रविवार, 14 जनवरी 2024

  

गहरी चाल-43

 

फारुख हमे कवर करता हुआ हमारे पीछे आकर खड़ा हो गया था। मकबूल बट सड़क पर पड़े हुए ट्रक के लोहे के कबाड़ की आढ़ मे चला गया था। …मेजर, मुँह खोलने की कोशिश मत करना। तुम सब मेरे निशाने पर हो। हम चुपचाप उस टूटे हुए ट्रक के साथ खड़े हुए सामने से आती हुई गाड़ी को देख रहे थे। जैसे-जैसे वह गाड़ी हमारे नजदीक आ रही थी वैसे-वैसे तनाव भी बढ़ता जा रहा था। मैने जल्दी से आफशाँ और नीलोफर को कमर से पकड़ कर अपने से सटा लिया था। वह हेड्लाइट निरन्तर नजदीक आ रही थी। इतना तो मुझे यकीन हो गया था कि वह सेना और पुलिस की गाड़ी तो हर्गिज नहीं हो सकती क्योंकि गाड़ी की छत पर फ्लैश लाईट और हूटर नहीं बज रहा था। अगर फारेस्ट वालों की पेट्रोल वैन हुई तो हम बहुत बड़ी मुसीबत मे फँस गये थे। एक ओर दो नेपाली सैनिको की लाश रेस्त्रां के मुख्य द्वार पर पड़ी हुई थी। दूसरी ओर जिहादियों को जमावड़ा हमे निशाने पर लेकर खड़ा हुआ था। रात के समय इस सड़क पर कोई निजि या पर्यटक कार के आने की संभावना तो बहुत कम थी। 

वह गाड़ी अंधेरे को चीरते हुए हमारी ओर बढ़ रही थी। उसकी हेडलाइट्स फुल बीम पर होने के कारण दूर से ही पूरी सड़क को रौशन कर रही थी। फारुख के साथी भी स्टेशन वेगनों के समीप मुस्तैदी के साथ खड़े हो गये थे। वह गाड़ी जैसे ही हमारे करीब पहुँची तो उसको देख कर मै चौंक गया। वह मेरी इसुजु लग रही थी। वह गाड़ी हमारे करीब पहुँचते हुए धीमी हो गयी थी। उसकी हेडलाइटस की रौशनी से आँखें चुँधिया गयी थी। फारुख की पिस्तौल हमारी दिशा मे तनी हुई थी। वह धीरे से घुर्राया… मेजर, अब कोई बेवकूफी करने की कोशिश मत करना। वह गाड़ी धीमे हो गयी परन्तु हमारे सामने रुके बिना ही वह आगे निकलते चली गयी थी। सबकी नजर उस इसुजु पर टिकी हुई थी। हेड्लाइट्स की रौशनी के पश्चात अंधरे मे एक पल के लिये मुझे साफ तो नहीं दिखा परन्तु ऐसा लगा कि इसुजु की खिड़की से किसी ने कोई चीज हवा मे उछाल दी थी। वह वस्तु उस गाड़ी की छत के उपर से होती हुई खड़ी हुई उन स्टेशन वैगनों की दिशा मे जाती हुई दिखायी दे गयी थी। फारुख की नजर भी उस हवा मे उड़ती हुई वस्तु पर पड़ गयी थी।

हम दोनो ही फौजी थे तो खतरे को भांप कर हमारी प्रतिक्रिया एक समान हुई थी। फारुख और मैने बचने के लिये छलांग लगायी। हम दोनो की छलांग मे बस इतना फर्क था कि उसने तेजी से मकबूल बट की दिशा मे छलांग लगा दी थी और मै अपने साथ आफशाँ और नीलोफर को लेकर सड़क के किनारे बने हुए बरसाती नाले मे कूद गया। उस वक्त मै बस इतना ही देख पाया था कि स्टेशन वैगन की दिशा एक भयानक विस्फोट हुआ था। उस विस्फोट के कारण हवा को चीरते हुये लोहे के टुकड़े हमारे सिर के उपर से निकल गये थे। कुछ पल अपनी बांहों मे आफशाँ और नीलोफर को बाँधे उस नाले मे पड़ा रहा। विस्फोट देख कर इतना तो समझ गया था कि उस इसुजु से एक ग्रेनेड उन स्टेशन वैगनों पर फेंका गया था। मैने धीरे से नाली से सिर बाहर निकाल कर सामने की ओर देखा तो बड़ा भयानक मंजर था। कुछ जिहादियों के क्षत-विक्षत जिस्म सड़क पर पड़े हुए थे। कुछ दिमागी रुप से सन्न हो कर जमीन पर घायल अवस्था मे बैठे हुए थे। एक स्टेशन वेगन तो पूरी तरह नष्ट हो गयी थी। बाकी पेट्रोल वेन और स्टेशन वैगन को भी काफी नुकसान हुआ लग रहा था।

