो है? इतनी देर मे पहली बार कैप्टेन यादव बोलते हुए गड़बड़ा गया था। …सर, फारुख ने एक-47  आपकी ओर फायर किया था लेकिन आफशाँ मैडम क्रासफायर मे फँस गयी थी। यह सुनते ही मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा। कुछ बुरा होने के अंदेशे के कारण पूछते हुए मेरी आवाज लड़खड़ा गयी… वह ठीक तो है? …सर, हमे पता नहीं। अंजली मैडम तुरन्त उन्हें अपने साथ ले गयी थी। यह सुन कर मुझे ऐसा लगा कि एकाएक मेरे पाँवों ने मेरा वजन उठाने से इंकार कर दिया और लड़खड़ा कर जमीन पर बैठ गया था। मुझे उसके बाद कुछ याद नहीं लेकिन जब आँख खुली तो मै अपने फ्लैट के बेडरुम मे लेटा हुआ था।

कैप्टेन यादव, लेफ्टीनेन्ट सावरकर के साथ मेरे अन्य साथी मुझे घेर कर बैठे हुए थे। एक डाक्टर मेरा निरीक्षण करने मे जुटा हुआ था। …हैलो, आपका क्या नाम है? मैने लड़खड़ाती हुई आवाज मे कहा… समीर बट। …आप इस वक्त कहाँ है? …अपने बेडरुम मे हूँ। इतना बोल कर मैने उठ कर बैठने की कोशिश की परन्तु असफल रहा। …आपको आराम की जरुरत है। मैने जल्दी से लम्बी-लम्बी दो चार सांसें लेकर कहा… कैप्टेन सबको कमरे से बाहर जाने के लिये कहो। कैप्टेन यादव को किसी से कहना नहीं पड़ा क्योंकि सभी जल्दी से कमरे से निकल गये थे। सबके जाने के बाद मैने पूछा… कैप्टेन उस रात को वहाँ क्या हुआ था? …सर, आफशाँ मैडम क्रासफायर मे घायल हो गयी थी। आपके बेहोश होते ही अंजली मैडम ने अपनी गाड़ी से डीजल निकलवा कर घायल फारुख को वहीं जिन्दा जला दिया था। उसके बाद आपको हमारे हवाले करके वह आफशाँ मैडम और नीलोफर मैडम को अपने साथ लेकर से चली गयी थी। मै चुपचाप कैप्टेन यादव की सुन रहा था। …सर आपको उस वक्त बताना मैने उचित नहीं समझा क्योंकि आपकी खुद की हालत काफी नाजुक थी। इतना बोल कर वह चुप हो गया था।

…कैप्टेन, अंजली कहाँ है? …सर, शनिवार से उन्हें किसी ने नहीं देखा है। …और मेनका? …सर, वह भी अंजली मैडम के पास है। हम सभी लोग तो आपके साथ थे। लेफ्टीनेन्ट सावरकर अंजली मैडम के साथ था लेकिन शनिवार को उसको उन्होंने वापिस भेज दिया था। जब गोदाम से हम आपको लेकर यहाँ आये तो उस वक्त यहाँ पर कोई नहीं था। सब कुछ सुन कर मेरा दिल बैठ गया था। अनेक विचार दिमाग मे आ रहे थे परन्तु मन खिन्न होने के कारण मै अपना ध्यान केन्द्रित करने योग्य नहीं था। …ठीक है कैप्टेन। आप अपने साथियों को गोदाम ले जाईये। अब मै आराम करना चाहता हूँ। …सर, आप कहे तो दो सैनिक आपकी सुरक्षा के लिये यहाँ छोड़ देता हूँ। …नहीं सब ठीक है। आप लोग फिलहाल मुझे अकेला छोड़ दिजिये। कैप्टेन यादव बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गया था। उसके जाने के बाद कुछ देर तो मै शून्य मे ताकता रहा फिर गहरी नींद मे डूब गया था। अचानक मेरी आँखों के सामने आफशाँ का मुस्कुराता हुआ चेहरा आया तो मै झपट कर उठ कर बैठ गया था।

कमरा अंधेरे मे डूबा हुआ था। मै कराहाते हुए उठा और साइड टेबल पर रखे हुए टेबल लैम्प का स्विच आन करके कमरा रौशन किया। अब तक दवाईयों का नशा मेरे दिमाग से उतर चुका था। एक ही सवाल मेरे दिमाग मे घूम रहा था। …अंजली कहाँ जा सकती है? बहुत से सवाल थे परन्तु मेरे पास जवाब किसी एक का भी नहीं था। जो जवाब दे सकती थी वह भी घर पर नहीं थी। मै यकीन से कह सकता था कि फारुख ने अंजली को देख कर तबस्सुम के बजाय हया कहा था। उसके बाद उसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी। यह भी सच था कि उस वक्त मेरे कन्धे मे गोली लगने के कारण मेरा दिमाग सुन्न हो गया था। मै सुनने मे भी गलती कर सकता था क्योंकि पहली बार जब मैने तबस्सुम को देखा था तब मेरे मुख से मिरियम का नाम अनजाने मे निकल गया था। मेजर हया इनायत मीरवायज और तबस्सुम मेरे लिये एक अनबूझी पहेली बन गयी थी। अजीत सर के रहस्योद्घाटन ने मेरी सोच को और भी ज्यादा उलझा दिया था। क्या सच है और क्या झूठ? मै इसमे उलझ कर रह गया था। नीलोफर कहाँ है? यह ख्याल आते ही मेरा जिस्म एक पल के लिये ठंडा पड़ गया था। यह तो मै जानता था कि वह आफशाँ के करीब थी और अब मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि दोनो हया के भी काफी करीब थी। सबसे ज्यादा मेरी चिन्ता का विषय मेनका थी। वह सब इस वक्त कहाँ है? इतने सारे प्रश्न एक साथ मेरे दिमाग मे घूम रहे थे।

मेरे अचानक उठने के कारण मेरे जिस्म का एक हिस्सा पके हुए फोड़े की तरह तड़क रहा था। दवाई का असर समाप्त हो गया था और अब दर्द दिमाग मे घन की तरह प्रहार कर रहा था। मेज के किनारे रखे हुए दवा के पैकिट को उठा कर मै लड़खड़ाते हुए खड़ा हो गया। रात के दस बज रहे थे। मैने पहले लाइट जला कर कमरे को रौशन करके बाहर निकल कर बैठक मे आया तो मेरी नजर रसोई की ओर चली गयी जहाँ लाइट जल रही थी। एकाएक मन मे एक विचार आया तो मै तेजी से रसोई की ओर चला गया था। रसोई मे सरिता की माँ को काम करते हुए देख कर मैने बुझे मन से पूछा… अम्माजी आप क्या कर कर रही है? …साहबजी आपके खाने के लिये कुछ बना रही हूँ। मैने फ्रिज से पानी की बोतल निकाल कर दवाई लेने के बाद पूछा… अंजली कहाँ है? …बिटिया अस्पताल मे है। आपको नहीं पता? जैसे ही उसकी नजर मेरे कन्धे पर पड़ी तो वह चीखते हुए बोली… साहबजी आपके घाव से खून रिस रहा है। पहली बार मेरा ध्यान अपने कन्धे की ओर गया जहाँ पट्टी खून से लाल हो गयी थी। मैने जल्दी से कहा… घबराने की बात नहीं है अम्माजी। हल्की सी चोट है। मै डाक्टर को दिखाने जा रहा था। आपको देख कर रुक गया।

