सोमवार, 1 जनवरी 2024

  

गहरी चाल-41

 

मेरे मन मे एक बैचेनी घर करती जा रही थी। अपनी व्युहरचना बनाने के बाद अब फारुख के फोन के इंतजार मे एक-एक मिनट मुझे भारी लग रहा था। मै उठ कर कन्टेनर ट्रक की दिशा मे चल दिया। गोदाम मे अफरातफरी मची हुई थी। मेरे साथी सब अपने हथियारों को जाँचने मे व्यस्त थे। सारे बंधको को उन्हीं के मिनी कन्टेनर ट्रक मे बन्द कर दिया गया था। नीलोफर को एक कुर्सी से बाँध कर उस ट्रक के पास बिठा दिया गया था। मुझे अपनी ओर आते हुए देख कर एक बार नीलोफर के होंठ कुछ बोलने के लिये हिले परन्तु मेरे चेहरे पर आये हुए भाव देख कर वह कुछ नहीं बोली बस एकटक मुझे देखती रही। मैने जैसे ही कुछ बोलना चाहा मेरे मोबाईल की घंटी बज उठी थी। फारुख का काल समझ कर मैने तुरन्त काल लेते हुए बोला… बोलो कहाँ और कब मिलना है? …अब्बू। मेनका की आवाज सुन कर एकाएक मै सकते मे आ गया था। …मेनका। …अब्बू आप कहाँ है। हमे बहुत डर लग रहा है। …बेटा अब डरने की कोई जरुरत नहीं है। मै अभी आपके पास आ रहा हूँ। …अब्बू प्लीज आप जल्दी आ जाईये। उसकी इतनी बात सुन कर सारा अहम और अपने उपर मेरा सारा नियन्त्रण पल भर मे छिन्न-भिन्न होकर बिखर गया था। मै तुरन्त मुड़ा और तेजी से चलते हुए कैप्टेन यादव से कहा… शार्ट नोटिस पर मूव करने के लिये तैयार रहना। मै कुछ देर के लिये बाहर जा रहा हूँ लेकिन हर पल उस नम्बर पर नजर बनाये रखना। इतना बोल कर मै गोदाम से बाहर निकल कर अपनी गाड़ी मे बैठा और नीलोफर के फ्लैट की दिशा मे चल दिया।

कुछ ही देर बाद मै उस फ्लैट के बंद दरवाजे के बाहर खड़ा हुआ था। डोर बेल को दबा कर मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा था। दरवाजा खुलते ही गनर बचनसिंह का चेहरा दिखा तो मैने पूछा… यहाँ पर कितने लोग सुरक्षा ड्युटी पर तैनात है? …जनाब, कप्तान साहब ने मुझे और थापा को यहाँ भेजा था। …उन दोनो के क्या हाल है? …जनाब डरे हुए है। …थापा कहाँ है? …जनाब वह पीछे नजर रख रहा है। बस इतनी बात करके मै फ्लैट के अन्दर प्रवेश कर गया था। …तुम आ गये। आफशाँ की आवाज कान मे पड़ी तभी… अब्बू! मुझे अन्दर प्रवेश करते हुए देख कर दोनो की प्रतिक्रिया भिन्न थी। मै कुछ बोलता उससे पहले मेनका मुझको पकड़ कर झूल गयी थी। मेनका को उठा कर अपने सीने से लगा कर मैने आफशाँ की ओर देखा तो उसके चेहरे पर सफर की थकान साफ झलक रही थी। हम दोनो ही बोलने से कतरा रह थे। मैने आफशाँ की ओर हाथ बढ़ाया तो वह एक कदम पीछे हो गयी। …क्या हुआ आफशाँ? वह कुछ नहीं बोली बस सिर झुका कर खड़ी हो गयी थी। मै उसके पास चला गया और उसके कन्धे को धीरे से दबा कर कहा… हमारा संबन्ध इन सब चीजों से कहीं ज्यादा पुराना और मजबूत है। अपने आपको दोषी मानना बन्द करो। वह मुझसे लिपट कर फफक कर रो पड़ी थी। उसकी पीठ को धीरे से थपथपाते हुए मैने मेनका को नीचे उतार कर कहा… बेटा आप थापा अंकल से कहिये कि वह चाय बना दे। मेनका तुरन्त पीछे की ओर चली गयी और मै आफशाँ को लेकर बेडरुम मे आ गया था। उसे बेड पर बिठा कर उसके साथ बैठ गया था।   

वह सुबकती हुई सिर झुका कर बैठ गयी थी। दिल्ली के बाद पहली बार हम एकान्त मे मिल रहे थे। इस बीच मे हमारे बीच बहुत कुछ हो गया था। अब सारी स्थिति सुधारने की जिम्मेदारी मुझ पर थी। अबकी बार मैने सारी झिझक त्याग कर उसकी कमर को अपनी बाँह मे दबा कर अपनी ओर खींचते हुए पूछा… मुझे अब तो छोड़ कर नहीं भागोगी। वह सरकती हुई मेरे निकट आ गयी थी। अबकी बार उसने छूटने अथवा दूर होने का प्रयास नहीं किया था। …कुछ नहीं बोलोगी? वह धीरे से बोली… क्या बोलूँ। सब कुछ तो तुम जानते हो समीर। …आफशाँ, तुम अपने आपको गुनाहगार समझना बन्द कर दो। उसने डबडबायी हुई आँखों से मेरी ओर देखा और एक बार फिर से सिर झुका कर बैठ गयी थी। मैने धीरे से उसके चेहरे को अपने हाथों मे लिया तो एक क्षण के लिये उसके होंठ कुछ बोलने के लिये खुले परन्तु तब तक मेरे होंठ उन मखमली गुलाबी पंखुड़ियों पर काबिज हो गये थे। क्षणिक पल के लिये उसने पीछे हटने की कोशिश की फिर एकाएक उसकी दोनो बाँहें मेरे गले मे लिपट गयी थी। वह मेरे साथ एक बेल के भाँति लिपटती चली गयी थी। हमारे बीच सारी झिझक पल भर मे बह गयी थी।

