शह और मात-7
जीएचक्यू, रावलपिंडी
…मेजर हया, खुदाई
शमशीर की फाईल पर तुरन्त कार्यवाही शुरु करो। …यस सर। …पीरजादा का कुछ पता चला? …सर,
किसी को नहीं पता कि वह कहाँ है। खबर मिली है कि वह सर्जिकल स्ट्राईक होने से पहले
वहाँ से निकल गया था। पीरजादा पहले से ही अपने बेटे फारुख की मौत के कारण आपसे नाराज
था लेकिन सर्जिकल स्ट्राईक के बाद आपकी ओर से कोई एक्शन न लेने के कारण वह शायद खुद
ही कोई बड़ा कदम उठाने की सोच रहा है। …बुड्डा पागल हो गया है। उसको रोकने का समय आ
गया है। वह बेवकूफ नहीं समझ रहा कि फाईनेन्शियल एक्शन टास्कफोर्स की निगाह निरंतर हम
पर टिकी हुई है। एक जरा सी गलती हमे ब्लैक लिस्ट मे डलवा देगी। इन तंजीमो को भी अफगानी
तंजीमों की तरह एक डोज देना पड़ेगा। लखवी और हाफिज कहाँ है? …जनाब, उन दोनो को कुछ समय
के लिये बालाकोट की मस्जिद मे छिपने के लिये कह दिया है। तभी मेज पर रखे हुए फोन की
घंटी घनघना उठी थी। …जी जनाब। इतना बोल कर
वह उठा और कमरे से बाहर निकल गया था।
दो कमरे छोड़ कर वह
तीसरे कमरे मे प्रवेश करके बड़ी मुस्तैदी के साथ सैल्यूट करके वह सावधान की मुद्रा मे
खड़ा हो गया था। …अभी रियाज ने खबर की है कि समीर नाम के पूंजी निवेशक की सारी आय का
स्त्रोत कश्मीरी तंजीमे है। …जनाब, समीर का जिक्र हमारे सामने ब्रिगेडियर नूरानी के
द्वारा भी आया है। वह एजाज कम्युनिकेशन्स मे भी काफी पैसा लगा रहा है। करांची से भी
खबर मिली है कि उसने अजमल का कनसाईमेन्ट भी छुड़ाया है। …दुश्मन की नोटबंदी के कारण
यहाँ पर पैसों की काफी किल्लत हो गयी है। व्हाईट के पैसे की तो वैसे ही यहाँ पर हमेशा
किल्लत रहती है। जब तक उससे पैसे मिल रहे है तब तक उसे छेड़ना ठीक नहीं होगा। लेकिन
यह जरुर पता करो कि भला कश्मीरी तंजीमो के पास इतना पैसा कहाँ से आ गया? …जनाब पुख्ता
खबर है कि वह सिर्फ कश्मीरी तंजीमो का पैसा नहीं लगा रहा है अपितु उसके पास विदेश से
भी भारी संख्या मे पैसा आ रहा है। इसमे कोई शक नहीं कि अफगानी ड्र्ग्स से कमाये हुए
पैसा को उसकी मदद से सभी तंजीमे सफेद बनाने मे लगी हुई है। …जनरल फैज यह आदमी तो हमारे
लिये काफी काम का साबित हो सकता है। जरा दबिश डाल कर देखो। …जनाब, उसको छेड़ने का मतलब
है कि सारी तंजीमे हमारे खिलाफ हथियार उठा लेंगी। वैसे ही आजाद कश्मीर मे खुदाई शमशीर
ने अपना आतंक मचा रखा है। अब अगर दूसरी तंजीमो ने हमारे खिलाफ मोर्चा खोल दिया तो बड़ी
मुश्किल हो जाएगी। हमे यह नहीं भूलना चाहिये कि उसकी बीवी नीलोफर अपने लखवी की सगी
भतीजी है। …ठीक है तो फिर उसे छेड़ने के बजाय उस पर नजर बनाये रखना। …जी जनाब।
अगले दिन हम दोनो
मरदान की ओर निकल गये थे। सुबह एजाज कम्युनिकेशन्स को एक करोड़ बीस लाख का चेक देने
के पश्चात हमारे करार को कानूनी रुप दे दिया गया था। साहिबा ने भी एजाज कम्युनिकेशन्स
के साथ तीन साल का करार साइन कर दिया था। एक करोड़ का चेक रिलीज होते ही एजाज कम्युनिकेशन्स
ने कहा था कि वह एक करोड़ साठ लाख रुपये साहिबा के हवाले कर देंगें परन्तु नीलोफर की
सलाह मान कर इसके लिये मैने मना कर दिया था। ब्रिगेडियर नूरानी के साथ बात करके हमारे
बीच यह तय हुआ कि नीलोफर के निर्देशानुसार वह जिसको बताएगी उसको नूरानी पैसे दे दिया
करेगा। सारी लिखित-पढ़त का काम समाप्त करने मे दोपहर हो गयी थी। एजाज कम्युनिकेशन्स
के आफिस से निकल कर हम तीनो मेरियट होटल की दिशा मे निकल गये थे। साहिबा सारे रास्ते
मुझसे कुछ कहना चाहती थी परन्तु नीलोफर के कारण वह बोलने से झिझक रही थी। हम दोनो को
उसने जब होटल के बाहर उतारा तो होटल के द्वार की ओर बढ़ते हुए मैने सिर्फ इतना कहा…
फोन से सदा संपर्क मे रहना। खुदा हाफिज। मै जानता था कि एक बार अगर उसको सुनने के लिये
रुक गया होता तो फिर शायद विदा लेना हम दोनो के लिये मुश्किल हो जाता। यही सोच कर मै