दोनो को वहीं नाले मे छोड़ कर सामने का मंजर देखने के लिये मै जैसे ही उठा तो फारुख की आवाज मेरे कान मे पड़ी… सब बाहर निकलो। मैने सिर घुमा कर पीछे की ओर देखा तो वह अपनी एके-47 को हमारी ओर तान कर खड़ा हुआ था। मकबूल बट भी हमारी ओर पिस्तौल ताने खड़ा हुआ था। मैने दोनो को सहारा देकर उस नाले से बाहर निकाला और एक किनारे मे खड़ा हो गया। फारुख के चेहरे पर तनाव के साथ अब क्रोध भी झलक रहा था। उसकी एके-47 हम पर तनी हुई थी परन्तु वह हमारी ओर देखने के बजाय अपने दो गाजियों की ओर देख रहा था। फारुख का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था। नीलोफर अपनी कोहनियों और घुटनों पर आयी हुई चोट को आंकलन कर रही थी। मेरी दोनों कोहनियाँ और घुटने भी घायल हो गये थे लेकिन मेरे पास अपनी चोट देखने का समय नहीं था।

मैने जल्दी से कहा… फारुख हमे यहाँ से तुरन्त निकल जाना चाहिये। इस धमाके की आवाज पुलिस चौकी तक पहुँच गयी होगी। फारुख की घुर्रा कर पूछा… मेजर, तुम्हारे साथी कहाँ है? उनसे कहो कि वह सामने आ जायें। उसका सारा ध्यान इस वक्त मेरी ओर लगा हुआ था। मेरे किसी भी जवाब पर वह ट्रिगर दबाने से नहीं हिचकता तो मैने चुप रहने मे ही अपनी भलाई समझी लेकिन वह गुस्से से चीखते हुए बोला… तुम्हारा मेजर मेरे निशाने पर है। अगर जल्दी सामने नहीं आये तो…वह पूरा बोल भी नहीं पाया था कि तभी दो फायर हुये और उसकी आँखों के सामने बचे हुए दो जिहादी भी शहीद हो गये थे। उसने पहली बार फुर्ती दिखाते हुए अपने आप को मेरी आढ़ लेकर अपनी एके-47 की नाल मेरी पीठ पर टिका कर बोला… मेजर अपने साथियों से कहो कि वह बाहर निकल आये। इतनी देर मे मकबूल बट पहली बार बोला… फारुख अपने आप को संभालो। जब तक यह खबीस की औलाद हमारे निशाने पर है तब तक कोई हमारा कुछ नहीं कर सकता। मैने समझाने वाले स्वर मे कहा… फारुख, तुम दोनो का खेल खत्म हो गया है। यह सभी सैनिक है। आत्मसमर्पण कर दोगे तो शायद बच जाओगे। अभी मै पूरा बोल भी नहीं सका था कि मकबूल बट की दिशा से एक फायर हुआ और मुझे लगा कि एक लोहे की गर्म सलाख मेरी बाँह को चीरती हुई निकल गयी थी। न चाहते हुए भी मेरे मुँह से चीख  निकल गयी थी। मकबूल बट जोर से चिल्लाया… बाहर निकल आओ वरना अगली गोली तुम्हारे मेजर के सिर मे लगेगी। तभी विपरीत दिशा से जंगल की ओर से एक फायर हुआ और अगले ही पल मकबूल बट जमीन पर औंधे मुँह गिरते हुआ दिखा तो फारुख सतर्क हो गया था। पहली बार हमारे पीछे जंगल की ओर से फायर हुआ था। हम दो तरफ से घिर गये थे। जमीन पर करहाते हुए मकबूल बट ने भद्दी से भद्दी गालियों की झड़ी लगा दी थी।

तभी कैप्टेन यादव के साथ तीन सैनिक अंधेरे मे डूबे हुए रेस्त्रां से बाहर निकलते हुए दिखायी दिये। उनको देख कर मकबूल बट एक पल के लिये चुप हो गया था। मेरा दायाँ हाथ सुन्न हो गया था लेकिन मेरा दिमाग अभी भी सुचारु रुप से काम कर रहा था। वह चारों अपने हथियार ताने सड़क पर हमारे सामने आकर खड़े हो गये थे। कैप्टेन यादव ने पहली बार अपने फौजी अन्दाज मे कहा… फारुख, तुम घेर लिये गये हो। यहाँ से निकलना अब तुम्हारे लिये मुम्किन नहीं है। फारुख जानता था कि अगर मुझे कुछ हो गया तो वह भी यहाँ से जिन्दा बच कर नहीं निकल सकेगा। मैने एक बार अपने साथ खड़ी हुई आफशाँ की ओर देखा और फिर कैप्टेन यादव को आँख से इशारा करते हुए धीरे से आगे की ओर झुका लेकिन फारुख ने अपनी एके-47 की नाल मेरी पसली मे गड़ा कर बोला… मेजर, यह चालबाजी मेरे साथ नहीं चल सकेगी। तुम भूल गये हो कि मै भी फौजी हूँ। तभी जंगल की ओर से फायर हुआ…धाँय…अबकी बार फारुख जमीन पर लोट गया था।

