शह और मात-6
नीलोफर मुझे छोड़ कर
जा चुकी थी। सड़क किनारे खड़ा हुआ मै किसी खाली टैक्सी का इंतजार कर रहा था। कुछ कदम
चलते ही सामने शकरपारियन नेशनल पार्क का बोर्ड दिखा तो कलाई पर बंधी घड़ी पर एक नजर
डाल कर मै उस पार्क की दिशा मे निकल गया था। मैने जेब से अपना स्मार्टफोन निकाल कर
उसमे स्क्रेम्बलर और एन्टी-ट्रेकिंग डिवाईस फिट करके एक खाली स्थान देख कर मैने अजीत
सर का नम्बर मिलाया तो पहली घंटी पर उनकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… हैलो। …सर, आपसे कब
बात कर सकता हूँ? …अभी फ्री हूँ। बताओ क्या बात है? …सर, आजाद कश्मीर से निकल कर वजीरिस्तान
मे मेहसूद और वजीरी से संपर्क स्थापित करने की कोशिश कर रहा हूँ। …पश्तून नेता से कब
मिल रहे हो? …सर, दो हफ्ते के बाद मीरमशाह पहुँच कर पश्तून फ्रंट के जाहिद पश्तून और
तेहरीक-ए-तालिबान के अहमद बैतुल्लाह और मंसूर मजारी से मिलने की कोशिश करुँगा। …तुम
इनके साथ मिल कर क्या करने की सोच रहे हो? …सर, इन सभी तंजीमो का गठजोड़ बना कर चीनी
सड़क परियोजना को ठप्प करना मेरा प्राथमिक उद्देशय है। दूसरा पाकिस्तानी समाज मे उभरती
हुई दरारों को खाई मे तब्दील करना मेरा दूसरा उद्देश्य है। इस कार्य को पूरा करने के
लिये मुझे आपकी मदद चाहिये। …टाईम हो गया है और कुछ पलों मे फोन का कनेक्शन कटने वाला
है। दोबारा काल करो। मै फोन काट कर टैक्सी मे बैठ कर इस्लामाबाद के दूसरे छोर की ओर
चल दिया था।
बीस मिनट के अन्तराल
के बाद एक बार फिर मैने अजीत सर को फोन लगाया। …हाँ तुम अब बताओ कि तुम्हे किस तरह
की मदद चाहिये। …सर, नकली करेन्सी के रैकेट मे पाकिस्तानी एस्टेबलिशमेन्ट का हाथ लग
रहा है। …समीर, कितनी पुख्ता खबर है? …सर, मेरे पास अभी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है
लेकिन मेरा अनुमान है कि आईएसआई ने बालीवुड और करांचीवुड के बीच मे बेहद पुख्ता नेटवर्क
तैयार किया है। जब पिछली बार काठमांडू आप्रेशन के दौरान आपने एक वित्त मंत्रालय की
रिपोर्ट दिखायी थी तब मैने आपको सिर्फ कार्यशैली के बारे बात की थी। हमारा ध्यान सिर्फ
आतंकवाद और अवैध हथियारों पर केन्द्रित था। यहाँ आने के बाद नकली करेन्सी के रैकिट
की परतें खुलनी शुरु हो गयी है। अगर भारत सरकार नकली करेन्सी पर कोई पुख्ता कदम उठाती
है तो जल्दी ही उसका असर यहाँ पर देखने को मिल जाएगा। …समीर, वित्त मंत्रालय ने नकली
नोटों के चलन के उपर अपनी फाईनल रिपोर्ट पीएमओ को भेज दी है। अगले हफ्ते रिजर्व बैंक
और वित्त मंत्रालय इस मामले मे प्रधानमंत्री को ब्रीफ करने के लिये आ रहे है। अब जल्दी
ही सरकार इस मामले मे कोई बड़ा कदम उठाएगी। …जी सर। बात करते हुए मेरी नजर अपनी घड़ी
पर टिकी हुई थी। टाइम समाप्त होने वाला था। …सर, मै फोन काट रहा हूँ। बीस मिनट मे फिर
फोन करता हूँ। इतना बोल कर मैने फोन काट दिया और टैक्सी पकड़ कर अलग दिशा मे निकल गया
था।
एक बार फिर से मैने
अजीत सर को फोन लगाया। …बोलो समीर अब मुझे क्या करना है? …सर, आज ही पता चला है कि
एजाज कम्युनिकेशन्स नाम की एन्टर्टेनमेनन्ट एजेन्सी सत्तर लाख रुपये के चेक के बदले
एक करोड़ रुपये नगद दे रही है। फौजी फाउन्डेशन इस एजेन्सी की प्रमोटर है और आईएसआई अपरोक्ष
तरीके से इसको चलाती है। मुझे इसके बारे मे छानबीन करने का कुछ समय दिजिये और तब तक
आप वित्त मंत्रालय को इस खतरे से आगाह कर दिजिये। …ठीक है। तुम्हारे सेटफोन पर मै एक
फैक्स की कापी भेज रहा हूँ। उसको देख कर आगे की कार्यवाही तय करना। उस पर चर्चा अगली
बार करेंगें। अमरीकनों से संपर्क कब स्थापित करोगे? …सर, ब्रिगेडियर साहब की हालत अब
कैसी है? दूसरी ओर कुछ पल चुप्पी छायी रही और फिर अजीत सर की आवाज कान मे पड़ी… सौरी,
हम उन्हें नहीं बचा सके। …सर, अगले महीने काबुल से संपर्क स्थापित करके मै अमरीकनों
से मिलूँगा। ओवर एन्ड आउट। पहली बार मैने अशिष्टता से अजीत सर का फोन काट दिया था।
ब्रिगेडियर चीमा की मौत की खबर सुन कर मुझे गहरा धक्का लगा था। उनसे मैने बहुत कुछ
सीखा था लेकिन वह मेरे लिये सीओ से ज्यादा महत्व रखते थे। फोन काट कर कुछ देर के लिये
मै उस इंसान को याद करने के लिये बस स्टैन्ड की बेन्च पर बैठ गया था।
मेरी फौज की जिंदगी
मे ब्रिगेडियर चीमा का योगदान अतुलनीय था। यह तो मुझे काफी बाद मे ब्रिगेडियर चीमा