बिना मुड़े नीलोफर के साथ होटल के अन्दर चला गया था।
एक उदासी जहन पर छायी
हुई थी। इस्लामाबाद शहर से बाहर निकलते ही ऐसा लगा कि मानो जन्नत से निकल कर दोजख मे
जा रहा था। एक बार फिर से गड्डो भरी टूटी हुई सड़क पर पिक-अप दौड़ रही थी। तभी नीलोफर
की नजर उर्दू मे लिखे हुए साइनबोर्ड पर पड़ी तो उसने कोहनी मार कर मुझे इशारा किया तो
मेरे चेहरे पर एक मुस्कान स्वत: ही उभर आयी थी। उस सड़क का नाम श्रीनगर हाईवे था। शहरी
सीमा समाप्त होने बावजूद चारों दिशाओं मे गहन शहरीकरण का बोलबाला दिखायी दे रहा था।
बहुत से आवासीय व मार्किटिंग कांप्लेकस प्रोजेक्ट सड़क के दोनो ओर बन रहे थे। जैसे ही
एम-1 पर पहुँचा तब पहली बार मैने चैन की साँस ली थी। ट्रकों के भारी काफिले के साथ
चलते हुए रात मे ड्राईविंग करते हुए मुझे ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था।
नीलोफर कुछ देर तक जागती रही लेकिन फिर मेरे कन्धे पर सिर रख कर सो गयी थी। भारी ट्रकों
और गाड़ियों के काफिले मे चलने के कारण कब वाह निकला और कब बुर्हान इन्टरचेन्ज पार किया
पता ही नहीं चला। सुबह की पहली किरण निकलते ही थोड़ी दूरी पर एक विशाल पुल दिख रहा था।
रात भर चलते-चलते अब थकान महसूस होने लगी थी। नीलोफर ने पूछा… यह कौनसी नदी है? मै
यही सोच रहा था कि तभी मेरी नजर सड़क पर लगे हुए इन्डस रिसोर्ट के साइनबोर्ड पर पड़ी
तो न जाने क्या सोच कर मैने अपनी पिक-अप रिजार्ट की ओर मोड़ते हुए कहा… थक गया हूँ।
कुछ देर आराम करने के बाद चलेंगें। जीप को पार्किंग मे खड़ी करके जैसे ही रिजार्ट मे
प्रवेश किया तो सिन्धु नदी का विशाल पाट मेरी आँखों के सामने था। बेहद मनोरम दृश्य
था परन्तु उसका लुत्फ लेने के बजाय एक कमरा लेकर हम दोनो आराम करने के लिये चले गये
थे। थकान के कारण बिस्तर पर पड़ते ही हम दोनो अपने सपनो की दुनिया मे खो गये।
शाम को पाँच बजे मेरी
आँख बादलों की गड़गड़ाहट के कारण खुल गयी तो मेरी नजर साथ लेटी हुई नीलोफर पर पड़ी जो
अभी भी गहरी नींद मे सो रही थी। बाहर काली घटा के कारण अंधेरा हो गया था। जब तक उठ
कर बैठा तब तक बारिश आरंभ हो गयी थी। मै आराम से तैयार हुआ और फिर नीलोफर को उठा कर
रेस्त्राँ मे पेट पूजा के लिये चला गया था। आसमान मे बिजली कड़की तब पहली बार मुझे सिन्धु
नदी के वेग का एहसास हुआ था। कुछ देर के बाद नीलोफर भी वहीं आ गयी थी। काफी देर तक
बारिश के रुकने की आस मे हम दोनो रेस्त्राँ मे बैठे रहे लेकिन जब कोई उम्मीद नहीं दिखी
तो वापिस अपने कमरे मे आ गये थे। देर रात तक बादलों की गर्जन और कड़कती हुई बिजली को
देख कर हम टाइम पास करते रहे थे। नींद पूरी होने के कारण अब दोबारा सोने की इच्छा नहीं
हो रही थी। नीलोफर लोकल चैनल लगा कर टीवी देखने मे व्यस्त हो गयी और मै अपना सेटफोन
निकाल कर बैठ गया। अबकी बार सेटफोन को नेटवर्क से जुड़ने मे थोड़ा समय लगा था। नेटवर्क
से जुड़ते ही कुछ मेसेज डिस्प्ले पर उभर आये थे।
…पता चला है कि जोरावर
अदा को लेकर मुजफराबाद पहुँचा था लेकिन उसके बाद वह उनके साथ कहाँ गयी पता नहीं चल
सका है। अब तक मैने उनके आठ ठिकाने चेक कर लिये है लेकिन किसी को उनका पता नहीं है।
…आपसे बात नहीं कर
सकती। एक बार आपकी आवाज सुन ली तो फिर मेरे लिये आपसे दूर रहना मुश्किल हो जाएगा।
वह संदेश तीन-चार
बार पढ़ कर मैने अपना संदेश लिखना आरंभ किया… खुदा पर मुझे यकीन है। चाहे आज भले
ही तुम मुझसे दूर हो लेकिन एक दिन हम जरुर मिलेंगें। बस तब तक अपने आपको और बच्चों
को सुरक्षित रखना। इसी आस पर आज तक जी रहा हूँ। बहुत कुछ तुमसे कहना चाहता हूँ परन्तु
शब्द कम पड़ रहे है।
अपना संदेश भेज कर
फोन वापिस बैग मे रख कर मै लेट गया परन्तु अंजली का मेसेज पढ़ने के बाद एक बैचेनी सी
महसूस कर रहा था। मै उठ कर खड़ा हो गया और अपनी खिड़की के पास जाकर अंधेरे मे ताकने लगा।