…अम्मी। मेनका ने मेरी पीठ पर प्रहार किया तो आफशाँ को छोड़ कर मुड़ा तो मेनका मुझे पकड़ कर मुझसे आफशाँ को छुड़ाने का प्रयास कर रही थी। उसका चेहरा डर के मारे सफेद हो गया था। मैने जल्दी से मेनका को अपनी बाँहों मे भर कर कहा… क्या हुआ बेटा इसमे डरने की कौनसी बात है? मुझे देख कर एक पल के लिये वह खो गयी और फिर मुझसे लिपट कर रोने लगी। आफशाँ का चेहरा भी शर्म से लाल हो गया था। वह भी उसे पुचकार कर चुप कराने मे जुट गयी थी। हम दोनो ही मेनका मे उलझ गये थे। कुछ देर के बाद थापा चाय लेकर कमरे मे आ गया था। …साबजी बिटिया को क्या हुआ? उसका सवाल सुन कर हम दोनो ही झेंप गये थे। मेनका को अपनी बाँहों मे लिये आफशाँ काफी देर उसे पुचकारती और समझाती रही। मै चाय पीते हुए उन दोनो के बीच होती हुई बातचीत को देखता रहा था। इतनी देर मे आफशाँ भी संभल गयी थी। …समीर, कुछ खाने-पीने का सामान बाजार से लाना है। इतना बोल कर आफशाँ उठ कर खड़ी हो गयी। मैने जल्दी से कहा… आज मैक्डानल्ड चलते है। जवान आज बर्गर खायेगा। यह सुनते ही मेनका के चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी थी। मैने उसे गोदी मे उठाया और हम तीनो फ्लैट से बाहर निकल गये थे। बचनसिंह और थापा भी हमारे साथ चल दिये थे।

दरबार मार्ग की दिशा मे जाते हुए मैने पूछा… आफशाँ इसको आज क्या हो गया था? …समीर हमे प्यार करते देख कर इस बेचारी को शायद कंटेनर ट्रक का दृश्य याद आ गया होगा। रास्ते मे एक बार उस जिहादी ने मुझसे जबरदस्ती करने की कोशिश की थी। …कौन था वह? …वही जो हमारे पीछे निकला था। …जाकिर मूसा। वह बेचारा तो अब अपनी 72 हूरों के लायक भी नहीं बचा। इतना बोल कर मै चुप हो गया था। …समीर। …हाँ बोलो। …तुमने पूछा नहीं कि फिर क्या हुआ? मैने आफशाँ की ओर देखा तो वह मुझे देख रही थी। …क्या इससे हमारे रिश्ते पर कुछ फर्क पड़ता है? मेरे लिये यह क्या कम है कि तुम दोनो उन जालिमों की कैद से सुरक्षित निकल कर आ गयी। आफशाँ कुछ पल मुझे देखती रही और फिर धीरे से बोली… माओइस्टों का बेरियर आने के कारण वह कुछ नहीं कर सका था। इतना बोल कर वह चुप बैठ गयी। बर्गर पार्टी के पश्चात मेनका का सारा तनाव शान्त हो गया था। देर रात को जब हमने फ्लैट मे प्रवेश किया तब तक मेनका सो गयी थी।

आफशाँ ने पूछा… क्या तुम वापिस जाओगे? …पता नहीं। मै फारुख के फोन का इंतजार कर रहा हूँ। उसका फोन आते ही निकलना पड़ेगा। …तो आज रात यहीं रुक जाओ। वह रात को तो तुमसे मिलना नहीं चाहेगा। …तुम ठीक कह रही हो लेकिन फिर किसी भी समय चलने के लिये तैयार रहना पड़ेगा। आफशाँ मेनका को सुलाने के लिये बेडरुम मे चली गयी थी। मैने अपना फोन निकाल कर कैप्टेन यादव का नम्बर मिलाया… हैलो। …कैप्टेन, अपने साथियों को स्टैंड डाउन का निर्देश दे दो। हमे आज रात को वह मिलने के लिये नहीं बुलायेगा। मुझे लगता है कि आज का सारा दिन उसने हमारी मीटिंग के लिये सुरक्षित स्थान की तलाश मे गुजारा होगा। …यस सर। …बस किसी को उस नम्बर पर नजर रखने के लिये कह देना। …यस सर। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। …समीर, उस वक्त तुम वहीं पर थे? मैने चौंक कर आफशाँ की दिशा मे देखा तो वह बेडरुम के दरवाजे को बन्द करके चौखट का सहारा लेकर खड़ी हुई थी। मैने झेंप कर अपना सिर हिला कर जल्दी से कहा… प्लीज मुझे गलत मत समझना। वह मेरे करीब बैठते हुए बोली… मैने तुम्हारी हल्की से झलक ट्रक के दरवाजे के जोड़ मे देख ली थी। जब पूछने पर भी तुम सामने नहीं आये तब मेरा दिल टूट गया था। मुझे लगा कि अब मै तुमसे कभी नहीं मिल सकूँगी।  …आफशाँ, यह सच है कि मै तुमसे बहुत नाराज था। …समीर, मै जानती हूँ लेकिन इसका मुझे जरा सा भी इल्म नहीं था कि फारुख मुझे वलीउल्लाह बना कर अपने अफसरों के सामने पेश कर रहा था। मैने चौंक कर कहा… क्या मतलब? …यही कि वह कुछ सात अंकों के नम्बर देकर मुझसे अलग-अलग मोबाईल नम्बर देकर अलग-अलग स्थानों से फोन करने के लिये कहता था। मेरा यकीन करो कि मैने आज तक उसको कभी कोई सात अंकों वाला नम्बर नहीं दिया है।