ने बताया था कि कैसे श्रीनगर के बस स्टैन्ड पर डरे-सहमे हुए लड़के को कार्गो प्लेन मे
स्पेशल फोर्सेज की युनीफार्म मे देख कर वह पहली नजर मे पहचान गये थे। मै तो उस इंसान
को भुला बैठा था जिसने मुझे बस स्टैन्ड पर फौज मे जाने का रास्ता दिखाया था। एक बार
उनके घर के लान मे बैठ कर धूप का मजा लेते हुए वह अचानक बोले… समीर, इस वर्दी मे तुम्हें
देख कर मुझे बहुत गर्व महसूस होता है। तुम्हारी अम्मी के साथ इसमे मेरा भी योगदान है।
तब उन्होंने पहली बार मुझे बताया था कि वह काउन्टर इन्सर्जेन्सी आप्रेशन के लिये अपनी
टीम के साथ बस स्टैन्ड पर आतंकवादियों पर घात लगाने के लिये बैठे हुए थे जब उनकी नजर
एक डरे-सहमे हुए लड़के पर पड़ी थी। उन्हें शक हुआ तो उन्होंने कोई एक्शन लेने से पहले
उस लड़के से बात करना उचित समझा था। जब मुझसे उन्होंने बात की तो वह चौंक गये थे क्योंकि
उस दौर मे कश्मीरी युवकों की राय भारतीय फौज के प्रति बिलकुल विपरीत थी। वह भी उस लड़के
से जो अलगावादियों के सरगना मकबूल बट का बेटा था। कार्गो प्लेन मे मुझे देखते ही वह
पहचान गये थे। उसके बाद से वह बिना बोले मेरे संरक्षक बन गये थे। उन्हें मेरे हरेक
आप्रेशन की जानकारी थी। जब मैने वह रिपोर्ट अपने सीओ को दी थी तो उस रिपोर्ट की एक
कापी उन्होंने ही वीके को भिजवा दी थी। ब्रिगेडियर चीमा की छवि मेरी आँखों के सामने
आते ही मेरे आँसू स्वत: ही छलक गये थे।
मेरे फोन की घन्टी
ने मुझे वापिस यथार्थ मे लाकर खड़ा कर दिया था। …हैलो। …आपने आज रात को मिलने के लिये
कहा था। मैने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर डाल कर जल्दी से कहा… मै रास्ते मे हूँ।
दस मिनट मे पहुँच रहा हूँ। मैने टैक्सी पकड़ी और उसके गेस्ट हाउस की ओर चल दिया। ब्रिगेडियर
चीमा की मौत का गहरा सदमा अभी मेरे जहन पर छाया हुआ था। जब तक उसके गेस्ट हाउस पहुँचा
तब तक मन थोड़ा शान्त हो चुका था। साहिबा बाहर लान मे बैठी हुई शायद मेरी राह देख रही
थी। मुझे देखते ही वह उठ कर खड़ी हो गयी और तेजी से मेरे पास पहुँच कर बोली…इतनी देर
कैसे हो गयी। भूख लग रही है। चलो फूड स्ट्रीट चलते है। अपना मन मार कर मै उसकी कार
से फूड स्ट्रीट की ओर चल दिया था। …तुम उदास लग रहे हो क्या बात है? मैने जल्दी से
अपने चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाकर जवाब दिया… ऐसी कोई बात नहीं है। आज सारा दिन मीटिंग
करके थक गया हूँ। कुछ ही देर मे हम फूड स्ट्रीट पर पहुँच गये थे।
फूड स्ट्रीट औपचारिक
फूड पार्क जैसी जगह के बजाय खाने के सामान लिये ठेले सड़क को घेर कर खड़े हुए थे। काफी
लोग सड़क के किनारे बिछी हुई बेन्चों पर खाना खाते दिख रहे थे। …साहिबा, आस पास कोई
ड्रिंक्स का साधन नहीं है? …जनाब, क्या भूल गये कि आप इस्लामिक रिपब्लिक आफ पाकिस्तान
मे है। यह आपका युरोप नहीं है। यहाँ हार्ड ड्रिंक्स फाईव स्टार होटल की बार अथवा हाई
सोसाईटी की पार्टी मे सर्व होती है। यहाँ पर आवाम के लिये शराब हराम है लेकिन ब्लैक
मार्किट मे पुलिस के संरक्षण मे सब कुछ उपलब्ध है। मैने झेंपते हुए कहा… सौरी। चलो
फिर खाना खा लेते है। साहिबा ने अपनी पसन्द का आर्डर दिया और फिर हम दोनो एक किनारे
मे जाकर बैठ गये थे। …तुम बता रहे थे कि तुम एक-दो दिन मे यहाँ से चले जाओगे। …हाँ,
कारोबार के सिलसिले मे हमेशा भटकता रहता हूँ। …पाकिस्तान से बाहर जा रहे हो? …नहीं।
मुझे पेशावर जाना है। …मै भी चलूँ? एक पल के लिये मै उसका चेहरा देखता रह गया था। …क्या
हुआ? …क्या तुम्हारी शूटिंग नहीं चल रही? अबकी बार वह चुप होकर बैठ गयी थी। …अब तुम्हें
क्या हो गया? वह मेरी ओर देख कर बोली… सोच रही थी कि क्या कैमरे के नशे से भी ज्यादा
घातक और गहरा मोहब्बत का नशा होता है? मै कुछ बोलता कि तभी मेज पर खाना लगना शुरु हो
गया। हमारी बातचीत मे ब्रेक लग गया था। खाना खाते हुए मैने कहा… एजाज कम्युनिकेशन्स
का काम कब करोगी? …तुम्हें बताया था न कि मेरा तुम्हारे पैसों के साथ कोई सरोकार नहीं
है। इधर मैने बोलना उचित नहीं समझा तो चुपचाप खाना खाने जुट गया था। पैसे चुका कर हम
कार की दिशा मे चल दिये थे।
…तुमने मेरी बात का
कोई जवाब नहीं दिया। …कौनसी बात का? …क्या मोहब्बत का नशा सारे नशों पर भारी पड़ता है?
