गहरी चाल-44
पिछली रात को मैने
नोट किया था कि वार्ड मे सारी नर्से अपने नर्सिंग स्टेशन पर तैनात रहती है जिसके कारण
कारीडोर खाली हो जाता है। मरीजों के साथ रुकने वाले सहायक ही कभी पानी लेने के लिये
अथवा टहलने के लिये कारीडोर मे दिख जाते है। आज सुबह ही कैप्टेन यादव सादे कपड़ों की
एक जोड़ी देकर गया था। वही सादे कपड़े बदल कर मै चलने के लिये तैयार हो गया था। एक बार
धीरे से दरवाजा खोल कर मैने कारीडार का जायजा लिया और जैसे ही एक आदमी को जाते हुए
देखा तो मै भी उसके साथ चल दिया। नर्सिंग स्टेशन पर सभी लोग अपने कामो मे व्यस्त थे।
उनके सामने से निकलते हुए मैने उस व्यक्ति से पूछा… कैन्टीन कहाँ है? उसने भी चलते
हुए कहा… मै वहीं जा रहा हूँ। आप मेरे साथ आ जाईये। बिना किसी रुकावट के हम नर्सिंग
स्टेशन के सामने से निकल गये थे। अभी तक किसी का ध्यान हमारे उपर नहीं गया था। कैन्टीन
अस्पताल के मुख्य द्वार के साथ ही थी जिसके कारण बिना किसी रोकटोक के मै आसानी से अस्पताल
से बाहर आ गया था। एक किनारे मे लाइन से कुछ टैक्सी लगी हुई थी। एक टैक्सी लेकर मै
अपने फ्लैट की ओर चल दिया। मन मे अनेक विचार आ रहे थे परन्तु आज अंजली से मिलने की
ठान कर निकला था। कुछ देर के बाद अपने घर के बाहर जैसे ही उतरा तो लोहे के गेट पर तैनात
बहादुर भागते हुए मेरे पास आया मैने इशारे से चुप किया और पूछा… मेमसाहब उपर है? उसने
सिर्फ अपना सिर हिला दिया था। उसको वहीं छोड़ कर मै अन्दर चला गया और सिड़ियाँ चढ़ते हुए
अपने फ्लैट के दरवाजे के सामने पहुँच कर एक पल के लिये खड़ा हो गया था। एक अजीब सी झिझक
और कुछ खोने का डर जहन पर छाया हुआ था।
मैने दरवाजे को धीरे
से धकेल कर देखा तो वह अन्दर से बन्द था। कुछ सोच कर मैने दरवाजे पर दस्तक दी और खुलने
का इंतजार करने लगा। जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो एक बार फिर से जोर से दस्तक दी
तो इस बार ड्राईंग रुम की लाइट जली तो समझ गया कि कोई दरवाजा खोलने के लिये आ गया है।
एक खटके के साथ दरवाजा खुला तो सामने अंजली खड़ी हुई थी। …आप। मुझे देख कर वह चौंक गयी
थी। मै भी उसको देखता रह गया था। तभी अचानक उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगी और उसको
रोता देख कर मुझे लगा कि किसी ने मेरा दिल निचोड़ दिया था। सब कुछ भूल कर मैने आगे बढ़
कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ लिया तो वह सिसक कर बोली… आपको तो वह दो दिन के बाद डिस्चार्ज
करने वाले थे। …मै अस्पताल छोड़ कर भाग आया। इतने दिन से अस्पताल मे पड़ा हुआ हूँ और
तुम एक बार भी मिलने नहीं आयी तो मै आज तुमसे मिलने खुद चला आया। मेरे जहन मे अनेक
प्रश्न थे परन्तु उसको देख कर मै सब कुछ भूल
गया था। मैने दरवाजा भिड़ाते हुए पूछा… तुम अब तक जाग रही थी? उसने कोई जवाब नहीं दिया
तो उसके चेहरे को अपने हाथों मे लेकर कहा… झांसी की रानी रोते हुए अच्छी नही लगती।
वह मुझसे अलग होते हुए बोली… इस वक्त आपको अस्पताल मे होना चाहिये था।
उसको अनसुना करके
अपने साथ उसे बेडरुम मे ले जाते हुए मैने पूछा… तुम अस्पताल क्यों गयी थी? उसने जब कोई जवाब नहीं दिया तो उसको जबरदस्ती बेड
पर लिटाते हुए मैने कहा… तुम्हें आराम की जरुरत है। यह कह कर मै भी उसके साथ लेट गया।
…थोड़ी ब्लीडिंग के कारण मुझे अस्पताल मे रुकना पड़ा था। कोई चिन्ता की बात नहीं है।
…तुम समझ नहीं सकती कि मेरी क्या हालत थी। जब से अम्माजी ने तुम्हारे अस्पताल जाने
की बात बतायी थी तब से मन मे एक बैचेनी थी। उस कमरे मे अकेले होने के कारण दम घुटता
हुआ लग रहा था। तुम्हें तो वहाँ मेरे साथ होना चाहिये था। वह चुपचाप लेटी रही। रात
के सन्नाटे मे उसकी चुप्पी मुझे अखरने लगी। कुछ पूछने के लिये मैने उसकी ओर देखा तो
अचानक वह उठ कर बैठ गयी और सिर झुका कर बोली… मै वह नहीं हूँ जो आप मुझे आज तक समझ
रहे थे। मैने एक बार फिर से उसको अपनी बाँहों मे कस कर अपने साथ लिटाते हुए कहा… मै
जानता हूँ। जब हमने दोजख तक साथ रहने की कसम खायी है तो फिर तुम्हारा नाम तबस्सुम हो
या हया इससे क्या फर्क पड़ता है। उसने भीगी पल्कों से मुझे देखा और एक बार फिर से फफक
कर रो पड़ी थी। जब उसका मन शांत हो गया तो वह बोली… मै आफशाँ को नहीं बचा सकी। एक पल
के लिये मुझे गहरा धक्का लगा लेकिन शायद मै इस खबर के लिये इतने दिनो मे तैयार हो गया