मैन जल्दी से आफशाँ का हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा… दूसरे बेडरुम मे चलो। वह मेरे साथ खिंचती हुई चल दी थी। …आफशाँ जल्द ही मेरी फारुख से मुठभेड़ होगी। मुझे नहीं पता कि मै वहाँ से बच कर निकल सकूँगा या नहीं लेकिन इसको रिकार्ड करके मै अजीत सर के पास भिजवा दूँगा जिससे तुम पर इस बात की कोई आँच न आये। मेरी ओर वह फटी हुई आँखों से कुछ देर देखती रही और फिर जल्दी से रुआँसी होकर बोली… उससे मिलने की कोई जरुरत नहीं है। हम कल ही वापिस चलते है। इसके लिये सरकार कोई भी सजा देगी मै खुशी-खुशी कुबूल कर लूँगी लेकिन मै तुम्हें हर्गिज उसके सामने नहीं जाने दूँगी। मैने उसे समझाते हुए कहा… यह हमारी-तुम्हारी बात नहीं है। वह हमारे देश को युद्ध की आग मे झोंकने जा रहा था। मुझे निर्देश मिला है कि उसको अब यहाँ से जिन्दा बच कर निकलने नहीं देना है। वह भारत छोड़ कर भागने की फिराक मे यहाँ आया है। उसकी इस करतूत की सजा देने का मेरे पास यह मीटिंग आखिरी मौका है। वह यहाँ से निकल गया तो फिर हम उसका कुछ नहीं कर सकेंगें। प्लीज मेरी बात मान कर सब कुछ रिकार्ड करा दो। मै कुछ देर तक उसको समझाता रहा लेकिन वह कुछ भी बोलने के लिये तैयार नहीं हुई। बस उसने तो एक ही बात की रट लगा ली थी कि उस मीटिंग मे मुझे जाने की जरुरत नहीं है। …तुम यह क्यों मान बैठी हो कि वह मुझे मारने मे कामयाब हो जायेगा। मेरे साथ भारतीय सेना के स्पेशल फोर्सेज के जवान है जो उनकी सीमा मे घुस कर मारने का दम रखते है। प्लीज मेरी बात मान लो तुम्हें मेरी कसम। आफशाँ की कमजोरी से मै भली भांति परिचित था। इसीलिये मैने उसे अपनी कसम दी थी। आखिरकार वह बोली… तुम रिकार्ड कर लो लेकिन मै भी तुम्हारे साथ चलूँगी। …थैंक्स। मै भी वादा करता हूँ कि इस मीटिंग क बाद वन पीस मे तुम्हारे लिये वापिस आऊँगा।

इतनी बात करके मैने एक नम्बर मिलाया और दूसरी ओर से आवाज सुनते ही पूछा… ड्युटी पर कौन है? …जनाब रेडिओ आप्रेटर सूरजभान। …सूरज इस काल को रिकार्ड करो। इतना बोल कर मैने फोन उसके आगे करके पूछा… फारुख ने तुमसे कैसे संपर्क किया था? …उसने मुझसे सीधे संपर्क नहीं किया था। अम्मी और आलिया के कार्य पूरा करके अदा के साथ जब लौट रही थी तब दिल्ली एयरपोर्ट पर नीलोफर मिली थी। उसने अब्बू की कुछ वाहियात फिल्म दिखा कर धमकी दी थी कि अगर मैने उनके लिये काम करने से मना किया तो वह सारी फिल्में सोशल मिडिया पर डाल देंगें। एक फोन नम्बर देकर उसने कहा कि अगर मदद चाहिये तो मुझसे इस नम्बर पर संपर्क कर लेना। वह अपना मोबाईल नम्बर देकर वहाँ से चली गयी थी। उस वक्त अदा भी मेरे साथ थी। मुंबई की फ्लाईट पर हम दोनो के बीच यह तय हुआ कि पहले उनकी मांग सुन कर तुमसे इस बारे मे बात करेंगें। उसके बाद नीलोफर ने मुझसे कभी कोई बात नहीं की थी। अपने आफिस को जोइन करने के बाद ताहिर साहब ने एक दिन टूर पर निकलते हुए एक कागज पकड़ा कर मुझसे कहा कि इस पर लिखे हुए चार सात अंकों के नम्बर को इसमे दिये गये फोन नम्बर पर बता दूँ। बात करने वाला अगर तुम्हारे बारे मे पूछे तो बस वलीउल्लाह बता देना। उस समय मै सिर्फ कोडिंग करती थी जिसके कारण मुझे सात अंकों के नम्बरों की असलियत पता नहीं था। बास ने कहा था तो मैने उस नम्बर पर वलीउल्लाह बन कर वह चार सात अंकों के नम्बर दे दिये थे। अगले पाँच महीने मे ऐसा सिर्फ तीन बार हुआ था। हर बार ताहिर ने मुझे इस काम का निर्देश दिया था।

…फारुख के साथ इस मामले मे कब बात हुई थी? …किसी बात पर नौसेना के प्रोजेक्ट हेड अय्यर साहब को हटा कर मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाने का आर्डर देने के लिये ताहिर साहब ने अपने आफिस मे बुलाया था। तब पहली बार फारुख मुझे उनके आफिस मे मिला था। …यह कब की बात है? …दिल्ली आने से पाँच महीने पहले की बात है। …फिर क्या हुआ? …फारुख ने मुझसे कहा कि अबसे जो भी उसे रेफ्रेन्स कोड चाहिये होंगें उसको नौसेना के आफिस से निकालने की मेरी जिम्मेदारी होगी। मैने तो उसे तुरन्त मना कर दिया था। मैने ताहिर साहब को भी बता दिया था कि अगर इस बारे मे मुझ पर दबाव डाला गया तो मै इसकी जानकारी नौसेना विभाग को दे दूँगी। इतना बोल कर मै बिना आर्डर लिये वहाँ से वापिस आ गयी थी। दो दिन बाद ताहिर साहब ने मुझे वापिस बुला कर आर्डर देकर कहा कि मुझे फारुख की बात सुनने की जरुरत नहीं है। मै अपने काम मे लग गयी थी। उसके बाद एक दिन ताहिर साहब ने मुझे फोन करके कहा कि वह इस वक्त बैंगलौर मे है और एक बार फिर से मुझे चार सात अंको के नम्बर के साथ एक फोन नम्बर देकर वही काम करने को कहा तो मैने उन्हें मना कर दिया था क्योंकि मै उन सात अंकों के नम्बरों की महत्वता समझ चुकी थी। उस दिन ताहिर साहब ने मुझसे कुछ नहीं कहा परन्तु बाद मे मुझे पता चला कि ताहिर साहब ने मेरी निजि असिस्टेन्ट से यह काम करवा लिया था। इतना बोल कर आफशाँ चुप हो गयी थी।