कुछ सोच कर मैने कहा… इसमे कोई शक नहीं है। अचानक वह बात बदलते हुए बोली… कहीं घूमने
चले? मैने जल्दी से कहा… नहीं। क्या उस रात का वाक्या भूल गयी? …समीर, डरना तो मुझे
चाहिये। …क्या तुम्हें रुसवा होते हुए देख कर मै चुपचाप सहन कर लूँगा? एकाएक वह चुप
हो गयी थी। कार मे बैठते ही वह बोली… मेरे रुम पर चलते है। …आज नहीं साहिबा। मै तुम्हें
प्रोड्यूसर की कठपुतली बनते हुए नहीं देख सकता। इसलिये अब मुझे कुछ दूसरा रास्ता खोजना
पड़ेगा। …समीर, मैने पेशावर के उत्तर मे बड़ी छोटी सी जगह से निकल कर बड़ी मुश्किल से
अपना एक मुकाम बनाया है। मैने तो अपने वतन वापिस लौटने के विचार से हमेशा के लिये तौबा
कर ली थी लेकिन मैने महसूस किया कि यह सब बेमानी है। मेरे लिये बस तुम्हारा साथ ही
काफी है। वह कार चला रही थी लेकिन मै एक अजीब से भंवर मे फँस गया था। एजाज कम्युनिकेशन्स
मेरा लक्ष्य था और इस लक्ष्य को साधने मे साहिबा मेरे लिये एक साधन मात्र से ज्यादा
कुछ नहीं थी।
अचानक साहिबा ने कार
को दूसरी दिशा मे घुमाते हुए कहा… अगर हमारा
चंद दिनो का साथ है तो फिर क्यों न बचे हुए हर पल तुम्हारे साथ गुजारा जाये। वह कार
की गति बढ़ाते हुए एक दिशा मे निकलती चली गयी थी। इस्लामाबाद शहर से बाहर निकल कर मुरी
की ओर चल दी थी। मैने धीरे से उसका एक हाथ अपने हाथ मे लेकर कहा… साहिबा अपने आप से
कोई भाग नहीं सकता। …मै तुम्हें दुनिया से छिपा कर हमेशा के लिये अपने पास रखना चाहती
हूँ। मैने कोई जवाब देना उचित नहीं समझा तो मेरा चुप रहना ही बेहतर था। वह चुपचाप कार
चलाती रही। इस्लामाबाद से कोई 20 मील पर मुरी एक हिल स्टेशन है तो मैने भी वापिस जाने
के लिये उस पर ज्यादा जोर नहीं दिया। मुरी से कुछ पहले पहाड़ों मे छोटी सी गेटिड कम्युनिटी
के मुख्य द्वार के सामने अपनी कार रोक कर बोली… यहाँ मेरा एक निजि काटेज है। किसी भी
प्रोजेक्ट की शूटिंग समाप्त करके मै यहाँ पर कुछ दिनो के लिये एकान्त मे आ जाती हूँ।
इतना बोल कर वह समीप आते हुए चौकीदार को कार की खिड़की खोल कर सिर बाहर निकाल कर बोली…
पठान भाईजान मै हूँ। गेट खोल दिजिये। वह चौकीदार उसको देख कर गेट खोलने के लिये भागते
हुए वापिस हो लिया था।
थोड़ी देर मे हम दोनो
काटेज मे बैठ कर ठंडी रात का आनंद ले रहे थे। …यहाँ मै सिर्फ डीटाक्सीफिकेशन के लिये
आती हूँ। …तुमने बहुत सुन्दर जगह चुनी है। …दिन मे देखोगे तो यह जगह और भी सुन्दर दिखेगी।
अब बताओ कि तुम क्या कह रहे थे? …कल मेरे साथ एजाज कम्युनिकेशन्स के आफिस मे चल सकोगी?
…आखिर क्यों? तुम जानते हो कि यह लाईन कितनी खतरनाक है। …मै भले ही तुम्हारी लाईन के
बारे मे अनजान हूँ लेकिन पैसों के कारोबार के बारे मे इतना जानता हूँ कि भले ही वह
माफिया हो अन्यथा आईएसआई, सभी पैसे के आगे झुकते है। …अगर उन्होंने पूछा कि मेरे साथ
तुम्हारा क्या रिश्ता है? …कुछ बोलने की जरुरत नहीं है। उनको अनुमान लगाने देना। …सोच
लो मेरा नाम तुम्हारे साथ जुड़ने से तुम्हारी बदनामी होगी। हम अदाकारों का नाम तो हर
दिन किसी नये आदमी के साथ पत्रकार जोड़ते रहते है जिसके कारण उनकी फिल्मी मैगजीन बिकती
है। यह बात सुन कर उसी पल मै सतर्क हो गया था। कुछ सोच कर मैने कहा… मै हमारे रिश्ते
को दुनिया के सामने उजागर नहीं कर सकता क्योंकि उसमे तुम्हारे लिये ज्यादा बड़ा खतरा
हो जाएगा। मुझे कुछ और सोचने दो कि कैसे तुम्हें उस कंपनी के साथ जोड़ा जा सकता है।
उस रात हमारी जागते
हुए कटी थी। मेरा दिमाग एजाज कम्युनिकेशन्स मे सेंधमारी करने मे लगा हुआ था। साहिबा
शायद हमारे रिश्ते को सुलझाने मे उलझी हुई थी। सुबह की पहली किरण मे घाटी का दृश्य
बेहद मनोरम दिख रहा था। पहाड़ काट कर सड़क बनाते हुए समतल हुये स्थान पर दस काटेज बिल्डर
ने बना दिये थे। वहाँ से ऐसा लग रहा था कि जैसे हम बीच पहाड़ मे बैठे है। सुबह होते
ही हम इस्लामाबाद के लिये चल दिये थे। …साहिबा, एजाज कम्युनिकेशन्स से मिलने के लिये
नीलोफर तुम्हारे साथ चली जाएगी। तुम मेरियट चलो। …यह मुझसे नहीं होगा। उसको तुम्हारे
साथ देख कर वैसे भी मुझे अच्छा नहीं लगता। …मेरे होटल पहुँच कर तबरेज को वहीं बुला
लेना। उसके साथ बात करके कोई चक्कर चलाने की कोशिश करता हूँ। …नहीं, मै आज खुद ही सलीम
