शह और मात-10
हमारे बीच बस इतनी
बात हो सकी थी क्योंकि तभी साथ बैठे हुए बुजुर्ग ने पूछा… क्या बड़बड़ा रहा है? मैने
जल्दी से कहा… कुछ नहीं बस बीवी की कुछ बातें याद आ गयी थी। वह हँसते हुए बोला… यह
कौनसी नम्बर की बीवी है? …पहली है। …तू हाँ बोल तो यहीं किसी पश्तून लड़की से तेरा निकाह
कल करा दूँगा। …बड़े मियाँ रहने दो। एक ने जीना हराम कर दिया है। दो महीने से नाराज
होकर मायके मे पड़ी हुई है। तभी वह बुजुर्ग उठ कर खड़ा होते हुए बोला… चलो उठो। जलालाबाद
पहुँचने का तो इंतजाम हो गया है। मैने सड़क की ओर देखा तो एक छोटा ट्रक हमारे करीब आकर
रुका और उन चारों मे से एक उतर कर बोला… चलो सब पीछे बैठ जाओ। हमारे साथ चल तुझे भी
जलालाबाद उतार देंगें समीर। हम सभी पीछे जाकर बैठ गये थे। खाली ट्रक होने के कारण पैर
फैला कर मै एक किनारे मे बैठ गया था। हाईवे की हालत काफी खस्ता थी लेकिन फिर भी ट्रकों
की लाईन लगी हुई थी। सड़क के दोनो ओर उजड़ी हुई इमारतें अफगानिस्तान की असली हालत दर्शा
रहे थे। तालिबान और अमरीकन फौज के बीच युद्ध की यह कुछ जीवन्त निशानियां अभी भी बची
हुई थी। जलालाबाद पहुँचने मे दो घन्टे लग गये थे। …समीर काबुल जाने के लिये तू यहाँ
उतर जा। उतरने से पहले मैने कहा… बड़े मियां अगर बीवी चलने को राजी नहीं हुई तो तुमसे
मिलने के लिये कहाँ आना होगा। …ईदगाह मस्जिद पहुँच जाना। मुझे वहाँ पर सब दिलावर पठान
के नाम से जानते है। तभी जीनत मेरे करीब आयी और मुझसे लिपट कर बोली… चचाजान आप भी हमारे
साथ चलिये। बात करते हुए अचानक मुझे लगा की उसका हाथ मेरी जेब मे सरक गया परन्तु मै
कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था। जलालाबद शहर मे जाने वाले मोड़ पर वह मुझे उतार
कर आगे चल बढ़ गये थे।
उनके ट्रक के निकलते
ही मैने अपनी जेब मे हाथ डाल कर पर्स को जाँचा तो एहसास हुआ कि पर्स के साथ एक कार्ड
जैसी वस्तु रखी थी। मैने जल्दी से वह कार्ड निकाल कर देखा तो मुड़ा-तुड़ा सरकारी स्कूल
का आईडेन्टिटी कार्ड का था। फोटो किसी स्कूल की बच्ची की थी। नाम की जगह वैजयन्ती उन्नीकृष्नन
लिखा हुआ था। उस कार्ड पर उसका पता कालीकट का दिया हुआ था। मै हैरानी से उस कार्ड को
कुछ देर देखता रहा फिर कुछ सोच कर वापिस जेब के हवाले करके काबुल जाने के साधन का इंतजाम
करने के लिये निकल गया। हाईवे होने के कारण मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा था। ट्रक
मे बैठ कर शाम तक काबुल शहर पहुँच गया था। दिन मे सफर कर रहा था तो अफगानिस्तान के
हालात का भी जायजा ले रहा था। सारे रास्ते मे अमरीकन फौज कहीं नहीं दिखी थी। एक दो
बार फौज की गाड़ी या विदेशी संस्थाओं की गाड़ियाँ जरुर देखने को मिल गयी थी। काबुल शहर
अंधेरे मे दूर से बिजली की रौशनी मे जगमगाता हुआ दिख रहा था। मुझे काबुल शहर मे छोड़
कर ट्रक आगे निकल गया था। रात की जगमगाहट देखते हुए पैदल एक होटल की तलाश निकल गया।
पहले मैने सोचा था कि किसी सस्ते से होटल मे रुक जाऊँ परन्तु तभी ख्याल आया कि यहाँ
पर मुझे दूतावास के अधिकारियों से मिलना था तो एक टैक्सी पकड़ कर भारतीय दूतावास के
करीब काबुल लाज मे ठहर गया था।
कमरे मे पहुँच कर
सबसे पहले अपने फोन चालू करके चार्जिंग पर लगा कर थकान और धूल मिट्टी साफ करने के लिये
बाथरुम मे घुस गया। आधा घँटा गर्म पानी के टब से जब बाहर निकला तब तक सारे जिस्म की
थकान समाप्त हो गयी थी। सबसे पहले मैने सेटफोन से कमांड सेन्टर का नम्बर मिलाया… हैलो।
…सर, मै काबुल पहुँच गया हूँ। अब मुझे आगे की कार्यवाही के लिये आप ब्रीफ कर दिजिये।
…समीर, मै अजीत को लाईन पर ले रहा हूँ। तू थोड़ा इंतजार कर। इस बीच मे मैने अपने स्मार्टफोन