…जो भी सात अंकों के नम्बर तुमने वलीउल्लाह के नाम से फोन पर बताये थे क्या उसमे से कोई नौसेना से संबन्ध रखते थे? …नहीं उन नम्बरों का कोड भिन्न था। मुझे सिर्फ नौसेना का कोड पता है। …क्या ऐसा हो सकता है कि ताहिर साहब ने यही काम आफिस की अन्य लड़कियों से करवाया हो?  …पता नहीं। लेकिन समीर इन रेफ्रेन्स कोड की सच्चाई हमारे आफिस मे सिर्फ प्रोजेक्ट हेड और ताहिर साहब ही जानते थे। इसलिये कोई भी लड़की वलीउल्लाह बन कर उनके दिये नम्बरों को किसी को भी अनजाने मे दे सकती है। …फारुख से अगली मुलाकात कहाँ हुई? …ताहिर साहब एक कंपनी का सौदा करना चाहते थे। मै उनके साथ उसके आंकलन के लिये ढाका आयी थी। वहाँ पर अब्बू और फारुख मुझसे मिले थे। तीनो ने मुझ पर दबाव डाला कि मै उनके लिये काम करुँ लेकिन जब मैने मना किया तब फारुख ने बताया कि मै अब तक वलीउल्लाह बन कर रेफ्रेन्स कोड्स की जानकारी फोन पर आईएसआई को दे रही थी। वह नौसेना के कोड मांगने के लिये ब्लैकमेल पर उतर आया था। अब्बू भी अपनी इज्जत बचाने की लगातार दुहाई दे रह थे। मै अजीब दुविधा मे पड़ गयी थी। एक ओर वह अब्बू की फिल्म सोशल मिडिया पर डालने की धमकी दे रहे थे और दूसरी ओर वह मेरी गद्दारी की सूचना नौसेना को देने की धमकी दे रहे थे। उस शाम शायद मै उनके दबाव मे टूट गयी होती लेकिन फारुख ने एक ऐसी नजायज हरकत करने की कोशिश की जिसके कारण मै उसको थप्पड़ मार कर वहाँ से वापिस मुंबई चली आयी थी। यह बोलते हुए आफशाँ का चेहरा तमतमा गया था।

…उसके बाद तुम्हारे साथ क्या हुआ? …समीर, मैने आते ही नीलोफर का नम्बर ढूंढ कर उससे पूछा कि उसने अब्बू की फिल्म फारुख को क्यो दी थी? जब उसने कारण पूछा तब मैने उसे बताया कि फारुख उस फिल्म को सरेआम करने की धमकी देकर मेरी इज्जत पर हाथ डालने की कोशिश कर रहा है। नीलोफर ने यह सुन कर फोन काट दिया और उसके कुछ देर बाद कोई आईएसआई की मेजर हया का मेरे पास फोन आया कि अब से फारुख से डरने की जरुरत नहीं है। आज के बाद फारुख ऐसा करने की फिर कभी हिम्मत नहीं करेगा। उसके बाद फारुख मेरे सामने नहीं आया लेकिन मेरी गैर हाजिरी मे उसने उसने दो बार मेरी निजि असिस्टेन्ट को वलीउल्लाह बना कर फोन करवाया था। उसके बाद मै दिल्ली आ गयी तो मुझे लगा कि उनसे मेरा पीछा छूट गया है। जिस दिन तुम ताहिर साहब को पकड़ कर अपने साथ ले गये थे उसके अगले दिन फारुख ने फोन पर ताहिर साहब के बारे मे पूछा था। उसी शाम को जब मै अपने आफिस मे वकीलों से बात कर रही थी तब उसने ताहिर साहब के बारे मे पूछने के लिये मुझे आफिस के बाहर बुलवा लिया था। जब मै बाहर पहुँची तब उसने मुझे बताया कि ताहिर साहब को छुड़ाने का इंतजाम हो गया है। उनके आफिस की अधिकारी होने के कारण मुझे चल कर उनकी जमानत देनी पड़ेगी। मै उसके साथ चली गयी लेकिन तब यह नहीं जानती थी कि उसने मुझे अगुवा किया है। अगले दिन सुबह स्कूल बस से उसने मेनका को भी बीच रास्ते मे उतार लिया था। उसके बाद हम दोनो को एक गोदाम मे अपने साथियों की निगरानी मे छोड़ कर वह चला गया था। उसके बाद तो हम दोनो को कन्टेनर ट्रक मे डाल कर उसके साथी यहाँ ले आये थे। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी। मैने अपना फोन उठा कर पूछा… सूरजभान सब रिकार्ड कर लिया। …जी जनाब। …कितनी देर की रिकार्डिंग है? …ब्यालीस मिनट। …ठीक है। अब मै फोन काट रहा हूँ। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया और बेड पर लेट गया।

