गहरी चाल-2
अपने आफिस मे आते
ही पता चला कि वीके मुझे दो बार पूछ चुके है।
मै सीधे उनके आफिस की ओर चला गया था। वह अपने कमरे मे ही बैठे हुए थे और मुझे
देखते ही बोले… मेजर, आज सुबह से तुम कहाँ थे? …सर, कोडनेम वलीउल्लाह ने मेरा
जीना हराम कर रखा है। आप मुझे किस लिये याद कर रहे थे? वीके ने एक फाईलों के बंडल की
ओर इशारा करते हुए कहा… मेजर, यह चौदह बाक्स फाईलें है। हमारे स्ट्रेटिजिक सेन्ट्रल
कमांड और उससे जुड़े हुए सभी छोटे और बड़े युनिट्स जिनका उन सात अंकों वाले नम्बर से
सीधा संबन्ध हो सकता है। उन सभी लोगों की जानकारी इन फाईलों मे है। मैने चौंकते हुए
कहा… सर, इतने सारे लोग? …तो तुम क्या समझे थे कि इतना बड़ा कार्य सिर्फ दर्जन भर लोग
ही कर रहे है। …सर, उस गद्दार को इन फाईलों मे ढूंढना भूसे के ढेर मे पड़ी हुई एक सुई
ढूंढने जैसा लग रहा है। जैसे ही मै फाईल का गठ्ठर उठाने के लिये झुका तो वीके ने तुरन्त
कहा… तुम्हें फाईल उठाने के लिये नहीं बुलाया है। यह तो मै तुम्हारे पास भी भिजवा देता।
तुम्हें इन फाईलों की गोपनीयता समझाने के लिये बुलाया है। इन फाईलों को ताले मे रखना
होगा। क्या तुम्हारे पास इसका कोई इंतजाम है? मैने हैरानी से कहा… यहाँ पर इतनी कड़ी
सुरक्षा होने के बावजूद भी क्या आपको इन फाईलों के लिये एक तिजोरी की जरुरत है?
वीके ने मुझे बैठने
का इशारा किया और मेरी ओर मुस्कुरा कर कहा… इस इमारत और इस आफिस पर दुनिया भर की महत्वपूर्ण
गुप्तचर एजेन्सियों की नजर हमेशा बनी रहती है। इसी आफिस मे सीआईए, केजीबी, आईएसआई,
एमआई-6, मोसाद, जैसी अन्य गुप्तचर संस्थाओं के लिये न जाने कौन किस वेष मे यहाँ काम
कर रहा है। वीके की बात सुन कर
मुझे एक गहरा झटका लगा था। साउथ ब्लाक में सेंधमारी की बात तो कोई भारतीय सोच भी नहीं
सकता क्योंकि जहाँ भारत सरकार का दिल और दिमाग स्थित हो वहाँ पर ऐसा कुछ कोई कैसे कर
सकता है। … सर, अगर हमे पता है तो हम उन लोगों के विरुद्ध कोई कार्यवाही क्यों नहीं
करते? …मेजर, यहाँ पर जो भी लोग काम करते है वह सभी इमानदार और मेहनती लोग है। उनकी
देशभक्ति पर कोई शक नहीं कर सकता परन्तु यह सभी एजेन्सियाँ उनकी किसी मजबूरी या किसी
कमजोरी का फायदा उठा कर जानकारी लेने की कोशिश मे हमेशा जुटी रहती है। किसी को हनी
ट्रेप मे फँसा कर ब्लैक मेल करते है तो किसी को जानकारी के बदले मे पैसे का प्रलोभन
दिया जाता है। जब से देश आजाद हुआ है तभी से यह इमारत सीआईए और केजीबी के लिये अखाड़ा
बनी हुई है। पिछले दस सालों मे अन्य एजेन्सियों ने भी इस आफिस मे अपने हाथ पाँव जमाने
शुरु कर दिये है। इस आफिस पर सिर्फ इन्हीं लोगों की नजर नहीं रहती अपितु दलालों की
भी नजर रहती है। जब से हम यहाँ आये है तब से हमने सफाई करनी आरंभ कर दी है परन्तु इंसानी
फितरत और उसकी मजबूरी का किसी को क्या पता चलता है। यह तय करना नाममुकिन है कि वह कौनसा
कमजोर क्षण होता है जब एक इंसान के लिये उसकी जरुरत और मजबूरी के आगे राष्ट्र का महत्व
कम हो जाता है।
मुझे वीके की बातें सुन कर बड़ा अजीब लग रहा
था। …सर, मै आपकी बात का मतलब समझ नहीं सका हूँ। वीके ने कुछ सोच कर कहा… हमारे नेतागण,
सफेदपोश कारोबारी और उच्चस्तरीय प्रशासनिक अधिकारी इस राष्ट्र की सुरक्षा का सौदा बाहरी
ताकतों के साथ कुछ करोड़ के फायदे के लिये करते है तो वह कानून की नजर मे कोई अपराध
नहीं है लेकिन वहीं रक्षा मंत्रालय का एक अदना सा बाबू जब एक ढाबे पर एक संवेदनशील
फाईल के साथ पकड़ा जाता है तो उसे तुरन्त गद्दार घोषित कर दिया जाता है। …सर, इसमे क्या
गलत है। अभी भी मै आपका मतलब नहीं समझा? वीके ने समझाने वाले अंदाज मे कहा… पिछली सरकार
के समय कुछ नामी वकीलों ने सर्वोच्च न्यायालय मे दक्षिण भारत मे लगाये जाने वाले एक
परमाणु उर्जा के प्रोजेक्ट के खिलाफ एक जनहित की याचिका डाल कर उस प्रोजेक्ट पर रोक
लगवा दी थी। उस समय उस प्रोजेक्ट की लागत अठारह हजार करोड़ की थी और आज जब हमने आकर
सारी कानूनी प्रक्रिया को समाप्त करके उस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है तो अब उसकी लागत
बावन हजार करोड़ की हो गयी है। देश के इस आर्थिक नुकसान को क्या न्यायालय या वह वकील
पूरा करेंगें? यही नहीं अगर वह प्रजेक्ट पाँच साल पहले अपने समय से लग गया होता तो
उस उर्जा से अब तक कितने नये उद्योग और व्यापार की संभावना उस क्षेत्र मे बढ़ गयी होती।
इतना बड़ा आर्थिक नुकसान होने के बावजूद यह कानूनी भाषा मे देशद्रोह नहीं है। यह सुन
कर मेरा दिमाग चकरा गया था।
…सर, भला सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ सोच कर
ही रोक लगायी होगी। आप इसको कैसे देशद्रोह कह सकते है? वीके कुछ पल मुझे देखते रहे
फिर मुस्कुरा कर बोले… मेजर, उस प्रोजेक्ट की सच्चायी भी जान लो। उस प्रोजेक्ट को लगाने
का ठेका भारत सरकार ने रुसी कंपनी को दिया था। वह ठेका लेने के लिये न जाने उस रुसी
कंपनी ने क्या किया होगा हम उसमे नहीं जाते लेकिन उसके बाद क्या हुआ वह समझने की जरुरत
है। जिन विदेशी कंपनियों को ठेका नहीं मिला तो उनमे से एक कंपनी ने हमारे सर्वोच्च
न्यायालय के तीन सबसे काबिल वकीलों को कुछ करोड़ रुपये देकर पूरे प्रोजेक्ट को रद्द
करने की योजना बना डाली। उन वकीलों ने उसी क्षेत्र मे रहने वाले करीब डेड़ सौ गरीब परिवारों
की फरियाद बना कर जनहित की याचिका सर्वोच्च न्यायालय मे डाली कि सुरक्षा दृष्टि से
वह परमाणु सयंत्र ठीक नहीं है। इस काम के लिये उन्होंने वहाँ के स्थानीय चर्च को भी
कुछ पैसों का लालच दिया था। उन डेड़ सौ परिवारों को वहाँ के चर्च ने भड़काया और वह डेड़
सौ परिवार उन वकीलों के इशारे पर पाँच साल तक न्ययालय मे नाचते रहे थे। उन वकीलों की
शह पर कुछ समाजसेवी संस्था भी पैसा कमाने के लिये उन गरीब परिवारों को भड़काने मे जुट
गयी थी। जबकि इन सभी संस्थाओं मे कोई भी परमाणु तकनीक का विशेषज्ञ नहीं था लेकिन फिर
भी हमारी सर्वोच्च न्यायालय ने उस सयंत्र पर रोक लगा कर उन वकीलों की फरियाद को पाँच
साल तक सुना। इस चक्कर मे न तो वहाँ का कोई विकास हुआ और न ही उन परिवारों का कोई आर्थिक
फायदा हुआ परन्तु इस केस के चलते हुए वह तीनो वकील उस विदेशी संस्था से करोड़ो रुपये
डकार गये थे। अब तुम्हीं बताओ कि देश का बड़ा गद्दार कौन हुआ वह बाबू या वह तीन वकील?
