सोमवार, 8 जुलाई 2024

 

 

शह और मात-9

 

रावलपिंडी    

जनरल फैज अपना सिर पकड़ कर अपने आफिस मे बैठा हुआ था। भारत की नोटबंदी ने उनका सारा कारोबार ठप्प करके रख दिया था। सबसे बड़ी चोट आईएसआई के सबसे संवेदनशील तीन हिस्सों पर हुई थी। तंजीमो की वित्तीय मदद, ड्रग्स का कारोबार और भारतीय फिल्मो से होने वाली आय लगभग चौपट होते हुए लग रही थी। एक आदमी ने कमरे मे कदम रखते ही कहा… जनाब, जानकारी मिल गयी है। लगभग हजार और पाँच सौ के नोट मे तीन लाख करोड़ का माल हमारे आठ गोदामों मे वितरण के लिये रखा हुआ है। रातों-रात यह रद्दी कागज के टुकड़ों मे तब्दील हो गया है। इन नोटों का क्या करना है? जनरल फैज गुस्से से दहाड़ा… अब इसके बारे मे क्या कर सकते है। इस मामले मे हमारी रिजर्व बैंक ने क्या बताया? …जनाब ऐसा लग रहा कि जैसे सभी को लकवा मार गया है। कोई भी जवाब देने के लिये तैयार नहीं है। …क्या कोई कारोबारी पुराना माल उठाने के लिये तैयार है? …जनाब, वह लोग डालर मे अपने एडवाँस को वापिस मांग रहे है। अब हिन्दुस्तानी रुपये को लोग चिमटे से भी छूने के लिये तैयार नहीं है। …मिन्ट ने नोट छापना बंद कर दिया? …तीनो मिन्ट अब पाकिस्तानी नोट छापने मे जुटी हुई है। एक बार फिर से जनरल फैज अपना सिर पकड़ कर बैठ गया था। आईएसआई का सारा वित्तीय ढाँचा एक ही रात मे तबाह हो गया था। वह सोच रहा था कि कैसे नये सिरे से वित्तीय ढाँचा तैयार किया जाये। यह सोच कर जनरल फैज की पेशानी पर पसीने की बूंदें उभर आयी थी।

 

देर रात को हम पाँच लोग एक टेन्ट मे बैठ कर चर्चा कर रहे थे। नीलोफर ने चर्चा आरंभ करते हुए कहा… सादिक और जफर की कहानी समाप्त हो गयी है। अब हमे आपसे बात करने का कोई खतरा नहीं है। अल्ताफ मेहसूद, अब्दुल्लाह वजीरी, शहजाद वजीरी बड़े ध्यान से नीलोफर को सुन रहे थे। नीलोफर कुछ देर पहले उन तीनो को लेकर मेरे पास आयी थी। कुछ सोच कर मैने कहा… खुदाई शमशीर नाम की तंजीम अजाद कश्मीर मे सक्रिय है। वह आपके साथ मिल कर खैबर पखतून्ख्वा मे काम करना चाहते है। …कैसा काम? …वह यहाँ पर शरिया नाफिज करना चाहते है। इसके लिये हमे यहाँ पर पहले चीन की उपस्थिति को चुनौती देनी पड़ेगी और यहाँ की फौज से टकराना पड़ेगा। अल्ताफ जल्दी से बोला… समीर भाई, क्या आप खुदाई शमशीर के मुखिया है? इस बार नीलोफर ने जवाब दिया… समीर किसी तंजीम का सदस्य नहीं है। वह हर जरुरतमंद तंजीम जिसका उद्देशय शरिया नाफिज करने का है उसको रुपये-पैसे से मदद करता है। खुदाई शमशीर को समीर द्वारा हर महीने बीस लाख रुपये की मदद मिलती है। उसी पैसे की मदद से खुदाई शमशीर आजाद कश्मीर मे मदरसे चलाती है। वह तंजीम अपना लश्कर तैयार करके अपने लोगों को फौज के अत्याचार से बचाती है। अल्ताफ टोकते हुए बोला… बीबी, हमारे उपर फौज के जुल्मों का मुख्य कारण चीन है जो धीरे-धीरे यहाँ पाँव पसार रहा है। वह अपनी सड़क बनाने के लिये हमे बेघर कर रहा है। सरकार हमारी सुनने के बजाय हमे हटाने के लिये फौज को यहाँ भेज देती है। पिछले तीन साल मे यासीन घाटी और फंदेर घाटी मे सैकड़ों साल से बसे हुए बीस छोटे और बड़े कबीले खानाबदोश की जिंदगी जीने पर मजबूर हो गये है। अपने लोगों को लेकर दो महीने पहले हम यहाँ आये थे लेकिन तीन महीने के बाद जब सड़क का काम यहाँ पहुँचेगा तो एक बार फिर से हमे यहाँ से खदेड़ा जाएगा। क्या खुदाई शमशीर इसमे हमारी मदद कर सकती है?