…क्या देख रहे हो? …इस दुनिया मे वह कहाँ छिप कर बैठी हुई है। अभी भी मूसलाधार बारिश
हो रही थी। नीलोफर मेरी कमर मे हाथ डाल कर पीछे से जकड़ कर बोली… वह जहाँ भी होगी हम
उसे ढूंढ लेंगें। कुछ देर तक अंधेरे मे ताकने के बाद जब मन थोड़ा शांत हो गया तो मुड़
कर उसे अपनी बाँहों मे जकड़ कर बोला… अगर तुम नहीं होती तो शायद जीना बहुत मुश्किल हो
जाता। हम दोनो वापिस बेड पर आकर लेट गये थे। खिड़की के शीशे पर पड़ती हुई बूंदों की आवाज
लगातार कान मे पड़ने के कारण मुझे लगा कि दिमागी तनाव कम होता चला गया था। कब झपकी आयी
पता ही नहीं चला और जब आँख खुली तब तक नयी सुबह निकल आयी थी। आसमान मे काली घटा अभी
छायी हुई थी लेकिन बारिश बन्द हो चुकी थी। एक बार फिर से अपनी दिनचर्या आरंभ करके एक
घंटे के बाद हम दोनो आगे का सफर तय करने के लिये तैयार हो गये थे। रिजार्ट का बिल चुका
कर हम मरदान की ओर चल दिये। सिन्धु नदी का पुल पार करते ही जीप ने गति पकड़ ली थी। सुबह
के समय ट्रेफिक कम होने कारण ड्राईविंग मे कोई मुश्किल नहीं पेश आयी थी। पेट्रोल और
प्राकृतिक जरुरत के लिये दो बार जीप रोकी गयी थी और शाम तक हम मरदान चौक पहुँच गये
थे। शहर मे जाने के बजाय हमने स्वात की ओर मुड़ गये। एक बार फिर से वही टूटी हुई गड्डों
भरी ग्रामीण सड़क पर हम वापिस आ गये थे। देर रात को चारसद्दा पहुँच कर हम एक छोटे से
होटल मे रुक गये।
इस्लामाबाद से निकलने
से पहले मेरी बात अल्ताफ मेहसूद से हुई थी। वह एक काम सिलसिले मे चारसद्दा आ रहा था।
मैने उससे वहीं मिलने की बात तय कर ली थी। अगली सुबह जल्दी से तैयार होकर मैने अल्ताफ
मेहसूद को फोन लगाया तो किसी महिला की आवाज कान मे पड़ी… कौन बोल रहा है? …मुझे अल्ताफ
भाई से बात करनी है। मेरा नाम समीर है। …वो सो रहा है। जब उठेगा तो खुद बात कर लेगा।
इसके बाद फोन कट गया था। मै कुछ देर बैठा रहा और फिर चारसद्दा शहर को देखने की मंशा
से बाहर निकल गया। जिला मुख्यालय होने के बावजूद शहर की बेहद खस्ता हालत थी। मुफलिसी
की झलक हर ओर दिख रही थी। नालियाँ और नाले गन्दगी और कचरे से अटी हुई थी। एक सरकारी
स्कूल पर नजर पड़ी तो वह भी जरजर हालत मे दिख रहा था। खुले अहाते मे पेड़ के नीचे एक
मौलवी साहब हाथ मे कीकर की छड़ी लिये कुछ बच्चों को उर्दू पढ़ा रहे थे। मुझे सारे रास्ते
लड़कियाँ और महिलाएँ अभी तक नहीं दिखी थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे यह सिर्फ पुरुषों
की बस्ती थी।। कुछ आगे निकला तो सरकारी जिला अस्पताल दिख गया। खपरैल की छत और पुरानी
दीवारें उस सरकारी अस्पताल की जरजर हालत साफ दर्शा रहे थे। कुछ सोच कर मै अस्पताल के
अहाते मे चला गया था। दीवार के किनारे मे अर्दली की पोशाक मे एक वृद्ध चिलम फूँकता
हुआ दिखा तो मै उसकी ओर बढ़ गया।
…सलाम-वाले-कुम मियाँ।
उसने नजरे उठा कर एक बार मेरी ओर देखा और फिर बड़ी बदतमीजी से बोला… डाक्टर नहीं है।
आज अस्पताल बन्द है। …वह कब आएँगें? …तीन महीने से तो कोई डाक्टर नहीं आया है। मियाँ
तकलीफ ज्यादा है तो पेशावर चले जाओ। …कोई और डाक्टर नहीं है क्या? वह उठते हुए बोला…
तीन का स्टाफ है। डाक्टर नहीं है। एक कम्पाउन्डर है जो सिर्फ मरहम पट्टी करना जानता
है। एक दाई है लेकिन वह बुलाने पर ही आती है। इतना बोल कर वह जाने लगा तो मैने जल्दी
से रोकते हुए कहा… मियाँ, बड़ी खस्ता हाल मे अस्पताल रखा हुआ है। …अगर मरीज को ज्यादा
तकलीफ है तो मियाँ यहाँ समय खराब करने के बजाय पेशावर के बड़े अस्पताल मे ले जाओ। इतना
बोल कर वह अर्दली अस्पताल से बाहर निकल कर सड़क के दूसरी ओर चाय की दुकान पर जाकर बैठ
गया था। मै अभी सोच ही रहा था कि मेरे फोन की घंटी बज उठी… हैलो। …सलाम समीर भाईजान।
आप चारसद्दा पहुँच गये? …अल्ताफ भाई, मै यहाँ पहुँच गया हूँ। बताईये कब मिल सकते है?