मैने मुड़ कर देखा तो अंधेरे मे से एक साया जंगल से निकला और धीमे कदमों से चलते हुए हमारे सामने आकर खड़ा हो गया था। उसकी बेरेटा का रुख फारुख की ओर था। मैने उसको देखा तो एक पल के लिये जड़वत खड़ा रह गया था। …भाईजान सलाम वालेकुम। मै लड़खड़ा गया और साथ खड़ी आफशाँ ने आगे बढ़ कर जल्दी से मुझे थाम लिया। …भाईजान तुमने सारी जिन्दगी दलाली की है तो भला तुम कब से फौजी हो गये? उसकी आवाज मे कोमलता के बजाय एक अजीब सा कड़कपन झलक रहा था। जमीन पर घायल पड़े हुए फारुख ने गरदन घुमा कर उसकी ओर देख कर जोर से चिल्लाया… हया। …जी भाईजान। नीलोफर, इस बाजवा के पालतू कुत्ते की गन उठा ले। उसने एक उड़ती हुई नजर उस पर डाल कर एक बार मेरी ओर देखा और फिर मकबूल बट की ओर चली गयी थी। …मकबूल बट आखिरी बार अपने खुदा को याद कर ले। एकाएक ट्रिगर पर उसकी उँगली कसते हुए देख कर मै लड़खड़ा कर उठा और तेजी से उसकी ओर बढ़ते हुए जोर से चिल्लाया… अंजली नहीं। प्लीज रुक जाओ। एक पल के लिये वह रुक कर मेरी ओर देखने लगी तभी मकबूल बट ने अपने पास पड़ी हुई पिस्तौल को उठा कर अंजली की दिशा मे फायर कर दिया था। मै तब तक झपट कर अंजली के सामने पहुँच गया था। वह गोली मेरी पीठ मे एक गर्म सलाख की तरह धँसती चली गयी और उसके वेग के कारण मै हवा मे उछल कर जमीन पर गिर गया था। मेरी नजर अंजली पर टिकी हुई थी। उसने एक के बाद एक दो फायर किये… धाँय…धाँय…और मकबूल बट का सिर तरबूज की भांति फट कर बिखर गया था। उसी पल एके-47 चलने की आवाज मेरे कान मे पड़ी तो मैने उस दिशा मे सिर घुमाया लेकिन तभी एक तीक्षण पीड़ा के कारण मेरी आँखे खुल गयी और मेरे मुख से गहरी चीख निकल गयी थी। मै बेबस सा धरती पर पड़ा हुआ अपने पीछे झपटती हुई आफशाँ को हवा मे लहरा कर जमीन पर गिरते हुए देखता रह गया था। मेरा सब कुछ लुट गया था। यह मंजर देखते ही मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया था।

अचानक मेरे जिस्म मे हरकत हुई तो मैने अपनी आँखें झपकाते हुए खोली तो एहसास हुआ कि अंजली मुझे पकड़ कर सहारा देकर बैठाने की कोशिश कर रही थी। मै अंजली का सहारा लेकर सड़क पर बैठते हुए बोला… झाँसी की रानी। उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गयी थी और मेरी पलकें लगातार झपक रही थी। मेरे मानसपटल पर बेहोशी हावी होती जा रही थी। मेरी क्षीण होती हुई शक्ति को एक बार संजो कर मै जल्दी से बोला… मेरा तो सब कुछ लुट गया है। इस दरिन्दे को जिन्दा मत छोड़ना। बस इतना बोल कर मेरी आँखों के सामने आफशाँ के गिरने का दृश्य सामने आ गया था। मेरे लिये सब कुछ समाप्त हो गया और एक अजीब सी शांति अपने अन्दर महसूस करते हुए मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया था।

मेरी आँख धीरे से खुली परन्तु तेज रौशनी के कारण आँखें स्वत: ही मुंद गयी थी। मैने उठ कर बैठने की कोशिश की लेकिन मेरे सिर मे पीड़ा की तेज लहर उठी जिसके कारण मै अपना सिर पकड़ कर लेट गया था। मैने लेटे-लेटे चारों ओर नजर घुमा कर स्थिति का जायजा लिया तो एहसास हुआ कि मै पथरीली जमीन पर लेटा हुआ हूँ। चारों ओर गहरा अंधेरा छाया हुआ था। तेज रौशनी सिर्फ एक दिशा की ओर आ रही थी। अबकी बार कैप्टेन यादव ने सहारा देकर मुझे बैठाते हुए पूछा… सर, आप ठीक है? मैने धीरे से सिर हिला कर कहा… हाँ ठीक हूँ। मैने अबकी बार आँख खोल कर अपने आसपास नजर डाली तब एहसास हुआ की मै सड़क के किनारे बैठा हुआ था। सामने खड़ी हुई पिक-अप की हेडलाइट ने सारी जगह को रौशन कर रखा था। …सर, यहाँ से हमे तुरन्त निकलना पड़ेगा। …कितनी देर मै बेहोश रहा? …सर, एक घन्टे से ज्यादा हो गये है। कैप्टेन यादव ने सहारा देकर मुझे खड़ा किया तो एक बार फिर से मुझे चक्कर आ गया था। अपने आपको संभालने के लिये मैने जल्दी से कैप्टेन यादव को पकड़ लिया और उसका सहारा लेकर पिक-अप की ओर चल दिया। मेरे साथियों ने मुझे घेर कर कवर कर लिया था। अचानक सारा पिछला घटनाक्रम याद आते ही मै चलते हुए ठिठक कर रुक गया।