अब बहुत से उलझे हुए तार सुलझ गये थे। फारुख और ताहिर सात अंकों के रेफ्रेन्स कोड कहीं से लेकर आते थे और डेल्टा साफ्टवेयर की महिला के द्वारा वलीउल्लाह के नाम से आईएसआई के किसी कोन्टेक्ट को वह रेफ्रेन्स कोड दे दिया करते थे। पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेन्ट यह सोचती कि मेजर फारुख मीरवायज के अथक प्रयास के द्वारा कोई महिला अधिकारी सेन्ट्रल कमांड मे बैठ कर गोपनीय जानकारी उन तक कोडनेम वलीउल्लाह बन कर पहुँचा रही है। आफशाँ मेरे करीब लेटती हुई बोली… क्या सोच रहे हो? …यही कि तुम अगर मुझे यह सब पहले बता देती तो मै तुम्हें इस मुश्किल मे फँसने ही नहीं देता। …जिस दिन मुझे पता चला कि मै वलीउल्लाह बन कर यह सूचना दे रही हूँ मुझे सबसे पहले तुम्हारी चिन्ता हुई थी। मेरे कारण तुम मुश्किल मे घिर जाते। यह बात मैने जब अदा को बतायी तो उसने मुझे तुरन्त मना कर दिया था। उसका कहना था कि इस बात का पता चलते ही तुम मुझे बचाने के लिये सारी जिम्मेदारी अपने उपर ले लोगे। मैने करवट लेकर आफशाँ को अपनी बाँहों मे कस कर जकड़ते हुए कहा… तुम दोनो बचपन से बेवकूफ हो जो मेरे लिये सारी मुसीबत झेलने के तैयार हो जाती हो। हम दोनो के बीच शाम से ही एक चिंगारी सुलग रही थी। पल भर मे ही वह मुझे अपने आगोश मे बाँध कर बोली… समीर, तुम मेरी कमजोरी हो। तुमसे बिछुड़ कर मै मर जाऊँगी। …क्या तुम मेरी कमजोरी नहीं हो पगली।

रात के सन्नाटे मे अब हमारे बीच कोई दीवार नहीं थी। आफशाँ मेरी पर्फेक्ट सोलमेट थी। आरंभ से ही हमारे बीच एक अजीब सा आकर्षण था। उसको दूर से देख कर मेरे जिस्म मे खून की रवानगी बढ़ जाती थी। उसके जिस्म को छूते ही एक अजीब सी खुमारी मेरे दिमाग पर काबिज हो जाती थी। हम दोनो एक दूसरे के जिस्मानी इच्छाओं और संवेदनशीलता को पहचानते थे। उसके जिस्म के हर उठाव और कटाव मेरे जहन मे बसा हुआ था। मेरी उंगलियों के स्पर्शमात्र से उसका जिस्म थरथरा कर इशारे से बात करने लगता था। मेरे होंठ स्वत: ही उसके गुलाबी होंठों को ढूंढने मे प्रयासरत हो गये थे। उसकी भीगी पल्कों को चूम कर गालों को छेड़ते हुए उसके काँपते हुए होठों को जैसे ही मेरे होंठों ने छुआ वह तड़प कर मेरे होंठों पर छा गयी थी। उसका जिस्म अब उसके बस मे नहीं रहा था। हमारी पहली एकाकार की याद पल भर मे मेरी आँखों के सामने से पल भर मे गुजर गयी थी। उसके होंठ निरन्तर मेरे होंठों को दबाये रसपान मे जुट गये थे। मैने अपने आपको उसके हवाले कर दिया था। मेरी उँगलियाँ उसके गदराये जिस्म पर बेरोकटोक विचर रही थी। कुछ ही देर मे हमे कपड़े काटने लगे थे। हम दोनो ने आनन फानन मे अपने कपड़े जिस्म से अलग किये और निर्वस्त्र होकर एक दूसरे को बाँहों मे जकड़ कर अगले पड़ाव की ओर चल पड़े।     

हम दोनों के नग्न जिस्म एक दूसरे के साथ गुथ गये थे। तुम्हारी सफर की थकान को आज रात मै सोख लूँगा। आफशाँ सरक कर मेरे उपर लेट कर बोली… इस पल के लिये इतने दिनो से तड़प रही हूँ। मेरे हाथ स्वंत: ही आफशाँ के चिकने नग्न पुष्ट नितंबों पर विचरने लगे। आफशाँ के होंठों को अपने होंठों में दबा कर मैं उनका रस निचोड़ने में लग गया। आग तो दोनों ओर बराबर लगी हुई थी। एक दूसरे से बिछुड़ने की कल्पनामात्र से हम दोनो का जिस्म बल खाये स्प्रिंग के तनाव से ऐंठा हुआ लग रहा था। मेरे लिए कुछ और देर रुकना लगभग असंभव सा था। बिना देर किये, मैंने धीरे से नीचे सरक कर एकाकार की आशा मे झूमते हुए जनानंग को अपने उपर लेटी हुई आफशाँ के कामाग्नि से भभकते हुए योनिमुख पर लगाया और फिर अपनी कमर पर दबाव डाल कर उसे अंदर की ओर ठेल दिया। हालाँकि उसकी योनि सम्भोग की आकांक्षा में भीगी हुई थी लेकिन फिर भी काफी दिनों से अनछुई थी। उत्तेजना मे फूला हुआ भुजंग धीरे-धीरे मक्खन में एक तपती हुई सलाख की तरह अंदर धँसता चला गया था

..आ….आ…आह…आफशाँ के मुख से उत्तेजना से ओतप्रोत एक गहरी आनंदकारी सीत्कार निकल गयी थी। देखते-देखते कुछ देर में मेरा भुजंग अपनी पूरी लंबाई के साथ उसकी योनि की गहराई मे उतर चुका था। आफशाँ उपर होने कारण उल्टे आसन से मुझे उसके जिस्म मे होने वाले स्पंदन के साथ जिस्मानी घर्षण का भी एहसास हो रहा था। मेरे हर वार पर फशाँ के मुख से एक लम्बी सिसकारी छूट जाती थी। वह अपने अनुसार एकाकार का सारा संचालन खुद कर रही थी। इसके कारण अतिरिक्त घिसाव और गहरायी के एहसास से हम दोनों के कामसुख में वृद्धि भी हो रही थी। उसके उन्नत सीने की गोलाईयों पर मेरी हथेली और सिर उठाये स्तनाग्र पर मेरी उँगलियाँ काबिज हो गयी थी। दूसरा हाथ उसके योनिद्वार से बाहर झाँकते हुए अंकुर को निरन्तर छेड़ रहा था। अचानक एक पल ऐसा आया जब वह उत्तेजना मे अपने भार को संभाल नहीं पायी और धम्म से मुझ पर बैठ गयी। उसके मुख से दर्द भारी सीत्कार कमरे में गूंज गयी… अल्लाह… उफ.उ .उ.ह ..न्हई…आह.मर गयी। पूरा वजन पड़ने से भुजंग सब रुकावटें भेदते हुए आफशाँ के गर्भाशय का मुख खोल कर जड़ तक धँस गया था। पहली बार फशाँ अपनी पूरी मस्ती और उच्छृंखलता में डूब कर कामक्रीड़ा में मग्न हो गयी थी। ऐसा लग रहा था मानो वह मेरे साथ संभोग कर रही थी।