मैने कैप्टेन यादव को फोन लगाया और तुरन्त पहुँचने को कह कर नीचे आफिस की ओर चल दिया। मन मे बुरे विचार आ रहे थे। अगर अंजली अस्पताल मे है तो क्या उसको भी मुठभेड़ मे चोट लग गयी या वह आफशाँ की तीमारदारी के लिये अस्पताल मे रुकी है? यही सोच कर मैने यादव को बुलाया था। नारायन बहादुर आफिस के गेट पर तैनात था। मुझे देखते ही वह उठ कर मेरे पास आकर बोला… साबजी बाहर जा रहे है? …हाँ। मेरी गाड़ी आ रही है। यह कहते हुए मै उसके स्टूल पर बैठ गया था। …बहादुर बाहर गेट पर जाओ और देखो की हमारी पिक-अप तो नहीं आ गयी। बाहदुर तुरन्त बाहर सड़क की ओर चला गया था। कुछ देर के बाद बहादुर की आवाज मेरे कान मे पड़ी… साबजी आपकी गाड़ी आ गयी है। मै दीवार का सहारा लेकर बाहर निकल आया। कैप्टेन यादव ने सहारा देकर मुझे पिक-अप मे बिठा कर पूछा… कौन से अस्पताल चलना है? …वहाँ चलो जहाँ ज्यादा सवाल-जवाब नहीं होगें। …सर तो मनीपाल अस्पताल चलते है। …हाँ वहीं चलो। कुछ ही देर मे हम मनीपाल अस्पताल के बाहर उतर गये थे।

इमरजेन्सी मे पहुँच कर मैने अपने आप को रजिस्टर करवाया और फिर तुरन्त डाक्टर अपने कार्य मे जुट गये थे। …क्या हुआ था? कैप्टेन यादव ने जल्दी से कहानी बनाते हुए कहा… पोखरा मे माओइस्टों की फायरिंग मे घायल हो गये थे। वहीं पर सरकारी अस्पताल मे इनका इलाज हुआ था। आज ही लौट कर आये थे कि शाम को घाव रिसने लगा। कुछ ही देर मे कंधे की नयी ड्रेसिंग करके पीठ के घाव का निरीक्षण करने के बाद डाक्टर ने कहा… इनको कुछ दिनों के लिये यहाँ भर्ती करवा दिजीये। यह अभी चलने-फिरने के योग्य नहीं है। इन्हें आराम की सख्त जरुरत है। पोखरा के सफर मे घाव खुल गया था। कुछ दिन यहीं आराम करेंगें तो रिकवरी जल्दी हो जाएगी। एक हफ्ते मे डिस्चार्ज करवा लिजियेगा। कैप्टेन यादव ने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से हामी भर दी और वार्ड बोय मुझे स्ट्रेचर पर लेकर कमरे की ओर चल दिया। प्राइवेट रुम मे शिफ्ट होने के बाद मैने कहा… कैप्टेन, अम्माजी से मुझे पता चला है कि अंजली अस्पताल मे है। पता करो कि वह कौनसे अस्पताल मे है। कैप्टेन यादव के जिम्मे यह काम सौंप कर मै बिस्तर पर लेट गया। कुछ देर के बाद एक नर्स ड्रिप लगा कर चली गयी थी।

अगले दिन सुबह मेरी आँख खुली तो मेरे सामने यादव खड़ा हुआ था। …उनका कुछ पता चला? …नहीं सर। अब दर्द का क्या हाल है? …सब ठीक है। वह कुछ देर मेरे साथ बैठ कर वापिस चला गया था। सारा दिन मेरा सिर्फ सोते हुए और पिछले कुछ दिनों की घटनाओं की समीक्षा मे गुजर गया था। दिमागी बैचेनी शान्त करने के लिये कभी टीवी खोल कर बैठ जाता और कभी बैठे-बैठे उँघने लगता था। अगले तीन दिन मेरे घाव भरने लगे थे। कैप्टेन यादव रोज अस्पताल मे कुछ समय मेरे साथ बिता कर वापिस चला जाता था। कारोबार की सारी जिम्मेदारी उसके कन्धों पर आ गयी थी। इस बीच अंजली, आफशाँ, मेनका और नीलोफर का कुछ अता पता नहीं था। अंजली की असलियत के कारण एक झिझक थी इसलिये मै उसके बारे मे यादव से ज्यादा पूछताछ भी नहीं कर रहा था। रोजाना अंजली का इंतजार करता लेकिन शाम होते ही सारी उम्मीद धाराशायी हो जाती थी।

कोडनेम वलीउल्लाह  एनएसए अजीत सुब्रामन्यम का पाईलट प्रोजेक्ट था तो फिर आफशाँ को वलीउल्लाह बना कर फारुख ने अपने एस्टेबलिश्मेन्ट के सामने क्यों रखा था? इस सवाल का जवाब देने वाला अब इस दुनिया मे नहीं था। दूसरी ओर अंजली की असलियत ने मुझे अन्दर से हिला कर रख दिया था। आईएसआई की मेजर हया इनायत मीरवायज इतने दिनो तक मेरे साथ तबस्सुम और अंजली बन कर क्यों रह रही थी। अम्मी और आलिया को मारने मे उसका हाथ था। उसकी मोहब्बत मे एक बार भी मुझे कृत्रिमता या दिखावा महसूस नहीं हुआ था। क्या वह इतनी अच्छी अदाकारा थी? मेरे साथ ही उसने ऐसा क्यों किया था। वह जब मिली थी तब तो मै एक अदना सा फौज का मेजर था। वह तो बाद मे सरकार बदलने के कारण मै ऐसे आफिस मे बैठ गया था। उसमे हया का क्या फायदा था? आफशाँ और नीलोफर के साथ उसके बड़े प्रगाड़ संबन्ध भी थे। सब कुछ सोचते हुए मै लगभग पागल होने की कगार पर पहुँच गया था। मेरे सभी प्रश्नों के जवाब अंजली ही दे सकती थी परन्तु वह गायब हो गयी थी। मेनका भी उसके साथ होने के कारण मेरी चिन्ता और भी ज्यादा बढ़ गयी थी।

चौथे दिन की सुबह होते ही कैप्टेन यादव ने सूचना दी कि अंजली वापिस फ्लैट मे आ गयी है। मेनका उसके साथ थी। मैने डाक्टर से डिस्चार्ज के बारे मे पूछा तो उसने दो दिन और रुकने के लिये कह दिया था। ड्रिप वगैराह और अन्य साजोसामान हट गया था। टाइम से नाश्ता और खाना मिलने के कारण अब चलने फिरने मे भी कोई तकलीफ नहीं थी। अंजली के प्रति एक डर दिल मे घर करने लगा था। उस शाम के बाद से अंजली को मैने नहीं देखा था। मन मे तरह-तरह के बुरे ख्याल आ रहे थे। अस्पताल मे अकेले पड़े रहने के कारण अंजली से मिलने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी। अंजली से मिलने के लिये शाम से ही मै अपनी योजना बनाने मे जुट गया था। मुझे विश्वास नहीं था कि वह मेरे डिस्चार्ज होने तक वहीं पर रुकेगी। रात को नौ बजे तक डाक्टर और नर्स के राउन्ड समाप्त हो गये थे। दवाई और खाने की जिम्मेदारी पूरी कर ली थी। मैने आज रात को अंजली से मिलने का फैसला कर लिया था। एक बार आमने-सामने बैठ कर मुझे उससे बात करने की जरुरत थी। मेनका उसके पास होने के कारण मै हथियारों के खेल मे पड़ना नहीं चाहता था। मेरी ग्लाक-17 मेरे पास नहीं थी परन्तु उसके पास बेरेटा थी। इतना तो मै समझ गया था कि बिना हथियार के उसका सामना करना अपनी जान को जोखिम मे डालना जैसा है परन्तु मेनका के लिये मुझे उसका सामना करना पड़ेगा। रात के दस बजते ही अस्पताल के कपड़े बदल कर मै बाहर निकलने के लिये तैयार हो गया था।