…कैप्टेन, फारुख का क्या हुआ? …सर, अंजली मैडम ने उसको जिंदा जला दिया। इतना बोल कर कैप्टेन यादव अपने साथियों को पिक-अप मे बैठने का निर्देश देने मे लग गया था। अगले कुछ मिनट के बाद हमारी पिक-अप त्रिशुली हाईवे पर दौड़ रही थी। …सर, आपका दाँया कन्धा घायल है और पीठ मे अभी भी गोली फंसी हुई है। हमने मार्फीन का इन्जेक्शन देकर उसके दर्द को कुछ देर के लिये कम तो कर दिया है लेकिन हमे जल्दी से जल्दी इसका इलाज करवाना पड़ेगा। आपका काफी खून बह गया है। तभी आगे बैठे हुए एक सैनिक की आवाज गूँजी… सर, सामने नर्सिंग होम का निशान दिख रहा है। कैप्टेन यादव ने तुरन्त कहा… उस ओर ले चलो। हाईवे से लिंक रोड लेते हुए हमारी पिक-अप उस नर्सिंग होम की ओर मुड़ गयी थी। कुछ ही देर मे हम नर्सिंग होम के सामने पहुँच गये थे। मुझे चक्कर आ रहा था और बड़ी मुश्किल से अपने आप को होश मे रखने की कोशिश कर रहा था। पिक-अप रुकते ही कैप्टेन यादव तेजी से उतर कर नर्सिंग होम के अन्दर चला गया और मेरे साथ बैठे हुए एक सैनिक ने मुझे सहारा देकर पिक-अप से नीचे उतार दिया। मेरी नजर तभी नर्सिंग होम के द्वार पर पड़ी जहाँ से अर्दली एक स्ट्रेचर लेकर बाहर निकलता हुआ दिखायी दिया तो मै लड़खड़ाते हुए उस दिशा मे चल दिया। कमजोरी और मार्फीन के कारण दिमाग सुन्न होता चला गया था।

मेरी जब आँख खुली तो अबकी बार अपने आपको नर्सिंग होम के बिस्तर पर पड़ा हुआ पाया था। कैप्टेन यादव मेरे सिरहाने खड़ा हुआ था। सामने की ओर एक वृद्ध सा डाक्टर और उसके साथ नर्स खड़ी हुई थी। मेरे दो साथी द्वार पर खड़े हुए थे। मुझे होश मे आता देख कर डाक्टर ने आगे बढ़ कर जल्दी से मेरी नब्ज को टटोल कर देखा और फिर अपने गले मे लटके हुए स्टेथेस्कोप को मेरे सीने पर लगा कर मेरी धड़कन चेक करने के बाद बोला… सब ठीक है। अभी इन्हें कुछ दिन आराम करने की जरुरत है। कैप्टेन यादव ने मुझे सहारा देकर बैठाते हुए पूछा… सर, गोली निकाल दी है। बैठते हुए मैने भी महसूस किया कि अब मेरे सिर मे दर्द भी नहीं था और चक्कर भी नहीं आ रहे थे। दिमाग ने भी सुचारु रुप से काम करना आरंभ कर दिया था। मैने जल्दी से कहा… कैप्टेन, हम यहाँ पर ठहर नहीं सकते। हमे निकलना चाहिये। …यस सर। कैप्टेन यादव ने मुझे सहारा देकर खड़ा किया और डाक्टर को देख कर बोला… थैंक्स डाक्टर। डाक्टर ने कुछ नहीं कहा बस उसने धीरे से अपना सिर हिला दिया था। हम चारों जब बाहर निकल कर आये तब मुझे एहसास हुआ कि दिन निकला हुआ था। सुर्य की रौशनी मे आँखें पल भर के लिये चुंधियाँ गयी थी। मेरे दिमाग मे बहुत से प्रश्न उठ रहे थे परन्तु फिलहाल मै जल्दी से जल्दी वहाँ से निकलना चाहता था। जमीन पर गिरती हुई आफशाँ का दृश्य एक पल के लिये मेरी आँखों के सामने से निकल गया था। 

कुछ ही देर मे हम वापिस त्रिशुली हाईवे पर पहुँच गये थे। … कितने दिन अस्पताल मे बेहोश रहा? …तीन दिन। …हमारी टीम मे कोई हताहत हुआ? …नहीं सर। सब सुरक्षित है। …कैप्टेन सीधे गोदाम पर चलो। मुझे अपनी रिपोर्ट फाइल करनी है। …बचन सिंह गोदाम की ओर चलो। हम बात करते हुए गोदाम पहुँच गये थे। कुछ देर बाद मै स्क्रीन के सामने बैठ कर जनरल रंधावा से बात कर रहा था। …फारुख की कहानी का अंत हो गया? …यस सर। फारुख के साथ मकबूल बट भी मारा गया। जमात अब बिना सिर की संस्था बन गयी है। …पुत्तर, पाकिस्तान से खबर मिली है कि जिहाद काउन्सिल भी छिन्न-भिन्न होकर बिखर गयी है। तुम वापिस कब आ रहे हो? …सर, मै दो हफ्ते की छुट्टी पर हूँ। छुट्टी समाप्त होते ही वापिस ड्युटी पर पहुँच जाऊँगा। …वीके और अजीत चाहते है कि तुम जल्दी से जल्दी वापिस रिपोर्ट करो। ऐसा करो कि तुम अभी अजीत से फोन पर बात कर लो। वह तुमसे कोई जरुरी बात करना चाहता है। …जी सर। इतनी बात करके संपर्क टूट गया तो विजय कुमार ने पूछा… सर, दोबारा कन्नेक्ट करुँ? …नहीं रहने दो। मेरी बात हो गयी है। मै वहाँ से उठ गया और अपना मोबाइल निकाल कर अजीत सर का नम्बर मिलाया।