साहब से मिलने की कोशिश करती हूँ। अगर जरुरत पड़ी तो फिर तुम्हें बात करने के लिये वहीं
बुला लूँगी। …यह सलीम साहब कौन है? …वहाँ पर प्रोग्राम निदेशक है। ड्रामे और फिल्मों
का सारा काम देखते है। …ठीक है। बस इतनी बात करके वह मुझे मेरियट के गेट पर उतार कर
चली गयी थी।
कमरे मे नीलोफर नहीं
थी। मै आराम करने की मंशा से बेड पर फैल गया था। कब आँख लगी पता ही नहीं चला और जब
नीलोफर ने उठाया तब तक दोपहर ढल चुकी थी। कुछ देर के बाद मै तैयार होकर लंच कर रहा
था कि नीलोफर ने बताया कि रियाज साहब ने पाँच बजे अपने आफिस मे बुलाया है। …कुछ कहा
उसने? …नहीं, बस इतना कहा कि आज तुमसे मिलना जरुरी है। मै कुछ देर के लिये बाहर जा
रही हूँ। इतना बोल कर वह कमरे से बाहर निकल गयी थी। अपना लंच समाप्त करके मैने अपने
बैग से सेट फोन निकाला और आन करके नेटवर्क से जुड़ने का इंतजार करने लगा। एक मिनट मे
नेटवर्क से संपर्क होते ही मैने इनबाक्स चेक किया तो मेरे लिये उसका संदेश इंतजार कर
रहा था।
…दोनो बच्चे ठीक
है बस आपकी हरदम कमी खलती है। पीरजादा साहब और जोरावर न जाने कहाँ गायब हो गये है।
कुछ समझ मे नहीं आ रहा। अंजली के संदेश
कई बार पढ़ कर एक बार फिर अपना जवाब लिखा… जब कुछ न सूझे तो एक बार फिर से इगतपुरी
से शुरु करना चाहिये। एक से भले दो। मुझे बताओ कि तुम कहाँ हो? सामने नहीं आना चाहती
तो अपनी आवाज तो सुना सकती हो। कोई नम्बर बताओ।
यह संदेश भेज कर अपना
सेटफोन आफ किया और बैग मे रख कर पीरजादा मीरवायज के बारे मे सोचने बैठ गया था। इतने
बड़े फिरके का सरमायादार भला ऐसे अचानक कहाँ गायब हो सकता है? अदा के अपहरण मे उसकी
क्या मंशा हो सकती है। फारुख की मौत का बदला या उसका कुछ और उद्देश्य है? बहुत से सवाल
दिमाग मे घूम रहे थे परन्तु जवाब मेरे पास किसी एक का भी नहीं था। मै अभी इसी सोच मे
बैठा था कि तभी मेरे फोन की घंटी बजी… हैलो। …समीर, मेरी बात सलीम साहब से हो गयी है।
क्या तुम उनके आफिस आ सकते हो? मैने जल्दी से पता नोट किया और जैसे ही चलने के लिये
तैयार हुआ उसी समय नीलोफर का आगमन हुआ। …तुम बाहर जा रहे हो? …मेरे साथ चलो। उसका हाथ
पकड़ कर लगभग उसे खींचते हुए मै कमरे से बाहर निकल गया था। …हम कहाँ जा रहे है? …एजाज
कम्युनिकेशन्स। …समीर, तुम साहिबा के चक्कर मे पड़ कर अपना असली मकसद भूल रहे हो? …नीलोफर,
तुम तो मुझे गलत मत समझो। यह सहिबा की बात नहीं है। हम दोनो होटल की कार लेकर एजाज
कम्युनिकेशन्स के आफिस की ओर चल दिये थे। …समीर, जफर मेहसूद को आईएसआई ने तोड़ लिया
है। वह मेहसूद कबीले की बागडोर लेने के लालच मे उनके साथ काम कर रहा है। यही लालच वजीरी
को भी दिया है। दोनो कबीले के मुखियाओं की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है। मै चुपचाप
उसकी बात सुनते हुए एजाज कम्युनिकेशन्स का आफिस पहुँच गया था। …इसके बारे मे लौट कर
बात करेंगें।
बड़ी आलीशान शीशे की
इमारत मे एजाज कम्युनिकेशन्स का आफिस था। कार से उतर कर उस इमारत मे प्रवेश करते ही
मै समझ गया कि हम शो-बिजनिस के मुख्य केन्द्र मे पहुँच गये है। नये ड्रामे व नयी रिलीज
होने वाली फिल्मों के फ्लेक्सो पोस्टर रिसेप्शन एरिया पर अलग-अलग स्थान पर लगे हुए
थे। वहाँ एजाज कम्युनिकेशन्स जैसे बहुत से आफिस खुले हुए थे। वहाँ पर उपस्थित लोगों
को पहली नजर मे कोई भी देख कर बता सकता था कि यह जगह कलाकारों, अदाकारों व मनोरंजन
से संबन्धित लोगों का केन्द्र है। हम चौथी मंजिल पर स्थित एजाज कम्युनिकेशन्स के आफिस
की ओर चले गये थे। लिफ्ट से बाहर निकलते ही हमे आभास हो गया था कि हम शो-बिजनिस की
सबसे प्रभावशाली कंपनी मे प्रवेश करने जा रहे है। चौथी मंजिल के एक हिस्से मे एजाज
कम्युनिकेशन्स और दूसरे हिस्से मे ड्रीमवर्ल्ड फिल्म्स एन्ड डिस्ट्रीब्युटर्स का आफिस
था। दोनो आफिस के बाहर सुरक्षाकर्मियों की फौज खड़ी हुई दिख रही थी। हम एजाज कम्युनिकेशन्स
के आफिस मे प्रवेश करके सीधे रिसेप्शन एरिया मे चले गये थे।
आफिस का रिसेप्शन
काउन्टर रौशनी मे जगमगा रहा था। उस काउन्टर के पीछे हिजाब पहने एक सुन्दर सी नवयुवती
हमे अपनी ओर आते हुए देख कर मुस्कुरा कर बोली… आपके लिये मै क्या कर सकती हूँ। नीलोफर
उसके करीब जाकर बोली… साहिबा यहाँ किसी से मिलने आयी है। क्या आप उसको खबर कर देंगी।