…सर, इस मामले मे सेना तो कहीं बेहतर है क्योंकि
उसकी कार्यवाही मे ऐसे रोढ़े अटकाने वालों को हम पहले से ही ठीक कर देते है। वीके जोर
से हंस कर बोले… मेजर, तुम एक फौजी हो जिसने अभी तक सिर्फ कश्मीर मे काम किया है इसलिये
ऐसा बोल रहे हो। इसी रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने पिछले तीस साल से वायुसेना और
नौसेना की खरीद फरोख्त पर दलालों के कारण रोक लगा रखी है। दुश्मनों की फौज हमसे तीस
साल आगे बढ़ गयी है और हम अभी भी वही पुराने हवाई जहाज और पनडुब्बियों से काम चला रहे
है। एकाएक रक्षा सौदे का विषय छिड़ते ही मैने पूछा… सर, यह बी चन्द्रमोहन कौन से रक्षा
सौदे को देख रहा है? एकाएक वीके सावधान होकर बैठ गये थे। …क्यों? …सर मुझे पता चला
है कि दीपक सेठी और अंसार रजा रक्षा मंत्रालय मे चन्द्रमोहन के जरिये उस रक्षा सौदे
के लिये किसी विदेशी कंपनी के लिये दलाल का काम कर रहे है। वीके कुछ पल रुक कर बोले…
यह खबर कितनी पुख्ता है? …सौ प्रतिशत सच है। अचानक बात बदलते हुए वीके ने कहा… मेजर,
तुम बताओ इन फाईलों के लिये तुम्हारे पास कोई सुरक्षित जगह है? …सर, फिलहाल मेरे पास
इसकी कोई सुविधा नहीं है। वीके ने कुछ सोच कर कहा… इन्हें यहीं मेरे पास रहने दो। मै
पहले तुम्हारे आफिस मे इसका कोई इंतजाम करवाता हूँ। मै उनकी बात समझ कर उठ कर खड़ा हुआ
तो वीके ने कहा… मेजर, सेठी और अंसार रजा पर नजर बनाये रखना। …जी सर। मै उनसे इजाजत
लेकर बाहर निकल आया लेकिन अभी भी मेरे दिमाग मे वीके का चंद्रमोहन के प्रति बर्ताव
समझ मे नहीं आया था। मैने तो उन्हें चन्द्रमोहन की पुख्ता खबर दी थी लेकिन वीके ने
कार्यवाही न करके कितनी आसानी से इस बात को हवा मे उड़ा दिया था।
आज वीके के साथ बैठ कर बहुत सी नयी चीजों का
ज्ञान हुआ था। मै हैरान था कि आज पहली बार मैने वीके को इतनी देर खाली बैठे हुए देखा
था वर्ना हमेशा कोई न कोई उनके सामने बैठा हुआ दिखता था। मै इस पहेली को सुलझाने मे
उलझा हुआ था कि तभी मुझे याद आया कि प्रधानमंत्री दो दिन के विदेश दौरे पर गये हुए
है। मै समझ गया कि इसी कारण आज वीके ने मुझे इतना समय दे दिया था। मै अभी वीके की बात
के बारे मे कुछ सोच रहा था कि मोनिका का फोन आ गया… समीर, आज क्या कर रहे हो? …मै तो
कारोबार के सिलसिले मे दिल्ली से बाहर निकला हुआ हूँ। क्या कल की सारी थकान उतर गयी?