दो घंटी के बाद ही उनकी आवाज कान मे गूंजी… समीर। …सर। …क्या तुम्हारा काम समाप्त हो गया? …जी सर। एक पल के लिये मै खामोश हो गया था। …क्या हुआ समीर? …कुछ नहीं सर। मुझे समझ मे नहीं आ रहा कि फारुख ने आफशाँ को ही क्यों कोडनेम वलीउल्लाह  के लिये चुना था। …समीर, जब तुम दोनो वापिस आओगे तब मै इसके बारे मे खुल कर समझा दूँगा। बस इतना जान लो कि कोडनेम वलीउल्लाह  असलियत मे हमारा काउन्टर आफेन्सिव का एक पाइलट प्रोजेक्ट था। आफशाँ तो बेचारी अनजाने मे उसका कवर बन गयी थी। यही सच्चायी है। इस लिये अपने दिल मे आफशाँ के लिये कोई द्वेष मत रखना। …जी सर। …तुम जब वापिस ड्युटी जोईन करोगे तब इस प्रोजेक्ट के बारे मे विस्तार से चर्चा होगी। गुड लक। इतनी बात करके उन्होंने फोन काट दिया था। अपने साथ खड़े कैप्टेन यादव से मैने पूछा… अंजली और नीलोफर कहाँ है? …सर, अंजली मैडम उसको अपने साथ ले गयी थी। …और मेनका? …सर, वह भी अंजली मैडम के पास है। तभी मुझे कुछ याद आया तो मैने पूछा… कैप्टेन मैने आफशाँ को गिरते हुए देखा था। वह ठीक तो है? इतनी देर मे पहली बार कैप्टेन यादव बोलते हुए गड़बड़ा गया था। …सर, फारुख ने एक-47  आपकी ओर फायर किया था लेकिन आफशाँ मैडम क्रासफायर मे फँस गयी थी। यह सुनते ही मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा। कुछ बुरा होने के अंदेशे के कारण पूछते हुए मेरी आवाज लड़खड़ा गयी… वह ठीक तो है? …सर, हमे पता नहीं। अंजली मैडम तुरन्त उन्हें अपने साथ ले गयी थी। यह सुन कर मुझे ऐसा लगा कि एकाएक मेरे पाँवों ने मेरा वजन उठाने से इंकार कर दिया और लड़खड़ा कर जमीन पर बैठ गया था। मुझे उसके बाद कुछ याद नहीं लेकिन जब आँख खुली तो मै अपने फ्लैट के बेडरुम मे लेटा हुआ था।

कैप्टेन यादव, लेफ्टीनेन्ट सावरकर के साथ मेरे अन्य साथी मुझे घेर कर बैठे हुए थे। एक डाक्टर मेरा निरीक्षण करने मे जुटा हुआ था। …हैलो, आपका क्या नाम है? मैने लड़खड़ाती हुई आवाज मे कहा… समीर बट। …आप इस वक्त कहाँ है? …अपने बेडरुम मे हूँ। इतना बोल कर मैने उठ कर बैठने की कोशिश की परन्तु असफल रहा। …आपको आराम की जरुरत है। मैने जल्दी से लम्बी-लम्बी दो चार सांसें लेकर कहा… कैप्टेन सबको कमरे से बाहर जाने के लिये कहो। कैप्टेन यादव को किसी से कहना नहीं पड़ा क्योंकि सभी जल्दी से कमरे से निकल गये थे। सबके जाने के बाद मैने पूछा… कैप्टेन उस रात को वहाँ क्या हुआ था? …सर, आफशाँ मैडम क्रासफायर मे घायल हो गयी थी। आपके बेहोश होते ही अंजली मैडम ने अपनी गाड़ी से डीजल निकलवा कर घायल फारुख को वहीं जिन्दा जला दिया था। उसके बाद आपको हमारे हवाले करके वह आफशाँ मैडम और नीलोफर मैडम को अपने साथ लेकर से चली गयी थी। मै चुपचाप कैप्टेन यादव की सुन रहा था। …सर आपको उस वक्त बताना मैने उचित नहीं समझा क्योंकि आपकी खुद की हालत काफी नाजुक थी। इतना बोल कर वह चुप हो गया था।

…कैप्टेन, अंजली कहाँ है? …सर, शनिवार से उन्हें किसी ने नहीं देखा है। …और मेनका? …सर, वह भी अंजली मैडम के पास है। हम सभी लोग तो आपके साथ थे। लेफ्टीनेन्ट सावरकर अंजली मैडम के साथ था लेकिन शनिवार को उसको उन्होंने वापिस भेज दिया था। जब गोदाम से हम आपको लेकर यहाँ आये तो उस वक्त यहाँ पर कोई नहीं था। सब कुछ सुन कर मेरा दिल बैठ गया था। अनेक विचार दिमाग मे आ रहे थे परन्तु मन खिन्न होने के कारण मै अपना ध्यान केन्द्रित करने योग्य नहीं था। …ठीक है कैप्टेन। आप अपने साथियों को गोदाम ले जाईये। अब मै आराम करना चाहता हूँ। …सर, आप कहे तो दो सैनिक आपकी सुरक्षा के लिये यहाँ छोड़ देता हूँ। …नहीं सब ठीक है। आप लोग फिलहाल मुझे अकेला छोड़ दिजिये। कैप्टेन यादव बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल गया था। उसके जाने के बाद कुछ देर तो मै शून्य मे ताकता रहा फिर गहरी नींद मे डूब गया था। अचानक मेरी आँखों के सामने आफशाँ का मुस्कुराता हुआ चेहरा आया तो मै झपट कर उठ कर बैठ गया था।