था। आटोमेटिक एके-47 के क्रासफायर मे फँसने का मतलब एक गोली के बजाय पाँच-दस गोलियाँ
होती है। उसका बचना तो नामुम्किन था यह अब तक मै दिमागी रुप से मान चुका था। अब उसकी
पुष्टि भी हो गयी थी। कुछ देर मै चुप रहा तो वह बोली… उसकी अंतिम क्रिया मैने मेनका
के हाथों से करवा दी थी। मै कुछ नहीं बोल सका था। आफशाँ की मौत का दर्द तो मेरे जहन
मे धीरे-धीरे बैठ रहा था।
जब मन शान्त हो गया
तो मैने गहरी साँस लेकर उसकी ओर देखा तो वह किसी सोच मे डूबी हुई थी। काफी देर चुप्पी
खिंचने के कारण वह कराहते हुए उठ कर बैठते हुए बोली… क्या आप मेरी सच्चायी पहले से
जानते थे। मैने मना करते हुए कहा… जब फारुख ने तुम्हारा नाम लिया तब मुझे पहली बार
इसका एहसास हुआ था। उसके बाद तुम्हारे हाथ मे बेरेटा देख कर समझ गया कि तुम स्कूली
छात्रा तो हर्गिज नहीं हो सकती मेजर हया इनायत मीरवायज। पता नहीं क्यों अभी तक यह नाम
बोलते हुए मुझे झिझक हो रही थी परन्तु जब उसका नाम मेरे मुख से अनायस निकला तो मुझे
कुछ अजीब नहीं लगा था। …मेनका कहाँ है? …गेस्ट रुम मे सो रही है। एक चैन की सांस लेकर
मै उसके साथ लेट गया था। अचानक वह मेरी ओर करवट लेकर धीरे से बोली… श्रीनगर मे आपके
घर पर हमला मैने करवाया था। इतना बोल कर वह एकाएक चुप हो गयी थी। उसने धीरे से मेरा
हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा… मेरा यकीन किजीए वह दोनो कभी भी मेरे निशाने पर नहीं थी।
मेरे निशाने पर आप थे परन्तु नीलोफर की गलत सूचना के कारण वह मेरा एक असफल आप्रेशन
था। मै आपकी गुनाहगार हूँ। धीरे से उसके बालों को सहलाते हुए मैने पूछा… मेरे साथ तुम्हारी
कैसी दुश्मनी मेजर? उसने एक बार डबडबायी आँखों से मुझे देखा और फिर बोली… मैने बड़ी
मेहनत से तीन साल मे जमात का पूरा वित्तीय और कार्यकारी ढाँचा कश्मीर मे खड़ा किया था।
मैने जमात के लिये कश्मीर मे एक ऐसा पुख्ता चरमपंथी तंजीमों और स्थानीय प्रशासन का
नेटवर्क तैयार कर किया था जो कभी कोई सोच नहीं सकता था परन्तु आप न जाने कहाँ से बीच
मे आ गये और सब कुछ तहस-नहस हो गया। जामिया मस्जिद के ब्लास्ट के कारण मंसूर बाजवा
को मौका मिल गया और उसने मुझे कश्मीर डेस्क से हटा कर जीएचक्यू रावलपिंडी के आफिस मे
बिठा दिया था। उसके बाद मुरी की घटना ने मुझे सेना छोड़ने पर मजबूर कर दिया और जब कोर्ट
मार्शल की रिपोर्ट आयी तो मेरे पास वहाँ से भागने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा था।
इसके बाद मीरवायज परिवार ने भी मुझसे अपने सभी रिश्ते तोड़ दिये थे। उन्हीं दिनो मुझे
नीलोफर से पता चला कि आपके कारण ही मेरा मुस्तकबिल तबाह हुआ था तो आपसे बदला लेने के
लिये मैने अपने पुराने हिजबुल के साथियों के द्वारा उस रात को आपके घर पर हमला करवाया
था।
मै अभी तक उसकी बात
चुपचाप सुन रहा था। मैने महसूस किया कि ब्रिगेडियर शुजाल बेग के डोजियर पढ़ने के पश्चात
उसके प्रति काफी हद तक मेरे मन का द्वेश कम हो चुका था परन्तु अम्मी और आलिया की हत्या
को भला मै कैसे भुला सकता था। अब उसकी कहानी सुन कर मन मे अन्तर्विरोधी भावनाओं के
कारण अजीब सी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। मै कुछ बोलता उससे पहले वह मुझसे अलग हो कर
बोली… आप इतना मत सोचिये। आपको एक बार देखने के लिये रुकी हुई थी। कल सुबह होने से
पहले मै यहाँ से चली जाऊँगी। अचानक उसके जाने की बात सुन कर दिमाग मे छाये हुए असमंजस
के बादल एकाएक पल भर मे स्वाहा हो गये थे। मैने झपट कर उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर
सीने से लगा कर कहा… अंजली, मेजर हया इनायत मीरवायज का तो उसी दिन अंत हो गया जिस दिन
तुमने मुझसे निकाह किया था। अब मुझे छोड़ कर जाने की बात सोचना भी नहीं। वह अपना चेहरा
मेरे सीने मे छिपाये कुछ देर लेटी रही तो अपनी उलझनो के सुलझाने के लिये मैने पूछ लिया…
एक बात मुझे समझ नहीं आयी कि सब कुछ जानने के बाद तुम्हारे पास इतने मौके थे कि तुम
बहुत आसानी से अपना बदला ले सकती थी फिर क्यों नहीं लिया? वह कुछ पल चुप रही तो मैने
झुक कर उसको देखा तो उसकी आँखें से निकलने वाले आँसू मेरी शर्ट भिगो रहे थे। मै भी
उसके मन मे उठने वाले अन्तरविरोध को समझ रहा था। एक तरह से हम दोनो ही हालात के चक्रव्युह
मे ऐसे फँसे युगल की थी कि कोई कुछ भी करने की स्थिति मे नहीं था।