…आप बगदादी मस्जिद आ जाईये। …मै पहुँच रहा हूँ। फोन काट कर मै होटल की ओर वापिस चल
दिया।
कुछ देर के बाद हम
दोनो अपनी पिक-अप से बगदादी मस्जिद की ओर जा रहे थे। पहली बार मैने नीलोफर को सिर से
पाँव तक ढका हुआ देख रहा था। …यह बुर्का कब खरीदा? …होटल वाले से मंगा लिया था। यहाँ
पर स्त्रियों पर पाबन्दी काफी है। बगदादी मस्जिद के करीब पहुँच कर लोगों की भीड़ दिखनी
शुरु हो गयी थी। जब मस्जिद के पास पहुँचा तब पता चला मस्जिद के मुख्य द्वार पर लोगों
की भीड़ लगी हुई थी। एक सुरक्षित स्थान देख कर अपनी पिक-अप खड़ी करके बाकी का रास्ता
पैदल पार करके जैसे ही मुख्य द्वार के करीब पहुँचा तो वहाँ के हालात देख कर हम दोनो
ठिठक कर रुक गये थे। पाकिस्तानी रेन्जर्स के सिपाही लाठियों से कुछ लोगों को पीट रहे
थे। उनके घरों की स्त्रियाँ बुर्का पहने जमीन पर बैठ कर विलाप कर रही थी। दूसरी दिशा
मे एक आदमी और एक औरत लकड़ी के खूँटे से बंधे हुए खुदा से माफी की गुहार लगा रहे थे।
उन दोनो के कपड़े शायद कोड़े कि मार खाकर पहले ही उधड़ कर लहुलुहान हो गये थे। दोषियों
की पीठ खून से लथपथ थी। उन दोनो के जिस्म पर अनगिनत नीली धारियों भी साफ विदित हो रही
थी। मैने अपने साथ खड़े हुए आदमी से पूछा… भाईजान
यह सब क्या चल रहा है? …जनाब, अवैध जिना की कोशिश करने की सजा दी जा रही है। मैने साथ
खड़ी नीलोफर की ओर देखा तो वह धीरे से बोली… चलो यहाँ से। हम दोनो भीड़ से बचते-बचाते
मस्जिद मे दाखिल हो गये थे।
मस्जिद के अन्दर भी
कुछ लोग बाहर होती हुई कार्यवाही को देख रहे थे। …जनाब अल्ताफ भाई कहाँ है? एक आदमी
ने बाहर कंगारु कोर्ट की दिशा मे इशारा करके कहा… अल्ताफ भाई वहाँ बैठे हुए है। हम
दोनो चुपचाप एक किनारे मे खड़े हो गये। लोगों की बातचीत से पता चला कि रेन्जर्स किसी
पश्तून लीडर की पूछताछ के लिये उसके परिवार वालों को पीट रहे थे। अल्ताफ मेहसूद और
दो मौलाना शरिया के अनुसार सुनवाई करके अभियुक्तों को दंड दे रहे थे। दो परिवारों के
बीच कुछ पैसों के लेन-देन का विवाद था। एक परिवारिक झगड़ा अगली सुनवाई का इंतजार कर
रहा था। कुछ देर के बाद अपना फैसला सुना कर जब अल्ताफ फारिग हुआ तब वह मेरे पास आकर
बोला… समीर भाईजान सलाम-वाले-कुम। आपको ज्यादा इंतजार करना पड़ गया। रेन्जर्स के आने
से सारी कार्यवाही मे रुकावट आ गयी थी। चलिये अन्दर बैठ कर बात करते है। मेरे साथ बुर्कापोश
नीलोफर को देख कर वह एक पल के लिये ठिठक कर रुक गया था। …भाईजान यह आपके साथ है? …अल्ताफ
भाई यह मेरी बीवी नीलोफर है। …ओह…इन्हीं की ओर से आपका संदेश मिला था। जहेनसीब। भाईजान,
इनकी मस्जिद मे आने की मनाही है। इनको यहीं बैठना पड़ेगा। अब तक मस्जिद के बाहर की भीड़
छँट गयी थी लेकिन कुछ लोग रेन्जर्स की कार्यवाही को देखने की मंशा से अभी भी खड़े हुए
थे।
मैने पूछा… अल्ताफ
भाई क्या हम ऐसी जगह नहीं बैठ सकते जहाँ यह भी हमारे साथ बैठ सकें? एक पल रुक कर वह
जल्दी से बोला… भाईजान, आईये चलिये। हम दोनो उसके साथ चल दिये थे। न जाने कहाँ से पाँच
हथियारों से लैस जिहादी आये और उसे घेरे मे लेकर आगे बढ़ गये। सभी के सिर पर पगड़ी और
पहनावा अफगानी पश्तूनो का लग रहा था। कुछ ने चमड़े की जैकेट पहनी हुई थी और कुछ कम्बल
अपने इर्द-गिर्द लपेटे हुए थे। मस्जिद से निकल कर कुछ दूरी तय करके वह एक गली से होता
हुआ दूसरी गली मे चला गया। कुछ देर के बाद अल्ताफ एक मकान के सामने जाकर रुक गया और
अपने साथियों को इशारा करके मकान मे प्रवेश करते हुए बोला… भाईजान आप बैठक मे तशरीफ
रखिये। मै अभी आता हूँ। इतना बोल कर वह अन्दर चला गया और हम बैठक मे रुक गये थे। जमीन
पर गद्दे बिछे हुए थे। हम एक किनारे मे बैठ गये। कुछ देर के बाद अल्ताफ हमारे सामने
बैठ कर बोला… भाईजान, आप किस लिये मिलना चाहते थे? …अल्ताफ भाई आपसे तो मै एक खास बात
पर चर्चा करने आया था परन्तु इस्लामाबाद मे हमारी मुलाकात एक बेहद अजीब स्थान पर जफर
और सादिक से हो गयी थी। इसलिये पहले तो मै यह जानना चाहता हूँ कि हमारी मुलाकात की
खबर उनके पास कैसे पहुँच गयी? मेरी बात सुन कर वह एक पल के लिये चौंक गया था। कुछ सोच
कर बोला… हमारी मुलाकात की बात मुझे मिला कर सिर्फ चंद लोगों को मालूम थी। उनको किसने
बताया? उसकी बात सुन कर मेरे लिये सब कुछ साफ हो गया था।
