शह और मात-8
सब सो गये थे और मै
करवटें बदल रहा था। अंजली के विश्वासघात ने मुझे अन्दर से हिला कर रख दिया था। मेनका
और केन उसके साथ होने के कारण मेरी स्थिति बेहद संवेदनशील हो गयी थी। उनका ख्याल आते
ही मै उठ कर बैठ गया। मेरे दोनो बच्चे उसके पास होने से अब मेरी स्थिति और भी ज्यादा
कमजोर हो गयी थी। …समीर क्या अभी भी उसके बारे मे सोच रहे हो? नीलोफर मेरी ओर करवट
लेकर बोली तो मैने धीरे से उसके बाल सहला कर कहा… मुझे नींद नहीं आ रही है। …तुम बेकार
उस पर शक कर रहे हो। वह हर्गिज वहाँ नहीं हो सकती। मै कुछ बोलते-बोलते रुक गया। अचानक
काठमांडू की एक रात मेरे दिमाग मे एक ख्याल आया था जिसने मुझे अन्दर से हिला कर रख
दिया था। दिल्ली लौटने से पूर्व मै अकेला बैठ कर एक रात को काठमांडू आप्रेशन का आंकलन
करते हुए एक ख्याल आया तो मै घबरा कर उठ कर खड़ा हो गया था। अब वही ख्याल सच साबित होता
हुआ लग रहा था।
एक ओर दिल्ली मे
बैठी हुई तिगड़ी ने अपने प्यादे शतरंज की बिसात पर बिछा दिये थे। दूसरी ओर सीमा पार
बैठे हुए जनरल शरीफ और जनरल बाजवा अपने प्यादे सेट करने मे लगे हुए थे। उनके
मुख्य प्यादे फारुख, मकबूल बट और अब्बासी को तिगड़ी ने एक चाल
मे धाराशायी कर दिया था। तभी दिमाग मे एक ख्याल बिजली की तेजी से कौंधा कि बिछी
हुई बिसात मे मेजर हया इनायत मीरवायज अगर उनकी रानी हुई तो उन्होंने अपने कुछ
प्यादे शहीद करके अपनी रानी को तिगड़ी के कितने करीब पहुँचा दिया था। अपने आपको मन ही मन समझाते हुए मैने सोचा कि अगर मेजर
हया की ऐसी कोई मंशा होती तो अस्पताल मे उस रात को एक ही वार मे तिगड़ी के दो मुख्य
सदस्यों का अन्त बड़ी आसानी से हो जाता। सभी शतरंज की बिसात पर अपनी-अपनी चाल चल
रहे थे लेकिन उस समय मुझे लगा कि तिगड़ी ने सबसे
गहरी चाल चली थी। उनकी एक चाल ने पूरे पाकिस्तानी तंत्र को पंगु बना दिया था।
आईएसआई और संयुक्त इस्लामिक जिहाद काउन्सिल हमारी अर्थव्यवस्था के सीने मे खंजर
घोपने की चाल चल रहे थे। फारुख और मकबूल बट अपने निजि फायदे के लिये अपनी चाल चल
रहे थे। नीलोफर अपनी चाल चल रही थी तो मै अपनी चाल चल रहा था। हम सभी प्यादे सीमा
के दोनो तरफ मेजर हया इनायत मीरवायज की चाल के शिकार हो गये थे। इस एक चाल मे
उन्होंने फारुख और मकबूल बट को खोया तो मैने आफशाँ खो दिया था। मैने अपने आप से
पूछा… यह चाल किसके हाथ लगी? तो मुझे जवाब एक ही मिला… यह बिसात तिगड़ी
के हाथ लगी क्योंकि उनकी चाल की गहरायी ज्यादा थी। मै मन ही मन बड़बड़ाया… और अगर
मेजर हया को तबस्सुम बना कर भेजना उनकी चाल थी तो फिर यह बाजी किसके हाथ लगी? इस प्रश्न का
जवाब सोच कर मै चलते-चलते ठिठक कर रुक गया था। एकाएक मोहब्बत और विश्वास का भूत एक
पल मे दिमाग से काफुर हो गया था।
मै बिस्तर छोड़ कर
खड़ा हो गया और अपने बैग से सेटफोन निकाल कर घर से बाहर आ गया। कुछ सोच कर मैने अपनी
पिक-अप लेकर एक दिशा मे निकल गया। जब मन विचलित होता है तो कुछ भी नहीं सूझता है। यही
हाल मेरा भी था। बिना किसी उद्देश्य के मै चला जा रहा था। मीरमशाह के आसपास पर्वत श्रृंखलाएं, लहरदार पर्वतीय
क्षेत्र और पहाड़ियों से घिरे मैदान होने के कारण वातावरण मे शांति छायी
हुई थी। तोची नदी के तट पर अपनी पिक-अप रोक कर मैने अपना सेटफोन आन किया और उसे नेटवर्क
से जुड़ने का इंतजार करने बैठ गया। जैसे ही फोन मे कंपन महसूस हुई मैने जल्दी से उसका
मेसेज बाक्स खोल कर देखा तो उसने अंजली के तीन संदेश थे।
…आपके जवाब का हर
पल इंतजार रहता है। हर बीतते पल के साथ अदा मेरी पहुँच से दूर होती जा रही है। समझ
नहीं आ रहा कि क्या करुँ?