वह खिलखिला कर हँस कर बोली… हिश… मिस्टर सेठी आज सुबह आ गये है। क्या तुम अकेले अंसार
रजा की पार्टी मे चले जाओगे? …क्यों क्या हुआ? …उसी शाम दीपक ने कुछ लोगों को घर पर
बुलाया है। इसलिये मै उस पार्टी मे नहीं जा सकूँगी। …तुम अपनी पार्टी मे मुझे बुला
लोगी तो मै अंसार रजा की पार्टी को मिस कर दूंगा। …अगर बुला सकती तो जरुर बुला लेती।
वैसे भी हम जल्दी मिलेंगें। इतना बोल कर मोनिका ने फोन काट दिया था। पिछली रात को मैने
उसके साथ अंसार रजा की पार्टी मे जाने का कार्यक्रम बनाया था।
शाम हो गयी थी। मैने अपना काम समेटा और कुछ
सोच कर कनाट प्लेस चला गया था। अंसार रजा की पार्टी मे तबस्सुम को लेकर जा सकता था
परन्तु उसके हुलिये मे कुछ बदलाव करने की जरुरत थी। जब तक अपने फ्लैट पर पहुँचा तब
तक अंधेरा हो चुका था। अपने हाथ मे कुछ थैले लेकर फ्लैट मे प्रवेश किया तो तबस्सुम
ने मेरे हाथ मे थैले देख कर पूछा… आज क्या खरीद लाये? …सब तुम्हारे लिये है। मैने थैले
मे से सारा सामान निकाल कर मेज पर रखते हुए कहा… यह जरा पहन कर दिखा दो। उसने कपड़े
उठा कर एक नजर डाल कर कहा… मै ऐसे कपड़े नहीं पहनती। मै जानता था कि वह यही सब कहेगी
तो मैने पैतरा बदलते हुए कहा… अगर मेरे साथ बाहर घूमने जाना है तो यह पहन कर ही जाओगी
वर्ना घर मे बैठी रहना। वह कुछ देर मुझे घूरती रही फिर बोली… मैने काफिरों के कपड़े
कभी पहने नहीं है। …एक बार यहाँ पहन कर दिखाने मे कौन सा गुनाह हो जाएगा। इस्लाम मे
कहा गया है खाविन्द का कहा स्त्री को मानना पड़ता है। …आप मेरे खाविन्द नहीं है। …इस
फ्लैट मे तो मै तुम्हारा खाविन्द हूँ। सरकारी कागज तो यही कहता है। …मुझे यह सब पहनना
नहीं आता। …इसके लिये मै हूँ। मैने भी इतने साल वही कुर्ता और पाजामा पहना था लेकिन
जब से फौज मे आया तब से मै भी पैन्ट-शर्ट पहनने लगा हूँ। एक बार पहन लोगी तो तुम्हें
भी इन कपड़ों की आदत भी पड़ जाएगी।
वह एक-एक कपड़ा उठा कर देखने लगी और उसके चेहरे
पर शर्म की लालिमा छाती चली गयी। …आप चाहते हो कि मै ऐसे कपड़े पहन कर आपके साथ बाहर
जाऊँ? …इनमे क्या खराबी है। सभी लड़कियाँ ऐसे कपड़े पहनती है। तुम्हें क्या तकलीफ है।
…नही। यह मुझसे नहीं होगा। मैने सारे कपड़े उठाये और उसके कमरे की ओर चल दिया। वह मेरे
पीछे-पीछे चली आयी थी। मैने सारे कपड़े उसके बिस्तर पर पटक कर कहा… तुम्हारे सारे पुराने
कपड़े मै अपने साथ ले जा रहा हूँ। फिर तुम क्या पहनोगी। इतना बोल कर उसके सारे पुराने
फेयरन, कुर्ते और शलवार का बंडल बना कर अपने कमरे मे लेकर आ गया था। कुछ देर के बाद
उसकी आवाज मेरे कान मे पड़ी… समीर। इधर आईये। मै उसके कमरे मे चला गया और तबस्सुम को
टी-शर्ट और जीन्स मे देख कर लगा कि कपड़े किसी के रुप को कैसे निखार देते है। उसके सीने
की गोलाईयाँ टी-शर्ट मे ज्यादा उभरी हुई प्रतीत हो रही थी। जीन्स भी उसके जिस्म के
हर उभार और कटाव पर चिपकी हुई सी लग रही थी। कुछ पल उसको मै वहीं खड़ा निहारता रहा था।
…क्या देख रहे है? …यही कि अगर यह पहन कर तुम बाहर गयी तो कर्फ्यु लग जाएगा। शर्म से
उसके चेहरे का रंग गुलाबी से लाल हो गया था।
साड़ी और ब्लाउज को छोड़ कर उसने एक-एक करके
सभी कपड़े पहन कर मुझे दिखा दिये थे। साड़ी बाँधना तो मुझे भी नहीं आता था तो मैने टालते
हुए कहा… किसी से पूछ कर बताऊँगा कि साड़ी कैसे बांधते है लेकिन ब्लाउज तो पहन कर दिखा
सकती हो। वह ब्लाउज लेकर एक बार फिर से बाथरुम मे चली गयी थी। जब वह बाहर निकल कर आयी
तो वह नीलोफर को भी मात दे रही थी। वह निगाहें झुका कर खड़ी हो गयी थी। …मेरे पास आओ।
उसने सिर हिला कर मना किया तो मै उठ कर उसके पास चला गया था। मै जैसे ही उसके निकट
पहुँचा वह शर्मा कर मेरे सीने मे मुँह छिपा कर मुझसे लिपट गयी थी। जैसे ही उसकी नग्न
पीठ को मेरी उँगलियों ने स्पर्श किया तो उसके मुख से एक सिसकारी छूट गयी थी। मैने उसे
अपनी बाँहो मे जकड़ कर कहा… मुझे अब से कुछ पार्टियों मे जाना पड़ेगा जिसके लिये तुम्हारे
को अपना हुलिया बदलना पड़ेगा। क्या बदल सकोगी? वह कुछ नहीं बोली बस उसने अपना सिर हिला
दिया था। थोड़ी देर बाद वह अपने पुराने स्वरुप मे वापिस आ गयी थी। उसकी आज की झिझक देख
कर मैने सोचा कि अपने साथ उसे ऐसी पार्टी मे ले जाने से पहले कपड़ों से ज्यादा उसे मानसिक
तौर पर तैयारी की आवश्यकता है।
आफिस मे बैठ कर मेरे दो दिन बस जानकारी जुटाने
मे निकल गये थे। सबसे पहले मैने नीलोफर की लिस्ट मे दिये गये नामों की जानकारी एकत्रित
करनी आरंभ कर दी थी। उस लिस्ट के सभी व्यक्ति बेहद प्रभावशाली व समाज मे काफी रसूख
रखते थे। दूसरी जाँच का दायरा अंसार रजा पर केन्द्रित हो गया था। शाम को अंसार रजा
की पार्टी मे जाना था इस लिये सारा दिन उसके बारे मे जानकारी लेने मे निकाल दिया था।
वह संभल नाम के गाँव का हिस्ट्री शीटर था जो राजनीतिक संरक्षण के चलते हुए पश्चिमी
क्षेत्र मे बाहुबली बन कर उभरा था। वैसे तो सरकारी ठेके व बिल्डर का काम करता था परन्तु
उसका असली काम तस्करी, फिरौती, अवैध कब्जे से लेकर चुनावों मे बूथ लूटने का मुख्य काम
था। राज्य की पुलिस भी राजनीतिक संरक्षण के कारण उसके कुकर्मों के प्रति आँखें मूंद