कंप्युटर के स्क्रीन पर एक नजर डाल कर वह युवती बोली… सलीम साहब से उनकी मीटिंग है।
आप तशरीफ रखिये। मै उनको खबर कर देती हूँ। आपने क्या नाम बताया? नीलोफर ने मेरी ओर
देखा तो मैने मुस्कुरा कर कहा… नीलोफर। उसने घूर कर मेरी ओर देखा तो मैने इशारा करते
हुए कहा… इनका नाम नीलोफर है। इतना बोल कर हम दोनो सामने पड़े सोफे की ओर बढ़ गये थे।
वह फोन उठा कर किसी से बात करने के पश्चात काउन्टर से बाहर आकर मेरे पास आकर बोली…
आप समीर साहब है? मैने नीलोफर की ओर रुख किया तो उसकी आँखें जिस अंदाज से बदली मैने
तुरन्त कहा… जी। …आईये। हम दोनो उठ कर उसके साथ चल दिये थे। जैसे ही हम गैलरी मे पहुँचे
तभी एक कमरे का दरवाजा खुला और एक आदमी बाहर निकल कर हमारी ओर देख कर बोला… समीर साहब,
खुशाम्दीद। आईये आपका ही इंतजार हो रहा था। हम दोनो को उसके पास छोड़ कर रिसेप्शनिस्ट
वापिस चली गयी थी।
कमरे मे प्रवेश करते
ही मेरी नजर साहिबा पर पड़ी लेकिन वह नीलोफर को देख रही थी। …आईये तशरीफ रखिये। हम दोनो
सोफे पर जाकर बैठ गये थे। आफिस के बाहर नेम्प्लेट पर सलीम चिस्ती लिखा हुआ मैने देख
लिया था। सलीम चिस्ती हमारे पास सोफे पर बैठते हुए बोला… समीर साहब, साहिबा एक प्रोपोजल
लेकर मेरे पास आयी है। मैने अपने व्यवासायी आवाज मे जल्दी से कहा… सलीम साहब, अगर हम
इशारों मे बात न करके साफ बात करेंगें तो बेहतर होगा। मेरी बात सुन कर वह एकाएक गड़बड़ाते
हुए बोला… बिल्कुल जनाब। सही फर्माया है आपने। अचानक साहिबा बोली… दूरियाँ सिरीयल के
दस एपीसोड को पूरा करने के लिये मुझे सत्तर लाख रुपये की मदद चाहिये। इसके लिये मैने
इनसे बात की है। अबकी बार सलीम चिस्ती बोला… अगर आप सत्तर लाख रुपये बैंक के द्वारा
हमे देते है तो हम एक करोड़ की क्रेडिट लाईन दूरियाँ सिरियल के लिये खोल देंगें। …सलीम
साहब मुझे आपकी लाईन का कोई अंदाजा नहीं है। यह सिर्फ हम साहिबा के लिये कर रहे है।
मेरी बीवी साहिबा की बहुत बड़ी फैन है। …क्रेडिट लाईन का मतलब है कि हम दस एपीसोड की
शूटिंग और एडिटिंग मे आने वाला सारा सामान उपलब्ध करायेंगें व उसमे आने वाले खर्च को
एक करोड़ रुपये तक उठाने की जिम्मेदारी लेते है। …और कमाई? …यह हमारी जिम्मेदारी नहीं
है। मैने साहिबा की ओर देखा तो वह अब बड़े ध्यान से मेरी ओर देख रही थी।
कुछ सोच कर मैने पूछा…
चिस्ती साहब, कमाई की जिम्मेदारी किसकी होगी? …जनाब वह प्रोड्युसर की जिम्मेदारी होती
है। विज्ञापन, सेटेलाईट राईट्स, ग्लोबल राईट्स व अन्य रास्तों से वह कमाई करते है।
…अगर मै सही समझ रहा हूँ तो आप अपना साजो सामान को देकर उसका किराया वसूलते है और अपने
लोगों को काम देकर उनके खर्च को वसूलते है। कहानीकार, निर्देशक व कलाकारों का खर्च
भी आप उठाते है। यह सब खर्च आप क्रेडिट लिमिट मे रह कर करते है। …आपने ठीक फर्माया।
…आप दस कैसेट प्रोड्यूसर को देकर अपने हाथ झाड़ कर बैठ जाते है। अबकी बार उसने कुछ नहीं
कहा बस अपना सिर हिला दिया था। …आप अपने प्रोग्राम की कमाई का साधन भी खुद देखते है
या फिर वह काम किसी और को सौंप देते है? …जी अपने प्रोग्राम के लिये हमारा अपना मार्किटिंग
विभाग है। वह उस प्रोग्राम की कमाई की जिम्मेदारी संभालता है। मैने साहिबा से कहा…
जो मै इनकी बात से समझा हूँ तो यह क्रेडिट लाईन देकर तुम्हें बाँध देंगें। यह खुद तय
करेंगें की सामान का किराया कितना होगा और कितना पैसा वह काम करने वालो को देंगें।
क्या इसके लिये तुम तैयार हो? मेरी बात सुन कर सब एकाएक कमरे मे चुप्पी छा गयी थी।
अबकी बार सलीम चिस्ती
बोला… ऐसी बात नहीं है। वह कुछ बोलता उससे पहले मैने कहा… क्या मै मार्किट मे पता करके
सबसे सस्ती दर पर कैमरा किराया पर लेने के लिये आजाद हूँ? एक बार वह फिर से गड़बड़ा कर
बोला… समीर साहब ऐसी बात नहीं है। …क्या आप उसका खर्च देंगें? …नहीं। …तो यह कहिये
कि आप सिर्फ साहिबा के अकाउन्ट मे एक करोड़ एडजस्ट करेंगें। …जी, आपने ठीक फर्माया।
एक बार फिर से मैने साहिबा की ओर देख कर कहा… इस प्रोपोजल से बेहतर होगा कि यह पैसे
तुम अपने अकाउन्ट मे डाल कर अपने चुनिंदा लोगों और अपने द्वारा तय किये दरों के अनुसार
खर्च करो। यहाँ पर तो तुम बंध जाओगी। मेरी तो यही सलाह है बाकी तुम्हारी मर्जी है।
इतना बोल कर मै पीठ टिका कर आराम से बैठ गया था। अबकी बार साहिबा ने हिचकिचाते हुए