पर नजर डाली तो बहुत सी मिस्ड काल डिस्प्ले पर दिख रही थी। तभी अजीत सर की आवाज गूंजी…
ब्रिगेडियर साहब। …जी सर। मै काबुल पहुँच गया हूँ। …समीर, जिरगा के लिये अब तेहरीक
और तालिबान को साधने का समय आ गया है। …जी सर। कल श्रीनिवास के साथ मीटिंग मे क्या
करना है? …ठहरो, वीके भी हमे जोइन करने वाला है। नीलोफर के क्या हाल है? …सर, काफी
रिसोर्सफुल एस्सेट साबित हो रही है। इतनी बात करके मैने खैबर पख्तुनख्वा मे फ्रंटियर
फोर्स के साथ हुई दो बार मुठभेड़ की कहानी सुना दी थी। तभी वीके की आवाज गूँजी… समीर।
…यस सर। इसी के साथ तिगड़ी का कोरम पूरा हो गया था।
वीके ने कहा… समीर,
इस बातचीत को रिकार्डिंग पर लगा लो जिससे सारी बातचीत को अपने जहन मे बिठाने मे आसानी हो जाये। …यस सर। …समीर, स्टेट
डिपार्ट्मेन्ट की पुख्ता खबर है कि अमरीका अपना मन बना चुका है कि अब उसे अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटाने
का समय आ गया है। इस लिये तालिबान के सारे गुटों को वह कतर मे बुला कर बातचीत कर रहा
है। कतर का अमीर इन दोनो गुटों के बीच मध्यस्ता कर रहा है। हमारे लिये पहली चुनौती
तो अपने लोगों को अफगानिस्तान से सुरक्षित बाहर निकालने की है। दूसरी चुनौती
तालिबान की ओर से है। तीसरी चुनौती चीन की सड़क परियोजना की ओर से नजर आ रही है। चौथी
और सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान से मिल रही है। वहाँ राहदारी एक ऐसा मुद्दा बन गया है
कि पाकिस्तान सभी के लिये रोड़े अटका रहा है। इस राहदारी के कारण भारत की भुमिका अफगानिस्तान
मे नगण्य हो गयी है। हम अफगानिस्तान मे बिजली, सड़क, स्वास्थ व शिक्षा की परियोजनायें
स्थापित कर रहे है। वहाँ पर हालात खराब होने से हमारे लोगों की जान और माल की हानि
होने की संभावना बढ़ जाएगी। इन हालात मे हमारी ओर से रा के द्वारा पहल की गयी थी। हमारी
कोशिश थी कि तालिबान का नेतृत्व, सीआईए, अमरीकन फौज और हमारा विदेश विभाग एक प्लेटफार्म
पर आकर इसका हल निकालने की कोशिश करे। हमारी ओर से इस मसले को सुलझाने के लिये ब्रिगेडियर
चीमा उनके साथ काम कर रहे थे। वहाँ के हालात की ताजा जानकारी देने के लिये काबुल मे
नियुक्त मिलिट्री अटाचे कर्नल श्रीनिवास है जो अभी तक ब्रिगेडियर चीमा की अनुपस्थिति
मे उन लोगों से डील कर रहे थे। अजीत अब आगे की बात तुम बताओ।
…समीर, ब्रिगेडियर
चीमा तालिबान के शीर्ष नेतृत्व यह यकीन दिलाने मे सफल हो गये थे कि हमारी सभी परियोजनायें
जनहित मे है। वह अमरीका और तालिबान के बीच सुलह कराने मे भी सफल हो गये थे। उनके बीच
यह तय हो गया था कि अगर तालिबान कुछ समय के लिये शांति बहाल करने मे कामयाब हो गयी
तो अमरीकन और नाटो फोर्सेज अफगानिस्तान से निकलने का कार्य आरंभ कर देंगी। काफी हद
तक इस पर एक राय बन चुकी थी और तालिबान पिछले कुछ महीने से शांत बैठे हुए थे। इसी का
परिणाम है कि कतर मे तालिबान और अमरीका की शांति वार्ता आरंभ हो गयी थी। तालिबान की
सिर्फ एक ही शर्त थी कि इस वार्ता मे कोई तीसरी पार्टी नहीं होगी। उनका सीधा इशारा
पाकिस्तान की ओर था। उनका मानना था कि अफगानी ही अपना मुस्तकबिल खुद तय करेंगें। यह
विचार पाकिस्तान की आईएसआई और फौज के हित मे नहीं था तो सबसे पहले वह अमरीका को राहदारी
देने के मामले मे आनाकानी करने लगे। उसके लिये पाकिस्तानी एस्टेबलिश्मेन्ट ने अपनी
आवाम को अमरीका के विरुद्ध भड़काना शुरु किया जिसमे मुख्य भुमिका लब्बैक और जमात के
मौलानाओं और उनके मदरसों की थी। हमारे पास पुख्ता सूचना है कि इसके पीछे उन्हें चीन
से मदद मिल रही है। चीन अपनी उस वन बेल्ट-वन रोड सड़क परियोजना के द्वारा अड़तीस से ज्यादा