के बैठ गयी थी। पिछले चुनाव मे उसे विधायक बनने का मौका मिल गया था। सत्तापक्ष मे बैठी
उसकी पार्टी ने इनाम के रुप मे उसे राज्य के अल्पसंख्यक आयोग का चेयरमेन नियुक्त कर
दिया था। इसके कारण मुस्लिम समाज मे अंसार रजा की पकड़ मजबूत हो गयी थी। अब वह बाहुबली
से समाजवाद का पैरोकार बन गया था। उसके बारे मे सारी जानकारी इकठ्ठी करके शाम को आफिस
से निकल कर उसके फार्म हाउस की ओर चल दिया था।
नेताजी अंसार रजा
की पार्टी दिल्ली के बाहरी इलाके मे स्थित किसी फार्म हाउस मे हो रही थी। मुझे वहाँ
पहुँचने मे काफी समय लग गया था। फार्म हाउस बाहर से तो शांत नजर आ रहा था परन्तु जीप
सड़क पर पार्क करके जब मै अन्दर दाखिल हुए तब पार्टी की वैभवता का एहसास हुआ था। पेड़ों
पर झिलमिलाती हुई रौशनी का इंतजाम किया गया था। एक ओर खान-पान और दूसरी ओर सभी प्रकार
की ड्रिंक्स का इंतजाम था। उस विशाल लान मे काफी लोगों की भीड़ थी। सभी से आदाब करते
हुए जल्दी ही मै भी भीड़ मे शामिल हो गया था। एक बार फिर से हाथ मे ड्रिंक्स का ग्लास
लेकर मै एक छोटे से समूह के साथ जाकर खड़ा हो गया था। वहाँ पर भी नयी सरकार की चर्चा
चल रही थी परन्तु मुद्दे भिन्न थे। यहाँ पर सरकार के कट्टर हिन्दु होने पर चर्चा चल
रही थी। …भाईजान अगले पाँच साल मुस्लिम समाज के लिए बेहद दुखदायक साबित होंगें। मै
हैरान था कि यह बोलने वाला कोई मुस्लिम नहीं बल्कि एक हिन्दु पत्रकार था। तभी शेरवानी
पहने मौलाना ने कहा… माथुर साहब, गुजरात अब देश के हर कोने मे दोहराया जाएगा लेकिन
इस बार हम तैयार है। तभी एक और मौलाना बोले… अकरम मियाँ, बेफिजूल बातें मत करो। पुलिस
और फौज से टकराने मे कौम का नुकसान है। इसीलिए हमे फिलहाल शांत रहकर अपनी ताकत को बढ़ाने
मे लगना चाहिए। यादवजी की पार्टी और अन्य ऐसी राजनीतिक पार्टियों की मदद करके हमे एक
मजबूत विपक्ष बनाना है जो केन्द्र सरकार पर अंकुश लगा सके। कुछ देर तक उनकी बहस सुनने
के बाद मै दूसरे समूह की ओर बढ़ गया था।
सभी समूहों मे नयी
सरकार की चर्चा चल रही थी। वहाँ पर उपस्थित सभी लोग नयी सरकार के खिलाफ बात कर रहे
थे। …चचाजान, लाखों की संख्या मे बर्मा से आये हुए प्रताड़ित रोहिंग्या मुसलमान हमारी
सीमा मे प्रवेश करने की कोशिश कर रहे है। जैसे ही यह वाक्य मेरे कान मे पड़ा तो मैने
मुड़ कर देखा तो एक नवयुवती कुछ लोगों के साथ खड़ी हुई एक मौलाना से बोल रही थी। मै चुपचाप
उनके साथ जाकर खड़ा हो गया। मेरी नजर उस युवती पर थी जो अभी भी बोल रही थी। …आप लोग
उनके लिए कुछ नहीं कर रहे है। सीमा मे दाखिल होने के लिए सीमा सुरक्षा बल के जवान हमारी
मासूम बहनों और बच्चियों को जबरदस्ती अपनी हवस का शिकार बना रहे है। सब उस युवती को
चुपचाप सुन रहे थे और वहाँ खड़े हुए सभी के चेहरे पर एक रोष व्याप्त था। तभी एक वृद्ध
मौलाना ने अपने साथ खड़े हुए लोगो पर नजर डाल कर कहा… हमने वक्फ बोर्ड से कहा है कि
उन लोगों की मदद करो लेकिन उन्हें पैसों का इंतजार है। बांग्लादेश की सीमा से सटी हुई
कुछ जगहों को छोड़ कर बाकी सभी जगह पर जहाँ हमारी मस्जिदें और मदरसे है उनके लिए हमारी
ओर से निर्देश चले गये है। वह युवती कुछ बोलने जा रही थी कि सामने से आते हुए अंसार
रजा पर मेरी नजर पड़ी जिसके साथ आज भी दर्जन से ज्यादा हथियारबंद सुरक्षाकर्मी चल रहे
थे। उसके आते ही सभी चुप हो गये थे। मेरी नजर नीलोफर पर टिकी हुई थी। वह अंसार रजा
के पीछे चल रही थी। आज वह हिजाब मे अपने श्रीनगर वाले पुराने स्वरुप मे नजर आ रही थी।
अचानक उसकी बात याद आ गयी थी कि अंसार रजा की पार्टी मे उसकी लिस्ट मे दिये गये नामों
मे से बहुत से लोग मिल जाएँगें। मै तुरन्त चौकस हो गया था।
अंसार रजा के बारे
मे जानने के बाद अब वह शक्ल से ही एक दुर्दान्त अपराधी लग रहा था। उसने हाथ जोड़ कर
बड़ी शालीनता से सभी का अभिवादन करके कहा… जनाब, कैसी पार्टी चल रही है? कोई कुछ नहीं
बोला परन्तु सभी ने मुस्कुरा कर उसका अभिवादन किया। एक वृद्ध मौलाना ने पूछा… अंसार
मियाँ आज की पार्टी किस संदर्भ मे दी गयी है? …आप तो जानते है कि सबसे बड़े सूबे के
चुनाव अगले साल होने वाले है। अब तैयारी शुरु करने का समय आ गया है। उस आदमी की नजर
जैसे ही उस युवती पर पड़ी जो अभी तक रोहिंग्या पर बोल रही थी तो वह मुस्कुरा कर बोला…
चांदनी इन लोगों को क्यों भड़काने मे लगी हुई हो? जाकर कर मेहमानों की देखभाल करो। अपने
वामपंथी एजेन्डा को समाजवादियों मे मत चलाओ। वह युवती तुनक कर बोली… अब्बा, अब समय
आ गया है कि आप भी अपनी कौम के लिए कुछ कीजिए। वह जाने के लिए
जिस आवेश मे मुड़ी तो मुझसे टकरा गयी जिसके कारण मेरे हाथ मे पकड़ी हुई ड्रिंक ने मेरी
शर्ट और उसके कुर्ते को भिगो दिया था। वह गुस्से मे मुझे धक्का देकर चली गयी परन्तु
इसके कारण सबकी नजर पहली बार मेरी ओर चली गयी थी। अंसार रजा ने तुरन्त कहा… मियाँ आपके
कपड़े खराब हो गये। एक नयी शर्ट मंगवा देता हूँ। मैने मना करते हुए कहा… शुक्रिया जनाब।
यह अल्कोहल है। हवा लगते ही उड़ जाएगा। प्लीज इट्स ओके। नीलोफर ने भी मुझे अनदेखा करते
हुए कहा… अंसार साहब, आपको रिजवी साहब याद कर रहे है। चलिए आपको उनसे मिलवाना था। अंसार
बड़े अदब से सबसे इजाजत लेकर एक दिशा मे आगे बढ़ गया। एक बार फिर से लोगों ने बात करना