…अल्ताफ भाई, यह दोनो
मुझे आंतरिक मंत्री इफ्तीखार आलम की पार्टी मे मिले थे। …आलम की पार्टी मे…वह चौंकते
हुए बोला… यह दोनो वहाँ क्या कर रहे थे? …मुझे पता नहीं लेकिन एक बात तो तय है कि वह
दोनो आलम के काफी करीब है। …भाईजान, हमारी सारी मुहिम पाकिस्तानी एस्टेब्लिश्मेन्ट
के विरुद्ध है तो भला मंत्री के साथ हमारे ताल्लुकात अच्छे कैसे हो सकते है। अबकी बार
मैने कुछ सोच कर कहा… मुझे शक है कि आईएसआई उनके जरिये मेहसूद कबीले मे सेंधमारी करने
मे कामयाब हो गयी है। मेरी बात सुन कर अल्ताफ कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था।
…अल्ताफ भाई आपकी मुहिम के लिये एक प्रस्ताव लेकर आया हूँ लेकिन अब मै यह प्रस्ताव
सिर्फ नसरुल्लाह मेहसूद साहब के सामने रखूँगा। अल्ताफ पहले से ही किंकर्तव्यविमूढ़
स्थिति मे उलझा हुआ था। मेरी बात सुन कर वह और भी ज्यादा उलझ गया था। …समीर भाई उनसे
मिलने के लिये तो आपको वुजगई जाना पड़ेगा। …और अब्दुल्लाह वजीरी से मिलना हो तो कहाँ
जाना पड़ेगा? …चचाजान आपको हमजोनी मे मिल जाएँगें। …अल्ताफ भाई मेरा प्रस्ताव मेहसूद
और वजीरी कबीलों के लिये है। जबसे तालिबान और अमरीका के बीच जंग शुरु हुई है तभी से
पश्तूनों की जिंदगी बदतर हो गयी है। अब उन्हें इंसाफ दिलाने का समय आ गया है। इस मुहिम
मे आपका साथ देने के लिये मै इतनी दूर से उन दोनो से मिलने आया हूँ।
अल्ताफ मेहसूद कुछ
देर सोचने के बाद बोला… चचाजान से बात करके
कल तक आपको उनकी राय बता दूँगा लेकिन जफर और सादिक की बात जो आपने बतायी है वह कितनी
पुख्ता है? …मै उनसे खुद आलम की पार्टी मे मिला था। इतनी देर मे पहली बार नीलोफर ने
चेहरे से चिलमन हटाते हुए बोली… भाईजान, अपने तायाजी का हवाला देकर मै उनसे मिली थी।
वह दोनो बिचौलिये बन कर हमे इफ्तीखार आलम से मिलवा रहे थे। नीलोफर को देखते ही अल्ताफ
बोला… बाजी आप इस तरह से बेपर्दा नहीं हो सकती। ख्वातीन के मामले मे जिरगा के नियम
बेहद सख्त है। …अल्ताफ भाईजान आपने मुझे पहचाने नहीं है। मेरी खाला आपकी चचीजान है।
अगर आप भूले नहीं है तो याद किजिये जर्बे अज्म मे आपका सारा परिवार मुजफराबाद मे हमारे
घर पर ठहरा था। उससे पहले जर्बे मोमिन के दौरान मेहसूद परिवार को मेरे तायाजी ने बालाकोट
मे आसरा दिया था। उसी समय हमारे परिवारों के बीच मे रिश्ता हुआ था। आप और मै तो तब
पैदा भी नहीं हुए थे लेकिन जर्बे अज्म के दौरान तो हम साल भर एक साथ रहे है। अल्ताफ
कुछ देर विस्मय से नीलोफर को देखता रहा और फिर मुस्कुरा कर बोला… बाजी माफी चाहता हूँ।
लखवी परिवार से तो हमारा बड़ा नजदीक का रिश्ता है। नीलोफर ने मुस्कुरा कर कहा… भाईजान,
मेरे कहने पर यह आपकी मुहिम मे मदद करने के लिये आये है। …बाजी मुझे और शर्मिन्दा मत
किजिये। आप बड़ी है और छोटा भाई समझ कर माफ कर दिजिये। नीलोफर ने एक ही पल मे सारी कहानी
पलट कर रख दी थी। मैने उठते हुए कहा… अच्छा अल्ताफ भाई हमे इजाजत दिजिये। अल्ताफ ने
जल्दी से पूछा… आप कहाँ ठहरे है? …होटल चांद पेलेस। …मै आपको आज शाम तक चचाजान का जवाब
बता दूँगा। अगर कल निकलना होगा तो चलने से पहले कुछ तैयारी करनी पड़ेगी। अल्ताफ से विदा
लेकर हम दोनो अपनी पिक-अप की ओर चल दिये थे।
होटल की ओर जाते हुए
मैने कहा… अब मेरे समझ मे आया कि क्यों मेरे साथ चलने की जिद्द पर तुम अड़ी हुई थी।
…समीर, यह कबीले आसानी से किसी अनजान व्यक्ति से नहीं मिलते। सुरक्षा कारणों से एक
मुलाकात के लिये अल्ताफ तुम्हें महीनों तक घुमाता रहता। नीलोफर को होटल पर उतार कर
मै अपनी पिक-अप की सर्विस कराने की मंशा से निकल गया था। बहुत लम्बा सफर करके यहाँ
पहुँचे थे। आगे का रास्ता तय करने के लिये अपनी पिक-अप सर्विस कराना मुझे अनिवार्य
लग रहा था। होटल के पास ही एक आटोमोबाईल वर्कशाप मिल गयी थी। अपनी पिक-अप उनके हवाले
करके मै पैदल ही अपने होटल की ओर वापिस चला गया था। शाम तक हमने कमरे मे आराम किया
और फिर मै अपनी पिक-अप लेने के लिये वर्कशाप की दिशा मे चल गया। चारसद्दा मे बिजली
की हालत बेहद दयनीय थी। आठ-दस घंटे का पावर कट यहाँ आम बात थी। मेरी जीप की सर्विसिंग
हो चुकी थी। दिन छिपते ही सारा शहर अंधेरे मे डूब गया था। बाजार मे दुकानों का कारोबार