कुछ देर के बाद जब वह थक गयी तो मैने कहा… आफशाँ अगर थक गयी हो तो तुम नीचे आ जाओ। उसकी मुंदी हुई बड़ी-बड़ी आँखे धीरे से खुली तो उसमे चंचलता और मस्ती की झलक साफ दिख रही थी। फशाँ धीरे-धीरे अपने कूल्हें हिलाते हुए आँख मूंद कर अपनी मस्ती मे बड़बड़ायी… समीर मुझे आज मत रोको…बहुत दिनो के बाद आज जाकर मुझे सुकून मिला है। मेरे अकड़े हुए भुजंग को वह अपनी धुरी बना कर मस्ता रही थी। मै उचक बैठ गया और उसके उत्तेजना मे तमतमाये चेहरे पर अपने होंठों के निशान छोड़ने लगा और मेरी उंगलियाँ उसकी गोलाईयों को लगातार दोहने मे जुट गयी थी। वह मचल कर अलग होने का प्रयत्न करती जिसके कारण उसके जिस्म मे समाया मेरा कामांग और गहरा धंसता चला गया था। अचानक उसके जिस्म मे एक जलजला उठा और वह उस जलजले मे बहती चली गयी थी। उसका ऐसा रुप मैने पहले नहीं देखा था। पता नहीं वह कितनी बार स्खलित हो गयी थी। बस हम दोनो की तेज साँसों की आवाज कमरे की शांति को भंग कर रही थी।

मुझसे अब रुका नही जा रहा था। हम दोनो के जिस्मों का हर हिस्सा संवेदना से ओतप्रोत हो गया थामेरा उत्तेजना से तन्नाया हुआ भुजंग निर्णायक पारी खेलने के लिये तैयार हो गया था। अबकी बार मैंने पहल करते हुए उसको पीठ के बल लिटा कर उसके होंठों का रसपान करते हुए सबसे पहले उन्नत स्तनों का मर्दन आरंभ किया। कभी गुलाबी स्तनाग्रों को अपनी उंगलियों में फँसा कर तरेड़ता और कभी पूरे स्तन को अपनी हथेली में भर कर जोर से मसक देता। एक बार फिर से हवा मे लहराते हुए भुजंग को गर्दन से पकड़ कर दिशा दिखाते हुए उसमे समा गया। मैंने अपना काम शुरु कर दिया था। इस बार मेरी गति मे वह तीव्रता नहीं थी। आज तक इस प्रकार से पहले मैंने आफशाँ को भोगा नहीं था वह भी आत्मविभोर हो गयी थी। धीरे-धीरे मैंने अपनी गति बढ़ाई और अब अपने होंठों में उसके सुर्ख हुए स्तनाग्रों को दबा कर उनका रस निचोड़ना शुरू किया। मेरे हाथ उसके पुष्ट गोल नितंबों को गूथने मे व्यस्त हो गये थे। उसका जिस्म उत्तेजना से तमतमाने लगा था। उसके अंग प्रत्यंग में नयी उर्जा संचरित होने लगी और उसकी कामेच्छा पूरी तरह जागृत हो गयी।

वह मेरे नीचे दबी हुई कभी मचलती और कभी तड़प कर छूटने प्रयास करती। कभी वह उत्तेजना मे अतिउत्साहित होकर पूरी शक्ति से वार करने की चेष्टा करती  और कभी अपना जिस्म मेरे हवाले कर देती। आफशाँ इस अनुभव से लगाता आनंदित हो रही थी और उसका रोम रोम कामक्रीड़ा से पुलकित हो उठा था। उसके उन्माद को देख कर मेरे अंदर होने वाले विस्फोट के प्राथमिक संकेत उपजने लगे। मैं भी थक कर चूर हो गया था और अपने चरमोत्कर्ष की प्राप्ति करने में जुट गया। आँखें मूंदी हुई, तेज साँसें, उभरे हुए स्तन और उन पर तने हुए गुलाबी से लाल हुए मोती से स्तनाग्र, इन सब एहसासों के बीच आफशाँ आत्मविभोर सी किसी और दुनिया में खोई हुई थी। यदा कदा उसके गर्भ से असीम आनंद की चीत्कार निकल जाती थी। अब मैं भी काम वासना की पराकाष्ठा तक पहुँचने वाला था। मेरे जिस्म का हाल भी उसके जैसे होता जा रहा था। एकाएक मांसपेशियाँ जकड़ने लगी, साँसे तेज चलने लगी और कमरा एक बार फिर से सिस्कारियों से गुंजायमान हो गया था। जब मुझे स्खलन बिल्कुल निकट लगने लगा तो मैने एक भरपूर आखिरी वार किया और उसी क्षण हम दोनों के जिस्मों की गहराइयों से एक मादक चिंघाड़ निकली और मैं एक निर्जीव शव की तरह आफशाँ पर लुढ़क गया। मेरा चेहरा आफशाँ के स्तनों को तकिया बना चुका था और मेरा भुजंग उसके गर्भाशय को अपने प्रेमरस से लबालब भरने में लग गया था कुछ क्षण में तूफान थमने के बाद आफशाँ मेरे सिर और पीठ पर हाथ फेरने लगी और मै उसके नग्न जिस्म सहलाने लगा।