अबकी बार मैने उनके सामने अपनी योजना की पहली परत खोलनी आरंभ की… अल्ताफ भाई, दुनिया का दस्तूर है कि रिहाईशी स्थानों को बचाने के लिये सड़क को घुमाया जाता है। एक सच्चायी और भी है कि सड़क बनाने के लिये रिहाईशी इलाकों को साफ करना सिर्फ चीन मे होता है। हमारी सरकार और फौज चीन के हाथों बिक गयी है। इसीलिये अपनी आवाम के बजाय वह अपने आका चीन के बारे मे ज्यादा सोचती है। अगर एक बार हम हटने से मना कर देंगें तो इस सड़क को उन्हें मोड़ना पड़ेगा। इसके लिये हमे उनसे  टकराना पड़ेगा। वह सड़क हमारे किस काम की जिसके कारण हमे बेघर होना पड़े। अगर सारे कबीले वाले जिरगा मे इस्लाम के नाम पर एक होकर चीन और फौज के खिलाफ खड़े हो गये तो किसमे इतनी ताकत है जो हमारी जैसी जंगजू कौम से टकरा सके। एक होने के लिये सबसे पहले तो हमे इस्लाम के परचम के नीचे आना होगा। शरिया नाफिज होगा तभी सब एक होंगें। इस मुहिम मे अफगान तालिबान और तेहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान भी आपके साथ खड़े होंगें। बलूच और पश्तून भी आपके साथ इस मुहिम मे आपका साथ देंगें। अगर मेहसूद और वजीरी कबीले मिल कर बाकी छोटे कबीले वालों को इसके लिये तैयार कर लेंगें तब अपना फर्ज समझ कर मै आपकी आर्थिक मदद करुँगा। फिलहाल आपको अपना लश्कर तैयार करने के लिये बीस लाख रुपये हर महीने देने का मै वादा करता हूँ। यह पैसे मै अपने साथ लेकर नहीं चलता। नीलोफर इस्लामाबाद से सारा पैसों का लेन-देन संभालती है। एक बार आप अपने लोगों से बात कर लिजिये उसके बाद आपके पास पैसे भिजवाने का इंतजाम नीलोफर कर देगी। इतना बोल कर मै चुप हो गया था।

शहजाद और अल्ताफ मुझे ताक रहे थे। अब्दुल्लाह वजीरी अपनी सफेद दाड़ी को उँगलियों से सहलाते हुए गहरी सोच मे सिर झुकाये बैठा हुआ था। पहली बार जमीर बोला… आपके लश्कर के साथ खुदाई शमशीर खड़ी होगी जो आपके लश्कर को हथियार और प्रशिक्षण मे मदद करेगी। हमने गिलगिट और बाल्टिस्तान मे चीन और फ्रंटियर फोर्स का जीना हराम कर दिया है। उन्हें नीलम घाटी से स्कार्दू और युक्सिन और हारामोश की पहाड़ियों को छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया था। हमारे कारण उन्हें अपनी सड़क मोड़नी पड़ गयी थी। खुदाई शमशीर के कारण गिलगिट और बाल्टीस्तान मे एक भी आदमी को बेघर नहीं होना पड़ा है। अबकी बार अब्दुल्लाह वजीरी एक नजर सब पर डाल कर बोला… इस मुहिम मे हम वजीरी लोग खुदाई शमशीर के साथ खड़े होने के लिये तैयार है। अल्ताफ तुरन्त बोला… चचाजान, मेहसूद कबीला भी खुदाई शमशीर के साथ खड़े है। अब्दुल्लाह वजीरी ने अपना सिर हिलाते हुए मुझसे कहा… समीर, अपना जिरगा बुलाने के लिये मुझे कुछ वक्त चाहिये। हमारा जिरगा साल मे एक बार बैठता है। इस मुहिम के लिये एक विशेष जिरगा की बैठक बुलानी पड़ेगी। इसके लिये मुझे कम से कम दो महीने चाहिये। खुदाई शमशीर के साथ तुम भी अगर इस जिरगा की बैठक मे शामिल हो जाओगे तो उन सबको मनवाने मे आसानी हो जाएगी। …जनाब, खुदाई शमशीर और मै तो इस बैठक मे शामिल हो जाएँगें। मै तो चाहता हूँ कि आप तेहरीक के बैतुल्लाह मेहसूद और तालिबान के अब्दुल गनी को भी बुलावा भेजिये। पाकिस्तान मे शरिया नाफिज करने के लिये वह जरुर आएँगें। अब्दुल्लाह ने अल्ताफ से कहा… बैतुल्लाह तुम्हारे ताया लगते है। उनको मेरा पैगाम पहुँचाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है और अब्दुल गनी से मै बात कर लूँगा। इसी के साथ हमारी बातचीत का अंत हो गया था। आधी रात बीत चुकी थी। मैने उठने से पहले कहा… जनाब मेरा फोन नम्बर अल्ताफ और शहजाद के पास है। जब भी आपको मेरी जरुरत महसूस हो तो बेहिचक खबर कर दिजियेगा। अब्दुल्लाह ने अपना सिर हिला दिया था। तभी टेन्ट के बाहर कुछ हलचल हुई तो सब सावधान हो गये थे। …बाहर कौन है?

टेन्ट का पर्दा खोल कर पूरन सिंह ने प्रवेश करते हुए कहा… हुजूर, लगता है कि कोई फौजी दस्ता इस ओर आ रहा है। मैने जल्दी से उठते हुए कहा… सब लोग अपनी पोजीशन पर तैनात हो जाओ। सुबह वाली टुकड़ी को खोजने के लिये आये होंगें। आप लोग यहीं बैठिये। इतना बोल कर मै रात के अंधेरे मे टेन्ट से निकल कर जमीर को कुछ समझा कर मैदान की ओर चल दिया। फौजी दस्ता अभी काफी दूर था। मै बस्ती से कुछ दूरी पर मुख्य रास्ते के किनारे खुले स्थान पर एक चट्टान पर बैठ कर उनका इंतजार करने लगे। मै जानता था कि आज रात को उनकी ओर से कार्यवाही जरुर होगी परन्तु समय का पता नहीं था। एक जीप जैसे ही सड़क से मुड़ कर बस्ती की दिशा मे बढ़ी तो उसकी हेडलाइट्स ने कच्चा रास्ता रौशन कर दिया था। वह जीप जब मेरे पास आ गयी तब पता चला की फ्रंटियर फोर्स का पिक-अप है। हथियारों से लैस कुछ सैनिक पिक-अप के पिछले हिस्से मे बैठे हुए थे। ड्राइवर केबिन से एक अफसर उतरा और तभी पीछे से दो आदमी जमीन पर कूदे और उस अफसर के साथ मेरी ओर बढ़े तो मै भी सावधान होकर उस चट्टान से उतर कर सड़क पर आ गया था। तीन साये जैसे ही मेरे करीब आये तो पिक-अप की हेडलाईट्स मे उनके चेहरे देख कर मै चौंक गया।