पूछा… आप मुझे क्या सलाह देंगें? …अगर सत्तर लाख रुपये का इन्हें चेक दे रही हो तो
एक करोड़ रुपये की क्रेडिट लाइन के बजाय इनसे भले ही अस्सी-नब्बे लाख नगद लेना ज्यादा
बेहतर है। अगर यह क्रेडिट लाइन दे रहे है तो फिर अदाकर, कलाकार, सामान और अन्य उनसे
जुड़ी हुई चीजों के रेट तुम तय नहीं कर सकोगी। …समीर साहब, हम ऐसा नहीं कर सकते। हम
तभी तो आपको एक करोड़ रुपये दे रहे है। …सलीम साहब, आप क्या मुझे बेवकूफ समझ रहे है।
मै आपकी लाईन मे कमजोर हो सकता हूँ लेकिन पैसे के हिसाब-किताब को अच्छे से समझता हूँ।
सत्तर लाख रुपये आपके अकाउन्ट मे आज जमा हो जाएँगें। आप टुकड़ों मे एक करोड़ को एक साल
मे खर्च करेंगें। जरा सत्तर लाख का ब्याज जोड़ कर देखिये तो पता चल जाएगा कि आप साहिबा
पर कोई एहसान नहीं कर रहे है। मेरा लाजिक सुन कर सलीम हतप्रभ हो गया था। मै उठते हुए
बोला… साहिबा, यह पैसे मै तुम्हारे बैंक मे जमा करा देता हूँ। अगर तुम्हें और पैसे
चाहिये तो मुझे खबर कर देना। …बैठिये समीर साहब। प्लीज काफी पी कर जाईयेगा। …सलीम साहब,
मेरे पास बस समय की तंगी है। अगर आपके पास इस पैसों के लिये कोई पुख्ता सुझाव है तो
बताईये अन्यथा हमे इजाजत दिजीये। तभी काफी आ गयी और हमारी बातों मे ब्रेक लगा गया था।
काफी पीते हुए मैने
पूछा… सलीम साहब, सत्तर लाख की बैंक पेमेन्ट के बदले आप कितना नगद दे सकते है? …जनाब
इसके लिये तो मुझे पहले किसी से बात करनी पड़ेगी। …तो ठीक है। आप बात करके बताईये। सलीम
चिस्ती मेरा चेहरा देखता रह गया था। …जाईये और बात करके जल्दी से बताईये। सलीम जल्दी
से उठा और कमरे से बाहर निकल गया था। नीलोफर ने पूछा… समीर, तुम क्या करना चाहते हो?
…कुछ दिनो के बाद हमे नगदी की जरुरत पड़ेगी। अगर इसी बहाने साहिबा की प्रोडक्शन कंपनी
खड़ी हो जाती तो इसमे क्या परेशानी है। साहिबा बड़े ध्यान से हमारी बात सुन रही थी। वह
अचानक बोली… समीर, मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिये। इतना बोल कर वह उठ कर बाहर जाने के
लिये बढ़ी लेकिन तभी सलीम चिस्ती ने कमरे मे प्रवेश करते हुए कहा… समीर साहब, थोड़ा इंतजार
और करना पड़ेगा। मेरे बास यहीं आ रहे है। साहिबा को खड़ी हुई देख कर उसने पूछा… तुम कहाँ
चल दी? …यहाँ मेरा क्या काम है। आप लोग बात किजिये। नीलोफर ने तुरन्त कहा… साहिबा,
यह सब समीर तुम्हारे लिये कर रहे है। इसलिये तुम्हारा यहाँ होना जरुरी है। साहिबा विस्मय
से नीलोफर को कुछ पल देखती रही और फिर धीरे से बैठते हुए बोली… आपकी मर्जी। हम सभी
चुपचाप बैठ गये थे।
पाँच मिनट के बाद
दरवाजे पर धीरे से दस्तक हुई और एक व्यक्ति ने कमरे मे प्रवेश किया तो सलीम चिस्ती
तुरन्त उठ कर खड़ा होकर बोला… यह एजाज कम्युनिकेशन्स के चीफ रिटायर्ड ब्रिगेडियर सलीम
नूरानी है। …यह समीर साहब है। मिलने की औपचारिकताएँ समाप्त करके नूरानी ने कहा… क्या
हमारा प्रपोजल आपको पसन्द नहीं आया है? …नूरानी साहब, आपका प्रोपोजल एक तरफा है। इसमे
साहिबा के लिये कुछ भी नहीं है। मुझे यही बेहतर लगता है कि सत्तर लाख रुपये का चेक
के बदले आप नगद एक करोड़ रुपये हमे दे दिजिये। नूरानी तुरन्त बोला… यह मुम्किन नहीं
है। अबकी बार मैने बड़े अधिकार से साथ बैठी साहिबा का हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा… साहिबा
चलो यहाँ से। हमने बेकार अपना समय यहाँ आकर बर्बाद किया। हम तीनो जैसे ही खड़े हुए बुर्रानी
तुरन्त बोला… प्लीज बैठिये। आप मेरी पूरी बात तो सुन लिजिये। …बोलिये। …समीर साहब हम
आपके साथ यह डील करने के लिये तैयार है। आप हमे चेक दिजिये और हम आपको हर तीस लाख पर
दस लाख की कमीशन देंगें। साहिबा के साथ सिर्फ एक बार की डील के लिये हम तैयार नहीं
है। हम आपके साथ लम्बे समय के लिये संबन्ध बनाना चाहते है। इतनी देर मे पहली बार मुझे
एजाज कम्युनिकेशन्स मे एक छोटी सी दरार मिली थी। साहिबा और नीलोफर मेरे जवाब का इंतजार
कर रहे थे। …नूरानी साहब आपका यह प्रोपोजल मुझे बेहतर लग रहा है परन्तु इसमे साहिबा
के लिये कुछ भी नहीं है। ब्रिगेडियर नूरानी ने एक बार सलीम चिस्ती की ओर देख कर कहा…
साहिबा के साथ हमारी एजेन्सी तीन साल के लिये एक्सक्लूसिव करार साईन करेगी। इनके लिये
एक्टिंग के आफर, पब्लिसिटी, गोल्बल और सेटेलाईट राईट्स व स्पान्सरशिप का काम हमारी