अभी भी लालटेन व जेनसेट की बदौलत बदस्तूर जारी था। वर्कशाप से निकल कर मै पिक-अप मे
पेट्रोल भरवाने के लिये चला गया। यहीं पर पहली बार मेरा आमना सामना तेहरीक-ए-तालिबान
के साथ हुआ था।
अपनी जीप का टैंक
फुल करवा कर मै खाली जेरीकेन भरवा रहा था। सड़क पर रेन्जर्स की जीप साईरन बजाती हुई
गश्त लगाते हुए मेरे सामने से निकली लेकिन तभी उनकी जीप मे धमाका हुआ और धू-धू करके
जलने लगी। सभी हतप्रभ से यह दृश्य आँखें फाड़ कर देख रहे थे। कुछ घायल सिपाही उतर कर
जब तक पोजीशन लेते तब तक सेमी-आटोमेटिक मशीन गन की तड़-तड़ आवाज कान मे गूँजने लगी। मै
तो तुरन्त जेरीकेन छोड़ कर अपनी पिक-अप की आढ़ मे चला गया था। हवा मे गोलियाँ बिखरती
जा रही थी। बेचारे सिपाहियों को उन लोगों ने बचने का मौका भी नहीं दिया था। मुश्किल
से पाँच मिनट मे रेन्जर्स की जीप के साथ आठ सिपाही भी शहीद हो गये थे। तभी एक नारा
गूंजा अल्लाह-ओ-अकबर और फिर एकाएक चारों ओर मौत की शांति छा गयी थी। एक बार फिर से
कारोबार शुरु हो गया था। छिपे हुए लोग एक-एक करके सड़क पर आ गये थे। एक नजर उस धू-धू
करके जलती हुई रेन्जर्स की जीप और सड़क पर मृत शवों पर डाल कर लोग अपने काम मे जुट गये
थे। मैने जेरीकेन मे पेट्रोल भरने वाले से पूछा… भाईजान यह कौन लोग थे? …तेहरीक के
जिहादी थे। आप इस पचड़े न ही पड़ो तो अच्छा होगा। यह तो यहाँ आम बात है। वह जल्दी से
जेरीकेनों मे पेट्रोल भर कर बोला… जल्दी से हिसाब करके निकल जाओ वर्ना पुलिस वाले आपकी
पूरी रात काली कर देगी। मैने जल्दी से पैसे
दिये और पिक-अप मे सवार होकर अपने होटल की दिशा मे निकल गया था।
देर रात को अल्ताफ
ने होटल मे आकर बताया कि उसके अब्बू और चचाजान हमसे हमजोनी मे मिलेंगें। हमे कल निकलना
होगा। इतना बोल कर वह जैसे ही जाने के लिये मुड़ा तो मैने जल्दी से पूछा… आपने रेन्जर्स
पर हुए ब्लास्ट के बारे मे कुछ सुना तो वह मुड़ कर बोला… तेहरीक ने आज सुबह की कार्यवाही
का बदला लिया है। जल्दी से जल्दी यहाँ से निकलना हम सब के लिये अच्छा होगा वर्ना पता
नहीं फिर कितने दिन का कर्फ्यु यहाँ पर लग जाएगा। …क्या हम लोग अभी निकल सकते है? …अच्छा यही होगा कि आप दोनो अभी मीरमशाह के लिये
निकल जाएँ। मै अपको जल्दी ही हमजोनी मे मिलूँगा। बस इतना बोल कर वह अंधेरे मे अपने
साथियों के साथ निकल गया था। कुछ ही देर मे हम दोनो होटल छोड़ कर चारसद्दा की मुख्य
सड़क से मरदान की दिशा मे निकल गये थे। तब तक स्थानीय पुलिस भी हरकत मे आ गयी थी। जगह-जगह
बैरीकेड लग गये थे। शहर से बाहर निकलते हुए नीलोफर के कारण मुझसे ज्यादा पूछताछ नहीं
की गयी थी। हम रात के अंधेरे मे मीरमशाह की
ओर निकल गये। एक बार फिर से हमारा सफर आरंभ हो गया था।
ड्राईव करते हुए मैने
पूछा… नीलोफर, इस्लामाबाद मे हमने कितने पैसे बाँट दिये थे। …लगभग 35 करोड़ रुपये हमने
पाँच लोगों मे बाँटे है। …इससे हर महीने हमारी कितनी आमदनी होने वाली है? …लगभग डेढ़
करोड़ रुपये हर महीने की कमाई होगी। …नीलोफर, अब इस कमाई को हमे इन तंजीमों मे ऐसे बाँटना
है कि इनके आदमी उस ब्याज की उगाही करने के लिये उनके पास जाये। …समीर, कहीं हम आग
से तो नहीं खेल रहे है? …हम आग से ही खेल रहे है। जब मेहसूद या वजीरी के लोग रियाज
और मुनीर के पास हर महीने ब्याज वसूलने पहुँचेंगें तब देखना होगा कि वह जनरल रहमत को
बीच मे डालता है कि नहीं। एक बार जनरल रहमत बीच मे आ गया तो अपने आप ही आग भड़क जाएगी।
हम कुछ देर ऐसे ही बात करते हुए आधी रात तक पेशावर पहुँच गये थे। यहाँ से मीरमशाह लगभग
छह-सात घंटे की दूरी पर था। पेशावर शहर से निकलते हुए रात आधी बीत चुकी थी। मैने अपने फोन को गूगलमैप से जोड़ कर इस बात का निर्णय
लिया कि कोहाट पहुँच कर आराम करेंगें। सुर्य की पहली किरण भी नहीं फूटी थी कि हम कोहाट
शहर मे प्रवेश कर गये थे। उसको शहर कहना उचित नहीं लगता क्योंकि चट्टानी रेगिस्तान
पर पैबन्द के जैसी हरियाली के कुछ हिस्सों की झलक कोहाट मे प्रवेश करते हुए दिख गयी
थी। हलका सा छुटपुटा हो गया था। नीलोफर मेरे साथ बैठी हुई ऊँघ रही थी। हाईवे पर चलते
हुए जैसे ही शहर की ओर मुड़ा तभी एक होटल देख कर मैने पिक-अप को उसकी दिशा मे मोड़ दिया।
कुछ देर बाद एक छोटे से कमरे मे हम दोनो सफर की थकान और नींद की बेहोशी मे डूब गये