प्रधानमंत्री निवास, इस्लामाबाद  

…जनाब, आप्रेशन खंजर के पीछे सीआईए सेवानिवृत स्टोन का दिमाग था। जनरल शरीफ और जनरल बाजवा ने आपको अंधेरे मे रख कर उस योजना को कुछ कश्मीरी तंजीमों के साथ मिल कर कार्यान्वित करने की साजिश रची थी। ब्रिगेडियर शुजाल बेग ने उनकी साजिश का समय से पहले खुलासा करके हमे बहुत बड़ी मुश्किल से बचा लिया है। …शुजाल बेग कहाँ है? …जनाब, वह कनाडा मे अपने परिवार के साथ है परन्तु वापिस ड्युटी पर आना चाहता है। …अभी नहीं। पहले इस मामले को दबने दो। जनरल शरीफ और जनरल बाजवा कहाँ है? …जनाब, वह दोनो भी रातों रात गायब हो गये है। …आप्रेशन खंजर से जुड़े हुए सभी लोगों को वहाँ से हटा दो। सबको बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान मे नियुक्त कर दो। इन सब लोगों की यही सजा है। …जनाब, इस आप्रेशन से जुड़ा हुआ एक व्यक्ति आईएसआई का मेजर फारुख मीरवायज अभी भी वहीं पर बैठा हुआ है। अगर वह भारतीय सुरक्षा एजेन्सी के हाथ लग गया तो अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर हमारी बड़ी किरकिरी हो जाएगी लेकिन उसने लौटने से साफ शब्दों मे मना कर दिया है। …क्या उसके बारे मे हिन्दुस्तानियों को पता है? …पता नहीं जनाब। …जनरल फैज आपको आईएसआई का चार्ज यही सोच कर दिया गया है कि आप्रेशन खंजर की फाईल और उससे जुड़े हुए लोगो को हमेशा के लिये बन्द कर दिया जाये। इस आप्रेशन का जिक्र फिर कभी नहीं होना चाहिये।

…जनाब, आज आपके पास आने का दूसरा कारण था। कोडनेम वलीउल्लाह की असलियत खुल गयी है। वलीउल्लाह ने हमसे संपर्क साधा है और वह हमारी मदद से तुरन्त वहाँ से सुरक्षित बाहर निकलना चाहती है। हमने अपने लोगो को सक्रिय कर दिया है। पहला मौका मिलते ही हम उसे वहाँ से निकाल देंगें। प्रधानमंत्री ने अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा… मै वलीउल्लाह से मिलना चाहता हूँ। …जी जनाब। अब इजाजत दिजिये। खुदा हाफिज।

जनरल फैज ने करारा सा सैल्यूट किया और आफिस से बाहर निकल गया था। 

रविवार, 7 जनवरी 2024

 

 

गहरी चाल-42

 

फारुख का फोन आने बाद से गोदाम मे अफरातफरी मच गयी थी। पिक-अप और मेरी गाड़ी मे असला बारुद रखा जा रहा था। कैप्टेन यादव की टीम अपने काम मे जुट गयी थी। कुछ सोच कर मै उस कंटेनर की दिशा मे बढ़ गया। मैने उस कंटेनर मे बंधे हुए छह जिहादियों पर एक नजर डाल कर जाकिर मूसा की ओर बढ़ गया। उसकी नब्ज टटोल कर चेक करके उन्हीं सब के सामने उनके ट्रक के अलग-अलग स्थानों मे उनसे जब्त किये सेम्टेक्स को फिट करते हुए नीलोफर से कहा… मेरी जान आओ आज तुम्हें चांद पर ले जाने का रास्ता दिखाता हूँ। नीलोफर ने घूर कर मेरी ओर देखा तब तक मेरे हाथ मे ग्रेनेड को देख कर अन्दर और बाहर वालों की सभी आँखे मुझ पर टिक गयी थी। जैसे ही मैने उस ग्रेनेड का पिन निकाला सबकी साँस गले मे अटक गयी थी। नीलोफर फटी आँखों से अब सारा दृश्य देख रही थी। उसके चेहरे पर भी आतंक झलकने लगा था। मैने एक-एक करके उन्हीं के पाँच ग्रेनेड के पिन निकाल कर सिरीज मे जोड़ कर एक टूलबाक्स मे फिट करके उनके बीच मे रखते हुए कहा… भाईजान, चांद पर पहुँचने के लिये यह राकेट का छोटा सा हिस्सा है। इस टूलबाक्स को कस कर पकड़ कर रखना क्योंकि अगर यह हिला और अकारण कनेक्शन टूट गया तो तुम सबके हिस्से की हूरें किसी को भी पहचान नहीं पाएँगी। इसलिये ट्रक चलते ही संभाल के इसको पकड़ कर बैठ जाना।

ऐसे ही सीरीज मे ग्रेनेड जोड़ कर मैने चार लड़ियाँ तैयार करके ट्रक के चारों कोनों मे सेम्टेक्स के साथ जोड़ कर रख दिये थे। अब सर्किट पूरा करने का समय आ गया था। डेटोनेटर और फ्युज को दिखाते हुए मैने कहा… यह तुम्हारे राकेट का पुँछ्ल्ला है जिसका एक सिरा तुम्हारे सेम्टेक्स से जुड़ा हुआ है और दूसरा हिस्सा टाइमर के साथ जोड़ कर ग्रेनेड के साथ जोड़ दिया है। इसकी रिमोट सेन्सिंग डिवाईस आगे ड्राइवर केबिन मे रखा हुआ है। अगर चलते हुए ट्रक उड़ाने की सोची तो वह भी करके देख लेना क्योंकि ड्राईवर केबिन को कुछ नहीं होगा। बंद कंटेनर अब एक चलता फिरता बोम्ब बन गया है। विस्फोट अन्दर ही प्रभाव डालेगा, बाहर नहीं। सभी आँखें फाड़े मुझे काम करते हुए देख रहे थे। नीलोफर ट्रक से बाहर खड़ी हुई विस्मय से मुझे सारे कनेक्शन जोड़ते हुए देख रही थी। ऐसा ही दृश्य एक रात श्रीनगर की जामिया मस्जिद मे मैने देखा था जब वह जिहादी मेरी तेजी से चलती हुई उँगलियों को आश्चर्य से देख रहा था। अपना काम समाप्त करके मैने कंटेनर के दरवाजे को बन्द करके आखिरी कनेक्शन लगा कर नीलोफर से कहा… मेरी जान, आओ अब तुम्हें चांद पर घुमा कर लाता हूँ। उसे ड्राईवर केबिन मे बैठा कर मै आराम से चलता हुआ ड्राइविंग सीट पर बैठ गया था। हाथ मे पकड़ा हुआ रिमोट अपनी जेब मे रख कर ट्रक स्टार्ट किया और हम त्रिशुली रेस्त्रां की ओर चल दिये थे।

कैप्टेन यादव अपने साथियों को लेकर पिक-अप से पहले ही जा चुका था। …समीर, तुम यह क्यों कर रहे हो? …सिर्फ इसलिये क्योंकि तुमने आफशाँ को इस काम मे उलझाया है। वह चुपचाप बैठी अपने फोन को देख रही थी। …तुम चाहो तो अपने यार को फोन पर खबर कर सकती हो। …तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसा बोलते हुए। अगर मेरा कोई यार है तो वह आज भी तुम ही हो। मैने उसकी ओर देखा तो वह किसी गहरी सोच मे डूबी हुई थी। मै उस रेस्त्रां पर पहुँचने की जल्दी मे नहीं था। …समीर, तुम समझने की कोशिश करो यह सब हमारे करार होने से पहले हुआ था। …नीलोफर, मुझे इस बात का दुख है कि अगर तुम मुझे पहले आफशाँ के बारे मे बता देती तो आज वह अपनी बेटी के साथ सुरक्षित अपने घर पर बैठी हुई होती। अपने सिर को झटक कर मैने कहा… छोड़ो पुरानी बातें। अब जो हो गया है उसको तो बदला नहीं जा सकता लेकिन सच पूछो तो मै भी तुम्हारी तरह कोई दूध का धुला नहीं हूँ। मैने भी तुम्हें एक नहीं दो बार धोखा दिया है। मैने ट्रक चलाते हुए उसकी ओर देखा तो वह अबकी बार मुझे बड़े ध्यान से देख रही थी। मैने मुस्कुरा कर कहा… आज अगर हम जिन्दा बच गये तो तुम्हें सारी सच्चायी बता दूँगा लेकिन दोस्ती की खातिर उसके लिये अभी माफी मांग लेता हूँ। अबकी बार उसने कहा… तुम तबस्सुम की बात कर रहे हो? मैने चौंक कर उसकी ओर देखा तो वह मुस्कुरा कर बोली… सच पूछो तो तुमने मुझे धोखा देने के बजाय मुझ पर एक एहसान किया है। मै अब उससे कुछ बोलने की स्थिति मे नहीं था परन्तु मन ही मन साथ बैठी हुई नागिन की अगली चाल के बारे मे सोच रहा था।