एजेन्सी करेगी। सब से हम उनकी सालाना आय का बीस प्रतिशत चार्ज करते है लेकिन साहिबा
से सिर्फ दस प्रतिशत चार्ज करेंगें। मैने साहिबा की ओर देखा तो वह अचरज से नूरानी का
चेहरा ताक रही थी। एक पल के लिये हमारी नजर मिली तो मैने तुरन्त अपना हाथ आगे बढ़ाते
हुए कहा… डील मंजूर है। ब्रिगेडियर नूरानी ने तुरन्त मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा… कल
तक पेपर्स तैयार हो जाएँगें। आप और साहिबा कल पेपर्स साईन कर दिजियेगा। …शुक्रिया।
मुझे अब चलना चाहिये। कल आपको चेक मिल जाएगा। हम लोग बात करते हुए आफिस से बाहर निकल
आये थे। ब्रिगेडियर नूरानी हमे लिफ्ट तक छोड़ने आया था। आईएसआई की एजाज कम्युनिकेशन्स
नाम की पाईपलाइन मे मैने सेंध लगा दी थी। मुझे अब यह पता लगाना था कि वह पाईपलाईन पैसों
का स्त्रोत है या फिर वितरण का संसाधन है।
होटल की कार मे नीलोफर
के साथ बैठते हुए मैने कहा… साहिबा, मुझे अभी किसी से मिलना है। शाम को इस बारे मे
बैठ कर आराम से बात करेंगें। साहिबा को वहीं छोड़ कर हम अनवर रियाज के आफिस की ओर चल
दिये थे। …समीर, तुम्हारी योजना मुझे समझ मे नहीं आयी? …नीलोफर, अब जिन लोगों से हमे
मिलना है उन्हें नगद रुपये चाहिये तो उनके लिये हमारे पास नगदी का इंतजाम होना चाहिये।
एजाज कम्युनिकेशन्स के द्वारा हम नगदी का इंतजाम कर रहे है। नूरानी के लिये अपनी रणनीति
के बारे मे बात करते हुए हम अनवर रियाज के आफिस पहुँच गये थे।
अपने आफिस मे अनवर
रियाज हमारा इंतजार कर रहा था। …माफी चाहता हूँ जनाब, ट्रेफिक के कारण देर हो गयी।
…कोई बात नहीं। आईये बैठिये। हम दोनो उसके सामने बैठ गये थे। …समीर साहब, मेरी जनरल
साहब से बात हो गयी है। वह आपकी डील के लिये तैयार है। …रियाज साहब, उनके तैयार होने
या न होने से मुझे कोई मतलब नहीं है। मेरे लिये यह जानना जरुरी है कि क्या आप तैयार
है? एक पल रुक कर मैने कहा… कल लौटते हुए नीलोफर ने कहा कि जमीन फौज की है, डेव्लेपर
फौजी फाऊन्डेशन है, प्रोजेक्ट का मालिक जनरल रहमत है और आप थर्ड पार्टी बन कर इस काम
को करने जा रहे है तो हमारे पैसे की देनदारी सिर्फ आपके उपर होगी। क्या आप इस देनदारी
के लिये तैयार है? …समीर साहब, मै इस डील के लिये तैयार हूँ। इतना बोल कर उसने पेपर्स
मेरी ओर बढ़ा दिये थे। मै उन पेपर्स को उठा कर पढ़ने बैठ गया था। सारे करार को पढ़ने के
पश्चात मैने नीलोफर की ओर देखा तो उसकी आँखों मे आत्मविश्वास और खुशी झलक रही थी। उसने
अपने पर्स से पेन निकाल कर मेरी ओर बढ़ाते हुए कहा… गुड इन्वेस्टमेन्ट। मैने पेन लेकर
उन पेपर्स पर दस्तखत करके अनवर रियाज की ओर कर दिये थे। वह पेपर्स पर दस्तखत करके बोला…
प्लीज थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा। यह पेपर्स मै रजिस्टर करवाने के लिये कोर्ट भिजवा देता हूँ। मैने चौंक
कर कहा… इस वक्त सात बजे आपके लिये कौनसा मजिस्ट्रेट बैठा होगा। …इन पेपर्स को रजिस्टर
करने के लिये एक मजिस्ट्रेट अपने घर पर कोर्ट खोल कर बैठा हुआ है।
आधे घंटे के पश्चात
रजिस्टर्ड करार हमारे सामने रखा हुआ था। मैने उसकी ओर चेक बढ़ाते हुए कहा… एक महीने
का ब्याज काट कर पहली दस करोड़ की किस्त दे रहा हूँ। अगले महीने अगर मेरे अकाउन्ट मे
ब्याज की किस्त समय पर नहीं पहुँची तो यह करार खारिज हो जाएगा। उसने चेक पर एक नजर
डाल कर कहा… आपने छह महीने का ब्याज एक साथ नहीं काटा। मैने नीलोफर की ओर देख कर कहा…
मेरी शरीक-ए-हयात ने पैरवी की है। उसका कहना है कि आपको काम शुरु करने के लिये पैसे
की जरुरत होगी तो इसलिये एक महीने का ब्याज काट कर सारा पैसा देना उचित होगा। वैसे
भी दूसरी किस्त अगर आपको चाहिये तो पहली किस्त का ब्याज तो समय पर जमा करना पड़ेगा।
अनवर रियाज ने झुक कर नीलोफर को सलाम करके कहा… आपकी जर्रानवाजी है। कुछ देर बात करने
के बाद जब हम उस इमारत से बाहर निकले तब नीलोफर बोली… इसी के साथ जनरल रहमत और अनवर
रियाज की नस हमारे हाथ मे आ गयी है। …तुम देखती जाओ। यह डीएचए का प्रोजेक्ट अनवर रियाज
और जनरल रहमत की गले की हड्डी बन कर रह जाएगा। मुझे तुम किसी टैक्सी स्टैन्ड पर उतार
देना। नीलोफर ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते हुए पूछा… तुम साहिबा के पास जा रहे हो?