मेजर रैंक के अफसर के साथ जफर और सादिक सामने आ गये थे। वह मेजर घुर्राया… उनके बारे मे पता करो। वह दोनो अंधेरे के कारण मुझे पहचानने की कोशिश कर रहे थे। तभी मै अपने स्थान से हटते हुए मेजर की ओर बढ़ते हुए कहा… जनाब, यहाँ खतरा है। तभी रात की खामोशी को भंग करते हुए एक ही समय दो फायर हुए। हमारे साथ खड़े हुए जफर और सादिक हवा मे उछले और फिर लहरा कर जमीन पर गिरते हुए देख कर मेजर सहम कर दो कदम पीछे हट गया। तब तक जो सैनिक पिक-अप मे बैठे हुए थे वह कूद कर हमारी ओर बढ़े कि तभी दोबारा दो फायर हुए और आते हुए सैनिकों मे से दो सैनिक ढेर हो गये थे। इससे पहले वह कोई एक्शन लेते मैने जल्दी से कहा… जनाब, फिलहाल आप कोई हरकत मत किजियेगा क्योंकि इस जगह को खुदाई शमशीर के जिहादियों के अपने कब्जे मे ले रखा है। मेजर जल्दी से बोला… तुम कौन हो? तभी पीछे से जमीर की आवाज गूंजी… खुदाई शमशीर। वर्दी की हम इज्जत करते है लेकिन मुखबिरों के दुश्मन है। वह मेजर अब तक सयंत हो कर अपनी स्थिति का आंकलन कर चुका था। कोई दूसरा विकल्प न होने के कारण वह अपने हाथ हवा मे उठा कर खड़ा हो गया और उसको देखादेखी उसके तीनो सैनिकों ने भी वही किया। …मेजर, अपने सीओ फईम अहमद को मेरा पैगाम पहुँचा देना कि अगर दोबारा गरीब मजलूमो और ख्वातीनो पर फौज ने कोई कार्यवाही करी तो खुदाई शमशीर का अगला हमला उस पर होगा। अपने हथियार यहीं छोड़ कर अब यहाँ से फौरन दफा हो जाओ। अगले ही पल चारों अपने हथियार जमीन पर डाल कर पिक-अप मे बैठे और वापिस सड़क की दिशा मे निकल गये थे।

…जमीर, आज इकठ्ठे किये सभी हथियार इनके हवाले करके आप लोग फौरन मीरमशाह की ओर निकल जाओ। मैने शहजाद और अल्ताफ को वहीं बुला लिया था। फ्रंटियर फोर्स से जब्त किये हुए सारे हथियार उनको सौंपते हुए मैने कहा… अब आप लोग भी यहाँ से निकल जाईये। नीलोफर को कह देना कि वह मेरा इंतजार करे। मै कुछ देर मे वापिस आ रहा हूँ। कल हम मीरमशाह मे मिलेंगें। इतना बोल कर मै अपनी पिक-अप की ओर बढ़ गया था। ड्राईविंग सीट पर बैठ कर मैने जेब से अपना स्मार्टफोन निकाल कर सिगनल चेक किया तो इस वीराने मे कोई नेटवर्क पकड़ने मे मेरा फोन अस्मर्थ था। मैने सीट के पीछे रखे हुए बैग से अपना सेटफोन निकाल कर आन कर दिया। दो मिनट मे ही फोन चालू हो गया था। नेटवर्क से जुड़ते ही लगातार डिस्प्ले पर मेसेज फ्लैश करने लगे थे। मैने जल्दी से मेसेज खोल कर पढ़ना आरंभ किया। सबसे आखिरी मेसेज सबसे पहले खुला था। जनरल रंधावा का संदेश था। …फौरन संपर्क करो।  मैने एक बार फिर से स्मार्टफोन को चेक किया तो अभी भी कोई सिगनल नही दिखा रहा था। पिक-अप स्टार्ट करके मै सड़क की ओर निकल गया था।

हमजोनी द्वार पर पहुँचते ही स्मार्टफोन नेटवर्क से जुड़ गया था। मैने जीप को सड़क से उतार कर एक किनारे मे खड़ी करके जनरल रंधावा का नम्बर मिलाया। …पुत्तर। …जी सर। …उस मीटिंग का क्या हुआ? …सर, मेहसूद और वजीरी राजी हो गये है। अबदुल्लाह इस मामले मे जिरगा की बैठक करवाने के लिये राजी हो गया है। दो महीने मे जिरगा की बैठक होगी जिसमे फ्रंटियर के सारे कबीले इस बैठक मे शामिल होंगें। …पुत्तर वहाँ का क्या हाल है? …सब ठीक है। मै तो वीराने मे हूँ तो दो हफ्ते से दुनिया से कट सा गया हूँ। सर, क्या कुछ हो गया? …पुत्तर, मै अजीत और वीके को भी लाईन पर ले रहा हूँ। फोन काटना नहीं। …जी सर। परन्तु मेरे दिमाग मे कहीं एकाएक खतरे की घंटी बज  गयी थी। …समीर, भारत सरकार ने नोटबन्दी कर दी है। अगर तुम्हारी जानकारी ठीक है तो वहाँ पर नगदी की परेशानी बढ़ गयी होगी। …सर, अभी मै कुछ भी नहीं कह सकता। मैने घड़ी पर नजर डाली तो टाईम बीतता जा रहा था। कुछ सोच कर मैने पिक-अप स्टार्ट करके आगे बढ़ते हुए कहा… जी सर, अब आप आराम से बोलिये। वी आर इन मूविंग स्टेट। लाईन मे व्यवधान पड़ेगा परन्तु फोन काटने की अब जरुरत नहीं पड़ेगी। तभी वीके की आवाज गूंजी… मेजर, अगर उनसे मीटिंग हो गयी है तो अब तुम्हें काबुल पहुँचना पड़ेगा। वहाँ पहुँच कर ब्रिगेडियर चीमा का काम तुम्हें संभालना होगा। …जी सर। …किसी को कुछ और कहना है? तभी अजीत सर की आवाज कान मे पड़ी… समीर, एमआई की रिपोर्ट है कि मेजर हया ने कश्मीर डेस्क संभाल ली है। इस खबर मे कितनी सच्चायी है? …पता नहीं सर। यह बोलते हुए मेरी आवाज काँप गयी थी। …अपना ख्याल रखना। इतनी बात करके सबके फोन कट गये थे। अजीत सर के आखिरी सवाल ने मुझे कुछ पल के लिये विचलित कर दिया था।