मेरे सामने वह हाईवे से जंगल की ओर निकासी मार्ग आ गया था। ट्रक को धीमे करते हुए मैने निकासी मार्ग लेकर फारेस्ट रिजर्व की सड़क पर पहुँच कर कहा… चलो मेरे सीने पर से एक भार कम हो गया। जब भी तुमसे मिलता था तो दिल मे एक ग्लानि महसूस करता था। …दूसरा धोखा कौन सा है? …समय आने पर बता दूँगा। अब सावधान हो जाओ क्योंकि हम उस रेस्त्रां से कुछ दूर रह गये है। मेरी नजरें पिक-अप की तलाश कर रही थी लेकिन मुझे वह कहीं नहीं दिख रही थी। त्रिशुली रेस्त्रां का बोर्ड दिखते ही मैने अपनी ग्लाक-17 पिस्तौल नीलोफर की ओर बढ़ाते हुए कहा… इसका इस्तेमाल मुझ पर करना चाहो तो कर सकती हो लेकिन यह याद रखना कि यहाँ से तुम्हें सिर्फ मै ही बचा कर ले जा सकता हूँ।  रेस्त्रां के बाहर तीन गाड़ियाँ खड़ी हुई थी। मैने अपना ट्रक सड़क से उतार कर दूसरी ओर कच्चे मे लगा दिया और ट्रक से उतरते हुए कहा… फारुख की पार्टी पहुँच गयी है। आओ उससे आखिरी बार तुम भी मुलाकात कर लो। नीलोफर ट्रक से उतर कर मेरे साथ चल दी थी।

रेस्त्रां मे प्रवेश करते ही मेरी नजर फारुख पर पड़ गयी थी। वह एक किनारे मे बैठा हुआ हमारी ओर देख रहा था। नीलोफर को मेरे साथ देख कर उसके चेहरे पर पल भर के लिये शिकन उभरी पर अगले ही क्षण गायब भी हो गयी थी। आज वह पठानी सूट मे था। हम दोनो चलते हुए उसके सामने जाकर बैठ गये थे। मैने एक नजर चारों ओर घुमा कर देखने के बाद कहा… लगता है कि तुमने अपनी सुरक्षा टीम को पहले से ही तैनात कर दिया है। बड़े आत्मविश्वास से वह बोला… मेजर, इस छिनाल को कहाँ से अपने साथ पकड़ लाये। हमारा सौदा तो ताहिर का हुआ था। …मेरे बीवी और बच्ची उसी सौदे का एक हिस्सा है। मै तो इसे बम्पर आफर के तौर पर लाया हूँ। एक के साथ एक फ्री। …ताहिर कहाँ है? …आफशाँ और मेनका कहाँ है? वह कुछ बोलता इससे पहले मैने नीलोफर से पूछा… क्या तुम्हें कुछ खाना है? …नहीं। …मुझे भूख लग रही है। मै अपना आर्डर दे देता हूँ। …मेजर, इस रेस्त्रां के सभी लोग इस वक्त मेरे कब्जे मे है। इसलिये काम की बात हो जाये। मै समझ गया कि उसका सारा सुरक्षा कवच रेस्त्रां मे उपस्थित है।

…अपने आदमी से एक पानी की बोतल ही मंगवा दो। उसने आवाज लगायी… सलमान। काउन्टर के पीछे से एक जिहादी का चेहरा निकला और बाहर निकल कर हमारे करीब आकर खड़ा हो गया था। एके-47 उसके कंधे पर लटकी हुई। …सलमान भाई, कुछ तो खाने को भी पड़ा होगा। भाई एक पानी की बोतल और जो भी बना हुआ पड़ा है वह लाकर दे दो तो बहुत मेहरबानी होगी। सलमान ने मुझे अनदेखा कर दिया और फारुख की ओर देखने लगा तो फारुख ने मुस्कुरा कर कहा… जो भी रखा हुआ है इसे देकर बाहर जाकर देख कि यह अकेला आया है कि इसके साथ कोई और भी है? ऐसा करना अपने साथ दो और आदमियों को लेकर जाना। इसका कोई भरोसा नहीं है। जरा सावधान रहना क्योंकि यह एक फौजी है। सलमान जल्दी से वापिस किचन मे चला गया था। कुछ मिनट के अन्तराल के बाद अपने हाथ मे एक प्लेट मे कुछ पेटिस और समोसे और एक पानी की बोतल लेकर बाहर निकला। उसके पीछे दो और जिहादी हाथ मे स्वचलित राईफलें लेकर बहर आ गये थे। सलमान ने प्लेट और बोतल मेज पर रखी और उन दोनो के साथ बाहर निकल गया था।

…शुक्रिया। इतना बोल कर मै प्लेट पर रखे हुए सामान पर हाथ साफ करते हुए नीलोफर की ओर देखते हुए बोला… तुम भी भूखी होगी। इसमे जहर नहीं है। तुम भी खा सकती हो। उसने भी जल्दी से एक समोसा उठा लिया और खाने बैठ गयी। …मेजर अब काम की बात कर लेते है। ताहिर कहा है? मैने उसे कंटेनर ट्रक की ओर इशारा करते हुए कहा… ताहिर उसमे है। लेकिन उसका दरवाजा खोलने से पहले मेरी बीवी और बच्ची को भी यहाँ बुला लो क्योंकि अगर तुमने उसका दरवाजा जबरदस्ती खोलने की कोशिश की तो उस ट्रक के परखच्चे उड़ जाएंगें। तुम लोगो से जब्त किया हुआ सेम्टेक्स है तो समझ सकते हो कि कैसा विस्फोट होगा। वह मुस्कुरा कर उठ कर खड़ा हो गया और मेरे कन्धे पर हाथ रख कर बोला… मेजर, हम तो वैसे भी उसको मारना चाहते है तो विस्फोट होने से कौन सा हमारा नुकसान होगा। उसने अबकी बार किसी को आवाज नहीं दी बस एक इशारा किया तो चार आदमी काउन्टर के पीछे से निकल कर सामने आ गये थे। सभी आधुनिक हथियारों से लैस थे।

फारुख ने कश्मीरी मे उनसे ट्रक से ताहिर को लाने का हुक्म दिया तो मैने जल्दी से कश्मीरी मे कहा… जबरदस्ती दरवाजा खोलने की कोशिश करोगे तो तुम मे से कोई नहीं बचेगा। तुम्हारी मर्जी है। खोल कर देख लो। उन्होंने फारुख की ओर देखा तो उसने जल्दी से कहा… यह झूठ बोल रहा है। जाओ जैसा कहा है वैसा करो। मै उठते हुए चिल्लाया… ऐसी बेवकूफी मत करना। मेरी बात पर विश्वास नहीं है तो फारुख तुम नीलोफर से पूछ लो। …तुम चारों जाओ। एक पल के लिये वह झिझके और फिर रेस्त्रां से बाहर निकल गये थे। …फारुख तुम कितने जिहादियों को अपने साथ लेकर आये हो? …तुम्हारे लिये गाज़ियों का पूरा लश्कर अपने साथ लाया हूँ। फारुख ने अपनी पिस्तौल नीलोफर की ओर तान कर कहा… छिनाल, यह बता दे कि मेरे नुकसान की भरपाई कैसे होगी? नीलोफर जल्दी से बोली… मुझे मार कर तो तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। मैने बीच मे टोकते हुए कहा… फारुख, मेरी बात मान कर उस ट्रक को मत छेड़ अन्यथा बहुत पछताएगा। …मेजर, मेरे यहाँ से सुरक्षित निकल जाने के बाद तुम्हारी बीवी और बच्ची तुम्हें मिल जाएगी। उसने मुड़ कर शादाब से कहा… इस छिनाल को अपने साथ ले चलो। मैने कुछ नहीं कहा और वह रेस्त्रां की मुख्य द्वार की ओर तेजी से बढ़ते हुए मुड़ कर बोला… खुदा हाफिज।