कमरा अंधेरे मे डूबा हुआ था। मै कराहाते हुए उठा और साइड टेबल पर रखे हुए टेबल लैम्प का स्विच आन करके कमरा रौशन किया। अब तक दवाईयों का नशा मेरे दिमाग से उतर चुका था। एक ही सवाल मेरे दिमाग मे घूम रहा था। …अंजली कहाँ जा सकती है? बहुत से सवाल थे परन्तु मेरे पास जवाब किसी एक का भी नहीं था। जो जवाब दे सकती थी वह भी घर पर नहीं थी। मै यकीन से कह सकता था कि फारुख ने अंजली को देख कर तबस्सुम के बजाय हया कहा था। उसके बाद उसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी। यह भी सच था कि उस वक्त मेरे कन्धे मे गोली लगने के कारण मेरा दिमाग सुन्न हो गया था। मै सुनने मे भी गलती कर सकता था क्योंकि पहली बार जब मैने तबस्सुम को देखा था तब मेरे मुख से मिरियम का नाम अनजाने मे निकल गया था। मेजर हया इनायत मीरवायज और तबस्सुम मेरे लिये एक अनबूझी पहेली बन गयी थी। अजीत सर के रहस्योद्घाटन ने मेरी सोच को और भी ज्यादा उलझा दिया था। क्या सच है और क्या झूठ? मै इसमे उलझ कर रह गया था। नीलोफर कहाँ है? यह ख्याल आते ही मेरा जिस्म एक पल के लिये ठंडा पड़ गया था। यह तो मै जानता था कि वह आफशाँ के करीब थी और अब मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि दोनो हया के भी काफी करीब थी। सबसे ज्यादा मेरी चिन्ता का विषय मेनका थी। वह सब इस वक्त कहाँ है? इतने सारे प्रश्न एक साथ मेरे दिमाग मे घूम रहे थे।

मेरे अचानक उठने के कारण मेरे जिस्म का एक हिस्सा पके हुए फोड़े की तरह तड़क रहा था। दवाई का असर समाप्त हो गया था और अब दर्द दिमाग मे घन की तरह प्रहार कर रहा था। मेज के किनारे रखे हुए दवा के पैकिट को उठा कर मै लड़खड़ाते हुए खड़ा हो गया। रात के दस बज रहे थे। मैने पहले लाइट जला कर कमरे को रौशन करके बाहर निकल कर बैठक मे आया तो मेरी नजर रसोई की ओर चली गयी जहाँ लाइट जल रही थी। एकाएक मन मे एक विचार आया तो मै तेजी से रसोई की ओर चला गया था। रसोई मे सरिता की माँ को काम करते हुए देख कर मैने बुझे मन से पूछा… अम्माजी आप क्या कर कर रही है? …साहबजी आपके खाने के लिये कुछ बना रही हूँ। मैने फ्रिज से पानी की बोतल निकाल कर दवाई लेने के बाद पूछा… अंजली कहाँ है? …बिटिया अस्पताल मे है। आपको नहीं पता? जैसे ही उसकी नजर मेरे कन्धे पर पड़ी तो वह चीखते हुए बोली… साहबजी आपके घाव से खून रिस रहा है। पहली बार मेरा ध्यान अपने कन्धे की ओर गया जहाँ पट्टी खून से लाल हो गयी थी। मैने जल्दी से कहा… घबराने की बात नहीं है अम्माजी। हल्की सी चोट है। मै डाक्टर को दिखाने जा रहा था। आपको देख कर रुक गया।

मैने कैप्टेन यादव को फोन लगाया और तुरन्त पहुँचने को कह कर नीचे आफिस की ओर चल दिया। मन मे बुरे विचार आ रहे थे। अगर अंजली अस्पताल मे है तो क्या उसको भी मुठभेड़ मे चोट लग गयी या वह आफशाँ की तीमारदारी के लिये अस्पताल मे रुकी है? यही सोच कर मैने यादव को बुलाया था। नारायन बहादुर आफिस के गेट पर तैनात था। मुझे देखते ही वह उठ कर मेरे पास आकर बोला… साबजी बाहर जा रहे है? …हाँ। मेरी गाड़ी आ रही है। यह कहते हुए मै उसके स्टूल पर बैठ गया था। …बहादुर बाहर गेट पर जाओ और देखो की हमारी पिक-अप तो नहीं आ गयी। बाहदुर तुरन्त बाहर सड़क की ओर चला गया था। कुछ देर के बाद बहादुर की आवाज मेरे कान मे पड़ी… साबजी आपकी गाड़ी आ गयी है। मै दीवार का सहारा लेकर बाहर निकल आया। कैप्टेन यादव ने सहारा देकर मुझे पिक-अप मे बिठा कर पूछा… कौन से अस्पताल चलना है? …वहाँ चलो जहाँ ज्यादा सवाल-जवाब नहीं होगें। …सर तो मनीपाल अस्पताल चलते है। …हाँ वहीं चलो। कुछ ही देर मे हम मनीपाल अस्पताल के बाहर उतर गये थे।