थे।
दोपहर को नीलोफर की
आँख खुली तो उसने मुझे उठा कर कहा… समीर, जल्दी से तैयार हो जाओ। रात से पहले हमे मीरमशाह
पहुँचना है। हम दोनो चाय पीकर तैयार होने मे जुट गये थे। तीन बजे तक हम खाना खाकर चलने
के लिये तैयार हो गये। हम दोनो जैसे ही बाहर निकल कर पिक-अप की ओर बढ़े कि तभी तीन फौज
की गाड़ियाँ हूटर बजाती हुई निकली तो होटल के गेट पर तैनात दरबान जल्दी से बोला… जनाब
वापिस अन्दर चले जाईये। बाहर फौज का खतरा है। मुझे उसकी बात कुछ समझ मे नहीं आयी परन्तु
उसके चेहरे और आवाज मे भय साफ झलक रहा था। हम दोनो चुपचाप रिसेप्शन पर आकर बैठ गये
थे। …समीर, बाहर क्या चल रहा है। जरा पता करो। मै उठ कर रिसेप्शन पर जाकर पूछा… भाईजान
बाहर क्या चल रहा है? उसने खिड़की की ओर इशारा करके कहा… जनाब, फौज घरों की तलाशी ले
रही है। मै खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया तो वहाँ से सड़क का नजारा साफ दिख रहा था।
एक जीप सड़क के बीचोंबीच खड़ी हुई थी। लगभग बीस फ्रंटियर फोर्स के सिपाही सड़क पर अलग-अलग
स्थानों पर तैनात थे। दो-दो सिपाहियों के समूह मे हर घर का दरवाजा खोल कर अन्दर सभी
उपस्थित लोगों को खदेड़ कर बाहर निकाल रहे थे। कुछ ही देर मे पचास से ज्यादा लोग बाहर
सड़क पर एक कतार बना कर खड़े हो गये थे।
…भाईजान वह होटल मे
उपस्थित लोगों को भी बाहर निकालेंगें? …नहीं साहब, यह होटल मे प्रवेश नहीं करेंगें
क्योंकि हर हफ्ते हमारी ओर से नजराना पेशावर के कोर कमांडर के पास पहुँच जाता है। मेरी
नजर बाहर जम गयी थी। दो सिपाही सड़क पर खड़े लोगों मे एक-दो आदमियों को कतार से बाहर
निकाल कर उन पर लाठी बरसाते हुए कुछ पूछ रहे थे। दो-तीन सिपाही महिलाओं से पूछताछ करते
हुए उनके साथ खुलेआम बदतमीजी कर रहे थे। एक किनारे मे बच्चों का झुंड रोता हुआ चीख
पुकार रहा था। शीशे के कारण उनकी आवाजें होटल के अन्दर सुनायी नहीं दे रही थी। एक घंटे
तक फौज की कार्यवाही चली थी। इस दौरान सिपाहियों ने बीस के करीब अदमियों की पिटाई कर
चुके थे। लड़कियों से बात करते हुए उनकी तलाशी लेने की आढ़ मे उनकी भद्दी हरकतें देख
कर कोई भी शरीफ इंसान शर्मशार हो सकता था। मै चुपचाप खिड़की के किनारे खड़ा हुआ यह सारा
मंजर अपनी आँखों से देख रहा था। तभी मेरे कान मे सीटिंयों की आवाज पड़ी और एकाएक सड़क
पर भगदड़ मच गयी थी। जैसे शुरु हुआ था वैसे ही सब कुछ समाप्त हो गया था। कुछ ही देर
मे तीनो गाड़ियाँ तेजी से आगे बढ़ गयी थी।
सड़क पर खड़े हुए अब
सब विलाप कर रहे थे। मै वापिस नीलोफर के साथ बैठते हुए बोला… तलाशी अभियान चल रहा है।
तभी रिसेप्शनिस्ट बोला… जनाब, पश्तून और बलोच आवाम के साथ ऐसा अक्सर होता है। जब भी
फौज पर किसी तंजीम का हमला होता है तब वह अपनी कुंठा इसी प्रकार से निकालते है। सुनने
मे आया है कि कल शाम को मरदान के पास तेहरीक ने रेन्जर्स के गश्ती दल पर हमला किया
था। आज फौज उसका बदला ले रही है। …क्या तेहरीक इस इलाके मे सक्रिय है? …जी जनाब, वह
भी जल्दी ही इसका बदला लेंगें। …कल के हादसा तो मरदान मे हुआ था तो यहाँ क्यों कार्यवाही
की गयी है? …जनाब, उन्हें कोई सुराग हाथ लगा होगा या फिर कोई इस इलाके की लड़की या औरत
किसी अफसर की नजर मे आ गयी होगी तो उसने पूछताछ की आढ़ मे उसको उठवा लिया होगा। यह तो
यहाँ आम बात है। इसका भी कुछ देर मे पता चल जाएगा। नीलोफर ने टोकते हुए कहा… समीर अब
चलना चाहिये। मैने जल्दी से उसे अल्विदा किया और पिक-अप की ओर चल दिया। कुछ देर के
बाद एक बार फिर से वीरान उबड़ खाबड़ चट्टानी रेगिस्तान मे हमारा सफर आरंभ हो गया था।
आज की फौजी कार्यवाही देख कर मेरे अन्दर खाकी वर्दी के प्रति रोष और घृणा पनपने लगी
थी।
…समीर, फौज के प्रति
यहाँ काफी रोष पनप रहा है। …हाँ लेकिन पाकिस्तानी फौज के खिलाफ तेहरीक अकेली कुछ नहीं
कर सकेगी। फौज से टकराने के लिये उनको सभी तंजीमों के साथ की जरुरत है। पश्तून और बलोच
अगर विद्रोह पर उतर आये तो फौज के लिये मुश्किल खड़ी हो जाएगी। …समीर, पश्तून राजनीति
मे कबीलों का बोलबाला है। वह कभी एक नहीं हो सकते। हक्कानी तो फौज और आईएसआई का गुलाम
है और उसके खिलाफ मेहसूद और वजीरी जैसे बौने कबीले खड़े हुए है। हम हाईवे छोड़ कर शाम
तक लातम्बर और दोमैल से होते हुए बन्नू पहुँच गये थे। इमारतें और बाजार को देख कर बन्नू