कुछ पल रुक कर वह धीरे से बोली… आपकी अम्मी और बहन की हत्या का
भार पहले से ही मेरे सिर पर था। मै भी आखिर फौजी हूँ तो भला इतनी बड़ी गलती की भरपाई
कैसे करती। कोर्ट मार्शल की सजा को खुदाई न्याय समझ कर मै सब कुछ छोड़ कर बलूचिस्तान
मे गुमनामी की जिंदगी गुजार रही थी। एक दिन जब मुझे नीलोफर से पता चला कि मिरियम की
श्रीनगर मे हत्या हो गयी है तब एक बार फिर से मैने वापिस आने का निर्णय लिया। उसकी
बात बीच मे काट कर मैने पूछा… तो नीलोफर के साथ मिल कर तबस्सुम की कहानी तुमने गड़ी
थी? एक पल के लिये वह खामोश हो गयी फिर उसने निगाह उठा कर जिस तरह से मुझे देखा तो
उसी क्षण मेरे लिये सब कुछ साफ हो गया था। वह धीरे से बोली… आपके साथ कुछ दिन गुजार
कर आपके बारे मे बहुत कुछ समझ मे आ गया था। भले ही आप मुझे तबस्सुम समझ कर लाये थे
परन्तु आपने मुझे अपनी फौज के हवाले नहीं किया क्योंकि फौजी कार्यवाही मे आपने फारुख
की बेटी को उलझाना ठीक नहीं समझा था। अगर आपकी जगह कोई और होता तो अपने निजि हित के
लिये वह तबस्सुम को बिना हिचक कुर्बान कर देता। उसके बाद जब आपके और मिरियम के बारे
मे उस रात को पता चला तो पहली बार मुझे भी मोहब्बत के जज्बे का एहसास हुआ। उसी रात
मैने फैसला कर लिया कि अब आपका साथ कभी नहीं छोड़ूँगी। जमात और बाजवा के कारण मिरियम
की जान गयी थी तो उनको समाप्त करने के लिये आपसे बेहतर कोई और विकल्प मेरे पास नहीं
था। अब मुझे कुछ खुद करने के बजाय बस आपकी मदद करने की जरुरत थी। मैने वही किया जिसके
कारण बाजवा, शरीफ, फारुख और जमात की कहानी का हमेशा के लिये अंत हो गया।
…झाँसी की रानी मुझे
उसी दिन समझ जाना चाहिये था जिस दिन तुमने नाईट कल्ब मे उस लड़के का नशा उतारा था। मेरी
बात सुन कर इतनी देर मे वह पहली बार मुस्कुरायी तो मैने पूछ लिया… मिरियम ने अपने परिवार
के बारे मुझे बताया था परन्तु उसने कभी तुम्हारा जिक्र मुझसे नहीं किया। मेरी ओर करवट
लेकर वह बोली… मिरियम मेरी छोटी बहन थी। उसके पैदा होने से पहले ही मेरे चचा मुझे अपने
साथ इस्लामाबाद ले गये थे। वह बेऔलाद थे तो उन्होंने ही मेरी परवरिश की थी। मेरे चचा
सेना की आर्टीलरी कोर मे कर्नल थे। इसी कारण मेरा झुकाव शुरु से फौज के लिये रहा था।
आईएसआई की कश्मीर डेस्क के कारण मेरा मुजफराबाद आना जाना बढ़ गया तब मेरी मुलाकात मिरियम
से हुई थी। कुछ ही दिनो मे वह मेरे काफी करीब आ गयी थी। जब मुझे पता चला कि श्रीनगर
मे मिरियम की हत्या हो गयी है तो मैने उसी क्षण उसके हत्यारों से बदला लेने के लिये
निकल पड़ी थी।
मेरे सीने मे वह अपना
चेहरा छिपा कर लेटी हुई थी। अचानक मुझे कुछ याद आया तो उसके चेहरे को अपने हाथ का सहारा
देकर उठाया और उसकी नीली आँखों मे झाँकते हुए मैने पूछा… मेजर साहिबा, बेचारी तबस्सुम
का क्या हुआ? …वह जहानाबाद मे मेरे लोगों के बीच सुरक्षित है। मै चौंक कर उठ कर बैठ
गया। …क्या फारुख या पीरजादा ने उसे जहानाबाद मे ढूंढने की कोशिश नहीं की होगी? …उन्हें
इस बात का इल्म नहीं है। तबस्सुम वैसे भी फारुख की बेटी नहीं है। …क्या मतलब? …वह असलियत
मे पीरजादा साहब की बेटी है। …तब फारुख उसके लिये इतना क्यों छ्टपटा रहा था? …वह फारुख
की मंगेतर है क्योंकि पीरजादा साहब ने उसके पैदा होते ही भविष्यवाणी की थी कि तबस्सुम
का खाविन्द ही उनकी गद्दी पर बैठेगा। फारुख उसके जरिये फिरके की गद्दी पर काबिज होना
चाहता था। मीरवायजों के रिश्तों के जाल मे मेरा दिमाग उलझ कर रह गया था। मुझे थकान
महसूस होने लगी थी। उसके समीप बिस्तर पर फैलते हुए मैने कहा… अब मुझे छोड़ कर जाने की
बात कभी मन मे नहीं लाना। कल सुबह तुम मेरे साथ अस्पताल चलोगी और तब तक वहीं रहोगी
जब तक मै डिस्चार्ज नहीं होता।
वह धीरे से बोली…
मेरी सच्चायी अगर आपके लोगों को पता चल गयी तो आपके लिये मुसीबत खड़ी हो जाएगी। …अंजली
तभी तो मैने यह सारा कारोबार तुम्हारे लिये काठमांडू मे खड़ा किया है। मेरे सीने मे
अपना चेहरा छिपाते हुए वह बोली… अभी भी वक्त है सोच लिजीये। उसके चेहरे को अपने हाथों
मे लेकर उसके होंठ चूम कर मैने कहा… जब दोजख मे भी साथ रहने का वादा कर लिया है तो
फिर क्या सोचना। अचानक मुझे कुछ याद आ गया था। उसकी आँखों मे झाँकते हुए मैने पूछा…
कैप्टेन यादव बता रहा था कि तुमने फारुख को जिंदा जला दिया। उसका अंत इतना भयानक क्यों?