इमरजेन्सी मे पहुँच कर मैने अपने आप को रजिस्टर करवाया और फिर तुरन्त डाक्टर अपने कार्य मे जुट गये थे। …क्या हुआ था? कैप्टेन यादव ने जल्दी से कहानी बनाते हुए कहा… पोखरा मे माओइस्टों की फायरिंग मे घायल हो गये थे। वहीं पर सरकारी अस्पताल मे इनका इलाज हुआ था। आज ही लौट कर आये थे कि शाम को घाव रिसने लगा। कुछ ही देर मे कंधे की नयी ड्रेसिंग करके पीठ के घाव का निरीक्षण करने के बाद डाक्टर ने कहा… इनको कुछ दिनों के लिये यहाँ भर्ती करवा दिजीये। यह अभी चलने-फिरने के योग्य नहीं है। इन्हें आराम की सख्त जरुरत है। पोखरा के सफर मे घाव खुल गया था। कुछ दिन यहीं आराम करेंगें तो रिकवरी जल्दी हो जाएगी। एक हफ्ते मे डिस्चार्ज करवा लिजियेगा। कैप्टेन यादव ने मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से हामी भर दी और वार्ड बोय मुझे स्ट्रेचर पर लेकर कमरे की ओर चल दिया। प्राइवेट रुम मे शिफ्ट होने के बाद मैने कहा… कैप्टेन, अम्माजी से मुझे पता चला है कि अंजली अस्पताल मे है। पता करो कि वह कौनसे अस्पताल मे है। कैप्टेन यादव के जिम्मे यह काम सौंप कर मै बिस्तर पर लेट गया। कुछ देर के बाद एक नर्स ड्रिप लगा कर चली गयी थी।

अगले दिन सुबह मेरी आँख खुली तो मेरे सामने यादव खड़ा हुआ था। …उनका कुछ पता चला? …नहीं सर। अब दर्द का क्या हाल है? …सब ठीक है। वह कुछ देर मेरे साथ बैठ कर वापिस चला गया था। सारा दिन मेरा सिर्फ सोते हुए और पिछले कुछ दिनों की घटनाओं की समीक्षा मे गुजर गया था। दिमागी बैचेनी शान्त करने के लिये कभी टीवी खोल कर बैठ जाता और कभी बैठे-बैठे उँघने लगता था। अगले तीन दिन मेरे घाव भरने लगे थे। कैप्टेन यादव रोज अस्पताल मे कुछ समय मेरे साथ बिता कर वापिस चला जाता था। कारोबार की सारी जिम्मेदारी उसके कन्धों पर आ गयी थी। इस बीच अंजली, आफशाँ, मेनका और नीलोफर का कुछ अता पता नहीं था। अंजली की असलियत के कारण एक झिझक थी इसलिये मै उसके बारे मे यादव से ज्यादा पूछताछ भी नहीं कर रहा था। रोजाना अंजली का इंतजार करता लेकिन शाम होते ही सारी उम्मीद धाराशायी हो जाती थी।

कोडनेम वलीउल्लाह  एनएसए अजीत सुब्रामन्यम का पाईलट प्रोजेक्ट था तो फिर आफशाँ को वलीउल्लाह बना कर फारुख ने अपने एस्टेबलिश्मेन्ट के सामने क्यों रखा था? इस सवाल का जवाब देने वाला अब इस दुनिया मे नहीं था। दूसरी ओर अंजली की असलियत ने मुझे अन्दर से हिला कर रख दिया था। आईएसआई की मेजर हया इनायत मीरवायज इतने दिनो तक मेरे साथ तबस्सुम और अंजली बन कर क्यों रह रही थी। अम्मी और आलिया को मारने मे उसका हाथ था। उसकी मोहब्बत मे एक बार भी मुझे कृत्रिमता या दिखावा महसूस नहीं हुआ था। क्या वह इतनी अच्छी अदाकारा थी? मेरे साथ ही उसने ऐसा क्यों किया था। वह जब मिली थी तब तो मै एक अदना सा फौज का मेजर था। वह तो बाद मे सरकार बदलने के कारण मै ऐसे आफिस मे बैठ गया था। उसमे हया का क्या फायदा था? आफशाँ और नीलोफर के साथ उसके बड़े प्रगाड़ संबन्ध भी थे। सब कुछ सोचते हुए मै लगभग पागल होने की कगार पर पहुँच गया था। मेरे सभी प्रश्नों के जवाब अंजली ही दे सकती थी परन्तु वह गायब हो गयी थी। मेनका भी उसके साथ होने के कारण मेरी चिन्ता और भी ज्यादा बढ़ गयी थी।

चौथे दिन की सुबह होते ही कैप्टेन यादव ने सूचना दी कि अंजली वापिस फ्लैट मे आ गयी है। मेनका उसके साथ थी। मैने डाक्टर से डिस्चार्ज के बारे मे पूछा तो उसने दो दिन और रुकने के लिये कह दिया था। ड्रिप वगैराह और अन्य साजोसामान हट गया था। टाइम से नाश्ता और खाना मिलने के कारण अब चलने फिरने मे भी कोई तकलीफ नहीं थी। अंजली के प्रति एक डर दिल मे घर करने लगा था। उस शाम के बाद से अंजली को मैने नहीं देखा था। मन मे तरह-तरह के बुरे ख्याल आ रहे थे। अस्पताल मे अकेले पड़े रहने के कारण अंजली से मिलने की इच्छा प्रबल होती जा रही थी। अंजली से मिलने के लिये शाम से ही मै अपनी योजना बनाने मे जुट गया था। मुझे विश्वास नहीं था कि वह मेरे डिस्चार्ज होने तक वहीं पर रुकेगी। रात को नौ बजे तक डाक्टर और नर्स के राउन्ड समाप्त हो गये थे। दवाई और खाने की जिम्मेदारी पूरी कर ली थी। मैने आज रात को अंजली से मिलने का फैसला कर लिया था। एक बार आमने-सामने बैठ कर मुझे उससे बात करने की जरुरत थी। मेनका उसके पास होने के कारण मै हथियारों के खेल मे पड़ना नहीं चाहता था। मेरी ग्लाक-17 मेरे पास नहीं थी परन्तु उसके पास बेरेटा थी। इतना तो मै समझ गया था कि बिना हथियार के उसका सामना करना अपनी जान को जोखिम मे डालना जैसा है परन्तु मेनका के लिये मुझे उसका सामना करना पड़ेगा। रात के दस बजते ही अस्पताल के कपड़े बदल कर मै बाहर निकलने के लिये तैयार हो गया था।