एशियाई राष्ट्रों पर अमरीका की पकड़ कमजोर करके उन पर अपना नियंत्रण करना चाहता है।
इतना बोल कर अजीत
सर चुप हो गये थे। कुछ पल रुक कर उन्होंने फिर बोलना आरंभ किया… ब्रिगेडियर चीमा के
ब्लू प्रिंट की सीआईए और तालिबान के नेतृत्व ने भी काफी सराहना की थी। उनका मानना था
कि पाकिस्तान मे फौज के प्रति रोष व असंतोष की स्थिति मे चीन की सीपैक परियोजना पर
प्रतिकूल असर होगा जिसके कारण दोनो का ध्यान अफगानिस्तान से हट कर पाकिस्तान तक सिमित
हो जाएगा। इसके लिये उन्होंने तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और उसकी जैसी अन्य तंजीमो
को मजबूत करने का सुझाव दिया था। अमरीका को एक तीर से दो शिकार करने का मौका मिल गया
था। उन्होंने सहर्ष यह सुझाव को अमल मे करने के लिये ब्रिगेडियर चीमा को ग्रीन सिगनल
दे दिया था। तुमने उस ब्लू प्रिंट मे अपनी ओर से खुदाई शमशीर की रचना करी जिसके पीछे
यही उद्देश्य था कि किसी तरह इस आप्रेशन की बागडोर हमारे हाथ मे रहे। हक डाक्ट्रीन
को पाकिस्तान मे कार्यान्वित करने का यह बेहद सटीक सुझाव था। योजना यह थी कि अमरीकन
डालर और हथियारों की मदद मिलते ही तेहरीक और उनकी जैसी बलूचिस्तान, पख्तूनिस्तान, वजीरीस्तान
की अन्य तंजीमों ने पाकिस्तानी फौज और सीपैक को निशाने पर लेने से पाकिस्तानी एस्टेब्लिशमेन्ट
का ध्यान अफगानिस्तान से हट कर पाकिस्तान की ओर लग जायेगा। इसके कारण तालिबान की वार्ता
किसी हद तक अफगानिस्तान मे शांति स्थापित करने मे सफल हो जायेगी। जब तक इस योजना को
हम कार्यान्वित करते तब तक ब्रिगेडियर चीमा आएसआई की नजर मे आ गये थे। उसका परिणाम
तुम्हारे सामने है।
तभी जनरल रंधावा बीच
मे बोले… पुत्तर, तालिबान के बारे एक बात जानना जरुरी है कि पहले अफगान युद्ध मे तालिबान
को बनाने वाले लोगों मे हक्कानी परिवार आज भी काफी प्रभाव रखता है। हक्कानी परिवार
मूलत: पाकिस्तानी पश्तून है और अफगान सीमा पर उनका काफी दबदबा है। पहले और दूसरे अफगान
युद्ध मे तालिबान की हक्कानियों ने काफी मदद की थी। पाकिस्तानी फौज और आईएसआई का तालिबान
पर प्रभाव हक्कानी परिवार के कारण है। जब यह वार्ता की पहल हुई तब पाकिस्तान फौज के
दबाव मे हक्कानियों ने इस वार्ता मे भाग लेने से मना कर दिया था। बहुत से तालिबान के
नेताओं का परिवार अभी भी पाकिस्तान मे रह रहा है जिसके कारण तालिबान का नेतृत्व दो
भाग मे बँट गया है। हक्कानी और उनके समर्थक पाकिस्तान के पिठ्ठु बन कर वार्ता असफल
करने की जुगत लगा रहे है और वहीं दूसरी तरफ एक बड़ा तबका तालिबान का अमरीकन से बात करने
की पैरवी कर रहा है। चीन के लिये यह सभी प्यादे है और उनका उद्देश्य उस महत्वाकांक्षी
सड़क परियोजना से जुड़ा हुआ है। ग्वादर और सीपैक परियोजना मे अब तक चीन का काफी पैसा
लग चुका है। इसी कारण अब वह भी पाकिस्तानी फौजी एस्टेब्लिशमेन्ट के दबाव मे आ गये है।
तुमको यह सब बताने की जरुरत ब्रिगेडियर चीमा की असामायिक मौत के कारण पैदा हो गयी है।
एक ओर तालिबान के नेतृत्व मे सेंधमारी के लिये आईएसआई हक्कानियों से मदद ले रही है
और दूसरी ओर तालिबान का दूसरा धड़ा तेहरीक के साथ मिल कर उनके खिलाफ जंग छेड़ने जा रही
है। पश्तून और पठान के बीच मे अमरीका की छवि ठीक नहीं है अपितु उन लोगों के बीच भारतीयों
की छवि बेहतर है। अमरीका चाहता है कि हम इस स्थिति को संभाले इसी लिये ब्रिगेडियर चीमा
का रिप्लेसमेन्ट वह जल्दी से जल्दी चाहते है।
अजीत सर की आवाज गूंजी…
समीर, कूटनीति मे हम एक दोराहे पर खड़े हो गये है। क्या हम अपनी विदेश नीति को बदलने
की सोच रहे है? आज तक हमारी नीति आतंकवादियों और उनकी तंजीमो के लिये बड़ी साफ रही थी
कि हम उनसे कोई बात नहीं करेंगें। यहाँ पर हम उनके साथ काम करने का नेतृत्व लेने की