उसका चेहरा एकाएक तमतमा गया था। कुछ पल वह चुप रही और फिर धीरे से बोली… मेरी हालत
देख कर उसने ऐसी बात कही जिसे मै बर्दाश्त नहीं कर सकी तो मैने गुस्से मे थापा से अपनी
इसुजु से डीजल निकलवाया और उस पर छिड़क कर उसको वहीं काफ़िरों की तरह जिंदा जला दिया
था। शुक्र मनाईये कि आपका कोई आदमी इस बीच नहीं बोला अन्यथा उस रात को वह भी ज़ाया हो
गया होता। मैने जल्दी से उसको शांत करने की मंशा से उसके तमतमाये गालों को सहलाते हुए
कहा… झाँसी की रानी शांत हो जाओ। शांत हो जाओ। उस पर बुरा असर पड़ेगा जिसे तुम इस दुनिया
मे ला रही हो। अब सब कुछ भुला कर तुम अंजली कौल बन जाओ। उसने धीरे से अपना सिर हिला
दिया था।
हमारी आँखों से नींद
कोसों दूर थी। वह अपना सिर मेरे सीने पर रख कर लेटी हुई थी। मै दिल्ली दरबार के बारे
मे सोच रहा था। अचानक वह बोली… भाईजान ने काफ़िर की औलाद को अपनी कोख मे पालने के लिये
मुझे दोजख मे जलने की बद्दुआ दी थी। उनका कहना था कि एक काफिर की हमबिस्तर बन कर मैने
कुफ्र का गुनाह किया था। हया की बात को सुन कर मुझे लगा कि किसी ने मेरे दिल पर नश्तर
से प्रहार किया है। काफिर शब्द मुझे अब एक गाली की तरह लगने लगा था मकबूल बट ने मुझे
काफिर की औलाद बना दिया था। अबकी बार मेरी औलाद को फारुख ने वही नाम दे दिया था। इस
काफिर शब्द से मुझे नफरत होने लगी थी। उसे अपने सीने से लगाये काफी देर तक लेटा रहा।
आधी रात गुजर चुकी थी और नींद हम दोनो पर हावी होने लगी थी। कब हम दोनो ही अपने सपनो
की सुनहली दुनिया मे खो गये पता ही नहीं चला था।
सुबह मुझे अंजली ने
जल्दी से उठा कर बोली… प्लीज आप अस्पताल चले जाईये। मेरी हालत ऐसी नहीं है कि मै आपके
साथ वहाँ रह सकूँ। बस दो दिन की बात है फिर तो आप वापिस यहीं आ जाएँगें। मै उठ कर चलने
के लिये खड़ा हो गया तो अंजली मुझसे लिपट कर बोली… अपना ख्याल रखना। यह सुन कर दरवाजे
की ओर चलते हुए मैने कहा… तुम भी अपना ख्याल रखना। इतनी बात करके मैने गेस्ट रुम का
दरवाजा खोल कर एक बार सोती हुई मेनका को देखा और फिर अपने घर से बाहर निकल आया था।
सड़क सूनी पड़ी हुई थी। मै जब तक कोई यातायात का कोई साधन देखता कि तभी अचानक लोहे का
बड़ा गेट खुला और मेरी इसुजु बाहर निकल कर मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी थी। अंजली ड्राईविंग
सीट पर बैठी हुई मुझे बैठने का इशारा करने लगी तो मै दरवाजा खोल कर उसमे बैठते हुए
बोला… कोई टैक्सी या टेम्पो नहीं दिख रहा है। …इसीलिये मै आपको अस्पताल छोड़ देती हूँ।
कुछ देर के बाद वह मुझे अस्पताल के बाहर छोड़ कर वापिस चली गयी थी।
नर्सिंग स्टेशन के
सामने से निकलते हुए नर्स ने मुझे टोक दिया… आप इस वक्त कहाँ से आ रहे है? …सिस्टर,
कमरे मे इतने दिन से बैठे हुए मै बोर हो गया था। सुबह टहलने के लिये मै बाहर लान मे
चला गया था। यह बोलते हुए मै अपने कमरे की ओर चल दिया। अन्दर आते ही मैने कपड़े बदले
और अपनी अधूरी नींद पूरी करने के लिये बेड पर लेट गया। कुछ ही देर मे गहरी नींद मे
खो गया था। डाक्टर का राउन्ड शुरु होने से पहले नर्स मे मुझे उठा दिया था। दस बजे डाक्टर
ने मेरे दोनो जख्म का निरीक्षण करके ड्रेसिंग करते हुए कहा… अब आपके घाव भर गये है।
नर्स को कुछ दवाईयाँ और ड्रेसिंग के बारे मे बता कर वह चला गया था। सारा दिन मेरा अंजली
की बतायी हुई बातों के बारे मे सोचते हुए निकला था। कुछ नये प्रश्न दिमाग मे कुलबुलाये
तो अगली बार पूछने की सोच कर उसे टाल दिया। शाम को कैप्टेन यादव कुछ समय मेरे साथ गुजार
कर वापिस चला गया था। मै अपने कमरे मे एक बार फिर से अकेला रह गया था।
रात गहराती जा रही
थी। किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी तो मै तुरन्त चौकन्ना हो कर बैठ गया। दरवाजा खुलते
ही आगन्तुकों का चेहरा देखते ही मै सकते मे आ गया था। अजीत सर और जनरल रंधावा ने कमरे
मे प्रवेश किया और मुस्कुरा कर मेरे पास आकर खड़े हो गये थे। अजीत सर ने मुस्कुरा कर पूछा… मेजर क्या हाल चाल
है? …सर, मै ठीक हूँ लेकिन आप यहाँ पर कैसे? …तुमसे बात नहीं हो पा रही थी इसलिये आज
शाम की फ्लाईट लेकर हम दोनो तुमसे मिलने चले आये। फारुख और मकबूल बट की कहानी का अंत
हो गया? …यस सर। अजीत सर ने अपना गला खंखारते हुए पूछा… इसी के साथ कोडनेम वलीउल्लाह
की कहानी का भी अंत हो गया? …यस सर। एक पल रुक कर अजीत सर ने कहा… मेजर, उन दोनो का
अंत होने के बाद हम चाहते है कि कोडनेम वलीउल्लाह को जारी रखा जाये। यादव ने खबर दी
थी कि आफशाँ क्रासफायर मे घायल हो गयी थी। अब वह कैसी है? आफशाँ को यह काम ऐसे ही जारी