मैने अपना स्मार्टफोन जेब के हवाले किया और वापिस बस्ती की दिशा मे चलने से पहले मैने सेटफोन बैग से निकाल कर मेसेज डिस्प्ले पर देखा तो जनरल रंधावा के दो मेसेज के बाद चार मेसेज अंजली के थे। मै मेसेज देखने लगा।

…यह कौनसी नयी तंजीम आ गयी है? खुदाई शमशीर के साथ मैने कभी काम नहीं किया है। मुझे पता नहीं लेकिन तुम कह रहे हो तो पता करुँगी।

…पता चला है कि पीर साहब ऐजरबैजान, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान के दौरे पर गये है लेकिन जोरावर उनके साथ नहीं है।

…खुदा से ज्यादा मुझे आप पर भरोसा है। हम एक दिन जरुर मिलेंगें। नेपाल का काम मै यही से देख रही हूँ। आरफा मुझसे बेहतर काम की देखभाल कर रही है।

…बहुत दिनो से मेनका आपसे बात करने की जिद्द कर रही है। समझ मे नहीं आ रहा कि क्या करुँ। इसी बात पर वह दो दिनो से मुझसे रुठी हुई है। कोई सलाह दिजिये।  

दो-तीन बार सारे मेसेज पढ़ने के पश्चात मै वापिस बस्ती की ओर चल दिया। अपनी पिक-अप खड़ी करके मै पारका जैकेट ओढ़ कर अंजली के मेसेज के बारे मे सोचने लगा। कुछ सोच कर मैने अपना संदेश जल्दी से टाइप किया…

…प्यारी मेनका बिटिया, आपके अब्बू आपको और केन को बहुत मिस करते है। मेरा और तुम्हारी अम्मी का दिल सिर्फ तुम भाई-बहन के लिये धड़कता है। अपना और केन का ख्याल रखना। जल्दी ही सारे काम खत्म करके हम सब एक साथ होंगें तब एक बार फिर से केन को लेकर एम्युजमेन्ट पार्क चलेंगें। तब तक तुम पर अपनी अम्मी और केन की जिम्मेदारी है। तुम्हारी अम्मी वैसे ही आजकल काफी तनाव मे होगी तो उम्मीद करता हूँ कि तुम उनका अच्छे से ख्याल रखती होगी। अपने मेसेज मे कुछ केन की शैतानियों के बारे मे जरुर बताना। अगर मुझ से कभी बात करनी है तो अम्मी से इजाजत लेकर इस नम्बर XXXX पर काल कर देना। गाड प्रामिज तुम सब से मै बहुत प्यार करता हूँ।

…मेरा मेसेज मेनका को पढ़वा देना। तुम्हें बात नहीं करनी तो भी तुम मेनका से फोन पर बात तो करा सकती हो। आई लव यू।

…अगर खुदाई शमशीर की तंजीम को तुम नहीं जानती तो तुम्हें सावधान रहने की जरुरत है। तुम्हारे नाम पर जनरल फैज कोई नयी योजना को कार्यान्वित करने की फिराक मे है। हमेशा ख्याल रहे कि अगर कोई बात बिगड़ जाये या कोई मुश्किल पड़ जाये तो फौरन उस नम्बर पर मुझे सुचित कर देना।    

अपना संदेश भेज कर मै वापिस वजीरी कैंम्प की दिशा मे निकल गया। नीलोफर खुले आसमान के नीचे बैठी मेरा इंतजार कर रही थी। पिक-अप के रुकते ही वह दरवाजा खोल कर बैठते हुए बोली… कहाँ चले गये थे? पिक-अप आगे बढ़ाते हुए मैने कहा… दिल्ली बात करनी थी। हम बात करते हुए मीरमशाह की दिशा मे निकल गये थे। …समीर, अब क्या करना है? …अगले दो महीने मे हमे बैतुल्लाह और गनी को राजी करना होगा। नीलोफर अब तुम्हारा इस्लामाबाद लौटने का समय आ गया है। मुझे सुनने मे आया है कि भारत मे नोटबंदी के कारण यहाँ के कारोबार मे काफी उथल पुथल हो गयी है। इस्लामाबाद मे बहुत से लोग तुम्हारी राह देख रहे होंगें। …तुम कहाँ जा रहे हो? …मुझे बलोच रेसिस्टेन्स फ्रंट के मुखिया एहतेशाम बुगती से मिलने वाशुक जाना था परन्तु किसी कारणवश अपने कार्यक्रम मे कुछ बदलाव करना पड़ रहा है। उसने प्रश्नवाचक दृष्टि मुझ पर डाली परन्तु मुझे चुप बैठा देख कर बोली… तुम नहीं बताना चाहते तो मत बताओ। …मुझे काबुल जाना है। अजीत सर ने मुझे वहाँ पर किसी से मिलने के लिये कहा है। …तालिबानी? …नहीं। एम्बैसी का आदमी है। …मै भी चलूँ? …नहीं। यही वक्त है जब तुम अपना नेटवर्क इस्लामाबद और कराँची मे स्थापित कर सकती हो। बस ख्याल रखना की ड्र्ग्स के चक्कर मे मत पड़ना। ड्रग्स के कारोबार मे पैसा तो बहुत है परन्तु वह कारोबार आईएसआई की देखरेख मे चलता है तो फौरन उनके रेडार पर आ जाओगी। अपने सूत्रों से एक बार हया के बारे मे पता लगाने की कोशिश करना कि क्या उसने दोबारा से कश्मीर डेस्क संभाल ली है। ऐसे ही चर्चा करते हुए हम पहली किरण निकलते ही मीरमशाह पहुँच गये थे।