बात कर रहे है। यह कैसे मुम्किन है? इस्लामिक हुदायबिय्याह की डाक्ट्रीन का कहना है
कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। ब्रिगेडियर चीमा भी शायद इसीलिये इसकी वकालत कर
रहे थे। लेकिन यह समझना जरुरी है कि यह नीति बदलने की बात नहीं है। अपनी जान और माल
की रक्षा के लिये हमे तालिबान के साथ काम करना ही पड़ेगा। अमरीका आज नहीं तो कल वहाँ
से जाएगा तो उनके बाद परोक्ष अथवा अपरोक्ष रुप मे तालिबान के हाथ मे वहाँ की सत्ता
होगी तो तब क्या हमे तालिबान से बात नहीं करनी पड़ेगी? मैने मन ही मन सोचा कि तर्क तो
सही था क्योंकि पहले भी अपने यात्रियों को छुड़ाने के लिये तालिबान से बात करनी पड़ी
थी।
अजीत सर एक बार फिर
से बोले… समीर, एक बात तय है कि हम परोक्ष रुप से उसके साथ खड़े नहीं हो सकते। ऐसी हालत
मे तुम्हें पाकिस्तानी कारोबारी की तरह ही इसको डील करना पड़ेगा। यह बात हम अपने दोस्त
और दुश्मन राष्ट्रों के सामने भी जाहिर नहीं कर सकते कि इस आप्रेशन को हम चला रहे है।
कूट्नीति और राजनीति के साथ तुम्हें सैन्य नीति को भी इस्तेमाल करना पड़ेगा। हमारे बीच
मे जरुर कोई है जिसके कारण ब्रिगेडियर चीमा शहीद हो गये। इसीलिये तुमको ज्यादा सावधान
रहने की जरुरत है। तुम्हारी असलियत श्रीनिवास को भी पता नहीं चलनी चाहिये। इसके लिये
हमने तय किया है कि तुम एक पाकिस्तानी नागरिक बन कर उनकी मीटिंग मे शामिल होगे और जनरल
रंधावा ब्रिगेडियर चीमा के रिप्लेस्मेन्ट की तरह काम करेंगें। वह तुम्हारा सिर्फ मुखौटा
होगा लेकिन तुम जो भी निर्देश दोगे उसको जनरल रंधावा का निर्देश मान कर श्रीनिवास उसका
पालन करेगा। …सर, अगर श्रीनिवास ही उनका आदमी हुआ तो सारा आप्रेशन खतरे मे पड़ जाएगा।
…समीर, क्या तुम्हारे पास इसका कोई विकल्प है? …सर, मेरा ख्याल दूसरा है। भारतीय दूतावास और भारत सरकार
का इसमे सीधे संपर्क नहीं होना चाहिये। आप मुझे सीआईए या अमेरीकन फोर्सिज की ओर से
उस मीटिंग मे शामिल करवाने की कोशिश किजिये। अगर ऐसा हो जाता है तो फिर कूटनीति के
अनुसार हमारा कभी किसी तंजीम के साथ सीधा संबन्ध नहीं निकल सकेगा। मैने अपना विचार
उनके सामने रख दिया था।
वीके की आवाज गूंजी…
अजीत, इस आप्रेशन मे श्रीनिवास रा का एजेन्ट है। गोपीनाथ इसके लिये हर्गिज तैयार नहीं
होगा। तुम युएस के एनएसए से बात करके समीर को सीआईए या अमरीकन फौज के एजेन्ट के तौर
पर काम करने के लिये बात करो और श्रीनिवास को रा के एजेन्ट के रुप मे काम करने दो।
समीर अगर उनका आदमी बन कर उस समूह मे काम करेगा तो कम से कम ब्रिगेडियर चीमा का राज
खोलने वाले का पता भी चल जाएगा। …वीके तुमने ठीक आंकलन किया है। इस आप्रेशन से रा की
भुमिका को अब हटाया नहीं जा सकता अन्यथा पार्टनर्स के बीच मे संदेह उत्पन्न हो जाएगा।
मै उनके एनएसए से बात करके समीर को उनके समूह मे शामिल करने के लिये कह दूंगा। …सर,
श्रीनिवास से अब मिलना बेकार है। क्या मै वापिस चला जाऊँ? …नहीं कल दोपहर तक तुम्हारा
इंतजाम हो जाएगा। …जी सर। …अब से रेडियों साईलेन्स ज्यादा लम्बा नहीं होना चाहिये।
…यस सर। …पुत्तर, ब्रिगेडियर बनते-बनते रह गया। सारी। …कोई बात नहीं सर। तभी अजीत सर
ने बीच मे बात काटते हुए कहा… कल तीन बजे काल करुँगा। ओवर एन्ड आउट। इसी के साथ लाईन
कट गयी थी।
मैने मेसेज डिस्पले
पर देखा तो दो मेसेज आये हुए थे। मैने जल्दी से वह मेसेज खोल कर पढ़ने बैठ गया।
…आपका फोन बन्द पड़ा
हुआ है। मेनका ने बहुत बार नम्बर मिलाया लेकिन हर बार फोन बन्द बताया गया। सब ठीक तो
है। मुझे आपकी चिन्ता सता रही है। प्लीज मेसेज पढ़ कर तुरन्त फोन किजिये। आपको पाकिस्तानी
नम्बर कहाँ से मिल गया?