रखना पड़ेगा। हम उसको अबकी बार सीधे वलीउल्लाह की टीम से जोड़ने की सोच रहे है। उनकी
बात सुन कर मै चौंक गया था। मै समझ नहीं पा रहा था कि उनके दिमाग मे क्या चल रहा है।
…सर आखिर कोडनेम वलीउल्लाह प्रोजेक्ट क्या है? एक बार अजीत सर ने जनरल रंधावा की ओर
देखा और फिर बोले… डाक्ट्रीन आफ अल-तकिया के भारतीय स्वरुप को कोडनेम वलीउल्लाह कह
सकते है। उनकी बात सुन कर मै और भी ज्यादा उलझ कर रह गया था।
अजीत सर बोले… मेजर,
कोडनेम वलीउल्लाह हमारे सूचना तंत्र का एक पाइलट प्रोजेक्ट था। इसके जरिये हम अपनी
झूठी और गैर जरुरती सूचना को अत्यन्त गोपनीय सूचना के आवरण मे लपेट कर पाकिस्तान सेना
के शीर्ष नेतृत्व के पास पहुँचा रहे थे। इस प्रोजेक्ट के जरिये हमने पाकिस्तानी फौजी
इदारे को व्यर्थ के काम मे उलझा दिया था। उस सूचना को पाने के लिये दुश्मन का फौजी
इदारा अपने पैसे और समय को व्यर्थ नष्ट कर रहा था। इसी के साथ उस सूचना को डीकोड करने
के लिये उनके सबसे बेहतरीन और आला दिमाग कई दिनों तक उसमे उलझ जाते थे। इस प्रोजेक्ट
के कारण उस सूचना के जरिये हम दुश्मन की प्राथमिकता सूचि को अपने अनुसार फेर बदल करवाने
मे भी कभी-कभी कामयाब भी हो रहे थे। इस प्रोजेक्ट का बीजारोपण तुम्हारी रिपोर्ट से
हुआ था। तुम्हारी रिपोर्ट मे तुमने बताया था कि आतंकवाद का पहला कदम सूचना है। झूठी
सूचना को इस्लाम की चादर मे लपेट कर जब यहाँ की जनता को बर्गलाया जाता है तब उस जनता
मे से स्थानीय जिहादी पैदा होते है। इसके लिये तुमने सुझाव दिया था कि आतंकवाद से लड़ने
के लिये अब हमे सूचना तंत्र को प्रथमिकता देनी पड़ेगी। सात अंको का कोड इसी सुझाव का
पाईलट प्रोजेक्ट बन गया था। मै आश्चर्य से अजीत सर का चेहरा ताक रहा था।
…समीर, वह सात अंकों
का चक्कर इसरो के सेवानिवृत निदेशक रामास्वामी के दिमाग की उपज है। उस वक्त हम किसी
सरकार के लिये काम नहीं कर रहे थे। ऐसे ही एक दिन बैंगलोर की आफीसर्स मेस मे ड्रिंक्स
लेते हुए हमने इस बात की चर्चा रामास्वामी से की थी कि ऐसी कौनसी सूचना हो सकती है
जिसको देखते ही दुश्मन के मन मे जिज्ञासा उत्पन्न हो जाये? स्वामी ने कुछ सोच कर ग्रिड
रेफ्रेन्स के सात अंको के कोड का सुझाव दिया था। इतना बोल कर अजीत सर चुप हो गये और
जनरल रंधावा की ओर देखने लगे। जनरल रंधावा बोले… पुत्तर तू सही कह रहा था कि उन सात
अंकों के नम्बरों की कोई अहमियत नहीं थी। वह तो सरासर धोखा था। अजीत सर ने बीच मे बात
काटते हुए कहा… इसरो का ग्रिड रेफ्रेन्स सिस्टम बेहद आधुनिक पाँच लेयर की सिक्युरिटी
का कोडिंग सिस्टम है जिसे कोई भी बिना इसरो की मदद से डीकोड नहीं कर सकता। रामास्वामी
ने कुछ सात अंकों के नम्बर हमे दे दिये थे। हमने वह नम्बर अपने गोपनीय चैनल के द्वारा
आईएसआई तक पहुँचा दिये थे। इन नम्बरों की उपयोगिता को समझने मे बाजवा और शरीफ को पाँच
महीने लग गये थे। आईएसआई का भारत मे उपस्थित नेटवर्क पूरी तरह से इन नम्बरों के बारे
मे जानकारी जुटाने के लिये सक्रिय हो गया था। मेरा पुराना आईबी का अनुभव इस मामले मे
बहुत काम आया था। हमने थोड़ी-थोड़ी जानकारी कुछ समय के अंतराल के बाद कुछ संधिग्ध लोगों
के सामने अनायस ही लीक करवाना आरंभ कर दिया था। जैसे की एक बार हमने एक पाकिस्तानी
रिपोर्टर के सामने कह दिया कि सात अंको के नम्बर हमारी सेटेलाइट की लोकेशन को चिन्हित
करते है। अगली बार सात अंकों के नम्बर को हमने मिसाईल सिस्टम टार्गेट से जोड़ दिया था।
टुकड़ो मे इस प्रकार की जानकारी मिलने से आईएसआई सतर्क हो गयी और आखिरकार शरीफ और बाजवा
ने एक दिन इसके लिये अलग से एक गोपनीय युनिट बना कर इसी काम पर लगा दी थी।
यह सब सुन कर मेरे
चेहरे पर हैरानी के निशान उभर आये थे। अजीत सर मेरी ओर मुस्कुरा कर बोले… समीर, तुमने
सही पता किया था कि धरती पर किसी भी स्थान के दो कुअर्डिनेट्स तय है जिसको हम आम भाषा
मे अक्षांश और देशांतर के नाम से जानते है। सारे नक्शे इसी पर आधारित होते है। इसमे
कोई बदलाव नहीं हो सकता है। इसरो का ग्रिड रेफ्रेन्स सिस्टम अपने अनुसार 0 डिग्री को
किसी भी स्थान पर मान कर दुनिया के अक्षांश और देशांतर मे परिवर्तन गोपनीयता के लिये
कर देता है जिसको सिर्फ इसरो की टीम ही डिकोड कर सकती है। इसीलिये सिर्फ इसरो ही उस
कोड के बारे मे जानता है और इसरो के बाहर किसी को पता नहीं कि रेफ्रेन्स पोइन्ट क्या
लिया गया है। बाकी हमारी सारी कहानी झूठ पर आधारित थी। शरीफ और बाजवा ही नहीं अपितु
पाकिस्तान के सभी आला दिमाग इसी काम मे उलझ कर रह गये थे। उस दिन जामिया मस्जिद के