तभी एक भयंकर विस्फोट हुआ और सामने खड़ा हुआ ट्रक आग की लपटों मे तब्दील होकर जमीन से छह-सात फुट हवा मे उछल गया था। उसके चारों जिहादी जो कंटेनर ट्रक के दरवाजे से जूझ रहे थे वह उस विस्फोट की चपेट मे आ गये थे। उस विस्फोट का प्रभाव इतना भयानक था कि सारा रेस्त्रां हिल गया था। रेस्त्रां के शीशे खील-खील होकर हवा मे बिखर गये थे। उसके असर के कारण दरवाजे के पास खड़ा हुआ फारुख भी हवा मे उछल गया था। काँच के उड़ते हुए टुकड़े धारदार हथियार बन गये थे। फारुख और शादाब भी उस विस्फोट के प्रभाव से अछूते नहीं रहे थे। विस्फोट की आवाज सुनते ही मै नीलोफर पर झपटा और उसे अपनी बाँहों मे बाँध कर लुड़कते हुए गिरी हुई मेज की आढ़ मे चला गया था। रेस्त्रां का वातावरण बारुद मिश्रित धुएं से दुषित हो गया था। कुछ समय तक मुझे साँस लेने मे मुश्किल हो रही थी। नीलोफर का भी हाल मुझ से बेहतर नहीं था। फारुख के जिहादी भी इधर-उधर बिखर गये थे। रेस्त्रां के पीछे उपस्थित जिहादी भी अब तक सामने नहीं आये थे। थोड़ी देर मे धुआँ छटने के बाद मेरी नजर फारुख पर पड़ी तो उसका चेहरा और जिस्म उड़ते हुए शीशों के टुकड़ों से घायल हो गया था। मैने सहारा देकर नीलोफर को उठा कर खड़ा किया था कि तब तक आठ-दस जिहादी रेस्त्रां मे दाखिल हो चुके थे। जमीन पड़े हुए फारुख को उठाते हुए एक जिहादी बोला… भाईजान, क्या हुआ? फारुख ने लड़खड़ाती हुए बोला… पानी की बोतल लेकर आओ। उनमे से एक तुरन्त रेस्त्रां के किचन की ओर चला गया था।

कुछ देर तक वह जब नहीं लौटा तो दर्द से तड़पते हुए फारुख चिल्लाया… खबीस कहाँ मर गया। जल्दी से पानी लेकर आओ। अबकी बार दो आदमी रेस्त्रां के पीछे की ओर भागे तो अगले ही पल धाँय…धाँय…की आवाज सबको सुनायी दे गयी थी। अब सभी सतर्क हो गये थे। सभी के हथियार किचन के दरवाजे की ओर तन गये थे। घायल फारुख के चेहरे पर भी अब तनाव झलकने लगा था। उसने एक नजर बाहर डाली और फिर अपने बचे हुए साथियों से बोला… हथियार और अपने आदमियों को जल्दी से इकठ्ठा करो क्योंकि कुछ देर मे पुलिस यहाँ पहुँचने वाली होगी। पल भर मे ही उसके साथी वहाँ से निकलने की तैयारी मे लग गये थे। हमारी दिशा की ओर इशारा करके बोला… इन दोनो को भी अपने साथ ले चलो। अभी इनसे अपना हिसाब चुकता करना है। …भाईजान, उस विस्फोट की चपेट मे हमारी गाड़ियाँ भी आ गयी है। देखना पड़ेगा कि क्या वह चलने की स्थिति मे हैं कि नहीं। फिलहाल अच्छा यही होगा कि इन दोनो को लेकर जंगल मे चले जाते है। फारुख ने कुंठित स्वर मे कहा… अंधेरा होने तक तो अब हमे जंगल मे रुकना पड़ेगा। इन दोनो को लेकर वहीं चलो। यह बोल कर वह लंगड़ाते हुए रेस्त्रां से बाहर निकल गया। इससे पहले वह हमारे उपर झपटते नीलोफर का हाथ पकड़ कर मै उनकी ओर बढ़ते हुए बोला… यहाँ से जल्दी निकलो। यह बोल कर हम दोनो रेस्त्रां से बाहर निकल आये थे।

अन्दर बैठे होने के कारण बाहर क्या हुआ उसका तो मुझे पता नहीं चला था लेकिन बाहर निकलते ही हमारी नजर बुरी तरह नष्ट हुए ट्रक पर पड़ी जो लोहे के कचरे मे तब्दील हो गया था। अन्दर बैठे हुए जाकिर और उसके साथियों का भी कोई निशान नहीं दिख रहा था। नष्ट हुआ ट्रक अभी भी धू-धू करके जल रहा था। डीजल की दुर्गन्ध हवा मे फैली हुई थी। हम रुक कर विस्फोट का प्रभाव देख रहे थे कि तभी किसी ने पीछे धक्का देकर कहा… आगे बढ़ो। हम चुपचाप सड़क पार करके उँचे पेड़ों के झुरमुटों की ओर चल दिये थे। जंगल मे प्रवेश करते ही दूर से पुलिस की गाड़ी के साईरन की आवाज हमारे कानों मे पड़ी तो सभी ठिठक कर रुक गये थे। फटाफट हमे कवर करके वह सब तेज कदमों से चलते हुए जंगल के अंदर बढ़ने लगे। आधे घंटे चलने के बाद एक स्थान पर फारुख ने रोक कर कहा… दो आदमी यहीं पर रुक कर दूर से ही पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखना। बाकी लोग इधर उधर फैल जाओ। वह चलते हुए मेरे पास आकर बोला… मेजर, मेरे आठ गाजियों की मौत तुम्हारे कारण हुई है। इसका हिसाब तो तुम्हें चुकाना पड़ेगा। मै कुछ भी जवाब देने के मूड मे नहीं था लेकिन नीलोफर ने तुरन्त कहा… उनकी मौत का कारण तुम खुद हो। इसने तो तुम्हें रोकने की कोशिश की थी। न चाहते हुए भी मैने कहा… फारुख, तुम्हारी बेवकूफी के कारण ग्यारह गाज़ी आज शहीद हो गये है। पता नहीं तुम कैसे फौजी हो कि इतना भी नहीं समझ सके कि मै अगर अकेला आया हूँ तो मैने अपने लिये कुछ न कुछ तो इंतजाम किया होगा। इतना बोल कर मै एक पेड़ के तने पर पीठ टिका कर बैठ गया था। नीलोफर भी मेरे साथ बैठ गयी थी।

उँचे वृक्षों के मध्य मे एक खाली सी जगह पर रुक गये थे। यह प्रतिबन्धित क्षेत्र था। सड़क पर विस्फोट होने के कारण पुलिस के साथ अब फारेस्ट गार्डस का भी खतरा बना हुआ था। शायद विस्फोट का असर उसके दिमाग पर हुआ था जिसके कारण वह ठीक से सुनने या सोचने की स्थिति मे नहीं था। वह भी पेड़ के तने पर पीठ टिका कर बैठ गया था। उसके साथी इधर-उधर फैल कर निगरानी मे जुट गये थे। मै उसके गाजियों की संख्या गिनने मे व्यस्त्त था। अभी तक की गिनती के हिसाब से दस हथियारों से लैस जिहादियों की मै निशानदेही कर चुका था। अचानक फारुख ने कहा… मेजर, ताहिर उस्मान का काम तो तमाम हो गया है। सोच रहा हूँ कि तुम दोनो को भी यहीं दफना कर वापिस चला जाता हूँ। कैसा ख्याल है? …नेक ख्याल है। मैने नीलोफर की ओर देख कर कहा… तुम मेरे साथ दफन होना चाहोगी? वह मेरी ओर देख कर मुस्कुरा कर बोली… मै तुम्हें वहाँ भी चैन से रहने नहीं दूंगी। फारुख ने घूर कर नीलोफर की ओर देखा और फिर एकाएक मुस्कुरा कर बोला… मेजर, इस नागिन से बच कर रहना। यह जिसको डसती है वह पानी भी नहीं मांगता। नीलोफर कुछ बोलती उससे पहले मैने उसका हाथ पकड़ कर चुप कराते हुए कहा… तुम अपनी चिन्ता करो। फारुख ने मुझे अनसुना कर दिया था।

फारुख कुछ सोच कर बोला… मेजर, तुमने मेरा बहुत नुकसान कर दिया है। …मैने तुम्हारा कौनसा नुकसान कर दिया? एक तरह से तुम्हें तो मेरा शुक्र गुजार होना चाहिये क्योंकि मेरे कारण ही तुम जमात के सर्वेसर्वा बन सके थे। नीलोफर जो अब तक चुप बैठी हुई थी वह बोली… समीर, तुमने आफशाँ से निकाह करके इसका सबसे बड़ा नुकसान किया है। मैने चौंक कर नीलोफर की ओर देखा तो उसके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी झलक रही थी। फारुख के जख्मों पर नमक रगड़ने की मंशा से नीलोफर ने कहा… इसने आफशाँ के लिये क्या कुछ नहीं किया लेकिन तुमने इसके सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया। मैने फारुख की ओर देखा तो उसके चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कान तैर गयी थी। वह नीलोफर को घूरते हुए बोला… छिनाल लगता है कि तू भूल गयी कि कैसे उस रात को मैने अपने साथियों के सामने तेरे जिस्म को रौंदा था। आफशाँ से भले ही मेरा निकाह नहीं हुआ परन्तु वह भी अपनी इज्जत मुझसे नहीं बचा सकी थी। अपने बाप की इज्जत की खातिर उसके जिस्म का भी वही हाल किया था जैसे मैने तेरे साथ किया था। क्यों मेजर कभी सोचा नहीं कि तुम्हारी गैरहाजिरी मे उसके जिस्म की आग को कौन ठंडा कर रहा था?