…मैने सुना था कि
जब सब दरवाजे बन्द हो जाते है तब खुदा एक दरवाजा खोल देता है। अब मैने खुदा पर भरोसा
करना छोड़ दिया है।
…मेनका और केन ठीक
है। मेनका आपको बहुत याद करती है। उन दोनो से कहीं ज्यादा मै आपको मिस करती हूँ।
दो बार तीनो संदेश
पढ़ने के बाद मै और भी ज्यादा उलझ गया था। आज तक मिले हुए उसके हर संदेश मे एक बार भी
मुझे नहीं लगा कि वह मेरे साथ कोई छल-कपट कर रही थी। कुछ देर सोचने के बाद मैने अपने
उलझे हुए ख्यालों को सुलझाते हुए अपना संदेश तैयार किया और एक बार दोबारा पढ़ कर उसे
भेज कर नदी के किनारे बैठ कर अपनी रणनीति बनाने मे जुट गया था।
…खुदा पर भरोसा
रखो। सब ठीक हो जाएगा। एक दिन हम जरुर मिलेंगें बस उस दिन के इंतजार मे जी रहा हूँ।
हाल ही मे खुदाई शमशीर नाम की पाकिस्तानी तंजीम के कुछ जिहादियों को सीमा पार करते
हुए हमने जम्मू क्षेत्र मे पकड़ा है। पूछताछ मे उन्होंने मेजर हया इनायत मीरवायज का
नाम लिया था। क्या तुम इस तंजीम को जानती हो?
तोची नदी का वेग के
कारण पानी का बड़ा भयावह शोर प्रतीत हो रहा था। जब काफी देर तक बहते पानी को देखते हुए
थक गया तो मै उठ कर पिक-अप की पिछली सीट पर जाकर लेट गया। अंजली के साथ मेसेज बाक्स
एक मात्र संपर्क था। उसी के बारे मे सोचते हुए पता नहीं कब मेरी आँख लग गयी परन्तु
जब आँख खुली तब तक सूर्य देवता ने आसमान रौशन कर दिया था। मैने अपनी घड़ी पर नजर डाली
तो पता चला कि ग्यारह बज रहे थे। मैने जल्दी से अपना स्मार्ट फोन निकाल कर अल्ताफ मेहसूद
का नम्बर लगाया… हैलो। अल्ताफ भाई सलाम वालेकुम। …वालेकुम भाईजान। कहाँ तक पहुँच गये?
…मै मीरमशाह पहुँच गया हूँ। बस आप बता दिजिये कि हमजोनी मे कब और कहाँ मिलना है? …भाईजान,
हम आज रात तक हमजोनी पहुँच जाएँगें। कल दोपहर
बारह बजे हमजोनी द्वार से कुछ मील उत्तर मे वजीरी खेमा है। वहीं पर आपकी कल नसरुल्लाह
मेहसूद और अबदुल्लाह वजीरी से मुलाकात हो जाएगी। …तो कल वहीं मिलते है। अगर पहुँचने
मे कोई मुश्किल हुई तो दोबारा आपको तकलीफ दूँगा। खुदा हाफिज। इतनी बात करके मैने फोन
काट दिया और मीरमशाह की ओर वापिस चल दिया।
उस हवेली मे प्रवेश
करते ही मेरा सामना नीलोफर से हो गया था। वह कुछ बोलती उससे पहले मैने कहा… कल हमारी
मेहसूद और वजीरी से मुलाकात तय हुई है। मेरी बात को अनसुना करके उसने पूछा… तुम कहाँ
चले गये थे? …कुछ सोचने के लिये एकान्त चाहिये था। इसलिये बाहर चला गया था। बाकी सब
कहाँ है? …सब यहीं पर है। शायद हमारी आवाज सुन कर अलग-अलग कमरों से मेरे साथी बाहर
निकल आये थे। …कल मिलने की जगह और समय तय हो गयी है। कुछ ही देर के बाद चाय पीते हुए
आईपेड पर हमजोनी की निशानदेही करके हम लोग आगे की योजना पर चर्चा कर रहे थे। मेरे साथियों
का विचार था कि हमे एक साथ वहाँ पहुँच कर अपनी ताकत दिखानी चाहिये परन्तु मेरा विचार
था कि मै और नीलोफर उस खेमे मे जाकर पहले उनसे संपर्क करेंगें। मेरे सभी साथी तब तक
उनके कबीले की ताकत का आंकलन व आसपास की टोह लेकर उप्युक्त स्थानों पर तैनात होकर हमारी
सुरक्षा की व्यवस्था करें। सुरक्षा दृष्टि से दूसरा विचार ज्यादा उप्युक्त लग रहा था।
एक तो सबके लिये वह जगह नयी थी। वहाँ से बच कर निकलने के रास्तों का हम सबको ज्ञान
होना जरुरी था। दूसरा कहीं अगर हम दोनो किसी अन्तरघात के शिकार हो गये तो फिर हमारी
रक्षा हमारे साथियों पर निर्भर होगी। रात तक इस पर कोई निर्णय नहीं ले सके थे।
सुबह ठीक दस बजे हम
दोनो अपनी-अपनी गाड़ियों से हमजोनी की दिशा मे निकल गये थे। हमसे कुछ दूरी बना कर मेरे
साथी जोन्गा मे हमारे पीछे चल रहे थे। …तुम्हें जफर और सादिक से खतरा लग रहा है? …नीलोफर,
सभी नये लोग है। जफर और सादिक से खतरा हमारे बजाय उनको ज्यादा होना चाहिये। बस इतना