ब्लास्ट के बाद जो नम्बर तुमने ब्रिगेडियर चीमा को जाँचने के लिये दिये थे यह वही नम्बर
थे जिन्हें हमने उनके पास चार महीने पहले एक वामपंथी पत्रकार के द्वारा पहुँचाये थे।
जब वह नम्बर हमारे पास पहुँचे तभी हम समझ गये थे कि आईएसआई के लिये यह सात अंकों का
कोड प्राथमिकता बन चुका है। उसके बाद तो हमारे लिये सब कुछ आसान हो गया था। इसमे कोई
शक नहीं कि इस प्रोजेक्ट मे तुम्हारी प्रमुख भुमिका रही थी। तुमने आतंकवादी तंजीमों
के नेटवर्क का पर्दाफाश करके हमारा काम आसान कर दिया था। नीलोफर और फारुख जब हमारे
हाथ लगे तब तक हमारे सात अंकों के कोड को आईएसआई ने कोडनेम वलीउल्लाह दे दिया था। फारुख
ने जब इसका जिक्र तुमसे किया तो उनकी सोच को पुख्ता करने के लिये हमने झूठे और सच्चे
कुअर्डिनेट्स देकर पाकिस्तान की सुरक्षा एस्टेब्लिश्मेन्ट को ज्यादा उलझा दिया था।
अपनी झेंप मिटाने
की कोशिश करते हुए मैने कहा… अजीत सर, आपने पाकिस्तानियों को ही धोखा नहीं दिया अपितु
मुझे भी धोखे मे रख कर उनके सारे नेटवर्क को तहस नहस करवा दिया। एक बात तो मै भी समझ
गया था कि भला अनपढ़ जिहादी अपनी जेब मे वह सात अंको के नम्बर को लेकर भला कश्मीर वादी
मे क्या कर सकता था। अगर इन नम्बर को वह डीकोड करना भी चाहें तो उसके पास वैसे तकनीकी
संसाधन भी होने चाहिये थे। भला एके-47 से वह इन नम्बरों को डीकोड तो हर्गिज नहीं कर
सकता था। लेकिन सर आफशाँ इस चक्रव्युह मे कहाँ से फँस गयी? …मेजर यह उसकी बदकिस्मती
है। आईएसआई का सारा नेटवर्क इसी काम पर लगा हुआ था कि उसका किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क
हो जाये जो सात अंकों के कोड से संबन्ध रखता है। अपने शीर्ष नेतृत्व को प्रभावित करने
के लिये फारुख मीरवायज ने वलीउल्लाह की आढ़ मे ताहिर और आफशाँ को प्यादे बना कर उसने
उनका अपने अनुसार इस्तेमाल किया। उसने अपनी एस्टेबलिश्मेन्ट को यकीन दिलाया कि उसके
हाथ एक ऐसा सोर्स लग गया है जिसकी पहुँच सेन्ट्रल कमांड युनिट मे है। अफसोस की बात
है कि तुम्हारी पत्नी आफशाँ इसमे मकबूल बट के कारण बेवजह उलझ गयी थी। इसरो सभी को कोडिंग
करके नम्बर दिया करती है इसलिये अगर वह नम्बर दुश्मन देश को मिल भी जाते तो भी वह उसके
किसी काम के नहीं थे। इस काम के लिये तो हम आफशाँ के बहुत आभारी होने चाहिये क्योंकि
वह जो भी नम्बर उनको दे रही थी वह सभी इसरो के कोडिड अंक थे। हम चाहते है कि आफशाँ
जो काम कर रही थी वह करती रहे। हम दोनो इसीलिये यहाँ आये थे कि उसको यकीन हो जाये कि
उसने कोई गलत काम नहीं किया है। उसने तो अनजाने मे अपने राष्ट्र की सुरक्षा मे बेहतरीन
योगदान दिया है। तुम भी उसे समझाने की कोशिश करना।
…सर, रेफ्रेन्स कोडिंग
अगर आपका प्रोजेक्ट था तो आप वलीउल्लाह को क्यों ढूंढ रहे थे? …समीर, जो नम्बर हम लीक
कर रहे थे वह तो हमे पता थे परन्तु जब अचानक कुछ नये नम्बर हमारी नजर मे आये तब हम
सावधान हो गये थे। हमारा पाईलट प्रोजेक्ट अचानक कोडनेम वलीउल्लाह के नाम से हमारे सामने
आ गया था। पहले फारुख ने बताया और फिर अनमोल बिस्वास ने हमारे उस शक को पुख्ता कर दिया
था। हम समझ गये थे कि आईएसआई ने हमारे किसी ऐसे आदमी को अपने साथ काम करने के लिये
राजी कर लिया है जो इस कोडिंग रेफ्रेन्स सिस्टम से जुड़ा हुआ है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा
के लिये खतरे की बात थी। उस व्यक्ति का पता लगाना हमारे लिये अनिवार्य हो गया था। अगर
हमे उस आदमी का पता चल जाता तब वह सोर्स पाकिस्तानी एस्टेब्लिश्मेन्ट के शीर्ष नेतृत्व
तक पहुँचने का हमारा स्थायी माध्यम बन जाता। उसके बाद तो हम जो चाहते पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेन्ट
वही करती। मै अभी भी अविश्वास से अजीत सर की ओर देख रहा था। उन्होंने कितनी गहरी चाल
की रचना की थी कि पूरा पाकिस्तानी फौजी इदारा पिछले डेढ़ साल से उन सात अंकों को डिकोड
करने मे उलझ कर रह गया था। उन्होंने जिस डाक्ट्रीन को भारतीय स्वरुप मे बदल कर इस्तेमाल
किया था उसको जान कर मै उनके दिमाग का कायल हो गया था।
अजीत सर ने एक नजर
अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी पर डाल कर कहा… मेजर, इस मामले मे काफ़िरों ने डाक्ट्रीन
आफ अल-तकिया का मोमिनों से बेहतर इस्तेमाल किया है। अगर यह बात पाकिस्तान के फौजी इदारे
को पता लग गयी तो वह किसी को मुँह दिखाने के लायक नहीं रहेंगें। सरदार एक बज गया है
चल कर कुछ घंटे आराम कर ले क्योंकि कल सुबह नौ बजे की फ्लाईट है। जनरल रंधावा उठते
हुए बोले… पुत्तर अब आराम कर। अजीत सर भी उठ गये और चलते हुए बोले… अपने दिल पर इस