…मेनका को आपका संदेश
पढ़वा दिया था। अपने नाम का मेसेज देख कर वह बहुत खुश हुई। वह आपसे उस नम्बर पर कल दोपहर
को बात करेगी। खुदा का शुक्र है कि उस वक्त मै वहाँ पर नहीं हूँ।
दोनो मेसेज पढ़ने के
बाद मैने अपना स्मार्टफोन उठा कर अंजली का नम्बर मिलाया। काफी देर घंटी बजती रही और
फिर लाइन कट गयी थी। दीवार पर टंगी हुई घड़ी पर नजर डाल कर एक बार फिर से वह नम्बर मिलाया
तो कुछ देर घंटी बजती रही… हैलो। बहुत पतली आवाज कान मे मे पड़ी तो मैने जल्दी से कहा…
मेनका। …होल्ड किजिये। अचानक दूसरी ओर शोर की आवाज के बाद मेनका की आवाज कान मे पड़ी…
अब्बू। मेरे दिल ने कुछ पल धड़कना बन्द कर दिया था। …अब्बू। …बेटा कैसी हो? …अब्बू।
इतना बोल कर वह सिसक कर रोने लगी। …बेटा, आई एम सारी। मेरा फोन खराब हो गया था। इसलिये
आपसे बात नहीं कर सका। सौरी। …अब्बू, आपकी बहुत याद आती है। केन भी अब थोड़ा बोलने लगा
है। प्लीज आप यहाँ आ जाईये। …स्कूल जा रही हो कि पढ़ाई छोड़ दी है? …क्या अम्मी ऐसा होने
देंगी? …तुम्हारी अम्मी कैसी है? …अच्छी है। यहाँ पर सिर्फ आपकी बात करती रहती है।
…अब्बू, मैने साईकिल चलानी सीख ली है। …तीन पहिये की? …दो पहिये की। अब्बू, एक बार
केन को डलिया मे बिठा कर मैने सड़क पर साईकिल चलाई है। …तुम्हारी अम्मी कहाँ है? वह
कुछ नहीं बोली तो मैने पूछा… अम्मी ने मना किया है। …हाँ। अब्बू केन कुछ कह रहा है।
एक बच्चे की किलकारी मेरे कान मे पड़ी तो मैने जल्दी से पूछा… केन की आवाज सुनाने के
लिये शुक्रिया। मेनका अपनी अम्मी और केन का ख्याल रखना और उन्हें तंग मत करना। अच्छा
फिर फोन करुँगा तब तक के लिये अल्विदा। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया था। मेनका से
बात करते हुए मेरी आँखें छलक गयी थी। अगर मेरा बस चलता तो मै तुरन्त उनके पास पहुँच
गया होता।
मैने मिस्ड काल की
लिस्ट देखी तो मेनका की काल के साथ साहिबा और नीलोफर की काल भी आयी थी। दो काल जनरल
रंधावा की भी आई थी। सबसे पहले मैने नीलोफर को काल लगाया। उसने तुरन्त फोन उठा कर अपने
इस्लामाबाद पहुँचने की जानकारी देते हुए पाकिस्तान मे आये हुए आर्थिक संकट के बारे
मे बताने लगी थी। नगदी की कमी होने के कारण सारा कारोबार और व्यापार ठप्प पड़ गया है।
वहाँ के हालात की जानकारी देने के बाद नीलोफर ने अल्ताफ की खबर देते हुए कहा… वह मेहसूद
कबीले के मुखिया की गद्दी पर बैठ गया है। कुछ देर हालात पर चर्चा करने के पश्चात मैने
कहा… एक दो दिन मे इस्लामाबाद पहुँच जाऊँगा। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था।
सबसे आखिर मे मैने
साहिबा को फोन लगाया था। …हैलो। …आपको मुझसे बात करने का समय मिल गया। …मेरा फोन गिर
कर खराब हो गया था जिसके कारण इतने दिन बात नहीं हो सकी थी। तुमने कैसे याद किया?
…क्यों क्या सिर्फ काम के लिये ही आपसे बात हो सकती है। …नहीं ऐसी बात नहीं। तुम्हारी
मिस्ड काल देखी तो मैने फोन मिलते ही तुम्हें काल किया। …आपको बताना था कि ब्रिगेडियर
सलीम नूरानी साहब ने दो दिन बाद बता दिया था कि आपके एक करोड़ बीस लाख उनको मिल गये
है परन्तु कुछ दिन के बाद उनकी बातों से ऐसा लगा कि वह आपके पैसे हजम करने के चक्कर
मे है। …यह तुम कैसे कह सकती हो? …उन्होंने मुझसे पूछा था। मेरे मना करने पर उन्होंने
साफ शब्दों मे कहा कि इसकी जानकारी आपको नहीं देनी है। …साहिबा तुम अपने काम पर ध्यान
दो। इसके बारे मे फिक्र मत करो। क्या तुम्हारी शूटिंग शुरु हो गयी? …हाँ। ड्रामे की
शूटिंग शुरु हो गयी है। …आप कराँची कब आ रहे है? …फिलहाल तो मै पाकिस्तान से बाहर हूँ।
अपनी वापिसी पर तुम्हें बता दूँगा और अगर समय मिला तो वहीं आकर तुमसे मिलूँगा। …नहीं
तो मै आपके पास आ जाऊँगी। …हाँ ठीक है। रात काफी हो गयी है तुम आराम करो। इससे पहले
वह कुछ और बोलती मैने फोन काट दिया था।
मैने तुरन्त नीलोफर
को फोन लगा कर कहा… ब्रिगेडियर नूरानी अब हमारे जाल मे फँस गया है। कल फोन करके एक
करोड़ साठ लाख नगद माँग लेना। मुझे नहीं लगता है कि वह इतने पैसे दे सकेगा। जब तक मै
नहीं आता तब तक उस पर दबाव बनाये रखना। …तुम्हें कैसे पता लगा? …साहिबा ने बताया था।
…ओह। तो वह अभी भी तुम्हारे संपर्क मे है। …हाँ लेकिन तुम नूरानी से बस फोन पर संपर्क
करना। अब उसके आफिस जाने की जरुरत नहीं है। …तुम कहो तो वसूली के लिये तायाजी से बात
करुँ? …मेरे आने से पहले सिर्फ फोन पर बात करनी है। …अगर उसने नगद पैसे भिजवा दिये
तो? …उनमे आधे से ज्यादा नकली नोट होंगें। इसीलिये मेरी अनुपस्थिति का बहाना बना कर
उसे सारे पैसे मेरे अकाउन्ट मे जमा करने के लिये कह देना। …समीर, अगर नकली नोट हुए
तो इसके लिये वह कभी तैयार नहीं होगा। …जल्दी इस्लामाबाद मे मिलता हूँ। खुदा हाफिज।
मैने फोन काट दिया था। पाकिस्तान कारोबारियों मे नोटबंदी का असर अब दिखने लगा था। इसी