हम दोनो ने होटल मे ठहरने का निश्चय किया था। मै यहाँ पर रुकना नहीं चाहता था क्योंकि मुझे जल्दी से जल्दी काबुल पहुँचना था। रात को सोने से पहले नीलोफर ने कहा… मेरा ख्याल है कि हम दोनो पेशावर से तुर्खैम बार्डर पार करके अफगानिस्तान मे आसानी से प्रवेश कर सकते है। वहाँ से जलालाबाद होते हुए हम काबुल पहुँच जाएँगें। …नीलोफर, तुम्हारा इस्लामाबाद पहुँचना बहुत जरुरी है। मै स्थानीय ट्रान्स्पोर्ट लेकर तुर्खैम की ओर निकल जाऊँगा। इस जीप से तुम इस्लामाबाद के लिये निकल जाना। वह कोई और नयी कहानी सुनाती उससे पहले उसको अपनी बाँहों मे जकड़ कर उस पर छा गया था। कुछ देर उसके होंठों का रसपान करने के बाद जैसे ही अलग होने के लिये हटा कि तभी उसकी बाँहें मेरे गले के इर्द-गिर्द लिपट गयी थी। कुछ ही देर मे उसकी सिस्कारियों से कमरा गूंज रहा था। उसका दूध से उजले दायें स्तन पर नीले निशान को देख कर एक पल के लिये उस लेफ्टीनेन्ट की दरिन्दगी याद आ गयी थी। धीरे से उस स्थान को चूम कर मैने पूछा… अगर वह लोग समय पर नहीं आते तो न जाने क्या होता। नीलोफर ने नशे मे डूबी पलकें धीरे से खोल कर कर कहा… मुझे यकीन है कि तुम चुपचाप ऐसे नहीं खड़े रहते। …इतना यकीन है? इस बार उसने कुछ कहा नहीं अपितु उसकी जकड़ कस गयी थी। उस रात नीलोफर पर तो जैसे भूत सवार हो गया था। उसने टूट कर हर कदम पर मेरा पूरा साथ दिया था। मैने भी जैसे उस रात नीलोफर के अंग-अंग को निचोड़ने का प्रण कर रखा था। उसका गदराया हुआ कामुक जिस्म मेरे हर स्पर्श पर अपनी ही भाषा मे बात कर रहा था। उसके जिस्म के पोर-पोर से कामुकता टपक रही थी। मेरे हर भरपूर वार पर उसके मुख से कामोउत्तेजित सीत्कार निकल रही थी। उस रात उसके जिस्म मे भड़की हुई कामाग्नि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी। जब मेरे जिस्म ने ही जवाब दे दिया तब कहीं जाकर हमारी एकाकार की अग्नि शांत हो पायी थी। हम थक कर एक दूसरे को आगोश मे बाँध कर सपनो की दुनिया मे खो गये थे

अगली सुबह हमारे बीच मे यह तय हुआ था कि नीलोफर के साथ मेरे साथी इस्लामाबाद जाएँगें। वहाँ पहुँच कर नीलोफर फाईनेन्स का नेटवर्क तैयार करेगी और मेरे लौटने तक मेरे साथी उसकी सुरक्षा के प्रबन्ध के साथ स्थानीय खुदाई शमशीर की एक वसूली टीम तैयार करेंगें। शाम को मुझे पेशावर शहर के बाहर छोड़ कर वह इस्लामाबाद के लिये निकल गये थे। अंधेरा गहराता जा रहा था। पेशावर की मंडी का ख्याल आते ही मै उस ओर निकल गया था। अपने कंधे पर स्कूली बैग लटका कर लाईन से लगे हुए ट्रकों पर नजर डालते हुए मै अफगानी ट्रक को खोजने की कोशिश कर रहा था। पूरी मंडी छानने के बाद भी जब कोई अफगानी ट्रक नहीं दिखा तो मै एक ढाबे पर खाना खाने के लिये बैठ गया। मेरे सामने वाली खाट पर बैठे हुए कुछ लोग खाना खाते हुए जलालाबाद के बारे मे बात कर रहे थे। …रास्ता खराब है इसलिये मान के चलो कि जलालाबाद का आठ से बारह घंटे का सफर है। कस्टम कंट्रोल पर निर्भर करता है कि कितना समय लगेगा। जलालाबाद का नाम सुनते ही मेरे कान उनकी बातचीत पर लग गये थे। उनकी बातचीत से पता चला कि गुल मोहम्मद एजेन्सी का तीन ट्रक माल जलालाबाद के लिये रात को निकल रहा है। मैने जल्दी से खाना समाप्त किया और गुल मोहम्मद एजेन्सी की ओर रुख किया। उस एजेन्सी को ढूंढने मे ज्यादा समय नहीं लगा था।