बात का कोई बोझ मत रखना क्योंकि आफशाँ ने एक तरह से हमारी मदद की है। कुछ सोच कर मैने
कहा… सर, आफशाँ को हम बचा नहीं सके। यह सुन कर दोनो धम्म से वापिस बैठ गये थे। उनकी
कोडनेम वलीउल्लाह वाली परियोजना आफशाँ की मौत से धाराशायी हो गयी थी। अजीत सर कुछ सोच
कर बोले… मेजर, आफशाँ की मौत से हमारे काउन्टर आफेन्सिव आप्रेशन को बहुत बड़ा आघात लगा
है। इसकी भरपाई करने मे अब काफी समय लग जायेगा। चलिये सरदारजी अब नये सिरे से व्युहरचना
तैयार करनी पड़ेगी। उनके साथ मै भी उठ कर खड़ा हो गया था। जनरल रंधावा ने चलते हुए कहा…
मेजर जल्दी से अपनी ड्युटी पर वापिस आ जाओ। बहुत से काम बाकी है। मै उन्हें नीचे तक
छोड़ने के लिये चल दिया। कार मे बैठते हुए अजीत सर ने धीरे से पूछा… मेजर हया इनायत
मीरवायज का कुछ पता चला? मै कोई जवाब देता उससे पहले उनकी कार आगे बढ़ गयी थी। उनका
प्रश्न सुन कर मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था। मै ठगा सा कुछ देर वहीं खड़ा उनको जाते
हुए देखता रह गया था।
…अब कब तक आप वहीं खड़े रहेंगें? वह आवाज सुन
कर मै चौंक कर मुड़ा तो अंजली मुख्य द्वार पर खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी। आगे बढ़ कर मैने
उसे अपने आगोश मे जकड़ कर एक किनारे मे ले जाते हुए बोला… तुम कब आ गयी थी? …जब कमरे
मे आपकी मीटिंग चल रही थी। …तुम उन्हें जानती हो? वह पल भर के लिये झिझकी फिर सिर उठा
कर मेरी ओर देख कर बोली… आपकी राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के दो मुख्य लोग थे। हम दोनो
कमरे की ओर चल दिये थे। …तुम तो आने से मना कर रही थी। …अपने आप को रोक नहीं सकी।
…इनके आने से पहले मेरी भी यही स्थिति थी। हो सकता है आज देर रात को फिर से मै तुम्हारे
पास पहुँच जाता। नर्सिंग स्टेशन के सामने से निकलते हुए नर्स ने एक बार फिर से टोक
दिया… मिस्टर समीर इतनी रात को गेस्ट की अनुमति नहीं है। अंजली ने मुस्कुरा कर कहा…
मै गेस्ट नहीं पेशेन्ट की अटेन्डेन्ट हूँ। उसका उभरा हुआ पेट और मेरी कमर मे उसकी बाँह
को देख कर नर्स ने मुस्कुरा कर कहा… ओह सारी। उसको अनदेखा करके हम अपने कमरे मे चले
गये थे।
…तुम मेरे बेड पर सो जाओ। वहाँ तुम आराम से
लेट सकोगी। मै इधर अटेन्डेन्ट की बेन्च पर सो जाऊँगा। अंजली ने मना करते हुए कहा… नहीं
मै ऐसे ही ठीक हूँ। मैने कोई जवाब नहीं दिया बस उसे धकेलते हुए बेड पर जबरदस्ती लिटा
दिया और उसके साथ बेड के एक किनारे पर मै लेट गया था। वह मुझसे लिपटते हुए बोली… आपकी
ऐसी आदत हो गयी है कि अकेले नींद नहीं आती। कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने
कहा… यह लोग मुझे वापिस ड्युटी पर लौटने के लिये कह रहे थे। …आपको कब जाना है? …अभी
मेरे पास एक हफ्ता है लेकिन तुम्हें इस हालत मे छोड़ कर जाने का मन नहीं है। …आप मेरी
फिक्र मत किजीये। अम्मा और कविता मेरे पास है जो सब काम संभाल रही है। अब मेनका को
भी नये सिरे से संभालने की जरुरत है। इस घटना का उस पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार
की बात करते अचानक मुझे नीलोफर का ख्याल आया तो पूछ लिया… नीलोफर के पैसे और फारुख
के पैसे गोदाम मे रखे हुए है। उसको ठिकाने लगाने से पहले यह पता करना जरुरी है कि उनमे
नकली कितने है अन्यथा यहाँ पर एक नयी मुसीबत खड़ी हो जाएगी। पता नहीं आईएसआई इतने नकली
नोट कहाँ से लाती है? एक बार उसका पता चल गया तो आईएसआई और आतंकवादियों की दुकान हमेशा
के लिये बन्द हो जाएगी।
एकाएक अंजली मुझसे अलग होकर बोली… क्या आपको नहीं पता
कि नकली नोटों की खपत सबसे ज्यादा मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री मे होती है। कभी सोचा है
कि नीलोफर को दस करोड़ के नकली नोट हिन्दुस्तान की अर्थव्यवस्था मे खपाने ने कितना समय
लगता? दस करोड़ रुपये तो कुछ भी नहीं है जितने नकली नोट आईएसआई एक महीने मे आपकी अर्थव्यवस्था
मे डालती है। नकली नोटों का इस्तेमाल मुंबई की फिल्म इंडस्ट्री से आरंभ होता है। एक
सामान्य फिल्म मे सौ करोड़ लगते है। अगर दस करोड़ के नकली नोट उसमे झोंक भी दिये जाये
तो भी वह ऊँट के मुँह मे जीरे जैसी बात होगी। उस फिल्म की कमाई चार सौ करोड़ असली रुपये
अलग-अलग सिनेमा घर से इकठ्ठे होते है। वह सारा पैसा घूम कर करांची पहुँच जाता है। इसी
तरह आईएसआई का नकली नोटों का कारोबार चल रहा है। यह तो आईएसआई ने भ्रम फैला रखा है
कि नकली नोट आतंकवाद और हथियारों की खरीदफरोख्त मे लगता है। फारुख के दो ट्रकों मे
तुम्हें असली नोट मिले होंगें क्योंकि ब्लैक के धंधे वाले इस मामले मे काफी सतर्क होते