…हाँ। हमे नगदी के बारे मे भी सोचना है। तुम्हारा क्या ख्याल है कि उसको नगदी के लिये
अपना जरिया बनाना ठीक होगा? …नहीं। समीर तुम उसको इस काम मे मत उलझाओ। …तुम भी चलो। नीलोफर मुस्कुरा कर बोली… वह बेवकूफ
मुझे अपनी सौतन के रुप मे देखती है। तुम जाओ। मै यह पेपर्स होटल के सेफ डिपाजिट मे
रखवा दूँगी। टैक्सी स्टेंड देख कर मै वहीं उतर गया और नीलोफर होटल की ओर निकल गयी थी।
कुछ देर के बाद मै
साहिबा के रुम मे बैठा हुआ था। …साहिबा, अब तीन साल के लिये तुम्हें कोई भी तकलीफ नहीं
होगी। उनकी एजेन्सी तुम्हारा सारा काम देखा करेगी। वह किसी सोच मे गुम थी। मै उसके
पास बैठ कर धीरे से उसकी कोमल बाँह को सहलाते हुए बोला… तुम इस करार से खुश नहीं हो?
उसने नजरें उठा कर मेरी ओर देखा तो उसकी झिलमिलाती हुई आँखों को देख कर तुरन्त उसे
अपनी बाँहों मे जकड़ कर बैठ गया। …ऐसा क्या हो गया? वह कुछ देर चुप रही और फिर धीरे
से बोली… समीर, मै बारह साल की थी जब पाकिस्तानी फौज ने खैबरपख्तूनख्वा मे जर्बे मोमिन
किया था। हजारों मरने वालों पश्तूनों मे मेरे अब्बा भी थे। मेरी अम्मी मुझे लेकर करांची
मे मामू के पास आ गयी थी। मेरे मामू फिल्मों मे सेट बनाने के कारीगर थे। मेरी अम्मी
देखने मे सुन्दर थी तो पंजाबी फिल्मों मे उन्हें एक्स्ट्रा के रोल मिलने लगे थे। वहीं
से मेरा भी फिल्मी सफर आरंभ हुआ था। मेरी अम्मी ने मुझे हिरोइन बनाने के लिये अपने
प्रोड्युसरों और दूसरी फिल्मी हस्तियों के सामने परोसना शुरु कर दिया था। मैने जवानी
मे कदम भी नहीं रखा था कि हिरोईन बनने की चाहत ने मुझे औरत बना दिया। छोटे-छोटे फिल्मों
मे रोल करते हुए आज मै ड्रामा सिरियल की सुपरस्टार बन गयी। आज सलीम चिस्ती के कमरे
मे बैठ कर अपने फिल्मी सफर को याद करके मुझे अपने उपर शर्म आ रही थी। सिर्फ तुम्हारे
साथ होने के कारण आज चिस्ती मुझ पर हाथ रखने की हिम्मत नहीं कर सका वर्ना उसके कमरे
मे अकेली लड़की के जाने का मतलब सभी को पता है। इतना बोल कर वह सिर झुका कर बैठ गयी
थी।
मैने धीरे से कहा…
साहिबा, आज के बाद इस लाईन कोई भी तुम्हारे साथ बदतमीजी करने की जुर्रत नहीं कर सकेगा।
कल तक सब को पता चल जाएगा कि साहिबा के पीछे कौन खड़ा है। वह बिलखते हुए बोली… मै तुम्हें
अपने पीछे नहीं बल्कि तुम्हारे साथ खड़ा होना चाहती हूँ। …साहिबा, तुम जिस लाइन मे हो
उसमे तुम्हारा नाम किसी के साथ भी जुड़ने से तुम्हारा फिल्मी कैरियर चौपट हो जाएगा।
वह मेरी बात की सच्चाई जानती थी। वह मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ कर कुछ देर रोती रही थी।
मै उसे बताने मे झिझक रहा था कि उसके साथ यह मेरी आखिरी रात थी। उसकी भीगी हुई पल्कों
पर एक चुम्बन से शुरु हुआ और फिर कुछ देर के बाद दुनिया को भुला हम एक दूसरे के साथ
गुथ गये थे। आज हमारे एकाकार मे वह पहले जैसी तेजी नहीं थी। हम एक दूसरे की जिस्मानी
जरुरत को समझने की कोशिश करते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। इस एकाकार मे बस एक
फर्क था कि मुझे कल का पता था और वह अपने आने वाले भविष्य के सपने संजोने मे लगी हुई
थी। उस रात उसने टूट कर अपनी मोहब्बत मुझ पर लुटायी थी। जब थक कर चूर हो गये तब मैने
उसे अपने आगोश मे बाँध कर धीरे से कहा… साहिबा, कल मै जा रहा हूँ। यह सुन कर उसकी थकान
के नशे मे मुंदी हुई खुल गयी थी। वह कुछ पल चुप रही और फिर बोली… मुझे भी अपने साथ
ले चलो। मैने अभी उनसे करार नहीं किया है। मै आजाद हूँ। …नहीं। अभी तो तुम्हें बहुत
सी नयी बुलंदियों को छूना है। अब से हमारा मिलना मुश्किल होगा परन्तु अगर मेरी याद
आये तो तुम मेरे पास आ जाना वर्ना मै तुम्हारे पास आ जाउँगा। उस रात हम काफी देर तक
बात करते रहे थे।
जबरदस्त अंक और समीर ने नकली नोट के नस पकड़ चुका है, सिनेमा एक ऐसा शिल्प है जिसमें नकली असली या फिर काला सफेद सब तरह के नोट चलते हैं, मगर साहिबा के मन में जो भावना समीर के लिए पनप रहा है वो कटाई अच्छी चीज नही हो सकती समीर के लिए।आगे देखते हैं की समीर और अंजली के बीच जो लुकाछिपी चल रही है वो कब तक चलेगी, याफीर आमना सामना होगा।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अल्फा भाई।
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