बोल कर मेरी नजरें बाहर के हालात का जायजा लेने मे जुट गयी थी। कश्मीर के बजाय लद्दाख
जैसा नजारा दिख रहा था। मीरमशाह से निकलते हुए पुल पार किया और फिर एक कच्ची सड़क पकड़
कर हमजोनी की दिशा मे चल पड़े थे। चट्टानी पर्वतमाला और काफी दूरी तक फैला हुआ हरा-भरा
मैदानी इलाका सड़क के एक साइड था और दूसरी ओर तोची नदी सड़क के साथ बह रही थी। मुश्किल
से दस किलोमीटर चले थे कि मैदानी इलाके मे बहुत सारी कच्ची बस्तियाँ दूर तक फैली हुई
थी। …समीर, यह सभी बस्तियाँ अफगान शरणार्थियों की है। ज्यादातर यहाँ रहने वाले पश्तून
और हजारा समूह के लोग है। अपनी जीप चलाते हुए मै यहाँ की कमेन्टरी नीलोफर के मुँह से
सुन रहा था। …मीरमशाह और उसके आसपास हक्कानी समूह का बोलबाला है और तोची नदी पार करते
ही तालिबान और तेहरीक की पकड़ ज्यादा मजबूत है।
बारह बजे से कुछ पहले
हम हमजोनी द्वार पर पहुँच गये थे। नीलोफर स्थानीय शलवार-कुर्ते मे थी बस हिजाब से उसने
अपना चेहरा और सिर छिपा लिया था। मेरे पूछने पर उसने सिर्फ इतना बोल कर मुझे चुप कर
दिया था कि वह लखवी है। मै सिर पर पगड़ी बाँध कर पश्तूनो के लिबास मे था। मेरे कन्धे
पर एक-203 और कमर मे उसकी मैगजीन बन्धी हुई थी। हमजोनी का दृश्य कुछ वैसा ही दिख रहा
था जैसा हम पीछे छोड़ कर आये थे। अनेक कच्ची बस्तियाँ मैदानी इलाके मे बसी हुई थी। उन
बस्तियों की ओर जाने वाला रास्ता दिखते ही मैने पिक-अप को मोड़ कर उन बस्तियों की दिशा
मे चल दिया। कुछ ही देर मे हम उन कच्ची बस्तियों के पास पहुँच कर पिक-अप वहीं छोड़ कर
बस्ती की ओर पैदल चल दिये थे। बस्ती के बाहर कुछ बच्चे झुंड बना कर खेल रहे थे। कुछ
जवान लोगों का समूह मैदान मे बैठ कर किसी बात पर चर्चा कर रहा था। बस्ती से थोड़ी दूरी
पर कुछ छोटी बच्चियाँ और बड़ी महिलायें एक छोटे से जलाशाय के तट पर बैठ कर कपड़े धो रही
थी और कुछ बर्तन साफ कर रही थी। उन युवकों के पास पहुँच कर मैने पूछा …सलाम भाईजान,
यह वजीरियों का खेमा कौनसा है? एक युवक ने इशारा करते हुए कहा… वह तीन-चार टेन्ट वजीरियों का है। शुक्रिया बोल
कर हम दोनो उन टेन्टों की ओर चल दिये थे।
टेन्ट के बाहर ही
मर्दों की महफिल लगी हुई थी। हम दोनो को अपनी ओर आता देख कर एक वृद्ध उठ कर हमारे पास आकर सलाम करके कुछ बोलता कि मैने
पूछा… जनाब अबदुल्लाह वजीरी का खेमा क्या यही है?
…आईये मै आपको लेकर चलता हूँ। एक नजर चारों ओर डाल कर हम दोनो उसके साथ चल दिये
थे। चुंकि टेन्ट बस्ती के बाहर लगे हुए थे तो भीड़ भाड़ नहीं थी। कुछ बुजुर्ग लोग बैठे
हुए चिलम फूँक रहे थे। सबकी नजर मेरे बजाय नीलोफर पर टिकी हुई थी। टेन्ट के बाहर कुछ
लोग जमीन पर बैठ कर किसी चर्चा मे डूबे हुए थे। उनके नजदीक पहुँच कर मैने अदब से सलाम
करके पूछा… बड़े मियाँ, अब्दुल्लाह वजीरी से मिलना है। उनमे से एक बुजुर्ग खड़ा होकर
बोला… खुशामदीद मियाँ। बोलिये क्या कहना है? …बड़े मियाँ अल्ताफ मेहसूद नहीं दिख रहा
है। आज वह हमारी मुलाकात आपसे और नसरुल्लाह मेहसूद से कराने वाला था। तभी एक टोयोटा
पिक-अप टेन्ट के पास आकर रुकी तो मेरी नजर अल्ताफ पर पड़ी जो एक बुजुर्ग को सहारा देकर
पिक-अप से उतार रहा था। हम दोनो को वहाँ खड़ा हुआ देख कर उसने हाथ हिला कर साथ चलते
हुए बुजुर्ग से कुछ बोल कर मुझसे पूछा… हमे ज्यादा देर तो नहीं हुई? …नहीं। हम भी अभी
यहाँ पहुँचे है।
दोनो बुजुर्ग बड़ी
गर्मजोशी से गले मिले और फिर मुड़ कर बोले… आओ आराम से बैठ कर बात करते है। इतना बोल
कर दोनो एक टेन्ट मे चले गये थे। मै और नीलोफर चुपचाप उनके पीछे अन्दर चले गये थे।
हमारे पीछे अल्ताफ के साथ दो और लोग टेन्ट मे आ गये थे। जमीन पर गद्दे बिछे हुए थे।
दोनो बुजुर्गों के बैठते ही बाकी लोग भी किनारों मे बैठ गये। एक वृद्ध ने नीलोफर की