उसका कटाक्ष सुन कर एक पल के लिये मेरे जिस्म मे आग लग गयी थी। मै कुछ करता उससे पहले नीलोफर ने मेरा हाथ दबाते हुए बोली… समीर यह तुम्हें उकसा रहा है। अपने आप को नियंत्रित करते हुए मैने उससे पूछा… क्या यह सच बोल रही है? उसने कोई जवाब नहीं दिया वह दूसरी ओर देखने लगा थ। मै जानता था कि मिरियम और आफशाँ का निकाह मीरवायज और बट परिवारों के बीच करार को मजबूती देने के लिये किया गया था। अब तक मै संभल चुका था। अबकी बार मैने शान्त स्वर मे कहा… फारुख, तुम इतना जान लो कि हमे मारने की बेवकूफी मत करना। तुम्हारे दिये गये डालर से भरी हुई अटैची अभी भी हमारे पास है। मैने वह अटैची देखी है जिसमे ठसाठस अमरीकन करेन्सी भरी हुई है। …मेजर, वह अटैची मुझे वापिस चाहिये। …फारुख रात होने तक तो यहीं रुकना पड़ेगा। अभी काफी समय है। एक पहेली दे रहा हूँ तब तक उसका हल निकालो। उस विस्फोट मे तुम्हारे चार गाजी नहीं मरे थे बल्कि ग्यारह गाजी मरे थे। अब सोचो कि बाकी सात कौन थे। इसका सही जवाब दे दोगे तो वह अटैची तुम्हारे को इनाम के तौर पर दे दूँगा। इतना बोल कर मै आँख मूंद कर बैठ गया लेकिन फारुख की बात मेरे दिमाग पर लगातार चोट कर रही थी।

आफशाँ से दिमाग हटाने के लिये मै अपनी टीम के बारे मे सोचने बैठ गया। मुझे यकीन था कि वह यहीं कहीं आसपास है क्योंकि जिन तीन जिहादियों को फारुख ने पानी लेने भेजा था वह सब उनकी गोली का शिकार हो गये थे। सावरकर और जमीर भी फारुख का पीछा करते हुए यहाँ पहुँच गये होंगे। कैप्टेन यादव और उसके साथी टीम कहाँ पर है? तभी मुझे अपने दिये गये निर्देश याद आ गये थे। वन मैन, वन बुलैट। मुझे अब फारुख की समझदारी पर भी शक होने लगा था। आप्रेशन खंजर को कार्यान्वित करने की योजना बनाने वाला तो कोई शातिर दिमाग ही हो सकता था। अभी तक मेरे सामने बैठे हुए व्यक्ति ने उस शातिर दिमाग का परिचय नहीं दिया था। फारुख सामने बैठा हुआ किसी सोच मे डूबा हुआ था। …समीर। नीलोफर ने धीरे से कोहनी मार कर दबे हुए स्वर मे कहा… तुम्हारी पिस्तौल अभी भी मेरे पास है। …अभी उसकी जरुरत नहीं है। यहाँ पर उपस्थित हरेक व्यक्ति के हाथ मे ऐसा हथियार है जो एक मिनट मे हजार गोलियाँ फायर करती है। फारुख ने आँखें खोल कर हमारी ओर देख कर कहा… मेजर, क्या इसके साथ तुम भी हमबिस्तर हुए हो? नीलोफर ने तुरन्त कहा… क्यों क्या तू मेरे साथ निकाह करने की सोच रहा है? फारुख ने उसे अनदेखा करते हुए कहा… मेरी सलाह मानो कि इस छिनाल के चक्कर मे मत पड़ना वर्ना बर्बाद हो जाओगे।

फारुख इतना बोल कर चुप हो गया था। इतना तो अब तक मेरे लिये साफ हो गया था कि फारुख ने भारत मे प्रवेश सिर्फ एक योजना को कार्यान्वित करने के लिये किया था। मेजर हया का किरदार बड़ा रहस्यमयी लग रहा था। आज तक वह कभी मेरे सामने नहीं आयी थी। …फारुख, अभी तक तुम्हारी बहन मेजर हया का किरदार मेरी समझ से बाहर है। क्या तुम भाई-बहन इस आप्रेशन खंजर का संयुक्त संचालन कर रहे थे? फारुख ने सिर उठा कर एक बार मेरी ओर देखा और फिर नीलोफर की ओर इशारा करके बोला… इस छिनाल ने नहीं बताया? हया तो इसकी सहेली है। मैने नीलोफर की ओर एक बार देख कर कहा… यह तो बता रही थी कि उसने तो जमात को धाराशायी करने की कसम खा रखी है। अबकी बार अपना सिर झटकते हुए बोला… वह पागल हो गयी है। उसने मेरा जितना नुकसान किया है उतना तो तुम्हारी फौज ने भी अभी तक नहीं किया। पहली बार मैने हंसते हुए कहा… मुझे बेहद खुशी है कि वह कम से कम तुम्हारी बहन तुम्हारी तरह दोगली नही है। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।  

कुछ देर के बाद फारुख ने पूछा… क्या सोच रहे हो मेजर? उसकी आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मैने उसकी ओर देखा तो वह मुझे बड़े ध्यान से देख रहा था। …फारुख, वैसे तो वलीउल्लाह की कहानी तो लगभग समाप्त हो गयी है। इस कोडनेम वलीउल्लाह की असली कहानी क्या है? वह मुस्कुरा कर बोला… तुम अभी तक नहीं समझे कि कोडनेम वलीउल्लाह की क्या कहानी है? मैने गरदन हिला कर कहा… लेकिन मरने से पहले जरुर एक बार कोडनेम वलीउल्लाह का सच जानना चाहता हूँ। इतनी देर मे पहली बार वह जोर से हंस कर बोला… यह मेरी बहन हया के दिमाग की योजना है। मैने चिड़ कर कहा… जिसको तुमने मंसूर बाजवा के कहने पर गद्दार साबित कर दिया था। …मेजर, जिंदगी मे अगर मुझसे एक गलती हुई है तो वह यही है। जब मुझे उसका साथ देने की जरुरत थी तब मै अपनी महत्वकाँक्षा के लिये उसके विरोध मे खड़ा हो गया था। उसे अपने खिलाफ करके मेरी सारी योजना विफल हो गयी। इतना बोल कर वह चुप हो गया था परन्तु मै और भी ज्यादा उलझ गया था। मीरवायज भाई-बहन आखिर क्या योजना को कार्यान्वित करने के लिये भारत मे आये थे?