आरंभ कर दिया था परन्तु उनका मुद्दा रोहिंग्या मुस्लिमों पर ही अटक गया था। मै दूसरे
समूह की ओर बढ़ गया था।
मै चुपचाप एक नये
समूह मे खड़ा हो गया था। एक अधेड़ से दिखने वाले आदमी ने कहा… जमात की ओर से खबर आयी
है कि फौज ने कश्मीर मे कत्लेआम मचा दिया है। इसी कारण उन्हें इज्तिमा को भी स्थागित
करना पड़ा है। उनके सभी नेता फरार है। …जनाब, मैने तो पहले ही फारुख को इसके बारे मे
बताया था कि इज्तिमा की खबर सुनते ही फौज हरकत मे आ जाएगी लेकिन फारुख हम पर दबाव डाल
रहा था कि रोहिंग्या का एक जत्था जम्मू मे भेज दिया जाए। तभी एक और वृद्ध से आदमी ने
कहा… इस बार रोहिंग्या का कौन सा समूह जाएगा? …इस बार असम के बजाय बंगाल से उनको भेजा
जाएगा। पहला वाला वृद्ध यह सुनते ही बिदकते हुए बोला… यह तो गलत बात है। हम लोग कब
तक उन्हें संभल मे छिपा कर रख सकेंगें। अब तो वहाँ की पुलिस भी चौकन्नी हो गयी है।
अब जल्दी से जल्दी उन लोगों को वहाँ से हटाना पड़ेगा। …फिरदौस मियाँ थोड़ा और समय लग
जाएगा। इसलिये कुछ दिन उन लोगों को चौकन्ना रहने की जरुरत है। फारुख की ओर से अभी तक
कोई जवाब नहीं आया है। …क्या कुछ दिन आप उन्हें
देवबंद मे नहीं रख सकते? एक अधेड़ सा दिखने वाला मौलाना धीरे से बोला… मियाँ, जमात की
बैठक अगले हफ्ते जुमे को आजमगढ़ मे हो रही है। अगर समय मिले तो आप सभी से कह रहा हूँ
कि उस बैठक मे शरीक होने की कोशिश कीजिएगा। वहाँ पर उपस्थित
सभी लोग फिर से आने वाले चुनाव के बारे मे चर्चा करने लगे थे। मै उन सबकी छवि और नाम
को अपने दिमाग मे बैठाने मे व्यस्त हो गया था।
कुछ देर बाद मैने
चुपचाप घूमते हुए वेटर से ड्रिंक्स का ग्लास लिया और टहलते हुए एक और समूह की ओर बढ़
गया। इस समूह मे सभी युवा दिख रहे थे। …नयी कट्टरवादी हिन्दु सरकार का एजेन्डा चलने
नहीं दे सकते। …पाँच साल तक तो इन्हें बर्दाश्त करना ही पड़ेगा। …तुम्हारी संस्थान इसके
बारे मे क्या कर रही है। …जब से विद्यार्थी परिशद पर बैन लगा है तब से हम सावधान हो
गये है। अब हम अपनी संस्था को अब मुख्य धारा मे लाने की कोशिश मे जुटे हुए है। अभी
कुछ दिन पहले हमने दिल्ली के जामिया मे अंसार साहब की बेटी चांदनी की मदद से अपना आफिस
खोला है। …अरे वह तो कट्टर वामपंथी है। कहीं ऐसा न हो कि वह हमारी मुहिम को वामपंथियों
की भेंट न चढ़ा दे। उनमे से एक हिजाब मे लड़की बोली… हमारे संगठन के साथ वहाँ की अन्य
और संस्थायें भी खड़ी है। तभी एक और महिला बोली… मस्जिदों और मदरसों को भी इस काम मे
लगाना पड़ेगा। …आएशा, यह मौलाना लोग लालची के साथ बदमाश भी है। इसी सिलसिले मे हम बंगाल
मे मौलाना कादिरी से मिलने गये थे। वह हरामखोर रोहिंग्या शरणार्थियों के बारे मे बात
करने के बजाय हम पर ही डोरे डाल रहा था। …हाँ यह सच बोल रही है। हरामी हमे समझा रहा
था कि वामपंथी विचाधारा तो औरत की जिस्मानी आजादी की पैरोकार है। वह तो शुक्र था कि उस दिन शाहिद और सैफ हमारे साथ
थे अन्यथा वह तो हमारे बारे मे कुछ और ही ठान कर बैठा हुआ था।। मै उनकी बात कुछ देर
चुपचाप सुनता रहा और फिर उन्हें छोड़ कर एक अन्य समूह की ओर बढ़ गया।
मेरे हाथ मे अभी भी
भरा हुआ ग्लास था। तभी एक आवाज मेरे कान मे पड़ी… सुनिए। मैने घूम कर देखा तो चाँदनी
मेरी ओर बढ़ते हुए बोली… आई एम सारी। मैने मुस्कुरा कर कहा… इट्स ओके। वह मेरे समीप
आकर खड़ी हो गयी और मेरी ओर देखते हुए बोली… आपको यहाँ पहले कभी नहीं देखा है। उस पर
पहली बार एक भरपूर नजर डाल कर मैने कहा… आप ने ठीक पहचाना। मै पहली बार कश्मीर छोड़
कर घूमने निकला हूँ। वह मुस्कुरा कर बोली… आप पहली बार दिल्ली आये है। …जी। एक पल रुक
कर मैने कहा… आपकी बात सुनी थी। बहुत दुख हुआ कि हमारी कौम उन रोहिंग्या शरणार्थियों
के बारे मे कुछ नहीं कर रही है। हमारी कौम की लड़कियों का ऐसा उत्पीड़न तो मैने सिर्फ
कश्मीर मे सुना था। वह कुछ बोलने जा रही थी परन्तु एकाएक वह संजीदा हो गयी थी। मैने
उसको देखते हुए पूछा… देखिए मैने अपनी आँखों से भारतीय फौज के कारनामे देखे है। क्या
आपने भी रोहिंग्या के उपर अत्याचार होते हुए देखा है? वह झेंप कर सिर झुका कर बोली…
नहीं। मेरे वहाँ के कुछ साथियों ने बताया है। …आपने जब इसका जिक्र कर रही थी तो मैने
भी सोच लिया था कि एक बार मै वहाँ जाकर खुद देखूँगा। क्या आपको पता है कि यह सब कहाँ
हो रहा है? कुछ सोच कर वह बोली… क्या आप कल मुझसे मिल सकते है? …जरुर। मै आपसे कब और
कहाँ मिल सकता हूँ? …आपका फोन नम्बर क्या है। मै आपको फोन पर बता दूँगी। उसकी वामपंथी
विचारधारा से अब तक मै परिचित हो गया था। कुछ सोच कर मैने कहा… देखिए मै भीड़-भाड़ से
दूर रहता हूँ। यह कह कर मैने अपना फोन नम्बर उसे बताया तो उसने जल्दी से अपना फोन निकाला
और मेरा नम्बर मिला कर मिस काल देकर बोली… मेरा नम्बर नोट कर लिजीए। मै कल फोन पर बात
करुँगी। बस इतना बोल कर वह मुड़ी और चली गयी थी।
मैने एक साँस मे अपना
ग्लास खाली किया और दस्तरखान की मेज की ओर बढ़ गया। मेज पर लजीज मुगलई खाना सजा हुआ
था। मैने प्लेट उठाई और खाना खाने बैठ गया। दो व्यक्ति पहले से ही वहाँ बैठे हुए थे।
वह दबी हुई आवाज मे खाना खाते हुए बातचीत कर रहे थे। …मियाँ कश्मीर के क्या हाल है?