बात को सोचते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी थी।
अगले दिन देर से उठा
और आराम से तैयार होकर जब तक खाना खाने बैठा तब तक दोपहर हो गयी थी। खाना समाप्त करके
अपने सेटफोन को चेक कर रहा था कि तभी सेन्ट्रल कमांड का एक मेसेज फ्लैश हुआ… काल बैक।
मैने नम्बर मिलाया तो पहली घंटी पर अजीत सर की आवाज कान मे पड़ी… समीर। …यस सर। …मेरी
एनएसए विल्किन्सन से बात हो गयी है। एनएसए विल्किन्सन ने हर प्रकार की मदद देने का
वादा किया है। सीआईए के डिप्टी डायरेक्टर एन्थनी वालकाट आजकल काबुल मे है। वह इस्लामाबाद
और काबुल के सीआईए के आफिस का कार्यभार संभाल रहा है। यूएस और नाटो की ओर से वह इस
आप्रेशन का संचालन भी कर रहा है। उसका पर्सनल फोन नम्बर दे रहा हूँ। वह तुम्हारे फोन
का इंतजार कर रहा होगा। …सर, उन्हें कितना बताना है? …समीर, जनरल रंधावा को ब्रिगेडियर
चीमा के रिप्लेसमेन्ट बता कर उनके निर्देश पर फील्ड मे तुम काम करोगे। इसलिये जितना
तुम ठीक समझते हो बस उतना ही बताना। …आपने उन्हें मेरे बारे मे क्या बताया है? …समीर
बट, हमारा पाकिस्तान मे एक डीप एस्सेट है। वह पेशे से फाईनेन्सर और कारोबारी है परन्तु
सभी तंजीमो के साथ उसके अच्छे रिश्ते है। मैने विल्किनसन को बस इतनी जानकारी दी है।
…ठीक है सर। …उसको सिर्फ इतना कहना कि तुमको जनरल रंधावा ने बात करने के लिये कहा था।
…जी सर। अजीत सर ने इतनी बात करके फोन काट दिया था।
मैने अपना स्मार्टफोन
उठा कर वह नम्बर मिलाया तो कुछ देर घंटी बज कर लाइन कट गयी थी। एक बार मैने दोबारा
मिलाने की सोची परन्तु अगले ही पल उस विचार को त्याग कर चुपचाप बैठ गया। दस मिनट के
बाद उसी नम्बर से काल आयी… हैलो। …मिस्टर वालकाट, मुझे जनरल रंधावा ने आपसे बात करने
के लिये कहा था। मेरा नाम समीर बट है। …मिस्टर समीर। हम कब मिल सकते है? …मै काबुल
मे हूँ। आपके लिये जब भी सुविधाजनक हो तभी मिल सकता हूँ। …मिस्टर समीर, आज शाम को सात
बजे होटल इन्टरकान्टीनेन्टल के काफी शाप मे मिलते है। …ठीक सात बजे काफी शाप। ओके।
इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। मुझे अब उससे मिलने की तैयारी करनी थी। चार बजने
वाले थे। मेरे पास कपड़ों मे सिर्फ पठानी शलवार सूट और ऊनी जैकेट के अलावा कुछ भी पहनने
के लिये नहीं था। जल्दी से अपना पर्स और कार्ड्स जेब मे डाल कर मै गेस्ट हाउस से निकल
कर एक शापिंग सेन्टर की दिशा मे चला गया था। डिप्लोमेटिक एरिया होने के कारण वहाँ ज्यादातर
पश्चिमी सामान की दुकानों की भरमार थी। मैने पुरुषों के कपड़ों की दुकान देखते ही उसमे
घुस गया और जल्दी से दो सूट, दो शर्ट, दो टाई व अन्य सामान पैक करवा कर इटालियन जूते
की दुकान मे चला गया। एक जोड़ी जूते खरीद कर मेरा कार्य लगभग पूरा हो गया था। बस अब
चेहरे और बालों की हजामत करानी रह गयी थी। वापिस लौटते हुए एक सैलून दिखा तो उसमे चला
गया था। जब तक बाहर निकला तब तक मेरा सारा हुलिया बदल चुका था।
सात बजे मै नीले सूट
मे जेन्टलमेन केडेट की तरह तैयार होकर इन्टरकान्टीनेन्टल होटल के काफी शाप मे बैठ कर
काफी पीते हुए वालकाट का इंतजार कर रहा था। उस वक्त काफी शाप मे ज्यादा भीड़ नहीं थी।
दो तीन टेबल पर कुछ विदेशी लोग बैठे हुए दिख रहे थे। मेरी नजर मुख्य द्वार पर टिकी
हुई थी। सात के सवा सात हुए फिर साढ़े सात हुए लेकिन वालकाट अभी तक नजर नहीं आया था।
वालकाट ने फोन पर देरी के कारण की कोई सूचना भी नहीं दी थी। मुझे समझ मे नहीं आ रहा
था कि ऐसे हालात मे उसका इंतजार करना चाहिये या नहीं। थोड़ी देर और इंतजार करके मै अपना
बिल चुका कर जैसे ही काफी शाप से बाहर निकला कि तभी काफी शाप के काउन्टर पर तैनात व्यक्ति
ने मुझे एक रसीद पकड़ा दी थी। मैने एक उड़ती हुई नजर रसीद पर डाली तो उस रसीद के एक किनारे
मे हाथ से एक गाड़ी का नम्बर लिखा हुआ देख कर मै सावधान हो गया। इसका मतलब साफ था कि
वालकाट यहीं कहीं है लेकिन वह पब्लिक मे मुझसे मिलना नहीं चाहता है। मै होटल से निकल
कर पार्किंग मे खड़ी हुई गाड़ियों के नम्बर देखते हुए के मुख्य द्वार से बाहर निकला कि
तभी एक कार मेरे करीब आकर रुकी और ड्राईवर कार से उतर कर पीछे का दरवाजा खोलते हुए
बोला… मिस्टर समीर बट। मै बिना कुछ कहे कार मे बैठ गया। अगले ही पल कार मुख्य सड़क पर
निकल गयी थी।
कार मे ड्राईवर समेत
तीन और लोग बैठे हुए थे। सभी अंग्रेज थे लेकिन मेरे साथ एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा हुआ
था। …मिस्टर समीर बट। मै एन्थनी वालकाट हूँ। आपसे मिल कर बड़ी खुशी हुई। …थैंक्स मिस्टर
वालकाट। आप फोन पर ही बता देते तो बेकार काफी शाप मे बैठ कर अपना समय खराब नहीं करता।
…मिस्टर समीर, बेहद संवेदनशील मुलाकात है तो बहुत सी बातों का ख्याल रखना पड़ता है।