चक्रवाती तूफान के शांत होने के पश्चात हम दोनो का जिस्म थक कर चूर हो गया था। अपनी उखड़ती हुई साँसों को सयंत करते हुए आफशाँ बोली…समीर। …हुँ। …आज तुम्हें क्या हो गया था? …आफशाँ तुमको खोने का डर कुछ दिनो से मेरे जहन मे पल रहा था। आज तुम्हे अपने पास सुरक्षित जान कर मै सब कुछ भूल गया था। कुछ देर हम एक दूसरे के साथ बेल की तरह लिपटे हुए पड़े रहे थे। कुछ देर के बाद हम अपने कपड़े पहन कर साथ-साथ लेट गये थे। कल होने वाली मुलाकात के कारण नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। …समीर नींद नहीं आ रही है? …हुँ। …आओ तुम्हें सुला देती हूँ। उसने मेरा सिर पकड़ कर अपने सीने मे छिपा लिया और धीरे-धीरे मेरे बाल सहलाते हुए धीरे से बोली… जब भी बचपन मे आसिया को तुम्हें ऐसे सुलाते हुए देखती तो मुझे आसिया से जलन होती थी। इसीलिये तुमसे हमेशा दूर रहती थी। मैने उसके उभरे हुए सीने पर अपना चेहरा रगड़ते हुए धीरे से कहा… अब सभी तुमसे जलती होंगी। मेरा चेहरा अपने सीने मे दबा वह बोली… सो जाओ। उसके जिस्म से एकाकार की गंध धीरे-धीरे एक नशे के समान मेरे दिमाग मे चड़ती जा रही थी। वह कुछ देर बड़बड़ाती रही लेकिन मै जल्दी ही अपनी सपनों की दुनिया मे खो गया था।

…समीर उठो। मै हड़बड़ा कर उठ गया था। आफशाँ ने चाय की प्याली मेरे हाथ मे देकर बोली… तुम्हारा फोन बज रहा था। मैने झपट कर अपना फोन उठाया और नम्बर देखने लगा। अनजान नम्बर था। मैने चाय का घूँट भर कर कहा… उसकी जरुरत है। वह बात करने के लिये दस बार फोन करेगा। चाय समाप्त करने के पश्चात मैने कैप्टेन यादव का नम्बर मिलाया… हैलो। …कैप्टेन क्या स्टेटस है? …सब तैयार है। …ठीक है। उस नम्बर पर कोई काल आयी? …सर, वह नम्बर एक्टिव मोड मे अभी भी है लेकिन कोई काल न तो आयी है और न ही कोई काल की गयी है। …ओके, मै कुछ देर मे वहाँ पहुँच रहा हूँ। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया और अजीत सर का नम्बर मिलाने बैठ गया था। …हैलो समीर। …सर, फारुख ने अभी तक संपर्क नहीं किया है। …आफशाँ और बिटिया का क्या हाल है? …सर, सब ठीक है बस दोनो डरी हुई है। …वह तो सामान्य बात है। …सर, मेरी आफशाँ से बात हुई थी। उसकी रिकार्डिंग मै आपके पास भिजवा रहा हूँ। फारुख ने बेहद गहरी चाल चली थी। प्लीज एक बार आप सुन लिजियेगा। …समीर, फिलहाल फारुख पर ध्यान केन्द्रित करो। आफशाँ और बच्ची सुरक्षित है इस बात को अपने दिमाग मे बिठा लो। बस ख्याल रहे कि नेपाल की सुरक्षा एजेन्सियों को इस बात का पता नहीं चलना चाहिये। …यस सर। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।

आधे घंटे के बाद तैयार होकर मै गोदाम की ओर निकल गया था। आफशाँ मेरे साथ चलने की जिद्द कर रही थी परन्तु उसे समझा कर मै वहाँ से निकल आया था। गोदाम पहुँचते ही मेरी नजर मुर्झायी हुई नीलोफर पर पड़ी तो मै उसकी ओर चला गया था। …तुम आ गये। उसकी रस्सी खोलते हुए मैने कहा… हाँ। उठो चल कर फ्रेश हो जाओ। मै उसको गोदाम के पीछे बन हुए बाथरुम की ओर ले गया था। …मै बाहर खड़ा हूँ तो दरवाजा लाक मत करना। उसने घूर कर मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से कहा… ओके। प्लीज जल्दी से बाहर निकलना। वह तैयार होने के लिये बाथरुम मे चली गयी और मै कैप्टेन यादव के साथ बात करने मे व्यस्त हो गया था। …कैप्टेन उन सातों का क्या हाल है। उनको भी बाथरुम अगर इस्तेमाल करना है तो एक-एक करके उनको भी फारिग होने दो। …यस सर। इतना बोल कर कैप्टेन यादव अपने साथियों को निर्देश देने मे व्यस्त हो गया था।

दस बजे तक हम सब फारुख के लिये तैयार हो गये थे। नीलोफर अभी भी मुर्झायी हुई लग रही थी। उसके समझ मे नहीं आ रहा था कि मै उसको क्यों फारुख के हवाले करना चाहता हूँ। वह यह प्रश्न सुबह से मुझसे कई बार कर चुकी थी। …आफशाँ की खातिर क्योंकि तुमने फारुख का प्यादा बन कर उसको ब्लैक मेल करने की कोशिश की थी। …वह हमारे करार से पहले की बात थी। उसके बाद तो मैने उसकी हमेशा मदद की थी। …हया को तुम अच्छी तरह से जानती थी लेकिन फिर भी तुमने मेरी मदद करने से इंकार कर दिया था। तो अब भुगतो। …हया के कारण ही आफशाँ अभी तक फारुख के हाथों से बची है। खैर कोई बात नहीं। मुझे फारुख के हवाले करके अगर तुमको खुशी मिलती है तो जरुर करो। इतना बोल कर वह चुप होकर एक किनारे मे बैठ गयी थी। जाकिर मूसा की हालत अभी भी नाजुक थी। उसके बाकी साथी भी उसके साथ सिर झुकाये बैठे हुए थे।