मैने चौंक कर उनकी ओर देखा तो वह दोनो मेरी ओर देख रहे थे। …मैने आपको पहचाना नहीं।
…ओह, माफ किजिएगा। जब आप चांदनी से बात कर रहे थे तभी आपकी बात हमारे कान मे पड़ी थी।
मेरा नाम सिकन्दर रिजवी है। यह मेरे मित्र प्रोबीर मित्रा है। मैने दोनो का अभिवादन
किया और खाते हुए कहा… कश्मीर के हालात इससे ज्यादा और क्या बिगड़ेंगें। नयी सरकार बनने
के बाद ही स्थिति सुधरेगी परन्तु जब तक राष्ट्रपति शासन रहेगा तब तक तो फौज की बर्बरता
तो सहनी पड़ेगी। सिकन्दर रिजवी कुछ सोच कर बोला… आप जैसे नवयुवक इस मामले मे क्या कर
रहे है? …जनाब मै कारोबारी आदमी हूँ और सियासत मे मेरी कोई रुचि नहीं है। …कम से कम
आप जैसे कारोबारी लोग हमारी मुहिम के लिए पैसों से मदद तो कर ही सकते है। उसकी बात
सुन कर मेरे दिमाग मे खतरे की घंटी बज गयी थी। पहली बार किसी ने साफतौर पर किसी मुहिम
के लिये पैसों की चर्चा की थी। …रिजवी साहब, वहाँ पर आप कौनसी मुहिम चला रहे है? …हम
कश्मीर की आजादी की मुहिम कश्मीर से बाहर रह कर चला रहे है। इसी सिलसिले मे हम वहाँ
के कुछ संभ्रात लोगों से मिलना चाहते है। क्या आप हमारी कुछ मदद कर सकते है? मै कुछ
जवाब देता कि तभी उसके साथी प्रोबीर मित्रा ने कहा… रिजवी साहब, कश्मीर की आजादी के
लिए परिवारों के बजाय हमें नौजवानों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। …प्रोबीर भाई,
राष्ट्रपति शासन के कारण बाहरी लोगों का कश्मीर मे प्रवेश करना मुश्किल है। कश्मीरी
नौजवानों को अपनी मुहिम से जोड़ने के लिए यहाँ से आपके बहुत से कार्यकर्ताओं को जाना
पड़ेगा लेकिन इन हालात मे जाना, रहना और प्रचार करना नामुमकिन होगा। मै उनकी बात बड़े
ध्यान से सुन कर सोच रहा था कि एक जगह पर ही कितने सारे विघटनकारी गद्दार इकठ्ठे हो
गये थे।
अचानक सिकन्दर रिजवी
उठ कर खड़ा होकर बोला… नीलोफर! तुम यहाँ पर अंसार रजा की पार्टी मे क्या कर रही हो?
मुझे उनके साथ बैठे देख कर नीलोफर भी चौंक गयी थी। वह जल्दी से बोली… रिजवी साहब आप
यहाँ पर कैसे? पाकिस्तान की जश्न-ए-आजादी के बाद आपसे आज मिल रही हूँ। एकाएक मुझे लगा
कि दोनो ही एक दूसरे को यहाँ देख कर असहज हो गये थे। दोनो ने एक ही सवाल पूछा था और
दोनो ही जवाब देने मे अभी तक नाकाम रहे थे। मै चुपचाप उन दोनो के चेहरे पर आये हुए
भावों को पढ़ने की कोशिश कर रहा था। नीलोफर ने जल्दी से बात बदलते हुए कहा… आप इनसे
मिले है। यह कश्मीर के बहुत नामी कारोबारी है। सिकन्दर रिजवी ने झुक कर कहा… यहीं इस
टेबल पर मुलाकात हुई है। आईये बैठिये हमारे साथ और कुछ समय हमे भी दिजिये। मैने जल्दी
से कहा… आप लोग बैठ कर बात किजिये। मै चलता हूँ। अपनी प्लेट उठा कर मै जैसे ही चलने
को हुआ कि तभी नीलोफर ने कहा… समीर, क्या मै आपके साथ चल सकती हूँ। आप मुझे मेरे रास्ते
मे कहीं पर छोड़ दिजियेगा। …जहे नसीब। क्यों नहीं लेकिन अब मै निकलने की सोच रहा था।
वह जल्दी से बोली… मुझे भी एक और पार्टी मे पहुँचना है। मैने जल्दी से सिकन्दर रिजवी
से कहा… अच्छा मुझे इजाजत दीजिए। ऐसी नाजनीन हसीना
को इंतजार कराना गुनाह है। मै महसूस किया कि रिजवी कुछ कहना चाह रहा था परन्तु मेरे
सामने वह कुछ भी बोल पाने मे अस्मर्थ था। मै चुपचाप उठा और नीलोफर के साथ चल दिया।
हम दोनो अंसार रजा से विदा लेकर बाहर निकल आये थे। मैने महसूस किया कि नीलोफर जल्दी
से जल्दी यहाँ से निकल जाना चाहती थी।
अपनी जीप की ओर जाते
हुए मैने कहा… यह क्या मजाक है। यहाँ पर हम दोनो एक दूसरे को नहीं जानते तो तुमने सबके
सामने मुझसे कैसे बात कर ली? …क्योंकि तुम आईएसआई के खास आदमी के साथ बैठे हुए दिखे
इसलिये तुम्हें वहाँ से उठाना मुझे जरुरी लगा था। वह मेरे साथ जीप मे बैठ कर चल दी
थी।… उन दोनो मे से वह कौन है? …सिकन्दर रिजवी। …कहाँ जाना है? …मुझे दीपक सेठी के
घर पर छोड़ दो। …तुम इसको कैसे जानती हो? …एक बार फारुख के पैसे मैने सिकन्दर रिजवी
पास पहुँचाये थे। …तुम्हें डर नहीं लगता कि यहाँ पर तुम्हें काफी लोग नीलोफर के नाम
से जानते है? …नहीं। यह सभी लोगों के पास मैने किसी वक्त पैसे या हथियार पहुँचाये थे।
तभी तो मैने कहा था कि यहाँ आओगे तो बहुत से काम के लोगों से मिलना हो जाएगा। समीर,
सिकन्दर रिजवी को हया के बारे मे जरुर जानकारी होगी क्योंकि इसके संबन्ध सभी मौलानाओं
और मुस्लिम नेताओं के साथ अच्छे है। हया अगर अभी भी यहाँ है तो रिजवी को उसके बारे
मे जरुर कोई जानकारी होगी। मैने उसको दीपक सेठी के घर के बाहर छोड़ते हुए पूछा… क्या
तुम्हारे साथ मै भी अन्दर चलूँ? …नहीं, यहाँ आज कोई पार्टी नहीं बस मीटिंग है। …उसी
मामले मे? वह सिर हिला कर अन्दर चली गयी थी। अब नशा सिर पर चढ़ रहा था तो मै मोनिका
को याद करके अपने फ्लैट की ओर चल दिया।
हमेशा की तरह देर
हो गयी थी। फ्लैट मे चारों ओर शांति थी बस एक नाईट बल्ब से बैठक रौशन थी। मै दबे पाँव