ओर देख कर बोला… बीबी, तुम्हारा यहाँ कोई काम नहीं है। तुम जनानाखाने मे जाकर आराम
करो। नीलोफर तुरन्त बोली… चचाजान, मै लखवी हूँ और यह आपका जिरगा नहीं है। मै आपके लिये
मदद लेकर आयी हूँ इसलिये मेरा यहाँ होना जरुरी है। अल्ताफ भाई ने आपको सादिक और जफर
के बारे मे अब तक बता दिया होगा। आपसे कोई भी बात करने से पहले मै जानना चाहती हूँ
कि आपने इस मसले पर अभी तक कोई विचार किया है? एकाएक महफिल मे चुप्पी छा गयी थी। सभी
लोग हैरानी से नीलोफर को देख रहे थे। इससे पहले कोई कठिन परिस्थिति उभरती अबकी बार
मैने कहा… जनाब, मेरी बीवी ने जो कुछ भी बोला है वह आपके हित मे बोला है। अबकी बार
अब्दुल्लाह वजीरी बोला… सादिक और जफर पर नजर रखी जा रही है। तभी एक घबराये हुए आदमी
ने टेन्ट मे प्रवेश करते हुए चिल्लाया… आका, फौज आयी है। यह सुन कर अफरा तफरी का माहौल
हो गया और सभी लोग उठ कर टेन्ट से बाहर निकल गये थे।
फ्रंटियर फोर्स की
एक बीस-पच्चीस जवानों की टुकड़ी ने बस्ती को घेर लिया था। कुछ सैनिक लोगों को घरों से
बाहर निकाल कर मैदान की ओर खदेड़ रहे थे। हर ओर चीख पुकार मची हुई थी। हम दूर से सारी
कार्यवाही को अपनी आँखों से देख रहे थे। सैनिकों की टुकड़ी अपनी गन की नाल से आगे चलते
हुए आदमी या औरत को कभी धकेलते और कभी गुस्से मे आकर गन की बट से उनकी पीठ पर प्रहार
कर रहे थे। फौजी कार्यवाही का भयावह मंजर मेरी आँखों के सामने आ गया था। कुछ ही देर
मे आदमी, औरत, बच्चे व बुजुर्ग मैदान मे इकठ्ठे हो गये थे। फौज के खौफ मे किसी के मुँह
से आवाज नहीं निकल रही थी। अभी मै हालात समझने की कोशिश कर रहा था कि तभी अब्दुल्लाह
धीरे से बोला… नसरुल्लाह भाई माफ कर दिजिये। इतना बोल कर वह उस भीड़ की ओर चल दिया।
…चलिये हम भी चलते है। इतना बोल कर मै और नीलोफर भी अब्दुल्लाह के साथ चल दिये थे।
नसरुल्लाह और अल्ताफ को वही छोड़ कर बाकी सब हमारे पीछे आ गये थे। मेरे साथ चलते हुए
एक आदमी बोला… आपको अपनी बीवी को यहाँ नहीं लाना चाहिये था। मैने कुछ नहीं कहा बस चुपचाप
उनके साथ चलते हुए मैदान मे पहुँच कर सबके साथ खड़ा हो गया था।
लेफ्टीनेन्ट रैंक
का अफसर उस टुकड़ी का मुखिया था। उसके सीने पर उसका नाम की प्लेट लगी हुई थी। लेफ्टिनेन्ट
फैयाज एक बार जोर से चिल्लाया… एक बार अन्दर बस्ती का निरीक्षण कर लो। अगर अब कोई दिखे
तो उसे तुरन्त गोली मार देना। बस इतना बोल कर वह भीड़ की दिशा मे मुड़ कर टहलते हुए बोला…
क्या कोई बाहर से आया है? एक पल के लिये मै ठिठका लेकिन नीलोफर मेरा हाथ पकड़ कर एक
कदम बढ़ाते हुए बोली… हम बाहर से आये है। सबकी नजरें हम पर टिक गयी थी। हम दोनो चलते
हुए उसके सामने खड़े हो गये थे। एक नजर हम पर डाल कर लेफ्टीनेन्ट बोला… तुम्हारे साथ
कोई और भी है? …नहीं। …तुम कहाँ से आ रहे हो? …इस्लामाबाद। मैने नोट किया कि वह बात
भले मुझसे कर रहा था परन्तु उसकी नजरें नीलोफर पर टिकी हुई थी। …कागज दिखाओ। मैने अपना
गिल्गिट का रेजिडेन्सी कार्ड उसके आगे कर दिया। नीलोफर ने बालाकोट का रेजीडेन्सी कार्ड
उसके आगे बढ़ा दिया। हम दोनो के कार्ड देखने के बाद वह दोनो कार्ड लौटाते हुए नीलोफर
के करीब जाकर बड़ी बेशर्मी से बोला… इस वीराने मे तू क्या कर रही थी? …अपने खाविन्द
के साथ यहाँ आयी हूँ। उसने मेरी ओर इशारा करके कहा… यह तेरा खाविन्द है? नीलोफर ने
कोई जवाब नहीं दिया बस सिर हिलाकर हामी भर दी थी।
वह अब्दुल्लाह की
ओर बढ़ते हुए बोला… हमे खबर मिली है कि इस खेमे ने कुछ तालिबानियों को पनाह दी थी। अब्दुल्लाह
अभी भी समय है कि चुपचाप उन्हें हमारे हवाले कर दे अन्यथा अगर हम अपनी पर आ गये तो
फिर पछताओगे। अब्दुल्लाह ने जल्दी से कहा… जनाब यह वजीरियों का खेमा है। यहाँ पर कोई
तालिबानी नहीं है। हमारी ओर अपनी पिस्तौल से इशारा करके वह बोला… फिर यह दोनो कौन है?