मैने एक बार फिर से कहा… फारुख तुमने अभी भी कोडनेम वलीउल्लाह की सच्चायी नहीं बतायी है? वह मुस्कुरा कर बोला… एक बार हम दोनो मे बहस चल रही थी कि कौन पहले मेजर बनेगा। उसने कहा था कि मेजर का तो वह नहीं कह सकती लेकिन आईएसआई मे पहली महिला जनरल वही बनेगी। उस वक्त बहस-बहस मे उसने अपनी एक योजना मेरे सामने मजाक मे रखी थी जिसको बाद मे मैने कोडनेम वलीउल्लाह के नाम से भारत मे कार्यान्वित किया था। तुम भी सोच कर देखो कि आईएसआई का एक अधिकारी अगर किसी तरह अपने नेतृत्व को यह विश्वास दिला देता है कि वह ऐसे आदमी के संपर्क मे है जो दुश्मन के सुरक्षा कवच के शीर्ष स्थान पर बैठा हुआ है तो उसका परिणाम क्या होगा? मैने जल्दी से जवाब दिया… वह अधिकारी तुरन्त अपने शीर्ष नेतृत्व की नजरों मे आ जाएगा। अबकी बार फारुख मुस्कुरा कर बोला… मैने भी बस यही किया था। उसके चेहरे पर एक गर्वीली चमक आ गयी थी।

कुछ ऊँघते और कुछ बातचीत करते हुए दोपहर ढल चुकी थी। फारुख उठ कर खड़ा हो गया और चलते हुए कुछ दूर निकल गया था। किसी से फोन पर बात करके थोड़ी देर के बाद चहलकदमी करते हुए वह वापिस आकर अपने एक साथी से बोला… किसी को सड़क पर भेज कर पता करो कि पुलिस अभी तक वही है या चली गयी? नीलोफर ने एक बार फिर से फुसफुसा कर कहा… यहाँ से निकलने की कोशिश करने के बजाय तुम हथियार डाल कर बैठे हुए हो। …तुम बताओ कि इन हालात मे क्या करना चाहिये? दो आदमी यहाँ से रेस्त्रां के बीच मे छिप कर बैठे हुए है और बाकी लोग इधर-उधर फैले हुए है। एक या दो आदमी होते तो शायद कोई कोशिश कर सकते थे परन्तु अभी हम कुछ भी करने की स्थिति मे नहीं है। हम अभी बात कर रहे थे कि उस आदमी ने आकर फारुख से कहा… पुलिस अपना काम खत्म कर चुकी है। सेना की दो गाड़ियाँ तो जा चुकी है कुछ देर मे बाकी लोग भी वापिस चले जाएँगें। नेपाल सेना ने उस ट्रक को अपने कब्जे मे ले लिया है।

मै समझ गया था कि क्यों अभी तक मेरे साथियों ने हमला नहीं बोला था। वह नेपाल सेना के सामने एक्शन लेने के पक्ष मे नहीं है और सही समय का इंतजार कर रहे है। अब मुझे सारी स्थिति समझ मे आ गयी थी। हलका सा अंधेरा होते ही फारुख हमारे पास आकर बोला… मेजर, चलो चल कर वह अटैची मुझे देकर विदा करो। …अभी तक मेरे बीवी और बच्ची मुझे नहीं मिले है। …वह दोनो भी मिल जाएँगें। चलो अब समय मत खराब करो। अपनी पैन्ट झाड़ते हुए मै खड़ा हो गया और फिर हाथ बढ़ा कर नीलोफर को सहारा देकर खड़ा किया। फारुख अपने साथियों को इकठ्ठा करने के लिये कह कर मेरे पास आकर बोला… मेजर वह अटैची कहाँ है? …पहले मेरे बीवी और बच्ची को मेरे हवाले करो तभी उस अटैची को दूँगा। उसने पिस्तौल निकाल कर नीलोफर के सिर की ओर इशारा करके कहा… तुम्हारी बीवी और बच्ची मेरे पास यहाँ पर नहीं है। हम बड़ी सावधानी  रेस्त्रां की ओर बढ़ रहे थे। अचानक फारुख बोला… आज सुबह पता चला कि रास्ते मे आते हुए तुम्हारी बीवी और बच्ची को माओइस्ट उठा कर ले गये है। जिस ट्रक मे वह आ रहे थे वह भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है और एक नये ट्रक का इंतजाम किया जा रहा है। इतना बोल कर वह चुप हो गया था। उसी क्षण मै समझ गया था कि दोपहर से वह मेरे साथ दिमागी जंग मे उलझा हुआ था।

उसके साथ चलते हुए मैने पूछा… तुम्हें यह खबर किसने दी? …सच पूछो यह खबर तुमने ही मुझे दी थी। उसी ट्रक मे बैठ कर आने की तुम्हें जरुरत क्या थी? मुझे यकीन है कि तुम उस ट्रक मे आकर मुझे कोई चुनौती देना चाहते थे। अबकी बार हैरान होने की मेरी बारी थी। …तो जब तुम्हें पता चल गया था कि मेरी बीवी और बच्ची सकुशल मेरे पास पहुँच गये है तो फिर उस ट्रक मे विस्फोट करने की क्या जरुरत थी? …मेजर तुम नहीं समझ सकते। मेरे सारे गाज़ी तुम्हारे को उस ट्रक से उतरते हुए देख कर अपने साथियों की असफलता के बारे जान गये थे। उनको पता चलना चाहिये कि असफलता का क्या परिणाम होता है। आज यहाँ से बच कर निकलने के लिये उन सभी को यह समझाना जरुरी था कि यहाँ असफलता का परिणाम सिर्फ मौत है। मै उसका चेहरा देखने लगा लेकिन वह किसी और ही सोच मे डूबा हुआ था। कुछ कदम चलने के बाद मैने पूछा… किस सोच मे डूबे हुए हो? फारुख एक पल के लिये चलते हुए रुक गया था। वह मेरी ओर देखते हुए बोला… मै जानना चाहता हूँ कि आखिर वहाँ रेस्त्रां मे तुम्हारे आने का मकसद क्या है? हमारी बात सुन कर नीलोफर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ी हुई थी। …तुम बताओ कि मै किस मकसद से वहाँ आया था? …मेजर, तुम्हारे आने का एक ही मकसद हो सकता था कि वलीउल्लाह की गोपनीयता बनाये रखने के लिये तुम्हें मेरी हत्या करनी जरुरी है। अब मुझे साथ चलते हुए आदमी के बारे मे पुनर्विचार करने की जरुरत थी। अभी भी उसके चेहरे पर हल्की सी शिकन नहीं थी। तभी दूर कहीं गोली चलने की आवाज कान मे पड़ी तो मैने और नीलोफर ठिठक कर रुक गये थे। फारुख घुर्राया… मेजर, चलते रहो। मेरे गाजियों ने तुम्हारे लिये खतरा साफ किया है।

हम वापिस सड़क पर पहुँच गये थे। पुलिस और सेना जा चुकी थी और रेस्त्रां अंधेरे मे डूबा हुआ था। नेपाल सेना के चार सैनिक रेस्त्रां के दरवाजे के सामने निर्जीव पड़े हुए थे। सड़क का कुछ हिस्सा बल्ब की लाइट मे रौशन था परन्तु अधिकांश हिस्सा अंधेरे मे डूबा हुआ था। लोहे के कचरे के आकार मे कंटेनर ट्रक अभी भी उसी स्थिति मे सड़क के किनारे पड़ा हुआ था। फारुख की दस हथियारबंद गाज़ियों की फौज ने सड़क पर फैल कर हम दोनो को कवर कर लिया था। तभी रेस्त्रां से कुछ साये बाहर निकलते हुए दिखे तो फारुख ने जल्दी से अपने साथियों से कहा… अपने लोग है। गोली मत चलाना। मेरी नजर अंधेरे मे बढ़ते हुए सायों पर टिक गयी थी। जैसे ही उन्होंने रौशनी मे कदम रखा तो एक पल के लिये मेरा जिस्म ठंडा पड़ गया था। मेरे रोंगटे खड़े हो गये थे। मकबूल बट धीमे कदमो से चलता हुआ मेरी ओर आ रहा था। उसके साथ आफशाँ भी थी। उनके पीछे दो जिहादी चल रहे थे। कुछ पल के लिये मेरा हलक सूख गया था। …क्या हुआ मेजर? फारुख की आवाज मेरे कान मे पड़ी लेकिन मै समझ गया था कि मै यह बाजी हार चुका था।