एक बड़ा कस्बा लग रहा था। नीलोफर कुछ रोजमर्रा का सामान खरीदने के लिये बाजार मे चली
गयी और मै अपना स्मार्टफोन निकाल कर मीरमशाह मे अपने साथियों के साथ संपर्क करने मे
जुट गया। पहली घंटी पर जमीर की आवाज कान मे पड़ी… हैलो। …सईद भाई अस्लाम वालेकुम। हम
बन्नू पहुँच गये है। आपके यहाँ के हालात कैसे है? …भाईजान सब खुदा की मेहरबानी है।
आपका इंतजार हो रहा है। भाभीजान भी आपके साथ है? …जी सईद भाई। क्या आपने अपने लिये
किसी गाड़ी का इंतजाम कर लिया? …जी भाईजान। …सईद भाई हम देर रात तक मीरमशाह पहुँच जाएँगें।
आप मेरा नम्बर नोट कर लिजिये। …भाईजान, मीरमशाह पहुँचते ही हमे खबर कर दिजियेगा। मै
आपको लेने आ जाऊँगा। …सईद भाई ठीक है। वहाँ पहुँचते ही मै आपको खबर कर दूँगा। अच्छा
खुदा हाफिज। इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। एक बार दिमाग मे सारी बातों को दोहरा
कर किसी प्रकार के अनजाने खतरे का आंकलन किया और फिर फोन को जेब के हवाले करके मै नीलोफर
के इंतजार मे बैठ गया। नीलोफर के आते ही हम भोजन करने के लिये निकल गये थे। जब तक चलने
के लिये तैयार हुए तब तक अंधेरा घना हो चुका था। उबड़-खाबड़ चट्टानी पर्वतमाला की तलहटी
मे बिछी हुई सड़क पर हम मीरमशाह के लिये चल दिये थे।
सुबह तीन बजे हम मीरमशाह
मे प्रवेश कर गये थे। पेट्रोल पंप देखते ही मैने अपनी पिक-अप उसकी ओर मोड़ दी और पेट्रोल
भरवाने की जिम्मेदारी नीलोफर पर डाल कर मै जमीर से बात करने के लिये एक किनारे मे चला
गया। …सईद भाई हम शहर मे घुसते ही पहले पेट्रोल पंप पर आपका इंतजार कर रहे है। …भाईजान,
मै पाँच मिनट मे वहीं पहुँच रहा हूँ। बस इतनी बात करके मैने फोन काट दिया था। जब तक
टैंक फुल हुआ तब तक एक जोन्गा मेरे पास आकर रुकी और थापा जल्दी से कूद कर बाहर निकला
और मेरे पास पहुँच कर जब तक वह अपनी एड़ियाँ जोड़ कर सैल्युट करता मैने अपनी बाँहों मे
जकड़ कर हवा मे उठा कर बोला… शमशेर भाई खुशाम्दीद। जमीर भी तब तक जोन्गा से उतर कर मेरे
करीब आ गया था। वह भी बड़ी गर्मजोशी के साथ मिला और फिर दोनो सारे जेरीकेन भरवाने मे
जुट गये थे। नीलोफर मेरे पास आकर बोली… अब तुम मुझे समय नहीं दोगे। मैने उसकी ओर देखा
तो उसके चेहरे पर एक नटखट मुस्कान खिली हुई थी।
कुछ ही देर मे एक
आलीशान सी हवेली की बैठक मे आराम से चाय पीते हुए बात कर रहे थे। जमीर उर्फ सईद, सुखबीर
उर्फ सुहेल, रशीद उर्फ राशिद, पूरन सिंह उर्फ
परवेज़, नायडू उर्फ नईम और थापा उर्फ शमशेर मेरे सामने बैठ कर अपनी रिपोर्ट दे रहे थे।
उन्होंने चार पश्तून तंजीमो से संपर्क साध लिया था। आगे की बात करने के लिये वह मेरा
इंतजार कर रहे थे। …कल हमें हमजोनी मे मेहसूद और वजीरी मे से मिलना है। कल से हम वापिस
अपनी गिल्गिट वाली वेषभूशा और खुदाई शमशीर के जिहादियों के रुप मे वापिस आ जाएँगें।
जमीर ने बीच मे टोकते हुए कहा… सर, गिल्गिट से खबर मिली है कि कोई आईएसआई की मेजर हया
इनायत मीरवायज घाटी मे खुदाई शमशीर की तहकीकात कर रही है। नीलोफर ने चौंक कर तुरन्त
पूछा… कौन मेजर? …मेजर हया इनायत मीरवायज। एक पल के लिये यह नाम सुन कर मुझे लगा कि
मेरा लहू एकाएक जम गया है। मै तो कुछ भी बोलने की स्थिति मे नहीं था लेकिन नीलोफर बोली…
कितनी पुख्ता खबर है? …पुख्ता खबर है। वह अली मोहम्मद से पूछताछ करने के लिये उसके
मदरसे गयी थी। उसके साथ आईएसआई का कर्नल हमीद भी था। एक ही पल मे अंजली से मिलने की
मेरी सारी चाहत का अंत हो गया था। तभी दिमाग मे मेनका के ख्याल ने घन से प्रहार किया
तो लगा कि लड़ाई आरंभ होने से पहले ही मै पराजित हो गया था। नीलोफर ने मेरा हाथ अपने
हाथ मे लेकर दबाते हुए कहा… समीर, चलो चल कर आराम कर लो। कल बहुत काम करने है। उसका
सहारा लेकर मै उठा और एक बेडरुम की ओर चल दिया।
समीर की टोली भी अब सरहद के पार पहुंच चुकी है नए भेस और नए नाम लेकर मगर शायद थप्पा को थोड़ा टाइम लगेगा अपने सीनियर को भाईजान बोलने में🥲। वैसे इस अंक के पहले वाले शब्द ही आखिरी में आते आते समीर के गले का कांटा बन चुका है, एक बार अफशा को लेकर समीर मात खा चुका है अब देखना है की हया/अंजली को लेकर वो कितनी सावधानी बरतेगा।
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