मैने जल्दी से कहा… रास्ता भटक गये थे तो बस्ती देख कर पूछने चले आये थे। वह धीरे से
चलते हुए नीलोफर से बोला… मेरी जान रास्ता भटक गयी तो मेरे साथ चल। उसका हाथ अपनी ओर
बढ़ते हुए देख कर नीलोफर एक कदम पीछे हटी तो बड़ी फुर्ती से आगे बढ़ कर फैयाज ने उसकी
कमर मे हाथ डाल कर अपनी बाँहों मे जकड़ते हुए घुर्राया… चुपचाप खड़ी रह छिनाल। उसकी जकड़
मे मचलते हुए वह जोर से चीखी… कमीने तू बहुत बड़ी गलती कर रहा है। अभी भी समय है छोड़
दे मुझे। लेफ्टीनेन्ट फैयाज ने झपट कर उसका एक स्तन अपनी मुठ्ठी मे जकड़ कर कहा… कुतिया
आज तेरा पाला असली मर्द से पड़ा है। इस मैदान मे तुझे सबके सामने नंगा करके आज तेरे
साथ ज़िना करुँगा। अभी वह पूरा भी बोल पाया था कि नीलोफर जोर से चीखी और उसकी पकड़ से
छूटने की कोशिश करने लगी। मेरा ध्यान उनकी ओर लगा हुआ था।
भीड़ मे भी अपने अफसर
की हैवानियत को देख कर उसके सैनिक भी उससे ज्यादा उतावले और बेशर्म हो गये थे। उसके
सैनिक भी खड़ी हुई औरतों और लड़कियों पर टूट पड़े थे। लोगों को निशाने पर लेने वाले सैनिक
उस दृश्य को देख कर हँसने लगे और भद्दे-भद्दे कमेन्ट करने लगे। पश्तून स्त्रियाँ अपने
आपको उन सैनिकों की पकड़ से छूटने की कोशिश कर रही थी। बड़ी मुश्किल से मैने अपने उभरते
हुए रोष पर अंकुश लगाया हुआ था। कुछ सैनिक बच्चियों और स्त्रियों के झुन्ड मे अपने
अफसर की भांति बहशीपन पर उतर आये थे। एक अजीब सा माहौल बन गया था। एक ओर महिलाओं की
चीखें और दूसरी ओर सैनिकों की बेशर्म हँसी के सामने सभी पुरुष मूक दर्शक बने खड़े थे।
मेरी स्थिति भी उनसे भिन्न नहीं थी। तभी तीन फायर एक साथ हुए और भीड़ के मध्य मे खड़े
हुए तीन सैनिक कटे हुए वृक्ष समान जमीन पर गिर कर ढेर हो गये थे। मेरी स्नाईपर युनिट
का एक्शन आरंभ हो गया था। एक आवाज गूंजी… जो जहाँ है वहीं खड़ा रहे। अगर जरा सा हिले
भी तो मारे जाओगे। एकाएक पूरे मैदान मे शांति छा गयी थी। सबकी नजर आवाज की दिशा मे
घूम गयी थी।
तभी दो सैनिक जिनकी
पैन्ट घुटने पर अटकी हुई थी वह लड़खड़ाते हुए बस्ती से बाहर निकले। उनकी नग्नता को बेशक
उनकी कमीज ने ढक दिया था परन्तु उनके बहशीपन की दास्ताँ सबके सामने उजागर हो गयी थी।
उन दो सैनिकों को धकेलते हुए उनके पीछे चार जिहादी एके-203 ताने मैदान के बीचोंबीच
आकर खड़े हो गये थे। उन जिहादियों ने अपने चेहरे को चेक के सूती स्कार्फ से छिपा रखा
था परन्तु मै चारों साथियों को पहचान गया था। जमीर, रेड्डी, थापा, महतो मेरे सामने
थे। मै समझ गया कि अब्दुल रशीद और पूरन सिंह किसी विशेष स्थान पर बैठ कर मैदान पर नजर
रख रहे थे। मेरी योजना को कार्यान्वित करने का समय आ गया था। जमीर की आवाज गूँजी… सभी
सैनिक सामने आ जायें। कोई सैनिक हिला नहीं परन्तु भीड़ अपने आप ही उनसे अलग होकर खड़ी
हो गयी थी। एक सैनिक ने जिहादियों की ओर हथियार तानने की कोशिश की परन्तु तभी एक और
फायर हुआ और उस सैनिक का सिर खील-खील हो कर बिखर गया था। इतना भयानक मंजर देखने के
पश्चात फिर किसी ने प्रतिकार की हिम्मत नही दिखायी। हालात बदलते ही शिकारी अब शिकार
बन गये थे।
कुछ ही देर मे सारे
सैनिक मैदान बीचोंबीच आकर खड़े हो गये। पहली बार लेफ्टीनेन्ट फैयाज के चेहरे पर भय की
लकीरें खिंची हुई दिख रही थी। वह लड़खड़ाती हुई आवाज मे बोला… फौज से टकराना तुमको बहुत
भारी पड़ेगा। हमे जाने दो। महतो ने आगे बढ़ कर एक तमाचा फैयाज के चेहरे पर जड़ कर जोर
से चिल्लाया… हरामजादे इस वर्दी को क्यों बेइज्जत कर रहा था। तब तक थापा सैनिकों के
हथियारों को इकठ्ठा करने मे जुट गया था। लेफ्टीनेन्ट फैयाज ने हिम्मत करके पूछा… तुम
लोग कौन हो? जमीर ने टहलते हुए कहा… हम खुदाई शमशीर की फौज है। पाकिस्तान पाइन्दाबाद।
हमारा फौज से कोई बैर नहीं है लेकिन उसकी वर्दी को बेइज्जत करने वाले को हम हर्गिज
माफ नहीं करते। वह चलते हुए नीलोफर के पास आकर बोला… बीबी, इस हरामी को मर्द बनने का
बड़ा गुरुर है। इसको आज हमेशा के लिये नामर्द बना देता हूँ। इतना बोलते हुए वह लेफ्टीनेन्ट
के सामने पहुँच गया था। अचानक जमीर ने उसको
धक्का देकर जमीन पर गिरा कर एक नजर सब पर डाल कर बोला… साले तुम जैसे लोगों ने वर्दी
को शर्मसार किया है। उसने जमीन पर पड़े हुए लेफ्टीनेन्ट के पाँवों के जोड़ को निशाना
बना कर चाईनीज मेक की पिस्तौल से दो सधे हुए फायर किये। अगले ही क्षण फैयाज दर्द से