प्रधानमंत्री निवास, इस्लामाबाद  

…जनाब, आप्रेशन खंजर के पीछे सीआईए सेवानिवृत स्टोन का दिमाग था। जनरल शरीफ और जनरल बाजवा ने आपको अंधेरे मे रख कर उस योजना को कुछ कश्मीरी तंजीमों के साथ मिल कर कार्यान्वित करने की साजिश रची थी। ब्रिगेडियर शुजाल बेग ने उनकी साजिश का समय से पहले खुलासा करके हमे बहुत बड़ी मुश्किल से बचा लिया है। …शुजाल बेग कहाँ है? …जनाब, वह कनाडा मे अपने परिवार के साथ है परन्तु वापिस ड्युटी पर आना चाहता है। …अभी नहीं। पहले इस मामले को दबने दो। जनरल शरीफ और जनरल बाजवा कहाँ है? …जनाब, वह दोनो भी रातों रात गायब हो गये है। …आप्रेशन खंजर से जुड़े हुए सभी लोगों को वहाँ से हटा दो। सबको बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान मे नियुक्त कर दो। इन सब लोगों की यही सजा है। …जनाब, इस आप्रेशन से जुड़ा हुआ एक व्यक्ति आईएसआई का मेजर फारुख मीरवायज अभी भी वहीं पर बैठा हुआ है। अगर वह भारतीय सुरक्षा एजेन्सी के हाथ लग गया तो अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर हमारी बड़ी किरकिरी हो जाएगी लेकिन उसने लौटने से साफ शब्दों मे मना कर दिया है। …क्या उसके बारे मे हिन्दुस्तानियों को पता है? …पता नहीं जनाब। …जनरल फैज आपको आईएसआई का चार्ज यही सोच कर दिया गया है कि आप्रेशन खंजर की फाईल और उससे जुड़े हुए लोगो को हमेशा के लिये बन्द कर दिया जाये। इस आप्रेशन का जिक्र फिर कभी नहीं होना चाहिये।

…जनाब, आज आपके पास आने का दूसरा कारण था। कोडनेम वलीउल्लाह की असलियत खुल गयी है। वलीउल्लाह ने हमसे संपर्क साधा है और वह हमारी मदद से तुरन्त वहाँ से सुरक्षित बाहर निकलना चाहती है। हमने अपने लोगो को सक्रिय कर दिया है। पहला मौका मिलते ही हम उसे वहाँ से निकाल देंगें। प्रधानमंत्री ने अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा… मै वलीउल्लाह से मिलना चाहता हूँ। …जी जनाब। अब इजाजत दिजिये। खुदा हाफिज।

जनरल फैज ने करारा सा सैल्यूट किया और आफिस से बाहर निकल गया था। 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज के अंक ने सारी बातें उलट कर रख दी अगर तबस्सुम ही हया है तो पहले जब फारुख ने अपने बेटी को मरवाने के लिए समीर के आगे नाटक किया था तब भी यह उन दोनो भाई बहनों की साजिश थी लगता है और नीलोफर और अफसां का भी कहीं न कहीं तबस्सुम/अंजली/ हया के साथ कनेक्शन रहा है पीछे। मगर अब यह चिईज उलझ गया है की आखिर आलिया और समीर की अम्मी को हया ने क्यों मरवाया। खैर अब आगे क्या होगा यह देखना दिलचस्प होगा।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. अल्फा भाई कहानी पढ़ते हुए शीर्षक को अनदेखा मत किजिये। अब शतरंज की बिसात पर बिछी हुई सबकी चालें एक-एक करके सामने आ रही है परन्तु यह मत भुलियेगा कि काफ़िर की कहानी ने गहरी चाल की नींव रखी थी। शुक्रिया भाई।

      हटाएं
  2. तबस्सुम,मेजर हया या अंजली क्या कहे,उसका ऐसा रूप देखके हक्का बक्का होना लाजमी था. क्या समिरने आफशा के रूपमे एक और अपना खो दिया है?
    कहाणी बुरी तरहसे उलझ गई है. शायद अम्मी और आलिया की हत्या का भी परदाफाश हो जाएगा. देखते है कहाणी कीस करवट आगे बढती है.
    सभी राम भक्तोको रामलल्लाके आगमन की ढेरो शुभकामना.
    !!जय श्रीराम!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्राशांत भाई शुक्रिया। अब उलझने सुलझ रही है और सभी साजिशें खुल रही है। जय जय श्री राम।

      हटाएं