हम सेफ हाउस मे बैठ कर आराम से बात करेंगें। मैने कोई जवाब देना उचित नहीं समझा तो
चुप बैठ गया। वालकाट ने भी फिर कोई बात नहीं की थी। कुछ देर के बाद हम एक आलीशान मकान
के सामने पहुँच कर रुक गये थे। …आईये मिस्टर समीर। मै उसके साथ चल दिया। मकान मे प्रवेश
करके कुछ कदम चल कर हम एक स्टडी रुम मे पहुँच गये थे। …काफी के लिये बोल देना। अपने
साथ चलते हुए व्यक्ति से इतना बोल कर वह मुझसे बोला… प्लीज आराम से बैठिये। मै सोफे
पर बैठ कर कमरे का जायजा लेकर बोला… मिस्टर वालकाट मै उम्मीद करता हूँ कि हमारी बात
या तो रिकार्ड हो रही होगी अन्यथा रियल टाइम बेसिस पर आपके वरिष्ठ अधिकारियों को रिले
हो रही होंगी। मुझे इसमे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन मै भी आज की बातचीत जनरल रंधावा
के लिये रिकार्ड करना चाहता हूँ। …नो प्राब्लम। अच्छा रहेगा कि आप मुझे एन्थनी कहे
और मै आपको समीर कहूँ तो बेहतर होगा। मैने भी तुरन्त कहा… नो प्राब्लम। इतना बोल कर
मैने अपने फोन की रिकार्डिंग चालू कर उसके सामने मेज पर रख दिया था।
सबसे पहले वालकट बोला…
समीर, आज सुबह एनएसए मिस्टर विल्किन्सन ने मुझे बड़ा अजीब निर्देश दिया है। आप इस आप्रेशन
मे भारत सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर हमारे साथ काम करेंगें लेकिन आप पाकिस्तानी नागरिक
है। यही एक बहुत अजीब बात है। फिर उनका यह भी आदेश था कि आपको उस समूह मे भारत सरकार
के बजाय सीआईए या यूएस फोर्सेज के प्रतिनिधि के रुप मे बताया जाये। यह और भी अजीब बात
है परन्तु मिस्टर विल्किन्सन ने इस बात का निर्णय मुझ पर छोड़ा है कि क्या ऐसा करने
मे हमारा कोई नुकसान तो नहीं है। इसीलिये कोई भी निर्णय लेने से पहले मै आपसे जानना
चाहता हूँ कि क्या ऐसा करना हमारे हित मे होगा? मैने उसकी बात चुपचाप सुनी थी। प्रथम
दृष्टिये बातचीत वालकाट की प्रतिभा और सटीक आंकलन की ओर इशारा कर रही थी।
मेज पर रखे काफी मग
को उठा कर काफी एक घूँट पीकर गला तर करके मै बोला… थैंक्स। एन्थनी आपका बेहद सटीक आंकलन
और सवाल जायज है। पहली बात मै पाकिस्तानी नागरिक सिर्फ पेपेर्स पर हूँ। वैसे भी पाकिस्तान
के सभी महत्वपूर्ण ओहदेदार और प्रभावशाली कारोबारी दोहरी नागरिकता रखते है जिसमे ज्यादातर
यूएस और यूके के नागरिक है तो यह आपके लिये कोई अजीब बात नहीं होनी चाहिये। दूसरी बात
मै पाकिस्तान मे अलग-अलग सेक्टर मे काले और सफेद इन्वेस्टमेन्ट करके मोटा ब्याज कमाने
का धंधा करता हूँ। इसके कारण मेरा संपर्क पाकिस्तानी एस्टेबलिश्मेन्ट और बड़े कारोबारियों
से अच्छा है। तीसरी बात है कि कश्मीरी तंजीमों को छोड़ कर जितनी भी कट्टरपंथी तंजीमे
पाकिस्तान मे शरिया नाफिज करने मे इच्छुक है उनका मै फाईनेन्सर हूँ। फ्रंटियर प्रोविन्स
आजाद कश्मीर और खैबर पख्तूनख्वा मे बहुत सी छोटी-छोटी तंजीमे आती है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण
तेहरीक-ए-तालिबान है। ऐसे ही बलूचिस्तान मे बहुत सी तंजीमे उत्तर से लेकर दक्षिण तक
सक्रिय है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तंजीम बलूचिस्तान रेसिस्टेन्स फ्रंट है। इन सभी के
साथ मेरे अच्छे संबन्ध है। यह तो आपके पहले सवाल का जवाब है। इतना बोल कर मैने काफी
का मग उठा लिया।
वालकाट को मौका मिला
तो उसने पहला सवाल दाग दिया… समीर, शरिया नाफिज करने के उद्देशय वाली चरमपंथी तंजीमो
के साथ तो हम काम नहीं कर सकते। अपना गला तर करके एक बार फिर मैने बोलना आरंभ किया…
एन्थनी, आप तालिबान से कतर मे बात कर रहे है। आप साउदी अरब के मुख्य रक्षा और कारोबारी
पार्टनर है। सभी अपना हित देखते है तो कृपया मुझे नैतिकता का पाठ मत पढ़ाईये। पाकिस्तान
मे शरिया नाफिज करने मे सबसे बड़ा रोड़ा चीन का इन्वेस्टमेन्ट है। अगर यह अभी रोड़ा नहीं
है तो बनाना पड़ेगा। इसी के बल पर इन सभी तंजीमो को चीन के बेल्ट एन्ड रोड परियोजना
के विरोध मे आसानी से खड़ा किया जा सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण गिल्गिट मे खुदाई
शमशीर नाम की चरमपंथी तंजीम है जिसके कारण सीपैक परियोजना को काफी नुकसान पहुँचा है।
उन्होंने चीन को वहाँ के रिहायशी इलाकों और जल स्त्रोतों को बचाने के लिये परियोजना
की सड़क मोड़ने के लिये मजबूर कर दिया था। 120 मील के स्ट्रेच की लागत आठ गुना बढ़ गयी
थी। हाल ही खुदाई शमशीर की मध्यस्था मे खैबर पख्तूनख्वा मे मेहसूद और वजीरी कबीलो ने
तय किया है कि शरिया नाफिज करने के लिये वह चीन के विरोध मे सभी छोटे और बड़े कबीलों
को एक छत के नीचे लाने का प्रयास करेंगें। अगर वह सब एक हो गये तो तेहरीक और अफगान
तालिबान भी इससे अछूते नहीं रहेंगें। सीपैक और बेल्ट एन्ड रोड परियोजना अगर रुक गयी
तो अब यह आपको सोचना है कि क्या वह आपके हित मे या नहीं?