चोरों के भाँति अपने कमरे मे पहुँच कर जल्दी से कपड़े उतार कर बाथरुम मे घुस गया। अपने
आप को हल्का करके अपना बाक्सर पहने ही बिस्तर पर फैल गया था। हल्का नशे का सुरुर और
दिन भर की थकान से मेरी आँखे नींद से भारी हो रही थी। अचानक मुझे लगा कि कोई मेरे करीब
आकर लेट गया है। मैने आँख खोल कर उसकी ओर देखा तो तबस्सुम मेरे साथ आकर चुपचाप लेट
गयी थी। यह रोज रात की कहानी थी। अगर मुझे देर भी हो जाती तब भी वह बीच रात मे उठ कर
मेरे पास आ जाती थी। हम दोनो अपनी सीमाओं के प्रति सजग थे और कभी भी किसी ने लाँघने
की कोशिश नहीं की थी। थे। दो इंसान एक छत के नीचे अपरिचित की तरह आखिर कब तक रहते तो
अकेलेपन मे एक दूसरे का सहारा बन गये थे। नयी नियुक्ति के बाद से मेरा आफीसर्स मेस
मे जाना लगभग बन्द हो गया था। डिनर के पश्चात कैम्पस मे टहल कर रात को वह मेरे साथ
सोने के लिये कमरे मे आने लगी थी। रात को कुछ वह अपनी कहती और मै कुछ उसे अपनी सुनाता
जिससे उसका अकेलेपन का बोध कुछ कम हो जाये।
उसको अपने साथ लेटे
हुए देख कर मै नशे मे धीरे से बड़बड़ाया… तबस्सुम आज तुम अपने कमरे मे चली जाओ। मै आज
पीकर आया हूँ। उसने मुझे अनसुना करके धीरे से मेरी नग्न छाती पर अपने होंठ रख दिये
और उसकी पतली उँगलियाँ बेरोकटोक मेरे सीने के संवेदनशील स्थानों को छेड़ने लगी। मेरे
बचे कुचे विवेक ने मुझे चेताया और मैने उसे अपने से जबरदस्ती अलग करते हुए करवट लेने
की कोशिश की परन्तु मेरी नजर उस पर पड़ी तो मेरा सारा विवेक एक क्षण मे रसातल मे चला
गया था। वह उसी ब्लाउज मे थी। उसकी आधी से ज्यादा सीने की गोलाईयाँ बाहर झाँक रही थी।
मैने उसे दूर करने के लिये जैसे ही हाथ बढ़ाया तो नशे के झोंक मे उसके कंधे के बजाय
मेरा हाथ उसके सीने पर लगा और उसके मुख से एक दर्द भरी आह निकल गयी थी। मेरे हाथ स्वत:
ही आगे बढ़ गये थे। उसके एक स्तन को मैने अपने पंजे मे भर कर धीरे से सहला कर दबाया
तो अबकी बार उसके होंठों से एक गहरी उत्तेजक सीत्कार निकल गयी थी। नशा विवेक का नाश
कर देता है चरितार्थ हो गया था। अगर कुछ बचा हुआ था वह उसके होंठों के निरंतर प्रयास
के कारण स्वाहा हो गया था। हम दोनो ही एक दूसरे के उपर छा गये थे। उसके उन्नत स्तन को मेरी उँगलियॉ नापते हुए
छेड़ती तो वह मचल उठती और उसके होंठ मेरे सीने पर वार करते तो मै उत्तेजना से काँप उठता।
कुछ देर तक उसके उन्नत वक्षस्थल को छेड़ कर मैने उसके होंठों को अपने होंठो
मे दबा कर उसका रस सोखने मे जुट गया था। कामाग्नि दोनो के जिस्मों मे प्रजव्लित हो
उठी थी।
मेरी उँगलियॉ उसके
ब्लाउज के हुक मे उलझी हुई थी कि अचानक मुझे अपने कामांग पर उसके हाथ का स्पर्श हुआ
तो मेरा नशे मे सोया हुआ विवेक एकाएक जाग गया। उसे धक्का देकर मै उठ कर बैठ गया। उसे
वहीं छोड़ कर मै जल्दी से बाथरुम मे घुस गया और शावर को खोल कर उसके नीचे खड़ा हो गया।
दस मिनट तक ठंडे पानी के नीचे खड़ा होने के बाद तौलिया बांध कर जब तक मै बाहर निकला
तब तक वह जा चुकी थी। अब तक मेरा नशा भी समाप्त हो चुका था और मेरा विवेक भी वापिस
लौट आया था। मैने जल्दी से अपने कपड़े पहने और उसके कमरे की ओर चला गया। वह बिस्तर मे
मुँह छिपाये औंधी पड़ी हुई थी। मै उसके बिस्तर पर उसके साथ लेटते हुए बोला… तुम क्या
करने जा रही थी? वह कुछ नहीं बोली तो मैने कहा… पहले ही मिरियम की मौत बोझ अपने सिर
पर ढो रहा हूँ और अब तुम उसको और बढ़ाना चाहती हो। उसने सिर उठा कर मेरी ओर देखा और
फिर डबडबायी हुई पल्कों को झपका कर बोली… उन बहनों के साथ आप सो सकते है परन्तु मेरे
साथ नहीं। यह आपका कौनसा तर्क है। क्या मै आपके लायक नहीं हूँ? मै झल्ला कर बोला… तुम
नहीं समझ रही हो। मै तुम्हारे लायक नहीं हूँ। इस रिश्ते मे तुम्हें सिर्फ दुख और रुसवाई
ही मिलेगी।
वह अबकी बार बिना
झिझके बोली… आपको क्या लगता है कि ऐसे मै बहुत खुश हूँ? कुछ सोचते हुए मैने जवाब दिया…
फिलहाल तो नहीं लेकिन जब तुम अपने अब्बा के पास पहुँच जाओगी तो तुम्हारे मन मे कोई
दुख या पछतावा नहीं होगा। वह एकाएक उठ कर बैठ गयी और अबकी बार वह मुझसे निगाह मिला
कर बोली … आप अभी तक नहीं समझे कि मेरे अब्बा ने आपसे क्यों ऐसा कहा था? उसकी आवाज
मे गंभीरता का एहसास करके मै भी उठ कर बैठ गया और बिना पल्कें झपकाये उसकी ओर देख कर
बोला… उन्होंने ऐसा क्यों कहा था? वह एक पल के लिये झिझकी और फिर धीरे से बोली… मीरवायज
अपने आप को अरब नस्ल के समझते है। उनके कबीले के सलाफी कानून मे एक बालिग लड़की उम्र
से नहीं बल्कि मासिक धर्म के अनुसार बालिग मानी जाती है। एक बालिग लड़की बिना पिता या
भाई के घर से बाहर नहीं निकल सकती। यदि वह बिना इन दो के घर से निकल गयी तो उसकी सजा
सिर्फ मौत है। मौत भी इतनी आसान नहीं कि वह उसका गला रेत कर मार देंगें बल्कि उसको
पकड़ कर पहले कबीले के सारे मर्द उसकी इज्जत तार-तार करेंगें और फिर उसे रेत मे गले