है। उनको नकली नोट देने का मतलब है नोट के वितरक और उससे जुड़े हुए सभी धंधो की मौत।
मै अंजली का चेहरा ताक रहा था और उसने कुछ ही मिनट मे मुझे नकली करेन्सी और ब्लैक मार्किट
का सारा ज्ञान दे दिया था।
बीच रात मे मै उसके पास से उठ कर अटेन्डेन्ट
की बेन्च पर लेट गया था। कोडनेम वलीउल्लाह की जनक तिगड़ी थी जिसके नाम का प्रयोग फारुख
अपने निजि फायदे के लिये कर रहा था। आफशाँ और ताहिर बेचारे कोडनेम की असलियत जाने बिना
हालात के चलते उसकी शतरंज की बाजी मे प्यादे की भुमिका निभा रहे थे। आईएसआई का फिल्म
इंडस्ट्री के साथ नकली करेन्सी नोटों के संबन्ध ने तो सारी कहानी ही पलट कर रख दी थी।
इन्हीं सब के बारे मे सोचते हुए न जाने कब मै अपने सपनो की दुनिया मे खो गया था। सुबह
मुझे नर्स ने उठा कर कहा… आप यहाँ क्यों सो रहे है? डाक्टर के राउन्ड का टाइम हो गया
है। आप जल्दी से तैयार हो जाईये। तभी अंजली ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे जगा हुआ
देख कर बोली… आपके लिये चाय लेने गयी थी। उसने जल्दी से प्याला मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा…
मै घर जा रही हूँ। …थोड़ी देर रुको। डाक्टर आने वाला है। आज हो सकता है कि वह डिस्चार्ज
करने के लिये तैयार हो जाए। वह चुपचाप मेरे साथ बेन्च पर बैठ गयी। दस बजे डाक्टर ने
आकर का घाव का नीरिक्षण किया और ड्रेसिंग करके बोला… मिस्टर समीर, सब कुछ ठीक है और
अब आप कभी भी डिस्चार्ज स्लिप ले सकते है। …तो प्लीज आप आज ही मेरी डिस्चार्ज स्लिप
बना दिजिये। एक घंटा अस्पताल की औपचारिकताएँ पूरी करने मे निकल गया था। बारह बजने से
कुछ पहले मै अपनी इसुजु से वापिस घर की ओर चल दिया था।
घर लौटते हुए अंजली ने कहा… यह अच्छा हुआ कि
आफशाँ जन्नतनशीं हो गयी अन्यथा तुम्हारे लोग कोडनेम वलीउल्लाह के लिये उसको कभी नहीं
छोड़ते। मैने चौंक कर अंजली की ओर देखा उसकी आँखें सड़क पर टिकी हुई थी। …क्या तुमने
कल रात को उनकी बात सुन ली थी? अंजली ने मुड़ कर मेरी ओर देख कर कहा… क्या इसके लिये
भी मुझे उनको सुनने की जरुरत है? प्रश्न का प्रश्न के रुप मे जवाब सुन कर मै चुप हो
गया था। थोड़ी दूर निकलने के बाद अंजली ने कहा… मैने उनकी बात नहीं सुनी थी लेकिन इतना
तो मै समझ सकती हूँ कि कोडनेम वलीउल्लाह प्रोजेक्ट का अंत तब तक नहीं हो सकता जब तक
उसकी सच्चाई पाकिस्तानी फौज के सामने नहीं आती। बेचारी आफशाँ को पहले फारुख ने मकबूल
बट के नाम से ब्लैक मेल किया और अब यह लोग उस बेचारी को गद्दारी के नाम पर ब्लैक मेल
करके डबल एजेन्ट बनने के लिये दबाव डालते। …तुम कोडनेम वलीउल्लाह की सच्चाई जानती हो?
उसने कोई जवाब नहीं दिया। कुछ देर के बाद आफिस के बाहर गाड़ी रोक कर वह मेरी ओर देख
कर बोली… चलिये घर आ गया। मैने मुस्कुरा कर कहा… अब मुझे तुमसे डर लगने लगा है। उसने
मुझे आँख दिखायी तो मैने जल्दी से गाड़ी से उतरते हुए कहा… अब मुझे ऐसा लगने लगा है
कि तुम हम सबसे बेहतर हो। वह मेरे साथ चलते हुए बोली… मै जानती हूँ कि मै उन सबसे बेहतर
हूँ। मै उसके आत्मविश्वास को देख कर एक पल के लिये चलते-चलते रुक गया था। उसने जैसे
ही मुड़ कर मेरी ओर देखा तो फिर तेज कदम बढ़ा कर मै उसके साथ चल दिया था।
हम अपने फ्लैट मे पहुँच गये थे। अम्माजी को
खाना तैयार करने के लिये बोल कर अंजली तैयार होने चली गयी थी। मै बिस्तर पर फैल कर
अजीत सर की कहानी और अंजली की समीक्षा के बारे मे सोच रहा था। उसका सटीक आंकलन देख
कर पहली बार मैने अपने सितारों का शुक्रिया अदा किया कि वह प्रतिद्वन्दी होने के बजाय
मेरी पत्नी थी। अगर कहीं वह हमारी प्रतिद्वन्दी होती तो अब तक हम सब की नींद हराम हो
गयी होती। …क्या सोच रहे है? मैने अंजली की ओर मुड़ कर देखा तो वह बाथरुम से निकल कर
मुझे देख रही थी। एक खिली हुई धूप की रौनक उसके चेहरे पर विद्यमान थी। उसने अपने लंबे
बाल सिर पर जूड़े के आकार मे बांधे हुए थे लेकिन कुछ गीले बाल उसके गालों से चिपक गये
थे। एकाएक उसको इस रुप मे देख कर मुझे मिरियम की याद आ गयी थी। …क्या देख रहे है? मैने
मुस्कुरा कर कहा… एक पल के लिये तुम मे मुझे मिरियम की झलक दिखी थी। एक स्कूली छात्रा
के समान लग रही हो। अपने उभरे हुए पेट की ओर इशारा करके वह खिलखिला कर हँस कर बोली…
अम्मी तो जरुर लग सकती हूँ परन्तु इस हालत मे मुझे कोई भी छात्रा नहीं समझेगा। वह कुछ
और बोलती उससे पहले मेनका ने कमरे मे प्रवेश किया और मुझे देखते ही वह झपट कर मेरे
पास आकर बोली… अब्बू अब आपकी चोट कैसी है?
सब कुछ भुला कर मेनका की बातों मे कुछ देर
के लिये खो गया था।