गुल मोहम्मद एजेन्सी के गोदाम पर ट्रको मे बोरियाँ लादी जा रही थी। कुछ देर मै दूर से लोडिंग होते हुए देखता रहा और फिर उन ट्रकों के पास खड़े हुए एक आदमी से पूछा… भाईजान क्या जलालाबाद के माल की ढुलाई चल रही है? …हाँ। …माल कौन लेकर जा रहा है? अबकी बार वह आदमी घुर्रा कर बोला… तुझे क्या काम है? …कुछ खास नहीं भाईजान। मुझे लंडी कोटल बजार तक पहुँचना है तो सवारी के बारे मे पूछना चाहता हूँ। मेरे चचा यहीं इदरीस मुस्तफा एजेन्सी मे ड्राईवर है। उन्होंने ही बताया था कि ट्रक से निकल जाओगे तो जल्दी पहुँच जाओगे। एक नजर मुझ पर डाल कर उसने कहा… वही सब्जी वाले? …जी भाईजान। …एक घंटा लगेगा। तू मंडी से बाहर निकल कर नाके पर मिलना। सौ रुपये मे नान-स्टाप पहुँच जाएगा। …ठीक है भाईजान। मै नाके पर आपका इंतजार करता हूँ। …अबे ठहर। मै नहीं जा रहा। ड्राईवर को बुला रहा हूँ। इतना बोल कर वह चला गया और मै वहीं खड़ा रह गया। मुश्किल से पाँच मिनट गुजरे थे कि वह आदमी अपने साथ एक बुजुर्ग पठान को लेकर मेरे पास आकर बोला… यह मन्सूर है। उस बुजुर्ग को सलाम करके मैने कहा… मै नाके पर खड़ा हूँ। तभी वही व्यक्ति बोला… पहले पैसे। मैने जेब से कुछ मुड़े-तुड़े रुपये निकाल कर गिने और फिर उसे पकड़ाते हुए बोला… साठ रुपये है। चालीस नाके पर दे दूंगा। …पहले पूरे पैसे दे। एक बार फिर सारी जेब खंगाल कर एक बीस का नोट निकाल कर उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा… बस इतने ही है। वह आदमी हँस कर बोला… बीस का चूना लगाने की सोच रहा था। तभी मन्सूर पठान बोला… सुलेमान भाई रहने दो। इसको भी छोड़ दूंगा। माल लोड हो गया है। ट्रक हटाना है। सुलेमान ने मेरी पीठ पर धौल जमा कर कहा… चल नाके पर खड़ा हो जाना। कुछ देर मे यह ट्रक लेकर आ रहा है। दोनो का शुक्रिया करके मै वापिस मंडी के मुख्य द्वार की ओर चल दिया।

नाके पर तो ट्रकों की लाईन लगी हुई थी। मंडी के बाहर बाजार की भीड़ देख कर एक पल के लिये ठिठक कर रुक गया था। एक किनारे मे आदमियों,औरतों और बच्चों का जमघट लगा हुआ था। जैसे ही एक ट्रक नाके से निकल कर आगे बढ़ा तो भीड़ उसकी ओर बढ़ गयी थी। कुछ आदमी फैसलाबाद और कुछ मुलतान और कुछ हैदराबाद पुकार रहे थे। रेंगते हुए ट्रक के ड्राईवर ने खिड़की से सिर बाहर निकल कर जोर से कहा… मुलतान जा रहा हूँ। एकाएक जाने वालो की भीड़ छँट गयी और दो परिवार तेजी से ट्रक के पीछे चल दिये थे। एक पल के लिये ट्रक रुका तो सभी फुर्ती दिखाते हुए ट्रक के पीछे चढ़ गये थे। अगले चार ट्रक भी इसी प्रकार अलग-अलग जगह के लोगों को लेकर निकल गये थे। मै मन्सूर के ट्रक का इंतजार कर रहा था। अभी भी लोगों की भीड़ ज्यों की त्यों बनी हुई थी। दो घन्टे के बाद मन्सूर पठान का ट्रक नाके पर पहुँचा था। मै नाके पर ही खड़ा था। ट्रक से उतर कर जब वह मेरे सामने से निकला तो धीरे से बोला… पीछे जाकर बैठ जा। इतना बोल कर वह खिड़की की ओर बढ़ गया था। एक नजर चारों ओर डाल कर मैने तिरपाल हटा कर देखा तो वहाँ करीने से गंदुम की बोरियाँ लगी हुई थी। पीछे पाँव रखने की जगह नहीं थी तो मेरे बैठने का तो सवाल ही नहीं था। मै उचक कर किसी तरह ट्रक के पीछे लकड़ी फट्टे पर चढ़ कर तिरपाल के पीछे चला गया। मै अभी संभल भी नहीं पाया था कि मन्सूर की आवाज आयी… बैठ गया। मै कुछ बोलता कि उससे पहले मन्सूर ने तिरपाल का खुला हुआ हिस्सा बांधना आरंभ कर दिया था। अंधेरे मे बोरियों के सहारे किनारे की ओर चला तो आखिरी सिरे पर इतनी जगह बची थी कि एक आदमी आसानी से पीछे की ओर निकल सकता था। ट्रक धीरे से हिला और आगे बढ़ गया। उस झटके के कारण मै उस कृतिम से गलियारे मे गिर पड़ा तभी सड़क की रौशनी तिरपाल से छन कर पिछले हिस्से को रौशन कर दिया था। वहाँ का नजारा देख कर चौंक गया।

गंदुम की बोरियाँ आगे लगी हुई थी परन्तु पीछे के हिस्से मे दर्जन से ज्यादा लोग मौजूद थे। मै भी सँभल कर अपनी पीठ टिका कर बैठ गया था। मेरे साथ एक बुजुर्ग आदमी बैठा हुआ था। ट्रक अब अपनी गति पकड़ चुका था। मेरे साथ बैठे बुजुर्ग ने पूछा… कहाँ जाना है? …काबुल जा रहा हूँ। …बेटा सीमा पार कैसे करोगे? …पता नहीं। आप कहाँ जा रहे है? …जलालाबाद। …इसी ट्रक से? …नहीं। हम सभी तुर्खैम पर उतर कर पैदल सीमा पार करेंगें। तभी दूसरे सिरे पर बैठे हुए व्यक्ति ने फोन निकाल कर टार्च की रौशनी हमारी ओर डाली तो पूरा हिस्सा रौशन हो गया था। दूसरे सिरे पर हथियारों से लैस चार जिहादी बैठे हुए थे। उनके समीप तीन बुर्का ओढ़े स्त्रियाँ बैठी हुई थी। उनके साथ चार बच्चे बैठे हुए मुझे घूर रहे थे। मेरे साथ बैठे हुए बुजुर्ग पठान ने कहा… पाकिस्तानी हो? …हूँ। तभी एक जिहादी ने पूछा… काबुल किस लिये जा रहा है? …भाईजान, अपनी बीवी को लेने जा रहा हूँ। एकाएक सभी खिलखिला कर हँस दिये थे। मुझे उनके हंसने का कारण समझ मे नहीं आया लेकिन फिर भी चुप हो कर बैठ गया। एक बार फिर से अंधेरा हो गया था। दो घंटे चलने मे ही मेरी कमर अकड़ गयी थी। ड्राईवर की आवाज गूँजी… लंडी कोटल आने वाला है। मै तिरपाल हटा कर जोर से चिल्लाया… भाईजान मै इनके साथ तुर्खैम तक जाऊँगा। वह खिड़की से सिर निकाल कर बोला… बीस रुपये निकाल कर रखना। एक बार फिर अन्दर शांति छा गयी थी। कब लंडी कोटल निकला और कब तुर्खैम पहुँचे पता ही नहीं चला था। एक जगह ट्रक खड़ा हो गया तब पता चला कि हम तुर्खैम पहुँच गये थे।