अबकी बार वालकाट कुछ
सोच कर बोला… मान लिया कि यह हमारे हितो की रक्षा करेगा लेकिन इसमे आपका या भारत का
क्या फायदा है? अबकी बार जवाब देने से पहले मुझे कुछ सोचना पड़ा था। कुछ पल सोचने के
पश्चात मैने कहा… जहाँ तक मेरे फायदे की बात है तो मै तो एक मर्सेनरी फोर्स हूँ। जहाँ
से पैसा मिलेगा मै उसके लिये काम करता हूँ। अब भारत के फायदे की बात जहाँ तक है तो
मै सिर्फ अनुमान लगा सकता हूँ कि भारत मे बैठे हुए रक्षा विशेषज्ञ यही सोचते है कि
चीन कभी भी पाकिस्तान मे शरिया नाफिज नहीं होने देगा और भारत के हित मे एक कमजोर और
अस्थिर पाकिस्तान बेहतर विकल्प है। मेरे चुप होते ही वालकाट ने अगला प्रश्न दाग दिया…
समीर, इतना जटिल रिश्ता बनाने की जरुरत क्या है। तुम भारत सकार के प्रतिनिधि क्यों
नहीं बन जाते या तुम्हारी असली पहचान क्या है? …एन्थनी, भारत सरकार किसी भी हालत मे
पाकिस्तान की चरपंथी तंजीम अथवा तंजीमो के साथ कोई परोक्ष या अपरोक्ष रुप से रिश्ता
नहीं रख सकती। यह उनकी कूटनीतिक मजबूरी है। इसलिये भारत सरकार को उस समूह मे एक छलावा
चाहिये जिसकी कोई पहचान न हो। मेरी भी यही खूबी है कि मेरी कोई पहचान नहीं है। मेरा
नाम समीर धर्म न्युट्रल है। यह नाम मोमिन भी रख सकते है और हिन्दु भी रख सकते है। इस
नाम को यहूदी भी इस्तेमाल करते है और इसाई भी इस्तेमाल करते है।
एक बार कुछ पल रुक
कर मैने कहा… एन्थनी, यह आपके भी हित मे है कि इस आप्रेशन मे तंजीमो को साधने का काम
आपकी ओर से किसी छलावे के द्वारा होना चाहिये। आपको अफगानिस्तान से सुरक्षित निकलना
है तो परोक्ष रुप से आप तालिबान से बात कर रहे है परन्तु आप खुद जानते है कि पाकिस्तान
आपको यहाँ से आसानी से निकलने नहीं देगा। इसीलिये तालिबान दो धड़ों मे बँटा हुआ दिख
रहा है। अगर उनके दूसरे गुटों और तंजीमों के साथ आप परोक्ष रुप से खड़े दिखे तो आपके
लिये अन्तरराष्ट्रीय पटल पर बात संभालनी मुश्किल हो जाएगी। इसीलिये आपको भी एक ऐसा
छलावा उनके बीच चाहिये जो हक्कानी नेटवर्क और आईएसआई के विरोध मे बाकी गुटों को एक
कर सके। …हमे तुम्हारे लिये क्या करना पड़ेगा? …मेरे लिये डालर और उनके लिये हथियार
चाहिये। अबकी बार एन्थनी वालकाट मुस्कुरा कर बोला… तुम्हारी बात सुन ली लेकिन क्या
मुझे निर्णय लेने के लिये कुछ समय दोगे? मैने खाली मग उसको दिखाते हुए कहा… एक रिफिल
चाहिये। तब तक आप उनसे बात करके निर्णय ले लिजिये। वालकाट ने काफी मग भरने के का इशारा
किया और उठ कर कमरे से बाहर निकल गया था। मै आराम से पीठ टिका कर सोफे पर फैल गया था।
शतरंज में प्यादे बिछने लगे हैं, अब वक्त बताएगा की यह चाल सटीक बैठा है की नही।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई शुक्रिया। अंतिम चाल चलने के हिसाब से बिसात बिछाई जा रही है।
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