तक दफना कर छोड़ देंगें। यही नहीं वह उस पर जहरीले साँप और बिच्छुओं को छोड़ देंगें जिससे
वह जहन्नुम के दर्द की इंतिहा का एहसास कर सके। इतना बोल कर वह चुप हो गयी थी लेकिन
यह सुन कर मै सिहर उठा था। उसने नजरें उठा कर मेरी ओर देखते हुए कहा… उनकी सजा अभी
खत्म नहीं हुई है क्योंकि दिन मे गिद्ध और उकाब उसके चेहरे को नोंच-नोंच कर अपनी भूख
मिटाएँगें और तपती हुई रेत मे उसका जिस्म झुलसा देगी जिससे बचीकुची कसर रेत के कीड़े
और मकोड़े पूरी कर देंगें। मुजफराबाद मे तो रेत नहीं है तो मीरवायजों ने इस्लामिया मस्जिद
के पीछे एक बीघे का खेत खुदवा कर उसमे रेत भरवा दी है। पिछली पाँच पीढ़ियों से वहीं
पर सलाफी कानून के अनुसार सजा दी जाती है। आप भी नहीं बचोगे क्योंकि मै आपके साथ आयी
थी। आपको सौ कोड़े मार कर वहीं पर मेरे साथ ही गाड़ देंगें। आपका भी वही हश्र होगा जो
मेरा होगा। इस जिल्लत की मौत से बचाने के लिये अब्बू ने आपसे ऐसा करने के लिये कहा
था।
मै उसकी यह बात सुन
कर उसके लिये अन्दर ही अन्दर आतंकित हो उठा था।
मुजफराबाद
उसी समय बीच रात मे
जनरल मंसूर कमरे मे चहलकदमी करते हुए बोला… तुम्हारे खानदान की लड़की को कोई यहाँ का
बाशिन्दा तो भगाने की हिम्मत नहीं कर सकता तो भला वह किसके साथ भाग गयी? बूढ़ा पीरजादा
रह-रह कर गुस्से मे अपनी मुठ्ठियाँ कभी खोलता और कभी बंद करता परन्तु उसे कोई जवाब
नहीं सूझ रहा था। …उसका बाप फारुख भी अचानक श्रीनगर से गायब हो गया है। क्या तुम्हारे
पास उसकी कोई खबर है? …नहीं जनाब। हम तो इज्तिमा के तैयारी में व्यस्त थे। मंसूर के
चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थी। एक ही सवाल सबके मे मन मे था कि वह दोनो न
जाने अचानक कहाँ गायब हो गये है। …जनाब, आप एक बार अब्दुल लोन से पता किजीए कि वहाँ
क्या चल रहा है। …शायद तुम्हें पता नहीं कि अब्दुल लोन एक महीने के अंतराल मे फौत हो
गया था। …या खुदा मदद। बूढ़ा मीरवायज बड़बड़ाया तो मंसूर ने झ्ल्ला कर कहा… क्या खाक मदद
मिलेगी जब सब कुछ तबाह होता हुआ सामने दिख रहा है।
कुछ देर चुप रहने
के बाद एक बार फिर जनरल मंसूर ने कहा… मीरवायज, पैसों की अगली किस्त के लिये वह लोग
जनरल शरीफ दबाव पर डाल रहे है कि घाटी मे कोई धमाका जल्दी होना चाहिए। …जनाब, आप ही
बताईए कि यह कैसे मुमकिन है। पिछले एक महीने मे हमारे तीन ड्र्ग्स और हथियारों की इमदाद
भारतीय फौज के द्वारा पकड़ी गयी है। अब तक हमारा लगभग तीस करोड़ रुपये का नुकसान हो गया
है। एक ओर पैसों की किल्लत हो गयी है। दूसरी ओर अफगानी वितरक पिछला हिसाब चुकाये बिना
नया माल देने से मना कर रहे है। आपने भी असला-बारुद देने से मना कर दिया है। अब आप
ही बताईये कि हम कैसे किसी काम को अंजाम दे सकते है। मीरवायज की बात सुन कर जनरल मंसूर
गहरी सोच मे डूब गया था। उसे जनरल शरीफ की
बलूचिस्तान की धमकी याद आ गयी थी।
अंसार रझा की पार्टी तो गद्दार और देशके दुश्मनोसे भरी पडी थी, अच्छा हुवा निलोफरने एन वक्तपे आके बात संभाली. लग तो रहा है निलोफर मदद करेगी, पर त्रीया चरित्र का कुछ कहा नही जाता, चांदणी नाम की एक वामपंथी नागिन जल्द समीर के झोलीमे आ गीरेगी ऐसा लगता है, वामपंथ और व्यभिचार एक दुसरे के साथ चलते है, तो ये कोई बडी बात नही होगी ये "हनी" समीर के हत्थे चढे😉 तबस्सुम के कबिलेकी कारगुजारी सुनकर रोन्गटे खडे हुये. समीर को तबस्सुम के बारे मे कोई फेअर निर्णय लेने का वक्त आ गया है. देखते है आगे क्या क्या होता है, समीर के लिये क्या मुश्कील खडी होगी?
जवाब देंहटाएंशुक्रिया प्रशान्त भाई। लुटियन्स दिल्ली का नाम देश विरोधी गतिविधियों मे अकसर सुनने को मिलता है। यह एक प्रयास था कि आखिर वह कौन लोग है जो लुटियन्स दिल्ली की जमात मे शामिल होते है। हरेक किरदार की भारत के खिलाफ साजिश मे अपनी भुमिका है। उम्मीद करता हूँ कि आपको मेरा यह प्रयास पसंद आयेगा।
हटाएंवीके और समीर के बीच वार्तालाप हमारी जंग लगी शासन तंत्र के बारे में बहुत कुछ बताया और फिर कैसे एक इतनी संवेदनशील जगह हर किसी गुप्तचर एजेंसियों के लिए अखाड़ा बन चुका है। आखिर वीके के बात भी सही है की इस घर के सांपों को फौज जैसे सबक सीखा नही सकते। फिर समीर का इतने अपराधिक लोगों से मिलना और थोड़ी बहुत उनकी अगले कुछ कामों की झलकियों के बारे में पता चलना बहुत ही बड़ी बात है। तबस्सुम के अपना पकड़े जाने पे होने वाले सजा के बारे में सुनकर सच में किसी का रूह कांप जाए। जबरदस्त अंक वीर भाई।
जवाब देंहटाएंअल्फा भाई धन्यवाद। न जाने ऐसे कितने साँप इस देश मे पल रहे है और देश को खोखला कर रहे है। आप खुद ही देख लिजिये कि कौन कैसे चीन की पैरवी कर रहा है, कैसे अचानक सड़क पर भीड़ दंगा करने के लिये उमड़ पड़ती है, और कैसे संचार माध्यम पैसों के लालच मे खबरों तोड़ मरोड़ कर दिखाता है।
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