मन्सूर ने तिरपाल हटा कर आवाज लगायी… सब यहाँ उतर जाओ। तुर्खैम आ गया है। आधी रात निकल चुकी थी। एक-एक करके सब नीचे उतर गये थे। …बीस रुपये। मैने जेब से बीस रुपये निकाल कर उसको पकड़ा कर उनके साथ चल दिया। ट्रक ने हमे एक वीरान इलाके मे उतार दिया था। चारो जिहादी बात करते हुए आगे चल रहे थे। उनके पीछे तीन स्त्रियाँ और बच्चे चुपचाप चल रहे थे। मेरे साथ बुजुर्ग चल रहा था। पहली बार मेरा ध्यान उसके कंधे पर लटकी हुई एके-47 पर पड़ी थी। स्त्रियाँ सिर से पाँव तक का पैराशूटी बुर्का पहने हुए चल रही थी। इस वेश मे किसी की उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल था। बच्चे भी चुपचाप चल रहे थे। …बेटा यहाँ से आठ मील पर अंधेरे मे सीमा पार करेंगें। मैने कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप उनके साथ चल दिया था। चारों जिहादियों के लिये रास्ता जाना पहचाना था इसलिये सभी उनके पीछे चल रहे थे। …क्या यह सब तालिबानी है? कुछ बोलने के बजाय उस बुजुर्ग ने अपना सिर हिला दिया था। 

सड़क छोड़ कर एक पथरीली सी पगडंडी पकड़ कर हम चल रहे थे। हमे चलते हुए एक घन्टे से ज्यादा हो गया था। अचानक एक बच्ची ने धीरे से कहा… अम्मी मै चलते-चलते थक गयी। तभी चलते हुए जिहादी घुर्राया… जीनत चुपचाप चलती रह। तेरी आवाज नहीं आनी चाहिये। वह बेचारी चुपचाप कुछ दूर चलती रही फिर लड़खड़ा कर जमीन पर बैठ गयी। इससे पहले किसी का ध्यान उसकी ओर जाता मैने झपट कर उसे अपनी गोदी मे उठा कर चलने लगा। उसके साथ चलने वाले बच्चे भी कुछ नहीं बोले और चुपचाप चलते रहे। उस फूल सी बच्ची को गोदी मे उठाते ही मुझे अपनी मेनका की याद ताजा हो गयी थी। अचानक बुर्कापोश महिला चिल्लायी… हाय अल्लाह जीनत पीछे छूट गयी। हमारा काफिला चलते-चलते एकाएक रुक गया था। मै जब तक कुछ समझ पाता उससे पहले लड़का जल्दी से बोला… अम्मी, जीनत मामू की गोद मे है। सबकी नजर मुझ पर टिक गयी थी। तभी वह बुजुर्ग बोला… अली, बच्ची थक गयी थी तो इसने उसे गोदी मे उठा लिया। अब चलो क्योंकि हमारे पास ज्यादा समय नहीं है। जीनत तो गहरी नींद मे खोई हुई थी। सुबह चार बजे हम सीमा पार करके अफगानिस्तान मे प्रवेश कर चुके थे। वहाँ न कोई दीवार थी और न ही तार लगे हुए थे। बस वीरान चट्टानी मैदान दिख रहा था। बुजुर्ग ने कहा कि अब हम अफगानिस्तान मे प्रवेश कर चुके है तो मैने मान लिया था।

एक घंटा और चलने के पश्चात आराम करने के लिये कुछ देर बैठ गये थे। अली मेरे पास आया और बच्ची को गोदी मे लेकर उसकी अम्मी की ओर चला गया। मै चट्टानी धरती पर लेट कर सीधा फैल गया। अब मुझे भी थकान महसूस होने लगी थी। बच्ची को गोदी मे उठाने के कारण मेरा हाथ भी सुन्न हो गया था। वह चारों जिहादी भी मुझसे कुछ दूरी बना कर बैठ गये थे। उनमे से एक अपने चेहरे पर लपेटे हुए गमछे को हटा कर बोला… क्या नाम है तेरा? …समीर। …अबे नशा करेगा? …नहीं भाई। शुक्रिया। उसने जेब से एक पुड़िया निकाल कर अपने साथी से बोला… भाई, सारा नशा उतर गया है। उसने पुड़िया खोल कर उसमे से एक चुटकी लेकर अपनी जुबान और दाँतों पर रगड़ कर वही पुड़िया अपने साथी की ओर बढ़ा दी थी। उसने भी वही प्रक्रिया दोहरायी और पुड़िया को अपने साथ बैठे हुए जिहादी की ओर बढ़ा दिया। मै चुपचाप लेटे हुए उनको नशा करते हुए देख रहा था। हमसे कुछ दूरी पर तीनो बुर्कापोश स्त्रियाँ अपने बच्चों के साथ बैठी हुई थी। बुजुर्ग पठान एक कोने मे बैठ कर कुछ पत्तियाँ चबा रहा था। रात का अंधेरा भी धीरे-धीरे छँटता जा रहा था। एक नजर सब पर डाल कर कुछ देर के लिये मै आंखे मूंद कर अपने अगले कदम के बारे मे सोचने लगा। पता नहीं मेरी आँख लग गयी थी या कुछ पल के लिये दिमाग सो गया था कि अचानक हलचल होने के कारण मै चौंक कर उठ कर बैठ गया। मेरी नजर सामने पड़ी तो एक जिहादी बैठी हुई बुर्कापोश स्त्री के साथ खींचतान मे उलझा हुआ था।