दोहरा होकर उंची आवाज मे चिंघाड़ा और अपने गुप्तांग को पकड़ कर जमीन पर लोट गया। उस वक्त
सबका ध्यान फैयाज की ओर लगा हुआ था परन्तु मैने नोट किया था कि तभी दो फायर और भी हुए
थे। उन दो अधनंगे सैनिकों के शव की ओर सबका ध्यान बाद मे गया था।
अबकी बार जमीर दहाड़ा…
हम खुदाई शमशीर की फौज है। हमारा फौज से कोई बैर नहीं है। हमारा एक ही नारा इमान
तक्वा जिहाद फ़ि-सबिलिल्लाह । हमारा दुश्मन चीन और उसके पाकिस्तानी दलाल है जिनके
कारण पाकिस्तान की सरजमीं नापाक हो गयी है। हमने अपनी तेहरीक को मजबूत करने के लिये
हथियार उठाये है। इस मंसूबे को पूरा करने के लिये हमारे साथ तालिबान है। पाकिस्तान
फौज ने अगर फिर कभी किसी ख्वातीन या बच्चियों के साथ ऐसा करके वर्दी को बेइज्जत करने
की कोशिश की तो उसका परिणाम उन्हें भुगतना पड़ेगा। हम अपनी आवाम के मजलूमों के साथ हरदम
खड़े हुए है। इतना बोल कर उसने भीड़ की ओर देख कर कहा… आज अपनी ख्वातीनों की बेइज्जती
का बदला लेने का मौका है। उसका इतना बोलना था कि मूक दर्शक उन सैनिकों पर टूट पड़े।
कोई उन सैनिकों को पत्थर से मार रहा था और कोई लाठी से कूट रहा था। कुछ देर पहले जहाँ
उनकी ख्वातीन की चीखें गूँज रही थी अब वहीं पर वर्दीधारियों की चीखें गूँज रही थी।
बस हथियारों के हाथ बदल गये थे।
सारे सैनिकों के लहूलुहान
होने के पश्चात जमीर ने सामने पड़े सैनिक की पीठ पर लात जमा कर जोर से घुर्राया… चलो
फौरन अपने कचरे को उठाओ और यहाँ से निकल जाओ। अगले ही पल सारे सैनिक जमीन पर पड़ी हुई
अपने साथियों की लाशों को उठा कर अपने ट्रक की ओर चल दिये थे। फ्रंटियर फोर्स का ट्रक
जैसे ही सड़क की ओर मुड़ा कि तभी उसमे बेहद भयानक विस्फोट हुआ और सबकी आँखों के सामने
टुकड़ो मे बिखर गया। जमीर धीरे से बोला… नो सर्वाईवर्स सर। भाईजान, आपकी और नीलोफर बीबी
की सुरक्षा मे आज हमसे जरा सी चूक हो गयी। हमे माफ कर दिजिये। अब्दुल्लाह वजीरी और
उसके साथी हैरानी से हमारी ओर देख रहे थे। मैदान मे खड़ी हुई भीड़ की आँखें भी हम पर
टिकी हुई थी। मैने धीरे से उसका कन्धा थपथपा कर सबको सम्बोधित करके बोला… आप सभी ने
हथियारों की ताकत देख ली है। अपने परिवारों और ख्वातीनो की सुरक्षा के लिये अगर हथियार
उठाना पड़े तो उसमे कोई गुनाह नहीं है। अब्दुल्लाह ने भीड़ की ओर हाथ हिला कर कहा… अब
तुम सब वापिस खेमे मे चले जाओ। वह अब कभी वापिस नहीं आयेंगें। उसकी बात सुन कर धीरे-धीरे
भीड़ छँटने लगी।
भीड़ छँटने के पश्चात
अब्दुल्लाह ने कहा… समीर, अब टेन्ट मे आराम से बैठ कर बात करते है। एक बार फिर से हम
सभी उस टेन्ट की दिशा मे चल दिये थे। …यह लड़ाकू कौन है? …जनाब, यह खुदाई शमशीर की फौज
के कुछ सिपाही है जो हमारी सुरक्षा के लिये हमारे साथ चल रहे है। टेन्ट मे प्रवेश करते
ही मेरी नजर नसरुल्लाह मेहसूद और उसके बेटे अल्ताफ पर पड़ी जो बड़े आराम से टेन्ट मे
बैठ कर कहवा पी रहे थे। हमे देखते ही अल्ताफ बोला… समीर भाई, यह लोग कौन है? मेरे बजाय
अबकी बार अब्दुल्लाह अपनी गद्दी पर बैठ कर बोला… नसरुल्लाह भाईजान आप कहाँ चले गये
थे? …हम तो बस्ती मे छिपने की मंशा से गये थे। वहाँ पर हमारी मुलाकात इनसे हो गयी थी।
हमे उन सैनिकों से बचा कर इन्होंने यहाँ छोड़ दिया था। मेरे दो साथी टेन्ट के मुहाने
पर खड़े हो गये थे और बाकी चार साथी हम दोनो को घेर कर खड़े हो गये थे। नीलोफर ने इतनी
देर मे पहली बार बोली… सईद भाईजान आप लोग भी बैठ जाईये। हमे यहाँ कोई खतरा नहीं है।
हम दोनो के बैठने के पश्चात मेरे चारों साथी हमारे पीछे बैठ गये थे। अबकी बार नीलोफर
बोली… आप लोग यह जानना चाहते है कि यह लोग कौन है तो बता देती हूँ कि यह हमारी सुरक्षा
के लिये हमारे साथ चल रहे है। इससे आगे की बात तभी हो सकेगी जब आप जफर और सादिक का
स्थायी इलाज कर लेंगें। आज की घटना एक पूर्वनियोजित आईएसआई की साजिश थी। वह सैनिक टुकड़ी
हमारे लिये नहीं अपितु आपके लिये आयी थी। एक ही वार मे वह मेहसूद और वजीरी के दोनो
मुखियाओं को हलाक करके उनके कबीले की बागडोर जफर और सादिक के हाथ मे देना चाहते थे।
नसरुल्लाह मेहसूद और अबदुल्लाह वजीरी तो कुछ नहीं बोले परन्तु उनके साथ बैठे हुए लोगों
बोलना आरंभ कर दिया था।
एक वृद्ध ने हाथ उठा
कर सबको चुप करा कर बोला… आका, एक औरत की बात पर आप कैसे यकीन कर सकते है। सादिक की
गद्दारी का इस छिनाल के पास क्या सुबूत है। आका कोई भी निर्णय लेने से पहले आपको सादिक