ठीक बारह बजे फारुख का फोन आया… मेजर, त्रिशुली रेस्त्रां मे एक बजे तक मिलो। …मेरी बीवी और बच्ची को लेकर आना। …तुम भी ताहिर को लेकर आना वर्ना तुम जानते हो कि उनके साथ क्या होगा। इतना बोल कर उसने फोन काट दिया था। …कैप्टेन यादव, त्रिशुली रेस्त्रां पर मुलाकात एक घंटे मे होगी। फौरन अपने साथ दस सैनिकों को लेकर वहाँ पहुँचों परन्तु ख्याल रहे कि अब तक वह उस रेस्त्रां की किलेबन्दी कर चुका होगा। कोई जल्दी करने की जरुरत नहीं है। बस हालात अनुसार एक-एक करके पहले उसके सुरक्षा कवच के प्यादों को साफ करना जिससे आखिर मे वह अकेला रह जाये। वन मैन एन्ड वन बुलेट। …यस सर। …उसको क्रासफायर मे जरुर रखना लेकिन मारना नहीं। अभी उसे बहुत सी बातों का जवाब देना है। तभी उसने मुझे वहाँ पहुँचने के लिये सिर्फ एक घंटे का समय दिया है। …आप बेफिक्र रहिये सर। आप वहाँ कैसे जाएँगें? जवाब देने से पहले मेरे चेहरे पर पहली बार मुस्कान तैर गयी थी। मैने उस छोटे से कंटेनर ट्रक की ओर इशारा करके उसकी ओर चल दिया था।

 

पाकिस्तान दूतावास, काठमांडू

…यह निर्देश किसने दिये है? …एक्सीलेन्सी, यह जनरल साहब के निर्देश है। मेजर फारुख मीरवायज को किसी भी प्रकार की मदद देने से मना किया है। …क्या मतलब? …जी सर। मेजर मीरवायज पर्सोना नान ग्राटा की लिस्ट मे आ गया है। अगर वह किसी को गोपनीय तरीके से पाकिस्तान भिजवाने की कोशिश कर रहा हो तो बस उस हालत मे ही हम उस आदमी को ट्रान्स्पोर्ट करने मे मदद कर सकते है। सख्त ताकीद है कि दूतावास को मेजर से दूरी बना कर रखनी है। …ठीक है। दूतावास के सभी स्टाफ को निर्देश जारी कर दिये जायें। …सर, तीन दिन पहले रावलपिंडी के सख्त निर्देश थे कि मेजर मीरवायज को दूतावास की ओर से हर संभव मदद करने की कोशिश किजिये। तीन दिन के बाद ऐसा निर्देश मिलने का क्या कारण हो सकता है? …एक्सीलेन्सी, मेजर मीरवायज असलियत मे जनरल शरीफ और जनरल बाजवा का आदमी हैं। नये एस्टेबलिशमेन्ट ने आते ही फेरबदल आरंभ हो गये है।

…एक्सीलेन्सी, अगर वह किसी आदमी को यहाँ से स्मगल करके पाकिस्तान पहुँचाने के लिये कहता है तो उस हालात मे हमे क्या करना है? …एक ताबूत का इंतजाम कर लो। जरुरत पड़ने पर हमारा दूतावास पाकिस्तानी नागरिक की लाश को बड़ी आसानी से पाकिस्तान पहुँचा सकता है। …एक्सीलेन्सी, हमारा दूतावास और उसके अन्दर काम करने वाले लोगों के उपर तो सभी सुरक्षा एजेन्सियों की निगाह टिकी हुई है। उस हालत मे मेजर मीरवायज हमारे लिये कोई नयी मुश्किल न खड़ी कर दे। …अजहर, हमे उससे दूरी बना कर रखनी है। अगर वह उस व्यक्ति का अपहरण करने मे कामयाब हो जाता है तो उस समय हालात अनुसार इस बात पर बाद मे निर्णय लेंगें। …जनाब अगर हम नेपाल की सुरक्षा एजेन्सियों को फारुख के बारे मे पहले ही खबर कर देंगें तो कम से कम दूतावास पर कोई आँच नहीं आयेगी। …अगर नेपाल सरकार ने इस खबर की पुष्टि करने के लिये इस्लामाबाद से संपर्क साधा तब उसके बाद दूतावास का कोई आदमी या उसका परिवार पाकिस्तान की सीमा मे घुसने योग्य नहीं रहेगा। अपने दिमाग पर अंकुश लगाओ और जैसा कहा गया है वह करो। …जी जनाब। 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आखिरकार समीर और आँफसा के बीच सुलह हो गया मगर फिर भी फारूक ने बहुत ही तगड़ा प्लान बनाया था समीर को घेरने के लिए, और इस में कितना साथ मकबूल ने दिया है ये आगे पता चलेगा मगर कहीं न कहीं इतनी जल्दी फारूक हार तो नही मानेगा आगे देखते हैं क्या प्लान बनाया है समीर को पाकिस्तान ले जाने के लिए।

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    1. शुक्रिया अल्फा भाई। सुलह तो होनी थी परन्तु आफशाँ की बात से कोडनेम वलीउल्लाह नाम की साजिश की एक कड़ी खुल गयी थी। ताहिर के बयान के बाद आफशाँ के खुलासे ने साजिश की पहली परत खोल दी है।

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  2. आखिर आफशां और समीर के बीच का गलतफहमी का मनमुटाव, एक सुखद एकाकारपे आके खतम हो गया.
    अजित सर की तरफसे भी आफशां को लगबग क्लीनचिट मिल गयी, तो अब समीर पुरे फोर्स से अपने काम मे जुट गया है. देखतें है फारुख आगे क्या क्या करता है.

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    1. प्रशांत भाई अभी तक किसी को भी क्लीन चिट नहीं मिली है। आफशाँ ने कोडनेम वलीउल्लाह का एक पहलू आपके सामने रखा है। इसमे फारुख का पहलू भी जानना जरुरी है क्योंकि ताहिर के अनुसार फारुख ही कोडनेम वलीउल्लाह का हैंडलर था जिसके उपर आप्रेशन खंजर की जिम्मेदारी डाली गयी थी। धन्यवाद प्रशांत भाई।

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