आफशाँ मुझे देख कर एक पल के लिये ठिठक कर रुक गयी थी। उसके पीछे चल रहे जिहादी ने अपनी गन से उसे आगे की ओर ठेला तो वह चलते हुए मेरे पास आकर खड़ी हो गयी थी। अबकी बार फारुख ने मेरी ओर घूरते हुए कहा… मेजर, इस बार तुम अपने मकसद मे असफल हो गये। मै अब यहाँ से जिन्दा वापिस जाऊँगा। अब तुम सब की जिंदगी बस एक बात पर टिकी हुई है कि उस ट्रक का सामान और इसकी अटैची मुझे वापिस चाहिये। मैने एक बार नजर घुमा कर चारों ओर का जायजा लिया और फिर फारुख की ओर रुख करके कहा… मै इतनी देर से एक बात सोच रहा था कि आखिर सब कुछ जानने के बाद भी तुमने अभी तक हमे क्यों जिन्दा छोड़ा हुआ है? इस प्रश्न का उत्तर बिना पूछे ही तुमने स्वयं ही दे दिया है। …वह पैसे मेरे है और हथियार इन सबके लिये है। तभी मकबूल बट ने टोकते हुए कहा… उसमे मेरा भी हिस्सा है फारुख। …जनाब तो आप ही अपने फर्जन्द से कहिये कि वह जल्दी से हमारा सामान वापिस कर दे। मकबूल के घृणा भरे स्वर मे कहा… इस काफिर की औलाद से मेरा कोई संबन्ध नहीं है। इस आस्तीन के साँप को मैने एक मुगालते मे पाला और इसी मे मुझे कहीं का नहीं छोड़ा। मकबूल बट को अनसुना करके मैने दबी आवाज मे आफशाँ से पूछा… तुम ठीक हो। उसने पल्कें उठा कर एक बार मेरी ओर देख कर धीरे से बोली… अदा भी अब्बू के कब्जे मे है। मैने उसके कन्धे को धीरे से दबा कर कहा… सब ठीक हो जाएगा। तुम चिन्ता मत करो।

फारुख अपने फरार होने की योजना बनाने मे व्यस्त था तो मैने धीरे से आफशाँ से पूछा… तुम अब्बू के पास कैसे पहुँच गयी? तुम दोनो को तो फ्लैट पर सुरक्षित छोड़ दिया था। …तुम नहीं जानते। अदा इनके कब्जे मे है। अब्बू ने फोन पर अदा की हत्या की धमकी देकर मुझे होटल येती पहुँचने के लिये कहा था। मेनका को थापा के हवाले करके खाने का सामान लाने के बहाने मै होटल येती पहुँच गयी थी। …अदा कहाँ है? …वह होटल मे तो नहीं थी। मैने धीरे से उसके कन्धे को सहलाते हुए कहा… तुम चिन्ता मत करो। बस मौका देखते ही जंगल मे चली जाना। आफशाँ ने कुछ नहीं कहा बस अपना सिर हिला दिया था। मै समझ गया था कि यह बाजी शुरु होने से पहले ही मै हार चुका था। फारुख अब तक अपने सारे पत्ते छिपा कर बैठा हुआ था। मेरा मनोबल तोड़ने के लिये वह एक-एक करके अपने पत्ते दिखा रहा था। एक आस अभी भी मुझे हार मानने से रोक रही थी। कैप्टेन यादव की टीम अभी तक सामने नहीं आयी थी। मुझे विश्वास था कि वह यहीं कहीं छिप कर सारी स्थिति पर नजर रख रहे है और उप्युक्त समय आने पर जवाबी कार्यवाही जरुर करेंगें।

कुछ रुक कर मैने उन दोनो की ओर रुख करके कहा… यह तो तुम भी जानते हो कि वह सामान यहाँ तो मेरे पास नहीं है। उस सामान को लाने के लिये तो मुझे जाना पड़ेगा। अबकी बार फारुख ने बड़ी दृड़ता से कहा… मेजर, जब तक मुझे मेरा सामान और अटैची नहीं मिल जाते तब तक यहाँ से कोई वापिस नहीं जायेगा। …तो क्या अपने आप हवा मे उड़ कर तुम्हारा सामान यहाँ आ जाएगा? अपने दिमाग का इस्तेमाल करने की कोशिश करो क्योंकि मेरे जाये बिना तुम्हें यह दोनो चीजे नहीं मिल सकती। वह कुछ सोचने लगा कि तभी मैने कहा… फारुख, इसकी क्या गारंटी है कि सारा सामान मिल जाने के बाद तुम हमको जाने दोगे। इसलिये हमारी शर्त सिर्फ इतनी है कि जान के बदले मे ही सामान और अटैची तुम्हें मिल सकती है। मै यहीं पर तुम्हारे पास हूँ लेकिन इन दोनो को जाने दो। नीलोफर को सामान का पता है। वह सारा सामान लेकर कुछ ही देर मे वापिस आ जाएगी। फारुख ने पास खड़े हुए एक जिहादी से कहा… इरफान, क्या हमारी गाड़ियाँ चलने लायक स्थिति मे है? इरफान फौरन अपने साथ एक जिहादी को लेकर रेस्त्रां के सामने खड़ी हुई तीन स्टेशन वैगनों की ओर चला गया था।

विस्फोट का असर तो सभी गाड़ियों पर हुआ था। उनके सारे कांच टूट कर सड़क पर बिखर गये थे। बाहरी चादर भी जगह-जगह से दब गयी थी और कुछ के जोड़ भी खुल गये थे। सबकी नजर उन गाड़ियों की ओर चली गयी थी। एक स्टेशन वेगन तो चाबी लगाते ही स्टार्ट हो गयी थी। इरफान ने गियर डाल कर जैसे ही उसको आगे बढ़ाया तो जोर से किसी चीज के टकराने की आवाज आने लगी थी। दूसरी स्टेशन वेगन स्टार्ट भी नहीं हो सकी थी। तीसरी स्टेशन वेगन का भी वही हाल था। सारी गाड़ियों को चेक करने के बाद इरफान ने आकर कहा… भाईजान, कोई भी स्टेशन वेगन चलने की स्थिति मे नहीं है। फारुख ने गुस्से से जमीन पर ठोकर मार कर बोला… बट साहब आपकी गाड़ी कहाँ है? मकबूल बट ने कुछ दूरी पर अंधेरे मे खड़ी हुई कार की ओर इशारा करके कहा… वहाँ खड़ी है। …एक गाड़ी मे तो हम सब नहीं जा सकते तो जल्दी से यहाँ से निकलने का इंतजाम करो। फारुख से कुछ देर दबी आवाज मे मकबूल बट और इरफान से बात करने के बाद कहा… ठीक है। इरफान अपने दो साथियों के साथ जाकर किसी गाड़ी का इंतजाम करो जिससे हम सब यहाँ से जल्दी से जल्दी निकल सके। इरफान अपने साथ दो जिहादियों को लेकर मकबूल बट की कार मे बैठा और हाईवे की ओर चला गया। मै भले ही उनको देख रहा था परन्तु मेरा दिमाग अपने साथियों की ओर लगा हुआ था। कैप्टेन यादव की टीम को क्या हो गया है? उनके सामने आने का यह सबसे उप्युक्त समय था। अब मुझे उनकी चिन्ता सताने लगी थी।

जाती हुई कार की लाल टेललाइट नजर से ओझल होते ही फारुख ने कहा… मेजर, तुम्हारे कारण देर होती चली जा रही है। मैने उसकी बात को अनसुना कर दिया था क्योंकि मेरी नजर विपरीत दिशा मे दूर सड़क पर एक गाड़ी की हेडलाइट पर पड़ी जो हमारी दिशा मे तेजी से बढ़ रही थी। अभी तक किसी का ध्यान उस ओर नहीं गया था क्योंकि सभी का ध्यान इरफान की गाड़ी की ओर लगा हुआ था। परन्तु मेरी नजरों का पीछा करते हुए फारुख की नजर भी उस गाड़ी की हेडलाइट पर पड़ी तो वह जोर से चिल्लाया… सावधान। अपने हथियार पीछे छिपा लो। कोई गाड़ी आ रही है। सेना या पुलिस की पेट्रोल पार्टी हो सकती है। सभी ने जल्दी से अपने हथियार पीछे की ओर कर लिये और सभी उन खड़ी हुई स्टेशन वैगनों को घेर कर उसके आसपास खड़े हो गये थे। सभी की नजरें उस आती हुई गाड़ी पर टिक गयी थी।