मैने अपने साथ बैठे हुए लोगों पर नजर डाली तो तीनो की नजर उस ओर लगी हुई थी। कभी वह जिहादी उस स्त्री को ठोकर मारता और कभी गालियाँ देते हुए उसको चट्टान की आढ़ मे बाँह पकड़ कर घसीट कर ले जाने की कोशिश करता। वह निरन्तर उससे दूर होने की कोशिश मे जुटी हुई थी। मै हैरान था कि कोई भी उस स्त्री की मदद के लिये आगे नहीं आ रहा था। चारों बच्चे भी डरे सहमे चुपचाप यह हाथापाई देख रहे थे। मै अभी हालात समझने की कोशिश कर रहा था कि तभी हमारे पास बैठा हुआ जिहादी अपनी गन अपने साथी की ओर बढ़ाते हुए बोला… इसे संभाल। मै भी फारिग होकर आता हूँ। इतना बोल कर वह भी उठ कर उनकी ओर चल दिया। अचानक मेरे पास बैठे हुए अली ने बुजुर्ग की ओर देख कर बोला… अब्बाजान, यह गन संभालना। हम भी फारिग होकर आते है। वह बुजुर्ग सारे हथियार उठाकर मेरे साथ आ कर बैठ गया। चारों बच्चे भी डरे सहमे हुए हमारे पास आकर बैठ गये थे। उन चारों के वहाँ पहुँचते ही हमारी आँखों के सामने जलालत का नंगा नाच शुरु हो गया था। किसी शर्म, मान मर्यादा की परवाह किये बिना वह चारों पशुओं की भांति उन तीन स्त्रियों पर टूट पड़े थे।

…बड़े मियाँ यह किसकी औरतें है? …अपने लड़ाकुओं के लिये दाईश की ओर से इनाम है। …क्या मतलब? मै उस कट्टरपंथी तंजीम से वाकिफ था परन्तु अपनी अनिभिज्ञता दर्शाते हुए मैने पूछ लिया… क्या आईएसआईएस दाईश अपने जिहादियों को लड़कियाँ इनाम मे देता है? …हाँ।  …बड़े मियाँ यह बच्चे किसके है? …उन औरतों के है लेकिन उनके बाप का पता तो उन औरतों को भी नहीं है। मैने सहमे हुए बच्चों पर एक नजर डाल कर पूछा… इनका क्या अंजाम होगा? …वही होगा जो उन औरतों के साथ होता है। दाईश अरब का कानून मानता है। गुलाम के बच्चे गुलाम होते है। लड़के किसी जिहादी के गुलाम बन जाएँगें और लड़कियाँ तो उम्र से पहले औरत बन जाएँगी। उसकी बात सुन कर मेरा मन खिन्न हो गया था। वह बूढ़ा मुझे समझाते हुए बोला… यह जिस्मानी आग बुझाने का तरीका है। शरिया इसकी इजाजत देता है। कुछ दिन हमारे साथ ठहर जाओ तो तुम खुद ही देख लेना। हमारे बीच बस इतनी ही बात हो सकी थी क्योंकि दो जिहादी अपनी शलवार का नाड़ा बाँधते हुए हमारी ओर आते हुए दिख गये थे। एक जिहादी मुस्कुरा कर मेरे साथ बैठते हुए बोला… समीर, अगर तू भी फारिग होना चाहता है तो तू भी कर ले। मैने हाथ जोड़ कर जल्दी से कहा… भाई शुक्रिया। अब हमे चलना चाहिये। जैसे-जैसे दिन निकलेगा, यह जगह गर्म होती चली जाएगी।

कुछ देर के बाद हमारा सफर आरंभ हो गया था। एक बार फिर पहले जैसे हम लोग हाईवे की दिशा मे चल दिये थे। एक घन्टे चलने के बाद हम काबुल-जलालाबाद हाईवे पर पहुँच गये थे। हम सब थकान उतारने के लिये सड़क के किनारे बैठ गये और वह चारों अपने हथियार बुजुर्ग को सौंप कर जलालाबाद जाने के साधन ढूंढने के लिये निकल गये थे। मै अभी भी नारकीय अनुभव और बुजुर्ग की बातों से उबर नहीं पाया था। मेरे करीब ही वह स्त्रियॉ अपने बच्चों के साथ बैठी हुई थी। पहली बार उन स्त्रियों को धीमे स्वर मे बात करते हुए सुना तो एक पल के लिये मेरी धड़कन बढ़ गयी थी। जो कुछ शब्द मुझे सुनाई दिये थे तो उनकी भाषा स्थानीय बिल्कुल नहीं थी। मुझे कुछ तमिल या मलयालम जैसी भाषा लग रही थी। मै दोनो भाषा नहीं जानता था परन्तु शब्दों के उच्चारण से इतना तो अनुमान लगा सकता था कि कोई दक्षिण भारत की भाषा है। खड़कवासला मे तीन साल गुजारने के कारण तामिल के एक दो शब्द मुझे याद हो गये थे तो कुछ सोच कर मैने थोड़ा जोर देकर कहा… वणक्कम। बोलते हुए मेरी आँखें उन तीनो पर टिकी हुई थी। तीनो ने तुरन्त गरदन घुमा कर मेरी ओर देखा तो मैने जल्दी से दबी आवाज मे पूछा… तामिल? एक स्त्री ने जल्दी से गरदन हिला कर मना करते हुए दबी आवाज मे कहा… मलयाली। मेरा जिस्म एक पल के लिये सिहर उठा था।

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