से बात करनी चाहिये। अल्ताफ तुरन्त गुस्से मे चीख कर बोला… यह सादिक के टुकड़ों पर पलने
वाला कुत्ता है। बस इसी के साथ मेहसूद और वजीरियों के बीच वाकयुद्ध आरंभ हो गया था।
एक दूसरे पर इल्जामों की बौछार आरंभ हो गयी थी। हम चुपचाप उनकी सारी कार्यवाही होते
हुए देख रहे थे। नीलोफर ने मेरा हाथ धीरे से पकड़ कर दबाते हुए कहा… हर कबीले की जिरगा
मे तुम्हें यही दृश्य देखने को मिलेगा। तभी अब्दुल्लाह वजीरी गुस्से से गर्जा… चुप
हो जाओ। एकाएक टेन्ट मे सबके मुँह पर ताला पड़ गया था। …नसरुल्लाह भाई आपका इस बारे
मे क्या कहना है? …अल्ताफ ने जिस दिन इसकी जानकारी मुझे दी थी उसी दिन से जफर गायब
हो गया है। यहाँ आने से पहले मुझे पता चला है कि वह सादिक के साथ कहीं छिपा हुआ है।
इसी के बारे मे बात करने के लिये आपसे मिलने के लिये हम यहाँ आये थे। इसीलिये मैने
इन दोनो को भी यहीं पर मिलने के लिये बुलाया था। जफर मेरा भतीजा है लेकिन अगर यह साबित
हो गया कि वह गद्दी हथियाने के लिये फौज से मिल गया है तो फिर उसका हलाक होना तय है।
इनके कहने पर मै अपने खून पर शक नहीं कर सकता। अब्दुल्लाह ने बात का समर्थन करते हुए
कहा… आपने जैसा सोचा है वही मेरी भी राय है। सादिक मेरा भी खून है। खून का रिश्ता सुबूत
मांगता है। नीलोफर बीबी की बात को सुबूत नहीं मान सकते। दोनो बुजुर्ग ने अपने-अपने
कबीले का निर्णय सुना दिया था।
अचानक मेरे पीछे से
जमीर की आवाज गूंजी… तुम दोनो बुढ्ढो के मरने का समय आ गया है। अल्ताफ अपने बाप को
यहीं पर हलाक करके अपने कबीले के लोगों को बचा लोगे तो ज्यादा बेहतर होगा। समीर भाईजान
उठिये यहाँ इनकी बात सुन कर मुझे इनके लोगों पर दया आ रही है। यह लोग अन्धे और बहरे
हो गये है। जमीर खड़ा होकर बोला… बुढ्ढों कम से कम यह तो पता कर लेते कि इस वक्त तुम्हारे
जफर और सादिक कहाँ छिपे बैठे हुए है। समीर भाईजान इन्हें बता दिजिये कि इस वक्त वह
दोनो कहाँ है। अबकी बार मैने उठते हुए कहा… खुदा ने इनकी अगर मौत तय कर दी है तो इसमे
मै क्या कर सकता हूँ। खैर जफर और सादिक इस वक्त पेशावर कोर कमांडर ब्रिगेडियर फईम हैदर
के संरक्षण मे तुम्हारी हत्या की नये सिरे से योजना बना रहे होंगें। इस बार तो हमारे
कारण तुम बच गये लेकिन अगली बार बच नहीं सकोगे। चलो नीलोफर। इतना बोल कर मैने नीलोफर
का हाथ पकड़ा तो वह जल्दी से बोली… एक मिनट ठहरो। बड़े मियाँ अपने चचाजान के कारण यह
खुलासा करने आयी थी। अभी भी वक्त है लेकिन एक बार हम चले गये तो फिर तुम मे से कोई
नहीं बचेगा। इतना बोल कर वह उठ कर खड़ी हो गयी। दोनो कबीलों के बुजुर्गों के साथ बाकी
लोग हमारा मुँह ताक रहे थे। अल्ताफ एकाएक उठा और जब तक कोई समझ पाता तब तक बिजली की
तेजी से नसरुल्लाह के करीब पहुँच कर अपनी छोटी कटार अपने बाप के गले पर टिका कर बोला…
अब्बा, अपने लोगों को फौज के जुल्मों से बचाने के लिये आपकी कुर्बानी जरुरी है। इतना
बोल कर कुर्बानी की आयात पढ़ते हुए अगले ही पल उसने नसरुल्लाह का गला रेत दिया। सब फटी
हुई आँखों से इस भयानक मंजर के गवाह बन गये थे। मेरे साथी तुरन्त अपनी एक-203 तान कर
टेन्ट मे उपस्थित सभी लोगों को कवर करके फायर करने के लिये तैयार हो गये थे।
अल्ताफ ने अब्दुल्लाह
की ओर रुख करके बोला… चचाजान अब आपका क्या कहना है? आज से मै मेहसूद कबीले का मुखिया
हूँ। इस बैठक मे किसी को कोई आपत्ति है तो इस वक्त बोलिये अन्यथा हमेशा के लिये अपनी
जुबान पर ताला लगा लिजिये। टेन्ट मे बैठे हुए सभी बुजुर्गों को लकवा मार गया था। कोई
भी बोलने की स्थिति मे नहीं था। अल्ताफ जोर से गर्जा… वजीरियों, यह आखिरी बार पूछ रहा
हूँ। इससे पहले कोई दूसरी अनहोनी होती तुरन्त अब्दुल्लाह बोला… अल्ताफ बेटा आज से हमारे
लिये तुम मेहसूद कबीले के मुखिया हो। इसकी पुष्टि अगली जिरगा की बैठक मे हम सात लोग
कर देंगें। अपने अब्बा नसरुल्लाह के शव पर एक नजर डाल कर अल्ताफ बोला… मै मेहसूद कबीले
का मुखिया होने के बाद आपके सामने खुदा को हाजिर-नाजिर करके ऐलान करता हूँ कि जफरुल्लाह
मेहसूद को कबीले से बेदख्ल कर रहा हूँ और अगले जुमे की नमाज के बाद उसका फातिहा भी
पढ़ा जाएगा। अब सादिक पर आप वजीरियों का क्या निर्णय है? कोई कुछ बोलता उससे पहले एक
व्यक्ति ने टेन्ट मे प्रवेश किया और अल्ताफ की ओर देख कर बोला… अल्ताफ, सादिक से पहले
अब्बाजान के साथ इन बुजुर्गों के बारे मे निर्णय लेना जरुरी होगा। सभी उस व्यक्ति को
गुस्से से घूरने लगे परन्तु किसी के मुख से आवाज नहीं निकली थी। …शहजाद, अगर यह सादिक
के बारे मे कोई निर्णय नहीं लेते है तो तुम्हें आगे आना होगा। फौज ने जर्बे मोमिन और
जर्बे अज्म मे हमारे हजारों भाईयों को हलाक कर दिया तब भी यह बुड्डे चुप रहे थे। जब
वह हमारी बच्चियाँ और ख्वातीनों की इज्जत से खेल रहे थे तब भी यह चुप रहे थे। अब हम
फौज के खौफ के साये मे नहीं जी सकते। अचानक अब्दुल्लाह वजीरी अपना हाथ उठा कर सभी को
चुप रहने का इशारा करते हुए बोला… आज से सादिक वजीरी को इस कबीले से बेदख्ल किया जाता
है। अगले जुमे की नमाज के बाद उसका फातिहा पढ़ा जाएगा। आज और अभी से सादिक का इस कबीले
से कोई रिश्ता नहीं है। इस निर्देश के आप सभी बुजुर्ग गवाह है और मेरे बाद मेरा बेटा
शहजाद वजीरी वजीरियों की गद्दी पर बैठेगा। एक साथ सभी बुजुर्ग हाथ उठा कर बोले… आमीन।
इसी के साथ महफिल उठ गयी थी। हमने चैन की साँस ली क्योंकि पहली रुकावट को हमने आसानी
से पार कर लिया था।
अगले तीन घंटे वजीरी
कबीले के लोगो की मदद से नसरुल्लाह के सभी आखिरी कार्य पूरे किये गये थे। शाम हो चुकी
थी। अंधेरा गहराता जा रहा था। ठंड बढ़ती जा रही थी। मै और नीलोफर खुले मैदान मे एक चट्टान
पर बैठ कर अल्ताफ और शहजाद का इंतजार कर रहे थे। बस्ती मे एक बार फिर से रोजमर्रा की
जिन्दगी आरंभ हो गयी थी। …समीर, अब आगे क्या करने की सोच रहे हो? …नीलोफर पहले तो अजमल
से पता करो कि उसने अभी तक पैसा लौटाया है कि नहीं? …अजमल से पाँच करोड़ की वसूली हो
गयी है। चचाजान ने वसूली का एक टका काट कर बाकी सारा पैसा बैंक मे जमा करा दिया है।
…तो अब अजमल से बात करके तेहरीक के बैतुल्लाह से बात करने का समय आ गया है। …समीर,
तेहरीक से बात करने से पहले अफगान तालिबान से बात करनी जरुरी है। उसका कोई रास्ता नहीं
सूझ रहा है। …नीलोफर, तुम अब इस्लामाबाद मे अपना आफिस खोल कर काम शुरु कर दो। साहिबा
से संपर्क करके बुर्रानी के पैसे अल्ताफ और शहजाद को जल्दी ही देने पड़ेंगें। …यह काम
तुम करो। मै साहिबा के चक्कर मे नहीं पड़ने वाली। हम अभी इस बात पर चर्चा कर रहे थे
कि अल्ताफ और शहजाद टेन्ट से निकल कर हमारी ओर आते हुए दिखे तो हम दोनो चुप हो गये
थे। जब हम हिन्दु कुश की पहाड़ियों की वादी मे बैठ कर चर्चा कर रहे थे उसी समय नई दिल्ली
मे हुई घोषणा ने सभी को हिला कर रख दिया था।
नई दिल्ली
…आज रात बारह बजे
के बाद भारत सरकार हजार और पाँच सौ के नोट को बन्द कर रही है।
प्रधान मंत्री की
इस घोषणा के पश्चात भारत मे भूचाल आ गया था। अगले दिन सुबह बैंकों के बाहर लम्बी लाईन
लग गयी थी। नेता, अधिकारी, कारोबारी व अन्य अपने-अपने समूह मे बैठ कर घर और बैंकों
की तिजोरियों मे छिपी हुई काली कमाई को बचाने की योजना बना रहे थे। गरीब समाज आज तक
जिन लोगों के वैभव और विलासिता को देख कर अपनी किस्मत को कोसता था अब उनकी दयनीय हालत
को देख कर बहुत खुश था। देश और समाज बँट सा गया था।
…उसको तुरन्त संपर्क
करना चाहिये। …अभी नहीं। कुछ दिन के बाद वह संपर्क खुद करेगा। जनरल रंधावा और वीके
इस बहस मे उलझे हुए थे जब अजीत सुब्रामन्यम ने कमरे मे प्रवेश किया था। …तुम दोनो बेकार
की बहस मे उलझ रहे हो। यह उसके लिये मौका है अब वह उनके सारे नकली नोटों के आप्रेशन
को धवस्त करने की स्थिति मे आ गया है। …अजीत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान मे इस नोटबंदी
का क्या असर देखने को मिला है? …इतनी जल्दी नहीं। तीन महीने मे उनकी अर्थव्यवस्था पर
इसका असर देखने को मिलेगा। वीके, भारतीय फिल्मों के जुड़े हुए सभी कारोबारियों पर जाँच
एजेन्सियों को लगा दो। इस बार हमे हर हालत मे नकली करेंसी नोट की पाईपलाईन को ढूंढ
कर नष्ट करना है। तीनो इसी मसलेपर चर्चा करने बैठ गये थे।
बहुत ही सुंदर अंक और समीर ने आखिरी में अपने दाव में काबिले में खलबली मचा दी और अपने चहेते लोग अब उन काबिले के मुखिया बन चुके हैं, अब आगे देखते हैं क्या होता है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अल्फा भाई। यहीं से हक-डाक्ट्रीन को दुश्मन के घर मे कार्यान्वित करने की तैयारी आरंभ हो गयी है। कश्मीर मे आतंकवाद इस्लाम के नाम पर शुरु हुआ था। पाकिस्तान मे आतंकवाद की नींव शरिया नाफिज करने वाली तंजीमों ने शुरु की थी। इसमे उत्तर-पूर्वी छोटे-छोटे कबीलों की मुख्य भुमिका रही है।
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